Aswikriti Mein Utha Haath [PDF]

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Table of contents :
एक मृत महापुरुष का जन्म
संचेतना के ठोस आयाम
एक और असहमति
लकीरों से हट कर
अतीत के मरघट से मुक्ति
तोड़ने का एक और उपक्रम
उगती हुई जमीन
अंधेरे कूपों में हलचल

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अस्वीकृ ति में उठा हाथ



प्रवचन-क्रम 1. एक मृि महापुरुष का जन्म...................................................................................................2 2. संचेिना के ठोस आयाम .................................................................................................... 18 3. एक और असहमति ........................................................................................................... 34 4. लकीरों से हट कर ............................................................................................................. 47 5. अिीि के मरघट से मुति ................................................................................................... 61 6. िोड़ने का एक और उपक्रम ................................................................................................ 75 7. उगिी हुई जमीन .............................................................................................................. 88 8. अंधेरे कू पों में हलचल ...................................................................................................... 101



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ पहला प्रवचन



एक मृि महापुरुष का जन्म मेरे तप्रय आत्मन्! वेटटकन का पोप अमरीका गया हुआ था। हवाई जहाज से उिरने के पहले उसके तमत्रों ने उससे कहााः एक बाि ध्यान रखना, उिरिे ही हवाई अड्डे पर पत्रकार कु छ पूछें िो थोड़ा सोच-समझ कर उत्तर दे ना। और हां और न में िो उत्तर दे ना ही नहीं। जहां िक बन सके , उत्तर दे ने से बचने की कोतिि करना; अन्यथा अमेटरका में आिे ही परे िानी िुरू हो जाएगी। पोप जैसे ही हवाई अड्डे पर उिरा, वैसे ही पत्रकारों ने उसे घेर तलया और एक पत्रकार ने उससे पूछााः वुड यू लाइक टु तवतजट एनी न्युतडस्ट कैं प वाइल इन न्यूयाक? क्या िुम कोई ददगंबर क्लब, कोई न्युतडस्ट क्लब, कोई नग्न रहने वाले लोगों के क्लब में, न्यूयाक में रहिे समय जाना पसंद करोगे? पोप ने सोचा, हां और न में उत्तर दे ना खिरनाक हो सकिा है। हां कहने का मिलब होगा दक मैं जाना चाहिा हं दे खने। न कहने का मिलब होगा दक जाने से डरिा हं। उत्तर दे ने से बचने के तलए उसने उलटा प्रश्न पूछा। उसने पूछााः इ.ज दे यर एनी न्युतडस्ट क्लब इन न्यूयाक? कोई न्यूयाक में नंगे लोगों का क्लब है? दिर बाि दूसरी चल पड़ी। उसने सोचा दक छु टकारा हुआ। लेदकन दूसरे ददन सुबह अखबारों में पहले ही पृष्ठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में खबर छपी थी। खबर थी दक महामतहम परम पूज्य पोप ने हवाई अड्डे पर उिरिे ही पत्रकारों से पहली बाि यह पूछी, इ.ज दे यर एनी न्युतडस्ट क्लब इन न्यूयाक? कोई नंगे लोगों का क्लब है न्यूयाक में? यह उिरिे ही पहली बाि पत्रकारों से महामतहम पोप ने पूछी। कु छ ऐसा ही मामला मेरे और पत्रकारों के बीच भी हो गया। लेदकन मेरे संबंध में और पत्रकारों के बीच में और पोप और पत्रकारों के बीच हुई बाि में थोड़ा िक है। एक िो िक यह है दक मैंने हां और न में उत्तर ददए। मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हं दक उत्तरों से बचने की कोतिि करूं। घुमाव-दिराव से मुझे कोई नािा और संबंध नहीं है। जो बाि मुझे ठीक लगे और जैसी लगे वैसा ही कह दे ने को मैं किव्य समझिा हं। मेरे उत्तरों िक िो ठीक था, लेदकन उन उत्तरों को इस िरह तबगाड़ कर, तवकृ ि करके अधूरे प्रसंग के बाहर उपतस्थि दकया गया। मैं िो यहां नहीं था, पंजाब था। लौटा िो यहां दे ख कर बहुि हैरानी मालूम पड़ी और आश्चय मालूम पड़ा दक चीजें इस रं ग में भी पेि की जा सकिी हैं। लेदकन तमत्र िो घबड़ाए हुए थे। मैं खुि हुआ। मैंने कहााः इससे घबड़ाने की बाि नहीं। एक तलहाज से पत्रकारों ने बड़ी कृ पा की है और भतवष्य में भी ऐसी ही कृ पा करिे रहेंगे िो अच्छा होगा। बहुि लोगों िक खबर पहुंच गई, बाि पहुंच गई। कोई दिकर नहीं दक गलि ढंग से पहुंची। लेदकन वे मुझे सुनने आ सकें गे िो उन्हें ठीक बाि का बोध हो सके गा। कई बार कु छ लोग तजन बािों को सोचिे हैं दक अतभिाप बन जाएंगी, वे ही बािें वरदान भी बन सकिी हैं। मैं राजकोट गया, वहीं से लौटा आज। वहां तमत्र बहुि घबड़ाए हुए थे। लेदकन पटरणाम यह हुआ दक जहां दस हजार लोग मुझे सुनिे थे, वहां बीस हजार लोगों ने मुझे सुना। वे समझ कर गए और आश्चय करिे गए दक



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चीजों को यह रं ग और यह रूप भी ददया जा सकिा है। जो मैंने बाि की थी इन िीन ददनों में, उसी संबंध में पूरी बाि मुझे करनी है। मेरी दृति में भारि के दुभाग्यों में से एक दुभाग्य यह रहा है दक हम अपने महापुरुषों की आलोचना करने में आज िक भी समथ नहीं हो पाए। और जो कौम अपने महापुरुषों की आलोचना करने में समथ नहीं हो पािी, उस कौम के संबंध में दो ही बािें कही जा सकिी हैं। एक िो यह दक वह अपने महापुरुषों को इस योग्य नहीं समझिी दक उनकी आलोचना की जा सके या अपने महापुरुषों को इिना कमजोर और साधारण समझिी है दक आलोचना में वे टटक नहीं सकें गे। मैं गांधी के संबंध में ये दोनों ही बािें मानने को िैयार नहीं हं। मेरी समझ में गांधी कोई कागजी महापुरुष नहीं हैं दक आलोचना की वषा आएगी और उनका रं ग-रोगन बह जाएगा। कु छ कागजी महापुरुष होिे हैं उन्हें आलोचना से बचाया जाना चातहए, क्योंदक वे आलोचना में खड़े नहीं रह सकिे हैं। लेदकन गांधी को मैं कागजी महापुरुष नहीं मानिा, वे कोई कागज की प्रतिमा नहीं हैं कच्चे रं ग में रं गी हुई दक वषा आएगी आलोचना की और सब नि हो जाएगा। गांधी को मैं दुतनया के उन थोड़े से महापुरुषों में से एक मानिा हं, जो पत्थर की प्रतिमाओं की िरह हैं, तजन पर वषा होिी है िो धूल बह जािी है, प्रतिमा और तनखर कर प्रकट होिी है। गांधी कोई कच्चे महापुरुष नहीं हैं। लेदकन गांधी के पीछे जो अनुयातययों का वग है, वह िायद स्वयं कच्चा है, इसतलए गांधी को भी कच्चा मान लेिा है। खुद के भय ही हम अपने महापुरुषों पर भी आरोतपि कर दे िे हैं। हमारी अपनी ही हालिें हम अपने महापुरुषों पर भी थोप दे िे हैं। गांधी की आलोचना तनतश्चि की जानी चातहए। क्योंदक गांधी की आलोचना से गांधी का िो कु छ भी तबगड़ने वाला नहीं है, हमारा जरूर कु छ तहि हो सकिा है। यह बाि अत्यंि अप्रौढ़ और इम्मैच्योर मालूम होिी है दक हम अपने महापुरुषों की तसि पूजा करें और कभी कोई सृजनात्मक आलोचना, दक्रएटटव दक्रटटतसज्म न करें । यह भी कु छ भय मालूम होिा है पीछे दक कहीं हमारे महापुरुष की कोई भूल न खयाल में आ जाए। ध्यान रखना चातहए दक पृथ्वी पर ऐसा कोई मनुष्य कभी नहीं हुआ है तजससे भूलें न होिी हों। एक बाि का िक होिा है--छोटे लोग छोटी भूलें करिे हैं, महापुरुष बड़ी भूलें करिे हैं। महापुरुष छोटी भूलें नहीं करिे हैं। लेदकन पृथ्वी पर कोई मनुष्य कभी नहीं होिा तजससे भूल न होिी हो। तजससे भूल नहीं होिी है वह मोक्ष चला जािा है। उसे पृथ्वी पर आने की कोई जरूरि ही नहीं होिी है। लेदकन हमारे मन में यह घबड़ाहट रहिी है दक हमारे महापुरुष की कोई भूल, कोई गलिी खयाल में न आ जाए। इसतलए पूजा करो, प्राथना करो, उपासना करो, लेदकन तवचार कभी मि करना। क्योंदक ध्यान रहे, जैसे ही तवचार िुरू होगा, आलोचना प्रारं भ होिी है। तबना आलोचना के तवचार कभी होिा ही नहीं है। पूजा हो सकिी है, स्िुति हो सकिी है, प्रिंसा हो सकिी है। लेदकन वह तवचार नहीं है। और जो कौम अपने महापुरुषों पर तवचार नहीं करिी, उसके महापुरुषों का जीवन व्यथ हो जािा है, वह उसके कौम के काम में ही नहीं आ पािा है। हम िीन-चार हजार वषों से यही कर रहे हैं! महावीर हैं, बुद्ध हैं, कृ ष्ण हैं, राम हैं। हमें उनकी पूजा करनी है, तवचार उन पर कभी नहीं करना है? ध्यान रहे, तजन पर हम तवचार नहीं करिे हैं, उनका हमारे जीवन पर कोई संस्पि, हमारे जीवन को पटरविन करने वाला कोई भी प्रभाव कभी नहीं पड़िा है। 3



पूजा से हम रूपांिटरि नहीं होिे हैं, तवचार से हम रूपांिटरि होिे हैं। और पूजा हो सकिा है तसि हमारी िरकीब हो महापुरुषों से बच जाने की। और मुझे िो ऐसा ही लगिा है दक तजससे हम बचना चाहिे हैं, उसी को भगवान बना कर मंददर में तबठा दे िे हैं। दिर हमारी झंझट समाप्त हो जािी है। कभी दो िू ल चढ़ा आिे हैं, कभी माला पहना आिे हैं, कभी स्िुति कर लेिे हैं, कभी जन्म-ददन मना लेिे हैं और हमसे उसका दिर कोई संबंध नहीं रह जािा! तजस महापुरुष को हमें व्यथ करना हो, उसकी हमने िरकीब तनकाल ली है दक हम उसकी पूजा करें गे, स्िुति करें गे, लेदकन उस पर तवचार नहीं करें गे। क्योंदक तवचार करने का पटरणाम एक ही हो सकिा है दक तवचार करने से वह हमें इस योग्य मालूम पड़े दक हम अपने जीवन को बदलें। लेदकन हम बहुि होतियार हैं, यह दे ि बहुि होतियार है, अपने आप को धोखा दे ने में। यह दे ि सोचिा है दक हम महावीर की पूजा करिे हैं िो हम बड़ा भारी काम कर रहे हैं; दक हम बुद्ध की पूजा करिे हैं िो िायद बुद्ध पर कोई उपकार कर रहे हैं, या गांधी की पूजा िुरू की है िो गांधी पर हमारा कोई अनुग्रह हो रहा है। इस भ्ांति में रहने की जरूरि नहीं है। महापुरुष पूजा के तलए न पैदा होिे हैं, न उनकी पूजा की कोई लालसा है। और तजसके मन में पूजा की लालसा हो; वह और कु छ भी हो, महापुरुष नहीं हो सकिा है। महापुरुष का उपयोग यह है दक वह हमारे जीवन में, हमारे खून में, हमारे तवचार में, हमारी प्रतिभा में प्रतवि हो सके । और हमारी प्रतिभा में दकसी को द्वार िभी तमलिा है, जब हम तवचार करिे हैं, आलोचना करिे हैं, खोज-बीन करिे हैं, अन्वेषण करिे हैं, िब प्रवेि तमलिा है हमारी प्रतिभा के भीिर। हमारे सारे महापुरुष भारि की प्रतिभा के बाहर खड़े हुए हैं, मंददरों में बंद। भारि के प्राणों में उनका कोई प्रवेि नहीं हो सका है। मैं नहीं चाहिा हं दक पुराने महापुरुषों की िरह गांधी जैसा अदभुि व्यति भी व्यथ हो जाए। इसतलए मैं चाहिा हं दक गांधी पर तजिनी सिेज आलोचना और तवचार हो सके उिना ही सौभाग्य मानना चातहए। लेदकन वह जो गांधी के पीछे चलने वाले गांधीवाददयों का िपका है, वह इस बाि से बहुि घबड़ािा है। वह क्यों घबड़ािा है? वह इसतलए घबड़ािा है दक उसे डर है दक गांधी की आलोचना अंििाः गांधीवादी की आलोचना बन सकिी है। उसका भय। उसका भय यह नहीं है दक गांधी की आलोचना से उसको कोई परे िानी होने वाली है। उसका भय यह है दक गांधी की आड़ में वह खुद तछपा हुआ है और गांधी की आलोचना कहीं उसकी आलोचना न बन जाए। इसतलए वह गांधी की आलोचना और तवचार करने से बचना चाहिा है। वह कहिा है पूजा के थाल चलाओ और गांधी को भगवान बना लो। मैं भगवान से एक ही प्राथना करिा हं दक कृ पा करना, गांधी को भगवान मि बनने दे ना। क्योंदक तजिने लोग हमारे पहले भगवान बन गए हैं, वे भगवान बनिे ही व्यथ हो गए। समाज और दे ि के तलए उनका कोई उपयोग नहीं रह गया। गांधी एक अदभुि व्यति हैं। िायद पृथ्वी पर दो-चार लोग ही उस कोटट के पैदा हुए हैं। लेदकन पीछे चलने वाले लोग हमेिा महापुरुष की हत्या करने की कोतिि करिे हैं। वह हत्या उनको भगवान बना कर की जािी है। तजस आदमी को भी भगवान बना ददया, उसकी आदमी की िरह हत्या हो गई। भगवान की िरह स्थापना हो गई, आदमी की िरह हत्या हो गई।



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और हम आदतमयों से ही प्रभातवि हो सकिे हैं और आदतमयों के साथ ही हम जी सकिे हैं और आगे चल सकिे हैं। गांधी के साथ दिर वही िरारि िुरू हो गई जो हमने राम, कृ ष्ण, बुद्ध और महावीर के साथ की थी। लेदकन हम अिीि की भूलों से कु छ सीखिे भी मालूम नहीं पड़िे हैं। मैं चाहिा हं दक गांधी को हम मनुष्य ही बनाए रखें, िादक वे हमारी मनुष्यिा के काम आ सकें । हम उन पर तनरं िर तवचार कर सकें , सोच सकें और आगे बढ़ सकें । इस खयाल से मैंने उनकी कु छ आलोचना की थी। मुझे अनेक पत्र पहुंचे दक जो व्यति मर चुका है उसकी आलोचना हमें नहीं करनी चातहए। मैंने उन पत्रों के उत्तर में तलखा दक िायद िुम्हें पिा नहीं है दक गांधी उन लोगों में से नहीं हैं जो इिनी आसानी से मर जाएं। गोडसे ने जो भूल की थी वही गांधीवादी भी भूल करिे हैं। गोडसे ने भूल की थी दक गोली मार दें गे, इस आदमी का िरीर मर जाएगा, िो यह गांधी मर जाएगा। गांधीवादी भी समझिे हैं दक िरीर तगर गया गांधी का िो गांधी मर गए। अब उनकी आलोचना नहीं करनी चातहए। यह बाि ठीक है छोटे-मोटे लोगों के बाबि दक वे मर जाएं िो हमें उनकी प्रिंसा ही करनी चातहए, क्योंदक मरे हुए आदमी की क्या आलोचना करनी है! एक बुरा आदमी भी गांव में मर जािा है िो भी उसकी कब्र पर लोग कहिे हैं दक बड़ा अच्छा आदमी था। छोटे आदतमयों के साथ यह ठीक है दक उन बेचारों के पास क्या है जो उनके मरने के बाद बच रहेगा! लेदकन गांधी जैसे महापुरुषों के साथ यह अन्याय है दक हम समझें दक वे मर गए। मैं गांधी को, उनके प्रभाव को अभी जजंदा मानिा हं और उनके साथ एक जजंदा आदमी का व्यवहार करना चाहिा हं, एक मरे आदमी का नहीं। लेदकन गांधीवादी कहिे हैं दक वे मर गए, अब उनकी बाि नहीं करनी चातहए। िायद आपने सुना हो, दक सुकराि की तजस ददन मौि हुई, उसे जहर ददया गया। जहर दे ने के पहले उसके तमत्र उसके पास गए और उसके एक तिष्य क्रेटो ने उससे पूछा दक सांझ आपको जहर दे ददया जाएगा िो आप हमें बिा दें दक हम दिनाएंगे दकस िरह आपको? दकस तवतध से, दकस माग से? गड़ाएं, जलाएं, क्या करें ? आप रास्िा बिा दें , वैसा हम करें । पिा है? सुकराि हंसने लगा और उसने क्रेटो से कहा, पागल, जो मेरे दुश्मन समझिे हैं दक मुझे जहर दे कर मार डालेंगे वही िुम समझिे हो दक िरीर के मरने से मैं मर जाऊंगा और िुम मेरे दिनाने का तवचार करने लगे हो! मैं िुम्हें कहिा हं क्रेटो, दक िुम सब मर जाओगे, िुम सब दिना ददए जाओगे, िब भी मैं जजंदा रहंगा! आज ढाई हजार साल हो गए, सुकराि अभी जजंदा है। क्रेटो का नाम तसि हमें इसीतलए याद है दक सुकराि ने वह नाम तलया था। क्रेटो कभी का मर चुका। वे साथी मर चुके, तजन्होंने सोचा होगा हम सुकराि को दिना रहे हैं, लेदकन सुकराि जजंदा है। महान व्यति का एक ही अथ होिा है दक वह िरीर के पार उठ गया। अब िरीर के तमटने से उसके तमटने की कोई संभावना नहीं है। मैं गांधी को एक जजंदा आदमी मान कर व्यवहार करना चाहिा हं। और मुझे लगिा है दक अभी गांधी को गांधीवादी दिनाने की बाि न करें िो बहुि अच्छा है। इिने जल्दी मरा हुआ मानने की जरूरि नहीं है। लेदकन वे भयभीि हैं दक कोई आलोचना न की जाए। और मैंने आलोचना क्या की है? मेरी आलोचना गांधी के तवरोध में नहीं है, लेदकन गांधीवाद के तवरोध में है। और मेरी दृति है दक सच बाि िो यह है दक गांधीवाद जैसी कोई चीज गांधी की कल्पना में थी ही नहीं। गांधी नहीं मानिे थे दक उनका कोई वाद है। मानिे थे दक जो उनकी 5



अंिदृति को ठीक मालूम पड़िा है, वह प्रयोग करिे चले जािे हैं। उनका कोई तसस्टम, कोई रे खाबद्ध वाद नहीं है, लेदकन गांधी के पीछे जो तगरोह इकट्ठा हुआ, उसने गांधीवाद खड़ा कर रखा है। दुतनया में हमेिा अनुयायी--पंथ, संप्रदाय और वाद खड़े करिे हैं और तजिने पंथ, संप्रदाय और वाद मजबूि हो जािे हैं, उिना ही हम और हमारे महापुरुषों के बीच एक पत्थर की दीवाल खड़ी हो जािी है, तजसको पार करना मुतश्कल हो जािा है। गांधी का कोई वाद नहीं है इन अथों में, लेदकन गांधी ने जीवन भर जो दकया है, जो सोचा है, जो तवचारा है, वह है, और उस पर हमें बहुि स्पि तनणय लेना जरूरी है, क्योंदक उसी तनणय के आधार पर इस दे ि के भतवष्य को बनाने का हम तवचार करें गे। गांधीवादी कहिे हैं दक उस पर तवचार नहीं करना है। जो उन्होंने कहा है उसे वैसा ही मान लेना है। यह बाि इिनी अंधी और खिरनाक है दक अगर इन सारी बािों को इसी िरह मान तलया गया िो गांधी की आत्मा भी आकाि में कहीं होगी िो रोएगी, क्योंदक गांधी खुद अपनी जजंद गी में हर वष अपनी तपछली भूलों को स्वीकार करिे रहे और मानिे रहे दक जो भूलें हो गई हैं उन्हें छोड़ दे ना है। अगर गांधी जजंदा होिे िो इन बीस वषों में उन्होंने बहुि सी भूलें स्वीकार की होिीं। लेदकन गांधीवादी कहिा है दक अब हमें कोई भूल पर ध्यान नहीं दे ना है। जो कहा गया है उसे चुपचाप मान लेना है। यह अंधापन बहुि महंगा सातबि होगा। बुद्ध और महावीर को अंधेपन से मान लेने से उिना नुकसान नहीं हो सकिा, क्योंदक बुद्ध और महावीर ने व्यतिगि मनुष्य की आत्मोत्कष की बाि की है। जहंदुस्िान में एक पहले धार्मक व्यति थे गांधी तजन्होंने सामातजक-उत्कष का भी तवचार दकया है। बुद्ध और महावीर को मान लेने से एक-एक व्यति भटक सकिा है, गांधी को अंधेपन से मान लेने से पूरे समाज का भतवष्य भटक सकिा है, पूरा दे ि भटक सकिा है। इसतलए गांधी पर तवचार कर लेना बहुि जरूरी है। गांधी एक अथों में अनूठे हैं भारि के इतिहास में। भारि के धार्मक व्यति ने कभी भी समाज, राजनीति और जीवन के संबंध में सीधी कोई रुतच नहीं ली है। भारि का महापुरुष सदा से पलायनवादी रहा है, उसने पीठ कर ली है समाज की िरि। उसने मोक्ष की खोज की है, समातध की खोज की है, सत्य की खोज की है-लेदकन समाज और इस जीवन का भी कोई मूल्य है यह उसने कभी स्वीकार नहीं दकया। गांधी पहले तहम्मिवर आदमी थे तजन्होंने धार्मक होिे हुए समाज की िरि से मुंह नहीं मोड़ा। वे समाज के बीच में खड़े रहे और जजंदगी के साथ और जजंदगी को उठाने की उन्होंने कोतिि की। यह पहला धार्मक आदमी था जो जीवन-तवरोधी नहीं था, तजसका जीवन के प्रति स्वीकार का भाव था। स्वाभातवक, पहले आदमी से बड़ी भूलें होनी संभव है। पायोतनयर हमेिा भूलें करिा है। वह पहले आदमी थे, एक नई ददिा में प्रयोग कर रहे थे और अगर हम उनको अंधे होकर माने लेंगे िो हम बहुि खिरनाक रास्िों पर जा सकिे हैं। जो बािें मैंने आलोचना की हैं उनमें से कु छ एक-दो सूत्रों पर आज और दिर आने वाले ददनों में बाि करूंगा। मेरी दृति में भारि की बहुि प्राचीन समय से कु छ बुतनयादी भूलों में एक भूल यह रही है दक हमने दटरद्रिा को एक िरह की मतहमा, एक िरह का गौरव, एक िरह का ग्लोरीदिके िन दकया है। हम दटरद्रिा को एक िरह का सम्मान दे िे रहे हैं। हमने एक दिलासिी तवकतसि की है तजसको दिलासिी ऑि पावटी कहा जा सकिा है, दटरद्रिा का एक दिन तवकतसि दकया है। हमने यह स्वीकार कर रखा है पांच हजार वषों से दक दटरद्र होना भी कोई बड़े गौरव की बाि है। और उसके साथ ही धन-संपदा, समृतद्ध इनकी एक जनंदा, इनका 6



एक बतहष्कार भी हमारे मन में रहा है। पटरग्रह का एक तवरोध, अपटरग्रह की एक स्थापना। समृतद्ध-तवस्िार इसका तवरोध, संकोच, दटरद्रिा, इसकी स्वीकृ ति हमारे खून में प्रतवि हो गई है। मैं कहना चाहिा हं दक यह इस तवचार का पटरणाम है दक भारि पांच हजार वषों की लंबी सयिा के बाद भी दटरद्र है और समृद्ध नहीं हो पाया है। इस तवचार का यह अंतिम पटरणाम है। गांधी ने जाने-अनजाने पुनाः इसी दटरद्रिा के दिन को दिर से सहारा दे ददया है। गांधी ने दिर दटरद्र को दटरद्रनारायण कह ददया है। दटरद्र नारायण नहीं है, दटरद्रिा पाप है, दटरद्रिा रोग है। उससे घृणा करनी है, उसे नि करना है। दटरद्र को अगर हम पतवत्र और भगवान और इस िरह की बािें करें गे और दटरद्रिा को मतहमावंि करें गे िो हम दटरद्रिा को नि नहीं कर सकिे हैं, हम दटरद्रिा को बनाए ही रखेंगे। हम दटरद्रिा पर दया कर सकें गे, सेवा कर सकें गे दटरद्र की, लेदकन दटरद्र को तमटा नहीं सकें गे। दटरद्र की सेवा की जरूरि नहीं है, दटरद्र के गुणगान की जरूरि नहीं है, दटरद्र को दया की जरूरि नहीं है, दटरद्र को पृथ्वी से समाप्त करना है, दटरद्र को नि करना है, दटरद्र को नहीं बचने दे ना है। दटरद्रिा के साथ एक महामारी का व्यवहार करना है। प्लेग और हैजा और मलेटरया के साथ हम जो व्यवहार करिे हैं वह दटरद्रिा के साथ व्यवहार करना है। लेदकन जहंदुस्िान की जो परं परा है दटरद्रिा की और त्याग की, गांधी के मन पर उसका प्रभाव है, सारे मुल्क के मन पर उसका प्रभाव है। हमने जाने-अनजाने हमारे अचेिन में, अनकांिस िक यह बाि प्रतवि हो गई है दक दटरद्रिा को कु छ गौरव है। यह बहुि ही खिरनाक दृति है, यह बहुि ही आत्मघािी दृति है; क्योंदक जब हम दटरद्रिा को इस भांति स्वीकार करिे हैं, सम्मान दे िे हैं और दटरद्रिा में संिोष कर लेने को एक धार्मक गुण मानिे हैं, िो दिर समाज समृद्ध कै से होगा? समाज संपतत्त पैदा कै से करे गा? हम भी इसी पृथ्वी पर हैं, दूसरे दे ि भी इसी पृथ्वी पर हैं। हम पीछे इतिहास में उनसे कहीं ज्यादा समृद्ध थे जो आज हमें भीख दे रहे हैं। हम कहीं ज्यादा खुिहाल थे, आज हमें भीख मांगनी पड़ रही है। और िायद आगे भी हमें भीख ही मांगिी रहनी पड़ेगी। अगर हमने अपने आज िक के जीवन को जीने की दिलासिी और व्यवस्था को रूपांिटरि नहीं दकया िो हम आगे भी यही करिे चले जाएंगे, जो हमने पीछे दकया है। संपतत्त आसमान से पैदा नहीं होिी है, संपतत्त श्रम से पैदा होिी है। श्रम आकतस्मक नहीं होिा, श्रम तवचार से जन्म लेिा है और अगर हमारे तवचार में संपदा का तवरोध है िो हम न श्रम करें गे, न हम संपदा पैदा करें गे। यह जो भारि एकदम श्रम-िून्य मालूम पड़िा है--सुस्ि, कातहल, अलाल मालूम पड़िा है, लेजी मालूम पड़िा है, यह लेजीनेस, यह सुस्िी, यह काम न करने की प्रवृतत्त, यह प्रवृतत्त उस तवचार से पैदा होिी है जो दटरद्रिा में संिोष मानने की तिक्षा दे िा है। और यह भी ध्यान रहे दक बुद्ध और महावीर जैसे लोग राजघरों को छोड़ कर दटरद्र हो गए। जहंदुस्िान में जैतनयों के चौबीस िीथंकर राजाओं के लड़के थे। बुद्ध राजा के लड़के थे, राम और कृ ष्ण राजाओं के लड़के थे। जहंदुस्िान के ये सारे िीथंकर और अविार राजपुत्र थे। ये सारे िीथंकर और बुद्ध राजमहलों को छोड़ कर दटरद्र हो गए और इनके दटरद्र होने से हमारी दटरद्रिा के दिन को और सहारा तमला। लेदकन एक बाि ध्यान रहे, अमीर आदमी का दटरद्र होना एक बाि ही दूसरी है और दटरद्र का दटरद्रिा में संिुि हो जाना बाि दूसरी है। इन दोनों बािों में बुतनयादी िक है।



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अमीर आदमी जब दटरद्र होिा है िब वह अमीरी को जान कर दटरद्र होिा है। अमीरी व्यथ हो गई, इसतलए दटरद्र होिा है। उसकी दटरद्रिा और उस आदमी की दटरद्रिा तजसने कभी अमीरी नहीं जानी, भरपेट भोजन नहीं जाना, कपड़े नहीं जाने, इन दोनों की दटरद्रिा में कोई भी संबंध नहीं है। सच बाि िो यह है दक अमीर जब दटरद्र होिा है िो दटरद्रिा भी एक आनंद मालूम होिी है, क्योंदक दटरद्रिा भी एक स्विंत्रिा मालूम होिी है। गरीब आदमी जब दटरद्रिा में संिोष कर लेिा है िो वह संिोष तसि दुख को तछपाने का और सांत्वना का एक उपाय होिा है। जहंदुस्िान के सारे बड़े तिक्षक राजघरानों से आए। वे राजघरानों से ऊब गए थे। वे संपतत्त से ऊब गए थे, परे िान हो गए थे। संपतत्त की अपनी परे िातनयां हैं, दटरद्रिा की अपनी परे िानी है, तभखमंगे की अपनी परे िानी है, राजघर की अपनी परे िानी है। वे अपनी परे िातनयों से पीतड़ि हो गए थे, वे धन से तघरे हुए परे िान हो गए थे, वे तियां और सुख के बीच ऊब गए थे, उन्हें बदलाहट चातहए थी। उन्होंने वह सब छोड़ कर सड़क पर नग्न खड़े हो गए। उन्हें उस नग्निा में बहुि स्विंत्रिा मालूम हुई होगी, उन्हें उस नग्निा में एक अदभुि मुति मालूम हुई होगी। वह मालूम हो सकिी है, लेदकन वह हमेिा िभी मालूम होिी है, जब कोई समृतद्ध को लाि मार कर दटरद्र बनिा है। वह दटरद्रिा समृतद्ध के आगे का कदम है, समृतद्ध के पहले का कदम नहीं है। वह दटरद्रिा भी एक अथ में समृतद्ध की लक् .जरी है, वह दटरद्रिा भी समृतद्ध का अंतिम तवलास है। वह उसको भी लाि मारने का मजा है। वह सुख गरीब आदमी नहीं उठा सकिा। लेदकन जहंदुस्िान के बड़े तिक्षक जब दटरद्र हुए, उन्होंने धन छोड़ा, िो दटरद्र को लगा दक तजस चीज को छोड़ ही दे ना पड़िा है उसे पाने की जरूरि क्या है। और उसे पिा नहीं दक वह दटरद्र महावीर की दटरद्रिा का मजा नहीं लूट पाएगा। महावीर की दटरद्रिा बुतनयादी रूप से क्वातलटेटटवली, गुणात्मक रूप से तभन्न है। मैं अमृिसर था। एक संन्यासी तमत्र एक घटना सुना रहे थे, वे घटना सुना रहे थे दक अमृिसर से एक ट्रेन जा रही थी हटरद्वार की िरि। मेला है हटरद्वार में। हजारों लोग ट्रेन में भर रहे हैं। हरे क आदमी अमृिसर की स्टेिन पर यही तचल्ला रहा है दक चलो गाड़ी के अंदर भीिर बैठो, जल्दी भीिर चले जाओ, सामान रखो। एक आदमी के पास भीड़ इकट्ठी है और वह यह कह रहा है दक मैं गाड़ी में बैठूं िो जरूर, लेदकन अमृिसर पर बैठिा हं, हटरद्वार में उिरना पड़ेगा न? जब उिरना ही पड़ेगा िो गाड़ी में बैठने की जरूरि क्या है? वह आदमी यह दलील दे रहा है दक जब उिरना ही पड़ेगा गाड़ी से, िो दिर गाड़ी में बैठे ही क्यों? जब उिरना ही है िो उिरे ही रहें। तमत्रों ने जबरदस्िी धक्के ददए और कहा, यह िक समझाने का समय नहीं है। अंदर बैठ जाओ, दिर िुम्हें समझाएंगे। गाड़ी जाने के करीब है। जबरदस्िी उस आदमी को भीिर ले गए, लेदकन वह आदमी यही तचल्लािा रहा दक जब उिरना ही है िो बैठने की जरूरि क्या है? दिर हटरद्वार आ गया, दिर सारी गाड़ी में दूसरी आवाज आने लगी दक उिरो, सामान उिारो, नीचे उिरो, जल्दी उिरो, कहीं गाड़ी न छू ट जाए। वह तमत्र उसको दिर समझा रहे हैं दक नीचे उिरो। वह कहिा है दक जब चढ़ ही गए िो अब उिरना क्या? पहले ही मैंने कहा था दक चढ़ाओ मि अगर उिरना हो। अब जब चढ़ ही गए िो चढ़ ही गए, अब उिरना क्या? उसे जबरदस्िी नीचे उिारा वह व्यति िक िो ठीक दे रहा है, यह बाि सच है दक अमृिसर से जाना है हटरद्वार, िो गाड़ी पर चढ़ना भी होगा और उिरना भी होगा। और जो सोचिा है दक जब उिरना ही है कभी जाकर िो चढ़ना ही क्या? िो वह दिर अमृिसर पर ही रह जाएगा हटरद्वार नहीं पहुंच सकिा। और अगर हटरद्वार पर 8



पहुंच कर उसने यह तजद्द की दक जब चढ़ ही गए िो अब उिरना ही क्या, िब भी वह हटरद्वार नहीं पहुंच पाएगा। दोनों हालि में हटरद्वार चूक जाएगा। मेरी अपनी दृति यह है दक समृतद्ध की एक यात्रा है जीवन में। तनतश्चि ही एक ददन समृतद्ध छोड़ दे ने जैसी हो जािी है, लेदकन वह समृतद्ध की यात्रा से ही होिी है। और दटरद्र आदमी अगर यह सोचे दक जब महावीर और बुद्ध जैसे लोग छोड़ कर आ रहे हैं िो दिर मुझे परे िान होने की क्या जरूरि है। िो वह ध्यान रखे, उसकी दटरद्रिा अमृिसर की दटरद्रिा होगी, हटरद्वार की नहीं। जहंदुस्िान के इन धनी तिक्षकों के कारण यह बाि बड़ी अजीब और पैराडातक्सकल। धनी तिक्षकों के कारण जहंदुस्िान दटरद्रिा के दिन को तवकतसि कर तलया और दटरद्र ने अपनी दटरद्रिा स्वीकार कर ली। जब उसने दे खा दक राजमहलों को लोग छोड़ कर आ रहे हैं, िो दिर ठीक है, मुझे और राजमहलों की िरि जाने का सवाल क्या है। और जब एक बार दटरद्रिा स्वीकृ ि हो जािी है िो संपतत्त को उत्पादन करने का प्रश्न ही समाप्त हो जािा है। यह दे ि इसतलए गरीब है। काउं ट कै सरजलंग जहंदुस्िान से लौटा, िो उसने अपनी डायरी में एक वाक्य तलखा। मैं पढ़ रहा था िो बहुि हैरान हुआ। मुझे लगा दक कोई छापेखाने की भूल होनी चातहए। उसने एक वाक्य तलखा दक मैं जहंदुस्िान गया, वहां से लौटा हं, िो एक अजीब निीजा लेकर आया हं, वह निीजा यह दक इं तडया इ.ज ए टरच लैंड, व्हेयर पुअर तपपुल तलव। दक जहंदुस्िान एक धनी दे ि है, जहां गरीब लोग रहिे हैं। मैं बहुि हैरान हुआ दक यह वाक्य कै सा हुआ? अगर धनी दे ि है िो गरीब लोग कै से रहिे होंगे? और गरीब लोग रहिे हैं िो धनी दे ि कै से है? कोई छापे की भूल है िायद, लेदकन आगे पढ़ने पर मुझे पिा चला दक वह मजाक कर रहा है। वह यह कह रहा है दक दे ि िो बहुि धनी है, लेदकन रहने वाले मूढ़ हैं, वे गरीब बने हुए हैं। दे ि िो बहुि धन पैदा कर सकिा है, लेदकन रहने वालों की जीवन-दृति दटरद्र रहने की है, इसतलए वे संपतत्त पैदा नहीं कर पािे। जहंदुस्िान की दटरद्रिा नहीं तमटेगी, जब िक हम संपतत्त के प्रति भी एक स्वस्थ रुख लेने को राजी न हों। हमारा संपतत्त के प्रति अत्यंि अस्वस्थ, रुग्ण, अनहेल्दी रुख है। िो एक िरि िो यह है दक हम संपतत्त का तवरोध करिे हैं और दूसरी िरि भीिर संपतत्त की लालसा भी करिे हैं, क्योंदक दटरद्रिा के भीिर यह असंभव है दक आप सच में संिुि हो जाएं। कै से संिुि हो सकिे हैं? जबरदस्िी थोप कर अपने ऊपर संिोष के कपड़े पहन लेंगे, लेदकन संिुि हो कै से सकिे हैं? भीिर असंिोष की आग जलिी ही रहेगी। इसतलए ऊपर से कहेंगे, कु छ मिलब नहीं है हमें, हम िो संिुि हैं और भीिर लालसा, ईष्या और लोभ वे सब काम करिे रहेंगे। मैं एक िकीर के पास, एक संन्यासी के पास यहीं बंबई में कोई पांच-साि साल पहले तमलने गया था। एक मुतन हैं। बहुि उनके तिष्य हैं। बहुि लोग वहां इकट्ठे हो गए, मैं तमलने आया हं, कु छ बाि होगी। उन मुतन ने मुझे एक गीि सुनाया। गुजरािी में वह गीि उन्होंने बनाया था। उसका अथ मुझे समझाया। सुनने वाले बैठ कर तसर तहलाने लगे और कहने लगे, वाह, वाह! मैं बहुि हैरान हुआ। क्योंदक उस गीि का मिलब यह था दक वह संन्यासी उस गीि में यह कहिे हैं दक िुम अपने राजमहल में खुि हो, रहो, हम अपनी धूल में भी आनंद में हैं। िुम स्वण के जसंहासन पर बैठे हो, बैठो, हमें िुम्हारे स्वण के जसंहासन से कोई भी मिलब नहीं, हम लाि मारिे हैं स्वण के जसंहासन पर, हम िो अपनी धूल में ही मस्ि हैं, हम िो िकीर हैं। इस िरह का भाव था। पूरा गीि कह कर वे मुझसे पूछने लगे, कै सा लगा?



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मैंने कहा दक मैं बहुि हैरान हुआ। मैं इसतलए हैरान हुआ दक अगर आपको राजमहलों से कोई मिलब नहीं, अगर आपको स्वण-जसंहासनों से कोई मिलब नहीं, िो उनकी याद क्यों आिी हैं? उनके गीि क्यों तलखिे हैं? मैंने दकसी सम्राट को कभी ऐसा गीि तलखिे नहीं दे खा, नहीं सुना दक उसने कहा हो दक हम अपने स्वणजसंहासन पर ही ठीक हैं, हमें िुम्हारी धूल से कु छ भी नहीं लेना, िुम रहो मजे में, हम उपेक्षा करिे हैं, हमें कोई दिक्र नहीं। कोई सम्राट ऐसा नहीं कहिा, लेदकन ये िकीर तनरं िर यह बाि कहिे हैं दक हमें स्वण-जसंहासन से कोई मिलब नहीं। मिलब नहीं है िो यह गीि क्या बिािे हैं? ये मिलब बिािे हैं, मिलब बहुि गहरा है और भीिरी है। स्वण-जसंहासन मन को खींचिा है। संिोष से मन को रोका हुआ है। संिोष से जो मन को रोकिा है और स्वणजसंहासन की भीिर लालसा है, वह स्वण-जसंहासन को गाली दे ना िुरू कर दे गा, िादक संिोष करने में सुतवधा तमले। जहंदुस्िान, पूरा का पूरा जहंदुस्िान भौतिकवाद को गातलयां दे िा है। वह आदमी भौतिकवादी है, पतश्चम मैटीटरयतलस्ट है। तजिना िुम भौतिकवाद को गातलयां दे िे हो, उिना िुम खबर लािे हो दक िुम्हारे प्राणों में भौतिकवाद की आकांक्षा है। मन के तनयम बहुि अजीब हैं। एक आदमी अगर अपनी िी को छोड़ कर जंगल में भाग जाए और संन्यासी हो जाए, और उसका मन िी से मुि न हुआ हो िो वह घूम-दिर कर यही कहिा रहेगााः कातमनी-कांचन से सावधान, िी से बचना, िी नरक का द्वार है! वह दकसी और से नहीं कह रहा है, जोर-जोर से अपने से कह रहा है। वह भीिर िी खींच रही है, तनमंत्रण दे रही है, वह कह रही, आओ। िी भीिर रूप बन रही है, िी भीिर प्राणों को कस रही है, वह उससे बचने के तलए कह रहा है, कातमनी-कांचन पाप है, िी नरक का द्वार है, िी से सावधान! दूसरों को समझा रहा है। दूसरों के बहाने अपनी ही वाणी को जोर से सुनने की कोतिि कर रहा है, िादक भीिर तहम्मि बनी रहे दक िी नरक का द्वार है, बचो, सावधान रहो! जो आदमी वासना से मुि हो जाएगा उसे िी नरक का द्वार कै से ददखाई पड़ेगी? तजस आदमी का मन सेक्स से मुि हो गया हो, उस आदमी को िी और पुरुष में भेद ददखाई पड़ेगा? बुद्ध एक जंगल में बैठे थे एक पहाड़ के पास। कु छ लोग िहर से आए थे युवक एक वेश्या को लेकर जंगल में तपकतनक के तलए, आमोद-प्रमोद के तलए। वे िो सब निे में चूर हो गए, वेश्या ने दे खा दक वे बेहोि हो गए हैं निे में, वह भाग खड़ी हुई। उसके सारे वि उन्होंने छीन रखे थे। वह नग्न थी। जब वह भाग गई उन्हें कु छ होि आया, िो उन्होंने कहा, वह वेश्या भाग गई, िो उसे खोजने जंगल में तनकले। रास्िे पर बुद्ध को बैठे दे खा िो उनके पास जाकर कहा दक भंिे, यही एक रास्िा है, जरूर यहां से एक िी को आपने भागिे दे खा होगा। िी नग्न थी, वेश्या थी, आपको खयाल है वह कहां गई? यहीं से रास्िे बंट जािे हैं। हम उसे खोजने कहां जाएं? बुद्ध ने कहा, कोई तनकला जरूर था, लेदकन वह िी थी या पुरुष, यह पहचानना बहुि मुतश्कल है, कोई तनकला जरूर था, लेदकन वह िी थी या पुरुष, यह मुझे याद नहीं। क्योंदक जब से मेरे भीिर से वासना उठ गई, िब से मेरे भीिर का पुरुष मर गया, जब से मेरा पुरुष मर गया, िब से बाहर की िी उस िरह नहीं ददखाई पड़िी, जैसे पहले ददखाई पड़िी थी।



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यह बुद्ध जैसा आदमी िी को नरक का द्वार कै से कहेगा? नहीं, जो िी को नरक का द्वार कह रहा है, उसके भीिर िी का आकषण िेष है। जो संपतत्त को गाली दे रहा है, उसके भीिर संपतत्त का आकषण िेष है। जो कह रहा है दक सोना तमट्टी है, वह अपने को समझा रहा है, सोना अभी पूरी िरह सोना है और प्राणों को खींच रहा है। भारि ने एक िरि दटरद्रिा की बािें सीख लीं और दूसरी िरि लोभ, और दूसरी िरि ईष्या, और दूसरी िरि धन की वासना िीव्र से िीव्र होिी चली गई। यह एक अदभुि घटना घट गई। ऊपर से हम दटरद्र हैं। दटरद्रिा में संिोष की बाि भी करिे हैं, और भीिर हमसे ज्यादा ग्रीडी, हमसे ज्यादा लोभी जमीन पर आदमी खोजने मुतश्कल हैं। मैं एक घर में ठहरिा था। उस घर के ऊपर कु छ पतश्चम के लोग--दो पटरवार रहिे थे। उस घर में जब भी मैं ठहरा िो उस घर के लोगों ने मुझे कहा दक ये पतश्चम के लोग बड़े भौतिकवादी हैं। तसवाय खाने-पीने के , तसवाय नाच-गाने के इन्हें कु छ भी मिलब नहीं, एकदम भौतिकवादी हैं। जब भी मैं गया, मुझे वे यही कहिे थे। राि बारह-बारह बजे िक नाचिे रहिे हैं। बस, खाना और पीना और नाचना--यही जजंदगी है। दिर एक बार उनके घर में ठहरा। ऊपर िांति थी, िो मैंने पूछा दक क्या वे लोग चले गए? घर की गृतहणी ने कहा, हां, वे लोग चले गए। पर बड़े अजीब लोग थे। अपना सारा सामान बांट गए। जो नौकरानी बिन मलिी थी, स्टील के बिन थे सब--वह िी मुझसे कहने लगी--असली स्टील के बिन थे, वह सब नौकरानी को ही दे गए। रे तडयो था, रे तडयोग्राम था, वह सब बांट गए। बड़े अजीब लोग थे। मैंने उस िी को पूछा दक िू िो तनरं िर कहिी थी दक ये बड़े भौतिकवादी लोग हैं, नाचिे हैं, गािे हैं, खािे हैं, पीिे हैं और कु छ नहीं करिे हैं, बहुि मैटीटरयतलस्ट हैं। लेदकन ये सारी चीजें बांट कर चले गए! िू भी इस िरह सारी चीजें बांट सकिी है? उसने कहााः मैं? कै से बांट सकिी हं! मेरे मन में िो यही लगा रहा दक कु छ हमें भी दे जाएं िो अच्छा है। मैंने पूछााः वे िुझे कु छ दे गए? उसने कहा दक मुझे दे नहीं गए क्योंदक उन लोगों ने सोचा होगा, इनके पास िो सब है, िायद ये लेने से इं कार कर दें । िो िेरे पास कोई तनिानी नहीं? िो उसने कहााः एक तनिानी है, वे एक रस्सी बंधी हुई छोड़ गए थे, वह मैं खोल लाई हं। कपड़े टांगने की रस्सी थी, लेदकन रस्सी प्लातस्टक की है और बहुि अच्छी है, वह भर मैं खोल लाई हं, वह भर तनिानी रह गई है। वे चले गए िो मैं रस्सी खोल लाई हं। यह िी रोज मंददर जािी है, यह रोज सुबह से उठ कर भिांबर पढ़िी है, यह बड़ी धार्मक है, यह उपवास भी करिी है और यह सोचिी है दक मैं भौतिकवादी नहीं हं और वे लोग जो नाचिे थे और गीि गािे थे, वे इसे भौतिकवादी मालूम पड़िे थे। वे इसे भौतिकवादी क्यों मालूम पड़िे थे? इसके भीिर भी नाचना, गीि गाना और संपतत्त का मोह है। वह इसे खींचिा है दक काि, यह सब उसके पास भी होिा, यह सब वह भी करिी। लेदकन नहीं-नहीं, संिोष रखना है। इन सब बािों में नहीं पड़ना है, ये बािें बहुि बुरी हैं। इसतलए गाली दे िी है, जनंदा करिी है, कं डेम करिी है, अपने मन को समझा लेिी है और पीछे से एक रस्सी भी खोल कर ले आिी है। अध्यात्मवादी हैं हम! 11



एक अमरीकन यात्री की मैं दकिाब पढ़िा था। वह ददल्ली के स्टेिन पर उिरा। स्टेिन पर उिरा है और एक सरदार ने आकर उसका हाथ पकड़ तलया और कहा है दक मैं आपका भतवष्य बिाऊंगा। उसने कहा, लेदकन मुझे भतवष्य पूछना नहीं है। हम अपना भतवष्य खुद बनािे हैं। भतवष्य कहीं है यह हम मानिे नहीं। पर सरदार जी ने िो बिाना ही िुरू कर ददया। वह िो हाथ जोर से पकड़े हुए है। और वह आदमी बेचारा तििाचार में तसि हाथ पकड़ाए हुए है। छोड़ नहीं रहा, ठीक है। वह कह रहा है दक मुझे पूछना नहीं है, मुझे कु छ जानना नहीं है, लेदकन सरदार जी िो बिाना िुरू कर ददए हैं दक यह होगा, यह होगा, यह होगा भतवष्य में। दिर उस आदमी ने कहााः मुझे जाने दीतजए। िो सरदार जी ने कहााः मेरी िीस? मेरे दो रुपये िीस के हो गए। उस आदमी ने कहा, ठीक है। हालांदक मैं मना कर रहा था और आपने जबरदस्िी बिाया है, लेदकन दिर भी आपने इिना श्रम दकया, ये दो रुपये आप ले लें। लेदकन दो रुपये लेकर सरदार जी ने हाथ छोड़ा नहीं। वह और बिाने लगे हैं। उसने कहा दक दे तखए, अब हाथ छोड़ दीतजए, क्योंदक दिर आपकी िीस हो जाएगी। लेदकन सरदार जी बिाए चले जा रहे हैं। उसने कहा दक मुझे जाना है। जबरदस्िी हाथ छु ड़ाया, िो सरदार जी ने कहा दक दो रुपये मेरी िीस और हो गई? उस आदमी ने कहा दक अब मैं दो रुपये आपको नहीं दूंगा। यह िो जबरदस्िी की बाि है। िो सरदार जी ने क्या कहा? सरदार जी ने कहा, यू मैटीटरयतलस्ट--दो रुपये के तलए मरे जािे हो, भौतिकवादी हो, दो रुपये में जान तनकली जािी है! उस आदमी ने अपने संस्मरण में तलखा है दक मैं िो दं ग रह गया। भौतिकवादी कौन था? मैं था भौतिकवादी? सारी पृथ्वी पर हमसे ज्यादा भौतिकवादी लोग खोजने मुतश्कल हैं, क्योंदक दटरद्र आदमी कभी भी भौतिकवाद से ऊपर नहीं उठ सकिा है। दटरद्र आदमी कभी भी भौतिकवाद से ऊपर नहीं उठ सकिा है, समृद्ध आदमी ही भौतिकवाद से उठ सकिा है ऊपर, क्योंदक समृतद्ध को पाकर उसे पिा चलिा है कु छ भी नहीं है समृतद्ध में। धन पाकर ददखाई पड़िा है धन में कु छ भी नहीं है। और तजस ददन धन तनस्सार ददखाई पड़िा है, असार ददखाई पड़िा है, उस ददन भौतिकवाद के आदमी ऊपर उठिा है। संपतत्त का एक ही बड़े से बड़ा मूल्य है दक संपतत्त से आदमी संपतत्त से मुि हो जािा है। धन का एक ही आध्यातत्मक मूल्य है दक धन के उपलब्ध होने से आदमी धन से मुि हो सकिा है। तनर् धन आदमी धन से कभी मुि नहीं हो पािा है। धनी आदमी धन से मुि हो सकिा है। यह दे ि दटरद्रिा को स्वीकार करने के कारण धनी नहीं हो पाया। धनी नहीं हो पाने के कारण धन से मुि नहीं हो पाया; लेदकन हम थोथी बािें अपने ऊपर थोपे चले जािे हैं और तबल्कु ल ही जीवन और मन के तवपरीि काम दकए चले जािे हैं। ऊपर से कु छ, भीिर से कु छ हुए चले जािे हैं। सारा व्यतित्व पाखंड हो गया है, सारा व्यतित्व धोखा हो गया है। और मैंने इसतलए कहा दक गांधी की दटरद्रिा की तिक्षा दिर खिरनाक है, दिर वह हमारी पुरानी तिक्षा का ही िल है। दिर वह पुरानी तिक्षा का दिर से पुनरुतिकरण है। नहीं, गांधी बहुि प्यारे आदमी हैं, गांधी बहुि अदभुि आदमी हैं; लेदकन उनके दटरद्रिा के दिन को अगर भारि ने स्वीकार दकया िो भारि कभी समृद्ध नहीं हो सके गा और समृद्ध नहीं हो सके गा िो भारि कभी धार्मक भी नहीं हो सकिा है। 12



मेरी दृति में धार्मक होने के तलए दे ि का समृद्ध होना अत्यंि आवश्यक है। दटरद्र आदमी कै से धार्मक हो सकिा है? तजसकी रोटी की जरूरिें पूरी नहीं होिीं वह परमात्मा की जरूरि पैदा ही कै से कर सकिा है? परमात्मा मनुष्य की अंतिम जरूरि है, लास्ट नेसेतसटी है। जब जीवन की सारी प्राथतमक जरूरिें पूरी हो जािी हैं, िो अंतिम जरूरि का खयाल आिा है और हम इस दे ि में गरीब आदमी को परमात्मा की तिक्षाएं ददए चले जािे हैं। गरीब आदमी को परमात्मा की तिक्षा दे ना अन्याय है और गरीब आदमी अगर परमात्मा की बािें सुनने भी आिा है और परमात्मा के मंददर में प्राथना भी करने जािा है, िो आप यह मि सोचना दक वह परमात्मा के पास जा रहा है। जब वह परमात्मा के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा होिा है, िब भी उसके मन में यही प्राथना होिी है दक कल मुझे रोटी तमल सके गी न? मेरा बच्चा बीमार है, वह ठीक हो सके गा न? मेरा काम छू ट गया है, मुझे काम तमल सके गा न? वह परमात्मा के पास भी रोटी-रोजी के तलए ही पहुंचिा है, परमात्मा के तलए नहीं पहुंच सकिा है। वह परमात्मा के पास भी जािा है िो बुतनयादी कारण उसका भौतिक होिा है, आध्यातत्मक नहीं हो सकिा है। आध्यातत्मक जीवन की जरूरि, जीवन की सामान्य तस्थति, सुतवधा उपलब्ध होने पर ही पैदा होिी है। जब भारि थोड़ा समृद्ध था िो भारि धार्मक था। इधर दो हजार वषों से वह तनरं िर दटरद्र से दटरद्र होिा चला गया है। आज वह दटरद्रिा के गड्ढे में खड़ा है। वह धार्मक नहीं हो सकिा है। उसके धार्मक होने का कोई उपाय नहीं है। इस बाि की संभावना है दक आने वाले पचास वषों में अमरीका धार्मक हो सके , रूस धार्मक हो सके , भारि के धार्मक होने की कोई संभावना नहीं। अमेटरका को धार्मक होना पड़ेगा, रूस को धार्मक होना पड़ेगा, क्योंदक जैसे ही जजंदगी की सामान्य जरूरिें पूरी हो जािी हैं, जैसे ही िरीर की जरूरिें पूरी हो जािी हैं, पहली बार आदमी की आंखें उस िरि उठिी हैं जो िरीर के ऊपर है। िरीर की झंझट, जैसे ही छु ट्टी हो जािी है िरीर से आदमी की, आदमी आत्मा की िरि उन्मुख होिा है। िायद आपने कभी खयाल भी न दकया हो। पैर में एक छोटा सा कांटा गड़ जाए, िो सारे प्राण उसी कांटे के आस-पास घूमने लगिे हैं। तसर में थोड़ा सा दद हो, िो आत्मा वगैरह सब भूल जािी है, बस तसर का दद ही रह जािा है। जहां पीड़ा होिी है, प्राण वहीं अटक जािे हैं। भूखे पेट के प्राण पेट के आस-पास ही अटके रहिे हैं, उससे ऊपर नहीं उठ सकिे। लेदकन हम एक बहुि मूढ़िापूण, बहुि एब्सड जीवन-दिन को पकड़े हुए बैठे हैं। मैं मानिा हं दक समृद्ध आदमी दकसी ददन दटरद्र हो सकिा है, स्वेच्छा से, वालंटरीली, लेदकन स्वेच्छा से दटरद्रिा बाि ही और है। वह बाि वैसी ही है-मैं एक आश्रम में गया। उस आश्रम में उपवास करवािे हैं वे महीने-महीने, दो-दो महीने, िीन-िीन महीने और एक-एक महीने के उपवास करने के पांच-पांच सौ रुपये महीने का खच पड़ जािा है। पांच सौ रुपये महीने का खच एक महीना उपवास करने का! मैंने कहा, उपवास बड़ा महंगा है। इससे िो पेट भरना भी सस्िा पड़िा है। दिर वहां जो लोग उपवास करने वाले थे, वे बड़े ही आनंद से कहिे थे दक बीस ददन कर तलए, पच्चीस ददन कर तलए, िीस ददन हो गए, मेरे चालीस ददन हो गए। मैं िो बहुि हैरान हुआ। मैं तबहार भी गया। वहां अकाल में भूखे मरिे हुए लोग थे, दकसी को चार ददन से रोटी नहीं तमली थी। उसका चेहरा भी मैंने दे खा और चालीस ददन इसने उपवास दकया था इसका चेहरा भी मैंने दे खा। इन दोनों में जमीन-आसमान का िक मालूम पड़ा। वह चार ददन भूखा रहा था, वह इिना दीन-हीन मालूम हो रहा था! यह जो तजसने चालीस ददन उपवास दकया था, यह एक ऐसी आध्यातत्मक गटरमा से भरा हुआ था। बड़ी अजीब बाि है। िक क्या हुआ? यह उपवास है,



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वह भूख है। यह उपवास वे लोगे करिे हैं जो ज्यादा खा गए हैं और ज्यादा खा रहे हैं। भूखा आदमी, भूखे आदमी को कभी खाने को नहीं तमला। भूख और उपवास में िक है। महावीर की दटरद्रिा में और सड़क पर भीख मांगने वाले की दटरद्रिा में भी उिना ही िक है। ज्यादा खाने वाले के तलए उपवास भी एक आनंद हो सकिा है, भूख से मरने वाले के तलए उपवास कै से आनंद हो सकिा है? क्वातलटेटटव िक है, गुणात्मक िक है। और जहंदुस्िान पांच हजार वष से इस गलि जीवन-दृतिकोण के नीचे जी रहा है दक हमें दटरद्रिा में संिोष कर लेना है। गांधी भी दिर पुनाः उसी बाि को दोहरािे हैं और उसी बाि को दोहराने के कारण उन्होंने जो उपकरण बिाए हैं--चरखा, िकली, वे उपकरण भारि को दटरद्र रखने के उपकरण तसद्ध होंगे। वे भारि को समृद्ध नहीं बना सकिे हैं। समृतद्ध पैदा होिी है टेक्नालॉजी से, समृतद्ध पैदा होिी है तवज्ञान से, िकनीक से। समृतद्ध पैदा होिी है यंत्र से। चरखा और िकली से समृतद्ध कै से पैदा हो सकिी है? चरखा और िकली कोई दस हजार पुराने वष के साधन हैं, दस हजार वष पहले के साधन हैं। अगर दुतनया को दस हजार वष पुरानी दटरद्रिा में ले जाना है, दुख में ले जाना है िो चरखे-िकली को प्रिीक बनाओ, अन्यथा चरखे-िकली से मुि होने की जरूरि है। मैं यह नहीं कहिा दक गांव में तजन्हें कु छ भी काम नहीं तमल रहा है, वे चरखा न कािें। मैं यह भी नहीं कहिा दक तजन्हें खादी पहनने का िौक है वे खादी न पहनें। मैं कहिा यह हं दक यह भारि के तवकास के प्रिीक न बन जाएं, ये हमारे जीवन के दे खने के , दृतिकोण के जसंबल्स न हों। गांधी ने उन्हें जसंबल बना ददया है। हमें ऐसा लगने लगा है दक नहीं बड़े टेक्नीक की कोई जरूरि नहीं है, बड़ी टेक्नालॉजी की कोई जरूरि नहीं है, बड़े यंत्रों की कोई जरूरि नहीं है, सेंट्रेलाइजेिन की, कें द्रीकरण की कोई जरूरि नहीं है, औद्योगीकरण की, इं डस्ट्रीलाइजेिन की कोई जरूरि नहीं है। हमें ऐसा लगने लगा दक एक-एक आदमी अपना साबुन बना ले, अपना कपड़ा बना ले, अपनी खेिी में काम कर ले, स्वावलंबी हो जाए-बस इसकी जरूरि है। ये खिरनाक बािें हैं। अगर आदमी को हमने इस ढांचे पर ले जाने की कोतिि की है िो आदमी का जीवन-स्िर पिु के स्िर पर तगर जाने के अतिटरि कोई रास्िा नहीं होगा। आदमी का जो इिना जीवन-स्िर ऊपर उठा है, वह िकनीक का पटरणाम है। और तजस ददन सारी मनुष्य-जाति का जीवन-स्िर इिना ऊंचा उठ जाएगा तजिना जीवन-स्िर बुद्ध और महावीर का ऊंचा रहा होगा, िो मैं आपसे कहिा हं, पृथ्वी पर करोड़ों बुद्ध और महावीर एक साथ पैदा हो सकिे हैं! यह आकतस्मक नहीं है दक राजघरानों से इिने बड़े संन्यासी पैदा हुए। इिने बड़े संन्यासी राजघरानों से ही पैदा हो सकिे हैं, क्योंदक राजघराने में ही संपतत्त की और िरीर की व्यथिा का पहला अनुभव होिा है और आंखें उस िरि उठिी हैं जहां जीवन की और गहरी सच्चाइयां हैं, जहां और तबयांड और दूर और अिीि और ऊपर के तिखर हैं उन िक आंख िभी उठिी है, जब जीवन की नीचे से पृथ्वी िांि, सुतवधापूण हो जािी है। िो मैं मानिा हं दक चरखा और िकली को अगर हम प्रिीक मान लेिे हैं और अपनी आर्थक जीवनव्यवस्था का कें द्र बना लेिे हैं और अगर हम यह स्वीकार कर लेिे हैं दक तवकें द्रीकरण करना है, बड़े उद्योग से बचना है, बड़ी टेक्नालॉजी और बड़ी साइं स को नहीं आने दे ना है िो हम बहुि घािक तस्थति में पहुंच जा सकिे हैं। 14



हम दटरद्र हैं हमेिा से, हम और भी दटरद्र हो सकिे हैं। सारी दुतनया समृद्ध होिी चली जाएगी, उसके दकनारे हम एक दटरद्रिा का तहस्सा बन जाएंगे। आज भी हमारी हालि वैसी ही है जैसे दकसी करोड़पति के भवन के सामने कोई तभखमंगा खड़ा हो। आज भी हमारी हालि दुतनया के राष्ट्रों के मुकाबले एक तभखमंगे राष्ट्र की हालि है। यह हालि रोज बदिर होिी चली जाएगी। एक िरि टेक्नीक का उपयोग मि करना, कें द्रीकरण की भावना को रोकना, िोड़ना, दूसरी िरि तबल्कु ल हाथ से चलने वाले साधन जो आददम हैं उनका उपयोग करना और िीसरी िरि बच्चों को पैदा करिे चले जाना! बीस-पच्चीस वष में यह मुल्क अपने हाथ से अपनी सुसाइड कर लेगा, आत्महत्या कर लेगा। गांधी जी कहिे हैं दक संिति-तनयमन के पक्ष में भी वे नहीं हैं। वे कहिे हैं दक बथ-कं ट्रोल के पक्ष में भी वे नहीं हैं। वे कहिे हैं ब्रह्मचय से तनयमन होना चातहए। ब्रह्मचय से दकिने लोगों ने कब तनयमन दकया है? दकिने लोग तनयमन कर सकिे हैं? दकिने लोग करें गे? और हम प्रिीक्षा कब िक करें गे? लेदकन गांधी कहिे हैं दक नहीं, कृ तत्रम उपाय का हमको उपयोग नहीं करना है। बथ-कं ट्रोल के साधन कृ तत्रम हैं, आटीदितियल हैं, उनका उपयोग नहीं करना है। गांधी की ये बािें अवैज्ञातनक हैं। गांधी भले आदमी हैं, इसका यह मिलब नहीं होिा दक गांधी जो भी कहेंगे वह वैज्ञातनक होगा। कई बार बड़े गलि आदमी बड़ी ठीक बािें कहिे हैं, कई बार बड़े ठीक आदमी बड़ी गलि बािें कहिे हैं और सच िो यह है दक गलि बािें हम िभी स्वीकार कर पािे हैं जब बहुि भले आदमी उनको कहिे हैं। अगर चरखे और खादी की बाि दकसी और ने कही होिी गांधी के अलावा, िो जहंदुस्िान कभी मानने की दिकर नहीं करिा। वह गांधी इिने अदभुि आदमी हैं दक वह कु छ भी कहेंगे िो हमें लगिा है दक इिना बड़ा व्यति, इिना मतहमावान व्यति, इिना ओजस्वी, वह जो भी कहिा है, ठीक कहिा होगा। अगर हम माक्स की व्यतिगि जजंदगी को दे खें, िो माक्स की व्यतिगि जजंदगी में कु छ भी नहीं है तजसको उद्दात्त कहा जा सके , ऊंचा कहा जा सके । सुबह से सांझ िक तसगरे ट पी रहा है, िराब पी रहा है। जजंदगी में कु छ ऐसी ऊंची बाि नहीं है। जजंदगी में कोई ऐसा बड़ा भारी प्रभाव नहीं है। नौकरानी से गलि संबंध है, नाजायज लड़का पैदा हो गया माक्स को, माक्स की जजंदगी में कु छ भी नहीं है। छोटी सी बाि में क्रोध से भर जािा है। बहुि ईगोइस्ट है, बहुि ईष्यालु है। लेदकन माक्स ने समाज के तलए जो तवश्लेषण ददया है वह सत्य है। गांधी बहुि अच्छे आदमी हैं, न तसगरे ट पीिे हैं, न दकसी नौकरानी से कोई गलि संबंध है, न कोई नाजायज बच्चा पैदा हुआ है। जीवन एकदम पतवत्र कथा है। जीवन एक िुभ् कथा है, लेदकन गांधी ने जो तवश्लेषण दकया है समाज का वह अवैज्ञातनक है और गलि है। गांधी जैसे आदमी चातहए पृथ्वी पर, लेदकन समाज माक्स जैसा चातहए। गांधी का समाज का तवश्लेषण अवैज्ञातनक है। लेदकन गांधीवादी कहिे हैं मैं इस पर बाि ही न करूं। वे कहिे हैं, इस पर बाि ही मि कटरए। इस पर बाि नहीं करने का मिलब, इस पर बाि नहीं करने का मिलब है दक दे ि में आग लग रही हो, हम बैठ कर दे खिे रहें। गांधीवादी मुझे कहिे हैं दक आप िो धार्मक आदमी हैं, आप क्यों इन बािों में पड़िे हैं? एक धार्मक आदमी तनकलिा है और एक मकान में आग लगी हो और तचल्ला कर कह दे दक मकान में आग लगी है, पानी ले आओ, िो उससे आप कहेंगे दक आप िो धार्मक आदमी हैं, आप इस झंझट में कहां पड़िे हैं। लगने दो आग। आप अपना भजन-कीिन करो।



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मोरार जी भाई ने मेरे संबंध में बाि करिे हुए राजकोट में परसों कहा दक पहले िो राजनीतिज्ञ और आर्थक लोग गांधी जी की आलोचना करिे थे। अब आध्यातत्मक लोग भी उनकी आलोचना करने लगे। जैसे दक आध्यातत्मक आदमी का गांधी जी की आलोचना करना अतनवायरूपेण कोई अपराध हो। मैं मोरार जी भाई को कहना चाहिा हं, गांधी जी को राजनीतिज्ञ और आर्थक लोग िो समझ ही नहीं सकिे, आलोचना क्या करें गे। गांधी को िो आध्यातत्मक लोग ही समझ सकिे हैं और तवचार कर सकिे हैं, क्योंदक गांधी मूलिाः राजनीतिज्ञ नहीं हैं, न आर्थक तवचारक हैं, गांधी मूलिाः एक आध्यातत्मक संि हैं। गांधी के आस-पास जो राजनीतिज्ञ इकट्ठे हो गए हैं, उन्होंने ही गांधी को बबाद दकया है। और गांधी के पास जो राजनीति का जाल खड़ा हो गया, उस जाल ने ही गांधी की प्रतिमा को वह तजिनी सुंदर हो सकिी थी, तजिनी पतवत्र हो सकिी थी, उसकी पतवत्रिा और सुंदरिा में भी कमी की। गांधी मूलिाः एक आध्यातत्मक व्यति हैं। राजनीति से उनका कोई बुतनयादी संबंध नहीं है। राजनीति एक आपद-धम थी, एक मजबूरी थी। मुल्क में एक आग थी, गुलामी थी। उसे दूर करने को उन्हें कू द पड़ना पड़ा। लेदकन मूलिाः वे परमात्मा की खोज में जाने वाले एक साधक हैं। और उन पर आध्यातत्मक लोग तवचार न करें ऐसा अगर मोरार जी भाई सोचिे हों िो बहुि गलि सोचिे हैं। गांधी पर जहंदुस्िान के आध्यातत्मक जचंिकों को बार-बार तवचार करना पड़ेगा, क्योंदक गांधी ने आध्यातत्मक जीवन और सामान्य जीवन के बीच एक सेिु तनर्मि दकया है। लेदकन इसका मिलब यह नहीं है दक गांधी आध्यातत्मक व्यति हैं इसतलए जो भी कहेंगे वह सत्य होगा। हमारी पुरानी धारणा यह है, हम समझिे हैं दक महावीर को चूंदक आत्मज्ञान तमला, परमात्मा का अनुभव हुआ, इसतलए महावीर जो भी कहेंगे वह सच होगा, यह गलि है बाि। महावीर का सब कहा हुआ सच नहीं हो सकिा। बुद्ध का सब कहा हुआ सच नहीं हो सकिा। गांधी का सब कहा हुआ भी सच नहीं हो सकिा, बतल्क यह भी हो सकिा है दक गांधी से बहुि कम हैतसयि का कोई तवचारक दकसी ददिा में जो बाि कहे, चाहे उसके पास व्यतित्व हो चाहे न हो, वह भी सच हो सकिा है। यही मैंने कहा दक माक्स गांधी के मुकाबले कोई भी व्यतित्व नहीं है माक्स का। लेदकन माक्स के समाज का जो तवश्लेषण है वह गांधी से श्रेष्ठ है, सही है, सच्चा है, वैज्ञातनक है। इसतलए मैं मानिा हं दक गांधी जैसे पृथ्वी पर तजिने लोग बढ़ जाएंगे, पृथ्वी उिनी अच्छी होगी, लेदकन गांधी की जो जीवन-रचना की कल्पना है, वह कल्पना अवैज्ञातनक है, आददम है, तप्रतमटटव है, तपछड़ी हुई है, और उसके आधार पर चल कर इस दे ि के सौभाग्य का उदय नहीं हो सकिा है। मैं मानिा हं दक यह आलोचना और तवचार दकया जाना जरूरी है। नहीं, मैं यह नहीं कहिा हं दक मैं जो कहिा हं वह सही होना ही चातहए। वह मैं कभी भी नहीं कहिा हं। यह मैं नहीं कहिा हं दक मैंने जो कहा वह सत्य है ही। वह मैं कभी नहीं कहिा हं। यह भी मैं नहीं कहिा दक मेरी बाि आपको मान लेनी चातहए। मैं इिना ही कहिा हं दक मैं जो कहिा हं वह तवचारणीय है, उस पर तवचार दकया जाना जरूरी है। हो सकिा है मेरी बािें गलि हों। िब तवचार करके उनको िें क दे ना चातहए। हो सकिा है उसमें कोई बाि आपके तववेक को सच मालूम पड़े, िब वह मेरी नहीं रह जािी, वह आपकी अपनी हो जािी है। लेदकन जो पंथवादी होिे हैं, वे कहिे हैं, तवचार ही नहीं करना है। तवचार की हत्या करना चाहिे हैं। मैं गुजराि गया िो वहां मुझे लोगों ने कहा दक इं दुलाल याज्ञतनक ने कहा दक मेरा बतहष्कार करें गे, गुजराि में नहीं आने दें गे। मैंने कहा, अगर गुजराि पागल होगा िो इं दुलाल की बाि मानेगा। गुजराि पागल नहीं है। बतहष्कार करें गे मेरा, अगर मैं गांधी के ऊपर कु छ तवचार करूंगा िो बतहष्कार दकया जाएगा। गांधी की 16



आत्मा कहीं भी होगी िो इं दुलाल याज्ञतनक को दे ख कर रो रही होगी दक ये मेरे गांधीवादी हैं! इन्हीं लोगों के तलए मैंने लड़ाई लड़ी, इन्हीं के तलए जीवन कु बान दकया, इन्हीं के तलए बबाद हुआ। गांधीवादी को अगर थोड़ी भी समझ हो िो मुझे िो उसे गांव-गांव बुला कर ले जाना चातहए दक मैं गांधी के बाबि बाि करूं और गांधी के बाबि तवचार को पैदा करूं। लेदकन वह कहिा है दक नहीं, अखबार में मेरी खबर नहीं छपनी चातहए। मेरी सभा नहीं होनी चातहए। राजकोट में तजिने मैदान गांधीवाददयों के हाथ में थे उन्होंने कहा दक नहीं, यहां हम सभा नहीं होने दें गे। स्कू ल उनके हाथ में हैं, सभा नहीं होने दें गे। उनके हाथ में िो सभी कु छ हैं। लेदकन इससे क्या िक पड़िा है, इससे क्या सभा नहीं होगी? लेदकन इस भांति रोक कर वे क्या बिािे हैं? वे बिािे हैं दक दकिना समझे गांधी की अजहंसा को, दकिना समझे गांधी के अध्यात्म को, दकिना समझे गांधी के तवचार को, यही समझे? ददल्ली में बोला। दूसरे ददन ही मुझे एक पत्र आया। दकसी गांधीवादी ने पत्र तलखा और मुझे तलखा दक महािय आपको िौरन सेंट्रल जेल भेज ददया जाना चातहए। मैंने आंख बंद करके गांधी को धन्यवाद ददया, मैंने कहा दक मेरी उम्र कम थी, इसतलए आपके सत्संग का मौका नहीं तमला, नहीं िो आपके सत्संग में जेल जाना ही पड़िा। लेदकन आश्चय, आप मर गए, दिर भी प्रभाव आपका कािी है। जरा आपसे दोस्िी ददखाई, आपकी बाि की दक जेल जाने की बाि होने लगी। गांधी अगर जजंदा होिे िो इस बाि के सौ में से सौ मौके हैं दक गांधीवाददयों की जेल में उनको सड़ना पड़िा। ये गांधीवादी उनको जेल में जरूर भेजिे। गांधी बुतनयादी रूप से एक तवद्रोही क्रांतिकारी थे। वे मुल्क को नरक में ले जािे हुए अपने तिष्यों को नहीं दे ख सकिे थे। वे यह नहीं सोचिे दक ये तिष्य मेरे हैं, इसतलए इनसे बगावि कै से करूं। बगावि की कहानी िुरू हो गई थी। गांधी के हाथ से जैसे ही सत्ता उनके अनुयातययों को तमल गई, वैसे ही गांधी को लगने लगा दक मैं खोटा तसक्का हो गया हं। मेरा कोई चलन नहीं रहा। मेरी कोई सुनिा नहीं। गांधी के तिष्यों को भी लगिा था इस बुड्ढे से अब छु टकारा हो जाए िो अच्छा। क्योंदक यह झंझटें खड़ी करे गा। और गोडसे ने मालूम होिा है गांधी के अनुयातययों की प्राथना सुन ली और गांधी की हत्या कर दी। गांधी से छु टकारा हो गया। अब मजे से उनकी पूजा करो, प्राथना करो, यि-गान करो, अब गांधी कोई गड़बड़ नहीं कर सकिे। लेदकन इस भ्म में मि रहना, दक जो दे ि गांधी पैदा कर सकिा है--वह पचास गांधी पैदा कर सकिा है। गांधी पर तवचार दकया जाना जरूरी है, उनके एक-एक पहलू पर तवचार दकया जाना जरूरी है। जरूरी नहीं दक जो मैं कहं वही सच है। नहीं, उिनी कोई भी जरूरि नहीं। मेरा तनवेदन इिना ही है दक उस पर सोचने के तलए मुि मन का आमंत्रण होना चातहए। वही आमंत्रण मैं दे िा हं। यह िो प्रारं तभक बाि थी आज, आने वाले िीन ददनों में गांधी के अनेक पहलुओं पर मैं आपसे बाि करना चाहंगा। सुबह आपके प्रश्नों के उत्तर दूंगा। परमात्मा करे गांधी की कामनाएं सिल हो दक इस दे ि का भतवष्य स्वर्णम बने। परमात्मा करे दक गांधी जैसी इस दे ि की मुि आत्मा को तवचारिील आत्मा को पैदा करना चाहिे थे, वह आत्मा पैदा हो सके । मेरी बािों को इिने प्रेम और िांति से सुना, उससे बहुि-बहुि अनुगृहीि हं। और अंि में सबके भीिर बैठे परमात्मा को प्रणाम करिा हं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ दूसरा प्रवचन



संच ेि ना के ठोस आयाम कु छ तमत्रों ने कहा है दक गांधी जी यंत्र के तवरोध में नहीं थे। और मैंने कल सांझ को कहा दक गांधी जी यंत्र, कें द्रीकरण, तवकतसि िकनीक के तवरोध में थे। गांधी जी की उन्नीस सौ अठारह से लेकर उन्नीस सौ अड़िालीस िक की जचंिना को हम दे खेंगे िो उसमें बहुि िक होिा हुआ मालूम पड़िा है। वे बहुि सजग ऑब्जवर थे। वे रोज-रोज, जो उन्हें गलि ददखाई पड़िा, उसे छोड़िे, जो ठीक ददखाई पड़िा उसे स्वीकार करिे हैं। धीरे -धीरे उनका यंि्र-तवरोध कम हुआ था, लेदकन समाप्त नहीं हो गया था। अगर वे जीतवि रहिे और बीस वष, िो िायद उनका यंत्र-तवरोध और भी नि हो गया होिा। लेदकन वे जीतवि नहीं रहे, और हमारा दुभाग्य सदा से यह है दक जहां हमारा महापुरुष मरिा है वहीं उसका जीवनजचंिन भी हम दिना दे िे हैं। महापुरुष िो समाप्त हो जािे हैं, उनकी जीवन-जचंिना आगे बढ़िी रहनी चातहए। जहां महापुरुष समाप्त होिे हैं वहीं उनका जीवन-दिन समाप्त नहीं हो जाना चातहए। महापुरुष का िरीर समाप्त हो जािा है, उसका जीवन-जचंिन दे ि को आगे बढ़ािे रहना चातहए। लेदकन हम इिने भयभीि हैं, हम इिने डरे हुए लोग हैं दक हम जचंिन को आगे ले जाना नहीं चाहिे, हम जचंिन को वहीं ठोंक कर रोक दे ना चाहिे हैं, जहां महापुरुष का िरीर तगर जािा है वहीं हम उसके जचंिन को भी दिना दे ना चाहिे हैं। उसके ही तवरोध में मैं कह रहा हं। यह प्रश्न गांधी जी का ही नहीं है। इस पूरे दे ि की जचंिना यंत्र-तवरोधी रही है। यंत्र-तवरोधी हमारी चेिना नहीं होिी िो हमने यंत्र बहुि पहले तवकतसि कर तलए होिे। हमारे पास बुतद्ध की कमी नहीं थी। जहंदुस्िान में इिने बुतद्धमान आदमी पैदा हुए हैं तजिना कोई भी दे ि गौरव नहीं कर सकिा है। बुद्ध और महावीर, नागाजुन और धमकीर्ि, वसुबंधु और ददग्नाग, िंकर और रामानुज, वल्लभ और तनम्बाक हमारे पास अदभुि बुतद्धमान लोगों का लंबा तसलतसला है। लेदकन इिने बुतद्धमान लोग पैदा हुए, लेदकन एक आइं स्टीन और एक न्यूटन हमने पैदा नहीं दकया। िीन हजार वष के इतिहास में हमारे पास एक न्यूटन, एक आइं स्टीन कहने जैसा नहीं है। आइं स्टीन और न्यूटन से भी महत्वपूण तवचारक हमारे पास थे, लेदकन हमारे दे ि के तवचार ने कभी भी वैज्ञातनक ददिा में कोई गति नहीं की। यह आकतस्मक नहीं है, यह एतक्सडेंटल नहीं है। इसके पीछे हमारे जचंिन का हाथ है। हमारी मान्यिा यह है दक मनुष्य को तवस्िार से बचना चातहए। हमारी धारणा यह रही दक तजिनी चादर हो उस चादर के भीिर अपने पैर तसकोड़ कर रखना चातहए, चादर के बाहर पैर नहीं तनकालने चातहए। बुतद्धमान हम उसको कहिे हैं जो चादर के भीिर रहिा है। चादर के भीिर हम दकिने ही तसकु ड़ कर रहें, हम रोज बड़े होिे जािे हैं और चादर रोज छोटी होिी चली जािी है। जीना एक पीड़ा और कटठनाई हो जािी है लेदकन चादर के बाहर पैर नहीं िै लाने हैं। जीवन का तनयम है तवस्िार, और हमने संकोच के तनयम को आधार बनाया हुआ है। जो समाज तवस्िार के तसद्धांि को स्वीकार दकए हैं उन्होंने यंत्र को तवकतसि दकया है, क्योंदक यंत्र है मनुष्य का तवस्िार। हमारे पैर हैं, हम पैर से चलिे हैं। पैर से हम दकिने िेज चल सकिे हैं? कार हमारे पैर का तवस्िार है, हमने पैर के तलए 18



और तवस्िृि दकया, और कार िेज गति से दौड़िी है। हवाई जहाज हमारे पैर का और भी बड़ा तवस्िार है, अंिटरक्ष-यान हमारे ही पैर का और भी बड़ा तवस्िार है। यंत्र का अथ क्या है? यंत्र का अथ है दक जो मनुष्य को उपलब्ध नहीं हैं उपकरण, उनका तवस्िार या जो उपकरण उपलब्ध हैं, उनका तवस्िार। अगर हम संकोच को स्वीकार करिे हैं दक जीवन जैसा है, तजिना है, उिने ही चादर के भीिर उसे जी लेना है, िो हम कोई यांतत्रक, वैज्ञातनक, टेक्नालॉतजकल माइं ड पैदा नहीं कर सकिे हैं। यह सवाल बहुि बड़ा नहीं है दक गांधी यंत्र के तवरोध में हैं या पक्ष में हैं। चरखा भी यंत्र है। दलील िो दी जा सकिी है दक िकली भी यंत्र है। यंत्र िो है ही। दकसी ददन वह भी मिीन थी, आज भी मिीन िो है ही। छोटी है, अतवकतसि है, दस हजार वष पुरानी है, इससे क्या िक पड़िा है। यंत्र िो है ही। नहीं, सवाल यंत्र के पक्ष और यंत्र के तवरोध का नहीं है, सवाल टेक्नालॉतजकल माइं ड और एंटी-टेक्नालॉतजकल माइं ड का है। सवाल है दक िकनीकी मतस्िष्क में हम तवश्वास करिे हैं या िकनीक तवरोधी मतस्िष्क में हम तवश्वास करिे हैं। चीन ने कोई िीन हजार वष पहले मिीनें ईजाद कर ली थीं, लेदकन चीन में एक तवचारक था लाओत्सु, उसका बड़ा प्रभाव था। लाओत्सु ने कहा दक यंत्रों की कोई जरूरि नहीं है। आदमी पटरपूण है। परमात्मा ने आदमी को पूरा पैदा दकया है। उसे दकसी चीज की कोई जरूरि नहीं है। वह अपने सारे अंगों से ही सारा काम कर सकिा है। लाओत्सु के दिन का इिना प्रभाव पड़ा दक िीन हजार वष पहले जो मिीनें चीन ने तवकतसि की थीं, वे वहीं रह गईं, उनकी आगे कोई गति नहीं हो सकीं। उन्हीं मिीनों को यूरोप ने तपछले िीन सौ वषों में तवकतसि दकया और यूरोप ने धन के अंबार लगा ददए। चीन ने अगर िीन हजार वष पहले वे मिीनें तवकतसि की होिीं िो चीन िायद आज पृथ्वी पर सयिा में अग्रणी हो सकिा था, लेदकन लाओत्सु के तवचार-प्रभाव के पटरणाम में यंत्र वहीं ठहर गए और रुक गए। जहंदुस्िान बैलगाड़ी पर चल रहा है हजारों साल से। वह जो बैलगाड़ी के चाक का तनयम है, वही हवाई जहाज का भी तनयम है। उसमें कोई बुतनयादी िक नहीं पड़ गया है, उसका ही तवस्िार है। लेदकन हम बैलगाड़ी पर ही रुक गए। हमारा मतस्िष्क यंत्र के तवस्िार की कामना से भरा हुआ नहीं है और गांधी जी ने जब दिर हमें तवकें द्रीकरण--और तवकें द्रीकरण का क्या मिलब होिा है? तडसेंट्रलाइजेिन का मिलब क्या होिा है? तवकें द्रीकरण का मिलब होिा है दक छोटे यंत्र; बड़े यंत्र नहीं। क्योंदक तजिने बड़े यंत्र होंगे उिना कें द्रीकरण होगा। तजिना बड़ा कें द्रीकरण होगा उिने बड़े यंत्रों का हम प्रयोग कर सकिे हैं। तजिनी तवकें दद्रि व्यवस्था होगी उिने छोटे यंत्र होंगे, एक-एक आदमी तजनको चला सके , दो-चार आदमी तमल कर चला सकें , छोटे-छोटे गांव में चलाएं जा सकें । तवकें द्रीकरण का अथ होगा दक बहुि बड़े यंत्रों का प्रयोग नहीं हो सकिा। और आने वाली जो दुतनया है वह बहुि बड़े यंत्रों पर तनभर होगी। दिर मेरा यह कहना है, दक यह सवाल अगर यंत्रों का ही होिा िो मैं गांधी जी का तवरोध भी न करिा। यह सवाल यंत्रों का ही नहीं मनुष्य की चेिना के तवकास का भी है। िायद आपको पिा न हो, हम तजिने बड़े उत्पादन के यंत्रों का प्रयोग करिे हैं, मनुष्य के मतस्िष्क की अतभव्यति और तवकास की संभावना उिनी ही बढ़िी है। यह एकदम से आश्चयजनक मालूम पड़ेगा। लेदकन आपने कभी खयाल दकया दक एक बैलगाड़ी एक आदमी चलािा है जीवन भर। बैलगाड़ी चलाने में कोई बहुि बुतद्धमत्ता दक तलए चुनौिी नहीं तमलिी। चुनौिी का कोई सवाल नहीं है, कोई चैलेंज नहीं है वहां, लेदकन उसी आदमी को कल हवाई जहाज चलाना पड़े, िो 19



हवाई जहाज मतस्िष्क को ज्यादा चुनौिी दे िा है, ज्यादा समझ, ज्यादा अवेयरनेस, ज्यादा होि, ज्यादा कांिसनेस रखनी पड़िी है। ज्यादा जटटल चीजों को समझना पड़ेगा, ज्यादा जटटल चीजों में व्यवहार करना पड़ेगा। तजिनी जटटल, उलझी हुई, तजिनी सूक्ष्म, तजिनी तवस्िीण हमें यंत्र के साथ सामना करना पड़िा है, हमारे मतस्िष्क को उिनी चुनौिी तमलिी है और मतस्िष्क उसी अनुपाि में तवकतसि होिा है। तजन कौमों ने छोटे यंत्रों या गैर-यंत्रों के तबना काम चलाया, उनकी सामातजक चेिना और मतस्िष्क के तवकास में अवरोध पड़ा है। बंदर पहली दिा जो बंदर जमीन पर खड़ा हुआ होगा दो पैर से, बाकी बंदर उस पर हंसे होंगे दक यह तबल्कु ल नासमझ है, लेदकन डार्वन कहिा है दक वह बंदर जो दो पैर पर खड़ा हो गया--पहले िो बंदर हंसे होंगे और उन्होंने समझा होगा दक यह पागल है। वह ऑकवड भी लगा होगा दो पैर से खड़ा हुआ। सब बंदर चार पैर से चलने वाले थे, लेदकन जो बंदर दो पैर से खड़ा हो गया उसने टेक्नालॉतजकल रे वोल्यूिन को जन्म दे ददया। उसने िकनीक के तवकास की पहली सीढ़ी रख दी। उसने यह कहा है दक जो काम दो पैर से हो सकिा है उसको चार हाथ-पैर से करना गलि है। िकनीक िुरू हो गया। उसने दो हाथ मुि कर तलए और दो पैर से चलने का काम करने लगा। क्या आपको पिा है, अगर उस बंदर ने दो हाथ मुि नहीं दकए होिे िो मनुष्य की कोई सयिा का कभी जन्म नहीं हुआ होिा। वह जो दो हाथ मुि हो गए, वह दो खाली हाथों ने मनुष्य की सारी सयिा तवकतसि की है। बंदर वहीं रुक गए हैं चार हाथ-पैर से चलने वाले। दो हाथ-पैर से चलने वाले बंदर ने जमीन-आसमान का िक पैदा कर तलया। आज कोई कहे दक बंदर और हम एक ही जाति के हैं, िो हमारा मन मानने को राजी नहीं होिा। हमारे और बंदर के बीच इिना िासला पड़ गया, लेदकन यह िासला एक टेक्नालॉतजकल िक से पड़ा दक कु छ बंदरों ने दो हाथ मुि कर तलए। दो हाथ खाली हो गए, स्विंत्र हो गए काम करने को, दो पैर से काम चलने लगा और उन दो स्विंत्र हाथों ने सारी सयिा, मकान, मंददर, िाज, मतस्जदें , सातहत्य, संगीि, धम, इन सबकी दिक्र की। इस बाि की संभावना है दक बहुि िीघ्र मनुष्य समस्ि यंत्रों को स्वचातलि तनर्मि कर लेगा। अमेटरका में िो उसका जचंिन और तवचार िीव्र हुआ जािा है। वे कहिे हैं दक आने वाले पचास वषों में हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह होगा दक हम यंत्रों से सब पैदा कर लेंगे। मनुष्य के श्रम की कोई जरूरि न रह जाएगी। मनुष्य खाली हो जाएगा। वह खाली मनुष्य क्या करे गा, यह हमारे सामने सवाल है? अगर सारे यंत्र स्वचातलि हो गए और मनुष्य का ि्रम उनसे मुि हो गया, िो मेरी दृति में मनुष्य की चेिना में आमूलभूि पटरविन हो जाएगा, क्योंदक पहली दिा चेिना पृथ्वी से पूरी िरह मुि हो जाएगी--श्रम से और उस श्रम से िून्य अवस्था में जो खोज, जो यात्रा चेिना की होगी, वह उन्हें दकस लोकों में ले जाएगी कहना कटठन है। िायद आपको पिा नहीं दक जगि की सारी संस्कृ ति तलजर, तवश्राम से पैदा हुई है। जगि का सारा सातहत्य तलजर, तवश्राम से पैदा हुआ है। जगि में जो भी श्रेष्ठिम उपलब्ध हुआ है वह उन लोगों से उपलब्ध हुआ है जो श्रम से दकसी भांति मुि हो गए। एथेंस में तजिनी संस्कृ ति तवकतसि हुई, वह इसतलए तवकतसि हो सकी दक एथेंस में एक वग, गुलामों के वग ने सारा श्रम दकया और दूसरे अतभजाि वग ने, बुजुआ ने कोई श्रम नहीं दकया। वे जो श्रमहीन लोग थे, वे भी िो कु छ करें गे जीने के तलए? उन्होंने दिलासिी तलखी। उन्होंने साक्रेटीज, अरस्िू और प्लेटो को जन्म ददया। 20



भारि में भी, भारि ने भी ब्राह्मणों ने जहंदुस्िान के सारे सातहत्य, सारे तवचार को जन्म ददया, क्योंदक ब्राह्मण श्रम से मुि हो गया था, अन्यथा कोई उपाय न था। िूद्रों ने एक उपतनषद तलखी? िूद्रों ने एक वेद तलखा? िूद्रों ने आयुवेद खोजा? िूद्रों के ऊपर क्या उपलतब्ध है भारि में? िूद्र के नाम पर कोई उपलतब्ध नहीं है बेचारे के , क्योंदक वह चौबीस घंटे श्रम में लीन है। जहंदुस्िान की सारी संस्कृ ति का जन्मदािा ब्राह्मण है। और ब्राह्मण क्यों हैं जन्मदािा? ब्राह्मण इसतलए जन्मदािा है दक उसके हाथ से सारा श्रम समाप्त हो गया, उसका व्यतित्व पूरा का पूरा तवश्राम में हो गया, चेिना को ऊपर उठने का मौका तमल गया, चेिना आकाि की यात्रा करने लगी। मनुष्य-जाति के जीवन में एक आध्यातत्मक क्रांति हो जाएगी उस ददन, तजस ददन हम सारी मनुष्य-जाति को श्रम से मुि कर लेंगे। जब िक हम मनुष्य-जाति को श्रम से मुि नहीं करिे हैं, िब िक मनुष्य-जाति के जीवन में बहुि बुतनयादी रूपांिरण नहीं हो सकिा है। गांधी जी के जो तवश्वास हैं, उनके तहसाब से मनुष्य-जाति श्रम से कभी मुि नहीं होगी। अगर एक आदमी अपने लायक ही कपड़ा बनाना चाहे िो कम से कम उसे िीन-चार घंटे रोज चरखा चलाना पड़ेगा। वष भर में अपने लायक कपड़ा बनाना चाहे िो उसे िीन-चार घंटे चरखा चला लेना पड़ेगा। अगर उसके ऊपर कोई तनभर एक व्यति है िो उसके आठ घंटे चरखा चलाने में व्यिीि हो जाने चातहए। जो आदमी आठ घंटे चरखा चलाएगा--तसि कपड़ा बनाने के तलए! वह और भी कु छ करे गा या नहीं? और इिनी क्षुद्र चीजों में उसकी चेिना को उलझा दे ना क्या मनुष्य के भावी तवकास के तहि में हो सकिा है? यह प्रश्न तसि चरखा और िकली का नहीं है, यह प्रश्न मनुष्य-जाति के जीवन में चेिना के जन्म, चेिना के तवकास का प्रश्न है। अभी अमेटरका और रूस ने जो अंिटरक्ष-यान भेज,े उन अंिटरक्ष-यानों में जो यात्री गए, उनका अनुभव आपको पिा है? उन्होंने लौट कर क्या खबरें दी हैं? उन्होंने खबरें दी हैं दक अंिटरक्ष में पटरपूण िून्य है, सन्नाटा है। वहां टोटल साइलेंस है, वहां कोई आवाज नहीं, क्योंदक वहां कोई हवा नहीं। अगर बोतलएगा भी िो ओंठ तहलेंगे, आवाज नहीं होगी। वहां कभी कोई आवाज नहीं हुई। अंिटरक्ष पटरपूण िून्य है। उस िून्य में जाकर अंिटरक्ष यातत्रयों को क्या अनुभव हुआ दक यह मतस्िष्क पूरा का पूरा िटने लगिा है, घबड़ाने लगिा है। इिनी िांति कभी दे खी नहीं, इिनी िांति कभी झेली नहीं। हमेिा िोरगुल, आवाज, आवाज, राि सोिे हैं िब भी बाहर आवाजें चल रही हैं, उनकी मतस्िष्क को आदि पड़ गई है। मतस्िष्क उनसे कं डीिंड हो गया है। अंिटरक्ष में जाने पर उनको पिा चला दक मतस्िष्क िो िट जाएगा। इिनी िांति को सहना मुतश्कल है। िो रूस और अमेटरका में उन्होंने कृ तत्रम घर बनाए हैं, कृ तत्रम कमरे बनाए हैं तजनमें उिनी िांति पैदा करने की कोतिि की है तजिनी अंिटरक्ष में है। वहां यात्री को पहले ट्रेजनंग दी जाएगी, लेदकन उस कमरे में बैठ कर आधा घंट,े पंद्रह तमनट में घबड़ा कर यात्री बाहर आ जािा है दक वहां बहुि घबड़ाहट होिी है, लेदकन धीरे -धीरे उस िून्य को सहने की सामथ्य उसकी तवकतसि हो जाएगी। उसका अथ आप समझिे हैं? उसका अथ यह है दक जो लोग अंिटरक्ष-यान में यात्रा करें गे उनके मतस्िष्क की बनावट में बुतनयादी िक हो जाएगा उिनी िांति को सहने के कारण और यह हो सकिा है दक एक तबल्कु ल दूसरे िरह के मनुष्य का जन्म हो जाए तजसकी हमें कोई कल्पना भी नहीं हो सकिी। जीवन और उत्पादन के साधन, वाहन-कम्युतनके िन के साधन अंििाः मनुष्य की चेिना में पटरविन लािे हैं। अपने दे खा, जो जंगल में आददवासी रह रहा है, उस आददवासी ने कोई साक्रेटीज पैदा दकया? कोई बुद्ध पैदा 21



दकया? कोई महावीर पैदा दकया? कोई गांधी पैदा दकया? वह कै से पैदा करे गा? उसके उत्पादन के साधन इिने आददम हैं दक उन आददम उत्पादनों के साथ मतस्िष्क इिनी ऊंचाइयां नहीं ले सकिा है तजिनी ऊंचाइयां तवकतसि साधनों के साथ ली जा सकिी है। आपको खयाल है, आज भी जहंदुस्िान में राधाकृ ष्णन जैसे व्यतियों को हम तवचारक कहिे हैं। राधाकृ ष्णन टीकाकार हो सकिे हैं, तवचारक जरा भी नहीं। एक मौतलक तवचार को कोई जन्म नहीं ददया। जमनी में हाइडेगर है या जास्पस है, या सात्र है, या कामू है, या रसल है। इनकी कोटट का एक तवचारक आप पैदा नहीं कर कर सकिे हैं आज। आप तजसको तवचारक कहिे हैं, दकसको तवचारक कहिे हैं? गीिा पर एक आदमी टीका तलख दे िा है िो तवचारक हो जािा है? लेदकन गीिा पैदा कर सके ऐसा एक तवचारक आप पैदा नहीं कर सकिे हैं। बस टीकाकार पैदा कर सकिे हैं। उन्हीं को तवचारक मान कर िोरगुल मचािे रहिे हैं। हाइडेगर की हैतसयि का एक तवचारक हम पैदा नहीं कर सकिे। उसका कारण? उसका कारण यह नहीं दक हमारे पास बुतद्ध कम है, उसका कारण यह नहीं दक हमारे पास प्रतिभा नहीं है, उसका कारण यह है दक हमारा पूरा सामातजक पटरवेि उिनी प्रतिभा को चैलेंज दे ने वाला नहीं है जहां से दक हाइडेगर या जॉस्पस जैसे लोग पैदा हो सकें । लेदकन हम बैठे हुए हैं और हमारा तवचारक चरखा और िकली की प्रिंसा करिा रहेगा और हम तवचार करने को राजी नहीं हैं। इस बाि के तलए समझ लेना आप ठीक से दक अगर पचास वष में पतश्चम में सब कु छ स्वचातलि यंत्र हो गए, अंिटरक्ष की यात्रा िुरू हुई, िो इस बाि का डर है दक पतश्चम में एक नये मनुष्य का, एक नई ह्यूमैतनटी का जन्म हो जाए और पूरब के लोगों और पतश्चम के लोगों में उिना िासला पड़ जाए हजार दो हजार वषों में, तजिना बंदर और आदमी के बीच िासला पैदा हो गया है। लेदकन हमें कोई बोध नहीं है इस बाि का। हम कहेंगे, हम िो स्वावलंबन की बािें कर रहे हैं। हम हमेिा से इसी िरह की बािें कर रहे हैं और हमेिा नुकसान उठािे रहे हैं, लेदकन हम जानने को भी राजी नहीं होना चाहिे। जहंदुस्िान एक हजार साल िक गुलाम था और हजारों साल से तनरं िर हारिा रहा है, जीि का उसने कभी कोई सपना नहीं दे खा, जीि का कभी मौका नहीं पाया। हम क्यों हारिे रहे? कभी आपे सोचा? हम हारिे इसतलए रहे हैं दक जब भी दुश्मन हमारे ऊपर आया, उसके पास युद्ध की तवकतसि टेक्नालॉजी थी। हमारे पास तवकतसि टेक्नालॉजी नहीं थी। तसकं दर जहंदुस्िान आया वह घोड़े पर सवार होकर आया। पोरस उससे लड़ने गया। पोरस तसकं दर से कमजोर आदमी नहीं था और उसके पास बहादुर सैतनक थे, लेदकन पोरस के पास टेक्नालॉजी जो थी वह अतवकतसि थी। वह हातथयों पर लड़ने गया था। हाथी कोई युद्ध का अि नहीं है। हाथी बराि तनकालनी हो िो बहुि अच्छे हैं, िोभा-यात्रा तनकालनी हो िो बहुि अच्छे हैं, लेदकन युद्ध के मैदान पर हाथी तपछड़ा हुआ साधन है घोड़े के मुकाबले। घोड़ा िेज है, ज्यादा जानवान है, ज्यादा चंचल है, थोड़ी जगह घेरिा है, िेजी से गति करिा है। तसकं दर के घोड़ों के मुकाबले पोरस के हाथी हारे । तसकं दर से पोरस नहीं हारा है। और हाथी जब घबड़ा गए युद्ध में िो उन्होंने अपनी सेनाओं को कु चल डाला। बाबर जहंदुस्िान आया। बाबर के पास बारूद थी। हमारे पास बारूद का कोई उत्तर नहीं था। दूसरे मुल्क में हम लड़ने नहीं गए, दूसरे मुल्क के लोग लड़ने आए, हम अपने मुल्क में हारिे रहे। इिनी बड़ी जनसंख्या लेकर हम बैठे हैं, परदे ि से एक आदमी आएगा दकिनी िौजें लाएगा, दकिनी िौजें ला सकिा है, और हम उससे अपने मुल्क में हार जाएंगे। बारूद का हमारे पास कोई उत्तर न था। बारूद से हारने के तसवाय कोई रास्िा न था। हम बाबर से नहीं हारे ; हम बारूद से हारे । बाबर को हराने की



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हमें तहम्मि न थी, लेदकन हमारे पास कोई टेक्नीक न थी। अंग्रेज जहंदुस्िान में आए, हमारे पास बंदूकें थीं, अंग्रेजों के पास तवकतसि िोपें थीं। हम अंग्रेजों से नहीं हारे , बंदूकें िोपों से हारें गी ही, इसके तसवाय कोई रास्िा नहीं है। और अब हम दिर वही बािें दकए चले जा रहे हैं दक टेक्नालॉजी, नहीं-नहीं बड़े यंत्रों का क्या करना है, बड़े तवकास का क्या करना है, चरखा-िकली से चलाना है। उसी से चला रहे हैं हम पांच हजार वषों से और रोज माि खािे रहे, रोज जमीन चाटिे रहे, लेदकन वही बािें हम जारी दकए हुए हैं। और अगर कोई कहे दक यह गलि है, हमें तवकास के सारे साधनों का उपयोग करना है, हमें बहुि िीघ्र बीस वषों में सारी दुतनया के साथ खड़े हो जाना है, अन्यथा हम कहीं के नहीं रह जाएंगे, िो हम उसके तवरोध में टू ट पड़ेंगे दक हमारे महापुरुष की आलोचना हो गई। यह महापुरुष की आलोचना का सवाल नहीं है, यह मुल्क की जजंदगी का सवाल है। मैं जो तवकतसि टेक्नीक के पक्ष में बोल रहा हं वह इसतलए नहीं दक मुझे चरखे से कोई दुश्मनी है, न िकली से मुझे दुश्मनी है, न मैं इस खयाल का हं दक चरखे और िकली चलने बंद हो जाने चातहए। जब िक कोई उपाय नहीं है वह चलें, लेदकन मजबूरी हो उनको चलाना, हमारा तसद्धांि नहीं। यह िक समझ लेना जरूरी है। मजबूरी हो उनको चलाना, हमारा तसद्धांि नहीं। तववििा हो हमारी, हम मजबूर हैं, इसतलए अभी कु छ नहीं कर पा रहे हैं, िो चला रहे हैं। लेदकन जैसे ही हमें मौका तमलेगा, हम उनसे मुि हो जाएंगे। यह हमारी दृति हो। वे हमारे प्रिीक न बन जाएं। हमारी कमजोरी के प्रिीक हों, हम नहीं तवकतसि हो पाए हैं इसके प्रिीक हों। उनको हम छािी कािृंगार न बना लें और यह न घोषणा करिे दिरें दक हम बहुि ऊंचा काम कर रहे हैं। न ही खादी से मेरा कोई तवरोध है, लेदकन खादी को मैं कोई आर्थक-संयोजन का तसद्धांि नहीं मानिा हं। खादी कोई आर्थक चीज नहीं हो सकिी। खादी का एक एस्थेटटक मूल्य हो सकिा है, एक सौंदयगि मूल्य हो सकिा है। दकसी आदमी को हाथ से बनाई हुई चीज पहनने में रस हो सकिा है। दुतनया दकिनी ही तवकतसि हो जाए िो भी घर के उद्योग जारी रहेंगे। दुतनया दकिनी ही तवकतसि हो जाए, होटलों में दकिना ही अच्छा खाना बनने लगे, िो भी कोई गृतहणी अपने घर खाना बनाना पसंद करे गी। और यह भी हो सकिा है दक घर बनाया हुआ खाना होटल से अच्छा न हो, िो भी घर का खाना खाने का आनंद अलग है। लेदकन उसका मूल्य एस्थेटटक है। उसका मूल्य आर्थक नहीं है, उसका मूल्य वैज्ञातनक नहीं है। अगर मेरी मां मुझे कु छ खाना बना कर तखलािी है, हो सकिा है होटल के रसोइए उससे बहुि बेहिर बनािे हों, लेदकन होटल के रसोइयों के खाने से मुझे मेरी मां का खाना अच्छा लगेगा। लेदकन मैं यह कभी नहीं कहंगा दक यह डाइटीतियन के तहसाब से ज्यादा बेहिर खाना है। मैं इिना ही कहंगा, यह मेरी मां है और मेरा एक प्रेम है और एक लगाव है इसतलए यह मुझे अच्छा लग रहा है। इसका संबंध िीजलंग से हुआ, डाइट के साइं स से नहीं। लेदकन जब मैं यह घोषणा करने लगूं दक मां के हाथ का बनाया हुआ खाना डाइट की दृति से, भोजनिाि की दृति से ऊंचा होिा है, िो दिर मैं गड़बड़ में पड़ गया, िो दिर मैं कटठनाई में पड़ गया। खादी एक एस्थेटटक मूल्य रखिी है। तजन्हें प्रीतिकर हो वे खादी पहन सकिे हैं, तजन्हें प्रीतिकर हो वे चरखा चला सकिे हैं। दकसी को रुकावट डालने की कोई जरूरि नहीं है, लेदकन खादी को आर्थक-संयोजना का, इकॉनातमक प्लाजनंग का तहस्सा नहीं समझा जा सकिा और खादी को आर्थक-तसद्धांि नहीं माना जा सकिा। मैं खुद खादी पहनिा हं। मुझे खुद दूसरे कपड़े के बजाय खादी ज्यादा पोएटटक, ज्यादा काव्यात्मक मालूम पड़िी है। मुझे खुद खादी में ज्यादा पतवत्रिा, ज्यादा स्वच्छिा, ज्यादा सिे दी मालूम पड़िी है। लेदकन यह मेरी पसंद हुई व्यतिगि। यह हॉबी हो सकिी है, यह अपना सुख हो सकिा है। और हॉबी दक तलए महंगे से महंगा 23



खच करना पड़िा है--सो खादी कािी महंगा हॉबी है, कािी महंगी हॉबी है। जो धोिी दस रुपये में तमल सकिी है मील की, वह खादी दक पचास रुपये में तमलेगी। और वह पचास में भी तसि इसतलए तमलिी है दक कर चुकाने वालों से पंद्रह रुपये लेकर खादी पहनने वालों को चुकाए जा रहे हैं। पैंसठ रुपये की चीज पचास रुपये में पड़िी है पहनने वाले को। पंद्रह रुपये सरकार दे रही। यह हैरानी की बाि है। तजसको िौक हो वह पैंसठ, सत्तर, अस्सी खच करे । लेदकन जो खादी नहीं पहनिा है, उससे पंद्रह रुपये उसकी जेब में से तनकाल कर मुझे खादी पहनाई जाए यह समझ के बाहर है। इसका कोई अथ नहीं, यह खिरनाक बाि है। लेदकन हम तवचार करने को राजी होने को राजी नहीं हैं। हम सोचने को ही राजी नहीं हैं। इससे क्या पिा चलिा है? सोचने से इिना भयभीि होने का मिलब क्या होिा है? इसका साि मिलब यह होिा है दक हम बहुि भलीभांति जानिे हैं दक इन चीजों पर सोचा िो सोचने में ये चीजें बह जाएंगी, ये बच नहीं सकिीं। जब आदमी डरिा है दक तजन चीजों पर सोचने से चीजों के तमट जाने का डर है, अनकांिसली वह अनुभव करिा है दक हमने सोचा दक ये गईं, िो वह सोचने से भयभीि हो जािा है। दिर वह कहिा है सोचो मि, जो है वह ठीक है, आंख बंद रखो। आंख बंद रखने का मिलब यह है दक आप जानिे हैं आंख खोलिे से जो ददखाई पड़ेगा वह वही नहीं होने वाला है, जो आप समझिे रहे हैं। वह िथ्य दूसरा है जो आंख खोलने से ददखाई पड़ेगा। इसतलए कमजोर लोग आंखें बंद करना िुरू कर दे िे हैं, लेदकन अगर पैर में िोड़ा है और उसे तछपा लें आप, िो आप स्वस्थ नहीं हो जािे और अगर कोई कहे दक जरा आपका कपड़ा उठाइए और आप कहें दक क्यों कपड़ा उठाऊं, क्यों िुमने मेरी कपड़ा उठाने की बाि की, िो उससे भी आप स्वस्थ नहीं हो जािे हैं, बतल्क आपकी यह घबड़ाहट बिािी है दक कपड़े के पीछे कु छ आप तछपाए हैं तजसे आप जानिे भी हैं और नहीं भी जानना चाहिे हैं; तजसे आप पहचानिे भी हैं लेदकन पहचानना भी नहीं चाहिे हैं, मुकरना चाहिे हैं, पीठ िे र लेना चाहिे हैं। जब भी कोई कौम तवचार करने से डरने लगिी है िो समझ लेना उस कौम ने कु छ बेवकू दियां पाल रखी हैं तजनकी वजह से वह तवचार करने से डरिी है। सत्य कभी भी तवचार करने से भयभीि नहीं होिा, असत्य हमेिा तवचार करने से भयभीि होिा है। हमारे महापुरुष असत्य हैं या सत्य, अगर उन पर तवचार करने से भय मालूम होिा है िो िुम समझ लेना दक िुम बहुि भीिर मन में जानिे हो दक ये महापुरुष हमारे बनाए हुए हैं, ये असली महापुरुष नहीं हैं। लेदकन अगर िुम तवचार करने की तहम्मि कर सकिे हो, िो ही पिा चलिा है दक िुमने स्वीकार दकया है दक महापुरुष में कु छ बल है। िुम्हारे तवचार करने से वह नि हो जाने वाला नहीं है। जो व्यथ होगा वह जल जाएगा। हम सोने को आग में डालने से डरिे नहीं, क्योंदक जो कचरा होगा वह जल जाएगा और जो सोना है वह बच कर बाहर तनकल आएगा। लेदकन कचरा ही कचरा पास में हो िो उसको हम दिर आग में डालने से बहुि डरें गे। मैं गांधी को आग में डालने से नहीं डरिा हं, क्योंदक मैं मानिा हं उनमें बहुि कु छ सोना है; कचरा जल जाएगा और सोना तनखर कर बाहर आ जाएगा। लेदकन उनके भि बहुि भयभीि होिे हैं। उनके भि क्या डरिे हैं दक गांधी जल जाएंगे तवचार करने से उन पर? उनके एक भि ने अभी तचट्ठी तलखी है दक मैं और कु छ भी करूं, कम से कम गांधी को तसि गांधी न कहा करूं, महात्मा गांधी या गांधी जी कहा करूं। अब यह थोड़ा सोचने जैसा है। यह थोड़ा सोचना जैसा है दक हम गांधी को गांधी जी कहें, इसमें ज्यादा आदर है या गांधी कहने में ज्यादा आदर है? परमात्मा के साथ हम जी नहीं लगािे दक परमात्मा जी। परमात्मा को हम कहिे हैं परमात्मा। परमात्मा को हम कहिे हैं िू। आप आएंगे िो मैं आपसे कहंगा आप। परमात्मा से कभी दकसी से "आप" कहा है? परमात्मा से हम कहिे हैं "िू", हे परमात्मा िू! िू अनादर नहीं है। िू अनादर नहीं 24



है और न गांधी अनादर है। इिना प्रेम है मेरे मन में दक "जी" लगाने से मुझे नहीं लगिा दक गांधी की इज्जि बढ़िी है। ये छोटे-मोटे लोगों के साथ जी लगाने से इज्जि बढ़िी होगी। गांधी के साथ जी लगाने से इज्जि कम होिी है। जी हम उनके साथ लगािे हैं तजनके साथ लगाने जैसा भीिर कु छ भी नहीं है, बाहर से जी लगा कर इज्जि जोड़ दे िे हैं। महावीर को मैं महावीर कहिा हं, उनको महावीरजी कहने से ऐसा लगेगा कोई दकराने की दुकान के मातलक हैं। गौिम बुद्ध को मैं बुद्ध कहिा हं, बुद्धजी लगाने से वे ओछे और छोटे पड़ जाएंगे। गांधी को मैं उसी कोटट में मानिा हं जहां आदमी "आप" के ऊपर उठ जािा है और "िू" में प्रतवि हो जािा है। इसतलए मैं जी वगैरह नहीं लगाऊंगा और न महात्मा कहंगा। लेदकन ये घबड़ािे कै से हैं लोग दक जी नहीं लगाया िो मुतश्कल हो गई। ये अपनी ही बुतद्ध से सोचिे हैं। वह तजिनी उनकी हैतसयि है। अगर उनसे कोई जी न लगाए और आप न कहे िो वे बेचैनी में पड़ जाएंगे। बेचारे अपनी ही िक्ल में वे महापुरुषों को भी सोचिे रहिे हैं। नहीं, मैं नहीं लगाऊंगा और आप लगािे हो िो आपसे कहंगााः मि लगाना, अपमानजनक है, इनसजल्टंग है। हम अपने महापुरुष को िो उिने प्रेम से पुकार सकिे हैं, बीच में जी और आदर सब लगाने की जरूरि नहीं है। िायद आपको खयाल न हो दक हम जब आदर प्रकट करिे हैं िो हम क्यों प्रकट करिे हैं? जब हम िब्दों में आदर बिािे हैं िो क्यों बिािे हैं? िब्दों में आदर इसतलए बिाना पड़िा है दक अगर िब्दों में न बिाएं िो और िो कोई आदर हमारे पास नहीं है। िब्द ही आदर है। जब हृदय में आदर होिा है िो िब्दों में हम तवचार नहीं करिे, दिक्र नहीं करिे और जब हृदय में आदर नहीं होिा िो हम िब्दों की बहुि दिक्र करिे हैं दक क्या कहा क्या नहीं कहा, कौन सा िब्द उपयोग दकया, कौन सा नहीं दकया। बनाड िॉ, उसका संतक्षप्त नामाः जे.बी.एस.। वह कहिा थााः जॉज बनाड िॉ। उसकी मां मर गई, िो उस ददन से उसने जे.बी.एस. तलखना बंद कर ददया, तसि बी.एस. तलखने लगा, बनाड िॉ तलखने लगा। उसके तमत्रों ने पूछा दक िुम जे.बी.एस. क्यों नहीं तलखिे हो अब? उसने कहा दक तसि मेरी एक मां थी तजसका मेरे ऊपर इिना प्रेम था जो मुझे जॉज कहिी थी। वह चली गई दुतनया से। अब इिना प्रेम मेरे ऊपर दकसी का भी नहीं है दक कोई मुझे जॉज कहे। वह सब मुझे बनाड िॉ कहिे हैं। बनाड िॉ उिना प्यारा नाम नहीं है। मेरी मां उठ गई दुतनया से। उसका इिना प्रेम था दक वह मुझसे जॉज कहिी थी। अब वह जॉज मैंने अलग कर ददया। अब कोई भी उससे मुझे बुलाएगा नहीं, कोई भी मुझे जॉज कह कर नहीं कहेगा। बनाड िॉ ने कहा दक मेरी मां के मरने से मैं पहली दिा ब.ूूढा हो गया हं। मेरी मां जजंदा थी िो मैं बूढ़ा नहीं था। मुझे लगिा था दक मैं अभी बच्चा हं, क्योंदक मुझे जाज कह कर बुलािी थी। इिना प्रेम था उसका। अब मैं बूढ़ा हो गया, अब मेरी मौि करीब आने लगी। अब मुझे लगिा है दक अब इिना प्रेम कोई भी मुझे नहीं करिा है। प्रेम के अपने रास्िे हैं, श्रद्धा के अपने रास्िे हैं। लेदकन जो न प्रेम जानिे हैं, न श्रद्धा जानिे हैं तसि थोथा तििाचार जानिे हैं, उनको बेचारों को प्रेम और श्रद्धा के रास्िों का कोई भी पिा नहीं हो पािा। वे तििाचार को ही सब कु छ समझिे हैं। तििाचार उनके बीच होिा है तजनके बीच प्रेम नहीं है। तजनके बीच प्रेम है उनके बीच तििाचार समाप्त हो जािा है। महापुरुष हम उसे कहिे हैं तजसके साथ समाज का तििाचार समाप्त हो गया है, उससे हम सीधी-सीधी बाि कर सकिे हैं। इसतलए मैं क्षमा नहीं मांगूंगा दक गांधी जी को गांधी जी नहीं कहिा या महात्मा नहीं लगािा। नहीं, कभी नहीं लगाऊंगा, लगाने की कोई जरूरि नहीं है।



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कु छ तमत्रों ने पूछा है दक गांधी जी ने, गांधी के तवचार ने दे ि को आजादी ददलाई। मैं मना नहीं करिा। यह भी मैं मना नहीं करिा दक उन्होंने दे ि के तलए दकिना काम दकया। िायद इस दे ि के पूरे इतिहास में दकसी एक मनुष्य ने दे ि के तलए इिना काम नहीं दकया है, लेदकन इसका यह अथ नहीं है, इसका यह अथ नहीं है दक हम उनके प्रति अंधे हो जाएं। वे भी पसंद नहीं करें गे दक हम उनके प्रति अंधे हो जाए, वे भी पसंद नहीं करें गे दक हम उनके प्रति सोचना-तवचारना बंद कर दें । उनका हमारे ऊपर ऋण बहुि ज्यादा है। इसीतलए िो मैं सोचिा हं दक उन पर हमें बार-बार तवचार करना चातहए। उन पर बार-बार तवचार करने का अथ ही यही है दक मैं मानिा हं दक उनका ऋण हमारे ऊपर बहुि ज्यादा है और उस ऋण से उऋण होने का एक ही रास्िा है दक हम तनरं िर सोचें, सोचें, तनखारें उनके तवचार को और उनके तवचार में जो श्रेष्ठिम है उसके अनुकूल दे ि को ले जा सकें । लेदकन श्रेष्ठिम का पिा कै से चलेगा? एक बड़ी जजंदगी बहुि बड़ी जजंदगी है, जजंदगी में हजारों-लाखों घटनाएं होिी हैं, उन लाखों घटनाओं में चुनना पड़िा है दक क्या है श्रेष्ठ, क्या है भतवष्य के योग्य, क्या व्यथ हो गया, क्या अप्रासंतगक हो गया, क्या समय के बाहर हो गया--यह सब सोचना पड़िा है। महापुरुष भी पचास वष, साठ वष, सत्तर वष जीिा है, िो सत्तर वष में हजारों घटनाएं घटिी हैं। वे सारी की सारी घटनाएं दे ि के भतवष्य के तलए उपयोगी नहीं होिीं, नहीं हो सकिी हैं। उनमें से क्या हैं, छांट लेना हैं। लेदकन हम ऐसे अंधे लोग हैं दक जब हम दकसी को महापुरुष कहिे हैं िो उसके सब कु छ को महापुरुष मान लेिे हैं। इससे बड़ी भूल पैदा हो सकिी है। इससे बड़ी बुतनयादी भूल पैदा हो सकिी है। महापुरुष जो करिा है, महापुरुष तजस समय में जीिा है, तजस सामतयक प्रसंगों पर चुनौिी झेलिा है उसमें से बहुि सा उसी ददन व्यथ हो जािा है। उसमें से बहुि सा बाद में व्यथ हो जािा है। िाश्वि बहुि थोड़ा रह जािा है। अतधकिम िो कं टेम्प्रेरी प्रॉब्लम होिा है। इटरनल प्रॉब्लम िो बहुि कम होिा है। और गांधी के जीवन में बुद्ध या महावीर की बजाय कं टेम्प्रेरी प्रॉब्लम ज्यादा है। महावीर और बुद्ध की बाि में सनािन प्रश्न ज्यादा है, क्योंदक उन्होंने समाज और जीवन के रोजमरा के प्रश्नों को छु आ ही नहीं। गांधी ने जीवन और समाज के रोजमरा के प्रश्नों को छु आ है। गांधी के व्यतित्व और तवचार में, गांधी के कम में और जीवन में नब्बे प्रतििि सामतयक है, दस प्रतििि सनािन है। उस सामतयक से हमको छु टकारा करना होगा और सनािन की खोज करनी पड़ेगी, तलखा नहीं है दक क्या सनािन है और क्या सामतयक है, खोज करनी पड़ेगी। सोच करना पड़ेगा, तवचार करना पड़ेगा, काट-छांट करनी पड़ेगी। जो गांधी व्यिीि हो गए, अिीि हो गए, उन्हें हटा दे ना होगा। जो गांधी आगे भी साथक होंगे, कल भी साथ होंगे, उनको बचा लेना होगा। अंििाः तनखरिे-तनखरिे वही सूत्र िेष रह जाएंगे जो सनािन हैं, तजनका समय से कोई संबंध नहीं, तजनका मनुष्य के िाश्वि जीवन से संबंध है। िब हम गांधी को तनखार पाएंगे। लेदकन भि अंधा होिा है, वादी अंधा होिा है। वह कहिा है दक हम पूरा स्वीकार करें गे या पूरा अस्वीकार करें गे। वह दो बािें मानिा है। या िो पूरा स्वीकार करें गे या पूरा अस्वीकार करें गे। जीवन में इस िरह हां और न में उत्तर नहीं होिे। जीवन में कु छ स्वीकृ ति होिी है, कु छ अस्वीकृ ति होिी है। जीवन कोई इकट्ठा हां और न नहीं है दक हमने कह ददया हां और हमने कह ददया न। भि कहिा है दक या िो हम कहेंगे ना, कहेंगे दक नहीं मानिे गांधी को या कहेंगे दक मानिे हैं िो पूरा मानिे हैं। ये दोनों ही दृतियां गलि हैं। अंधी दृतियां हैं। सोचना होगा, अपने तववेक से खोजना होगा, दे खना होगा, परखना होगा, जांच करनी होगी, प्रयोग करने होंगे और िब जो तववेक के अनुकूल बचिा जाएगा वही िाश्वि होिा चला जाएगा। िेष समय की पटरतध में खोिा 26



चला जाएगा। खो ही जाना चातहए। समय के साथ ही वह खो जाना चातहए तजसे समय ने पैदा दकया था। लेदकन हम अपने पागलपन में उसको बचा कर रखना चाहिे हैं। उससे हमारे महापुरुष को िायदा नहीं होिा, नुकसान होिा है, क्योंदक महापुरुष रोज-रोज नया नहीं हो पािा, िाजा नहीं हो पािा, बासा पड़ जािा है, पुराना पड़ जािा है। वह जो-जो बासा पड़ जािा है उसे काट दे ने की जरूरि है िादक नया िाजा रोज तनखर कर बाहर आिा चला जाए और तजसे हमने प्रेम दकया हो, तजसे हमने श्रद्धा दी हो वह हमारे तलए सनािन साथी बन सके । लेदकन हम तजस िरह से व्यवहार करिे हैं, इस िरह से यह नहीं हो सकिा है। मैं नहीं कहिा हं दक गांधी का हमारे ऊपर कोई ऋण नहीं है, कोई पागल होगा जो ऐसा कहेगा। ऋण उनका महान है। लेदकन उस ऋण के कारण इिने मि दब जाना दक गांधी का जो सामतयक ित्व है वह हमें सत्य जैसा मालूम पड़ने लगे। वह उतचि नहीं है। दकसी तमत्र ने पूछा है दक आप िो गांधी तजिने बड़े नहीं हैं, िो आप उनकी आलोचना क्यों करिे हैं? अभी िक कोई िराजू कहीं दुतनया में नहीं है दक िौला जा सके दक कौन बड़ा है और कौन छोटा है। कोई िराजू दुतनया में आज िक तवकतसि नहीं हुआ दक हम िौल सकें कौन बड़ा है, कौन छोटा है। सच बाि िो यह है, एक-एक आदमी अपने-अपने जैसा है। कं पेटरजन की कोई संभावना नहीं है, कोई उपाय नहीं है, कोई िुलना नहीं है। गांधी की दकसी से िुलना नहीं हो सकिी। आपकी भी दकसी से िुलना नहीं हो सकिी। एक साधारण से साधारण आदमी भी अनूठा और अतद्विीय है। न दकसी से छोटा है, न दकसी से बड़ा, क्योंदक छोटे और बड़े हम िब हो सकिे हैं जब हम एक जैसे हों। एक जैसे अगर हम हों, िो पिा चल सकिा है कौन छोटा है, कौन बड़ा। लेदकन हममें से प्रत्येक अपने जैसा है, दूसरे जैसा है ही नहीं, इसतलए छोटे-बड़े को िौलने की, कं पेयर करने की, िुलना करने की कोई सुतवधा नहीं है। गांधी को जब आप बड़ा कहिे हैं िब भी आप भूल कर रहे हैं, क्योंदक जैसे ही आपने िौला, बड़ा आपने कहा, िो आपने िौल िुरू कर दी, आपने गांधी को िौल तलया, गांधी आपके हाथ से िुल गए। दिर कल कोई दूसरा तमल सकिा है, वह कहेगा, महावीर और बड़े हैं, बुद्ध और बड़े हैं। यही पागलपन िो हजारों साल से चल रहा है। जैन कहिे हैं दक महावीर से बड़ा कोई भी नहीं है। बौद्ध कहिे हैं, बुद्ध से बड़ा कोई भी नहीं है। मुसलमान कहिे हैं, मोहम्मद से बड़ा कोई भी नहीं है। ईसाई कहिे हैं, जीसस से बड़ा कोई भी नहीं है। इसी पागलपन से सारी मनुष्य-जाति कट गई और नि हो गई। दिर वही जारी रखोगे दक कौन बड़ा है, कौन छोटा? कै से िय करोगे? कौन िय करे गा? कौन है तनणायक? जजमेंट कौन दे गा? जजमेंट आप दोगे? अगर आप जजमेंट दे सकिे हो दक गांधी बड़े हैं िो आप गांधी से बड़े हो गए, क्योंदक जजमेंट दे ने वाला हमेिा बड़ा हो जािा है। आप हो तनणायक? िब िो स्वभाविाः गांधी तखलौना हो गए। िराजू पर आपने रख कर िौल तलया। कौन दकसको िौलेगा? ये हमारे सोचने के ढंग, व्यतियों को िौलने के ढंग तनहायि इम्मैच्योर, अपटरपक्व हैं। कोई मनुष्य िौला नहीं जा सकिा है। गांधी िो ठीक हैं, साधारण से साधारण मनुष्य नहीं िौला जा सकिा। कोई नहीं जानिा है दक छोटे से मनुष्य में क्या घटना घटे। एक गांव में बुद्ध का आगमन हुआ था। गांव में था एक गरीब चमार। गांव के सम्राट को िो पिा चल गया था दक बुद्ध आिे हैं, लेदकन गरीब चमार को कहां िु सि थी, कहां पिा चला, उसे पिा भी नहीं था दक बुद्ध आिे हैं। बुद्ध के आने का पिा चलने की भी सुतवधा िो चातहए। वह बेचारा ददन भर अपने काम में रहा, राि थका27



मांदा सो गया। सुबह अपने झोपड़े में उठा। उस चमार का नाम था सुदास। उठा, झोपड़े के पीछे छोटी सी एक गंदी िलैया थी। उठा सुबह िो दे खा दक उसमें एक कमल का िू ल तखला है। बे-मौसम का िू ल था, अभी मौसम नहीं था कमल का। वह सुदास बहुि हैरान हुआ। दिर बहुि खुि हुआ। िू ल िोड़ कर भागा बाजार की िरि दक कोई न कोई जरूर रुपया दो रुपया इस िू ल का दे दे गा। िू ल बड़ा था, सुंदर था, बे-मौसम का था। जरूर इसके पैसे तमल जाएंगे। वह बाजार की िरि भागा चला जा रहा है दक नगर का जो धनपति था, सेठ था, नगर सेठ था, वह रथ पर बैठा हुआ आ रहा है। वह उसके पास जाकर खड़ा हो गया। उस धनपति ने कहा दक दकिना लोगे इस िू ल का? सुदास ने कहााः जो भी आप दे दें गे, आपकी कृ पा। उसने अपने सारथी को कहा दक पांच रुपये इसे दे दो। सुदास िो हैरान हुआ, क्योंदक पांच बहुि ज्यादा थे--वह सोचिा था एक भी तमल जाए िो बहुि। वह एकदम हैरान हुआ। उसने कहााः पांच रुपये! यह बाि ही चलिी थी दक पीछे से उस दे ि का वजीर, मंत्री घोड़े पर सवार आ गया। उसने कहा दक बेचना मि िू ल। िू ल मैंने खरीद तलया। धनपति तजिना दे िे होंगे उससे पांच गुना मैं दूंगा। सुदास िो हक्का-बक्का हो गया! उसने कहााः पच्चीस रुपये! आप कहिे क्या हैं, इस साधारण से िू ल के ! क्या बाि है? आप पांच दे िे थे, धनपति ने कहा दक िू ल मैं खरीदूंगा दकसी भी कीमि पर, वजीर तजिना बोलिा जाए, मैं पांच गुना ज्यादा दूंगा। वह िो मांग बढ़िी चली गई। और सुदास भौचक्का! वह ठहराव मुतश्कल हो गया। िभी राजा का रथ भी आ गया और उस राजा ने कहा, िू ल खरीद तलया गया। जो भी दाम िू मांगेगा, मुंहमांगा दाम दे दूंगा, जो िू मांगेगा। सुदास कहने लगा दक आप सब पागल हो गए हैं! इस िू ल की कोई कीमि नहीं है। हजारों कीमि िो बढ़ चुकी हैं और आप कहिे हैं मुंहमांगा, जो मैं मांगूंगा। बाि क्या है सम्राट? सम्राट ने कहााः िायद िुझे पिा नहीं, बुद्ध का आगमन हो रहा है गांव में। हम उनके स्वागि को जािे हैं। बे-मौसम का िू ल उनके चरणों में चढ़ाएंगे, वे भी हैरान हो जाएंगे दक कमल, बे-मौसम का िू ल! बुद्ध के चरणों में यह िू ल मैं ही चढ़ाऊंगा। नगर सेठ ने कहा दक नहीं, यह नहीं हो सके गा, सम्राट! िू ल को मैंने पहले दे खा है। पहले मैंने खरीद-िरोख्ि िुरू की है। मैं पहला ग्राहक हं। इनका तववाद चलिा था। सुदास ने कहााः क्षमा कटरए, िू ल मुझे बेचना नहीं। जब बुद्ध आिे हैं गांव में िो िू ल मैं ही चढ़ा दूंगा। पर वे कहने लगे, सुदास िू पागल है क्या? तजिना पैसा चाहे ले ले, िेरी चमारी तमट जाए सदा को, गरीबी तमट जाए सदा को। िेरे जन्म-जन्म आगे के बच्चे को भी सुख हो जाएगा। तजिना मांगे ले ले। सुदास ने कहा दक नहीं, अब पैसे का क्या करें गे, मैं ही चढ़ा दूंगा बुद्ध को। नहीं बेचा िू ल। सम्राट नहीं खरीद सके एक गरीब का िू ल, एक चमार का। सम्राट िो रथ पर पहुंच गए पहले, नगर सेठ पहुंच गया, वजीर पहुंच गया। उन्होंने बुद्ध से जाकर यह कहा दक आज एक अदभुि घटना घट गई। एक गरीब आदमी, तजसकी कोई हैतसयि नहीं, तजसके पास कल का खाना नहीं होिा, उसने लाखों रुपये पर लाि मार दी और कहिा है, िू ल मैं ही चढ़ाऊंगा। सुदास आया पीछे पैदल चलिा हुआ। बुद्ध के चरणों में िू ल रख कर हाथ जोड़ कर तसर पैर पर रख कर रोने लगा। बुद्ध ने कहााः पागल है सुदास िू, िू ल बेच दे ना था। सुदास ने कहा दक भगवन, संपतत्त ही सब कु छ नहीं है। संपतत्त से भी बड़ा कु छ है और आपके पैरों में िू ल रख कर मुझे जो तमल गया वह मुझे दकिनी भी संपतत्त से कभी नहीं तमल सकिा था। बुद्ध ने अपने तभक्षुओं से कहा दक तभक्षुओ , दे खो इस सुदास को। एक साधारण से जन में भी, एक साधारण से मनुष्य में भी परमात्मा का इिना प्रकाि पैदा हो सकिा है। सुदास है गांव का एक चमार, एक 28



दीन-हीन, लेदकन इिने प्रेम की संभावना, इस सुदास में; इिने प्रेम की संभावना, इिनी श्रद्धा की संभावना, इस सुदास में। बुद्ध कहने लगे दक मैं घूमिा हं वषों से गांव-गांव, दकिने-दकिने लोग तमले। नहीं सुदास, िू अतद्विीय है। िेरा जैसा बस िू ही है। कौन कहेगा, कौन है बड़ा, कौन है छोटा? कौन कहेगा, दकसके भीिर से क्या प्रकट हो सकिा है? कौन जानिा है कौन सा बीज दकिना बड़ा िू ल बनेगा? लेदकन जल्दी से िौलने की हमारी इच्छा बड़ी िीव्र होिी है। नहीं कोई जरूरि है िौलने की। गांधी गांधी हैं, मैं मैं हं, आप आप हैं। िौलने का कोई उपाय भी नहीं है। लेदकन यह गांधी को बड़ा कहने का कारण क्या हो सकिा है दिर? अगर हम िौल नहीं सकिे, समथ नहीं िौलने में, िो यह कहने का कारण क्या हो सकिा है दक गांधी महान हैं? िायद आपको इस सीक्रेट का कोई पिा न हो, यह एक बड़ा राज है। जब जहंदू यह कहिा है दक जहंदू धम महान है िो आप समझिे हैं उसका मिलब क्या है? वह यह कहिा है दक जहंदू धम महान है और मैं जहंदू हं, मैं महान हं। यह िक है, यह िकसरणी है। जब एक आदमी कहिा है भारि, भारि पृथ्वी पर सबसे महान दे ि है, िो मिलब आप जानिे हैं क्या है? वह यह कह रहा है दक भारि सबसे बड़ा दे ि है, मैं भारि का तनवासी हं, मैं बड़ा आदमी हं। पीछे अहंकार है इस िुलना के पीछे, पीछे ईगो है, आदमी बहुि होतियार है। सीधे वह कहेगा दक मैं बड़ा हं, िो बड़ी मुतश्कल बाि है। वह कहिा है, मेरा गुरु बड़ा है और बड़े गुरु का मैं बड़ा चेला हं। मैंने सुना है, फ्ांस में दिलॉसिी का एक प्रोिे सर था, एक दिनिाि का प्रोिे सर था। पेटरस के तवश्वतवद्यालय में वह दिनिाि का अध्यक्ष था। एक ददन वह सुबह-सुबह आया और उसने क्लास के तवद्यार्थयों को कहने लगा दक िुम्हें पिा है, मैं दुतनया का सबसे बड़ा आदमी हं। उसके तवद्यार्थयों ने कहााः आप? बेचारा गरीब तिक्षक था, िटे कपड़े पहने हुए था। समझ गए उसके तवद्याथी दक हो गए सज्जन पागल। दाितनकों के पागल हो जाने की संभावना रहिी ही है, ददमाग इनका खराब हो गया मालूम होिा है। एक तवद्याथी ने पूछााः महािय आप अपने बाबि कह रहे हैं दक आप दुतनया के सबसे बड़े आदमी हैं? आप? उसने कहााः हां, मैं कह रहा हं दक मैं दुतनया का सबसे बड़ा आदमी हं। न के वल मैं कह रहा हं, मैं िकिाि का अध्यापक हं, मैं तसद्ध भी कर सकिा हं। उसके तवद्यार्थयों ने कहााः बड़ी कृ पा होगी, अगर आप तसद्ध कर सकें गे। उसने छड़ी उठाई और नक्िे के पास गया जहां दुतनया का नक्िा टंगा था क्लास में। उसने कहा दक मेरे बच्चो, मैं िुमसे पूछिा हं दक इस सारी बड़ी पृथ्वी पर सबसे महान और सबसे श्रेष्ठ दे ि कौन सा है? वे सभी फ्ांस के रहने वाले थे। उन सबने कहा दक तनतश्चि ही फ्ांस, इसमें कोई संदेह है? यह िो सुतनतश्चि है दक फ्ांस से महान कोई भी दे ि नहीं है। उसने कहााः िब एक बाि िय हो गई दक फ्ांस सबसे महान है इसतलए बाकी दुतनया की दिकर छोड़ो। अब अगर मैं तसद्ध कर सकूं दक फ्ांस में मैं सबसे महान हं िो मामला हल हो जाएगा। तवद्याथी िब भी नहीं समझे दक िक कहां जाएगा। दिर उसने कहा दक फ्ांस में सबसे महान और श्रेष्ठ नगर कौन सा है? िो तवद्यार्थयों ने कहा दक पेटरस। वे सभी पेटरस के रहने वाले थे



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उसने कहााः िब फ्ांस की भी दिकर छोड़ दो। अब सवाल तसि पेटरस का रह गया। अगर मैं तसद्ध कर दूं दक पेटरस में मैं सबसे महान हं िो बाि खत्म हो जाएगी। िब तवद्यार्थयों को िक पैदा हुआ दक यह िो मामला बहुि अजीब है, यह कहां ले जा रहा है आदमी। और िब उस प्रोिे सर ने पूछा दक अब पेटरस में सबसे श्रेष्ठ स्थान कौन सा है? युतनवर्सटी, तवश्वतवद्यालय, तवद्या का कें द्र, मंददर। तवद्यार्थयों ने कहा दक यह िो ठीक है, तवश्वतवद्यालय ही सबसे पतवत्रिम और श्रेष्ठिम स्थान है। िब उनको िक साि हो चुका था। उस प्रोिे सर ने कहााः अब मैं िुमसे पूछिा हं, पेटरस को जाने दो, रह गई युतनवर्सटी का कैं पस। युतनवर्सटी के इस कैं पस में सबसे श्रेष्ठिम तवषय और तडपाटमेंट कौन सा है? वे सभी तवद्याथी दिलासिी के तवद्याथी थे। उन्होंने कहााः दिलासिी। और उसने कहा दक अब िुम समझे दक मैं दिलासिी का हेड ऑि दद तडपाटमेंट हं। इिना लंबा िक इस छोटे से "मैं" को तसद्ध करने के तलए! लेदकन आदमी की चालादकयां, कजनंगनेस पहचानना बहुि मुतश्कल है। वह कहिा है, भारि महान दे ि है, और उसके भीिर जाकर पूछो उसके प्राणों के प्राण में, िो वह यह कह रहा है दक मैं महान हं। बनाड िॉ ने एक बार अमरीका के दौरे में यह कहा दक यह गैलीतलयो, यह कोपेरतनकर, ये वैज्ञातनक सब गलि कहिे हैं। सूरज ही पृथ्वी का चक्कर लगािा है। पृथ्वी सूरज का चक्कर नहीं लगािी। अब इस बीसवीं सदी में कोई ये बािें करे गा िो पागल समझा जाएगा। बनाड िॉ को लोगों ने पूछााः आप क्या कह रहे हैं? िीन सौ साल पहले लोग ऐसा जरूर मानिे थे दक सूरज पृथ्वी का चक्कर लगािा है। लेदकन अब िो यह तसद्ध हो चुका है दक पृथ्वी सूरज का चक्कर लगािी है। आपके पास दलील क्या है जो आप कहिे हैं कोपेरतनकर, गैलीतलयो, सब गलि। बनाड िॉ ने कहााः दलील साि है--तजस पृथ्वी पर बनाड िॉ रहिा है वह पृथ्वी दकसी का चक्कर कभी नहीं लगािी। उसने हमारे अहंकार पर बड़ा गहरा मजाक कर ददया। उसने कह ददया दक सूरज ही लगािा होगा चक्कर, क्योंदक मैं बनाड िॉ इस पृथ्वी पर रहिा हं। मेरे रहने की वजह से यह पृथ्वी दकसी का चक्कर लगा सकिी? असंभव। यही है सेंटर वल्ड का। यही पृथ्वी सारे जगि का कें द्र है। सारा जगि इसका चक्कर लगािा है। पृथ्वी का कें द्र मैं हं जॉज बनाड िॉ। हर आदमी का िक यही है। भारिीय कहिा है, भारि महान है। चीनी कहिा है, चीन महान है। िुकी कहिा है, िुक महान है। मामला क्या है? जहंदू कहिा है, जहंदू महान है। मुसलमान कहिा है, मुसलमान महान है। जैन कहिा है, महावीर महान हैं। ईसाई कहिा है, जीसस महान हैं। मामला क्या है? मार्क्सस्ट कहिा है, माक्स महान है। गांधीवादी कहिा है, गांधी महान हैं। मामला क्या है? न गांधी से दकसी को मिलब, न माक्स से दकसी को मिलब, न महावीर से दकसी को मिलब, न भारि से दकसी को मिलब, न चीन से दकसी को मिलब। मिलब उस "मैं" से है दक मैं जहां हं तजस कें द्र पर, उस कें द्र से संबंतधि सब महान हैं, क्योंदक मैं महान हं। नहीं, गांधी को नहीं िौलिे हैं आप, न महावीर को, न बुद्ध को। िरकीब से अपने को िौल रहे हैं और अपने को कें द्र पर खड़ा कर रहे हैं। ये िरकीबें बड़ी अधार्मक हैं। ये िरकीबें बड़ी अपतवत्र हैं। लेदकन इनका हमें होि भी नहीं आिा। बट्रेंड रसल ने एक दकिाब तलखी और दकिाब में उसने यह बाि तलखी भूतमका में दक मेरी दकिाब को पढ़ने वाले आप जो सज्जन हैं, अपने रीडर को, अपने पाठक को उदबोधन दकया दक मेरे तप्रय पाठक, 30



आप तजस दे ि में पैदा हुए हैं उस दे ि से महान कोई भी दे ि नहीं। उसको कई मुल्कों से पत्र पहुंचे, क्योंदक बट्रेंड रसल की दकिाबें सारी दुतनया में पढ़ी जािी हैं। उसने भूतमका में तलखा दक मेरे तप्रय पाठक आप तजस दे ि में पैदा हुए हैं उस दे ि से महान कोई भी दे ि नहीं है। कई मुल्कों से पत्र पहुंचे उसके पास। पोलैंड से एक िी ने तलखा दक िुम पहले आदमी हो तजसने पोलैंड की महानिा को स्वीकार दकया है। जमनी से दकसी ने तलखा दक िाबाि, िुमने स्वीकार कर तलया दक जमनी महान है। क्योंदक उसने िो मजाक दकया था। वह मजाक कोई भी नहीं समझे। वे समझे दक हमारे मुल्क की प्रिंसा की जा रही है। हमारे मुल्क की प्रिंसा नहीं; हमारी प्रिंसा, मेरी प्रिंसा। और जो आपको भय मालूम पड़िा है दक गांधी की आलोचना मि करो, बुद्ध की आलोचना मि करो, मोहम्मद की आलोचना मि करो--नहीं िो दं गा हो जाएगा। वह आपका मोहम्मद, बुद्ध और गांधी के प्रति प्रेम नहीं है। उनकी आलोचना से आपके अहंकार को ठे स पहुंचिी है। उसकी वजह से आप पीतड़ि और परे िान हो उठिे हैं। यह योग्य नहीं है, यह तहिकर नहीं है, यह कल्याणदायी नहीं है। इससे मंगल तसद्ध नहीं होिा। मैंने यह जो कु छ बािें कहीं, एक तमत्र मेरे पास आए, उन्होंने कहा दक मैं काका कालेलकर के पास गया था, िो काका कालेलकर ने कहा, मेरे बाबि कहा दक अभी उनकी उम्र कम है इसतलए गड़बड़ बािें कह दे िे हैं। जब उम्र बढ़ जाएगी िो तबल्कु ल ठीक बािें कहने लगेंगे। वे तमत्र मेरे पास खबर लेकर आए दक काका कालेलकर ने ऐसा कहा है। मैंने उनसे कहााः काका कालेलकर से कहना दक जब िंकराचाय ने िैंिीस वष की उम्र में बुद्ध का खंडन और आलोचना की, िो लोगों ने कहा इसकी उम्र कम है, उम्र बड़ी हो जाएगी िो सब ठीक हो जाएगा। जब जीसस ने िीस वष की उम्र में यहददयों की आलोचना की, िो यहददयों ने कहा, यह पागल छोकरा है, आवारा है, इसकी उम्र अभी कम है, उम्र बढ़ जाएगी िो सब ठीक हो जाएगा। जब तववेकानंद ने िैंिीस-चौंिीस वष की उम्र में वेदांि की व्याख्या की, िो वेदांि के बूढ़े गुरु ने कहा, अभी नासमझ है, अभी कु छ समझिा नहीं, उम्र कम है। यह उम्र की दलील बड़ी पुरानी है। लेदकन उम्र कम होने से न कोई गलि होिा और न उम्र ज्यादा होने से कोई सही होिा है। उम्र से बुतद्धमत्ता का कोई भी संबंध नहीं है। काका कालेलकर यह कह रहे हैं दक अगर जीसस क्राइस्ट अस्सी साल िक जीिे िो ज्यादा बुतद्धमान हो जािे। वे यह कह रहे हैं दक जीसस क्राइस्ट िैंिीस साल की उम्र के थे इसतलए मंददर में घुस गए और मंददर में ब्याज खाने वाली दुकानों के िख्िे उलट ददए और कोड़ा उठा कर उन्होंने पुरोतहिों को मार कर मंददर के बाहर तनकाल ददया। अगर जीसस ज्यादा उम्र के होिे िो इस िरह की नासमझी कभी नहीं कर सकिे थे। काका कालेलकर उनकी जगह होिे िो इस िरह की नासमझी वे कभी भी नहीं करिे। उनकी उम्र ज्यादा है, लेदकन उम्र ज्यादा होने से बुतद्धमत्ता नहीं बढ़ जािी है। उम्र ज्यादा होने से तसि चालाकी और कजनंगनेस बढ़ जािी है। मैं भी जानिा हं, मैंने गांधी की आलोचना की, उसी ददन सुबह दो तमत्रों ने मुझे आकर कहा दक आप यह बाि ही मि कटरए, अन्यथा गुजराि की सरकार नारगोल में छह सौ एकड़ जमीन दे िी है, वह तबल्कु ल बंद कर दे गी, तबल्कु ल नहीं दे गी। अभी बाि मि कटरए, पहले जमीन तमल जाने दीतजए, दिर जो आपको कहना हो कहना। वे कहने लगे, आपकी उम्र अभी कम है। आपको पिा नहीं जमीन खो जाएगी। मैंने उनसे कहा, भगवान करे मेरी उम्र इिनी ही नासमझी की बनी रहे िादक सत्य मुझे संपतत्त से हमेिा मूल्यवान मालूम पड़े। वह जमीन जाए, जाने दें । मुझे जो ठीक लगिा है, मुझे कहने दें ।



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भगवान न करे , इिना चालाक मैं हो जाऊं दक संपतत्त सत्य से ज्यादा मूल्यवान मालूम पड़ने लगे। मुझे भी ददखाई पड़िा है, काका कालेलकर को ही ददखाई पड़िा है ऐसा नहीं। मुझे भी ददखाई पड़िा है दक गांधी की आलोचना करके गाली खाने के तसवाय और क्या तमलेगा। अंधा नहीं हं, इिनी उम्र िो कम से कम है दक इिना ददखाई पड़ सकिा है दक गाली तमलेगी। लेदकन कु छ लोग अगर समाज में गाली खाने की तहम्मि न जुटा पाएं, िो समाज का तवचार कभी भी तवकतसि नहीं होिा है। कु छ लोगों को यह तहम्मि जुटानी ही चातहए दक वे गाली खाएं। प्रिंसा प्राप्त करना बहुि आसान है, गाली खाने की तहम्मि जुटानी बहुि कटठन है। श्री दे बर भाई ने मुझे उत्तर दे िे हुए दकसी मीटटंग में अभी कहा है दक मैं गांधी जी को समझ नहीं सका हं, इसतलए ऐसी बािें कर रहा हं। मेरा उनसे तनवेदन है दक प्रिंसा िो तबना समझे भी की जा सकिी है, आलोचना करने के तलए बहुि समझना जरूरी होिा है। प्रिंसा िो कु त्ते भी पूंछ तहला कर जातहर कर दे िे हैं, उसके तलए कोई बहुि बुतद्धमत्ता की आवश्यकिा नहीं है। लेदकन आलोचना के तलए सोचना जरूरी है, तवचार करना जरूरी है, तहम्मि जुटानी जरूरी है और अपने को दांव पर लगाना भी जरूरी है। अब गांधी से मेरा झगड़ा क्या हो सकिा है, गांधी से झगड़ कर मुझे िायदा क्या हो सकिा है? कोई भी िो िायदा नहीं हो सकिा। नुकसान हो सकिा है। अखबार मेरी खबर नहीं छापेंगे। गांवों में मेरी सभा होनी मुतश्कल हो जाएगी। अजहंसक लोग पत्थर िें क सकिे हैं, यह सब हो सकिा है। इससे मुझे क्या िायदा हो जाएगा? लेदकन मुझे लगिा है दक चाहे दकिना ही नुकसान हो, जो हमें सत्य ददखाई पड़िा हो उसे हमें कहना ही चातहए, जो हमें ठीक मालूम पड़िा हो, चाहे उसके तलए दकिना ही हातन उठानी पड़े, वह हमें कहना ही चातहए। इस दुतनया को वे ही थोड़े से लोग आगे तवकतसि दकए हैं, तजन्होंने समाज की मान्य परं पराओं की आलोचना की है, तजन्होंने समाज के बंधे हुए पक्षपािों को िोड़ने की तहम्मि की है। तजन्होंने समाज से तवद्रोह दकया है वे ही थोड़े से लोग इस जीवन और जगि को तवकतसि कर पाए हैं। जगि को उन्होंने तवकतसि नहीं दकया है तजन्होंने अंधश्रद्धा में अंधी हां भर दी है, जगि को तवकास उन्होंने दकया है तजन्होंने दकसी िरह का तवद्रोह दकया है। मेरा आपसे तनवेदन है अगर इस दे ि के तहि में आप हैं, अगर इस दे ि को तवकतसि होना दे खना चाहिे हैं िो आपको तवद्रोह की, तवचार की आलोचना की तहम्मि जुटानी ही चातहए, उसके तबना हम अपने दे ि के भतवष्य को स्वर्णम नहीं बना सकिे हैं। इसका यह मिलब नहीं है दक जो मैं कहिा हं वह सही है, इसका यह भी मिलब नहीं दक जो मैं कहिा हं वही सत्य है, यह िो दिर वही पागलपन हुआ, मेरे अनुयायी आपसे कहने लगेंगे दक जो मैंने कहा वह सत्य है। पहली िो बाि मेरा कोई अनुयायी नहीं है, क्योंदक अनुयायी जुटाने का सकस करने का मुझे कोई भी रस और कोई भी सुख नहीं। वह सकस मुझे पसंद ही नहीं है। मेरा कोई अनुयायी नहीं, मेरे तमत्र हैं। लेदकन दिर मुझे पत्र पहुंचे कई तमत्रों के दक हम िो आपके अनुयायी हैं और आपने हमको बड़ा धक्का पहुंचा ददया। मैंने कहााः िुम अनुयायी बने इससे धक्का पहुंचा। अनुयायी नहीं बनिे िो धक्का नहीं पहुंचिा। अनुयायी बने क्यों? िुमसे कहा दकसने दक िुम मेरे अनुयायी बन जाओ? मैं अके ला कािी हं। मेरी बाि तवचार करने के तलए, मेरी बाि आलोचना करने के तलए, आप खूब आलोचना करें मेरी बाि का, उसका खंडन करना, उसका तवरोध करना, उस पर तवचार करना, सारी िोड़िोड़ के बाद अगर कोई बाि मजबूरी में आपको ठीक ददखाई पड़े िो मानना। ऐसे मि मान लेना, जल्दी मि मान लेना। जल्दी मानने की कोई जरूरि नहीं है। मैं दे ि के तवचार को गति दे ना चाहिा हं दे ि के तवश्वास को नहीं। और दे ि का तवचार गतिमान हो जाए, िो वह गांधी की भी आलोचना करे गा, वह मेरी भी आलोचना 32



करे गा, वह दकसी की भी आलोचना करे गा। लेदकन ये जो लोग दे ि के तवश्वास को गतिमान करना चाहिे हैं, वे कहिे हैं, गांधी की भी आलोचना मि करो। मेरे भी तहि में यही है दक मैं गांधी की आलोचना न करूं, िो मैं भी आलोचना दकए जाने से बच सकिा हं। लेदकन आलोचना से बचने की इच्छा ही कमजोरी और कायरिा का लक्षण है। मेरी बािों को इिने प्रेम से सुना, उसके तलए बहुि-बहुि धन्यवाद। अंि में सबके भीिर बैठे परमात्मा को प्रणाम करिा हं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ िीसरा प्रवचन



एक और असहमति मेरे तप्रय आत्मन्! मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हं और न ही मैंने अपने दकसी तपछले जन्म में ऐसे कोई पाप दकए हैं दक मुझे राजनीतिज्ञ होना पड़े। इसतलए राजनीतिज्ञ मुझसे परे िान न हों और जचंतिि न हों। उन्हें घबड़ाने की और भयभीि होने की कोई भी जरूरि नहीं है। मैं उनका प्रतियोगी नहीं हं, इसतलए अकारण मुझ पर रोष भी प्रकट करने में िति जाया न करें । लेदकन एक बाि जरूर कह दे ना चाहिा हं, हजारों वष िक भारि के धार्मक व्यति ने जीवन के प्रति एक उपेक्षा का भाव ग्रहण दकया था। गांधी ने भारि की धार्मक परं परा में उस उपेक्षा के भाव को आमूल िोड़ ददया है। गांधी के बाद भारि का धार्मक व्यति जीवन के और पहलुओं के प्रति उपेक्षा नहीं कर सकिा है। गांधी के पहले िो यह कल्पनािीि था दक कोई धार्मक व्यति जीवन के मसलों पर चाहे वह राजनीति हो, चाहे अथ हो, चाहे पटरवार हो, चाहे सेक्स हो--इन सारी चीजों पर कोई स्पि दृतिकोण दे । धार्मक आदमी का काम था सदा से जीवन जीना तसखाना नहीं, जीवन से मुि होने का रास्िा बिाना। धार्मक आदमी का स्पि काय था लोगों को मोक्ष की ददिा में गतिमान करना। लोग दकस भांति आवागमन से मुि हो सकें , यही धार्मक दृति की उपदे िना थी। इस उपदे ि का घािक पटरणाम भारि को झेलना पड़ा। मोक्ष है, इस जीवन के बाद और जीवन भी हैं, लेदकन यह जीवन भी है और यह जीवन आने वाले जीवनों से जुड़ी हुई अतनवाय कड़ी है। जो इस जीवन की उपेक्षा करिा है, वह आने वाले जीवन के तलए नींव नहीं रखिा। वह आने वाले जीवन को भी नि करने का प्रारं भ करिा है। इस जीवन के प्रति उपेक्षा नहीं चातहए। धम अब िक उपेक्षा दकया था। अब धम उपेक्षा नहीं कर सकिा है, क्योंदक धम की उपेक्षा, इनतडिरें स का यह पटरणाम हुआ दक सारी पृथ्वी अधार्मक हो गई। यह सारी पृथ्वी के अधार्मक हो जाने में अधार्मक लोगों का हाथ नहीं है, इसमें उन धार्मक लोगों की उपेक्षा है जो जीवन के प्रति पीठ करके खड़े हो गए। अब आने वाले भतवष्य में धार्मक व्यति अगर जीवन के प्रति पीठ करिा है, िो उस व्यति को हम पूरे अथों में धार्मक नहीं कह पाएंगे। गांधी के बाद भारि में एक नया युग प्रारं भ होिा है और वह नया युग यह है दक धम जीवन के प्रति भी रस लेगा, जीवन के समस्ि पहलुओं पर धम भी अपना तनणय दे गा। इसका यह अथ नहीं है दक धार्मक व्यति ददल्ली की यात्रा करे , इसका यह अथ भी नहीं है दक धार्मक व्यति सदक्रय राजनीति में खड़े हो जाएं। लेदकन इसका मिलब यह जरूर है दक धार्मक व्यति राजनीति के प्रति उपेक्षा ग्रहण नहीं कर सकिे, क्योंदक राजनीति पूरे जीवन को प्रभातवि करिी है। मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हं लेदकन आंखें रहिे दे ि को रोज अंधकार में जािे हुए दे खना भी असंभव है। उिनी कठोरिा, उिनी धार्मक आदमी की कठोरिा और पथरीलापन मैं नहीं जुटा पािा हं। दे ि रोज-रोज प्रतिददन नीचे उिर रहा है। उसकी सारी नैतिकिा खो रही है, उसके जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, जो भी सुंदर है, जो भी सत्य है, वह सभी कलुतषि हुआ जा रहा है। इसके पीछे जानना और समझना जरूरी है दक कौन सी



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घटना काम कर रही है। और चूंदक मैंने कहा दक गांधी के बाद एक नया युग प्रारं भ होिा है, इसतलए गांधी से ही तवचार करना जरूरी है। गांधी एक धार्मक व्यति थे, लेदकन गांधी के आस-पास जो लोग इकट्ठे हुए, वे धार्मक नहीं थे। और इससे जहंदुस्िान के भाग्य के तलए एक खिरा पैदा हो गया। गांधी राजनीतिज्ञ नहीं थे। गांधी के तलए राजनीति आपदधम थी, इमरजेंसी थी। गांधी का मूल व्यतित्व धार्मक था। मजबूरी थी दक वे राजनीति में खड़े थे, लेदकन उस राजनीति में भी उनके प्राणों को वह राजनीति कहीं भी छू नहीं सकी थी। उससे वैसे ही दूर थे जैसा कमल पानी में दूर होिा होगा। लेदकन उनके आस-पास जो लोग इकट्ठे थे, वे राजनीतिज्ञ थे, वे धार्मक लोग नहीं थे। राजनीति उनका प्राण थी। गांधी के साथ रहने की वजह से धम और नीति उनका आपद-धम बन गई थी। उनके तलए नैतिकिा मजबूरी थी। गांधी के साथ चलना हो िो नैतिकिा की मजबूरी उन्हें ढोनी पड़ी। गांधी के तलए राजनीति मजबूरी थी, उनके आस-पास अनुयातययों के तलए, गांधीवाददयों के तलए नैतिकिा मजबूरी थी। गांधी के तलए राजनीति बाहर-बाहर थी, भीिर नीति थी। उनके अनुयातययों के तलए राजनीति भीिर थी, नीति बाहर-बाहर थी। दिर जैसे ही सत्ता आई, एक क्रांतिकारी उलट-िे र हो गया। सत्ता आिे ही गांधी का जो आपद-धम था-राजनीति--वह तवलीन हो गया, गांधी िुद्ध नैतिक व्यति रह गए और उनके अनुयातययों का जो आपद-धम था-नीति--वह तवलीन हो गई, वे िुद्ध राजनीतिज्ञ रह गए। सत्ता के आिे ही गांधी िुद्ध नैतिक व्यति रह गए और उनके अनुयायी िुद्ध राजनीतिक व्यति हो गए और उन दोनों के बीच जमीन-आसमान का िासला हो गया। एक इिनी बड़ी खाई हो गई जो आजादी के पहले कभी भी नहीं थी। आजादी के पहले गांधी और गांधी के अनुयायी के बीच खाई बहुि कम थी। झूठी ही सही, लेदकन नैतिकिा की एक पि थी। और झूठी ही सही, गांधी के आस-पास राजनीति का एक आवरण था। इन दोनों के कारण बीच में एक सेिु था, एक संबंध था। सत्ता आने पर यह सेिु टू ट गया और यह सेिु का टू ट जाना गांधी को भी ददखाई पड़ गया। और गांधी ने कहााः अब कांग्रेस की कोई भी जरूरि नहीं, उसे लोक-सेवक दल में पटरवर्िि हो जाना चातहए। क्योंदक गांधी की पैनी आंखों को यह ददखाई पड़ना कटठन नहीं हुआ दक अब यह जो राजनीतिक संस्थान खड़ा रह जाएगा, यह मुल्क को नरक की यात्रा करा दे गा। बीस साल में उसने नरक की यात्रा करा दी है। और गांधी को यह भी ददखाई पड़ गया दक मैं एक खोटा तसक्का हो गया हं, मेरी कोई बाि अब सुनिा नहीं है। गांधी, तजसकी आवाज हम चालीस वषों से सुनिे थे, अचानक सत्ता रूपांिटरि हो जाने पर, सत्ता हस्िांिटरि हो जाने पर अनुभव करने लगा, मेरी कोई आवाज नहीं सुनिा है। मैं एक खोटा तसक्का हो गया हं, मेरा अब चलन नहीं रहा। गांधी ने यह कहा दक पहले मैं एक सौ पच्चीस वष जीना चाहिा था, लेदकन अब मेरी जीने की इच्छा भी नहीं रह गई। यह थोड़ा तवचारणीय है। यह गांधीवादी के ऊपर इससे बड़ा और कोई इल्जाम नहीं हो सकिा, और कोई बड़ा अपराध नहीं हो सकिा है। गोडसे के ऊपर गांधी को मारने का अपराध छोटा है, इस अपराध के मुकाबले। दक गांधी तजनके साथ लड़े और तजनके तलए लड़े, जीि हो जाने पर गांधी को यह कहना पड़े दक मैं खोटा तसक्का हो गया हं, मेरी अब कोई सुनिा नहीं, अब मुझे ज्यादा जीने की इच्छा नहीं होिी। गोडसे ने जो गोली मारी वह िो परमात्मा की इच्छा के तबना गोडसे नहीं मार सकिा था। िायद और गांधी को इससे सुंदर मृत्यु तमल भी नहीं सकिी थी। 35



लेदकन गांधी के पीछे चलने वाले लोगों ने गांधी को तजस बुरी िरह से तनराि और हिाि दकया, वह आश्चयजनक है। और वे ही सारे लोग गांधी के मर जाने के बाद बीस वषों से गांधी का जय-जय गान और गांधी का गुणगान कर रहे हैं। वे कहिे हैं, गांधी पर तवचार नहीं करना, तसि प्रिंसा करनी है। वे ऐसा क्यों कहिे हैं? वे भलीभांति जानिे हैं दक गांधी की आलोचना िीघ्र ही गांधीवाददयों की आलोचना बन जाएगी। इसतलए गांधी की आलोचना मि करो, िादक पीछे तछपे हुए गांधीवादी की आलोचना संभव न हो सके । गांधी की आड़ में एक खेल चल रहा है। इस खेल को गांधी पर आलोचना और तवचार दकए तबना नहीं िोड़ा जा सकिा। और इसतलए गांधीवादी एकदम भयभीि हो उठा। मैंने थोड़ी सी बािें कहीं और महीने भर से मैं इधर लौटा हं, िो मुझे पिा चला दक महीने भर से तसवाय इसके कोई और बाि नहीं है--पत्रों में, चचाओं में, घर में, गांवों में, एक ही बाि है। इिनी आिुरिा से उसने उत्सुकिा क्यों ली है? वह इिनी िीव्रिा से मेरे ऊपर क्यों टू ट पड़ा? उसका कारण है। स्पि कारण है। गांधी पर आलोचना अंििाः गांधीवादी की आलोचना बन जाएगी। और गांधी िो आलोचना के बाद और तनखर कर तनकल आएंगे, जैसे सोना आग से तनकल आिा है। लेदकन गांधीवादी के प्राण तनकल जाने वाले हैं। वह नहीं बच सकिा है। उसके प्राण को खिरा है, गांधी को कोई खिरा नहीं है। गांधी को क्या खिरा हो सकिा है? गांधी जैसे सच्चे आदमी को खिरे का कोई सवाल नहीं। खिरा आलोचना से सदा झूठे आदतमयों को होिा है और उन झूठे आदतमयों की किार गांधी के नाम पर खड़ी हो गई है। हमेिा जहां सत्ता होिी है, जहां सत्ता होिी है, जहां पद होिा है वहां बेईमान और चोरों की किार इकट्ठी हो जािी है। यह हो ही जाएगी। गांधी के साथ जो लोग थे आजादी की लड़ाई में, वे धीरे -धीरे तबखर कर अलग होिे चले गए। नई िकलें पीछे से आनी िुरू हो गईं। ये जो नये लोग आए थे इन नये लोगों को सत्ता से प्रेम था। वे सत्ता के तलए आए थे। और आज दे ि में राजनीति के नाम पर तसवाय सत्ता की होड़ के और कु छ भी नहीं हो रहा है। उनमें से दकसी को इस बाि की दिक्र नहीं है दक दे ि कहां जा रहा है और कहां जाएगा। उनको एक ही बाि की दिक्र है दक उनकी सत्ता, उनका पद, उनका सम्मान, उनकी िति दकस िरह बनी रहे। वे इसी तवचार में जचंतिि, लीन और परे िान हैं। सारे दे ि का क्या हो रहा है इससे कोई सवाल नहीं है बड़ा, बड़ा सवाल अपने-अपने पद को बचा रखने का है। गांधी ने कभी कल्पना भी न की होगी दक तजस सेना को उसने खड़ा दकया था वह इस िरह की धोखेबाज सातबि हो सकिी है। लेदकन वह धोखेबाज सातबि हो गई। और उसमें भूल, एक भूल गांधी की भी थी, और वह भूल समझ लेना जरूरी है, अन्यथा हम उस भूल को आगे भी दोहरा सकिे हैं। वह भूल यह थी दक गांधी ने कभी इस बाि की दिक्र न की दक ये जो लोग उनके आसपास इकट्ठे हैं, इनके जीवन में कोई धार्मक दकरण उिरी है? इनके जीवन में कोई परमात्मा का स्पि है? इनके जीवन में सत्य की भी कोई गहरी आकांक्षा पैदा हुई है? इनके जीवन में कोई ध्यान है? कोई समातध है? इनके जीवन में आत्मा से जुड़ने का कोई माग, कोई द्वार खुल गया है? नहीं, इसकी उन्होंने दिकर नहीं की। वे के वल सत्य और अजहंसा की वैचाटरक बािें करिे रहे। उनके आस-पास का आदमी सत्य और अजहंसा को तवचारपूवक स्वीकार करिा रहा, लेदकन जो तवचारपूवक स्वीकार होिा है, वह जरूरी रूप से आत्मा में प्रतवि नहीं हो जािा है। तवचार बाहर ही रह जािे हैं, भीिर नहीं जािे। भीिर िो तनर्वचार जािा है। तवचार भीिर नहीं जािा। 36



तवचार िो बाहर रह जािा है। गांधी समझाने की कोतिि करिे रहे--सत्य अच्छा है, अजहंसा अच्छी है, अपटरग्रह अच्छा है, वह सब समझािे रहे। जो उन्हें अच्छा ददखाई पड़िा था, उन्होंने लोगों को समझाया और तजन्होंने समझा उन्होंने सुना, ठीक समझ में आया और उन्होंने थोड़ा-बहुि उस िरह का आचरण करने का प्रयास भी दकया। लेदकन ध्यान रहे, एक आचरण आत्मा से पैदा होिा है, एक आचरण बाहर से थोपा जािा है। जो आचरण बाहर से थोपा जािा है, वह आचरण जब िक हाथ में िति न हो िब िक टटक सकिा है, िति के आिे ही नि हो जािा है। जो आचरण हम ऊपर से थोपिे हैं, इम्पोज्ड जो होिा है व्यतित्व, अतभनय जो होिा है, ऊपर से थोपा हुआ जो होिा है, वह प्राणों िक गहरा िो नहीं होिा, कपड़ों की िरह बाहर होिा है। यह िभी िक हमारे साथ रह सकिा है, जब िक इसको टू टने का प्रतिकू ल अवसर न तमल जाए। और जैसे ही प्रतिकू ल अवसर तमलेगा, यह कचरा बह जाएगा, ये कपड़े बह जाएंगे और भीिर का नंगा आदमी साि हो जाएगा। नैतिक आदमी, जो धार्मक नहीं है तसि नैतिक है, उसके हाथ में सत्ता जाना हमेिा खिरनाक है। सत्ता में जािे ही नीति बह जाएगी और नंगा आदमी प्रकट हो जाएगा। लेदकन गांधी िो धार्मक व्यति थे, अपने आसपास तवचारपूवक जो नैतिक हो गए थे, उन्होंने उन पर ही सारा तवश्वास कर तलया। और उस तवश्वास के कारण इस दे ि के साथ एक अतनवायरूपेण तवश्वासघाि हो गया है। आगे भी हम यह भूल कर सकिे हैं। यह हमेिा भूल संभव है। क्योंदक धार्मक और नैतिक आदमी एक जैसे मालूम पड़िे हैं। एक व्यति तजसके प्राणों से अजहंसा उठिी हो, और एक व्यति तजसने यह दकिाबों में पढ़ कर, सदगुरुओं से सुन कर सोच तलया हो दक अजहंसा अच्छी चीज है, मुझे अजहंसा का पालन करना चातहए। इन दोनों में बुतनयादी िक होिा है। जो आदमी अजहंसा का पालन करिा है, उसके भीिर िो जहंसा मौजूद रहिी है, नहीं िो पालन करने की कोई जरूरि न हो। पालन हमें उसे ही करना पड़िा है तजसके तवपरीि हमारे भीिर मौजूद होिा है। तजस आदमी को ब्रह्मचय पालन करना पड़िा है, उसके भीिर कामवासना मौजूद होगी, अन्यथा पालन दकस चीज का करे गा? तजस आदमी को सत्य का पालन करना पड़िा है, उसके भीिर झूठ की लहरें उठिी रहिी हैं। संयमी आदमी तजसे हम कहिे हैं, नैतिक आदमी, वह ऊपर कु छ होिा है, भीिर ठीक उलटा होिा है। और अगर प्रतिकू ल तस्थति आ जाए िो जो भीिर है वही सच्चा सातबि होगा, जो बाहर है वह सच्चा सातबि होने वाला नहीं है। बाहर बहुि कमजोर चीजें हैं, भीिर असली प्राण हैं। धार्मक मनुष्य भीिर से रूपांिटरि होिा है, नैतिक मनुष्य बाहर से। इसतलए नैतिक मनुष्य के हाथ में सत्ता पहुंच जाना हमेिा खिरनाक बाि होिी है। गांधी एक धार्मक व्यति थे, गांधीवादी एक नैतिक व्यति हैं। और इस भेद को नहीं समझ पाने के कारण मुल्क एक अतनवायरूपेण एक ऐसी गलिी में पड़ गया, तजससे छु टकारा होने में बहुि समय लग सकिा है। इस दे ि को, इस दे ि के प्राणों को आगे तवकतसि करने के तलए नीति और धम का बुतनयादी िासला हमें समझ लेना चातहए, अन्यथा कल हम तजन्हें दिर िति दें गे, दिर सत्ता दें गे, दिर हम नैतिक आदतमयों को सत्ता दे सकिे हैं। सत्ता में पहुंचिे से हर िरह का नैतिक आदमी चाहे वह दकसी पाटी का हो, इसी िरह का सातबि होगा तजस िरह क्रांग्रेस का आदमी सातबि हुआ। इसमें िक नहीं पड़ेगा। चाहे वह समाजवादी हो, चाहे वह साम्यवादी हो। अगर उसका सारा आचरण ऊपर से थोपा हुआ है और उसके प्राणों से कोई सच्चाई नहीं उठी है, िो वह जाकर सत्ता में पहुंच कर एकदम रूपांिटरि हो जाएगा। महल के बाहर वह आदमी बहुि सेवक मालूम 37



होिा था, महल के भीिर जाकर बहुि िासक हो जाएगा। महल के बाहर वह कहिा था, मैं तवनम्र हं, आपके चरणों का दास हं। महल के भीिर पहुंच कर वह आपको पहचान नहीं सके गा दक आप कौन हैं और भीिर कै से आ गए। यह होगा। अगर भारि को सच में ही सत्य का, समिा का, स्विंत्रिा का एक समाज और एक दे ि तनर्मि करना है िो हमें यह जान लेना जरूरी है दक जहंदुस्िान में तजनके हाथ में सत्ता जानी हो उन लोगों के आमूल व्यतित्व के रूपांिरण की ददिा में कु छ काम होना जरूरी है। गांधी वह काम कर सकिे थे। िायद गांधी को खयाल नहीं आ सका। उन्होंने के वल नैतिक तिक्षा दी। साथ में अगर उन्होंने योग की तिक्षा पर भी जचंिा की होिी, समातध और ध्यान की भी जचंिा की होिी, अगर उन्होंने तसि रामधुन न करवाई होिी, साथ में समातध और ध्यान के भी गहरे प्रयोग चालीस वष दकए होिे, िो इस भारि का भाग्य एक स्वणभाग्य बन सकिा था। लेदकन वह नहीं हो सका। और आज भी वह नहीं हो रहा है। मैं कल्पना करिा हं इस दे ि को एक ऐसी पाटी की जरूरि है, एक ऐसे व्यतियों की जरूरि है, एक ऐसे बड़े आंदोलन की जरूरि है, जो आंदोलन ध्यान और समातध के माग से सत्ता के द्वार िक पहुंचिा हो। िो हम इस दे ि को सुंदर बना सकें गे, नहीं िो नहीं सुंदर बना सकिे। भारि की कल्पना बहुि पुरानी है, ऐसे यह है। बहुि बार यूनान में भी प्लेटो ने यह कल्पना की थी दक कब ऐसा समय होगा दक दाितनक राज्य कर सकें गे। गांधी के साथ आिा बंधी थी दक िायद दुतनया में पहली बार दाितनकों का राज्य भारि में आ जाएगा। लेदकन गांधी के पीछे आने वाले लोगों ने सारी आिा पर पानी िे र ददया। नहीं, दाितनकों का राज्य नहीं बन सका। न बनने का कारण यह है दक हम दाितनक ही बनाने में समथ न हो पाए--ऐसे लोग तजनके पास अंिदृति हो। अब दिर सत्ता की होड़ चल रही है और सत्ता के बाजार में तजिने लोग हैं, उनके पास, दकसी के पास कोई अंिदृति नहीं है। उनके पास कोई प्रभु के िरि जाने वाला माग नहीं है। उनके पास कोई प्रकाि की भीिर दकरण नहीं है। बस वे सोच-तवचार और सत्ता की होड़ में लगे हैं। और िब आप हैरान हो जाएंगे यह बाि जान कर दक आप एक को बदलेंगे दूसरे से और आप बदल भी नहीं पाएंगे और दूसरा भी पहले जैसा तसद्ध होगा, िीसरा भी पहले जैसा तसद्ध होगा। मैं सुनिा था, कोई मुझे कहिा था दक अमेटरका में कु छ मनोवैज्ञातनकों ने एक अध्ययन दकया। उन्होंने यह अध्ययन दकया दक जो लोग एक पति अपने जीवन में अगर आठ तियों को िलाक दे दे िा है या एक पत्नी अपने जीवन में आठ पतियों को िलाक दे कर बदलिी है, िो हर बार उसे पहले से बेहिर पति या पत्नी तमलिी है या नहीं? और अध्ययन से वे अजीब निीजे पर पहुंचे। वे इस निीजे पर पहुंचे दक जो पति पहली पत्नी को खोज कर लािा है, दो साल बाद उसे िलाक दे िा है, दूसरी िी को खोज कर लािा है, महीने दो महीने में पािा है दक उसने दिर पहली जैसी िी ही वापस खोज ली। पत्नी बदलिी है पति को जजंदगी में आठ बार, लेदकन हर बार यह अनुभव होिा है दक हर आदमी पुराना जैसा ही पति तसद्ध होिा है। थोड़े ददन िक नई रौनक रहिी है, दिर पुराना आदमी उसके भीिर से प्रकट हो जािा है। िो मनोवैज्ञातनक इस निीजे पर पहुंचे दक यह सवाल व्यतियों के बदलने का नहीं है। जब िक एक पत्नी अपने मन को नहीं बदल लेिी, िो तजस मन से उसने पहले पति को चुना था उसी मन से वह दूसरे पति को 38



चुनेगी और इस बाि की संभावना है दक दूसरा पति भी उन्नीस-बीस पहले पति जैसा ही तसद्ध होगा, क्योंदक चुनाव करने वाला मन वही का वही है। वह आठ पति चुन ले, िो हर बार वह करीब-करीब उन्नीस-बीस एक जैसे पति चुन लेगी। पति िो बदल जाएंगे, लेदकन चुनाव करने वाला मन, चुनाव करने वाला माइं ड िो वही है। अगर जहंदुस्िान के समाज को नई दृति और नया माग दे ना हो, िो जहंदुस्िान में जो लोग सत्तातधकाटरयों को चुनिे हैं, उनके मन का बदल जाना जरूरी है, अन्यथा हम रोज पुराने जैसे लोग चुन लेंगे। हम दिर, नये कपड़े होंगे, नई िक्लें होंगी, नया झंडा होगा, नये नारे होंगे, लेदकन हम दिर वही आदमी चुन लेंगे जैसे हमने पहले चुने थे। और जैसे ही सत्ता में वे लोग जाएंगे, वे दिर पुराने आदमी सातबि होंगे। उनमें कोई िक पड़ने वाला नहीं है। दो बािें ध्यान रखनी जरूरी हैं। गांधी का नैतिक आंदोलन सिल नहीं हो सका। आजादी तमली, लेदकन आजादी तजस कामना से मांगी गई थी वह कामना असिल हो गई है। स्विंत्रिा तमली, उपलब्ध हुई, लेदकन स्विंत्रिा से हमने जो चाहा था, जो सपना दे खा था, वह सपना पूरा नहीं हो पाया। हां, कु छ लोगों का सपना पूरा हुआ। वृहत्तर भारि का सपना पूरा नहीं हुआ। अंग्रेज पूंजीपति के हाथ से सत्ता भारिीय पूंजीपति के हाथ में चली गई। भारिीय पूंजीपति का सपना जरूर पूरा हुआ। लेदकन भारिीय पूंजीपति भारि नहीं है। गांधी के एक तिष्य पूंजीपति ने, और अब दूसरे पूंजीपति पछिािे होंगे दक जब गांधी जजंदा थे िो हमने भी सेवा क्यों न कर ली? उनके एक तिष्य पूंजीपति ने, भारि जब आजाद हुआ िो मैंने सुना, उनके पास संपतत्त िीस करोड़ की थी। बीस साल आजादी के बाद उनके पास संपतत्त िीन सौ िीस करोड़ की है। बीस वषों में िीन सौ करोड़! िािों में तलखा हैाः सत्संग का िल होिा है। इससे तसद्ध होिा है दक सत्संग का िल होिा है। मुझे पहले िक होिा था दक सत्संग से िल होिा है दक नहीं। अब िक नहीं होिा। िीस करोड़ रुपये से िीन सौ िीस करोड़! बीस वष में! संभविाः दुतनया के इतिहास में दकसी एक पटरवार ने इिने थोड़े समय में इिना धन संग्रह नहीं दकया है। प्रत्येक वष पंद्रह करोड़ रुपया! प्रत्येक महीने सवा करोड़ रुपया! प्रत्येक ददन चार और पांच लाख रुपया! पूरे बीस वष से! लेदकन वृहत्तर भारि गरीब से गरीब होिा चला गया। एक िरि संपतत्त इकट्ठी होिी चली गई है, दूसरी िरि दीनिा और हीनिा बढ़िी चली गई है। जहंदुस्िान के गांव में गरीब से पूछो, वह कहिा है, कु छ िक नहीं पड़ा, इससे िो तब्रटटि राज्य अच्छा था। कोई नहीं कहना चाहिा यह दक गुलामी अच्छी थी, लेदकन जब कोई गरीब कहिा है दक इससे िो गुलामी अच्छी थी, िो उसकी पीड़ा हम समझ सकिे हैं। गरीब भी स्विंत्र होना चाहिा है। लेदकन स्विंत्रिा उसके तलए कु छ भी नहीं लाई। उसने भी सपने बांधे थे, उसने भी कल्पनाएं की थीं, उसने भी गोली खाई थी, वह भी जेल गया था, लेदकन उसे पिा नहीं था दक यह स्विंत्रिा एक िरह के पूंजीपति के हाथ से दूसरी िरह के पूंजीपति के हाथ में रूपांिटरि हो जाएगी। गांधी को भी यह कल्पना नहीं थी। गांधी भी सोचिे थे दक पूंजीपति का हृदय-पटरविन हो जाएगा। अच्छे आदमी हमेिा अच्छी बािें सोचिे हैं, लेदकन सभी अच्छी बािें सही तसद्ध नहीं होिी हैं। गांधी भले आदमी थे। भले आदमी को कोई बुरा आदमी नहीं ददखाई पड़िा है। लेदकन ध्यान रहे, बुरे आदमी को कोई भला आदमी नहीं ददखाई पड़िा है। बुरे आदमी को सब बुरे आदमी ददखाई पड़िे हैं, भले आदमी को सब भले आदमी ददखाई पड़िे हैं। लेदकन दोनों की दृतियां अधूरी हैं और गलि हैं। दोनों सब्जेतक्टव दृतियां हैं, ऑब्जेतक्टव नहीं हैं। जो है उसको नहीं दे खिीं, जो हम दे ख सकिे हैं उसको 39



दे खिी हैं। गांधी को खयाल था दक हृदय-पटरविन हो जाएगा। और गांधीवादी अभी भी कहे चले जािे हैं दक हृदय-पटरविन हो जाएगा। लेदकन जरा दे खें िो, चालीस वष की मेहनि के बाद गांधी एक पूंजीपति का हृदयपटरविन कर पाए? और अगर खुद गांधी एक पूंजीपति का हृदय-पटरविन नहीं कर पाए िो गांधीवादी दकिने हजार वषों में कर पाएंगे? इसका सोच सकिे हैं, तवचार कर सकिे हैं? गांधी नहीं कर पाए, गांधी जैसा मतहमावान व्यति पूंजीपति का हृदय-पटरविन नहीं कर पाया, बतल्क पूंजीपति ने उसकी आड़ से भी िायदा उठाने की कोतिि की। िो यह गांधीवादी कै से हृदय-पटरविन कर पाएंगे? नहीं, यह हृदय-पटरविन की बाि के पीछे िोषण के िंत्र को चलाए रखने का आयोजन चल रहा है। हृदय-पटरविन नहीं होगा। दिर हम चोरों का हृदय-पटरविन करने के तलए कोई व्यवस्था नहीं करिे। हम नहीं कहिे दक पुतलस नहीं रखेंगे, चोर के तलए दं ड नहीं दें गे। हम चोर का हृदय-पटरविन करें गे। नहीं, चोर के हृदयपटरविन की हम दिक्र नहीं करिे। हम कहिे हैं, कोई चोरी करे गा िो दं ड पाएगा, लेदकन िोषक का हम हृदयपटरविन की दिक्र करिे हैं। हम कहिे हैं, िोषक को दं ड नहीं दे ना है, उसका हृदय-पटरविन करना है। और बड़े मजे की बाि यह है दक चोर बहुि छोटा चोर है, िोषक बहुि बड़ा चोर है। मैंने सुना है दक चीन में लाओत्सु एक अदभुि तवचारक हुआ। और लाओत्सु एक बार एक राज्य का कानून-मंत्री हो गया था। कानून-मंत्री होिे ही पहले ददन अदालि में बैठा िो एक चोर का मुकदमा आया। एक आदमी ने चोरी की थी। चोरी पकड़ गई, सामान पकड़ गया। उस आदमी ने स्वीकार कर तलया दक मैंने चोरी की है। साहकार भी खड़ा था और कहिा था इसे दं ड दो, इसने चोरी की है। लाओत्सु ने कहााः दं ड जरूर दूंगा और उसने िै सला तलखा, उसने कहा दक छह महीने चोर को सजा और छह महीने साहकार को भी सजा। साहकार ने कहााः िुम पागल हो गए हो! दुतनया में कभी साहकारों को सजा हुई है? तजनकी चोरी हुई उनको सजा दोगे? यह कौन सा कानून है? यह कहां का न्याय है? लाओत्सु ने कहााः जब िक तसि चोरों को सजा तमलिी रहेगी, िब िक दुतनया से चोरी बंद नहीं हो सकिी, क्योंदक िुमने गांव की सारी संपतत्त एक कोने में इकट्ठी कर ली है। अब गांव में चोरी नहीं होगी िो और क्या होगा। एक आदमी के पास गांव की सारी संपतत्त इकट्ठी हो जाए िो गांव में आदमी दकिने ददन िक धमात्मा रह सकें गे? चोरी होगी। चोरी उनकी मजबूरी हो जाएगी। लाओत्सु ने कहा है दक मैं िो छह महीने की सजा चोर को भी दूंगा और छह महीने की सजा िुम्हें भी। क्योंदक चोर पीछे पैदा हुआ है, िोषण पहले है। िोषण पहले है, िब पीछे चोरी है। पूरा जहंदुस्िान चोर होिा चला जा रहा है और सारे नेिा तचल्लािे हैं दक चोरी नहीं होनी चातहए, बेईमानी नहीं होनी चातहए, भ्िाचार नहीं होना चातहए। भ्िाचार होगा, चोरी होगी, बेईमानी होगी, बढ़ेगी; क्योंदक सबसे बड़ी चोरी और बेईमानी िोषण की जारी है और दे ि गरीब होिा चला जा रहा है। नहीं, गरीब दे ि चोरी से नहीं बच सकिा, बेईमानी से नहीं बच सकिा, भ्िाचार से नहीं बच सकिा, टरश्वि से नहीं बच सकिा। जब संपतत्त एक िरि इकट्ठी होिी चली जािी हो िो संपतत्तहीन दकिने ददन नैतिक हो सकिा है, दकिने ददन िक धार्मक हो सकिा है। प्राण बचाने को भी उसे अनैतिक होना पड़िा है। और नेिा भी भलीभांति जानिे हैं दक न चोरी रुके गी, न बेईमानी रुके गी। बीस वषों में वह रोज बढ़िी चली गई है। बीस वषों में हमारा प्रत्येक व्यतित्व का सारा महत्वपूण तहस्सा नीचे तगरिा चला गया है और हमारा नंगापन प्रकट होिा चला गया है। लेदकन वह कहे चला जािा है दक नीति की तिक्षा दो स्कू लों में और कालेजों में, धर् म की तिक्षा दो, गीिा पढ़ाओ, राम-नाम जपाओ। लेदकन सब बेईमानी की बािें हैं। गीिा पढ़ाने से, राम-नाम जपाने से कोई चोरी बंद



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नहीं होगी, भ्िाचार बंद नहीं होगा, अनीति बंद नहीं होगी। इस दे ि में अनीति उस ददन बंद होगी, तजस ददन इस दे ि में िोषण का िंत्र टू टेगा। उसके पहले अनीति बंद नहीं हो सकिी है। लेदकन िोषण के िंत्र को िोड़ने की बाि करें िो वह गांधी जी की दुहाई दे िे हैं। वे कहिे हैं, गांधीजी कहिे थे, हृदय-पटरविन करना होगा। वे कहिे हैं दक हम गांधी जी के प्रतिकू ल नहीं जा सकिे। गांधी जी कहिे हैं, हृदय-पटरविन करना होगा। गांधी जी भले आदमी थे। वे सोचिे थे दक हृदय-पटरविन हो जाना चातहए। वे सोचिे थे, जैसा उनका हृदय था, वे सोचिे थे, सबका हृदय होगा। ऐसा सबका हृदय नहीं है। हृदय-पटरविन नहीं होगा। हृदय-पटरविन करना पड़ेगा, होगा नहीं। और करना पड़ने का मिलब यह है दक दे ि के िंिर् को, दे ि की व्यवस्था को यह तनणय लेना होगा दक िोषण हमें समाप्त करना है, दकसी भी मूल्य पर समाप्त करना है। जैसे हम चोरी समाप्त करिे हैं, बेईमानी को िोड़ने की कोतिि करिे हैं, हत्याओं की कोतिि करिे हैं रोकने की, उसी िरह हमें िोषण को भी रोकना पड़ेगा। िो यह बंद होगा। कल ही मैं दकसी से यह बाि कर रहा था िो उन्होंने कहा दक आपके भी बहुि से पूंजीपति तमत्र हैं, उनमें से आपने दकसी को बदला अब िक दक नहीं? मैंने उनसे कहा, मैं िो मानिा नहीं दक बदला जा सकिा है। इसतलए बदलने का सवाल नहीं। दिर मैं यह भी नहीं मानिा दक पूंजीपति को बदलना है। पूंजीपति को नहीं बदलना, पूंजीवाद को बदलना है। पूंजीपति को बदलने से क्या होगा? पूंजीपति के बदलने से कु छ भी नहीं हो सकिा। बड़ा िंत्र है पूंजीवाद का, पूंजीपति, कसूर भी नहीं है उसका कोई। मजदूर भी तवतक्टम है इस िंत्र का, पूंजीपति भी तवतक्टम है इस िंत्र का। वे दोनों ही इसके तिकार हैं, इस बड़े िंत्र के जो पूंजीवाद है। इस बड़े िंत्र के , पूंजीवाद के िंत्र का पूंजीपति भी उिना ही परे िान और पीतड़ि तहस्सा है, तजिना दक मजदूर और दतलि पीतड़ि तहस्सा है। एक दतलि और पीतड़ि है संपतत्त के न होने से; एक पीतड़ि और परे िान है संपतत्त के होने से और चारों िरि तनधन की किार जुड़ी होने से। एक आदमी अगर एक गांव में स्वस्थ हो और सारा गांव बीमार हो िो सारा गांव बीमारी से परे िान रहेगा और वह आदमी जो अके ला स्वस्थ रह गया है, स्वास्थ्य से परे िान रहेगा दक कब बीमार न पड़ जाऊं। अब बीमार न पड़ जाऊं। चारों िरि बीमारी ही बीमारी है और ये बीमार सब तमल कर कहीं मुझे बीमार न कर दें । वह स्वास्थ्य का सुख नहीं ले पाएगा, जहां चारों िरि टी.बी. और कैं सर और घाव भरे लोग घूम रहे हों। एक गांव में सारे लोग सड़क पर सो रहे हों और एक आदमी महल बना ले िो महल में आराम से सो सके गा? कै से सो सके गा? द्वार पर पहरे दार रखना पड़ेगा। पहरे दार के ऊपर दूसरा पहरे दार रखना पड़ेगा, क्योंदक पहरे दार भी राि को घुस सकिा है महल में और छु रा भोंक सकिा है। कै से सो सके गा आराम से? और इिनी दीनिा, दटरद्रिा उसके आस-पास िै ल जाए िो उसके तचत्त पर कोई पटरणाम होगा दक नहीं? वह आदमी है या पत्थर? उसके तचत्त में िांति कै से हो सके गी? मैं बड़े से बड़े धनपतियों को जानिा हं, वे भी मेरे पास आिे हैं और कहिे हैं मन को िांि करने का कोई उपाय बिाएं? मन बड़ा अिांि रहिा है। मन अिांि नहीं रहेगा िो क्या होगा। जहां हमारे चारों िरि इिना दुख होगा, इिना दाटरद्रय होगा, इिनी दीनिा होगी, हम कब िक अपने महल में यह तवश्वास रख सकें गे दक सब ठीक चल रहा है? यह कै से हो सके गा? और वह नीचे जो बढ़िी हुई दीनिा और दटरद्रिा है, उसकी लहरें , उसकी आहें, उसका रुदन, उसका उपद्रव रोज महलों से टकराएगा। रोज महलों की दीवालें घबड़ाएंगी दक कब तगर जाएं, कब तगर जाएं। उनको बचाने में उसके प्राण लग जािे हैं। तजसको हम पूंजीपति कहिे हैं वह भी पीतड़ि है, वह भी तवतक्टम है।



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पूंजीवाद के दो तवतक्टम हैं। एक वे तजनके पास पूंजी नहीं है और एक वे तजनके पास पूंजी है। तजस ददन पूंजीवाद जाएगा उस ददन गरीब गरीबी से मुि होगा और अमीर अमीरी से मुि होगा। और ये दोनों रोग हैं, ये दोनों ही रोग हैं। इसतलए पूंजीवाद के जाने का मिलब पूंजीपति का अतहि नहीं है। पूंजीवाद के जाने पर ही वह जो पूंजीवाद से पीतड़ि व्यतित्व है वह भी मुि होकर मनुष्य का व्यतित्व बन सके गा। जब िक कोई पूंजीपति है, िब िक मनुष्य नहीं हो पािा। िब िक आदमी नहीं हो पािा। िब िक वह खुल नहीं पािा, िब िक वह सहज नहीं हो पािा, िब िक इिने ज्यादा गलि समाज में इिने गलि ढंग से उसे जीना पड़िा है दक वह इिने टेंिन में, इिने िनाव में, इिनी अिांति में जीिा है दक वह कै से सहज हो सकिा है? वह सहज नहीं हो पािा। मैं एक घर में कलकत्ते में ठहरा हुआ था। उस घर में पति और पत्नी के अतिटरि कोई भी न था। बस वे दो ही प्राणी थे। बड़ा था महल। सब थी सुतवधा। सब कु छ था उनके पास। राि बारह बजे जब मैं थक गया ददन भर के बाद और सोने जाने लगा िो उस घर के गृहपति ने कहा, क्या आप अब सो जाएंगे? मैंने कहा दक अब बारह बज गए, क्या अब भी मैं जागिा रहं? उन्होंने कहााः ठीक है, आप सो जाइए, लेदकन मैं सोचिा था थोड़ी दे र और बाि करिे। मैंने कहााः प्रयोजन? दक मुझे राि भर नींद नहीं आिी। क्या हो गया िुम्हें, नींद क्यों नहीं आिी? इिनी अच्छी गदद्दयां िुम्हारे पास हैं। इन पर िो दकसी को नींद न भी आ रही हो, जागिे आदमी को तबठाल दो, िो नींद आ जाए। इिना अच्छा भोजन िुम्हारे पास है, इिना बड़ा बगीचा िुम्हारे पास है, इिनी िाजी और ठं डी हवा िुम्हारे पास है, िुम्हारी तखड़दकयों से आकाि के िारे ददखाई पड़िे हैं, चांद झांकिा है, िुम्हें नींद नहीं आिी, हुआ क्या है? वे कहने लगे, नींद, नींद मुझे बहुि वषों से नहीं आिी है। बस ददन-राि जचंिा ही जचंिा। आज इस िै क्टरी में गड़बड़ है, कल उस िै क्टरी में गड़बड़ है। वहां कम्युतनस्ट उपद्रव कर रहे हैं। वहां सोितलस्ट उपद्रव कर रहे हैं, वहां ऊपर सरकार गड़बड़ दकए चली जािी है, यहां नीचे... सब गड़बड़ ही गड़बड़ है, इस गड़बड़ में कै से नींद आए? इसको आप समझ रहे हैं यह आदमी बहुि सुख में है, यह पूंजीपति बहुि सुख में है, िो आप भूल में हैं, तबल्कु ल भूल में हैं। संपतत्त सुख ला सकिी थी, लेदकन पूंजीवाद के कारण संपतत्त सुख नहीं ला पािी है। संपतत्त उस ददन सुख बनेगी तजस ददन संपतत्त तविटरि होगी, समान होगी। संपतत्त उस ददन सुख बन जाएगी। अभी संपतत्त भी दुख है। संपतत्तहीनिा िो दुख है ही, संपतत्त भी अभी दुख है। संपतत्त तजस ददन तविटरि होगी और समाज में जब दीन-हीन, रुग्ण और अपातहज का वग तवलीन होगा और जब मनुष्य मनुष्य की भांति एक समानिा के िल पर खड़ा होगा, िो समाज से बेईमानी तमटेगी, चोरी तमटेगी, गुंडागदी तमटेगी, नहीं िो नहीं तमट सकिी है। यह सारी की सारी जो व्यवस्था हमें ददखाई पड़िी है, बाई-प्रॉडक्ट है, िोषण की, एक्सप्लायटेिन की। और ऊपर के नेिा तचल्लाए चले जािे हैं दक नीति समझाओ बच्चों को। बच्चे कै से नीति समझेंगे? नहीं समझ सकिे हैं। लेदकन वे दलील दे िे हैं दक गांधीजी कहिे थे हृदय-पटरविन करना है, इसतलए कोई जोर जबरदस्िी नहीं करनी है। लेदकन िुम हैदराबाद में पुतलस एक्िन ले सकिे हो, िुम रजवाड़ों को तमटाने के तलए जोर जबरदस्िी कर सकिे हो। िब िुम्हें खयाल नहीं आया दक राजाओं का हृदय-पटरविन करना चातहए। लेदकन िोषण के मामले में एकदम हृदय-पटरविन और अजहंसा की ऊंची-ऊंची बािें याद आने लगिी हैं। इसका मिलब है कु छ जरूर। इसका मिलब है, िुम बोलिे जरूर हो, वाणी िुम्हारी नहीं है, वाणी िोषक की है जो िुम्हारी पीठ के पीछे खड़ा है और बोल रहा है। यह वाणी िुम्हारी नहीं है गांधीवाददयो! यह िुम नहीं बोल रहो हो, िुम्हारी जबान तबकी हुई है, िुम्हारी बुतद्ध तबकी हुई है। िुम्हारे पीछे जो खड़ा है वह बोल रहा है 42



और कह रहा है दक अगर यह वाणी नहीं बोले िो अगले इलेक्िन में मुतश्कल में पड़ जाओगे। यह दान-धन दिर हमसे नहीं तमलने वाला है। ये पैसे दिर हमसे नहीं तमलेंगे। वह वाणी सत्ता से जो बोल रही है वह संपदािाली की वाणी है। सत्ता से बोलने वाले के पास अपनी अब कोई जबान नहीं है। और वह अपनी इस झूठी जबान को गांधीवाद का नाम दे कर सुंदर, सत्य ददखलाना चाहिा है। नहीं, चाहे गांधीजी ने कहा हो, चाहे दकसी ने भी कहा हो दक हृदय-पटरविन से कु छ होगा, वह नहीं हो सकिा है। गांधीजी के चालीस साल का अनुभव यह कहिा है दक वह नहीं हो सकिा है और अब िो गांधी जैसा व्यति भी हमारे पास नहीं है जो हृदय-पटरविन के तलए जोर डाल सके । अब कौन डालेगा, कौन बदलेगा, हृदय-पटरविन कै से बदलेगा? तवनोबा ने इधर कोतिि की थी एक। गांधी के पीछे गांधी से तमलिा-जुलिा कोई आदमी था, िो वही है। उन्होंने कोतिि की थी। बहुि श्रम दकया, लेदकन कोई पटरणाम न तनकला। कोई पटरणाम न तनकला। जमीन तमली, दान तमला। इस दे ि में दान िो हजारों वषों से तमलिा है। दान कोई नई बाि नहीं है। दान भी तमला, जमीन भी तमली, गरीब को थोड़ी-बहुि राहि भी तमली होगी; लेदकन िोषण का िंत्र इस िरह थोड़े ही टू टिा है? तजस आदमी ने दान ददया एक िरि जमीन का, वह जाकर घर दिर योजना बना रहा है दक तजिनी जमीन हाथ से तनकल गई है, वह जल्दी से कै से वापस दकिनी कमाई कर लूं। इससे िोषण का िंत्र थोड़े ही बदलेगा दक एक आदमी ने दान ददया यहां दस लाख का और जाकर उसने घर योजना बनाई दक अगले वष दस लाख कै से वापस कमा लूं! उसका हृदय थोड़े ही बदल गया है। रुपये दे ने से थोड़े ही यह समाज बदलेगा। यह समाज िो बदलेगा इसके िंत्र के बदलने से। इसकी तसस्टम, इसकी व्यवस्था बदलने से। िो तवनोबा ने दस-पंद्रह साल दौड़-धूप करके बेचारे ने पैदल भाग-भाग कर गांव-गांव अपना जीवन नि दकया। कोई पटरणाम नहीं हुआ। हां, जमीन तमली, और वह सवोदयवादी कहिे हैं दक वही पटरणाम है। दे खो, इिनी लाख एकड़ जमीन तमल गई। जमीन के तमलने से कु छ भी होने का नहीं है। इस पूंजीवाद के िंत्र को, िोषण के िंत्र को जमीन के बंट जाने से, कु छ थोड़ी सी जमीन गरीब को तमल जाने से कोई िक नहीं पड़िा। बतल्क पूंजीपति, पूंजीिाही और गांधीवादी इससे खुि हैं दक तवनोबा ने थोड़ी-बहुि जमीन बांटी। थोड़ा-बहुि दान ददलवाया। उससे गरीब को थोड़ी राहि तमली। राहि तमलने से जहंदुस्िान में आने वाली समाजवादी क्रांति में रुकावट पड़िी है। तजिनी राहि तमलिी है, उिनी क्रांति में रुकावट पड़िी है। तजिना गरीब को ऐसा लगिा है दक बहुि अच्छा है, सब ठीक है, दकसी िरह चल रहा है, चल जाएगा, थोड़ी जमीन भी तमल गई एक-दो एकड़, अब कु छ हो जाएगा, अब कु छ हो जाएगा। उिना ही वह जो सवहारा है, वह तजसके पास कु छ भी नहीं, वह क्रांति करने के तलए ित्पर नहीं हो पािा है। तवनोबा ने भला काम दकया, लेदकन उन्हें पिा नहीं, वे जहंदुस्िान की िोषण की व्यवस्था के हाथ में खेल गए। इसीतलए ददल्ली के सत्ताधीि, करोड़पति, उनके चरणों में जाकर बैठिे हैं और नमस्कार कर आिे हैं। वह नमस्कार तवनोबा को नहीं है, वह नमस्कार क्रांति में पड़िी हुई रुकावट को है। बीस साल के भूदान-आंदोलन ने भारि की क्रांति में बाधा पहुंचाई, समय को लंबा दकया है। िोषण का िंत्र नहीं टू टा, लेदकन िोषण का िंत्र सहने योग्य बन जाए, इसकी थोड़ी सी कोतिि भर हो पाई है और कु छ भी नहीं हो सका है। नहीं, इस िरह के कामों से कु छ भी नहीं हो सकिा है। जहंदुस्िान को अपनी पूरी समाजीव्यवस्था को अतनवायरूपेण बदल लेना जरूरी है। और न हृदय-पटरविन के तलए प्रिीक्षा करने की जरूरि है, न दकसी और बाि की प्रिीक्षा करने की जरूरि है। लेदकन सत्तातधकारी जो सत्ता में है उसके पास अपनी वाणी नहीं है। जब िक इस दे ि का लोकमि, जब िक इस दे ि की लोकात्मा, जब िक इस दे ि के पूरे प्राण इस बाि 43



को नहीं समझेंगे दक हम सब चाहे गरीब, चाहे अमीर, एक ही िोषण-िंत्र के परे िान पीतड़ि अंग हैं और इस िोषण के िंत्र को हटा दे ना है िभी कु छ हो सके गा। सवोदय से समाजवाद नहीं आएगा, लेदकन समाजवाद से सवोदय आ सकिा है। समाजवाद के बाद ही सवोदय आ सकिा है, क्योंदक सवोदय का अथ है सबका उदय, सबका तहि। सबका तहि िभी हो सकिा है जब सबका तहि समान हो। अभी गरीब और अमीर का तहि समान नहीं है। इसतलए सवोदय नहीं हो सकिा है। उनके तहि प्रतिकू ल हैं, तवरोधी हैं, ित्रु के तहि हैं। उनके तहि में समानिा नहीं है, इसतलए अभी समान तहि का उदय नहीं हो सकिा। अभी सवमंगल नहीं हो सकिा है। सवोदय से समाजवाद नहीं आएगा। सवोदय की तजिनी बािें चलेंगी, समाजवाद के आने में उिनी दे र होगी। उिना समय जाया होगा। लेदकन समाजवाद आए िो सवोदय तनतश्चि आ जाएगा। सवोदय समाजवाद की छाया है। जैसे ही िोषण का िंत्र टू टिा है, िब सबका समान तहि रह जािा है। िब वगीय तहि नहीं रह जािे। िब श्रेणीगि तहि नहीं रह जािे। िब क्लास इं ट्रेस्ट नहीं रह जािा। िब हम सब समान हो जािे हैं और िब इस दे ि का उदय हो सकिा है। इस दे ि का श्रम भी िभी जागेगा, उत्साह भी िभी जागेगा, प्राण श्रम करने के तलए, सृजन करने के तलए िभी आिुर होंगे जब प्रत्येक को ऐसा मालूम पड़ेगा यह दे ि हमारा है। अभी प्रत्येक को ऐसा नहीं मालूम पड़िा। और यह जान कर आप हैरान होंगे दक जब िक प्रत्येक को यह अनुभव न हो जाए दक यह दे ि हमारा है, दीनिम को यह अनुभव न हो जाए दक दे ि मेरा है--यह उसे कब अनुभव होगा? यह उसे िभी अनुभव होगा दक दे ि की जो संपदा है--वह मेरी है। दे ि की संपदा कु छ लोगों की और दे ि मेरा, यह बाि बड़ी गड़बड़ है। यह नहीं हो सकिा। संपदा दकन्हीं कु छ लोगों की और दे ि मेरा! दे ि का मिलब क्या है? दे ि का मिलब है, दे ि की संपदा; दे ि का मिलब है, दे ि का सब कु छ। भूतम और आकाि, और हवा, संपतत्त और मनुष्य की िति और सब कु छ। मेरा है यह दे ि िभी कह सकिा हं बल से, जब इस दे ि की सारी संपतत्त में भागीदार हं, समान भागीदार हं। लेदकन जब मैं समान भागीदार नहीं हं िो यह दे ि मेरा कै सा है। यह दस-पांच लोगों का होगा दे ि। यह सत्ताधाटरयों का होगा दे ि। यह दीन का, दटरद्र का दे ि कै सा है? और इसतलए इस दे ि में एक दे ि का भाव पैदा नहीं हो पा रहा है, एक समाज का भाव पैदा नहीं हो पा रहा है। इस दे ि में एक अटू ट एकिा पैदा नहीं हो पा रही है। वह नहीं होगी। यह इं टटग्रेिन की सारी बािचीि चलेगी और कु छ भी नहीं होगा। इं टटग्रेिन, एकिा, इस दे ि में समाजवाद का पटरणाम होगी। उसके पहले नहीं हो सकिी। ये बािें मैं कहिा हं िो वे कहिे हैं दक मैं गांधी जी का दुश्मन हं। गांधी जी का मैं दुश्मन हं या दोस्ि? अगर गांधी जी की कहीं भी आत्मा होगी िो यह सोचिी होगी दक जब आप िाली बजाएं समाजवाद के तलए िो आकाि में अगर वे कहीं भी होंगे िो उन्होंने भी िाली बजाई होगी! आपकी िाली के साथ उनकी िाली रही होगी। और अगर मेरी आवाज उन िक पहुंचिी होगी, उन्हें लगिा होगा दक मैं कहा रहा हं दक यह दे ि िब होगा खुिहाल, जब प्रत्येक व्यति इस दे ि की संपतत्त का समान मातलक होगा। िो गांधी खुि होंगे या दुखी होंगे? िो मैं गांधी के पक्ष में बोल रहा हं या तवपक्ष में बोल रहा हं, यह मैं आप पर छोड़ दे िा हं। मैं गांधीवादी के तवरोध में बोल रहा हं, गांधी के तवरोध में नहीं बोल रहा हं। एक बार कराची में एक बड़ी कांफ्ेंस में, कांग्रेस के कु छ लोगों ने गांधी का तवरोध दकया और काले झंडे ददखाए और उन्होंने काले झंडे ददखा कर नारा लगाया--गांधीवाद मुदाबाद। गांधी मंच पर थे, माइक पर थे। उन्होंने उत्तर में कहा दक ध्यान रहे, गांधी मर जाएगा, लेदकन गांधीवाद अमर रहेगा। मैं उनसे कहना चाहिा हं, गलिी बाि कह दी उन्होंने। मेरा वि होिा, लेदकन अब िो कोई उपाय नहीं उनसे िब्द बदलवाने का, लेदकन 44



दिर भी तनवेदन िो कर दे ना चातहए। मेरा वि होिा िो उनसे मैं कहिा, लेदकन आज िो कह दे ना चातहए। मैं कहना चाहिा हं, गांधी अमर रहेंगे, गांधीवाद नहीं। गांधी अमर रहेंगे, गांधीवाद नहीं। गांधी की प्रतिभा, गांधी का व्यतित्व, गांधी की करुणा, गांधी का प्रेम, गांधी की अजहंसा, गांधी का वह मतहमामंतडि स्वरूप अमर रहेगा, गांधीवाद नहीं। क्योंदक गांधीवाद के अमर रहने का मिलब गांधीवादी का अमर रहना है। गांधीवादी के अमर रहने का मिलब गांधीवादी का अमर रहना है। गांधीवाद की जय नहीं, लेदकन गांधी की जय जरूर। मैं गांधी का ित्रु नहीं हं, लेदकन गांधीवाद दे ि को गड्ढे में ले जा रहा है। और गांधीवाद से मुि हो जाना अत्यंि आवश्यक है। तजिने िीघ्र हम मुि हो सकें और तजिने िीघ्र हम एक वग-तवहीन और िोषण-मुि समाज को जन्म दे सकें , उिना तहिकर है, उिना उतचि है। करोड़ों-करोड़ों वष के भारि का स्वप्न पूरा हो सके गा। भारि के ऋतषयों ने, भारि के संिों ने, सपना ही यह दे खा है दक एक पृथ्वी ऐसी हो जहां सब बंधु हों, लेदकन िोषण से भरी पृथ्वी बंधुओं की पृथ्वी कै से हो सकिी है? एक सपना दे खा है दक प्रत्येक आदमी की आत्मा समान है, बराबर है, लेदकन आत्मा समान और बराबर होगी, जब िक िरीर को समान अवसर और सुतवधा नहीं तमलिी, िब िक आत्मा की समानिा का कोई व्यावहाटरक अथ नहीं है। आत्मा िभी प्रकट होिी है जब िरीर हो। और आत्मा की समानिा भी उसी ददन प्रकट होगी तजस ददन िरीर के जगि में समानिा की व्यवस्था हो, अन्यथा आत्मा की समानिा भी कै से प्रकट हो सकिी है? करोड़ों-करोड़ों वष से तजसने जीवन को सोचा है, जाना है, उसके प्राणों में एक ही प्राथना रही है दक सारे लोगों को समान िांति, समान आनंद उपलब्ध हो। लेदकन वह कै से उपलब्ध होगा? अभी िो जीवन की समान जरूरिें भी उपलब्ध नहीं हैं, जीवन को तवकतसि करने का समान अवसर भी उपलब्ध नहीं है। दकिने गांधी झोपड़ों में मर जािे होंगे और पैदा नहीं हो पािे होंगे। दकिने बुद्ध और महावीर िूद्रों के घर में जन्मिे होंगे और क ख ग भी नहीं सीख पािे होंगे। दकिने ऋतष और मुतन पैदा नहीं हो सके , क्योंदक जहां वे पैदा हुए वहां ज्ञान की कोई खबर, कोई हवा नहीं पहुंच सकी। हजारों वष से भारि में िूद्र हैं। एक िूद्र बुद्ध की हैतसयि को उपलब्ध हुआ? एक िूद्र राम बना? एक िूद्र कृ ष्ण बना? एक िूद्र पिंजतल बना? नहीं बन सका। क्या िूद्र के घर आत्माएं पैदा नहीं होिीं? प्रतिभाएं पैदा नहीं होिीं? अंग्रेजों की कृ पा थी दक एक डाक्टर अंबेदकर पहली बार पैदा हुआ एक कीमि का आदमी िूद्रों में। एक आदमी पूरे इतिहास में। यह भी पैदा नहीं होिा। इसे मौका तमला इसतलए पैदा हुआ। दकिनी आत्माओं को मौके नहीं तमले, जो पैदा हो सकिी थीं। दकिना अनंि अपकार हुआ है जगि का। कु छ थोड़े से लोग अवसर पािे हैं। उन थोड़े से लोगों के थोड़े से बच्चे आगे बढ़ पािे हैं। िेष बड़ा समाज जीिा है, सड़िा है, मर जािा है। उसके जीवन में न कोई ऊंचाई पैदा होिी, न कोई तिखर छू िा, न कोई संगीि बजिा, न कोई प्रभु के मंददर की घंटी सुनाई पड़िी। यह कब िक चलेगा? लोग समझिे हैं दक समाजवाद धम का तवरोधी है। गलि है यह बाि। समाजवाद से ज्यादा धार्मक और कोई आंदोलन जगि में नहीं है। लोग समझिे हैं दक समाजवाद ईश्वर का तवरोधी है। गलि है यह बाि। जब जमीन पर पूरी िरह समाजवाद होगा िभी हम पहली दिा ईि्वर की िरि उठ सकें गे, ईश्वर की िरि आंख उठा सकें गे। समाजवाद के बाद ही धार्मक जीवन का ठीक-ठीक समुतचि तवकास हो सकिा है। लेदकन गांधी जी के सामने स्विंत्रिा का सवाल बड़ा था। आजादी का सवाल बड़ा था। समाजवाद का सवाल बड़ा नहीं था। स्वभाविाः पटरतस्थति नहीं थी। गांधी जी के सामने सवाल था दक यह दे ि परदे िी गुलामी से कै से मुि हो जाए। अगर वे जजंदा रहिे िो िायद वे आर्थक गुलामी से, दे िी गुलामी से भी मुि करने के तलए कोई प्रयास करिे। 45



लेदकन वे जजंदा नहीं रहे। आजादी जरूरी थी उस वि। इसतलए उन्होंने जो भी जचंिन और तवचार तवकतसि दकया, वह मूलिाः स्विंत्रिा को ध्यान में रख कर था। उनका जचंिन समानिा को ध्यान में रख कर समुतचि रूप से तवकतसि नहीं हो सका। लेदकन उन पर ही हम रुक जाएंगे या आगे बढ़ेंगे? स्विंत्रिा आ गई। जैसी भी समतझए, क्लीव, इं पोटेंट, अधूरी, जैसी भी आ गई। अब इस स्विंत्रिा के अवसर का उपयोग क्या हो सकिा है? एक ही उपयोग हो सकिा है दक समानिा भी आए। और ध्यान रहे, जब िक समानिा पूरी िरह न आए िब िक स्विंत्रिा तसि धोखा होिी है, कामचलाऊ होिी है, नाममात्र होिी है। क्योंदक तजनके पास पेट में रोटी भी नहीं है, उनके तलए स्विंत्रिा का क्या अर् थ है, क्या उपयोग है, क्या प्रयोजन है? तजनके पास वि भी नहीं हैं उनके तलए स्विंत्रिा िब्द सुनाई िो पड़िा है, लेदकन उसका कु छ अथ प्रकट नहीं होिा दक स्विंत्रिा यानी क्या है। जब िक आर्थक समानिा न हो िब िक राजनैतिक स्विंत्रिा आत्मवंचना है, सेल्ि तडसेप्िन है। लेदकन गांधी के सामने वह सवाल न था। हमारे सामने वह सवाल है और हमें गांधी के आगे सोचना होगा, आगे तवचार को ले जाना होगा। दे ि ने एक आजादी की लड़ाई लड़ी थी। अब दे ि को दिर एक लड़ाई लड़नी है समानिा की। नहीं दकसी और से लड़नी है, लड़नी है अपने ही िंत्र से, अपने ही िोषण की व्यवस्था से। नहीं दकसी व्यति से; समाज की व्यवस्था से। और यह व्यवस्था बदले, िो ही गांधी की आत्मा प्रसन्न हो सकिी है। लेदकन गांधीवाददयों ने गांधी को कहां-कहां तबठा रखा है, पिा है? पुतलसथाने में, हेड कांस्टेबल के पीछे गांधी की िस्वीर लगी है। पुतलसथाने में बैठा है हेड कांस्टेबल, मां-बहन की गातलयां दे रहा है और पीछे राष्ट्रतपिा की िस्वीर लगी है। अदालि में जहां सब िरह की बेईमातनयां चल रही हैं, टरश्विखोटरयां चल रही हैं वहां गांधी की िस्वीर लगी है। िुमने गांधी को कोई पंचम जॉज समझ रखा है? िुम गांधी के साथ अच्छा सलूक कर रहे हो? िुम गांधी को कहां तबठा ददए हो? लेदकन िुम्हें गांधी से कोई मिलब नहीं। िुम्हें स्वयं से मिलब है। िुम गांधी की िस्वीर खड़ी करके अपने को तछपाने की कोतिि कर रहे हो। लेदकन दकिनी दे र िक इस दे ि की जनिा को धोखा ददया जा सके गा? िुम िो नहीं तछप सकोगे। खिरा यह है दक कहीं गांधी का सम्मान समाप्त न हो जाए। िुम नहीं तछप सकोगे, लेदकन कहीं गांधी का सम्मान समाप्त न हो जाए। गांधीवाददयों से गांधी को बचा लेना बहुि जरूरी है, अन्यथा गोडसे उनको नहीं मार पाया, गांधीवादी उनको मार डाल सकिे हैं। ये थोड़ी सी बािें मैंने कहीं, इस संबंध में जो प्रश्न होंगे, वह कल सुबह आपसे बाि करूंगा। मेरी बािों को इिने प्रेम और िांति से सुना, उससे अनुगृहीि हं। और अंि में सबके भीिर बैठे परमात्मा को प्रणाम करिा हं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ चौथा प्रवचन



लकीरों से हट कर तमत्रों ने बहुि से प्रश्न पूछे हैं। एक तमत्र ने पूछा है दक गांधी जी ने दटरद्रों को दटरद्रनारायण कहा, इससे उन्होंने दटरद्रिा को कोई गौरव-मंतडि नहीं दकया है, कोई ग्लोटरिाई नहीं दकया है। िायद आपको पिा न हो, दटरद्रनारायण िब्द गांधी जी की ईजाद है। जहंदुस्िान में एक िब्द चलिा था, वह था लक्ष्मीनारायण। दटरद्रनारायण िब्द कभी नहीं चलिा था, चलिा था लक्ष्मीनारायण। मान्यिा यह थी दक लक्ष्मी के पति ही नारायण हैं। ईश्वर को भी हम ईश्वर कहिे हैं, ऐश्वय के कारण। वह िब्द भी ऐश्वय से बनिा है। लक्ष्मी के पति जो हैं वह नारायण हैं। समृद्धनारायण, ऐसी हमारी धारणा थी। हजारों साल से वही धारणा थी। धारणा यह थी दक तजनके पास धन है उनके पास धन पुण्य के कारण है, परमात्मा की कृ पा के कारण है। धन का एक मतहमावान रूप था, धन गौरव-मंतडि था, धन की ग्लोरी थी हजारों वषों से। दटरद्र दटरद्र था पाप के कारण, अपने तपछले जन्मों के पापों के कारण दटरद्र था। धनी धनी था अपने तपछले जन्मों के पुण्यों के कारण। धन प्रिीक था उसके पुण्यवान होने का, दटरद्रिा प्रिीक थी उसके पापी होने का। यह हमारी धारणा थी। इस धारणा में गांधी ने जरूर क्रांति की और बहुमूल्य काम दकया दक उन्होंने लक्ष्मीनारायण िब्द के सामने दटरद्रनारायण िब्द गढ़ा और उन्होंने कहा दक नहीं दटरद्र भी नारायण है। लेदकन जैसा अक्सर होिा है, जब भी दकसी िब्द, दकसी तवचार, दकसी धारणा की प्रतिदक्रया में, टरएक्िन में कोई धारणा गढ़ी जािी है िो जो भूल इस िरि होिी थी अतििय में वही भूल दूसरी िरि हो जािी है। दटरद्र नारायण है, एक समय था समृद्धनारायण से। नारायण िो सभी हैं। न समृद्धनारायण है, न दटरद्रनारायण है। नारायण िो सभी हैं। एक अति, एक इक्सतक्सव यह बाि थी दक समृद्ध नारायण है, समृतद्ध को ग्लोटरिाई दकया गया था। उसकी प्रतिदक्रया में दूसरी अति यह हो गई दक दटरद्रनारायण है, अब दटरद्र को ग्लोटरिाई दकया गया। वह जो ग्लोटर, वह जो मतहमा समृद्ध के साथ जुड़ी थी, वही मतहमा समृद्ध से छीन कर दटरद्र से जोड़ दे नी पड़ी। रवींद्रनाथ ने एक गीि तलखा है, रवींद्रनाथ ने गीि तलखा हैाः कहां खोजिे हो प्रभु को, कहां खोजिे हो भगवान को, कहां खोजिे हो परमात्मा को, मंददरों में? नहीं है मंददरों में। मूर्ियों में? नहीं है मूर्ियों में। आकाि में? चांद -िारों में? नहीं है, नहीं है। भगवान वहां है जहां राह के दकनारे मजदूर पत्थर िोड़िा है। यह दूसरी अति हो गई। चांद -िारों में भी परमात्मा है, िू लों में भी, सब जगह, मंददरों में भी, जो भी है वही परमात्मा है। लेदकन कल िक एक अति थी दक इस दीन और दटरद्र में परमात्मा को नहीं दे खा जा रहा था, आज उसकी प्रतिदक्रया में, टरएक्िन में दूसरी अति हो गई दक नहीं है वहां। यहां है, जहां मजदूर पत्थर िोड़िा है। यह दूसरी अति है। मतहमा बदल दी गई। गांधी जी ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया दटरद्र को नारायण कह कर, लेदकन जैसा दक सदा होिा है, एक अति से दूसरी अति पर व्यति चला जािा है, एक अति से दूसरी अति पर तवचार चला जािा है। जब दकसी ने, गांधी इं ग्लैंड गए और गांधी के सेक्रेटरी बनाड िॉ को तमले और बनाड िॉ को गांधी के सेक्रेटरी ने कहा दक आपकी गांधी के संबंध में क्या धारणा है? बनाड िॉ ने कहााः और सब िो ठीक है, लेदकन दटरद्रनारायण िब्द 47



मेरे बरदाश्ि के बाहर है। दटरद्र को िो तमटाना है, उससे िो घृणा करनी है, उसे िो समाप्त कर दे ना है, दटरद्र को बचने नहीं दे ना है। और सब िो ठीक है, यह दटरद्रनारायण िब्द मेरी समझ के बाहर है। नेहरू ने भी अपनी आत्म-कथा में तलखा दक गांधी की बहुि सी बािें मेरी समझ में नहीं आिी हैं। यह दटरद्रनारायण िब्द मेरी समझ में नहीं आ सका है। यह िब्द ठीक नहीं है। दटरद्र को िो तमटाना है, दटरद्र को िो समाप्त करना है, दटरद्र को िो बचने नहीं दे ना है। और उसे जब हम नारायण जैसे महत्वपूण मतहमा से मंतडि करें गे िो जाने-अनजाने तजसे हम मतहमा दे ना िुरू करिे हैं उसे हम तमटाना बंद कर दे िे हैं। वह मनोवैज्ञातनक घटना है, तजसे हम मतहमा दे िे हैं उसे नि करने का तवचार छू टना िुरू हो जािा है। अगर दटरद्र को महारोग कहें िो तमटाने का खयाल आएगा, दटरद्र को नारायण कहें िो पूजा का खयाल आएगा। यह िो मनोवैज्ञातनक प्रतििलन होगा उसका। सवाल यह नहीं है दक गांधी मतहमामंतडि करिे हैं या नहीं। दटरद्रनारायण कहने से दटरद्रिा मतहमामंतडि होिी है और दटरद्रनारायण कहने से ऐसा नहीं लगिा दक इसको तमटाना है। दटरद्रनारायण कहने से ऐसा लगिा है दक पूजा करनी है। नारायण की हम सदा से पूजा करिे रहे हैं, लेदकन हम कहेंगे दक दटरद्र महारोग है िो सीधा खयाल उठिा है दक तमटाना है, नि करना है, समाप्त कर दे ना है। यह प्रश्न िो हमारी मनोवैज्ञातनक प्रतििलन का है दक हमारे मन पर क्या प्रतििलन होिा है। छोटे-छोटे िब्द भी हमारे मानस को गतिमान करिे हैं और हमारे मानस में, हमारे कलेतक्टव मानस में, हमारे अचेिन में, हमारे समूह-मन में िब्दों की करोड़ों वष की परं परा है और स्थान है। नारायण को तमटाने की हमने कभी कल्पना ही नहीं की है मनुष्यजाति के इतिहास में। नारायण को सदा हमने पूजा है, उसे मंददर में उसके चरणों पर तसर रखा है। नारायण को सदा हमने हाथ जोड़े हैं। नारायण को तमटाने की कल्पना ही असंभव है हमारे तचत्त को। जब भी हम दकसी के साथ नारायण जोड़ दें गे िो स्वभाविाः वह जो हमारा हजारों वषों का बना हुआ मन है वह नारायण को तमटाने को आिुर नहीं रह जाएगा। दटरद्रनारायण िब्द दुभाग्यपूण है। उससे समृद्धनारायण को उत्तर िो तमल गया, लेदकन घड़ी का पेंडुलम एक कोने से दूसरे कोने पर पहुंच गया। एक बीमारी से दूसरी बीमारी पर पहुंच गया। न िो समृद्ध नारायण है और न दटरद्र नारायण है। नारायण िो सभी हैं, इसतलए दकसी को तविेष रूप से नारायण कहना खिरनाक है। एकदम खिरनाक है। लेदकन प्रतिदक्रया में ऐसा होिा है। अब िक ब्राह्मण प्रभु के लोग थे, परमात्मा के लोग थे, गॉड चूजन थे, ईश्वर के चुने हुए लोग थे। गांधी जी ने उसकी प्रतिदक्रया में हटरजन िब्द चुना, िूद्रों के तलए। जो दक कभी भी प्रभु के कृ पापात्र नहीं रहे, तजनको प्रभु की कृ पापात्र होने का कोई सवाल न था। कृ पापात्र थे सवण, कृ पापात्र थे ब्राह्मण, क्षतत्रय। िूद्र ? िूद्र िो बाहर था जीवन के । उस पर कृ पा की कोई दकरण परमात्मा की कभी नहीं पड़ी थी। ठीक दकया गांधी ने। तहम्मि की दक उसको कहा हटरजन, लेदकन हटरजन कहने से वही भूल दिर दोहरा दी गई। हटरजन थे ब्राह्मण अब िक, परमात्मा के लोग वे थे। उनसे छीन कर मतहमा हमने िूद्र को दे दी। लेदकन जरूरि इस बाि की है दक मतहमा दकसी के पास बंधी न रह जाए। मतहमा तविटरि हो जाए और सबकी हो जाए। हटरजन हैं सब। जब िक ब्राह्मण हटरजन थे िब िक िूद्र हटरजन न था। और अगर हम िूद्र को हटरजन कहिे हैं िो हम दूसरी भूल करिे हैं। ब्राह्मण के प्रति एक तवरोध और वैमनस्य पैदा होगा। वह जो दतक्षण भारि में ब्राह्मण के प्रति वैमनस्य और तवरोध पैदा हो रहा है वह दूसरी प्रतिदक्रया है, वह दूसरी प्रतिदक्रया है दक अब नीचे जो िूद्र है वह हो गया हटरजन। अब वह चूजन तपपुल अब वे हो गए। िो अब ब्राह्मण को नीचे, अपदस्थ करना है। 48



यह खेल कब िक चलेगा? इस खेल को हम समझेंगे, इसके राज को? इसके राज को हम समझेंगे िो यह समझना जरूरी है दक प्रत्येक मनुष्य परमात्मा है। चाहे वह दटरद्र हो, चाहे समृद्ध हो, चाहे बीमार हो, चाहे स्वस्थ हो, चाहे काला हो, चाहे गोरा हो, चाहे िी हो, चाहे पुरुष हो--प्रत्येक व्यति परमात्मा है। इसे दकसी भी वग तविेष को परमात्मा का नाम दे ना उसे मतहमामंतडि करना है। मैं जानिा हं दक गांधी की मजबूरी थी। वह एक प्रतिदक्रया में, एक तवरोध के तलए उन्होंने एक बाि चुनी होगी। लेदकन अब चालीस-पचास साल के बाद उस िब्द को एकदम ित्काल छोड़ दे ना जरूरी है। अब उस िब्द को पकड़ तलए जाना ठीक नहीं है। और यह भी ध्यान रहे दक दटरद्र को न िो मतहमा दे नी है और न दटरद्र के साथ सहानुभूति प्रकट करनी है, यह भी ध्यान रहे। दटरद्र के साथ सहानुभूति, दया खिरनाक बािें हैं। दटरद्र के साथ दया नहीं करनी है, दटरद्रिा को तमटाना है िादक दटरद्र न रह जाए। दटरद्र के साथ दया करने से दटरद्रिा तमटिी नहीं है। दटरद्र के साथ दया करने से दटरद्रिा चलिी है, पोतषि होिी है। तभखमंगे को हम रोटी दे दे िे हैं, इससे तभखमंगापन नहीं तमटिा। तभखमंगे को दी गई रोटी तभखमंगेपन को दी गई रोटी तसद्ध होिी है। वह रोटी तभखमंगे के पेट में ही नहीं पहुंचिी, तभखारीपन के पेट में पहुंच जािी है। और तभखारीपन जीिा है और मजबूि होिा है। तभखारी को तमटाना है। दया पयाप्त नहीं है, दया बहुि िरकीब की बाि है। िोषक समाज ने हजारों वषों में दया का आतवष्कार ईजाद दकया है; दान और दया का। ये िरकीबें हैं। तजससे नीचे के पीतड़ि वग को राहि दे ने का उपाय दकया जािा है। अन्यथा बगावि हो सकिी है, क्रांति हो सकिी है। इसतलए दया और दान, थोड़ी सी व्यवस्था बनाए रखनी पड़िी है, िादक वह जो नीचे पीतड़ि है उसको ऐसा न लगे दक मुझे तबल्कु ल छोड़ ददया गया। उसे लगे दक नहीं दया की जािी है, दान दकया जािा है, धम दकया जािा है। यह दया, दान और धम गरीब का अपमान है। और तजस समाज में दान, दया, धम की जरूरि पड़िी है, वह समाज स्वस्थ, सुंदर समाज नहीं है, वह समाज रुग्ण है। और जब िक दुतनया में दया, दान और सहानुभूति की जरूरि हम पैदा करिे रहेंगे, िब िक हम अच्छे मनुष्य को पैदा नहीं कर सकें गे। एक ऐसा समाज चातहए जहां कोई दया मांगने के तलए िैयार न हो। एक ऐसा समाज चातहए जो ऐसे लोगों को पैदा न कर दे िा हो, तजनको आपकी सहानुभूति की जरूरि पड़े। कभी आपने खयाल दकया दक तजस पर आप दया करिे हैं वह दया आपके अहंकार को मजबूि कर जािी है, वह दया आपको मजबूि कर जािी है दक मैं कु छ हं, मैंने कु छ दकया। और तजस पर आप दया करिे हैं उसके मन को पश्चात्ताप, ग्लातन और चोट से भर जािी है दक मेरा अपमान दकया गया है। आप ध्यान रखना, तजस पर भी आपने दया की उसको आपने बहुि गहरे में अपना ित्रु बना तलया है, तमत्र नहीं। वह आपसे बदला लेगा। क्योंदक कोई भी आदमी अपमातनि होिा है जब उसे दया मांगनी पड़िी है। पीतड़ि होिा है, ऊपर से मुस्कु रा कर कहिा है दक भगवान िुम्हें सुखी रखे, लेदकन वह जानिा है, वह भलीभांति जानिा है दक उसे इस हालि में कौन ले आया है? कै से वह इस हालि में आ गया है? ऊपर से धन्यवाद दे िा है। लेदकन भीिर? भीिर उसके भी ईष्या पलिी है और अपमान पलिा है। नहीं, दया के आधार पर दो व्यतियों के बीच मैत्री कभी पैदा नहीं होिी। इसतलए अक्सर लोग कहिे सुने जािे हैं दक मैंने उस आदमी के साथ भला दकया और वह मेरे साथ बुरा कर रहा है। नेकी का िल बदी से तमल रहा है। हमेिा तमलेगा। क्योंदक नेकी अपमान करिी है दकसी का, और नेकी िुम्हारे अहंकार को मजबूि करिी है और दूसरे मनुष्य को पीतड़ि करिी है। नहीं, अब हम दया और धम पर नहीं जी सकिे हैं और न जीने की जरूरि है। अब िो हमें समझना होगा दक दटरद्र क्यों पैदा होिा है? दटरद्रिा कहां से जन्म लेिी है? उस जड़ को काट दे ना होगा। एक िरि जड़ को मजबूि दकए चले जािे हैं और िाखाओं और पत्तों को काटिे हैं। यह कै सा 49



पागलपन है! एक आदमी रोज पानी दे िा हो एक वृक्ष में, और दिर पत्तों को काटिा हो, और रोज पानी दे िा हो वृक्ष में। हम जो कर रहे हैं सब तमल कर उससे दटरद्र पैदा हो रहा है। दिर एक-एक दटरद्र को हम तभक्षा दे िे हैं, धमिाला बनािे हैं, औषधालय खोलिे हैं। इधर ऊपर से हम यह व्यवस्था करिे हैं और जो हम कर रहे हैं सारा समाज तमल कर उससे दटरद्र पैदा हो रहा है। यह बड़ी अजीब बाि है दक सारा समाज तमल कर रोग पैदा करे और दिर रोग के इलाज के तलए अस्पिाल खोले। यह कु छ समझ में आने जैसी बाि नहीं है। लेदकन अब िक हमें समझ में आिी थी, क्योंदक हमने व्यतिगि संपतत्त को प्रत्येक व्यति के अपने कमों का िल समझा हुआ था। वह बाि गलि है। कमों के िल हैं, जन्म हैं, पुनजन्म हैं, लेदकन संपतत्त कमों के िल से उपलब्ध नहीं, संपतत्त समाज के तविरण की व्यवस्था पर तनभर है। लेदकन अब िक हमारी धारणा यही थी दक गरीब गरीब है अपने कमों के कारण, अमीर अमीर है अपने कमों के कारण। इस दृतिकोण ने, इस कं सेप्ट ने, इस तसद्धांि ने जहंदुस्िान की गरीबी को िोड़ने के सब उपाय मुतश्कल कर ददए थे। और आज भी जहंदुस्िान में गरीबी नहीं टू ट रही, िो उसके पीछे हमारी दिलासिी है, हमारा दृतिकोण है। वह हमारा दृतिकोण यह है दक गरीब समझिा है दक मैं गरीब हं अपने िलों के कारण, अमीर अमीर है अपने िलों के कारण। हमारे दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है, अपने-अपने िलों से संबंध है। यह िरकीब बहुि होतियारी की सातबि हुई। यह िरकीब बहुि होतियारी की सातबि हुई। इससे मेरे तपछले जन्मों को मुझसे जोड़ ददया गया, लेदकन समाज से मुझे िोड़ ददया गया। समाज के ऊपर मेरी गरीबी-अमीरी का कोई सवाल न रहा, कोई प्रश्न न रहा। यह धम की धारणा ने तनतश्चि ही व्यतिगि संपतत्त को बचाने का अदभुि उपाय दकया है। इसीतलए सारे धमिाि दुतनया के कहिे हैं, चोरी पाप है, लेदकन दुतनया का एक भी धमिाि नहीं कहिा दक िोषण पाप है। दुतनया का कोई धमिाि कै से कह सकिा है दक िोषण पाप है? वे कहिे हैं, चोरी पाप है। कभी आपने सोचा दक इसके इं प्लीके िंस क्या हैं, इसके मिलब क्या हैं? इसका मिलब यह है दक चोरी हमेिा गरीब का कृ त्य है अमीर के तखलाि, चोरी हमेिा उनका कृ त्य है तजनके पास संपतत्त नहीं, उनके तखलाि तजनके पास संपतत्त है। धम संपतत्तिाली की रक्षा कर रहा है। वह कहिा है, चोरी पाप है। लेदकन वह यह नहीं कहिा दक िोषण पाप है। िोषण अमीर का कृ त्य है दटरद्र के तखलाि। धमग्रंथ कोई भी नहीं कहिा दक िोषण पाप है। एक अथों में माक्स की दकिाब दुतनया का एक नया धमग्रंथ है, जो िोषण को पाप कहिा है। और अगर माक्स जहंदुस्िान में पैदा हुआ होिा, िो हमने अपने अविारों में उसकी तगनिी की होिी। हम तनतश्चि उसको अपने अविारों में तगनिे। क्योंदक उसने धम और जीवन के संबंध में एक नये सूत्र को स्थातपि दकया है और वह यह दक िोषण पाप है। और जब िक िोषण का पाप जारी है िब िक चोरी जैसे छोटे पाप पैदा होिे रहेंगे। वह उसकी बाईप्रॉडक्ट है। वह उससे आएंगे और तमट नहीं सकें गे। मैं यह नहीं कहिा हं दक िोषक पापी है, मैं कहिा हं, िोषण पाप है। एक तमत्र ने पूछा है दक मैं पूंजीपति में और पूंजीवाद में क्या िक करिा हं? क्या मैं कहना चाहिा हं दक पूंजीवाद तजम्मेवार है, पूंजीपति तजम्मेवार नहीं है?



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हां, मैं िक करिा हं और कहना चाहिा हं दक पूंजीपति और पूंजीहीन, िोषक और िोतषि, दोनों िोषण के यंत्र के पटरणाम हैं। िोषण का यंत्र जारी है। उस िोषण के यंत्र में सारे लोग श्रम कर रहे हैं। वे तजनके पास धन नहीं है, आप सोचिे हैं, वे धन पाने के तलए श्रम नहीं कर रहे हैं? वे धन पाने के तलए श्रम कर रहे हैं। नहीं कर पा रहे हैं यह दूसरी बाि है। जो गरीब है, वह अमीर होने की कोतिि नहीं कर रहा? नहीं हो पा रहा यह दूसरी बाि है। जो धनहीन है, वह भी धनाकांक्षी है। जो धनवान है, वह गरीब होने से बचने की कोतिि नहीं रह रहा? वह धनवान है लेदकन गरीब न हो जाए, इसकी पूरी कोतिि में लगा हुआ है। जो गरीब है वह अमीर कै से हो जाए, इसकी पूरी कोतिि में लगा हुआ है। कु छ लोग सिल हो गए हैं, कु छ लोग असिल हो गए हैं, यह दूसरी बाि है। हम सारे लोग इस कमरे में दौड़ने की कोतिि करें और हमारे इस भवन का यह तनयम हो दक जो प्रथम आ जाएगा वह सवश्रेष्ठ होगा। हम सारे लोग दौड़ेंगे, लेदकन प्रथम िो एक ही आ सकिा है। जो आ जाएगा वह तजम्मेवार है प्रथम आने के तलए या दक वह व्यवस्था जो कहिी है दक प्रथम आना श्रेयस्कर है, वह व्यवस्था तजम्मेवार है? जो नहीं आ सके उनका कोई बड़ा पुण्य कम है दक वे नहीं आ सके ? उन्होंने भी दौड़ने की पूरी कोतिि की है जी जान से। वे नहीं आ सके यह दूसरी बाि है। तजनके पास धन है, तजनके पास धन नहीं है उन दोनों की दौड़ समान है। दोनों धनाकांक्षी हैं--धनाढय भी, धनहीन भी--दोनों धनाकांक्षी हैं। धनाकांक्षा का यह जो समाज है वह तजम्मेवार है। धनपति तजम्मेवार नहीं है पूंजीवाद के तलए, पूंजीवाद तजम्मेवार है धनपति को पैदा करने के तलए। हमारी जो जचंिना है पूंजी को संगृहीि करने की, हमारा जो तवचार है दक पूंजी को उपलब्ध कर लेना, पूंजी का मातलक हो जाना, पूंजी पर कब्जा कर लेना, श्रेयस्कर है जीवन में। यह जो हमारी पूरी व्यवस्था है... दिर जो आदमी पूंजी को उपलब्ध कर लेिा है, उसे हम दे िे हैं सम्मान। बड़े मजे की बाि है, दटरद्र भी उसे सम्मान दे िा है जो पूंजी उपलब्ध कर लेिा है। दटरद्र भी हाथ बंटा रहा है पूंजी के सम्मान में। दटरद्र पूरा आदर दे िा है उसे जो जीि जािा है। दटरद्र खुद उसे अपमातनि करिा है जो उससे दटरद्र है। वह उसको स्वीकार नहीं करिा। सम्राट सम्राटों से तमलिे हैं, पूंजीपति पूंजीपतियों से तमलिे हैं, चमार चमारों से तमलिे हैं। चमार भी भंगी से तमलना पसंद नहीं करिे। वह नीचे उनका और भी ज्यादा दटरद्र है। उससे तमलने को वह भी राजी नहीं है। वे उसके साथ भी चाहिे हैं दक रास्िे पर नमस्कार वह उन्हें करे । पूरे समाज की मनोवृतत्त धनाकांक्षी है, पूरे समाज का तचत्त पूंजीवादी है। गरीब का भी, तभखमंगे का भी, सम्राट का भी, धनपति का भी, इसमें धनपति को तजम्मा दे ने की जरूरि नहीं है। हम सब तजम्मेवार हैं, हम इकट्ठे तजम्मेवार हैं। तनकृ ििम, दटरद्रिम और श्रेष्ठिम और धनवान, हम सब इकट्ठे तजम्मेवार हैं इस समाज को तनर्मि करने में। और इसतलए यह बाि गलि है दक कोई कहे दक पूंजीपति तजम्मेवार है। पूंजीपति भी उसी व्यवस्था की पैदावार है, तजस व्यवस्था की पैदावार गरीब है। वे दोनों एक ही व्यवस्था से उत्पन्न हुए। और गरीब भी पूंजीवाद को जमाए रखने में उिना ही सहयोगी है तजिना अमीर। पूंजीवाद तजस ददन जाएगा उस ददन अमीरी ही नहीं जाएगी, गरीबी भी चली जाएगी। पूंजीवाद के जाने के साथ ही गरीब-अमीर दोनों चले जाएंगे। वे दोनों पूंजीवाद के तहस्से हैं। उसमें गरीब उिना ही तजम्मेवार है। यह हमें कभी-कभी ददखाई नहीं पड़िा है। हमें यह ददखाई पड़िा है दक एक िाकिवर आदमी एक कमजोर आदमी की छािी पर पैर रख कर खड़ा हो गया है, िो हम कहिे हैं, यह िाकिवर आदमी बुराई कर रहा है। लेदकन हम नहीं जानिे दक कमजोर आदमी बुराई क्यों करने दे रहा है? दोनों तजम्मेवार हैं। वह कमजोर है, और वह सहने को राजी है दकसी को छािी पर। िो छािी पर पैर रखने वाला तजिना तजम्मेवार है इस कृ त्य में, 51



छािी पर तजसने पैर रखने ददया है, वह भी उिना ही तजम्मेवार है। कमजोर हमेिा से उिने ही तजम्मेवार हैं तजिने िाकिवर। कायर हमेिा से उिने ही तजम्मेवार हैं तजिने बहादुर। हम कहिे हैं दक हमारे ऊपर मुसलमान आए और उन्होंने हमें गुलाम बना तलया, मुसलमान तजम्मेवार है। और आप तजम्मेवार नहीं हैं जो गुलाम बने? गुलाम उिना ही तजम्मेवार है तजिना गुलाम बनाने वाला। और जब िक गुलाम ऐसा सोचिा है दक गुलाम बनाने वाले तजम्मेवार हैं, िब िक वह तबल्कु ल गलि बाि सोचिा है। गुलामी दोनों के हाथ के जोड़ का पटरणाम है। गुलाम बनाने वाले का और गुलाम बनने वाले का। और जब िक दुतनया में गुलाम बनने को लोग मौजूद हैं िब िक गुलाम बनाने वाले लोग भी हमेिा मौजूद रहेंगे। यह तजम्मेदारी दोनों िरि है। तियां कहिी हैं दक पुरुषों ने हमें दबा तलया है, लेदकन तियों को जानना चातहए दक वे दबने को िैयार हैं और इसतलए पुरुषों ने दबा तलया है, अन्यथा कौन दकसको दबा सकिा है। कोई दकसी को नहीं दबा सकिा। लेदकन हम हमेिा यह दे खिे हैं दक दूसरा तजम्मेवार है। अंग्रेज तजम्मेवार है, हमको गुलाम बना तलया। और िुम चालीस करोड़ नपुंसक क्या करिे थे दक अंग्रेज िुम्हें गुलाम बना सके ? हम कम से कम मर िो सकिे थे--अगर और कु छ नहीं कर सकिे थे। मुदों को िो गुलाम नहीं बनाया जा सकिा था? कम से कम आतखरी रूप में एक िाकि िो आदमी के हाथ में है दक वह मर सकिा है, एक च्वाइस िो कम से कम हाथ में है हर आदमी के दक वह आत्महत्या कर सकिा है। मैंने सुना है दक जमनी ने हालैंड पर हमला करने का तवचार दकया। हालैंड िो बहुि समृद्ध मुल्क नहीं है और हालैंड के पास बहुि सुसतज्जि सेनाएं भी नहीं हैं। हालैंड के पास बड़ी िति भी नहीं हैं। जमनी से जीिने का िो कोई उपाय भी नहीं है उसके पास। लेदकन हालैंड ने िय दकया दक चाहे हम मर जाएंगे, लेदकन हम गुलाम नहीं बनेंगे। पर लोगों ने पूछा दक हम करें गे क्या? कै से गुलाम नहीं बनेंगे? िो हालैंड का आपको पिा होगा, उसकी जमीन नीची है समुद्र की सिह से। समुद्र के चारों िरि दीवालें और परकोटे उठा कर उसको अपनी जमीन को बचाना पड़िा है। िो हालैंड के एक-एक कम्यून ने, एक-एक गांव की कौंतसल ने यह िय दकया दक तजस गांव पर तहटलर का कब्जा हो जाए वह गांव अपनी दीवालें िोड़ दे और समुद्र को गांव के ऊपर आ जाने दे । पूरा गांव डू ब जाएगा, तहटलर की िौजें भी डू ब जाएंगी। हालैंड को हम पूरा डु बा दें गे समुद्र के नीचे, लेदकन इतिहास यह नहीं कह सके गा दक हालैंड गुलाम हुआ। ऐसी कौम को गुलाम बनाना मुतश्कल है। क्या कटरएगा? आतखर गुलाम बनाने के तलए आदमी का जजंदा रहना िो जरूरी है? कमजोर आदमी को भी मरने का हक िो है। कमजोर आदमी भी मरना नहीं चाहिा, इसतलए गुलाम बनने को राजी होिा है और गुलामी में उसका हाथ है। कोई अपने को बचा नहीं सकिा। यह जो पूंजी की व्यवस्था है, यह जो िोषण की व्यवस्था है, इसमें गरीब आदमी का हाथ उिना ही है तजिना अमीर आदमी का हाथ है। इसमें तभखमंगों का हाथ उिना ही है तजिना िहंिाहों का हाथ। यह िो दोनों के जोड़ का िल है। इसतलए मैं नहीं कहिा दक पूंजीपति का हाथ है। मैं कहिा हं, हम सबका हाथ है। और जब िक हम यह न समझेंगे दक हम सबका हाथ है, िब िक हम इस िोषण की व्यवस्था को नहीं बदल सकें गे। अगर पूंजीपति का हाथ है िो दकसी पूंजीपति को गोली मार दो, िो कोई िक पड़ेगा? दूसरा पूंजीपति पैदा हो जाएगा; क्योंदक व्यवस्था काम कर रही है। दकसी पूंजीपति को समझा-बुझा कर उसकी संपतत्त बंटवा दो, िो कोई िक पड़ेगा? संपतत्त बंट जाएगी, दूसरा पूंजीपति खड़ा हो जाएगा, क्योंदक व्यवस्था काम कर रही है। व्यवस्था काम कर रही है, तसस्टम काम कर रही है, उस तसस्टम से सारी चीजें पैदा हो रही हैं, उस व्यवस्था से पैदा हो रही हैं। 52



इसतलए जो समाजवादी पूंजीपतियों के प्रति घृणा िै लािे हैं, वे गलि काम करिे हैं। वह काम ठीक नहीं है। समाजवाद पूंजीपति के प्रति घृणा नहीं है। समाजवाद पूंजीपति, दटरद्र, धनवान सबको तमटाने का उपाय है। समाजवाद पूंजीवाद के तवरोध में है, पूंजीपति के तवरोध में नहीं है। पूंजीपति के तवरोध से कु छ प्रयोजन नहीं है। प्रयोजन है पूंजीवाद से, वह जो कै तपटतलज्म है, वह जो हमारी पूंजी के प्रति तनष्ठा है, वह जो हम पूंजी को मनुष्य से ज्यादा मूल्य दे िे हैं, वह जो हम पूंजी को जीवन का परमात्मा बनाए हुए हैं, वह जो हम पूंजी के तलए ही जीिे और मरिे हैं--गरीब भी, अमीर भी, यह जो पूंजी का सारा का सारा इं िजाम है--इस पूंजी के कें द्र को िोड़ दे ना समाजवाद है। समाजवाद गरीब की लड़ाई नहीं है पूंजीपति के तखलाि। समाजवाद पूंजीपति की, गरीब की, सबकी लड़ाई है पूंजी के तखलाि; यह समझ लेना जरूरी है और तजस ददन हम यह समझ सकें गे की पूंजीवाद के तखलाि हमारी लड़ाई है, पूंजीपति के तखलाि नहीं, िो पूंजीपति भी इस लड़ाई में साथी और सहयोगी होगा। समाजवाददयों की इस गलि धारणा ने दक हम पूंजीपति के तखलाि लड़ रहे हैं, समाज को अजीब हालि में पैदा कर ददया है। उन्होंने एक ऐसी हालि पैदा कर दी दक लड़ाई पूंजीपति के तखलाि है। िो पूंजीपति समाजवाद का नाम सुन कर ही भयभीि होिा है। वह सुनिा है दक समाजवाद, यानी मेरी दुश्मनी। समाजवाद पूंजीपति की दुश्मनी नहीं है। समाजवाद गरीब से गरीबी छीन लेगा, अमीर से अमीरी छीन लेगा। और गरीब भी ठीक अथों में नारायण नहीं हो पािा, अमीर भी ठीक अथों में नारायण नहीं हो पािा। अमीरनारायण भी िकलीि में रहिा है पूंजी की, गरीबनारायण िकलीि में रहिा है गरीबी की। तजस ददन हम गरीब की गरीबी छीन लेंगे, अमीर की अमीरी छीन लेंगे, उस ददन हम प्रत्येक मनुष्य को मनुष्य होने का पूरा हक दें गे, उस ददन मनुष्यनारायण का जन्म होगा। न िो समृद्धनारायण की पूजा जरूरि है, न दटरद्रनारायण की पूजा की जरूरि है। पूजा की जरूरि है नारायण की। और नारायण प्रकट नहीं हो पा रहा है, क्योंदक पूजा पूंजी की चल रही है, नारायण की पूजा कै से हो सकिी है? इसतलए मैंने कहा दक मैं उस िब्द को पसंद नहीं करिा हं। कु छ एक तमत्रों ने यह पूछा है दक समाजवाद की, समानिा की मैं जो बाि करिा हं, क्या उसका यह अथ है दक सबकी संपतत्त तबल्कु ल समान कर दी जाए? क्या उसका अथ है दक सबको िनख्वाहें तबल्कु ल बराबर दे दी जाएं? क्या उसका अथ है दक प्रत्येक आदमी को एक सा मकान दे ददया जाए? नहीं, उसका यह अथ नहीं है। उसका यह अथ है दक प्रत्येक आदमी को जीवन में तवकास का समान अवसर दे ददया जाए। अभी हम पूंजी के इिने प्रभाव में हैं दक जब भी हम समानिा की बाि सोचिे हैं, िो ित्काल हमारे सामने जो पहला सवाल उठिा है वह यह है दक बराबर नौकरी, बराबर िनख्वाह, बराबर मकान। यह पूंजी का प्रभाव है दक ित्काल हमें पूंजी को समान करने का ध्यान आिा है, क्योंदक हम पूंजी से प्रभातवि हैं, हम पूंजी के अतिटरि कु छ सोच ही नहीं सकिे। हमें मनुष्य का सवाल ही नहीं है, सवाल पूंजी का है। हजारों साल से पूंजी की धारणा के नीचे जीने से, जब भी समाजवाद की दृति उठिी है, िो हम समझिे हैं पूंजी। नहीं, सवाल मूलिाः यह नहीं है दक सब आदतमयों को बराबर-बराबर िनख्वाह तमल जाए। िनख्वाह का मूल्य नहीं है, मूल्य इस बाि का है दक प्रत्येक व्यति को जीवन का समान अवसर तमल जाए। अब एक घर में एक आदमी मोटा है और एक आदमी दुबला है, िो समान रोटी तखलाने से बड़ी झंझट पैदा हो जाएगी। दक 53



समाजवाद का मिलब यह नहीं है दक सब लोगों को बराबर रोटी खानी पड़ेगी। अब एक मोटा आदमी है, उसकी कम रोटी में जान तनकल जाएगी और पिले आदमी को ज्यादा रोटी तखलाने से जान तनकल जाएगी। यह मिलब नहीं है। लेदकन प्रत्येक आदमी को जीवन का समान अवसर उपलब्ध हो सके , जीवन के तवकास का, परमात्मा िक पहुंचने का, संगीि िक, सत्य िक, धम िक, जीवन की सुतवधा का समान अवसर तमल सके । और तजिने दूर िक यह संभव हो सके , तजिने दूर िक यह उतचि हो सके , उिने दूर िक वगों का िासला तनरं िर कम से कम होिा चला जाए। अब जहंदुस्िान में एक आदमी एक रुपया कमा नहीं पा रहा है रोज और दूसरा आदमी रोज पांच लाख रुपये कमा रहा हो। यह िासला! यह घबड़ाने वाला िासला है। यह अमानवीय है, इनह्यूमन है। और हम कहिे हैं दक हम धार्मक लोग हैं! धार्मक लोग हम होिे, िो इिने अमानवीय, इिने अधार्मक िासले सह सकिे थे? लेदकन हमारा धम इसमें है दक हम माला िे रिे हैं, वह हमारा धम है। अभी एक बहन ने मुझे आकर कहा दक, दकसी धार्मक को वह साथ में लाई होगी, उन्होंने कहा, अरे , ये िो ब्रह्म की कोई बाि ही नहीं कर रहे हैं, ये िो सब संसार की ही बािें कर रहे हैं। ब्रह्म की बािों को लोग समझिे हैं धार्मक हो गए। ब्रह्म की बाि कर ली िो धार्मक हो गए। धार्मक ब्रह्म की बाि करने से कोई नहीं होिा, धार्मक होिा है इस जगि में ब्रह्म को उिारने की संभावना बढ़ाने से। इस जगि में ब्रह्म अविटरि हो। ब्रह्म की बकवास िो ग्रंथों में बहुि तलखी है, पटरभाषा बहुि तलखी है और कोई भी मूढ़जन याद कर सकिा है दक ब्रह्म सत्य है और जगि तमथ्या है। इसको याद करने में कोई बहुि बुतद्धमानी की जरूरि नहीं है। लेदकन ब्रह्म सत्य हो कहां पाया है। जगि ही सत्य बना हुआ है। ब्रह्म िो तबल्कु ल असत्य है। ब्रह्म सत्य हो सकिा है, जब हम इस जगि में ब्रह्म के तवकास की अतधकिम सुतवधा और समान सुतवधा जुटा सकें गे िो ब्रह्म प्रकट हो सकिा है। िो ब्रह्म सत्य होगा और जगि तमथ्या होगा। बुद्ध के तलए, महावीर के तलए ब्रह्म सत्य हो गया, जगि तमथ्या हो गया। लेदकन हमारे तलए? हमारे तलए रोटी सत्य है और ब्रह्म तमथ्या है। हमारे तलए िरीर सत्य है और आत्मा तमथ्या है। सूत्र रटने से कु छ भी नहीं होगा, बतल्क हम सूत्र रटिे ही इसतलए हैं, तजस आदमी को यह पिा चल चुका हो दक ब्रह्म सत्य है और जगि तमथ्या है, वह रोज सुबह बैठ कर, आंख बंद करके यह कहेगा दक ब्रह्म सत्य जगि तमथ्या, ब्रह्म सत्य जगि तमथ्या? पिा चल गया हो, िो पागल हो गए हो, उसको कहने की जरूरि? एक पुरुष एक कोने में बैठ कर कहे दक मैं पुरुष हं, मैं पुरुष हं, िो सबको िक हो जाएगा दक यह आदमी पुरुष नहीं है। क्या बाि का सबूि है! िुम पुरुष हो यह िुम्हें पिा है, बाि खत्म हो गई। अब इसको रोज-रोज दोहराने की और सत्संग करने की जरूरि नहीं रही समझने जाने के तलए दक मैं पुरुष हं या नहीं। जब िक संदेह है िब िक इस िरह की बािों की पुनरुति है। जो लोग सुबह बैठ कर दोहरािे हैं ब्रह्म सत्य जगि तमथ्या, उनको जगि सत्य ददखाई पड़िा है, ब्रह्म तमथ्या ददखाई पड़िा है। इस तस्थति को उलटाने के तलए बेचारे जोर-जोर से रट रहे हैं दक नहीं-नहीं जगि असत्य है, ब्रह्म सत्य है। जो उन्हें ददखाई पड़ रहा है उसको तमटा डालने के तलए, पोंछ डालने के तलए, उलटा कर लेने के तलए ये सारी बािें कर रहे हैं। इन बािों से ब्रह्मज्ञान का कोई संबंध नहीं है। ब्रह्मज्ञान का संबंध ब्रह्म की चचा से नहीं, इस जगि में ब्रह्म की कै से अविारणा हो, कै से तडसेंड हो सके वह जो तडवाइन है, वह जो ददव्य है, वह कै से इस पृथ्वी पर आ सके , अतधकिम प्राणों में कै से आकर वह स्पि कर सके , अतधकिम प्राणों में कै से उसका संगीि गूंज सके । लेदकन तजन प्राणों को िरीर से ही मुि होने का उपाय न तमलिा हो, उन प्राणों में ब्रह्म के अविरण की संभावना कहां? 54



इसतलए मैं कहिा हं दक समाजवाद आने पर जगि में ब्रह्मवाद आने के द्वार खुल जाएंगे। अब िक दुतनया में व्यति हो सके हैं ब्रह्मवादी, समाज नहीं हो सका। अरबों-खरबों व्यतियों में अगर एकाध व्यति ब्रह्मवादी हो जािा है, इसका मूल्य दकिना हो सकिा है? अगर हम इतिहास उठा कर दे खें दस हजार वष का, िो हम दसपच्चीस नाम तगना सकें गे मुतश्कल से दक ये ब्रह्मवादी हैं। दकिने अरबों लोग पैदा हुए, दकिने अरबों लोग मरे , दकिने अरबों लोग जीए, दकिने अरबों लोग समाप्त हुए, वे सब कहां गए? वे ब्रह्मवादी नहीं हो पाए? दस-पांच लोग ब्रह्मवादी हुए! यह सिलिा की बाि है? एक माली एक करोड़ पौधे लगाए और एक पौधे में िू ल आ जाए, िो हम माली की प्रिंसा करें गे? हम कहेंगे दक धन्य हो माली, बड़े कु िल हो, बड़े कारीगर हो, बड़े महान हो। माली के कारण नहीं आए, इं स्पाइट ऑि, उसके बावजूद आ गए होंगे। करोड़-करोड़ लोग पैदा हों और एक आदमी िंकर हो जाए, करोड़-करोड़ लोग पैदा हों और एक आदमी जीसस हो जाए, यह कथा कोई सौभाग्यपूण है? नहीं, होना उलटा चातहए। करोड़-करोड़ लोग पैदा हों, कभी एकाध आदमी अधार्मक हो पाए, िो हम समझेंगे दक पृथ्वी ब्रह्म की िरि जा रही है। लेदकन हम अपने दे ि में यह भ्म तलए हुए बैठे हैं दक हम सब धार्मक लोग हैं। धार्मक लोग हैं और इिने िासले हैं जीवन में! नहीं मैं यह कहिा हं दक सारे िासले आज टू ट सकिे हैं। लेदकन, लंबे अथों में, आदि की भांति एक ददन सारे िासले भी टू ट सकिे हैं। लेदकन आज िासले हम तजिने कम कर सकें , सुतवधा और अवसर को तजिना बांट सकें उिना मनुष्यिा का पुनरुत्थान होगा, उिनी मनुष्यिा परमात्मा की और उठ सकिी है। इसतलए जो बािें मैं कर रहा हं, कोई भूल कर यह न समझे दक मैं संसार की बािें कर रहा हं। संसार की बाि करने की मुझे सुतवधा नहीं है, िु सि नहीं है। मैं जो बाि कर रहा हं वह धम की ही बाि कर रहा हं, मैं जो बाि कर रहा हं वह ब्रह्मज्ञान की ही बाि कर रहा हं, कोई संसार की बाि मुझे करने की रुतच नहीं है। और जो संसार है ही नहीं उसकी बाि की भी कै से जा सकिी है? ब्रह्म ही है, उसी की बाि की जा सकिी है। और ब्रह्म बड़ी मुतश्कल में पड़ा है और पूंजीवाद ने ब्रह्म को बहुि झंझट में डाला हुआ है। इस पूंजीवाद से ब्रह्म का छु टकारा होना जरूरी है। यह जो हमारी दृति अगर रहे दक नहीं-नहीं, संसार असार है, उसकी बाि नहीं करनी है। यह बाि पूंजीवाद के बहुि पक्ष में है। पूंजीवाद चाहिा है दक साधु-संि यही समझािे रहे दक संसार असार है, संसार असार है, इसमें कु छ भी मिलब नहीं है। गरीबी? अरे सह लो, इसमें कु छ सार नहीं है, गरीबी-अमीरी सब बराबर है। भूख सह लो, अकाल सह लो, दटरद्रिा सह लो, संिोष रखो, सांत्वना रखो, यह सब सपना है। पूंजीवाद पसंद करिा है दक ये बािें, यह जहर, यह पाय.जन लोगों के ददमाग में डाला जािा रहे दक यह सब िो असार है, इसकी दिकर ही मि करो। एक आदमी आपको लूट रहा है और एक ज्ञानी आपको समझा रहा है दक घबड़ाओ मि; लूटिे रहो, यह सब असार है। लेदकन वह लूटने वाला तबल्कु ल नहीं सुनिा, वह लूटिा चला जािा है, उसे असार से कोई िक नहीं पड़िा। यह लुटने वाला सुन लेिा है दक असार है और खड़ा रह जािा है। यह लुटिा है। वह लूटने वाला प्रसन्न होिा है। लूट में से थोड़ा तहस्सा वह ज्ञानी को भी दे िा है। क्योंदक वह जानिा है। यह आपको पिा है? वह लूट में से थोड़ा तहस्सा उसको दे िा है। सारे पंतडि, सारे ज्ञानी, सारे साधु-संन्यासी उस लूट में तहस्सेदार होिे हैं और उस तहस्से में होने की वजह से वे बेचारे तनरं िर यह कहिे रहिे हैं--सब असार है, सब असार है, कोई सार नहीं है, यह सब माया है, यह सब 55



सपना है, यह सब सपना है। यह सपना है जो चारों िरि चल रहा है? और अगर यह सपना है, िो ज्ञानी छोड़ कर क्या भागिा है? अगर पत्नी सपना है, िो पत्नी से भागने की जरूरि? और धन अगर सपना है, िो धन से भागने की जरूरि? और अगर जीवन सपना है, िो त्याग दकसका करिे हो? सपनों के त्याग दकए जा सकिे हैं? नहीं, लेदकन छोड़ने और भागने के तलए ज्ञानी मानिा है दक सपना नहीं है। लेदकन यह जो चल रही है समाज की व्यवस्था, यह जो समाज की सनािन व्यवस्था चल रही है यह न बदल जाए, इसके बदलने की बाि करो, वह कहेगा, कहां संसार की और माया की बाि करिे हैं। उसे पिा नहीं दक माया और संसार को उसकी बािें सुरक्षा दे रही हैं। इस माया और संसार को िोड़ा जा सकिा है, इस पृथ्वी को परमात्मा की खोज का एक अपूव अवसर बनाया जा सकिा है। लेदकन आज िक मनुष्य ने जो समाज तनर्मि दकया है उस समाज में अतधकिम लोगों की जीवन-ऊजा रोटी जुटाने में, िरीर की व्यवस्था करने में ही नि हो जािी है, वह कभी भी इसके ऊपर नहीं उठ पािी है, इसके तबयांड, इसके अिीि नहीं जा पािी। एक ऐसा समाज चातहए संपतत्तिाली, एक ऐसा समाज चातहए समृतद्धिाली, एक ऐसा समाज चातहए समान अवसर वाला, एक ऐसा समाज चातहए जहां पूंजी कें द्र न हो, परमात्मा कें द्र हो, जहां हम जीवन को जीएं तसि इसतलए दक जीवन और ऊपर जा सके । एक वैसा समाज तजस ददन दुतनया में होगा, उस ददन धम का जन्म होगा, उस ददन ब्रह्म हमारे तनकट आ सके गा। अभी िरीर के अतिटरि, पदाथ के अतिटरि हमारे तनकट कु छ भी नहीं है। एक अंतिम प्रश्न, दिर मैं अपनी बाि पूरी करूं। एक बहन ने पूछा हैाः बहुि ही मजेदार बाि पूछी है, उन्होंने पूछा है दक तितवरों में, अभी अखबारों ने कु छ िोटो छाप ददए, एक बहन मेरे गले से आकर लगी हुई है, अखबारों ने िोटो छाप ददया। उन्होंने वह िोटो दे ख तलया होगा। िो उन्होंने मुझसे पूछा है दक तितवर में आप तियों के साथ बड़ा दुव्यवहार करिे हैं। गांधी जी ने िो ऐसा दुव्यवहार कभी भी नहीं दकया। अगर तियों के साथ प्रेमपूण व्यवहार करना दुव्यवहार है, िो मैं जरूर दुव्यवहार करिा हं। अब िक साधु-संि तियों के साथ घृणा का व्यवहार करिे रहे हैं, इसतलए वही सदव्यवहार हमें मालूम होने लगा है। साधु-संिों ने आज िक िी को मनुष्य होने की हैतसयि नहीं दी है। साधु-संिों ने उसे नरक का द्वार समझा है, साधु-संिों ने उसे कीड़े-मकोड़ों से बदिर बिाया है। साधु-संिों ने उसे सांप-तबच्छु ओं से खिरनाक समझाया है। साधु-संिों का अगर वह पैर भी छू ले, िो साधु-संि अपतवत्र हो जािे हैं और उन्हें उपवास करके पश्चात्ताप करना पड़िा है। और ये साधु-संि िी से ही पैदा होिे हैं। इनकी सारी दे ह िी से ही तनर्मि होिी है। इनका खून िी का, इनकी हड्डी िी की, इनके जीवन की सारी ऊजा िी से आिी है और वही िी नरक का द्वार हो जािी है! मनुष्य-जाति जब िक तियों के साथ ऐसा असम्मानपूण और ऐसा मूढ़िापूण व्यवहार करे गी, िब िक मनुष्य-जाति के जीवन में कोई ऊध्वगमन नहीं हो सकिा है। िी के साथ दुव्यवहार अब िक रहा है और उस दुव्यवहार का कारण? उस दुव्यवहार का कारण िी की कोई खराबी नहीं है। क्योंदक तजन बािों के कारण िी को आप दोष दे िे हैं, आप उन बािों में िी के सहयोगी नहीं हैं? यह बड़े मजे की बाि है! पुरुष नरक का द्वार नहीं है? िी अके ली दुतनया में कामवासना ले आिी है, पुरुष नहीं? सच्चाई उलटी है। िी इिनी कामुक कभी भी 56



नहीं है, तजिने पुरुष कामुक हैं। और िी की कामवासना को अगर न जगाया जाए, िो िी कामवासना के तलए बहुि आिुर भी नहीं होिी। और सारी तियां जानिी हैं दक कामवासना में कौन उन्हें रोज घसीटिा है--उनका पति या वे स्वयं! कौन उन्हें घसीटिा है? पुरुष चौबीस घंटे सेक्सुअल है। प्रतिददन सेक्सुअल है, लेदकन दोष है िी का। वह उन्हें नरक ले जािी है। यह भी ध्यान रखना जरूरी है दक िी िो पुरुष पर कोई बलात्कार नहीं कर सकिी है, िी िो पैतसव है, िी िो तनतष्क्रय है, वह कोई हमला िो कर नहीं सकिी पुरुष पर। पुरुष हमला कर सकिा है। जो तनतष्क्रय है उसको नरक का द्वार कहिा है और जो सदक्रय है वासना में, अपने को िायद स्वग का द्वार समझिा होगा। िी को दी गईं ये गातलयां, यह अपमान, ये अिोभन िब्द अब िक सदव्यवहार समझे गए हैं। और तियां इिनी मूढ़ हैं दक पुरुष की इन मूखिापूण बािों में सहयोगी रहीं और उन्होंने साथ ददया है। उन्होंने कोई इनकार नहीं दकया, उन्होंने कोई बगावि नहीं की, उन्होंने कोई तवद्रोह नहीं दकया। उन्होंने नहीं कहा दक यह िुम क्या कह रहे हो। उसे सह तलया उन्होंने चुपचाप। उसको उन्होंने मान तलया है चुपचाप। क्योंदक उनका न कोई अपना गुरु है, न उनका अपना कोई िास्ि्र है, न उनका अपना कोई धम है। वे सब पुरुषों के तनर्मि हैं, वे पुरुषों के पक्ष में तलखे गए हैं। वे पुरुषों ने तलखे हैं, अपने पक्ष में तलखे हैं। पुरुषों ने अपने ग्रंथों में तलख तलया है दक अगर पति मर जाए िो िी को सिी होना चातहए, लेदकन दकसी पति को भी कभी सिी होना चातहए, यह बाि उन्होंने नहीं तलखी। स्वभाविाः वगीय दृतिकोण है, वह पुरुष का अपना दृतिकोण है। वैसा उसने तलख तलया है। साधु और संन्यासी िी के प्रति क्यों इिना दुव्यवहारपूण रहा है? उसका एकमात्र मनोवैज्ञातनक कारण यह है दक साधु और संन्यासी को, भीिर उसकी कामना की िी बहुि पीतड़ि और परे िान करिी है। उसके भीिर िी घूमिी है। वह बेचारा परमात्मा को बुलाना चाहिा है। जब भी परमात्मा को बुलािा है िभी पत्नी आ जािी है। वह जब भी राम-राम, राम-राम जपिा है िभी भीिर काम-काम, कामवासना-कामवासना चलिी है। वह घबड़ाया हुआ है भीिर की िी से। वह उस भीिर की िी से परे िान है, उसके बदले में वह िी को गाली दे िा है, उसके बदले में बाहर की िी से भयभीि होिा है दक बाहर की िी ने अगर हाथ छू ददया, िो मरे , जान तनकल गई, क्योंदक भीिर जो िी बैठी है वह जग जाएगी, वह खड़ी हो जाएगी। बाहर की िी के हाथ में ऐसा क्या है तजसे छू दे ने से दकसी संन्यासी में कु छ अपतवत्र हो जाएगा? और संन्यासी के िरीर में ऐसा कु छ क्या है जो िी के िरीर से ज्यादा पतवत्र है और छू ने से अपतवत्र हो सकिा है? िरीर में क्या है? इिना भय क्या है? इिना भय िी का भय नहीं, अपने भीिर तछपी हुई सेक्सुअतलटी का, कामवासना का भय है। इसतलए संन्यासी भागिा रहा है, घबड़ािा रहा है, दूर-दूर भागिा रहा है। िी छू ले िो पाप, िी छू ले िो अपतवत्रिा। और इसको बाकी पुरुष बहुि आदर दे िे रहे हैं क्योंदक बाकी पुरुषों का मन िी को छू ने के तलए लालातयि है। वे दे खिे हैं दक एक आदमी िी को नहीं छू िा है, दूर-दूर भागिा है, वे कहिे हैंूाः है महापुरुष, है िपस्वी, क्योंदक हमारा िो मन नहीं मानिा तबना छु ए हुए। हमारा मन होिा है दक छु एं-छु एं-छु एं। दकसी िरह रोकिे हैं, संस्कार, तििाचार, सब िरह से अपने को सम्हालिे हैं, लेदकन मौका तमल जाए, भीड़ तमल जाए, मंददर हो, मतस्जद हो, तगरजा हो, िो थोड़ा-बहुि धक्का दे ही दे िे हैं, वह दूसरी बाि है। लेदकन सामने तििाचार रखिे हैं, दूर-दूर बच कर चलिे हैं।



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इिना बच कर चलना सबूि दकस बाि का है? इिना बच कर चलना छू ने की इच्छा का सबूि है और दकसी बाि का सबूि नहीं है। इिनी घबड़ाहट, सबूि दकस बाि का है? िो बाकी पुरुष दे खिा है दक यह है संन्यासी, यह महाराज। ये िी को छू ने नहीं दे िे, दूर से ही तचल्लािे हैं, दूर-दूर, दूर-दूर, दस कदम दूर रहना। अभी मैंने सुना दक एक महाराज को यहां बंबई में दकसी िी ने छू ददया, िो उन्होंने िीन ददन का उपवास दकया। और उससे उनकी इज्जि बहुि बढ़ी। क्योंदक कामवासना से भरे हुए समाज में ऐसे ही लोगों की इज्जि हो सकिी है। कामवासना से भरे हुए समाज में ऐसे ही लोगों की इज्जि हो सकिी है। क्योंदक हम कामवासना से भरे हैं, हमें लगिा है दकिना महान त्याग दकया दक एक िी ने छु आ और उन्होंने इनकार कर ददया दक नहीं छू ने दें गे। यह हमारी सेक्सुअल मेंटेतलटी का सबूि है। और इसको अगर सदव्यवहार समझिे हैं, िो मैं तियों के साथ ऐसा सदव्यवहार करने से इनकार करिा हं। लेदकन बड़े मजे की बाि है, बड़ी आश्चय की दक एक बहन ने पूछा है, दकसी पुरुष ने पूछा होिा िो मेरी समझ में आ सकिा था। यह बहन बड़ी मदानी होगी। इसकी बुतद्ध पुरुषों से तनर्मि होगी। वह कैं प में जो बहन मेरे आकर हृदय से लग गई, उस क्षण में उसकी प्राथना, उसका प्रेम, उसका आनंद, उसकी पतवत्रिा अदभुि थी, अन्यथा हजार लोगों के सामने वह मेरे हृदय से आकर जुड़ जाने की तहम्मि भी नहीं कर सकिी थी। उसका पति बगल में खड़ा था, वह घबड़ािा रहा। अभी उनके पति मुझे तमले और कहने लगे, मैंने इससे पूछा दक पागल िूने यह क्या दकया? उसने कहा दक मुझे िो पिा ही नहीं था। यह िो जब मैं अलग हट गई िब मुझे खयाल आया दक लोग क्या सोचेंगे, लेदकन उस क्षण में मुझे सोच-तवचार भी न था। उस क्षण मुझे लगा दक कोई दूर की पुकार मुझे खींच रही है और मैं पास चली गई। उसी िी को मैं धक्का दे दूं इस खयाल से दक कोई अखबार का टरपोटर िोटो न उिार ले। उसे कह दूं दक नहीं दूर। उसे दूर कह कर मैं तसि इिना तसद्ध करूंगा दक मेरे भीिर भी वासना उद्दाम वेग से खड़ी है, अन्यथा भय क्या है? अन्यथा डर क्या है? अन्यथा जचंिा क्या है? वह िी कहीं कोई एकांि अंधेरे कोने में मुझसे गले आकर नहीं तमली थी। हजार लोग चारों िरि खड़े थे, वहां िोटो उिारी जा रही थी। मुझमें भी थोड़ी बुतद्ध िो है। लेदकन इस तनबुतद्ध समाज के सामने ऐसा लगिा है दक चाहे कु छ भी सहना पड़े, जो ठीक है, जो सही है--चाहे अनादर सहना पड़े, चाहे अपमान सहना पड़े--जो ठीक है, सही है वही करना है, वही दकए चले जाना है। मुझे नहीं लगिा दक कोई पुरुष मेरे पास प्रेम से आकर जब गले तमलिा है िो उसे मैं नहीं रोकिा, िो एक िी को मैं कै से रोक सकिा हं। जब कोई पुरुष को मैं नहीं रोकिा िो िी को कै से रोक सकिा हं। और िी और पुरुष के बीच इिना िासला करने की जरूरि क्या है? प्रयोजन क्या है? क्या हमें िरीर के अतिटरि कभी कु छ ददखाई ही नहीं पड़िा? वह तजस िोटोग्रािर ने तचत्र उिारा होगा और तजस संपादक ने छापा होगा, वह िोटो मेरे और उस िी के बाबि कम, उस िोटोग्रािर और संपादक के संबंध में ज्यादा बिािे हैं। उसकी बुतद्ध वहीं अटकी रही, उस घंटे भर के ध्यान के बाद उसे यही ददखाई पड़ा, इिना ही ददखाई पड़ा! उन बहन ने यह भी पूछा है दक गांधी जी िो ऐसा दुव्यवहार कभी तियों के साथ नहीं करिे थे। िो िायद बहन को गांधी जी का कु छ पिा नहीं। गांधी जी इस दुव्यवहार को िुरू करने वाले महापुरुष हैं। जहंदुस्िान में गांधी ने पहली बार िी को सम्मान ददया है। जहंदुस्िान के महापुरुषों में िी को सम्मान दे ने वाले गांधी के मुकाबले तसवाय महावीर को और कृ ष्ण को छोड़ कर और कोई भी नहीं है। बुद्ध भी नहीं। बुद्ध िक भयभीि हो गए इस बाि से जब तियों ने आकर कहा दक हमें तभक्षुणी बना लो, िो बुद्ध ने कहा दक नहीं-नहीं,



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यह नहीं हो सकिा। बुद्ध भयभीि हो गए इस बाि से दक तियां अगर तभक्षुणी बनेंगी और तभक्षुओं के साथ रहेंगी, िो खिरा है। महावीर ने जरूर कोई जचंिा नहीं की, बाि ही नहीं की, तियों को तभक्षुणी बनाया। और हैरान होंगे जान कर आप दक महावीर के तभक्षु थे के वल बारह हजार और तभक्षुतणयां थीं चालीस हजार। न मालूम दकिने लोगों ने महावीर पर एिराज दकया होगा दक चालीस हजार तियों से तघरा हुआ है यह आदमी। जरूर एिराज दकया होगा, क्योंदक आदमी सदा आप ही जैसे हमेिा से थे। आपसे बदिर। क्राइस्ट पर लोगों ने िक दकया दक मेरी मेग्दलीन नाम की वेश्या इसके चरणों में आकर चरण छू िी है। लोगों ने कहा दक नहीं इस िी को चरण मि छू ने दो। क्राइस्ट ने कहााः लेदकन िी का पाप क्या है दक चरण न छु ए? लोगों ने कहााः िी थी िो भी ठीक, यह वेश्या है। क्राइस्ट ने कहााः वेश्या मेरे पास नहीं आएगी िो कहां जाएगी? और अगर मैं वेश्या को इनकार कर दूंगा, िो दिर वेश्या के तलए उपाय क्या है? माग क्या है? तववेकानंद जहंदुस्िान लौटे, तनवेददिा साथ आ गई, और बस जहंदुस्िान का ददमाग दिर गया। और सारे बंगाल में बदनामी िै ल गई दक यह स्वामी और संन्यासी और यह तनवेददिा कै से साथ? तनवेददिा की पतवत्रिा को, तनवेददिा के प्रेम को दकसी ने भी नहीं दे खा! आज जो सारी दुतनया में तववेकानंद का काम िै ला हुआ ददखाई पड़िा है, उसमें तववेकानंद का हाथ कम तनवेददिा का हाथ ज्यादा है। तनवेददिा भी दं ग रह गई होगी। कै से ओछे लोग थे! कै सी छोटी बुतद्ध थी! इिना ही उन्हें ददखाई पड़ा! तववेकानंद को इिना ही समझ पाए वे तसि! गांधी ने िो बहुि तहम्मि की। तियों को गांधी जहंदुस्िान के घरों से पहली दिे बाहर लाए। तियों को पुरुषों के साथ खड़ा दकया। आपको िायद पिा नहीं होगा, वह मेरी ही िोटो छप गई, ऐसा नहीं, मैंने सुना है दक गांधी की एक िोटो यूरोप और अमरीका में खूब प्रचाटरि की गई थी। एक िोटो िो उनकी वह प्रचाटरि की गई, तजसमें वे अपने ही घर की बतच्चयों की, जो उनकी नािनी-पोितनयां होंगी, उनके कं धों पर हाथ रखे हुए ददखाए गए हैं। वह िोटो प्रचाटरि की गई दक यह गांधी बुढ़ापे में भी छोकटरयों के साथ रास-रं ग करिा है। िायद उन बहन को पिा नहीं होगा दक वह िोटो तजसमें वे लड़दकयों के कं घे पर हाथ रख कर घूमने जािे हैं या प्राथना में जािे हैं। िो यह बिाया गया है दक यह बुड्ढा हो गया, अभी लेदकन इसका लड़दकयों में रस है, लड़दकयों के कं धों पर हाथ रख कर चलिा है। और पूछने वाला पूछ सकिा है दक लड़दकयों के कं धे पर क्यों लड़कों के कं धों पर क्यों नहीं? तबल्कु ल ठीक! लेदकन उसे पिा नहीं दक गांधी को लड़के और लड़दकयों में कोई भी िक नहीं भी हो सकिा है। यह मि सोचना दक वह िोटो मेरा ही छाप ददया, वह िोटो हमेिा से छापने वाले लोग रहे हैं और रहेंगे। अपनी बुतद्ध के अनुकूल ही वे कु छ कर सकिे हैं, उससे ज्यादा करने का उपाय भी िो नहीं है। उन पर नाराज होने का कोई कारण भी िो नहीं है। और िायद उन बहन को पिा नहीं होगा दक गांधी अपनी अंतिम उम्र में, बुढ़ापे में, एक बीस वष की नग्न युविी को लेकर छह महीने िक तबस्िर पर सोिे रहे। िब उनको पिा चलेगा। इिना दुव्यवहार अभी मैंने दकसी िी से नहीं दकया है। छह महीने िक एक नग्न युविी के साथ गांधी तबस्िर पर सोिे रहे। दकसतलए? इस बाि की जांच के तलए दक क्या मन के दकसी कोने-कािर में, मन के दकसी भी अंधकारपूण कोने में िी की कोई वासना िो िेष नहीं रह गई? जो राि में नग्न िी को अके ले में, एकांि में पाकर, तबस्िर पर साथ पाकर जाग आए, िो मैं परीक्षा कर लूं उससे, उससे मुि होने का कोई उपाय कर लूं।



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और उस िी की पतवत्रिा की कल्पना करिे हैं जो छह महीने िक गांधी के साथ नग्न सो सकी। और उसने पीछे कहा दक गांधी के साथ सो कर मुझे छह महीने में ऐसा लगा--गांधी जैसे मेरी मां हैं। जल्दी निीजे लेना ठीक नहीं है। जजंदगी बहुि गहरी है और बहुि समझने को है। जहां हम खड़े हैं जजंदगी वहीं नहीं है, जजंदगी और आगे है। हम तमट्टी के दीये हैं, जजंदगी की ज्योति तमट्टी के दीये से बहुि ऊपर जािी है। तजनको ऊपर की ज्योति नहीं ददखाई पड़िी उन्हें तसि तमट्टी के दीये ददखाई पड़िे हैं। मेरी बािों को इिने प्रेम और िांति से सुना, उसके तलए बहुि अनुगृहीि हं। और अंि में सबके भीिर बैठे परमात्मा को प्रणाम करिा हं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ पांचवां प्रवचन



अिीि के मरघट से मुति मेरे तप्रय आत्मन्! आज ही एक पत्र में मुझे स्वामी आनंद का एक विव्य पढ़ने को तमला। और बहुि आश्चय भी हुआ, बहुि हैरानी भी हुई। स्वामी आनंद से दकसी ने पूछा दक मैं जो कु छ गांधी जी के संबंध में कह रहा हं उसके संबंध में आपके क्या खयाल हैं? स्वामी आनंद ने ित्काल कहााः उस संबंध में मैं कु छ भी नहीं कहना चाहिा हं। तििाचार वि िायद उनके मुंह से ऐसा तनकल गया होगा, क्योंदक यह कहने के बाद वे रुके नहीं और जो कहना था वह कहा। ऊपर से ही कह ददया होगा दक कु छ नहीं कहना चाहिा हं, लेदकन भीिर आग उबल रही होगी वह पीछे से तनकल आई, इससे रुकी नहीं। आश्चय लगा मुझे दक पहले कहिे हैं दक कु छ भी नहीं कहना चाहिा हं और दिर जो कहिे हैं! आदमी ऐसा ही झूठा और प्रवंचक है। िब्दों में कु छ है, भीिर कु छ है। कहिा कु छ है, कहना कु छ और चाहिा है। उन्होंने जो कहा वह और भी हैरानी का है। स्वामी आनंद िो मुझसे भलीभांति पटरतचि हैं। लेदकन, ऐसी जानकारी भी उनकी होगी, यह मुझे पिा नहीं था। उन्होंने कहा दक नहीं कु छ कहना चाहिा हं, और दिर कहा दक अगर एक कौआ मतस्जद पर बैठ कर अपने को मुल्ला समझने लगे, िो इसमें कु छ कहने की बाि नहीं। स्वामी आनंद से मैं पटरतचि हं। लेदकन मुझे इसका पटरचय नहीं था दक उनका कौओं से पटरचय है। कौवे मतस्जद पर बैठ कर क्या सोचिे हैं, स्वामी आनंद दकसी जन्म में कौआ न रहे हों, िो उन्हें पिा लगाना बहुि मुतश्कल है, एकदम कटठन है। जरूर दकसी जन्म में कौआ रहे होंगे, दकसी मतस्जद के ऊपर बैठ कर मुल्ला होने की सोची होगी। अन्यथा कौवे क्या सोचिे हैं, कै से पिा लगा सकिे हैं? कौआ की बुतद्ध मुल्ला होने से ऊपर जा भी नहीं सकिी। कौओं को छोड़ कर िायद ही कोई और मुल्ला होना चाहिा हो। जो मुल्ले हैं वे भी कौवों की बुतद्ध से ज्यादा बुतद्धमान नहीं होिे। और दिर मुल्ला होने का िायद स्वामी आनंद को पिा नहीं दक मुल्ला होना कब संभव होिा है। जब कोई दकसी पंथ को मानिा हो, संप्रदाय को मानिा हो, वाद को मानिा हो, दकसी गुरु को मानिा हो, िो मुल्ला हो सकिा है। न िो मैं दकसी पंथ को मानिा, न दकसी वाद को मानिा, न दकसी गुरु को मानिा, न दकसी संप्रदाय को मानिा। मेरा मुल्ला होना तबल्कु ल मुतश्कल है। लेदकन स्वामी आनंद मुल्ला हैं और कहना चातहए कठमुल्ला हैं। गांधीवाद को एक धम बनाने की कोतिि की जा रही है। गांधीवाद को एक चच बनाने की कोतिि की जा रही है। गांधी स्वयं जजंदगी भर यह तचल्ला कर कहिे रहे दक मेरी मूर्ियां मि बना दे ना, मेरे मंददर मि बना दे ना। लेदकन वह सातजि जारी है, उनकी मूर्ियां बनाई जा रही हैं, उनके मंददर बनाए जा रहे हैं। अभी एक सज्जन ने गांधी-पुराण भी तलख डाला है। और उसमें उन्होंने इस भांति व्यवस्था की है दक जैसे और पुराण हैं, तवष्णु-पुराण, वैसा गांधी को अविार बिाने की कोतिि की है। बहुि िीघ्र गांधी के पास एक धम खड़ा करने की कोतिि चल रही है। स्मरण रहे, जब भी दकसी व्यति के पास धम खड़ा हो जािा है, िो व्यति िो मर जािा है, मुल्लाओं और पंतडिों की बन आिी है। जीसस के पास ईसाई पादरी इकट्ठा है और जीसस की आवाज को दुतनया िक नहीं पहुंचने दे िा। महावीर के पास महावीर के गणधर इकट्ठे हैं और महावीर की आवाज, सच्ची आवाज, सत्य की आवाज दुतनया िक नहीं पहुंचने दे ना चाहिे। जैसे ही दकसी व्यति के आस-पास संगठन बनिा है, संप्रदाय बनिा है, सत्य की हत्या हो जािी है। 61



मैंने सुना है, एक बार एक आदमी को सत्य तमल गया था, िो िैिान के तिष्यों ने, वे जो तडसाइपल्स ऑि डेतवल हैं, उन्होंने भाग कर िैिान को अपने गुरु को खबर दी दक पिा है, िुम आराम से सो रहे हो, एक आदमी को सत्य तमल गया है और हमारी सल्िनि डगमगाई जा रही है। कु छ करना चातहए िीघ्रिा से। क्योंदक अगर आदतमयों को सत्य तमल जाएगा िो िैिान का क्या होगा? िैिान ने कहा दक क्या करोगे, अब सत्य तमल चुका। िुम पहले कहां थे, क्यों मुझे आकर पहले नहीं कहा, हम पहले ही सत्य तमलने में बाधा डालिे। अब िो एक ही रास्िा है, अब िुम जाओ िीघ्रिा से गांव-गांव में और डंडे और घंटी लेकर पीटो, गांव-गांव में यह आवाज दक िलां आदमी को सत्य तमल गया है तजनको भी चातहए हो चलो। िैिान के तिष्यों ने कहााः इससे क्या होगा? िैिान ने कहााः पंतडि और मुल्ले सुन लेंगे यह और जहां भी उन्हें पिा चला दक दकसी आदमी को सत्य तमल गया है, पंतडि और मुल्ले वहां जाकर अड्डा जमा लेिे हैं और एजेंट बन जािे हैं। जनिा और सत्य के बीच में पंतडि से बड़ी दीवाल और कोई भी खड़ी नहीं की जा सकिी है। िुम जाओ और जल्दी गांव-गांव में खबर कर दो। और मैंने सुना है दक िैिान के तिष्य गए और उन्होंने गांव-गांव में खबर कर दी। हजारों लोग वहां से चलने लगे। उस सत्य के खोजी के पास, उसके आस-पास पंतडिों की दीवाल खड़ी हो गई। व्याख्याकारों की, टीकाकारों की। वे कहने लगे, क्या चाहिे हो, हम बिािे हैं। वह आदमी उस भीड़ में दब गया। मंददर बन गया वहां एक उसकी लाि पर। हजारों लोग पूजा करिे हैं उस आदमी की। उसकी दकिाबें हैं। लेदकन उस आदमी को, जो सत्य तमला था, उसकी कोई दकरण दकसी िक अभी िक नहीं पहुंच पाई है। दुतनया में सत्य की हत्या का एक ही उपाय है, सत्य की हत्या करना हो िो िीघ्रिा से संप्रदाय बना दो। संप्रदाय बना कर सत्य की हत्या हो जािी है। मैं िो मुल्ला नहीं हो सकिा, मुतश्कल है, क्योंदक मैं दकसी संप्रदाय को नहीं मानिा हं। लेदकन स्वामी आनंद मुल्ला हो सकिे हैं। गांधी का एक संप्रदाय बनाए हुए हैं। अन्यथा मेरी बािों से इिनी पीड़ा और परे िानी की जरूरि न थी। मेरी बािों का उत्तर दें , मेरी बािों की चचा करें । मैं जो कहिा हं वह गलि हो सकिा है, उसे गलि बिाएं, समझाएं। लेदकन िांति से, इसमें क्रोध की क्या जरूरि है। क्रोध वहां आिा है जहां वेस्टेड इं ट्रेस्ट हो, जहां न्यस्ि कोई स्वाथ हो, िब क्रोध आिा है, अन्यथा क्रोध की क्या जरूरि है? अन्यथा यह तचल्लाने की क्या जरूरि है दक मेरी दकिाबों को आग लगा दो। यह कहने की क्या जरूरि है दक मुझे आने मि दो, सभा मि होने दो। ये सारी बािें सुन कर मुझे दादा धमातधकारी एक घटना सुनािे थे, वह याद आई। वे मुझे कहिे थे, मैं पंजाब में था और पंजाब में सरदारों की एक सभा में बड़ा िोरगुल होिा था। जहां दादा को बोलने बुलाया था। जो अध्यक्ष थे उन्होंने डंडा उठा कर पटका जोर से टेबल पर और कहााः चुप होिे हो दक नहीं, डंडे से तसर िोड़ दूंगा, चुप हो जाओ। वह सभा एकदम चुप हो गई। दिर डंडा बजा कर उन्होंने कहा दक अब सुनो। अब दादा धमातधकारी अजहंसा पर भाषण दें गे। िो दादा मुझसे कहिे थे, मैंने अपनी खोपड़ी ठोक ली और मैंने कहााः क्या खाक भाषण दें गे अजहंसा पर! डंडा बिा कर कहिा है वह आदमी दक चुप हो जाओ, नहीं िो खोपड़ी िोड़ दें गे! और दिर अजहंसा पर भाषण होिा है! बड़ा सही अजहंसावादी रहा होगा। गांधी की आलोचना करके अजहंसावाददयों की असतलयि का मुझे भी पहली दिा पिा चलना िुरू हुआ है दक उनकी असतलयि क्या है! हाथ में उनके भी डंडे हैं और अगर अजहंसा की बाि नहीं मानेंगे आप, िो वे डंडे से आपको अजहंसा की बाि समझाएंगे।



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लेदकन यह दे ि अब बहुि ददन इस िरह के धोखों में नहीं रखा जा सकिा है। बहुि लंबी कथा है इसके धोखों की। बहुि लंबी यात्रा है इसके दुभाग्य की। तवचार के तलए आज िक इस दे ि में पटरपूण स्विंत्रिा नहीं तमली। इसतलए हम जगि में तपछड़ गए हैं और पीछे पड़ गए हैं। जहंदुस्िान ने कभी भी िीव्र तवचार के तलए तनमंत्रण नहीं ददया। कभी भी तवचारपूण तवद्रोह के तलए साहस नहीं ददखाया। नये तवचार से भय ददखाया, घबड़ाहट ददखाई। हमेिा उसने यह मानना चाहा दक जो हमारी पुरानी दकिाब में तलखा हो, वही सही होना चातहए। पुराने ने कु छ सही होने का ठे का ले तलया है! पुराना ही सत्य होना चातहए, जैसे दक सत्य को जानने के तलए आगे कोई पैदा ही नहीं होगा। वे सब लोग पीछे पैदा हो चुके तजन्होंने सत्य जाना। अब आगे? आगे लोग व्यथ पैदा हो रहे हैं, उन्हें कोई अनुभव नहीं होगा, कोई सत्य नहीं होगा। यह हमारी प्रवृतत्त दक सब कु छ पीछे हो चुका--सत्य भी हो चुका, स्वण-युग भी हो चुका, सब िीथंकर, सब महावीर, सब पैगंबर, सब पीछे हो चुके। अब आगे कु छ होने को नहीं है। इस तवचार ने ही दक सब तवचार दकया जा चुका, अब आगे कु छ तवचार करने को नहीं है--भारि ने तवचार की हत्या कर दी। नहीं, बहुि तवचार करने को िेष हैं, बहुि नई खोज होने को िेष हैं, बहुि से सत्यों का उदघाटन होगा, जो नहीं हुआ। बहुि से पदे उठें गे, बहुि से रहस्य उदघाटटि होंगे। जीवन समाप्त नहीं हो गया है, जीवन की यात्रा जारी है। लेदकन अगर कोई कौम ऐसा समझ ले दक सब हो चुका, अब उस पर कोई तवचार नहीं करना, आगे कु छ नया तवचार हो नहीं सकिा, िो उस कौम की अगर प्रतिभा नि हो जाए िो इसमें आश्चय है! भारि के पास अदभुि प्रतिभा थी। आज भी प्रतिभा है सोई हुई। लेदकन उसका नया अविरण, नया तवकास, नया ऊध्वगमन उस प्रतिभा का नहीं हो पािा है, क्योंदक हमारी धारणा यह है दक अब नया कु छ होने को नहीं है। जब नया कु छ होने को नहीं है, िो नया नहीं हो सके गा। क्योंदक हम जो तवचार करिे हैं, जो धारणा बनािे हैं वैसा ही हमारा जीवन हो जािा है। न िो महावीर पर रुक गए हैं हम, न कृ ष्ण पर और न गांधी पर रुकने की कोई जरूरि है। जजंदगी रुकना जानिी ही नहीं। लेदकन जहां-जहां गुरूडम खड़ी हो जािी है वहीं जीवन की धारा को बांध बना कर रोकने की कोतिि की जािी है दक बस यहीं, अब इससे आगे नहीं। गांधी रुक जाएंगे, जीवन िो नहीं रुके गा। मैं रुक जाऊंगा, जीवन िो नहीं रुके गा। आप रुक जाएंगे, जीवन िो नहीं रुके गा। यह मोह तबल्कु ल पागल मोह है दक मैं रुकूं , उसी के साथ जीवन भी रुक जाए। यह तबल्कु ल पागल मोह है, यह तबल्कु ल ही तवतक्षप्त मोह है। मैं रुक जाऊंगा, ठीक है, लेदकन जीवन िो आगे जाएगा, जीवन नये दकनारे छु एगा, जीवन नये माग चुनेगा, जीवन नये अनुभव करे गा। मेरे अनुभवों के साथ जीवन सदा के तलए रुक जाए, यह जरूरी है, यह उतचि है, यह योग्य है? मैं कोई जीवन हं पूरा? व्यति पैदा होिे हैं और तवलीन हो जािे हैं। समाज सिि चलिा रहिा है। लेदकन तजन समाजों के मन में यह धारणा बैठ जािी है दक हम रुक जाएं अिीि पर, वे समाज भतवष्य की िरि गति करना बंद कर दे िे हैं। उनका जीवन स्टैग्नेंट, रुका हुआ, अवरुद्ध हो जािा है। जैसे गंगा रुक जाए, रुका हुआ पानी गंदा हो जािा है। यह भारि का समाज इिना गंदा इसीतलए हो गया है। यह समाज रुका हुआ पानी है। रुके हुए समाज का दिर जीवन आगे िो नहीं बढ़िा। धूप पड़िी है, िाप पड़िा है, सड़ांध आिी है, गंदगी बढ़िी है, भाप बन कर पानी उड़िा है और कीचड़ पैदा होिी है और कु छ भी नहीं होिा। कभी आपने दकसी िालाब को सागर िक पहुंचिे दे खा है? सटरिाएं पहुंचिी हैं सागर िक। सटरिाएं जो दक भागिी हैं अज्ञाि की िरि--खोज करिी हैं अनजान की, अननोन की। डबरा िालाब का अपने में बंद होकर बैठ जािा है कहीं नहीं जािा, गोल घेरे में घूमिा रहिा है। अपना वाद का घेरा



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है, उसी में घूमिा रहिा है। दिर वह सागर िक भी नहीं पहुंच पािा है। और जो जल सागर िक न पहुंच पाए वह जल कभी भी असीम अनुभव को उपलब्ध नहीं हो पािा। जीवन भी अनंि िक पहुंचने को है। व्यति आएंगे, महान से महान व्यति आएंगे और तवलीन हो जाएंगे और जीवन की धारा आगे बढ़िी रहेगी। कोई महापुरुष अतधकारी नहीं है दक जीवन की धारा को अपने पास रोक ले। लेदकन महापुरुष रोकना भी नहीं चाहिे। महापुरुष िो चाहिे हैं दक जीवन की धारा आगे बढ़े। लेदकन महापुरुषों के पास जो लघु मानव हैं, छोटे-छोटे मानव इकट्ठे हो जािे हैं, वे जीवन की धारा को रोकने की कोतिि करिे हैं। क्योंदक उनकी कीमि िभी िक है जब िक जीवन उनके महापुरुष के पास रुका रहे। अगर जीवन आगे बढ़ गया और महापुरुष भूल गए िो इन दीन-जनों का क्या होगा जो आस-पास बैठ कर दुकान खोले हुए थे, इनका क्या होगा? इनकी दुकान िभी िक चलेगी, जब जीवन इनके महापुरुष की लाि के पास रुका रहे। भारि ने यह भूल बहुि कर ली है। आगे यह भूल नहीं की जानी है। भारि का सारा का सारा मतस्िष्क अिीिोन्मुख है, पीछे की िरि दे खिा है। आगे की िरि दे खिा ही नहीं। रूस के बच्चे चांद पर बतस्ियां बसाने का तवचार करिे हैं और भारि के बच्चे? भारि के बच्चे रामलीला दे खिे हैं! कब िक हम रामलीला दे खिे रहेंगे? दकिनी बार रामलीला दे खी जा चुकी है? राम बहुि प्यारे हैं, लेदकन दकिनी बार? क्या हम यही करिे रहेंगे? क्या हमारी चेिना एक विुल में घूमिी रहेगी? क्या हम आगे नहीं बढ़ेंगे? कोई नई लीलाएं नहीं होंगी जगि में? कोई नये राम पैदा नहीं होंगे? कोई नया कृ ष्ण नहीं होगा? बस, पीछे और पीछे? भगवान ने बड़ी भूल की है भारि के साथ, उसकी बड़ी कृ पा होिी अगर वह भारिीयों की आंखें खोपड़ी में सामने की िरि न लगा कर पीछे की िरि लगािा। उससे हमको बड़ी सुतवधा होिी। उससे हम तनरं िर पीछे की िरि दे खने में समथ हो जािे। लेदकन भगवान बड़ा नासमझ है। हम उसकी नासमझी को बरदाश्ि थोड़े ही करिे हैं, हम अपनी खोपड़ी पीछे की िरि मोड़ कर, पीछे की िरि दे खिे चले जािे हैं, अगर कभी भारि ने अपनी कारें बनाईं, अभी िो पतश्चम की नकल करनी पड़िी हैं हर बाि में, िो हम कारों का लाइट पीछे की िरि लगाएंगे, आगे कभी नहीं लगा सकिे। क्योंदक आगे की कार िो पतश्चम की कार है, िुद्ध भारिीय कार में पीछे की िरि लाइट होगा। चलना आगे है वह िो ठीक है, लेदकन दे खना िो पीछे है। जहां उड़िी धूल रह जािी है, उसे दे खना है। जहां से रथ गुजर गए, उनकी उड़िी धूल दे ख रहे हैं। राम का रथ तनकल चुका, महावीर का रथ तनकल चुका, गांधी का रथ तनकल चुका। कब िक उस धूल को दे खिे रहेंगे? कब िक उस धूल को पूजिे रहेंगे? आगे नहीं बढ़ना है? और ध्यान रहे, जीवन जािा है सदा आगे की िरि। जीवन कभी पीछे की िरि नहीं लौटिा है, नहीं लौट सकिा है। कोई माग नहीं है पीछे, पीछे तसि स्मृति है, कोई माग नहीं। पीछे हम याद कर सकिे हैं, पीछे जा नहीं सकिे। समय में एक क्षण भी िो पीछे नहीं लौटा जा सकिा। एक क्षण को भी िो हम पीछे नहीं जा सकिे। जो समय का क्षण बीि गया, उसमें अब हम कभी भी नहीं जा सकें गे, वह सदा को, सदा को बीि गया, उसमें लौटने का कोई उपाय ही नहीं है। वह सेिु तगर गया, वह माग नि हो गया। वहां हम कभी भी नहीं जा सकिे। पास्ट में, अिीि में जाने का कोई द्वार ही नहीं है और जब अिीि में हम जा नहीं सकिे, िो हम एक ही काम कर सकिे हैं; अिीि की स्मृति कर सकिे हैं, याद कर सकिे हैं। लेदकन ध्यान रहे, तजिनी हमारी ऊजा अिीि की स्मृति में और याद में नि होिी है, उिनी ही ऊजा भतवष्य में जाने के तलए कम पड़ जािी है। तजिनी हमारी दृति अिीि से बंध जािी है, उिना ही हम आगे की िरि दे खने में असमथ हो जािे हैं। और यह भी ध्यान रहे, चलना आगे है और दे खना अगर पीछे रहा, िो गड्ढों 64



में तगरे तबना कोई रास्िा नहीं रहेगा। गड्ढों में तगरना पड़ेगा। भारि सैकड़ों बार गड्ढों में तगरिा रहा है। हजार बार गड्ढों में तगरा है। दुघटनाओं के तसवाय हमारी लंबी कथा में और क्या है? दकिनी गुलामी, दकिनी दीनिा, दकिनी दटरद्रिा! लेदकन हमारी आदि पीछे दे खने की कायम, बरकरार है। पीछे दे खिे हैं, आगे चलिे हैं। तगरें गे नहीं िो और क्या होगा? एक ज्योतिषी यूनान में एथेंस के पास एक गांव से गुजरिा था। सांझ थी। चांद उगा होगा आकाि में आज जैसा। वह चांद को दे खिा था, िारों को दे खिा था, एक गड्ढे में तगर पड़ा। आकाि की िरि दे ख रहा था, जमीन का गड्ढा नहीं ददखाई पड़ा होगा। एक बूढ़ी औरि ने उसे गड्ढे से तनकाला। उसके दोनों पैर टू ट गए थे। उसने उस बूढ़ी औरि को धन्यवाद ददया और कहा दक मां, बहुि-बहुि धन्यवाद! मैं िेरी क्या सेवा कर सकिा हं? इिना मैं कहिा हं, िायद िुझे पिा नहीं होगा, मैं यूनान का सबसे बड़ा ज्योतिषी हं। अगर िुझे चांद -िारों के संबंध में कु छ भी जानना हो िो मेरे पास आ जाना। उस बूढ़ी औरि ने कहााः पागल, मैं िेरे पास चांद -िारों के संबंध में पूछने आऊंगी? तजसे अभी जमीन के गड्ढे नहीं ददखाई पड़िे, उसके चांद -िारों के दे खने का कोई भरोसा है? उसका कोई तवश्वास दकया जा सकिा है? पहले बेटे, जमीन के गड्ढे दे खने सीखो, दिर आकाि के चांद -िारे दे खना। ठीक ही कहा उस बूढ़ी औरि ने। अभी जमीन का गड्ढा न ददखाई पड़िा हो िो चांद -िारों के ज्ञान का भरोसा क्या है? तजन्हें आगे हाथ भर नहीं ददखाई पड़िा वे हजारों मील पीछे की यात्रा की कथाएं दोहरा रहे हैं। इतिहास की धूल, बीि गए रथों के चक्कों के तचह्न, उन्हीं पर हम रुके हैं। दुभाग्य है, इसीतलए दुभाग्य है, इसतलए भतवष्य में रोज टकरा जािे हैं। इसतलए भतवष्य को हम तनर्मि नहीं कर पािे। भतवष्य का क्षण आ जािा है और हम तबल्कु ल ही अनजान, बेहोि खड़े रह जािे हैं। जब क्षण आकर पकड़ लेिा है, िब हम चौंक कर खड़े हो जािे हैं। हमारी समझ में नहीं आिा क्या करें ? हमारे खयाल में नहीं आिा। जब िक हम सोच पािे हैं समय बीि जािा है। समय दकसकी प्रिीक्षा करिा है? समय रुका नहीं रहिा, जो उसे पहले से िैयारी करिे हैं, वे उस समय का उपयोग कर पािे हैं। जो उसके सामने बैठे रहिे हैं, जब समय आ जािा है... हम उस िरह के लोग हैं, घर में आग लग जािी है िब हम कु आं खोदने बैठ जािे हैं। हम कहिे हैं, आग लग गई है, अब कु आं खोदना चातहए। जब िक हम कु आं खोद पािे हैं, िब िक घर कभी का जल कर राख हो जािा है। घर में आग लगिी हो िो कु आं िैयार होना चातहए, िब आग बुझाई जा सकिी है। लेदकन हमें िु सि कहां दक हम भतवष्य के कु एं तनर्मि करें , हमें िु सि कहां, हमें ध्यान कहां, हमारी कल्पना नहीं जािी वहां। पीछे और पीछे! गांधी ने पुनाः पीछे की दृति हमें दिर से पकड़ा दी। गांधी कहने लगे, राम-राज्य चातहए। बड़ी अजीब बाि है। राम बहुि प्यारे हैं, लेदकन रामराज्य? रामराज्य तबल्कु ल बाि दूसरी है। गांधी को राम से बहुि प्रेम था, उतचि ही है। राम जैसे व्यति से प्रेम दकया जा सकिा है। प्रेम भारी रहा होगा। उनके प्राण में, रग-रग में राम भर गए थे। गोली लगी गोडसे की, िो न िो मां की याद आई, न तपिा की याद आई, न गांधीवाददयों की याद आई। याद आई राम की। राम! प्राणों के प्राण में वह आवाज घुस गई होगी, वह प्रेम घुस गया होगा। गोली प्राणों में पहुंची िो वहां राम के तसवाय कु छ भी नहीं पाया उस समय। राम से उनका बहुि प्रेम था और उसी प्रेम के वि वे रामराज्य की बािें करने लगे। लेदकन, राम से प्रेम ठीक है, रामराज्य से प्रेम खिरनाक बाि है। रामराज्य पूंजीवाद से भी तपछड़ी हुई व्यवस्था है, फ्यूडेतलज्म है, सामंिवाद है। रामराज्य भतवष्य की समाज-योजना नहीं है। अिीि, तपछड़े हुए, बीिे हुए, जा चुके जीवन की व्यवस्था है। रामराज्य नहीं लाना है हमें, लाना है भतवष्य का राज्य। रामराज्य िो बीि गया। एक िो हम लाना भी चाहें िो नहीं ला सकिे। और 65



अगर हम ला भी सकिे हों िो हमें कभी लाने का तवचार भी नहीं करना चातहए। क्योंदक रामराज्य िो तपछड़ा हुआ, आज से भी बदिर समाज और जीवन-व्यवस्था है। करोड़ों-करोड़ों गुलाम हैं। तियों की इज्जि दकिनी रही होगी, वह सीिा की इज्जि से पिा चल जािा है। एक साधारण से आदमी की आवाज से सीिा को उठा कर िें का जा सकिा है जंगलों में। साधारण िी की क्या हैतसयि रही होगी? िी की यह हैतसयि! राि बहुि प्यारे हैं। और यह ध्यान रहे, दक यह भूल हम हमेिा करिे हैं। हम क्या भूल करिे हैं, वह भूल हमें समझ लेनी चातहए िादक आगे हम न कर सकें । दो हजार साल बाद न िो मुझे कोई याद रखेगा, न आपको कोई याद रखेगा, लेदकन गांधी याद रह जाएंगे। दो हजार साल बाद लोग सोचेंगे, दकिना महान व्यति था गांधी, इिने ही महान लोग गांधी के समाज के लोग भी रहे होंगे। हम िो भूल जाएंगे। हमारी िो कोई रूप-रे खा नहीं छू ट जाएगी। हमारे िो कोई पदतचह्न कहीं भी ददखाई नहीं पड़ेंगे। हमारी िो कोई आकृ ति कहीं नहीं रह जाएगी। कै से जीिे थे हम, दकन वासनाओं से भरे हुए, दकन क्रोध से, दकन घृणाओं से, दकन हत्याओं से भरा हमारा जीवन था, वह सब तवलीन हो जाएगा, हवा में धुआं हो जाएगा। गांधी की प्रतिमा रह जाएगी। दो हजार साल बाद लोग सोचेंगे, गांधी का समाज दकिना अच्छा रहा होगा। गलिी बाि सोच लेंगे वे। गांधी हमारे प्रतितनतध नहीं थे, अपवाद थे, एक्सेप्िन थे। हम गांधी जैसे नहीं हैं। हमारा गांधी से कु छ लेना-दे ना नहीं है। हम गांधी से तबल्कु ल उलटे हैं। लेदकन दो हजार साल बाद तजससे हम तबल्कु ल उलटे हैं उसी आदमी से हम जाने जाएंगे। हमारे युग को गांधी-युग कहा जाएगा। हमें कहा जाएगा, गांधी-युग के लोग कै से अदभुि रहे होंगे। और गांधी के आधार पर िक हमारे बाबि अनुमान करे गा, वह अनुमान तजिना झूठा होगा उिना ही राम-राज्य के बाबि हमारा अनुमान झूठा है। राम बहुि प्यारे हैं, राम का समाज नहीं। बुद्ध बहुि प्यारे हैं, बुद्ध का समाज नहीं। क्राइस्ट बहुि प्यारे रहे होंगे, क्राइस्ट का समाज नहीं। एक-एक व्यतियों के आधार पर पूरे समाज का तनणय लेने की भूल बहुि हो चुकी, आगे यह भूल नहीं होनी चातहए। और दिर ध्यान रहे, हमें यह भी समझ लेना जरूरी है, गांधी इिने बड़े महापुरुष ददखाई पड़िे हैं इसीतलए दक गांधी अके ले हैं। अगर दस-पच्चीस हजार गांधी भारि में हों, िो मोहनदास करमचंद गांधी कौन हैं--पहचानना आसान होगा? राम ददखाई पड़िे हैं हजारों साल के बाद इसीतलए दक राम अके ले रहे होंगे। अगर हजार दो हजार राम जैसे सच्चे और अच्छे आदमी होिे िो राम की याद रह जािी? एक स्कू ल में तिक्षक काले बोड पर, ब्लैक बोड पर सिे द खतड़या से तलखिा है, सिे द दीवाल पर क्यों नहीं तलखिा है? सिे द दीवाल पर तलखेगा िो कु छ ददखाई नहीं पड़ेगा। काले िख्िे पर तलखिा है िो खतड़या सिे द उभर कर ददखाई पड़िी है। महापुरुष समाज के ब्लैक बोड पर उभर कर ददखाई पड़िे हैं, अन्यथा ददखाई नहीं पड़ सकिे। तजस ददन समाज महान होगा उस ददन महापुरुषों को खोजना बहुि मुतश्कल हो जाएगा। समाज क्षुद्र है, नीचा है, इसीतलए महापुरुष ददखाई पड़िे हैं। महापुरुष इिना बड़ा जो ददखाई पड़िा है, वह हमारी क्षुद्रिा के अनुपाि में ददखाई पड़िा है। तजस ददन महान मनुष्यिा पैदा होगी, उस ददन महापुरुषों का युग समाप्त समझ लेना चातहए। मनुष्यिा क्षुद्र है, दीन-हीन है इसतलए महापुरुष ददखाई पड़िे हैं। महापुरुष िो हमेिा पैदा होिे रहेंगे, लेदकन महान मनुष्य के बीच उनका कोई पिा लगाना आसान नहीं रह जाएगा। िो मैं कहिा हं दक राम ददखाई पड़िे हैं, क्योंदक समाज राम से तवपरीि रहा होगा। बुद्ध ददखाई पड़िे हैं, क्योंदक बुद्ध से तवपरीि समाज रहा होगा। बुद्ध की सिे द उज्ज्वल रे खा दकसी काले समाज के ब्लैक बोड के तसवाय ददखाई नहीं पड़ सकिी थी। दिर यह भी ध्यान रख लेना जरूरी है दक अगर हम बुद्ध की, महावीर की,



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राम की, कृ ष्ण की, लाओत्से की, कनफ्यूतियस की, जरथुि की तिक्षाओं को दे खें, िो उन तिक्षाओं से बहुि-कु छ निीजे तलए जा सकिे हैं। एक बड़े मजे की बाि है, वह हम कभी ध्यान ही नहीं दे िे। महावीर सुबह से सांझ िक लोगों को समझािे हैंूाः जहंसा मि करो, जहंसा मि करो। अजहंसा! अजहंसा! इससे क्या मिलब है? इसका मिलब है दक लोग अजहंसक थे? लोग अजहंसक थे िो महावीर पागल थे जो उनको समझा रहे थे दक जहंसा मि करो। बुद्ध सुबह से सांझ िक समझा रहे हैंूाः चोरी मि करो, झूठ मि बोलो, बेईमानी मि करो, परिी का गमन मि करो। दकसको समझा रहे हैं? लोग अगर अच्छे थे, समाज अगर िुभ था, िो ये तिक्षाएं दकसके तलए हैं? ये तिक्षाएं बिािी हैं दक आदमी कै से रहे होंगे। तजनको ये तिक्षाएं दी जा रही थीं वे आदमी कै से रहे होंगे? वे ही तिक्षाएं हमें आज दे नी भी पड़ रही हैं। जो तिक्षाएं िीन हजार वष पहले लागू थीं, वे ही आज भी लागू हैं। इससे तसद्ध होिा है दक समाज जैसा आज है, िीन हजार वष पहले भी ऐसा ही था। समाज ऊंचा नहीं था। समाज में बुतनयादी कोई िक नहीं पड़ गया। और यह लेदकन हमारे खयाल में नहीं आ पािा दक तिक्षाएं दकन्हें दे नी पड़िी हैं, दकसको दे ना पड़िी हैं? एक चच में एक िकीर बोलने गया था। चच के लोगों ने कहा था सत्य के संबंध में हमें कु छ समझाओ। उस िकीर ने कहााः सत्य के संबंध में? लेदकन यह िो चच है, यहां सत्य के संबंध में समझाने की जरूरि क्या? यहां िो सत्यवादी लोग ही आए होंगे, क्योंदक मंददरों में, चचों में सत्यवादी ही आिे हैं। लेदकन लोग नहीं माने, उन्होंने कहा दक नहीं-नहीं, आप िो सत्य के संबंध में हमें समझाइए। वह िकीर खड़ा हुआ। उसने मंच पर खड़े होकर पूछा दक इसके पहले दक मैं कु छ कहं, मैं थोड़ी जांच-परख कर लेना चाहिा हं। मैं िुमसे यह पूछिा हं दक तमत्रो, िुम बाइतबल िो सब पढ़िे हो? उन सबने हाथ तहलाया दक हम बाइतबल पढ़िे हैं। उस िकीर ने पूछा दक िब मैं िुमसे यह पूछिा हं, िुमने बाइतबल में ल्यूक का उनहत्तरवां अध्याय पढ़ा है? उन सबने हाथ तहलाए, तसि एक आदमी को छोड़ कर जो सामने बैठा था। उन्होंने कहा, हां, हमने पढ़ा है। वह िकीर हंसने लगा, उसने कहा दक अब मैं सत्य के संबंध में बोलूंगा, क्योंदक मैं िुम्हें बिा दूं, ल्यूक का उनहत्तरवां अध्याय जैसा कोई अध्याय बाइतबल में है ही नहीं। और िुम सब कहिे हो, हमने पढ़ा है। िब ठीक है। दिर सत्य के संबंध में बोलने में कु छ सार है। लेदकन उस िकीर ने कहा, यह जो आदमी सामने बैठा है, यह बड़ा अदभुि आदमी मालूम पड़िा है। आश्चय! मेरे दोस्ि, िुम चच में आ कै से गए? क्योंदक चच में धार्मक आदमी िायद ही जािे हों। िुम मंददर में आ कै से गए? मंददर का धार्मक लोगों से संबंध ही नहीं रहा है कभी, िुम आए कै से? िुम चुप कै से बैठे हो? िुमने हाथ क्यों नहीं उठाया? उस आदमी ने कहााः महािय, जरा जोर से बोतलए, मुझे कम सुनाई पड़िा है। क्या आप कहिे हैं उनहत्तरवां अध्याय ल्यूक का? रोज पढ़िा हं, पढ़िा नहीं; रोज पाठ करिा हं। मैं समझा नहीं, इसतलए मैं चुपचाप रहा दक कोई झंझट में न पड़ जाऊं। समाज की तिक्षाएं समाज की खबर लािी हैं दक कै से लोग होंगे। तिक्षाएं उन्हें दे नी पड़िी हैं जो तिक्षाओं के प्रतिकू ल होिे हैं। तजस ददन दुतनया पर धम आ जाएगा उस ददन धम की तिक्षाओं को दे ने की आवश्यकिा कम हो जाएगी। तजस गांव में मरीज कम हों वहां डाक्टर बसने की कोतिि नहीं करें गे। तजस गांव में स्वास्थ्य हो उस गांव में तचदकत्सक की क्या जरूरि होगी? हम बहुि गौरवातन्वि होिे हैं यह बाि कह कर दक दुतनया के िीथंकर, बुद्ध और अविार हमारे यहां ही पैदा होिे हैं। थोड़ा समझ-सोच कर इसमें गौरव अनुभव करना। यह इस बाि का सबूि है दक हमारा समाज एक अधार्मक समाज है, जहां धार्मक तिक्षक को बार-बार पैदा होने की जरूरि पड़िी है। यह सबूि गौरव का नहीं है। दकसी घर में रोज-रोज डाक्टर आिा हो िो मोहल्ले में यह 67



नहीं कह सकिा दक हमारे घर में बड़े स्वस्थ लोग हैं, हमारे यहां डाक्टर रोज आिा है। धमगुरुओं की इिनी लंबी किारें इस बाि की खबर हैं दक यह समाज अधार्मक समाज है और अगर हम पीछे लौटने की बािें करिे हैं िो हम मुल्क को आत्महत्या तसखा रहे हैं, सुसाइड तसखा रहे हैं। मुल्क मर जाएगा पीछे लौटने की बािों में। क्योंदक पीछे िो लौट नहीं सकिा, लौटने की कोतिि में और नासमझी के प्रयास में वह आगे नहीं जा सके गा जहां जा सकिा था। नहीं, राम-राज्य नहीं, चातहए भतवष्य का समाज। लौटा हुआ, बीिा हुआ, गया हुआ सामंिवादी समाज नहीं, चातहए िोषण से मुि वग-तवहीन आगे का समाज, भतवष्य का समाज। लौटना नहीं है पीछे, जाना है आगे। लेदकन, हमारी सारी प्रवृतत्त, हमारा सारा जचंिन, हमारी सारी बुतद्ध, हमारे व्यतित्व का सारा तनमाण, हमारी सारी कं डीिजनंग, हमारे सारे संस्कार पीछे ले जाने वाले हैं, आगे ले जाने वाले नहीं हैं। इसीतलए भारि में कोई क्रांति नहीं हो पािी है। क्रांति का मिलब होिा है आगे जाना। जो आगे जाना ही नहीं चाहिे वे क्रांति कै से करें गे? इसतलए भारि के पांच हजार वषों में क्रांति का कोई भी उल्लेख नहीं है। इिने संि, इिने महात्मा, इिने तवचारक! लेदकन तवद्रोह? तवद्रोह तबल्कु ल भी नहीं, तवद्रोह जरा भी नहीं, टरबेतलयन जैसी चीज ही नहीं। तवद्रोह िो वे करिे हैं, जो आगे जाना चाहिे हैं। जो आगे जाना चाहिे हैं, उन्हें अिीि को इनकार करना पड़िा है। जो आगे जाना चाहिे हैं, उन्हें तपछली जड़ों को काटना पड़िा है। जो आगे जाना चाहिे हैं, उन्हें पीछे का मोह छोड़ना पड़िा है, िब वे आगे जा पािे हैं। लेदकन हम? अगर हमारा वि चले िो हम अपनी मां के गभ में ही रह जाएं, वहां से भी बाहर न तनकलें। अगर कोई बच्चा सच्चा भारिीय हो िो उसे इनकार कर दे ना चातहए दक मैं मां के गभ के बाहर नहीं आिा। मां के गभ में बड़ी िांति से जी रहा हं, संिोष से। इिना सुख कहां तमलेगा? तमलिा भी नहीं। दकिने ही अच्छे मकान बनाओ, दकिनी ही अच्छी कोच बनाओ, दकिने ही अच्छे गद्दे और िदकए लगाओ; मां के पेट में जो कम्िट, जो सुख, जो सुतवधा, जो िांति है वह कहां तमलेगा? मनोवैज्ञातनक िो कहिे हैं दक मां के पेट में बच्चा जो सुख जान लेिा है, उसी सुख के कारण वह उसी िरह की चीजें बनािा चला जािा है। ये इिने मकान, अच्छे गद्दे, िदकए, कारें , इन सबके भीिर खोज यह चल रही है दक मां के गभ में जैसी िांति और सुख तमलिा था, वैसा तमल जाए। लेदकन बच्चे को मां के पेट के बाहर आना पड़िा है। बड़ी रे वोल्यूिन हो जािी है, बड़ी क्रांति हो जािी है, सारा जीवन अस्िव्यस्ि हो जािा होगा, क्योंदक न वहां खाने की दिकर थी, न नौकरी की, न इं प्लाइमेंट की, न कोई और झंझट थी। वहां सारा जीवन चुपचाप चलिा था और चौबीस घंटे िंद्रा में, तनद्रा में सोने का आनंद था। वहां कोई दुख न था, सब सुख था। मनोवैज्ञातनक कहिे हैं दक मोक्ष का खयाल गभ के अनुभव से ही पैदा हुआ है। वहां सब कु छ था, कु छ कमी न थी। वही मन में कहीं स्मृति में मनुष्य के गहरे में गूंजिा रहिा है दक कोई एक ऐसी जगह होनी चातहए जहां सब सुख होगा, कोई दुख नहीं होगा। कोई एक ऐसा स्थान होना चातहए जहां सब िांति होगी, कोई अिांति नहीं होगी। कोई एक ऐसा स्थान होना चातहए जहां कु छ भी नहीं करना पड़ेगा और सब हो जाएगा। वही कहीं बीज में तछपी हुई स्मृति मां के गभ की है। लेदकन बच्चा अगर कह दे दक नहीं जािा हं यात्रा पर जीवन की, िो क्या होगा उसका अथ? मां को उसे छोड़ना पड़िा है, मां से अलग खड़ा होना पड़िा है। थोड़े ददन मां से तचपटा रहिा है, दिर अपने पैर से चलने लगिा है, दिर धीरे -धीरे मां और उसके बीच िासला पैदा होिा चला जािा है। दिर कल एक और िी उसके जीवन में आएगी और िायद मां को वह भूल जाएगा। वह अपनी यात्रा पर जा चुका जहां वह मां से पूरी िरह स्विंत्र हो गया है। जीवन की यात्रा आगे की िरि है, आगे की िरि है, रोज आगे की िरि है। तपछला छोड़ दे ना पड़िा है, चाहे दकिना ही सुतवधापूण रहा हो। आगे की असुतवधाएं झेलनी 68



पड़िी हैं िादक हम और नई सुतवधाओं के जीवन को उपलब्ध हो सकें । तपछला दकिना ही अच्छा घर रहा हो, उसे छोड़ दे ना पड़िा है िादक अनजान और नये घर हम बना सकें । जीवन की खोज तनरं िर अिीि से मुि होने की खोज है। और भारि के तलए जचंिा करने जैसी बाि है। भारि अिीि से तचपटा हुआ है। उसका मन वहीं रुका रह गया है। उसने जोर से पकड़ तलया अिीि को। वह मां के गभ को पकड़े है और कहिा है दक नहीं, हम यहां से आगे नहीं जाएंगे। इस वजह से हम तसकु ड़ गए हैं, इस वजह से हमारी ऊजा क्षीण हुई है, इस वजह से हमारी प्रतिभा नि हुई है, इस वजह से हम बौने हो गए हैं, इस वजह से हम तसर उठा कर अज्ञाि की यात्रा पर जाने में भयभीि हैं, डर लगिा है, अनजान, घबड़ाहट लगिी है। अपने घर में रहो। यह प्रवृतत्त ने ही भारि को जहंदुस्िान के भीिर कै द कर ददया। भारि नहीं जा सका तवस्िार पर। लेदकन अपने को समझाने की हम बहुि होतियारी की बािें खोजिे हैं। हम कहिे हैं, हम आक्रमण नहीं करना चाहिे हैं, इसतलए हम अपने घर में बैठे रहिे हैं। हम अजहंसक हैं इसतलए हम कहीं नहीं जाना चाहिे। लेदकन अजहंसक से अजहंसक आदमी को जरा सा उकसा दो और उसके भीिर से खूंखार आदमी खड़ा हो जािा है। अजहंसक आदमी को जरा सा कु छ कह दो और उसके भीिर से क्रोध उबलने लगिा है। कै सा अजहंसक आदमी है! कै सी है यह अजहंसा! चीन का हमला हुआ, पादकस्िान का हमला हुआ और अजहंसक आदमी को आप दे ख लेिे दक अजहंसा कहां गई। उखड़ आई सारी की सारी। भीिर िो कु छ भी नहीं है। जहंदुस्िान में कतव कतविाएं करने लगे दक जसंहों को छेड़ो मि, हम बब्बर िेर हैं। लेदकन घर के बाहर कतविा सुना रहे हैं लोगों को, कहीं जा नहीं रहे हैं। सारा जहंदुस्िान कतविा कर रहा है जैसे दक कतविाओं से कोई युद्ध जीिे जा सकिे हैं। दुतनया में ऐसा कतविाओं का बुखार, जुनून कभी भी नहीं आया होगा जैसा जहंदुस्िान में आया। गांव-गांव में कतव पैदा हो गए, जैसे बरसाि में मेढक पैदा हो जािे हैं और वे सब कहने लगे दक हम िेर हैं, सोिे हुए िेर को मि छेड़ो। िुम्हारी कतविाओं से िुम िेर तसद्ध हो जाओगे? िुम्हारी यह जो बहादुरी िुम कतविाओं में बिा रहे हो और कतव-सम्मेलन के मंच पर हाथ-पैर िें क रहे हो, इससे कु छ हो जाएगा? नहीं, जहंसा िो भीिर बहुि है, लेदकन साहस भी नहीं है बाहर जाने का। िो वह जहंसा कहीं कतविाओं में तनकलिी है, कहीं बािचीि में तनकलिी है, क्षुद्रिा में तनकलिी है। लेदकन, बाहर हम नहीं गए इस दे ि के । उसका कारण यह था दक हम पकड़िे हैं, रुकिे हैं। गांव का आदमी गांव में रुक जािा है, िहर में नहीं जाना चाहिा। डरिा है, कहां जाए। जो आदमी एक छोटी दुकान करिा है उसी पर रुक जािा है। दकसी िरह इसी में गुजारा कर लेंगे, कहां जाएं, कहां कौन झंझट ले, कौन अनजान, अपटरतचि में उिरे । सारी दुतनया तवकतसि हुई है, वह इसतलए दक वह अनजान और अपटरतचि में जाने को आिुर हैं। जब भी उन्हें मौका तमल जाए अनजान में जाने का, वे जाने-माने को छोड़ कर अनजान में चले जाएंगे। और हम हैं, मजबूरी में ही जाना पड़े िो बाि दूसरी, जब िक हमारी सामथ्य चलेगी हम जाने-माने को पकड़ कर रुके रहेंगे। यह तस्थति िुभ नहीं है, यह मंगलदायी नहीं है। इसी के कारण हम पीछे-पीछे लौट कर पकड़िे हैं। अगर मैं कोई बाि कहं िो आप कहेंगे, यह आदमी अनजाना, पिा नहीं यह आदमी कौन है, क्या है? इसकी बाि मानना ठीक है क्या? अपने कृ ष्ण की बाि ठीक है, िीन हजार साल से सुनिे हैं, वही ठीक होनी चातहए। और इसतलए जहंदुस्िान में अगर दकसी को नई बाि भी कहनी हो िो उसको एक झूठ का आडंबर पहनाना पड़िा है। उसे कहना पड़िा है, जो मैं कह रहा हं यही गीिा में भी कहा हुआ है, िब कहीं वह बाि स्वीकृ ि होगी, नहीं िो नहीं। अजीब बेईमातनयों करवाना चाहिे हैं। जब वह पहले यह तसद्ध करे दक यह गीिा में कहा हुआ है िब कोई 69



सुनने को राजी होगा। दक िब ठीक है, िब बोलो, िब पुराना पटरतचि ही बोल रहे हो, दिर कोई डर नहीं है िुमसे। इसीतलए जहंदुस्िान में हजारों गीिा की टीकाएं हो गईं। गीिा की कोई एक टीका की भी जरूरि नहीं है। गीिा इिनी साि दकिाब है, इिनी स्पि, दक गीिा की दकसी टीका की जरूरि नहीं है। टीकाकार और धुआं पैदा कर दे गा। गीिा को समझाने के तलए टीकाकार की जरूरि है? कृ ष्ण ने इिनी स्पि बाि कही है, इिनी सीधी, दक अब यह टीकाकारों की क्या जरूरि है? लेदकन एक हजार टीकाएं हैं और एक हजार मिलब वाली। इससे क्या तसद्ध होिा है? इससे दो ही बािें तसद्ध होिी हैं--या िो कृ ष्ण का ददमाग खराब रहा हो दक एक ही बाि में हजार मिलब रहे हों, कोई मिलब ही नहीं रहा, मिलब यह रहा। हजार मिलब तजस बाि के हों उसमें कोई मिलब ही न रहा। और या दिर, ये हजार टीकाकार क्या कह रहे हैं? ये जो कहना चाहिे हैं उसको जबरदस्िी बेचारे कृ ष्ण के ऊपर थोप रहे हैं, इसतलए हजार टीकाएं पैदा हो गईं। नहीं िो हजार टीकाओं की क्या जरूरि है? जो इन्हें कहना है, सीधा नहीं कह सकिे। क्योंदक यह मुल्क सुनेगा ही नहीं, ये नये को सुनने को राजी नहीं। उसको गीिा में प्रवेि करके और उसको गीिा की िकल में लाकर खड़ा करना पड़ेगा। जब वह तबल्कु ल गीिा की बाि जंचने लगेगी िब कोई मानेगा। और इसमें गीिा के साथ जो हत्या हो रही, जो अत्याचार हो रहा, वह चलेगा। गीिा की जो िुतद्ध है वह नि होगी। अभी मेरे तखलाि जो लोगों ने इधर तलखा, उन्होंने क्या कहा? उन्होंने कहा दक गांधी जी तवनम्र थे। वे कभी यह नहीं कहिे थे दक यह मैं कह रहा हं। वे कहिे थे, यह गीिा में तलखा है, यह महावीर ने कहा है, यह टालस्टाय कहिा है, यह रतस्कन कहिा है, यह श्रीमद्भराजचंद्र कहिे हैं। मैं िो वही कह रहा हं जो सदा कहा हुआ है। यह तवनम्रिा नहीं है, यह इस मुल्क के बुतनयादों रोगों में से एक रोग है। जो मैं कह रहा हं, वह मुझे कहना चातहए दक मैं कह रहा हं, चाहे वह गलि हो, चाहे वह सही हो। मैं जो कह रहा हं उसे कृ ष्ण के ऊपर थोपना अन्याय है। यह तबल्कु ल क्राइम है दक मैं कहं दक वह कृ ष्ण कर रहे हैं। मुझे क्या पिा दक कृ ष्ण क्या कह रहे हैं? कृ ष्ण के अतिटरि और कोई दावा नहीं कर सकिा है इस बाि के कहने का दक कृ ष्ण क्या कह रहे हैं! कौन दावा करे गा? कृ ष्ण की चेिना तजसके पास न हो, वह कै से जानेगा दक कृ ष्ण क्या कह रहे हैं? क्यों दिजूल कृ ष्ण के ऊपर सवारी करिे हो? क्यों दकसी के कं धे पर सवार होिे हो? अपने दो छोटे पैरों से ही खड़े हो जाओ। यह अहंकार हो गया! अपने पैर पर खड़ा होना अहंकार है और कृ ष्ण के कं धों पर खड़े हो जाना अहंकार नहीं है। कृ ष्ण के कं धों पर खड़े होकर आसानी से आप ज्यादा ऊंचे ददखाई पड़ोगे, अपने पैरों पर खड़े होकर उिने ही ऊंचे ददखाई पड़ोगे तजिने आप हो। अहंकार दकसमें ज्यादा तसद्ध होगा? परं परा का सहारा अहंकार की पुति के तलए तलया जा सकिा है। और या दिर, लोग इिने नासमझ हैं दक वे सुनने को ही राजी नहीं नये को। इसतलए पुरानी िराब की बोिल में नई िराब भर कर तपलानी पड़ेगी। नहीं, मैं इनकार करिा हं इस बाि को, क्योंदक यह पूरे मुल्क की प्रतिभा को नुकसान पहुंचाने की िरकीबें हैं। मैं आपसे यह कहना चाहिा हं दक हमें ईमानदारी से, स्पििा से यह कहना चातहए दक यह मैं सोचिा हं ऐसा, वह गलि हो सकिा है, वह सही हो सकिा है। यह मूल्यवान नहीं है, लेदकन मूल्यवान यह है दक हम अपने िईं सोचना िुरू करें । हम कब िक कृ ष्ण और महावीर और बुद्ध को सिािे रहेंगे। अगर वे कहीं मोक्ष में होंगे िो बहुि परे िान हो गए होंगे। रोज उनकी टांग खींचो और उनको जमीन पर लाओ। उनकी हुज्जि हो गई होगी, घबड़ा गए होंगे दक कहां के दुिों के मुल्क में पैदा हो गए दक सुबह-सांझ परे िान दकए रहिे हैं। नहीं परे िान हो गए होंगे? और दकिने हैरान होिे होंगे दक क्या-क्या िकल बनाई जा रही है 70



उनकी बािों की। जो उन्होंने कभी भी नहीं कहा होगा, वह हजार दो हजार साल में उनके नाम पर थोप ददया गया। जो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा वह उनकी वाणी का तहस्सा बन गया। क्या-क्या हम थोप सकिे हैं तजसका कोई तहसाब नहीं। हमारे मन में जो होगा, हमें उनके ऊपर थोपना पड़ेगा। जैतनयों के चौबीस िीथंकर हैं। उनमें एक िीथंकर मल्लीनाथ हैं। ददगंबर कहिे हैं दक वह पुरुष हैं मतल्लनाथ। श्वेिांबर कहिे हैं, वह मल्लीबाई है, िी है। बड़ा मजा है! यह भी संददग्ध हो गया दक कोई आदमी िी था दक पुरुष? अजीब इतिहास तलख रहे हैं आप! दक यह भी पक्का नहीं है दक एक िीथंकर िी था दक पुरुष? नहीं, यह िो पक्का रहा होगा, लेदकन ददगंबरों की मान्यिा यह है दक िी मोक्ष जा ही नहीं सकिी, िो दिर िीथंकर िी कै से हो सकिा है? िी रही होगी िो उन्होंने मल्लीबाई को मल्लीनाथ कर डाला, क्योंदक वह िो अपनी धारणा के तहसाब से उनको खड़ा होना पड़ेगा, िीथंकर को। महावीर की िादी हुई दक नहीं, महावीर को लड़की पैदा हुई दक नहीं, इसमें भी झगड़े हैं। श्वेिांबर कहिे हैं, िादी हुई, लड़की हुई, दामाद था। ददगंबर कहिे हैं दक यह कभी हुआ ही नहीं। िीथंकर जैसा आदमी और िादी करे गा, बाल-ब्रह्मचारी। िो बाल-ब्रह्मचारी की तजसकी धारणा है, िो थोप दे गा। मानने को राजी नहीं हैं दक उनकी िी थी या उनकी लड़की हुई। है ही नहीं, यह सवाल ही नहीं, यह गलि बाि है। अब एक ही महावीर को मानने वाले दो वग अजीब बािें कर रहे हैं। यह क्या है? हम अपनी ही धारणा थोपिे हैं िािों पर, तसद्धांिों पर, महापुरुषों पर। हम पूजा कर रहे हैं यह या अन्याय कर रहे हैं? यह दक्रतमनल एक्ट है, यह तबल्कु ल अपराधपूण है और मुल्क को सख्िी से मुमातनयि होनी चातहए दक कोई आदमी कृ ष्ण की िरि से बोलने का हकदार नहीं है, न महावीर की िरि से। अपनी बाि कहे। अगर महावीर के तलए भी कहना है िो यह कहे दक यह मैं कहिा हं महावीर के संबंध में। महावीर कहिे होंगे दक नहीं कहिे, मैं मानने को, मुझे कु छ भी पिा नहीं है। हम वही समझ सकिे हैं, जो हमारी तस्थति है। एक ददन, एक राि बुद्ध प्रवचन करिे थे। प्रवचन के बाद रोज का उनका तनयम था दक वह तभक्षुओं को, श्रोिाओं को कहिे दक अब जाओ रातत्र का अंतिम काय करो। वे तभक्षु दस हजार तभक्षु उनके साथ होिे थे, रातत्र का अंतिम काय ध्यान था। सोने के पहले ध्यान करो, दिर सो जाओ। िो रोज-रोज यह कहने की जरूरि न थी दक ध्यान करो। िो वे इिना कह दे िे थे दक अब जाओ, रातत्र का अंतिम काय करो। उस ददन एक चोर भी आया था सभा में, एक वेश्या भी आई थी। चोर ने जैसे ही सुना दक जाओ अब रातत्र का अंतिम काय करो। अरे , उसने कहा दक बहुि राि हो गई, चांद दकिना चढ़ गया, जाऊं, अपना धंधा करूं। ऐसे राि भर गंवा दूंगा धम में, िो मुतश्कल हो जाएगी। धम में थोड़ा-बहुि वि गंवाया जा सकिा है, दिर धंधा करने जाना ही पड़िा है, चाहे चोर हो, चाहे साहकार हो। वेश्या ने सुना दक रातत्र हो गई है, अपना काम। वेश्या बोली, अरे , ग्राहक आ चुके होंगे, मैं जाऊं। बुद्ध ने एक ही बाि कही थी। तभक्षु ध्यान करने चले गए, चोर चोरी करने चला गया, वेश्या अपनी दुकान पर चली गई। बुद्ध ने जो कहा था, वह एक था, लेदकन व्याख्याएं िीन हो गईं। जो कहा जािा है वह एक है, तजिने लोग सुनिे हैं व्याख्याएं उिनी हो जािी हैं। लेदकन कृ पा करके अपनी व्याख्या को दकसी के ऊपर मि थोपें, इिना ही कहें, ऐसा मैं समझिा हं। लेदकन इस मुल्क में थोपा जा रहा है, तनरं िर थोपा जा रहा है। इस मुल्क में कोई गीिा की टीका न तलखे िो वह ज्ञानी ही नहीं है। कोई गीिा की टीका तलखे िभी ज्ञानी होिा है। और अगर कभी भी कहीं कोई अदालि होगी, मोक्ष में, िो ये गीिा के टीकाकार एक-एक बंधे हुए नजर आएंगे, क्योंदक कृ ष्ण इन पर मुकदमा चलाएंगे, दक सज्जनो, िुम मेरे पीछे क्यों पड़े थे? 71



मुझे जो कहना था वह मैंने कह ददया था, िुम कृ पा करिे। मैंने कह दी थी बाि पूरी। मेरी बाि साि थी। िुम कै से अथ समझाने गए थे बीच में दक इसका यह अथ है। यह जो प्राचीनवाददिा, यह जो प्राचीन का मोह, यह जो अिीि को जकड़ कर पकड़ लेना, यह हम कब िोड़ेंगे? क्या हमको ददखाई नहीं पड़िा दक सारा जगि आगे बढ़िा चला जा रहा है, भतवष्योन्मुख है? हम अिीि के मोह में मर जाएंगे, मर ही गए हैं, करीब-करीब मर गए हैं। इकबाल ने गाया हैाः "कु छ बाि है दक हस्िी तमटिी नहीं हमारी।" अब इकबाल िो जा चुके, अन्यथा उनसे तमल कर कहिा दक महािय, कु छ भी बाि नहीं है। बाि कु ल इिनी है दक हस्िी बहुि पहले तमट चुकी, िो अब तमटे भी िो तमटे क्या? खाक! तमटने के तलए हस्िी चातहए न पहले? आदमी जजंदा हो िो मर सकिा है और मर ही गया हो िो अब क्या मरे गा? मरने के तलए भी जजंदगी चातहए। मरा हुआ आदमी दिर नहीं मरिा। एक दिा मर गया, दिर िो मरिा ही नहीं। यह कौम इसतलए नहीं दक हमारी कोई बड़ी खूबी है तजससे हमारी हस्िी नहीं तमटिी। हमारी खूबी यह है दक हस्िी हम खो चुके अिीि के साथ। हमारी कोई मौजूदा हस्िी नहीं है, हमारी कोई विमान प्रतिभा नहीं है, हमारी सारी प्रतिभा अिीि में हो चुकी। आज क्या है हमारे पास? अभी क्या है? विमान संपतत्त क्या है हमारे व्यतित्व की? वह हमारी खो चुकी, इसतलए तमटने को अब कु छ बचा नहीं। लेदकन यह दुखद है और गांधी का जचंिन दिर पुरािन की िरि ले जाने वाला है। दे ि को ले जाना है आगे, रोज आगे। रोज भूलिे जाना है उसको, जो बीि गया है। एक गांव में एक पुराना चच था। वह कहानी कह कर और थोड़ी सी बािें कह कर मैं अपनी बाि पूरी करूं। एक गांव में एक चच था। एक बहुि पुराना गांव और बहुि पुराना चच। वह चच इिना पुराना था दक हवाएं चलिी थीं, उसकी दीवालें तहलिी थीं दक कब तगरीं, कब तगरीं। बादल गरजिे थे िो लगिा था गया चच, तबजली चमकिी थी िो लगिी तगरे गी चच पर। ऐसे चच में कौन प्राथना करने जाएगा? कोई प्राथना करने नहीं जािा था। प्राथना करने वाले जीवन को दांव पर लगा कर िो प्राथना करने जािे नहीं। सुतवधा होिी है िो जािे हैं। तजनको सुतवधा होिी है वे ज्यादा जािे हैं, तजनको कम सुतवधा होिी है वे कम जािे हैं। लेदकन वहां िो जान का खिरा था, वहां कौन प्राथना करने जािा। चच खाली पड़ा रहिा। चच की कमेटी, संरक्षकों की कमेटी तमली। उन्होंने कहा, बड़ी मुतश्कल है। वह कमेटी भी बाहर तमली, वह भी कोई भीिर नहीं तमली, क्योंदक नेिा हमेिा अनुयातययों से ज्यादा होतियार होिे हैं। जहां अनुयायी नहीं जािा वहां नेिा कभी जािा ही नहीं। आप इस खयाल में मि रहना दक नेिा अनुयातययों के आगे जािे हैं। यह तसि भ्म है अखबारों में। नेिा हमेिा अनुयायी के पीछे जािे हैं, िॉलो करिे हैं िॉलोअर को। जब दे ख लेिे हैं दक अनुयायी यहां जा रहा है िब वे उचक कर उसके साथ हो जािे हैं। वे आपको आगे ददखाई पड़िे हैं तसि, वे होिे हमेिा पीछे हैं। पहले पिा लगा लेिे हैं दक अनुयायी क्या मानिा है, क्या तवश्वास करिा है, वही कहिे हैं जो आप मानिे हैं। जो आप मानोगे वही बाि करिे हैं, उसी िरह जीिे हैं। वे भी बेचारे नेिा थे, वे काहे के तलए भीिर जािे, जब कोई अनुयायी नहीं जािा था। वे भी बाहर तमले, दूर कं पाउं ड से दक कहीं कोई दीवाल तगर न जाए। उन्होंने वहां िय दकया दक लोग बड़े खराब हो गए हैं, कोई मंददर में आिा ही नहीं, कोई आिा ही नहीं मंददर में, लोग तबल्कु ल नातस्िक हो गए हैं, लोग तबल्कु ल अधार्मक हो गए हैं और सबने तसर तहलाया दक बाि सच है। हालांदक उनमें से भी कोई कभी नहीं आिा था।



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लेदकन एक जवान आदमी पहुंच गया था। उसने कहा दक महाियो, तसि लोगों को दोष मि दो, चच इिना पुराना हो गया है दक उसमें जाना खिरनाक है। दे खें, हम भी अपनी कमेटी की बैठक बाहर कर रहे हैं, चलें हम भीिर। वे लोग बोले दक यह िो बाि सच है दक चच बहुि पुराना हो गया है। क्या करना चातहए? िो कमेटी ने एक प्रस्िाव पास दकया दक अब बहुि हो गई प्रिीक्षा करिे हुए पुराने चच में कोई नहीं जाएगा। िो हम सवसम्मति से एक प्रस्िाव पास करिे हैं दक पुराना चच तगरा ददया जाना चातहए। उन्होंने दूसरा प्रस्िाव पास दकया और पुराने को तगरा कर हमें एक नया चच बनाना है, यह भी सवसम्मति से। और िीसरा प्रस्िाव पास दकया तवस्िार से और उसमें तलखा दक हम नया चच वैसा ही बनाएंगे जैसा पुराना था, ठीक पुराने जैसा। वैसा ही मकान, उसी नींव पर, नींव पुरानी रहेगी, चच नया रहेगा, वैसी ही दीवालें, उन दीवालों में पुरानी ईंटें ही लगाई जाएंगी, नहीं ईंट नहीं, पुराने ही द्वार-दरवाजे तनकाल कर लगाए जाएंगे, नये दरवाजे नहीं। ठीक पुराने चच जैसा ही, पुरानी जगह पर ही, पुरानी दीवालों के अनुकूल दीवालें, पुरानी नींव पर नई दीवालें, ऐसा हम चच बनाएंगे। इसे भी सवसम्मति से स्वीकार दकया और दिर चौथा प्रस्िाव स्वीकार दकया दक जब िक नया चच न बन जाए, िब िक पुराना तगराएंगे नहीं। वह चच अभी िक खड़ा हुआ है। वह कब तगरे गा? वह कभी नहीं तगरे गा। जो पुराने को तगराने की सामथ्य नहीं रखिे वे नये को तनमाण करने की सामथ्य खो दे िे हैं। जो पुराने को तवध्वंस करने की तहम्मि रखिे हैं के वल वे ही नये का सृजन कर पािे हैं। जो पुराने की मौि दे ख सकिे हैं वे ही के वल नये को जन्म दे सकिे हैं। और हम पुराने की मृत्यु दे खने में असमथ हो गए हैं। हम पुराने को नि करने में असमथ हो गए हैं। हम पुराने को तगराने में असमथ हो गए हैं, इसतलए नये का कोई जन्म नहीं हो पा रहा है। लेदकन ध्यान रहे, जीवन नये के साथ है, पुराने के साथ मौि है। अगर मर ही जाना हो तबल्कु ल, िो पुराने को कस कर पकड़ लेना चातहए। घर में मां मर जािी है, तपिा मर जािे हैं, बहुि प्यारे हैं, लेदकन दिर लाि घर में रख कर हम नहीं बैठ जािे हैं। बहुि प्यारे हैं, दकिना दुख, दकिनी पीड़ा आदमी झेलिा है--मां चल बसी उसकी, लेदकन दिर भी मरिे ही लाि को घर में नहीं रखिे। दिर यह नहीं कहिे दक मां बहुि प्यारी थी, हम लाि को कै से घर के बाहर ले जाएं, हम कै से मरघट ले जाएं, हम िो इसी से तचपटे हुए बैठे रहेंगे। नहीं, दिर लाि को ले जाना पड़िा है, दुख में, पीड़ा में। मरघट पर आग लगानी पड़िी है, जलाना पड़िा है उस मां को तजसे इिना प्रेम दकया था, तजससे जन्म पाया था, जो सब कु छ थी। वह भी मर गई िो उसे भी मरघट पर ले जाना पड़िा है, मजबूरी में जलाना पड़िा है। रोिे हैं, लेदकन जला कर वापस लौट आिे हैं। अगर दकसी घर के लोग पागल हो जाएं और तजिने बूढ़े लोग मरिे जाएं उनकी लािें इकट्ठी कर लें, िो उस घर की आप समझिे हैं क्या हालि हो जाएगी? उस घर में नये बच्चे पैदा होने के पहले इनकार कर दें गे दक क्षमा कटरए, इन लािों के इस ढेर में हम जन्म नहीं लेना चाहिे। और नये बच्चे पैदा भी हो जाएंगे िो पैदा होिे से ही पागल हो जाएंगे, क्योंदक तजस घर में इिनी लािें हों वहां नये बच्चे पागल होने के तसवाय और कु छ नहीं हो सकिे हैं। लेदकन नहीं, लािें हम जला आिे हैं। लेदकन इतिहास की लािें हम संजोिे चले जािे हैं, मतस्िष्क पर रखिे चले जािे हैं, रखिे चले जािे हैं। इतिहास भी कभी जला दे ने जैसा हो जािा है, इतिहास भी कभी भूल जाने जैसा हो जािा है, अिीि भी कभी मरघट पर पहुंचाने जैसा हो जािा है, िादक िति और ऊजा नये के जन्म की ददिा में अग्रसर हो सके । नहीं, धम नहीं कहिा दक पीछे जाओ। धम िो कहिा हैाः आगे और आगे और अंि में, अननोन, अज्ञाि परमात्मा है, वहां चलना है। तनकलिी है गंगा तहमालय से, गंगोत्री से भागिी है, गंगोत्री पर रुक नहीं जािी। 73



अनजान पहातड़यों में, घाटटयों में, वाददयों में भागिी है, दौड़िी है, पत्थरों से टकरािी है। न मालूम दकिने रास्िे हैं। रास्िे में न कोई पुतलसवाला तमलिा है तजससे पूछ ले दक सागर कहां है, न कोई पुरोतहि तमलिा है दक पूछ ले दक सागर कहां हैं। कोई नहीं तमलिा, कोई गाइड नहीं, कोई मागदिक नहीं, भागिी चली जािी है। अपने भागने पर भरोसा है, अपने प्राणों पर भरोसा है। भागिी है, अनजान, भागिी रहिी है और एक ददन सागर के पास पहुंच जािी है। गंगोत्री में रुक जािी िो सागर नहीं हो सकिी थी। गंगोत्री में नहीं रुकी, भागी, िो गंगोत्री में क्षीण सी धारा थी, सागर के पास पहुंच कर तवराट धारा हो गई और सागर में तगरिे ही िो सागर हो गई। जाना है अनंि िक, जाना है आगे और आगे और भतवष्य... वहां जहां अनंि का सागर है। जो पीछे रुक गए हैं, उन्होंने अपने हाथ से अपने पैरों पर कु ल्हाड़ी मार ली है। मैं भतवष्य को, उस आने वाले सूरज को जो उगेगा, उस भवन को जो हम बनाएंगे, उसके तलए कामना जगाना चाहिा हं, उसके तलए आकांक्षा और अभीप्सा जगाना चाहिा हं। लेदकन हमारे सारे तिक्षक पुराने से बंधे हैं, हमारे सारे तिक्षक प्रतिगामी हैं, हमारे सारे तिक्षक टरएक्िनरी हैं, हमारे सारे तिक्षक कहिे हैं, वह जो था, वही ठीक था। एक बार इस दे ि को तनणय करना होगा दक जो था अगर वह ठीक था िो हम गलि क्यों हो गए हैं? जो था अगर वह ठीक था िो हम उसी से िो पैदा हुए हैं, हम उसी के िो बाई-प्रॉडक्ट हैं। जो था अगर वह ठीक था िो हम ऐसे क्यों हैं? बेटा सबूि है अपने बाप का। अगर बाप ठीक था िो यह बेटा गड़बड़ कै से? िल सबूि है, अपने बीज का। अगर बीज मीठा था, िो यह िल कड़वा कै से है? िल यह नहीं कह सकिा दक बीज िो ठीक था, लेदकन हम गड़बड़ हो गए हैं। नहीं, बीज से ही िल पैदा होिे हैं। बीज िो खो गए, उनका िो अब कु छ पिा नहीं है। अब िो िल सबूि दें गे दक बीज कै से थे। हम सबूि हैं, अपने पूरे अिीि के । हमारे अतिटरि और कोई सबूि नहीं है। हम कै से हैं, वह सबूि है हमारे पूरे इतिहास का। क्योंदक उस पूरे इतिहास की यात्रा से हम जन्मे हैं, उस यात्रा से हम पैदा हुए हैं। और अगर वह ठीक था िो हम गलि क्यों हैं? अगर हम गलि हैं िो हमें जानना पड़ेगा, हालांदक इस बाि को जानने में बड़ी पीड़ा होिी है, बड़ा दुख होिा है दक हम अगर गलि हैं िो हमारे अिीि की प्रदक्रया गलि थी और हमें नई प्रदक्रया और नई जीवन-ददिा को चुनना जरूरी हो गया है। मेरी इन बािों को इिनी िांति और प्रेम से सुना, उससे बहुि अनुगृहीि हं। और अंि में सबके भीिर बैठे परमात्मा को प्रणाम करिा हं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ छठवां प्रवचन



िोड़ने का एक और उपक्रम मेरे तप्रय आत्मन्! तमत्रों ने बहुि से प्रश्न से पूछे हैं। एक तमत्र ने पूछा हैाः महापुरुषों की आलोचना की बजाय उतचि होगा दक सृजनात्मक रूप से मैं क्या दे खना चाहिा हं दे ि को, समाज को, उस संबंध में कहं। लेदकन आलोचना से इिने भयभीि होने की क्या बाि है। क्या यह वैसा ही नहीं है हम कहें दक पुराने मकान को िोड़ने की बजाय नये मकान को बनाना ही उतचि है? पुराने को िोड़े तबना नये को बनाया कब दकसने है? और कै से बना सकिा है? तवध्वंस भी रचना की प्रदक्रया का तहस्सा है। िोड़ना भी बनाने के तलए जरूरी तहस्सा है। अिीि की आलोचना भतवष्य में गति करने का पहला चरण है और जो लोग अिीि की आलोचना से भयभीि होिे हैं, वे वे ही लोग हैं जो भतवष्य में जाने में सामथ्य भी नहीं ददखा सकिे हैं। लेदकन इिना भय क्या है? सृजनात्मक आलोचना, एक दक्रएटटव दक्रटटतसज्म से इिना भय क्या है? क्या हमारे महापुरुष इिने छोटे हैं दक उनकी आलोचना से हमें भयभीि होने की जरूरि पड़े। और अगर वे इिने छोटे हैं िब िो उनकी आलोचना जरूर ही होनी चातहए, क्योंदक उनसे हमारा छु टकारा हो जाएगा। और अगर वे इिने छोटे नहीं हैं िो आलोचना से उनका कु छ भी तबगड़ने वाला नहीं है। दोनों हालि में आलोचना कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकिी है। लेदकन यह हमारा पूरा दे ि ही आलोचना से भयभीि हो गया है। यह हम आज से भयभीि हैं ऐसा नहीं, यह हम हमेिा से भयभीि हैं। और जो समाज अपने अिीि की आलोचना नहीं करिा, वह भतवष्य के तलए तनणय भी नहीं ले पािा है दक कहां कदम रखने हैं, कै से कदम रखने हैं। उसका सारा अिीि तबना आलोचना के , अनदक्रटटसाइज्ड इकट्ठा हो जािा है। उस सारे अिीि में से चुनाव करना मुतश्कल हो जािा है दक क्या चुनना है। उस अिीि में से क्या छोड़ना है, यह जानना मुतश्कल हो जािा है। उस अिीि का बोझ इिना हो जािा है दक उस अिीि के नीचे हम दब कर मर सकिे हैं, उस अिीि के कं धे पर खड़े होकर भतवष्य की ओर उठ नहीं सकिे हैं। भारि का अिीि हमारा चुना हुआ अिीि नहीं है, एक ढेर की भांति हमारे तसर पर बैठा हुआ है। उसमें सब िरह की बािें बैठी हुई हैं। उसमें तवरोधी, कं ट्रातडक्िंस बैठे हुए हैं और उन सबको हम झेल रहे हैं और उन सबके साथ हम जीने की कोतिि कर रहे हैं। इसतलए भारि में इिना कं फ्यूजन है, इिना तवभ्म है। हम कोई तनणय नहीं ले सके । हमारे अिीि में कृ ष्ण हैं, जो युद्ध के मैदान पर लड़िे हैं, वे भी हमें पूज्य हैं। हमारे अिीि में महावीर हैं, जो कहिे हैं, एक कीड़े को भी मारना पाप है, युद्ध में लड़ने की िो बाि ही अलग, वे भी हमारे पूज्य हैं। न हमने महावीर पर कभी तवचार दकया, न कभी कृ ष्ण पर तवचार दकया। दोनों हमारे मन में बैठे हुए हैं। और उन दोनों की वजह से हमारे मन में कं फ्यूजन पैदा होना अतनवाय है। एक िरि कृ ष्ण हैं, जो कहिे हैं, न कोई मरिा है और न कोई मारा जािा है, इसतलए युद्ध में कोई भय नहीं है। दूसरी िरि महावीर हैं, जो कहिे हैं दक जरा सा भी चींटी का मर जाना नरक जाने का द्वार है, इसतलए युद्ध और जहंसा से बचना। कु छ हमें िय करना पड़ेगा, कौन है ठीक? कु छ हमें तनणय लेने होंगे, क्या है सही? 75



लेदकन हम कहिे हैं दक अिीि की आलोचना मि करो, अिीि का तवचार मि करो। िब अिीि के हजारों-हजारों वषों में, हजारों-हजारों तवचारों का जो संग्रह हमारे ऊपर इकट्ठा हो गया है वह सारा संग्रह हमारे प्राणों पर बैठा हुआ है। उस सारे संग्रह के नीचे हम दबे जा रहे हैं और जी रहे हैं और हम कोई भी तनणय नहीं ले पािे दक इस दे ि का व्यतित्व एक स्पि तनखार को उपलब्ध हो। िायद आपको पिा न हो, इस दे ि में दकिनी धाराएं रही हैं तवचार की। वे सारी की सारी धाराएं भारिीय मतस्िष्क में इकट्ठी होकर बैठ गईं। वे बहुि तवरोधी धाराएं हैं और उन तवरोधी धाराओं के कारण हमारा व्यतित्व खंतडि हो गया है, तस्प्लट हो गया है। भारि में दकसी आदमी के पास इं टटग्रेटेड पसनैतलटी तजसको हम कहें, एक समग्र समूचा व्यतित्व कहें, इकट्ठा व्यतित्व कहें, एक स्वर वाला व्यतित्व कहें, वह नहीं है। उसके भीिर न मालूम दकिने स्वर हैं। उन सभी स्वरों के बीच उसे जीना पड़िा है। इससे एक मल्टी-पसनैतलटी, एक बहु-व्यतित्व भीिर पैदा हो गया है। तजसमें से कु छ तनणय नहीं हो पािा दक हमारा स्वरूप क्या है, हमारा व्यतित्व क्या है, हम कहां खड़े हैं, वह हमें कु छ भी पिा नहीं चल पािा। और इस सबके पीछे एक ही कारण है दक हमने अपने अिीि की आलोचना करने से भय ददखलाया है। और अगर हम आगे भी यह जारी रखिे हैं िो भारि की सारी प्रतिभा कुं टठि हो गई है, और कुं टठि हो जाएगी। बहुि स्पि तवचार होना चातहए, बहुि स्पि सूझ होनी चातहए। न कोई गांधी का मूल्य है, न महावीर का, न कृ ष्ण का, मूल्य है इस दे ि के भतवष्य का। अगर बड़े से बड़े महापुरुष को भी उस भतवष्य के तलए छोड़ना पड़े, िो छोड़ने की िैयारी होनी चातहए। सवाल यह नहीं है दक हम छोड़ दें , सवाल यह है दक इस दे ि का भतवष्य महत्वपूण है या इस दे ि के अिीि के महापुरुष महत्वपूण हैं? बड़े से बड़े महापुरुष से पैदा होने वाला छोटे से छोटा बच्चा भी ज्यादा महत्वपूण है, क्योंदक वह भतवष्य है, वह कल आएगा, वह कल जीएगा, कल वह बनेगा। उसको ध्यान में रखना है। लेदकन हमारा मुल्क, हमारी पूरी जचंिा उनको ध्यान में रखिी है जो जी चुके और जा चुके। यह समादर ठीक है, लेदकन यह समादर महंगा पड़ रहा है। आने वाले बच्चे का सम्मान चातहए। उस बच्चे के सम्मान, उसके भतवष्य, उसके जीवन के तलए तवचार चातहए। हमें बहुि ही स्पि, बहुि आदरपूवक अिीि की आलोचना करनी पड़ेगी। आलोचना का अथ जनंदा नहीं है। यह भी एक अजीब पागलपन है। इस मुल्क में आलोचना करने का मिलब जनंदा समझा जािा है। यह हमारी क्षुद्र बुतद्ध का सबूि है। इसका मिलब यह है दक हम जनंदा करने को ही आलोचना समझिे हैं या आलोचना करने को जनंदा समझिे हैं। गांधी की आलोचना, गांधी की जनंदा नहीं है। मेरी बाि की आप आलोचना करें , िो वह मेरी जनंदा नहीं है, बतल्क मेरी बाि की आलोचना करने से आप खबर दे िे हैं दक आपने मेरी बाि को मूल्य ददया। इस योग्य समझा दक आप उस पर सोच रहे हैं। नहीं, आलोचना जनंदा नहीं है, आलोचना सम्मान है। हम आलोचना हर दकसी की नहीं करने बैठे जािे हैं, कोई ऐरे -गैरे की आलोचना करने सारा मुल्क नहीं बैठ जाएगा। तजसकी हम आलोचना करने बैठिे हैं, हम यह मान कर चलिे हैं दक उस व्यति की आलोचना या उस व्यति का तवचार दे ि के तहि या अतहि में महत्वपूण हो सकिा है। माक्स की मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु पर थोड़े से तमत्र, दस-बीस तमत्र ही उसकी कब्र पर इकट्ठे थे। एंतजल्स ने उसकी कब्र पर बोलिे हुए एक बाि कही। एंतजल्स ने कहा दक माक्स एक महापुरुष था। तमत्रों को हैरानी हुई, क्योंदक अगर महापुरुष था िो कु ल बीस-पच्चीस लोग कब्र पर छोड़ने आए थे। तमत्रों ने पूछा दक महापुरुष? िो एंतजल्स ने कहा दक मैं इसतलए कहिा हं महापुरुष माक्स को दक जो भी उसकी बाि सुनेगा, उसे या िो माक्स 76



के पक्ष में होना पड़ेगा या तवपक्ष में होना पड़ेगा। दो के अतिटरि कोई माग नहीं है। जो भी माक्स की बाि सुनेगा, उसे या िो माक्स के पक्ष में होना पड़ेगा या तवपक्ष में होना पड़ेगा। माक्स की उपेक्षा कोई भी नहीं कर सकिा है। इसतलए मैं कहिा हं, यह महापुरुष है। यह बड़ी अदभुि बाि कही एंतजल्स ने। माक्स के महापुरुष होने का कारण यह दक उसके तवचार की उपेक्षा नहीं की जा सकिी। आप इनतडिरें ट नहीं हो सकिे उसके तवचार के प्रति। आपको कोई न कोई तनणय लेना ही पड़ेगा। चाहे पक्ष में, चाहे तवपक्ष में। तजस मनुष्य के तवचार के संबंध में हमें कोई न कोई तनणय लेना ही पड़े उसको ही महापुरुष कहा जा सकिा है, और दकसी को नहीं। और जब आप अपने महापुरुष के तवपक्ष में होने की सामथ्य िोड़ दे ना चाहिे हैं। गांधी के तवपक्ष में कोई न हो सके जब आप ऐसी कोतिि करिे हैं, िो आपको पिा नहीं, आप अपने हाथ से गांधी की जमीन खींच रहे हैं। क्योंदक तजस आदमी के तवपक्ष में कोई नहीं हो सकिा, ध्यान रहे, उसके पक्ष में भी कोई कभी नहीं होगा। तजसके तवपक्ष में कोई कभी नहीं हो सकिा उसके पक्ष में भी कोई कभी नहीं होगा। तजसके तवपक्ष में होने की जरूरि नहीं पड़िी उसके पक्ष में होने की भी कोई जरूरि नहीं पड़िी है। और तजसके तवपक्ष में हमें होने की आवश्यकिा नहीं है, हम िब ऊपरी िौर से कहिे रहेंगे दक हम उसके पक्ष में हैं, लेदकन हमारे प्राण कभी उसके पक्ष में नहीं हो सकिे हैं। हम पक्ष में उसी के हो सकिे हैं, तजसके तवपक्ष में होना भी जरूरी मालूम पड़ सकिा हो। एक जमाना था, ईश्वर के तवरोध में वे लोग समझे जािे थे जो नातस्िक थे, जो कहिे थे ईश्वर नहीं है। तपछली सदी में एक तवचारक ने तलखा दक नातस्िक दिर भी ईश्वर को आदर दे िे थे, क्योंदक वे ईश्वर को तवचारणीय मानिे थे। वे ईश्वर पर दकिाबें तलखिे थे, िक करिे थे और तसद्ध करना चाहिे थे दक ईश्वर नहीं है। जमाना नातस्िकिा से भी आगे जा चुका है। अब दकसी से कहो दक ईश्वर, िो वह कहिा है, छोड़ो, यह कोई बाि करने योग्य नहीं है। नातस्िक िो ईश्वर को पूरा सम्मान दे िा है, हो सकिा है आतस्िक से ज्यादा सम्मान दे िा हो। और सच िो यह है दक आतस्िक से ज्यादा सम्मान ही नातस्िक दे िा है, क्योंदक आतस्िक िायद ही कभी ईश्वर के संबंध में इिना तवचार करिा हो तजिना नातस्िक करिा है। और यह भी हो सकिा है दक आतस्िक वे ही लोग बने बैठे हुए हैं जो ईश्वर के संबंध में तवचार वगैरह नहीं करना चाहिे, उस झंझट में नहीं पड़ना चाहिे, कहिे हैं, ठीक है, है, होगा, जरूर होगा, होना ही चातहए। लेदकन नातस्िक प्राणों की बाजी लगािा है ईश्वर के तलए। उसके तलए ईश्वर एक तलजवंग प्रॉब्लम है। उसे िय ही करना है दक ईश्वर है या नहीं, क्योंदक उसी िय करने पर उसका जीवन तनभर करे गा दक वह दकस िरह जीए। आतस्िक कहिा है दक है, और जीिा इस िरह है जैसे नातस्िक को जीना चातहए। आतस्िक कहिा है दक है परमात्मा, मंददर में पूजा कर आिा है और जीिा ऐसे है जैसे परमात्मा पृथ्वी पर कहीं भी न हो। यह आतस्िक का सम्मान है या उस नातस्िक का सम्मान है जो ईश्वर को प्राणों की बाजी लगा लेिा है। सोचिा है ददन और राि, तवचार करिा है, तनणय करिा है, िक करिा है, संदेह करिा है, सोचिा है, खोजिा है, ईश्वर है? वह उसके प्राणों का सवाल है। अगर होगा िो उसे जजंदगी बदलनी पड़ेगी, नहीं होगा िो जजंदगी दूसरी िरह की होगी। लेदकन नातस्िक ईश्वर को उपेक्षा के योग्य नहीं मानिा। हमारी नई सदी में लाखों लोग ऐसे हैं जो नातस्िक भी नहीं हैं। वे कहिे हैं, ईश्वर, होगा या नहीं होगा, कोई प्रयोजन नहीं है। यह पहली दिा ईश्वर की मौि की खबर है। ईश्वर मरने के करीब पहुंच गया यह इसकी 77



खबर है। नातस्िक ईश्वर को नहीं मरने दे गा, लेदकन यह उपेक्षा, यह इनतडिरें स दक ईश्वर की बाि उठे और लोग कहें दक छोड़ो, कोई और बाि करें । यह इनतडिरें स ईश्वर की मौि हो सकिी है। और आप जान कर हैरान होंगे, अगर दुतनया में नातस्िक न होिे िो आतस्िक कभी के इनतडिरें ट हो चुके होिे, उन्होंने कभी की दिक्र छोड़ दी होिी ईश्वर की। वह जो नातस्िक तवरोध दकए जािा है, आलोचना दकए जािा है, वह आतस्िक को बल दे िा रहिा है दक वह सोचे, दिर सोचे, दिर सोचे ईश्वर है या नहीं। दुतनया में तवचार को जन्माने में, तवचार को गतिमान करने में कनिर्मस्ट जो होिे हैं, स्वीकार करने वाले जो लोग होिे हैं, आस्थावादी जो होिे हैं, उन्होंने कोई भी हाथ नहीं बंटाया है। आपको िायद पिा न हो, वेद और उपतनषद से आकर भारि में तवचार की धारा रुक गई थी, तबल्कु ल रुक गई थी। महावीर और बुद्ध, प्रबुद्ध कात्यायन, मक्खली गोिल, संजय वेलट्ठी पुत्त, इन सारे लोग ने वह धारा िोड़ी। इन सारे लोगों ने तवरोध दकया है--वेद का, उपतनषद का। महावीर जैसा आलोचक खोजने से तमलेगा दुतनया में? बुद्ध जैसा आलोचक खोजने से तमलेगा? बुद्ध और महावीर और दूसरे लोगों ने िोड़ दी सारी परं परा। एक िूिान आ गया सारे मुल्क में। सारे मुल्क में जचंिन पैदा हुआ। उस जचंिन की धारा में दिर वसुबंधु और नागाजुन और ददग्नाग और धमकीर्ि और कुं दकुं द और उमास्वाति और सारी परं परा और िंकर और रामानुज और तनम्बाक। बुद्ध और महावीर ने जो आलोचना की उस आलोचना को उत्तर दे ने के तलए, उस आलोचना के पक्ष में खड़े होने के तलए एक हजार साल िक जचंिन चला। एक हजार साल िक जवाब खोजना पड़ा बुद्ध के तलए, महावीर के तलए। या बुद्ध और महावीर के पक्ष में दलील खोजनी पड़ी। एक हजार साल मुल्क की प्रतिभा ने मंथन दकया। अदभुि-अदभुि अनुभव उस मंथन से उपलब्ध हुए। उस मंथन से िंकर जैसा आदमी पैदा हुआ, नागाजुन जैसा अदभुि आदमी पैदा हुआ, उस मंथन से, उस आलोचना के पटरणाम से। अगर बुद्ध और महावीर ने आलोचना न की होिी िो जहंदुस्िान में िंकर और नागाजुन के पैदा होने की कोई संभावना नहीं थी। वे उस आलोचना के प्रतििल थे। लेदकन दिर िंकर के बाद आलोचना क्षीण पड़ गई। दिर िंकर को स्वीकार कर तलया गया। िंकर के बाद दिर आलोचना नहीं हो सकी, दिर एक हजार साल भारि में बुतद्ध की दृति से अकाल का समय बीिा। दिर एक हजार साल िक आलोचना करने से हम भयभीि हो गए। क्योंदक बुद्ध और महावीर ने आलोचना की थी, िो हमें पंद्रह सौ साल िक उस आलोचना के तलए सोचना पड़ा था। आदमी सोचना नहीं चाहिा। आदमी सुस्ि और कातहल है। वह समझिा है दक तबना सोचे काम चल जाए िो बहुि अच्छा। िो पंद्रह सौ साल िक टक्कर लेनी पड़ी मतस्िष्क को, श्रम करना पड़ा। िो आदमी ने सोचा दक अब छोड़ो दिक्र, िंकर पर तवश्वास कर लो। िंकर पर तवश्वास कर तलया गया। हजार साल से दिर आलोचना बंद हो गई। दिर जहंदुस्िान में, इन हजार सालों में उस िरह के लोग पैदा न हो सके दक नागाजुन, बुद्ध या महावीर पैदा हो सकिे। वे नहीं पैदा हो सके । अब भारि का पुनजागरण का युग आया। दे ि स्विंत्र हुआ। अगर इस स्विंत्रिा के साथ भारि के मतस्िष्क में आलोचना की िति नहीं जगिी है िो जहंदुस्िान की प्रतिभा का जन्म नहीं होगा, यह मैं आपसे कह दे ना चाहिा हं। चातहए िीव्र आलोचना दक जहंदुस्िान में पचास वषों िक दस-पच्चीस िीव्र आलोचक पैदा हों जो जहंदुस्िान की जड़ें तहला दें । उसके मतस्िष्क को तहला दें । िो हम आने वाली सदी में दिर बुद्ध और महावीर और िंकर जैसे लोग पैदा कर सकें गे। नहीं िो हम पैदा नहीं कर सकें गे। मगर हम तबल्कु ल नपुस ं क, इं पोटेंट हो गए हैं। हमारी जान तनकलिी है जरा सा तवचार करने में, जरा सा तवचार, जरा सी आलोचना, हमारे प्राण कं पिे हैं। 78



इिनी कमजोर कौम प्रतिभा पैदा नहीं कर सकिी है। इिनी कमजोर कौम कै से प्रतिभा पैदा करे गी? प्रतिभा िो एक साधना है, प्रतिभा िो एक श्रम है। आपको पिा है दक िीन सौ वषों में यूरोप में जो भी तवकास हुआ है वह दकन लोगों की वजह से हुआ है? आतस्िकों की वजह से? श्रद्धा करने वालों की वजह से? कनिर्मस्ट लोगों की वजह से? आथोडाक्स लोगों की वजह से? रूदढ़ग्रस्ि लोगों की वजह से? रूदढ़ग्रस्ि लोगों की वजह से दुतनया में कभी कोई तवकास नहीं हुआ। दकसके द्वारा तवकास हुआ है? उन तवद्रोतहयों की वजह से तजन्होंने सारी रूदढ़ िोड़ने की तहम्मि की, तजन्होंने संदेह दकया, तवश्वास नहीं। तजन्होंने आलोचना की, आस्था नहीं। िीन सौ वष के उन वाल्िेयर, या रूसो, या दीदरो, या नीत्िे, या फ्ायड और माक्स ऐसे लोगों की वजह से पतश्चम की प्रतिभा को झकझोड़ तमला। प्रतिभा चौंक गई। उत्तर खोजना जरूरी हो गया। या िो पक्ष या तवपक्ष में होना पड़ेगा। कोई तवकल्प न रहा दक आप चुपचाप अपनी सुस्िी में और उपेक्षा में बैठे रहें। अब नीत्िे को सुतनएगा िो उसका पक्ष या तवपक्ष, कहीं न कहीं आपको होना पड़ेगा। आप यह नहीं कह सकिे दक ठीक है, सुन तलया। आपको यह कहना ही पड़ेगा दक नीत्िे ठीक है या गलि है। दो के अतिटरि िीसरा कोई रास्िा नहीं है। और जब आपको दकसी को ठीक या गलि कहने के तलए सोचना पड़िा है िो आपकी प्रतिभा में अंकुर आने िुरू होिे हैं। लेदकन जब आप कहिे हैं आलोचना करनी ही नहीं है, आलोचना तवध्वंसात्मक है, हमें िो जो कहना है वह कहना चातहए। िो दुतनया के सभी श्रेष्ठ तवचारक तवध्वंसात्मक थे, लेदकन बाद में हमें याद भी नहीं रह जािा दक वे दकिने बड़े आलोचक रहे होंगे, दकिने बड़े आलोचक रहे होंगे! और कै सी िीव्र आलोचना की होगी। हम िो समझिे हैं दक आलोचना यानी गाली-गलौज हो गई। यह जो हमारी आज की धारणा है, इस धारणा को तबल्कु ल आग लगा दे ने की जरूरि है। एक-एक बच्चे को संदेह तसखाया जाना चातहए, डाउट तसखाया जाना चातहए। एक-एक बच्चे को दक्रटटकल होने की, आलोचनात्मक होने की प्रेरणा दे नी चातहए। एक-एक बच्चे को--मां-बाप को, गुरु को कहना चातहए दक हमारी बाि मान मि लेना, तवचार करना, सोचना, झगड़ना, तहम्मि से हमसे लड़ना। अगर िुम्हारे तववेक को स्वीकार हो िो ही मानना अन्यथा मि मानना। अगर हम इिनी तहम्मि ददखाएंगे िो जहंदुस्िान की प्रतिभा तवकतसि होगी, अन्यथा नहीं तवकतसि हो सकिी। क्या करूं? आपकी बाि मान लूं, आलोचना नहीं करनी चातहए? या दक यह दे खूं दक आने वाले मुल्क का भतवष्य आलोचना से ही पैदा हो सकिा है? मैंने कल िायद कहा दक राधाकृ ष्णन कोई तवचारक नहीं हैं। बस तचटट्ठयां आ गईं दक आपने बहुि बुरा काम कर ददया आपने राधाकृ ष्णन को ऐसा कै से कह ददया? राधाकृ ष्णन तवचारक हैं या नहीं, यह सोचना चातहए। मैंने कह ददया कोई मान लेने की जरूरि है? मैं कहिा हं दक नहीं हैं तवचारक--मैं कहिा हं िो मैं उसके तलए दलील दे िा हं। आप सोतचए दक हैं तवचारक िो दलील खोतजए। बस इिना ही मैं चाहिा हं दक तवचार की प्रदक्रया चले। हो सकिा है दक राधाकृ ष्णन तवचारक तसद्ध हों तवचार करने से और मेरी बाि गलि तसद्ध हो। लेदकन मुझे कहना नहीं चातहए यह कौन सी बाि हुई? मुझे जो लगिा है वह मुझे कहना चातहए। मुझे लगिा है दक राधाकृ ष्णन कोई तवचारक नहीं हैं। के वल एक टीकाकार हैं, एक व्याख्याकार हैं, एक अनुवादक हैं। एक अच्छे अनुवादक हैं, एक अच्छे कमेंटेटर हैं, एक अच्छे टीकाकार हैं। उन्होंने पूरब की सारी धारणाओं को पतश्चम में तजिनी सुंदरिा से पहुंचाया उिना कोई मनुष्य कभी भी नहीं पहुंचाया। लेदकन तवचारक वे नहीं हैं। उन्होंने एक नये तवचार को जन्म नहीं ददया। उनकी 79



सारी दकिाबों में एक भी सूत्र ऐसा नहीं है जो उनकी मौतलक प्रतिभा से जन्मा हो। वे सब गीिा, उपतनषद और वेदों के उधार सूि्र हैं। तवचारक वे नहीं हैं, तवचारक होने का कोई सवाल नहीं है उनका। लेदकन हमने कु छ ऐसी हालि पकड़ ली है दक तजस आदमी की हम प्रिंसा करें गे उसकी हम सब िरह से प्रिंसा करें गे। हम दिर कोई तहस्सा नहीं छोड़ सकिे उसका दक वह न हो, वह सभी होना चातहए। जहंदुस्िान में एक पागल भाव पैदा हो गया है दक हमारे महापुरुष में सभी कु छ होना चातहए। दुतनया के दकसी महापुरुष में सभी कु छ नहीं होिा। अगर आप महावीर के पास पूछने जाएंगे दक साइदकल का पंक्चर कै से सुधारा जा सकिा है? िो महावीर नहीं बिा सकिे। इसके तलए िो साइदकल का जो, कोने पर बैठा हुआ, एक टपरा लगाए हुए बैठा हुआ आदमी वही बिा सके गा। लेदकन हमारी धारणा यह दक महावीर सवज्ञ हैं, वे सभी कु छ जानिे हैं, ऐसा कु छ भी नहीं तजसको वे नहीं जानिे। पागलपन की बािें हैं। बुद्ध ने मजाक उड़ाया है इस धारणा का जैतनयों की। बुद्ध ने कहा है दक एक ज्ञानी हैं। उनके भि कहिे हैं दक वे सवज्ञ हैं, वे तत्रकालज्ञ हैं, वे िीनों काल जानिे हैं। लेदकन उन्हीं ज्ञानी को मैंने ऐसे घरों के सामने तभक्षा मांगिे दे खा है जहां बाद में पिा चलिा है घर में कोई है ही नहीं। मैंने उन्हीं ज्ञानी को रास्िे पर चलिे हुए कु त्ते की पूंछ पर पैर पड़िे दे खा है। बाद में पिा चलिा है दक अंधेरे में कु त्ता सोया हुआ था और उनके भि कहिे हैं दक वे तत्रकालज्ञ हैं, िीनों काल जानिे हैं! बुद्ध बड़े मतहमािाली हैं। लेदकन िंकर कहिे हैं दक मैंने सुना है दक भगवान ने बुद्ध को इसतलए अविार ददया, यह कहानी िंकर ने गढ़ी, कहानी िंकर ने गढ़ी दक मैंने सुना है दक नरक और स्वग बनाए भगवान ने। लेदकन नरक में कोई जािा ही नहीं था, िो नरक का जो अतधकारी था उसने भगवान को जाकर कहा, नरक में कोई आिा ही नहीं, िो मुझे दकसतलए बैठाया हुआ है? िो भगवान ने बुद्ध को अविार ददया दक िुम जाकर लोगों को भ्ि करो िादक वे नरक जा सकें । िो िंकर गलि कह रहे हैं? िंकर गलि कह रहे हैं और सही कह रहे हैं यह सोचने की बाि है। लेदकन िंकर को कहने का हक है। िंकर को कहने का हक है, जो उसे ठीक लगिा है वह कह रहा है। उसे लगिा है दक बुद्ध ने लोगों को भ्ि दकया। बुद्ध ने, तजनके तलए हम सोचिे हैं उनके जैसा महापुरुष जगि में कोई पैदा नहीं हुआ। लेदकन िंकर कहिा है दक भ्ि दकया है। और िंकर की उम्र दकिनी है? िंकर ने जब यह बाि कही िब उसकी उम्र िीस साल है। लेदकन अच्छे लोग रहे होंगे, िंकर की बाि भी उन्होंने सुनी। न िो पत्थर मारे , न कहा दक बतहष्कार कर दें गे। िंकर के समय िक बुद्ध िो भगवान हो चुके थे। और एक छोकरे ने, एक गरीब घर के छोकरे ने कहना िुरू कर ददया दक नहीं, यह भ्ि करने को आदमी पैदा हुआ था। इसने दुतनया को बनाया नहीं, तबगाड़ा। तहम्मिवर लोग थे। जब इिनी तहम्मि होिी है िो तवचार तवकतसि होिा है। हमने सारी तहम्मि खो दी है। और दिर हम चाहिे हैं दक हम तवचारिील हो जाएं। हम तवचारिील नहीं हो सकें गे। तवचार का जन्म होिा है संदेह से, तवचार का जन्म होिा है संघष से, तवचार का जन्म होिा है आलोचना से। इसतलए यह मि कहें मुझसे दक मैं आलोचना न करूं! मैं िो आलोचना करूंगा और तजिना आप कहेंगे उिना खोज-खोज कर करूंगा। और एक-एक महापुरुष का पीछा करूंगा, क्योंदक मुझे जरूरि मालूम होिी है। मुझे जरूरि मालूम होिी है, मुझे आवश्यकिा लगिी है दक इस समय दे ि के तलए सबसे बड़ी जरूरि अगर कु छ है िो वह यह है, इस दे ि का हजारों साल से रुका हुआ तवचार का अवरुद्ध प्रवाह टू ट जाए, बहने लगे हमारी सटरिा दिर से। दिर से हम सोचने लगें, दिर से हम पूछने लगें, दिर से इं क्वायरी पैदा हो जाए। कै से अदभुि लोग रहे होंगे। खोजिे थे दकिने दूर-दूर िक, दकिनी दूर-दूर 80



की यात्राएं करिे थे। नालंदा में दस हजार तवद्याथी थे। सारे जहंदुस्िान के कोने-कोने से जहंदुस्िान के बाहर से अिगातनस्िान से और बमा से और चीन से हजारों मील की पैदल यात्रा करके आिे थे संदेह सीखने, िक सीखने, पूछने, तजज्ञासा करने। एथेंस में जहां तवचार का जन्म हुआ यूरोप में, थोड़े से ददनों में एक आदमी ने तवचार को जन्म ददला ददया--उस साक्रेटीज ने। क्या दकया साक्रेटीज ने? साक्रेटीज ने जजंदगी के सारे मसले दिर से उठा ददए। एक-एक प्रश्न दिर से खड़ा कर ददया। एक-एक प्रश्न को जो हम समझिे थे हल हो गया, दिर से जजंदा बना ददया। जब सारे प्रश्न जजंदा हो गए िो सोचना मजबूरी हो गई। उस सोचने से अरस्िू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ, प्लेटीनस पैदा हुआ। वे सारे के सारे लोग पैदा हुए। सारे यूरोप की धारा पैदा हुई एक आदमी से, साक्रेटीज से। क्योंदक उसने क्वेश्चजनंग पैदा कर दी। उसने एक भी प्रश्न को नहीं रहने ददया। अस्िव्यस्ि कर ददए सारे उत्तर। अिीि ने जो भी उत्तर ददए थे, सब गड़बड़ कर ददए और आदमी को वहां खड़ा कर ददया जहां वह पूछेाः क्या है सत्य? साक्रेटीज से लोग कहिे दक िुम उत्तर दो। िुम िो बिाओ दक सत्य क्या है। वह कहिा, यह मेरा काम नहीं। मेरा काम यह है बिाना दक सत्य क्या नहीं है। सत्य क्या है वह िो िुम्हारे भीिर तजज्ञासा पैदा हो जाएगी िो िुम खोज लोगे। असत्य क्या है वह मैं बिा दूं, मेरा काम पूरा हो जािा। साक्रेटीज ने कहााः मैं िो एक तमडवाइि की िरह हं, एक दाई की िरह हं। मेरा काम बच्चे को जन्माना नहीं है, के वल बच्चे के तलए द्वार दे दे ना है दक वह जन्म जाए। बच्चा िो िुमसे पैदा होगा। मैं बच्चा नहीं पैदा कर सकिा हं। साक्रेटीज ने कहााः मैं िो संदेह पैदा करूंगा। साक्रेटीज से लोग डरिे थे। अगर रास्िे पर तमल जाए िो नमस्कार करने में डरिे थे। क्योंदक उससे नमस्कार की दक कोई झंझट खड़ी हो जाए। िो िुमने नमस्कार की, िो वह िौरन पूछेगा, आपने नमस्कार क्यों की? अब आप कु छ िो कहेंगे, आप कु छ कहेंगे और डायलॉग िुरू हो जाएगा। साक्रेटीज से लोग बचने लगे। वे यह दे ख लेिे दक वह आ रहा है, वे दूसरी गली से तनकल जािे। लेदकन उस अके ले आदमी ने मौि पर खेल कर... क्योंदक इसका बदला तलया है एथेंस के लोगों ने उससे। हम उस आदमी से बदला लेिे हैं जो हमारा अज्ञान प्रकट कर दे िा है। इसका पिा है आपको? हम उस आदमी से हमेिा बदला लेिे हैं जो हमारा अज्ञान प्रकट कर दे िा है। क्योंदक वह हमारे अहंकार को चोट पहुंचा दे िा है। तजस बाि को हम समझिे थे हम जानिे हैं, वह आकर बिा दे िा है दक नहीं जानिे। बहुि गुस्सा आिा उस आदमी पर दक हम िो माने बैठे थे दक हम जानिे थे, तनजश्चंि हो गए थे, खोज पूरी हो गई थी। इस आदमी ने दिर झंझट खड़ी कर दी। यह दिर इसने ऐसी बािें उठा दीं तजनसे िक पैदा होिा है दक हम जानिे हैं या नहीं जानिे? गुस्सा आिा है उस आदमी पर। ऐसे आदमी से हमने हमेिा बदला तलया है। सारे एथेंस के लोग परे िान हो गए, क्योंदक साक्रेटीज ने सारे पुराने ज्ञान को भूतमसाि कर ददया, पुराने भवन को तगरा ददया। एक-एक आदमी की आस्था की जमीन खींच ली, एक-एक आदमी अंधेरे में लटक गया और एक-एक आदमी कहने लगा, यह आदमी बहुि खिरनाक है। इस आदमी से छु टकारा चातहए। यह हमें िांति से न जीने दे गा। साक्रेटीज पर उन्होंने मुकदमा चलाया और कहा दक यह साक्रेटीज लोगों का ददमाग खराब करिा है। यह हमारे युवकों का ददमाग तबगाड़िा है। इस आदमी को िांसी होनी चातहए। इसको जहर तपलाना चातहए। साक्रेटीज से अदालि के अध्यक्ष ने कहा, क्योंदक साक्रेटीज बहुि प्यारा आदमी था। मतजस्ट्रेट ने उसे कहा दक 81



साक्रेटीज अगर िुम यह वचन दे दो दक आगे से िुम सत्य की बािें नहीं करोगे िो हम िुम्हें छोड़ सकिे हैं। साक्रेटीज ने कहा दक वह िो मेरा धंधा है सत्य की बािें करना। अगर वह धंधा ही छू ट जाए िो मैं जीकर भी क्या करूंगा? साक्रेटीज से वह अध्यक्ष कह रहा है अदालि का दक िुम सत्य की बािें और तजज्ञासा और प्रश्न खड़े नहीं करोगे। साक्रेटीज वहीं अदालि में पूछिा है, क्या महानुभव मैं पूछ सकिा हं, सत्य क्या है? यह िो पक्का हो जाए पहले दक सत्य क्या है, िो दिर मैं सोचूं भी दक उसे छोड़ना दक नहीं छोड़ना। सत्य का अथ क्या है? सत्य कहां है? वह अध्यक्ष बोला दक यही िो हम कहिे हैं दक यह सब बकवास िुम छोड़ दो। साक्रेटीज ने कहा दक मैं जजंदगी छोड़ दूंगा, लेदकन यह नहीं छोडू ंगा। क्योंदक सत्य से ज्यादा प्यारा कु छ भी नहीं है। और सत्य की खोज में तजसे जाना है, उसे झूठे ज्ञान को छोड़ना पड़िा है। लोग मुझसे नाराज हो गए हैं क्योंदक मैंने उनसे झूठा ज्ञान छीन तलया है और सच्चे ज्ञान पर जाने के तलए वे तहम्मि और साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। इसतलए एक वैक्यूम, एक िून्य पैदा हो गया है। लेदकन मैं यह िून्य पैदा करिा रहंगा या मर जाऊं या जजंदा रहंगा िो सत्य बोलिा रहंगा। सत्य के तबना मैं कै से जी सकिा हं? उस आदमी ने मर जाना पसंद दकया, लेदकन उसी आदमी ने एथेंस की संस्कृ ति को आकाि िक उठा ददया। उस अके ले आदमी ने तजसका खून दकया गया, तजसको जहर तपलाया गया, उस एक आदमी की वजह से पतश्चम की सारी संस्कृ ति की गंगा पैदा हुई। उसकी गंगोत्री साक्रेटीज में है। जहंदुस्िान में साक्रेटीज, सुकराि जैसे लोगों की जरूरि है िादक हजारों साल का बंधा हुआ प्रवाह टू ट जाए, मुि हो सके । जहंदुस्िान दिर सोच सके , दिर तवचार कर सके । हमें खयाल ही नहीं, हम तजिना तवश्वास कर लेिे हैं उिना ही तवचार करना मुतश्कल हो जािा है। तवश्वास तवचार की हत्या है। तजिना हम तवश्वास करिे हैं उिनी तवचार की कोई जरूरि नहीं रह जािी है। तवचार की जरूरि िो िब पैदा होिी है जब हम तवश्वास नहीं करिे। जब हम मान लेिे हैं दक गांधी महात्मा हैं, काम खत्म हो गया। बच्चे को हमने कह ददया दक वे महात्मा हैं, बाि खत्म हो गई। बच्चे को पूछना चातहए दक महात्मा वे कै से हैं? क्यों हैं? वही महात्मा क्यों हैं और कोई महात्मा क्यों नहीं हैं? ऐसी बाि क्या है तजसे हम महात्मा मानें? लेदकन बाप कहेगा दक नहीं, इिनी बािचीि की जरूरि नहीं है। हम जो कहिे हैं वह मानो! हमेिा पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी से कहिी है, हम जो कहिे हैं वह मानो! यह पुरानी पीढ़ी की कमजोरी बिािी है, िाकि नहीं। क्योंदक जब भी कोई आदमी कहिा है, मैं जो कहिा हं मानो, िो वह बिा रहा है दक वह कमजोर आदमी है। उसको अपनी बाि मनवाने के तलए तववेक को जगाने का तवश्वास वह नहीं कर सकिा। वह डंडे के बल पर कह रहा है दक मैं जो कहिा हं वह मानो! मानना पड़ेगा! मेरी उम्र ज्यादा है! मेरा अनुभव ज्यादा है! मैंने जजंदगी दे खी है! दे खी होगी जजंदगी आपने। लेदकन जो जजंदगी आपने दे खी, ये बच्चे उस जजंदगी को कभी नहीं दे खेंगे। ये दूसरी जजंदगी दे खेंगे। कृ पा करके अपनी जजंदगी का ज्ञान इनकी छािी पर मि थोपों। इनको मुि करो िादक ये जो नई जजंदगी दे खेंगे उसको दे ख सकें । लेदकन नहीं, हम भयभीि लोग, कहीं ज्ञान न खो जाए, कहीं आस्था न खो जाए, कहीं तवश्वास न खो जाए, कहीं श्रद्धा न खो जाए, कहीं सब खो न जाए। और है हमारे पास कु छ भी नहीं। सब खोया हुआ है। तसि धुआं-धुआं है। कु छ भी नहीं है हमारे पास। मैंने सुनी है एक कहानी। एक सम्राट के दरबार में एक आदमी ने आकर कहा था दक मैं स्वग से वि ला सकिा हं िुम्हारे तलए। उस सम्राट ने कहााः स्वग के वि? सुने नहीं कभी, दे खे नहीं कभी। उस आदमी ने कहााः 82



मैं ले आऊंगा, दे ख भी सकें गे, पहन भी सकें गे। लेदकन बहुि खच करना पड़ेगा। कई करोड़ रुपये खच हो जाएंगे। क्योंदक टरश्वि की आदि दे विाओं िक पहुंच गई है। जब से ये ददल्ली के राजनीतिज्ञ मर-मर कर स्वग पहुंच गए हैं िब से टरश्वि की आदि वहां पहुंच गई। वहां भी टरश्वि जारी हो गई है, क्योंदक दे विा कहिे हैं हम आदतमयों से पीछे थोड़े ही रह जाएंगे। और यहां पांच रुपये की टरश्वि चलिी है, वहां िो करोड़ों से नीचे बाि नहीं होिी, क्योंदक दे विाओं का लोक है। सम्राट ने कहााः कोई हज नहीं, लेदकन धोखा दे ने की कोतिि मि करना! करोड़ों रुपये दें गे िुम्हें, लेदकन भागने की कोतिि मि करना! मुतश्कल में पड़ जाओगे। उसने कहााः भागने का सवाल नहीं है। महल के चारों िरि पहरा कर ददया जाए, मैं महल के भीिर ही रहंगा। क्योंदक दे विाओं का रास्िा सड़कों से होकर नहीं जािा, वह िो अंिटरक्ष यात्रा है अंदर की। वहीं से अंदर से कोतिि करूंगा। आप घबड़ाइए मि। िलवारें नंगी लगा दी गईं। उस आदमी ने छह महीने का समय मांगा और छह महीने में कई करोड़ रुपये सम्राट से ले तलए। दरबारी हैरान थे और जचंतिि थे। लेदकन सम्राट ने कहा, घबड़ाहट क्या है, जाएगा कहां, रुपये लेकर जाएगा कहां महल के बाहर। छह महीने पूरे होने पर सारी राजधानी में हजारों लोग इकट्ठे हो गए, लाखों लोग इकट्ठे हो गए दे खने को। वह आदमी ठीक समय बारह बजे, जो उसने ददया था, एक बहुमूल्य पेटी तलए हुए महल के बाहर आ गया। अब िो कोई िक की बाि न थी। वह सब जुलूस पूरा का पूरा राजमहल पहुंचा। दूर-दूर के राजा, सम्राट, धनपति दरबार में इकट्ठे थे दे खने को। उस आदमी ने पेटी वहां रखी और कहा, महाराज यह ले आया। ये वि आ गए। अब आप मेरे पास आ जाएं। मैं दे विाओं के वि दे दूं। आप पहन लें। महाराज ने अपनी पगड़ी दी। उसने पगड़ी उस पेटी में डाल दी। वहां से खाली हाथ बाहर तनकाला और कहााः महाराज यह पगड़ी ददखाई पड़िी है? हाथ में कु छ भी न था। महाराज ने गौर से दे खा। उस आदमी ने कहााः खयाल रहे, दे विाओं ने चलिे वि मुझसे कहा था यह पगड़ी और ये कपड़े उसी को ददखाई पड़ेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुआ हो। उस सम्राट ने कहााः हां-हां, ददखाई पड़िी है, क्यों ददखाई नहीं पड़ेगी। बड़ी सुंदर पगड़ी है, बड़ी सुंदर पगड़ी है, ऐसी पगड़ी न िो कभी दे खी, न सुनी। दरबाटरयों ने सुना। दकसी को भी पगड़ी ददखाई नहीं पड़िी थी। पगड़ी होिी िो ददखाई पड़िी। लेदकन दरबाटरयों ने दे खा दक इस वि यह कहना दक नहीं ददखाई पड़िी है, व्यथ अपने मरे हुए बाप पर िक पैदा करवाने से क्या िायदा है। पगड़ी से हमको लेना-दे ना क्या है। अपने बाप को बचाओ, पगड़ी से प्रयोजन क्या है। वे भी िातलयां बजाने लगे और कहने लगे, धन्य महाराज, धन्य! पृथ्वी पर ऐसा अवसर कभी नहीं आया। ऐसी पगड़ी कभी दे खी नहीं गई। एक-एक आदमी अपने मन में सोच रहा था दक बड़ी गड़बड़ बाि है। लेदकन उसने दे खा दक सारे लोग कहिे हैं दक पगड़ी है िो उसने सोचा दक हो सकिा है अपने बाप गड़बड़ रहे हों, लेदकन यह भी दकसी से कहने की बाि नहीं है। अपने भीिर जान तलया, वह ठीक है। अपना राज अपने घर में रखो। जब सारे लोग कहिे हैं िो ठीक ही कहिे होंगे। हमारी यही दलील है दक सारे लोग कहिे हैं िो ठीक कहिे होंगे। जब पूरा जहंदुस्िान कहिा है दक िलां आदमी महावीर भगवान है, िलां आदमी बुद्ध पैगंबर है, िलां आदमी महात्मा है, िो ठीक ही कहिा होगा। जब सब लोग कहिे हैं िो ठीक ही कहिे होंगे। अब अके ले क्यों झंझट में पड़ना। उन लोगों ने सोचा, अपनी झंझट। तजसको तजिना डर लगा वह उिना बाहर आगे आ गया और कहने लगा दक अहा महाराज, धन्य हैं। क्योंदक उसे



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लगा दक कहीं मैंने धीरे -धीरे कहा िो आस-पास के लोगों को िक न हो जाए दक यह आदमी थोड़े धीरे -धीरे बोलिा है। तजिने चोर होिे हैं दुतनया में उिने जोर से तचल्लािे हैं दक चोरी दकसने की है। चोर को पकड़ो। वे चोर तचल्लािे हैं ये बािें िादक दकसी को िक न हो जाए दक यह आदमी कु छ भी नहीं तचल्ला रहा, कहीं चोर न हो। टरश्विखोर तचल्लािे हैं दक मुल्क से टरश्वि बंद होनी चातहए, बेईमान नेिा मुल्क के सामने भाषण दे िे हैं और कहिे हैं दक भ्िाचार नि करना है। और तजिने जोर से मंच पर तचल्लािे हैं भ्िाचार नि करना है, जनिा समझिी है यह बेचारा िो कम से कम भ्िाचारी नहीं होगा, नहीं िो इिना भ्िाचार के तखलाि बोलिा? और जनिा को पिा नहीं दक भ्िाचारी को भ्िाचार के तखलाि बोलना ही पड़िा है। सम्राट ने दे खा दक जब सारा दरबार कह रहा है िो समझ गया वह दक अपने तपिा गड़बड़ रहे हैं। अब कु छ बोलना ठीक नहीं। जो कु छ हो, कपड़े हों या न हों, स्वीकार कर लेना ठीक है। पगड़ी पहन ली उसने जो थी ही नहीं। कोट पहन तलया उसने जो था ही नहीं। एक-एक वि उसका तछनने लगा, वह नंगा होने लगा। आतखरी वि रह गया िब वह घबड़ाया दक यह िो बड़ी मुतश्कल बाि है। कहीं कपड़े मालूम नहीं होिे। बस आतखरी अंडरतवयर रह गया। अब यह भी जािा है। और उस आदमी ने कहा दक महाराज यह अंडरतवयर दे विाओं का पहतनए, इसको तनकातलए। अब वह जरा घबड़ाया। यहां िक िो गनीमि थी। और दरबारी हैं दक िाली पीटे जा रहे हैं दक महाराज दकिने सुंदर मालूम पड़ रहे हैं इन विों में आप। और महाराज तबल्कु ल नंगे हो गए हैं। वे नंगे खड़े हुए हैं। उस आदमी ने धीरे से कहााः महाराज घबड़ाइए मि। सबको अपने बाप की दिक्र है। जल्दी तनकातलए, नहीं िो झंझट हो जाएगी, लोगों को पिा चल जाएगा। उन्होंने जल्दी अंडरतवयर तनकाल ददया, क्योंदक यह िो घबड़ाहट का मामला था। वे तबल्कु ल नग्न खड़े हो गए और दरबारी िो नाच रहे हैं खुिी में दक धन्य हैं महाराज और एक-एक आदमी को राजा नंगा ददखाई पड़ रहा है। लेदकन अब कोई उपाय नहीं है। रानी भी दे ख रही है दक राजा नंगा है, लेदकन कु छ कह नहीं सकिी। वह भी िाली पीट रही, कह रही, महाराज इिने सुंदर आप कभी नहीं ददखाई पड़े। और िब उस आदमी ने कहा दक महाराज दे विाओं ने मुझसे कहा था दक जब यह वि महाराज पहन लें िो उनकी िोभा-यात्रा, उनका प्रोसेिन तनकाला जाना चातहए। राजधानी में हजारों लोग प्रिीक्षा कर रहे हैं, रास्िे के दकनारों पर लाखों लोग खड़े हैं। वे कहिे हैं, हम महाराज के दिन करें गे। रथ िैयार है, आप कृ पा करके रथ पर सवार होइए। आप बाहर चतलए। अब महाराज और भी घबड़ाए। अभी िक िो कम से कम दरबारी थे, अपने ही तमत्र थे, पटरतचि थे, घर के लोग थे। यह झंझट। उस आदमी ने राजा के कान में कहा, आप घबड़ाइए मि, आपके रथ के पहले एक डु गडु गी तपटिी चलेगी और खबर की जाएगी दक ये वि उसी को ददखाई पड़ेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुआ। आप घबड़ाइए मि। जैसे आदमी ये भीिर हैं वैसे ही आदमी बाहर हैं। सब िरि एक से एक बेवकू ि आदमी हैं। आप घबड़ाइए मि। और अगर आपने इनकार दकया दक मैं बाहर नहीं जािा हं, िो लोगों को िक हो जाएगा, आपके तपिा पर िक हो जाएगा। राजा ने कहााः चलो भाई। क्योंदक यह तपिा पर ही िक। एक दिा आदमी झूठ में िं स जाए िो दिर कहां रुके यह बहुि मुतश्कल हो जािा है। जो आदमी झूठ में पहले ही कदम पर रुक जािा है वह रुक सकिा है। जो दस-पांच कदम आगे चल गया दिर बहुि मुतश्कल हो 84



जािी है। लौटना भी मुतश्कल, आगे जाना भी मुतश्कल। उस बेचारे गरीब सम्राट को नंगा जाकर रथ पर खड़ा होना पड़ा। उसके सामने ही डु गडु गी तपटने लगी दक ये वि सम्राट के सुंदर वि दे विाओं के वि हैं। ये वि उन्हीं को ददखाई पड़ेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुए हैं। और सबको वि ददखाई पड़ने लगे। एकदम प्रिंसा होने लगी। गांव में खबर िो पहले ही पहुंच गई थी यह। सब लोग िैयार होकर आए थे दक अपने बाप की रक्षा करनी है और वि भी दे खने थे। वि िो ददखाई न पड़िे थे। राजा नंगा था। लेदकन सारा जनसमूह कहने लगा दक ऐसे सुंदर वि सपनों में भी नहीं दे खे, लेदकन कु छ छोटे बच्चे अपने बापों के कं धों पर चढ़ कर आ गए थे, वे अपने बाप से कहने लगे, तपिाजी, राजा नंगा है! उनके तपिाजी ने कहााः चुप नासमझ! अभी िेरा ज्ञान कम है, अभी िेरी उम्र कम है। ये बािें अनुभव से आिी हैं, ये बड़ी गहरी बािें हैं। जब मेरे उम्र का हो जाएगा, अनुभव तमल जाएगा िो वि ददखाई पड़ने लगेंगे। ये बड़े अनुभव से ददखाई पड़िे हैं। जो बच्चे चुप नहीं हुए, उनके मांबाप उनका मुंह बंद करके भीड़ के पीछे तखसक गए। क्योंदक बच्चों का क्या भरोसा, आस-पास के लोग सुन लें दक इस आदमी के लड़के ने यह कहा है! हमेिा भीड़ के भय के कारण हम सत्यों को स्वीकार दकए बैठे रहिे हैं, भीड़ का भय, दियर ऑि क्राउड। तजसको हम सत्य मान कर बैठें हैं वह सत्य है? या तसि भीड़ का भय है दक चारों िरि के लोग क्या कहेंगे? चारों िरि के लोग तजसको मानिे हैं उसको हम भी मानिे हैं। ऐसा आदमी सत्य की खोज में कभी भी नहीं जा सकिा है, जो भीड़ को स्वीकार कर लेिा है। सत्य की खोज भीड़ से मुि होने की खोज है। वह जो पतब्लक ओतपतनयन है, वह जो भीड़ का मि है, उसको जो पकड़ कर बैठ जािा है वह आदमी सत्य की यात्रा में एक कदम भी नहीं उठा सकिा, क्योंदक भीड़ एक-दूसरे से भयभीि है। आप तजनसे भयभीि हैं वे आपसे भयभीि हैं, यह म्युचुअल दियर है, इससे छु टकारा बहुि मुतश्कल है। और लोग क्या कहेंगे, दुतनया क्या कहेगी, जब सब लोग ऐसा मानिे हैं िो ठीक ही होगा। सत्य की ये धारणाएं सत्य की धारणाएं नहीं असत्य को सत्य बनाने की िरकीबें हैं। वह जो िॉल्स है, जो तमथ्या है, जो झूठा है, उसको भीड़ के द्वारा बल इकट्ठा दकया जािा है। सत्य िो अपने पैरों पर खड़ा हो सकिा है। लेदकन असत्य को भीड़ का मि चातहए, उसके तबना खड़ा नहीं हो सकिा। इसीतलए िो दुतनया में जब असत्य को िै लाना हो, जब असत्य को प्रचाटरि करना हो िो एक आदमी तहम्मि नहीं जुटा पािा। भीड़ चातहए, भीड़ के साथ प्रचार चातहए, भीड़ के साथ भय चातहए, क्योंदक भय के तबना भीड़ भी मानने को राजी नहीं होगी। इसतलए वे कहिे हैं दक अगर ईश्वर को नहीं माना, िो नरक जाना पड़ेगा। अब नरक जाने की िैयारी दकसी की भी नहीं हो सकिी। ईश्वर को न मानने की िैयारी बहुि लोगों की हो सकिी है, लेदकन नरक जाने की िैयारी और दिर नरक का तचत्र दक वहां आग के कड़ाहे जल रहे हैं अनंि काल से, िेल भरा है उनमें, न िेल चुकिा है, न आग चुकिी है और आदमी उनमें सड़ाए जा रहे हैं, जलाएं जा रहे हैं। आदमी मरिा भी नहीं है उस कड़ाह में, तसि जलिा है। करोड़ों-करोड़ों कीड़े हैं जो आदमी के जािे ही उसके िरीर में सब िरि से घुस जािे हैं, हजारों छेद कर दे िे हैं, चक्कर लगािे हैं उसके िरीर में वे कीड़े, वे कीड़े मरिे नहीं, वे कीड़े अमर हैं और आदमी के िरीर भर में तछद्र-तछद्र हो जािे हैं, छलनी हो जािा है, लेदकन वह भी मरिा नहीं है और लाखों-करोड़ों कीड़े उसके िरीर में सब िरि से घुसिे हैं और दौड़िे हैं। इस िरह की घबड़ाहटें पैदा करिे हैं वे। वे कहिे हैं, अगर नहीं मानोगे, नरक जाना पड़ेगा। िो आदमी सोचिा है दक मान ही लो। ऐसा नरक अगर कहीं हुआ, अगर कहीं हुआ, िो कौन झंझट में पड़े। 85



ठीक है िुम्हारे भगवान हैं। वे कहिे हैं, और जो भगवान को मान लेगा, हमारे भगवान को, क्योंदक भगवान बहुि प्रकार के हैं। भगवान का कोई एक प्रकार नहीं, कोई एक क्वातलटी नहीं; बहुि गुण हैं, बहुि भेद हैं, बहुि सी वेराइटी हैं भगवान की। मुसलमान का भगवान अलग िरह का है, जहंदू का अलग िरह का है, ईसाई का अलग िरह का है, इसका इस िरह का है, उसका उस िरह का है। तजिने िरह के लोग हैं उिने िरह के भगवान हैं। वे सब कहिे हैं दक हमारे भगवान को! अगर दूसरे के भगवान को माना िो दिर िुम समझ लेना, नरक के तसवाय कोई रास्िा नहीं रह जाएगा। क्योंदक आतखर में जीसस क्राइस्ट ही बचाएंगे, ईसाई कहिा है। मुसलमान कहिा है, जब मोहम्मद को पुकारोगे िब वही बचाएंगे कोई और बचाने वाला नहीं है। िो ध्यान रखना, अगर मोहम्मद से बचे िो गए दोजख में, अगर जीसस से बचे िो जलना पड़ेगा अनंिकाल िक अतग्न में। हां, और जो जीसस को मानेंगे, मोहम्मद को मानेंगे उनके तलए स्वग में सारी सुख-सुतवधाओं का इं िजाम है। उनके तलए वहां सुंदर महल हैं। और स्वग पिा है आपको, यहां िो आप एकाध कमरे को एअरकं डीिन कर पािे हैं, स्वग पूरा का पूरा एअरकं डीिंड है, िीिल मंद बयार वहां बहिी रहिी है सदा। वहां सूरज तनकलिा है लेदकन िाप नहीं होिा, तसि प्रकाि होिा है। वहां वृक्ष कभी कु म्हलािे नहीं, िू ल कभी मुरझािे नहीं, वहां पत्ते कभी पीले नहीं पड़िे, वहां कभी बुढ़ापा नहीं होिा। तियों की उम्र वहां सोलह वष पर रुक जािी है, उसके आगे नहीं जािी। ऐसा सुंदर स्वग! वहां वृक्ष हैं, कल्पवृक्ष, तजनके नीचे बैठ कर जो भी आप कामना करें वह कामना करिे ही पूरी हो जािी है। ऐसा नहीं दक दिर उसके तलए कोई श्रम करना पड़िा हो, ऐसा नहीं दक दकसी से कहना पड़िा हो। आप वृक्ष के नीचे बैठ गए और आपने कहा दक एक दे वी मौजूद हो जाए, दे वी मौजूद हो जाएगी। आपने कहा दक पलंग आ जाए, पलंग आ जाएगा, आंख खुली है पलंग सामने मौजूद है। वहां कामना की और पूरी हो जािी है, ऐसे कल्पवृक्ष हैं। जो हमारे भगवान को मानेगा उसको ऐसे कल्पवृक्ष तमलेंगे, जो नहीं मानेगा उसको नरक में डाल ददया जाएगा। यह भय के आधार पर आदमी को कु छ भी मनाने की कोतिि की जािी है। दिर भीड़ का भय, तजनके साथ जीना है उनके अनुकूल न रहो िो बहुि मुसीबि हो जािी है, वे मुसीबि में डाल दें गे, जीना मुतश्कल कर दें गे। लड़की का तववाह होना मुतश्कल हो जाएगा, समाज की जजंदगी कटठन हो जाएगी। उसके भय से मानिे चलो जो लोग कहिे हैं। भीड़ के भय को मान लो। भीड़ तजसको कहे भगवान उसको भगवान, भीड़ तजसको कहे िाि उसको िाि, भीड़ कहे राि है अभी िो कहना राि, भीड़ कहे ददन है िो कहना ददन। लेदकन भीड़ को मानने वाला व्यति कभी भी आत्मा के तवकास को उपलब्ध नहीं होिा। आत्मा के तवकास को वे उपलब्ध होिे हैं जो सत्य की सिि चेिा करिे हैं खोज की, जो सत्य के तलए कु छ भी खोने को िैयार होिे हैं, जो सत्य के तलए सब कु छ दांव पर लगाने का साहस जुटािे हैं, वे लोग सत्य को उपलब्ध होिे हैं। लेदकन इस दे ि ने िो सत्य को पाने की सामथ्य और आकांक्षा ही खो दी है। वह कहिा है आलोचना ही मि करना, वह कहिा है तवचार ही मि करना। नहीं, मैं आपसे प्राथना करूंगा, तवचार करना, संदेह करना, आलोचना करना। आपके महात्मा और आपके महापुरुष इिनी कच्ची तमट्टी के नहीं हैं दक आपकी आलोचना और आपके तवचार से नि हो जाएंगे। वे बचेंगे और तनखर कर बचेंगे जैसे स्वण आग से गुजर कर और साि हो जािा है वैसे ही आलोचना की तनरं िर धारा से गुजर कर महापुरुष और तनखर कर प्रकट हो जािे हैं। उनमें भयभीि होने की कोई भी जरूरि नहीं। और जो नहीं प्रकट हो सकें गे उनसे तजिनी जल्दी छु टकारा हो जाए उिना ही अच्छा है। उनके साथ कब िक जीएंगे हम? उनको तजलाने की जरूरि क्या है? इसतलए मैंने जान कर एक 86



उदाहरण की िरह गांधी को चुन कर बाि की है और अगर मुझे खयाल आ गया िो मैं एक-एक महापुरुष पर बाि करने का तवचार करिा हं और एक-एक महापुरुष पर तवचार करना पड़ेगा। मुल्क की प्रतिभा को जगाना जरूरी है। मुल्क के सोए प्राणों को दिर से गति दे नी जरूरी है, मुल्क के मन में दिर एक मंथन पैदा करना जरूरी है। अगर मनन पैदा हो जाए, अगर जचंिन पैदा हो जाए, अगर तवचार पैदा हो जाए, िो हम हजारों साल के अंधकार को तमटाने में समथ हो जाएंगे। एक छोटा सा दीया और हजारों साल का अंधकार तमट जािा है। अंधकार यह नहीं कहिा दक मैं हजारों साल पुराना हं इसतलए इस छोटे से दीये से कै से तमटू ंगा, नहीं तमटिा। एक ददन का दीया है इससे मैं कै से तमटू ंगा, मैं हजारों साल पुराना हं। नहीं, एक छोटा सा दीया, दकिना ही पुराना अंधकार हो तमट जािा है। तवचार का दीया जले इस दे ि के प्राणों में िो हजारों साल का अंधकार तमट सकिा है। मेरी बािों को इन िीन ददनों में इिने प्रेम और इिनी िांति से सुना, उससे बहुि अनुगृहीि हं। और परमात्मा से प्राथना करिा हं दक आपके तवचार का दीया जलेगा। और अंि में सबके भीिर बैठे परमात्मा को प्रणाम करिा हं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ सािवां प्रवचन



उगिी हुई जमीन एक तमत्र ने पूछा दक आप गांधी जी की अजहंसा में तवश्वास नहीं करिे हैं क्या? और यदद अजहंसा में तवश्वास नहीं करिे हैं गांधी की, िो क्या आपका तवश्वास जहंसा में है? पहली बाि यह दक मेरा तवश्वास जहंसा में ितनक भी नहीं है और दूसरी बाि यह दक गांधी की अजहंसा में भी तवश्वास नहीं करिा हं। गांधी की अजहंसा में भी बहुि अजहंसा नहीं मालूम दे िी, इसतलए गांधी की अजहंसा बहुि लचर, बहुि कमजोर है। गांधी की अजहंसा मुझे बहुि अधकचरी इसतलए लगिी है क्योंदक पूण अजहंसा में मेरी आस्था है। गांधी जी की अजहंसा के वास्ितवक अंिराल में झांकने पर मुझे अचंभा सा होिा है। गांधी जी अफ्ीका में बोर युद्ध में स्वयंसेवक की िरह सतम्मतलि हुए। बोर अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे और गांधी जी गोरों की आजादी की लड़ाई को दबाने के तलए, जो साम्राज्यिाही प्रयास कर रही थी उस साम्राज्यिाही की ओर से स्वयंसेवक की िरह भरिी हुए। गांधी जी पहले महायुद्ध में अंग्रेजों के एजेंट की िरह भारि में लोगों को िौज में भरिी करवाने का काम करिे रहे। यह बहुि अचंभे की बाि मालूम पड़िी है दक पहले महायुद्ध में गांधी ने लोगों को िौज में भरिी होने और युद्ध में जूझने की प्रेरणा दी। पंजाब के गांवों में मुसलमानों ने बगावि कर दी। मुसलमानों को दबाने के तलए अंग्रेजों ने गोरखों की िौज भेज दी थी। अंग्रेजों का न्याय था दक अगर जहंदू दकसी गांव में तवद्रोह करें िो मुसलमान की सेना की टु कड़ी भेजो और यदद मुसलमानों का गांव तवद्रोह करे िो जहंदुओं की टु कड़ी वहां भेजो िादक दोनों ही संप्रदायों को आग में झोंक कर, उससे हाथ सेंके जा सकें । गोरखों की टु कड़ी ने एक अदभुि ऐतिहातसक काय दकया। गोरखों की टु कड़ी ने मुसलमान बस्िी पर, मुसलमान लोगों पर गोली चलाने से इनकार कर ददया। वे बंदूकों को जमीन पर टेक कर खड़े हो गए और उन्होंने कहा, हम अपने भाइयों पर गोली नहीं चलाएंगे। यह बड़ी अदभुि और बड़ी अजहंसात्मक घटना थी। उन टु कतड़यों ने अपनी जान बाजी पर लगा कर गोली चलाने से इनकार कर ददया। उन्होंने जाकर अपनी बंदूकें छावनी में जमा करवा दीं और जाकर समपण कर ददया और कहा दक हम गोली चलाने से इनकार करिे हैं, चाहे जो भी सजा दी जाए, हम अपने भाइयों पर गोली नहीं चला सकिे। हम िो सोच सकिे थे दक गांधी जी इन सैतनकों की प्रिंसा करें गे। लेदकन गांधी जी ने इन सैतनकों की जनंदा की। इं ग्लैंड में जब गांधी जी से पूछा गया दक आश्चय की बाि है दक आपने अजहंसक होिे हुए इन सैतनकों की जनंदा की, तजन्होंने बंदूकें चलाने से इनकार दकया। िो गांधी जी ने क्या कहा, आपको पिा है? गांधी जी ने कहााः मैं सैतनकों को आज्ञाहीनिा नहीं तसखा सकिा हं क्योंदक कल जब दे ि आजाद हो जाएगा और सत्ता हमारे हाथ में आ जाएगी िो इन्हीं सैतनकों के सहारे हमें िासन करना है। यह दकस प्रकार की अजहंसा है? यह थोड़ा तवचारना है। वे सैतनक भी दं ग रह गए होंगे। अगर गांधी जी ने इन लोगों की प्रिंसा की होिी िो जहंदुस्िान भर का सैतनक यह तहम्मि जुटा सकिा था, वह हर जहंदुस्िानी चाहे वह दकसी भी संप्रदाय का हो, पर गोली चलाने के तलए इनकार कर दे िा। लेदकन गांधी जी ने इन सैतनकों की जनंदा की, आज्ञाहीनिा के आधार पर और कहा दक अजहंसा को िोड़ना उतचि नहीं है। सैतनकों का किव्य है दक वे आज्ञा मानें। क्यों? क्योंदक कल जब गांधी जी के 88



लोगों के हाथ में दे ि जाएगा िो इन्हीं सैतनकों के सहारे िासन चलाना है। अब हम प्रत्यक्ष दे ख रहे हैं दक बाईस वष की आजादी के इतिहास में, गांधी जी के पीछे चलने वाले लोगों के हाथ में जब से सत्ता आई है, िासन का दमन बढ़िा ही गया है, गोतलयों और संगीनों के आधार पर िासन चला जा रहा है। ये गोतलयां सत्ता के चलाए जाने के काम में लाई जा रही हैं। अब सत्ता गांधीवाददयों के हाथ में है। अंग्रेजों ने भी कभी जहंदुस्िान में इिनी गोतलयां नहीं चलाई थीं तजिनी दक तजसको हम अपना िासन कहिे हैं, उन्होंने चलाईं और तजस क्रूरिा से गोली चलाई और तजिने लोगों की हत्या की! यह बहुि आश्चय की बाि है। लेदकन यह भी साथ में समझ लेना जरूरी है दक गांधी जी अजहंसात्मक रूप से जो आंदोलन चलािे थे वह आंदोलन ही दबाव डालने के तलए था और मेरी दृति में जहां दबाव है वहां जहंसा है। चाहे दबाव कहीं से डाला जाए, चाहे आपके घर के सामने आकर अनिन करके बैठ जाऊं और कहं दक मैं मर जाऊंगा अगर मेरी बाि नहीं मानोगे। यह दबाव ही जहंसा है। दबाव मात्र जहंसा है। दबाव डालने के ढंग अजहंसात्मक हो सकिे हैं लेदकन दबाव खुद जहंसा है। अगर मैं अपनी बाि मनवाने के तलए अपनी जान दांव पर लगा दूं और कहं दक मैं मर जाऊंगा िो तजसको हम सत्याग्रह कहिे हैं और अनिन कहिे हैं वह क्या है? वह आत्महत्या की धमकी है और वह धमकी जहंसा है। चाहे दूसरे को मारने की धमकी हो, चाहे अपने को मारने की धमकी हो। धमकी सदा जहंसात्मक है। इससे कोई िक नहीं पड़िा दक वह धमकी अपने तलए है या दूसरे के तलए है। कई बार यह भी हो सकिा है दक मैं आपको मारने के तलए धमकी दूं िो आप मेरा मुकाबला कर सकिे हैं, लेदकन जब मैं अपने को मारने की धमकी दे िा हं िो आपको तनहत्था कर दे िा हं, आप मुकाबला नहीं कर सकिे हैं। यह जहंसा ज्यादा सूक्ष्म है और बहुि तछपी हुई है। इसका पिा चलाना बहुि मुतश्कल है। अगर अजहंसात्मक सत्याग्रह दकसी को करना हो िो न िो खबर करनी चातहए, न जनिा को पिा चलना चातहए, न तजस आदमी के हृदय-पटरविन के तलए कोतिि कर रहा हं उसको खबर करनी चातहए। मौन, एकांि में मैं अपने को िांि करूं और ध्यानस्थ हो जाऊं, समातध-मग्न हो जाऊं, अपने को पतवत्र करूं, प्राथना करूं और हृदय में वे तवचार भी हों जो दूसरे व्यति को पटरवर्िि करिे रहें िब िो यह अजहंसा हुई। लेदकन यदद अखबारों में प्रचार हो, भीड़-भाड़ को पिा चल जाए, मेरी जान को बचाने वाले लोग खुि हो जाएं और तजस आदमी को बदलना चाहिा हं उसके दरवाजे पर बैठ जाऊं और कहं दक मैं मर जाऊंगा। यह अजहंसा नहीं है? यह सब जहंसा है, यह जहंसा का ही रूपांिरण है, ये जहंसा के ही श्रेष्ठिम छद्म रूप हैं। मैंने एक मजाक सुना है। मैंने सुना है, एक युवक एक युविी से प्रेम करिा था और उसके प्रेम में दीवाना था, लेदकन इिना कमजोर था दक तहम्मि भी नहीं जुटा पािा था दक तववाह करके उस लड़की को घर ले आए, क्योंदक लड़की का बाप राजी नहीं था। दिर दकसी समझदार ज्ञानी ने उसे सलाह दी दक अजहंसात्मक सत्याग्रह क्यों नहीं करिा? कमजोर, कायर, वह डरिा था। उसको यह बाि जंच गई। कायरों को अजहंसा की बाि एकदम जंच जािी है--इसतलए नहीं दक अजहंसा ठीक है, बतल्क कायर इिने कमजोर होिे हैं दक कु छ और नहीं कर सकिे। गांधी जी की अजहंसा का जो प्रभाव इस दे ि पर पड़ा वह इसतलए नहीं दक वे लोगों को अजहंसा ठीक मालूम पड़ी। लोग हजारों साल के कायर हैं और कायरों को यह बाि समझ में पड़ गई है दक ठीक है, इसमें मरने-मारने का डर नहीं है, हम आगे जा सकिे हैं। लेदकन तिलक गांधी जी की अजहंसा से प्रभातवि नहीं हो सके , सुभाष भी प्रभातवि नहीं हो सके । भगिजसंह िांसी पर लटक गया और जहंदुस्िान में एक पत्थर नहीं िें का गया उसके तवरोध में! आतखर क्यों? उसका कु ल कारण यह था दक जहंदुस्िान जन्मजाि कायरिा में पोतषि हुआ 89



है। भगिजसंह िांसी पर लटक रहे थे, गांधी जी वाइसराय से समझौिा कर रहे थे और उस समझौिे में जहंदुस्िान के लोगों को आिा थी दक िायद भगिजसंह बचा तलया जाएगा, लेदकन गांधी जी ने एक िि रखी दक मेरे साथ जो समझौिा हो रहा है उस समझौिे के आधार पर सारे कै दी छोड़ ददए जाएंगे लेदकन तसि वे ही कै दी जो अजहंसात्मक ढंग के कै दी होंगे। उसमें भगिजसंह नहीं बच सके , क्योंदक उसमें एक िि जुड़ी हुई थी दक अजहंसात्मक कै दी ही तसि छोड़े जाएंगे। भगिजसंह को िांसी लग गई। तजस ददन जहंदुस्िान में भगिजसंह को िांसी हुई उस ददन जहंदुस्िान की जवानी को भी िांसी लग गई। उसी ददन जहंदुस्िान को इिना बड़ा धक्का लगा तजसका कोई तहसाब नहीं। गांधी की भीख के साथ जहंदुस्िान का बुढ़ापा जीिा, भगिजसंह की मौि के साथ जहंदुस्िान की जवानी मरी। क्या भारिीय युवा पीढ़ी ने कभी इस पर सोचा है? उस युवक को दकसी ने सलाह दी, िू पागल है, िेरे से कु छ और नहीं बन सके गा, अजहंसात्मक सत्याग्रह कर दे । वह जाकर उस लड़की के घर के सामने तबस्िर लगा कर बैठ गया और कहा दक मैं भूखा मर जाऊंगा, आमरण अनिन करिा हं, मेरे साथ तववाह करो। घर के लोग बहुि घबड़ाए, क्योंदक वह और कु छ धमकी दे िा िो पुतलस को खबर करिे लेदकन उसने अजहंसात्मक आंदोलन चलाया था और गांव के लड़के भी उसका चक्कर लगाने लगे। वह अजहंसात्मक आंदोलन है, कोई साधारण आंदोलन नहीं है और प्रेम में भी अजहंसात्मक आंदोलन होना ही चातहए। घर के लोग बहुि घबड़ाए। दिर बाप को दकसी ने सलाह दी दक गांव में जाओ, दकसी रचनात्मक, दकसी सवोदयी, दकसी समझदार से सलाह लो दक अनिन में क्या दकया जा सकिा है। बाप गए, हर गांव में ऐसे लोग हैं तजनके पास और कोई काम नहीं है। वे रचनात्मक काम घर बैठे करिे हैं। बाप ने जाकर पूछा, हम क्या करें बड़ी मुतश्कल में पड़ गए हैं। अगर वह छु री लेकर धमकी दे िा िो हमारे पास इं िजाम था, हमारे पास बंदूक है, लेदकन वह मरने की धमकी दे िा है, अजहंसा से। उस आदमी ने कहा, घबड़ाओ मि, राि मैं आऊंगा, वह भाग जाएगा। वह राि को एक बूढ़ी वेश्या को पकड़ लाया, उस वेश्या ने जाकर उस लड़के के सामने तबस्िर लगा ददया और कहा दक आमरण अनिन करिी हं, िुमसे तववाह करना चाहिी हं। वह राि तबस्िर लेकर लड़का भाग गया। गांधी जी ने अजहंसात्मक आंदोलन के नाम पर, अनिन के नाम पर जो प्रदक्रया चलाई थी, भारि उस प्रदक्रया से बबाद हो रहा है। हर िरह की नासमझी इस आंदोलन के पीछे चल रही है। दकसी को आंध्र अलग करना हो, िो अनिन कर दो, कु छ भी करना हो, आप दबाव डाल सकिे हैं और भारि को टु कड़े-टु कड़े दकया जा रहा है, भारि को नि दकया जा रहा है। वह एक दबाव तमल गया है आदमी को दबाने का। मर जाएंगे, अनिन कर दें ग,े यह तसि जहंसात्मक रूप है, अजहंसा नहीं है। जब िक दकसी आदमी को जोर जबरदस्िी से बदलना चाहिा हं चाहे वह जोर जबरदस्िी दकसी भी िरह की हो, उसका रूप कु छ भी हो, िब िक मैं जहंसात्मक हं। मैं गांधी जी की अजहंसा के पक्ष में नहीं हं--उसका यह मिलब न लें दक मैं अजहंसा के पक्ष में नहीं हं। अखबार यही छपािे हैं दक मैं अजहंसा के पक्ष में नहीं हं। मैं गांधी जी की अजहंसा के पक्ष में नहीं हं क्योंदक मैं अजहंसा के पक्ष में हं। लेदकन उसको मैं अजहंसा नहीं मानिा इसतलए मैं पक्ष में नहीं हं। गांधी जी की अजहंसा चाहे गांधी जी को पिा हो या न हो, जहंसा करे गी। यह जहंसा बड़ी सूक्ष्म है। एक आदमी को मार डालना भी जहंसा है और एक आदमी को अपनी इच्छा के अनुकूल ढालना भी जहंसा है। जब एक गुरु दस-पच्चीस तिष्यों की भीड़ इकट्ठी करके उनको ढालने की कोतिि करिा है अपने जैसा बनाने की, जैसे कपड़े मैं पहनिा हं वैसे कपड़े पहनो, जब मैं उठिा हं ब्रह्ममुहि में िब िुम उठो, जो 90



मैं करिा हं वही िुम करो--िो हमें पिा नहीं है, यह तचत्त बड़ी सूक्ष्म जहंसा की बाि सोच रहा है। दूसरे आदमी को बदलने की चेिा में, दूसरे आदमी को अपने जैसा बनाने की चेिा में भी आदमी जहंसा करिा है। जब एक बाप अपने बेटे को अपने जैसा बनाने की कोतिि करिा है िो बाप को पिा है, यह जहंसा है। जब बाप बेटे से कहिा है दक िू मेरे जैसा बनना, िो दो बािें काम कर रही हैं। एक िो बाप का अहंकार और दूसरा दक मेरे बेटे को मैं अपने जैसा बना कर छोडू ंगा। यह प्रेम नहीं है। सारे गुरु लोगों को अपने जैसा बनाने के तलए प्रयत्निील रहिे हैं। उस प्रयत्न में व्यति जहंसा करिा है। जो आदमी अजहंसक है वह कहिा है दक िुम अपने ही जैसा बन जाओ, बस यही कािी है, मेरे जैसे बनने की कोई जरूरि नहीं है। कोई अजहंसात्मक व्यति दकसी को अपना अनुयायी नहीं बना सकिा है, क्योंदक अनुयायी बनाना सूक्ष्म जहंसा है। कोई अजहंसक व्यति दकसी को अपना तिष्य नहीं बना सकिा है, क्योंदक गुरु बनने जैसी जहंसा खोजनी दुतनया में बहुि मुतश्कल है। लेदकन ये सूक्ष्म जहंसाएं हैं जो ददखाई नहीं दे िीं और यह भी ध्यान रहे दक जब कोई आदमी दूसरे के साथ जहंसा करना बंद कर दे िा है िो जहंसा की प्रवृतत्त नि हो जािी, जहंसा की प्रवृतत्त स्वयं पर लौट आिी है। अपने साथ जहंसा करना िुरू कर दे िा है। तजसको हम िपश्चया कहिे हैं, िप कहिे हैं, त्याग कहिे हैं, सौ में तनन्यानबे मौके पर अपने पर लौटी हुई जहंसा के ये दूसरे नाम हैं और कु छ भी नहीं। एक आदमी दूसरे को सिाना चाहिा है। अंग्रेजी में एक िब्द सैतडस्ट है, जो आदमी दूसरे को सिाना चाहिा है उसको वे कहिे हैं सैतडस्ट, उसे वे कहिे हैं परपीड़नवादी। एक दूसरा िब्द है मैसोतचस्ट, जो आदमी अपने को सिाने में लग जािा है उसको कहा जािा है मैसोतचस्ट, आत्मपीड़नवादी। हम दूसरों को सिाने वाले को िो जहंसक कहिे हैं, लेदकन खुद को सिाने वाले को जहंसक नहीं कहिे हैं। और मजा यह है दक दूसरे को सिाने में िो दुतनया बाधा डाल सकिी है पर स्वयं को सिाने में कोई भी बाधा नहीं डाल सकिा है। स्वयं को सिाने में प्रत्येक आदमी मुि है। यह जो िपश्चया करने वाले लोग हैं, ये कांटों में खड़े लोग हैं, धूप में खड़े लोग हैं, भूख और उपवास करने वाले लोग हैं--इनकी पूरी कथा आप समझें। इनके आतवष्कारों का पिा लगाएं दक कै से-कै से अपने को सिाने के , आत्मपीड़ा के उपाय तनकालिे हैं। कै से उनको साधु कहें जो अपनी जननेंदद्रय काट लेिे रहे? ऐसे साधु भी रहे हैं तजन्होंने अपनी आंखें िोड़ लीं और अंधे हो गए, और ऐसे साधु भी रहे हैं जो पैर के जूिे में कीलें लगािे रहे िादक पैर में घाव बनिे रहें। कमर में पट्टे बांधिे रहे और कीलें लगािे रहे िादक कमर में घाव बनिे रहें। िरीर को सब िरह से कोड़े मारने वाले साधुओं की बड़ी जमाि रही है। वे कोड़े मारने वाले साधु सुबह से उठ कर कोड़े मार रहे हैं और जो तजिने ज्यादा कोड़े मारे गा उिना बड़ा साधु हो जाएगा। ये सारे के सारे लोग जहंसक लोग हैं, ये अजहंसक लोग नहीं हैं, के वल अंिर इिना है दक इनकी जहंसा दूसरे पर न जाकर स्वयं पर लौट आई है। उसने वापस लौटना प्रारं भ कर ददया है अजहंसा बहुि अदभुि बाि है, लेदकन जहंसा से बचना बहुि मुतश्कल है। जहंसा को बदल लेना बहुि आसान है, जहंसा नये रूपों में खड़ी हो जािी है। दूसरों को बदलने की जचंिा, दूसरों को बदलने का दबाव, दूसरों को अपने जैसा बनाने की सारी कोतिि जहंसा है और दुतनया के सारे गुरुओं को दुतनया के इन सारे लोगों को जो अनुयातययों की भीड़ इकट्ठी करिे हैं, जमािें खड़ी करिे हैं, और अपनी िक्ल के आदमी पैदा करिे हैं; उन सबको मैं एक किार में जहंसक मानिा हं। अजहंसक व्यति दूसरी बाि है। अजहंसक का मिलब है ऐसा व्यति, जो दकसी पर भी दकसी िरह का दबाव डालने की कामना से मुि हो गया है, क्योंदक दबाव डाल कर हम दूसरे से श्रेष्ठ हो जािे हैं और आपने कभी खयाल दकया है, छु रा बिा कर आप दूसरे से श्रेष्ठ नहीं होिे लेदकन अनिन करके आप दूसरों से श्रेष्ठ हो जािे हैं। 91



नीत्िे ने एक बाि कही है मजाक में जीसस के तखलाि। कहा है दक जीसस ने कहा है दक कोई गाल पर िुम्हारे चांटा मारे िो दूसरा गाल भी उसके सामने कर दे ना। नीत्िे ने कहा है, इससे ज्यादा अपमान दूसरे आदमी का और क्या हो सकिा है? िुमने उसे आदमी ही नहीं माना, अपने बराबर भी नहीं माना। दकसी ने चांटा मारा िुम्हारे गाल पर, िुमने दूसरा गाल कर ददया। उस दूसरे आदमी से दे विा हो गया, वह जमीन का कीड़ा हो गया। नीत्िे ने मजाक में कहा है दक दूसरे आदमी का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकिा है! और यह हो सकिा है दक कोई आदमी प्रेम के कारण दूसरा गाल न करे , तसि इसतलए दूसरा गाल कर दे दक दे ख लो, िुम हो जमीन के कीड़े, हम हैं िटरश्िे, हम हैं दे विा। दूसरे से ऊंचा होने की िरकीब इिनी बारीक है दक एक आदमी दूसरे से ऊंचा हो सकिा है जसंहासन पर बैठ कर और एक आदमी दूसरे से ऊंचा हो सकिा है त्याग करके । लेदकन दूसरे से ऊंचा होने की कामना अगर भीिर िेष है िो वह कामना जहंसा में ले जािी है, अजहंसा में नहीं। जब भी हम दूसरे से ऊंचा होने की कामना में संलग्न हो जािे हैं, चाहे हमें ज्ञाि हो और ज्ञाि न हो, चाहे हमें कांिसली पिा हो और चाहे अनकांिस माइं ड काम कर रहा हो, चाहे अचेिन मन काम कर रहा हो और हमें पिा न हो, लेदकन दूसरे को बदलने की कोतिि में स्वयं ही श्रेष्ठिा भीिर अनुभव होनी िुरू हो जािी है। मैं इस सबके बुतनयादी रूप से तखलाि हं। मैं मानिा हं दक व्यति प्राथना कर सकिा है, ध्यान कर सकिा है, व्यति अंिस को िुद्ध कर सकिा है और उसके अंिस की िुतद्ध के कारण उसके चारों िरि के दबावों में पटरविन िुरू हो जाएगा। लेदकन वह पटरविन उस व्यति की चेिा नहीं है, उस व्यति का प्रयास नहीं है। महावीर और बुद्ध भी अजहंसक थे। गांधी की अजहंसा से मैं उनकी अजहंसा को श्रेष्ठिर और िुद्धिर मानिा हं। गांधी के और बुद्ध के बीच हम कु छ बािें और करें िो पिा चलेगा। महावीर और बुद्ध दकसी को बदलने के तलए कोई अजहंसक आंदोलन नहीं कर रहे हैं, लेदकन भीिर आत्मा प्रतवि हुई है, उसकी दकरणें आएंगी और तबना प्रयास के चारों िरि बदलाहट लानी िुरू करिी हैं। अजहंसक आदमी ने दुतनया में पहले भी अपनी जहंसा की दकरणें दी हैं लेदकन वे दकरणें प्यार करके दी गई हैं और चेिा करके नहीं दी गई हैं। वे दकरणें उपलब्ध होिी हैं। सूरज तनकलिा है और अंधेरा तवलीन हो जािा है। सूरज कोई घोषणा नहीं करिा दक अंधेरे को दूर करने मैं आ गया हं, अंधेरा सावधान! अजहंसा कु छ करिी नहीं है, अजहंसा से पटरविन आिा है। अजहंसक पटरविन चाहिा नहीं। गांधी की अजहंसा में पटरविन की चाह बहुि स्पि है इसतलए मैं उसे अजहंसा नहीं मानिा हं। गांधी की अजहंसा में मेरी कोई श्रद्धा, कोई तवश्वास नहीं है क्योंदक वह अजहंसा ही मुझे ददखाई नहीं पड़िी। मैं कोई जहंसा का पक्षपािी नहीं हं, मुझसे ज्यादा जहंसा का दुश्मन खोजना कटठन है, क्योंदक अजहंसा में ही मुझे जहां जहंसा ददखाई पड़िी हो उस जहंसा से मैं राजी नहीं हो सकिा हं। एक दूसरे तमत्र ने इसी संबंध में पूछा है दक आप कहिे हैं दक क्रांति अजहंसक ही हो सकिी है, लेदकन एक तमत्र ने पूछा है दक क्रांति िो सदा जहंसक होिी है, अजहंसक क्रांति िो कभी नहीं होिी। तजस क्रांति में जहंसा है उसे मैं क्रांति नहीं कहिा। वह क्रांति नहीं है, तसि उपद्रव है। उपद्रव और क्रांति में बहुि िक है। तजसके साथ जहंसा जुड़ गई वह क्रांति खिम हो गई। जहंसा से क्रांति खत्म है क्योंदक क्रांति का अंतिम अथ क्या है? क्रांति का अंतिम अथ हैाः आतत्मक-पटरविन, हार्दक-पटरविन, लोगों की चेिना का बदल 92



जाना और जब हम लोगों की चेिना को नहीं बदल पािे हैं, जब लोगों की चेिना नहीं बदलिी है िब हम जहंसा पर उिारू हो जािे हैं। लेदकन जो आदमी जहंसा पर उिारू हो जािा है वह लोगों की चेिना बदल सके गा? इस संबंध में एक करोड़ लोगों की कम से कम हत्या की गई। करोड़ लोगों की हत्या करके भी क्या दकसी व्यति की चेिना को बदला जा सका, दकसी को रूपांिटरि दकया जा सका? तहटलर ने भी करीब अस्सी लाख लोगों की हत्या की, लेदकन क्या रूपांिरण हो गया? कौन सी क्रांति हो गई? सामान बांट ददया गया, संपतत्त व्यतिगि न रही, जो एक करोड़ लोगों को तबना मारे भी हो सकिा था और एक करोड़ लोगों को मारने के कारण जो पटरविन हुआ वह इिना िनावपूण है दक जब िक जहंसा ऊपर छािी पर सवार है िभी िक उसको कायम रखा जा सकिा है, अन्यथा पटरविन तवलीन होना िुरू हो जाएगा। स्टैतलन के जाने के बाद रूस के कदम तवकास की िरि तनतश्चि रूप से उठे । स्टैतलन के हटिे ही जैसे जहंसा कम हुई है। रूस के कदम तवकास की िरि उठे । रूस में जब से व्यतिगि संपतत्त का पुनरागमन हुआ, रूस में कारें व्यतिगि रूप से रखी जा सकिी हैं, तजसकी वहां कल िक कल्पना नहीं थी। मकान भी व्यतिगि हो सकिा है, िनख्वाहों में भी िक पैदा हुए--जैसे ही जहंसा से लाई हुई क्रांति तवलीन हो जाएगी। जहंसा से लाई क्रांति जबरदस्िी है और जबरदस्िी कहीं क्रांति लाई जा सकिी है? जबरदस्िी थोड़ी-बहुि दे र दकसी को रोका जा सकिा है। तजस चीज को जबरदस्िी से रोकना पड़िा है उसके तखलाि लोगों का तवद्रोह होना िुरू हो जािा है। अच्छे काम भी अगर जबरदस्िी करवाए जाएं। आप यहां बैठे हैं, आप अपनी मौज से यहां आए हैं और आपको अभी खबर की जाए दक आप दो घंटे िक बाहर नहीं तनकल सकिे हैं, बस यहां बैठना असंभव हो जाएगा। आदमी के साथ आत्मा है, आदमी की आत्मा दबाव को इनकार करिी है और करनी चातहए चाहे वह दबाव अच्छे के तलए ही क्यों न डाला गया हो। दबाव, दबाव है। आदमी के अच्छे के तलए भी दबाव डालने पर आदमी तवद्रोह करिा है। आपको पिा है, अच्छे मां-बाप अपने बेटों को तबगाड़ने का बुतनयादी कारण बनिे हैं। पिा है आपको क्यों? अच्छे मां-बाप जबरदस्िी बच्चे को अच्छा बनाने की कोतिि करिे हैं। दुतनया में कभी दकसी को जबरदस्िी अच्छा नहीं बनाया गया है और जो मां-बाप अपने बच्चे को जबरदस्िी अच्छा बनािे हैं वे मां-बाप बच्चों के दुश्मन हैं और अपने बच्चे को तबगाड़ने का काम करिे हैं; क्योंदक बच्चे तवद्रोह करना िुरू करिे हैं। बच्चे के पास जो आत्मा है वह इनकार करना चाहिी है जबरदस्िी को और अगर अच्छे के तलए जबरदस्िी की गई िो दिर अच्छे को इनकार करना चाहिे हैं क्योंदक जबरदस्िी को इनकार करने से जहंसा िुरू हो जाएगी। क्योंदक कोई भी बाि जबरदस्िी से नहीं लाई जा सकिी और जबरदस्िी से लाने का मिलब यह है दक लाने वाला बहुि कमजोर है, लोगों को समझा नहीं पािा है, लोगों के हृदय को, मतस्िष्क को राजी नहीं कर पािे हैं। और जब आप लोगों को राजी नहीं कर पािे हैं उनके अच्छे के तलए भी िो दिर आपकी वह अच्छाई बड़ी संिुतलि है। दुतनया में कोई क्रांति जहंसा से नहीं हो सकिी है। हां, क्रांति के नाम से जहंसा पलिी रही है, लेदकन अब िक कौन सी क्रांति को गई है दुतनया में? ... नहीं जहंसा से क्रांति हो ही नहीं सकिी है। क्योंदक क्रांति जबरदस्िी नहीं हो सकिी है। क्रांति होगी िो हृदय से होगी। जहंसा िो अति जटटल है और क्रांति अति सरल। मैं उस क्रांति के पक्ष में हं तजस क्रांति में दमन नहीं होगा, तजस क्रांति में छािी पर दबाव नहीं होगा, जो क्रांति भीिर से िू ल की िरह से तखलेगी और व्यतित्व को बदल दे गी। मनुष्य में उस क्रांति की प्रतिष्ठा चातहए है। फ्ांस की क्रांति असिल हो गई क्योंदक वह जहंसा पर खड़ी थी। रूस की क्रांति सिल नहीं हो सकी क्योंदक वह जहंसा पर खड़ी थी। माओ जो क्रांति करवा रहे हैं चीन में वह सिल नहीं होगी, क्योंदक वह जहंसा पर खड़ी 93



है। गांधी की क्रांति जो दक बड़ी अजहंसात्मक ददखाई पड़िी थी वह भी असिल हो गई क्योंदक बुतनयाद में उसके जहंसा थी। हम दे ख रहे हैं अपने मुल्क में, गांधी की क्रांति, जो दक एक िरह से लाख दजे बेहिर क्रांति है, माओ से, तजसका दक अजहंसा की िरि रुख है, झुकाव है, यद्यतप जो अजहंसात्मक नहीं है बुतनयाद में, वह भी असिल हो गई है। बाईस साल की आजादी के बाद की दुखद कथा बिािी है दक गांधी की क्रांति असिल हो गई है। गांधी की क्रांति असिल हो जािी है, क्योंदक मेरा मानना है दक दबाव है, बदलने की िीव्र आकांक्षा है। िो दिर लेतनन और स्टैतलन और माओ की क्रांति कै से सिल हो सकिी है? दुतनया प्रिीक्षा करिी थी एक क्रांति की जो क्रांति चेिना की और अजहंसा की क्रांति होिी, लेदकन क्रांति की िैयारी में सबसे बड़ी बाधा क्या है? सबसे बड़ी बाधा जहंसा में आस्था है। तजन लोगों की जहंसा में आस्था है वे लोग दुतनया के तचत्त को बदलने के अजहंसात्मक तवधान में कू दिे भी नहीं, तवचार भी नहीं करिे, जचंिा भी नहीं करिे। उस ददिा में कोई काम नहीं करिे। हमें यह खयाल ही नहीं है। एक गांव में एक हजार लोग, पचास लाख लोगों में से एक हजार लोग भी अगर अजहंसात्मक हों िो पचास लाख लोगों के तचत्त में बुतनयादी रूपांिरण िुरू हो जाएगा, लेदकन हमें इसका कु छ पिा नहीं। अभी रूस में एक वैज्ञातनक फ्यादोर ने एक प्रयोग दकया है। फ्यादोर रूस का एक मनोवैज्ञातनक है और चूंदक प्रयोग रूस में हुआ है इसतलए महत्वपूण है। जहंदुस्िान में योगी िो बहुि ददन से यह कहिा है, लेदकन कोई सुनिा नहीं है। जहंदुस्िान का योगी यह कहिा है दक तवचार इिनी बड़ी िति है दक अगर कोई तवचार दकसी व्यति के हृदय में पूण संकल्प से स्थातपि हो जाए िो चारों िरि उस तवचार की िरें गे िै लनी िुरू हो जािी हैं और हजारों लोगों को अजहंसा में रूपांिटरि कर दे िी हैं। एक बुद्ध का पैदा होना, एक महावीर का खड़ा होना इिनी बड़ी क्रांति है तजसका कोई तहसाब नहीं, तजसका दक हमें कोई पिा नहीं चलिा। क्योंदक लाखों लोगों के प्राण-कमल उनकी दकरणों से तखलने िुरू हो जािे हैं। फ्योदोर ने एक प्रयोग दकया रूस में तवचार-संक्रमण का, टेलीपैथी का, तवचार को दूर भेजने का। उसने मास्को में बैठ कर एक हजार मील दूर तवचार का संप्रेषण दकया। मास्को में बैठा है वह अपनी लेबोरे टरी में और एक हजार मील दूर दकसी गांव के बगीचे में, पतब्लक पाक में दस नंबर की बेंच पर एक आदमी बैठा है, उसके पीछे एक भाई तछप कर बैठे हैं। उन्होंने उठा कर िोन दकया दक दस नंबर की बेंच पर एक आदमी आकर बैठा है, आप आपने तवचार से प्रभातवि करके उसे सुला दें । फ्योदोर एक हजार मील दूर से कामना करिा है अपने मन में दक वह जो आदमी दस नंबर की बेंच पर बैठा है वह सो जाए, सो जाए, सो जाए। यहां वह पूण संकल्प से, पूण एकाग्र तचत्त से कामना करिा है। वह आदमी िीन ही तमनट के भीिर वहां बेंच पर आंख बंद करके सो जािा है। लेदकन हो सकिा है, यह संयोग की बाि हो। दोपहर िक का थका-मांदा आदमी ऐसे ही सो सकिा है। झातड़यों में तछपे उसके तमत्र ने िौरन िोन करके कहा दक यह सो गया है जरूर। िुमने कहा, िीन तमनट में सो जाओ िो िीन तमनट में सो गया। लेदकन यह संयोग भी हो सकिा है। अब उसे ठीक पांच तमनट के भीिर उठा दो िो हम समझेंगे। फ्योदोर दिर सुझाव भेजिा है दक उठो, उठो, उठो, जागो, जाग जाओ, ठीक पांच तमनट में जाग जाओ। वह आदमी पांच तमनट में आंख खोल कर बैठ जािा है। तमत्र उसके पास जाकर पूछिे हैं दक आपको कु छ अजीब सा िो नहीं लगा? वह आदमी कहिा है, अजीब सा से मिलब? मैं जब आया िो कु छ तवश्राम करने लगा िो जैसे मेरे पूरे प्राण कह रहे हैं दक सो जाओ। मैं राि अच्छी िरह सोया हं, थका-मांदा नहीं हं। पूरा व्यतित्व कहिा है



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दक सो जाओ। दिर मैं सो गया। लेदकन अभी क्षण भर पहले दूर से एक आवाज आई दक उठो, एकदम जाग जाओ। मैं बहुि हैरान हुआ दक यह क्या हुआ! िो, एक हजार मील दूर भी तवचार संक्रतमि हो सकिा है। अभी अमरीका की एक प्रयोगिाला में एक और अदभुि प्रयोग हुआ जो मैं आपसे कहना चाहंगा। वह प्रयोग भी बहुि बहुमूल्य है आने वाले भतवष्य में। अंिटरक्ष में दकए जाने वाले प्रयोग भी इसके मुकाबले कम मूल्य के तसद्ध होंगे। एटम और हाइड्रोजन के प्रयोग भी कम मूल्य के तसद्ध होंगे। वह प्रयोग बहुि अदभुि है। एक प्रयोगिाला में उन्होंने तवचार का तचत्र पहली बार तलया था। तवचार का तचत्र, जो तवचार आपके भीिर चलिा है उस तवचार का, आपका नहीं। एक आदमी को बहुि ठीक से कै मरे के सामने तबठाया गया। बहुि ही संवेदनिील दिल्म लगाई गई है और उस आदमी से कहा गया है दक एक तवचार पर सारे तचत्त को एकाग्र कर सोचिा रह, बस एक ही तचत्र पर सोचिा रह और उस आदमी ने एक तचत्र पर तवचार दकया, वह आदमी एक छोटे से तचत्र पर अंदर तवचार करिा रहा और उस तचत्र को िोटो की दिल्म के भीिर पकड़ तलया। इसका क्या मिलब? इसका मिलब है दक तवचार में जो तचत्र था भीिर, उसका संप्रेषण, उसकी दकरणें, उसकी िरं गें बाहर फिं क रही हैं जो दक िोटो की दिल्म पकड़ सकिी थी। अजहंसात्मक क्रांति का क्या अथ है? अजहंसात्मक क्रांति का अथ हैाः अजहंसात्मक लोग। थोड़े से भी लोग अजहंसात्मक हों िो उनके व्यतित्व से अजहंसा की, प्रेम की, भीिरी पटरविन की जो दकरण पहुंचेगी वे लाखों के जीवन में क्रांति ले आएंगी, इसका हमें पिा भी नहीं होगा। मेरी मान्यिा है दक मनुष्य-जाति अजहंसात्मक क्रांति की प्रिीक्षा कर रही है और यह प्रिीक्षा जारी रहेगी जब िक अजहंसात्मक क्रांति नहीं हो जािी है। हम कोई भी जहंसात्मक क्रांति करें , उससे कोई भी पटरविन नहीं होगा। जैसे कोई आदमी मुदे को मरघट ले जािे हैं। मुदे को मरघट ले जािे वि अरथी को कं धे पर लेिे हैं। रास्िे में एक कं धा थक जािा है िो अरथी उठा कर दूसरे कं धे पर रख लेिे हैं। बस इसी िरह क्रांति में भी िक पड़िा है। एक कं धा दुखने लगिा है, दूसरे कं धे पर बोझ रख तलया। थोड़ी दे र राहि तमलिी है। दिर बोझ िुरू हो जािा है। दूसरे कं धे पर बोझ िुरू हो जािा है। अब िक दकिनी क्रांतियां हुई हैं, वह अब िक बोझ बदलें हैं, बोझ तमटाया नहीं, आदमी के समाज को रूपांिटरि नहीं दकया, आदमी के समाज को पुराने गठन में नया ढंग दे ददया है। दिर जजंदगी बड़ी गड़बड़ हो गई, पुरानी जजंदगी आना िुरू हो जािी है। नये सपने दे खिी है। रूस में क्रांति हुई, िायद सबसे महत्वपूण क्रांति दुतनया की वही है। रूस की क्रांति ऐसी थी दक वग तमटा ददए जाएंगे, क्लासेस नहीं रहेंगे। वग तमटा ददए गए, तनतश्चि तमटा ददए गए। अमीर आज ऊंचे नहीं, गरीब आज नीचे नहीं, लेदकन नया वग पैदा हो गया--वह कम्युतनस्ट आदिसर, कम्युतनस्ट पाटी का आदमी और वह जो आदमी कम्युतनस्ट पाटी का नहीं है, यों दो वग पैदा हो गए। अतधकारी सत्तातधकारी, और सत्तापूण। कल था धतनक और तनधन और आज है सत्तातधकारी, सत्तापूर्ण, उसके बीच स्थापना हुई। वग दिर नये खड़े हो गए। रूस में जो क्रांति हुई उस क्रांति से वग तमटे नहीं, तसि वग बदल गए। पूंजीपति की जगह मैनेजर आ गया। व्यवस्थापकों की क्रांति थी, व्यवस्थापक बदल गए, जहां मातलक था वहां मैनेजर बैठ गया, सत्तातधकारी बैठ गया; धनी की जगह। और ध्यान रहे, धनी के पास उिनी िाकि कभी नहीं थी तजिनी सत्तातधकारी के पास। धनी के हाथ में लोगों की गदन कभी उिनी नहीं थी तजिनी दक आज कम्युतनस्ट पाटी के पास रूस में है--उिनी तबरला के पास थोड़े ही है, न हो सकिी है। सत्ता बदल गई, वग बदल गए, नये वर् ग आ गए, क्रांति मर गई, क्रांति का कोई अथ न हुआ। दिर कं धा बदल गया।



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दुतनया में अब िक क्रांति के नाम पर कं धे बदलिे रहे हैं। क्या हम कं धे ही बदलिे रहेंगे या सचमुच कोई क्रांति करें गे? अगर क्रांति करनी है िो जहंसा पर से आस्था छोड़नी ही पड़ेगी, क्योंदक जो आदमी जहंसा करिा है वह आदमी जब मातलक हो जािा है िब जहंसा जारी रखिा है और उसकी जो जहंसा जारी रहिी है और तजस आदमी ने जहंसा की है और उसके हाथ में जहंसा की िाकि है, उस आदमी से ज्यादा हम कभी आिा नहीं रख सकिे। वह आदमी जहंसा को छोड़ दे गा, जहंसा को बदल दे गा? वह आदमी वही रहेगा। रूस में तजन लोगों के हाथ में िाकि आई वे लोग अच्छे थे। क्रांति के पहले सभी लोग अच्छे होिे हैं, क्रांति के बाद जब िाकि हाथ में आिी है, िब पिा चलिा है दक कौन आदमी अच्छा है, कौन आदमी बुरा है। संभावना इस बाि की है दक स्टैतलन ने लेतनन को जहर दे कर मारा और इस बाि की संभावना है दक तजिने लोग क्रांति के अग्रणी थे धीरे धीरे करके एक-एक मारे गए। मैतक्सको में जाकर ट्राटस्की की हत्या की गई। तजन लोगों ने क्रांति की थी स्टैतलन ने चुन-चुन कर एक-एक को मारा, क्योंदक अब सत्ता का तखलवाड़ िुरू हो गया। जहंदुस्िान में दकिने अच्छे लोगों ने गांधी के साथ क्रांति की थी। दकिने अच्छे और भले लोग मालूम पड़िे थे, एकदम सिे द, धुले हुए मालूम पड़िे थे। लेदकन जब सत्ता हाथ में आई िो पिा चला दक वे लोग बदल गए, वे दूसरे आदमी सातबि हुए, वे कपड़े ही सिे द थे, वे आदमी भीिर सिे द नहीं थे। क्या हो गया सत्ता के हाथ में आिे ही? सत्ता के हाथ में आिे ही भीिर का असली आदमी प्रकट होिा है। जब िक हाथ में िाकि नहीं होिी िब िक असली आदमी प्रकट नहीं होिा। अगर आपके पास पैसे पहीं हैं िो आप दिजूल खच हैं, इसका कोई पिा नहीं चलिा। पैसा हो िो पिा चलिा है दक दिजूल खच हैं या नहीं। अगर आपके हाथ में छु रा हो मारने को िब पिा चलिा है दक आप जहंसक हैं या नहीं। जब हाथ में िाकि नहीं है िब िो सभी लोग अजहंसक होिे हैं। अजहंसक का पिा चलिा है अवसर तमलने पर, जहंसा का अवसर तमलने पर। तजन लोगों के हाथ में इस मुल्क की िाकि गई, िाकि जाने के बाद ही पिा चला दक उनके असली ित्व क्या थे। िो तजन लोगों के हाथ में िाकि जाएगी, अगर वे जहंसा के द्वारा िाकि को पहुंचे हैं िब िो उनकी िस्वीर पहले से ही जहंसा की है और बाद में उनकी क्या हालि होगी? अजहंसकों की हालि क्या हो जािी होगी? नहीं, जहंसा से कोई क्रांति नहीं हो सकिी, तसि बोझ बदल जािे हैं, तसि िकल बदल जािी है, नाम बदल जािे हैं, समाज पुराना का पुराना ही जारी रहिा है। पांच हजार वष के लंबे प्रयोगों के बाद भी हमें ददखाई नहीं पड़िा दक जहंसा से कोई क्रांति नहीं हो सकी। आगे भी नहीं हो सके गी और अगर आदमी जहंसा से जाग जाए दक जहंसा से कु छ भी नहीं हो सकिा, दबाव से कु छ भी नहीं हो सकिा और आदमी की आत्मा प्रेम चाहिी है और आदमी की आत्मा रूपांिटरि होना चाहिी है, लेदकन उन लोगों के द्वारा जो रूपांिटरि करने के तलए उत्सुक, आिुर नहीं हैं, तजनका कोई आग्रह नहीं है, जो जीिे हुए सत्य हैं, जो जीिे हुए प्रेम हैं और उनके जीने के कारण दूसरे में िै लिे हैं, उनसे रूपांिरण होिा है। ऐसे रूपांिरण की प्रिीक्षा मनुष्यिा को है। ऐसी क्रांति अजहंसात्मक ही हो सकिी है। यह बहुि स्पि रूप से मेरी बाि समझ लेना जरूरी है। मैं जहंसा के तबल्कु ल तवरोध में हं। जहंसा के कौन पक्ष में हो सकिा है? कौन बुतद्धमान, कौन तवचारिील व्यति जहंसा के पक्ष में हो सकिा है? जहंसा के पक्ष में होने का मिलब है आदमी में बुतद्ध नहीं है। क्योंदक लाठी वे ही लोग उठािे हैं तजनके पास बुतद्ध नहीं होिी है। तजनके पास बुतद्ध होिी है उन्हें लाठी पर उिरने की जरूरि नहीं पड़िी। जो लोग हाथ की िाकि में और िलवार की िाकि में तवश्वास करिे हैं, वे मनुष्य से नीचे दजे के मनुष्य हैं, उनके भीिर पापी मौजूद है, पिु ही जहंसा में तवश्वास करिा है। आदमी जहंसा में कै से तवश्वास कर सकिा है और 96



पिुओं के हाथ में बहुि बार सत्ता दी गई है और आदमी ने हर बार भोगा है। आगे भी पिुओं के हाथ में सत्ता नहीं जानी चातहए, पाितवक हाथों में, जहंसात्मक हाथों में सत्ता नहीं जानी चातहए। इसतलए आदमी तजिना सजग हो, तजिना अजहंसा के सार को समझे, तजिना अजहंसा के रहस्य को समझे, उिना अच्छा है। अजहंसा का सार है, एक िब्द में--प्रेम, िुद्ध प्रेम। अजहंसा िब्द बहुि गलि है, क्योंदक नकारात्मक है। उससे पिा चलिा है जहंसा का। वह िब्द अच्छा नहीं है। िब्द है वास्ितवक प्रेम। क्योंदक प्रेम पातजटटव है, प्रेम तवधायक है। जब हम कहिे हैं अजहंसा, िो उससे मिलब है जहंसा नहीं करें गे। लेदकन जहंसा नहीं करना है इससे यह तसद्ध नहीं होिा है दक प्रेम करना है। जहंदुस्िान में धार्मकों की एक लंबी किार है। वह सब अजहंसा को मानिे हैं। उनकी अजहंसा का मिलब है--पानी छान कर पीना, उनकी अजहंसा का मिलब है--राि खाना नहीं खाना है, उनकी अजहंसा का मिलब है--दकसी को चोट नहीं पहुंचाना। लेदकन ऐसी अजहंसा बड़ी अजहंसा नहीं है जो दक तसि दूसरे को दुख पहुंचाने से बचिी है। असली अजहंसा वही है जो दूसरे को सुख पहुंचाना चाहिी है। दूसरे को दुख नहीं पहुंचाना है। यह ठीक है, लेदकन यह कािी नहीं है। वह बहुि लचर, अधकचरी अजहंसा है। दूसरे को सुख पहुंचाना है और क्यों पहुंचाना है? दूसरे को सुख इसतलए दक मोक्ष जाना है, इसतलए दक स्वग पाना है। जो आदमी दूसरे को इसतलए दुख नहीं दे पािा है क्योंदक स्वग जाना है, मोक्ष जाना है, वह आदमी हद दजे का चालाक है, वह आदमी हद दजे का तहसाबी-दकिाबी है। उस आदमी को दूसरे से कोई मिलब नहीं है। वह दूसरे को, दूसरे की अजहंसा को सीदढ़यां बना रहा है अपने स्वग जाने की। मैंने सुना है, चीन के एक गांव में एक बहुि बड़ा मेला लगा हुआ था। एक कु आं था मेले के पास तजस पर पाट नहीं था और एक आदमी भूल से उस कु एं के भीिर तगर गया। वह आदमी जोर-जोर से तचल्लाने लगा। फकं िु मेले में बहुि भीड़ थी, कौन उसकी सुनिा। एक बौद्ध तभक्षु कु एं के पास पानी पीने को रुका। नीचे से आदमी तचल्लाया दक तभक्षु जी, मुझे बचाइए। उस तभक्षु ने कहााः पागल दकस-दकस को बचाया जा सकिा है, सारा संसार कु एं में पड़ा है। जीवन ही दुख है। भगवान ने कहा है, जीवन दुख का मूल है। हम सभी डू ब मरें गे, हम दकसको बचा सकिे हैं। उस आदमी ने कहा, ज्ञान की बािें, पहले मुझे तनकाल लें, दिर पीछे करना, क्योंदक ज्ञान की बािें कु एं में तगरे आदमी को अच्छी नहीं मालूम पड़िीं। कृ पा करो, मुझे बाहर तनकालो। तभक्षु ने कहााः पागल, कौन दकसको तनकाल सकिा है। अपना ही अपना सम्हाल ले आदमी िो कािी है, क्योंदक भगवान ने कहा है, कोई दकसी का सहारा नहीं है, अपने सहारे रहो। उसने कहा, वह मैं समझिा हं लेदकन अभी मैं अपना सहारा ढू ंढ रहा हं। िैरना नहीं जानिा हं। मुझे दकसी िरह बाहर तनकाल लो िो िुम्हारा िाि भी सुनूंगा, िुम्हारा प्रवचन भी सुनूंगा। उस तभक्षु ने कहा, िायद िुम्हें पिा नहीं दक भगवान ने िाि में यह भी कहा है दक अगर मैं िुझे बचा लूं और कल िू हत्या कर दे , चोरी कर ले, िो मैं भी िेरे कम का भागी हो जाऊंगा। मैं अपने रास्िे पर, िू अपने रास्िे पर। भगवान िेरा भला करे । वह तभक्षु चला गया। िािों को मानने वाले लोग खिरनाक होिे हैं। उनका िाि ही महत्वपूण है, मरिा हुआ आदमी ज्यादा महत्वपूण नहीं है। उसके पीछे ही कनफ्यूतियस को मानने वाला एक दूसरा तभक्षु आकर रुका। उसने भी नीचे झांक कर दे खा। वह आदमी तचल्लाया दक मुझे बचाओ, मैं मर रहा हं। बस मेरी तस्थति है, सांसें टू टी जािी हैं, तहम्मि नहीं रखी जािी है। कनफ्यूतियस के तिष्य ने कहा, दे ख, िेरे तगरने से सातबि हो गया दक कनफ्यूतियस ने जो तलखा है वह सही है। उसने तलखा है दक हर कु एं पर पाट होनी चातहए और तजस कु एं पर पाट नहीं होगी और तजस



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राज्य में कु एं पर पाट नहीं होिी वह राज्य ठीक नहीं है। िू घबड़ा मि, हम आंदोलन करें गे और कु एं पर पाट बनवा कर रहेंगे। उस आदमी ने कहा दक बनेगा, लेदकन मैं िो गया! आंदोलन करने वाले को आदमी से कोई मिलब नहीं है। उन्हें आंदोलन से मिलब है। वे आंदोलन करें गे। और वह जो आदमी डू ब रहा है, वह गया। वह बहुि तचल्लाया लेदकन आंदोलनकारी दकसी की सुनिे हैं? वह जाकर मंच पर खड़ा हो गया और मेले में लोगों को समझाने लगा दक दे खो, कनफ्यूतियस ने जो तलखा है ठीक तलखा है। सबूि? वह कु आं सबूि है। हर कु एं पर पाट होना चातहए। जब िक कु एं पर पाट नहीं है िब िक राज्य सुराज्य नहीं है। उसके पीछे ही एक ईसाई तमिनरी वहां आया। उसने भी झांक कर दे खा। वह आदमी तचल्ला भी नहीं पाया दक उसने अपनी झोली से रस्सी तनकाली और कु एं में डाली और कु एं के नीचे गया। उस आदमी को तनकाल कर बाहर लाया। उस आदमी ने कहााः आप ही एक भले आदमी मालूम पड़िे हैं। लेदकन आश्चय दक आप झोली में रस्सी पहले से ही रखे हुए थे। उसने कहााः हम सब इं िजाम करके तनकलिे हैं क्योंदक सेवा ही हमारा काय है और हमें पहले से पिा रहिा है दक कोई न कोई िो कु एं में तगरे गा और जीसस ने कहा है दक अगर मोक्ष जाना है, अगर स्वग का राज्य पाना है िो लोगों की सेवा करो। सेवा के तबना कोई मोक्ष नहीं जा सकिा। हम मोक्ष की खोज कर रहे हैं। िुमने बड़ी कृ पा की जो दक कु एं में तगरे । अपने बच्चों को भी समझा जाना िादक वे कु एं में तगरिे रहें और हमारे बच्चे उनको तनकालिे रहें। यह जो आदमी है, यह जो मोक्ष में जाने के तलए लोगों के कु एं में तगरने की प्रिीक्षा कर रहा है, यह आदमी हद दजे का पापी है। इन्हें न कोदढ़यों से मिलब है, न बीमारों से। ये सबको सीदढ़यां बना कर अपना मोक्ष खोज रहें हैं। यह आज िक जो लोग अजहंसा की बाि करिे हैं, उनके तलए अजहंसा भी एक सीढ़ी है। नहीं, अजहंसा जो सीढ़ी बनिी है वह अजहंसा नहीं है। अजहंसा िब्द ठीक नहीं है। िब्द िो ठीक है प्रेम, ज्वलंि प्रेम और प्रेम का मिलब है दूसरे को सुख दे ने की कामना। लेदकन क्यों? इसतलए नहीं दक मोक्ष जाएंगे, इसतलए नहीं दक पुण्य होगा, बतल्क तसि इसतलए दक जो आदमी तजिना दूसरे को सुख दे पािा है उिना ही प्रतिक्षण सुखी हो जािा है, ित्क्षण, आगे-पीछे नहीं, कभी भतवष्य में नहीं। जो आदमी तजिना दूसरे को दुख दे िा है ित्क्षण उिना ही दुखी हो जािा है। जीवन में जो हम दूसरे के तलए करिे हैं वही हम पर वापस लौट आिा है। जजंदगी एक बड़ी प्रतिध्वतन है, एक ईको-पॉइं ट है। मैं एक पहाड़ पर गया था। कु छ तमत्र मेरे साथ थे। उस पहाड़ पर एक ईको-पॉइं ट था जहां आवाज की जािी िो बार-बार वापस लौटिी थी हम लोगों के बीच। वहां जो तमत्र मेरे साथ थे वे कु त्ते की आवाज करने लगे। सारा पहाड़ कु त्तों की आवाज से गूंज गया। मैंने उनसे कहााः रुको भी। अगर आवाज ही करनी है िो कोयल की करो या कोई गीि गाओ। कु त्ते की आवाज करने से क्या िायदा। वे तमत्र गीि गाने लगे प्रेम का। उन्होंने कोयल की आवाज की और पहातड़यां कोयल की आवाज से गूंज गईं। दिर हम लौटे िो वे तमत्र कु छ सोचने लगे और उदास हो गए और रास्िे में कहने लगे दक कहीं ऐसा िो नहीं दक आपने इिारा दकया हो दक यह जो घाटी है, यह जो ईको-पॉइं ट है वह भी प्रिीक है जजंदगी का। जजंदगी का ही वह एक रूप है। जजंदगी में भी जो कु त्ते की आवाज िें किा है, चारों िरि कु त्ते भोंकने लगिे हैं। जजंदगी में भी जो गीि गािा है चारों िरि गीि की िहनाइयां बजने लगिी हैं। जजंदगी में जो हम िें किे हैं जजंदगी की िरि वही हम पर वापस लौटना िुरू हो जािा है--हजार-हजार गुना होकर। प्रेम जो तजिना बांटिा है उिना प्रतिध्वतनि होकर उसके ऊपर बरसने लगिा है। 98



एक छोटी सी कहानी और अपनी बाि मैं पूरी कर दूंगा। रवींद्रनाथ ने एक गीि तलखा है, बहुि प्यारा गीि है और उस गीि में तलखा है दक एक तभखमंगा सुबहसुबह उठा है भीख मांगने के तलए, अपनी झोली तनकाल कर कं धे पर डाली है, आज त्यौहार का ददन है और भीख तमलने की आिा है। ऐसा मालूम होिा है दक त्यौहारों की ईजाद तभखमंगों ने ही की होगी, खोज उन्होंने की होगी। झोली कं धे पर डाल कर उसने अपनी पत्नी से कु छ अनाज, चावल के दाने झोली में डालने के तलए कहा। जब भी कोई तभखमंगा अपने घर से तनकलिा है, चालाक तभखमंगा, क्योंदक तभखमंगों में भी नासमझ तभखमंगे होिे हैं, समझदार भी होिे हैं। सब िरह की दुकानों में समझदार, नासमझ सभी िरह के लोग होिे हैं। तभखमंगों की भी एक दुकान है। उसने कु छ दाने घर से डाल तलए हैं और तभखमंगे कु छ दाने डाल कर तनकलिे हैं िादक तजसके सामने झोली िै लाएं उसे ददखाई पड़े दक भीख पहले भी दी जा चुकी है। इनकार करने में मुतश्कल होिी है अगर भीख पहले दी जा चुकी हो, क्योंदक अहंकार को चोट लगिी है दक दकसी दूसरे आदमी ने दान कर ददया है और अगर हम नहीं करिे हैं िो उस आदमी के सामने छोटे हो जािे हैं। इसतलए तभखमंगे पैसे हाथ में बजािे हुए तनकलिे हैं। वह तभखमंगा रास्िे पर, राजपथ पर आकर खड़ा ही हुआ था, कु छ सोचिा था दक दकस ददिा में जाऊं, दक दे खा दक सामने से सूरज तनकलिा है और राजा का स्वण रथ आ रहा है। राजा अपने रथ पर सवार है। सूरज की दकरणों में उसका रथ चमक रहा है। तभखमंगे के िो भाग खुल गए। उसने कभी राजा से भीख नहीं मांगी थी। राजाओं से भीख मांगना मुतश्कल है, क्योंदक द्वार पर पहरे दार होिे हैं, वे भीिर प्रवेि करने नहीं दे िे। आज िो राजा रास्िे पर तमल गया है, आज िो झोली िै ला दूंगा और भीख से छु टकारा जन्म-जन्म के तलए तमल जाएगा। दिर आगे भीख नहीं मांगनी पड़ेगी। इसी सपने में, कल्पना में था और तभखमंगों के पास तसवाय सपने के और कु छ भी नहीं होिा। सपने में ही जीना पड़िा है, क्योंदक तजनके पास कु छ भी नहीं है वे सपने में ही जीने का रास्िा खोज लेिे हैं। वह महलों में तनवास करने लगा सपने में और िभी रथ आकर खड़ा हो गया। सारे सपने टू ट गए और हैरान हो गया तभखारी। राजा नीचे उिरा और राजा ने अपनी झोली तभखारी के सामने िै ला दी। तभखारी ने कहााः क्या कर ददया? राजा ने कहााः क्षमा करना। अिोभन है, लेदकन ज्योतितषयों ने कहा है दक राज्य पर खिरा है दुश्मन का और कहा है दक अगर मैं आज त्यौहार के ददन जो पहला आदमी मुझे तमल जाए उससे भीख मांग लूं िो राज्य खिरे से बच सकिा है। िुम्हीं पहले आदमी हो, दुखी न होओ, िुमने कभी तभक्षा दी न होगी, इसतलए बड़ी मुतश्कल पड़ेगी दे ने में। लेदकन कु छ भी थोड़ा सा दे दो, इनकार मि कर दे ना, पूरे राज्य के भाग्य का सवाल है। तभखमंगा दकिनी कटठनाई में पड़ गया होगा? उसने हमेिा मांगा था, ददया कभी नहीं था। दे ने की आदि न थी। झोली में हाथ डालिा है और खाली हाथ बाहर तनकाल लेिा है। इनकार भी कर नहीं सकिा। सामने राजा खड़ा है। पूरे राज्य के संकट का सवाल है। हाथ भीिर चला जािा है, मुट्ठी बंधिी नहीं। राजा कहिा है, इनकार मि कर दे ना, क्योंदक ज्योतितषयों ने कहा है दक अगर पहले आदमी ने इनकार कर ददया िो संकट तनतश्चि है। िो एक दाना ही दे दो। तभखारी ने बामुतश्कल एक चावल का दाना तनकाल कर राजा की झोली में डाल ददया। राजा अपने रथ पर बैठा और चला गया। धूल उड़िी रह गई। तभखारी के सब कपड़े धूल से भर गए। उलटा तमला िो कु छ भी नहीं, पास से कु छ चला गया। उसका दुख आप जानिे हैं? ददन भर भीख मांगी, बहुि तमली उस ददन भीख। इिनी कभी नहीं तमली। लेदकन मन प्रसन्न नहीं हुआ। क्योंदक जो तमलिा है उससे प्रसन्न नहीं होिा है मन, जो छू ट जािा है उससे दुखी होिा है। एक दाना खटकिा रहा जो ददया था। सबके मन की 99



यही हालि है, क्योंदक सब छोटे-मोटे तभखारी हैं। जो छू ट जािा है वह खटकिा रहिा है, जो तमल जािा है उसका पिा नहीं चलिा। तभखारी के मन का लक्षण यह है--जो तमल जाए उसका पिा न चले, जो न तमले, जो छू ट जाए, उसकी पीड़ा कसकिी रहे। वह घर पहुंचा है राि, झोली पटक ददया, पत्नी िो पागल हो गई। इिना कभी न तमला था। झोली खोलने लगी। पति िो उदास ददखिा था। उदास हैं आप? पति ने कहा, िुझे िो पिा नहीं है पागल, झोली में थोड़ा कम है। आज थोड़ा दे ना भी पड़ा है। ऐसा जजंदगी में कभी नहीं दकया आज वह करना पड़ा। पत्नी ने झोली खोली, दाने तबखर गए और पति छािी पीट कर रोने लगा। अब िक उदास था, आंसुओं की धारा बहने लगी। पत्नी ने पूछा, क्या हुआ? पति ने नीचे के दाने उठाए और एक दाना सोने का हो गया था। एक चावल का दाना सोने का हो गया है। तचल्लाने लगा दक भूल हो गई, अवसर तनकल गया। मैंने अगर सारे दाने दे ददए होिे िो सब सोना हो गया होिा। लेदकन अब कहां खोजूं उस राजा को, कहां तमलेगा वह रथ। अवसर चूक गया है वह। मुझे पिा नहीं, यह कहानी कहां िक सच है, लेदकन यह मुझे पिा है दक जजंदगी के अंि में आदमी ने जो ददया है वही सोने का होकर वापस लौट आिा है। जो ददया है वही स्वण का हो जािा है, जो रोक तलया है वही तमट्टी का हो जािा है। प्रेम का अथ है--दान, प्रेम का अथ है--बांटना। तजिना बंट जािा है व्यतित्व, आत्मा उिनी ही स्वण की हो जािी है, और तजिना अनबंटा रह जािा है व्यतित्व, आत्मा उिनी ही तमट्टी हो जािी है।



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अस्वीकृ ति में उठा हाथ आठवां प्रवचन



अंध ेरे कू पों में हलचल एक तमत्र ने पूछा है दक क्या महापुरुष भी कभी भूलें करिे हैं? हां, करिे हैं। महापुरुष भी भूलें करिे हैं। एक बाि है दक महापुरुष कभी छोटी भूल नहीं करिे और जब भी भूल करिे हैं, बड़ी ही करिे हैं। अिाः इस भ्म में रहने की आवश्यकिा नहीं है दक महापुरुष भूल नहीं करिे। कोई भी महापुरुष इिना पूण नहीं है दक भगवान कहलाने लगे। महापुरुष भूल करिा है और कर सकिा है। अिाः यह आवश्यक नहीं है दक आने वाले लोग उनकी भूलों पर तवचार न करें । यह आवश्यक नहीं है दक हम जहंदुस्िान के पांच हजार वषों के इतिहास पर तवचार करें , वरन यदद जहंदुस्िान के पांच महापुरुषों पर ही ठीक से तवचार कर लें िो आने वाले लोग तजस गलि रास्िे पर चलने वाले हैं--उसकी ओर संकेि हो सके गा। ठीक समय पर भूल सुधार हो जाएगी। महापुरुष ऊंचाइयों पर चलिे हैं, उन ऊंचाइयों पर, जहां आने वाली पीदढ़यां हजारों सालों िक चलेंगी। लेदकन इिना आगे चलने में महापुरुष भी न जाने हजारों साल पहले ही दकिनी भूलें कर डालिा है और उन भूलों को दुभाग्यवि हजारों साल िक आने वाली पीदढ़यां आत्मसाि करिी रहेंगी। महापुरुष की जािीय भूलें ददखलाई नहीं पड़िी हैं--जािीय भूलों को दे खना और समझना कटठन भी है। मैंने गांधी वष को गांधी की जािीय भूलों की आलोचना का वष माना है। इस एक वष में गांधी पर हम तजिनी आलोचना कर सकें , हमें करना चातहए। हम गांधी की तजिनी आलोचना करें गे, उिना ही परोक्ष रूप से उनके प्रति हमारा प्रेम प्रकट होगा। आलोचना द्वारा हम यह प्रकट करें गे दक हम गांधी को मुदा नहीं समझिे हैं, उसे जजंदा समझिे हैं। वह और उसके तवचार जीतवि प्रिीक हैं, िभी िो उस पर तवचार करें गे, उसे समझेंगे और उसकी तवचार-परं परा को आगे बढ़ाएंगे। हम उनकी पूजा नहीं करें गे। पूजा मरे हुए आदमी की की जािी है, जीतवि की नहीं। अिाः हम गांधी के तवचारों की पूजा नहीं करें गे। मैं गुजराि में नहीं था, पंजाब में था। जब लौटा िो मेरी बािों को बड़े-बड़े अजीब अथ दे ददए गए थे। इन गलििहतमयों की वजह से मुझे गातलयां भी दी जा रही हैं। वैसे गातलयों का मुझे कोई भय नहीं है। लेदकन यदद इन गातलयों के साथ-साथ गांधी जी के तवचारों को लेकर कु छ िक हुए हों, कु छ तवचार-तवतनमय हुआ, िो प्रसन्निा की बाि अवश्य हो सकिी है और उससे गांधी जी की आत्मा भी िांति अनुभव करे गी। आज की चचा में तजन जबंदुओं पर मैं अपनी बाि कें दद्रि रखना चाहंगा, उनमें से पहली बाि हजारों साल पुरानी भारिीय संस्कृ ति एवं सयिा की है। कहा जािा है दक भारिीय संस्कृ ति का इतिहास कोई दस हजार साल पुराना है। पांच हजार वष की कथा िो हमें ज्ञाि है... जो भी हो, लेदकन दस हजार वष के इतिहास में भारि ने खाने और पहनने में कभी भी योग्यिा प्राप्ि नहीं की। हमारे दस हजार वष के इतिहास की उपलतब्ध यह है दक पृथ्वी पर आज सबसे ज्यादा दटरद्र, दीन-हीन और दुखी लोग हम ही हैं। ऐसा आकतस्मक नहीं हो सकिा है। इसके पीछे हमारे सोचने के ढंग में कोई बुतनयादी भूल होनी चातहए। यह सोचने की बाि है दक दस हजार वषों से पीढ़ी दर पीढ़ी हम श्रम कर रहे हैं, हर प्रकार से सोच रहे हैं, तनरं िर कु छ नया प्रयास कर रहे हैं; दिर भी हम रोजी-रोटी नहीं जुटा पािे हैं। यह बाि गंभीर है, तवचारणीय 101



है। यदद हमारे मूलभूि दृतिकोण में दोष नहीं होिा िो इिने धन-धान्य से पूण हमारा दे ि इिना दटरद्र नहीं होिा। अिाः हमारे ित्वजचंिन की मूलभूि त्रुटट को हमें अच्छी िरह से समझ लेना है। भूल यह है दक जहंदुस्िान का मतस्िष्क आज िक वैज्ञातनक एवं िकनीकी नहीं हो पाया है। जहंदुस्िान का मतस्िष्क सदा से अवैज्ञातनक रहा है, िकनीक-तवरोधी रहा है। दुतनया में संपतत्त िकनीक और तवज्ञान से पैदा होिी है। संपतत्त आसमान से नहीं टपकिी। अमरीका िीन सौ वष के इतिहास में जगि का सबसे समृद्ध एवं ितििाली दे ि बन गया। हम दस हजार वष का इतिहास तलए हुए भी अमरीका जैसे नये दे ि के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांग रहे हैं। हमें िम भी नहीं मालूम हुई। हमसे ज्यादा बेिम कौम भी खोजनी मुतश्कल है। मैंने सुना है, सन उन्नीस सौ बासठ के करीब चीन में एक अकाल पड़ा था। इन अकाल-पीतड़िों की सहायिाथ इं ग्लैंड से उसके कु छ तमत्रों ने खाद्यसामग्री, कपड़े, दवाइयां आदद भेजीं, वह जहाज जब चीन भेजा िो दकनारे से ही भरा हुआ जहाज लौटा ददया गया और उस जहाज पर तलख ददया दक धन्यवाद, हम मर सकिे हैं लेदकन दकसी हालि में भीख मांगने को िैयार नहीं हैं। होगा चीन कै सा ही दे ि, होगा माओ कै सा ही और होंगी उनकी नीतियां दकिनी ही घािक! लेदकन बाि उन्होंने स्वातभमान की कही। अमरीका की कौम िीन सौ वष पुरानी है और इन िीन सौ वषों में उन्होंने पृथ्वी पर संपतत्त का ढेर लगा ददया। आज वे सारी पृथ्वी के अन्नदािा बन बैठे हैं और हम तभखाटरयों की िरह खड़े हैं। यूरोप तनवातसयों के आने के पहले अमरीका में वही जमीन थी, वही आसमान था, वही खेि थे, वैसे ही वषा होिी थी, वैसे ही सूरज चमकिा था, लेदकन अमरीका का आददवासी संपतत्त पैदा क्यों नहीं कर सका? जब दे ि वही था िो संपतत्त पैदा क्यों नहीं हुई? अमरीका का आददवासी भूखा मर रहा था, लंगोटी लगाए हुए था और यूरोप के लोगों के पहुंचने से यह संपतत्त कहां से पैदा हो गई? यह संपतत्त आई थी टेक्नालॉजी से, यूरोपीय लोगों के िकनीकी एवं वैज्ञातनक मतस्िष्क से। जहंदुस्िान का मतस्िष्क प्रारं भ से ही अवैज्ञातनक रहा है। गांधी जी ने जहंदुस्िातनयों के इस अवैज्ञातनक मतस्िष्क में भरी भूलों को और मजबूि दकया है, दिर से उन्होंने िकली और चरखे की बािें की हैं और दकसी भी गंभीर व्यति के तलए यह बाि बरदाश्ि के बाहर है। अिाः जहंदुस्िान को यदद प्रगति करनी है िो चरखा और िकली से मुि होना पड़ेगा। मैं आिा करिा हं मेरे कहे का सही अथ लगाया जाए और उसे सही माने में समझा भी जाए। मैं यह नहीं कहिा हं जो चरखािकली से कमा रहे हैं उनकी कमाई पर हम लाि मार दें , यह भी मैं नहीं कहिा हं दक खादी का उत्पादन हम बंद कर दें । मैं कहना यह चाहिा हं दक खादी-िकली हमारे जचंिन का प्रिीक न बनें। हमारे जचंिन के प्रिीक यदद इिने तपछड़े हुए होंगे िो हम आने वाली दुतनया में ऊपर नहीं उठ सकिे हैं। जहंदुस्िान यदद भूखा मरे गा िो उसका जुम्मा िकनीक-तवरोधी दृतिकोण पर होगा। यदद गांधी की पूरी बाि मान ली जाए, िो भारि में ही करीब पच्चीस करोड़ लोगों को मृत्यु के िं दे में ढके लना पड़ेगा। वह मृत्यु अजहंसक गांधी के तसर पड़ेगी। अल्डु अस हक्सले ने कहीं कहा है दक यदद गांधी की बाि सारी दुतनया मान ले िो पृथ्वी की आधी आबादी को नि हो जाना पड़ेगा। साढ़े िीन अरब लोगों में से पौने दो अरब लोगों को मरना पड़ेगा। क्योंदक िकनीक के तवकास के कारण ही मनुष्य की आबादी बढ़ी है। जब िक िकनीकी तवकास नहीं हुआ था िब िक दुतनया की आबादी इस भांति बढ़ ही नहीं सकिी थी। िायद बुद्ध के समय सारी दुतनया की आबादी दो-अढ़ाई करोड़ से ज्यादा नहीं थी। यदद हमें पीछे राम-राज्य की िरि लौटना हो िो यह जागतिक आत्मघाि, यूतनवसल सुसाइड



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ही कहा जा सकिा है। चंगीज, िैमूर, तसकं दर, नेपोतलयन, तहटलर, स्टैतलन, माओ--सब तमल कर भी इिने लोगों को नहीं मार सकिे हैं तजिनों को अके ले गांधी-दिन मार डाल सकिा है! गांधी का तवचार िकनीक-तवरोधी है और गांधी का यह िकनीक-तवरोधी तवचार ही भारि को दटरद्र बनाए रखने का कारण बनेगा। इसी कारण इस पर ठीक से सोच-समझ लेना आवश्यक है। यह िकनीक-तवरोधी हमारी परं परा िो पांच हजार वष पुरानी है और इसीतलए हमें चारों ओर का तसलतसला भी ठीक-ठीक ही लगिा है। इसतलए लगिा भी है दक क्या करना है जरूरिें बढ़ा कर, क्या करना है बड़ी मिीनें बना कर, क्या करना है कें द्रीकरण से? लेदकन हमें यह मालूम होना चातहए दक कें द्रीकरण के तबना, तबना बड़े उद्योगों के , संपदा पैदा हो ही नहीं सकिी है। संपदा पैदा करनी है िो कें द्रीकरण की व्यवस्था करनी ही होगी। गांधी तवकें द्रीकरण के पक्ष में हैं, िो मैं यही कहिा हं दक यह तवकें द्रीकरण ही आत्मघाि तसद्ध होगा। सच बाि िो यह है दक यदद गांधी को छोड़ कर दकसी अन्य आदमी ने तवकें द्रीकरण की और चरखा-िकली की बािें की होिीं िो हम उस पर हंसिे। हम उस आदमी को बेवकू ि कहिे। लेदकन गांधी इिने मतहमापूण व्यति हैं दक उनकी नासमझी की बािें भी हमें पतवत्र मालूम होिी हैं। गांधी के व्यतित्व में ही कु छ ऐसी बाि थी दक वे हमसे यदद दोषपूण एवं असंगि बािें भी कहेंगे िो भी हम उसे परम, तसद्ध मंत्र की िरह स्वीकार करें गे। गांधी की ये बािें यदद और कोई करिा िो हम उसको सपने में भी स्वीकार नहीं करिे, क्योंदक हम जानिे थे दक वे न िो तववेकपूण हैं, न बुतद्धमत्ता पूण हैं और न ही भतवष्य में उनसे दे ि का कोई भला ही होने वाला है। इससे तसद्ध होिा है दक गांधी अदभुि व्यति थे जो हर प्रकार की बाि चाहे वह गलि हो या उलटी, सही प्रमातणि कर सकिे थे। यदद कोई साधारण आदमी कहे दक िकली कािो ओर दे ि आजाद हो जाएगा िो हम मानेंगे ही नहीं, बतल्क उसकी बाि पर हंसेंगे। लेदकन गांधी जैसे आदमी पर हंसना कटठन है। गांधी इिने सच्चे थे, तनयि के इिने साि दक दे ि के तलए अपना सब कु छ अर्पि करके मरे । वे ऐसे व्यति थे दक उनके रोम-रोम में, प्राण-प्राण में दे ि की उन्नति के तसवाय और कु छ नहीं बसा था। यही कारण है दक हम यह कल्पना ही नहीं कर सकिे दक गांधी कु छ गलि भी कह सकिे हैं। गांधी की गलतियों पर दकसी ने ध्यान दे ने की आवश्यकिा भी नहीं समझी, क्योंदक गांधी की तनयि पर कभी भी दकसी को भी िक नहीं था। गांधी जी को जो ठीक लगा उन्होंने ईमानदारी से उसे तनभाया और दृढ़िापूवक उसका पालन भी दकया। लेदकन गांधी जी ने जो सोचा वह ठीक भी हो सकिा है और त्रुटटपूण भी। यह कोई अतनवायिा नहीं है दक गांधी जी ने जो कु छ सोच तलया, वह ध्रुव सत्य है और वह त्रुटटपूण हो ही नहीं सकिा। दुतनया में अतनवायिा दकसी भी चीज की नहीं है। न्यूटन को जो ठीक लगा वह न्यूटन ने दकया। आइं स्टीन को जो ठीक लगिा वह आइं स्टीन करिा है। दोनों का तवरोधाभास यदद हो भी जाए िो इसका अथ यह नहीं दक दोनों एक-दूसरे के ित्रु हो जाएंगे। आइं स्टीन िो न्यूटन के तसद्धांिों को आगे बढ़ाने वाला होगा, उसे गति प्रदान करने वाला होगा और प्रगति का यही क्रम भी रहिा है। मैं कोई गांधी का ित्रु नहीं हं। मेरे हृदय में उनके प्रति तजिना प्रेम है, श्रद्धा है, िायद ही अन्य दकसी पुरुष के प्रति हो। लेदकन कटठनाई यह है दक उनके थोथे अनुयायी यह प्रचाटरि करिे हैं दक मैं उनका ित्रु हं िो यह बच्चों जैसी नादानी और मूखिा ही कही जाएगी। गांधी के व्यतित्व पर मुझे िक नहीं है। लेदकन इसका यह



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अथ िो नहीं दक गांधी जो कहिे हैं वह सब सही हो सकिा है, सब उपयोगी हो सकिा है। ऐसा सोचना स्वयं को धोखा दे ना होगा, खिरनाक होगा। कई लोग व्यतित्व के साथ कृ तित्व को जोड़ने के आदी हो गए हैं। दकसी भी महापुरुष ने मनुष्य के , समाज के रूपांिरण के संबंध में इिना गहरा तवचार नहीं दकया तजिना दक माक्स ने दकया है। लेदकन माक्स सुबह से लेकर िाम िक तसगरे ट पीिा था। अब अगर कोई समाजवादी यह समझे दक मुझे भी सुबह से िाम िक तसगरे ट पीनी चातहए के वल इसतलए क्योंदक माक्स तसगरे ट पीिा था और माक्स ने जो भी व्यतिगि स्िर पर गलि काम दकए वह भी उन्हें दोहराएगा िो उसे कोई भी संगतिपूण नहीं कहेगा। हर बड़े आदमी की अपनी कु छ व्यतिगि रुझान होिी है, अपने जीने का ढंग होिा है। उसे जो प्रीतिकर होिा है, वह करिा है लेदकन पीछे आने वाले लोगों को तनरं िर सचेि होकर सोचना जरूरी है दक क्या उसके और दे ि के तलए, भतवष्य के तलए उपयोगी तसद्ध हो सकिा है। मुझे ऐसा ददख पड़िा है दक यदद हम गांधी के इस िकली-चरखा के जीवन-दिन में डू बे रहे, उसी में अपनी िति और समय नि करिे रहे िो यह दे ि औद्योतगक क्रांति में से नहीं गुजर सके गा। यह स्मरण रहे दक आने वाले पचास वषों में सारी दुतनया से इिनी बड़ी क्रांति गुजरने वाली है दक हमारे बीच और पतश्चम के बीच इिना बड़ा िासला हो जाएगा दक िायद इस िासले को हमारी आने वाली पीदढ़यां कभी पूरा न कर सकें गी। हमें जो भी करना है वह आने वाले बीस वषों में अत्यंि िीव्रिा से िकनीक के मामले में आधुतनक दुतनया के समझ खड़ा होना है। अन्यथा हम हमेिा के तलए तपछड़ जाएंगे जैसा अब िक होिा रहा है। िकनीक यानी मनुष्य की इं दद्रयों और क्षमिाओं का तवस्िार। आंख थोड़ी दूर ही दे ख सकिी है। लेदकन दूरबीन बहुि दूर िक दे ख सकिी है। वह आंख का ही तवस्िार है। अब िो राडार आंखें भी हैं। और तजन्हें चांद िारों पर पहुंचना है, उनके तलए खाली आंखें कािी नहीं हो सकिी हैं। ऐसे ही िेष सारी िकनीक का भी दिन है। हमारा मकान हमारे िरीर का ही तवस्िार है। और हमारे हवाई जहाज हमारे पैरों के । मनुष्य िकनीक के माध्यम से तवराट हो गया है। और जो भी उस आयाम में यात्रा करने से इनकार करें गे वे व्यथ ही बौने रह जाएंगे। गांधी की बािें भारि को बौना करने वाली हैं, उनका चले िो हमें आदद-गुिा-मानव की दुतनया में पहुंचा दें । माना दक कोई इिनी दूर िक उनकी बािें नहीं मानेगा। बुतद्ध रहिे ऐसा करना सुगम भी नहीं है। लेदकन लंबी पराजय और आलस्य से भरी जाति ऐसी बािें अपने अहंकार को बचाने के तलए भी मान सकिी है। भारि में कु छ ऐसा ही हो रहा है। तजन अंगूरों िक हम नहीं पहुंच पर रहे हैं उन्हें खट्टे कह कर स्वयं का चेहरा बचाया जा रहा है! लेदकन इसमें दकसी और का कोई नुकसान नहीं है। हातन होगी िो बस हमारी ही होगी! क्योंदक चाहे झूठे ही सही, तबना स्वाद तलए ही सही, तजसे हम खट्टा मान लेिे हैं, उसे पाने की यात्रा बंद हो जािी है। और हमारे खट्टे की घोषणा से दूसरे िो उसे पा नहीं सकिे हैं। बतल्क जब उनके चेहरे कहिे हैं दक नहीं जो हमने छोड़ा वह खट्टा नहीं था, िो हमारे प्राण और भी संकट में पड़ जािे हैं। लेदकन िब स्वातभमान बचाने को हम अंगूरों को खट्टे होने का और भी िोरगुल मचाने लगिे हैं। यह एक दुष्चक्र है। और भारि इसमें बुरी िरह उलझ गया है। जहंदुस्िान की दीनिा और दटरद्रिा की कथाएं यह बिला रही हैं दक हमने कभी टेक्नालॉजी तवकतसि करने का प्रयास ही नहीं दकया। हम यही कहिे रहे दक हम झोपड़ों में रह लेंगे, अपना चरखा काि लेंगे, अपना कपड़ा



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बुन लेंगे और हमें क्या आवश्यकिा है अन्य चीजों की? हम अपनी जगह बैठे रहे और दुतनया िेजी से तवकतसि होिी चली गई। चीन ने हम पर हमला दकया िो हम पीछे हट आए और तजिनी जमीन हमने छोड़ी उस पर चीन ने कब्जा कर तलया, वह जमीन उसी की हो गई। अब हम उसकी कोई बाि ही नहीं करिे। करने की तहम्मि भी करना कटठन है। यह सब इसतलए, क्योंदक िकनीक की दृति से हम चीन से तपछड़े हुए हैं, उससे लड़ने में असमथ हैं। एक बड़े गांधीवादी नेिा से इस संबंध में मेरी बाि होिी थी िो उन्होंने कहा, वह जमीन तबल्कु ल बेकार है, उसमें घास-िू स भी पैदा नहीं होिा है। यह वही खट्टे अंगूरों वाली बाि है न? मनुष्य ने तजिनी सयिा तवकतसि की है वह श्रम से मुि हो जाने के तलए की है। जब भी कु छ लोग श्रम से मुि हो गए िो उन्होंने काव्य रचे, गीि तलखे, तचत्र बनाए, संगीि का सृजन दकया, परमात्मा की खोज की। इस प्रकार आदमी तजिना श्रम से मुि होिा है उिना ही उसे धम, संगीि और सातहत्य को तवकतसि करने का अवसर भी तमलिा है। कभी आपने सोचा है दक जैनों के चौबीस िीथंकर राजाओं के ही लड़के क्यों हुए? बुद्ध राजा के ही लड़के क्यों हुए? राम और कृ ष्ण राजा के लड़के क्यों हुए? जहंदुस्िान के सब भगवान राजाओं के लड़के क्यों हुए? उसका भी कारण है। एक दटरद्र आदमी जो ददन भर मजदूरी करके भी पेट नहीं भर सकिा है, खाना नहीं जुटा सकिा है, थका-मांदा राि को सो जािा है, सुबह उठ कर दिर अपनी मजदूरी में लग जािा है-उसके तलए कहां का परमात्मा, कहां की आत्मा, कहां का दिन? दटरद्र समाज कभी धार्मक समाज नहीं हो सकिा है। जहंदुस्िान दो-अढ़ाई हजार वष पूव समृद्ध था िो वह उस समय धार्मक भी था। लेदकन आज जहंदुस्िान इिना गरीब और दटरद्र है दक वह धार्मक नहीं हो सकिा है। मैं आपसे दावे से कह सकिा हं दक रूस और अमरीका आने वाले पचास वषों में एक नये अथ में धार्मक होना िुरू हो जाएंगे। उनके धार्मक होने की प्रदक्रया भी प्रारं भ हो गई है। जब आदमी के पास अतिटरि संपतत्त होिी है, जब उसके पास श्रम की कमी के कारण समय बचिा है, िब पहली बार आदमी की चेिना पृथ्वी से ऊपर उठिी है और आकाि की ओर दे खिी है। संिोष एक बहुि ही घािक िब्द है, हमें जड़ करने के तलए। हमारा दिन यह है दक हम अपनी चादर में ही संिुि हैं। हमारे हाथ-पांव बढ़िे जाएंगे, लेदकन हम अपने को तसकोड़िे जाएंगे। चादर िो उिनी ही रहेगी-छोटी की छोटी। िुम भीिर बड़े होिे जा रहे हो। रोज कभी हाथ उघड़ जाएगा, कभी पांव उघड़ जाएगा, कभी पीठ उघड़ जाएगी और इस िरह तसकु ड़िे-तसकु ड़िे जजंदगी कटठन हो जाएगी। तसकु ड़ना िो मरने का ढंग है। िो मेरा यह कहना है दक जीवन के तवस्िार का तनयम यह नहीं है। जीवन के तवस्िार का दिन यही कहिा है दक हमें चादर का तवस्िार करना है। हमेिा चादर के बाहर पैर िै लाओ, िादक बाहर जाए और हमें यह चुनौिी तमले दक चादर को हमें बड़ा करने का तनरं िर प्रयास करना है। जहंदुस्िान कायर और सुस्ि अकारण नहीं हो गया। जहंदुस्िान के सुस्ि एवं कायर होने के पीछे िथाकतथि बड़े-बड़े लोगों का दिन है। अिाः जहंदुस्िान के हर व्यतित्व को िै लाव चातहए। हमें िकनीक तवरोधी दिन छोड़ना है और प्रतिभाओं को खुला अवसर दे ना है, साहसपूवक उनका िै लाव करना है। मेरा तवरोध गांधी से नहीं, गांधीवादी दिन से है। जहंदुस्िान के राजनीतिज्ञों को गांधी से कोई मिलब नहीं है, मिलब है गांधीवादी से। इसतलए गांधीवाद की इिनी भीमकाय िस्वीरें और रं गमंच खड़े कर ददए हैं िादक उसके पीछे सब-कु छ खेला जा सके , सब-कु छ सही गलि दकया जा सके । बीस वष से गांधी की आड़ में एक 105



खेल चल रहा है, गांधीवाद के नाम पर दे ि का िोषण चल रहा है और गांधीवाददयों ने इन बीस वषों में दे ि को नरक की यात्रा करा दी है। गांधीवाद से हम तजिनी जल्दी मुि हो जावें उिना ही अच्छा होगा और उसी ददन हम सच्चे अथों में गांधी को ज्यादा प्रेम और आदर दे ने में समथ हो सकें गे। इन गांधीवाददयों की वजह से ही गांधी का इिना अनादर हो रहा है। गांधी ने तजस ददन चरखे-िकली की बाि की थी िब संभविाः उसकी जरूरि रही होगी। लेदकन वह जरूरि दूसरी थी--न िो औद्योतगक थी, न आर्थक थी, वरन वह राजनैतिक थी। वे राजनैतिक स्िर पर दे ि को एकिा का प्रिीक दे ना चाहिे थे। लेदकन गांधी के पीछे चलने वाला िबका अभी भी इसी प्रयास में लगा है दक गांधी का वही पुराना प्रिीक हमेिा बना रहे। यह कै से संभव हो सकिा है? आगे चल कर भी वह हमारा प्रिीक कै से हो सकिा है। गांधी के समय की पटरतस्थतियां उनके साथ ही समाप्त हो गईं और वह बाि उन्हीं के साथ चली गई। अब पटरतस्थतियां और आवश्यकिाएं तबल्कु ल तभन्न हैं। लेदकन एक गांधीवादी वग अभी भी गांधी के इस चरखे-िकली को हमारी आर्थक योजनाओं के साथ जोड़ना चाहिा है। ऐसा षडयंत्र दे ि को सदा के तलए अवैज्ञातनक बना दे गा। वैसे ही हमारे पास वैज्ञातनक बुतद्ध का तनिांि अभाव है। मैं कलकत्ता में एक डाक्टर के घर मेहमान था। डाक्टर के पास बहुि तडतग्रयां हैं। वे कलकत्ते के एक प्रख्याि दितजतियन हैं। िाम को जब वे एक मीटटंग में मुझे ले जाने के तलए तनकले िो उनकी लड़की को छींक आ गई। वह डाक्टर मुझसे बोले दक दो तमनट रुक जाइए, लड़की को छींक आ गई है। मैंने उस डाक्टर से कहा दक यदद मेरे हाथ में हो िो मैं अभी िुम्हारे सारे सटीदिके टस में आग लगा दूं और घोषणा कर दूं दक इस आदमी से दकसी को भी दवा नहीं लेनी चातहए। यह आदमी खिरनाक है। इसके पास वैज्ञातनक बुतद्ध नहीं है। िुम डाक्टर हो और भलीभांति जानिे हो दक छींक आने का भीिरी िारीटरक कारण है। उसका, मेरे जाने से कोई संबंध भी नहीं है। जहंदुस्िान वैज्ञातनक तिक्षा िो ले रहा है, लेदकन उसके पास वैज्ञातनक बुतद्ध नहीं है। हम वैज्ञातनक पैदा कर रहे हैं। तवज्ञान की बड़ी-बड़ी तडतग्रयां बांट रहे हैं, दिर भी वैज्ञातनक बुतद्ध हम पैदा नहीं कर पाए। अिाः जहंदुस्िान के लोगों को आने वाले समय में िकनीकी मतस्िष्क का बनाना है, जीवन के तलए अतधक से अतधक साधन पैदा करने हैं िादक यह दे ि जो हजारों साल से गरीब रहा है, गरीब न रह सके । यह जो मुल्क हजारों वषों से मानतसक रूप से गुलाम रहा है, गुलाम न रह सके । उसकी दटरद्रिा का बोध टू टे। दे ि में नये तसरे से प्रतिभाओं का तवकास हो और संसार के अन्य दे िों के समकक्ष खड़ा हो सके । गांधी तजस ददन दे ि को इस नई हालि में दे खेंगे उनकी आत्मा अवश्य ही प्रसन्न होगी। गांधी जी की आत्मा के पास अब कोई उपाय नहीं दक वह आपको आकर कह दे दक चरखा-िकली से मुि हो जाओ। अिाः यह काम हम लोगों को ही करना होगा। मैं यह मानिा हं दक जो बाि मैं आपसे कह रहा हं, यदद गांधी जी से कहिा िो गांधी उसे आपसे ज्यादा सहानुभूति से सुनने में समथ हो सकिे थे। लेदकन गांधीवादी मेरी बािों का अजीब अथ लगािे हैं, मेरे बारे में न जाने क्या-क्या कहिे हैं। कोई कहने लगा दक में चीन का एजेंट हं, कोई कहिा है मुझे रूस से पैसे तमलिे हैं, कोई कहिा है पुतलस से मेरी जांच करवानी चातहए। कोई कहिा है दक यह व्यति गुरु गोलवलकर से अतधक खिरनाक है, यह तनतश्चि ही कोई खिरनाक षडयंत्र रच रहा है। िब मुझे एक ही बाि कहनी है दक गांधी तजस दे ि का तनमाण कर गए हैं, तजसके तलए उन्होंने चालीसपचास वष मेहनि की, तजसके तलए वे मरे -खपे, तजनके तलए उन्होंने इिना श्रम दकया, उस सब पर अनेक अनुयायी एकदम पानी िे रे दे रहे हैं। क्योंदक वे दे ि को तवचार िक करने की स्विंत्रिा नहीं दे ना चाहिे हैं। वे 106



तवचार का दकसी भी भांति गला घोंटने के तलए उत्सुक हैं। तवचार को वे दे िद्रोह बिलािे हैं और तवचार के तलए आमंत्रण दे ने को वे षडयंत्र की भूतमका बिलािे हैं। बहुि से गांधीवादी मेरे तमत्र रहे हैं, लेदकन जब मैंने गांधीवादी की आलोचना की, िो मैंने सोचा भी नहीं था दक वे मेरे ित्रु हो जाएंगे। मुझे अनेक पत्र आए हैं और उन पत्रों में यही तलखा है दक मैं आत्मा-परमात्मा की ही बाि करूं और कोई अन्य बाि नहीं और न ही दकसी िरह की राजनीति की बाि। आह! िब मुझे ज्ञाि हुआ दक आत्मा-परमात्मा की ही बाि करवाना भी कै सी राजनीति है! राजनीतिज्ञ मुझे सलाह दे िे हैं दक मैं तसि धम की ही बाि करूं। आह! कै से कु िल राजनीतिज्ञ हैं! वे मुझे कहिे हैं दक दे ि की और समस्याओं पर बोलने में मेरी प्रतिष्ठा को हातन पहुंचेगी! अथाि वे मुझे भी राजनीतिज्ञ बनाना चाहिे हैं। क्योंदक प्रतिष्ठा को ध्यान में रख कर जीिा है, वही िो राजनीतिज्ञ है! मैं ठहरा एक िकीर--मुझे प्रतिष्ठा से क्या प्रयोजन है? सत्य से जरूर प्रयोजन है--लोकमंगल से जरूर प्रयोजन है और उसके तलए यदद मेरी कु बानी भी हो जाए िो कोई हातन नहीं है। सच िो यह है दक मेरे पास अब कु बान करने को भी िो कु छ नहीं है। मैं भी िो नहीं बचा हं। उसे भी िो प्रभु को दे चुका हं। इसतलए अब मैं कु छ कह रहा हं। ऐसा भी नहीं है। प्रभु की जो मजी। वह जो करवाए, मैं उसी के तलए राजी हं। मैं जो बोलिा हं वह भी िो अब उसी का है। और सलाह ही लेनी होगी िो मैं इन राजनीतिज्ञों से लेने नहीं जाऊंगा। उसके तलए भी िो प्रभु का द्वार मेरे तलए सदा खुला है। इसतलए कोई मेरी या मेरी प्रतिष्ठा की जचंिा न करे । जचंिा करे उसकी दक जो मैं कह रहा हं। क्योंदक समय रहिे उसकी जचंिा करने में दे ि के भतवष्य को व्यथ ही गड्ढे में तगरने से बचाया जा सकिा है। एक और तमत्र ने पूछा दक मैं गांधी जी को नैतिक ही पुरुष मानिा हं, धार्मक या आध्यातत्मक नहीं! धार्मक और नैतिक में क्या भेद है? दिर मैं गांधीवाददयों को भी नैतिक ही कहिा हं िब गांधी जी और उनके अनुयातययों में क्या कोई भेद नहीं है? साधारणिाः ऐसा समझा है दक जो नैतिक है, वह धार्मक है। यह बड़ी भूलभरी दृति है। धार्मक िो नैतिक होिा है, लेदकन नैतिक धार्मक नहीं! धार्मक वह है तजसने जीवन के सत्य को जाना। यह अनुभूति तवस्िोट, एक्सप्लोजन की भांति उपलब्ध होिी है। उसका क्रतमक, ग्रेजुअल तवकास नहीं होिा। जीवन के िथ्यों के प्रति समग्ररूपेण जाग कर जीने से जीवन के सत्य का तवस्िोट होिा है। उस तवस्िोट की भूतमका जाग कर जीना है। प्रज्ञा, अमूच्छा, या अप्रमाद अवेयरनेस से वह तवस्िोट घटटि होिा है। योग या ध्यान जागरण की प्रदक्रयाएं हैं। तवस्िोट को उपलब्ध चेिना का आमूल जीवन बदल जािा है। असत्य की जगह सत्य, काम की जगह ब्रह्मचय, क्रोध की जगह क्षमा, अिांति की जगह िांति, पटरग्रह की जगह अपटरग्रह या जहंसा की जगह अजहंसा का आगमन अपने आप ही हो जािा है। उन्हें लाना नहीं पड़िा है। न साधना ही पड़िा है। उनका दिर कोई अयास नहीं करना होिा है। वह रूपांिरण सहज ही ितलि है। मूच्छा में, तनद्रा में, सोये हुए व्यतित्व में जो था, वह जागिे ही वैसे ही तिरोतहि हो जािा है, जैसे दक प्रकाि के जलिे ही अंधकार तवलीन हो जािा है।



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इसतलए धार्मक व्यति असत्य, या ब्रह्मचय या जहंसा को दूर करने या उनसे मुि होने की चेिा नहीं करिा है। उसकी िो समस्ि िति जागने की ददिा में ही प्रवातहि होिी है। वह अंधकार से नहीं लड़िा है, वह िो आलोक को ही आमंतत्रि करिा है। लेदकन, नैतिक व्यति अंधकार से लड़िा है। वह जहंसा से लड़िा है, िादक अजहंसक हो सके , वह काम से लड़िा है िादक अकाम्य हो सके । लेदकन जहंसा से लड़ कर कोई जहंसा से मुि नहीं हो सकिा है। न ही वासना से लड़ कर कोई ब्रह्मचय को उपलब्ध होिा है। ऐसा संघष दमन के अतिटरि और कु छ भी नहीं कर सकिा है। जहंसा अचेिन अनकांिस में चली जािी है और चेिन मन अजहंसक प्रिीि होने लगिा है। यौन, सेक्स अंधेरे तचत्त में उिर जािा है और ब्रह्मचय ऊपर से आरोतपि हो जािा है। इसतलए ऊपर से दे खने और जानने पर धार्मक व्यति और नैतिक व्यति एक से ददखाई पड़िे हैं। लेदकन वे एक से नहीं हैं। नैतिक व्यति िीषासन करिा हुआ अनैतिक व्यति ही है, लेदकन सोया हुआ ही। उसके जीवन में कोई क्रांति घटटि नहीं हुई है। इसीतलए नीति को क्रमिाः साधना होिा है। नीति तवकास, एवोल्यूिन है, धम क्रांति, रे वोल्यूिन है। नीति धम नहीं है। वह धम का धोखा है। वह तमथ्या-धम, सूडो टरलीजन है। और वह धोखा प्रबल है। िभी िो गांधी जैसे भले लोग भी उसमें पड़ जािे हैं। वे धार्मक ही होना चाहिे थे। लेदकन नीति के रास्िे पर भटक गए। और ऐसा नहीं है दक इस भांति वे अके ले ही भटके हों। न मालूम दकिने िथाकतथि संि और महात्मा ऐसे ही भटकिे रहे हैं। इसीतलए जीवन के अंि िक वे "सत्य के प्रयोग" ही करिे रहे, लेदकन सत्य उन्हें उपलब्ध नहीं हो सका। और उनकी अजहंसा में भी इसीतलए तछपी हुई जहंसा के दिन होिे हैं। और स्वयं के ब्रह्मचय पर भी वे स्वयं ही संददग्ध थे। और स्वप्न में उन्हें कामवासना पीतड़ि भी करिी थी। दमन से ऐसा ही होिा है। दमन का यही स्वाभातवक पटरणाम है। इसीतलए धार्मक होने की कामना से भरे हुए गांधी धार्मक ने हो सके । लेदकन धार्मक होने की इच्छा िो उनमें थी। और जो उन्हें ठीक लगिा था उसे वे तनष्ठापूवक करिे थे। िायद इस जीवन की असिलिा उन्हें अगले जीवन में काम आ जाए। आदमी भूल से ही िो सीखिा है। पहली भूल है अनीति। दिर दूसरी भूल है नीति। अनीति से आनंद पाने में असिल हुआ व्यति नीति की ओर मुड़ जािा है। और दिर नीति भी जब असिलिा ही लािी है िभी धार्मक यात्रा िुरू होिी है। मैं मानिा हं दक गांधी ने इस जीवन में नैतिकिा की असिलिा भी भलीभांति दे ख ली है। लेदकन, उनके तिष्य यह भी नहीं दे ख पाए हैं। क्योंदक वे नैतिक भी बे-मन से थे। नैतिकिा गांधी के तलए साधना थी। उससे वे स्वयं धोखे में पड़े, लेदकन उससे वे दकसी और को धोखे में नहीं डालना चाहिे थे। अनके अनुयायी के तलए नैतिकिा आवरण थी, तजससे वे के वल दूसरों को धोखे में डालना चाहिे थे। इसीतलए जब सत्ता आई िो गांधी ने सत्ता की बागडोर हाथ में लेने से इनकार कर ददया। क्योंदक उनका दमन हार्दक था। वे अपने हाथों से अपनी दतमि जीवन-व्यवस्था को प्रतिकू ल पटरतस्थतियों में नहीं छोड़ सकिे थे। क्योंदक उन प्रतिकू ल पटरतस्थतियों में उस जीवन भर साधी गई व्यवस्था के टू ट जाने का भय था। इसीतलए गांधी सत्ता से बचे। लेदकन उनके अनुयायी सत्ता की ओर अपने सब आवरणों को छोड़ कर भागे। और दिर सत्ता ने उनकी सारी कागजी नैतिकिा में आग लगा दी। वे स्पि ही अनैतिक हो गए। यदद गांधी सत्ता में जािे िो उनकी नैतिक व्यवस्था भी टू टिी। लेदकन इससे वे अनैतिक नहीं हो जािे वरन धार्मक होने की उनकी खोज िुरू होिी। िब नैतिकिा भी साधी जा सकिी है यह उनका भ्म टू टिा। और वे उस धम की ओर बढ़िे जो दक नीति के अयास और अंिाःकरण, कांिस के तनमाण से नहीं, वरन जागरण 108



अवेयरनेस और चेिना कांिसनेस को सिि और भी सचेिन करने से उपलब्ध होिा है। यही गांधी और गांधीवाददयों में भेद था। गांधी को ऐसा बहुि बार लगिा भी था दक उनकी अजहंसा में कमी है या उनके ब्रह्मचय में या उनकी पतवत्रिा में। लेदकन िब वे अपने पूव अयास में और भी प्रगाढ़िा से लग जािे थे। काि! उन्हें खयाल आ सकिा दक कमी उनमें नहीं, वरन उस माग में ही थी, तजस पर दक वे चल रहे थे, िो उनका जीवन धार्मक हो सकिा था। उस तवस्िोट की संभावना भी उनमें थी। लेदकन नैतिक सिलिा से कोई कभी धार्मक नहीं होिा है। नैतिक सिलिा िो और भी प्रगाढ़रूप से आचरण में अटिा लेिी है। वह आतस्िक िक जाने ही नहीं दे िी है। वह भी बाह्य संपदा है। और वह भी अहंकार का ही सूक्ष्मिम रूप है। इसीतलए आजादी के बाद गांधी की असिलिाएं हो सकिा था उन्हें नैतिक साधना की असिलिा का बोध करािीं। िायद वह बोध आरं भ भी हो गया था। लेदकन आजादी के पूव आजादी के तलए तमलिी सिलिाओं के धुएं में वह बोध मुतश्कल था। वैसे जब वे आजादी के पूव भी असिल होिे थे िो उन्हें अपने में कमी ददखाई पड़िी थी। लेदकन वह कमी स्वयं में ददखाई पड़िी थी। नैतिक जीवन के अतनवाय उथलेपन में नहीं। यह भी अकारण नहीं है। नैतिक व्यतित्व जीिा है अहंकार के कें द्र पर। इसीतलए जब जीििा है िो अहंकार जीििा है और जब हारिा है िो अहंकार हारिा है। इसीतलए गांधी दूसरों के द्वारा दकए गए अपराधों को भी अपना मान कर आत्मिुतद्ध का उपाय करिे थे। यह अहंकार ईगो-सेंटडनेस की अति है। इस अहंकार के कारण ही वे कभी िथ्यगि, ऑब्जेतक्टव तवचार नहीं कर पाए। उनकी तवचारणा सदा ही अहंगि, ईगोइस्ट बनी रही। िायद नैतिक जीवन की पूरी असिलिा ही उन्हें जगा पािी। िायद पूरी नाव को टकरा कर टू टिे दे ख ही, वे गलि नाव पर सत्य की यात्रा कर रहे थे, इसका उन्हें बोध होिा। पर उनके इस जीवन में यह नहीं हो सका। जो उन्हें प्रेम करिे हैं, वे परमात्मा से, उनके अगले जीवन में यह हो, ऐसी प्राथना कर सकिे हैं। वे एक अनूठे व्यति थे। और उनमें धार्मक व्यति का बीज तछपा था, लेदकन नीति ने उन्हें रास्िे से भटका ददया। िायद उनके अिीि जीवनों की अनैतिकिा की ही प्रतिदक्रया, टरएक्िन था। और उनके तचत्त की जड़ों में उिरने से ऐसा ही प्रिीि होिा है। जैसे प्रारं भ में वे अति कामुक थे। उनके तपिा मृत्युिय्या पर थे, लेदकन उस रातत्र भी वे पत्नी से दूर न रह सके । और पत्नी गभविी थी। िायद चार-पांच ददन बाद ही उसे बच्चा हुआ। लेदकन होिे ही मर गया। िायद यह भी उनके संभोग का ही पटरणाम था। और जब वे संभोग में थे िभी तपिा चल बसे और घर में हाहाकार मच गया। दिर अति कामुकिा के तलए वे कभी अपने को क्षमा नहीं कर पाए। और प्रतिदक्रया में जन्मा उनका ब्रह्मचय। तनि्चय ही ऐसा ब्रह्मचय कामुकिा का ही उलटा रूप हो सकिा है। क्योंदक प्रतिदक्रयाओं से कभी दकसी वृतत्त से मुति नहीं तमलिी है। वृतत्तयों से, वासनाओं से मुति आिी है समझ, अंडरस्टैंजडंग से और जो व्यति प्रतिदक्रया में होिा है, तवरोध में होिा है, ित्रुिा में होिा है, उसमें समझ कै से आ सकिी है? िायद अंतिम ददनों में, नोआखाली में, एक युविी के साथ सोकर कु छ समझ, कु छ जागरण आया हो िो आया हो। लेदकन जीवन भर तजसे वे संयम की साधना कहिे थे, उससे िो कु छ भी नहीं हुआ। हां, वे उस साधना के कारण यौनातवि सेक्स-आब्सेस्ड जरूर बने रहे। इस यौन-जचंिा ने उनकी दृति को व्यथ ही तवकृ ि दकया। और इसके कारण वे अपने अनुयातययों पर भी अत्यतधक दमन थोपिे रहे। इसकी भी पूरी संभावना है दक उनके उपवास, उनका िप आदद आत्म-अपराध, सेल्ि-तगल्ट की भावना में जन्मे हों! स्वयं को सिाने सेल्ि-



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टाचर की प्रवृतत्त भी यौन-दमन से पैदा हुई एक तवकृ ति है। इसी भांति उनके जीवन की और ददिाओं में इस दमन और प्रतिदक्रया का पटरणाम हुआ है। उनका समस्ि जीवन-दिन ही इस तवकृ ि तचत्त-दिा से प्रभातवि है। उनकी इस तचत्त-दिा के कारण उनके पास एकतत्रि होने वाला बड़ा अनुयायी वग--तविेष कर उनके आश्रमों के अंिेवासी दकसी न दकसी भांति के मानतसक तवकारों से पीतड़ि वगों से ही आ सकिे थे। इसतलए गांधी के कारण दे ि यदद मानतसक रोगग्रस्ि व्यतियों के हाथ में चला जािा है िो कोई आश्चय नहीं है। गांधी के जीवन का पूण मनो-तवश्लेषण, साइको एनातलतसस आवश्यक है। उसमें बड़े कीमिी िथ्य हाथ लग सकिे हैं। उनके प्रारं तभक जीवन में भय, दियर बहुि गहरा बैठा हुआ प्रिीि होिा है। मैंने सुना है दक पहली बार अदालि में बैटरस्टर की भांति बोलिे हुए वे इिने भयभीि हो गए थे दक उन्हें मूर्च्छि अवस्था में ही घर लाया गया था। और जो वे उस ददन बोलने को थे, उसकी िैयारी उन्होंने राि भर जाग कर की थी। इं ग्लैंड जािे समय जहाज के कु छ यात्री दकसी बंदरगाह पर उन्हें दकसी वेश्यालय में ले गए थे। वे नहीं जाना चाहिे थे। लेदकन सातथयों को "नहीं" कहने का साहस नहीं जुटा पाए। वेश्या के समझ जाकर उनकी वही तस्थति हो गई जो दक बाद में अदालि में होने को थी। इं ग्लैंड में एक युविी उनके प्रेम में पड़ गई थी लेदकन उससे वे यह कहना चाह कर भी दक मैं तववातहि हं, कहने का साहस नहीं जुटा पाए थे। उनका इिना भयभीि तचत्त--उनका इिना भीरु व्यतित्व बाद में इिना तनभय कै से हो गया? क्या यह भय की ही प्रतिदक्रया नहीं है? भय की प्रतिदक्रया में व्यति तनभय हो जािा है। अभय नहीं। तनभय उलटा हो गया भय है। इसतलए तनभयिा दिर जान-बूझ कर भय की तस्थतियों को खोजने लगिी है। भय की तस्थतियों में अपने को ढालने में भी दिर एक तवकृ ि रस की उपलतब्ध होने लगिी है। और दिर ऐसे मन अपने को तवश्वास ददलािा है दक अब में भयभीि नहीं हं। लेदकन यह भी भय ही है। क्या गांधी की तनभयिा भय ही नहीं है? क्या उनकी अजहंसा में भय ही उपतस्थि नहीं है? मेरे दे खे िो ऐसा ही है। भय ने तनभयिा के वि पहन तलए हैं। वह अभय, दियरलेसनेस इसतलए भी नहीं है, क्योंदक गांधी ईश्वर से भलीभांति और सदा भयभीि हैं। उन्होंने अपने समग्र भय को ईश्वर पर आरोतपि कर ददया है। वे कहिे भी हैं दक वे ईश्वर को छोड़ और दकसी से भी नहीं डरिे हैं। अभय में ईश्वर का भी भय नहीं होिा है। भय भय है। वह दकसका है यह अप्रासंतगक है। दिर ईश्वर का भय िो बड़े से बड़ा भय है। अभय तनभयिा की कवायद भी नहीं करिा है। अभय में न भय है, न तनभयिा है। इसतलए अभय अत्यंि सहज है। सांप रास्िे पर हो िो वह सहज ही रास्िा छोड़ कर हट जािा है, लेदकन इसमें भय नहीं है। और समय आ जाए िो वह पूरे जीवन को दांव पर लगा दे िा है, लेदकन इसमें भी कोई तनभयिा नहीं है। अभय में न भय का बोध है, न तनभयिा का ही। अभय िो दोनों से मुति है। पर गांधी की तनभयिा अभय नहीं है। यह भय का ही वेि-पटरविन है। उनका जीवन प्रज्ञा से आई मुति नहीं है। वह के वल प्रतिदक्रया है। वह स्वयं से संघष है, द्वंद्व है। वह स्वयं को ही खंड-खंड में बांटिा है। वह अखंड की उपलतब्ध नहीं है। नैतिक तचत्त अखंड हो ही नहीं सकिा है। वह जीिा ही है स्वयं को स्वतवरोधी खंडों में बांट कर! वह तवभाजन ही उसका प्राण है। धार्मक तचत्त अखंड का स्वीकार है। "मैं जैसा हं," उस समग्र के प्रति जागना धार्मक तचत्त की भूतमका है। और उस जागने से आिा है रूपांिरण, ट्रांसिामेिन; उस जागने में आिी है आमूलक्रांति, म्यूटेिन। वह पुराने की मृत्यु और नये का जन्म है। वह अहंकार की मृत्यु और आत्मा की उपलतब्ध है।



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धार्मक तचत्त स्वयं को िोड़िा नहीं है। धार्मक तचत्त िुभ और अिुभ के बीच चुनाव नहीं करिा है। वह कहिा है "जो है" वह है। वह इस होने को उसकी समग्रिा में जानना चाहिा है। और स्वयं के होने की समग्रिा को जान लेना ही क्रांति बन जािी है। अनैतिकिा अिुभ का चुनाव करिी है, नैतिकिा िुभ का। धार्मकिा चुनाव रतहि जागरूकिा, च्वाइसलेस अवेयरनेस है। गांधी में मैं ऐसी चुनाव रतहििा नहीं दे खिा हं, इसतलए उन्हें धार्मक कहने में असमथ हं। वे नैतिक हैं और परम नैतिक हैं। नैतिक महात्माओं में िायद उन जैसा महात्मा कभी हुआ ही नहीं है। वे अनीति के ठीक दूसरे छोर पर हैं। लेदकन जब िक नैतिक हैं, िब िक अनीति से मुि नहीं हैं। अनीति से मुि होने को िो नीति से भी मुि होना होिा है। और दोनों से ही मुि होकर चेिना धार्मक, टरलीजस हो जािी है।



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