Bharat Ka Bhavishya [PDF]

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Table of contents :
भारत को जवान चित्त की आवश्यकता
नये के लिए पुराने को गिराना आवश्यक
भारत की समस्याएं--कारण और निदान
खोज की दृष्टि
भारत किस ओर?
पुराने और नए का समन्वय
आध्यात्मिक दृष्टि
अधिनायकशाही व्यक्ति की नहीं; विचार की
शिक्षा और समाज
नारी का सहयोग (ए रेडियो टॉक बाई ओशो)
भीतर चाहिए शांति और बाहर चाहिए असंतोष
क्या भारत धार्मिक है?
एक नये भारत की ओर
मेरी करुणा बहुत शाश्वत है
भारत का भविष्य
भारत का दुर्भाग्य
क्या भारत को क्रांति की जरुरत है?

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भारत का भविष्य



प्रिचन-क्रम 1. भारत को जिान वचत्त की आिश्यकता ...................................................................................2 2. नये के विए पुराने को विराना आिश्यक .............................................................................. 11 3. भारत की समस्याएं--कारण और वनदान.............................................................................. 27 4. खोज की दृवि................................................................................................................... 45 5. भारत ककस ओर?............................................................................................................. 52 6. पुराने और नए का समन्िय ................................................................................................ 62 7. आध्यावममक दृवि .............................................................................................................. 67 8. अविनायकशाही व्यवि की नहीं; विचार की......................................................................... 84 9. वशक्षा और समाज........................................................................................................... 103 10. नारी का सहयोि (ए रे वियो टॉक बाई ओशो) .................................................................... 117 11. भीतर चावहए शांवत और बाहर चावहए असंतोष ................................................................ 120 12. क्या भारत िार्मिक है? ................................................................................................... 134 13. एक नये भारत की ओर ................................................................................................... 148 14. मेरी करुणा बहुत शाश्वत है .............................................................................................. 169 15. भारत का भविष्य ........................................................................................................... 186 16. भारत का दुभािग्य ........................................................................................................... 198 17. क्या भारत को क्रांवत की जरुरत है?.................................................................................. 216



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भारत का भविष्य पहिा प्रिचन



भारत को जिान वचत्त की आिश्यकता मेरे वप्रय आममन्! एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात शुरु करना चाहंिा। सुना है मैंने कक चीन में एक बहुत बड़ा विचारक िाओमसु पैदा हुआ। िाओमसु के संबंि में कहा जाता है कक िह बूढ़ा ही पैदा हुआ। यह बड़ी हैरानी की बात मािूम पड़ती है। िाओमसु के संबंि में यह बड़ी हैरानी की बात कही जाती रही है कक िह बूढ़ा ही पैदा हुआ। इस पर भरोसा आना मुवश्कि है। मुझे भी भरोसा नहीं है। और मैं भी नहीं मानता कक कोई आदमी बूढ़ा पैदा हो सकता है। िेककन जब मैं इस हमारे भारत के िोिों को दे खता हं तो मुझे िाओमसु की कहानी पर भरोसा आना शुरू हो जाता है। ऐसा मािूम होता है कक हमारे दे श में तो सारे िोि बूढ़े ही पैदा होते हैं। मुझे कहा िया है कक युिक और भारत के भविष्य के संबंि में थोड़ी बातें आपसे कहं। तो पहिी बात तो मैं यह कहना चाहंिा... दे ख कर िाओमसु की कहानी सच मािुम पड़ने ििती है। इस दे श में जैसे हम सब बूढ़े ही पैदा होते हैं। बूढ़े आदमी से मतिब वसर्ि उस आदमी का नहीं है वजसकी उम्र ज्यादा हो जाए, क्योंकक ऐसा भी हो सकता है कक आदमी का शरीर बूढ़ा हो और आममा जिान हो। िेककन इससे उिटा भी हो सकता है। आदमी का शरीर जिान हो और आममा बूढ़ी हो। भारत के पास भी जिानों की कोई कमी नहीं है, िेककन जिान आममाओं की बहुत कमी है। और जिान आममा को बनाने िािे जो तमि हैं, उनकी बहुत कमी है। चारों ओर युिक कदखाई पड़ते हैं, िेककन युिक होने के जो बुवनयादी आिार हैं उनका जैसे हमारे पास वबल्कु ि अभाि है। मैं कु छ प्राथवमक बातें आपसे कहं। पहिी तो बात, युिक मैं उसे कहता हं वजसकी नजर भविष्य की ओर होती है, फ्यूचर की ओर होती है, जो फ्यूचर ओररएनटेि है। और बूढ़ा मैं उस आदमी को कहता हं जो पास्ट ओररएनटेि है, जो पीछे की तरर् दे खता रहता है। अिर हम बूढ़े आदमी को पकड़ िें, तो िह सदा अतीत की स्मृवतयों में खोया हुआ वमिेिा। िह पीछे की बातें सोचता हुआ, पीछे के सपने दे खता हुआ, पीछे की याददाश्त करता हुआ वमिेिा। बूढ़ा आदमी हमेशा पीछे की तरर् ही दे खता है। आिे की तरर् दे खने में उसे िर भी ििता है, क्योंकक आिे वसिाय मौत के , वसिाय मरने के और कोई कदखाई बात पड़ती भी नहीं। जिान आदमी भविष्य की तरर् दे खता है। और जो कौम भविष्य की तरर् दे खती है िह जिान होती है। जो अतीत की तरर्, पीछे की तरर् दे खती है िह बूढ़ी हो जाती है। यह हमारा मुल्क सैकड़ों िषों से पीछे की तरर् दे खने का आदी रहा है। हम सदा ही पीछे की तरर् दे खते हैं, जैसे भविष्य है ही नहीं; जैसे कि होने िािा नहीं है। जो बीत िया कि है िही सब कु छ। यह जो हमारी दृवि है यह हमें बूढ़ा बना दे ती है। अिर हम रूस के बच्चों को पूछें तो िे चांद पर मकान बनाने के संबंि में विचार करते वमिेंिे। अिर अमरीका के बच्चों को पूछें तो िे भी आकाश की यात्रा के विए उमसुक हैं। िेककन अिर हम भारत के बच्चों को पूछें तो भारत के बच्चों के पास भविष्य की कोई भी योजना, भविष्य की कोई कल्पना, भविष्य का कोई भी स्िप्न, भविष्य का कोई उटोवपया नहीं है। और वजस दे श के पास भविष्य का कोई उटोवपया न हो िह दे श भीतर से सड़ना शुरू हो जाता है और मर जाता है।



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भविष्य जजंदा रहने का राज, भविष्य के कारण ही आज हम वनर्मित करते हैं। भविष्य के विए ही आज हम जीते और मरते हैं। वजनके मन में भविष्य की कोई कल्पना खो जाए, उनका भविष्य अंिकारपूणि हो जाता है। िेककन इस मुल्क में न मािूम ककस दुभािग्य के क्षण में भविष्य की तरर् दे खना बंद करके अतीत की तरर् ही दे खना तय कर रखा है। हम अतीत के ग्रंथ पढ़ेंिे, अतीत के महापुरुषों का स्मरण करें िे। अतीत की सारी बातें हमारे मन में बहुत स्िणि की होकर बैठ िई हैं। बुरा नहीं है कक हम अतीत के महापुरुषों को याद करें । िेककन खतरनाक हो जाता है अिर भविष्य की तरर् दे खने में हमारी स्मृवत बािा बन जाए। कार हम चिाते हैं तो पीछे भी िाइट रखने पड़ते हैं, िेककन अिर ककसी िाड़ी में वसर्ि पीछे ही िाइट हो और आिे िाइट हम तोड़ ही िािें, तो कर्र दुर्िटना के अवतररि और कु छ भी नहीं हो सकता। िाड़ी में भी ररयरव्यू वमरर रखना पड़ता है, एक दपिण रखना पड़ता है वजसमें से पीछे से कदखाई पड़े। िेककन ड्राइिर को हम पीछे की तरर् मुंह करके नहीं वबठा सकते। अतीत का इतना ही उपयोि है वजतना ररयरव्यू वमरर का एक कार में उपयोि होता है। पीछे का भी हमें कदखाई पड़ता रहे। यह जरूरी है। िेककन चिना भविष्य में है, बढ़ना आिे है। और अिर भविष्य की तरर् दे खने िािी आंखें बंद हो जाएं, तो दुर्िटना के अवतररि और कु छ भी नहीं हो सकता। भारत का दो हजार साि का इवतहास, एक्सीिेंट का, दुर्िटनाओं का इवतहास है। इन दो हजार सािों में हम वसिाय िड्ढों में विरने के ककन्हीं ऊंचाइयों पर नहीं उठे । िुिामी दे खी है, िरीबी दे खी है, बहुत तरह की दीनता और बहुत तरह की परे शानी दे खी है। और आज भी हमारे पास भविष्य की कोई ऐसी योजना नहीं है कक हम यह सोच सकें कक आने िािा कि आज से बेहतर हो सके िा। िरन जिान से जिान आदमी से भी बात की जाए तो िह भी यही कहता हुआ वमिेिा कक कि और वस्थवत के वबिड़ जाने का िर है। रोज चीजें वबिड़ती चिी जाएंिी ऐसी हमारी िारणा है। इस िारणा के पीछे कु छ कारण हैं। हमने अपने उटोवपया को पास्ट ओररएनटेि रखा हुआ है। इस दे श में हमने जो समय की िारणा की है, जो हमारा टाइम आििर है, िह यह कहता है कक सबसे अच्छा युि हो चुका। अब आने िािा युि बुरा होिा। सतयुि हो चुका, कवियुि हो रहा है और रोज हम अंिकार में उतरते चिे जाएंिे। जो भी अच्छा था िह बीत चुका। राम, कृ ष्ण, नानक, कबीर, बुद्ध, महािीर, जो भी अच्छे िोि हो सकते थे िे हो चुके। अब भविष्य, भविष्य में जैसे कोई अच्छे होने का हमें उपाय कदखाई नहीं पड़ता। िेककन ध्यान रहे, जो भविष्य में अच्छे आदवमयों को पैदा हम न कर पाए तो हमारे अतीत के अच्छे आदमी झूठे मािूम पड़ने ििेंिे। अिर हम भविष्य में और श्रेष्ठताएं न छू सके तो हमारे अतीत की सारी श्रेष्ठताएं काल्पवनक और कहावनयां मािूम पड़ने ििेंिी। क्योंकक बेटा बाप का सबूत होता है। और अिर बेटे िित वनकि जाएं तो अच्छे बाप की बात वसर्ि मन भुिाने की बात रह जाती है। िह ििाही नहीं रह जाता। भविष्य तय करे िा कक हमने अतीत में राम को पैदा ककया या नहीं पैदा ककया। अिर हम भविष्य में राम से बेहतर आदमी पैदा कर सकते हैं तो ही हमारे राम सच्चे सावबत होंिे। अिर हम राम से बेहतर आदमी पैदा नहीं कर सकते तो दुवनया हमसे कहेिी कक राम वसर्ि कहानी हैं, यह आदमी तुमने कभी पैदा ककया नहीं। अिर हम भविष्य में भीख मांिेंिे तो कोई मानने को राजी न होिा कक हमारे पास स्िणि की निररयां थीं। और अिर भविष्य में हम वसर्ि िुंिे और बदमाशों को पैदा करें िे तो नानक पर ककतने कदन तक भरोसा रह जाएिा कक यह आदमी हुआ था। यह बहुत ज्यादा कदन तक भरोसा नहीं रह जाएिा। इसविए पीछे के अच्छे 3



आदवमयों को याद करना कार्ी नहीं है। अिर सच में ये अच्छे आदमी हुए हैं, हम ऐसा दुवनया को कहना चाहते हों, तो हमें इनसे भी बेहतर आदमी रोज पैदा करने होंिे। जो रोज ऊंचाइयां चढ़ते हैं, िे ही ििाही दे सकते हैं कक उनके अतीत में भी उन्होंने ऊंचाइयां छु ई होंिी। िेककन अिर हम रोज िड्ढों में विरते चिे जाएं तो कर्र दुवनया हमसे कहेिी कक अक्सर वभखमंिे सपने दे खते हैं कक उनके बाप सम्राट थे। िेककन यह सपनों से कु छ वसद्ध नहीं होता। इससे वसर्ि इतना ही वसद्ध होता है कक वभखमंिे कं सोिेशंस खोज रहे हैं, सांमिनाएं खोज रहे हैं, अपने मन को समझा रहे हैं। भूखा आदमी रात में सपना दे खता है राजमहि में वनमंत्रण वमिने का। िेककन रात का सपना यह नहीं बताता कक राजमहि में वनमंत्रण वमिा। मनोिैज्ञावनक कहते हैं कक उससे इतना ही पता चिता है कक िह आदमी कदन में भूखा रहा है। हम जब अतीत की बहुत ज्यादा चचाि करते हैं तोशक पैदा होता है। और जब हम पीछे के िोिों की बहुत िौरि िररमा की बात करते हैं तोशक पैदा होता है। क्योंकक दुवनया हमें दे खती है। हम दुवनया को कहना चाहते हैं कक हम जितिुरु थे। िेककन आज दुवनया में एक भी ऐसी चीज नहीं है जो हम ककसी को वसखा सकें । सारी चीजें हमें दूसरों से सीखनी पड़ रही हैं। यह जितिुरु की नासमझी की बात बहुत कदन तक रटक नहीं सके िी। और आज नहीं कि अिर दुवनया हमारा मजाक उड़ाने ििे और हमसे कहने ििे कक हम जितिुरु होने का ख्याि इसीविए मन में पैदा कर विए हैं क्योंकक हम सारे जित के वशष्य हो िए हैं। और इस बात को भुिाने के विए, अपने अहंकार को बचाने के विए हम इस तरह की बातें कर रहे हैं, तो इसमें बहुत आश्चयि न होिा। आज सूई से िेकर हिाई जहाज तक भी हमको बनाना हो तो सारी दुवनया में कहीं और हमें सीखने जाना पड़ता है। आज हमारे पास वसखाने योग्य कु छ भी नहीं बचा है। आज हम दुवनया को कु छ भी वसखा नहीं सकते। िेककन हम यह बात कहे चिे जाएंिे कक हम कभी दुवनया के िुरु थे। ध्यान रहे, जब कोई कौम यह बात करने ििती है, पास्ट टेंस में जब कोई कौम बोिने ििती है, तो समझ िेना कक िह दीन हो िई। जब कोई कहने ििे कक मैं अमीर था, तब समझ िेना कक िह िरीब हो िया है। और जब कोई कहने ििे कक मैं ज्ञानी था, तब समझ िेना कक िह अज्ञान में विर िया है। और जब कोई कहने ििे कक कभी हमारी शान थी, तो समझ िेना कक शान वमट्टी में वमि चुकी है। ये सारी बातें जो हम िौरि की करते हैं हमारे िूवि में विर जाने के अवतररि और ककसी बात का प्रमाण नहीं है। अतीत को दे खना उपयोिी हो सकता है, िेककन अतीत को आंख में रखना खतरनाक है। आंख में तो भविष्य होना चावहए, आने िािा कि होना चावहए। जो बीत िया कि िह बीत िया। उसकी िूि उड़ चुकी है। अब जमीन पर कहीं खोजने से उसे खोजा नहीं जा सकता। अब वजस रास्ते पर हम चि चुके िह रास्ता समाप्त हो िया है। और उस रास्ते पर बने हुए चरण-वचह्न अब कहीं भी नहीं खोजे जा सकते हैं। जजंदिी की कहानी आकाश में उड़ते हुए पवक्षयों की कहानी है। अिर हम ककसी पक्षी का पीछा करें तो उसके पैरों के कोई वचह्न नहीं छू टते हैं कहीं भी, पक्षी उड़ जाता है पीछे आकाश खािी हो जाता है। जजंदिी में कहीं कोई वचह्न नहीं छू टते। जजंदिी में सब विस्मृत हो जाता है। जजंदिी तो प्रमाण मानती है आज को। आज हम क्या हैं? यही प्रमाण होता है। आज हम क्या हैं? अिर इसे सोचें तो दो-तीन बातें ख्याि में आएंिी। हमसे ज्यादा िरीब आदमी आज पृथ्िी पर दूसरा नहीं है। हमसे ज्यादा अवशवक्षत कोई कौम नहीं है। हमसे ज्यादा अिैज्ञावनक कोई जावत नहीं है। हमसे ज्यादा कमजोर, हमसे ज्यादा हीन, हमसे कम उम्र, हमसे ज्यादा बीमार आज जमीन पर कोई भी नहीं है। दूसरे मुल्कों की औसत उम्र 4



अस्सी िषि को छू रही है। दूसरे मुल्कों में, आज रूस में सौ िषि के ऊपर हजारों बूढ़े, और िेढ़ सौ िषि के ऊपर भी कु छ बूढ़े हैं। सारी दुवनया में िरीबी विदा होने के करीब है और हमारी िरीबी रोज बढ़ती चिी जाती है। जब वपछिे बार वबहार में अकाि पड़ा, तो मेरे एक स्िीविश वमत्र ने मुझे एक पत्र विखा और उसने विखा कक हम अपने बच्चों को समझाने में बहुत असमथि हैं कक जहंदुस्तान में िोि भूखे मर रहे हैं। उसने मुझे विखा कक जब मैं अपने छोटे बच्चे को कहा कक जहंदुस्तान में िोि भूखे मर रहे हैं और करोड़ों िोि भूखे मर जाएंिे। तो उस छोटे बच्चे ने कहा कक क्या उनके पास, अिर रोटी नहीं है तो र्ि भी नहीं हैं? तो उन्होंने कहााः नहीं, उनके पास र्ि भी नहीं हैं। तो उस छोटे बच्चे ने कहााः उनके रे किवजरे टर में कु छ तो बचा होिा? तो उसके बाप ने कहा कक रे किवजरे टर उनके पास है ही नहीं। उसमें बचने का कोई सिाि नहीं है। उस बच्चे को समझना मुवश्कि हुआ कक कोई कौम ऐसी हो सकती है जहां खाने को भी न हो। सच में ही स्िीिन के बच्चे को समझना मुवश्कि पड़ेिा। उसको मुवश्कि इसविए पड़ जाएिा क्योंकक बच्चा जो दे खता है चारों तरर्, न ककसी को भीख मांिते दे खता है, न ककसी को िरीबी में मरते दे खता है। तो उसके विए भरोसा करना मुवश्कि है कक जमीन पर ऐसे िोि भी हैं जो करोड़ों की संख्या में भूखे मरने की हाित में आ सकते हैं। अभी एक अमरीकी अथिशास्त्री ने ककताब विखी है। उन्नीस सौ सत्तासी और उस ककताब में उसने यह र्ोषणा की है कक उन्नीस सौ सत्तासी में, आज से के िि सात साि बाद, जहंदुस्तान में इतना बड़ा अकाि पड़ सकता है वजसमें कोई दस करोड़ से िेकर बीस करोड़ िोिों के मरने की संभािना है। मैं कदल्िी में एक बहुत बड़े नेता से बात कर रहा था। तो उन्होंने कहााः उन्नीस सौ सत्तासी अभी बहुत दूर है। अभी तो हमें उन्नीस सौ बहत्तर की कर्कर है। उसके बाद दे खा जाएिा। अभी वसर्ि उन्नीस सौ बहत्तर में जो इिेक्शन होिा उसकी नेता को कर्कर है। सात साि बाद जहंदुस्तान में दस करोड़ िोि मर सकते हैं। इसकी सारी दुवनया के अथिशास्त्री राजी हैं इस बात के विए कक यह होकर रहेिा। क्योंकक अमरीका वजतना हमें भोजन दे रहा है उतना अब आिे नहीं दे पाएिा। उसकी ताकत रोज कम होती जा रही है। अमरीका में चार ककसान वजतना काम करते हैं उनमें से एक ककसान की सारी ताकत हमें वमि रही है। और अमरीका की ताकत दे ने की रोज कम होती चिी जाती है। उन्नीस सौ वपचासी के बाद अमेररका जहंदुस्तान को ककसी तरह का अन्न दे ने में समथि नहीं होिा। और हम रोज बच्चे पैदा करते चिे जाते हैं। हम वसर्ि एक चीज में बहुत प्रोिवक्टि हैं, हम बच्चे पैदा करने में बहुत उमपादक हैं। हम बच्चे पैदा करते चिे जाते हैं। अिर ककसी कदन इस मुल्क में दस करोड़ िोिों को ककसी अकाि में मरना पड़ा, तो बाकी जो िोि बचेंिे िे भी जजंदा हाित में नहीं बचेंिे। िे भी मरने की हाित में ही बचेंिे। उनका बचना बचने से भी बदतर होिा। उनका बचना शायद मरे हुए िोिों से भी ज्यादा करठन और दूभर हो जाएिा। िेककन क्या कारण हैं कक सारी जमीन पर िन बरस रहा है और हम िरीब होते चिे जा रहे हैं? आज अमेररका में िन बरस रहा है, और अमरीका की कु ि उम्र तीन सौ साि की है। अमरीका में जो समाज है आज िह तीन सौ साि पुराना है और हमारी उम्र कम से कम दस हजार साि पुरानी है। हम दस हजार साि पुरानी सयता और तीन सौ साि पुरानी सयता के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांिते हुए खड़े हैं। न हमें शमि आती, न हमें जचंता पैदा होती, न हमें र्बड़ाहट होती, न हमें ऐसा ििता कक हम ये क्या कर रहे हैं! दुवनया में वभखारी तो सदा रहे हैं, िेककन कोई पूरा दे श वभखारी हो सकता है इसका उदाहरण हमने पहिी बार उपवस्थत ककया है।



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आज हर चीज की हमें भीख चावहए। इस भीख के वबना हम जी नहीं सकते। यह कब तक चिेिा? यह कै से चि सकता है? यह तब तक चिता ही रहेिा जब तक भविष्य को वनर्मित करने की हमारे पास कोई दृवि नहीं है, कोई कर्िासर्ी नहीं है। वजसमें हम भविष्य को बनाने के विए आतुर हो जाएं। हम वसर्ि पीछे की बातें करते रहेंिे तो भविष्य को वनर्मित कौन करे िा? हम वसर्ि िुणिान करते रहेंिे अतीत का, तो भविष्य के विए श्रम कौन करे िा? तो मैं युिा आदमी का पहिा िक्षण मानता हं भविष्य के विए उन्मुखता और बूढ़े आदमी का िक्षण मानता हं अतीत के प्रवत ििाि। वजस आदमी के मन में भी भविष्य के प्रवत ििाि है उसकी उम्र कु छ भी हो, िह जिान है और वजस आदमी के मन में भविष्य की कोई कल्पना ही नहीं है और वसर्ि अतीत का िुणिान है उसकी उम्र कु छ भी हो िह बूढ़ा है। तो मैं यह आपसे कहना चाहंिा कक भारत में अभी भी जिान आदमी बहुत कम हैं। एक दूसरी बात भी आपसे कहना चाहंिा, बूढ़ा आदमी मृमयु से भयभीत होता है। स्िभािताः मौत करीब आती है तो बूढ़ा आदमी मृमयु से िरने ििता है। जिान आदमी का िक्षण एक ही है कक िह मौत से र्बड़ाता न हो। अिर जिान आदमी भी मौत से र्बड़ाता हो तो उसका मतिब इतना ही हुआ कक िह बहुत पहिे ही बूढ़ा हो िया। जहंदुस्तान में मृमयु का इतना भय है वजसकी कल्पना करनी मुवश्कि है। होना सबसे कम चावहए, क्योंकक हम अके िी कौम हैं सारी दुवनया में, वजनका ऐसा मानना है कक आममा अमर है और मरती नहीं है। हम सारी दुवनया में यह कहते रहे हैं कक आममा अमर है और मरती नहीं है। यह बात सच है, आममा अमर है और मरती नहीं है। िेककन कहने से यह बात सच नहीं होती। और जरूरी नहीं है कक जो िोि कहते हों िे ऐसा मानते भी हों। आदमी का मन बहुत उिटा है। असि में जो आदमी मरने से िरता है िह भी कह सकता है कक आममा अमर है। और अपने मन को समझाने के विए आममा की अमरता के वसद्धांत का उपयोि कर सकता है। जहंदुस्तान को दे ख कर ऐसा ििता है कक हम मरने से तो बहुत िरते हैं और साथ ही आममा के अमरता की बात भी ककए चिे जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है कक बूढ़ा आदमी मंकदर में बैठ कर आममा की अमरता के शास्त्र पढ़ने ििता है। आममा अमर है ऐसा पढ़ कर उसके मन को अच्छा ििता है कक मैं मरूंिा नहीं। िेककन अिर यह भय के कारण ही िह पढ़ रहा है तो इस कारण कोई ज्ञान उमपन्न नहीं हो जाएिा। और अिर इस बात का ज्ञान उमपन्न हो जाए कक मैं अमर हं और मरूंिा नहीं, तो हमारे इस मुल्क को िुिाम बनाना असंभि हो जाता। हम एक हजार साि िुिाम रहे हैं और हम कि भविष्य में ककसी भी कदन िुिाम कर्र हो सकते हैं। हमारे सारे उपाय ऐसे हैं कक हम ककसी भी कदन िुिाम हो सकते हैं। िेवनन ने उन्नीस सौ बीस में एक र्ोषणा की थी मास्को में कक कम्युवनज्म मास्को से यात्रा करके पेककं ि होता हुआ किकत्ते से िुजरता हुआ िंदन पहुंच जाएिा, पेककं ि तो पहुंच िया और किकत्ते में भी पैरों की आिाज सुनाई पड़ने ििी। आज किकत्ते की सड़कों पर जिह-जिह पोस्टर ििे हुए हैं कक चीन के अध्यक्ष माओ हमारे भी अध्यक्ष हैं, चीन के चेयरमैन माओमसु तुंि भारत के भी चेयरमैन हैं। ये किकत्ते की सड़कों पर जिहजिह पोस्टर ििे हैं। हम िुिामी को कर्र बुिाने की चेिा में िि िए। और इसके पहिे भी जहंदुस्तान में वजतनी बार िुिामी आई हमने बुिाया। एक हजार साि िुिाम रहने के बाद भी हमें कु छ अंदाज नहीं है, हम कर्र िुिामी बुिा सकते हैं। हम नये नामों से िुिामी बुिा िेंिे। कम्युवनज्म जहंदुस्तान के विए िुिामी वसद्ध होिी। और आज बंिाि में जो कदखाई 6



पड़ रहा है कि पूरे जहंदुस्तान में कदखाई पड़ेिा। आज बंिाि में जो है िह कि पूरे जहंदुस्तान में र्ै ि जाएिा इसमें बहुत आश्चयि नहीं है। क्योंकक हम िरे हुए िोि, हम मरने से भयभीत िोि, हम वबना ककसी चीज से कु छ भी आए उसे झेिने को सदा तमपर और उसमें ही संतुि हो जाने के विए राजी िोि हैं। बूढ़ा आदमी भय के कारण हर चीज से राजी हो जाता है। जिान आदमी िड़ता है, जिान आदमी जजंदिी को बदिने की कोवशश करता है, बूढ़ा आदमी जजंदिी जैसी होती है उसके विए राजी हो जाता है। बूढ़ा आदमी कहता है, सब भाग्य है। जिान आदमी कहता है, भाग्य हमारे श्रम के अवतररि और कु छ भी नहीं है। बूढ़ा आदमी कहता है, जो भी कर रहा है भििान कर रहा है। जिान आदमी कहता है, जो भी हम करें िे भििान का आशीिािद उसे उपिब्ि होिा। जिान आदमी एक संर्षि है और बूढ़ा आदमी एक संतोष है, एक सेरटसर्े क्शन है। अिर िुिामी आ जाए तो उससे भी संतोष कर िेंिे, िरीबी आ जाए उससे भी संतोष कर िेंिे, जो भी हो जाए उससे हम संतुि हो जाएंिे। संतुि अिर हमने होने की आदत नहीं बदिी तो इस मुल्क को भविष्य में कर्र और भी महा अंिकार दे खने के क्षण आ सकते हैं। मैं अभी बंिाि में था। तो बंिाि में जो मुझे कदखाई पड़ा, चाहता हं, पूरे मुल्क के एक-एक युिक को कह दूं कक िह िुिामी को वनमंत्रण है। और बंिाि राजी हो जाएिा। बंिाि में दस-पच्चीस आदमी अिर एक सड़क पर एक पुविसिािे की हमया कर रहे हैं, तो पूरे िोि अपने दरिाजे बंद करके बैठ रहेंिे। िे भीतर बैठ कर इस बात की जनंदा करें िे कक बहुत बुरा हो रहा है। िेककन उस बुरे के वखिार् िड़ने बाहर नहीं वनकिेंिे। अिर एक बस में आि ििाई जा रही है, तो यात्री बस में चिने िािे उतर कर नीचे खड़े हो जाएंिे और खड़े होकर चचाि करें िे बहुत बुरा हो रहा है। िेककन कोई उन आि ििाने िािे पांच आदवमयों को रोकने की वहम्मत नहीं जुटाएिा। इतनी कायर कौम कै से जिान हो सकती है! इतना कमजोर वचत्त कै से जिान हो सकता है! पूरा बंिाि दे खता रहेिा, थोड़े से िोि बेिकू कर्यां करें िे और पूरा बंिाि झुक जाएिा और आज नहीं कि पूरा जहंदुस्तान झुक जाएिा। दो िाख आदवमयों की बस्ती में दो सौ आदमी कु छ भी करना चाहें, तो दो िाख की बस्ती झुक जाएिी और राजी हो जाएिी। जहंदुस्तान पर चीन का हमिा हुआ, तो सारा जहंदुस्तान कविता करने ििा था, आपको भी पता होिा। सारा जहंदुस्तान कहने ििा था कक हम सोए हुए शेर हैं, हमें छेड़ो मत! तो मैंने कई कवियों से पूछा कक शेरों ने कभी भी नहीं कहा है कक हम सोए हुए शेर हैं, हमें छेड़ो मत! छेड़ो और पता चि जाता है कक शेर है या नहीं! कविताएं करने की जरूरत नहीं होतीं। िेककन पूरे जहंदुस्तान ने कविताएं कीं। जिह-जिह कवि सम्मेिन हुए, िोिों ने तावियां बजाईं। और वजन िोिों ने कविताएं कीं--कोई को पद्मश्री की उपावि वमि िई, कोई राष्ट्रकवि हो िया, ककसी को राष्ट्रपवत ने स्िणि-पदक भेंट कर कदए। और चीन जहंदुस्तान की जमीन दबा कर बैठ िया। और िे सोए हुए शेर सब िापस कविता करके सो िए। उनका कु छ भी पता नहीं चिा कक िह कहां चिे िए! िाखों मीि की जमीन में चीन ने कब्जा कर विया। तो जहंदुस्तान के नेताओं ने बाद में कहना शुरू ककया कक िह जमीन बेकार थी। िह जमीन ककसी काम की ही न थी। उसमें र्ास भी पैदा नहीं होता था। अिर िह जमीन बेकार थी तो कर्र जिानों को िड़ाना बेकार था। पहिे ही जमीन छोड़ दे नी थी। और अिर जमीन पर र्ास भी नहीं उिती थी तो उसके विए िड़ने की कोई जरूरत नहीं थी। तो मैं उन नेताओं से कहता हं कक अभी



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भी दे श में वजतनी जमीन और बेकार हो उसे चुपचाप दूसरों को दे दे ना चावहए, ताकक कोई झंझट न हो, कोई झिड़ा न हो। यह जो हमारा वचत्त है इस वचत्त को मैं बूढ़ा, ओल्ि माइं ि, बूढ़ा वचत्त कहता हं। यह बूढ़ा वचत्त हर चीज में संतोष खोज िेता है। इस बूढ़े वचत्त को तोड़ना पड़ेिा। अतीत की तरर् दे खना बंद करना पड़ेिा, भविष्य की योजना बनानी होिी, संतोष छोड़ना पड़ेिा, एक। एक वनमािण की असंतोषकारी ज्िािा चावहए, एक सृजन की आि चावहए। और िह आि तभी होती है जब हम हर कु छ के विए राजी नहीं हो जाते। जब हम दुख को वमटाने का संकल्प करते हैं, अज्ञान को वमटाने का संकल्प करते हैं, जब हम बीमारी को तोड़ने का संकल्प करते हैं, जब हम दीनता, दररद्रता और दासता को वमटाने की कसम खाते है, तब भविष्य वनर्मित होना शुरू होता है। एक छोटी सी कहानी और अपनी बात मैं पूरी करूंिा। मैंने सुना है, जापान में एक छोटे से राज्य पर हमिा हो िया। बहुत छोटा राज्य और बड़े राज्य ने हमिा ककया था। उसका सेनापवत र्बड़ा िया और उसने अपने सम्राट को जाकर कहा कक मैं िड़ने पर नहीं जा सकूं िा। सेनाएं कम हैं, सािन कम हैं, हार वनवश्चत है। इसविए व्यथि अपने सैवनकों को कटिाने की कोई जरूरत नहीं हैं। हार स्िीकार कर िें। उस सम्राट ने कहा कक मैं तो तुम्हें समझता था कक तुम एक बहादुर आदमी हो, जिान हो, तुम इतने बूढ़े सावबत हुए! िेककन जब सेनापवत ने तििार नीचे रख दी तो सम्राट भी बहुत र्बड़ाया। िांि में एक र्कीर था। सम्राट उसके पास िया। जब भी कभी मुसीबत पड़ी थी उस र्कीर से सिाह िेने िह िया था। उस र्कीर ने कहा कक इस सेनापवत को र्ौरन कारािृह में िाि दो। क्योंकक इसकी यह बात, कक हार वनवश्चत है, हार को वनवश्चत कर दे िी। आदमी जो सोच िेता है, िह हो जाता है। और जब सेनापवत कहेिा हार वनवश्चत है तो सैवनक क्या करें िे! उनकी हार तो वबल्कु ि वनवश्चत हो जाएिी। इसे कारािृह में िाि दो और कि सुबह मैं सेनापवत बन कर आपकी सेनाओं को युद्ध के मैदान पर िे जाऊंिा। राजा बहुत र्बड़ाया! क्योंकक सेनापवत योग्य था, युद्धों का अनुभिी था, िह िर िया और र्कीर वजसे तििार पकड़ने का भी कोई पता नहीं था, जो कभी र्ोड़े पर भी नहीं बैठा था, िह युद्ध के मैदान पर क्या करे िा! िेककन कोई उपाय न था। और राजा को राजी होना पड़ा। िह र्कीर सेनाओं कोिेकर युद्ध के मैदान पर चि पड़ा। राज्य की सीमा पर, नदी को पार करने के पहिे, उस पार दुश्मन के पड़ाि थे, उस सेनापवत ने मंकदर के वनकट रुक कर अपने वसपावहयों को कहा कक मैं जरा मंकदर के दे िता को पूछ िूं कक हमारी हार होिी कक जीत? उन सैवनकों ने कहााः दे िता कै से बताएिा और दे िता की भाषा हम कै से समझेंिे? उस र्कीर ने कहााः भाषा समझने का उपाय मेरे पास है। उसने खीसे से एक चमकता हुआ सोने का रुपया वनकािा, आकाश की तरर् र्ें का और मंकदर के दे िता से कहा कक अिर हमारी जीत होती हो तो वसक्का सीिा विरे और अिर हार होती हो तो उिटा विरे । सैवनकों की श्वासें रुक िईं! जीिन-मरण का सिाि था! िह रुपया नीचे विरा, िह सीिा विरा! उस र्कीर ने कहााः अब तुम कर्कर छोड़ दो, हार का अब कोई उपाय नहीं है, हम हारना भी चाहें तो अब हार नहीं सकते, परमाममा साथ है। वसक्के को खीसे में रख कर िे युद्ध में कू द पड़े। आठ कदन बाद, अपने से बहुत बड़ी र्ौजों को जीत कर िे िापस िौटे। उस मंकदर के पास से िुजरते थे, तो सैवनकों ने र्कीर को याद कदिाई कक परमाममा को कम से कम िन्यिाद तो दे दें , वजस परमाममा ने हमें वजताया। 8



उस र्कीर ने कहााः परमाममा का इससे कोई भी संबंि नहीं है आिे बढ़ो। उन सैवनकों ने कहााः आप भूि िए मािूम होता है। युद्ध की विजय के नशे में मािूम होता है िन्यिाद का भी ख्याि नहीं। तो उस र्कीर ने कहा, अब तुम पूछते ही हो तो मैं तुम्हें राज बताए दे ता हं। उसने रुपया वनकाि कर दे कदया। िह वसक्का दोनों तरर् सीिा था, उसमें कोई उिटा वहस्सा नहीं था। िे सैवनक जीते, क्योंकक जीत का ख्याि वनवश्चत हो िया। विचार अंतताः िस्तुएं बन जाते हैं, विचार अंतताः र्टनाएं बन जाते हैं। एजिंग्टन का एक बहुत प्रवसद्ध िचन हैाः जथंग्स आर थाट्स एण्ि थाट्स आर जथंग्स। वजसे हम िस्तु कहते हैं, िह भी विचार है। और वजसे हम विचार कहते हैं, िह भी कि िस्तु बन सकता है। वजसे हम जजंदिी कहते हैं, िह कि ककए िए विचारों का पररणाम है। वजसे हम आज कहते हैं, िह कि के विचारों का वनष्कषि है। और कि जो होिा िह आज के विचारों का पररणाम होिा। मैं भारत को जिान दे खना चाहता हं। िेककन भारत के मन को बदिना पड़ेिा, तो ही भारत जिान हो सकता है। मैं भारत को बूढ़ा नहीं दे खना चाहता हं। हम बहुत कदन बूढ़े रह चुके। हम बूढ़े हैं हजारों साि से। यह भारत का बुढ़ापा तोड़ना पड़ेिा, इस भारत के बुढ़ापे को वमटाना पड़ेिा। इस भारत के बुढ़ापे को अिर हम नहीं वमटा पाए तो अब तक हमने जो िुिावमयां दे खी थीं िे बहुत छोटी थीं। न तो मुसिमान इतनी बड़ी िुिामी िा सकते थे, न अंग्रेज इतनी बड़ी िुिामी िा सकते थे। वजतनी बड़ी िुिामी कम्युवनज्म जहंदुस्तान में िा सकता है। और कम्युवनज्म की िुिामी और भी खतरनाक इसविए है कक अब तक जो भी िुिावमयां थीं िे िुिावमयां िैज्ञावनक नहीं थीं। कम्युवनज्म पहिी दर्ा टेक्नािॉवजकिी, िैज्ञावनक ढंि से आदमी को िुिाम बनाने में समथि है। आज चीन में आदवमयों का माइं ि-िॉश ककया जा रहा है। आदमी को मारने की जरूरत भी नहीं है, उसके कदमाि को पूरा िोकर सार् ककया जा सकता है--जैसे वसिेट-पट्टी को िोकर सार् ककया जाता है। ये िुरुद्वारे , ये मंकदर, ये मवस्जद ज्यादा कदन नहीं बचेंिे, अिर जहंदुस्तान पर कम्युवनज्म आता है तो हमारे कदमाि ज्यादा कदन तक नहीं बचेंिे जो थे, िे पोंछ िािे जाएंिे। आज रूस में कहां है िुरुद्वारा, कहां है मवस्जद, कहां है मंकदर? आज चीन में कहां है? िह सब विदा हो िया। मनुष्य के िमि पर सबसे बड़ा खतरा कम्युवनज्म है। अभी मैं आ रहा था, तो आपके जप्रंवसपि ने मुझे कहा कक आप िमि के वखिार् कु छ मत बोि दे ना। मैं बहुत हैरान हुआ! मैं बहुत हैरान हुआ कक अिर एक िार्मिक व्यवि िमि के वखिार् कु छ बोिेिा, तो कर्र िमि के पक्ष में कौन बोिेिा? पर उनके भय से मुझे ििा कक िमि कहीं इतना कमजोर हो िया है कक अपने वखिार् बोिी िई बातों का जिाब दे ने में भी ताकतिर नहीं मािूम पड़ता है, इसविए इतना िर है भीतर। िेककन इतना िर कर िमि बचेिा नहीं। िरा हुआ िमि कै से बचेिा? िरा हुआ िमि नहीं बच सकता। उन्होंने मुझसे कहा कक आप ककन्हीं शास्त्रों के वखिार् कु छ मत बोि दे ना। वजसके वखिार् बोिा जा सकता है िह शास्त्र ही नहीं है। वजसके वखिार् नहीं बोिा जा सकता िही शास्त्र है। और वजसके वखिार् बोिे जाने में िर मािूम पड़ता है, िह कमजोर है, िह समय नहीं हो सकता। वजसके वखिार् सारी दुवनया बोिती हो तो भी वजसका रत्ती भर न टू टता हो िही समय है। उतना ही बच जाए तो कार्ी है, बाकी कचरे को बचाने की कोई जरूरत भी नहीं है। िेककन हम भयभीत हैं, हम बहुत िरे हुए हैं। और इतने िरे हुए िोि िमि को और शास्त्र को बचा सकें िे यह मुझे संभि नहीं कदखाई पड़ता। 9



भारत का बूढ़ा मन िमि की पूजा कर सकता है, िमि को बचा नहीं सकता। भारत को जिान वचत्त पैदा करना पड़ेिा िही िमि को बचा सके िा। एक और अंवतम बात आपसे कह दूं। अिर हमने वसक्ख िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने जहंदू िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने जैन िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने मुसिमान िमि को बचाना चाहा तो िमि नहीं बचेिा, अिर हमने िमि को बचाना चाहा तो िमि बच सकता है। असि में जब हम िमों को पचास वहस्सों में तोड़ दे ते हैं तो अिमि से िड़ने की ताकत कम हो जाती है। अिमि से िड़ेिा कौन? िमि आपस में िड़ते हैं! मंकदर-मवस्जद िड़ते हैं। कम्युवनज्म से कौन िड़ेिा? जहंदूमुसिमान िड़ते हैं, जहंदू-वसक्ख िड़ते हैं, जहंदू-जैन िड़ते हैं। आज भी चीन में बौद्धों का मठ विराया जा रहा है, मुसिमानों की मवस्जद विराई जा रही है, ईसाइयों का चचि तोड़ा जा रहा है। कर्र भी बौद्ध ईसाई के वखिार् बोिे चिे जाते हैं, ईसाई मुसिमान के वखिार् बोिे चिे जाते हैं, मुसिमान बौद्धों के वखिार् बोिा चिा जाता है। ये िार्मिक आदमी हैं या पािि हो िए िोि हैं! अिर िमि को दुवनया में बचाना है, तो िमि को बचाने की तैयारी करनी पड़ेिी। छोटे-छोटे मोह छोड़ने पड़ेंिे। मेरा िमि नहीं बचेिा अब, अब िमि बच सकता है। और िमि तभी बच सकता है जब िमि आपस में िड़ने का पाििपन बंद कर दे । अन्यथा िमि आपस में िड़ते हैं और अिमि की तो कोई िड़ाई अिमि से नहीं होती। यह ककतने मजे की बात कक दुवनया में िमि तीन सौ पचास हैं और अिमि एक है। अिमि का कोई विभाजन नहीं है और िमि के इतने विभाजन हैं। विभावजत िमि बच नहीं सके िा। अविभावजत िमि बच सकता है। चाहे जहंदू हो, चाहे वसक्ख, चाहे मुसिमान, चाहे जैन, अिर हम िमि को बचाना चाहते हों तोकम्युवनज्म से टक्कर िी जा सकती है। और अिर हमने अपने छोटे-छोटे िमों को बचाने की कोवशश की तो ये सब िू ब जाएंिे और अिमि जीतेिा। अिर हम समय को बचाना चाहते हों, तो हमें मेरे का आग्रह छोड़ दे ना चावहए। अिर हम समय को बचाना चाहते हों, तो हमें छोटी-छोटी दीिािों का मोह छोड़ दे ना चावहए। िेककन िह मोह हमारा नहीं छू टता। बूढ़े मन के मोह बड़ी मुवश्कि से छू टते हैं। इसविए मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं, भारत का वचत्त यकद जिान हो सके तो भारत के विए एक स्िणिमय भविष्य पैदा ककया जा सकता है। अिर भारत का वचत्त बूढ़ा रहा तो भविष्य एक मरर्ट होिा, एक कविस्तान होिा, भविष्य एक जीवित, जीिंत नहीं हो सकता है। मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं, मेरी बातों को मान िेना जरूरी नहीं हैं। क्योंकक के िि िे ही िोि अपनी बातों को मानने पर जोर दे ते हैं वजनकी बातें कमजोर होती हैं। मैं आपको वसर्ि इतना ही कहंिा कक मेरी बातों को सोचना, अिर उनमें कोई सच्चाई होिी तो िह सच्चाई आपको मनिा िेिी और अिर िे असमय होंिी तो अपने आप विर जाएंिी। मेरी बातों को मानने की कोई भी जरूरत नहीं हैं। मेरी बातों को सोच िेना कार्ी है। अिर आप सोचेंिे, विचारें िे तो जो समय होिा िह आपको कदखाई पड़ सकता है और समय कदखाई पड़े तो जीिन में क्रांवत शुरू हो जाती है और युिा वचत्त का जन्म प्रारं भ हो जाता है। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांवत से सुना, उससे बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य दूसरा प्रिचन



नये के विए पुराने को विराना आिश्यक मेरे वप्रय आममन्! सुना है मैंने, एक िांि में बहुत पुराना चचि था। िह चचि इतना पुराना था कक आज विरे िा या कि, कहना मुवश्कि था। हिाएं जोर से चिती थीं तो िांि के िोि िरते थे कक चचि विर जाएिा। आकाश में बादि आते थे तो िांि के िोि िरते थे कक चचि विर जाएिा। उस चचि में प्राथिना करने िािे िोिों ने प्राथिना करनी बंद कर दी थी। चचि के संरक्षक, चचि के ट्रवस्टयों ने एक बैठक बुिाई, क्योंकक चचि में िोिों ने आना बंद कर कदया था। और तब विचार करना जरूरी हो िया था कक चचि नया बनाया जाए। िे ट्रस्टी भी चचि के बाहर ही वमिे। उन्होंने अपनी बैठक में चार प्रस्ताि पास ककए थे। िे मैं आपसे कहना चाहता हं। उन्होंने पहिा प्रस्ताि ककया कक बहुत दुख की बात है कक पुराना चचि हमें बदिना पड़ेिा। उन्होंने पहिा प्रस्ताि पास ककया बहुत दुख के साथ कक पुराना चचि हमें विराना पड़ेिा। पुराने को विराते समय मन को सदा ही दुख होता है। क्योंकक मन पुराना ही है। और पुराने के साथ पुराने मन को भी मरना पड़ता है। उन्होंने दूसरा प्रस्ताि पास ककया कक पुराने चचि की जिह हम एक नया चचि बनाने का वनणिय करते हैं। जैसा पुराने को विराने का दुख से वनणिय ककया, िैसे ही नये को बनाने का भी दुख से वनणिय ककया। क्योंकक नया बनाने के विए पहिे आदमी को स्ियं भी नया होना पड़ता है। पुराने में जीना सुवििापूणि है, कन्िीवनयंट है। नये में जीना खतरे से खािी नहीं। उन्होंने तीसरा प्रस्ताि भी पास ककया और िह तीसरा प्रस्ताि यह था कक नया चचि हम पुराने चचि की बुवनयाद पर ही बनाएंिे। और पुराने चचि की ईंटों का ही उपयोि करें िे, और पुराने चचि के दरिाजे ही नये चचि में ििाएंिे। और चौथा प्रस्ताि उन्होंने यह पास ककया कक जब तक नया न बन जाए तब तक हम पुराने को विराएंिे नहीं। और चारों प्रस्ताि सिि स्िीकृ वत से पास हो िए। िह चचि अभी भी नहीं विरा होिा। क्योंकक जो भी ऐसा सोचता है कक नये को बनाने के पहिे पुराने को विराएंिे नहीं; िह न नये को बना पाता है न पुराने को विरा पाता है। नये को बनाने की पहिी शति पुराने को विराने की वहम्मत। और पुराने के विराने की वहम्मत से नये को बनाने की क्षमता पैदा होती है। असि में जो कहते हैं कक हम जब तक नये को न बना िेंिे, तब तक हम पुराने को न विराएंिे। ऐसे िोि पुराने के साथ जीने के इतने आदी हो जाते हैं कक िे नये को बनाने की कल्पना भी खो दे ते हैं। इस कहानी से अपनी बात इसविए शुरू करना चाहता हं कक यह हमारा दे श भी इसी तरह के प्रस्ताि कर रहा है पांच हजार िषों से। पांच हजार िषों से हम एक मरी हुई कौम हैं। पांच हजार िषों से हम पुराने में ही जी रहे हैं। और नये को वनमािण करने की बात सदा पोस्टपोन करते चिे जाते हैं। और वजतना पुराने के साथ रहने की आदत बढ़ती जाती है उतना ही पुराने से मोह बढ़ता जाता है। भारत का एक ही दुभािग्य है कक हम पुराने से अपने को मुि नहीं कर पा रहे हैं। पुराने का मोह हमारे प्राण विए िेता है। और जब कभी हम पुराने को थोड़ा-बहुत छोड़ते भी हैं, तो वजसे हम नया कह कर पकड़ते हैं, िह सारी दुवनया के विए तब तक बहुत पहिे पुराना हो चुका होता है। अिर हम कभी कु छ नया भी पकड़ते हैं,



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तो िह तभी पकड़ते हैं जब िह भी सारी दुवनया में पुराना हो जाता है। वजस दे श की आममा पुराने के साथ इस भांवत बंि िई हो, उस दे श की आममा जिान नहीं रह जाती, बूढ़ी हो जाती है। यह हमारा दे श एक बूढ़ा दे श है और इस दे श की सारी तकिीर्ें इसके बूढ़े होने से पैदा हो रही हैं। सारी दुवनया जिान है। हम बूढ़े हैं। इस जिान दुवनया के साथ हमारे ये बूढ़े पैर नहीं चि पाते। और इस जिान दुवनया के साथ हमारा बूढ़ा मन भी नहीं दौड़ पाता। और इस जिान दुवनया के साथ हमारे बूढ़े मन का कोई तािमेि नहीं बैठता। तब हम एक ही काम करते हैं कक हम सारी दुवनया को िािी दे कर अपने मन में तृवप्त पाने की कोवशश करते हैं। असि में बूढ़े मन का यह िक्षण है कक िह जिान को िािी दे कर तृवप्त पा िेता है। हम सारी दुवनया की जनंदा ककए रहते हैं। हम सारी दुवनया को भौवतकिादी कहते हैं। मैटीररयविस्ट कहते हैं। और वजनको हम भौवतकिादी कहते हैं, उन्हीं के सामने हाथ जोड़े भीख भी मांिते रहते हैं। वजनको हम िािी दे ते हैं, उनके िेहं से हमारी िािी की भी ताकत आती है। वजनको हम िािी दे ते हैं, उनसे हम ऑिवपन से िेकर बम बनाने तक की सारी किा भी सीखते हैं। वजनको हम िािी दे ते हैं, उन पर ही हमारा जजंदा रहना वनभिर हो िया है। कर्र भी हम िािी कदए जाते हैं। इस िािी के पीछे कारण हैं। असि में िािी वसर्ि इं पोटेंट माइं ि का िक्षण है। जब वचत्त वबल्कु ि वनिीयि हो जाता है तो वसिाय िािी दे ने के और कु छ भी नहीं कर पाता। और आश्चयि तो यह है कक वजनको हम िािी दे ते हैं उनकी ही नकि हमें करनी पड़ती है। िेककन िह नकि भी हम इतने बेमन से करते हैं, और इतने पीछे करते हैं कक वसर्ि हंसी पैदा कर पाती है और कु छ भी नहीं कर पाती। भारत का पूरा व्यविमि ही हास्यास्पद हो िया, हंसने योग्य हो िया। इस सारी हंसने योग्य वस्थवत के पीछे जो बुवनयादी कारण हैं उनके संबंि में मैं आपसे बात करना चाहंिा। पहिा कारण तो पुराने के प्रवत हमारा मोह है। और वजनका भी पुराने के प्रवत मोह होता है नये के प्रवत उनमें भय पैदा हो जाता है। जहां पुराने का मोह है िहां नये का भय है। और जहां पुराने का मोह है िहां भविष्य की तरर् न दे खने की इच्छा है। पुराने का मोह पीछे की तरर् दे खने का आग्रह पैदा कर दे ता है। इसविए हम सदा पीछे की तरर् दे खते रहते हैं। हमारी िोल्िन एज हो चुकी, हमारा स्िणि युि बीत चुका। हमारे रामराज्य र्रटत हो चुके। हमारे अितार, हमारे महापुरुष, हमारे तीथंकर, सब पैदा हो चुके। हमारा कोई भविष्य नहीं है, हमारे पास वसर्ि अतीत है। िह जो बीत िया िही हमारी संपदा है। जो होने िािा है िह हमारी संपदा नहीं है। कै से कोई कौम जी सकती है वजसके पास भविष्य न हो। और अिर हम भविष्य के संबंि में कभी सोचते भी हैं तो हम सदा अंिेरी, दुखद, वनराशा की भाषा में सोचते हैं। यह आश्चयिजनक है। यह आश्चयिजनक है कक हम जहां सारी दुवनया प्रोग्रेस की छाया में जीती है, विकास की छाया में, हम पतन की छाया में। सारी मनुष्यता प्रिवत की छाया में जी रही है और वनरं तर भविष्य के सुंदर सपने बना रही है। िहां हम पतन की छाया में जी रहे हैं और वनरं तर भविष्य की और कािी तस्िीर हम वनर्मित करते हैं। हमारा सतयुि हो चुका अब तो कवियुि है। और कवियुि का मतिब है हम रोज पवतत हो रहे हैं। हमने सारी दे खने की, जो हमारी व्यिस्था है िही बीमार है। भविष्य सुंदर होना चावहए, िेककन हम कहते हैं, हमारा अतीत सुंदर था। और अतीत को सुंदर बनाने के विए जरूरी हो जाता है कक भविष्य को हम अंिकारपूणि वचवत्रत करें । तो हर बाप कहता है कक उसकी पीढ़ी अच्छी थी और बेटे की पीढ़ी बुरी। और ऐसा नहीं कक आज का बाप कहता है, जो आज कह रहा है उसके वपता ने भी यही कहा था, और उसके वपता ने भी



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यही कहा था, और उसके वपता ने भी यही कहा था। हर पीढ़ी यह कहती है कक उसकी पीढ़ी बेहतर थी, आने िािी पीढ़ी पवतत हो िई है। हम रोज पतन में जी रहे हैं। बेटा बेहतर होना चावहए बाप से। बेटे के बेहतर होने की कामना होनी चावहए। िेककन बाप के अहंकार को यह प्रीवतकर नहीं ििता कक बेटा बेहतर हो। प्रीवतकर बहुत िहरे में यही ििता है कक बेटा थोड़ा सा नीचे रह जाए। हर पीढ़ी आने िािी पीकढ़यों को नीचा मानती है। और जब हजारों िषों तक यह िारणा मन में हमारे बैठे कक रोज पतन हो रहा है तो पतन वनवश्चत हो जाता है। पतन और प्रिवत हमारे मन की िारणाएं हैं। हम कै से िेते हैं जीिन को इस पर वनभिर करता है सब कु छ। हमारा मन ककस भाषा में सोचता है इस पर वनभिर करता है सब कु छ। मैंने सुना है, जापान में एक छोटा सा राज्य था। और उस राज्य पर पड़ोस के एक बड़े राजा ने हमिा कर कदया। उस छोटे से राज्य के सेनापवत के पैर उखड़ िए, िह र्बड़ा िया। उसने सम्राट को जाकर कहा कक िड़ना असंभि है, जीत हम न सकें िे, हार वनवश्चत है, दुश्मन आठ िुनी ताकत का है। तो मैं अपने सैवनकों को िड़ाने नहीं िे जा सकता। यह तो मौत के मुंह में जाना है। सम्राट भी समझता था बात सच है, िेककन वबना िड़े हार जाने को भी तैयार न था। िेककन सेनापवत ने कहा, कर्र मुझे छु ट्टी दे दें । आप िड़ें या िड़िाएं। मैं अपने सैवनकों को मौत के मुंह में मैं न िे जाऊंिा। िांि में एक र्कीर था। सम्राट जब भी मुसीबत में पड़ता था, उस र्कीर के पास िया था। अपने सेनापवत को िेकर कर्र िया। उस र्कीर ने कहा कक पहिा काम तो यह करें कक इस सेनापवत को छु ट्टी कर दें और दूसरा काम यह करें कक इसे तमकाि कारािृह में िाि दें जब तक युद्ध समाप्त न हो जाए। यह आदमी खतरनाक है। जब कोई सेनापवत कहता है हार वनवश्चत है, तो हार वनवश्चत हो जाती है। इसे बंद कर दें , यह खतरनाक है। अिर सैवनकों तक यह खबर पहुंच िई कक हार वनवश्चत है, तो कर्र हार को बदिना बहुत मुवश्कि हो जाएिा। िेककन सम्राट ने कहााः इसे मैं बंद कर दूं तो युद्ध का क्या होिा? तो उस र्कीर ने कहााः मैं सैवनकों को कि सुबह युद्ध पर िेकर चिा जाऊंिा। सम्राट िरा तो बहुत। अनुभिी सेनापवत कह रहा था, हार वनवश्चत है। और र्कीर तो तििार पकड़ना भी नहीं जानता था। यह खतरा है, िेककन कोई उपाय न था। र्कीर के हाथ में र्ौजें दे दे नी पड़ीं। िह र्कीर सुबह िीत िाता र्ोड़े पर सिार होकर र्ौजों को िे चिा। एक-एक आदमी की श्वास, सैवनकों के प्राण िरे हुए। र्कीर के साथ मौत वनवश्चत है, िेककन कोई उपाय नहीं। दुश्मन की सीमा जहां थी, नदी के इस पार एक मंकदर के पास िह र्कीर रुका और उसने कहा कक मैं युद्ध में जाऊंिा बाद में, जरा इस मंकदर के दे िता से पूछ िूं कक जीत होिी या हार? अक्सर मैं पूछ िेता हं और दे िता जो कह दे ता है िही होता है। उन सैवनकों ने कहााः हमें कै से पता चिेिा कक दे िता क्या कह रहा है? उस र्कीर ने कहा, तुम्हारे सामने ही पूछूंिा। सामने ही उसने खीसे से एक सोने का चमकता हुआ रुपया वनकािा, आकाश की तरर् र्ें का और कहा कक हे मंकदर के दे िता, अिर हम जीतते हों तो रुपया सीिा विरे और अिर हारते हों तो उिटा विरे । उिटा विरा हम िापस िौट जाएंिे, सीिा विरा तब जीत कर ही िौटना है। रुपया सीिा विरा! सैवनकों की श्वासें रुक िईं! दे खा, रुपया सीिा था। र्कीर ने कहााः अब कर्कर छोड़ दो। अब युद्ध में जाओ और जीत कर िौटो। िे युद्ध में कू द पड़े। आठ कदन बाद िे जीत कर िापस िौटते थे उसी मंकदर के पास से, सैवनकों ने र्कीर को याद कदिाया, मंकदर के दे िता को िन्यिाद तो दे दें । उस र्कीर ने कहााः छोड़ो, इसमें मंकदर के दे िता का कोई हाथ नहीं! उन्होंने कहााः कै सी आप बात करते हैं! मंकदर के दे िता से पूछ



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कर ही हम िए थे। भूि िए आप। उस र्कीर ने कहा, अब तुम पूछते हो तो मैं तुम्हें सच बात बता दूं। उसने रुपया वनकाि कर उनके हाथ में दे कदया। िह रुपया दोनों तरर् सीिा था। उसमें कोई उिटा पहिू न था। हमारा मन क्या पकड़ िेता है, िे पररणाम हो जाते हैं। हमारा मन हमारा भविष्य, हमारा मन हमारा जीिन। इस दे श का मन सदा से यह पकड़े हुए है कक आिे अंिेरा है, आिे पतन है, आिे बुराई है, आिे विनाश है। यह बड़ी खतरनाक दृवि है। इससे खतरनाक और कोई दृवि नहीं हो सकती। इसविए हम पांच हजार साि से पतन कर रहे हैं। उस र्कीर के वसक्के में दोनों तरर् सीिा था। हमने जो वसक्का विया है िह दोनों तरर् उिटा है। उसे कै सा भी र्ें को िह उिटा ही विरने िािा है। हमने हार अपने हाथ से तय कर रखी है। हमने िुिामी अपने हाथ से तय कर रखी है। हमने दररद्रता, दीनता, दुख अपने हाथ से तय कर रखा है। हम वजम्मेिार हैं। हमारे अवतररि और कोई वजम्मेिार नहीं है। िेककन यह वजम्मेिारी हमारी कर्िासर्ी में है, हमारे सोचने के ढंि में है, हमारे दे खने के ढंि में है। हमारी जजंदिी का जो रिैया है िह रिैया हारने िािे का है, जीतने िािे का नहीं है। इस रिैए में पहिी बात है कक हमने जो समय की िारणा की है उसमें अच्छा पीछे हो चुका और बुरा आिे होने को। और यह िारणा बदिनी पड़ेिी, हमें पीछे से आिे की जजंदिी को सुखद, आने िािे भविष्य को सूयि से भरा हुआ, आने िािे भविष्य के सपने को हमें कु छ अच्छे रं ि दे ने पड़ेंिे। और अिर यह काम हम पूरा न कर पाए, तो इस जमीन पर हमारी कोई जिह रह जाने को नहीं है। आज भी कोई जिह रह नहीं िई है। उटोवपया चावहए भविष्य में। हर रोज आने िािा कदन बेहतर होने िािा है यह हमारे मन के िहरे में बैठ जाना चावहए। क्योंकक उस कदन को बनाएिा कौन? उस कदन को हम बनाएंिे। हर आने िािी पीढ़ी वपछिी पीढ़ी से बेहतर होने िािी है, यह हमारी िारणा होनी चावहए। िेककन हमारी िारणा बहुत अजीब है। हमारी िारणा है कक पीछे सब अच्छा है। उस िारणा को भी थोड़ा विचार िेना चावहए, क्योंकक तोड़ना है, तो वबना विचारे तोड़ा नहीं जा सकता। यह िारणा इसविए भी िित है कक भविष्य सुंदर न हो तो सुंदर नहीं बन सके िा, इसविए भी िित है कक यह तथ्य भी नहीं, यह यथाथि भी नहीं। अतीत सुंदर नहीं था। िेककन अतीत के सुंदर होने का ख्याि हमारे मन में जरूर है। उसके कारण हैं। हम अतीत में जो सबसे अच्छा आदमी हुआ है उसे आज के सबसे बुरे आदमी से तौिते हैं। बड़ी अजीब बात है! राम को, बुद्ध को, महािीर को, कृ ष्ण को, क्राइस्ट को हम अपने पड़ोसी से तौिते हैं। हम यह भूि जाते हैं कक राम उस जमाने का सबसे बेहतर आदमी है और अखबार में जो खबर छपती है िह हमारे जमाने के सबसे रद्दी आदमी की है। हम उन दोनों को तौि िेते हैं। हम अतीत के बेहतर आदमी से आज के आवखरी आदमी को तौिते हैं। इसविए हमेशा करठनाई हो जाती है। यह तौि िित है। यह तौि वबल्कु ि ही बेहदी है। आज का सामान्य आदमी अतीत के ककसी भी सामान्य आदमी से बेहतर है। और आज का महापुरुष भी अतीत के ककसी महापुरुष से पीछे नहीं हैं। िेककन अतीत के महापुरुष से हम सामान्य आदमी को तौिने ििते हैं। और हम सामान्य आदमी को भूि िए हैं वपछिे, हमें पता नहीं कक राम के िि भी सामान्य आदमी कै सा था। राम का पता है, राम से हम सोचते हैं कक रामराज्य बड़ा सुंदर रहा होिा। राम के आिार से हम सोचते हैं। आज से हजार साि बाद, दो हजार साि बाद आपका नाम ककसी को याद नहीं रहेिा, मेरा नाम ककसी को याद नहीं रहेिा। िांिी का नाम याद रह जाएिा। दो हजार साि बाद िोि सोचेंिे, िांिी का युि बहुत अच्छा था। िांिी जैसा आदमी पैदा हुआ। यह 14



झूठी बात होिी। िांिी का युि िांिी जैसे आदवमयों का युि नहीं था। िांिी का युि िांिी से वबल्कु ि उिटे आदवमयों का युि था। और यह भी ध्यान रहे कक अिर िांिी के युि में िांिी जैसे िोि बहुत होते तो िांिी को पूछता कौन? राम को पूछा िोिों ने क्योंकक िोि राम से उिटे थे। राम न्यून रहे होंिे, बहुत कम रहे होंिे, संख्या में बहुत थोड़े रहे होंिे। इसविए पूजे िए। बहुत ज्यादा िोि पूजे नहीं जा सकते हैं। कृ ष्ण बहुत अके िे रहे होंिे, बुद्ध और महािीर भी अके िे रहे होंिे। अके िे होने की िजह से उन्हें पूजा वमिी। अिर बुद्ध के जमाने में दस-पच्चीस बुद्ध भी होते, तो िौतम बुद्ध कभी के भूि िए होते। पच्चीस बुद्धों को याद रखना बहुत मुवश्कि हो जाता है। िेककन उस जमाने के अच्छे आदमी से हम सोचते हैं सारा जमाना अच्छा रहा होिा। इससे भ्ांवत पैदा होती है। इससे खतरनाक तुिना पैदा होती है, इससे एक िित कं पेररजन पैदा होता है। और यह भी ध्यान रहे कक महापुरुष वसर्ि बुरे समाज में कदखाई पड़ते हैं, अच्छे समाज में कदखाई नहीं पड़ते। असि में महापुरुष अिर बनना हो तो बुरा समाज बहुत जरूरी है। इसविए वजतना बुरा समाज होता है उतने महापुरुष पैदा हो सकते हैं। इसका यह मतिब नहीं कक अच्छे समाज में महापुरुष पैदा नहीं होते। होते हैं, िेककन कदखाई नहीं पड़ते। ऐसा है जैसे स्कू ि का वशक्षक ब्िैक-बोिि पर विखता है सर्े द खवड़या से, सर्े द दीिाि पर भी विख सकता है, विख तो जाएिा, िेककन पढ़ा नहीं जा सके िा। सर्े द खवड़या से विखे िए अक्षर कािे तख्ते पर कदखाई पड़ते हैं। सर्े द तख्ते पर कदखाई नहीं पड़ेंिे। समाज का कािा तख्ता हो तो महापुरुष कदखाई पड़ते हैं, अन्यथा कदखाई नहीं पड़ते। अिर वजस कदन समाज अच्छा हो जाएिा उस कदन महापुरुषों की कहानी खमम। उस कदन महापुरुष पैदा नहीं हो सकें िे। महापुरुषों के विए बुरा समाज वबल्कु ि नेसेवसटी है। उसके वबना महापुरुष नहीं कदखाई पड़ता। होिा पैदा िेककन कदखाई नहीं पड़ेिा। अिर चारों तरर् अच्छे िोि हों, तो अच्छा आदमी अिि से कदखाई नहीं पड़ सकता, कािा तख्ता चावहए समाज का। जहंदुस्तान ने सबसे ज्यादा महापुरुष पैदा ककए, क्योंकक जहंदुस्तान के पास सबसे रद्दी समाज है। दुवनया ने इतने अच्छे महापुरुष पैदा नहीं ककए, इतने बड़े महापुरुष पैदा नहीं ककए। उसका कारण है। दुवनया ने अच्छा समाज पैदा करने की कोवशश की है। जहां-जहां अच्छा समाज बनता जाता है बड़ा आदमी वतरोवहत होने ििता है, खो जाता है, कदखाई नहीं पड़ता, उसका पता नहीं चिता, उसको खोजना बहुत मुवश्कि हो जाता है। चोरों के समाज में सािु आदर पाता है। सािुओं के समाज में सािु को कौन पूछे? इसविए सािु के विए जरूरी है कक चोर बने रहे, नहीं तो सािु मर जाएिा। सािु के विए जरूरी है कक बेईमान रहे, सािु के विए जरूरी है कक बुरा आदमी चारों तरर् मौजूद रहे। हमारा मुल्क बहुत सािु पैदा करता है, क्योंकक उससे हजार िुने बेईमान और चोर पैदा करता है। नहीं तो सािु कदखाई नहीं पड़ेिा। अतीत के अच्छे आदमी भी इस बात की ििाह हैं कक अतीत का समाज अच्छा नहीं रहा होिा। बड़े मजे की बात, और िह यह है कक हम सोचते हैं कक पहिे के िोि सब अच्छे थे, िेककन अिर हम पहिे के बड़े िोिों की वशक्षाएं दे खें तो यह भ्म टू ट जाएिा। बुद्ध सुबह से उठ कर सांझ तक एक ही बात िोिों को समझाते हैं, चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, दूसरे की स्त्री को बुरे भाि से मत दे खो। िोि जरूर दे खते रहे होंिे। अन्यथा इन वशक्षाओं की जरूरत नहीं है। आज मैं स्िणि-मंकदर में िया। तो िहां संिमरमर के पमथर पर एक िचन विखा हुआ है कक पराई स्त्री को दे खना महा पाप है। पराई स्त्री को दे खने िािा कु त्ते की मौत मरता है। पराई स्त्री को जरा सा भी बुरा विचार ककया कक तुम नरक के िड्ढे में िए। वजन्होंने विखा है और वजनके विए कहा िया होिा उनकी दृवि पराई स्त्री के 15



संबंि में अच्छी नहीं रही होिी। यह कोई अच्छे समाज में कही िई बात नहीं हो सकती। और इस बात को संिमरमर पर विखना पड़ता है, यह सबूत है कक समाज बहुत िंदा रहा होिा। अच्छी दुवनया में ऐसे पमथर हमें अिि करने पड़ेंिे। कक कोई कहेिा, यह क्या पाििपन की बात है! यह कोई अच्छा िक्षण नहीं है। िेककन समाज की ििाही दे ता है। महािीर िोिों को समझा रहे हैं, चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, िह्मचयि सािो। िोि नहीं सािते रहे होंिे। दुवनया की पुरानी से पुरानी ककताब भी िोिों को जो वशक्षाएं दे ती हैं िे िही हैं वजनकी हमें आज भी जरूरत है। इससे पता चिता है आदमी ऐसा ही रहा होिा। बवल्क इससे भी बदतर रहा होिा। ये खबरें हैं। िैसे कहावनयां तो ये कहती हैं कक एक जमाना था भारत में कक िोिों के र्र में तािे नहीं ििते थे। हेनसान ने विखा है कक भारत में तािे नहीं ििते। जब मैं इसको पढ़ता हं तो मुझे बड़ी हैरानी होती है! हैरानी मुझे यह होती है, तो हम सोचते हैं कक शायद िोि चोरी नहीं करते होंिे, िेककन यह बात ठीक नहीं मािूम पड़ती। क्योंकक हेनसान के पहिे ही बुद्ध और महािीर वबहार में ही िोिों को समझा रहे हैं कक चोरी महापाप है, चोरी मत करना, नरक में सड़ाए जाओिे, चोरी बहुत बुरी चीज है। बुद्ध और महािीर समझा रहे हैं, चोरी महापाप है। और अिर तािे नहीं ििते तो कर्र दो ही कारण हो सकते हैं, या तो चोरी के योग्य सामान न रहा होिा िोिों के पास या कर्र तािा बनाने की अकि न रही होिी, और कोई कारण नहीं है। चोर तो जरूर थे। नहीं तो चोरी के वखिार् समझाने की कोई जरूरत नहीं थी। या कर्र बुद्ध और महािीर का कदमाि खराब रहा होिा कक जो िोि चोरी नहीं करते उनको समझा रहे हैं कक चोरी मत करो! जो िोि बेईमान नहीं हैं उनको समझा रहे हैं कक बेईमानी मत करो! मैंने सुना है, एक चचि में एक र्कीर को कु छ िोि िे िए और उस चचि के िोिों ने उस र्कीर से कहा कक हमें समय के संबंि में कु छ समझाएं। तो उस र्कीर ने कहााः चचि में आए हुए िोिों को समय के संबंि में समझाना अपमानजनक है, इनसजल्टंि है। क्योंकक चचि में जो िोि आए हैं िे समय बोिते ही होंिे। िेककन िोि नहीं माने। उस र्कीर ने कहााः तुम नहीं मानते हो तो मुझे समझाना पड़ेिा। िेककन मैं यह सोचता हं कक समय के संबंि में ककसी जेिखाने में समझाना चावहए, चर् च में नहीं। उस र्कीर को पता नहीं होिा कक जेिखाने के भीतर जो हैं और चचि के भीतर जो हैं, इनमें वसर्ि दीिािों का र्कि है और कोई बहुत र्कि नहीं है। उसने खड़े होकर समझाना शुरू ककया। उसने कहााः इसके पहिे कक मैं कु छ कहं, मैं एक सिाि पूछना चाहता हं। उसने उस चचि में आए हुए िोिों से पूछा कक आप सारे िोि बाइवबि तो पढ़ते हैं न? तो सारे िोिों ने हाथ ऊपर उठा कदए। उसने पूछा कक आपने ल्यूक का उनहत्तरिां अध्याय भी कभी पढ़ा है? सारे िोिों ने हाथ उठा कदए कक हमने पढ़ा है, वसर्ि एक आदमी को छोड़ कर। उस र्कीर ने कहा कक अब मुझे बोिना पड़ेिा, क्योंकक ल्यूक का उनहत्तरिां अध्याय जैसा कोई अध्याय बाइवबि में है ही नहीं। और आप सब कहते हैं कक आपने पढ़ा है। तब मैं समझ िया कक मुझे समय के संबंि में कु छ बोिना चावहए। िेककन उस र्कीर ने कहा कक मैं एक आदमी के विए हैरान हं वजसने हाथ नहीं उठाया! उसने उससे जोर से पूछा कक मेरे भाई तुम ईमानदार और सच बोिने िािे आदमी इस चचि में कै से आ िए? तो उस आदमी ने कहा कक असि में मुझे कम सुनाई पड़ता है, आप क्या कह रहे हैं मुझे सुनाई नहीं पड़ा। क्या उनहत्तरिां अध्याय पूछ रहे हैं आप? मैं भी पढ़ता हं। िेककन जरा सुनाई कम पड़ता है इसविए मैंने हाथ नहीं उठाया।



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समय के संबंि में चचों में चचाि चिती है, क्योंकक चचों में असमय बोिने िािे िोिों की भीड़ है। असि में पावपयों को छोड़ कर मंकदर की तरर् बहुत कम िोि आकर्षित होते हैं, बहुत कम िोि। तीथों की तरर् आकर्षित होने िािा भीतर से िुनाह से भरा होता है। असि में विल्टी कांवशयंस तीथि की तरर् िे जाती है। िह जो अपराि से भरा हुआ वचत्त है िह कहता है चिो तीथि, िह कहता है चिो मंकदर, िह कहता है चिो सािु के पास। यह जो हमारी िार्मिकता है वजसके विए हम सारी दुवनया में कढंढोरा पीटते हैं कक हम िार्मिक हैं, िह हमारी िार्मिकता नहीं है। हमारे भीतर अपराि का प्रकटन है। िह जो विल्ट है हमारे भीतर उसकी िजह से हम िार्मिक होने के हजार उपाय करते हैं। िार्मिक हम वबल्कु ि नहीं हैं। अब तक दुवनया में कोई समाज िार्मिक नहीं बन सका। कु छ व्यवि िार्मिक हुए हैं इं विविजुअि, सोसाइटी कोई िार्मिक पैदा नहीं हो सकी है। िेककन जहंदुस्तान के समाज को यह ख्याि है कक हमारा िार्मिक समाज है। क्यों? क्योंकक हम एक कृ ष्ण को पैदा कर िेते हैं, एक नानक को पैदा कर िेते हैं, एक कबीर को पैदा कर िेते हैं। ये व्यवि हैं, और हम इन सबका मजा िेते हैं कक हमारा पूरा समाज िार्मिक हो िया। हम िार्मिक नहीं हैं। िेककन यह भ्म हमारा न टू टे तो हम िार्मिक कभी हो भी न सकें िे। यह बड़े आश्चयि की बात है कक वजन समाजों को हम कहते हैं अिार्मिक, िे हमसे ज्यादा िार्मिक वसद्ध हो रहे हैं। और हम अपने को कहते हैं िार्मिक, और हमसे ज्यादा इस समय अनैवतक समाज पृथ्िी पर दूसरा नहीं है। हमसे ज्यादा करप्टेि आदमी खोजना बहुत मुवश्कि है। और हमारे करप्शन का, हमारे व्यवभचार का, हमारी अनीवत का पहिा आिार यह है कक हम सबने मान रखा है कक हम िार्मिक हैं। इसविए हमें अिार्मिक होने की वजतनी सुवििा वमि िई उतनी ककसी को भी नहीं वमिी। अिर कोई बीमार आदमी समझ िे कक मैं स्िस्थ हं तो िह इिाज भी बंद कर दे िा। बीमार के इिाज के विए यह जरूरी है कक िह समझे कक मैं बीमार हं, और वजतनी तीव्रता से समझे कक िहरी बीमारी है, उतने जल्दी इिाज का इं तजाम करे िा। हम ऐसे बीमार हैं जो अपने को स्िस्थ मान कर बैठे हुए हैं। इसविए इिाज की भी कोई जरूरत नहीं है। जब भी हम इिाज की बात करते हैं तो हम ऐसा करते हैं कक दुवनया को वसखाना है। जहंदुस्तान भर का यह ख्याि है कक हमें दुवनया कोवसखाना है, सारी दुवनया हमारी तरर् दे ख रही है। और हमारे पास दे खने को क्या है यह हम कभी सोचते भी नहीं है। सारी दुवनया हमसे उपदे श िेने को तैयार मािूम पड़ती है हमको। और हम कहां खड़े हैं हमें कोई ख्याि भी नहीं। िेककन ये सारी की सारी बातें हमारी बीमारी को बचाने का कारण बन जाती हैं। तो दूसरी बात आपसे कहना चाहता हं िह यह, अतीत के िोि हमसे बेहतर थे भी नहीं। और अिर बेहतर होते तो हम उनसे ही पैदा हुए हैं। हम उनकी ििावहयां हैं। ककताबें ििावहयां नहीं हैं, हम ििावहयां हैं। आदमी ििाह होता है, ककताबें ििाह नहीं होती हैं। हम ििाही दे ते हैं, हर बेटा अपने बाप की ििाही दे ता है। और हर बेटा अपने बाप के ऊपर प्रमाण बन जाता है कक बाप कै सा रहा होिा। जब हम ककसी र्ि को दे खते हैं िृक्ष के , तो बीज के संबंि में पता चि जाता है। जानते हैं र्ि को दे ख कर कक बीज कै सा रहा होिा। और र्ि हो सड़ा हुआ और कहे कक हम बहुत स्िस्थ बीज से पैदा हुए हैं, तो कौन उसका भरोसा करे िा। हम बताते हैं कक पीछे का समाज कै सा रहा होिा--हम उससे ही पैदा हुए हैं, हम उससे ही आए हैं। हम अपने को दे ख कर भी समझ सकते हैं कक पीछे का समाज बेहतर नहीं रहा होिा। यह एक बार हमें सार् हो जाए तो हम बेहतर समाज को पैदा करने की कोवशश में िि जाएं। िेककन अिर हमने यह मान रखा है कक बेहतर समाज हो चुका, तो अब पैदा करने की कोई जरूरत नहीं, वसर्ि पुराने 17



समाज का िुणिान करना कार्ी है। अतीत का यश हम िाते रहें। अतीत के इवतहास की हम बातें करते रहें और मरते जाएं। भविष्य में हो मौत और अतीत की हो कहानी यह हमारी वस्थवत हो िई है। इसविए दूसरी बात आपसे कहना चाहता हं, अतीत के यथाथि को समझ िेना जरूरी है। िह इतना सुंदर नहीं था जैसा हम सोचते हैं। िेककन हमारे मन के अहंकार को तृवप्त वमिती है। वभखमंिे को यह मान कर बहुत आनंद वमिता है, उसके बापदादे सम्राट थे। इससे उसके बापदादे सम्राट थे या नहीं यह वसद्ध नहीं होता, इतना जरूर वसद्ध होता है कक िह वभखमंिा है। वभखमंिे के मन को बड़ी राहत वमिती है कक कोई कर्कर नहीं, अिर हम भीख भी मांि रहे हैं तो कोई बात नहीं, बापदादे हमारे सम्राट थे। बापदादे सम्राट थे या नहीं, इससे वभखमंिेपन में कोई र्कि नहीं पड़ता। हां, एक र्कि पड़ता है िह यह कक वभखमंिा अपने वभखमंिेपन में भी अकड़ जाता है। आज हम जमीन पर वभखारी की हाित में हैं। िेककन हमारी अकड़ का कोई वहसाब नहीं। आज सारी जमीन से हम भीख मांि रहे हैं। िेककन हमारी अकड़ का कोई वहसाब नहीं। यह अकड़ हमें कहां िे जाएिी, कहना बहुत मुवश्कि है। इस अकड़ ने हमें अतीत में भी बहुत मुसीबतों में िािा। हजार साि हम िुिाम न रहते अिर हम अकड़े हुए िोि न होते। िेककन हम इतने अकड़े हुए िोि थे कक हमें कभी पता ही नहीं चिा कक हमारे पास ताकत ककतनी है। अकड़ बहुत ताकत बताती है। िेककन जब मौका आता है तो अकड़ की असवियत खुि जाती है। हमें ख्याि था हम महा शविशािी हैं, िह हमारी अकड़ टू ट िई। हमें ख्याि था कक हम सोने की वचवड़या हैं, िह अकड़ भी हमारी टू ट िई। अब भी हमको न मािूम क्या-क्या ख्याि हैं कक हम आध्यावममक हैं, िार्मिक हैं, िह हमारी अकड़ बहुत महंिी और खतरनाक है। मैंने सुना है, सोमनाथ के ऊपर जब हमिा हुआ, तो सोमनाथ में पांच सौ पुजारी हैं। बड़ा मंकदर था िह, करोड़ों की संपवत्त थी उसके पास। राजस्थान के बहुत से राजपूत सरदारों ने पत्र विखे कक हम मंकदर की रक्षा के विए आएं। तो मंकदर के पुजाररयों ने जिाब कदया, जिाब कदया कक जो भििान सबकी रक्षा करता है, उसकी रक्षा तुम करोिे! जिाब वबल्कु ि ठीक था, तकि युि था, समझ में पड़ता था, क्योंकक हमारी पुरानी बुवद्ध से मेि खाता था। जो भििान सबकी रक्षा करता है, उसकी रक्षा तुम करोिे! राजपूत भी िर िए, उन्होंने मार्ी मांि िी। उन्होंने कहा कक हमसे भूि हो िई। भििान की रक्षा हम कै से कर सकते हैं, जो सबकी रक्षा करने िािा है। कर्र िह िजनी उस मूर्ति को तोड़ सका जो सबकी रक्षा करती थी। और जब िह मूर्ति चारों खाने टू ट कर पड़ िई तब हमें पता चिा। िेककन तब बहुत दे र हो िई थी। अकड़ टू ट जाए तब पता चिे तो बहुत दे र हो जाती है। िह टू टने के पहिे पता चिनी चावहए तो बदिी जा सकती है। अभी जहंदुस्तान इसी तरह की अकड़ में जी रहा है कक हम आध्यावममक हैं, हम र्िां हैं, हम कढकां हैं। सारी दुवनया हमसे बेहतर नैवतक हो िई। िेककन हम अपनी अकड़ में जजंदा हैं। और हमारी बेईमानी का कोई वहसाब नहीं। मेरे एक वमत्र हैं, प्रोर्े सर हैं पटना युवनिर्सिटी में। िए हुए थे स्िीिन, वजस होटि में ठहरे हुए थे, िेवजटेररयन हैं, शाकाहारी हैं। उन्होंने सुबह ही उठ कर कहा कक मुझे दूि चावहए और बैरा को बुिा कर उन्होंने कहा कक शुद्ध दूि चावहए, प्योर वमल्क चावहए। उस बैरा ने कहा कक हम सुना नहीं कभी प्योर वमल्क क्या होता है? प्योर वमल्क क्या बिा है? कं िेंस्ि वमल्क सुना है, पैश्चुराइज्ि वमल्क सुना है, प्योर वमल्क क्या बिा है? मैं मैनेजर को बुिा िाता हं। िे बड़े हैरान हुए! मैनेजर आया उसने पूछा कक यह शुद्ध दूि क्या है? 18



तो उन्होंने कहााः आप समझे नहीं, मेरा मतिब यह है कक दूि में पानी न वमिाया िया हो। उन्होंने कहा, िह तो वमिाएंिे ही हम क्यों? यह सिाि ही क्यों उठा आपके मन में? कोई ऐसी जिह भी है जहां कोई दूि में पानी वमिाता हो? तो उन्होंने कहा कक मेरा दे श है! मैं उनके र्र में मेहमान था, िे मुझे कहने ििे तो मैंने कहा कक आपने िित कहा, िह जमाना िया जब हमारा दे श दूि में पानी वमिाता, अब हम पानी में दूि वमिा रहे हैं। िह िि िए, अब कोई दूि में पानी नहीं वमिाता। अब तो पानी में हम दूि वमिा िेते हैं। आपने िित कहा। मैंने कहा, िापस विख दो एक पत्र क्षमायाचना का कक थोड़ी ििती हो िई। वजन्हें हम भौवतकिादी कहें उन्हें समझना मुवश्कि है कक शुद्ध दूि क्या होता है? शुद्ध र्ी क्या होता है? और हमारी दुकान पर ििा हुआ है कक यहां शुद्ध र्ी वमिता है। और जहां अशुद्ध वमिता हो िहां हमें बोिि ििाना पड़ता है शुद्ध का। नहीं तो कभी ििाने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। हमारी यह मनो-दशा! हमारी यह वचत्त-वस्थवत! अभी मेरे एक िाक्टर वमत्र कह रहे थे कक दूि में पानी वमिाओ िह ठीक है, इं जेक्शन में भी पानी वमि रहा है। मरीज को इस भरोसे पर इं जेक्शन कदया जा रहा है कक िह बच जाएिा। न मरीज को पता है, न िाक्टर को पता है कक इं जेक्शन में कु छ भी नहीं है, वसर्ि पानी है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कक इतना करप्टेि माइं ि हो सकता है कक एक मरते हुए मरीज को--वजसकी जजंदिी इं जेक्शन पर वनभिर होिी--उसको पानी कदया जा रहा है। हम आध्यावममक िोि हैं। हम जो न करें िह थोड़ा है। हमारी यह अकड़ कै से टू टेिी? यह अकड़ तोड़नी पड़ेिी। और जो जजंदिी के सीिे तथ्य हैं उनको समझना पड़ेिा। हम िीरे -िीरे ऐसी अकड़ से भर िए हैं कक जजंदिी का जो नग्न समय है, उसको दे खते ही नहीं। उससे आंख चुराए चिे जाते हैं, आंख बंद ककए चिे जाते हैं, और ऊंची बातें करते रहते हैं। कई बार मुझे ििता है कक ऊंची बातें करना कहीं जजंदिी के नीचे तथ्यों से एस्के प करने की तरकीब तो नहीं है? अक्सर ऐसा होता है। अक्सर ऐसा हो जाता है। अक्सर आदमी जब मरने ििता है, मौत के करीब पहुंचने ििता है तो आममा की अमरता की बात करने ििता है। उसका कारण यह नहीं होता कक उसे पता चि िया आममा अमर है, िह मौत कोझुठिाना चाहता है। अब िह जो मौत सामने कदखाई पड़ रही है िह उससे बचना चाहता है। तो अब ककताब पढ़ने ििता है, जहां विखा हैाः न हन्यते न हन्यमाने शरीरे । िह िीता पढ़ने ििता है कक आममा अमर है, कोई मरता नहीं। इसविए नहीं कक िीता से कोई मतिब है, इसविए भी नहीं कक आममा से कोई मतिब है। मतिब एक है कक यह मौत सामने खड़ी है अब इससे कै से बचें? इसको कै से झुठिाएं? तो अपने मन में कहता है, आममा अमर है, आममा अमर है और भीतर जानता है कक मरना करीब आ रहा है। अब िह मरने कोझुठिा रहा है। हम ठीक उिटी तरकीबों से अपने कोझुठिाने की कोवशश करते हैं। कदखाई पड़ता है कक अनैवतक है, कदखाई पड़ता है पाप से भरे हैं, िेककन भीतर कहते हैं आममा शुद्ध-बुद्ध है। आममा न कोई पाप करती, न कोई बुरा करती, आममा ने कभी कोई विकार ककया ही नहीं। इसविए जो सािु-संन्यासी िोिों को समझाते हैं आममा िह्म है, परम पवित्र है, उनके आस-पास सब तरह के पापी इकट्ठे हो जाते हैं। िे कहते हैं, आप वबल्कु ि ठीक कह रहे हैं, आममा वबल्कु ि शुद्ध है। क्योंकक िे भी यह मानना चाहते हैं कक आममा वबल्कु ि शुद्ध होना चावहए। क्योंकक उनकी अशुवद्धयों का कर्र क्या होिा? 19



एक दर्े जब सािु समझाता है सब संसार माया है। तब चोर समझता है कक चोरी भी माया है। कोई हजाि नहीं है। माया में क्या हजाि है? सपने में चोरी करने में और सपने में सािु होने में कोई र्कि हो सकता है। जजंदिी सब सपना है। इसविए हम चोर होने की सुवििा पा जाते हैं। जजंदिी के सपने होने से, जजंदिी के माया होने से। हमने अजीब िोरखिंिा पैदा ककया हुआ है। हम अपने चारों तरर् एक ऐसा जाि बुन विए हैं, जो हमारे व्यविमि को वनखरने नहीं दे ता, ईमानदार नहीं होने दे ता, आनेस्ट नहीं होने दे ता। हमने सामने के सब दरिाजे बंद कर कदए हैं। और सब तरर् से हमें पीछे के दरिाजे खोिने पड़े हैं। अभी जॉन वििी ने पवश्चम में एक ििव्य कदया और उसने कहा कक पवश्चम की जो सयता है िह सेंसेट है, सेंसुअि है, पवश्चम की सयता जो है िह ऐंकद्रक है। तो जहंदुस्तान भर के सािु-संन्यावसयों का मन बड़ा प्रसन्न हुआ। एक बड़े संन्यासी मुझे वमि रहे थे, उन्होंने कहााः आपने सुना, जॉन वििी कहता है कक पवश्चम की सयता ऐंकद्रक है। तो मैंने कहा कक िह सुन कर आप बहुत खुश न हों, ऐंकद्रक होना कर्र भी एक सच्चाई है। अिर पवश्चम की सयता सेंसेट है तो हमारी सयता वहपोक्रेट है। िह उससे भी बदतर है। अिर पवश्चम की सयता ऐंकद्रक है तो हमारी सयता पाखंिी है। और पाखंिी होना ऐंकद्रक होने से बुरा है। क्योंकक इं कद्रयां तो परमाममा ने हमें दी हैं, पाखंि हमारी ईजाद है। पवश्चम की सयता एक तरह की वसनवसअररटी को उपिब्ि हो रही है, एक तरह की ईमानदारी को। चीजें जैसी हैं, उनको िैसा दे खने की एक िृवत्त पैदा हो रही है। और चीजें जैसी हैं, उनको िैसा दे ख कर बदिा जा सकता है। िेककन चीजें जैसी नहीं हैं, िैसी कल्पना कर िेने से बदिाहट बहुत मुवश्कि हो जाती है। और एक अजीब वस्थवत पैदा होती है जो पीछे के दरिाजे िािी है। मैंने सुना है कक एक निर में एक नाटक चि रहा था। नाटक की बड़ी प्रशंसा थी। उस िांि का जो बड़ा पादरी था उसे भी प्रशंसा सुनाई पड़ी। शेक्सवपयर का नाटक है। बड़ी प्रशंसा है। िेककन पादरी दे खने कै से जाए? उसके वमत्रों ने भी कहा कक बहुत सुंदर है। पादरी ने कहा, नरक जाओिे। वजतना िोिों ने कहा, बहुत अच्छा है, उतना पादरी ने कहा कक नरक में भटकोिे। नाटक में मत पड़ो, नाटक में कु छ भी नहीं है। िेककन रात उसको भी नींद न आती, उसे भी ििता कक पता नहीं नाटक में क्या हो रहा है? और िोिों को कहता है, नरक जाओिे। तब भी िोि नहीं िरते और नाटक जाते हैं और नरक की कर्कर नहीं करते। जरूर नाटक में कु छ होिा जो नरक के भय से भी ज्यादा आनंदपूणि मािूम पड़ता होिा, मन में भरता िया। आवखर उसने एक कदन मैनेजर को एक वचट्ठी विखी, आवखरी कदन था नाटक का, उसने वचट्ठी विखी कक मैं भी नाटक को दे खने आना चाहता हं। िेककन मैं चाहता हं कक नाटक दे खने िािे मुझे न दे ख सकें । पीछे का कोई दरिाजा आपके वथयेटर में है या नहीं? उस मैनेजर ने छपा हुआ उत्तर िापस भेजा। वजसमें छपा हुआ था कक आप आएं, हर िांि में जहां भी हमारा वथयेटर जाता है हमें पीछे का दरिाजा रखना ही पड़ता है, क्योंकक सज्जन सामने के दरिाजे से आने को राजी नहीं होते, सज्जन पीछे का दरिाजा मांिते हैं। उनके विए भी सुवििा बनानी पड़ती है। पीछे दरिाजा है, आप वबल्कु ि आ जाएं। यह छपा हुआ कािि था, क्योंकक हर जिह जरूरत पड़ती है, विखने की जरूरत नहीं थी। नीचे िाि स्याही से हाथ से उसने विखा था कक इतना तो हम भरोसा दे ते हैं कक कोई आपको दे ख न सके िा, िेककन यह भरोसा हम नहीं दे सकते कक परमाममा आपको दे ख सके िा या नहीं दे ख सके िा। हम सब पीछे का दरिाजा खोज विए हैं। जहां सामने के दरिाजे बंद हो जाते हैं, अिरुद्ध हो जाते हैं, िहां आदमी पीछे का दरिाजा खोजना शुरू कर दे ता है। हमने िन को िािी दी, इसविए हमसे ज्यादा कं जूस आज 20



जमीन पर कोई भी नहीं है। हमने िन को हजारों साि िािी दी, िेककन िन पर जैसी हमारी पकड़ है, ऐसी आज ककसी की भी नहीं। यह बड़ा चममकार है! यह बड़ा वमरे कि है! यह सोचने जैसा मामिा है जो कौम हजारों साि से िन को िािी दे रही है, िह कौम िन से इतने जोर से क्यों वचपटती है? वजस कौम ने सदा कहा कक िन वमट्टी है, िह कौम िन को वमट्टी की तरह छोड़ नहीं पाती। एक पैसा नहीं छोड़ पाती। एक पैसे पर हमारी पकड़ इतनी िहरी है वजसका वहसाब ििाना मुवश्कि है। तो मुझे ििता है कक हम िोखा दे रहे हैं। िन को िािी दे रहे हैं, पीछे के रास्ते से िन को पकड़ते चिे जा रहे हैं। मैं एक र्र में ठहरता था। उस र्र के ऊपर दो पवश्चमी पररिार, दो इं जीवनयर, िहां कु छ कदन के विए रुके हुए थे। वजनका मकान था उनके र्र में मैं रुकता था। िे जब भी मैं िहां जाता था, तो जरूर उनके बाबत कु छ न कु छ कहते थे कक खाने-पीने में ही ििे रहते हैं, नाचने-िाने में ही ििे रहते हैं। कु छ िमि नहीं है इनके जीिन में। रात बारह बजे तक नाचते हैं, खाते हैं, पीते हैं, बस यही जजंदिी समझ रखी है इन िोिों ने। जब भी जाता था, िे कोई जनंदा करते थे। मैंने उनसे कहा कक मािूम होता है आपके खाने-पीने की िृवत्त तृप्त नहीं हो पाई। पर उनकी समझ में नहीं पड़ा। जब भी जाता था, िे कहते थे, बस पैसा उड़ाते रहते हैं। तो मैंने कहा कक िे अपना पैसा उड़ाते हैं, आपका पैसा नहीं उड़ाते। िेककन हम इस हाित तक पैसे के पकड़ने िािे हो िए हैं कक दूसरे को पैसा उड़ाता दे ख कर भी हमको कि होता है। हमारा पैसा भी कोई नहीं उड़ा रहा है। कर्र िे चिे िए। जब मैं तीसरी बार उनके र्र मेहमान था तो मैंने दे खा कक िे ऊपर के अवतवथ चिे िए हैं। मैंने उनसे पूछा कक क्या िे िोि चिे िए? उन्होंने कहा कक हां, िे िोि चिे िए। िेककन बड़े अजीब िोि थे। जाते िि िे अपनी सब चीजें यहीं बांट िए। जो नौकरानी उनके र्र में बतिन सार् करती थी उसको सारे स्टेनिेस स्टीि के बतिन दे िए। बड़े अजीब िोि थे। स्टेनिेस स्टीि बहुत अच्छा था उनके पास, िे सारे बतिनों को दे िए हैं उन्हीं को। मैंने उनसे कहााः िोभ आपके मन में भी उन बतिनों को पाने का रहा होिा। िेककन बड़े भौवतकिादी िोि थे, बतिन कै से दे िए? उन्होंने कहााः आप कहते हैं कक बतिन, रे वियो और अपना सामान भी यहां उनके जो वमत्र थे सब बांट िए हैं, यहां से कोई सामान नहीं िे िए। मैंने कहााः भौवतकिादी िोि थे और आप अध्याममिादी िोि हैं। आपको कु छ दे िए हैं? उन्होंने कहााः नहीं, हमें क्या जरूरत है, हमारे पास सब है। तभी उनके छोटे िड़के ने कहा कक नहीं, एक चीज हमारे पास भी है। रस्सी छोड़ िए हैं, कपड़ा सुखाने के विए रस्सी थी ऊपर, िह मम्मी छोड़ िाई है। क्योंकक िह रस्सी बहुत प्िावस्टक की अच्छी बनी हुई रस्सी यहां वमि भी नहीं सकती। िह हमारे पास है। आध्यावममक आदमी रस्सी छोड़ िाया है। िह रस्सी भी उन्होंने बांिी नहीं है, क्योंकक रस्सी कीमती है। उसे उन्होंने सम्हाि कर रख विया है। यह हमारा वचत्त ऐसा विकृ त, ऐसा परिरटेि, ऐसा कु रूप क्यों हो िया? इसके होने का क्या कारण है? इसके होने के कारण हैं। िह मैं तीसरी बात मैं आपसे कहं, हमने जजंदिी के तथ्यों को स्िीकार नहीं ककया। जजंदिी में िन की जरूरत है। िन वमट्टी नहीं है। और अिर िन वमट्टी होता, तो हम वमट्टी से ही काम चिा िेते, कर्र िन की कोई जरूरत न होती।



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नहीं, हम झूठ बोि रहे हैं, िन वमट्टी नहीं है। और वजन मंकदरों में यह समझाया जाता है कक िन वमट्टी है, िे मंकदर भी िन की ही कामना ककए चिे जाते हैं। जो सािु-संन्यासी समझा रहे हैं कक िन वमट्टी है, िे भी िन की ही कामना ककए जाता है। अभी मैं एक संन्यासी के आश्रम में रुका हुआ था। िे समझा रहे हैं िोिों को कक सब असार है और िोि उनके पास पैसे िाकर रखते हैं तो िे असार होने की बात छोड़ कर पहिे पैसे पैर के नीचे सरका िेते हैं, कर्र बैठ कर शुरू कर दे ते हैं कक सब असार है। मैं बहुत हैरान हुआ कक ये असार को पैर के नीचे क्यों सरका रहे हैं? जजंदिी के सहज तथ्यों की अस्िीकृ वत आदमी को बेईमान कर दे ती है। हमारे यहां एक-एक आदमी अििअिि बेईमान नहीं है, हमारा संस्कृ वत बेईमान है। अिर एक-एक आदमी अिि-अिि बेईमान होता तो हम एक-एक आदमी को वजम्मेिार ठहराते। नहीं, हमारा समाज बेईमान है। इसविए इस समाज में जीना तक मुवश्कि है ईमानदार होकर। यानी वजस समाज में हजारों साि तक ईमान की बात की, उस समाज में ईमानदार आदमी का जीना असंभि है। यह बड़े आश्चयि की बात है। और एक बेईमान समाज में ईमानदार आदमी बड़ी मुवश्कि में पड़ जाता है। उसका जजंदा रहना असंभि हो जाता है। सब तरर् बेईमानी है। और सबसे बड़ी बेईमानी जो मैं आपसे कहना चाहं िह यह है कक हमने जजंदिी को ही झुठिा कदया है। जजंदिी की सारी सच्चाइयों को ही इनकार कर कदया है। हम ककसी जजंदिी के समय को स्िीकार नहीं करते। हम समयों की जिह वसद्धांतों को स्िीकार करते हैं। वसद्धांत, अजीब से वसद्धांत जो हमने आदमी के ऊपर वबठा कदए हैं वबना आदमी की कर्क्र ककए। हमने भौवतकिाद को स्िीकार नहीं ककया। िह हमारे अनाचार में उतर जाने का कारण बन िया। भौवतकिाद जजंदिी का आिार है, अध्यामम जीिन का वशखर है। िेककन भौवतकिाद जीिन की बुवनयाद है। और अिर कोई मकान बनाना हो, या कोई मंकदर बनाना हो और कोई कहता है कक हम वबना बुवनयाद के मंकदर बनाएंिे, और हम वसर्ि सोने का वशखर चढ़ाएंिे, पमथर की बुवनयाद न रखेंिे। तो िह पािि है, मंकदर कभी नहीं बनेिा। यह बड़े मजे की बात है, वशखर वबना बुवनयाद के नहीं हो सकता, िेककन बुवनयाद वबना वशखर के भी हो सकती है। वबना जड़ के र्ू ि नहीं हो सकता, िेककन वबना र्ू िों के भी जड़ हो सकती है। जजंदिी का जो वनम्न है िह वबना ऊंचे के हो सकता है, िेककन ऊंचा वबना नीचे के नहीं हो सकता। हम इस भूि में पड़ िए हैं। हम कहते हैं, हम वसर्ि ऊंचे को बचाएंिे। हम कहते हैं, हम वसर्ि आममा को बचाएंिे, शरीर से हमें कोई प्रयोजन नहीं। इसविए आममा तो बची ही नहीं, शरीर भी नहीं बचा है। शरीर आिार है, उसे बचाना पड़ेिा। िह बचे तो आममा के बचने की संभािना शुरू होती है। जित आिार है, िह बचे तो परमाममा की खोज भी हो सकती है। िेककन इस सारे जीिन को, जित को, पदाथि को, शरीर को, इस सबके हम दुश्मन हैं। इस दुश्मनी ने हमें मुवश्कि में िाि कदया। क्योंकक वजस शरीर में जीना है उसकी दुश्मनी अिर आप करें िे तो आप बेईमान हो जाएंिे। जीना पड़ेिा शरीर में, श्वास िेनी पड़ेिी, भोजन करना पड़ेिा, कपड़े पहनने पड़ेंिे, और चौबीस र्ंटे इन्हीं की जनंदा भी करनी पड़ेिी। जीिन की जनंदा एक तरह की ररि पैदा कर दे ती, और एक तरह का आदमी पैदा करती है जो वस्कजोिे वनक होजाता है, वजसके मन में दोहरे वहस्से हो जाते हैं, वजसके भीतर वस्प्िट हो जाते हैं, टु कड़े टू ट जाते हैं, खंि-खंि हो जाते हैं। एक वहस्सा एक तरर् जीने ििता है, दूसरा वहस्सा उसके विरोि में बोिता चिा जाता है।



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जब आप खाना खा रहे हैं तब भी आपके मन में खाने की जनंदा है, जब आप अपनी पत्नी को प्रेम कर रहे हैं तब भी आप जानते हैं कक पाप कर रहे हैं, जब आप अपने बेटे को आप वखिा रहे हैं तब भी आप जानते हैं कक यह माया-मोह है, आसवि है, बहुत बुरा है। अजीब बात है! बेटे का प्रेम भी विषाि हो जाएिा। पवत और पत्नी के बीच का संबंि भी पाय.जनस हो जाएिा। सारी जजंदिी जहरीिी हो जाएिी, क्योंकक जहां जीना है उसकी ही जनंदा है, उसका ही कं िमनेशन है। ऐसे नहीं हो सकता। अिर कोई मािी र्ू िों को िािी दे ता हो तो उसके हाथ खाद िािने में कमजोर हो जाएंिे। अिर कोई मािी र्ू िों की जनंदा करता हो तो र्ू िों को सम्हािने में उसकी वहम्मत अिूरी हो जाएिी। अिर र्ू ि में खाद दे नी है और पानी दे ना है तो र्ू ि को प्रेम ही करना पड़ेिा, अनकं िीशनि, बेशति प्रेम करना पड़ेिा। और मेरी अपनी समझ यह है कक परमाममा जित का विरोि नहीं है जैसा हमने समझा, परमाममा का अिर जित से विरोि होता जैसा महाममाओं का है, तो जित को िह कभी का वमटा सकता था, जरूरत क्या है? मेरी समझ में तो महाममा परमाममा के पक्के दुश्मन हैं। क्योंकक िे कहते हैं, जित को वमटाओ। िे कहते हैं, आिािमन से मुवि चावहए, जन्म-मरण से छु टकारा चावहए। िह परमाममा भेजे ही चिा जा रहा है, िह इन महाममाओं की सुनता नहीं, िह जित को बनाए ही चिा जा रहा है। और महाममा जित को उजाड़ने के विए ििे हुए हैं। पता नहीं शैतान इनके कदमाि में ख्याि दे ता है, या कौन इनके कदमाि में ख्याि दे ता है। नहीं, परमाममा जब इस प्रकृ वत को बनाता है, और परमाममा के वबना सहारे के तो यह जीिन नहीं रटके िा, तो इस प्रकृ वत को प्रेम करना पड़ेिा, इस शरीर को भी प्रेम करना पड़ेिा, इस जीिन को भी प्रेम करना पड़ेिा। यही प्रेम इतना िहरा हो जाए कक परमाममा तक उठ सके । यही प्रेम इतना ऊंचा उठ जाए कक जड़ों में न रह जाए, र्ू िों तक पहुंच सके । यह प्रेम इतना बड़ा हो जाए कक बुवनयाद ही नहीं, वशखर भी इससे आ सकें । िेककन िह हमसे नहीं हो सका, क्योंकक हमने बुवनयादी रूप से जीिन को दो वहस्सों में तोड़ विया। भौवतक और आध्यावममक, ऐसे दो जीिन नहीं हैं। शरीर और आममा, ऐसी दो चीजें नहीं हैं। मनुष्य का व्यविमि इकट्ठा है। और मनुष्य का जो व्यविमि है िह साइकोसोमेरटक है, िह शरीर भी है और आममा भी है। बवल्क अच्छा होिा यह कहना कक मनुष्य का व्यविमि एक्स है। वजसका एक रूप शरीर में प्रकट होता है और एक रूप आममा में प्रकट होता है। मनुष्य दोनों का जोड़ है यह कहना भी िित है। क्योंकक इसमें हम दो को मान िेते हैं। ये मनुष्य के दो अवभव्यवियां हैं, ये दो रूप हैं मनुष्य के , जो एक तरर् शरीर बनता है और एक तरर् आममा की तरर् प्रकट होता है। यह जित और परमाममा दो नहीं, यह जित और परमाममा एक है। वजस कदन हम ऐसा दे ख पाएंिे, और वजस कदन हम ऐसा दे ख कर एक स्िस्थ, बीमार संस्कृ वत नहीं, स्िस्थ, ऐसी संस्कृ वत जो जीिन को स्िीकार करती है, उसके आिार रख पाएंिे। जो भौवतकिाद को स्िीकार करती है और अध्यामम को भी। जोशरीर को स्िीकार करती है और आममा को भी। और जो िन को स्िीकार करती है और िमि को भी। जो जनंदा नहीं करती, इनकार नहीं करती, वजसकी िारा में सभी कु छ आममसात हो जाता है, ऐसी सििग्राही, टोटि एक्सेप्टवबविटी िािी संस्कृ वत को अिर हम जन्म न दे पाए तो इस पृथ्िी पर हमारे चरण बहुत कदन तक रटके नहीं रहेंिे। अभी भी रटके नहीं हैं, हजारों साि से भटक रहे हैं। हमारे पैर मजबूती से जमीन पर खड़े नहीं हैं। खड़े हम हो नहीं पा रहे हैं। विरते हैं रोज। इतने विरे हैं कक िीरे -िीरे हमने मान विया कक हमारा भाग्य है, इसविए हमने प्रयास भी



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छोड़ कदया है अब कु छ करने का। यह हमारा भाग्य है। िुिाम होते हैं तो भाग्य है, िरीब होते हैं तो भाग्य है। सारी दुवनया बदिी जा रही है, हम भाग्य को पकड़ कर बैठे हुए हैं। अभी वपछिे कदनों वबहार में अकाि पड़ा था। अंदाज था कक उस अकाि में एक करोड़ से िेकर दो करोड़ तक िोि मर सकते थे। िेककन मरे भूख में के िि चािीस िोि। क्योंकक सारी दुवनया सहायता के विए दौड़ पड़ी। अिर दुवनया न आती तो एक करोड़ आदमी मरते। हम कहते, भाग्य। चािीस मरे तो हमने यह न कहा कक एक करोड़ िोि सारी दुवनया ने बचाए। हमने दुवनया को कोई िन्यिाद भी नहीं कदया। हमने कहा, भाग्य। बच िए तो भाग्य है, मर जाते तो भाग्य है। असि में जब कोई कौम सारी तरह की वहम्मत खो दे ती है तो भाग्यिादी हो जाती है, र्ै टेविस्ट हो जाती है। आवखरी बात आपसे कह रहा हं, अतीत से मुि हों, भविष्य के वनमािण के विए अतीत से स्िणि-युि को हटाएं। स्िणि-युि आिे है, बीत नहीं िया, आएिा, आएिा नहीं िाना पड़ेिा। जजंदिी को पूरा का पूरा स्िीकार करें , अिूरा नहीं। अिूरी जजंदिी जैसी कोई चीज नहीं होती, जजंदिी है तो पूरी है, अपने सब रूपों में ग्रहण करनी पड़ेिी। ऐसा न करें कक संिीत कोस्िीकार करें और िीणा को इनकार करें । कहें कक िीणा तो भौवतक है, संिीत आध्यावममक है। तो संिीत तो हम स्िीकार करते हैं, िीणा का इनकार करते हैं। िीणा के वबना संिीत पैदा नहीं होिा। िीणा ही संिीत पैदा कर सके िी। िह जो भौवतक है अध्यामम को पैदा होने की पावसवबविटी है। िह जोशरीर है िह आममा के र्ू ि के वखिने की भूवम है। िह जो प्रकृ वत है िह परमाममा के प्रकट होने का अिसर है। समग्र जीिन को स्िीकार करें और भाग्य शब्द को भारत के शब्दकोश से अिि करने की कोवशश करें । उसने हमें िु बाया है, उसने हमें मारा है, उसने हमें नि ककया है। भाग्य नहीं, हम, और हम का मतिब हमारे भीतर वछपा परमाममा। कोई वनणाियक नहीं है हमसे बाहर, हम ही वनणाियक हैं। हम जो करते हैं िही हमारा वनणिय हमारा भाग्य बन जाता है। िेककन हमारा पढ़ा-विखा आदमी भी, इं जीवनयर भी, िाक्टर भी, सड़क के ककनारे बैठे चार आने की र्ीस में हाथ दे खने िािे आदमी को हाथ कदखा रहा है। पूछ रहा है भविष्य क्या है? भविष्य पूछना नहीं पड़ता कक क्या है भविष्य बनाना पड़ता है। यह कौम सदा से पूछ रही है भविष्य क्या है? जैसे भविष्य कोई रे िीमेि चीज है, वजसको हम पा िेंिे। वमि जाएिा, बस आ जाएिा, भविष्य कु छ रे िीमेि नहीं है, भविष्य वनमािण करना होता है। अमरीका आज तीन सौ िषों की कौम है के िि। तीन सौ िषि ककसी कौम के इवतहास में बहुत ज्यादा नहीं होते। िेककन तीन सौ िषि में अमरीका ने सारी दुवनया की सिािविक संपवत्त और समृवद्ध पैदा की है। और हम कोई दस हजार िषि पुरानी कौम हैं और भूखे मर रहे हैं। सोचने जैसा है कक बात क्या है? हमारे पास जमीन अमरीका से बुरी नहीं। और अमेररका में भी तीन सौ िषि पहिे जो िोि रह रहे थे, अमरीकी, असिी अमरीकी, रे ि इं वियन िे तो िरीब ही थे, िे आज भी िरीब हैं। उसी जमीन पर िरीब थे, उसी जमीन पर दूसरे िोिों ने आकर इतनी संपवत्त पैदा कर िी। काउं ट कै सरजिंि जहंदुस्तान आया। एक जमिन विचारक था। िौट कर उसने एक ककताब विखी और उस ककताब में उसने एक िाक्य विखा। िह मैं पढ़ता था तो मैं बहुत हैरान हुआ। उसने विखााः इं विया इ.ज ए ररच िैंि, िेअर पुअर वपपुि विि। जहंदुस्तान एक अमीर दे श है, जहां िरीब िोि रहते हैं। मैं बहुत हैरान हुआ। मैंने कहा, अिर दे श अमीर है तो िरीब िोि कै से रहते होंिे? और अिर िरीब िोि रहते हैं तो अमीर कहने का 24



क्या मतिब है? क्या मजाक है? िेककन बात उसने ठीक ही कही है। दे श तो अमीर है िेककन रहने िािे भाग्यिादी हैं। और भाग्यिादी कभी अमीर नहीं हो सकते। दे श के पास तो अनंत संभािना है। उसके साथ नकदयां हैं, पहाड़ हैं, आकाश है, जमीन है, समुद्र है, सब है। इतनी विविि रूप से प्रकृ वत जमीन में ककसी दे श को उपिब्ि नहीं है। इतने विस्तार में इतने िहरे स्रोत िािा संभािना ककसी के पास नहीं। िेककन इतना िरीब आदमी जैसा हमारे पास है ऐसा भी ककसी को उपिब्ि नहीं। भििान ने खूब मजाक ककया है। इतनी समृद्ध संभािनाएं दी थीं, तो इतना भाग्यिादी आदमी क्यों कदया? िेककन िह भाग्यिादी आदमी अनंत संभािनाओं को ऐसा ही ररि छोड़ दे ता है और भूखा मर रहा है। अभी र्ोषणाएं कर रहे हैं समझदार िोि कक उन्नीस सौ अठहत्तर तक जहंदुस्तान में एक बड़ा अकाि पड़ सकता है। अिर सारी दुवनया ने िेहं नहीं कदया तो उन्नीस सौ अठहत्तर में जहंदुस्तान में इतना बड़ा अकाि पड़ सकता है वजतना मनुष्य के इवतहास में कभी भी कहीं नहीं पड़ा। उस अकाि में जो िोि सोचते हैं, समझते हैं, उनका अंदाज है कक बीस करोड़ िोि भी मर सकते हैं। कदल्िी में मैं एक बड़े नेता से कह रहा था, उन्होंने कहााः उन्नीस सौ अठहत्तर बहुत दूर है। अभी तो उन्नीस सौ बहत्तर पड़ा है। अभी तो इिेक्शन उन्नीस सौ बहत्तर का हो जाए कर्र सोचेंिे। उन्नीस सौ अठहत्तर बहुत दूर है, और कर्र उन्होंने कहााः जो भाग्य में होना होिा। भाग्य को भारत के शब्दकोश से उखाड़ कर र्ें क दे ना है। िह भारत के शब्दकोश में नहीं रह जाना चावहए। तो हम एक नया समाज, एक नई दुवनया, और एक नया आदमी, जो संपन्न हो, सुखी हो, शांत हो और प्रभु को प्रेम भी दे सके , पैदा कर सकते हैं। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं, ये पुराने चचि को विराने के विए कहीं। और नये चचि को बनाना हो तो पहिे पुराने को विरा दे ना पड़े। और पुराना विर जाए तो कर्र नया बनाना ही पड़ता है। और पुराना न विरे तो हम सोचते हैं एक रात और िुजार दो, एक सांझ और िुजार दो, थोड़ा कहीं टीम-टाम कर िो, कोई दीिाि टू ट िई है तो सुिार िो, कोई दरिाजा खराब हो िया है तो रं ि पोत िो, कु छ थोड़ा सा बदि िो और इसी में जीए चिे जाओ। यह पूरा का पूरा समाज का हमारा ढांचा सड़ िया है, पूरा ढांचा सड़ िया है। और यह आज नहीं सड़ िया, यह बहुत कदनों से सड़ा हुआ है। यह हमें सड़ा हुआ ही वमिता रहा है। इसविए चूंकक हमें सड़ा हुआ ही वमिता है इसविए ख्याि भी नहीं आता कक यह सड़ िया। अिर यह हमको अच्छा वमिे और कर्र सड़ जाए तो हमें ख्याि भी आए। िह तो हम बूढ़े अिर पैदा हों तो हमको कभी पता भी न चिे कक हम बूढ़े कब हो िए। पता कै से चिे? िह तो हम बच्चे पैदा होते हैं इसविए पता चिता है कक बुढ़ापा आ िया है। यह समाज पांच हजार साि से बूढ़ा है। इसविए अब हमें यह भी पता चिना बंद हो िया है कक हम बूढ़े हो िए, कक हम मर िए, कक हम सड़ िए हैं। यह बोि आ सके इसविए सोचने के विए कु छ सूत्र मैंने आपसे कहे। जरूरी नहीं कक मेरी बातें मान िें। ककसी की बातें माननी जरूरी नहीं हैं। िह भी भारत की एक बीमारी है कक िह ककसी की भी बातें मान िेता है। नहीं, मेरी बात मानने की जरूरत नहीं। सोचें, मैंने कहा उस पर संदेह करें , विचार करें । हो सकता है कक सब िित हो, हो सकता है कु छ ठीक हो। अिर आपके सोचने से कु छ उसमें ठीक आपको कदखाई पड़े तो कर्र िह मेरा नहीं रह जाता, िह आपका अपना समय हो जाता है। और िे ही समय काम में आते हैं जो हमारे अपने विचार का र्ि हैं। और कोई समय काम में नहीं आते हैं।



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उिार समय असमय से भी बदतर होते हैं। और हमारे पास वसिाय उिार समयों के और कु छ भी नहीं हैं। बारोि, हजारों साि से उिार है। हमें अपने समय खोजने पड़ेंिे। हर युि को, हर समाज को, हर व्यवि को, अपना समय खोजना पड़ता है। समय की खोज के साथ ही जीिन की ऊजाि जिती है और सृजन की संभािना खुिती है। मेरी इन बातों को इतने शांवत और प्रेम से सुना, उससे बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य तीसरा प्रिचन



भारत की समस्याएं--कारण और वनदान मेरे वप्रय आममन्! यह दे श शायद अपने इवतहास के सबसे ज्यादा संकटपूणि समय से िुजर रहा है। संकट तो आदमी पर हमेशा रहे हैं। ऐसा तो कोई भी क्षण नहीं है जो क्राइवसस का, संकट का क्षण न हो। िेककन जैसा संकट आज है, ठीक िैसा संकट मनुष्य के इवतहास में कभी भी नहीं था। इस संकट की कु छ नई खूवबयां हैं, पहिे हम उन्हें समझ िें तो आसानी होिी। मनुष्य पर अतीत में वजतने संकट थे, िे उसके अज्ञान के कारण थे। जजंदिी में बहुत कु छ था जो हमें पता नहीं था और हम परे शानी में थे। िह परे शानी एक तरह की मजबूरी थी, वििशता थी। नये संकट की खूबी यह है कक यह अज्ञान के कारण पैदा नहीं हुआ है, ज्यादा ज्ञान के कारण पैदा हुआ है। जैसे दुवनया में नािेज एक्सप्िोजन हुआ है, ज्ञान का विस्र्ोट हुआ है। हमेशा आदमी आिे था और ज्ञान बहुत पीछे सरकता था, छाया की तरह। अब ज्ञान आिे हो िया है और आदमी को पीछे सरकना पड़ रहा है, छाया की तरह। अज्ञान से वजतनी तकिीर्ें हुई थीं, उससे बहुत ज्यादा तकिीर्ें ज्ञान से हो िई हैं। असि में अज्ञान से जो तकिीर् है, िह मजबूरी की तकिीर् है। क्योंकक अज्ञान एक कमजोरी है। और ज्ञान से जो तकिीर् होती है िह ज्यादा ताकत की तकिीर् है। जैसे बच्चे के हाथ में तििार दे दी जाए और बच्चा अपने को नुकसान पहुंचा िे। आदमी के पास वजतना ज्ञान आज है, िह ज्ञान ही उसे नुकसान पहुंचाने िािा वसद्ध हो रहा है। दो कारणों से। एक तो आदमी उस ज्ञान के साथ आिे नहीं बढ़ पा रहा है। दूसरा, आदमी के पुराने जजंदिी के अनुभि और आदतें उस नये ज्ञान के इं वप्िमेंटेशन में, उसके प्रयोि में बािा बन रही हैं। दूसरा, इस संकट की एक विशेष खूबी है और िह यह है कक पुराने सारे संकट ऐसे संकट थे कक हम अपने अतीत के अनुभि से उन्हें हि करने के विए कोई रास्ता खोज सकते थे। हमारे पास एक्सपीररएंसेज उनके विए रास्ता बन जाते थे। नये संकट की दूसरी खूबी यह है कक पुराना कोई भी अनुभि काम का नहीं है। क्योंकक जो संकट पैदा हुआ है िह नये ज्ञान से पैदा हुआ है। और पुराने मनुष्य-जावत के अनुभि में उसका मुकाबिा करने के विए कोई उत्तर नहीं है। और हमारी सदा की आदत यह रही है कक जब भी हम नई पररवस्थवत से जूझते हैं तो पुराने अनुभि के आिार पर जूझते हैं। यह हमेशा ठीक था, पुराना अनुभि सदा काम कदया था, अब काम नहीं दे िा। क्योंकक जो ज्ञान हमारे सामने है, वजससे संकट उमपन्न हुआ है िह इतना नया है कक उसका कोई वमसाि, उसका कोई मुकाबिा मनुष्य के अतीत में नहीं था। िेककन मनुष्य के सोचने का ढंि हमेशा पास्ट ओररएनटेि होता है, िह पीछे से बंिा होता है। जैसे उदाहरण के विए दो-तीन बातें मैं कहं, तो आपके ख्याि में आ सकें । आज भी हम स्कू ि में सात साि के बच्चे को भरती करते हैं। कोई भी यह नहीं बता सकता कक सात साि के बच्चे को भरती करने की क्या जरूरत है? सात साि कै से तय ककया िया है स्कू ि में बच्चे को भरती करने के विए? कौन सा िैज्ञावनक कारण है? िेककन सारी दुवनया सात साि के बच्चे को स्कू ि में भरती करे जाती है।



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हमें यह ख्याि में ही नहीं है कक जब हमने आज से कोई चार सौ या पांच सौ साि पहिे सात साि के बच्चे को स्कू ि में भरती ककया था, तो वजन कारणों से ककया था िे कारण अब कहीं भी नहीं रह िए हैं। असि में स्कू ि इतने दूर थे कक सात साि से छोटा कम का बच्चा उतने दूर के स्कू ि में नहीं भेजा जा सकता था। उसका बच्चे से कोई भी संबंि नहीं है सात साि की उम्र का। िेककन अब यह स्कू ि वबल्कु ि पड़ोस में तो भी सात साि के बच्चे को हम स्कू ि भेजे चिे जाते हैं। आज कोई भी जरूरत नहीं है कक हम सात साि तक बच्चे को रोकें स्कू ि भेजने से। िेककन पुरानी आदत काम ककए चिी जाती है। जब कक समस्त नई खोजें यह कहती हैं कक बच्चा अपनी चार साि की उम्र में वजतना सीख िेता है, िह पूरी जजंदिी में वजतना सीखेिा उसका आिा है। चार साि की उम्र में बच्चा अपनी जजंदिी का पचास प्रवतशत, कर्फ्टी परसेंट ज्ञान पा िेता है। कर्र बाकी अिर िह अस्सी साि जीएिा तो बाकी पचास प्रवतशत अस्सी साि में सीखेिा। जजंदिी के पहिे चार साि सबसे ज्यादा महमिपूणि हैं। िेककन िे वशक्षा के बाहर हैं। क्योंकक हम सात साि के बच्चे को स्कू ि भेजने की पुरानी आदत से मजबूर हैं। दूसरा आपको उदाहरण दे ना चाहंिा कक आपने शायद ही कभी सोचा होिा कक हमने सारी दुवनया में, िवणत के विए दस के अंक क्यों तय ककए हैं? दस तक के कर्िर क्यों तय ककए हैं? कोई िवणतज्ञ उत्तर नहीं दे सकता कक उसका कारण क्या है। पांच से भी काम चि सकता है, छह से भी काम चि सकता है। हमने दस ही क्यों तय ककए हैं? िह दस तय करना हो िया कोई िाखों साि पहिे, क्योंकक आदमी ने सबसे पहिे विनती अंिुवियों से शुरू की, और सारी दुवनया में आदवमयों के पास दस अंिुवियां थीं, इसविए दस पर विनती ठहर िई। कर्र सारी संख्या हमने दस के ऊपर ही र्ै िा िी। िीबनीज नाम के एक बड़े िैज्ञावनक ने तीन के आंकड़े से पूरा काम चिा विया। सारे िवणत हि कर विए। िेककन कोई राजी ही नहीं। हम दस से ही वहसाब चिाए चिे जाएंिे। जब कक वजतने कम आंकड़े हों उतना िवणत आसान और सरि हो सकता है। िेककन िह दस अंिुवियों ने हमें उिझा कदया है। अब दस अंिुवियों से कोई संबंि नहीं रहा है। िेककन दस का आंकड़ा तय हो िया, िह हमको पकड़े हुए है। एक तीसरा आपको उदाहरण दूं ताकक आपके ख्याि में आ सके । हमने कपास से कपड़े बनाए, कोई आज से छह हजार साि पहिे, इवजप्त में। कपास को तो िािा बनाना पड़ता है पहिे, कर्र कपड़ा बुनना पड़ता है। अब हमने एक तरह के जसंथेरटक मैटीररयि विकवसत कर विए हैं वजनके िािे बनाने की कोई भी जरूरत नहीं है। िेककन हम टेरीिीन हो कक नाइिोन हो, उन सबको भी पहिे िािा बनाते हैं, कर्र िािे को बुनते हैं। यह भी कोई पाििपन की बात है! अब नई जो िस्तु सामग्री है उससे सीिा ही कपड़ा बनाया जा सकता है। उसको अिि िािे बना कर कर्र कपड़ा बनाने की कोई जरूरत नहीं है। पुरानी दुवनया में आदमी को अपने कपड़े काट कर और दजी से वसििाना पड़ते थे। अब हम पूरी की पूरी कमीज ढाि सकते हैं, अब उसको दजी से कटिा कर वसििाने की कोई भी जरूरत नहीं है। िेककन छह हजार साि पुरानी आदत कदमाि में बैठी है। तो पहिे हम िािे बनाएंिे, कर्र िािों को बुनेंि,े कर्र उनको काटेंिे, कर्र दजी उनको वसएिा। अब यह सब वनपट नासमझी की बात हो िई है। िेककन पुरानी आदत हमें पकड़े हुए है। अब तो कमीज और पैंट कोढािा जा सकता है। यह बड़े मजे की बात है कक आदमी इतना विकवसत हो िया है, कर्र भी पवक्षयों के मुकाबिे हमारे पास कपड़े नहीं हैं। असि में, आपने कभी ख्याि ककया, एक पक्षी, िषाि हो जरा से पर र्ड़र्ड़ाते और पानी अिि हो िया। आपको अभी भी 28



चौबीस र्ंटे कपड़ा सुखाने में खचि करने पड़ रहे हैं। अब कोई जरूरत नहीं है। अब हम ऐसे कपड़े विकवसत कर सकते हैं वजनको आप पानी विरे तो वसर्ि वछड़क दें और पानी अिि हो जाए। िेककन पुरानी आदत सूती कपड़े की हमारे कदमाि को परे शान ककए हुए है। अब सौ-सौ पचास-पचास जोड़ी कपड़े र्र में रखने की कोई जरूरत नहीं रह िई है। िेककन कर्र भी एक बड़ा सूटके स िेकर हमको सर्र करनी पड़ती है। हमारी पुरानी आदतें पीछा नहीं छोड़तीं। नया ज्ञान आ जाता है तब भी हम पुरानी आदतों से ही जीए चिे जाते हैं। नये संकट की सबसे बड़ी जो खूबी है िह यह है कक नये ज्ञान का संकट है और पुराना आदमी इसके साथ तािमेि नहीं वबठा पा रहा। आदमी पुराना पड़ िया है और ज्ञान बहुत नया है। यह ज्ञान इतना नया है कक इसे समझ िेना थोड़ा जरूरी है। जीसस के मरने के बाद साढ़े अठारह सौ िषों में दुवनया में वजतना ज्ञान पैदा हुआ था, उतना ज्ञान वपछिे िेढ़ सौ िषों में पैदा हुआ है। और वजतना वपछिे िेढ़ सौ िषों में ज्ञान पैदा हुआ है, उतना ज्ञान वपछिे पंद्रह िषों में पैदा हुआ है। और वजतना ज्ञान वपछिे पंद्रह िषों में पैदा हुआ है, उतना वपछिे पांच िषों में पैदा हुआ है। अब दुवनया जब पहिे साढ़े अठारह सौ िषि में वजतना ज्ञान पैदा करती थी, उतना पांच िषि में पैदा कर रही है। यह भी ज्यादा कदन नहीं चिेिा, आने िािे कदनों में ढाई िषि में उतना ज्ञान पैदा हो जाएिा। असि में दुवनया को साढ़े अठारह सौ िषि में वजतना ज्ञान वमिता था, अिर पांच िषि में वमि जाएिा तो नािेज एक्सप्िोजन हो जाएिा। ज्ञान बहुत आिे वनकि जाएिा, आदमी बहुत पीछे छू ट जाएिा। अठारह सौ साि में हम एिजेस्ट हो जाते थे उससे। अनेक पीकढ़यां बदि जाती थीं तब ज्ञान बदिता था। सच्चाई तो यह है कक एक आदमी की जजंदिी में करीब-करीब दुवनया में कु छ भी नहीं बदिता था। जैसी दुवनया थी िैसी होती थी। जैसा आदमी जन्म के िि दुवनया को पाता था, करीब-करीब िैसी की िैसी मरते िि दुवनया को छोड़ता था। इसविए उसके विए एिजेस्टमेंट का सिाि नहीं था, िह एिजेस्टेि ही पैदा होता था और मरता था। अब एक बार आदमी की जजंदिी में पच्चीस बार सब बदि जाता है। असि में हमें पुराना ख्याि छोड़ दे ना चावहए एक जन्म का। अब एक आदमी जजंदिी में पच्चीस बार जन्म िे रहा है। क्योंकक उसके आस-पास की दुवनया हर पांच-दस साि में बदि जाती है। उसको कर्र से एिजेस्ट होना पड़ता है। इसविए जो कौमें नये एिजस्टमेंट नहीं खोज सकती हैं, िे कौमें बहुत मुसीबत में पड़ जाती हैं। भारत के अविकतम सिाि, भारत की अविकतम समस्याएं भारत की पुरानी आदत की समस्याएं हैं। हम पुरानी आदत से मजबूर हैं। हम जजंदिी कोकर्र मानने की आदत विए बैठे हैं। जब कक जजंदिी अब तािाब नहीं रह िई, नदी हो िई है। िह रोज बदिी जा रही है। तािाब को अपने तट का पररचय होता है, सदा एक ही तट होता है। िह उसे जानता है भिीभांवत। िे ही दरख्त होते हैं, िे ही पक्षी होते हैं, िे ही िोि स्नान करने आते हैं। नदी रोज तट बदि िेती है, रोज िृक्ष बदि जाते हैं, रोज पक्षी बदि जाते हैं, रोज स्नान करने िािे बदि जाते हैं। नदी को रोज नई दुवनया के साथ राजी होना पड़ता है। जहंदुस्तान अब तक एक तािाब था। िह पहिी दर्ा एक नदी बना है। उसे बहुत मुसीबत हो रही है। और जब जजंदिी में एक बार नहीं पच्चीस बार सारा ज्ञान बदि जाता हो तो हम बहुत मुवश्कि में पड़ जाते हैं। िह मुवश्कि कई तरह की है। पहिी मुवश्कि तो यह है कक पुरानी दुवनया में वपता हमेशा बेटे से ज्यादा जानता था। नई दुवनया में जरूरी नहीं रह िया। िेककन बाप की पुरानी अकड़ नहीं जाती। पुरानी दुवनया में बाप अवनिायि रूप से ज्यादा जानता था। इसमें कोई शक की बात ही नहीं थी कभी, इसमें बेटा सिाि ही नहीं उठा सकता



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था। क्योंकक बाप ज्यादा जीआ था, इसविए जो वथर जजंदिी थी उससे िह ज्यादा पररवचत हो िया था। बेटा कम जीआ था, इसविए िह कम पररवचत था। असि में पुराना ज्ञान अनुभि से ही आता था, और कोई रास्ता ही नहीं था। बाप अनुभिी था, बेटा िैरअनुभिी था। िुरु अनुभिी था, वशष्य िैर-अनुभिी था। इसविए वशष्य अिर िुरु के चरणों में वसर रखता था तो इसमें कोई आश्चयि न था। आज वशष्य को िुरु के चरणों में वसर रखिाना मुवश्कि है। क्योंकक आमतौर से आज िुरु और वशष्य के बीच एक पीररयि से ज्यादा का र्ासिा नहीं होता ज्ञान का। िह एक र्ंटे पहिे जो तैयारी करके वशक्षक आया होता है उतना ही र्ासिा होता है। अब इतने से र्ासिे के विए पैर नहीं छु आ जा सकता। और अिर विद्याथी थोड़ा बुवद्धमान हो तो वशक्षक से ज्यादा जान सकता है। इसमें कोई करठनाई नहीं रह िई। िेककन पुरानी दुवनया में विद्याथी कभी वशक्षक से ज्यादा नहीं जान सकता था। अिर बेटा थोड़ा होवशयार हो तो बाप से ज्यादा जान ही िेिा। असि में वपता तीस साि पहिे युवनिर्सिटी में पढ़ा था, बेटा तीस साि बाद पढ़ेिा। तीस साि में दुवनया हजारों साि में वजतना बदिती है उतना ज्ञान बदि जाएिा। जब बेटा र्र िौटेिा तो बेटा ज्यादा जान कर िौटेिा बाप से। िेककन बाप अपनी पुरानी अकड़ को कायम रखना चाहे तो नुकसानदायक है। सच बात यह है कक वस्थवत बदि िई है। जब पहिे बेटा सदा बाप से पूछता था। अब ऐसा नहीं है। अब बाप को अक्सर बेटे से पूछने के विए तैयार होना पड़ेिा। और अिर हम इसके विए राजी न होंिे तो हम बहुत बेचैन हो जाएंिे, बहुत परे शान हो जाएंिे। जब ज्ञान इतने जोर से बदिता है तो पुराने वथर संबंि बदि जाते हैं। िह जो स्टेरटक ररिेशनवशप होती है िह बदि जाती है। इस समय भारत के सामने जो समस्याओं की जरटिता है उसमें एक कारण यह भी है कक वपता सोचता है कक िह ज्यादा जानता है, िुरु सोचता है कक िह ज्यादा जानता है, क्योंकक हमारी उम्र ज्यादा है। असि में उम्र पहिे ज्यादा होती थी तो ज्यादा ज्ञान होता था। अब यह सच नहीं रहा है। अब उम्र के ज्यादा होने से ज्ञान के ज्यादा होने का कोई भी संबंि नहीं रह िया। क्योंकक आप तीस साि पहिे पढ़े थे, तीस साि में इतनी र्टनाएं र्ट िई हैं, चीजें इतनी बदि िई हैं कक आप करीब-करीब आउट ऑर् िेट होंिे। आपका जो ज्ञान है िह करीबकरीब िित हो चुका होिा। उस ज्ञान को थोपने का आग्रह बेटों में बिाित पैदा करे िा। जहंदुस्तान में बेटे बिाित कर रहे हैं। उस बिाित का आिा वजम्मा जहंदुस्तान के बाप पर है, आिा वजम्मा जहंदुस्तान के वशक्षक पर है। क्योंकक हम बेटों पर पुराने ढंि से चीजों को थोप रहे हैं। नहीं, बेटे और बाप के बीच का र्ासिा बहुत कम हो िया है। िह दो पीकढ़यों का र्ासिा नहीं रहा है अब, िह ज्यादा से ज्यादा बड़े भाई और छोटे भाई का र्ासिा हो िया है। और उस र्ासिे में भी छोटे भाई के जानने की संभािनाएं बड़े भाई से ज्यादा हो िई हैं। वशक्षक और विद्याथी के बीच बाप-बेटे का नाता था, िह बदि िया, अब वशक्षक और विद्याथी के बीच बाप-बेटे का नाता नहीं; क्योंकक बाप-बेटे के बीच भी बाप-बेटे का नाता नहीं रह िया है। वशक्षक और विद्याथी के बीच अब बड़े और छोटे भाई का संबंि रह िया है। जो दो कदम आिे है, और िह जो दो कदम आिे है उसे दो कदम आिे रहने के विए वनरं तर श्रम करना पड़ेिा। वसर्ि उम्र से आिे नहीं रह सकता। और जरा भी वपछड़ िया तो जो दो कदम पीछे है िह आिे हो जाएिा। इसविए र्ासिे विर िए हैं। िेककन आदतें विरने में िि िेती हैं। ज्ञान बढ़ जाता है, आदमी बदिने में समय िेता है। आदमी की आदतें बड़ी मुवश्कि से बदिती हैं। उन आदतों की न बदिाहट हमारे विए बहुत तरह की समस्याएं पैदा करती हैं। अब जैसे जहंदुस्तान के सामने एक



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समस्या बड़ी से बड़ी जो है िह यह है कक जहंदुस्तान की पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच संबंि कै से वनर्मित हों? संबंि टू ट िए हैं। मैं हजारों र्रों में ठहरता हं, मैं ककसी बाप और बेटे को बोिचाि की वस्थवत में नहीं दे खता, कोई कम्युवनके शन नहीं है। बाप और बेटे बैठ कर बातचीत करते हों, एक-दूसरे की समस्याएं समझते हों, ऐसी बात नहीं है। हां, कभी-कभी बात होती है, जब बेटे को बाप से कु छ पैसे हवथयाने होते हैं या बाप को बेटे को कु छ उपदे श दे ना होता है, तब कभी-कभी कु छ बातचीत होती है। िेककन िह बातचीत एक तरर्ा होती है, िन िे ट्रैकर्क होता है। जब बाप बोि रहा होता है तब बेटा बचने की कोवशश में होता है कक कब वनकि भािे और जब बेटा बोि रहा होता है तब बाप बचने की कोवशश में होता है कक कब वनकि भािे। उसमें कम्युवनके शन नहीं है। जहंदुस्तान की दो पीकढ़यां इस तरह से टू ट कर खड़ी हो िई हैं कक उनके बीच एक िैप, एक एवबस हो िई है। जहंदुस्तान की अविकतम समस्याओं के विए यह िैप, यह अंतराि, यह खाई वजम्मेिार हो रही है। और यह सब बात इतनी अजीब होती जा रही है कक करीब-करीब बेटे बाप की भाषा नहीं समझ पा रहे हैं, बाप बेटे की भाषा नहीं समझ पा रहे हैं। यह नासमझी मुल्क को बहुत िहरे िड्ढे में विरा दे िी। यह इसविए िड्ढे में विरा दे िी कक बेटों के पास ताकत बहुत है, बेटों के पास नये ज्ञान का अंबार भी है। िेककन बेटों के पास वि.जिम जैसी चीज आज भी नहीं है और कभी भी नहीं होिी। वि.जिम और नािेज में थोड़ा सा र्कि है। नािेज तो आज बेटे के पास बाप से ज्यादा है, िेककन वि.जिम आज भी बेटे के पास बाप से ज्यादा नहीं है। वि.जिम सदा ही अनुभि से आती है। ज्ञान वशक्षण से भी आ जाता है। वि.जिम तो जीिन को जीने से आती है। ज्ञान तो ककताब से भी आ जाता है, इनर्ामेशन से भी आ जाता है, ज्ञान तो स्कू ि की परीक्षा से भी आ जाता है। पुरानी दुवनया में ज्ञान और प्रज्ञा, नािेज और वि.जिम दोनों ही अनुभि से आते थे। नई दुवनया में ज्ञान वशक्षा से आता है और वि.जिम, प्रज्ञा अनुभि से आती है। बाप के पास प्रज्ञा तो है, वि.जिम तो है, नािेज में िह बेटे से वपछड़ िया है। बेटे के पास नािेज है और ताकत है। और इन दोनों के बीच कोई संबंि नहीं रह िया है। हाित करीब-करीब ऐसी है जैसे आपने एक कहानी सुनी होिी कक जंिि में आि िि िई और एक अंिा और िंिड़ा उस जंिि में र्ं स िए हैं। अंिा भािता है, भाि सकता है, उसके पास ताकतिर पैर हैं, िेककन भािने से भरोसा नहीं है कक जंिि के बाहर वनकि जाएिा। िर यही है कक जोर से भािेिा तो और जल्दी आि में विर जाएिा। चारों तरर् आि बढ़ती जा रही है। िंिड़ा दे ख सकता है, उसके पास आंखें हैं, उसे कदखाई पड़ रहा है कक कहां से वनकि सकता है, िेककन उसके पास पैर नहीं हैं कक दौड़ सके । उस अंिे और िंिड़े ने वजतनी बुवद्धमत्ता कदखाई, अिर जहंदुस्तान के बाप और बेटों ने भी उतनी बुवद्धमत्ता कदखाई तो हम इस दे श को बचा िेंिे, अन्यथा यह िू ब जाएिा। उस जंिि में ििी हुई आि के बीच अंिे और िंिड़े ने एक समझौता कर विया। एक बड़ा कीमती समझौता कर विया। िह समझौता यह था कक अंिा चिे और िंिड़ा चिाए। िह समझौता यह था कक िंिड़ा अंिे के कं िों पर सिार हो जाए। तब िे दो आदमी एक आदमी की तरह काम करने ििें। वजसके पास पैर हैं िह पैर दे दे और वजसके पास आंख हैं िह आंख दे दे । करीब-करीब आज जहंदुस्तान ऐसी हाित में है। नई पीढ़ी के पास पैर हैं, ताकत है, ज्ञान से वमिी हुई नई ताकत है, क्योंकक आज तो ज्ञान ही बड़ी से बड़ी ताकत है। बेकन ने कभी कहा था कक नािेज इ.ज पािर। उस कदन यह बात सच न थी, आज यह बात सच हो िई है। आज तििार उतनी बड़ी ताकत नहीं है और न मसल्स की ताकत उतनी बड़ी है। और ये सब वपछड़ी हुई ताकतें हैं वजनका कोई अथि नहीं रह िया। आज ज्ञान सबसे बड़ी ताकत है। तो बेटों के पास ज्ञान है, ताकत है, 31



िेककन बेटों के पास आंख नहीं हो सकती। आंख आज भी अनुभि से वमिती है। आंख आज भी जीिन को िुजरने से पता चिती है। िह जो वि.जिम की आंख है िह आज भी बूढ़े के पास है, िह आज भी बाप के पास है, िह आज भी वशक्षक के पास है। िेककन इन दोनों के बीच तािमेि, हामिनी टू ट िई है। अिर भारत की दोनों पीकढ़यों ने समझौता नहीं ककया और अिर दोनों के बीच कोई संयोि, कोई संिाद, कोई िायिॉि नहीं संभि नहीं हो सका, तो भारत इतने बड़े खतरे में पड़ जाएिा वजतने बड़े खतरे में िह कभी भी नहीं पड़ा था। हािांकक बहुत खतरे भारत ने दे खे हैं। बहुत तरह की िुिावमयां, बहुत तरह की िरीवबयां, बहुत तरह की परे शावनयां। िेककन जो भविष्य हमारे सामने आएिा िह सबसे खतरनाक होिा। क्योंकक उसमें सबसे बड़ी जो विर्टन, जो विसइं रटग्रेशन मुल्क में पड़ रहा है, िह यह है कक वजनके पास आंख हैं िे अिि टू ट िए हैं और वजनके पास ताकत है िे अिि टू ट िए हैं। तो पहिी समस्या तो मुझे, इस समस्या से बहुत सी समस्याएं पैदा हो रही हैं। चाहे उस समस्या का नाम नक्सिाइट हो, चाहे उस समस्या का कोई और नाम हो, यह बाप और बेटे के बीच पैदा हुई खाई का पररणाम है। चाहे स्कू ि-कािेजों में पमथर र्ें के जा रहे हों और चाहे स्कू ि-कािेजों में बसें जिाई जा रही हों, यह समस्या कोई भी हो, िेककन इस समस्या की बहुत बुवनयाद में एक िायिाि खो िया है। बाप और बेटे के बीच कोई बातचीत, कोई तािमेि नहीं रह िया। बेटे कु छ और भाषाएं बोि रहे हैं, बाप कु छ और भाषाएं बोि रहे हैं और दोनों एक-दूसरे को सुनने में असमथि हो िए हैं। जुि ं ने एक संस्मरण विखा है। उसने विखा है कक मेरे पाििखाने में एक बार दो प्रोर्े सर पािि होकर आ िए। ऐसे भी प्रोर्े सर पाििखानों में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। कई बार तो ऐसा ििता है कक जो प्रोर्े सर एकाि दर्े पािि न हो िह ठीक अथों में प्रोर्े सर नहीं है। िे दो प्रोर्े सर जुि ं के पाििखाने में िए हैं। जुि ं उनका अध्ययन करता है। क्योंकक िे दोनों बड़े बुवद्धमान िोि हैं। कभी-कभी बुवद्ध की अवत भी पाििपन बन जाती है। िे बहुत ज्ञानी हैं। िेककन कभी-कभी बहुत ज्ञान व्यविमि को तोड़ जाता है। जैसे ज्यादा भोजन न पच पाए तो नुकसान हो जाता है, िैसे ज्यादा ज्ञान भी न पच पाए तो नुकसान हो जाता है। और करीब-करीब हमारी सदी ज्यादा ज्ञान के अपच से पीवड़त हैं। ज्ञान रोज चिा आता है और पचाने का, खून बनाने का, हड्डी-मांस बनाने का मौका ही नहीं वमिता। जब तक पुराना ज्ञान हड्डी-मांस बने तब तक नया ज्ञान भीतर प्रिेश कर जाता है। और इतने जोर से हो रही यह बौछार कक करठनाई हो िई है। िह दोनों प्रोर्े सर का जुि ं अध्ययन करता रहा। िह वखड़की में छु प कर उनकी बातें सुनता था। िह बड़ा हैरान हुआ। हैरानी दो तरह की थी। एक तो हैरानी यह थी कक िे दोनों जो बातें करते थे, िे अमयंत बुवद्धमत्तापूणि थीं, उनकी बातें सुन कर कोई भी नहीं कह सकता था कक िे पािि हो िए हैं। उनकी बातें तकि युि थीं। उनकी बातों में बराबर ग्रंथों के उद्धरण होते थे। उनकी बातों में--उसने ग्रंथ भी उठा कर दे खे तो पाया कक उनके उद्धरण वबल्कु ि सही हैं। िे शब्द-शब्द ठीक बोिते हैं। एक तो हैरानी की बात थी कक पािि होकर िे इतने तकि पूणि हैं। हािांकक हैरान होने की कोई जरूरत नहीं। पािि अक्सर तकि पूणि होते हैं। असि में पाििों के अपने तकि होते हैं। दे हैि दे यर ओन िॉवजक। िेककन और दूसरी हैरानी की बात यह थी कक िे दोनों पािि इतनी सुव्यिवस्थत बात तो करते थे, िेककन एक-दूसरे की बातचीत में कोई संबंि नहीं होता था। जो एक बोि रहा था िह आकाश की बोिता था, दूसरा पाताि की बोिता था। उन दोनों के बीच कोई संबंि ही नहीं था। िेककन यह भी स्िाभाविक है कक दो पाििों के बीच बातों में संबंि न हो, यह स्िाभाविक है।



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तीसरी बात और भी हैरानी की थी कक जब एक बोिता था तब दूसरा चुप रहता था और जब दूसरा बोिना शुरू करता तो पहिा चुप हो जाता। इससे जुि ं बहुत हैरान हुआ कक जो पािि एक-दूसरे से असंबंवित बातें बोि रहे हैं, िे भी इतना ख्याि क्यों रखते हैं कक दूसरा चुप हो तब हम बोिें! उसने जाकर उनसे पूछा कक मैं और सब तो समझ िया, यह बात मैं नहीं समझ पा रहा कक जब एक बोिता है तो दूसरा चुप क्यों रहता है? िे दोनों हंसने ििे। उन्होंने कहााः आप भी बड़े पािि हैं। क्या आप समझते हैं हमें कनिरसेशन का वनयम नहीं मािूम? हमें कनिरसेशन का वनयम मािूम है। जब एक बोि रहा है तब दूसरे को चुप रहना चावहए। जुि ं ने कहा, जब तुम्हें इतना पता है तो तुम्हें इतना पता नहीं कक जो एक बोि रहा है उसी संबंि में दूसरे को बोिना चावहए। िे दोनों बहुत वखिवखिा कर हंसने ििे। उन दोनों ने कहा कक खैर हम तो पािि हैं, िेककन हमने दुवनया में दो िैर-पािि िोिों को भी ऐसी बात करते नहीं दे खा वजसमें कोई संबंि हो। पता नहीं यह जुि ं को कहां तक बात जंची या नहीं जंची, िेककन इस मुल्क में ऐसी र्टना र्ट रही है। यहां दो आदमी की बातचीत में कोई संबंि नहीं रह िया। और दो पीकढ़यों के बीच में तो कोई संबंि नहीं रह िया है। और अिर दो ही पीकढ़यां होतीं तब भी ठीक था, कई पीकढ़यां हो िई हैं, क्योंकक एक पीढ़ी बीस साि में बदि जाती है। तो तीन-चार पीकढ़यां हैं। जो अस्सी साि का है िह कु छ और भाषा बोि रहा है, उसका बेटा जो साठ साि का है िह भी िह भाषा नहीं बोिता, उसका जो बेटा चािीस साि का है िह कु छ और बोि रहा है, उसका जो बेटा बीस साि का है िह कु छ और बोि रहा है। और जो बेटे दस-पंद्ररह साि के हो रहे हैं िे कोई और भाषा बोि रहे हैं वजनका अस्सी साि के बाप से कहीं कोई संबंि नहीं रह िया। इनके बीच के सब विज विर िए हैं। मुल्क करीब-करीब एक मैि-हाउस, एक पाििखाना मािूम पड़ता है। जब वशक्षक कु छ विद्यार्थियों से कहता है तो विद्यार्थियों की समझ के बाहर होता है कक कौन सी कर्जूि बातें कही जा रही हैं। अब तो वशक्षक को भी शक होने ििा है कक िह शायद कर्जूि की बातें कह रहा है। क्योंकक चारों तरर् की आंखें उसे कदखाई पड़ती हैं वजनसे उसे पता ििता है। नेता जनता को समझा रहा है और पूरे िि जान रहा है कक कोई नहीं समझ रहा और जनता भी पूरे िि सुन रही है और समझ रही है कक नेता जो कह रहा है इसका इसकी जजंदिी से कोई संबंि नहीं है। बाप बेटे को समझा रहा है, बेटे समझ रहे हैं कक बेईमान है, पाखंिी है। बेटे बाप को आश्वासन दे रहे हैं, बाप जान रहा है यह सब िोखे की बात है, यह पीछे जाकर अभी आश्वासन तोड़ दे िा। जब ककसी मुल्क की जजंदिी में ऐसी र्टना र्ट जाए, जहां कक हमें ककसी एक-दूसरे की भाषा पर भी भरोसा न रह जाए, तो उस मुल्क को हमें सेन नहीं मानना चावहए, िह इनसेन हो िया, एक पाििपन पकड़ िया है। इस पाििपन को तोड़ना जरूरी है। अन्यथा हम बड़ी अजीब हाितों में रोज उिझते चिे जाएंिे। समस्याएं वजनको कदखाई पड़ती हैं उन्हें समािान नहीं कदखाई पड़ता, वजन्हें समािान कदखाई पड़ता है उन्हें कोई समस्याएं कदखाई नहीं पड़तीं। बूढ़ों के पास समािान हैं िेककन उन्हें समस्याएं कदखाई नहीं पड़तीं। बच्चों के पास समस्याएं हैं िेककन उन्हें समािान कदखाई नहीं पड़ते। ककन्हीं के पास पैर हैं, ककन्हीं के पास आंखें हैं, दोनों के बीच कोई सेतु नहीं है। इससे हम अनेक तिों पर मल्टी-िाइमेन्शनि न मािूम ककतने आयामों में ककतनी कदशाओं में ककतने सिाि खड़े कर विए हैं। इन सारे सिािों को वमटाने के विए एक तो सुझाि मैं दे ना चाहता हं िह यह है और मैं समझता हं कक िह युिकों को ही सुझाि शुरू करना पड़ेिा। क्योंकक बढ़े कई अथों में ररवजि हो जाते हैं। 33



स्िभािताः जब हम भी बूढ़े हो जाएंिे तो हम भी ररवजि हो जाएंिे। आज जो बच्चे हैं कि जब बूढ़े हो होंिे िे भी ररवजि हो जाएंिे। बुढ़ापा ररवजविटी िाता है। असि में बुढ़ापे का मतिब ही ररवजविटी है। हवड्डयां ही सख्त नहीं होतीं कदमाि की नसें भी सख्त हो जाती हैं। हाथ-पैर ही कड़े नहीं हो जाते, विचार भी कड़े हो जाते हैं। शरीर ही मरने के करीब नहीं पहुंच जाता, भीतर का सारा व्यविमि भी सख्त हो कर सूख जाता है और मरने के करीब पहुंच जाता है। इसविए बूढ़े आदमी से बहुत ज्यादा आशा नहीं की जा सकती है। अिर वजस िायिॉि की मैं बात कर रहा हं उसको अिर पैदा करना है तो जहंदुस्तान के युिकों को ही उसको र्े स करना पड़ेिा। जहंदुस्तान के युिक को ही कोवशश करके जहंदुस्तान के बूढ़े से संबंि स्थावपत करना पड़ेिा। और एक बात तो यह भी ठीक है कक बूढ़े को जचंता भी ज्यादा नहीं हो सकती, क्योंकक भविष्य बूढ़े का नहीं है, भविष्य जिानों का है। अिर जचंता भी होनी चावहए तो जिानों को होनी चावहए, क्योंकक कि उनको जीना होिा इस मुल्क में, कि इस मुल्क में बूढ़ों को नहीं जीना होिा। िे अपने कविस्तानों में और अपने कििाहों में चिे िए होंिे। उनके विए बहुत जचंता का कारण भी नहीं है। जचंता का कारण होना चावहए युिकों के विए। िेककन बड़े मजे की बात है कक युिक वबल्कु ि जचंवतत मािूम नहीं पड़ते, बूढ़े बहुत जचंवतत मािूम पड़ते हैं। युिक ऐसे वनजश्चंत जी रहे हैं जैसे कक बूढ़ों का कोई भविष्य है, उनको परे शान होने की कोई जरूरत है। विद्याथी इस तरह जी रहे हैं जैसे कक वशक्षकों की सारी मुसीबत है। नहीं, वपछिी पीढ़ी की कोई भी मुसीबत नहीं है, वपछिी पीढ़ी विदा हो जाएिी। आने िािी सारी मुसीबतें नई पीढ़ी पर होंिी। और अिर नक्सिाइट ढंि से सोचने िािे युिक सोचते हों कक हम बूढ़ों से िड़ रहे हैं, तो िे ििती में हैं। िे अपने ही भविष्य को नि करने के विए िड़ रहे हैं। क्योंकक बूढ़ों से िड़ने का क्या मतिब है? िे तो मरने के करीब हैं िे विदा हो जाएंिे। उनकी जजंदिी िई, उनकी समाज की व्यिस्था भी िई। वजनको जीना होिा इस मुल्क में उनके विए सिाि उठे िा। िेककन कु छ ऐसी भूि हो रही है कक ऐसा ििता है कक हम वपछिी पीढ़ी से िड़ कर कु छ बड़ी कामयाबी हावसि कर रहे हैं। िड़के सोचते हैं कक वशक्षकों से िड़ कर कामयाबी हावसि कर रहे हैं। उन्हें पता नहीं कक वशक्षकों से िड़ कर कामयाबी हावसि करने का कोई मतिब नहीं है। असि में हम जो भी िड़ रहे हैं, उपद्रि कर रहे हैं, उसमें हम अपने ही पैरों को पंिु कर रहे हैं। कि वजसको इस दे श में जीना होिा उसी के विए यह सिाि है। िेककन शायद जिान को इतनी समझ नहीं होती कक इतनी दूर तक दे ख सके । शायद िह बहुत दूर तक नहीं दे ख पाता। भविष्य उसका है, िेककन भविष्य में दे खने की क्षमता जिान के पास नहीं होती। असि में जिान ितिमान में जीता है। आज कार्ी मािूम पड़ता है। िेककन अिर आज हम िित जीएं तो कि हमारा िित हो जाएिा। इसविए मैं कहना चाहता हं कक यह जो सिाि है, यह जो समस्या है कक हम दोनों पीकढ़यों के बीच भारत के अतीत और भारत के भविष्य के बीच अिर कोई सेत,ु कोई विज बनाना चाहते हैं, तो यह काम भारत के जिानों को अपने हाथ में उठाना पड़ेिा। यह सिाि उन्हीं का है। और जहंदुस्तान की पुरानी पीकढ़यों को सार् जिानों से कह दे ना चावहए कक सिाि तुम्हारे हैं, सिाि हमारे नहीं हैं। और अिर तुम आममहमया करने पर उतारू हो तो तुम आममहमया कर िो, हमें जचंता नहीं है। क्योंकक हम तो मर जाएंिे। जहंदुस्तान के जिान को यह बात सार् हो जानी चावहए कक िह जो भी कर रहा है उसका अच्छा या बुरा पररणाम उसके ही ऊपर होने िािा है। यह बहुत सार् बात मािूम नहीं कदखाई पड़ती। ऐसा मािूम पड़ता है कक सब सिाि बूढ़ों के हैं। परे शानी बूढ़ों को हो रही है और जिान उनको परे शान करने में आनंकदत मािूम हो 34



रहा है। उसका आनंद बहुत महंिा पड़ेिा। और उसका आनंद बहुत अज्ञानपूणि है। उसके आनंद में बहुत प्रज्ञा नहीं है, उसके आनंद में बहुत वि.जिम नहीं है। िह अपने हाथ से अपने आिे के रास्ते तोड़ रहा है और खराब कर रहा है। और ध्यान रहे कक जो िह अपने बूढ़ों के साथ कर रहा है िह अपने बच्चों से अपेक्षा कर िे कक उससे भी ज्यादा उनके साथ ककया जाएिा। क्योंकक बच्चे िही सीखते हैं जो ककया जाता है। मैं एक र्र में मेहमान था, और मैं हैरान हुआ उस र्र में एक र्टना को दे ख कर। उस र्र में तीन पीकढ़यां थीं, जैसे कक आमतौर में पररिारों में होती हैं। मैं दूसरे नंबर की पीढ़ी का मेहमान था। उस पीढ़ी के बेटे भी थे, उस पीढ़ी के बाप भी थे। उस पीढ़ी के सज्जन अपने बाप के साथ ऐसा दुव्यििहार करते थे वजसका कोई वहसाब नहीं। तीन कदन दे ख कर मैं तो हैरान हो िया। मैं तो अपररवचत मेहमान था, िेककन तीन कदन दे ख कर मैं तो हैरान हो िया। िेककन िे सज्जन अपने बेटे से बहुत अच्छे व्यिहार की अपेक्षा भी करते थे। मैंने एक कदन रात चिते िि उनसे कहा कक आप बड़े िित ख्यािों में पड़े हैं। आपका बेटा भिीभांवत दे ख रहा है कक आप अपने बाप के साथ क्या कर रहे हैं। तो आप यह भूि कर भी मत सोचें कक आपका बेटा आपसे कमजोर वनकिेिा। आपका बेटा आपसे भी मजबूत वनकिेिा। और जो आप अपने बाप के साथ कर रहे हैं िह बेटा आपको ठीक से उत्तर दे जाएिा। आप बड़ी िित अपेक्षा कर रहे हैं कक आप अपने बाप के साथ दुव्यििहार कर रहे हैं और अपने बेटे से सदव्यिहार की अपेक्षा कर रहे हैं। अविक िोि दुवनया में यह भूि करते हैं। चाहे उनके िोिों की कोई भी व्यिस्था हो। हम सब अपने से वपछिी पीढ़ी के साथ दुव्यििहार करते हैं और अपने से आने िािी पीढ़ी के साथ अच्छे व्यिहार की आशा रखते हैं। यह असंभािना है। असि में अििी पीढ़ी हमारे व्यिहार को दे ख कर ही सीखती है कक हम क्या कर रहे हैं। अिर जहंदुस्तान के आज के जिानों को अपनी पुरानी पीढ़ी से सेतु बनाने से असमथिता है, तो िे ध्यान रखें, यह खाई उनके बच्चों और उनके बीच और भी बड़ी हो जाएिी। अभी तो हम भाषा ही नहीं समझ रहे हैं, कर्र हम बोिचाि भी नहीं कर सकें िे। अभी तो हम बोिते हैं कम से कम, भाषा समझ में नहीं आती। कर्र हम बोिना भी बंद कर दें िे। क्योंकक बोिना भी कर्जूि है, बेकार है। बोिने का कोई मतिब न रह जाएिा। जहंदुस्तान में दोनों पीकढ़यों से मैं संबंवित हं और बहुत हैरानी से दे खता हं कक िे दोनों एक-दूसरे को समझने में असमथि मािूम पड़ते हैं। कौन सी करठनाइयां हैं? पहिी करठनाई तो यह है कक जिान आदमी कभी भी यह नहीं समझ पाता कक बूढ़ा ररवजि हो जाता है। यह स्िभाि है। िह ठहर जाता है, जम जाता है, िोजन हो जाता है। उसने जजंदिी में जो भी जाना है िह िीरे -िीरे ठहर कर सख्त हो जाता है। और बूढ़े को बदिना बहुत असंभि है। असि में बूढ़े का मतिब ही यह है कक जो बदिने की सीमा के पार चिा िया, वजसको अब नहीं बदिा जा सकता। इसविए बूढ़े को स्िीकार करने के अवतररि कोई भी मािि नहीं होता। सुसंस्कृ त कौम उसे कहा जाता है, जो इस समय को स्िीकार करके अपने बूढ़ों के प्रवत उनकी इस असमथिता को जान कर भी सदभाि रख पाती है िह सुसंस्कृ त कौम है। सुसंस्कृ वत का एक ही अथि है कक हम वस्थवतयों को दे ख कर उनकी र्ै वक्टवसटी को, उनके तथ्यों को समझ कर िैसा जीने की कोवशश करें । िेककन सारे बच्चे अपने मां-बाप के प्रवत क्रोि से भरे हुए हैं। एंग्री जेनरे शन, हम कह रहे हैं, क्रोि से भरी हुई पीढ़ी है। सब बच्चे अपने मां-बाप के प्रवत क्रोि से भरे हुए हैं। विद्याथी वशक्षक के प्रवत क्रोि से भरे हुए हैं। छोटे भाई बड़े भाई के प्रवत क्रोि से भरे हुए हैं। यह क्रोि बहुत असंित है, अमानिीय है, इनह्यूमन है, असंस्कृ त है, अनकल्चिि है। और यह क्रोि जिान आदमी के योग्य, शोभा के योग्य नहीं है। यह बताता है कक जिान 35



आदमी नहीं समझ पा रहा कक बुढ़ापे की अपनी परे शावनयां हैं, अपनी मजबूररयां हैं। अिर जिान को यह सार् कदखाई पड़ जाए तो बुढ़ापा दया योग्य मािूम पड़ेिा। और यह भी उसे ख्याि रखना चावहए कक िह भी रोज बूढ़ा होता जा रहा है। और कि इसी दया की अपेक्षा उसे दूसरी पीढ़ी से हो जाएिी। दूसरी बात ख्याि रखनी जरूरी है कक जिान को ही हाथ बढ़ाना पड़ेिा। अभी उसके हाथ बढ़ने योग्य हैं, बड़े हो सकते हैं, अभी ठहर नहीं िए। और जिान को ही समझदारी कदखानी पड़ेिी, क्योंकक उसकी समझ िोचपूणि है, फ्िेवक्जबि है, अभी िह बदि सकती है और नई हो सकती है। और ध्यान रहे कक बूढ़े ने जो भी जाना है, बूढ़े ने जो भी जीआ है, अतीत की पीढ़ी ने जो भी अनुभि ककया है, िह अिर जिान उसे समझ िे तो वनवश्चत ही उसे उसके जजंदिी में ररचनेस और समृवद्ध में बढ़ािा वमिेिा। अिर िह उसे नासमझी से तोड़ दे तो हो सकता है उसकी जजंदिी की जड़ें कट जाएं, िह अपरूटेि हो जाए और भविष्य में र्ू ि आने असंभि हो जाएं। इसविए पहिी बात तो मैं यह कहना चाहता हं कक जहंदुस्तान के जिान को जहंदुस्तान की समस्याओं के संबंि में अपने ताकत और अपने ज्ञान का उपयोि करना है, िेककन पुरानी पीढ़ी की समझ, प्रज्ञा और वि.जिम का सहयोि अमयंत आिश्यक है। िह सहयोि टू ट जाए तो हमारी शवि आममर्ातक हो जाएिी। अिर समझ न हो तोशवि अक्सर सुसाइिि हो जाती है। उसे कर्र अपने को ही विनाश करने में काम में िे आते हैं। ऐसा हो रहा है, ऐसा रोज र्ै िता जा रहा है और चीजें रोज विकृ त होती जा रही हैं। दूसरी बात जो मैं आपसे कहना चाहता हं िह मैं यह कहना चाहता हं कक जहंदुस्तान के सिाि हमारे हजारों साि के पैदा ककए हुए सिाि हैं। उन्हें हम एक कदन में नहीं तोड़ सकते हैं। कोई उपाय नहीं है उन्हें एक कदन में तोड़ दे ने का। और उन्हें एक कदन में तोड़ने की कोवशश में वसर्ि यही हो सकता है कक हम और सिाि पैदा कर िें। जहंदुस्तान की करठनाइयां एक कदन की नहीं हैं, पांच हजार साि का पूरा इवतहास जहंदुस्तान की करठनाइयों का इवतहास है। जहंदुस्तान की जड़ें पांच हजार साि से पीवड़त, रुग्ण और विकृ त हो िई हैं। अिर कोई आदमी चाहे कक इन्हें एक कदन में बदिने की जल्दबाजी कदखाए तो िह जल्दबाज आदमी जड़ों को सुिार पाए इसकी संभािना कम है, जड़ों को वमटा िािे, तोड़ िािे इसकी संभािना ज्यादा है। जहंदुस्तान की आने िािी युिा पीढ़ी को यह भी समझ िेना चावहए कक सिाि वजतने पुराने होते हैं उतने िीरज से उनके साथ मुकाबिा करना पड़ता है। िेककन क्रांवतकारी कभी भी िैयििान नहीं होता। क्रांवतकारी अिैयििान होता है। िह बहुत शीघ्रता से कु छ करना चाहता है इसकी वबना कर्कर ककए कक कु छ चीजें शीघ्रता से की ही नहीं जा सकतीं। एक बच्चा मां के पेट में नौ महीने िेता है तब मैच्योर होता है, तब िह जन्म िेता है। जल्दी की और अिर पांच महीने में िभिपात कर विया, तो बच्चा तो मरे िा ही, मां भी मर सकती है। जहंदुस्तान में मुझे ऐसा ििता है कक हमारी समस्याएं पुरानी हैं और हमारे हि करने की जल्दी बहुत अिैयिपूणि है। हम प्रमयेक चीज को आज हि करना चाहते हैं, जो कक नहीं हि हो सकती। अिर जहंदुस्तान को ठीक से प्रौढ़ता पानी हो, और बुवद्धमत्ता पानी हो तो अपनी समस्याओं की िहराई... और यह भी समझ िेनी चावहए कक िह िि िंबा िेंिी, िह जल्दी नहीं तोड़ी जा सकती हैं। न तो िरीबी आज वमटाई जा सकती है। चाहे हम जमीन छीन कर बांट दें , और चाहे हम सारी र्ै क्ट्री.ज पर कब्जा कर िें, और चाहे हम सारे मुल्क की संपवत्त को वितररत कर दें । िरीबी आज नहीं वमट सकती। क्योंकक िरीबी के पीछे पांच हजार साि की िंबी कहानी है। यह िरीबी पांच हजार साि की िरीबी है। इस 36



िरीबी को जो आज वमटाने की कोवशश करे िा, मैं मानता हं िह मुल्क को और भी िरीब हाित में छोड़ जाएिा। क्योंकक इस िरीबी को जल्दी में वमटाने की कोवशश उस इं तजाम को भी तोड़ सकती है जो इं तजाम इस मुल्क को थोड़ी-बहुत संपवत्त दे रहा है। िेककन हम बहुत जल्दी में भरे हैं। हमारा जिान चाहता है, सब आज हि हो जाए, हर आदमी को आज नौकरी वमि जाए। यह नहीं हो सकता। नेता मुल्क के बेईमान हैं िे झूठे आश्वासन कदए चिे जाते हैं। िे आश्वासन कदए चिे जाते हैं कक नहीं, यह हो जाएिा, यह जल्दी हो जाएिा। यह जल्दी हो सके िा कक सबको नौकरी वमि जाए। यह नहीं हो सके िा। इस मुल्क में सबको नौकरी नहीं वमि सकती। नहीं वमि सकती इसविए कक इस मुल्क के पास उतना काम नहीं है वजतने िोि हैं; नहीं वमि सकती इसविए कक इस मुल्क के पास वजतने िोिों को हमने वशवक्षत कर विया है उतना भी काम नहीं है और वजतने िोिों को हम वशवक्षत कर रहे हैं उनके विए भविष्य में कोई काम नहीं होिा। िेककन यह मजबूरी है और यह हम सबकी मजबूरी है। अिर इसको हमने जल्दबाजी की तोशायद वजतना काम वमि सकता है िह भी न वमि पाए। और अिर हम िैयि से प्रयोि करें तोशायद हम मािि नये कामों की कदशाओं को खोजने में समथि हो सकते हैं। असि में जहंदुस्तान के जिान को पुराने ककस्म के काम मांिने की बात छोड़ दे नी चावहए, अिर जहंदुस्तान की समस्याओं को हि करना हो। जहंदुस्तान के जिान को अपनी जिानी का बड़े से बड़ा प्रयोि जहंदुस्तान में नये काम पैदा करने में कदखाना चावहए। उसे पुराने ढंि के काम मांिना बंद कर दे ना चावहए। जैसे कक हम एक कवि को ओररवजनि कहते हैं अिर िह नई कविता विखे। अिर िह काविदास जैसी कविता विखे तो उसको कोई कवि नहीं मानता। और अिर िह शेक्सवपयर जैसी कविता ककतनी ही अच्छी विख िे तब भी हम कहेंिे चोर है। कोई मौविक नहीं, कोई ओररवजनि नहीं। जैसे कविता भी नई करता है आदमी, जैसे िेख भी नया विखता है, विज्ञान में नई खोज करता है, िैसे जहंदुस्तान के जिान को नये काम की खोज पर वनकिना पड़ेिा। हजार तरह के नये काम खोजे जा सकते हैं। िेककन जहंदुस्तान के सब जिान पुराने दरिाजों पर दस्तक दे रहे हैं। उन पुराने दरिाजों के काम चुक िए हैं। सच तो यह है कक पुराने दफ्तरों में जरूरत से ज्यादा आदमी हैं। और ध्यान रहे, जहां दो आदमी काम कर सकते हैं अिर िहां छह आदमी हो िए, तो जो काम दो आदमी करते थे िे छह आदमी और वबिाड़ दें िे, िे छह नहीं कर पाएंिे। जहंदुस्तान में मजबूरी यह है कक हर जिह ज्यादा आदमी हैं। और जहां भी जरूरत से ज्यादा आदमी होते हैं िहां इकर्वशएंसी कम हो जाती है, िहां कु शिता कम हो जाती है। अंग्रेज वजन दफ्तरों में एक क्िकि से काम चिा रहे थे िहां आज दस क्िकि हैं। और अंग्रेज का एक क्िकि वजतना काम कर रहा था उतने दस क्िकि नहीं कर रहे हैं। असि में दस क्िकि कर ही नहीं सकते उतना काम। एक वजतना काम कर सकता है िह दस नहीं कर सकते। अिर एक के िायक ही काम है तो दस वसर्ि उसको वबिाड़ने िािे वसद्ध होंिे और इस तरह काम को र्ै िाएंिे कक िह दस के योग्य मािूम होने ििेिा। और काम इस भांवत र्ै िता हुआ कदखाई पड़ेिा, िेककन होता हुआ कदखाई नहीं पड़ेिा। जहंदुस्तान की पूरी नौकरशाही काम को र्ै िाने का काम कर रही है, काम को हि करने का काम नहीं कर रही। क्योंकक काम वजतना र्ै िता है उतनी जिह बनती है। िेककन यह जिह बोिस, इनसे कोई मुल्क को उमपादन और मुल्क को नई कदशाएं नहीं वमितीं। िेककन क्या िजह है कक जहंदुस्तान में हम नये काम न खोज



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सकें ? ककतने नये काम अिूरे पड़े हैं जो हमें पुकारते हैं। िेककन जैसा मैंने कहा, हमारी पुरानी आदतें कदक्कत दे ती हैं। अब जहंदुस्तान में ककतने इं जीवनयर हैं जो बेकार हैं। िेककन कोई इं जीवनयर इसकी कर्कर नहीं करता कक जमीन के नीचे मकान बनाने के विए नई योजनाएं दें । कोई इं जीवनयर इस बात की कर्कर नहीं करता कक समुद्र पर मकान बनाएं। अब यह जान कर आपको हैरानी होिी कक अभी एक अमेररकन इं जीवनयर सुिर ने समुद्र पर मकान बनाने का बहुत सस्ता सुझाि कदया है। योजना भी दी है, मकान का मािि भी कदया है। सीमेंट-कांक्रीट के मकान, वजनमें एक मकान में बीस हजार आदमी रह सकें , समुद्र पर तैर सकते हैं, िू बेंिे नहीं, क्योंकक िे चारों तरर् से बंद होंिे। उनके भीतर हिा का वजतना िाल्यूम होिा िही उनको समुद्र के ऊपर तैराने का कारण बन जाएिा। िे जमीन पर बनने िािे मकानों से सस्ते होंिे और जमीन को र्ेरेंिे नहीं। और जहंदुस्तान को तो जमीन की जरूरत है। जहंदुस्तान पर जमीन वजतनी वर्र जाएिी उतना भोजन मुवश्कि में पड़ जाएिा। जहंदुस्तान के इं जीवनयर को कर्कर करनी चावहए कक पानी पर मकान बनाए। हिा में भी मकान बनाए जा सकते हैं। एक दूसरे विरटश इं जीवनयर ने हिा में मकान बनाने का मॉिि कदया। िेककन जहंदुस्तान के बच्चे कब इस कदशाओं में सोचेंिे? सीमेंट-कांक्रीट का मकान हिा में भी हिा के िाल्यूम के आिार पर तैर सकता है, उड़ सकता है। और िह जमीन पर बनाए हुए मकान से सस्ता मकान वसद्ध होिा। िेककन जहंदुस्तान का इं जीवनयर जमीन पर ही मकान बनाता चिा जाएिा। मकान भी िह उस ढंि से बना रहा है वजस ढंि से पांच हजार साि पहिे हमारे बापदादा ही बनाते थे। अब ककसी को ईंट बनाने की जरूरत नहीं होनी चावहए। ईंट तब बनती थी जब हम पूरी दीिाि सीिी नहीं बना सकते थे। अब हम पहिे ईंट बनाएंिे, कर्र ईंट को हम जोड़ेंिे, कर्र आवखर दीिाि बनाएंिे। अब तो दीिाि सीिी बन सकती है। अब इतनी मोटी दीिािों की भी जरूरत नहीं है। अब हम बहुत और ढंि से जजंदिी को जीने की व्यिस्था करने की खोज कर सकते हैं। अब जो इं जीवनयर जमीन पर छोड़ कर हिा में या पानी में मकान बनाएिा उसके विए काम नहीं होिा? उसके विए खुद तो काम होिा, िह अपने जैसे हजारों इं जीवनयरों के विए नये काम की कदशा खोि दे िा। िेककन नहीं, िह इं जीवनयर अपनी दरख्िास्त विए खड़ा हुआ है पीड़ब्ियूड़ी. के दफ्तर के सामने कक हमको नौकरी चावहए। नहीं, जहंदुस्तान का जिान अपने को जिान वसद्ध नहीं कर रहा। जिानी का पहिा िक्षण यह है कक िह मौविक खोजें करें । उसे जानना चावहए कक उसके माता-वपताओं ने उसे जहां पहुंचा कदया है िहां उनकी सामथ्यि चुक िई है। सैचुरेशन आ िया है, चीजें चुक िई हैं, उसके आिे अब चीजें नहीं जा सकती हैं। हमेशा जजंदिी में जिानों को नई चीजें खोजनी पड़ती हैं। जहंदुस्तान के सामने बड़ी से बड़ी समस्या यह है कक हम नई कदशाएं कै से तोड़ें? नई कदशाएं तोड़ी जा सकती हैं। कोई कारण नहीं है। जमीन के नीचे मकान बन सकते हैं। और जब से एअरकं िीशजनंि की सुवििा हो िई, तब से हम जमीन के नीचे बहुत मकान र्ै िा सकते हैं। असि में जहंदुस्तान में अब कोई र्ै क्ट्री जमीन के ऊपर नहीं बननी चावहए। क्योंकक उतनी जमीन वछन जाएिी पैदािार से। अब तो हमें सारी र्ै वक्ट्रयां जमीन के नीचे िाि दे नी चावहए। जहंदुस्तान में कोई रे ि का



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मािि अब जमीन के ऊपर नहीं होना चावहए। क्योंकक उतनी जमीन हम नहीं खो सकते, िह जमीन हमें पैदािार के विए चावहए। िेककन नहीं, हम जमीन खोए चिे जा रहे हैं। जमीन के नीचे हमारी कोई कदशा नहीं कक हम जमीन के नीचे प्रिेश कर जाएं। हिा में उठ जाएं, समुद्र पर चिे जाएं। अब जहंदुस्तान में ककतने िड़के के मेस्ट्री पढ़ रहे हैं, ककतने िड़के के मेस्ट्री में पीएचड़ी. कर रहे हैं। िेककन बड़ी हैरानी की बात मािूम पड़ती है कक जहंदुस्तान की के मेस्ट्री का पीएचड़ी. भी आवखर एक कािेज में नौकरी के विए खड़ा हो जाता है। जहंदुस्तान को तो बहुत बड़े रसायनज्ञों की जरूरत है, जो जहंदुस्तान को ऐसा भोजन दे सकें जो जमीन में पैदा नहीं होता। जसंथेरटक र्ू ि की जरूरत है। रोज संख्या बढ़ती चिी जाएिी। अब आपको पुराने भोजन करने की आदतें छोड़नी पड़ेंिी कक आप रोज एक ककिो भोजन पेट में िािें। यह पाििपन अब आिे नहीं चि सकता। अब आपको एक िोिी पर राजी होना पड़ेिा। िेककन मैं मानता हं कक एक िोिी स्िास्थ्यपूणि हो सकती है एक ककिो भोजन की बजाय। क्योंकक एक ककिो भोजन करना बहुत ही अनुमपादक पुराना ढंि है। एक ककिो भोजन करके पचाते तो एक िोिी के िायक ही हैं। बाकी कर्र शरीर को बाहर भी र्ें कना पड़ता है। िह कर्जूि की मेहनत है। उस मेहनत से मुल्क को बचाने की जरूरत है। िेककन जहंदुस्तान के िड़के उस कदशा में कोई कर्कर नहीं करें िे। िह पुराना ढंि जारी रहेिा। जहंदुस्तान का िड़का भी पुराने ढंि से ही खाने की मांि करता रहेिा। यह अब नहीं चि सकता है। जहंदुस्तान के िड़के को नये ढंि के खाने खोजने चावहए। समुद्र के पानी को हम खाना बना सकते हैं। सूरज की ककरणों को भी खाना बना सकते हैं। हिा से भी खाना खींचा जा सकता है। िेककन जहंदुस्तान के िड़के जब इन कदशाओं में मेहनत करें िे। हम हमेशा जमीन से खाना नहीं पाते थे। आज से पांच हजार साि पहिे आदमी जंिि में जानिर को मारता था और खाना पाता था। एक कदन जानिर कम हो िए और िोि बढ़ िए, तब उन िोिों में से कु छ जिानों ने जमीन के र्ि खाने शुरू ककए। िेककन कर्र र्ि भी कम पड़ िए, तब कर्र र्िों को बोना शुरू ककया। अब बोना भी बेकार हो िया, अब जमीन ही कम पड़ िई। अब हमें नई कदशा में खोज करनी चावहए। अब हमें आकाश में, पाताि में, पानी में, हिा में, सूरज की ककरणों में भोजन की कर्कर करनी चावहए। िह सारी कर्कर की जा सकती है। िेककन जहंदुस्तान के िड़के पुराने ढांचे में ही अपने दरिाजे खटखटाए चिे जाते हैं। अिर जहंदुस्तान में कोई भी िड़का यह कहता है कक मैं अनएंप्िाइि हं और एंप्िाइमेंट नहीं खोज पाता है, तो हमें मानना चावहए कक उसकी वशक्षा ठीक से नहीं हुई। क्योंकक जहंदुस्तान जैसे मुल्क में वजसकी इतनी आिश्यकताएं हैं, अिर एंप्िाइमेंट न खोजा जा सके तो और एंप्िाइमेंट कहां खोजा जा सके िा? जहां इतनी आिश्यकताएं हैं जो पूरी नहीं हो रही, िहां तो हम हजार कदशाएं खोज सकते हैं। िेककन हमारे मन में खोज का भाि नहीं है। हम वजसे िैज्ञावनक कहते हैं अपने मुल्क में, िह भी ज्यादा से ज्यादा विज्ञान का विद्याथी होता है, िैज्ञावनक नहीं होता। िैज्ञावनक होने का मतिब ही यह है कक हम जजंदिी को नये रास्ते दें , हम जजंदिी को नई कदशाएं दें , हम जजंदिी को नये पहिू कदखाएं, हम जजंदिी को समृवद्ध के नये उपाय सुझाएं। िेककन जहंदुस्तान में बच्चे यह नहीं करें िे। बच्चे क्या कर रहे हैं? िे बसें तोड़ रहे हैं, युवनिर्सिटीज के कांच र्ोड़ रहे हैं, िे वशक्षकों पर पमथर र्ें क रहे हैं, िे हड़ताि कर रहे हैं, िे र्ेराि कर रहे हैं। ये सब आप करते रहें। ये सब अनुमपादक काम ही नहीं हैं, विध्िंसक काम हैं, इससे मुल्क की जजंदिी अच्छी नहीं हो सके िी। और मुल्क का जो 39



पुराना आदमी है िह क्रोि से भर िया है इन हरकतों को दे ख कर। और इन दोनों के बीच कोई संबंि नहीं रह िया। मैं जहंदुस्तान के जिान को कहना चाहता हं कक चुनौती है तुम्हारे विए। और ऐसी चुनौती बहुत मुवश्कि से आती है। और वजनकी जजंदिी में आती है उनको सौभाग्यशािी मानना चावहए अपने को कक परमाममा ने उन्हें मौका कदया है जहां िे नई जमीन तोड़ें। िेककन शायद हम बैििाड़ी में बैठे रहने के आदी हैं। हमने कहीं भी नई जमीन नहीं तोड़ी बहुत सैकड़ों िषों से, इसविए हमारी आदत टू ट िई है नई जमीन तोड़ने की। िेककन सारी दुवनया नई जमीन तोड़ रही है। सारी दुवनया में बहुत कु छ नया हो रहा है, जो कभी नहीं हुआ था। ऐसे र्ि पैदा ककए िए हैं जो कभी पैदा नहीं ककए िए थे। ऐसा िेहं पैदा कर विया िया है जो कभी पैदा नहीं ककया िया था। तो हमारे बच्चे क्या करें िे? िे एग्रीकल्चर युवनिर्सिटी में पढ़ कर वसर्ि परीक्षाएं दे ते रहेंिे और परीक्षाएं दे कर ज्यादा से ज्यादा एग्रीकल्चर दफ्तर में क्िकि बन कर बैठ जाएंिे। क्या करें िे? एग्रीकल्चर युवनिर्सिटी अिर ऐसे बच्चों को नहीं वनकाि पाती है जो मुल्क को नये भोजन दे सकें , अिर ऐसे बच्चे नहीं वनकाि पाती है जो िेहं के ऐसे िृक्ष दे सकें जो हर साि र्सि दे और हर साि उनको काटना न पड़े और साि में दो बार र्सि दे , तो हम बहुत... इस बड़ी दुवनया में जहां आदमी चांद पर उतर िया है, अिर हम आदमी को जमीन पर पेट भरने के योग्य नहीं बना सकते, तो हमारा सारा ज्ञान और हमारी सारी खोजें नासमझी से हैं और बेकार हैं। मैं नहीं मान सकता हं कक आदमी को भूखे मरने की अब कोई जरूरत है, और मैं नहीं मान सकता हं कक आदमी को नंिे रहने की कोई जरूरत है, और मैं नहीं मान सकता हं कक कोई भी आदमी अब वबना मकान के रहे। िेककन हमारी जिानी कमजोर है, और हमारी जिानी साइं रटकर्क नहीं है, और हमारे जिान के पास नई कदशाओं का ख्याि नहीं है। मैं तो चाहंिा, प्रमयेक युवनिर्सिटी को, सच में ही अिर िह युवनिर्सिटी है, तो उसे इस बात की कदशा में ही सिािविक चेिा में िि जाना चावहए कक उसके बच्चे पुराने ककस्म के काम न मांिें। वजस युवनिर्सिटी के बच्चे जहंदुस्तान में िापस िौट कर िांि में, शहर में पुराना काम मांिते हैं, िह युवनिर्सिटी ने अपना काम पूरा नहीं ककया, िह युवनिर्सिटी बेकार है। िहां वसर्ि हम थोथा काम कर रहे हैं। विश्वविद्यािय से वनकिा हुआ िड़का भी िही काम मांिे जो पुराने िोि मांि रहे थे, जो इस विश्वविद्यािय से कभी नहीं वनकिे थे, तो इस विश्वविद्यािय ने ककया क्या? छह साि हमने क्या ककया? िेककन नहीं, हम यहां दूसरे तरह के कामों में ििे हैं। विद्याथी पढ़ने में उमसुक नहीं हैं, वशक्षक पढ़ाने में उमसुक नहीं हैं। वशक्षक अपनी वसवनयाररटी में उमसुक है, िह अपनी पॉविरटक्स में उमसुक है, िह अपनी यात्रा में ििा हुआ है। कई मौके -बे-मौके थोड़ी-बहुत र्ु रसत वमि जाती है तो िह िड़कों की तरर् दे ख िेता है। अन्यथा उसकी आंखें आिे ििी हैं कक कौन िाइसचांसिर हो िया है, कौन िीन हो िया है। िह अपनी यात्रा पर ििा हुआ है। विद्याथी अपनी यात्रा पर ििे हुए हैं कक िे ककतना तोड़ रहे हैं, ककतना वमटा रहे हैं। िे ककस तरह वबना पढ़े पास हो जाएं, िे ककस तरह चोरी से पास हो जाएं, िे ककस तरह, उन्हें कोई मेहनत न करनी पड़े और सर्टिकर्के ट वमि जाएं। इसके विए हड़ताि कर रहे हैं, इसके विए उपद्रि कर रहे हैं। यह मुल्क मर जाएिा। अिर यही हाि है तो यह मुल्क बच नहीं सकता। क्योंकक ध्यान रहे, मुल्क के बचने की सारी संभािनाएं उसकी इं टेविजेंवसआ पर वनभिर होती हैं। 40



इस मुल्क को जहंदुस्तान के ग्रामीण से कोई आशा नहीं है। हािांकक ग्रामीण ही पेट भर रहा है। इस मुल्क को जहंदुस्तान के अवशवक्षत से कोई आशा बांिनी उवचत नहीं है, क्योंकक िह बेचारा बहुत पुरानी दुवनया में जीया है, नई दुवनया की खोज उसे मुवश्कि है। िेककन हमारे बच्चे तो सारी नई दुवनया में जी रहे हैं। िे क्या नया कर रहे हैं? िे कु छ नया करते हैं थोड़ा-बहुत। िे कमीज का ढंि बदि िेते हैं, िे पतिून की थोड़ी सी चौड़ाई कम कर िेते हैं, िे जूते पर ज्यादा पाविश करने ििते हैं। इन सब बातों से जिान आदमी का कोई भी पता नहीं चिता। इन सब बातों से कोई पता नहीं चिता कक आप जजंदिी को नया करने की कोवशश में ििे हैं। न तो नये कपड़े बदि िेने से, न जूते की रौनक बदि िेने से, न थोड़ा ढंि से बोिना सीख िेने से कोई आदमी जिान होता है। जिानी का एक िक्षण है कक जहां पुरानी पीढ़ी ने छोड़ा था दुवनया को, हम उसे आिे िे जाएं। जहां पुरानी समस्याएं थीं िे िहीं न रह जाएं, हम उन्हें हि करें । िेककन हम समस्याओं को हि करने में उमसुक नहीं हैं। पूरे मुल्क का जिान यह कहता है, हमारी समस्याएं हि करो। कौन हि करे ? कौन वजम्मेिार है? सारे जहंदुस्तान के िड़के यह कहते हैं हमारी समस्याएं हि करो। जैसे कक पुरानी पीढ़ी का कोई वजम्मा है सारी समस्याएं हि करने का। पुरानी पीढ़ी आपकी समस्याएं हि नहीं करे िी। नहीं कर सकती है। अिर बोिे और आश्वासन दे तोझूठे आश्वासन है। आपकी समस्याएं आपको हि करनी पड़ेंिी। वजम्मेिारी आपकी है। यह वशकायत ककसी और से नहीं हो सकती। अिर नहीं हि कर पाएंिे तो हम भूखे मरें िे, परे शान होंिे, दुखी होंिे। और अिर हि करें िे तो हम सुखी हो सकें िे, हम मुल्क को समृद्ध कर सकें िे, संपन्न कर सकें िे, शवि दे सकें िे। सारी दुवनया संपन्न होती जा रही है, हम क्यों िरीब होते चिे जा रहे हैं? आज अमरीका, या स्िीिन, या वस्िटजरिैंि, या नािे में सिाि यह है कक उनके पास इतनी संपवत्त है उसका िे क्या करें ? और हमारे सामने सिाि यह है कक हमारे पास इतने आदमी हैं इनके विए हम कहां से संपवत्त दें ? आवखर उनके पास भी हमारे जैसे ही मन हैं, बुवद्धयां हैं। हमारे पास कोई कम बुवद्ध नहीं है ककसी से। िेककन ऐसा मािूम पड़ता है हमारी बुवद्ध िड़ने-झिड़ने में व्यय हो जाती है। हमारी सारी बुवद्ध िड़ने-झिड़ने में व्यय हो जाती है। हम इतने िोि यहां बैठे हुए हैं, अिर हम सब आपस में िड़ने ििें, तो इस हाि की सारी ताकत नि हो जाएिी। िेककन अिर हम सारे संयुक्त होकर ककसी सृजन में िि जाएं तो हम शायद कु छ बना पाएंिे। और वजन चीजों के विए हम िड़ रहे थे, िे सहयोि से वनर्मित हो सकती हैं। और वजन चीजों के विए हम िड़ रहे थे अिर िड़ते ही रहे तो िे कभी भी वनर्मित न होंिी और जो वनर्मित है िह भी टू ट जाएिा। इस समय जहंदुस्तान को सहयोि की एक कर्िासर्ी चावहए, एक कोआपरे शन की कर्िासर्ी चावहए। िेककन जहंदुस्तान में वजतनी कर्िासर्ीज आज प्रचवित हैं--चाहे कम्युवनज्म, चाहे सोशविज्म और चाहे जनसंर् और चाहे कांग्रेस और चाहे कोई भी--िे सभी कांवफ्िक्ट की कर्िासर्ी हैं। िे सब यह वसखा रही हैं कक िड़ो! िे सब यह वसखा रही हैं कक दूसरा वजम्मेिार है। जहंदुस्तान में आज कोई भी इतनी कहने की वहम्मत नहीं जुटाता कक तुम वजम्मेिार हो, दूसरा वजम्मेिार नहीं है। और कोई भी यह कहने की वहम्मत नहीं जुटाता कक िड़ने से कु छ हि न होिा। इस समय जरूरत है कक जहंदुस्तान की सारी शवियां पूल्ि हो जाएं। जहंदुस्तान की सारी शवियां इकट्ठे होकर अिर श्रम करें , तो कोई कारण नहीं कक बीस साि में इस मुल्क में भी समृवद्ध का सूरज वनकि सके । और 41



कोई कारण नहीं कक हम भी आदमी की जैसी जजंदिी बसर करने के योग्य हो सकें । और कोई कारण नहीं कक हम जानिर की तरह भूखे और प्यासे और नंिे और जमीन पर वभखारी की तरह हाथ र्ै िाए हुए कर्रते रहें। हमारे दे श के नेता सारी दुवनया में भीख मांिने के वसिाय और कु छ भी नहीं कर रहे हैं। िे भीख मांि कर इस मुल्क को कब तक बचा सकते हैं? और हमें जो थोड़ी सी रौनक कदखाई पड़ती है, ख्याि रखना, िह रौनक हमारी नहीं है, िह अमरीकन िेहं की है। िह ज्यादा दे र नहीं चिने िािी। आज अमरीका में चार ककसान वजतना काम कर रहे हैं उनमें से एक ककसान की मेहनत जहंदुस्तान को वमि रही है। िेककन अमरीकन के इकोनॉवमस्ट परे शान हो िए हैं। अभी िहां के बहुत विचारशीि िोिों ने यह कहना शुरू कर कदया है कक अब जहंदुस्तान को और सहायता दे नी िित है। क्योंकक यह सहायता हम कब तक दें िे? और वजस कदन यह सहायता बंद होिी उस कदन जहंदुस्तान में इतना भयंकर अकाि पड़ेिा कक सब वजम्मेिारी हम पर आएिी कक इन्होंने सहायता दे नी बंद कर दी इसविए ये ही वजम्मेिार हैं। इसविए अमरीका का िैज्ञावनक तो सिाह दे रहा है, अथिशास्त्री सिाह दे रहा है कक अब सहायता बंद कर दो, अब यह सहायता आिे खींचनी उवचत नहीं है। तो ठीक भी नहीं है। मैं भी मानता हं, जहंदुस्तान को सहायता अब नहीं दी जानी चावहए। क्योंकक सहायता की बहुत आदत भी शायद नुकसान पहुंचा सकती है। हम अपनी मुसीबतों में छोड़ कदए जाने चावहए। अिर हम अपनी मुसीबतों में संर्षि कर सकते हैं मुसीबतों से। िेककन हम अपने से संर्षि करने से बचें, तो हम मुसीबतों से संर्षि करें । दो ही रास्ते हैंःाः या तो हम िड़ें या हम मुसीबतों से िड़ें। िेककन हम आपस में िड़ेंिे, तो हम संर्षि मुसीबतों से नहीं कर सकते हैं। िेककन पूरा मुल्क आपस में िड़ने में बड़ा आतुर है। और हम अपने को िड़ कर नि करते रहे हजारों साि तक, आिे भी हम अपने को िड़ कर नि करते रहेंिे। और हम ऐसी कर्जूि की बातों पर िड़ते हैं वजनका कोई अथि नहीं है। कहीं भाषा पर िड़ेंिे, कहीं िमि पर िड़ेंिे, कहीं मंकदरमवस्जद पर िड़ेंिे, कहीं हजरत मोहम्मद का बाि चोरी चिा जाएिा तो िड़ेंिे, कहीं ककसी शंकर जी की जपंिी टू ट जाएिी तो िड़ेंिे। हम इतनी कर्जूि की बातों पर िड़ रहे हैं कक सारी दुवनया भविष्य में हम पर हंसेिी कक हमारे सामने बड़े-बड़े सिाि थे, उनको छोड़ कर हम इन पर िड़ते रहते हैं। बड़े सिाि हैं मुल्क के सामने! शायद मरने और जजंदा होने का सिाि है! शायद जजंदिी और मौत का सिाि है! अिर हम बीस साि में मुल्क की सारी शवियों को कक्रएरटि मोड़ नहीं दे सकते, तो हम बीस साि में जमीन पर रहने के योग्य नहीं रह जाएंिे। उन्नीस सौ अठहत्तर और उन्नीस सौ पचासी के बीच जहंदुस्तान में इतने बड़े अकाि की संभािना है वजसमें दस करोड़ िोिों से िेकर बीस करोड़ िोि तक मर सकते हैं। िेककन हम बैठ कर सुन िेंिे। शायद हम कहेंिे, भििान की मरजी होिी तो बचा िेिा और मरजी नहीं होिी, तो भििान की मरजी के वखिार् पत्ता नहीं वहिता, हम क्या करें िे? ऐसे नहीं चिेिा। हमने भििान की मरजी बहुत जिह से तोड़ दी है। हमने जन्म दर कम कर िी है, हमने बीमाररयों का इिाज कर विया है, हमने मृमयु दर तोड़ िािी है और उिर हम बच्चे पैदा ककए जा रहे हैं। अभी हैिवसआसी ने इथोवपया में एक अमरीकन कमीशन बुिाया। क्योंकक इथोवपया में बहुत बीमाररयां हैं और बहुत मृमयु दर है। तो एक अमरीकन मेविकि कमीशन को बुिा कर उसने जांच-पड़ताि करिाई। और कर्र हैिवसआसी को उन्होंने अपनी ररपोटि दी और अपनी ररपोटि में उन्होंने कहा कक आपके मुल्क में जो पानी है िह रुग्ण है और आपके मुल्क में जो पानी पीने का जोढंि है िह बीमारी र्ै िाने िािा है और आप िंदा पानी पीते हैं। इथोवपया में सड़कों के ककनारे जो पानी भर जाता है और जानिर वजसमें र्ूमते रहते हैं, उस पानी को 42



भी िोि पीने के काम में िे आते हैं। तो उस कमीशन ने कहा कक आप यह िंदिी और पानी को बदिने की कोवशश करें और शुद्ध पानी िोिों को पीने का इं तजाम कर दें , तो आपके मुल्क में बड़े पैमाने पर मृमयु दर कम हो जाएिी। हैिवसआसी हंसा और उसने कहा कक मैंने आपकी बात सुन िी और समझ िया। िेककन यह मैं कभी करूंिा नहीं। उस कमीशन के िोिों ने कहा, आप पािि हो िए हैं! आप कहते हैं यह आप कभी करें िे नहीं! हैिवसिासी ने कहा कक अिर मैं उनकी मृमयु दर कम कर दूंिा तो कर्र मुझे दीिािों पर विखना पड़ेिा कक दो बच्चे होते हैं अच्छे! और िे कोई मानेंिे नहीं। हैिवसिासी की बात कठोर मािूम पड़ती है। िेककन जहंदुस्तान में यही हो िया है। मैं आपसे यही कहना चाहता हं कक या तो जहंदुस्तान के जिान तय करें कक हम पचास साि, आने िािे पचास सािों में जहंदुस्तान की संख्या को िापस िे जाएंिे। और या कर्र हमें जहंदुस्तान में बीमाररयों को मुि छोड़ने के वसिाय कोई रास्ता नहीं रह जाएिा। कर्र हमें महामाररयां बुिानी पड़ेंिी, भििान से प्राथिना करनी पड़ेिी कक हैजा भेजो, प्िेि भेजो। हमें अस्पताि बंद करने पड़ेंिे। और हो सकता है कक हमें कं पिसरी बूढ़े आदवमयों को मरने के विए मजबूर करना पड़े। यह बात आज अजीब ििती है। िेककन यह बीस साि में मजबूरी बन सकती है कक हमें तय करना पड़े। जैसे हम तय करते हैं कक अट्ठािन साि में हम ररटायर करें िे, िैसे हमें तय करना पड़े कक साठ साि में हम वबल्कु ि ररटायर करें िे। क्योंकक अब कोई उपाय नहीं है। या तो बच्चे कम कररए या बूढ़े कम करने पड़ेंिे। या तो बथि-कं ट्रोि को कं प्िसरी कररए, या तो जहंदुस्तान के जिानों को तय कर िेना चावहए कक हम दे र से शादी करें िे, तय कर िेना चावहए शादी के बाद वजतने दूर तक बच्चे से बच सकें िे बचेंिे, तय कर िेना चावहए कक बच्चा नहीं होिा तो सबसे बेहतर। और यह भी हमें तय कर िेना चावहए मुल्क को जचंतनपूििक कक हम बच्चों को जबरदस्ती नहीं रोकें िे तो रुक नहीं सकते, हमें सख्ती से, कं प्िसरी। कं प्िसरी एजुकेशन नहीं होिी तो चि सकता है, िेककन कं प्िसरी बथि-कं ट्रोि नहीं होिा तो नहीं चि सकता है। िेककन जहंदुस्तान के बच्चों को इनसे कोई मतिब नहीं है। अभी भी बैंिबाजा बज जाता है, र्र में दसिां बच्चा हो रहा है और बैंिबाजा बज रहा है। अजीब बातें हैं! अब तो कोई आदमी मरे तो चाहे बैंिबाजा बजाइए, िेककन कोई आदमी पैदा हो तो बैंिबाजा मत बजाइए। हाितें बदि िई हैं। जजंदिी बहुत और दूसरी मुसीबत में है। अब मैं एक आदमी को अपने िांि में विखते दे खता था, िह यह बथि-कं ट्रोि का नारा विखता कर्रता है। िह विखता रहता है दीिािों पर। बहुत अच्छे अक्षर हैं। एक कदन मैं िाड़ी रोक कर उसके पास रुका और मैंने कहााः तेरे अक्षर बहुत अच्छे हैं। तेरे खुद के ककतने बच्चे हैं? उसने कहााः आपकी कृ पा से सात बच्चे हैं, दो िड़ककयां हैं और पांच िड़के हैं और अभी आठिां होने िािा है। और मैंने कहााः तू यह सब विखता कर्र रहा है दीिािों पर कक सुखी पररिार का रहस्य दो या तीन बच्चे! उसने कहााः सावहब, यह तो मेरी नौकरी है, मुझे इससे क्या मतिब! इसविए मैं विख रहा हं। नेता की नेताविरी है, िह समझा रहा है। दीिाि पर विखने िािे की नौकरी है, िह विख रहा है। न कोई सुन रहा है, न कोई समझ रहा है। मुल्क रोज बड़ा होता जा रहा है। समस्याएं रोज बड़ी होती जाएंिी। और हम वसर्ि नारे बाजी करें िे, हड़तािें करें िे, र्ेराि करें िे। नहीं, अिर जहंदुस्तान के बच्चे समझदार हैं तो हड़ताि नहीं होनी चावहए, पचास साि तक अब र्ेराि की जरूरत नहीं है। अब पचास साि तक जहंदुस्तान की सारी शवि सृजनाममक हो, सारी शवि कक्रएरटि हो, हम कु छ वनमािण करने में िि जाएं, तोशायद पचास साि 43



में हम इस मुल्क को सौभाग्य के कदन दे सकते हैं। इस मुल्क ने बहुत िंबी करठनाइयां दे खी हैं--िुिामी, िरीबी, दीनता। क्या हम भविष्य में भी इस मुल्क को कोई स्िणि-कदन नहीं कदखाएंिे? आप सबको दे ख कर आशा नहीं बंिती। क्योंकक जो हम कर रहे हैं उससे कोई आशा नहीं बंिती। और जब मैं ये सारी बातें कहता हं तो मुझे ऐसा ििता है कक शायद यह सब अरण्य-रोदन हो सकता है। िेककन कर्र भी एक आशा है कक जब आपसे मैं कु छ कह रहा हं तो आप सोचेंिे, हो सकता है सोचना आपके भीतर कोई कदशा का पररितिन बन जाए। मेरी बात मानने की जरूरत नहीं है। मैं न कोई नेता हं, न कोई िुरु; न मैं ककसी को अनुयायी बनाता हं, न ककसी से मुझे कोई िोट की जरूरत है। मेरी वसर्ि एक ही आकांक्षा है कक इस मुल्क के नौजिान सोचने ििें और अिर िे सोच कर कोई कदम उठाएं तो मैं मानता हं कक खतरा नहीं रहेिा और मुल्क के वहत में और मंिि में कु छ हो सकता है। मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांवत से सुना, उससे बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य चौथा प्रिचन



खोज की दृवि (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं) यह सिाि एकदम जरूरी और महमिपूणि है। यह बात ठीक है कक एक इं जीवनयर के पास रोटी न हो, कपड़ा न हो, खोज की सुवििा न हो, काम न हो, तो िह क्या करे ? िेककन अिर पूरे दे श के पास ही रोटी न हो, रोजी न हो, कपड़ा न हो, तो दे श क्या करे ? और इं जीवनयर को कहां से रोटी, रोजी और कपड़ा दे ? जब हम यह बात कहते हैं कक अिर मेरे पास रोटी-रोजी-कपड़ा नहीं तो मैं कै से कु छ करूं। तो हमें यह भी जानना चावहए, इस पूरे मुल्क के पास भी रोजी-रोटी-कपड़ा नहीं है। ये आपको कहां से दे ? यह हि कहां होिी बात? इसको कहां से हम तोड़ें? अिर मुल्क का हर आदमी यह कहता हो कक जब मेरे पास रोटी-रोजी-कपड़ा होिा तब मैं कु छ करूंिा, तो यह रोटी-रोजी-कपड़ा आएिा कहां से? क्योंकक मुल्क का पूरा आदमी कहता है कक जब कु छ होिा तब मैं करूंिा। और पूरा मुल्क ऐसा कहता है तो यह आएिा कहां से? यह मामिा ऐसा है कक पूरा मुल्क कोई आसमान में बैठी हुई चीज नहीं, हम सब हैं। और जब हम यह कहते हैं कक पहिे हमें रोटी-रोजी-कपड़ा चावहए तो हम यह कह रहे हैं जैसे हमें रोटी-रोजी-कपड़ा दे ने के विए कोई आसमान से उतरे िा। नहीं। जहंदुस्तान के इं जीवनयर को समझ िेना चावहए कक उसको वबना रोटी-रोजी-कपड़े के रोटी-रोजी-कपड़ा खोजने की कोवशश करनी है। इसके वसिाय कोई उपाय नहीं है। और यह इं जीवनयर का ही सिाि नहीं है, िाक्टर का भी यही है, वशक्षक का भी यही है, मजदूर का भी यही है। िेककन मैं यह मानता हं कक अिर बुवद्धमत्ता है आदमी के पास तो बुवद्धमत्ता का एक ही मतिब होता है कक जब जजंदिी चीजें नहीं दे पाती तो बुवद्ध चीजों को पैदा करने की कदशा में कर्र भी मािि खोज िेती है। हम सबकी आदत यह हो िई है जैसे ककसी और की वजम्मेिारी है, जो पूरा करे । िेककन कौन वजम्मेिारी पूरा करे िा? और जब एक इं जीवनयर को हम पढ़ाते हैं, विखाते हैं, बीस या चौबीस साि की उम्र का उसे मुल्क कर दे ता है, तो ऐसा नहीं है कक उसे रोटी नहीं दी िई, कपड़े नहीं कदए िए, वशक्षा नहीं दी िई। उसको सब कदया िया है। चौबीस साि कु छ कम नहीं होते। उसको सारी वशक्षा दे दी िई है। अब हम उससे आशा करते हैं कक जहां कु छ भी नहीं है िहां िह कु छ पैदा करने की कर्कर करे । यह मैं जानता हं कक समुद्रर पर मकान बनाना हो तो नंिे खािी हाथ से नहीं बन जाएिा। िेककन समुद्रर पर मकान बनाने की योजना नंिे खािी हाथ भी बना सकते हैं। और अिर एक बार योजना बन जाए तो िे हाथ भी खोजे जा सकते हैं जो श्रम कर सकें और िे िोि भी खोजे जा सकते हैं जो पैसा दे सकें । वजस आदमी ने पहिी दर्ा मोटर की विजाइन बनाई उसके पास एक पैसा नहीं था और खाने को रोटी भी नहीं थी। और िह वजन िोिों के पास मोटर की विजाइन िेकर िया, उन सबने कहा, तुम पािि हो। क्योंकक मोटर उसके पहिे दुवनया में कभी थी नहीं, कार कभी थी नहीं। जब उसने िोिों से कहा कक वबना र्ोड़े के और वबना बैि के यह िाड़ी चिेिी, तो उन्होंने कहा, तुम्हारा कदमाि खराब हो िया है।



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िेककन िह आदमी र्ूमता रहा नंिा, भूखा और प्यासा। आवखर उसे एक आदमी वमि िया, जो तैयार हो िया, उसने कहा कक एक प्रयोि कर िेने में कोई हजि नहीं है। तुम आदमी बुवद्धमान मािूम पड़ते हो, हािांकक काल्पवनक हो। सभी बुवद्धमान आदमी काल्पवनक होते हैं। िेककन दुवनया से कल्पना में ही सृजन होता है। एक आदमी वमि िया वजसने पैसा ििाया। वजसने पैसा ििाया उसके र्र के िोिों ने भी कहा कक तुम पािि तो नहीं हो! कहीं दुवनया में कभी कोई िाड़ी चिी वजसमें हाथी, र्ोड़ा, बैि कोई भी न जुता हो! उसने कहा, अब तक तो नहीं चिी है, िेककन दुवनया में बहुत सी चीजें कि हो सकती हैं जो कि तक नहीं हुईं। पैसे िािा भी वमि जाता है, हाथ से मजदूरी करने िािा भी वमि जाता है। एक बार हमारे सोचने का ढंि और एप्रोच बदिनी चावहए। हम वनरं तर यह सोचते हैं कक कोई हमें पहिे दे । कर्र मैं आपसे यह पूछता हं, अिर यह सच है कक इं जीवनयर को काम वमि जाए तो िह बहुत-कु छ करे िा, वजनको काम वमि िया है िे क्या कर रहे हैं? वजनको नौकरी वमि िई है, िे क्या कर रहे हैं? ऐसा तो नहीं है कक सभी इं जीवनयर नौकरी के बाहर हैं। िाखों इं जीवनयर नौकरी के भीतर हैं, िे क्या कर रहे हैं? िाखों िाक्टर नौकरी के भीतर हैं, िे क्या कर रहे हैं? बाहर जो खड़ा है िह कहता है कक मुझे भीतर िे िो, कर्र मैं कु छ करूंिा। िेककन भीतर जो हैं िे कोई सबूत नहीं दे ते करने का। नहीं, हमारी एप्रोच िित है, हमारे सोचने का ढंि िित है। और कर्र सिाि यह है कक काम नहीं है मुल्क के पास। तो मुल्क आसमान से काम पैदा नहीं कर सकता। यह हमें समझ िेना चावहए कक वजतने िोि हैं हमारे पास, उतना काम नहीं है हमारे पास। और यह भी हमें समझ िेना चावहए कक वजतने िोिों को हमने वशवक्षत कर कदया है, उतने िोिों को हम काम नहीं दे सकते हैं। यह है नहीं। इसविए इसमें जो बहुत वहम्मतिर हों, उन्हें काम िेने से इनकार कर दे ना चावहए। उन्हें चावहए कक िे वहम्मत का प्रयोि करें और नंिे हाथों कदशाएं खोजें। यह तो कमजोरों के विए दफ्तर छोड़ दे ने चावहए। इं प्िाइमेंट जो है िह जहंदुस्तान में बुवद्धहीनों के विए छोड़ दे ना चावहए। बुवद्धमानों को इं प्िाइमेंट के बाहर हो जाना चावहए। जो इं प्िाइमेंट के वबना कु छ नहीं कर सकते और उनके विए इं प्िाइमेंट छोड़ दे ना चावहए। वजनकी थोड़ी भी वहम्मत है, और वजनमें थोड़ी भी ताकत है, उन िोिों को इं प्िाइमेंट का मोह छोड़ कर बाहर हो जाना चावहए। और मैं मानता हं कक अिर मुल्क में, यह ध्यान रहे कक सारा मुल्क दुवनया में नई चीजें नहीं खोज िेता, थोड़े से िोि खोजते हैं। आज यह वबजिी आपको हिा दे रही है, रोशनी दे रही है। यह कोई सारी दुवनया की खोज नहीं है। मॉसेज ने दुवनया में कु छ नहीं खोजा है। िेककन एक आदमी वबजिी खोज िेता है, सारी दुवनया के काम आ जाती है। िेककन जो आदमी वबजिी खोज िेता है, िह अिर पहिे से ही मान कर चिता हो कक उसे ये-ये शतें पूरी होंिी तब िह खोज पाएिा, तोशायद दुवनया में कभी खोज न हो। यह बड़े मजे की बात है कक दुवनया में आमतौर से अब तक वजतनी खोजें की हैं ये उन िोिों ने की हैं जो खोजों की दुवनया के वबल्कु ि बाहर थे। दुवनया के सत्तर परसेंट िैज्ञावनक नॉन-प्रोर्े शनि हैं। जो आदमी के मेस्ट्री का प्रोर्े सर है िह के मेस्ट्री में कभी खोज नहीं करता दे खा जाता। कोई और आदमी, जो के मेस्ट्री की दुवनया से संबंवित नहीं, के मेस्ट्री की खोज करता है। जो आदमी कर्वजक्स का प्रोर्े सर है, िह कर्वजक्स में खोज नहीं



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करता। वजतनी नोबि प्राइज है िह आमतौर से उस विषय के प्रोर्े शनि प्रोर्े ससि को नहीं वमिती, िह ककन्हीं और को वमिती है। इसका कारण क्या है? अिर इं प्िाइमेंट से कु छ काम बन जाता हो तब तो बात और होती है। नहीं, ऐसा नहीं है। और आमतौर से युवनिर्सिटी जो है िह मोस्ट ऑथाििाक्स जिह होती है--जहां कक हमें सोचना चावहए ज्ञान की नई खोज होिी, िहां कु छ नहीं होता। ज्ञान की सारी नई खोजें युवनिर्सिटी के बाहर होती हैं। और अक्सर युवनिर्सिटीज इनकार करती हैं खोजों को स्िीकार करने से। दुवनया में बहुत सी खोजें हैं जो तीस-तीस, चािीस-चािीस साि रुक कर पड़ी रहीं। क्योंकक बुवद्धमान ििों ने उनको स्िीकार नहीं ककया। उनको ककन्हीं ऐसे िोिों ने खोजा वजनके पास कोई पदिी नहीं थी, कोई उपावि नहीं थी। जजंदिी में जो खोज है िह एक कदशा और एक एप्रोच और एक ढंि की बात है। शति से कोई खोज नहीं होती। शति सदा न खोजने िािे की होती है। खोज सदा बेशति और अनकं िीशनि है। वजन िोिों को खोजना है उन्हें अनकं िीशनिी खोजने में ििना चावहए। और बड़े हैरानी की बात है यह कक अक्सर दुवनया में बहुत बड़ी खोजें भूखे िोिों ने की हैं। और जैसे ही उनके पेट भर कदए जाते हैं, करीब-करीब उनकी खोजें भी मर जाती हैं। क्योंकक जैसे ही िे आराम में हो जाते हैं िैसे ही खोज की कदशा भी खो जाती है। मैं नहीं मानता हं कक जहंदुस्तान को खोज में कोई कमी है क्योंकक जहंदुस्तान बहुत भूखा है। अिर इतनी भूख और इतनी परे शानी भी खोज की प्रेरणा नहीं बनती है, तो मैं नहीं मानता हं कक अमरीका जैसे हम संपन्न हो जाएं तो हम कु छ भी खोज करें िे। जब र्र में आि ििी हो तब भी कोई बाहर वनकिने को तैयार नहीं है, तो जब र्र में आि नहीं ििी होिी तो आप र्र के भीतर सोए होंिे, इसकी आशा की जा सकती है, बाहर आप कभी भी नहीं वनकिेंिे। इतनी परे शावनयों के दबाि में भी जहंदुस्तान के युिक के मन में नई कदशा का ख्याि नहीं है। िेककन यह ख्याि आ सकता है। मैं ठीक ऐसी ही बात एक कािेज में बोि रहा था। साि भर बाद दुबारा उस कािेज में िया, तो एक युिक ने मुझे िाकर एक साइककि के चक्के का नक्शा बताया। उसने कहााः वपछिी बार आप बोिे थे, तो मेरे मन में आया कक मैं कु छ खोजूं। मेरे पास कु छ भी नहीं, िेककन एक टू टी-र्ू टी साइककि तो है ही मेरे पास, वजस पर मैं कािेज आता हं। तो मैंने कहा कक मैं साइककि के संबंि में कु छ खोज करूं। इसमें तो कोई बहुत बड़ा काम नहीं। इस पर रोज सिार भी होता हं, इसको ठोक-पीट कर रोज ठीक भी करता हं, पुरानी टू टी-र्ू टी साइककि है। इसमें कक मैं क्या कर सकता हं? आपने मुझे ख्याि कदया तो मैं अपनी साइककि के बाबत सोचने ििा। और मुझे एक ख्याि आया कक आदमी साइककि पर बैठता है तो उसका िजन पड़ता है, इसके िजन का उपयोि साइककि के चिाने में ककया जा सकता है या नहीं ककया जा सकता? िह उस खोज के पीछे पड़ िया। अब जब मैं दुबारा िया तो उसने मुझे चक्का िाकर बतिाया जो कक आदमी के िजन का उपयोि करे िा साइककि की िवत में। अभी वजतना मोटा आदमी हो उतना साइककि चिाने में मुवश्कि होती है। उसकी साइककि पर वजतना मोटा आदमी हो उतनी सुवििा होिी। उसने साइककि के टायर में कई वहस्से कर कदए हैं और साइककि के ट्यूब को आठ-दस वहस्सों में तोड़ कदया है। तो जब एक आदमी साइककि पर सिार होता है तो नीचे का जो टु कड़ा है रबड़ का, हिा का जो दबाि है िह पड़ता है उस पर। उस दबाि के , हिा के दबाि की िजह से दूसरी हिा उसमें प्रिेश करना चाहती है और साइककि की िवत बढ़ जाती है। वजतना िजनी आदमी उतनी साइककि िवतमान हो जाएिी। और सािारणतया



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वजतनी हम साइककि चिाते हैं उसमें आिी ताकत की जरूरत रहेिी, आिी ताकत शरीर से िि जाएिी, िजन से... । अब इस िड़के के पास कु छ भी नहीं है, कोई इं प्िाइमेंट नहीं है। मैंने उस िड़के को कहा कक तू और भी कर्कर कर, तेरे पास जो भी हो उसमें कर्कर कर। अभी िह मेरे पास एक मावचस िेकर आया था। जो मावचस उसने और ढंि से बनाई है। मावचस की काड़ी हमें जिानी पड़ती है। अब यह िरीब िड़का है। िेककन मावचस ककसके र्र में नहीं है! िेककन अकि चावहए, थोड़ी बुवद्ध चावहए, थोड़ी खोज की िृवत्त चावहए। िह एक नई मावचस बना कर िाया था जो कक बहुत कीमती है। िह मावचस ऐसी है कक उसमें काड़ी को अिि से जिाने की जरूरत नहीं। आप काड़ी को खींवचए, िह जिी हुई बाहर वनकिती है। क्योंकक काड़ी की मावचस के भीतर उसने रोिन ििा कदया है और काड़ी बीच में दबी है। मावचस खींवचए, िह जिी हुई बाहर वनकिती है। यह मावचस िषाि में खराब नहीं होिी, क्योंकक उसका रोिन भीतर है। और इस मावचस को अिि से जिाने की जरूरत नहीं पड़ेिी। मावचस जिी हुई बाहर वनकिेिी। वनवश्चत ही इसकी मावचस को जल्दी ही कोई बड़ा ग्राहक वमि जाएिा। उस िड़के को मैंने कहा कक तू कर्कर में ििा रहे, जो तेरे र्र में है उसी का तू उपयोि कर। अभी उसने एक स्टोि बना कर िे आया है। अब र्र में सबके स्टोि है। यह सिाि नहीं है कक इं प्िाइमेंट हो, यह सिाि नहीं कक नौकरी हो, यह सिाि है बुवद्ध का, यह सिाि है प्रवतभा का। अिर आपके पास प्रवतभा है तो आप रे त से तेि वनकाि सकें िे। अिर आप के पास प्रवतभा है तो पमथर सोना हो जाएिा। और अिर आप के पास प्रवतभा नहीं है तो सोना भी वमट्टी हो जाता है। एप्रोच बदिने के विए कह रहा हं मैं। यह नहीं कह रहा हं कक आपको इं प्िाइमेंट न वमिे। मैं यह नहीं कह रहा हं, मैं यह कह रहा हं इं प्िाइमेंट तो वमिना ही चावहए। िेककन सबको वमि सकता नहीं। उसका कोई उपाय नहीं है। एप्रोच आपकी बदिनी चावहए जजंदिी को सोचने के संबंि में। आप कपड़ा तो पहने हुए हैं, अभी जो युिक आए िे कपड़ा तो पहने हुए हैं, कपड़े के संबंि में कु छ कर्कर कर सकते हैं। खाना तो खाते हैं, खाने के संबंि में कु छ कर्कर कर सकते हैं। पेशाब तो करते हैं, इस पेशाब का कोई उपयोि खोज सकते हैं। बाि तो कटिाते हैं जाकर नाई से, कटे हुए बािों की खाद बन सकती है। कु छ उपाय खोज सकते हैं। जजंदिी में आप कु छ तो कर ही रहे होंिे, िहां कु छ और क्या हो सकता है इसकी कदशा में अिर आंखें िड़ी रहें तो आदमी जरूर बहुत कु छ खोज िेता है। िेककन आंखें िड़ी न हों तो कु छ भी नहीं खोज पाता। और वजन मुल्कों में खोज की दृवि... मैं एक सर्र में था और एक जापानी बुकढ़या मेरे साथ बैठी हुई थी। मूंिर्िी उसने खरीदी हुई थी। िह मूंिर्िी खाती जा रही थी और वछिके अपने बैि में रखती जा रही थी। मैं थोड़ी दे र में हैरान हो िया! क्योंकक मूंिर्िी के वछिके बैि में ककसविए रख रही? शायद, मैंने सोचा कक िह िंदिी नहीं करना चाहती। िेककन िह वछिकों को इतने सार् करके बैि में रख रही थी कक मुझे शक हुआ। मैंने उससे पूछााः ये वछिके ककसविए रख रही? उसने कहा कक इनको रं ि कर वखिौने बनाए जा सकते हैं। अब जापान में हर आदमी हर चीज का उपयोि करने की कर्कर करे िा। जापान में कचरे में बहुत कम चीजें र्ें की जाएंिी। क्योंकक कचरा भी बहुत काम में आ सकता है। जहंदुस्तान की सड़कें कचरे से भरी हुई हैं। अिर बुवद्ध हो तो तो यह सारा कचरा सोना बन जाए। हम इतनी चीजें र्ें क रहे हैं वजनका कोई वहसाब नहीं। ये सारी चीजें रूपांतररत हो सकती हैं। सिाि दृवि का है। िेककन हमारी दृवि तो एक है कक कोई और इं प्िाइमेंट 48



दे । पहिे हम भििान से मांिते थे कक भििान दे , अब हम सरकार से मांिते हैं कक सरकार दे । भििान तो कर्र भी ताकतिर है, सरकार तो बहुत नपुंसक है, इं पोटेंट है, िह तो कु छ भी नहीं कर सकती। भििान से ही मांिते रहते िह भी ठीक था। िेककन यह सरकार से मांिने से नहीं चिेिा। सारा मुल्क मांि रहा है कक हमें वमिना चावहए। िेककन दे ने िािा कौन है? नहीं, मुल्क में कु छ जिानों को वहम्मत करनी चावहए कक हम दें िे और अनकं िीशनि दें िे, कोई शति नहीं रखते। भूखे पेट होंिे तो भी खोजेंिे। अिर हम थोड़ी सी कर्कर करें तो ककसी भी कदशा में अनंत कदशाएं खुिती चिी जाती हैं। आदमी को जानने को बहुत कु छ शेष है, और आदमी को खोजने को बहुत कु छ शेष है, और आदमी हर रद्दी चीज को भी कक्रयाममक सकक्रय रूप से महमिपूणि बना सकता है। िेककन हमें ख्याि में आ जाए तब, अन्यथा नहीं। वसर्ि आपकी कदशा बदिे इसविए मैंने ये बात कही हैं। आप इस कदशा में सोचें इसविए ये बात कही हैं। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) यह सिाि तो बड़ा है और दो-तीन वमनट में जिाब दे ना बहुत मुवश्कि पड़े, िेककन दो-चार बातें मैं कहं और सांझ को उस सिाि को कर्र उठा िूंिा ताकक पूरी बात हो सके । पहिी तो बात यह है कक अिर युिक ज्यादा दे र तक अवििावहत रहें तो मैं यह नहीं कहता हं कक िे ज्यादा दे र तक िे वबना प्रेम के भी रहें। अवििावहत रह कर भी प्रेम ककया जा सकता है। और मैं उन िोिों में से नहीं हं, जो यह कहं कक िे िह्मचयि िारण करके रहें। क्योंकक िह नासमझी की बात है। कभी िाख में एकाि आदमी उसे उपिब्ि हो सकता है। िेककन आज तो साइं स ने इतने आर्टिकर्वशयि सािन उपिब्ि कर कदए हैं कक वबना बच्चे पैदा ककए प्रेम ककया जा सकता है। इसविए उसमें बहुत र्बड़ाने की जरूरत नहीं है, उसमें बहुत परे शान होने की जरूरत नहीं है। दूसरी बात एक वमत्र ने पूछी है कक करप्शन बढ़ िया है। करप्शन बढ़ेिा। स्िाभाविक है। जहां िोि ज्यादा होंिे और जरूरत की चीजें कम होंिी, िहां करप्शन बढ़ेिा। इस करप्शन को वमटाने का उपाय करप्शन को वमटाना नहीं है, इस करप्शन को वमटाने का उपाय िोिों की जजंदिी में समृवद्ध िाना है। और कोई रास्ता नहीं है। कोई दुवनया में आदमी बुरा नहीं होना चाहता, बुरा होना वसर्ि मजबूरी से संभि होता है। बुरा से बुरा आदमी भी मजबूरी का र्ि होता है। अिर िोि चोर हैं, बेईमान हैं, ररश्वतखोर हैं, तो मजबूररयां उन्हें इन सब चीजों के विए मजबूर कर रही हैं। इसविए अिर हमने सोचा कक हम भ्िाचार वमटाएंिे, करप्शन वमटाएंिे, तो वसर्ि बकिास चिेिी, कु छ वमटने िािा नहीं है। अिर हम जजंदिी की असिी बात को समझ िें कक चीजें कम हैं और िोि ज्यादा हैं। इसविए भ्िाचार स्िाभाविक है। तो भ्िाचार को तो एक तरर् छोड़ो, चीजें बढ़ाने में िि जाओ। भ्िाचार वमट जाएिा। और उन वमत्र ने कहा है कक इतने ज्यादा महाममा हैं। 49



जहां भ्िाचार ज्यादा होता है, महाममा ज्यादा हो जाते हैं। असि में भ्िाचारी समाज में महाममा बढ़ जाते हैं। उसका कारण है। क्योंकक जहां बीमार ज्यादा होते हैं िहां िाक्टर बढ़ जाते हैं, जहां चोर-बेईमान ज्यादा होते हैं िहां उपदे शक बढ़ जाते हैं। ये प्रोर्े शनि संबंि हैं इनके । अिर िांि में बीमार ज्यादा होंिे तो िाक्टर बढ़ जाएंिे। तो आप यह नहीं कह सकते कक िांि में इतने िाक्टर हैं तो बीमार ज्यादा क्यों हैं? बात उिटी है, िांि में इतने बीमार हैं इसविए इतने िाक्टर हैं। इतने महाममा हैं दुवनया में, इस मुल्क में इतने महाममा हैं तो इतना करप्शन क्यों है? मैं कहता हं बात उिटी है, इतना करप्शन है इसविए इतने महाममा हैं। नहीं तो इनको सुनेिा कौन? जब मुल्क में अनैवतकता बढ़ती है, इम्मॉरे विटी बढ़ती है तो प्रीचसि बढ़ जाते हैं। स्िभािताः, क्योंकक िे समझाने ििते हैं कक नैवतक बनो! और नैवतक बनना आसान तो नहीं है, समझाने से तो होता नहीं। इसविए महाममा समझाए चिा जाता है। और महाममा अच्छी बातें समझाता है तो हम उसके पैर भी पड़ते हैं। हािांकक अच्छी बातों और पैर पड़ने से मुल्क नहीं बदिता। इस मुल्क को महाममाओं की वबल्कु ि भी जरूरत नहीं है। इस मुल्क में महाममा न हों तो कु छ हजाि न हो जाएिा। वसर्ि इतना र्कि पड़ेिा कक करप्शन के वखिार् बोिने िािे िोि न होंिे। करप्शन तो इतना ही रहेिा, इससे कोई र्कि नहीं पड़ेिा। बोिने से भी कोई र्कि नहीं पड़ता है। और ध्यान रहे, हमारे सब महाममा एक अथि में आउट ऑर् िेट हैं। िह तीन-चार हजार साि पुरानी व्यिस्था उनके कदमाि में है। सारी दुवनया बदि िई है। िे जो समझा रहे हैं िह तीन-चार हजार साि पहिे ठीक था, अब ठीक नहीं है। इसविए हमारे महाममाओं का जिान से तो कोई संबंि नहीं रह िया। बूढ़े मरे हुए िोि उनके सुनते हैं, वजनका एक पैर कि में चिा िया िे महाममाओं के पास होते हैं या बेपढ़ी-विखी औरतें होती हैं। जहंदुस्तान के जिान का तो महाममाओं से कोई संबंि नहीं है। जहंदुस्तान के जिान को तो कु छ नई तरह की व्यिस्था और जचंतन पैदा करना पड़ेिा और नये विचारक पैदा करना पड़ेंिे। जहंदुस्तान के जिान के योग्य महाममा जहंदुस्तान के पास नहीं हैं। जहंदुस्तान के जिान के विए िैज्ञावनक ढंि से सोचने िािे महाममा चावहए। अब जैसे कक मैं यह बात कह रहा हं, यह जहंदुस्तान में कोई सािु आपसे नहीं कह सके िा। क्योंकक मैं जानता हं कक िह्मचयि कभी िाख दो िाख में एक आदमी के विए संभि है। और ज्यादा िोि अिर कोवशश करें िे तो वसर्ि बीमार पड़ेंिे और व्यवभचारी हो जाएंिे, और कु छ भी नहीं हो सकता। या यह हो सकता है कक मेंटि सेक्सुअविटी शुरू हो जाए, बॉवििी बंद हो जाए और कदमाि में शुरू हो जाए। जो और खतरनाक है। तो मैं आपसे कहता हं, शादी दे र से करें , िेककन इसका यह मतिब नहीं कक आपका सेक्स स्टािि हो। आपके सेक्स को भूखा रखने की कोई जरूरत नहीं है। िेककन िह पुराने जमाने की बातें हो िईं कक सेक्स से बच्चा पैदा हो जाता था। अब तो कोई जरूरत नहीं। अब तो हमने सेक्स को री-प्रोिक्शन को अिि कर विया है। सेक्स अिि चीज है, री-प्रोिक्शन अिि चीज है। और बहुत जल्दी, अभी तो हम वबना री-प्रोिक्शन के सेक्स में संबंवित हो सकते हैं, कि वबल्कु ि ऐसी वस्थवत आ जाएिी कक री-प्रोिक्शन के विए सेक्स की वबल्कु ि ही जरूरत नहीं रह जाएिी। करीब-करीब आ िई है। हम टेस्ट-ट्यूब में बच्चे को पैदा कर सकें िे। बहुत कदन वस्त्रयों को बच्चे को पेट में रखने की तकिीर् आिे नहीं झेिनी पड़ेिी। इसविए अब जो हमारी पुरानी सेक्सुअि मॉरे विटी है, उसके बचाए रखने की कोई जरूरत नहीं, िह वबल्कु ि बेकार है। अब तो भविष्य में जो मॉरे विटी होिी हाइजवनक होिी, सेक्सुअि नहीं होिी। सेक्स का बड़ा 50



सिाि नहीं है, हाइवजन का बड़ा सिाि है। यह बड़ा सिाि नहीं है कक आपका ककस स्त्री से संबंि है, बड़ा सिाि यह है कक उस स्त्री से आपका प्रेम है या नहीं। पुरानी दुवनया बहुत प्रेमहीन दुवनया थी। नई दुवनया बहुत प्रेमपूणि हो सके िी। और इसीविए प्रेमपूणि हो सके िी कक अब सेक्स को हमने बहुत से विभाजन कर कदए हैं। दुबारा जब आता हं तो चाहंिा कक इसी संबंि में आपसे पूरी बात करूं। क्योंकक यह बात िंबी है, कम से कम साठ वमनट मैं आपसे बात करूं तब सेक्स के संबंि में आपको िैज्ञावनक दृवि ख्याि में आ सकती है।



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भारत का भविष्य पांचिां प्रिचन



भारत ककस ओर? मेरे वप्रय आममन्! विदर इं विया? भारत ककस ओर? यह सिाि भारत के विए बहुत नया है। कोई दस हजार िषों से भारत की कदशा सदा वनवश्चत रही है, उसे सोचना नहीं पड़ा है। दस हजार सािों से भारत एक अपररिर्तित, अनचेंजजंि सोसाइटी रहा है। वजसमें कोई पररितिन नहीं होता रहा। एक स्टैग्नेंट, ठहरा हुआ समाज रहा है। जैसे कोई तािाब होता है, ठहरा हुआ, चारों तरर् से बंद , तो हम तािाब से नहीं पूछते ककस ओर? उसकी कोई िवत नहीं होती। नदी से पूछते हैं, ककस ओर? उसकी िवत होती है। भारत की जजंदिी और भारत का मनुष्य आज तक एक तािाब की भांवत रहा है। उसके आस-पास यह सिाि कभी नहीं उठा, ककस ओर? ककस ओर का कोई सिाि न था, जाना ही नहीं था कहीं। जहां हम थे िहां हम थे। हम मनुष्यों की भांवत नहीं जीए हैं पांच हजार िषों में, िृक्षों की भांवत जीए हैं; जमीन पर िड़े हुए, वजनमें कोई िवत नहीं है। ऐसे मैं सुनता हं कक कु छ िृक्ष भी थोड़ी सी िवत करते हैं। कु छ िृक्ष शायद अिीका के जंििों में िषि में पांच-सात र्ीट हट जाते हैं। िेककन भारत उतना भी नहीं हटा है। हमने न हटने की कसम खाई हुई थी। और हम न हटने को िौरिपूणि समझते थे। हमारा ख्याि था कक जो चीज वजतनी पुरानी है, उतनी मूल्यिान है। और पररितिन तो तब आता है जब नई चीज को हम पुरानी चीज से ज्यादा मूल्य दें । जब हम कहें कक जो नया है िह पुराने से श्रेष्ठतर हो सकता है, तो पररितिन शुरू होता है। जब हम ऐसा मानते हैं कक पुराना नये से श्रेष्ठतर होता ही है, तो पररितिन का कोई सिाि नहीं उठता। भारत के मन में सदा से ही पुराने का आदर रहा है। भारत के मन में वजतनी पुरानी चीज हो, उतनी कीमती मािूम पड़ती है। तो भारत विकासमान एििूशनरी नहीं, बवल्क र्ासमान है। पवतत हो रहा है। यह जो दस हजार साि की कहानी है, इसमें अिर ककसी ने मनु से पूछा होता--विदर इं विया? भारत ककस ओर? तो िह कहता, क्या पाििपन की बात कर रहे हैं! भारत जहां है िहां है। अविि अपनी जिह खड़ा है। कहीं जाने का कोई सिाि नहीं। सब जाना िित था। आज यह सिाि संित है, ररिेिेंट है। हम पूछ सकते हैं--भारत ककस ओर? यह सिाि क्यों उठा है? यह सिाि दो कारणों से उठा है। एक तो पहिी बार हम जित की संस्कृ वत के संपकि में आए, पहिी बार हम मनुष्य की विवभन्न संस्कृ वतयों और समाजों को दे खे और पहचाने। तो पहिी बार हमारा पररचय औरों से हुआ है। हमारा वसर्ि पररचय अपने से था। इस औरों से पररचय ने हमें संकदग्ि कर कदया है। अब हम यह नहीं कह सकते कक जो हमारे पास है िही श्रेष्ठ है। अब हम यह भी नहीं कह सकते कक जो हमारे पास है िही सही है। दूसरों के पास भी बहुत कु छ है। और हजार चीजें हैं जो हमसे ज्यादा सही दूसरों के पास भी हैं, एक। दूसरी बात, सारे जित में एक मौविक ज्ञान की क्रांवत हो िई है। उस क्रांवत के पररणाम हमारे पास भी आने शुरू हुए। उसने भी यह सिाि उठा कदया है कक अब भारत ककस ओर? क्योंकक पुरानी कदशा िूवमि हो िई है। पुराने रास्ते कार्ी चिे जा चुके हैं, और अब बेमानी हो िए हैं, और नये रास्ते चुनने की हमारी वहम्मत नहीं है, क्योंकक दस हजार साि से हमने कभी नये रास्ते चुने नहीं। जो दूसरी बात मैं कहना चाहता हं िह भी आपसे कह दूं, कर्र बात समझ में आसान हो जाएिी। 52



जीसस के मरने के बाद सारी दुवनया में अठारह सौ िषों में वजतना ज्ञान विकवसत हुआ है उतना ज्ञान वपछिे िेढ़ सौ िषों में विकवसत हुआ। और वजतना िेढ़ सौ िषों में विकवसत हुआ है उतना वपछिे पंद्रह िषों में विकवसत हुआ है। और वजतना वपछिे पंद्रह िषों में विकवसत हुआ है उतना वपछिे पांच िषों में विकवसत हुआ है। आदमी वजस ज्ञान को पैदा करने में अठारह सौ साि ििाता था, अब हम पांच साि में उतना ज्ञान पैदा कर िेते। और यह िवत रोज बढ़ती चिी जाती है। इसके पररणाम बड़े अदभुत हुए हैं। इसका एक पररणाम तो यह हुआ है कक कोई भी चीज वथर नहीं हो पाती। अिर एक ज्ञान अठारह सौ साि तक सच हो तो समाज वथर हो जाता है, ठहर जाता है। िेककन अिर ज्ञान हर पांच िषि में बदि जाता हो और नये ज्ञान का एक्सप्िोजन हो जाता हो तो समाज कभी वथर नहीं हो पाता। इसके पहिे कक आप ठहरें , आप पाते हैं िह जमीन हट िई है नीचे से, वजस पर आपने भिन बनाया था। उसके पहिे कक आप वनवश्चत होकर बच जाएं, िे रास्ते िित हो जाते हैं वजन रास्तों पर आपने बसने की इच्छा की थी। इसविए पुराना समाज अिर कभी बदिता भी था तो बदिाहट का क्रम इतना िीमा था कक एक छोटी सी बदिाहट िाने में बीस पीकढ़यां िुजर जाती थीं। इसविए बदिाहट का कभी पता नहीं चिता था। एक िैज्ञावनक के संबंि में मैंने सुना है कक िह बदिाहट के संबंि में कु छ प्रयोि कर रहा था। उसने एक मेढक को एक उबिते हुए िरम पानी में िाि कदया। िह मेढक छिांि ििा कर बाहर हो िया। उबिता हुआ पानी था, जान का खतरा था। कर्र उसने उसी मेढक को सािारण ठं िे पानी में रखा, और बहुत िीरे -िीरे पानी को िरम करना शुरू ककया। थोड़ा पानी िरम हुआ, उतनी िमी मेढक को छिांि ििाने के विए कार्ी नहीं थी। िह उतनी िमी के विए राजी हो िया, एिजेस्ट हो िया। कर्र और थोड़ा िमि ककया, कर्र और थोड़ा िमि ककया। चौबीस र्ंटे के िंबे र्ासिे में पानी उबिने के जबंदु पर आ िया। मेढक अब भी भीतर था। उसने छिांि नहीं ििाई, िह उबिा और मर िया। क्या हुआ? यह मेढक चौबीस र्ंटे में राजी हो िया। यह मेढक एकदम से िरम पानी में िािा िया तो छिांि ििा कर बाहर वनकि िया। अिर अठारह सौ साि में या दो हजार साि में या चार हजार साि में एक बात बदिती हो तो समाज बदिता नहीं था, बवल्क उस बदिाहट को आममसात कर िेता था, राजी हो जाता था, ठहरा रहता था। अब बदिाहट इतनी तीव्र है कक हम बदि भी नहीं पाते कक बदिाहट हो जाती है। अब बदिाहट करीबकरीब कपड़ों के र्ै शन की तरह है। अब जजंदिी में ज्ञान जो है िह ऐसा हो िया है कक आप कपड़े बनिा नहीं पाते कक िे आउट ऑर् र्ै शन हो जाते हैं। मैंने सुना है कक एक आदमी रास्ते से पेररस की ओर भािा हुआ जा रहा था। और िोिों ने उससे पूछा कक इतनी तेजी क्या है? उसने कहााः मैं अपनी पत्नी के कपड़े िेकर जा रहा हं। उन्होंने कहााः कर्र भी इतनी जल्दी क्या है? उसने कहा, इसके पहिे कक र्ै शन न बदि जाए मुझे र्र पहुंच जाना जरूरी है। कभी हमने नहीं सोचा था कक र्ै शन की तरह ज्ञान बदि जाएिा। अब ज्ञान र्ै शन से भी तेजी से बदि रहा है। इसविए आज विज्ञान की कोई बड़ी ककताब विखनी मुवश्कि हो िई है। छोटी ककताबें विखी जा रही हैं। ककताबें ही मुवश्कि हो िई हैं। असि में, पवत्रकाओं में विज्ञान की खोजों की खबर दी जा रही है। क्योंकक जब तक मोटी ककताब विखी जाए तो मोटी ककताब को विखने में भी कम से कम िषि भर ििेिा। िषि भर में जो हमने विखा है िह वपछड़ जाएिा।



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ज्ञान का जो एक्सप्िोजन है, यह जो ज्ञान का विस्र्ोट है, इसने सभी वथर समाजों के प्राण कं पा कदए हैं। बदिने की वहम्मत नहीं, बदिने की आदत नहीं, बदिने का अनुभि नहीं, और बदिाहट इतने जोर से टू टी है कक या तो, या तो हम अंिे हो जाएं और दुवनया से अपने को तोड़ िें और अपने कु एं में बंद हो जाएं या कर्र हमें जोर से बदिना पड़ेिा। टू टने का भी कोई उपाय नहीं है, अपने कु एं में बंद होने का भी कोई रास्ता नहीं है। दीिािें खड़ी करके भी हम दुवनया के ज्ञान को रोक नहीं सकते। िह ज्ञान आएिा ही। और अिर हम रोकें िे तो हम मरें िे। वबना ज्ञान के भी मर जाएंिे। िह अज्ञान भी हमारी मौत बन जाएिा। यह जो ज्ञान का विस्र्ोट है इसने एक और करठनाई पैदा की है, िह करठनाई भी ख्याि में िे िेनी जरूरी है, तो "भारत ककस ओर" उसे समझने में आसानी हो जाएिी। िह यह करठनाई हुई है कक पुरानी दुवनया में बूढ़ा आदमी सदा ही ज्यादा जानता था। वशक्षक विद्याथी से हमेशा अवनिायि रूप से ज्यादा जानता था। बाप बेटे से हमेशा ज्यादा जानता था। मां बेटी से हमेशा ज्यादा जानती थी। स्िभािताः, क्योंकक इतनी कम बदिाहट होती थी कक वजस आदमी के पास ज्यादा अनुभि था िही ज्यादा ज्ञानी था। अब बदिाहट इतनी तेजी से होती है कक वजस आदमी के पास वजतना पुराना ज्ञान है िह उतना ही अज्ञानी हो जाता। आज वशक्षक और विद्याथी के बीच बहुत र्ासिा नहीं है। अक्सर तो एक र्ंटे का र्ासिा होता है। र्ंटे भर पहिे िह तैयार करके आया होता है। बस उतना ही र्ासिा होता है। और जब वशक्षक र्ंटे भर स्कू ि या कािेज में पढ़ा चुका होता है तो विद्याथी और वशक्षक बराबर ज्ञान की वस्थवत में आ िए होते हैं। और अिर कोई बहुत प्रवतभाशािी विद्याथी हो तो वशक्षक से ज्यादा जान सकता है। उसकी कोई करठनाई नहीं रह िई। बेटा बाप से ज्यादा जानता है, क्योंकक बाप तीस साि पहिे युवनिर्सिटी से वनकिा होता है। बेटा तीस साि बाद युवनिर्सिटी से आता है। तीस साि में ज्ञान नये आकाश छू िेता है। नई उपिवब्ियां हो जाती हैं। हमेशा पहिी दुवनया में बेटे ने बाप से पूछा था। िेककन बहुत ज्यादा कदन िह दूर नहीं है जब हमेशा बाप को बेटे से पूछना पड़ेिा कक नया ख्याि क्या है? नई वस्थवत क्या है? नई समझ क्या है? नया सोच क्या है? नया विचार क्या है? नई उपिवब्ि क्या है? और बहुत हैरानी न होिी कक हमें बूढ़े आदवमयों को िापस ररिे शर कोसेज के विए युवनिर्सिटीज में भेजना पड़े। अभी इस संबंि में सुझाि चिता है। पवश्चम के बहुत बुवद्धमान िोि यह सुझाि दे रहे हैं कक अिर वपता को अपना वपता की हैवसयत बनाए रखनी है तो उसे बेटे के ज्ञान से वनरं तर पररवचत होना जरूरी हो िया है। बेटा जो जान रहा है उसे जान िेना जरूरी हो िया है। यह जो बेटे के पास, नई उम्र के आदमी के पास ज्यादा ज्ञान हो िया है इससे बड़ा उपद्रि पैदा हुआ है। स्िभािताः बाप जब सब कु छ जानता था और बेटा कु छ भी नहीं जानता था तो बाप के प्रवत एक आदर था, जो ििमिा िया है, िह आदर अब आिे नहीं रह सकता। क्योंकक िह आदर ज्ञान पर खड़ा था। बाप ज्यादा जानता था बेटा कम जानता था। इसविए बाप आदृत था। अब िह बात खमम हो िई है। िुरु और वशष्य के बीच हजारों साि का र्ासिा था। िुरु जानता था हजारों साि के अनुभि को और वशष्य को कु छ भी पता नहीं था। तो वशष्य िुरु के चरणों में वसर रखता था। अब यह वसर रखना बहुत मुवश्कि हो िया। क्योंकक अब र्ासिा, विस्टेंस बहुत कम है, न के बराबर है। नहीं रह िया है। यह जो वस्थवत है इस वस्थवत ने पहिी दर्ा यह सिाि ठीक से उठा कदया है--भारत ककस ओर? अब भारत कहां जाएिा? क्या भारत को अब भी भारत का बूढ़ा आदमी कदशा दे िा? अिर दे िा, तो भारत कहीं भी 54



नहीं जाएिा। िह जहां था िहीं रहेिा। बूढ़े आदमी की वहम्मत बदिाहट की कम हो जाती है। बुढ़ापे का मतिब ही यही है बायोिॉवजकिी भी, जो जीिशास्त्र आपमें से पढ़ते होंिे िे भी कहेंिे कक बुढ़ापे का मतिब ही यह है कक बदिाहट की क्षमता कम हो िई, बूढ़े की नसें सख्त हो जाती हैं अब बदि नहीं सकतीं। बच्चा बदि सकता है, िोचपूणि है, फ्िेवक्जबि है। अिर बूढ़े भारत को कदशा दें िे तो िे कदशा नहीं दें िे। भारत जैसा सरोिर था तािाब िह उसे िैसा ही बनाए रखना चाहेंिे। िेककन अिर बच्चे भारत को कदशा दें िे तो भी कम खतरा नहीं है। क्योंकक बूढ़े कदशा दें िे तो तािाब सड़ जाएिा, बंद रह जाएिा, हम दुवनया के साथ िवत न कर सकें िे। और अिर बच्चों ने कदशा दी तो वसर्ि अनाकी पैदा होिी अराजकता पैदा होिी, हजार कदशाएं हो जाएंिी। नदी नहीं बनेिी हजार छोटी-छोटी िाराएं टू ट जाएंिी, समाज वबखर जाएिा, व्यिस्था खंवित हो जाएिी, और एक अराजकता, एक अनाकी पैदा हो जाएिी। अिर हम बूढ़े से कदशा मांिें, तो िेिनेस पररणाम में आएिी, मृमयु, एक मुदाि समाज। और अिर हम बच्चों से कदशा मांिें, तो एक अनाकी पैदा होिी, एक अराजक समाज। ये दोनों ही विकल्प चुनने जैसे नहीं हैं। अिर बूढ़े कदशा दें िे तो भारत के अतीत को ही िे भारत पर कर्र से थोपना चाहेंिे। िे कर्र रामराज्य ही िाना चाहेंिे। हािांकक कोई चीज कभी िौटाई नहीं जा सकती, जो िई िह िई। इवतहास पुनरुि नहीं होता है। इस जित में कु छ भी िौटता नहीं, जो िया िह िया। पुनरुवि नहीं होती। रामराज्य िौटाया नहीं जा सकता है। िेककन अिर बूढ़े भारत के भविष्य की भी कल्पना करें िे तो राम-राज्य की भाषा में करें िे। अतीत ही उनके विए नक्शा होिा। िे उसी नक्शे को भारत पर थोपना चाहेंिे। यह संभि नहीं है। इस चेिा में भारत के विकास की संभािनाएं क्षीण होंिी। अिर भारत के बच्चे भारत को कदशा दे ना चाहेंिे, तो स्िभािताः िे भारत के ऊपर पवश्चम को थोपना चाहेंिे। क्योंकक आज भारत के बच्चे के पास जो भी ज्ञान उपिब्ि हो रहा है िह पवश्चम से उपिब्ि हो रहा है। और ध्यान रहे, वजस तरह अतीत को नहीं ओढ़ा जा सकता उसी तरह ककसी दूसरी संस्कृ वत और दूसरे समाज में पनपे हुए ख्यािों को भी हम कभी आममसात नहीं कर सकते हैं। िे कभी हमारी आममा नहीं बन सकते हैं। हम कपड़े तो बदि सकते हैं दूसरों से, आममाएं नहीं बदि सकते हैं। आममाओं की जड़ें होती हैं, रूट्स होती हैं, िंबी उसकी कथा और यात्रा होती है। अिर भारत के बूढ़ों ने भारत को कदशा दी तो भारत अपने अतीत को ओढ़ने की कोवशश करे िा। जो असंभि है। और अिर भारत के बच्चों ने भारत को कदशा दी तो भारत पवश्चम को ओढ़ने की कोवशश करे िा। जो कक उतना ही असंभि है। न तो हम पूरब के अतीत को ओढ़ सकते हैं और न पवश्चम के ितिमान को ओढ़ सकते हैं। कर्र भारत के विए उपाय क्या है? सािारणताः ये दो ही विकल्प कदखाई पड़ते हैं। या तो हंड्रेि परसेंट भारतीय रहो, सौ प्रवतशत भारतीय, कोई होता नहीं दुवनया में, होिा तो मरा हुआ आदमी होिा। सौ प्रवतशत भारतीय बनाना चाहेिा भारत का बूढ़ा मन और या कर्र सौ प्रवतशत पाश्चामय, िेस्टनि बनाना चाहेिा भारत का नया मन। ये दोनों ही विकल्प मेरे विए साथिक नहीं मािूम होते। और ये दो ही विकल्प कदखाई पड़ रहे हैं। और आज जो संर्षि है भारत में िह इन दो विकल्पों, दो ऑल्टरनेरटव्स के बीच है। बूढ़े खींच रहे हैं पीछे की तरर्, जिान खींच रहे हैं पवश्चम की तरर्। िेककन आिे की तरर् इनमें से कोई भी िे जाने िािा नहीं है। न तो पवश्चम की तरर् जाने से हम आिे जाएंिे और न पूरब के पीछे की तरर् जाने से हम आिे जाएंिे। आिे जाना बहुत और बात है। और उस और बात के विए दो-तीन सूत्र आपसे कहना चाहंिा।



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पहिी बात तो यह कहना चाहंिााः बच्चों के पास ज्ञान ककतना ही ज्यादा हो जाए; अनुभि ज्यादा नहीं हो पाता है। नािेज ककतनी भी बच्चों के पास ज्यादा हो जाए; वि.जिम कभी भी ज्यादा नहीं हो पाती है। सूचनाएं ककतनी ही ज्यादा वमि जाए, िेककन जीिन के अनुभूवत की िंभीरता उनके पास नहीं होती है। अिर हम आज बुद्ध को कर्र से पैदा कर पाएं तोशायद मैरट्रक क्िास पास होना उन्हें बहुत मुवश्कि पड़ेिा, िेककन कर्र भी, आज जमीन पर आदमी खोजना मुवश्कि होिा जो उतना ज्ञानी हो। सूचनाओं में हमारे बच्चे भी उनसे परीक्षा में आिे वनकि जाएंिे, िेककन अनुभि, वि.जिम, प्रज्ञा में हमारे बूढ़े भी उनके पीछे रह जाएंिे। ज्ञान के संबंि में विस्र्ोट हो िया है। और बच्चों के पास ज्यादा ज्ञान बढ़ता जा रहा है िेककन अनुभि आज भी उम्र के साथ है, अनुभि आज भी िृद्ध के पास है। जीिन के अनंत-अनंत अनुभि हैं, जो वसर्ि स्कू ि से नहीं वमिते; जीिन में जीने से ही वमिते हैं। जो ज्ञान युवनिर्सिटी में वमि जाता है उस मामिे में बूढ़ा पीछे पड़ िया है, पड़ता ही रहेिा अब आिे। िेककन जो ज्ञान जीिन से वमिता है उस ज्ञान के संबंि में बूढ़े के पास अब भी अनुभूवत है। िह अनुभूवत उपयोि में िाई जानी जरूरी है। कहीं ऐसा न हो कक बूढ़े की इनर्ामेशन की कमी, हमारे मन में उसके अनुभि की कमी बन जाए। अिर ऐसा हुआ तो खतरा होिा। इससे उिटा भी न हो कक वसर्ि ज्ञान की बढ़ती हुई मात्रा कहीं हमें अनुभि की प्रतीवत न कराने ििे। बच्चों के पास बढ़ता हुआ ज्ञान है िेककन यह ज्ञान ठीक िैसा ही है जैसा कं प्यूटर के पास होता है। ये बच्चों के कदमाि में िािी िई सूचनाएं हैं वजन्हें उन्होंने परीक्षाएं दे कर तय कर कदया है कक उन्हें मािूम है। िेककन इससे ज्ञान नहीं बढ़ता, के िि स्मृवत ही बढ़ती है, के िि याददाश्त ही बढ़ती है। ज्ञान नहीं बढ़ता। ज्ञान जीिन के , वनरं तर के अनुभि से िीरे -िीरे आता; उसकी कोई परीक्षा नहीं होती, उसकी कोई क्िास नहीं होती और उसके विए कोई सर्टिकर्के ट नहीं होता। और वजन चीजों के विए सर्टिकर्के ट होते हैं, परीक्षाएं होती हैं, िे के िि इनर्ामेशन के संबंि में सही हैं, जीिन के संबंि में सही नहीं हैं। और ऐसा हो सकता है कक एक आदमी प्रेम के संबंि में सारी बातें जान िे और कर्र भी प्रेम उसने न जाना हो। और ऐसा भी हो सकता है कक वजस आदमी ने प्रेम जाना हो उसे प्रेम के संबंि में कही िई बातों का कु छ भी पता न हो। ऐसा हो सकता है कक एक आदमी तैरने के संबंि में विखे िए सारे शास्त्र पढ़ िे, परीक्षाएं पास कर िे, और यह भी हो सकता है कक िह तैरने के संबंि में एक पीएचड़ी. की थीवसस भी विखे और िाक्टर हो जाए, िेककन इस आदमी को नदी में भूि से भी िक्का मत दे दे ना, क्योंकक िह आदमी तैर नहीं पाएिा। उसे तैरने के संबंि में पता है, तैरने का पता नहीं है। एण्ि यू नो समजथंि, एण्ि यू नो अबाउट समजथंि। इनमें जमीन-आसमान का र्कि है। कोई चीज जाननी और ककसी चीज के संबंि में जानना, बहुत बुवनयादी र्कि की बातें हैं। जब हम जीिन को जानते हैं तो ज्ञान पैदा होता है और जब हम जीिन के संबंि में जानते हैं तो वसर्ि सूचना, इनर्ामेशन पैदा होती है। नई पीकढ़यों के पास सूचनाएं ज्यादा हैं, अनुभि वबल्कु ि नहीं हैं। िृद्धों के पास, पुरानी पीढ़ी के पास, ओल्िर जनरे शन के पास अनुभि है, सूचनाओं में िे वबल्कु ि वपछड़ िए हैं। बूढ़े आदमी के अनुभि के उपयोि की जरूरत है, नये आदमी की सूचनाओं के उपयोि की जरूरत है। यह करीब-करीब वस्थवत िैसी है जैसा कक एक पंचतंत्र की एक छोटी सी कहानी जरूर ही सुनी होिी कक एक जंिि में आि िि िई है और एक िंिड़ा और एक अंिा आदमी उस जंिि से बचने की कोवशश कर रहे हैं। स्िभािताः जब आि ििी हो तो आदमी अपने बचाने की कोवशश में ििता है। अंिा भाि रहा है। िेककन अंिा अिर आि में भािेिा तो बचने की उम्मीद कम मरने की उम्मीद ज्यादा है। बेहतर है कक अंिा जहां है िहीं बैठा 56



रहे तोशायद बच भी जाए। िेककन ििी हुई आि के जंिि में अंिे के भािने की कोवशश बड़ी खतरनाक है। अंिा भाि कर बचेिा कै से? क्योंकक वजसे कदखाई नहीं पड़ता िह ििे हुए आि से भरे हुए जंिि में बचने के उपाय में वसर्ि मर सकता है। िेककन अंिा भी भाि रहा है। िंिड़े को कदखाई पड़ रहा है िेककन भाि नहीं सकता। कहानी है पंचतंत्र की। बड़े बुवद्धमान रहे होंिे िे अंिे और िंिड़े। उन दोनों ने साथ कर विया और सहयोि ककया। उन्होंने एक कोआपरे शन ककया। और उन्होंने यह तय ककया कक अंिा आदमी चिे और िंिड़ा आदमी अंिे के कं िों पर बैठ जाए। िंिड़ा आदमी दे खे और अंिा आदमी चिे, और िे दोनों आदमी एक आदमी की तरह व्यिहार करें , दो आदवमयों की तरह नहीं। िे एक-दूसरे के विए कांप्िीमेंट्री हो जाएं, िे एक-दूसरे के विए पररपूरक हो जाएं। िे अंिे और िंिड़े जंिि के बाहर आ िए थे। आश्चयि नहीं कक बाहर आ िए। क्योंकक बाहर आने का जो सुिमतम उपाय हो सकता था उसका उन्होंने उपयोि ककया था। मेरी दृवि में भारत आज करीब-करीब पंचतंत्र की कहानी की वस्थवत में है। एक तरर् िंिड़े बूढ़े हैं, वजनके पास आंखें हैं, दूर तक दे खने का अनुभि है। दूसरी तरर् ताकत से भरे हुए जिान हैं, वजनके पास दूर तक दौड़ने के विए मजबूत पैर हैं, िेककन अनुभि की आंखें नहीं हैं। ये िंिड़े नक्सिाइट हुए जा रहे हैं। और ये बूढ़े मंकदरों में भजन-कीतिन कर रहे हैं। इन दोनों के बीच कोई कोआपरे शन नहीं है। इन दोनों के बीच कांवफ्िक्ट है, इन दोनों के बीच विरोि है, इन दोनों के बीच संर्षि है। इन दोनों के बीच ऐसा संबंि है जैसा दुश्मनों के बीच होता है। वमत्रों के बीच नहीं। भारत ककस ओर? यह वनणिय रास्ते का कम और चिने िािों के बीच सहयोि का ज्यादा है। और अिर जिान और बूढ़े नई और पुरानी पीढ़ी के बीच एक सहयोि हो सके , तो बहुत करठन नहीं है कक हम तय कर िें कक ककस ओर? िेककन तय करना बेकार है। क्योंकक जो तय कर सकते हैं, जो दे ख सकते हैं उनके पास पैर नहीं और जो चि सकते हैं िे आंख िािों की बात सुनने को राजी नहीं। भारत अिर मरे िा तो चीन के हमिे से शायद बच भी जाए, पाककस्तान से उसे कोई बड़ा खतरा नहीं; तीसरा महायुद्ध अिर दुवनया में हो तोशायद भारत में तोशायद ही हो। उसकी कोई संभािना नहीं। िेककन भारत अिर मरे िा तो िह जो जनरे शन िैप है, िह जो भारत की दो पीकढ़यों के बीच बढ़ता हुआ र्ासिा है, टू टते हुए विज, टू टते हुए सेतु हैं, बूढ़े और जिान के बीच कहीं कोई बोिचाि नहीं रह िया, कोई कम्युवनके शन नहीं है। मैं बहुत, सैकड़ों र्रों में ठहरता हं। िेककन मुझे ऐसा कदखाई नहीं पड़ता कक बाप और बेटे के बीच कोई बोिचाि की वस्थवत है। ऐसा नहीं कक िे नहीं बोिते, जरूर बोिते हैं। िेककन बोिने में और बोिचाि में बहुत र्कि है। बाप जरूर बोिता है बेटे से, जब उसे कोई उपदे श दे ना होता है। और ध्यान रहे, कदए िए उपदे श कभी भी नहीं विए जाते हैं। और यह भी ध्यान रहे कक कदए िए उपदे श मन में बड़ा क्रोि पैदा करते हैं। इसविए बाप उपदे श दे ता रहता है, बेटा कान बंद करके सुनता रहता है। बेटे भी बाप से कभी वमिते हैं, जब उनकी जेब खािी होती है और बाप के जेब पर हाथ रखना होता है। िेककन वजसकी भी जेब पर आप हाथ रखते हैं उससे बातचीत नहीं हो पाती। उससे बहुत मुवश्कि हो जाता। ऐसे बाप-बेटे र्र में बच कर वनकिते हैं। पहिे हम सोचते थे, र्र िह जिह है जहां सारे िोि साथ रहते हैं। अब मैं हजारों र्रों को दे ख कर आपसे कहना चाहता हंःाः र्र िह जिह है जहां सारे िोि एक-दूसरे से बच कर रहते हैं। बाप िरा रहता है बेटा सामने न पड़ जाए, कोई उपद्रि न हो जाए। बेटा िरा रहता है कक बाप सामने न पड़ जाए कोई उपद्रि न हो जाए। बेटी मां से बच



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रही है, बह सास से बच रही है, भाई भाई से बच रहा है, िे सब बच रहे हैं। र्र िह जो जिह है जहां हम एकदूसरे से बच कर रहते हैं। र्र िह कन्िीवनयंस है जहां हम साथ भी होते हैं और साथ होते भी नहीं। र्र एक सुवििापूणि व्यिस्था है वजसमें साथ रहने का िोखा पैदा होता है और कोई साथ नहीं होता। यह जो भारत की दो पीकढ़यों के बीच बढ़ता हुआ अंतराि है, इसके नाम हजार होंिे--यह कभी हड़ताि बनता है, कभी पथराि बनता है, कभी र्ेराि बनता है। इसके नाम हजार होंिे िेककन इसकी पहचान एक है। और िह पहचान यह है कक भारत के अतीत, भारत के बूढ़े, और भारत के भविष्य, भारत के जिान एक-दूसरे की तरर् पीठ करके खड़े हुए हैं। िे एक-दूसरे से दूर हटते जा रहे हैं। और दे श की सारी की सारी शवि उनके इस विरोि में नि और क्षीण हो रही है। यकद हम इन दो पीकढ़यों के बीच संिाद िा सकें , िाया जा सकता है। और मैं मानता हं प्रमयेक वशक्षण संस्था को दो पीकढ़यों के बीच संिाद िाने की कोवशश करनी चावहए। जहां बाप-बेट,े मां और बेरटयां आमने-सामने बैठ कर खुिे कदि से हाटि टु हाटि, हृदय की बात कर सकें , और सीिी और सार् बात कर सकें । एक-दूसरे को अपनी बात सीिी और सार् कह सकें , वबना ककसी भय के । जो सच है उसे हम एक-दूसरे से बात कर सकें । तोशायद अंिे और िंिड़े के बीच संबंि जोड़ा जा सकता है। अभी भी दे र नहीं हो िई। और अिर िह संबंि जुड़ जाए तो भारत की कदशा बहुत स्पि है। भारत की कदशा स्पि है इस अथों में कक हम अपने अतीत को तो कभी बदि नहीं सकते। और अतीत हमारे खून का वहस्सा हो िया होता है, हमारी हड्डी, हमारी मांस-मज्जा बन जाता हैं। अतीत िह नहीं है जो इवतहास की ककताबों में विखा है, अतीत िह है जो हमारे खून में बहता है। इवतहास की ककताबें जि जाएं तो भी अतीत वमट नहीं जाएिा, हम अपने अतीत हैं। िी ऑर अिर ओन पास्ट। हम सारे अतीत को अपने में समाए हुए खड़े हैं। इसविए कोई भी अतीत से वबल्कु ि टू टने की कोवशश करे तो सुसाइिि है, मरे िा, बच नहीं सकता। क्योंकक हड्डी मेरी अतीत की है, मांस मेरा अतीत का है, खून मेरा अतीत का है। मैं खुद मेरे पूरे अतीत से पैदा हुआ हं। िह जो िंबा पास्ट है, वजसमें करोड़ों िोिों का हाथ है--िृक्षों का, पशुओं का, पवक्षयों का, आकाश का, उस सबका मैं अंवतम छोर हं। उस बड़ीशृंखिा की आवखरी कड़ी हं। हम सब अपने अतीत हैं। काश, हम नई पीढ़ी को यह समझा पाएं कक अतीत हमारे जीिन का आिार है। और काश हम पुरानी पीढ़ी को यह समझा पाएं कक हम वसर्ि अतीत नहीं हैं, हम अपने भविष्य भी हैं। अतीत िह है जो हम हो िए, भविष्य िह है जो हम होंिे, जो हम हो सकते हैं। अतीत हमारा आिार है, भविष्य हमारा वशखर है। अतीत हमारी बुवनयाद है, भविष्य हमारे मंकदर का स्िणि-वशखर है, जो कि हम चढ़ाएं। अतीत हम हो िए हैं, भविष्य हमें होना है। और कोई वशखर मंकदर का बुवनयाद के वबना नहीं होता। और कोई र्ू ि जड़ के वबना नहीं वखिता। जड़ अतीत है, र्ू ि भविष्य है। काश हम भारत की नई पीढ़ी को समझा पाएं कक अतीत तुम्हारा खून, तुम्हारी हड्डी है, उससे तुम टू ट नहीं सकते। तुम बुद्ध की प्रवतमा तोड़ो, तुम विद्यासािर की प्रवतमा विराओ, तुम मंकदर जिा दो, तुम मवस्जदों में आि ििा दो, तुम िुरुद्वारों की तरर् पीठ कर िो, तुम िीता, कु रान बाइवबि भूि जाओ, सब हो जाए िेककन कर्र भी अतीत से तुम टू ट नहीं सकते, क्योंकक तुम्हारा होना ही, तुम्हारे होने में ही, कद िेरी बीइं ि, उसमें ही तुम्हारा अतीत समाविि है। उसमें बुद्ध मौजूद हैं, उसमें महािीर, रामकृ ष्ण, नानक, सब उसमें मौजूद हैं। सब ककताबें वमट जाएं, सब अतीत खो जाए, तो भी हमारे खून के वहस्से हैं। 58



अतीत से हम मुि नहीं हो सकते हैं, िह है। मैं अब कु छ भी उपाय करूं अपने वपता से कै से मुि हो सकता हं। वपता का दुश्मन हो जाऊं, मैं उनकी हमया कर दूं, तो भी मैं वपता से मुि नहीं हो सकता हं। माना कक मां का मैं वहस्सा हं, िेककन मां तक ही सीवमत नहीं रह सकता, अन्यथा मेरा कोई जीिन नहीं होिा। अतीत हमारा है िेककन हम अतीत को भी ट्रांसेंि करते हैं, पार जाते हैं। िही हमारा भविष्य है। काश हम बूढ़ी पीढ़ी को समझा सकें कक भविष्य की तरर् र्ै िती हुई शाखाओं को अतीत में बांिो मत। मुि करो। अतीत की जड़ें र्ू िों के विए रस दें , र्ू िों को बांिने िािी कवड़यां और जंजीरें न बन जाएं, तो भारत की कदशा बहुत सार् है। भारत को अपने पूरे अतीत को पचा कर अपने पूरे भविष्य को खोजना है। यह भविष्य अतीत जैसा नहीं होिा। नहीं हो सकता। यह भविष्य पवश्चम जैसा भी नहीं हो सकता। क्योंकक पवश्चम जैसा हमारा अतीत नहीं है। इसविए ये र्ू ि पवश्चम में जो वखिे हैं, हमारी जजंदिी में ठीक िैसे नहीं वखि सकते जैसे िहां वखिे हैं। और अिर हमने वखिाने की कोवशश की तो वजन र्ू िों की जड़ें हमारे पास नहीं हैं, क्योंकक अिर पवश्चम के पास अरस्तू की बुवद्ध है, सुकरात का तकि है, कांट और हीिि और फ्यूरिाक और माक्सि और रसि की समझ है, तो हमारे पास बहुत दूसरे तरह के िोिों की हमारे खून में िाराएं हैं। बुद्ध सुकरात जैसे आदमी नहीं हैं। महािीर कांट जैसा व्यविमि नहीं हैं। राम, कृ ष्ण, नानक, कबीर, मीरा, ये हीिि और कांट और माक्सि जैसे िोि नहीं हैं। हमारे पास और ही तरह की जड़ें हैं। तो अिर हमने पवश्चम का र्ू ि ठीक पवश्चम की नकि में वखिाना चाहा तो िह प्िावस्टक का र्ू ि होिा, असिी र्ू ि नहीं हो सकता। िह बाजार से खरीदा िया कािज का र्ू ि होिा। इसविए जब कोई भारतीय आदमी ठीक पवश्चमी हो जाता है तो एकदम कािजी हो जाता है। उसकी जजंदिी में वसर्ि कािज होते हैं। िे सब ऊपर-ऊपर होते हैं। मेरे एक वमत्र जमिनी में थे बीस िषों से। िे जहंदी भाषा बोिना भूि िए। जमिन ही उनकी मातृभाषा हो िई। िे यहां आते थे तो जहंदी समझ भी नहीं पाते थे। बहुत छोटे थे तब जमिनी िए, मुवश्कि से नौ साि के थे। स्िभािताः जमिन भाषा उनके प्राणों में भर िई। कर्र वपछिे िषि एक बड़ी अजीब र्टना र्टी कक िे बीमार हो िए। और बीमारी इतनी र्ातक हुई कक िे कोमा में, बेहोशी में चिे िए। तो उनके भाइयों को यहां से जमिनी जाना पड़ा। अस्पताि में उनके भाइयों को रुकने के विए आज्ञा न थी। कदन भर साथ रहते रात छोड़ दे ते। िेककन िाक्टरों ने कहा कक रात बड़ी अजीब हाित होती है, कभी-कभी आपका भाई होश में आ जाता है तो न मािूम ककस भाषा में बोिने ििता है, वजसे हम समझ नहीं पाते। तो आप रुकें । बड़ी हैरानी की बात, रात जब िह बेहोशी उनकी टू टती तो िे जहंदी में बोिने ििते। िह जो बीस साि में भी सीखा है ऊपर से, िह भी प्राणों के बहुत िहरे में नहीं जा पाता। जब िे बेहोशी में बड़बड़ाते तो जहंदी में और जब होश में बोिते तो जमिन में। िह जो प्राणों के िहरे में जड़ें हैं िे िहां होती हैं। मेरे एक वमत्र मुझे विखते थे कक दूसरे मुल्क में जाकर एक बड़ी करठनाई होती है, िह करठनाई सािारणताः अनुभि नहीं आती, अिर ककसी के प्रेम में पड़ जाओ तो दूसरे की भाषा में बोिना बहुत करठन हो जाता है या ककसी से झिड़ा हो जाए तो भी दूसरे की भाषा में बोिना बहुत करठन हो जाता है। दुकान चिानी हो, काम चिाना हो, चि जाता है, िेककन प्रेम और झिड़े में, ििता है अपनी ही भाषा में बोिा जाए। एक छोटी सी कहानी मुझे याद आती है। सुना है मैंने कक राजाभोज के दरबार में एक पंवित आया। और िह पंवित तीस भाषाएं बोिता था। और इस भांवत बोिता था कक ििता था प्रमयेक भाषा उसकी मातृभाषा है। बड़ी करठन उपिवब्ि है। उसने चैिेंज, उसने चुनौती की राजाभोज के दरबाररयों को कक तुममें से अिर कोई 59



मेरी मातृभाषा पहचान िे तो मैं िाख स्िणि-मुद्राएं भेंट करूंिा। और अिर नहीं पहचान पाया प्रवतयोिी तो उसे दो िाख स्िणि मुद्राएं मुझे दे नी पड़ेंिी। राजाभोज के विए बड़े अपमान की बात थी। भाषा बोिना तो दूर, उसकी भाषा पहचानने के विए उसने यह चुनौती दी थी। भोज के दरबार के पंवित रोज हारने ििे, िह रोज भाषाएं बोिता और जो भी भाषा मातृभाषा बताई जाती िह कहता कक नहीं। काविदास चुप थे। भोज ने कहा कक तुम प्रवतयोविता में उतरो, अन्यथा हार वनवश्चत है। काविदास ने कहााः मैं तैयारी कर रहा हं। आवखरी पंवित भी हार िया। कि काविदास का ही नंबर है। राजा भोज ने कहााः तैयारी हो िई या हम हारें िे। काविदास ने कहााः मैं तैयारी कर रहा हं। कर्र िह पंवित बाहर वनकिा। सीकढ़यों पर खड़े हुए िे बात करते थे। काविदास ने उस पंवित को जोर से िक्का दे कदया। महि की सीकढ़यां थीं, िह दस-बारह सीकढ़यां नीचे जाकर विरा। और िुस्से में जो पहिे शब्द बोिा, काविदास ने कहा, मार् करना, यही तुम्हारी मातृभाषा है, इसके अिािा जानने का कोई उपाय न था। और िक्का दे ना अवशि है। िेककन हम सब उपाय करके दे ख चुके। तुम होश में तो जो भी बोि रहे हो, उससे तुम्हारे िहराई का पता नहीं चि सकता। िेककन बेहोशी में, और क्रोि का क्षण बेहोशी का क्षण है, िह टेम्प्रेरी मैिनेस का क्षण है, जब कक स्थायी रूप से आदमी बेहोश हो जाता है। उस आदमी के मुंह से िह बात वनकि िई जो उसकी मातृभाषा थी। मातृभाषा ही नहीं, मात्र संस्कृ वत भी, मातृभूवम भी। िह सब जो हमारी जड़ों में है हमारे िहरे में बैठा होता है। इसविए पवश्चम को अिर हमने थोपा तो हम ऊपर से कािजी या प्िावस्टक के र्ू ि ििाए हुए कदखाई पड़ेंिे, उनसे हमारे प्राण मजबूत नहीं होंिे। िेककन इसका यह मतिब नहीं है कक पवश्चम से सीखना नहीं है। पवश्चम से बहुत कु छ सीखना है। िेककन पवश्चम में भी जो हुआ है उसको हमारी ही भूवम में वखिाना होिा। हमारे अतीत में ही पवश्चम के बीजों को वखिाना होिा। और तब एक नया भविष्य भारत के विए पैदा होिा। वजसमें न तो भारत सौ प्रवतशत भारतीय हो सकता है और न भारत सौ प्रवतशत पवश्चमी हो सकता है। भारत वबल्कु ि एक नया ही जसंथेरटक, एक नई ही समवन्ित संस्कृ वत होिा। वजसमें भारत का अतीत आिार बनेिा, पवश्चम की सारी खोजें वनवमत्त और सहयोि बनेंिी। और जो प्रकट होिा िह वबल्कु ि नया होिा। िह क्रासिीजिंि होिी। पुराने िोि समझते थे कक क्रास-िीि जो है बड़ी बुरी बात है। पुराने िोि समझते थे संकर होना बड़ी बुरी बात है। िेककन आिुवनक विज्ञान कहेिा कक क्रास-िीि की बड़ी सामथ्यि है। अिर एक अंग्रेज सांि और जहंदुस्तानी िाय से बच्चा पैदा होता है तो उसके पास जहंदुस्तानी िाय की तो सारी क्षमताएं होती ही हैं, उसके पास अंग्रेज सांि की भी सारी शवि होती है। और िह जो बच्चा है िह जहंदुस्तानी िाय और अंग्रेज सांि दोनों से बेहतर होता है। भारत ककिर? तो मैं दे खता हं कक भारत का भविष्य पवश्चम के आिुवनक विज्ञान और भारत के अतीत में पैदा हुए िमि, इनकी क्रास-िीि से पैदा होिा। भारत का भविष्य, संकर भविष्य होिा। िेककन अिर करपात्री जी से या शंकराचायि से पूवछएिा तो िे बहुत नाराज होंिे। िे कहेंिे कक संकर! क्रास-िीि! ये तो हम भ्ि हो जाएंिे। हमें तोशुद्ध होना चावहए। िेककन इस जित में वजतना विकास है िह सब क्रास-िीजिंि है। सारा विकास। इस जित में वजतना विकास है उसमें जोशुद्ध रहना चाहेिा िह मरे िा, िह वहटिर जैसा पािि है। और इस जमीन पर बहुत कम पािि हुए हैं जो वहटिर जैसे पािि हों। बवल्क जहंदुस्तान में बहुत पािि हैं। वजनके कदमाि में वहटिरी सपने 60



और ख्याि हैं। जो समझते हैं शुद्ध हंड्रेि परसेंट भारतीय। हंिेि परसेंट भारतीय कु छ नहीं बच सकता। हां, वसर्ि मरर्ट हो सकता है हंड्रेि परसेंट भारतीय। एक मरर्ट हम बनाना चाहें तो मुल्क बन सकता है। और जो कहते हैं कक हंड्रेि परसेंट भारतीय नहीं, िे भी उतने ही िित बात कहते हैं। क्योंकक अिर हम हंड्रेि परसेंट भारतीय नहीं होने का तय कर िें तो हम वसर्ि कािजी आदमी रह जाएंिे। कािज की नािें, वजनके पास कोई िंिर भी नहीं है। वजनके पास कोई तट भी नहीं है जहां रटक कर खड़ी हो जाएं। जो वसर्ि हिा के झोंकों में और पानी की िहरों में िोिती रहेंिी और नि हो जाएंिी। भारत के सामने बहुत बड़े विचार की जरूरत है। भारत का पूरा अतीत समवन्ित होना चावहए और पवश्चम का समस्त शोि-विज्ञान समवन्ित होना चावहए। हमारे हृदय की सारी खोज और उनके तकि की सारी प्रवतभा। अतीत पूरा और ितिमान समग्र, अिर दोनों हम संयुि कर पाएं, संयुि कर सकते हैं, कोई करठनाई नहीं; समझ के अवतररि और कोई करठनाई नहीं; एक अंिरस्टैंजिंि के अवतररि और कोई करठनाई नहीं। तो भारत एक बहुत ही नये र्ू ि को जित में वखिा सकता है। और न के िि अपने विए बवल्क सारे जित के विए एक जसंथेरटक कल्चर, एक समवन्ित संस्कृ वत का, एक संिेद संस्कृ वत का आदशि बन सकता है। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं। विस्तार की बात मैंने नहीं कही, विटेल्स मैंने नहीं कहे। मैंने बहुत सूत्र की बात कही कक ये दो विकल्प हैं और दोनों विकल्प िित हैं। और एक तीसरा विकल्प, एक थर् ि ऑल्टरनेरटि चुना जाना चावहए। वजसमें हम हम भी होंिे और हम सारे जित को भी अपने में समा िेंिे। तब भारत के पास एक शविशािी, ऊजाििान जीिंत संस्कृ वत का जन्म हो सकता है। िेककन अिर हमने इन दो पीकढ़यों के बीच की खाई पूरी नहीं की, तो भारत ककस ओर? तो वसिाय मरर्ट के तीर और कहीं नहीं जाता हुआ कदखाई पड़ेिा। भारत मर सकता है अिर वजद की पुराना रहने की, अिर वजद की वबल्कु ि नया हो जाने की तो भारत मर सकता है। अिर िंिड़े और अंिे ने सहयोि न ककया, अिर पुरानी और नई पीढ़ी एक-दूसरे के कं िे पर न बैठी तो भारत मर सकता है। भारत को अिर जीिंत भविष्य दे ना है तो एक समवन्ित संस्करण, एक समवन्ित जसंथेरटक कल्चर की जरूरत है। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं। मेरी बातें माननी जरूरी नहीं हैं, मैं कोई उपदे शक नहीं हं। मेरी बातें सुनी यह बड़ी कृ पा। इन पर सोच िेंिे तो पयािप्त। सोचना, मेरी बातें िित हो सकती हैं, क्योंकक ककसी आदमी को इस भ्म में होने की जरूरत नहीं है कक उसकी सभी बातें सही हों। यह भी पुराने आदमी का पाििपन था। कोई सििज्ञ नहीं है। हो भी नहीं सकता है। होने का ख्याि वसर्ि विवक्षप्तता है। तो मैंने जो कहा जैसा मुझे कदखाई पड़ता है। िेककन मुझे जो कदखाई पड़ता है हो सकता है आपको कदखाई न भी पड़े। वसर्ि मेरे साथ दे खने की कोवशश करना, हो सकता है उसमें से कु छ आपको भी कदखाई पड़े। और जो आपको भी कदखाई पड़ जाए िह समय आपके जीिन को रूपांतररत करने का कारण बन जाता है। और आप तो आने िािी पीढ़ी हैं अिर इसमें से कु छ भी समय आपकोकदखाई पड़ सके और भारत के अतीत को जमीन बना कर, जित के ितिमान को बीज बना कर अिर हम इस दे श के भविष्य के र्ू ि वखिा सकें , तो यह दे श बहुत कदन से दीन-दररद्र, दुखी और पीवड़त है। इस दे श में भी स्ििि का आिमन हो सकता है। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांवत से सुना, उससे बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य छठिां प्रिचन



पुर ाने और नए का समन्िय एक सिाि पूछा िया है, और िह सिाि िही है जो आपके प्राचार् य महोदय ने भी कहा। सरि कदखाई पड़ती है सैद्धांवतक रूप से जो बात, उसको आचरण में िाने पर तमकाि करठनाइयां शुरू हो जाती हैं। करठनाइयां हैं, िेककन असंभािनाएं नहीं हैं। विकर्कल्टीज हैं, इं पावसवबविटीज नहीं हैं। करठनाइयां तो होंिी हीं, क्योंकक सिाि बहुत बड़ा है। और अिर हम सोचते हों कक कोई ऐसा हि वमि जाएिा वजसमें कोई करठनाई नहीं होिी, तो ऐसा हि कभी भी नहीं वमिेिा। करठनाइयां हैं िेककन करठनाइयों से कोई सिाि हि होने से नहीं रुकता, जब तक कक असंभािनाएं न खड़ी हो जाएं। तो एक तो मैं यह कहना चाहता हं कक करठनाइयां वनवश्चत हैं। थोड़ी नहीं, बहुत हैं। िेककन हि की जा सकती हैं। क्योंकक करठनाइयां ही हैं और करठनाइयां हि करने के विए ही होती हैं। िेककन अिर हम करठनाइयों को विनती करके बैठ जाएं, र्बड़ा जाएं, तो कर्र एक कदम आिे बढ़ना मुवश्कि हो जाता है। मैंने सुना है कक एक आदमी एक पहाड़ की यात्रा पर वनकिा था। उसके पास एक छोटी सी िािटेन थी और रात थी अंिेरी। और िािटेन की रोशनी दो-तीन कदम से ज्यादा नहीं पड़ती थी। तो िह र्बड़ा कर बैठ िया। पास से कोई दूसरा आदमी िुजरता था उसने कहा, तुम बैठ क्यों िए हो? उसने कहा कक मुझे चिना है कोई एक हजार मीि और िािटेन की रोशनी है बहुत थोड़ी, दो कदम तक पड़ती है। तो मैंने वहसाब ििाया, मैं िवणत का जानकार हं। तो मैंने वहसाब ििाया कक दस हजार मीि दूर तक र्ै िा हुआ अंिेरा है और जरा सी िािटेन है, दो कदम तक रोशनी पड़ती है इससे पार नहीं हुआ जा सकता। इसविए मैं बैठ िया हं। तो उस दूसरे आदमी ने कहा कक माना मैंने कक तुम्हारा िवणत ठीक है, िेककन क्या तुम्हारे बैठ जाने से पार हो जाओिे? उसने कहााः बैठ जाने से तो वबल्कु ि ही पार नहीं होऊंिा। तो उस दूसरे आदमी ने कहा, कम से कम दो कदम चिो, वजतनी रोशनी है और भरोसा रखो कक वजस दीये से दो कदम तक रोशनी पड़ी; आिे दो कदम चिने पर कर्र दो कदम तक रोशनी पड़ेिी। और तुम वजतना चिोिे हमेशा दो कदम आिे तक रोशनी कदखाई पड़ती रहेिी। और दस हजार मीि इकट्ठा तो कोई भी नहीं चिता है। आदमी चिता है एक बार एक ही कदम। तो अिर हम करठनाइयों को इकट्ठा कर िें और कै िकु िेट कर िें, तो बहुत मुवश्कि में पड़ जाएंिे, करठनाइयां बहुत हैं। िेककन एक-एक को हि करना शुरू करें तो िे हि हो सकती हैं। यह सिाि भी पूछा है कक नई और पुरानी पीकढ़यों के र्ासिे को कै से दूर ककया जाए? वशक्षण संस्थाएं क्या कर सकती हैं, यह भी पूछा है, इस संबंि में। तीन-चार प्रयोि जरूर ककए जाने जैसे मुझे ििते हैं। संवक्षप्त में ही कह सकूं िा। क्योंकक िह बात कर्र पूरी बड़ी हो जाएिी। एक तो दुवनया में जिान सदा थे, बूढ़े सदा थे, िेककन नई पीढ़ी जैसी कोई चीज कभी न थी। उसका कारण था। न तो बड़ी युवनिर्सिटीज थीं, न बड़े कािेजे.ज थे जहां नये बच्चों को हम इकट्ठा कर दें । 62



एक र्र में बच्चा अपने र्र में था, दूसरा बच्चा अपने र्र में था। आज, आज िाखों बच्चे एक जिह इकट्ठे हो िए हैं। इसविए सारी दुवनया में उपद्रि की जो जिह है िह युवनिर्सिटी के कै म्पस बन िए हैं। चाहे िांस हो, और चाहे जापान हो, और चाहे किकत्ता हो, और चाहे बनारस हो। इससे कोई र्कि नहीं पड़ता। सारी दुवनया में आज जहां नई और पुरानी पीढ़ी का र्ासिा बहुत कस कर कदखाई पड़ता है िह युवनिर्सिटी कै म्पस है। नई पीढ़ी बड़े पैमाने पर इकट्ठी है एक जिह और पुरानी पीढ़ी वबखरी हुई है िह इकट्ठी कहीं भी नहीं है। पुराने कदनों में पुरानी पीढ़ी की संस्थाएं थीं। मंकदर उनका था, पंचायत उनकी थी, विरजा उनका था। नई पीढ़ी वबखरी हुई थी, पुरानी पीढ़ी इकट्ठी थी। आज बाप अके िा पड़ िया है और बेटे बहुत बड़ी संख्या में एक जिह इकट्ठे हो िए हैं। इसविए बाप की पीढ़ी के विए कोई भी उपाय नहीं रह िया है। तो एक तो मेरा मानना है कक हर वशक्षण-संस्था को, वजस तरह िह नई पीढ़ी को इकट्ठा करती है, इस तरह िषि में पंद्रह कदन महीने भर के विए पुरानी पीढ़ी को भी नई पीढ़ी के साथ इकट्ठा करने के प्रयोि शुरू करने चावहए। िह सेमीनार बड़े कीमत के वसद्ध हो सकते हैं। पुरानी और नई पीढ़ी को कहीं वनकट िाने की कोवशश करने के हजार उपाय ककए जा सकते हैं। िेककन कहीं उन्हें वनकट िाने के हमें उपाय करने चावहए। मैं मानता हं वशक्षण-संस्थाएं ठीक जिह हैं जहां यह संभि हो सकता है। और नई और पुरानी पीढ़ी अपनी सारी तकिीर्ों को एक-दूसरे से कहें। अभी क्या है, पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को िािी दे ती रहती है र्रों में बैठ कर। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को नासमझ समझ कर उपेक्षा करती रहती है। िेककन दोनों की क्या ऑथेंरटक तकिीर्ें हैं। बाप की क्या मुसीबत और करठनाई है, बेटे की क्या मुसीबत और करठनाई है, इसको आमने-सामने एनकाउं टर नहीं हो पाता। तो एक तो र्ासिे को कम करने के विए वनकट बातचीत आमने-सामने वबठाया जाना जरूरी है। राउं ि टेबि कांिेंसस, पुरानी और नई पीढ़ी के बीच युवनिर्सिटीज, कािेजे.ज, स्कू िों में आयोवजत करनी चावहए। जहां श्रेष्ठतम नई पीढ़ी का व्यविमि भी सामने आए और पुरानी पीढ़ी का भी श्रेष्ठतम आदमी सामने आए। जहां हम अपनी तकिीर्ें ईमानदारी से कह सकें । और ऐसा नहीं है जैसा आपके जप्रंवसपि महोदय ने कहा। यह थोड़ी दूर तक सच है कक बूढ़े आदमी को राजी करना मुवश्कि है, िेककन सब बूढ़े ऐसे नहीं हैं। िे खुद भी िृद्ध हैं। और मैं समझता हं उनको राजी ककया जा सकता है। सभी बूढ़े बूढ़े नहीं हैं। िृद्ध पीढ़ी के पास भी एक वहस्सा है जो उसमें सबसे ज्यादा बुवद्धमान वहस्सा है िह सदा ही नई चीज के विए राजी ककया जा सकता है। नई पीढ़ी के पास भी सभी बच्चे नहीं; नई पीढ़ी के पास भी एक वहस्सा है जो उसका सबसे बुवद्धमान वहस्सा है वजसे पुरानी पीढ़ी के वनकट िाया जा सकता है। और यह जित और यह समाज, कोई िाखों िोिों से नहीं चिता, बहुत थोड़े से इं टेविजेंवशया से चिता है। अिर पुरानी पीढ़ी की क्रीम और नई पीढ़ी की क्रीम वनकट आ जाए तो हम र्ासिे को कम कर सकते हैं। कोई हर आदमी को वनकट िाने की जरूरत नहीं है। िेककन क्रीम भी वनकट नहीं आ पाती है। बवल्क क्रीम वबल्कु ि वनकट नहीं आ पाती, जो नई पीढ़ी में बुवद्धमान और तेजस्िी िड़का है िह बिािती हो जाता है। िह तोड़-र्ोड़ में िि जाता है। जो पुरानी पीढ़ी के पास बुवद्धमान आदमी है िह अक्सर ररनवन्सएशन में पड़ जाता है। िह सोचता है कक सब बकिास है छोड़ो। िह अपनी, अपनी जजंदिी के जो थोड़े कदन बचे हैं उनकोशांवत और आनंद से और अपनी ही खोज में वबताना चाहता है।



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पुरानी पीढ़ी के बुवद्धमान को और नई पीढ़ी के बुवद्धमान को वनकट िाया जा सकता है। बुद्िुओं को तो कहीं भी वनकट नहीं िाया जा सकता, चाहे िे पुरानी पीढ़ी के हों और चाहे नई पीढ़ी के हों। उनको वनकट िाने की जरूरत भी नहीं है, उनको वनकट िाने का कोई प्रयोजन भी नहीं। यह जित बहुत थोड़े से िोिों से संचावित होता है। यह मुवश्कि से एक प्रवतशत आदमी है। िही यहां व्यिस्था करिाता है, िही उपद्रि भी करिाता है। मुवश्कि से एक प्रवतशत आदमी है जो जजंदिी को सुख भी दे ता है और दुख से भी भर दे ता है। यह सारे िोिों का प्रश्न नहीं है। सारी भीड़, िह जो मॉसेज है, िह तो आमतौर से भेड़चाि होती है, िह तो भेड़ की तरह पीछे चिती रहती है। वसर्ि आिे की भेड़ को वनकट िाने की जरूरत है। और यह बहुत बड़ा मसिा नहीं है। युवनिर्सिटी कै म्पस, वशक्षण संस्थाएं इन्हें वनकट िा सकते हैं। इन्हें करीब रहने का मौका भी वमिना चावहए। बूढ़े और बच्चे साथ रह सकें , साथ खेि सकें , पंद्रह कदन के विए िपशप कर सकें , दोस्ती कर सकें । एक अमरीकी बूढ़ी औरत ने सत्तर साि की बूढ़ी औरत, उसने एक छोटा सा प्रयोि ककया है, िह मैं आपसे कहना चाहता हं। उसने एक चार साि के बच्चे से दोस्ती की। और उस चार साि के बच्चे के साथ दोस्त की तरह व्यिहार करने का तीन साि तक प्रयोि ककया है। उसने अपने तीन साि के संस्मरण विखे हैं िे बड़े अदभुत हैं। िह बच्चों को भी पढ़ाए जाने चावहए और बूढ़ों को भी पढ़ाए जाने चावहए। एक सत्तर साि की बूढ़ी औरत जब चार या पांच साि के बच्चे से दोस्ती करती है तो उसे पांच साि के बच्चे को समझना शुरू करना पड़ता है। पांच साि का बच्चा दो बजे रात उसको उठा िेता है और कहता है, चांद बाहर बहुत अच्छा है, बाहर चिें। दोस्त है, यह बूढ़ी उसकी मां नहीं है कक इनकार कर दे । दोस्त की बात माननी पड़ती है। िह बच्चा उसे दो बजे रात बाहर रोशनी में िे िया है। िह बच्चा उसे वततवियां पकड़ने के विए दौड़िाता है। िह दोस्त है, उसकी मां नहीं है। िह बच्चा उसे नदी में तैरने के विए िे जाता है, िह बच्चा उसे पवक्षयों के िीत भी सुनने के विए आतुर करता है। िह उस बच्चे के साथ नाचती भी है, कं कड़-पमथर भी बीनती है, जाकर शंख-सीपी भी बीनती है। और तीन साि के अनुभि में उसने विखा कक तीन साि उस बच्चे की दोस्ती ने उस बच्चे को क्या कदया िह मुझे पता नहीं, िह तो जब बच्चा विखेिा अपने संस्मरण कभी तब पता चिे, िेककन मुझे जजंदिी दुबारा वमि िई, मैं कर्र से जिान हो िई हं, मैं कर्र से बच्चा हो िई हं। मैं अब कर्र वततिी में रं ि दे ख पाती हं। और अब मैं कर्र नदी के ककनारे पड़े कं कड़-पमथरों में हीरे -मोती दे ख पाती हं। और अब मैं कर्र रात झींिुर की आिाज सुनने के विए िृक्ष के पास रुक कर बैठ पाती हं। उस बूढ़ी औरत ने विखा है कक उस बच्चे ने वजतना मुझे कदया उतना सत्तर साि की जजंदिी ने मुझे नहीं कदया था। उसके साथ दोस्ती बड़ी कीमती वसद्ध हुई। ऐसा नहीं है कक बच्चे को वसद्ध न होिी। क्योंकक जब बूढ़ी को बच्चे से वमिेिा तो बच्चे को बूढ़ी से भी वमिने िािा है। हम पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के कम से कम बुवद्धमान ििि को वनकट िाने का उपाय करें । उनकी समझ एक-दूसरे के बाबत बढ़े। तो अंिरस्टैंजिंि वजतनी बढ़े, अिर हम िृद्ध पीढ़ी की करठनाई समझ सकें , उनकी करठनाइयां हैं, उनकी करठनाइयों का अंत नहीं हैं। ऐसा नहीं है कक िे वसर्ि वजद की िजह से अपनी पुरानी बातें बदिने को राजी नहीं हैं। अिर कोई ऐसा कहता है तो जरा जल्दी में कहता है। उनकी अपनी करठनाइयां हैं। और पुरानी बातों पर रुकने के उनके अपने कारण हैं। उनके हजार अनुभि उन्हें कहते हैं कक जो बार-बार परीवक्षत ककया िया है उसी से चिना उवचत है। उनका अिर हम पूरा भाि समझें, उनके अनुभि समझें, उनकी 64



वस्थवत, उनका आउट िुक समझें, तो नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के प्रवत ररबेवियस नहीं रह जाएिी, वसम्पैवथरटक हो जाएिी। इतना ही हो सकता है, अनुिामी अब नहीं हो सकता। अब नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की अनुिामी कभी नहीं हो सके िी। िह इं पावसबि आकांक्षा है। वसम्पैवथरटक, सहानुभूवत पूणि हो जाए इतना जरूरत से कार्ी है, जरूरत से ज्यादा है। और पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी की तरह चुस्त कपड़े पहन कर सड़क पर चिने ििेिी ऐसा भी मैं नहीं मानता हं, जरूरत भी नहीं है, उवचत भी नहीं है। िेककन पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी के भविष्य के प्रवत ररवजि न रह जाए, सख्त न रह जाए, ढांचे को बुरी तरह थोपने के विए आतुर न रह जाए, इतनी संिेदना भर आ जाए तो कार्ी है। और मैं नहीं मानता कक यह बहुत करठन है। कोई बाप अपने बेटे को वबिाड़ने को उमसुक नहीं है। और अिर वबिाड़ता भी है तो बनाने की आकांक्षा में ही वबिाड़ता है। और अिर कभी उसे पता चि जाए कक िह जोढांचे थोप रहा है िे िित हो िए हैं, अब िे साथिक नहीं हैं, तो िह ढांचे थोपने के विए तैयार नहीं होिा। और कोई बेटा अपने बाप को दुख पहुंचाने के विए आतुर नहीं होता, िेककन जो िह करता है उससे जानेअनजाने दुख पहुंच जाता है। काश उसे पता चि जाए और ये सारी चीजें सार् हो जाएं, तो हमारी सहानुभूवत बढ़े, तो हम वनकट आ सकते हैं। पूछा हैाः र्ासिा कै से कम हो? सहानुभूवत कै से बढ़े? उससे र्ासिा कम होिा। और सहानुभूवत वबल्कु ि सूखती जा रही है। क्योंकक हम एक-दूसरे को जब तक न जानें, तब तक सहानुभूवत हो भी नहीं सकती। तो कभी हमें इन दोनों पीकढ़यों को वनकट िाएं और कभी इन दोनों पीकढ़यों को एक-दूसरे की जिह वबठािने की भी कोवशश करें । जैसे बूढ़ी पीढ़ी को यहां बुिाएं और उनसे कहें कक आप बूढ़ी पीढ़ी के वखिार् बोिें। और नई पीढ़ी को बुिाएं और उससे कहें कक यहां तुम नई पीढ़ी के वखिार् क्या-क्या बोि सकते हो िह बोिो। एक-दूसरे के जूतों में खड़े करने की भी जरूरत है। तभी हमें पता चिता है कक दूसरे के जूते में कांटा चुभ रहा है। हमें पता ही नहीं चिता कक दूसरे के जूते में क्या तकिीर् है? उसके जूते में पैर िािना पड़ता है। बच्चों को बूढ़े की जिह थोड़ा खड़ा करना पड़ेिा, बूढ़ों को बच्चों की जिह थोड़ा खड़ा करना पड़ेिा। और वशक्षण संस्थाएं यह प्रयोि कर सकती हैं। और अभी दे र नहीं हो िई, अभी वसर्ि शुरुआत है पाििपन की, अिर यह बढ़ता चिा िया तो बहुत दे र हो जाएिी। और कर्र सुिारना रोज करठन होता चिा जाएिा। मैं जानता हं करठनाइयां बहुत हैं, िेककन करठनाइयां प्रोग्रेवसि हैं, यह भी ध्यान में रहे, िे रोज बढ़ रही हैं। इसविए वजतने जल्दी उन पर आक्रमण हो जाए उतना ही आसान पड़ेिा, वजतनी बीमाररयां बढ़ जाएंिी उतनी ही करठनाई होती चिी जाएिी। बहुत संभि है कक िीरे -िीरे बूढ़े और बेटे एक-दूसरे की भाषा ही समझना बंद कर दें । अभी भी कार्ी दूर तक भाषा समझाना मुवश्कि हो िया है। िह करठन होता जा रहा है। इस करठनाई को वमटाने के विए हम उपयोिी हो सकते हैं। िेककन हम नहीं हो पाते। हम नहीं हो पाते िह हम इसविए नहीं हो पाते कक हम में से ऐसे िोि बहुत कम हैं वजनको हम जिंक कह सकें , वजनको हम कह सकें कक जो न तो बूढ़े हैं और न बच्चे हैं।



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िेककन वशक्षक ऐसा काम कर सकता है। िह जिंक जनरे शन उसे मैं मानता हं। वशक्षक का काम ही यही है कक िह बूढ़े के ज्ञान को बच्चों तक पहुंचा दे और बच्चों की संभािनाओं को बूढ़ों तक पहुंचा दे । वशक्षक का उपयोि ही यही है। अब तक यह नहीं था। अब तक एक काम था वशक्षक के हाथ में कक बूढ़े का जो ज्ञान है िह बच्चों को पहुंचा दे , कनिे कर दे । कहीं ऐसा न हो कक बूढ़ों का ज्ञान बूढ़ों के साथ मर जाए। इसविए वशक्षक विकवसत ककया िया था कक िे बूढ़े के अनुभि को िह बच्चों तक पहुंचाने का काम कर दे । पुरानी पीढ़ी ने जो जाना है, खोजा है िह मर न जाए, बच्चों तक पहुंच जाए। यह काम वशक्षक ने अब तक भिीभांवत पूरा ककया है। अब वशक्षक पर एक नया दावयमि भी आ रहा है। और िह यह है कक िह बच्चों की जो नई संभािनाएं हैं, पोटेंवशएविटीज हैं उनको भी बूढ़ों तक पहुंचा दे । अब यह वबल्कु ि दूसरा काम है जो अब तक वशक्षक के ऊपर नहीं था। अब तक वशक्षक िन-िे ट्रैकर्क का काम कर रहा था। िह बूढ़े से बच्चे तक िाने का काम कर रहा था। बच्चों से बूढ़ों तक िे जाने का काम वशक्षक ने अब तक नहीं ककया था। अब वशक्षक िन-िे ट्रैकर्क नहीं रहेिा, िबि-िे ट्रैकर्क हो जाएिा। और वशक्षक अिर यह काम करे तो मैं नहीं मानता हं कक दूरी ज्यादा कदन रटक सकती है। दूरी वमटाई जा सकती है। िेककन वशक्षक यह काम नहीं करता; या तो वशक्षक नई पीढ़ी के साथ हो जाता या वशक्षक पुरानी पीढ़ी के साथ हो जाता है। वशक्षक को ककसी पीढ़ी के साथ होने की जरूरत नहीं है। वशक्षक का मतिब ही यही है कक िह ककसी पीढ़ी के साथ नहीं है, िह जिंक जनरे शन है, िह बीच की जोड़ने िािी पीढ़ी है। िह सेतु है, विज है। और अिर विज कहे कक मैं इस ककनारे के पक्ष में हुआ जाता हं, तो विज नहीं रह जाएिा। और अिर विज कहे कक मैं उस ककनारे पर हुआ जाता हं, तो कर्र विज नहीं रह जाएिा। विज को दोनों ककनारों पर रहना पड़ेिा और दोनों ककनारों से मुि भी रहना पड़ेिा। तभी विज दोनों ककनारों के बीच आिािमन बन जाता है। इसविए वशक्षण संस्थाएं जो उन्होंने अतीत में ककया है उससे भी बड़ा काम उनके हाथ में भविष्य में है। और वशक्षक जो अब तक ककया है उससे भी कीमती काम उसके हाथ में भविष्य में है। िेककन यह तो मैं कर्र कभी आऊं तो इस पर विस्तार से आपसे बात कर सकूं ।



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भारत का भविष्य सातिां प्रिचन



आध्यावममक दृवि मोरार जी भाई दे साई ने कहा कक िांिी जी की आिोचना आर्थिक सोच-विचार करने िािे िोि करते थे, अब आध्यावममक िोिों ने भी इनकी आिोचना करनी शुरू कर दी है। शायद मोरार जी भाई को पता नहीं कक िांिी न तो आर्थिक व्यवि थे और न राजनैवतक। िांिी मूिताः आध्यावममक व्यवि थे। और इसविए िांिी को समझने में न तो आर्थिक समझ के िोि उपयोिी हो सकते हैं और न राजनैवतक बुवद्ध के िोि उपयोिी हो सकते हैं। िांिी को समझने में के िि िे ही िोि समथि हो सकते हैं वजनकी कोई आध्यावममक दृवि है। और जब तक िांिी पर आध्यावममक दृवि के िोि विचार नहीं करें िे तब तक िांिी के संबंि में समय का उदर्ाटन असंभि है। िांिी के साथ अन्याय यही हो िया कक िांिी मूिताः आध्यावममक व्यवि थे और दुभािग्य से सारे जीिन राजनीवतज्ञों से वर्रे रहे। िांिी के विए राजनीवत आपद-िमि में थी। िांिी का िमि तो नीवत थी, राजनीवत मजबूरी थी। िेककन िांिी के आस-पास जो िोि इकट्ठे हुए थे, उनके विए, उनके विए राजनीवत मूि थी, नीवत आपद-िमि थी। और यही र्ासिा िांिी और िांिीिाकदयों के बीच जहंदुस्तान के विए आममर्ाती वसद्ध हुआ है। जैसे ही सत्ता जहंदुस्तान के हाथ में आई, राजनीवत तो िांिी को मजबूरी थी, सत्ता हाथ में आते ही िे हट िए। और उनके सावथयों और सहयोवियों और अनुयावययों के हाथ में सत्ता पहुंच िई, उनके विए नीवत आपद-िमि थी, सत्ता हाथ में आते ही उनकी नीवत छू ट िई। िांिी की राजनीवत छू टी, उनकी नीवत छू टी। वजसका जो सार भाि था िह शेष रह िया और जो असार था िह छू ट िया। िांिी के विए राजनीवत असार थी िह छू ट िई और उनके अनुयावययों के विए नीवत और िमि असार था िह छू ट िया। िांिी ने शायद सोचा होिा कक उनके पीछे जो िोि इकट्ठे हैं, िे िमिबुवद्ध के , िे विचारशीि, िे नैवतक और सदाचारी वसद्ध होंिे। िांिी िहां चूक कर िए, िांिी िहां ठीक नहीं समझ पाए, िांिी से भूि हो िई। उस भूि के विए हम अभी भी पछता रहे हैं, और पता नहीं हमें ककतने कदन पछताना होिा। िांिी यह बात भूि िए कक जो िोि सत्ता उपिब्ि होने के पहिे उनके अनुयायी थे, सत्ता उपिब्ि होते ही िांिी से उनका कोई संबंि नहीं रह िया है। िांिी की उपयोविता उन्हें इतनी थी कक सत्ता िांिी के वबना उपिब्ि नहीं हो सकती थी। सत्ता उपिब्ि होते ही िांिी का कोई प्रयोजन नहीं रह िया था। िांिी को भी आवखर-आवखर में यह समझ में आने ििा था और उन्होंने कहा भी कक मैं अब एक खोटा वसक्का हो िया हं अब मेरी कोई सुनता नहीं। काश, उन्हें यह पहिे ही ख्याि में आ जाता कक जो उनके पीछे िोि इकट्ठे हैं, सत्ता वमिते ही कोई भी उनकी सुनेिा नहीं। िांिी अिर जीते तो मुझे ििता है कक िांिी को अपने बुढ़ापे में एक दूसरी िड़ाई शुरू करनी होती अपने ही वशष्यों के वखिार्। िांिी इतने वहम्मत के आदमी थे कक उस बुढ़ापे में भी िे दूसरी िड़ाई जरूर शुरू करते। िेककन वशष्यों का सौभाग्य कक वशष्यों की कदखता है भीतरी प्राथिना िोिसे ने सुन िी और िांिी को समाप्त कर कदया। वशष्यों का सौभाग्य समझना चावहए कक िांिी बीच से हट िए, अन्यथा इस बात की करीब-करीब िारं टी कही जा सकती है कक एक िड़ाई िांिी को अंग्रेजों से िड़नी पड़ी थी, उससे भी खतरनाक और बड़ी िड़ाई िांिी को कांग्रेस से िड़नी पड़ती।



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िेककन इवतहास बड़ी अजीब और अदभुत र्टना है। वजनसे उन्हें िड़ना पड़ता िे ही उनके हकदार और माविक और कोई रक्षक हो िए हैं। िे ही अब िांिी को बचाने में ििे हुए हैं। िांिी से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं है, िांिी के नाम से िे अपने को बचाने में ििे हुए हैं। श्री मोरार जी ने कहा कक टीकाकार िीरे -िीरे समझ िेंिे कक समय क्या है। जैसे कक मोरार जी और उनके सावथयों को समय पता है वसर्ि टीकाकारों को समझने की जरूरत है। मैं उनसे कहना चाहता हं कक टीकाकारों की तरर् समय है इस बार। सत्ताविकाररयों के पास समय नहीं है। समझना टीकाकार को नहीं पड़ेिा, समझना सत्ताविकाररयों को पड़ेिा। और नहीं समझेंिे तो सत्ता खोए वबना और कोई रास्ता नहीं है। सच तो यह है कक समय शायद ही सत्ता के साथ कभी रहा हो। समय अक्सर सूिी पर रहा है, जसंहासनों पर तो असमय ही बैठ जाता है। हमेशा की कथा यह है अब तक हम ऐसा समाज वनर्मित नहीं कर पाए वजसमें समय को भी जसंहासन वमि सके । मैं कदल्िी था अभी। और िहां कु छ बात मैंने कही तो मुझे एक पत्र वमिा। मुझे एक पत्र वमिा कक आप जैसे आदमी को तो र्ौरन तमकाि जेि भेज कदया जाना चावहए। मैंने आंख बंद करके िांिी जी को स्मरण ककया और मैंने कहा, बड़ा अदभुत समसंि है आपका। मैं तो जब आप थे, तब इतनी उम्र न थी मेरी कक आपका समसंि कर सकता। इसविए एक साि मन में रह िई अब उसका कोई उपाय न था। िेककन आपका नाम भी विया, आपकी जरा दोस्ती जावहर की तो जेि जाने की िमकी वमिने ििी। मरने के बाद भी तुम जेि जाने और वभजिाने िािे पुराने आदमी अब भी कायम मािूम होते हो। जो तुम्हारे साथ रहे िे जेि िए। मैंने अभी दोस्ती की थोड़ी सी, आपकी जरा बात की कक मुझे जेि जाने की बात आने ििी। समय सदा सूिी पर है। िांिी की पूरी जजंदिी सूिी पर िटके -िटके व्यतीत हुई। और उनके वशष्य सत्ताविकारी हो िए हैं। और िांिी की आममा अिर कहीं भी होिी तो िे पछताते होंिे कक क्या इसी आजादी के विए मैंने जीिन भर कोवशश की! इसी आजादी के विए, यह आजादी जो वमिी भारत को! िांिी का सपना यह था कक आजादी वमिेिी भारत को। तो ककस भारत को? वबड़िा, िािवमया और टाटा के भारत को नहीं; िरीब भारत को, करोड़-करोड़ िोिों के भारत। िांिी भिे आदमी थे। भिे आदमी हमेशा एक भूि करते हैं कक िे दूसरों को भी भिा समझ िेते हैं। िांिी में भी िह भूि भरपूर की। िे वनदोष वचत्त व्यवि थे। ऐसे इनोसेंट, ऐसे वनदोष िोि बहुत कम होते हैं। उनको ख्याि था कक समझा-बुझा कर िे जहंदुस्तान के पूंजीपवत को भी राजी कर सकें िे। िेककन चािीस साि वनरं तर कोवशश करने के बाद एक पूंजीपवत को भी राजी नहीं कर सके कक िे पूंजी का विसजिन कर दे , ट्रस्टी हो जाए, संरक्षक हो जाए। शायद उन्हें आवखर-आवखर में भूि कदखाई पड़ने ििी होिी, िेककन भूि कदखाई पड़ने के पहिे उनको उठा विया िया। अन्यथा यह बात करीब-करीब तो वनवश्चत है कक िांिी अपने ट्रस्टीवशप के वसद्धांत पर पुनर्ििचार करने को मजबूर हुए होते। उन्हें यह बात कदखाई पड़ जानी करठन न होती आजादी आने के बाद। जो िे यह सोचते रहे हैं कक जहंदुस्तान में कोई समाजिाद, कोई सिोदय, कोई सबका उदय, िरीब भारत का उदय हो सके िा, और पूंजीपवत राजी हो जाएिा। िह उन्हें सत्ता के हस्तांतरण के बाद कदखाई पड़ जाता कक पूज ं ीपवत राजी नहीं होता है। बवल्क उनको यह भी कदखाई पड़ जाता कक जो पूंजीपवत उनकी सेिा करते रहे थे, उनके सेिा का उन्होंने बहुत िाभ उठा विया। उनके एक बड़े पूंजीपवत सेिक, जब जहंदुस्तान आजाद हुआ तो उनकी कु ि जायदाद तीस करोड़ रुपये थी और बीस साि में उनकी जायदाद तीन सौ तीस करोड़ रुपये हो िई है। 68



बीस साि में तीन सौ करोड़ रुपये की आमदनी! मनुष्य-जावत के इवतहास में ककसी एक पररिार ने कभी भी न अमरीका में न कहीं और इतनी आमदनी बीस िषों में इकट्ठी की! तीन सौ करोड़ रुपया बीस िषों में! प्रवतिषि पंद्रह करोड़ रुपया! प्रवतमाह चार िाख से, सिा करोड़ से ज्यादा रुपया! प्रवतकदन चार िाख से ज्यादा रुपया! िांिी को ख्याि आ जाता कक आजादी ककसके हाथ में िई है। िरीब जहंदुस्तान को, असिी जहंदुस्तान को, आजादी जरा भी नहीं वमिी, कु छ भी प्रयोजन नहीं हुआ। वसर्ि इतना हुआ कक अंग्रेज पूंजीपवत के हाथ से जहंदुस्तानी पूंजीपवत के हाथ सत्ता का हस्तांतरण हो िया। िांिी इसके विए नहीं िड़े थे... भिा आदमी जो भूि करता है िह उन्होंने भी की। उनको भी यह ख्याि था कक पूंजी का यह राज, पूंजीपवत का यह शोषण, समझाने-बुझाने से हि हो सकता है। िह हि नहीं हुआ। और िह हि नहीं होिा। और अब िोकतंत्र के नाम पर उसे वनरं तर चिाए जाने की कोवशश की जा रही है। जहंदुस्तान में तब तक सही िोकतंत्र वनर्मित नहीं हो सकता है जब तक जहंदुस्तान में आर्थिक समानता की हम कोई व्यिस्था आयोवजत नहीं कर िेते। आर्थिक रूप से समान हुए वबना िोकतंत्र एक िोखा है, एक सरासर िोखा है। जहां िरीब और अमीर का भारी विभाजन हो, जहां संपवत्तशािी और संपवत्तहीनों के बीच करोड़ों का र्ासिा हो, िहां िोकतंत्र वसर्ि नाम है, िोकतंत्र के पीछे िनपवत का ही तंत्र होना सुवनवश्चत है। जहंदुस्तान में िोकतंत्र तभी हो सकता है जब जहंदुस्तान एक समाजिादी जीिन-व्यिस्था को स्िीकार करे । उसके पहिे जहंदुस्तान में िोकतंत्र एक आममिंचना के अवतररि और कु छ भी नहीं है। समानता आए वबना िास्तविक स्ितंत्रता और िोकतंत्र वनर्मित होते भी नहीं है। इसविए मैंने जब अभी पीछे कहीं कहा कक जहंदुस्तान को अभी एक सििहारा के , अविनायक तंत्र की जरूरत है, एक विक्टेटरवशप प्रोविटेररएट की जरूरत है। तो मुझे चारों तरर् से िावियां वमिीं कक मैं िोकतंत्र का दुश्मन मािूम होता हं। िोकतंत्र है ही नहीं, उसके दुश्मन होने का उपाय भी नहीं है। िोकतंत्र होता तो हम दुश्मन भी हो सकते थे, िेककन िोकतंत्र है कहां? अमीर के तंत्र का नाम िोकतंत्र है! ककतने हैं अमीर? िह जो बड़ा िोक-समुदाय है उसका कौन सा तंत्र है? उसका तंत्र हो कै से सकता है? िेककन जब भी पूंजीपवत की व्यिस्था को और शोषण को हटाने की बात की जाए, तो सिाि उठता है कक िोकतंत्र में दबाि कै से िािा जा सकता है! िोकतंत्र में दबाि िािना तो िित हो जाएिा। िेककन मैं यह पूछता हं कक चोरों पर आप दबाि नहीं िािते कक चोरी मत करो, हमयारों पर दबाि नहीं िािते कक हमया मत करो! हमयारे और चोर नहीं कि कहेंिे कक हमारा िोकतंत्र छीना जा रहा है, हमारी व्यविित स्ितंत्रता वछनी जा रही है, हम चोरी करना चाहते हैं हमें चोरी करने दी जाए। िेककन चोर के विए तििार है और शोषक के विए तििार नहीं हो सकती? शोषक के विए तििार की जब बात उठती है तब अजहंसा और िोकतंत्र बीच में खड़े हो जाते हैं। और हमयारे और चोर के विए? नहीं, उसके विए िोकतंत्र का सिाि नहीं है। उसके विए सत्ता अविनायकशाही का उपयोि करती है। सच बात यह है कक हमने अब तक यह नहीं समझा कक शोषक चोर से भी ज्यादा खतरनाक है। मैंने सुना है कक चीन में एक अदभुत विचारक था िाओमसु। िह एक बार एक राज्य का कानून-मंत्री हो िया था। ज्यादा कदन नहीं चिा िह मंत्रीपन, क्योंकक इतने अच्छे विचारक ककतनी दे र इस तरह के काम कर सकते हैं। पहिे ही कदन उसकी अदाित में एक मुकदमा आया। एक आदमी ने चोरी की थी, चोरी पकड़ िई थी। उस आदमी ने चोरी स्िीकार भी कर िी थी। िाओमसु ने उस चोर को छह महीने की सजा सुनाई और साथ ही कहा कक वजस साहकार के र्र चोरी हुई है उसको भी छह महीने की सजा दे ता हं। 69



साहकार कहने ििा, आप पािि हो िए हैं! यह कभी दुवनया में हुआ है? मेरा कसूर क्या है? यह कौन सा न्याय है? ककस ककताब में विखा है? िाओमसु ने कहााः िांि की सारी संपवत्त एक आदमी के पास इकट्ठी हो जाएिी तो चोरी नहीं होिी तो और क्या होिा! चोर पीछे चोर है तुम पहिे चोर हो। तुम्हारी िजह से चोरी पैदा होती है। जब तक दुवनया में शोषण है तब तक चोरी बंद नहीं हो सकती। चाहे ककतने ही जेि भरो, ककतने ही मुकदमे चिाओ, चाहे ककतनी ही नैवतक-वशक्षा दो। जब तक दुवनया में शोषण की महाचोरी चि रही है तब तक छोटी चोररयां उससे अपने आप पैदा होती रहेंिी िह बंद नहीं हो सकतीं। िाओमसु को मंत्री-पद छोड़ दे ना पड़ा, क्योंकक सम्राट ने भी कहा कक तुम पािि हो, साहकारों को कभी सजा वमिी है! चोर को सजा दे नी पड़ती है! िाओमसु ने कहा था, जब तक साहकार को सजा नहीं वमिेिी, मैं यह र्ोषणा ककए दे ता हं, तब तक दुवनया से चोरी बंद नहीं हो सकती। िेककन िोकतंत्र चोर को तो रोकता है, शोषक को नहीं रोकता। शोषक को रोकने की बात की जाए तो िह कहता है, िोकतंत्र पर खतरा है। हमया हो जाएिी िोकतंत्र की। ऐसे िोकतंत्र की दो कौड़ी कीमत नहीं है वजसका कु ि मतिब बहुजन का शोषण हो। जहंदुस्तान को िोकतंत्र की जरूरत पड़ेिी, एक समय आएिा कक जहंदुस्तान िोकतांवत्रक बने। िेककन अभी जब तक जहंदुस्तान का बड़ा वहस्सा िरीब और शोवषत है तब तक जहंदुस्तान को एक सख्त अविनायकशाही की जरूरत है। जो जहंदुस्तान के शोषण के तंत्र को तोड़ दे ने का काम करे और उसके बाद ही सही िोकतंत्र स्थावपत हो सकता है। अच्छी-अच्छी बातों के पीछे बुरे-बुरे इरादे वछपे होते हैं। िोकतंत्र का अच्छा नारा है िेककन पीछे? पीछे िोकतंत्र के नाम पर पूंजीशाही को बचाने के अवतररि और कु छ भी नहीं है। हमें ख्याि में भी नहीं आता, अच्छे सब आड़ बन जाते हैं और हम उनमें ही जीए चिे जाते हैं। अभी मैंने कु छ थोड़ी सी जो आिोचना की तो जहंदुस्तान भर के विचारक ककतने िहरे विचारक हैं यह मुझे कदखाई पड़ा। बड़े से बड़े विचारक छोटी से छोटी िािी दे ने पर उतर आए। जो बहुत सज्जन थे उन्होंने सज्जनता की िािी दी। जो जरा उतने सज्जन नहीं थे उन्होंने सीिी-सीिी िावियां दीं। श्री दे बर भाई ने कहा कक मािूम होता है रजनीश जी िांिी जी को समझे नहीं। अिर माक्सि की आिोचना करो तो कम्युवनस्ट वमत्र कहते हैं, मािूम होता है आप माक्सि को समझे नहीं। अिर महािीर की आिोचना करो तो जैन कहते हैं, मािूम होता है आप महािीर को समझे नहीं। अिर बुद्ध की आिोचना करो तो बुद्ध के अनुयायी कहते हैं, मािूम होता है आप बुद्ध को समझे नहीं। इसका मतिब यह होता है कक आिोचना वसर्ि िे िोि करते हैं जो समझते नहीं और प्रशंसा के िि िे िोि करते हैं जो समझते हैं। साहब, प्रशंसा करने के विए समझने कोई भी जरूरत नहीं है। प्रशंसा तो कु त्ते भी पूंछ वहिा कर कर दे ते हैं। आिोचना के विए समझने की जरूरत है। श्री दे बर भाई को मैं कहंिा, अिर िे प्रशंसा ही ककए जा रहे हैं िांिीिाद की, तो ठीक से समझ िें, समझे नहीं होंिे। अन्यथा िांिीिाद को अरथी पर चढ़ा दे ने का िि आ िया। िांिी तो जीएं, हजार-हजार िषि जीएं। िांिी जैसे प्यारे आदमी मुवश्कि से पैदा होते हैं दुवनया में। िेककन िांिी के आसपास िांिीिाकदयों ने जो एक िाद का जाि पैदा ककया है उसे अरथी पर चढ़ा दे ने की जरूरत है। सच तो यह है कक िांिी ने कभी चाहा नहीं और कभी कहा नहीं कक मेरा कोई िाद है। िांिी वनरं तर कहते थे कक मेरा कोई िाद नहीं है। इतने भिे िोि िाद पैदा नहीं करते हैं। िाद और वििाद भी बहुत रद्दी तरह के िोि पैदा करते हैं। िांिी ने कभी कहा नहीं कक 70



मेरा कोई िाद है। िे तो एक अदभुत विनम्र आदमी थे। िे कहते थे, जो पहिे कहा िया है बहुत बार िही मैं नये प्रसंिों में नये ढंि से कहता हं, मेरा कोई िाद नहीं है। िेककन कर्र यह िांिीिाद ककसने खड़ा कर कदया? बुद्ध कहते थे, मेरा कोई िाद नहीं है। िेककन कर्र बुद्धिाद ककसने खड़ा कर विया? ये अनुयायी हमेशा से बहुत ईजाद करने िािे िोि रहे हैं। इन्हें असिी आदमी से कोई मतिब नहीं होता। इनका तो जब िाद खड़ा हो जाता है तब ही प्रयोजन हि होता है। जीसस सूिी पर चढ़ िया उससे ककसी को मतिब नहीं है। अठारह सौ, उन्नीस सौ िषों में जीसस के पीछे जो पादरी है उसने कक्रवश्चएवनटी खड़ी कर िी। कक्रवश्चएवनटी खड़ा करना बहुत आसान और अपने मतिब की बात है। जीसस बहुत खतरनाक आदमी है। जीसस के साथ पादरी का जीना बहुत मुवश्कि है। िेककन कक्रवश्चएवनटी पादरी की अपने हाथ की बनािट है। िह उसका जैसा मतिब वनकािना चाहता है मतिब वनकािता है, जो व्याख्या करना चाहता है व्याख्या करता है। मैंने सुना है, एक र्टना बड़ी अदभुत है। एक कहानी है। मैंने सुनी है कक अठारह सौ िषि बाद जीसस के मरने के , स्ििि में जीसस को ख्याि आया कक अब अिर मैं दुवनया में जाऊं तो मेरा बहुत स्िाित होिा। क्योंकक जब मैं िया था िित जिह पहुंच िया था। अपने आदमी ही नहीं थे कोई, कोई कक्रवश्चएन न था, कोई ईसाई न था, मैं पहुंच िया यहकदयों में। उन्होंने मेरे साथ दुव्यििहार ककया, िे मुझे समझ नहीं सके । िेककन अब तो आिी दुवनया ईसाई हो िई है। िांि-िांि में मेरे चचि हैं, िांि-िांि में मेरे पादरी हैं। आपको पता है वसर्ि कै थेविक पादररयों की संख्या बारह िाख है। वसर्ि कै थोविक, प्रोटेस्टेंट अिि हैं और पच्चीस मत-मतांतर अिि हैं। अब तो मेरे पादररयों से भरा है पृथ्िी का पूरा का पूरा जित, िांि-िांि, दे श-दे श ईसाई हैं, अब मैं जाऊं तो मेरा ठीक स्िाित होिा। अठारह सौ िषि बाद जीसस जेरुसिम में एक कदन सुबह-सुबह उतरे , रवििार का कदन था, िमि का कदन। िार्मिक आदमी बड़े होवशयार हैं। उन्होंने कदन भी बांट विए हैं। छु ट्टी के कदन को िमि का कदन कहते हैं। क्योंकक उस कदन कु छ करना नहीं पड़ता। बाकी छह कदनों को अिमि का कदन मानते हैं। क्योंकक दुकान चिानी पड़ती है, दफ्तर चिाना पड़ता है। रवििार के कदन जीसस उतर िए जेरुसिम में, एक झाड़ के नीचे खड़े हो िए। चचि से िार्मिक िोि िौटते थे, जीसस बड़े प्रसन्न होकर उनकी तरर् दे खने ििे कक ये िोि मुझे जरूर पहचान जाएंिे। िे िोि पहचान िए, पास आए और कहने ििे, यह कौन नकिी आदमी खड़ा हुआ है? यह कौन अवभनेता, वबल्कु ि जीसस बन कर खड़े हुए हो साहब! कहां से आए हो आप? जीसस ने कहााः तुम मुझे पहचाने नहीं, मैं हं िही जीसस क्राइस्ट, ईश्वर का पुत्र। िे िोि हंसने ििे और कहा, जल्दी भाि जाओ, अिर पादरी वनकिने िािा है, पता चि िया तो मुसीबत में पड़ जाओिे। क्योंकक पादरी का कहना है कक जीसस हो चुके, अब कभी नहीं होंिे। सभी यही कहते हैं। जैनी कहते हैं, हमारा आवखरी तीथंकर हो चुका अब कोई तीथंकर नहीं होिा। क्योंकक तीथंकर हमेशा खतरनाक होता है। तीथंकर आ जाए तो बनी-बनाई सारी दुकानदारी वमटा दे । मुसिमान कहते हैं हो चुका पैिंबर हमारा मोहम्मद, अब कोई पैिंबर नहीं होिा। क्योंकक पैिंबर आ जाए तो सारी मुसिमानी बेिकू र्ी को आि ििा दे । जीसस का मानने िािा कहता है, अब कोई जीसस नहीं होंिे। ईश्वर का इकिौता बेटा था िह हो चुका एक दर्ा। उन िोिों ने कहा, तुम भाि जाओ जनाब, नहीं तो बहुत कदक्कत में पड़ जाओिे। िेककन तभी िह पादरी भी वनकि आया। पादरी के ििे पर सोने का क्रास िटका हुआ है। बड़े मजे की बात, जीसस को वजस सूिी पर िटकाया िया था िह िकड़ी की थी, पर पादरी सोने का क्रास िटकाए हुए है। सोने के कहीं क्रास हुए हैं। कोई पािि होिा जो सोने के क्रास बना कर ककसी को िटकाने जाएिा। कर्र भी जीसस ने सोचा कक पादरी तो जरूर मुझे पहचान िेिा। दे खो मेरा क्रास िटकाए हुए है। उस पादरी ने आकर भीड़-भाड़ 71



में, रास्ता बना कदया िोिों ने, जीसस के विए कोई सुनने को तैयार न था, पादरी के विए रास्ता बना कदया। पादरी अंदर आया िोि झुक-झुक कर नमस्कार करने ििे। जीसस बहुत हैरान हुए, मैं खड़ा हं मुझे कोई नमस्कार नहीं करता, मेरे पादरी को िोि नमस्कार करते हैं। पादरी अंदर आया और उसने कहा कक तुम कौन हो? यह क्या तुमने ढोंि रचा हुआ है? जीसस ने कहा, ढोंि नहीं, मैं िही हं ईश्वर का पुत्र, जीसस क्राइस्ट। पहचाने नहीं, तुम भी नहीं पहचाने। उस पादरी ने चार िोिों से कहा, पकड़ो इस बदमाश को, यह अपने को जीसस कह रहा है, अपमान कर रहा है हमारे भििान का। जीसस ने कहा, मैं िही हं, अपमान नहीं कर रहा। जीसस तो र्बड़ाए। चार िोिों ने उन्हें पकड़ विया, भीड़ उन्हें िे चिी। यह तो कर्र िही होने ििा जो अठारह सौ साि पहिे हुआ था। अरे , िह जीसस कहने ििे, क्या करते हो? मैं िही हं। उन्होंने कहााः चुप, ज्यादा िड़बड़ मत करो। िे जाकर एक कोठरी में तािा िाि कर बंद कर कदया। ऐसे ही अठारह सौ साि पहिे भी ककया था। जीसस उस कोठरी में पड़े हुए रोने ििे। कक आश्चयि! मेरे िोि भी यही व्यिहार करते हैं क्या मेरे साथ? आिी रात पादरी ने दरिाजा खोिा, अंदर आया, जीसस के पैरों पर विर पड़ा और कहने ििा, महाशय, हे प्रभु, मैं आपको पहचान िया था। िेककन बाजार में सबके सामने नहीं पहचान सकता हं। यह अके िे की पहचान अिि बात है। जीसस कहने ििे, सबके सामने क्यों नहीं पहचान सकते हो? उस आदमी ने कहा कक सबके सामने पहचान कर क्या अपनी मुसीबत कराऊंिा? यू आर द ओल्ि विस्टबिर। िही पुराने तुम िड़बड़ कर दोिे सब। हमने ककसी तरह दुकानदारी अठारह सौ साि में जमाई है। तुम हमेशा िड़बड़ कर दे ते हो। तुम्हारी अब आने की कोई भी जरूरत नहीं है। हम काम बहुत अच्छे से संभाि रहे हैं। हम तुम्हारे दिाि, हम तुम्हारे एजेंट। हम काम बहुत अच्छी तरह सम्हाि रहे हैं। आपकी कोई भी जरूरत नहीं है। आप स्ििि में विश्राम करो। पृथ्िी पर हम ठीक से सब सम्हािते हैं। और अिर आपने िड़बड़ की तो हमें कि तो बहुत होिा, िेककन हमें कर्र सूिी ििानी पड़ेिी। इसके वसिाय कोई रास्ता नहीं। अिर िांिी जी िापस िौट कर आएं तो िांिीिादी उन्हें सूिी ििा दें । अिर िे िापस िौट कर आएं तो दे ख कर हैरान हो जाएं कक ये उनके ही चरखा-तकिी कातने िािे िोि, ये समय-अजहंसा की दुहाई दे ने िािे िोि, ये बड़े भिे सािु-संत कदखाई पड़ते थे, ये बड़े भोिे मािूम पड़ते थे, ये कै से हो िए? इनके चेहरों पर ये खून के दाि कै से? इनके हाथ में यह अन्याय का रं ि कै सा? इनका ये सारा व्यविमि अंिेरा-अंिेरा कै से हो िया? हां, खादी तो ये बहुत सर्े द पहने हुए हैं। इतनी िांिी को भी सर्े द खादी पहनने नहीं वमिती थी। िेककन इस सर्े द खादी के पीछे आदमी वबल्कु ि कािे हो िए हैं। सच तो यह है, दुवनया का वनयम यह है कक वजतने कािे आदमी होते हैं उतने सर्े द कपड़े खोज िेते हैं। िह कािे आदमी की पुरानी तरकीब यह है अपने काविखपन को वछपाने की। खादी तो बुरी नहीं है, िेककन िांिीिादी के हाथ में खादी तक बुरी हो िई है। िांिीिादी के हाथ में िह खादी तक अपमावनत हो िई है, अपवित्र हो िई है। मैंने अभी बंबई में कहा कक खादी जैसी पवित्र चीज और िांिी जैसी सुंदर टोपी को भी हो सकता है जहंदुस्तान को होिी जिानी पड़े। क्योंकक िह अब सत्ता का प्रतीक और अन्याय का प्रतीक हो िई है। जैसे एक कदन अंग्रेजी कपड़ा, वििायती कपड़ा सत्ता का प्रतीक हो िया था। और िांिी को उसकी होिी जिा दे नी पड़ी। दुभािग्य कहें, संयोि कहें, इवतहास का चममकार कहें कक उसी िांिी की टोपी आज उसी हाित पहुंच िई है जहां विदे शी कपड़ा पहुंच िया था। आज िह होिी में जिाए जाने योग्य हो िई। नहीं मैं यह कह रहा हं कक होिी में



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जिा दें । टोपी जिाने से कोई र्ायदा नहीं है। मुल्क का बेकार खचि हो जाएिा। िह मैं नहीं कह रहा हं, िेककन मैं यह कह रहा हं कक यह हाित कर दी है िांिीिादी ने। िांिी का कोई िाद नहीं है। िांिी का एक व्यविमि था, िांिी की एक भािना थी, िांिी की एक आममा थी, उन्हें जो ठीक ििा उन्होंने ककया। िेककन िांिी ने कोई सूत्रबद्ध बाध्य नहीं कदया है वजसके कक पीछे चि कर पूरे मुल्क को बनाना है। नहीं, िांिी कोई वसस्टेमेटाइजर नहीं थे। िांिी ने कोई वसस्टम नहीं बनाई है। िांिी ने कोई रे खाबद्ध जीिन-दशिन नहीं बनाया है कक इस ढांचे में तुम इस सारे मुल्क को बनाने की कोवशश करना। िांिी ढांचाविरोिी िोि थे, िे ढांचा नहीं बनाते हैं। जो ठीक ििता है िह जीते हैं, जो ठीक ििता है िह करते हैं। जो कि िित ििता था आज ठीक िि रहा है, जो आज ठीक ििता है कि िित ििेिा, तो िे ईमान से स्िीकार करते हैं कक िह िित था मैं उसको छोड़ता हं। अदभुत वहम्मत के आदमी थे। जीिन के अंत तक भी उन्होंने कोई ढांचा नहीं बना विया था व्यविमि का। एक स्ितंत्र व्यवि थे। िेककन िांिीिाकदयों ने एक ढांचा बना कदया मुल्क के विए। और अब िह कहते हैं कक हम पूरे मुल्क को इस ढांचे में ढािेंिे। और उस ढांचे में पूरे मुल्क का अवहत होने िािा है। क्योंकक िांिी ने जो विचार कदए थे िे आजादी के पूिि थे। और आजादी के पूिि आजादी का मसिा दूसरा था। आजादी के बाद भारत की समस्या बुवनयादी रूप से बदि िई है। और िांिी ने जो भी कहा और ककया था आज उसकी कोई संिवत नहीं रह िई है। िांिी के विए सिाि था दे श स्ितंत्र कै से हो? अब हमारे विए िह सिाि नहीं है। अब हमारे विए सिाि है कक दे श समान कै से हो? स्ितंत्रता की जो िड़ाई थी उसमें और समानता की िड़ाई में बुवनयादी र्कि है। स्ितंत्रता की िड़ाई विदे वशयों के वखिार् थी। समानता की िड़ाई अपने ही उन िोिों के वखिार् होिी, जो सत्ताविकारी हैं, जो पूंजी और संपवत्त को इकट्ठा करके शोषक बन कर बैठ िए हैं। आजादी की िड़ाई परदे सी के वखिार् थी। समानता की िड़ाई अपने ही उन िोिों के वखिार् होिी जोशोषक हैं। यह िड़ाई बुवनयादी रूप से वभन्न होिी। और ध्यान रहे कक िांिी अंग्रेज को तो अजहंसा के रास्ते से झुका सके , िेककन भारतीय पूंजीपवत को अजहंसा के रास्ते से झुकाना मुवश्कि मािूम पड़ता है। ये भारतीय बहुत होवशयार हैं। ये अजहंसा-िजहंसा की तरकीब में र्ं सने िािे नहीं हैं। इन पर कोई असर पड़ने िािा नहीं है। चािीस साि की िांिी की पूरी जजंदिी में एक पूंजीपवत राजी नहीं हो सका ट्रस्टीवशप के विए! तो अब िांिीिाकदयों की वहम्मत है कक ये ट्रस्टीवशप के विए राजी कर िेंिे िोिों को? िांिी जो नहीं कर पाए, िह िांिीिादी कर िेंिे? िांिी जहां असर्ि हो िए, िह िांिीिादी कर िेंिे? कहां िांिी, कहां बेचारे छु टभइए िांिीिादी, इनका क्या संबंि हो सकता है? ये क्या कर पाएंिे? इनसे कु छ भी नहीं हो सकता, िेककन ये नारे दोहराते रहेंिे और नारे दोहराने के पीछे पूंजी का तंत्र जारी रहेिा, शोषण का तंत्र जारी रहेिा। अिर िांिी िापस िौटे तोशायद उनके सामने पहिा सिाि होिा कक भारत समान कै से हो। िांिी की बात को मान कर उनके एक वशष्य, एक बहुत प्यारे आदमी, एक बहुत सज्जन व्यवि विनोबा उनकी बात को मान कर काम में ििे हैं। िेककन उनके काम से जहंदुस्तान में समाजिाद नहीं आ रहा, बवल्क आने िािे समाजिाद के मािि में बािा पड़ी। उनका भूदान उनकी सदभािना का तो प्रतीक है, िेककन उनकी बहुत िहरी समाज को समझने की अंतदृिवि का नहीं। दान ििैरह से िरीब को थोड़ी राहत वमि सकती है िेककन शोषण का तंत्र नहीं बदिता। दान से थोड़ी-बहुत िरीबी को िरीबी सहने में सुवििा वमि सकती है, िेककन िरीब वजतने कदन तक िरीबी सहता है उतने कदन तक ही शोषण को बदिने की, क्रांवत की उसकी तैयारी में बािा पड़ती है। 73



और िरीब को दान इमयाकद से ऐसा मािूम होने ििता है कक यह पूंजीिाद भी बहुत अच्छा िाद है, हमें जमीन भी दे ता है, रोटी-रोजी भी दे ता है, कपड़े भी दे ता है, ये पूंजीपवत बड़े अच्छे िोि हैं। और पूंजीिाद की जो रुग्ण और विकृ त और कु रूप जीिन-व्यिस्था है उसमें भी उसे राहत वमिने ििती है, सांमिना वमिने ििती है। मुझे नहीं कदखाई पड़ता कक िांिी जजंदा होते तो भूदान की इस अंवतम पररणवत का उन्हें बोि न हो जाता। िेककन विनोबा को िह बोि नहीं हो सका है। िांिी के पास एक बहुत िहरी अंतदृिवि थी, शायद विनोबा के पास उतनी िहरी अंतदृिवि नहीं है। वशष्यों के पास िुरुओं जैसी अंतदृिवि होती भी नहीं। अिर हो तो िे शायद ही ककसी के वशष्य होने को तैयार हों। िे खुद ही िुरु हो जाते हैं। आजादी के बाद जहंदुस्तान के सारे अच्छे िोि भूदान और सिोदय के काम में िि िए। उनका ख्याि था इससे समाजिाद आ जाएिा। मैं आपसे कहना चाहता हं, सिोदय से समाजिाद नहीं आ सकता, समाजिाद से सिोदय जरूर आ सकता है। इसे मैं कर्र दोहराऊं, सिोदय से समाजिाद नहीं आ सकता, क्योंकक जब तक समाज श्रेवणयों में विभि है तब तक सिोदय की बात ही व्यथि है। सबका उदय कै से हो सकता है? जहां पूंजी है, जहां पूंजीपवत है, जहां शोषण है, जहां शोवषत है, जहां दीन-हीन दररद्र है और जहां िन के अंबार है, इन दोनों का एक साथ उदय कै से हो सकता है? इन दोनों के एक साथ उदय का कोई भी अथि नहीं है। इन दोनों के एक साथ उदय का अथि पूंजीपवत का ही उदय होिा। हम भेड़ों को भेवड़यों के साथ पािें और कहें कक दोनों का उदय होिा तो भेवड़यों का उदय होिा भेड़ें थोड़े कदन में सर्ाचट हो जाएंिी। भेवड़ए वबल्कु ि राजी हो जाएंिे कक हमें यह सिोदय की कर्िासर्ी वबल्कु ि पसंद है। भेवड़ये कहेंिे, हमें वबल्कु ि जंचता है, यह तमि ज्ञान बहुत ऊंचा है। वबल्कु ि ठीक है। सबका उदय होना चावहए, हमारा भी और भेड़ों का भी। क्योंकक िे भिीभांवत जानते हैं कक दोनों के साथ रहने में बेचारी भेड़ों का उदय क्या हो सकता है? जब तक श्रेणी विभि है समाज, जब तक ििि विभि है, जब तक क्िासेज हैं समाज में, जब तक दो तरर् समाज का जीिन विभावजत है और जब तक शोषण का यंत्र काम करता है तब तक सिोदय जैसी कोई चीज कभी नहीं हो सकती। सिोदय हो सकता है जब श्रेणी विभि समाज समाप्त हो जाए। जब श्रेणी मुि समाज वनर्मित हो, िििहीन समाज हो तो सबका उदय हो सकता है। क्योंकक तब सबका वहत एक हो जाता है। तो मैं कहता हं, समाजिाद से सिोदय वनष्पन्न होिा, िेककन सिोदय से समाजिाद वनष्पन्न नहीं हो सकता है। और सिोदय की बातचीत में हम वजतना समय खराब करें िे और वजतनी शवि ििाएंिे, उतनी दे र तक समाजिाद को िाने की कदशा में जो हमारे प्रयास होने चावहए िे वशवथि पड़ते हैं और उनमें बािा पड़ती है। इसविए मैंने यह ठीक समझा कक हम िांिी के पूरी जीिन जचंतना पर, उनके जीिन भर के प्रयोिों पर एक बार कर्र से विचार कर िें। क्योंकक उनके आिार पर हमें अपने मुल्क के भविष्य को एक कदशा, एक मािि, एक व्यिस्था दे नी है। और िांिीिादी िह काम जरा भी नहीं कर रहे हैं। उनका एक ही काम है कक िे िांिी की जयजय कार जोर-जोर से करिाते रहें। क्यों? क्योंकक िांिी की जय-जय कार में पीछे िीरे -िीरे उनकी भी जय-जय कार हो जाती है। वजस कदन िांिी की जय-जय कार बंद हो िई, उस कदन इन बेचारों की जय-जय कार करने िािा कहां खोजने से वमिेिा! तो िे िांिी की जय-जय कार करते रहते हैं। आदमी बहुत होवशयार है। आदमी को अिर यह भी कहना हो कक मैं कु छ हं तो िह सीिा नहीं कहता, क्योंकक सीिे से बड़ी चोट पड़ती है। िह तरकीबें वनकािता है। अिर िांिीिादी को यह कहना है कक मैं महान हं, तो िह यह नहीं कहेिा कक मैं महान हं। िह कहेिा, िांिी जी 74



महान थे, िांिीिाद महान है। और िीरे से कहेिा, मैं िांिीिादी हं! िह इतनी तरकीब ििानी पड़ती है। और विनम्रता से कहेिा कक मैं िांिीिादी हं, मैं तो विनम्र आदमी हं, मैं तो कु छ भी नहीं हं। मिर िांिी महान थे, िांिीिाद महान है और मैं, मैं रहा छोटा सा एक सेिक। मैंने सुना है कक पेररस विश्वविद्यािय में कर्िासर्ी का एक प्रोर्े सर था, दशिनशास्त्र का एक प्रिान अध्यापक। एक कदन सुबह आकर उसने युवनिर्सिटी के विद्यार्थियों को अपने विभाि के विद्यार्थियों को कहा, तुम्हें पता है मैं दुवनया का सबसे श्रेष्ठ आदमी हं। िे िोि हैरान हुए, समझे कक दाशिवनक का कदमाि खराब हो िया। अक्सर हो जाता है। यह बेचारा िरीब प्रोर्े सर र्टा कोट-कमीज पहने हुए यह, दुवनया का श्रेष्ठतम आदमी कै से हो िया? उनकी आंखों में शक दे ख कर उसने कहााः तुम क्या शक करते हो इस बात पर? एक विद्याथी ने कहा कक महानुभाि, शक तो होता है आप कै से दुवनया के श्रेष्ठतम आदमी हैं? उसने कहााः मैं वसद्ध कर सकता हं। उन विद्यार्थियों ने कहााः आप वसद्ध करें िे तो बड़ी कृ पा होिी। िह बोिि पर िया, जहां दुवनया का नक्शा िटका हुआ था। उसने छड़ी उठाई और कहा कक दे खो, यह बड़ी दुवनया है इसमें सबसे श्रेष्ठ दे श कौन सा है? सारे बच्चे िांस के थे, उन्होंने कहााः िांस सििश्रेष्ठ है, िांस से ऊंची पुण्य-भूवम नहीं, िांस में ही भििान जन्म िेते, िांस दुवनया का िुरु है। सभी मुल्कों को यही बेिकू र्ी चढ़ी हुई है। हमारे मुल्क िुरु है, हमारे मुल्क में भििान जन्म िेते हैं, हम ही सििश्रेष्ठ। उनको भी िही पाििपन जो हमको। सारी दुवनया में पाििपन है, एक सा है। उसने कहााः कर्र ठीक, िांस सबसे श्रेष्ठ दे श है यह तो मानते हो? उन्होंने कहााः यह हम मानते हैं। उसने कहााः अब बाकी दुवनया का सिाि न रहा वसर्ि िांस का रह िया। अब इतना ही वसद्ध करना है कक िांस में मैं सििश्रेष्ठ हं कक नहीं। उसने कहा, अब तुम बता सकते हो कक िांस में सििश्रेष्ठ निर कौन सा है? िड़के समझ िए कक र्ं स िए चक्कर में, क्योंकक पेररस, िे पेररस में ही सब रहते थे। उन्होंने कहााः पेररस। उसने कहााः तब िांस भी खमम हो िया, रह िया पेररस। अब मैं तुमसे पूछता हं, पेररस में सबसे श्रेष्ठतम स्थान कौन सा है? मजबूरी थी, कहना पड़ा, युवनिर्सिटी। युवनिर्सिटी से श्रेष्ठ विद्या का मंकदर और कहां है! विश्वविद्यािय! उन्होंने कहााः विश्वविद्यािय श्रेष्ठतम है। तब तक िे समझ िए कक तकि तो पहुंच िया वनष्पवत्त तक, मामिा खमम हुआ जाता है। उसने कहााः कर्र विश्वविद्यािय में श्रेष्ठतम विभाि, श्रेष्ठतम विषय कौन सा है? कर्िासर्ी, दशिनशास्त्र, िे सभी दशिनशास्त्र के विद्याथी हैं। उसने कहााः तब अब कु छ और बताने की जरूरत है, मैं दशिनशास्त्र का हेि ऑर् कद विपाटिमेंट हं। मैं दुवनया का सबसे बड़ा आदमी हं। िांिी महान और िांिीिाद महान और मैं, मैं एक छोटा सा िांिीिादी हं। िह पीछे से आिाज, उस आिाज को बचाने के विए सारा शोरिुि है। मैंने िांिी की थोड़ी सी आिोचना की तो इतना शोरिुि मच िया। एक महीने... । मैं तो िुजरात में नहीं था, मैं तो पंजाब था। मुझे तो पता भी नहीं था यहां क्या हो रहा है? यहां आया तो मैं तो दे ख कर हैरान हो िया। िांिीिादी को इतनी पीढ़ा क्या पहुंची, मैंने िांिी की कु छ आिोचना की तो। इस बेचारे को इतने जोर के र्ाि कै से िि िए? इसको र्ाि ििने का कारण है। िांिी को बचा कर यह 75



अपने को बचाता है। और सच यह है कक िांिी को बचाने की ककसी को कोई जरूरत नहीं है। उनकी दुवनया कोई नहीं वमटा सकता। वसर्ि िांिीिादी वमटा सकते हैं। अिर यह बेईमानों का जमथा उनके पीछे पड़ा रहा तो िांिी को ये नेस्तनाबूद कर दें िे। िांिी हैं राष्ट्रवपता, और अिर िांिीिाकदयों के चक्कर में और दस-बीस साि उनको रहना पड़ा। अब िह बेचारे अब कु छ कर भी नहीं सकते। िह तो रहे नहीं िए उनकी र्ोटू रह िई है। तो र्ोटू को अदाितों में िटकाए हुए हैं, पुविसथानों में ििाए हुए हैं। कोई पूछे कक इस बेचारे िांिी को पुविसथाने में ककसविए वबठाया हुआ है। उसी के नीचे हििदार बैठ कर मां-बहन की िावियां दे रहा है और िांिी की तस्िीर पीछे िटकी हुई है। उसी के सामने मवजस्ट्रेट ररश्वत िे रहा है और िांिी की तस्िीर पीछे िटकी हुई है। िांिी को तुमने कोई पंचम जार समझा हुआ है! िांिी कोई अंग्रेज बादशाह है! िांिी के साथ यह सिूक ठीक हो रहा है। तुम बबािद कर दोिे िांिी के नाम को। तुम मूर्तियां बना कर और तुम समझ रहे हो कक तुम बहुत बड़ा उपकार कर रहे हो िांिी पर। तो बड़ी भूि में हो। और तुम अदाित, पुविसथानों में उनकी तस्िीरें िटका कर तुम समझ रहे हो कक तुम िांिी की इज्जत बढ़ा रहे हो। तुम कम कर रहे हो। तुम्हें पता नहीं है कक वजतना िांिी सरकारी हो जाएंिे उतने ही िांिी अपमावनत हो जाएंिे। िांिी को कोई पूछेिा नहीं, िांिीिाकदयों के अिर काम सर्ि हो िए तो। िांिी को हमने ककसी कदन राष्ट्रवपता कहा था। अिर िांिीिाकदयों से उनका छु टकारा नहीं हुआ तो िांिी राष्ट्रहंता मािूम पड़ने ििेंिे। इसे पूिि से सचेत हो जाना जरूरी है। मैं जो िांिी के विचार की कोई आिोचना करता हं तो िह िांिी की आिोचना नहीं है। िांिी की आिोचना का सिाि नहीं उठता। िांिी की तरर् इशारा उठाने की भी जरूरत नहीं है। उन जैसे पवित्र िोि मुवश्कि से हजारों-िाखों िषों में एकाि बार पैदा होते हैं। उन पर हाथ उठाने का सिाि भी नहीं है। िेककन िांिीिाद उनकी आड़ में खड़ा है और िांिीिादी िांिीिाद की आड़ में खड़े हैं। अिर इन पर कोई ठीक विरोि ककया जाना है और इनकी आिोचना की जानी है तो िांिी के विचार से आिोचना कोशुरू करने के वसिाय और कोई मािि नहीं है। और यह ध्यान रहे कक जहंदुस्तान के भाग्य में बहुत वनपटारे का समय है। अिर जहंदुस्तान को अपना भविष्य ठीक से सुवनवश्चत करना है, एक व्यिस्था दे नी है जीिन को, तो हमें सारी बातों पर पुनर्ििचार कर िेना होिा। हमें सारी यात्रा पर पुनर्ििचार कर िेना होिा। हमें समझ िेना होिा कक हम ककस यात्रा को पचास िषों में ककए आजादी के पहिे, आजादी के बाद बीस िषों में हमने क्या ककया? और कहीं हम उसी तरह की भूि, अिर विचार नहीं करें िे तो दुबारा दोहराएंिे, दुबारा दोहराएंिे। दोहराते चिे जाएंिे। जहंदुस्तान में ईसाई रहते हैं, जहंदू रहते हैं, मुसिमान रहते हैं, जैन रहते हैं, वसक्ख रहते हैं, र्ारसी रहते हैं, िेककन आजादी के पहिे? आजादी के पहिे हमने एक बात दोहरानी शुरू कर दी--जहंदू-मुवस्िम भाई-भाई! जहंदू मुवस्िम एकता! और हमने कभी ख्याि नहीं ककया कक हमारे इस िित शब्द के चुनाि में जहंदू-मुसिमानों के विए सदा के विए अिि कर कदए। जहंदुस्तान में ईसाई भी रहते हैं, र्ारसी भी, बौद्ध भी, जैन भी, वसक्ख भी। यह मुसिमान को ही क्यों चुन विया आपने और जहंदू को क्यों चुन विया? जहंदू-मुवस्िम एकता! कहना चावहए था--भारतीय एकता। इं वियन यूवनटी। जहंदू-मुसिमान की एकता का क्या सिाि था? िेककन तीस साि तक हम यह दोहराते रहे कक जहंदू-मुवस्िम एकता। और मुसिमान को यह िि जाना वबल्कु ि स्िाभाविक था कक मेरी एकता के वबना जहंदुस्तान की कोई िवत नहीं है। हमने िह भूि की। भारतीय एकता, यह सिाि हो सकता था, जहंदू-मुवस्िम एकता का क्या सिाि था? िेककन िह भूि हमने की। िेककन हम विचार नहीं ककए उस भूि पर कक िह कोई भूि हो िई। और उसकी िजह से जहंदुस्तान और 76



पाककस्तान टू टे। मुसिमान कांशस हो िया। जहंदू कांशस हो िया। दो चीजें कांशस हो िईं इस मुल्क में--जहंदूइज्म और मोहम्मिेवनज्म। जहंदू और मुसिमान, ये दो सचेत हो िए कक हम ही सब कु छ हैं। इन दोनों को सारा मूल्य दे ने का पररणाम यह हुआ कक जहंदुस्तान दो वहस्सों में टू ट िया। इसका पररणाम यह हुआ कक पाककस्तान बना। और इसका पररणाम यह हुआ कक एक जहंदू ने िांिी को िोिी मारी। िेककन हम उसको विचार भी नहीं ककए। और कर्र जब जहंदुस्तान आजाद हो िया तो आपको पता है हम कर्र क्या कहने ििे, हम कहने ििे, जहंदीचीनी भाई-भाई। कर्र िही बेिकू र्ी हमने कर्र दोहरानी शुरू कर दी। चीन के राजनीवतज्ञों को समझने में करठनाई नहीं हुई होिी कक ये जहंदू-मुवस्िम भाई-भाई कहने िािे िोि अब जहंदी-चीनी भाई-भाई क्यों कहने ििे? िे समझ िए होंिे कक वजससे ये िरते हैं उसी को भाई-भाई कहते हैं। वजससे िरते हैं उसी को भाई-भाई कहने ििते हैं। एवशया में चीन अके िा मुल्क नहीं है। थाई भी है, बमाि भी है, वसिोन भी है, इं िोचायना भी है, इं िोनेवशया भी है, जापान भी है, मिाया भी है, वतब्बत भी है, सब है, िेककन हमें कोई कदखाई नहीं पड़ा, हमको कदखाई पड़ा जहंदी-चीनी भाई-भाई। हम वजससे िर िए उसी को भाई-भाई कहने ििे। कर्र हमने एक कांशसनेस पैदा की। कर्र हमने उसको सचेत कर कदया। मैंने उदाहरण के विए कहा कक अिर हम वपछिी भूिों को नहीं समझते हैं तो हम आिे उनकी पुनरुवि करते चिे जाते हैं। ज्यादा भूिें नहीं करता है आदमी, कु छ भूिों को वनरं तर दोहराए चिा जाता है। हम कर्र दोहराए चिे जा रहे हैं। इिर बीस िषों में जो भूिें हमने की हैं िे हम आिे भी दोहराए चिे जा रहे हैं। इिर बीस िषों में हमने कोई स्पि नक्शा, भारत को क्या बनाना है िह हमने तय नहीं ककया। हम शब्दों पर खेि रहे हैं। जो जैसा मौका आता है िैसा नारा ििा दे ते हैं। समाजिाद क्या है, जहंदुस्तान में यह समझना भी मुवश्कि हो िया, यहां इतने प्रकार के समाजिाद हैं। कांग्रेवसयों का भी समाजिाद है, प्रजा समाजिाकदयों का भी समाजिाद है, समाजिाकदयों का भी समाजिाद है, साम्यिाकदयों का भी समाजिाद है, इतने समाजिाद हैं कक समझना मुवश्कि है कक भारत की शक्ि क्या बनाना चाहते हैं! हम शब्दों का उपयोि करते हैं, िेककन कोई सुवनवश्चत िारणा, कोई स्पि विचार, कोई स्पि योजना, मुल्क के सामने कोई भविष्य, जब तक मुल्क के सामने कोई स्पि योजना और भविष्य न हो तब तक मुल्क अंिेरे में िड़खड़ाता है, भटकता है, इस दरिाजे, उस द्वार, इस दीिाि से टकराता है और एक िस्ट्रेशन, एक विषाद मुल्क के प्राणों में भरता चिा जाता है। िीरे -िीरे जब हमें कु छ करने जैसा नहीं ििता तो हम खािी हो जाते हैं। जहंदुस्तान का युिक बसें जिा रहा है, मकान तोड़ रहा है, स्कू ि की वखड़ककयां तोड़ रहा है और जहंदुस्तान के नेता समझा रहे हैं कक यह नहीं करना चावहए। इतने से नहीं होिा। जहंदुस्तान का युिक मुल्क के विए कु छ करना चाहता है, और करने की कोई योजना नहीं है, िह क्रोि में तोड़ रहा है। वसर्ि िे कौमें तोड़-र्ोड़ में ििती हैं वजनके पास बनाने की कोई स्पि योजना नहीं रह जाती। वजनके पास बनाने की स्पि योजना होती है िे तोड़-र्ोड़ में नहीं िितीं। िेककन हमारे पास कभी भी स्पि योजना नहीं रही। उसका कारण है और उस कारण पर भी अंवतम बात मैं आपसे कहना चाहता हं िह ध्यान दे ना जरूरी है। जहंदुस्तान हजारों िषों से पीछे दे खने िािा दे श रहा है, िह आिे दे खता ही नहीं। जब रूस के बच्चे चांद पर बवस्तयां बसाने की सोच रहे हैं तो जहंदुस्तान के बच्चे रामिीिा दे खते रहते हैं। दे खो रामिीिा! तुम दे खते रहना रामिीिा! हमारी बुवद्ध पीछे की तरर् दे खती है, अतीतोन्मुखी है, भविष्य की तरर् हम दे खते ही नहीं, विचार ही नहीं करते। िह तो भििान ने बड़ी ििती की है, जहंदुस्तावनयों की आंखें खोपड़ी में सामने की तरर् 77



नहीं, पीछे की तरर् ििाई जानी चावहए थी, ताकक उनको पीछे की तरर् कदखाई पड़ता रहे। आिे दे खने की जरूरत ही क्या है! अिर जहंदुस्तान कभी अपनी मोटरें बनाएिा, अभी तो हमें पवश्चम की नकि करनी पड़ती है, अपनी तो कोई मोटर क्या बनाना, अपनी तो सुई बनाना भी मुवश्कि है। जहंदुस्तान कभी अिर अपनी मोटरें बनाएिा तो जहंदुस्तानी संस्कृ वत की मोटर की जो िाइट है िह पीछे रहेिी, आिे नहीं हो सकते। आिे क्या र्ायदा है? िह इं वियन ही नहीं होिी, िह भारतीय नहीं होिी। यह तो पवश्चमी ढंि है आिे ििाना आंख, यह आिे िाइट ििाना। पीछे होना चावहए िाइट। पीछे की उड़ती हुई िूि कदखाई पड़ती रहनी चावहए कक ककतना रास्ता पार कर विया है। िेककन आपको पता है जजंदिी आिे की तरर् जाती है, पीछे की तरर् नहीं जाती। दे ख पाते हो पीछे की तरर् िेककन चिना हमेशा आिे की तरर् पड़ता है, चिना पीछे की तरर् कभी नहीं होता। कोई उपाय नहीं है पीछे की तरर् जाने का। जाना हमेशा आिे की तरर्। और जो िोि पीछे की तरर् दे खते हैं और आिे की तरर् जाते हैं उनका जीिन अिर दुर्िटना बन जाता हो तो आश्चयि क्या है। चिें आप आिे को दे खें पीछे को तो टकराएंिे नहीं? जहंदुस्तान टकरा रहा है हजारों साि से िेककन उसे यह बुवद्धमत्ता नहीं आती कक पीछे की तरर् दे खना बंद करो, शवि आिे की तरर् दे खने के विए परमाममा ने दी है, आिे दे खो। िह जो दूर अभी कदन पैदा नहीं हुआ उसको दे खो, अभी िह भी जो सूरज नहीं जन्मा उसकी तरर् आंखें उठाओ, अभी िह जो तारा उिने िािा है उसको दे खो, क्योंकक कि तुम उसके पास पहुंच जाओिे और अिर तुमने आज उसे नहीं दे खा तो कि तुम उसके पास पहुंच कर एकदम र्बड़ा जाओिे। समझ भी नहीं पाओिे कक क्या करना है और क्या नहीं करना? नहीं हम पीछे की तरर् दे खेंिे। मैंने एक छोटी सी कहानी सुनी है। मैंने सुना है, एक िांि था बहुत पुराना, उस पुराने िांि में िांि वजतना ही पुराना एक चचि था। िह चचि इतना पुराना था उसकी दीिािें इतनी जर-जर और जीणि हो िई थी कक उसके भीतर कोई प्राथिना करने जाने में भी िरता था। क्योंकक भीतर जाना तो खतरा था कक िह कभी भी विर जाए। हिा चिती थी जरा तो ििता था अब विरा, आकाश में बादि िरजते थे तो उसकी दीिािें कं पने ििती थीं। प्राथिना करने उपासकों ने उसमें आना बंद कर कदया। संरक्षण की कमेटी थी, ट्रस्टी थे उसके , उन्होंने बैठक बुिाई कक कोई आता ही नहीं, अब क्या करें ? उन्होंने भी बैठक बाहर बुिाई। िे भी भीतर नहीं िए उसके । क्योंकक िहां जान का खतरा था। जहां अनुयायी न जाते हों िहां नेता कभी नहीं जाते, यह ख्याि रखना। अनुयायी को पहिे चिाते हैं पीछे नेता चिते हैं। अखबारों में भर कदखाई पड़ते हैं कक िे आिे चि रहे हैं। असवियत में, जजंदिी में अनुयायी के पीछे चिते हैं। िह जहां अनुयायी चिा जाता है िे भी पीछे से चिे जाते हैं। ट्रस्टी भी बाहर बैठे। उन नेताओं ने बैठक की और उन्होंने कहााः अब क्या ककया जाए? कोई आता नहीं मंकदर में? तो उन्होंने चार प्रस्ताि पास ककए। िह जरा ध्यान से सुन िेना। िह जहंदुस्तान की जजंदिी से बड़ा उनका संबंि होने िािा है। उन्होंने चार प्रस्ताि पास ककए। आप कहेंिे उस चचि में उस कमेटी के प्रस्ताि का जहंदुस्तान की जजंदिी से क्या िेना-दे ना? िेककन नहीं, कु छ िेना-दे ना है। उन्होंने पहिा प्रस्ताि पास ककया कक पुराने चचि को विरा दे ना आिश्यक है क्योंकक िह बहुत पुराना हो िया, अब कोई उपासक उसमें नहीं आते। सििसम्मवत से उन्होंने स्िीकृ वत दी। उन्होंने तमकाि दूसरा प्रस्ताि पास ककया कक और एक नया चचि बनाना जरूरी है ताकक िोि 78



प्राथिना करने आ सकें । और कर्र उन्होंने तीसरा प्रस्ताि पास ककया उसको भी सििसम्मवत से और िह यह कक नया चचि ठीक पुराने जैसा बनाना है। पुरानी ही दीिाि की आिार पर नये चचि की दीिाि उठानी है। पुरानी नींि पर। पुराने ही द्वार-दरिाजे ििाने हैं, वखड़ककयां ििानी हैं, पुराने ही चचि की ईंटों से नई दीिािें चुननी हैं, पुराने ही सामान से वबल्कु ि पुराने जैसा ही नया चचि बनाना है। यह तीसरा प्रस्ताि उन्होंने स्िीकार ककया। और कर्र चौथा प्रस्ताि स्िीकार ककया और िह यह कक जब तक नया चचि न बन जाए तब तक पुराना विराना नहीं है। तो इसको भी सििसम्मवत से स्िीकृ वत दे दी! िह चचि अभी भी खड़ा हुआ है। िह चचि कै से विरे िा? िह कभी भी विरने िािा नहीं है। भारत के जीिन का मंकदर, समाज का मंकदर बहुत पुराना हो िया। यह चचि बहुत पुराना हो िया। यह बहुत जरा-जीणि हो िया। इसके नींि हजारों साि पहिे मनु ने, याज्ञिल्क्य ने, करोड़ों... ककतने-ककतने समय पीछे उन्होंने इसकी नींि रखी थी। िह उसी नींि पर समाज खड़ा है। राम ने, कृ ष्ण ने, बुद्ध ने इसकी दीिािें चूनी थीं हजारों साि पहिे, िे दीिािें िही की िही हैं। मकान बहुत पुराना हो िया। बनाने िािे होवशयार रहे होंिे कक उनके बेटे इतने कदन से बनाने का काम बंद ककए हुए हैं, तो भी ककसी तरह काम चि जाता। िेककन मकान वबल्कु ि पुराना हो िया। उसमें जीना असंभि हुआ जा रहा है। समाज की सारी की सारी रचना, सारी व्यिस्था जरा-जीणि हो िई। उसके भीतर मरना आसान जीना करठन है। िेककन हम जीए चिे जा रहे हैं, क्योंकक हम पुराने के बड़े प्रेमी हैं, हम पुराने के बड़े भि हैं, हम पुराने के प्रवत बड़े श्रद्धािु हैं। कभी आपने सोचा, छोटे बच्चे हमेशा भविष्य की तरर् दे खते हैं, उनके पास कोई अतीत नहीं होता, उनके पास पीछे दे खने को कोई उपाय नहीं होता, िे हमेशा आिे की तरर् दे खते हैं, बूढ़े, बूढ़े सदा पीछे की तरर् दे खते हैं। उनके आिे कु छ भी नहीं होता वसिाय मौत के । मौत दे खने जैसी नहीं। पीछे िौट कर दे खते रहते हैं। बचपन, जिानी, बीती हुई कहावनयां, बीते हुए ककस्से िे सब चिते रहते हैं उनके कदमाि में। जब कोई कौम पीछे की तरर् ही दे खती रहती है, तो सचेत हो जाना चावहए उस कौम के प्राण बूढ़े हो िए हैं। िह कौम मरने के करीब पहुंच िई है। अिर िह कौम भविष्य की तरर् दे खना शुरू नहीं करती तो बहुत जल्दी मर जाएिी। िांिी को राम से बहुत प्रेम था। राम बड़े प्यारे आदमी, उसी प्रेम के पीछे उन्होंने राम-राज्य की कल्पना िढ़ िी। िह कल्पना ठीक नहीं है। रामराज्य पुरानी व्यिस्था है। भविष्य की व्यिस्था नहीं, अतीत की व्यिस्था है। रामराज्य पूंजीिाद से भी वपछड़ी हुई व्यिस्था है, सामंतिाद की, फ्यूिेविज्म की व्यिस्था है। रामराज्य में िौटना नहीं है हमें, राम बहुत प्यारे आदमी थे िह ठीक है, िेककन रामराज्य बहुत पुरानी व्यिस्था है। राम को हम स्मरण कर िें िह ठीक, राम को हम आदर दे दें िह ठीक, िेककन रामराज्य नहीं चावहए। रामराज्य तो आज की अिस्था से भी बदतर अिस्था है। हमें चावहए भविष्य का राज्य, हमें चावहए पूंजीिाद से आिे का राज्य, हमें पीछे नहीं िौटना, हमें आिे जाना है। िेककन पीछे िौटने का मोह हमारे मन में होता है कई कारणों से। एक तो कारण यह होता है कक पीछे का सब कु छ पररवचत मािूम होता है, जाना-माना मािूम होता है। जानी-मानी चीज में र्बड़ाहट कम होती है, वसक्युररटी ज्यादा होती है, सुरक्षा ज्यादा होती है। अनजान अपररवचत रास्तों में जाने में भय ििता है, पता नहीं क्या हो जाए? आज है वस्थवत बुरा न हो जाए। अनजान रास्ते पर आदमी िरता है। िेककन ध्यान रहे,



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भविष्य सदा अनजान है और जीिन सदा अननोन, अज्ञात और अनजान की खोज। जो िोि ज्ञात, नोन, जानेमाने में ही भटकते हैं िे जीिन से संबंि तोड़ दे ते हैं और मृमयु के साथी हो जाते हैं। नहीं, पीछे नहीं िौटना है। नहीं, रामराज्य नहीं। चावहए भविष्य का राज्य, अतीत का नहीं। और ध्यान रहे, अच्छे िोि हुए हैं अतीत में, िेककन अच्छा समाज नहीं हुआ है। इस र्कि को समझ िेना जरूरी है। इससे बड़ी र्ै िेसी पैदा होती है, इससे बड़ा भ्म पैदा होता है। आज से दो हजार साि बाद न तो मुझे कोई याद रखेिा, न आपको कोई याद रखेिा, िेककन िांिी जी को दो हजार साि बाद भी िोि याद रखेंिे। दो हजार साि बाद िोि सोचेंिे वजस जमाने में िांिी हुआ उस जमाने के िोि ककतने अच्छे रहे होंिे! जरूर सोचेंिे, िांिी याद रह जाएंिे, िांिी के आिार पर िे सोचेंिे कक दो हजार साि पहिे िांिी जैसा अच्छा आदमी हुआ, तो वजन िोिों के बीच हुआ होिा िे िोि भी ककतने अच्छे नहीं रहे होंिे! िेककन उनकी िारणा वबल्कु ि िित होिी, िांिी जरूर अच्छे थे, िांिी वजस समाज में पैदा हुए थे उस समाज से िांिी के अच्छे होने का क्या संबंि है? िह समाज तो अवत कु रूप था, िह समाज तो अवत दुिंि से भरा था। िह समाज तो िोिसे का समाज हो सकता था िांिी का समाज नहीं हो सकता। िांिी इसके प्रवतवनवि नहीं थे, िे ररप्रेजेंटेरटि नहीं थे हमारे । िे एक्सेप्शन थे, िे अपिाद थे। हम, हमारे बाबत उनके द्वारा कोई भी वनणिय विया जाएिा िह िित होिा। िेककन दो हजार साि बाद िोिों को हम याद नहीं रहेंिे, िांिी याद रहेंिे। यही पीछे के बाबत भी सच है। हमको राम याद हैं, िेककन राम का समाज? हमें बुद्ध याद हैं, िेककन बुद्ध का समाज? हमें महािीर याद हैं, िेककन महािीर का समाज? हमें कृ ष्ण याद हैं, िेककन कृ ष्ण का समाज? नहीं, राम से राम के समाज का अंदाज मत ििाना, भूि हो जाएिी। और यह मैं क्यों कहता हं कक राम का समाज राम जैसा नहीं रहा होिा। मेरे ऊपर कई इिजाम ििाए अभी कक मैं इवतहास नहीं जानता हं। मुझे जरूरत भी नहीं इवतहास जानने की। िेककन जीिन के कु छ समय मुझे कदखाई पड़ते हैं। मुझे पता नहीं कक राम का समाज कै सा रहा होिा। िेककन कु छ बातें मैं कहता हं, एक बात यह कक अिर राम का समाज राम जैसा रहा होता तो राम की हमें याददाश्त भी न रह जाती। महापुरुष हमेशा छोटे पुरुषों के बीच में कदखाई पड़ते हैं, नहीं तो कदखाई भी नहीं पड़ सकते। अिर जहंदुस्तान में दस-पचास हजार िांिी हों, तो मोहनदास करमचंद िांिी को खोजना आसान होिा? कहीं भी खो जाएंिे भीड़ में, िे अके िे हैं इसविए कदखाई पड़ते हैं। छोटे से स्कू ि का वशक्षक भी जानता है कक सर्े द खवड़या से सर्े द दीिाि पर नहीं विखना चावहए। कािे ब्िैक बोिि पर विखता है सर्े द खवड़या से। क्योंकक िह सर्े द खवड़या ब्िैक बोिि पर कदखाई पड़ती है। वजतना होता है कािा बोिि, उतनी ही िह खवड़या ज्यादा सर्े द कदखाई पड़ती है। राम जो इतने महान कदखाई पड़ते हैं, पीछे ब्िैक बोिि है समाज का। उसके वबना कदखाई नहीं पड़ सकते। मुझे इवतहास का कोई भी पता नहीं है, हो सकता है। कौन कर्जूि की कहानी-ककस्से पढ़े कक कौन बेिकू र् कब पैदा हुआ। कक िे कब जन्मे और कब मरे । मुझे नहीं पता होिा, िेककन इवतहास को समझना और इवतहास को जानना दो बातें हैं। महािीर और बुद्ध, ये कदखाई पड़ते हैं इसीविए कक इनके आस-पास जो समाज रहा होिा िह इनके प्रवतकू ि विपरीत रहा होिा, और इनकी वशक्षाओं से भी सबूत वमिता है। महािीर क्या समझा रहे हैं िोिों को? िोिों को समझा रहे हैं कक चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, जहंसा मत करो, झूठ मत बोिो, दूसरे की स्त्री को बुरे भाि से मत दे खो, ये समझा रहे हैं। समाज अच्छा था तो ये बातें समझाने की जरूरत थी? ये ककसको समझा रहे हैं? ये ककसको समझा रहे हैं? आपका कदमाि खराब है 80



महािीर स्िामी! आप पािि हो! ककसको समझा रहे हो? जो िोि चोरी नहीं करते उनको सुबह से शाम तक यह क्या समझा रहे हो कक चोरी मत करो? चोरों को ही समझाना पड़ता है कक चोरी मत करो! और जहंसकों को समझाना पड़ता है कक अजहंसा परम-िमि है! और अिार्मिकों को िमि की वशक्षा दे नी पड़ती है। वजस कदन दुवनया िार्मिक होिी िमि के वशक्षक को कोई जिह नहीं रह जाएिी। क्या जरूरत है? वजस िांि में सब िोि स्िस्थ होते हैं उसमें हर र्र के बाद एक िाक्टर की, दिाखाने की जरूरत होिी? क्या प्रयोजन है? िेककन उनकी वशक्षाएं बताती हैं कक वजनको वशक्षाएं दी िई हैं िे वशक्षाओं से उिटे िोि रहे होंिे। एक िांि में, एक चचि में एक र्कीर को वनमंत्रण कदया था िोिों ने बोिने के विए कक आप बोिने आएं। िह र्कीर बोिने िया। उन िोिों ने कहा कक समय के संबंि में हमें समझाइए। उस र्कीर ने कहा, समय के संबंि में! िेककन समझाने के पहिे मैं एक बात पूछूंिा, चचि के िोिों तुमसे मैं एक बात पूछता हं। मेरा उत्तर दे दोिे तभी मैं समझाऊंिा। उस र्कीर ने कहा कक तुमने बाइवबि जरूर पढ़ी होिी, बाइवबि में ल्यूक का उनहत्तरिां अध्याय है िह भी तुमने पढ़ा होिा, वजन िोिों ने ल्यूक का उनहत्तरिां अध्याय पढ़ा हो िह हाथ ऊपर उठा दें । सब िोिों ने हाथ उठा कदए, वसर्ि एक आदमी जो सामने बैठा था उसको छोड़ कर। उन सबने कहा कक हमने पढ़ा है। उस र्कीर ने कहा, हाथ नीचे कर िें, अब मैं समय पर प्रिचन शुरू करता हं। और तुम्हें बता दे ता हं कक ल्यूक का उनहत्तरिां अध्याय जैसा कोई अध्याय ही बाइवबि में नहीं है। और आप सबने पढ़ा है! िह है ही नहीं अध्याय िहां। उनहत्तरिां अध्याय है ही नहीं ल्यूक का कोई। अब मैं समय पर बोिना शुरू करता हं क्योंकक पहिे पता तो चि जाए कक कै से िोि इकट्ठे हैं? अिर सभी िोि समय पर बोिते हों तो समय पर बोिना कर्जूि है। अब ठीक िि, ठीक जिह तुमने मुझे बुिा विया। िेककन उसने कहा कक मुझे बड़ा आश्चयि है कक इस चचि में एक समय बोिने िािा कै से आ िया? क्योंकक चचि की तरर्, मंकदरों की तरर् समय बोिने िािे जाते ही नहीं। यह आदमी मेरे सामने बैठा है यह वमरे कि है, एक चममकार है यह आदमी हाथ नहीं उठाया। हे मेरे भाई! उसने उस आदमी से कहा कक तुमने हाथ क्यों नहीं उठाया? आश्चयि! तुम इतने समयिादी हो। उस आदमी ने कहा कक महाशय, जरा जोर से बोविए मुझे कम सुनाई पड़ता है। क्या आप यह कह रहे हैं कक उनहत्तरिां अध्याय ल्यूक का? साहब रोज पढ़ता हं, सुबह उसी का पाठ करता हं। ये चचि में इकट्ठे िोि हैं, यहां इनको समय की वशक्षा दे नी पड़ती है। ये बुद्ध-महािीर सुबह से सांझ तक बेचारे समय की, अजहंसा की, प्रेम की चचाि करते हैं। ये ककन िोिों के सामने करते होंिे? इसी तरह इस चचि जैसे िोि िहां इकट्ठे होंिे। नहीं; राम थे सुंदर, राम थे समय, िेककन राम का समाज नहीं है। अिर समाज इतना सुंदर और समय होता, तो उस समाज से हम पैदा होते! हम पैदा कहां से होते हैं? हम अपने अतीत से पैदा होते हैं। हम सबूत होते हैं अपने अतीत के असिी। इवतहास नहीं। हम हैं असिी सबूत अतीत के । बेटा अपने बाप का सबूत है। र्ि अपने बीज का सबूत है। र्ि अिर कड़िा है और र्ि कहे कक बीज तो बड़ा मिुर था। तो हम मानेंिे नहीं। हम कहेंिे कक बीज का पता नहीं चिा होिा तुम्हें। बीज कड़िा ही रहा होिा, अन्यथा तुम कड़िे कै से हो जाते! तुम उससे पैदा हुए हो, तुम उसके सबूत हो। आज बीज तो नहीं है खो िया वमट्टी में कहीं, िेककन तुम हो। और तुम बताते हो कक बीज कै सा रहा होिा! जहंदुस्तान में कु छ व्यवि अच्छे पैदा हुए हैं। समाज कभी भी अच्छा नहीं था। हम सबूत हैं उसके । िह समाज तो खो िए। हम हैं सबूत उसके । हम उससे पैदा हुए हैं। हम उसी की प्रॉिक्ट हैं। इसविए भूि कर भी 81



पीछे िौटने का विचार मत करें । पीछे से तो हम आ रहे हैं। िहां जाने की अब जरूरत नहीं है। हमें जाना है आिे। और आिे जहां जाना है िहां अतीत की भूिों से हम सीख िें, अतीत के ढांचे को पुनरुि करने की जरूरत नहीं है। नये ढांचे, जीिन के विए नये मािि, जीिन के विए नया जचंतन, नये द्वार, नये तथ्य, नई समाज व्यिस्था खोजनी है। नहीं; राम बहुत प्यारे हैं, िेककन रामराज्य वबल्कु ि भी नहीं चावहए। िांिी को बहुत प्रेम था राम से। िे दीिाने थे राम के । कहें कक वबल्कु ि दीिाने थे राम के । बड़ा प्रेम उनको रहा होिा। मरते िि, िोिी भी ििी तो न वपता का नाम याद आया, न मां का, न भाई का, न बेटों का, न िांिीिाकदयों का, राम का नाम याद आया। नाम आया राम का याद! िि िई छाती में िोिी उस क्षण में िही नाम याद आया जो सबसे प्यारा उन्हें रहा होिा। जो प्राणों के प्राण में बैठा रहा होिा िही उस क्षण में याद आ सकता है। उस िि िोखा नहीं कदया जा सकता। र्ु सित कहां हैं मरते आदमी को कक िोखा दे दे । तो उस िि सोचे कक अभी राम का नाम िे दूं तो अच्छा असर पड़ेिा, िोि कहेंिे कक िार्मिक है। इतनी र्ु सित िहां नहीं है। आमतौर से तो ऐसे ही िोि रामराम कहते हुए सड़क पर से वनकिते हैं। जब कोई नहीं सुनता तो िीरे -िीरे कहते हैं या नहीं भी कहते। जब रास्ते पर कोई कदखाई पड़ता है कक आ रहा है तब जोर-जोर से राम-राम, राम-राम जोर से कहने ििते हैं। िह सुनाने के विए। िेककन िांिी की छाती में तो ििी है िोिी, सुनाने का सिाि कहां है! इस अंवतम क्षण में तो िही वनकि सकता है जो प्राणों के प्राणों में िहरे बैठा हो। राम उनके प्राण हैं। राम के िे दीिाने हैं। उसी दीिानिी में िे कहने ििे कक राम का राज्य चावहए। िह भूि है। िह बात ठीक नहीं है। राम का राज्य नहीं चावहए। हमें तो भविष्य का राज्य वनर्मित करना है। कोई सामंतिादी व्यिस्था में िापस नहीं िौट जाना है। इन्हीं सारी बातों पर दे श के प्राणों को जचंतन करना जरूरी है। मैं यह नहीं कहता हं कक जो मैं कहता हं िही मान िें। जो भी आदमी आपसे कहे कक मेरी बात मान िो िह आदमी अच्छा नहीं है, सज्जन नहीं है, िह आदमी ठीक नहीं है, िह आदमी खतरनाक है। सच तो यह है कक अपनी बातों को मनिाने की जबरदस्त चेिा िही करता है वजसको खुद शक होता है कक मेरी बातें ठीक हैं या नहीं। मुझे उसका प्रयोजन नहीं है। मुझे जो ठीक ििता है िह मैं पूरे मुल्क को कह दे ना चाहता हं। अिर िह ठीक ििे ठीक, िित ििे उसे कचरे में र्ें क दे ना। अिर आपके वििेक को ठीक ििे तो ठीक, अन्यथा मेरे कहने से कु छ समय नहीं हो जाता है। िेककन मेरी इतनी स्पि बात से भी िांिीिादी परे शान हो िए। मैं कहता नहीं ककसी को कक मेरी बात मान िो। मैं कहता नहीं कक मेरा िचन आप्त िचन है कोई आथेररटी है। मैं कहता नहीं यह। मैं यह कहता हं कक मैं िांिी पर सोचता हं, जो मुझे कदखाई पड़ता है िह मुझे कहना चावहए। और िोिों को बता दे ना चावहए। िे भी यह सोचें, विचार करें । िांिी पर हम ठीक से सोचें और विचार करें तोशायद हम अपने मुल्क के विए, आने िािे भविष्य के रास्ते बनाने में, दे खने में, बहुत योग्यता से सर्ि हो सकें िे। और यह ध्यान रहे कक िांिी पर सोचना महािीर और बुद्ध पर सोचने से ज्यादा कारिर वसद्ध होिा। क्योंकक महािीर और बुद्ध से हमारा र्ासिा बहुत िंबा हो िया है। ढाई हजार साि का। िांिी से हमारा र्ासिा बहुत कम है। बहुत वनकट है। दूसरी बात, िांिी पर सोचना और भी उपयोिी है क्योंकक महािीर और बुद्ध ने समाज के जीिन को बदिने के विए कोई विचार नहीं ककया। उन्होंने व्यवि कोशांवत, ध्यान, मोक्ष तक िे जाने की विज्ञान को खोजा। िेककन समाज के ढांचे को बदिने की कोई बात नहीं सोची। िांिी जहंदुस्तान में, पहिे इतनी ऊंची कोरट 82



के विचारक हैं वजन्होंने समाज के मोक्ष के विए भी विचार ककया है। इसविए िांिी पर विचार करना बहुत जरूरी है। और स्िभािताः क्योंकक िांिी पहिे आदमी हैं, एक माइि स्टोन हैं। जहंदुस्तान में िांिी के पीछे का इवतहास, जहंदुस्तान के सािु और संन्यासी का समाज से भािने का इवतहास है। िांिी जहंदुस्तान के पहिे सािु हैं जो समाज से नहीं भािे और समाज में खड़े होकर समाज को बदिने की कोवशश की। पहिे आदमी से भूि-चूक होना संभि है। पहिा आदमी पायोवनयर है। पहिा आदमी एक नया रास्ता तोड़ता है। िह पररपूणि बातें नहीं कह सकता। पररपूणि बातें तो अंवतम आदमी भी नहीं कह सकता है। और िांिी जहंदुस्तान में एक नई दृवि के पहिे उदर्ाटक हैं। इसविए बहुत भूि की संभािनाएं हैं। अिर हम इन पर विचार नहीं करें िे तो हम अपना ही आममर्ात करने में सहयोिी होंिे। मेरी ये थोड़ी सी बातें आपने इतने प्रेम और शांवत से सुनी, उसके विए बहुत अनुिृहीत हं। कि सुबह आपके प्रश्नों के उत्तर दूंिा। जो कु छ आपके इस संबंि में प्रश्न हों आज सुबह और आज सांझ की चचाि में िे सुबह आप विख कर दे दें िे, ताकक उनकी बात हो सके । परमाममा को, आपके भीतर बैठे परमाममा को, अंत में प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य आठिां प्रिचन



अविनायकशाही व्यवि की नहीं; विचार की (प्रारं भ का मैटर उपिब्ि नहीं। ) ... और दो बच्चे के बाद अवनिायि आपरे शन। समझाने-बुझाने का सिाि नहीं है यह। जैसे हम नहीं समझाते हैं हमयारे को कक तुम हमया मत करो, हमया करना बुरा है। हम कहते हैं, हमया करना कानूनन बंद है। हमया से भी ज्यादा खतरनाक आज संख्या बढ़ाना है। तो एक तो अवनिायि संतवत-वनयमन। जो िोि वबल्कु ि बच्चे पैदा न करें , उनको तनख्िाह में बढ़ती, वसनयाररटी, जो वबल्कु ि बच्चे पैदा न करें , एक भी बच्चा पैदा न करें , उनको इज्जत, सम्मान, उनको वजतनी सुवििाएं दे सकते हैं उनको सुवििाएं दी जानी चावहए। िॉट र्ामि ऑर् ििनिमेंट, यू विज्युअिाइज र्ॉर कदस िन। िही बात कर रहा हं। इिर हमारी कोई साठ प्रवतशत समस्याएं हमारी संख्या से खड़ी हो रही हैं। हम समस्याओं को हि करते चिे जाएंिे और संख्या यहां बढ़ती चिी जाएिी। हम कु छ भी हि नहीं कर पाएंिे। रोज हम हि करें िे और रोज नई समस्याएं खड़ी हो जाएंिी। तो साठ प्रवतशत समस्याएं कम से कम वसर्ि नि हो सकती हैं अिर हम संख्या पर एक व्यिवस्थत संतुिन उपिब्ि कर िें। जो कक ककया जा सकता है। िेककन िोकतंत्र की िारणा हमारी कक बच्चे पैदा करने की स्ितंत्रता होनी चावहए। िह मुझे िित कदखाई पड़ती है। इसविए जो आप कहते हैंःाः िॉट र्ामि ऑर् ििनिमेंट। तो मेरी दृवि में अभी जहंदुस्तान को कोई पचास साि तक िोकशाही की जरूरत नहीं है। अभी जहंदुस्तान को पचास साि तक स्पि रूप से अविनायकशाही की जरूरत है। कोई उसको कहने को राजी नहीं है, क्योंकक िह शब्द ही अजीब हो िया। अविनायकशाही की बात ही करना... उन्होंने कहााः यह आदमी खतरनाक है। िॉट र्ॉमि ऑर् विक्टेटरवशप िू यू विज्युअिाइज? विक्टेटरवशप, जैसा कक रूस में बनी। पिट दे नी चावहए। पिट दे नी चावहए। एक सििहारा का अविनायकशाही चावहए। वजसका स्पि ध्यान यह होिा कक हम... । आपका ओवपवनयन संयुि विक्टेटसि के विए क्या है?



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नहीं, जरा भी अच्छा नहीं है। क्योंकक संयुि विक्टेटरवशप कोई सििहारा का, कोई कम्युवनटेरीयन विक्टेटरवशप नहीं है। संयुि विक्टेटरवशप तो राजतंत्र जैसी पुरानी बेहदी बातें हैं। संयुि विक्टेटरवशप की क्या जरूरत है? विक्टेटरवशप व्यवि की नहीं; विचार की। सोवशएविस्ट विक्टेटरवशप से मेरा मतिब है। िह व्यवि की विक्टेटरवशप नहीं है िह। िह असि में मौविक, एक विचार की विक्टेटरवशप है। एक विचार की यह स्िीकृ वत कक इस विचार को समाज में िाना है। और चूंकक समाज का मानस हजारों साि से ऐसा बन िया है कक व्यविित संपवत्त को िह मानस छोड़ने को राजी नहीं है। हािांकक व्यविित संपवत्त के कारण ही इसकी सारी समस्याएं खड़ी हो रही हैं। तो दो काम करने हैं। एक तो व्यविित संपवत्त के विरोि में पूरा िातािरण खड़ा करना और दूसरा व्यविित संपवत्त को वमटाने में। व्यविित संपवत्त को जहंसा र्ोवषत ककया जाना चावहए। िह जहंसा है। और उस जहंसा को रोकने के विए सरकार को अविनायकशाही के वसिाय कोई रास्ता नहीं है। अिर हम यह सोचते हों कक हम... । और आज का सरकारी ढांचा तोड़ने के विए िू यू एििोके ट कद यूज ऑर् िाइिेंस? नहीं। आपने बोिा कक नॉन-िाइिेंस से तो कोई हरकत नहीं... न, मेरा कहना यह है, मेरा कहना यह है, नॉन-िाइिेंस से समाज की अंतर-रचना नहीं बदि सकती, िेककन नॉन-िाइिेंस से आप समाज के सत्ता के अविकारी हो सकते हैं। समाज की व्यिस्था जो है व्यविित संपवत्त की िह तो आपको दबाि से बदिनी पड़ेिी। जरूरी नहीं कक दबाि िाइिेंस ही हो, िेककन अिर िाइिेंस से न बदिी जा सके दबाि को तो िाइिेंस ही हो तो कोई मुझे जचंता नहीं है उसकी। मेरा मतिब यह है कक िोकशाही है आज, जैसी भी है टू टी-र्ू टी िोकशाही है। हां, इस िोकशाही का पूरा उपयोि ककया जाना चावहए। जो िोि समाजिाद िाना चाहते हैं, िे जाकर िोटर को वशवक्षत करें । इस सत्ता पर अविकारी हों। और सत्ता पर अविकारी होते ही िह इस मुल्क से व्यविित संपवत्त और शोषण की व्यिस्था को हटाने के सब उपायों का प्रयोि करें । िह समझाने-बुझाने से हो सके , िह िोकमत के दबाि से हो सके । और अिर उन सबसे न हो सके , तो जैसा हम पुविस के दबाि से हैदराबाद िेते हैं, जैसे हम पुविस के दबाि से राजाओं को समाप्त कर दे ते हैं, उसी तरह के पुविस के दबाि के अंतिित हमें पूंजीशाही को समाप्त करना होिा। इन के रि ििनिमेंट कम टु बैिेट, विज्युअिाइज हाउ टु ... बट इ.ज ओपवनयन अबाउट कदस? यू सेि दै ट यू कै न एप्रोच टु िोटर एण्ि चेंज वहज माइं ि। यू सेि दै ट कम टु पॉिर ओनिी टु बैिेट। इ.ज इट शुि बी एट द आि इं विया िेिि आर समजथंि...



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हां-हां, वबल्कु ि ही। अपने भारतीय ति पर िैसा यह व्यिस्था करनी चावहए। और एक प्रांत में कु छ कर भी नहीं सकती कोई समाजिादी व्यिस्था। जब तक कक कें द्रीय ति पर सारी समाजिादी रचना नहीं होती। क्योंकक िह प्रांत... (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) हां, िह भी, िह तो हमेशा। सारी झंझट िह। कर्र िे नहीं करने दे ते, नहीं करने दे ते, िे नहीं चिने दे िें। िे नहीं चिने दे ते हैं, चिने नहीं दें िे। क्योंकक अिर एक प्रांत में भी, के रि में या कहीं भी अिर समाजिादी तंत्र की थोड़ी भी रूपरे खा स्पि हो जाए और जनता को थोड़ी भी राहत कदखाई पड़े तो पूरे मुल्क से सारी व्यिस्था नि हो जाएिी इनकी। इसविए उसको सर्ि िहां नहीं होने दें िे। और जब िह सर्ि होने ििेिी तो बािा िािेंिे, बािा के विए उपाय करें िे। क्योंकक के रि में अिर समाजिादी तंत्र थोड़ा भी सर्ि होता है तो पूरा जहंदुस्तान अंिा नहीं है कक बैठा हुआ दे खता रहेिा। िे उसको सर्ि नहीं होने दें िे। उसकी सर्िता इनके विए हमया हो जाएिी। उसकी असर्िता में ही ये जी सकते हैं। इसविए कोई एक स्टेट के ति पर... इट इ.ज इं पारटेंट पावजरटििी, वव्हच कै न... कांग्रेस पाट्री ऑर् इं विया, कै न बी... नहीं, मैं ककसी पाटी से मेरा कोई प्रयोजन नहीं है। पार्टियों की अपनी ििवतयां हैं, अपनी भूिें हैं। और मजा यह है कक भारत की चाहे कोई भी पाटी हो, क्योंकक िह भारतीयों की है इसविए भारतीयों की बुवनयादी बेिकू कर्यां सब पार्टियों के साथ जुड़ी हैं। िह वजस भारतीय मन से मैं िड़ रहा हं, िह मन क्योंकक सभी पार्टियों के भीतर िही मन है, इसविए िह बुवनयादी रूप से चचेरे भाई हैं, उनमें बहुत ज्यादा र्कि नहीं है। वव्हच पाट्री इ.ज वनयरर टु योर... । नहीं, आज ठीक अथों में कोई पाटी, ठीक अथों में आज कोई पाटी समाजिाद की व्यिस्था िाने में इस मुल्क में बहुत करीब नहीं है। तो इसविए मेरा कहना है कक मैं ककसी पाटी से मेरी कोई सहमवत नहीं है। समाजिाद से मेरी सहमवत है। और समाजिाद के विए जहंदुस्तान में एक हिा बननी चावहए। तो एक हिा से एक पाटी विकवसत हो सकती है, जो कक ठीक अथों में समाजिादी हो। आि इं पावसबि टु वबिीि... । यस्टरिे यू टोल्ि... । हमेशा, हमेशा, जो नहीं हुआ है उसकी बात करना उटोवपया की ही बात करनी है। जो नहीं हुआ है। हमेशा। जो नहीं हुआ है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। )



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हां, मैं समझा। नहीं, इसविए मैं कह रहा हं, इसविए मैं कह रहा हं कक मैं ये जो एवक्झजस्टंि पोविरटकि पाटीज हैं, पाटीज के ढांचे िित हो सकते हैं, इनके भीतर ढेर व्यवि हैं जो िित नहीं हैं। उनके तंत्र िित हो सकते हैं। जहंदुस्तान में अभी भी िोकमानस के वनकटतम पहुंच सके समाजिाद का संदेश, िैसी कोई िैचाररक पाटी खड़ी नहीं हो सकी। प्रयास हुए बहुत से। िे प्रयास कई तरह से नि हुए। कम्युवनस्ट पाटी के साथ, िोकमानस और कम्युवनस्ट पाटी के बीच कु छ बुवनयादी र्ासिे खड़े हो िए। िे कम्युवनस्ट पाटी के बाि में खड़े हो िए। कम्युवनस्ट पाटी जो संदेश िेकर यहां आई िह संदेश के िि समाजिाद का संदेश न होकर साथ ही नावस्तकता का और अिर् म का संदेश भी बन िया। उसके दुष्पररणाम हुए भारत में। भारत के मानस में नावस्तकता के विए कोई जिह नहीं है। आज भी नहीं है भारत के मानस में। थोड़े से वशवक्षत, पढ़े-विखे िोिों के मन में हो सकती है। भारत के मानस में कोई जिह नहीं है। तो कम्युवनस्ट पाटी और भारत के मानस के बीच एक बुवनयादी बैररयर की तरह है। उससे नावस्तकता और िमि-विरोिी भाि खड़ा हुआ है। दूसरे सोशविस्ट जो जहंदुस्तान के थे, िे सोशविस्ट कम थे और बुवनयादी रूप से िांिीिादी ज्यादा थे। िांिीिाद को उन्होंने सोशविज्म की शक्ि में िढ़ा हुआ था। और िांिीिादी बुवनयादी रूप से, िांिीिाद बुवनयादी रूप से समाजिाद नहीं है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) नहीं, िह नहीं कह रहा हं। िह नहीं है। और, तो जो दूसरा सोशविस्ट कदमाि पैदा हुआ मुल्क में, जयप्रकाश या उस तरह के िोिों का, िे मूिताः िांिीिादी हैं। सोशविज्म की तरर् उसके झुकाि थे। उसने थोड़ी-बहुत कोवशश की, िह असर्ि हो िया, िह असर्ि होने को था। िह िीरे -िीरे इिर-उिर भाि िया। या तो कु छ सिोदय में जाकर िि िया और उसमें िू ब िया अपने को भुिाने के विए, या ककसी और काम में िि िया। जहंदुस्तान में वपछिे तीस-चािीस साि के भीतर कोई व्यिवस्थत रूप से समाजिाद एज ए थॉट म्यूवजयम खड़ा नहीं हो सका। पाटी पैदा होती है िैचाररक क्रांवत से। पाटीज तो खड़ी हो िईं जहंदुस्तान में िेककन िैचाररक क्रांवत वबल्कु ि नहीं हुई। पाटीज आउट कम हैं एक िैचाररक मूिमेंट की। जहंदुस्तान में एक समाजिाद, एक िोकमानस को छू ने िािा आंदोिन नहीं बन सका। पाटीज खड़ी हो िईं, और पाटीज कई तरह से खड़ी हो िईं। ये जो पाटीज खड़ी हुईं इनका अब भी िोकमानस से कोई संबंि, सीिा साक्षामकार नहीं हो सका है। मेरी जो दृवि है, मुझे पाटी की कर्क्र नहीं है, वजतनी समाजिादी िोकभािना की कर्क्र है। समाजिाद एक िैचाररक ति पर दे श के भाि में पैदा हो जाए, तो पाटीज उससे पैदा हो सकती हैं। एवक्झजस्टंि पाटीज भी उसके अनुकूि बन सकती हैं, िह दूसरी बात है। उसकी मुझे जचंता नहीं। इसविए आप जो कहते हैं कक यह उटोवपया मािूम होता है। यह ठीक भी है एक अथों में, क्योंकक विचार की कोई भी क्रांवत उटोवपया ही है। िेककन विचार की क्रांवत से िीरे -िीरे सकक्रय मूिमेंट पैदा होते हैं और िे उटोवपया नहीं रह जाते हैं। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) 87



हां, समझा न, समझा, मैं समझ िया। मैं अभी आपसे बात कर रहा था, आप नहीं आए उसके पहिे यह बात हो चुकी। मैं यह कह रहा था कक िह जो आि ििी है, िह आपको जो आि कदखाई पड़ती है, इवमवजएट प्रॉब्िम्स की, उसको आि नहीं कह रहा हं। हम, हमारी आि ििी है बहुत सनातन, और िह जो आि ििी है िह इवमवजएट प्रॉब्िम्स की नहीं, इवमवजएट प्रॉब्िम्स उस सनातन आि के पररणाम हैं, बाइ-प्रोिक्टस हैं। सनातन आि तो िरीबी है। न-न। िरीबी मैं नहीं कह रहा हं। िरीबी भी हमारी जचंतना का पररणाम है। िरीबी भी बेवसक कारण नहीं है। हम वजस तरह सोचते रहे हैं आज तक उसमें िरीबी ही पैदा हो सकती है। िह हमारे सोचने के िित रास्तों का पररणाम है। िरीबी भी! हम िरीब अकारण नहीं हैं। और िरीब होना कोई प्राकृ वतक र्टना नहीं है हमारे ऊपर। और िरीबी भी हमारे सोचने के िित ढंिों का पररणाम है। और जब तक िे सोचने के िित ढंि नहीं बदिे जाते हैं, तब तक आप िरीबी को थोड़ी-बहुत सहने योग्य बना सकते हैं, और आप इससे ज्यादा कु छ भी नहीं कर सकते। और िह भी आप नहीं कर पाएंिे। जैसा मेरा कहना है, जैसा मेरा कहना है कक हमको आज तीस साि से पता है यह बात कक अिर हमारी जनसंख्या बढ़ती चिी जाती है तो हम रोज िरीब से िरीब होते चिे जाएंिे। यह तीस साि से हमें पता है। िेककन हमारी जनसंख्या बढ़ती ही चिी िई है। और आज भी जो हम उपाय कर रहे हैं िे उपाय ऐसे हैं जैसे पूरे समुद्र को कोई थोड़ी-बहुत रं ि की रटककया िाि कर रं िने की कोवशश कर रहा हो। इतने ही उपाय से अिर हमने संख्या को रोकने की कोवशश की, तो हम दो सौ साि में भी संख्या नहीं रोक सकते हैं! और वजतने हम उपाय कर रहे हैं, िे उतने उपाय इतने कम हैं और संख्या इतनी तीव्रता से बढ़ रही है, यह हमारी समझ के बाहर हुआ जा रहा है। िेककन संख्या बढ़ रही है इसविए नहीं कक संख्या बढ़ने के बाबत हमारी समझ नहीं है कक िह िित है बवल्क बच्चों को पैदा करने के बाबत हमारी जो समझ है िह सनातन है। िह यह है कक बच्चे परमाममा से आते हैं, हमें उन्हें रोकने का कोई हक नहीं है। मेरा मतिब आप समझ रहे हैं न? तीस साि में दूसरे मुल्कों ने, जैसे िांस जैसे मुल्क ने अपनी संख्या वथर कर िी है। आज तो िांस में भी जचंता की यह बात है कक अिर यह संख्या वथर रही तो कहीं यह न हो कक आने िािे पचास िषों में उनकी संख्या नीचे विरनी शुरू हो जाए, िे वजतने हैं उससे कम न हो जाएं। अब यह बड़े मजे की बात है कक एक ही पृथ्िी पर हम िोि रह रहे हैं! एक के सामने सिाि है कक हम संख्या कै से रोकें ! और अभी भी कौमें हैं वजनके सामने सिाि है कक हम अपनी संख्या विरने से कै से रोकें ! कहीं िह वबल्कु ि न विर जाए। अब पवश्चम में उनको जचंता पैदा शुरू हो िई कक पूरब के िोि तो पैदाइश बढ़ाए चिे जा रहे हैं। कहीं सौ साि में ऐसा न हो जाए कक सर्े द रं ि की जावतयां कािे रं ि की जावतयों से इतनी कम पड़ जाएं कक हमारा जीना मुवश्कि हो जाए इनके साथ। मेरा मतिब यह है, हम वजस ढंि से सोचते हैं िे ढंि हमारी सारी की सारी जीिन-प्रकक्रया को प्रभावित करते हैं। िे इवमवजएट कदखाई नहीं पड़ते हमें। अब जैसे मैं आपको कहं, अभी भी करपात्री जाकर िांि में अिर समझाते हैं िोिों को कक यह संतवत-वनयमन जो है यह िमि विरुद्ध है। तो िांि के आदमी के समझ में आता है। िेककन अिर िांि के आदमी को जाकर आप समझाएं कक बच्चे पैदा करना िमि विरुद्ध है, तो समझने की बात से 88



वबल्कु ि बाहर हो जाता है। मैं जो कह रहा हं, मेरे सामने इवमवजएट प्रॉब्िम्स महमिपूणि नहीं हैं। क्योंकक मैं मानता हं, इवमवजएट प्रॉब्िम्स जो हैं िे हमारे बेवसक जथंककं ि के आउटकम हैं, कांवसक्वेंवसस हैं। बेवसक जथंककं ि अपनी प्रॉब्िम है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) जरूर, विवमटेि है, विवमटेि है। और यह भी सच है, िेककन उस विवमटेशन को तोड़ने का सिाि है। उसको ही तोड़ने का सिाि है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) वबल्कु ि ठीक है, िेककन िह भी क्यों? िह भी क्यों? वबकाज कं ट्री इ.ज पुअर। नहीं, कं ट्री पुअर है यह नहीं। शरीर के प्रवत वजतना हमें ध्यान दे ना चावहए िह हमारे भाि के भीतर नहीं कक शरीर के प्रवत ध्यान दे ना है। कु छ भी खा विया और काम चिा िेना। शरीर के प्रवत एक बेवसक वनग्िेक्शन हमारे भीतर है। और िह जो हमारी कर्िासर्ी का वहस्सा है। हमारी कर्िासर्ी यह कह रही है कक शरीर से कु छ िेना-दे ना नहीं। एक दर्ा खाना खा िो तो भी ठीक है, कु छ भी खा िो तो भी ठीक है। शरीर तो िौण है, असिी चीज तो आममा है। मैं आपसे यह कह रहा हं कक आपने भी िैटेविटी खोज िी होती, विटावमन खोज विए होते। आपने भी खोज विया होता कक कौन सी विकर्वशएंसी है। िेककन शरीर से हमें कोई िेना-दे ना नहीं। बवल्क सच यह है कक हम उस आदमी को आदर दे ते हैं जोशरीर के प्रवत वजतना उपेक्षापूणि हो। हम उसको आदर दे ते हैं। और जो आदमी शरीर की वजतनी जचंता करे , उसको हम आदर नहीं दे ते। अिर िांिी थिि क्िास में चिेंिे तो हम आदर ज्यादा दें िे बजाए र्स्टि क्िास में चिने के । और उसका बुवनयादी कारण क्या है? उसका बुवनयादी कारण यह है कक हम तीन हजार िषि से यह सोचते हैं कक शरीर की जो उपेक्षा करता है िही आममिादी है। तो मेरा मतिब आप समझ रहे हैं न? यह जो हम नहीं खोज पाए विकर्वशएंसी और हम िेजी हो िए। उसके कारण विकर्वशएंसी में नहीं; उसके कारण भी हमारी बेवसक जथंककं ि है। जहंदुस्तान जो है एक तरह का एंटी-बॉिी एटीट्यूि है उसके माइं ि का। और िह एंटी-बॉिी एटीट्यूि जो है िह नुकसान पहुंचा रहा है। और िह जब तक नहीं बदि दे ते तब तक हम खोज-बीन कर भी नहीं पाएंिे। अभी भी हाित यह है, अभी भी हाित यह है कक अभी भी हम जो खाना खाते हैं, हमारा वशवक्षत से वशवक्षत भी व्यवि कोई बहुत बोिपूििक खाना खा रहा हो ऐसा नहीं है कक िह क्या खा रहा है? िह जो खा रहा है, वशवक्षत से वशवक्षत व्यवि भी, उसको कोई बोि नहीं है खाने के बाबत। िह कै से सो रहा है इसका भी बोि नहीं है। हमारी चेिा यह रही है कक अिर एक नंिे तख्त पर आदमी सोता है तो िह ज्यादा ऊंचा काम कर रहा है। इसकी हमें कोई कर्क्र नहीं कक नंिा तख्त उसके स्िास्थ्य में िििक होिा कक नुकसानदायक होिा। इसका हमें कोई विचार नहीं है। 89



हम क्या खा रहे हैं इसका विचार नहीं है। कम जो खाता है, सस्ते से सस्ता जो खाता है, िह कोई ऊंचा काम कर रहा है। उपिास जो करता है िह खाने िािे से भी ऊंचा काम कर रहा है। कपड़े पहनने िािा आदमी ििती कर रहा है, नंिा जो बैठा हुआ है चाहे ककतनी भी तकिीर् झेि रहा हो, िह ऊंचा काम कर रहा है। हमारी जो बेवसक दृवि है शरीर-विरोिी होने की िजह से विकर्वशएंसी रह िई, विकर्वशएंसी हम कभी भी पूरा कर िेते। मजे की बात यह है कक जहंदुस्तान में सबसे पहिे शरीर के बाबत जानकाररयां प्राप्त कर िी थीं, जो कक पवश्चम ने अभी तीन सौ िषों में प्राप्त कीं। और कर्र भी हम कु छ भी नहीं कर पाए। नहीं करने का कारण है। जब एक दर्ा अवभनय... अमेजान में एक कबीिा रहता है दवक्षण अमरीका में। तो उस कबीिे की हजारों साि की ट्रेजनंि यह रही है कक कोई भी आदमी अपने खेत पर काम नहीं करे िा। सारा िांि एक आदमी के खेत पर काम करे िा। अपने खेत पर काम करना बुरा मानते हैं िे। जब तक कक सब िोि काम करने न आएं। और दूसरे के खेत पर काम करने को अच्छा मानते हैं। एक भाई-चारे के विए। िेककन िह कबीिे के जो खेत हैं, छोटे-छोटे टु कड़े और दूर-दूर पहावड़यों पर हैं। तो सारे िांि को दूर-दूर की यात्रा करनी पड़ती है काम के विए। और पररणाम यह हुआ है कक उनके बिि का कबीिा सुखी और संपन्न है। उनके पास भी उतने-उतने दूर खेत हैं, िेककन िे अपने-अपने खेत पर काम करते हैं। यह कबीिा भूखा मर रहा है हजारों साि से। िेककन िह जो उसकी िारणा है कक अपने खेत पर काम करना स्िाथिपूणि है दूसरे के खेत पर काम करना ही सामावजक बात है, अच्छी बात है, िही िार्मिक कृ मय है। िे िरीब रहे। दोनों कबीिे एक तरह की जमीन पर रहते हैं, एक तरह के िोि हैं। एक कबीिा भूखा मर रहा है हजारों साि से, दूसरा कबीिा संपन्न है। िेककन िह कबीिा भूखा मर रहा है। और उसका कु ि कारण इतना है कक िह उसकी बेवसक दृवि में बुवनयादी भेद है। हाउ मैनी विस्ट्रीब्यूशंस िांिी एण्ि िांिीइज्म... । िांिीइज्म यू सेि िेरी िुि िििस अबाउट िांिी। आई जथंक, िांिी एण्ि िांिीइज्म दे कै न नॉट बी सेपरे टेि। हां-हां, िे वबल्कु ि सेपरे ट ककए जा सकते हैं इस तरह। इसविए कहता हं, िांिी की नैवतकता, िांिी का आचरण, िांिी का व्यविमि उनकी नींि है, उनकी चेिा, िह सब अदभुत है और प्रीवतकर है, िेककन िांिी... एज ए ह्यूमन बीइं ि। एज ए ह्यूमन बीइं ि, एज ए ह्यूमन बीइं ि। एज ए ह्यूमन बीइं ि मैं िांिी को पसंद करता हं माक्सि को पसंद नहीं करता। माक्सि के पास मुझे कोई कीमती व्यविमि नहीं मािूम पड़ता। कोई पसिनैविटी नहीं मािूम पड़ती। वजसको कक वजसको हम व्यवि की तरह आदर दे सकें । िेककन माक्सिइज्म को मैं िांिीइज्म से पसंद करता हं। क्योंकक माक्सिइज्म की जो दृवि है िैज्ञावनक है। जीिन को बदिने के विए ज्यादा मूिभूत है। तो मैं दुवनया ऐसी चाहंिा, जहां िांिी जैसे आदमी हों और माक्सि जैसा समाज हो। माक्सि के व्यविमि में मुझे बहुत ही सािारण आदमी मािूम पड़ता है। िायि का व्यविमि इतना सािारण है वजसका वहसाब नहीं। िेककन िायि ने जो कहा है, जो खोज की, िह बहुत असािारण है। तो एज ए 90



ह्यूमन बीइं ि, मैं िांिी की वजतनी तारीर् कर सकूं , उतना करता हं। िेककन िांिी की जो दृवि है समाज के मसिे के पक्ष में िह दृवि मुझे िैज्ञावनक नहीं मािूम पड़ती, उसका मैं विरोि करता हं। इसविए िांिीइज्म में और िांिी में मैं र्कि कर िेता हं। िेककन िांिी ने तो कहा था कक मुझे भूि जाओ, मेरे विचार को याद करो। हां, िांिी ने यह कहा था। और मैं यह कहता हं कक िांिी को मत भूिना, िांिी के विचार को भूि जाओ। क्योंकक मुझे ििता है, िांिी बहुत मूल्यिान हैं और विचार कु छ मूल्य का नहीं। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) ठीक बात है। ठीक है। असि में चेंज ही करना हो तो माक्सि कोभी एक कर्िासर्ी एि करनी पड़ती है। चेंज करना हो तो भी। बट इ.ज योर पार्िियामेंट स्कीम... । मेरा मतिब नहीं समझे आप। माक्सि को भी अिर चेंज करनी हो दुवनया, तो भी एक नई कर्िासर्ी एि करनी पड़ती है। क्योंकक उस कर्िासर्ी के प्रभाि में ही िह चेंज होिी। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) माक्सि ने कु छ इं प्िीमेंट करने के विए नहीं ककया। माक्सि को र्ु सित भी नहीं थी। मैं आपको कहं, माक्सि को कल्पना भी नहीं थी और र्ु सित भी न थी। और माक्सि ने इं प्िीमेंटेशन के विए कु छ भी नहीं ककया। इं प्िीमेंटेशन पचास साि बाद होना शुरू हुआ। और वबल्कु ि दूसरे िोिों ने ककया। और मेरी अपनी समझ यह है कक आज तक दुवनया में कोई कर्िासर्र इं प्िीमेंटेशन कभी नहीं ककया है। िह दृवि दे सकता है, इं प्िीमेंटेशन करने िािे िोि आते हैं िे इं प्िीमेंट करते हैं। िेवनन ने इं प्िीमेंटेशन ककया और उससे भी ज्यादा स्टैविन ने ककया। माक्सि ने कु छ इं प्िीमेंटेशन ककया नहीं, कर सकता नहीं। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) कु छ भी नहीं। कु छ भी नहीं। र्स्टि इं टरनेशनि... ।



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हां, यह तो ठीक है न, यह सब ठीक है। र्स्टि इं टरनेशनि भी जो है िह भी कर्िासकर्कि मूिमेंट है माक्सि के विए। िेककन सबको उसकी जरूरत है। जरूर! मैं तो उसके विए, मैं तो जीिन जािृवत कें द्र और युिक क्रांवत, दोनों को, सब खड़े करता हं। िह मैं खड़े करता हं। िेककन माक्सि की दृवि में और माक्सि के समय में र्स्टि इं टरनेशनि जो है िह एक कर्िासकर्कि मूिमेंट है। िह एक मूिमेंट है कम्युवनज्म की विचारिारा को पहुंचाने का। इं प्िीमेंटेशन बहुत पीछे आता है। कई दर्ा तो हजारों िषि बाद इं प्िीमेंटेशन आता है। इं प्िीमेंटेशन तो उतना महमिपूणि भी नहीं है। एक दर्ा साइं रटकर्क दृवि सार् हो जाए तो इं प्िीमेंटेशन आ जाएिा। उसकी कोई जचंता की बात नहीं है। अच्छा, िह मूि दृवि। तो आपके ख्याि से अभी कर्िासकर्कि मूिमेंट करनी चावहए। और दूसरी कोई एवक्टविटी की जरूरत नहीं है। न-न, यह मैं नहीं कहता कक जरूरत नहीं है। वजनको जरूरत ििती है िे कर रहे हैं। मैं नहीं कर रहा हं। िह बहुत तेजी से वनकिी। आज जो दूसरी जो कक पोविरटकि रह िई, समझ िीवजए सोवशएि है। िह कौनसा तेजी से करना चावहए। आपने बताया कक िमोक्रेसी एवक्झस्टीि हुई है। तो यह पोविरटकि एवक्टविटी में जो िोि आपके ख्याि के साथ हैं, िे जो खड़े हैं, उनको आप क्या कहेंिे? उनको मैं जो कह रहा हं, उनको जो मैं कह रहा हं, मेरी बात जो िे समझ रहे हैं... । अब िे बीच में तो नहीं रहेंिे, िरती पर उतरें िे। न-न-न। िे तो उतरें िे िरती पर। एक दर्े स्पेस हो तो ही िरती पर उतरें िे। स्पेस ही न हो तो िरती पर कु छ भी नहीं उतरे िा। तो अभी स्पेस में ही नहीं है। यानी जो तकिीर् है, जो तकिीर् है िह यह है कक इस मुल्क के पास अभी मवस्तष्क में भी विचार नहीं है जो िरती पर उतर सके । िरती पर उतने की जल्दी मत कररए। िहां स्पेस तो होने दीवजए, तो िरती पर उतरें िे। तो िांिटमि और शाटिटमि दो प्रोग्राम बनाएंिे न। वबल्कु ि ही ठीक है न। अभी तो, अभी तोशाटिटमि की र्ु सित नहीं है अभी तो िांिटमि ही सिाि है। अभी मेरे सामने तो जो सिाि है िह यह कक एक बार विचार बीज र्ै ि जाएं तो इं प्िीमेंटेशन में उतरना शुरू हो जाएंिे। इसकी मुझे जचंता की बात नहीं है। हमारी हमेशा जचंता इं प्िीमेंटेशन की ज्यादा होती है।



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(प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) िे जो र्े ि न होते, अिर िे विचार-क्रांवत िािे ही होते। िे इं प्िीमेंटेशन... कोई र्कि नहीं इसविए र्े ि हो िए, यह मैं आपसे कहता हं। जो आप कह रहे हैं िह ििती बात है। विनोबा अिर वसर्ि विचार-क्रांवत करते तो र्े ि न होते, और हो सकता था उनकी विचार-क्रांवत पररणाम भी िाती। विचार-क्रांवत एक तरर् रह िई, िे इं प्िीमेंटेशन में पड़ िए। और इं प्िीमेंटेशन में पड़ कर सबका सब खराब कर कदया। यानी विनोबा की असर्िता विचार की असर्िता नहीं है, इं प्िीमेंटेशन की असर्िता है। और िह विनोबा विचार की दृवि से असर्ि नहीं हो िए, जो उन्होंने ककया उसमें र्ं स िए। समव्हेयर यू सेइंि िांिी जी कु ि नॉट ट्रांसर्ामि ऑर चेंज ह्यूमन कै वपरटविस्ट दे आर िोइं ि ए कै वपटविस्ट सोसाइटी... नहीं, मैं तो मानता हं कक चेंज ककया ही नहीं जा सकता, इसविए िांिी नहीं कर सके । िह िारणा ही िित थी एक-एक व्यवि को चेंज करने की। मेरा तो मानना ही नहीं है, ये चेंज ककए जा सकते हैं। मेरा तो कहना यह है कक िांिी भूि में थे, िे सोचते थे कक हम कै वपटविस्ट को चेंज कर िेंिे। कै वपटविज्म चेंज ककया जा सकता है, कै वपटविस्ट नहीं ककया जा सकता। कै वपटविस्ट ककस तरह से चेंज ककए जा सकते हैं? जैसे सारी दुवनया में हो रहे हैं। रूस में कै से चेंज ककए िए। चीन में कै से चेंज हो रहे हैं। िोकतंत्र का अवभनमि आप क्या दे खते हैं। िही तो मैंने कहा, िही विकल्प है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) दूसरा खड़ा नहीं होिा। दूसरा खड़ा नहीं होिा। व्यिस्थापक ििि खड़ा हो जाएिा। शोषक ििि खड़ा नहीं होिा। तो िोकतंत्र पर आज का र्ायदा नहीं हुआ तो... । हमारे ककसान भारत के और मजदूर जो पीवड़त हैं, शोवषत हैं, िोकतंत्र द्वारा उनको कोई र्ायदा नहीं होिा? न तो उनके शोषण में कोई र्कि नहीं पड़ता। उनकी पीड़ा कम हो सकती है। िह सिाि नहीं है।



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और िोकतंत्र से यह प्रश्न हि नहीं ककया जा सकता? न, यह नहीं हि ककया जा सकता। उसकी िजह यह है, उसकी िजह यह है कक िोकतंत्र मानता यह है क्योंकक िोकतंत्र जो है िह कोई वििादी व्यिस्था की ही बाई-प्रॉिक्ट है। तो िोकतंत्र मानता यह है कक पूंजीपवत पर दबाि िािना, उसके शोषण के इं तजाम को तोड़ना, यह िोकतंत्र का हमिा है। व्यविित संपवत्त िोकतंत्र का अवनिायि वहस्सा है। िह उसको व्यविित स्ितंत्रता के नाम से कहता है कक व्यविित स्ितंत्रता होनी चावहए प्रमयेक व्यवि को और व्यविित संपवत्त िह व्यविित स्ितंत्रता का वहस्सा मानता है। अिर आप िोकतंत्र का ही नाम रखना चाहते हैं, नाम से कोई झिड़ा नहीं। िेककन िोकतंत्र नाम रहे तो भी हमें एक व्यविित संपवत्त पर चोट करनी पड़ेिी और व्यविित संपवत्त को समथिन दे ने िािी विचारिाराओं पर भी चोट करनी पड़ेिी तो ही व्यविित संपवत्त जाती है। कि ही आपने कहा था कक व्यविित संपवत्त जब तक नहीं बढ़ती, तो हम भौवतकिाद... । नहीं, यह तो आप िित समझ रहे हैं, आप समझे नहीं कर्र, यह आप नहीं समझे। कै वपरटविस्ट कै न नॉट बी चेंज्ि। हां, कै वपटविज्म चेंज ककया जा सकता है। यू िोंट र्ाइं ि एनी आब्जेक्शन इन मूजिंि... सेम ऑि। कोई सिाि ही नहीं है। कै वपटविस्ट जो है, कै वपटविस्ट जो है, िह कै वपटविज्म का उतना ही विवक्टम है वजतना प्रोविटेररएट, दोनों। यानी सिाि, इस कै वपटविज्म का जो इं तजाम है, जो सरं जाम है, जो व्यिस्था है उसमें पूंजीपवत उतना ही वशकार है वजतना की मजदूर। िे दोनों ही नुकसान में और परे शानी में हैं। मुझे कै वपटविस्ट से कोई भी विरोि नहीं है, कै वपटविज्म से विरोि है। यह सार् होना चावहए। इसविए पूंजीपवत का दुश्मन नहीं हं मैं। पूंजीपवत से इतना है कक समाजिाद आए दुवनया में। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) इसको थोड़ा समझ िें। क्राइस्ट के मैसेज में, बुद्ध के मैसेज में और मेरी बात में बुवनयादी र्कि है। र्कि क्या है, र्कि क्या है, क्राइस्ट का मैसेज सोसाइटी को बदिने का तो सिाि ही नहीं है, क्राइस्ट का मैसेज तो इं विविजुअि ट्रांसर्ामेशन का है। बुद्ध का मैसेज भी इं विविजुअि ट्रांसर्ामेशन का है, एक-एक व्यवि को बदिने का है। िांिी की बात आप िे सकते हैं, बुद्ध और क्राइस्ट को छोड़ दें --उनका मैसेज बुवनयादी र्कि है। िांिी का मैसेज और िांिीिादी की आप बात िे सकते हैं कक िांिी का मैसेज था और िांिीिाकदयों ने जो हाित की, तो अिर मैं एक बात कहं कक बीस साि में मेरा कोई अनुयायी होिा, तो यही हाित कर दे िा। 94



उसमें मेरा कहना यह है कक िह जो िांिीिादी ने हाित की है िह िांिीिादी का कसूर नहीं, िांिीिाद का कसूर है, यह होने िािा था। यह िांिी के साथ यही होने िािा था। क्योंकक िांिीिाद की बुवनयादी दृवि िित है। तो िांिीिादी जो भी करे िा उससे ििती होने िािी है। यह िांिीिादी का कसूर नहीं है। यह कोई मोरारजी दे साई का या ककसी और का कसूर नहीं है। िांिीिाद की जो दृवि है िह दृवि चूंकक िित है। इसविए जो भी उससे इं वप्िमेंटेशन करे िा िह झंझट में पड़ जाएिा, िह इसी तरह की झंझट होने िािी है। मेरा जो कहना है न, जो मैं कह रहा हं अिर िह दृवि िैज्ञावनक है तो उसके इं वप्िमेंटेशन करने िािा सर्ि हो जाएिा। और अिर िह जो दृवि िैज्ञावनक नहीं है, तो इं वप्िमेंटेशन नहीं हो सकता, िह खमम हो जाएिा। अनुयायी का दोष नहीं है उतना। मेरा मतिब आप समझ रहे हैं न? वजतना िाद का दोष है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) न, यह तो ठीक कहते हैं आप। असि बात यह है, असि बात यह है कक जब कोई कर्िासर्ी उनके अनुयावययों के द्वारा नि होती है तो दो-तीन कारण होते हैं। एक कारण तो ककसी कर्िासर्ी की िैज्ञावनकता की परीक्षा ही तब होती है जब अनुयायी उसको इं वप्िमेंटेशन करते हैं। उसके पहिे तो उसकी परीक्षा भी नहीं होती। हिा में तो सभी चीजें ठीक मािूम होती हैं। हिा में कोई कदक्कत नहीं है। एक्सप्रेस जथंककं ि में तो सभी चीजें ठीक हो सकती हैं क्योंकक वसर्ि आग्युिमेंट और िावजक की बात है। हाइपोथेरटकि बात है। िेककन जब आप इसको व्यािहाररक रूप से इं प्िीमेंट करते हैं, तभी पता चिता है कक िह इं वप्िमेंट हो सकती है कक नहीं हो सकती। इसविए असिी करठनाई तो हमेशा इं वप्िमेंटेशन िािे के सामने खड़ी होती है। और उसमें हमेशा परे शानी हुई है क्योंकक आकाश से जमीन तक उतारने में बहुत कदक्कतें होती हैं, एक बात। दूसरी बात, अनुयायी जो है, अनुयायी जो है अिर िह एक भािनाित प्रभाि से ककसी चीज से प्रभावित हुआ है तो एक वस्थवत होिी, और िॉवजकि, रे शनि और बुवद्धमत्ता से प्रभावित हुआ तो वबल्कु ि दूसरी बात होिी। िांिी जैसे व्यवियों का प्रभाि भािनाित ज्यादा होता है, विचारित कम। माक्सि जैसे व्यवियों का प्रभाि विचारित ज्यादा होता है, भािनाित कम। मेरा मतिब, मेरा मतिब जो मैं कह रहा हं... (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) मैं आपको बात करता हं, मैं आपको बात करता हं, मैं आपको बात करता हं कक अिर मेरा कोई पैर छू ता है आकर, मेरी वजतनी विचारिारा है, वजतनी ज्यादा से ज्यादा तकि युि हो सकती है उतनी मैं उसे तकि युि बनाने की कोवशश करता हं। विचारिारा मेरी जो है, मेरी विचारिारा से जो प्रभावित होिा, िह एक बात है। जो इस मुल्क की िारा है हमेशा से, एक संन्यासी से सािु से प्रभावित होने की, िह वबल्कु ि दूसरी बात है। िेककन जो आदमी मेरे पैर छू ने भी आएिा, िह भी अिर आता ही रहा तो बहुत जल्दी उसको समझ में आ आएिा कक पैर छू ना वनरथिक है उसका कोई उपयोि नहीं। इसविए मैं उसे रोकता भी नहीं। क्योंकक जो मैं कह रहा हं चौबीस र्ंट,े िह उस तरह की सारी बातों के प्रवतकू ि है। मैं कोई भािनाित बात उसमें र्ै िाना नहीं चाह रहा हं, कोई इमोशनि बात पैदा करना नहीं चाह रहा हं। मेरी चेिा तो वनरं तर 95



एक बौवद्धक क्रांवत की है। अब अिर इतनी बौवद्धक क्रांवत की बातें सुन कर भी िह पैर छू ने आता है तो िह पैर छू ना उसकी कं िीशजनंि का वहस्सा है, जो हजारों साि की कं िीशजनंि है। तो मेरी दृवि यह है कक अिर िह विचार करना सीखता है मेरे साथ तो बहुत जल्दी इस तरह की भािनाओं से मुि हो जाएिा। हो जाना चावहए। मैं उसको कोई बढ़ािा नहीं दे ता हं। क्योंकक मैं जो भी कह रहा हं िह वबल्कु ि प्रवतकू ि है। दुवनया में जो आइवियोिॉवजस हैं अिर िे िैज्ञावनक हैं, तकि बद्ध हैं, तकि शुद्ध हैं तो उनके इं वप्िमेंटेशन में करठनाई नहीं होिी। िेककन अिर िे काल्पवनक हैं, उटोवपयन हैं और बेवसकिी उनमें कोई विज्ञान की बात नहीं है, तो उनके इं वप्िमेंटेशन में तकिीर् होती है। िांिी की विचारिारा की इं वप्िमेंटेशन में तकिीर् होिी, क्योंकक िह तकि शुद्ध नहीं है और न िैज्ञावनक है। काल्पवनक है, भािनापूणि है। िह भाि बहुत अच्छा है कक पूंजीपवत राजी हो जाए, ट्रस्टी बन जाए। िेककन यह विज्ञान सम्मत नहीं है यह बात, यह होने िािा नहीं है, यह होने िािा नहीं है। तो यह िांिी की अनुयायी की जो असर्िता है िह एकदम अनुयायी की असर्िता नहीं है, िह मूिताः िांिीिाद की असर्िता है। िह बेचारा अनुयायी र्ं स जाता है। उसको हम कहते हैं कक यह इन्होंने सब बबािद कर कदया। िह बबािद करे िा ही। कोई उपाय नहीं था उसका। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) हां, वबल्कु ि ठीक है। न, िह जो िॉि है, मैं समझ िया। िह मंकदर में भििान बैठा हुआ है िह पमथर का है, िह उनसे कु छ कहता नहीं। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) नहीं-नहीं, मेरी बात आप नहीं समझ रहे। िह पमथर का भििान उनसे नहीं कहता यह कक तुम दुकान में जाकर िदि न मत काटना। मैं उनसे कहता हं कक दुकान में जाकर िदि न मत काटना। मेरा मतिब... (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) नहीं-नहीं, अिर कहने से कोई विर्रें स होता ही नहीं तब तो कर्र कोई उपाय ही नहीं मानते आप। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) मेरी बात नहीं समझे आप। अिर हम यह माने िें कक कहने से कोई विर्रें स होता ही नहीं, तो कर्र कोई उपाय नहीं रहा कम्युवनके शन का। जो मैं यह कह रहा हं, मैं यह कह रहा हं कक यह जो मंकदर का भििान है उसको िे िोखा दे पाते हैं क्योंकक िह पमथर का है। और इसविए पमथर का उन्होंने भििान बनाया हुआ है ताकक उससे कोई झंझट पैदा न हो।



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(प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) न, यह जो आप, यह जो कह रहे हैं न, िू िुि जथंग्स। जो िे कहते हैं तो िुि जथंग्स का मतिब यह है कक चचि जाना चावहए रवििार को, भििान को मािा चढ़ानी चावहए, मंत्र पढ़ना चावहए। िुि जथंग्स िे यह नहीं कह रहे हैं कक इल्िॉवजकि नहीं होना चावहए। यह मेरी बात आप समझ रहे हैं न? बवल्क सच यह है कक उनकी सारी िुि जथंग्स इसी पर वनभिर है कक आप िॉवजक न िाएं बीच में। िॉवजक िाए तो िड़बड़ हो िया। मैं वजसको कह रहा हं िुि, उसमें िुि में पहिी तो बात रीजन है। मैं आपसे वजसको मैं िुि कह रहा हं, उसमें पहिी बात रीजन है। उस रीजन में क्या है? भििान की हमया हो तो हो जाए, मंकदर जिता हो जि जाए, मूर्ति टू टती हो टू ट जाए, शास्त्र कर्ं कता हो कर्ं क जाए। मैं पहिी तो िुिनेस यह मानता हं कक रीजन होना चावहए। िह जो प्रीस्ट कह रहा है आपसे िुिनेस, िह कह रहा है कक इररीजन। िह यह नहीं कह रहा आपसे कक रीजन, िह यह कह रहा है कक मररयम को कुं आरी मानो। यह बहुत अच्छे आदमी का िक्षण है। जोशक करता है िह बहुत िड़बड़ आदमी है। िह जो िुिनेस वसखा रहा है िह िुिनेस नहीं है, िह िोखा है िुिनेस का। दुवनया में िुिनेस आएिी, उसके पहिे रीजन आना जरूरी है, नहीं तो नहीं आ सकती। तो मेरे और प्रीस्ट में बुवनयादी र्कि है। मैं प्रीस्ट हं ही नहीं। यानी मुझसे ज्यादा एंटी-प्रीस्ट कोई आदमी हो नहीं सकता। न तो मैं कोई मंकदर खड़ा कर रहा हं, न कोई प्रीस्ट खड़ा कर रहा हं, न भििान और आदमी के बीच ककसी दिाि को स्िीकार कर रहा हं, न ककसी शास्त्र को स्िीकार करता हं, न मेरी ककताब कोशास्त्र कहता हं, न यह कहता हं कक जो मैं कह रहा हं िह समय है, इतना ही कहता हं कक मुझे समय कदखाई पड़ता है और जब तक तुम्हारे रीजन को सत्य न ििे तब तक दो कौड़ी का है, उसको तुम स्िीकार करना मत। यानी कक आवखर हम तोड़ कै से सकते हैं? आवखर दूसरे व्यवि से कम्युवनके शन का रास्ता कहने के वसिाय क्या है? अब मेरे पास िोि आते हैं, िे आकर मुझसे कहेंिे कक आप आशीिािद दे दें । मैं उनको कहता हं, आशीिािद से कु छ भी नहीं होिा। और तुम इस भ्म में रहना मत कक मेरे आशीिािद से कु छ होने िािा है। तुम मेरे पैर छू ते हो तुम वसर्ि किायद कर रहे हो। तुम इस ख्याि में रहना मत कक मेरे पैर छू ने से तुम्हें कु छ हो जाए। अब मैं कर क्या सकता हं? यह जो तीन-चार हजार िषि की कं िीशजनंि है, तो िह कं िीशजनंि को तोड़ने के विए हमें कहीं-कहीं चोट करनी पड़ती है, और कर क्या सकते हैं? िेककन चोट हमें बेरहमी से करनी चावहए। चोट हम नहीं कर पाते जब हम िोखा दे ते हैं। जब मैं यह कहं कक तुम दूसरों के पैर को मत छू ना िह किायद है और मैं कहं मेरे पैर छू ना यह बहुत िार्मिक कृ मय है, तब मुवश्कि खड़ी हो जाती है। और िही होता रहा है। दुवनया में अब तक एक प्रीस्ट के वखिार् दूसरा प्रीस्ट रहा है। प्रीस्टहुि के वखिार् कोई नहीं रहा है। जो आज तक की वस्थवत है िह यह है। एक पुरोवहत के वखिार् दूसरा पुरोवहत है। िह कहता है, िह पुरोवहत िित है, पुरोवहत मैं सही हं। िेककन पुरोवहतिाद सही है। िह कहता है, महािीर िित हैं, राम सही हैं। िह कहता है कक बुद्ध िित हैं, महािीर सही हैं। िेककन िह यह नहीं कहता कक पुरोवहतिाद िित है, यह भििानिाद िित है। तो मेरी बुवनयादी र्कि है। मैं कोई नये िमि को खड़े करने के पक्ष में नहीं हं। मैं कहता हं कक िमों का खड़ा होना िित है। मैं यह नहीं कहता कक यह राम की मूर्ति िित है और बुद्ध की मूर्ति िित है और मेरी मूर्ति सही है। मैं यह कहता हं, यह मूर्तििाद िित है। तो इन सारी बातों में बुवनयादी र्कि समझना जरूरी है। और िह वसिाय समझाने के हम कर क्या सकते हैं। िेककन मेरी समझ यह है कक अिर हम ठीक बात समझाने के प्रयास 97



करें और हमारे स्िाथि न हों उसमें, तो ठीक बात िोिों के हृदय तक पहुंचती है। ठीक बात तभी नहीं पहुंचती जब ठीक बात के पीछे हमारा कोई बहुत बुवनयादी स्िाथि जुड़ा होता है। अिर मेरा कोई स्िाथि है इस बात में, तो बहुत जल्दी आप मेरे स्िाथि को पहचान जाएंिे और ठीक बात िौण हो जाएिी, और आप समझ जाएंिे कक िह सब ठीक बातचीत काम की बातचीत है, वजससे कोई स्िाथि है। कोई भी स्िाथि, इतना भी स्िाथि कक िोि मुझे आदर दें , तो भी कर्र समय मैं नहीं पहुंचा सकता हं, उतना स्िाथि भी, समय नहीं पहुंचाया जा सकता है। तो मुझे, यानी मेरे साथ तो इतनी करठनाई हो िई। अभी यह सब मामिा चिा तो मुझे ककतने पत्र िए कक हम तो आपके वशष्य थे और हमारी श्रद्धा को बड़ी चोट पहुंची। तो मैंने उनको विखा कक तुम मुझसे वबना ही पूछे मेरे वशष्य थे कै से? मैं कभी ककसी का िुरु बना नहीं। और वनरं तर कह रहा हं कक ककसी को ककसी का वशष्य बनना पाप है। तुम मेरे वशष्य बन कै से िए? तुम वशष्य थे तो तुम भी ििती कर रहे थे और अनजाने मुझको भी पाप में र्सीट रहे थे। यह अच्छा हुआ कक मेरी बातचीत से तुम्हारा वशष्यमि चिा िया, तुम मुझसे मुि हो िए। यह बहुत ही अच्छा हुआ। अब तक होता क्या रहा है कक एक िुरु दूसरे िुरुओं से छीनने की कोवशश करता है, िेककन अपनी िुरुिम खड़ी करने की चेिा करता है। तो िुरुिम नहीं वमटती, िुरु बदिते रहते हैं। उससे कोई र्कि पड़ता नहीं बहुत। जो आदमी दूसरे मंकदर में जाता था, िह दूसरे मंकदर में िही बेिकू र्ी करता है जाकर। कक्रवश्चएन चचि में जाता था तो जहंदू मंकदर में जाने ििता है, जहंदू मंकदर में जाता था तो मवस्जद में जाने ििता है। िेककन बेवसक नॉनसेंस जारी रहती है, उसमें कोई र्र् क नहीं पड़ता। मेरा कहना यह है कक हमें बुवनयादी िुरूिम तोड़ दे नी है। दुवनया में िुरु की जरूरत नहीं है। और इिर मैंने कहना शुरू ककया कक आध्यावममक जीिन में िुरु से ज्यादा खतरनाक कं सेप्ट दूसरा नहीं है। परमाममा और आदमी के बीच ककसी िुरु को खड़े होने की जरूरत नहीं है। और कोई खड़ा होता है तो िह आदमी को परमाममा तक जाने से रोकता है या समय तक जाने से रोकता है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) हां-हां, इररे शनि एविमेंट हैं। िेककन उन सबको रे शनि बनाया जा सकता है। और जब तक हम नहीं बनाते हैं तब तक आदमी अच्छा आदमी नहीं हो सकता। िायि की मैं बात मानता हं। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) इसका मतिब यह है, इसका मतिब यह है कक रे शनेविटी पांच हजार साि पुरानी है, मेरी बात पांच साि पुरानी है, और क्या मतिब है? मेरे जैसे िोि खड़े होते रहेंिे और तोड़ते रहेंिे तो पांच हजार साि में रे शनेविटी को हम तोड़ दें िे। यह तो मामिा ऐसा है कक एक िाक्टर आपको दिा दे ता है और आप फ्िू को चिाए चिे जाते हैं। उसका मतिब कु ि इतना है कक दिा अभी फ्िू के िायक मजबूती से काम नहीं कर पा रही। उतनी मजबूत नहीं है। उतने जोर से नहीं दी जा रही। िेककन फ्िू टू टेिा, विश्वास हमारा यह है कक बीमारी टू टेिी दिा जीतेिी। इसी विश्वास से आदमी जीता है। और कोई सारे समाज की क्रांवत चिती है।



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यह बात सच है कक इररे शनेि एविमेंट बहुत ज्यादा है। िेककन इसको तोड़ने का कभी प्रयोि नहीं ककया िया है। यह िायि के बाद संभिताः इिर इन तीस-चािीस िषों में, इररे शनि एविमेंट की स्िीकृ वत उपिब्ि हुई है, तोड़ने की तो बात अिि। िह है यही हमें ख्याि नहीं था। सार् हुआ कक िह है। अब उसको तोड़ने का सिाि है। खुद िायि अपने जीिन में इररे शनि एविमेंट नहीं तोड़ सकता। मिर उसने खोज तो की है। िह भी जरा अिर उसकी बात का आप खंिन कर दो तो िदि न पकड़ िे आपकी। इतना िुस्सा हो जाता था कक बेहोश हो जाए िुस्से में, वििाद करने में। अिर आपसे वििाद हो जाए तो िह जपंच कर जाए। मिर इसके व्यविमि में तो बात नहीं है कु छ खास, िेककन इसने जो खोज की है िह तो मूल्यिान है। उस मूल्य को तो हम स्िीकार कर विए हैं, असिी इररे शनि एविमेंट है। अब इस इररे शनि एविमेंट को कै से नि करना है? उसके प्रयोि की... । (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) हां, मेरे सेक्स के बाबत मेरी पहिी दृवि तो यह है कक अब तक हम मनुष्य को सेक्स के संबंि में वछपा कर, दमन करके , उसकी बात न करके , रोकने की कोवशश करते रहे हैं। जैसे सेक्स है ही नहीं हमने एक ऐसी सामावजक भूवमका बना िी, जैसे सेक्स जैसी कोई चीज है ही नहीं। िह है ही नहीं कहीं। िह है चौबीस र्ंटे। िेककन समाज के ति पर िावजक की बात है--न अवभव्यवि है, न विचार है। तो इस भांवत हमने मनुष्य को सेक्स से मुि होने में सहयोि नहीं पहुंचाया, बवल्क उसको िहरे से िहरा सेक्सुअि होने में सहयोि पहुंचाया। जीिन में वजतने समय हमें स्पि हो जाएं, हम उनको र्े स करने में, सामना करने में, बदिने में या उनको जीने में समथि होते हैं। वजतने समय जीिन के अंिेरे में खड़े ककए जाएं, उतने हम उनसे सामना करने में असमथि होते हैं। आदमी सेक्स के मुकाबिे सबसे कमजोर हो िया। क्योंकक सेक्स को हमने सबसे ज्यादा अंिेरे में िाि कदया। तो मेरी मान्यता यह है कक सेक्स को हमें प्रकाश में िाना होिा। उसकी पूरी वशक्षा दे नी होिी। उसकी खुिी बात करनी होिी। उसके बाबत जो एक टैबू है भय का कक उसकी बात ही नहीं करनी, िह टैबू नि कर दे ना होिा। और वजतने ज्यादा सेक्स को हम सामान्य और सािारण स्िीकार कर सकें िे, उतना हम समाज को सेक्सुअविटी से बचा सकें िे। क्योंकक सेक्सुअविटी जो है, कामुकता जो है, िह काम के दमन से पैदा हुआ पररणाम है। इिर हम दबाते हैं िह कर्र िित रास्तों से वनकिना शुरू होता है। िह वनकिेिा कहीं से। और जब िह िित रास्तों से वनकिता है तो िह ठीक रास्तों के बजाए ज्यादा खतरनाक हो जाता है। यानी बजाय इसके कक एक िड़का एक िड़की को प्रेम करे यह समझ में आने िािी बात है, िेककन एक िड़का और एक िड़के में सेक्सुअि संबंि हो जाए, यह समझ में आने में जरा मुवश्कि मामिा हो िया। िेककन जब हम िड़के और िड़ककयों को रोकें िे, तो िड़कों और िड़कों में होमोसेक्सुअविटी पैदा होने का हम उपाय करते हैं। िड़के और िड़ककयों के हॉस्टि अिि बनाएंिे, और िड़कों को एक हॉस्टि में भर दें िे और िड़ककयां को एक हॉस्टि में, तो हम होमोसेक्सुअविटी पैदा करने के उपाय करते हैं। और यह होमोसेक्सुअविटी जो है यह परिशिन की बात हो िई, यह अस्िस्थ वचत्त का िक्षण हो िया। और स्िस्थ मािि हमने रोका और अस्िस्थ मािि पैदा ककया। तो हमने सब तरह से अस्िस्थ मािि पैदा ककए हैं। तो उिर मेरी बात में उनको तकिीर् होनी शुरू हुई। क्योंकक मैंने कहा कक हम एक तो बचपन से बच्चों को वजतनी सहजता से िे सेक्स को िे सकें , उतनी सहजता दे नी चावहए। उन्हें पता ही नहीं होना चावहए कक सेक्स कोई ऐसी अनूठी और कोई ऐसी खास बात है वजसे वछपाना है, वजससे िरना है। यह नहीं होना चावहए। 99



सामान्यतौर से िे अपना नसीब दे खते हैं। ओिर ग्िोररकर्के शन जो आपका... वजतना और जैसे प्रीस्ट विपाटि आया--कक... और सामावजक वस्थवत को आपने बुद्ध बनाया। इसे बड़ा अदभुत मानते हैं। ऐसा तो नाउ एिरीबिी यह कहते हैं कक सेक्स का नािेज दे ना मांिता। ओिर ग्िोररकर्के शन ऑर् र्ै क्ट। हां, यह जो है न, यह ओिर ग्िोररकर्के शन नहीं है। िह र्ै क्ट की बात है वसर्ि । मैं जो कहता हं, मैं जो कहता हं, मेरी समझ यह है कक मनुष्य के सेक्स के अनुभि में, िहरे सेक्स के अनुभि में, एक क्षण को मनुष्य को िही अनुभि होता है जो ध्यान के अनुभि में होता है। ओिर ग्िोररकर्के शन नहीं है। जस्ट ए र्ै क्ट। यह जो सेक्स की जो आंतररक अनुभूवत है, संभोि की जो िहरी से िहरी अनुभूवत है, उस िहरी अनुभूवत में जोशांवत का, थॉट िेसनेस का, एक क्षण को सारे विचार समाप्त हो जाते हैं। एक क्षण को ईिो भी वमट जाती है। दो व्यवि जो संभोि में िए हैं, एक क्षण को जब क्िाइमेक्स पूणि की भािदशा होती है, तो अहंकार भी वमट जाता है, विचार भी शून्य हो जाते हैं। वचत्त एक िहरी अटेंशन की हाित में रह जाता है। िह जो प्रतीवत है, िह जो अनुभि है, िह एक क्षण में, बहुत छोटे क्षण में ध्यान का ही क्षण है, यह मैंने कहा है। और मनुष्य को सबसे पहिे ध्यान का जो बोि आया है, िह सेक्स से आया है, यह मैंने कहा है। क्योंकक मनुष्य के पास ध्यान में सीिे जाने का कोई उपाय न था। पहिी दर्ा मनुष्य को जो अनुभि आया है कक सेक्स के एक क्षण में कोई र्टना र्टती है कक माइं ि एक ट्रांसर्ामेशन अनुभि करता है। िह अनुभि पहिे सेक्स से ही उपिब्ि हुआ है। और िह जो अनुभि है उसको हम दूसरे मािों से भी विकवसत कर सकते हैं। तो मेरा जो कहना है, यानी योि जो है िह संभोि में उपिब्ि होने िािे अनुभि को अन्यथा मािों से विकवसत करने का उपाय है। और जब एक व्यवि ध्यान को उपिब्ि करने ििे सेक्स से अन्यथा, तभी िह व्यवि सेक्स से मुि होना शुरू होता है यह भी मेरा कहना है। क्योंकक तब उसे सेक्स में जाकर उस अनुभि को करने की जरूरत नहीं रह जाती। िह उस अनुभि को अन्यथा उपिब्ि कर िेता है। तो मेरा कहना यह है कक यह मेरी मान्यता कक सेक्स का अनुभि ध्यान की ही अमयंत प्रारं वभक अिस्था का अनुभि है। यह मेरी मान्यता इस आिार पर। और मैं मूल्य इसको दे ना चाहता हं क्योंकक इसी मान्यता के आिार पर िह्मचयि में दीक्षा दी जा सकती है। और कोई रास्ता नहीं है। जब ध्यान के मािि से व्यवि को िैसे ही सुख की बहुत बड़ी रावश उपिब्ि होने ििती है, जो उसे संभोि में बहुत कु छ खोकर, और बहुत क्षुद्रतम वमिती थी, तभी ध्यान के मािि से िीरे -िीरे सेक्स से वचत्त उठता है और िह्मचयि की तरर् प्रिेश पाता है। यानी मेरा कहना यह है कक िह्मचयि से ध्यान उपिब्ि नहीं होता, ध्यान से िह्मचयि उपिब्ि होता है। और यह इसीविए उपिब्ि होता है कक ध्यान की और सेक्स की अनुभूवत कहीं समान है। नहीं तो उपिब्ि होने का सिाि ही नहीं है। अिर मैं आपके र्र आता हं बैििाड़ी में बैठ कर, और छह र्ंटे ििते हैं और हड्डी-पसिी टू ट जाती है, और कि मुझे कार में बैठ कर आने वमिता है आपके र्र, पांच वमनट में पहुंच जाता हं, न हड्डी-पसिी टू टती है, न परे शानी होती है। तो मेरा कहना यह है कक मैं कार बदि िूंिा बैििाड़ी की जिह, और बदिूंिा वसर्ि इसविए कक कार और बैििाड़ी में कोई बुवनयादी समानता है, िे दोनों पहुंचाते हैं। नहीं तो बदिने का कोई सिाि ही नहीं उठता। अिर िे दोनों अिि चीजें हैं तो बदिने का कोई सिाि नहीं उठता। मैं बैििाड़ी की 100



जिह कार ग्रहण कर िूंिा, कि हिाई जहाज होिी तो उसको ग्रहण कर िूंिा। क्योंकक दोनों काम करते हैं। पहिा जो काम था िह बहुत ही वप्रवमरटि है। यानी मेरा कहना यह है कक संभोि का जो अनुभि है िह अमयंत प्राथवमक है, समावि का जो अनुभि है िह उच्चतम है। िेककन उन दोनों अनुभि के बीच एक बुवनयादी समानता है, इसीविए ट्रांसर्ामेशन हो सकता है, नहीं तो ट्रांसर्ामेशन नहीं हो सकता। अब उस बात को उन्होंने क्या िे विया कक मैंने कहा है कक ये दोनों एक ही चीज हैं। अब पत्रकारों के साथ मैं बड़ी मुसीबत में पड़ा हुआ हं, क्योंकक िे क्या मतिब वनकाि िेंिे और क्या शक्ि दे दें िे, तो करठनाई हो जाती है। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) नहीं, उसका कारण है, नहीं तो सभी बात पर पूणि जिाब मेनसन करें िे। मेरा कहना है कक रे प का जो अनुभि है िह सेक्स का भी अनुभि नहीं है। मेरा कहना यह है कक रे प... ... रे प इ.ज नॉट एंजायमेंट। इसको बात को समझ िें, इसको थोड़ा समझ िें, इसको थोड़ा समझ िें। इस पर सारी मेरी दृवि है। यानी मेरा कहना है कक जो आदमी जबरदस्ती ककसी के साथ व्यवभचार कर रहा है, िह जबरदस्ती और िाइिेंस उस हामिनी को पैदा ही नहीं होने दे ते जहां कक िह वजसको मैं कह रहा हं ध्यान का जैसा समान अनुभि हो सकता है िह पैदा हो जाए। तो रे प जो है िह मेरी दृवि में मास्टरबेशंस से ज्यादा नहीं है, मेरी दृवि में। इसको र्कि करता हं। यानी िह वसर्ि िीयिपात है। और इतने टेंशन में िह ककया िया है और इतनी परे शानी में और इतनी जबरदस्ती में कक वसर्ि शरीर हिका हो िया। कहीं कोई भीतर कोई अनुभि नहीं हुआ। मेरा जो... (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) न, न, न, िह जो अनुभि है िह सेक्स का नहीं वसर्ि िीयिपात का, यह तो र्कि करता हं न। िीयिपात का जो अनुभि है इट इ.ज जस्ट ए ररिीर्, इट इ.ज नॉट एन एक्सपीररएंस। (प्रश्न का ध्िवन-मुद्रण स्पि नहीं। ) हां, मेरा कहना यह है न, सेक्स का अनुभि जो है िह वबना प्रेम के संभि नहीं है, वबना प्रेम के संभि नहीं है। िह अमयंत िजिंि हामिनी में संभि है। और जब हम जबरदस्ती करते हैं तो वसर्ि ररिीर्, जस्ट ए ररिीर्। जैसे एक आदमी बोझ से भरा हुआ है, उसने बोझ र्ें क कदया और मुि हो िया। यह बोझ ककसी भी तरह र्ें का जा सकता है। इस बोझ को र्ें कने में कोई भी, इसमें कोई स्त्री की भी जरूरत नहीं है। इसमें तो एक रबड़ की स्त्री भी काम दे सकती है। यानी इसमें कोई, इसमें कु छ िेना-दे ना नहीं है। और इसमें तो समझदार हो तो आप कोई की भी जरूरत नहीं है। ऑटो-इरोरटक हो सकते हैं। िेककन यह इसविए मेरा कहना है, रे प जो है िह तो वबिो 101



सेक्सुअि है, यानी सेक्सुअि भी नहीं है िह। और ध्यान जो है िह वबयांि सेक्सुअि है। िेककन इन सबके बीच एक सेतु का संबंि है। और िह संबंि अिर हम न ध्यान में रखें तो हम सेक्स को कभी भी ट्रांसर्ामि नहीं कर सकते। तो मेरा जो कहना है कक विषयानंद में भी िह्मानंद की एक ककरण है। तो उसको, उसका मतिब यह िे विया कक मैं दोनों को एक ही मानता हं कक दोनों एक ही बात है। कक्रवश्चएन ककिर और मीरा एक ही है। िह ककसी अखबार में छाप कदया। कक मैं यह कहता हं कक दोनों एक ही बात है। ये हम जो नतीजे वनकाि िें, यह स्िाभाविक है एक अथि में। क्योंकक जो मैं कह रहा हं, िे आिे का कहते हैं, पूरी बात नहीं हो पाती, कु छ नतीजे वनकि आते हैं। दूसरा यह कक जो मैं कहता हं और जब आप सुनते हैं तो जब आप अपने माइं ि से सुनते हैं, तो जो माइं ि में तैयारी पहिे से है िह उसमें वमि जाती है, उससे कु छ हो जाता है। ... आपको भी वहप्नोटाइज कर सकते हैं। मैं कहा इतना, बस यह आवखरी बात कर िें। मैं कहा इतना, मैं कहा यह, मैं यह नहीं कहा कक नेहरू वहप्नोटाइज करते हैं। मैं कहा यह, मैं समझा रहा था कक सम्मोवहत ककस तरह आदमी हो जाता है। मैं यह कहा कक जैसे कक नेहरू एक बड़े मंच पर खड़े हुए हैं या नेहरू की जिह मैं ही खड़ा हुआ हं, इससे क्या र्कि पड़ता है। तो िोिों की आंखें र्ंटे भर तक ऊपर ििी हुई हैं। सम्मोहन का वनयम यह है कक अिर आंख वबना झपके बहुत दे र तक ऊपर उठी रहे तो िह आदमी सजेवस्टबि हो जाता है। उस आदमी को कर्र जो भी बात कही जाए िह उसे वबना तकि के स्िीकार कर िेता है। वहटिर जैसे िोिों ने तो जान कर इसका उपयोि ककया। वहटिर मंच बनाएिा तो हाि में पूरा अंिकार करिा दे िा। ताकक कोई आदमी ककसी दूसरे को न दे ख सके । वसर्ि वहटिर ही कदखाई पड़े। वहटिर पर बड़े-बड़े िाइट रहेंिे, सारा कमरा अंिकारपूणि रहेिा। आपको पूरे िि वहटिर को ही दे खना पड़ेिा। इतनी ऊंची मंच होिी, इतनी व्यिस्था की मंच होिी कक आंख ठीक उस एंिि पर रहे जहां से सजेवस्टबि हो जाता है आदमी का माइं ि। प्रीप्िैंि था। यह तो पूरा, वहटिर का तो पूरा प्रीप्िैंि था। वहटिर तो प्रोपेिेंिाइज्म में वजतना भी उपयोि ककया जा सकता है, व्यिवस्थत सारी बातों का, ककया है। और वहटिर तो इसका पूरा जान कर उपयोि ककया है। मैंने कहा कक नेहरू जान कर उपयोि नहीं ककए, नेहरू को पता भी नहीं हो सकता। िेककन इससे र्कि नहीं पड़ता।



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भारत का भविष्य नौिां प्रिचन



वशक्षा और समाज व्यवि के अवतररि और कोई जिह है नहीं। समाज और झूठ , जो बड़े से बड़ा झूठ है। समाज का झूठ कदखाई नहीं पड़ता। ििता ऐसा है कक िही समय है, और व्यवि तो कु छ भी नहीं। झूठ अिर बहुत पुराना हो, पीढ़ी दर पीढ़ी, िाखों साि में हमने उसे स्थावपत ककया हो, तो ख्याि में नहीं आता। िेककन ख्याि में आना शुरू हुआ है और दुवनया को यह िीरे -िीरे रोज अनुभि होता जा रहा है कक समाज के नाम से की िई कोई भी क्रांवत सर्ि नहीं हुई। और समाज के नाम से हमने जो भी आज तक ककया है उससे हमारी मुसीबत समाप्त नहीं हुई। मुसीबत बदि िई हो, यह हो सकता है। एक मुसीबत छोड़ कर हमने दूसरी मुसीबत पा विए हों, यह तो हुआ है, मुसीबत समाप्त नहीं हो सकी। मेरी तो दृवि ऐसी है कक सामावजक क्रांवत असंभािना है। और जब मैं ऐसा कहता हं असंभािना है तो मेरा मतिब यह है कक आप वसर्ि िोखा खड़ा करते हैं। अब जैसे उदाहरण के विए, मनुष्य के इवतहास में वजतने िोिों ने भी समाज को ध्यान में रख कर मेहनत की है, उनकी मेहनत वबल्कु ि ही असर्ि हुई। न के िि असर्ि हुई बवल्क र्ातक भी वसद्ध हुई। अब जैसे, कभी सोच भी नहीं सकते थे हम आज से तीन सौ साि पहिे--इन तीन सौ सािों में दुवनया के सभी विचारशीि िोिों ने चाहा कक प्रमयेक व्यवि वशवक्षत हो जाए, इतनी तो सामावजक क्रांवत जरूरी है। इसे कोई भी बुरा नहीं कह सकता। यूवनिसिि एजुकेशन हो। इसे कौन बुरा कहेिा? तो इमसिन से िेकर रसि तक सारे िोि इस पर मेहनत ककए कक प्रमयेक व्यवि वशवक्षत हो जाए। और मजा यह है कक जब हम सर्ि हुए और वजन मुल्कों में हमने वशक्षा पूरी र्ै िा दी, हम िहां पा रहे हैं कक जो पररणाम हुए हैं वशक्षा के , िे अवशक्षा से कभी भी नहीं हुए हैं। सोचते थे कक वशवक्षत आदमी हो जाएिा तो जजंदिी ज्यादा शांत, ज्यादा आनंदपूणि, ज्यादा सरि, सहज, संबंि ज्यादा मिुर और प्रीवतकर हो जाएंिे, हुआ तो नहीं, हुआ उिटा। वशक्षा से आदमी ज्यादा सरि नहीं हुआ, ज्यादा चािाक और ज्यादा शैतान हुआ। और वशक्षा से िह ज्यादा प्रेमपूणि भी नहीं हुआ, बवल्क ज्यादा कै ल्कु िेरटि और ज्यादा वहसाबी-ककताबी हो िया। और उसके वहसाबी-ककताबी बनने उसको प्रेम को नि ककया। और सब भांवत वशवक्षत हो जाने के बाद पता चिा कक वशक्षा ने के िि उसकी महमिाकांक्षा की आि को प्रज्िवित कर कदया। िह विवक्षप्त हो िया। और वजन बच्चों की वशक्षा के विए तीन सौ साि से विचारशीि िोिों ने मेहनत की थी, िे बच्चे आज कह रहे हैं कक हम तुम्हारी युवनिर्सिटीज को, तुम्हारे कािेजे.ज को जिा दें िे। ये सब बेकार हैं। आज अमरीका में यह हो रहा। अमरीका सिािविक सुवशवक्षत हुआ है। इसविए सिािविक वशक्षा के जो दुष्पररणाम िहां प्रकट हुए। स्कू ि जाने िािे बच्चे स्कू ि छोड़ रहे हैं। जो ड्राप आउट है आज, स्कू ि और विश्वविद्यािय को जो छोड़ कर जा रहा है, िह विद्रोही और बिािती है। और तीन सौ साि के सब विद्रोही और बिािती इस कोवशश में ििे थे कक हम कै से सबको वशवक्षत करें ? अब सब वशवक्षत हो िए। कभी-कभी ऐसा ििता हैाः नजथंि र्े ल्स िाइक सक्सेस। सर्ि होते हैं तभी पता चिता है कक बुरी तरह असर्ि हो िए! तीन हजार साि से आदमी कोवशश कर रहा है कक हम सभी को कम से कम रोटी-रोजी तो जुटा दें । िरीबी बुरी है, कौन इनकार करे िा? और कदक्कतें तब खड़ी होती हैं वजन 103



चीजों में कोई इनकार नहीं करता। उन्हीं चीजों में झंझटें खड़ी होती हैं। जब कोई चीज वजतनी ज्यादा ओवबयस, सीिी-सीिी स्पि मािूम पड़ती है, तो कोई इनकार नहीं करता। अब हमने िरीबी कु छ मुल्कों में वमटा दी, और हम पा रहे हैं कक िरीब इतनी मुसीबत में कभी भी न था वजतनी मुसीबत में अमीर पड़ िया। और िरीबी की मुसीबत में भी एक सुवििा थी, आशा तो थी। िरीब सदा आशा से भरा हुआ है। आज नहीं कि एक मकान बना िेिा, आज नहीं कि एक बिीचा होिा, आज नहीं कि एक िाड़ी होिी, आज नहीं कि बच्चे होंिे, ऊपर उठ जाएंिे। जहां-जहां अमीरी आ िई, िहां-िहां आशा खो िई। िन के आने के साथ ही आशा खो जाती है। और आशा खोते ही िहन वनराशा उतर आती है। आज जो पवश्चम में िहन वनराशा है उस िहन वनराशा का कारण है कक वजस िजह से आशा बनी रहती थी िह वमटा दी िई, िह िरीबी की िजह से थी। आशा थी इसविए कक आपके पास कु छ नहीं था और आशा बनती थी कक कि होिा और सब ठीक हो जाएिा। वजससे आप सोचते थे सब ठीक हो जाएिा िह आज आपके पास है। और कु छ ठीक नहीं हुआ। तो भयंकर वनराशा। इतने बड़े जोर से आममर्ात हो रहा है। और जो नहीं आममर्ात कर रहे हैं िे भी करीब-करीब मुदाि हाित में हैं। अभी पवश्चम का जो भी विचारशीि व्यवि है, कम से कम िनी समाजों का, िह वनराशा, दुख, संताप, अथिहीनता, खािीपन उनकी बातें कर रहा है कक सब जजंदिी खािी हो िई। िरीब की जजंदिी कभी खािी नहीं हुई, बहुत भरी जजंदिी थी। हािांकक उसके पास कु छ था नहीं। बड़ा मजा यह है, उसके पास कु छ था नहीं वबल्कु ि खािी है। मुट्ठी में उसके कु छ भी नहीं था िेककन जजंदिी बड़ी भरी-पूरी है। िरीबी हमने वमटा दी, क्योंकक हमने माना कक बुरा है। बड़ी क्रांवत हमने की। और वजनकी हमने िरीबी वमटा दी, अब िे खुद को वमटाने को तैयार हैं, क्योंकक कोई और उपाय नहीं कदखाई पड़ता अब ककसको वमटाएं! यह मैं उदाहरण के विए कह रहा हं। करीब-करीब सारा मामिा ऐसा है। संयुि-पररिार था हमारे मुल्क में। सारी दुवनया में संयुि-पररिार था। समाज-सुिारकों ने कहा कक संयुि-पररिार से उसमें व्यवि की स्ितंत्रता क्षीण हो जाएिी। सौ आदमी एक पररिार में हैं, तो स्ितंत्रता तो क्षीण होने िािी है। क्योंकक पररिार को चिाना है तो एक आदमी को तो प्रमुख होना पड़ेिा। स्िभािताः जो िृद्ध है, जो कमाने िािा है िह प्रमुख हो जाएिा। कर्र इस बड़े पररिार में छोटे बच्चे होंिे। िैर-कमाने िािों के भी बच्चे होंिे, उनकी प्रवतष्ठा भी कम होिी। िैर-कमाने िािों की पत्नी की भी प्रवतष्ठा कम होिी। इन सबकी तो कोई वस्थवत होिी नहीं। तो ककसी तरह पररवि पर चिते रहेंिे। और इनके विकास का अिसर नहीं वमिेिा। कर्र यह भी कहा विचारशीि िोिों ने कक जहां सौ िोि हैं िहां कु छ िोि िैर-कमाऊ हो ही जाएंिे। क्योंकक जब चिता ही है काम तो चिा विया जाए। इसविए हम पररिार को बांटें। और व्यविित पररिार, ज्यादा प्रिवतशीि पररिार होिा। यह ठीक ही बात थी कक वजतना छोटा पररिार होिा, वजतना छोटा यूवनट होिा उतना संिरठत भी होिा, उतना प्रमयेक व्यवि उत्तरदायी भी होिा। और उतना वनकटता होने की िजह से, पवत है, पत्नी है, बेट,े बच्चे हैं उनकी कर्कर की जा सके िी। ज्यादा कर्कर की जा सके िी। और यह कमाने में भी ज्यादा उपयोिी होिा। िेककन ककसी को ख्याि में नहीं आया कक जहां-जहां संयुि-पररिार टू टा; िहां अब पररिार भी टू ट रहा है। जहां-जहां ज्िाइं ट र्े वमिी खमम हुई, िहां वजसको न्युककवियस हैं अब, इस र्े वमिी को, यह भी टू ट रही है। यह टू टेिी ही। इसका कारण यह है, यह िैसे ही टू टेिी--क्योंकक यह जो पूरा बड़ा मकान है हमारा, इसमें हमने सब कमरे विरा कदए और एक कमरा बचा विया, यह कमरा बच नहीं सकता, क्योंकक इस कमरे को बचाने 104



के विए िे सारे कमरे जो थे सहारा थे। और कर्र जब एक दर्ा सब तय हो िया कक वजतना छोटा पररिार होिा उतना प्रोग्रेवसि होिा, तो आवखर में पवत-पत्नी भी इकट्ठे क्यों हों? तो ठीक यूवनटरी र्े वमिी हो जाएिी, कक एक व्यवि अपने को सम्हाि िे, बात खमम हो िई। िह जो इतना बड़ा पररिार था, िह चीजों को सम्हािता था। असि में छोटे संबंि जो हैं बड़े संबंिों के बीच में ही र्वित होते हैं। अिर मैं अपने काका के िड़के से भाईचारा नहीं वनभा सकता, तो मैं अपने भाई से ज्यादा कदन नहीं वनभा पाऊंिा। और अिर मैं अपने काका और अपने मामा और दूर के काका और दूर के मामा से भी भाईचारा वनभा पाता हं उनके िड़कों से, तो मेरे भाई से जो मेरा भाईचारा है िह िहरा रहेिा। जब हम पररवि को तोड़ते चिे जाते हैं तो नीचे सरकते आते हैं और जाकर के खमम हो जाते हैं। सारी करठनाई जो है... वस्त्रयों ने भी बिाित की पवश्चम में और उन्होंने कहा कक बड़ा संयुि-पररिार जो है वस्त्रयों के बहुत वखिार् है। क्योंकक स्त्री की कोई प्रवतष्ठा ही नहीं रह जाती थी। प्रवतष्ठा का सिाि नहीं; पवत अपनी पत्नी से वमि भी नहीं सकता रोशनी में सबके सामने। बाप अपने बेटे को कं िे पर भी नहीं रख सकता था। उसके बेटे को कं िे पर रखना बेहदिी थी जब कक र्र में और बड़े बुजुिि हैं। तो अपने बेटे से बोि भी नहीं सकता था ठीक। रात के अंिेरे में िह अपनी पत्नी से वमि िेता था, उसका चेहरा भी कई दर्ा पवत िषों तक नहीं दे ख पाता था। िेककन वनवश्चत ही यह ििा वस्त्रयों को कक बुरा है तो एक क्रांवत सारी दुवनया में हुई कक इसको तोड़ो। िेककन बड़े मजे की बात यह है कक पवत-पत्नी जब इतने बड़े पररिार में रह रहे थे तो पवत-पत्नी के बीच बहुत कम किह होती थी, क्योंकक किह के दूसरे उपाय थे। िह जो किह थी िह पवत-पत्नी के बीच बहुत कम होती थी, िह न के बराबर। प्रेम ज्यादा सर्न था उनके बीच, मैत्री ज्यादा सर्न थी। क्योंकक किह करने को और िोि भी थे, और पवत्नयां थीं भाइयों की, उनसे भी किह चिती थी पत्नी की। और तब उस सारी किह में भी दोनों वमत्र हो पाते थे। हमने सब किह का उपाय तोड़ कदया। अब ये दोनों िड़ रहे हैं। अब िह िड़ने की जो सुवििा थी कहीं और िह तो समाप्त हो िई। तो पवत-पत्नी िड़ेंिे। अब कोई उपाय नहीं है। और िे आमने-सामने पड़ िए हैं। मनुष्य ने जो-जो आज तक ककया है समाज की तरर् से, वजसमें उसने कोवशश की है संस्थाओं को बदिने की। समाज की बदिाहट का मतिब है संस्थाओं को बदिना। समाज को बदिने का मतिब है समूह की व्यिस्थाओं को बदिना। और यह आशा रखना कक जब संस्थाएं बदिेंिी, समूह की व्यिस्था बदिेिी, तो व्यवि वनवश्चत ही बदि जाएिा। यह आशा वबल्कु ि ही व्यथि िई। और अब मैं मानता हं कक जो आदमी सच में क्रांवतकारी है, िह क्रांवतकारी नहीं हो सकता अब। क्योंकक क्रांवत वजतनी रूकढ़ग्रस्त वसद्ध हुई है उतनी और कोई चीज वसद्ध नहीं हुई। तो अब भी क्रांवत की बात करना मोस्ट अनरे िोल्यूशनरी बात है। क्योंकक अिर वजनको कदखाई नहीं पड़ता कक पांच हजार साि के इवतहास में क्रांवत वसिाय असर्िता के कहीं नहीं िे जा सकी। और क्रांवत कोई नई बात भी नहीं, क्योंकक सदा से हो रही है, उसमें कु छ नया भी नहीं है। पुरानी से पुरानी परं परा क्रांवत की परं परा है। कर्र भी िे िही सोचे जाते हैं कक कै से इसको बदि दें , कै से उसको बदि दें । तो मेरी नजर तो नहीं है बहुत उस पर। मेरी दृवि तो सीिी है और िह यह है कक अिर कोई भी बदिाहट इस दुवनया में आई है कभी, या कभी आ सके िी, तो िह व्यवि की बदिाहट है।



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िेककन वजनको क्वांरटटी की कर्कर होती है बहुत, उनको ऐसा ििता है कक कब हो पाएिा व्यवि का, एक-एक व्यवि को बदिते रहेंिे तो कब हो पाएिा। इसकी कर्क्र ही क्या है कक कब हो पाएिा? एक में भी हो जाता है तो ठीक है। और मजा यह है कक वजसमें जल्दी ििता है कक जल्दी सबमें हो जाए। एक में भी नहीं हो पाता। क्रांवत व्यविित ही हो सकती है। समूह िोखा है। हां, व्यवियों में होती चिी जाए और िह समूह में र्वित हो जाए। क्योंकक आवखर व्यवि समूह बन जाते हैं। तो कोई पररणाम उसमें हो सकता है। नहीं तो उसमें कोई पररणाम नहीं होता। और चेतना के जो भी रूपांतरण हैं, क्योंकक चेतना का र्र और आिास ही व्यवि में है। उसका कोई समूह, समूह आममा जैसी कोई चीज नहीं है। और जब हम एक व्यवि को ऊपर उठाते हैं तो अवनिायि रूप से हम उसके आस-पास की चेतना के तंतुओं को भी बदिते हैं। आस-पास जहां-जहां िह जुड़ा है िहां भी बदिाहट होनी शुरू हो जाती है। मिर यह, यह वनरं तर कभी कोई बुद्ध, कभी कोई महािीर, कभी कोई जीसस की ही बात कहता रहा है। िेककन सदा हमने यह सोचा कक एक व्यवि को बदिने से, एक-एक को बदिने से कब होिी बदिाहट? और मजे की बात यह है कक बुद्ध को मरे ढाई हजार साि हो िए, और ढाई साि में अिर बुद्ध की बात मान कर चिा जाता, तोशायद बदिाहट करोड़ों में हो िई होती। िेककन हमने सोचा कक एक-एक को बदिने से कब होिी बदिाहट? तोढाई हजार साि तो हो िए? और वजनको वजन्होंने कहा था कक बदिाहट जल्दी हो जाएिी समूह को बदिने से, उनकी सब बदिाहटें हो िईं और कोई बदिाहट नहीं हुई। आदमी िहीं का िहीं खड़ा रह िया। तो मेरी तो कोई दृवि है नहीं बहुत उस तरर्। इतना ही है कक व्यवियों के समूह बढ़ते चिे जाएं और उसका समूह का जो पररणाम हो जाए सहज, समूह को सीिा ध्यान में रख कर ही ध्यान में तो व्यवि को ही रखना है। कर्र भी समूह में हो जाए, एज ए बाई-प्रॉिक्ट। िह स्िीकार है। न हो तो उसकी जचंता नहीं है। और अब मैं मानता हं कक कु छ िोि चावहए जो इस समय को ठीक से समझना शुरू करें कक क्रांवत की बातचीत कु छ कर पाते हैं या नहीं कर पाते हैं? और एक और मजे का सूत्र है कक जब तक ककसी चीज का अभाि होता है तब तक हमें मािूम पड़ता है कक अभाि बहुत महमिपूणि है। जैसे ही िह अभाि भर जाता, िह तो िैर-महमिपूणि हो जाता है, उसका मूल्य खमम हो जाता है। उसका मूल्य तमकाि खमम हो जाता है। अब जैसे कक जब तक रोटी नहीं तब ििता है रोटी बहुत महमिपूणि है, रोटी वमि िई तो िह बेकार हो जाती, िह बात ही खमम हो जाती है। यह भी ख्याि नहीं रह जाता कक कभी िह नहीं थी। तो उसका न होना बड़ा महमिपूणि था, िह समाप्त हो िई बात। और आदमी को रोटी वमिी कक तब उसके दूसरे सिाि शुरू होते हैं। तब उसके दूसरे सिाि शुरू होते हैं, असिी सिाि शुरू होते हैं। िे असिी सिाि जो हैं िे उसको और करठनाई में िाि जाते हैं या सुिझाि में िाि जाते हैं। यह जरा सोचने जैसा है। अब जैसे कक पचास-साठ साि से जो भी िैभिशािी दे श हैं िे सोच रहे हैं कक आज नहीं कि, आदमी की तकिीर् सदा की यह रही, तब तकिीर् पहिे यह थी कक आदमी को रोटी कै से वमिे? िह रोटी वमिनी शुरू हो िई। मकान कै से वमिे? िह वमि िया। अब तकिीर् अनुभि होनी शुरू हुई पचास साि से कक आदमी को श्रम करना पड़ता है, यही असिी तकिीर् है। तकिीर् ही यही है। और यह बेहदी बात है कक आदमी को रोटी के विए श्रम करना पड़ता, जीिन बेचना पड़ता। समय बेचना, श्रम बेचना, जीिन बेचना है। अिर मैं अपनी रोटी के विए रोज छह र्ंटे बेचता हं, तो मैं छह र्ंटे अपनी जजंदिी बेचता हं। जजंदिी भर में अिर मुझे जीना है अस्सी साि तो बीस साि तो मैंने रोटी खरीदने में बेच कदए। या कहें कक मैंने एक चौथाई जजंदिी रोटी कमाने में 106



िंिाई, या यूं कहें कक मैंने अपनी एक चौथाई आममा जो थी िह रोटी के पिड़े पर रख दी। तो यह कहना चावहए कक अशोभन। समाज तो ऐसा होना चावहए जहां व्यवि को रोटी के विए, तन के विए आममा को न बेचना पड़े। तो जो समझदार िोि हैं िे यह कहते रहे। अब हाित यह आ िई कक अब हम मशीन तैयार कर विए हैं, आदमी को श्रम से मुि ककया जा सकता है। िेककन नये सिाि खड़े हो िए हैं कक आदमी को श्रम से मुि ककया तो आदमी िह जो खािी है करे िा क्या? संभािना यह है कक िह हमयाएं करे िा, चोरी करे िा, बदमाशी करे िा, शराब पीएिा, एि एस िी िेिा, मारीजुआना िेिा, यह करे िा। पर इसका कभी भी उनको ख्याि नहीं था वजन्होंने कहा कक हम वजस कदन आदमी को श्रम से मुि कर दें िे उसकी आममा पूणि मुि हो जाएिी। कर्र िे िोि सोचते थे कक िह काव्य करे िा, वचत्र बनाएिा, पेंटटंग्स करे िा, काविदास पैदा होंिे, शेक्सवपयर पैदा होंिे हजारों की संख्या में, र्र-र्र रिींद्रनाथ हो जाएंिे, बुद्ध और महािीर जिह-जिह पैदा हो जाएंिे। क्योंकक आदमी को सुवििा होिी। और उसकी आममा पहिी दर्ा मुि होिी तो बहुत रूपों में प्रकट होिी। िेककन मामिा यह कदखाई पड़ता है कक िह बुद्ध कभी-कभी एकाि पैदा होता था िह भी शायद पैदा न हो। क्योंकक वजस आदमी को हम श्रम से मुि कर रहे हैं, श्रम से मुि होते ही उसने बहुत सी इच्छाओं को सदा पोस्टपोन ककया था, श्रम की िजह से िह नहीं कर पाता था। उसका भी मन था कक अिर सौ पवत्नयां िह भी रख सके तो रखे। कोई िजह नहीं थी कक शाहजहां क्यों रखे और िह क्यों न रखे। शाहजहां इसविए रख सकता था उसको श्रम के विए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। इन सौ वस्त्रयों को वखिाने-वपिाने का भी सिाि नहीं था, इसविए हजार भी रख सकता था। एक मजदूर को आप मुि कर दें िे वबल्कु ि श्रम से तो िह भी सोचता है कक क्यों न दस पवत्नयां रख सकें । या क्यों न रोज पत्नी न बदि िें। आवखर उसका क्या कसूर है। इच्छा उसकी भी सदा यही थी, िेककन इच्छा जरूरतों से दबी थी, उसको िह पूरा नहीं कर सकता था। अब समय है, सुवििा है, खाने का इं तजाम है, क्यों न करे । कर्र सौ पवत्नयों को इकट्ठा रखना एक झंझट की बात है, तो पवत्नयों को समाप्त ही क्यों न करें , रोज एक नई स्त्री क्यों न खोजी जा सके । वजन-वजन इच्छाओं को उसने अब तक मजबूरी में रोक रखा था, उन सबको िह पूरा करना चाहता था। ककतने िोिों की इच्छा है कक िे कविता करें , ककतने िोिों की इच्छा है कक िे ध्यान करें , ककतने िोिों की? ककतने िोि मोक्ष जाना चाहते हैं? और मजा यह है कक वजतने अभी आपको कदखाई पड़ते हैं कक ध्यान में उमसुक हैं, इनकी भी अिर दूसरी इच्छाएं पूरी हों तो सौ में से वनन्यानबे ध्यान में उमसुक न होंिे। इनका भी ध्यान में उमसुक होने का सौ में वनन्यानबे मौके पर यह कारण होता है कक इतने परे शान हैं जजंदिी से कक शायद ध्यान से राहत वमि जाए। अिर जजंदिी की सारी परे शावनयां अिि कर दें , तो सौ संन्यावसयों में से वनन्यानबे भाि जाएंिे र्ौरन। क्योंकक िे आए इसविए नहीं थे कक ध्यान में उनकी कोई रुवच थी या आममा की खोज में कोई रुवच थी, संसार इतना किपूणि था कक यह उनके विए पिायन था, सुवििा थी। यानी एक आदमी आता है िह कहता है कक बड़ी मुवश्कि है िड़की की शादी नहीं हो रही, नौकरी नहीं वमि रही िड़के को, पत्नी बीमार है, तो कोई रास्ता बताएं प्राथिना का, पूजा का कक यह सब ठीक हो जाए। अिर यह सब ठीक हो जाए तो क्या यह आदमी प्राथिना और पूजा का रास्ता पूछने आने िािा है। यह काहे के विए आएिा। मिर ऐसा मत समझना कक इसकी पत्नी ठीक हो जाए, इसकी िड़की की शादी हो जाए, इसके िड़के को नौकरी िि जाए, तो यह बड़ा अच्छा आदमी हो जाएिा। इसने बहुत कु छ रोक रखा है इस उपद्रि की 107



िजह से वजससे यह नहीं कर पा रहा है। यह भी चाहता है कक बैठ कर शराब पीए, यह भी चाहता है कक सड़कों पर नाचे, यह भी चाहता है कक ताश खेिे, दांि ििा दे जूए पर, यह भी चाहता है कक सब विि। वजस कदन इसके सारे उपद्रि नहीं हैं, वजनकी िजह से यह दबा हुआ है, उस कदन यह बे-ििाम है। उस कदन आपके सामने सबसे बड़ा सिाि यह होिा कक इस आदमी को आकु पाइि कै से रखो? आज अमरीका में िही सिाि है। क्योंकक उनको िि रहा है कक आने िािे पचास सािों में सब कु छ आटोमैरटक हो जाएिा, कं प्यूटर से चिने ििेिा। आदमी की कोई जरूरत नहीं रह जाएिी। यह आदमी जो अनआकु पाइि छू ट जाएिा पहिी दर्ा यह करे िा क्या? यह जमीन को स्ििि बनाएिा कक नरक बनाएिा? आदमी को िौर से दे खो तो पक्का है कक नरक बनाएिा, स्ििि-ििि नहीं बनाएिा। तो अब सिाि यह है कक बड़ी से बड़ी क्रांवत हुई जा रही है कक आदमी को श्रम से मुि कर दो। अिर सच पूछा जाए तो श्रम से मुि करने का िहरा अथि यह है कक आदमी को हम शरीर की जचंता से मुि कर दें । िेककन शरीर की जचंता से मुि करके यह आममा की जचंतना में पड़ने िािा है या कक सदा से जो दबाई हुई िासनाएं हैं, वजनको यह कभी पूरी नहीं कर पाया था, यह उनको पूरे करने में ििेिा। क्रांवत बड़ी भारी र्रटत हुई जा रही है। िेककन हो सकता है कक र्ि भयंकर हो उससे। और यह र्ि तब तक भयंकर होंिे ही वसद्ध जब तक हम व्यवि को बदि नहीं दे ते। तब तक हम कु छ भी बदिेंिे यह वबना बदिा हुआ व्यवि जो है उसका दुरुपयोि करने िािा है। आइं स्टीन को कभी ख्याि नहीं था कक हम जो इतना महान श्रम करके और एटावमक एनजी की खोज कर रहे हैं आदमी इसका क्या करे िा। आइं स्टीन ने मरते िि कहा कक अिर इसका हमें बोि होता कक आदमी क्या करे िा, तो बेहतर हुआ होता कक मैंने एक ककराने की दुकान पर नौकरी करके जजंदिी िंिा दी होती, बजाय इस सारे ... । इस खोज का अंवतम पररणाम अिर वहरोवशमा और नािासाकी होना है और आवखर में यह सारी दुवनया जि कर मरने िािी है। तो मैंने जो श्रम ककया था, तब पूरी जजंदिी बबािद थी, और इतनी ििन से, उसका यह र्ि होिा! यह अिर जरा भी ख्याि होता, तो एक ककराने की दुकान पर या अखबार बेच कर सड़क पर जजंदिी िुजार दे ना बेहतर और आध्यावममक है। यह सब िैज्ञावनक पाििपन वसद्ध हुआ। िेककन यह अणु की शवि कारिर हो सकती है। िेककन कारिर तभी हो सकती है जब व्यवि पहिे बदि िया और पीछे यह अणु की शवि आए हाथ में। नहीं तो यह कारिर नहीं हो सकती, यह तो उपद्रि िाएिी। अब तक हमने जो भी आदमी को कदया है उससे नुकसान हुआ। क्योंकक आदमी िही का िही है। और समूह को बदिने िािा सोचता ही है, व्यवि को छोड़ कर, िह सोचता है जब सब बदि जाएिा, समूह बदिेिा, संस्था बदिेिी, शवि बदिेिी, तो व्यवि तो बदिने िािा, िेककन व्यवि बहुत रे वसस्टेंट है। इतना आसान नहीं व्यवि का बदिना। सब बदि जाए और व्यवि अपनी वजद जारी रखेिा। बवल्क िह पहिी दर्ा प्रकट होिा पूरी शक्ि में वजसका आपको कभी भी पता नहीं था। िोि कहते हैं कक आदमी बड़े पद पर पहुंचता है तो वबिड़ जाता है, पद वबिाड़ दे ते हैं। कोई पद नहीं वबिाड़ सकता ककसी को। वसर्ि पद मौका दे ता है आपको पूरे वखिने का। िोि कहते हैं िन वबिाड़ दे ता है। िन कै से वबिाड़ सकता है? िन की क्या सामथ्यि है? िेककन िन आपको मौका दे ता है कक जो आप थे अब प्रकट हो जाएं। िरीबी में प्रकट नहीं हो सकते थे। पुविस पकड़ कर िे जाती अिर उपद्रि मचाते तो। अिर दूसरे की पत्नी 108



को छेड़-छाड़ करने जाते तो जूते पड़ते। अब िन आपके पास है। अब जूते मारने की ताकत आपके पास है। अब आप कु छ कर सकते हैं जो सदा आपने रोका था। दिाइयों ने, वचककमसा-शास्त्र ने आदमी की उम्र बढ़ा दी। अब सिाि यह है कक उस उम्र को बढ़ा कर, नये मसिे खड़े होते हैं। अब सत्तर साि का आदमी, अस्सी साि का आदमी है अब, और अभी भी िह सेक्सुअिी पोटेंट है। जब आप उम्र सौ साि खींच दें िे, तो सत्तर-पचहत्तर साि का आदमी भी बच्चे पैदा कर सकता है। अब प्रॉब्िम्स खड़े होंिे जो कक वपछिे पचहत्तर साि के बूढ़े ने कभी खड़े नहीं ककए थे। िह कभी खड़ा नहीं ककया था। अब यह खड़ा करे िा। अब यह कामिासना के बाजार में अपने नाती-पोतों का भी कावम्पटीटर होिा। उसी बाजार में खड़ा है। अब बट्रेंि रसि जैसा बुवद्धमान आदमी अिर बीस-बाईस साि की िड़की से शादी करे , तो कावम्पटीशन ककससे है? अस्सी साि का आदमी अिर बाईस साि की िड़की से शादी करता है तो अपने नाती-पोतों से कावम्पटीटर है िह। इसके प्रॉब्िम्स खड़े होंिे, इसकी झंझट खड़ी होिी। और जो स्टेक्चर था, जो व्यिस्था थी, उसमें आमूि रूपांतरण करने होंिे आपको। अस्सी साि का बाप अिर शादी करने जा रहा है तो क्या िह बीस साि के अपने िड़के से कह सकता है कक िह्मचयि का कोई मूल्य है? ककस मुंह से? उिटी हाित भी हो सकती है कक बीस साि का िड़का अपने बाप को थोड़ा समझाए कक थोड़ा तो कु छ ध्यान रखो। तो होता क्या है कक जब हम संस्था में, व्यिस्था में कोई भी अंतर कर िेते हैं तो तकिीर् खड़ी होती है कक िह जो व्यवि है िह तो िही का िही रह जाता है। ऐसा नहीं कक बट्रेंि रसि ऐसा कर रहा है। जो िोि भी सौ साि की उम्र तक जी सकते हैं, िे िोि अस्सी साि में शादी कर सकते हैं। कोई अड़चन तो नहीं है, कोई कारण तो नहीं है। तो अभी अमरीका में उनको िृद्धों के विए कै म्पस बनाने पड़ रहे हैं। वजसको हम कभी नहीं सोच सकते थे। वजसमें बूढ़े और िृद्धों को रखना। और उन्होंने ठीक प्रेम और रोमांस की कथा शुरू... । अब िे बूढ़े और बुकढ़यां जो हैं िे सब अपना प्रेम बसा रहे हैं। और उनके सब िड़के -बच्चे, उनके बच्चे िे सब अपने र्र बसा रहे हैं। ये बूढ़े और बुकढ़यां जो हैं ये कर्र अपने रोमांरटक... । क्योंकक इनको र्र वबठाना अब खतरनाक है। अब इनके कैं प अिि ही होने चावहए। जहां कम से कम ये अपने समियस्क िोिों के बीच कर्र से प्रेम का वसिवसिा शुरू कर दें । आदमी को वबना बदिे, व्यवि को वबना बदिे आप जो भी करें िे आप नये प्रश्न खड़े कर सकते हैं बस। तो थोड़ी दे र राहत हो सकती है कक पुराने प्रश्न समाप्त हुए। अब यह सच बात यह है कक अिर बाप साठ-सत्तर साि में मर जाए, तो पररिार में उसको प्रेम वमिता रह सकता है थोड़ा-बहुत। क्योंकक उसकी ठीक दूसरी पीढ़ी, उसके बेटे ताकत में होते हैं। उसका बेटा होता है कोई सैंतािीस साि का, पचास साि का िह अभी ताकत में होता है। सत्तर साि के बूढ़े को अभी िह कर्क्र करे िा। अिर बूढ़ा नब्बे साि का हो जाए तो उसके बेटे सत्तर साि, अस्सी साि के हो जाएंिे। िे ताकत के बाहर हो जाएंिे, बेटों के बेटे ताकत में आ जाएंिे। वजनसे अब इस तीसरी पीढ़ी का कोई िेना-दे ना नहीं, सीिा संबंि नहीं। अब यह बूढ़ा र्र पर एक कर्जूि का बोझ है, इसको हटाओ यहां से, इसका कोई उपयोि नहीं, इसको हटाना चावहए। और अिर चौथी पीढ़ी ताकत में आ जाए तो आपको चौथी पीढ़ी का तो नाम भी याद नहीं रहता। आपको अपने दादा तक का नाम याद रहता है। दादा के बाप का तो आपको नाम भी याद नहीं है। अिर



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िह बूढ़ा जजंदा हो वजसका आपको नाम तक याद नहीं रहा, तो आपका उससे कोई संबंि होने िािा है। कोई संबंि नहीं हो सकता। तो या तो आपके इस संबंि की और प्रेम की क्षमता इतनी बढ़ िई हो कक इतनी दूर तक पार कर सकें । तो उस बूढ़े का जजंदा रहना ठीक है। नहीं तो िह बूढ़ा अच्छा है कक जा चुका हो। क्योंकक िह अपने ही सामने अपनी ही पीकढ़यों को दे खे वजनको उसकी कोई जचंता ही नहीं है, कोई उनको दे खने िािा भी नहीं है। यह बहुत किपूणि है, यह बहुत दुखद है। सारी करठनाई क्या खड़ी होती है, अब जैसे कक वचककमसा ने कर्कर की आदमी की कक हम उसकी उम्र बड़ी कर िें। अब वचककमसक के सामने सिाि है सारी दुवनया में और सभी मेविकि क्रांिेंसस में िह सिाि उठता है कक क्या आपको ककसी आदमी को उसकी इच्छा के वबना जजंदा रखने का हक है? अब एक आदमी सौ साि का हो िया, अब मैं मरना चाहता हं। मैं मरना चाहता हं िेककन कोई सरकार मुझे आममहमया की आज्ञा नहीं दे ती। क्योंकक िह कानून तब बनाया िया था जब कोई सौ साि तक जीता नहीं था। और तब ककसी आदमी को आममहमया कर िेना समाज के विए बहुत कर्जूिखची थी असि में। अिर एक आदमी को हमने तीस साि तक बड़ा ककया, तो समाज ने तीस साि तक उस पर खचि ककया, भोजन कदया, मकान कदया, वशक्षा दी, सारी मेहनत की, िह आममहमया कर िेता है। इसका मतिब यह है कक वजस व्यवि को हमने तीस साि तक मेहनत की िह बीच में खमम हो जाता है, तो समाज इसकी आज्ञा नहीं दे सकता था। तो िह आममहमया की आज्ञा कै से दे ? उसका मतिब िह तो खतरनाक आज्ञा है। कोई भी आदमी तैयार होने के बाद आममहमया कर िे तो इतनी सारी मेहनत समाज की बेकार िई। िेककन अब सौ साि का एक आदमी हो िया, मैं सौ साि का हो िया, मैं मरना चाहता हं, नहीं जीना चाहता। कोई सरकार मुझे आज्ञा दे ने को तैयार नहीं। क्योंकक उसके वनयम पुराने हैं। और वचककमसक मुझे सहायता नहीं कर सकता मरने में, अिर मैं मर रहा हं तो िह मुझे वजिाए रखने की कोवशश करे िा। अभी सारी दुवनया में वजनकी उम्र ज्यादा हो िई उन िोिों का कहना है कक हमें मरने का सुवििापूणि हक होना चावहए। यह हमारा वनणिय होना चावहए। और वचककमसक भी पूछते हैं कक क्या यह नैवतक है कक एक सौ या एक सौ बीस साि के आदमी को आक्सीजन की निी ििा कर जजंदा रखना, क्या यह नैवतक है? क्योंकक उस आदमी को जीिन में कु छ भी नहीं बचा है वसर्ि जीना है। भारी बोझ होिा इसके विए। पर क्या हम इसकी निी से आक्सीजन जाना बंद कर दें , उसको मरने में सहयोिी हों, क्या िह नैवतक होिा? जब भी हम बाहर कोई बदिाहट कर िेते हैं और मनुष्य की अंतराममा और नैवतकता और उसके अंतरबोिो में कोई अंतर नहीं होता, तब तक हम नये सिाि खड़े करते चिे जाते हैं। और नये सिाि पुराने से बदतर भी हो सकते हैं। क्योंकक ज्यादा कांप्िेक्सीटी के ति पर होते हैं। पुराना जो है िह सरि ति पर होता है सिाि। जब हम उसको बदि िेते हैं और नया सिाि खड़ा करते हैं तो िह ऑन ए न्यू िेयर कांप्िेक्सीटी हो िया, िह ज्यादा जरटि होिा। उसको हि करने में ज्यादा मसिे िहन हो जाएंिे। कोई आदमी आममहमया न करे यह सरि ति की उिझन है। िेककन आममहमया करने का हक दे ना बहुत जरटि उिझन है। क्योंकक कर्र आप कै से तय कररएिा कक कौन न करे ? चविए एक आदमी कहता है मैं सौ साि में... । वनन्यानबे िािा कहता है कक अिर सौ साि िािा आममहमया कर सकता है तो वनन्यानबे िािे को क्यों हक न हो? िेककन कर्र उन्नीस साि िािे का क्या कसूर है अिर िह मरना चाहता है? यह ज्यादा जरटि मामिा होिा। िह बहुत सरि मामिा था कक कोई आममहमया न करे । एक सरि वनयम था। कोई करने को आमतौर से उमसुक भी नहीं था। कभी कोई उमसुक भी होता था तो उसे रोका जा सकता था। िेककन िह रुकािट मौत के वखिार् थी। अिर हम आज्ञा दे ते 110



हैं कक, आममहमया व्यवि की स्ितंत्रता का हक तो है ऐसे। क्योंकक अिर व्यवि ठीक से पूछे तो िह कह सकता है कक मरने का हक मेरी वनजी स्ितंत्रता है और मुझे जबरदस्ती वजिाने िािे आप कौन हैं? यह ककसी का हक नहीं है। अब जैसे मैं कहं कक हम पूरे पांच हजार साि से व्यवि की स्ितंत्रता के विए िड़ रहे हैं। इं विविजुअि िीिम। अब व्यवि की स्ितंत्रता का जो अंवतम अथि हो सकता है िह यह है कक व्यवि को मरने का हक होना चावहए। व्यवि की स्ितंत्रता के विए िड़ने िािे िोिों ने कभी नहीं सोचा था यह कक मरने का हक भी व्यवि की स्ितंत्रता है। उन्होंने सोचा था बोिने का हक व्यवि की स्ितंत्रता है। िह दो कौड़ी का है बोिने का हक। मरने का हक एवक्झसटेंवशयि है। ज्यादा कीमती है। अिर मैं मर ही नहीं सकता तो मेरे बोिने, न बोिने का भी क्या मूल्य है। अिर मुझे इसविए जीना पड़ता है कक आप मुझे मरने नहीं दे ना चाहते कक आपका कानून कहता है कक तुम नहीं मर सकते तो तुम मेरी जजंदिी की वनयामक हो। मिर व्यवि की स्ितंत्रता िािों ने कभी नहीं सोचा था कक यह इसका अंवतम र्ि हो सकता है। होता हमेशा यह है... अभी मैं दे ख रहा था, नीमशे ने एक बहुत अदभुत बात विखी है। उसने विखा कक दुवनया में सारे िमि मर रहे हैं। उसका कारण यह नहीं है कक दुवनया में अिार्मिक िोि बढ़ िए हैं। उसका कु ि कारण यह है कक सभी िमों ने समय के ऊपर पांच हजार साि तक इतना जोर कदया कक अब िोि कहते हैं कक जो समय है िही हम मानेंिे। और तुम्हारा इस पर समय वसद्ध नहीं हो रहा। तुम्हारी ही वजद कक िमि समय की खोज है। तुमने ही समझाया है िोिों को कक समय को पाना अंवतम िक्ष्य है जीिन का। अब िोि कहते हैं कक समय ही अंवतम िक्ष्य है पाने का। िेककन तुम्हारा ईश्वर समय नहीं मािूम पड़ता, झूठ मािूम पड़ता है। सरासर झूठ है। और तुम वसद्ध करो कक कहां समय है? और िह तुम वसद्ध नहीं कर पा रहे। तो नीमशे कहता है कक तुमने जो जिाई थी आि, उसके ही र्ि भोि रहे हो। यानी इसमें ककसी का हाथ नहीं है। तुमने अिर पहिे से ही, तो नीमशे एक बहुत अजीब बात कहता है, िह कहता है कक समय-िमय का कोई मूल्य नहीं। नीमशे कहता है कक जो असमय जीिन को आनंदपूणि बनाए िह असमय ही िरणीय है। नीमशे यह कहता है। हम समय की जचंता क्यों करें । हम कोई समय के विए पैदा हुए। जीिन परम मूल्य है। और अिर झूठ से सहारा वमिता है और सपने दे खने में सुख वमिता है, तो मुझे... । यह सभी िार्मिकों को ििेिा कक बड़ी उपद्रि की बात है। िेककन इसका अंवतम र्ि यह हो सकता है कक िमि िापस िौट सकते हैं। यह बात अिर ठीक से समझी जाए तो िमि िापस िौट सकें िे, नहीं तो िमि अब बच नहीं सकते। क्योंकक समय की परख अिर बढ़ती चिी जाए तो अंतताः आदमी पूछेिा कक तुम्हारे ईश्वर को प्रयोिशािा में खड़ा करो। जब तक हम जांच-परख न कर िें, जब तक पक्का न हो जाए कक िह है, जब तक प्रूर् हम न जुटा िें, तब तक अब हम मान नहीं सकते। िेककन जब चीजें पूणिता पर टू टती हैं, अपनी क्िाइमेक्स पर, तभी उदर्ाटन होता है कक उपद्रि हो िया। तभी िार्मिकों ने जोर कदया है समय पर, कोई िार्मिक असमय पर जोर दे ने िािा नहीं हुआ कभी भी। िेककन नीमशे कहता है कक उनके जोर ने ही िमि की जड़ें काट दीं। हां, जब तक चिता रहा मामिा जब तक कक इस जोर को उसके अंवतम वनष्कषि तक, िॉवजकि कनक्िूजन तक नहीं खींचा िया। जैसे ही आप ककसी चीज को उसके अंवतम वनष्कषि तक खींचेंिे, तभी आपको पता चिेिा कक इसके चुकता पररणाम क्या हो सकते हैं।



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अब हम कहते हैं कक प्रमयेक व्यवि की िरीबी वमटनी चावहए। क्यों? इसविए वमटनी चावहए कक भूख बड़ी बुरी चीज है। और एक समाज में कु छ िोि भरे पेट रहें और कु छ िोि भूखे रहें। अशोभन है, अनैवतक है। िेककन भूख बड़ा मामिा है, वसर्ि रोटी भूख नहीं। वजस कदन आप रोटी पूरी कर दें िे, उस कदन सेक्स भी भूख है। और अिर यह बात िित है कक कु छ िोिों के पेट में रोटी पड़े और कु छ िोिों के न पड़े, तो कु छ िोिों का सेक्स ज्यादा ढंि से तृप्त हो और कु छ का न तृप्त हो, यह कब तक चिने दें िे? और अिर यह सही है कक सबको एक जैसे मकान रहने को वमिने चावहए कक कोई महि में रहे कोई झोपड़ी में, तो यह बात कब तक ठीक रहेिी कक ककसी को सुंदर स्त्री वमि जाए और ककसी को कु रूप वमिे। यह कै से बरदाश्त ककया जा सके ? इसको िावजकि कनक्िूजन तक िे जाने की जरूरत है। तब आपको पता चिेिा कक जो आप कर रहे हैं उसका क्या मतिब होता है? यह कै से बरदाश्त ककया जा सकता है कक आपके पास एक सुंदर स्त्री है और मेरे पास नहीं है। तो आप मेरा शोषण कर रहे हैं। वनवश्चत है, क्योंकक जोस्त्री मेरे पास होनी चावहए िह मेरे पास नहीं, आप कब्जा ककए बैठे हैं। तो कु छ बंटिारा होना चावहए, कु छ न कु छ शेयटरं ि होनी चावहए। कु छ ऐसा होना चावहए कक सब काम, एक कदन िह आपकी स्त्री हो एक कदन मेरी भी हो। नहीं तो क्या उपाय है। या िैसी दूसरी स्त्री मुझे वमिनी चावहए। मकान तो आसानी से हम बना दें , एक से भी बन सकते हैं ककसी कदन। िेककन हम एक सी वस्त्रयां कहां बना पाएंिे? तो कर्र शेयटरं ि पर इं तजाम करना पड़ेिा। तो हम पूरे समाज को एक, एक जैसा आज बंटिारा कर रहे हैं िन का, िैसा हमें कि कामिासना के विए बंटिारा, ठीक िैसा ही बंटिारा करना पड़ेिा। िेककन मकान तो वजद नहीं करता है। क्योंकक मकान कहता है कै से ही बना िो। िह स्त्री तो वजद करे िी कक माना कक तुम िंवचत हो रहे हो िेककन मैं तुम्हारे साथ प्रेम करने को राजी नहीं। इसको हमें कहना पड़ेिा, यह स्त्री अनैवतक है। क्यों यह एक व्यवि को अपना प्रेम दे ने को कहती है और दूसरे को नहीं दे ती। व्यवि समान हैं। क्या कररएिा क्या? आप ज्यादा जरटि तिों पर उिझेंिे कर्र। अभी ति बहुत सािारण हैं। और जरटि ति जो हैं िे चीजों को बुरी तरह तोड़ जाएंिे। वस्त्रयों को बदिने के मूिमेंट हैं, ग्रुप हैं, क्िब हैं, जहां पवतपवत्नयां इकट्ठे हो रहे हैं और पवत्नयों को बदि कर ताकक ककसी को कोई दं श न रह जाए मन में। मिर यह चेतना को नीचे विराएिा कक ऊपर िे जाएिा? इससे आदमी की आममा आकाश में उड़ेिी कक और जमीन में दब जाएिी? क्या होिा उसका? उसका आवखरी र्ि क्या हो सकता है? मिर यह हम सब सोचते नहीं। समाज-सुिारक वजद में होता है। एक मसिे को पकड़ता है उसकी पूरी चेन को नहीं। िह कहता है इस आदमी के पास कपड़ा नहीं, इसके पास कपड़ा होना चावहए। बस इतना पकड़ िेता है। िेककन इस तकि का पूरा र्ि क्या है? इस तकि की पूरी अंवतम वनयवत क्या होिी? इस आदमी के पास आप जैसी आंख नहीं है िह भी होनी चावहए। क्यों नहीं होनी चावहए? यह आदमी आज नहीं कि कहेिा कक ककसी आदमी के पास प्रवतभा हो और मेरी बुवद्ध जड़ हो, यह नहीं चिेिा। बुवद्ध का समान बंटिारा होना चावहए। और आज नहीं कि हो सकता है। कोई करठनाई नहीं है। अब इं वप्िमेंटस तो हैं कक हम बच्चों को वजनके पास थोड़ी ज्यादा प्रवतभा है उनको थोड़ा काट-छांट दें , उनके मवस्तष्क में थोड़े हामोंस कम कर दें , थोड़ी नसें काट दें , थोड़ी नििस वसस्टम उनकी नीचे उतार दें , तो िे समान िेिि पर आ जाएं। अिर यह बात सच है कक एक आदमी के पास ज्यादा िन नहीं होना चावहए तो यह बात क्यों सच नहीं कक एक आदमी के पास ज्यादा प्रवतभा नहीं होनी चावहए। क्योंकक िह प्रवतभा का शोषण करे िा। तो रॉकर्े िर और माििन या वबड़िा ही शोषक हैं ऐसा क्यों? काविदास और शेक्सवपयर और आइं स्टीन और बुद्ध शोषक नहीं



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हैं? ये भी शोषक हैं। शोषक का अिर यही मतिब है कक ककसी के पास कोई चीज ज्यादा हो जाती है और ककसी के पास कम पड़ जाती है, तो इसका आज नहीं कि हमें वनपटारा करना पड़ेिा। एक आदमी बुद्ध होकर बैठ जाए और दूसरा आदमी बुद्िू बना रहे यह कै से चिेिा? यह नहीं बरदाश्त ककया जा सकता। बुद्िू कहेिा कक या तो मुझे बुद्ध बनाओ, जो कक करठन है। तो दूसरा उपाय यह है कक बुद्ध को बुद्िू बना िो, जो कक आसान है, सुिम है। िरीब कहता है कक वबड़िा को या राकर्े िर। मुझे भी वबरिा और रॉकर्े िर बना दो, जो कक करठन है। सरि यह है कक राकर्े िर और वबड़िा को बांट कर एक िरीब बना दो, जो कक आसान है, जो कक ककया जा रहा है। सारा सोशविज्म, सारा समाजिाद िही कर रहा है। पर इसकी अंवतम वनयवत क्या है? इन सारे तकों को अिर सामावयक संदभि में दे खें तो बड़े ठीक मािूम पड़ते हैं। िेककन िंबा र्ै िा कर दे खें तो पता चिता है कक ये तो उपद्रि में रोज उतारते चिे जाते हैं। ये रोज उतारते चिे जाते हैं। अभी मनोिैज्ञावनकों ने िायि के बाद मां-बाप को समझाया कक बच्चों को िांट-िपट नहीं करनी चावहए। क्योंकक उससे उनकी आममा को चोट पहुंच रही है। उनकी स्ितंत्रता को चोट पहुंच रही है। उनको स्ितंत्रता दे नी है, सुवििा दे नी है। और ककसी तरह का उन पर प्रवतबंि न हो, इसे वसद्ध कर कदया। पचास साि में उन्होंने समझा कदया, मां-बाप समझ िए। पहिे बच्चा िर कर र्ुसता था र्र में, अब मां-बाप िर कर र्र में र्ुसते हैं कक कहीं बच्चे के ऊपर कोई प्रवतबंि तो नहीं हो रहा। और बच्चे मां-बाप पर प्रवतबंि कर रहे हैं। यह कभी मनोिैज्ञावनकों को ख्याि में भी नहीं था कक वजस कदन मां-बाप प्रवतबंि नहीं करें िे, उस कदन बच्चे प्रवतबंि करें िे। उनको ख्याि यह था कक मां-बाप प्रवतबंि नहीं करें िे, बच्चे स्ितंत्र होंिे। बस इतना ही ख्याि था। इसका अंवतम कनक्िूजन क्या है? इसका आवखरी कनक्िूजन यह है कक कं ट्रोि तो कोई न कोई करने ही िािा है। बच्चे करें िे। अब यह बड़ी मुवश्कि बात है। यह बेहतर था कक मां-बाप करते, बजाए इसके कक बच्चे करें । क्योंकक कम से कम िे अनुभिी थे। कम से कम िे बच्चे भी रह चुके थे। िेककन बच्चों को तो इसका कोई भी पता नहीं है कक बूढ़े होने का क्या मतिब होता है। और जब एक दर्ा बच्चों को कह कदया कक हम उन पर प्रवतबंि नहीं करें िे, तो ककस सीमा पर रुककएिा? आज बच्चे कहते हैं कक हम स्कू ि नहीं पढ़ना चाहते हैं। तो प्रवतबंि करना है कक नहीं करना है? उनकी स्ितंत्रता पर आर्ात तो कर ही रहे हैं आप। कौन बच्चा पढ़ना चाहता है? कौन बच्चा पढ़ना चाहता है? अिर सुवििा होिी तो कोई बच्चा पढ़ने को राजी नहीं। आज अमरीका की हाित यह है कक अमरीका को सारी की सारी बुवद्धमत्ता दूसरे मुल्कों से उिार िेनी पड़ रही है। दूसरे मुल्क जचंवतत हैं यूरोप के , कहते हैं, िेन ड्रेनेज हो रहा है। क्योंकक अमरीका ज्यादा तनख्िाह दे ता है। और यूरोप और सारी दुवनया का जो बुवद्धमान आदमी है िह अमरीका चिा जाता है नौकरी करने। और अमरीका की मजबूरी है कक उसको सारी दुवनया से बुवद्धमान खोजना पड़ रहा है। उसके बच्चे तो युवनिर्सिटी से इनकार कर रहे हैं। उसके बच्चे तो पढ़ना ही नहीं चाहते। िे तो वहप्पी हैं, बीटवनक हैं िे तो अपने नाच-कू द कर रहे हैं, माररजुआना िे रहे हैं। िे पढ़ना-िढ़ना चाहते नहीं। अमरीका आज सारी दुवनया से बुवद्धमान आदमी को खींच रहा है। कहीं भी बुवद्धमान आदमी हो आज नहीं कि अमरीका चिा जाएिा। उसकी भी मजबूरी है। क्योंकक आज उसके पास सबसे ज्यादा सुवििा है, सबसे ज्यादा संपन्नता है। िेककन उसके बच्चे आिे बढ़ाने से इनकार कर रहे हैं। उसके बच्चे यह पूछ रहे हैं कक सुवििा, संपन्नता का करें िे क्या? अब यह बड़े मजे की बात है



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सदा बच्चों ने पूछा था कक िरीबी कै से वमटे? आज अमरीका के बच्चे पूछ रहे हैं कक अमीरी कै से वमटे? यह कभी सोचा भी नहीं था कक बच्चे यह पूछेंिे कक अमीरी कै से वमटे! यह प्रॉब्िम भी ककसी कदन उठे िा। क्योंकक बच्चे यह कह रहे हैं कक तुम्हारी अमीरी से तुम्हें कु छ वमिा तो नहीं। माना तुम्हारे पास मकान अच्छा है, कार तुम्हारे पास अच्छी है। तुम एअरकं िीशंि कमरे में हो। तुम्हारे पास बाथरूम अच्छा है, तुम्हारे पास साबुन अच्छी है। सब तुम्हारे पास अच्छा है। भोजन अच्छा, कपड़े अच्छे। बाकी तुम्हें वमिा क्या जजंदिी में? तुम्हें जजंदिी में कु छ वमिा नहीं। तो हम वबना बाथरूम के रह िेंिे, वबना नहाए रह िेंिे, िंदे कपड़े में रह िेंिे। साबुन हमारे पास नहीं होिी, परफ्यूम हमारे पास नहीं होिा। पसीने की बदबू आएिी। िेककन हम जजंदिी को जीना चाहते हैं। हम तुम्हारे इस ढांचे में र्ं स कर मरना नहीं चाहते। यह कभी सोचा भी नहीं था कक बच्चों को पसीने की बदबू जो है, िह प्रीवतकर ििेिी। िि ही नहीं सकती थी, क्योंकक सुिंि बहुत मुवश्कि मामिा था पुरानी दुवनया में। कभी कोई सुिंवित हो सकता था। बाकी तो सबको पसीने की बदबू थी। आज अमरीका के बच्चे को पसीने की बदबू बेहतर िि रही है बजाय परफ्यूम के । िे कहते हैं, परफ्यूम िोखा है। असिी शरीर की िंि चावहए। िोखा इतना िंबा हो िया कक असिी शरीर की िंि को बेहतर मानता है। नहाने से इनकार है, कपड़े बदिने से इनकार है। िंदिी सुखद है, क्योंकक िह जीिन है। और संपवत्त नहीं चावहए। अभी बकि िे युवनिर्सिटी के िड़कों ने एक नई रॉल्स रॉयस िाड़ी खरीद कर, नई िाड़ी खरीद कर चंदा करके और कै म्पस के बीच में रख कर आि ििाई। क्योंकक यह जसंबि है िन का, िन नहीं चावहए। ककसी दूसरे की िाड़ी नहीं है, खुद चंदा करके यह िाड़ी िाकर कै म्पस के बीच में रख कर आि ििा कर होिी मनाई। अब ये कारें नहीं चावहए। आदमी िापस पैर पर िौटना चावहए। क्योंकक पैर से चिने का सुख ही और था। पैर से चिने िािों को वबल्कु ि पता नहीं। भारी दुखी! और जब पास से कार िुजर जाती है तो आममा पर ऐसा संकट आता है जैसा कभी नहीं आता। िेककन जहां कार हो िई, अमयविक हो िई, िहां पैर से चिने का िापस सुख िौटना चावहए। और मजा यह है कक पैर से कार तक जाना बहुत आसान मामिा था, कार से पैर तक आना बहुत करठन मामिा है। बहुत करठन मामिा है। जद्दोजहद का मामिा है। ज्यादा जरटि है। इिर मैं जैसा दे खता हं िह यह कक पररवस्थवत, संस्था, समूह, समाज, राज्य, बदि कर हमने दे ख विए हमने पांच हजार सािों में। मेरी उमसुकता नहीं है। मेरी उमसुकता वनपट व्यवि में है। सीिे व्यवि में है। कु छ उसके विए कर सकूं तो ठीक। शायद उसके विए होते होते समूह में र्ै ि जाए तो अिि बात है। अिर ककन्हीं वमत्रों को उमसुकता है कक मेरी बात ज्यादा िोिों तक र्ै िे, तो उन्हें मेरी दृवि समझ कर ही काम में ििना पड़ेिा। अिर िे चाहते भी होंिे ज्यादा िोिों तक र्ै िे; पर व्यविशाही; ध्यान व्यवि पर ही हो। और इिर मुझे यह भी ख्याि में आना शुरू हुआ कक जो िोि भी ज्यादा समूह में उमसुक होते हैं। कई बार तो ऐसा होता है कक िे वसर्ि अपने से पिायन कर रहे होते हैं। समूह की जचंता िेकर बहुत आसानी से आदमी अपने से बच जाता है। िैंजा कदििास्तो का मैं जीिन पढ़ रहा हं। िे पवश्चम में िांिी जी के खास... हैं, अनुयायी हैं, यूरोप के िांिी हैं। िे जब उन्नीस सौ तीस में भारत आए--बहुत भिे आदमी हैं, एकदम भिे आदमी--तो पहिे िे रमण महर्षि के आश्रम िए। और रमण महर्षि उनको वबल्कु ि भी नहीं जंच।े जो आदमी जंचने जैसा था, िह वबल्कु ि भी नहीं जंचा। बवल्क िैंजा कदििास्तो ने जो बातें अपनी िायरी में विखी हैं िे अशुभ हैं रमण के बाबत। विखा 114



उसने यह है कक यह कै सा अध्यामम कक एक आदमी सुबह से सांझ तक चुपचाप बैठा हुआ है। इस ध्यान का क्या र्ायदा? इस अंतमुिख का एक व्यवििाद में क्या रस? समाज को बदिना है, दुवनया को बदिना है। यह जिह मेरे विए नहीं। उसने िायरी में विखा हैाः यह जिह मेरे विए नहीं। मेरे विए जिह तो ििाि है! मुझे तो ििाि जाना है! और एक कदन रुका िह कक दे ख िें यह आदमी। तो एक कदन जो उसने िायरी में नोट ककया है िह एकदम अभद्र है। मिर िांिीिादी के मन में िैसी अभद्रता होिी, अवनिायि, रमण को दे ख कर। क्योंकक रमण को िहां िोि भििान मानते हैं। तो िह ििता है कक अजीब बात है, भििान भी सो रहे हैं, कद िॉि इ.ज ए वस्िजपंि। भििान खाना खा रहे हैं। और तब तो हद हो िई, जब रमण ने एक पान का पत्ता िेकर चबाया। तो उसने विखााः अब भििान पान चबा रहे हैं, उसने िायरी में विखा। और कर्र तो और भी हद हो िई जब उन्होंने िकार िी खाने के बाद। उन्होंने कहााः कद िॉि इ.ज बेजल्चंि। यह जिह मेरे विए नहीं। जिह मेरी ििाि है! अब यह आदमी अपने को बदिने में जरा भी उमसुक ही नहीं है। दुवनया को बदिने में उमसुक है। रमण से इसका कोई तािमेि नहीं बैठता। िांिी से तािमेि बैठ िया। मिर यह आदमी अपने को बदिने में उमसुक क्यों नहीं है? अिर कोई भी बदिाहट की बुवनयादी उमसुकता है तो िह होनी चावहए कक मैं अपने को कै से बदि िूं? और मैंने कोई ठे का विया सारी दुवनया का? और क्या मैं सारी दुवनया को बदि पाऊंिा? अपने को बदिना ही इतना मुवश्कि है! और मैंने अिर कोवशश करके दुवनया को बदिने का कु छ रास्ता भी शुरू कर कदया--समझ िें, जो कक असंभि है। तो भी मैं तो बबािद हो जाऊंिा ही। और अिर हर आदमी दुवनया को बदिने में ििा हो, तो हर आदमी अपने को बबािद कर रहा है दुवनया को बदिने में। तो दुवनया तो कभी बदिने िािी नहीं, जो बदि सकता था िह बदिने से बच जाएिा। मेरी तो दृवि यह है कक उमसुक हम हों अपनी बदिाहट में। और हमारी बदिाहट अिर संक्रामक हो जाए, िह औरों को भी पकड़ िे, तो प्रभु कृ पा। और न पकड़े तो इसमें बेचैनी का कोई कारण नहीं है। और पकड़े तो भी िह व्यवि को ही पकड़े। संस्थािाकदता जो है, समूहिाकदता जो है िही मैटीररयविज्म है, िही पदाथििाद है। और व्यवि उन्मुखता जो है, और व्यवि को सिोपरर चैतन्य और जीिंत मानने की जो दृवि है िही अध्यामम है। पर ककसी को भी ििता हो कक मेरी बात ज्यादा िोिों के काम आ सकती है, तो िे कोवशश में ििें, बाकी मेरी उमसुकता नहीं। इसकी भी मेरी उमसुकता आप में है। आपसे कु छ र्ै ि जाएिा ककसी में िह दूसरी बात है। नहीं र्ै िेिा तो कोई हजाि नहीं होिा। आप तक ही पहुंचा तो कार्ी है। और ऐसा ही मैं चाहता हं कक आपकी उमसुकता भी व्यवि में हो। ककसी व्यवि में िि जाए आि थोड़ी-बहुत। िि जाए वचराि। न ििे तो जचंता का कोई कारण नहीं है। क्योंकक दूसरे को तो हम बदि कर ही रहेंिे यह भी जहंसा है। और समाज को ऐसा बना कर ही रहेंिे जैसा हम चाहते हैं कक समाज होना चावहए। यह बहुत िहरी अविनायकशाही है। तो मैं कौन हं? और अिर ककसी आदमी को अज्ञानी रहने में ही आनंद आ रहा है तो मैं काहे के विए उसको ज्ञानी बना कर कि में िािूं। और कर्र मैं कौन हं तय करने िािा। यह उसके और परमाममा के बीच का वनणिय है। मैं कौन हं? मैं इतना ही कह सकता हं कक मुझे अज्ञानी से ज्ञानी होने में ज्यादा आनंद आया, शायद तुम्हें भी आए। यह संक्रामक हो जाए तो ठीक है। अन्यथा दूसरे को बदिना, िह जो वमशनरी माइं ि है, िह थोड़ा जहंसाममक है ही। कोई बदि जाए यह वबल्कु ि दूसरी बात है। पर हम सीिे उसमें आग्रहपूणि भी रहें तो ठीक नहीं है। हां, हम 115



अपने को बदिें और उस बदिाहट, उस रोशनी में अिर ककसी को कु छ कदखाई पड़ने ििे और िह कर्र आए तो ठीक है। इसे इस भांवत थोड़ा सोचें। और एक कैं प में बने तो आ जाएं। तो थोड़ा कैं प एक दे खें कक मैं व्यवि की बदिाहट के विए क्या कर रहा हं। िह कै से यह सकक्रय हो पाती है र्टना। अभी एक कैं प है माथेरान में, जनिरी में, आठ से सोिह के बीच। इसमें बने तो इसमें आ जाएं। और नहीं तो कर्र एक माचि में है माउं टआबू, पच्चीस माचि से। ये कैं प बने तो आ जाएं। इसमें कोई सात सौ आठ सौ िोि एक कैं प में आते हैं। बाहर से भी कोई बीस-पच्चीस िोि आने को हैं। और यह जो व्यवि का... ।



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भारत का भविष्य दसिां प्रिचन



नारी का सहयोि (ए रे वियो टॉक बाई ओशो) ... अंत तक अमि नहीं करते। पर मैं तो बहुत कु छ करना भी चाह रही हं बीबी जी। सच! हां। यह सच कर्र िही बात की आपने, आप करना चाह रही हैं या कु छ कर रही हैं? मैं तो यह जानना चाहती हं। बीबी दे वखए, दे श-वििाह हमारा पहिा कतिव्य है, पहिा िमि है, बस इसी के विए हम कु छ योजनाएं बना रहे हैं। हां-हां, यानी और भी कु छ िोि हैं आपके पास? हां, मेरी कु छ पड़ोसनें भी अपना सहयोि दे रही हैं। भई िाह! हम िोि सप्ताह में एक बार वमि बैठते हैं और कर्र इस बैठक में बहुत सी बातें होती हैं। अच्छा, जरा ककस विषय पर बातें होती हैं, मैं भी सुनूं। बस दे श के वहत के विए बहुत योजना बनाते हैं। अच्छा, तब तो बहुत अच्छी-अच्छी योजनाएं होंिी? और दे वखए हमें यह भूिना नहीं चावहए कक भारत के वनमािण के विए नारी बहुत कु छ कर सकती है। उसका प्यार, उसकी प्रेरणा से क्या नहीं हो सकता। यह हमें तक नहीं, कर्र हम चाहें... और आज इसी विषय पर ओशो के विचार हम बहनों को सुनिाते हैं। भारत की संस्कृ वत, भारत की संपदा जीिन के एक नये द्वार पर खड़ी है। सैकड़ों िषों के अंिकार, िुिामी और दीनता के बाद कर्र से एक समृद्ि जीिन का क्षण आया है। इस नये वनमािण में अके िे पुरुष का ही हाथ नहीं होिा, नारी का भी हाथ होिा। और यह सहयोि आश्चयिजनक मािूम होता है। िेककन समय है कक अब तक इस दे श के वनमािण में नारी का कोई हाथ नहीं रहा है। नारी िुिाम थी, दास थी, अनुचर थी, प्रेवमका थी; िेककन सहयोिी और सहस्रिा नहीं थी। इसके दुष्पररणाम हुए हैं। एक सयता बनी जो अके िे पुरुष की सयता थी--कठोर, परुष, जहंसा और क्रोि और युद्ध से भरी। नारी का कोमि अनुदान उस सयता को नहीं वमिा। िह संस्कृ वत िैसी ही अिूरी थी जैसे कोई दे श हो जहां वसर्ि पुरुष हों और वस्त्रयां न हों। िह दे श जैसा रसहीन, सौंदयिहीन, संिीतहीन और प्रेमशून्य होिा, िैसी ही यह संस्कृ वत वनर्मित हुई। आने िािे भविष्य में कोई सम्यक और पूणि संस्कृ वत और सयता को जन्म दे ना हो तो नारी का अमयंत सहयोि और मूल्यिान स्थान उस वनमािण में होना जरूरी है। एक ऐसा दे श वनर्मित करना है जो अभय को



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उपिब्ि हो, प्रेम को उपिब्ि हो, स्ितंत्रता को, प्रकाश को, आनंद को। इस वनमािण के विए कु छ सूत्रों पर विचार करना उपयोिी है। तीन सूत्रों पर विशेष रूप से। नारी अब तक मनुष्य से, पुरुष से पीछे थी, अनुचर थी, िुिाम थी। उसे कोई समान स्थान न था। स्िभािताः िुिाम संस्कृ वतयों के वनमािण नहीं करते हैं। संस्कृ वत के वनमािण के विए स्ितंत्र, चेता व्यवि चावहए। नारी स्ितंत्र, चेता व्यवि अब तक नहीं थी। र्कि आया है, पररितिन हुआ है, नारी ने मांि की है समानता की। िेककन समानता की मांि के पीछे खतरा भी है। कहीं समान होने की दौड़ में िह पुरुष जैसे होने की प्रिृवत्त में न पड़ जाए। जैसा की सारी दुवनया में हो भी रहा है। नारी अिर पुरुष जैसी होने की कोवशश में पड़ेिी तो कर्र अनुचर रह जाएिी, कर्र छाया रह जाएिी। कर्र भी उसे व्यविमि उपिब्ि नहीं होिा, उसे वनजता और आममा उपिब्ि नहीं होिी। पुरुष बनने की दौड़ में नारी एक वद्वतीय महमि के स्थान पर ही खड़ी रह जाएिी। वसर्ि छाया ही होिी। व्यविमि उसे वमि सकता है तभी जब यह समझ विया जाए कक नारी वभन्न है, असमान है, िेककन वभन्नता और असमानता का यह अथि नहीं कक उसे समादर उपिब्ि न हो। समादर उपिब्ि होना चावहए, िेककन समानता झूठी बात है। स्त्री और पुरुष समान वबल्कु ि भी नहीं हैं। और यही उनका आकषिण भी है, यही उनका बि भी है। स्त्री उतनी ही आकांक्षा के योग्य है, उतनी ही जीिन को रस से भरने िािी वजतनी वभन्न है, उसकी वभन्नता में ही, उसके वभन्नता के विकास में ही न के िि उसका जीिन चररताथि होिा, बवल्क आने िािी संस्कृ वत भी सम्यक और पूणि हो सकती है। तो यह पहिा सूत्र ध्यान में रखने के विए है और िह यह है कक स्त्री को हम उसकी वभन्नता में विकवसत होने दें , पुरुष के समान बनाने की चेिा न करें । अन्यथा एक भूि पीछे हुई थी कक िह िुिाम थी और अब दूसरी भूि होिी कक िह के िि पुरुष की झूठी छाया, एक वमथ्या पुरुष बन कर रह जाएिी। अब तक ऐसा ही हुआ कक जब भी नारी पुरुष जैसी होती है, हम प्रशंसा करते हैं। रानी झांसी की प्रशंसा करते हैं, जोन ऑर् आकि की प्रशंसा करते हैं। कहते हैंःाः खूब िड़ी मदािनी। िेककन मदािना होना, पुरुष जैसा होना नारी के विए सम्मान योग्य नहीं है। उसका अपना वनजी व्यविमि है और िह विकवसत हो--प्रेम का, संिीत का, र्र का, पररिार का, पररिार के कें द्र का; िह जो आंतररक जीिन है मनुष्य के हृदय का। उसे िह पूरा तभी कर सके िी जब िह ठीक अथों में नारी ही हो, पुरुष जैसी न हो। तो भारत की आने िािी संस्कृ वत में नारी को अपनी वभन्नता को पररपूणि रूप से विकवसत करना है। ताकक िह ठीक-ठीक नारी का अनुदान, संस्कृ वत, और नये दे श के वनमािण में दे सके । स्िभािताः इसके ही साथ दूसरी बात ध्यान में रखनी जरूरी है कक इसकी वशक्षा पुरुष जैसी न हो, न उसे व्यिसाय पुरुष जैसे कदए जाएं। मैं इसके अमयंत विरोि में हं। न तो पुरुषों जैसे व्यिसाय की नारी को जरूरत है, न िैसी वशक्षा की। क्योंकक िैसी वशक्षा, िैसी प्रवतस्पिाि, िैसा प्रवशक्षण उसे एक झूठा व्यविमि ही दे सकता है; उसकी आममा का सम्यक और ठीक विकास नहीं। और वजसका अपना ही व्यविमि ठीक से विकवसत न हुआ हो, िह दे श के , समाज के व्यविमि को पररपूरक नहीं बन सकती। तीसरी बात ध्यान में रखनी जैसी है और िह यह कक नारी अिर ठीक से विकवसत हो तो िह पुरुष से ज्यादा बििान है। क्योंकक बच्चों का सारा वनमािण उसके हाथ में है, पररिार का प्राण िह है। जीिन के जो भी महमिपूणि अंि है उस पर उसकी छाया और उसका प्रभाि है। सभी पुरुष उसकी छाया में बड़े होते और उसके 118



प्रेम में जीते हैं। उसकी सहानुभूवत में, उसकी करुणा में, उसकी ममता में जीते हैं। अिर यह ममता, यह प्रेम और यह करुणा ठीक-ठीक वििेकयुि हो तो दे श के वनमािण में क्रांवतकारी पररणाम िाए जा सकते हैं। दे श के वनमािण का अंवतम अथि व्यवियों का ही वनमािण होता है। और व्यवियों के वनमािण का कें द्रीय तमि मां है, पत्नी है, बहन है। िह जो नारी र्ेरे हुए पुरुष को चारों ओर से--अिर उसकी ममता और उसका प्रेम सृजनाममक हो और पुरुषों को चुनौती दे ता हो और विकास के विए आमंत्रण दे ता हो और उन दूर दे श के सपनों को पूरा करने के विए प्रेरणा दे ता हो, तो ही एक नया समाज, एक नया दे श और एक नये भारत का जन्म हो सकता है। िेककन यकद नारी अतीत के ढंि की रही कक पुरुष की दासी, अिर अतीत का बहुत बोझ रहा तो यह नहीं हो सके िा। और यकद नारी पवश्चम के ढंि की रही कक पुरुष के समकक्ष और समान खड़े होने की चेिा में रत, तो भी यह विकास नहीं हो सके िा। नारी को अिर भारत के वनमािण में अपना ठीक स्थान ग्रहण करना है तो दो बातों से बचना है। एक तरर् कु आं है, एक तरर् खाई है। एक उसका अतीत है और एक उसके सामने खड़ा हुआ पवश्चम है। अिर अतीत के बोझ से नारी बचे और पवश्चम के प्रभाि से, तो ही भारत के सम्यक वनमािण में उसका महमिपूणि योिदान उपिब्ि हो सकता है। बहुत कु छ उसके हाथ में है--बहुत क्षमता, बहुत शवि। िेककन सारी शवि और क्षमता का जब तक उसके ही अनुकूि, उसके ही आममा के अनुकूि विकास न हो, तब तक दे श के विए उससे कु छ भी उपिब्ि नहीं हो सकता। ओशो ने जो अपने विचार हमारे सामने रखे हैं, उन्हें हमें कर्र सख्त... ।



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भारत का भविष्य ग्यारहिां प्रिचन



भीतर चावहए शांवत और बाहर चावहए असंतोष मेरे वप्रय आममन्! बीती दो चचािओं के संबंि में बहुत से प्रश्न आए हैं। कु छ वमत्रों ने पूछा है कक भारत सैकड़ों िषों से दररद्र है, तो इस दररद्रता में, इस दररद्रता में तो िांिीिाद का हाथ नहीं हो सकता है? िह क्यों दररद्र है इतने िषों से? िांिीिाद का हाथ तो नहीं है, िेककन िांिीिाद जैसी ही विचारिाराएं इस दे श को हजारों साि से पीवड़त ककए हुए हैं। उन विचारिाराओं का हाथ है। नाम से कोई र्कि नहीं पड़ता है कक उन विचारिाराओं को हम क्या नाम दे ते हैं। दो विचारिाराओं पर ध्यान कदिाना जरूरी है। एक तो भारत में कोई तीन-चार हजार िषों से संतोष की, कं टेंटमेंट की जीिन िारणा को स्िीकार ककया है। संतुि रहना है, वजतना है उसमें संतोष कर िेना है। जो भी है उसमें ही तृवप्त मान िेनी है। अिर हजारों िषि तक ककसी दे श की प्रवतभा को, मवस्तष्क को संतोष की ही बात समझाई जाए, तो विकास के सब द्वार बंद हो जाते हैं। संतोष आममर्ाती है। जरूर एक संतोष है जो आममज्ञान से उपिब्ि होता है। उस संतोष का इस तथाकवथत संतोष से कोई संबंि नहीं है। एक संतोष है जो व्यवि स्ियं को जान कर या प्रभु के मंकदर में प्रिेश करके उपिब्ि करता है। िह संतोष बनाना नहीं पड़ता, समझना नहीं पड़ता, सोचना नहीं पड़ता, अपने पर थोपना नहीं पड़ता। िह परम उपिवब्ि से पैदा हुई छाया है। िेककन वजसे हम संतोष समझते हैं कक जीिन में जो कु छ है, दीनता है, दररद्रता है, रोि है, बीमारी है, उसमें ही संतुि रह जाना है, ऐसा संतोष आममर्ाती है, सुसाइिि है। जीिन के विकास के विए चावहए एक तीव्र असंतोष। जीिन की सब कदशाओं में विकास के विए असंतोष के अवतररि कोई मािि नहीं है। और जो दे श संतोष की बातों में अपने को भुिा िेिा, संतोष की अर्ीम हो जाएिा, उस दे श की यही वस्थवत हो सकती है जो हमारे दे श की हुई। नहीं; जीिन के विकास में एक कक्रएरटि विस्कं टेंट, एक सृजनाममक असंतोष की जरूरत है। और यह मत सोचें कक जीिन के विकास के विए जो सृजनाममक असंतोष है िह भीतर अशांवत बनता है। कभी भी नहीं। सच तो यह है कक वजतने िोि अपने को जबरदस्ती संतोष में ढांप िेते हैं, संतोष के िस्त्र ओढ़ िेते हैं िे भीतर वनरं तर जिते रहते हैं और असंतुि, परे शान और अशांत रहते हैं। थोपा हुआ संतोष कभी भी समय नहीं हो सकता। ऊपर से आरोवपत ककए िए संतोष के भीतर असंतोष की आि जिती ही रहती है। असंतोष चावहए बाहर, भीतर चावहए संतोष। हमने उिटी हाित पैदा कर िी है। संतोष थोप विया है ऊपर से और भीतर असंतोष है। इसे ठीक से समझ िेना जरूरी है। हमने ऊपर से तो संतोष के िस्त्र पहन विए हैं और भीतर? भीतर सब तरह का असंतोष, सब तरह की अशांवत, सब तरह की िासना पीवड़त करती है। चावहए उिटा। जीिन के समस्त बाह्य उपक्रम में चावहए असंतोष, चावहए विकास की उद्दाम तीव्रता और भीतर वनरं तर बाहर के असंतोष के बीच भी चावहए एक शांवत, चावहए एक मौन। यह हो सकता है। बैििाड़ी का चाक आपने चिते 120



दे खा होिा। बैििाड़ी का चाक चिता है और बीच में एक कीि वथर और वबना चिे हुए रहती है। उसी वथर कीि के ऊपर सारा चाक र्ूमता है। अिर कीि भी र्ूमने ििे तो कर्र चाक िहीं विर जाएिा। बैििाड़ी एक कदम भी आिे नहीं बढ़ेिी। बैििाड़ी का चाक र्ूम सकता है इसविए कक एक न र्ूमने िािी कीि के ऊपर खड़ा है। भीतर तो चावहए शांवत, पररपूणि शांवत, एक वथरता और जीिन के चक्र पर चावहए तीव्र िवत। तब तक कोई समाज, कोई दे श अपनी मनीषा को इस भांवत व्यिवस्थत नहीं करता कक भीतर हो परम शांवत और बाहर हो एक कदव्य असंतोष का चक्र, तब तक िह दे श विकवसत नहीं हो सकता है; तब तक िह दे श रोज-रोज मरता चिा जाएिा। िेककन हम आज तक इस पैरािॉक्सीकि, इस विरोिी कदखने िािी चीज को समझने में समथि नहीं हो पाए। हम यह नहीं समझ सके कक एक शांत व्यवि भी जीिन की िवत में जीिन को बदिने के विए आतुर हो सकता है। हम यह भी नहीं समझ पाए कक एक पररपूणि शांत व्यवि भी युद्ध के क्षेत्र पर तििार िेकर िड़ने को तैयार हो सकता है। हम कहेंिे जोशांत है िह िड़ने कै से जाएिा? मैंने सुना है, खिीर्ा उमर के संबंि में एक बात सुनी है। उमर एक दुश्मन से सात िषों से िड़ रहा था। युद्ध वनणाियक नहीं हो पाता था। हर िषि युद्ध दोहरता था िेककन कोई वनणिय नहीं होता था। सातिें िषि युद्ध के मैदान पर एक कदन उमर ने भािा र्ें का। दुश्मन का र्ोड़ा मर िया, दुश्मन नीचे विर पड़ा। िह उसकी छाती पर सिार हो िया, उसने भािा उठा कर उसकी छाती में भोंकने को था कक नीचे पड़े दुश्मन ने उमर के मुंह पर थूक कदया। उमर ने थूक पोंछ विया और उस दुश्मन को कहा कक अब ठीक है, अब कि कर्र से हम िड़ेंिे, आज बात खमम हो िई। उस दुश्मन के कहााः तुम पािि हो! सात िषों में यह मौका तुम्हें पहिी बार वमिा है कक तुम मेरी छाती पर हो और चाहो तो मुझे खमम कर सकते हो। तुम मुझे छोड़ क्यों रहे हो? उमर ने कहााः मैंने एक वनणिय ककया था कक ििू ंिा तभी तक जब तक शांत रहंिा। तुम्हारे थूकने के कारण मैं अशांत हो िया, इसविए अब आज िड़ाई बंद कर दे ता हं। इन सात िषों में मैं शांवत से िड़ता था, िेककन तुमने मेरे ऊपर थूक कदया और क्रोि आ िया मुझे, अब अशांवत में तुम्हारी हमया करूं तो िह ठीक नहीं होिा। सात िषों तक कोई शांवत से युद्ध में िड़ सकता है? िड़ सकता है! हम कृ ष्ण जैसे आदमी को जानते हैं, युद्ध के मैदान में खड़ा है, िेककन भीतर वजसकी शांवत में जरा भी र्कि नहीं है। िेककन हमने इस विरोिी कदखने िािी बात को आसान बना विया, दो रास्ते वनकाि विए। एक तो हमने कहा कक जो अशांत हैं िे दुवनया की कर्क्र करें , जोशांत हैं िे दुवनया से हट जाएं। इस तरह हमने दुवनया को दोहरा नुकसान पहुंचाया। अशांत आदमी, भीतर से अशांत आदमी जब जीिन के उपक्रम में ििता है, तो उपक्रम में विकास तोकदखाई पड़ता है िेककन मूिताः विकास नहीं होता और भी खतरनाक वस्थवतयां पैदा होती हैं। जब अशांत आदमी, भीतर से अशांत आदमी जीिन का विकास करता है तो जीिन में िह वजन चीजों को विकवसत करता है, िे विध्िंसाममक होती हैं, विस्ट्रवक्टि होती हैं, कभी सृजनाममक नहीं होती। पवश्चम ने िैसी भूि कर िी है। पवश्चम ििा है अशांवत और असंतोष में। भीतर है अशांवत, बाहर है असंतोष। पररणाम? पररणाम यह हुआ कक िे उस जिह पहुंच िए हैं जहां जािवतक आममर्ात हो सकता है। िे िहां पहुंच िए हैं जहां हम सारी मनुष्यता को, सारे जीिन को नि कर सकते हैं।



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जीिन का उनका सारा विकास ऐसा प्रतीत होता है कक जैसे परम मृमयु की तरर् िे जाने िािा विकास बन िया। एक उन्होंने भूि की है, हमने दूसरी भूि की है। हम भीतर भी शांत; बाहर भी शांत होने का इं तजाम कर विए। इस शांवत का एक मतिब हुआ कक यह पूरा मुल्क एक िंबा मरर्ट हो िया है, जहां एक मुदििी छाई हुई है, जहां न कोई खुशी है, जहां न कोई आनंद है, न कोई जीिन का नृमय है, न कोई जीिन का रस है, हम वसर्ि प्रतीक्षा कर रहे हैं कक कब भििान हमें पृथ्िी से उठा िे और आिािमन से छु टकारा हो जाए। नहीं; इन दोनों के बीच कोई सेतु बनाना जरूरी है। भीतर चावहए शांवत और बाहर चावहए असंतोष। और यह हो सकता है। इसमें कोई करठनाई नहीं है। भीतर की शांवत के सूत्र अिि हैं और बाहर के जीिन को सृजनाममक रूप से विकवसत करने के सूत्र अिि हैं। शांत होने का मतिब मर जाना नहीं है, शांत होने का मतिब पिायनिादी हो जाना नहीं है। शांत होने का मतिब है कक जो काम हम अशांवत से करते थे उसे शांवत से करना है। जो विकास हम अशांवत से करते थे उसे शांवत से करना है। जीिन को बदिने की जो चेिा हम अशांवत से करते थे उसे शांवत से करना है। और वनवश्चत ही शांवत के माध्यम से ककया िया विकास ज्यादा सुदृढ़, ज्यादा सच्चा, ज्यादा जीिन को ऊंचा िे जाने िािा होिा। िेककन हम एक संतोष की थोपे हुए संतोष की िारणा विए हुए बैठे हैं। मैं एक संन्यासी के पास था। संन्यासी के पास उनके दस-पच्चीस भि भी इकट्ठे थे। िे संन्यासी मुझे एक िीत सुनाने ििे, जो उन्होंने विखा था। िह िीत, उसके शब्द बहुत सुंदर थे, उसकी रचना सुंदर थी, िे बड़े भाि से िीत िाने ििे। उनके भिों के वसर वहिने ििे। उन्होंने िीत में कहा थााः ककसी सम्राट को संबोिन ककया था, कहा था कक सम्राट, तुम अपने राज-जसंहासन पर हो, रहो, मुझे तुम्हारे राज-जसंहासन की कोई िासना नहीं, कोई िािसा नहीं; मैं तो अपनी इस िुन में ही मजे में हं; मैं तुम्हारे राज-जसंहासन की कोई कर्कर भी नहीं करता, रहो तुम अपने स्िणि-जसंहासन पर, मैं तो अपनी िुन में भी आनंकदत हं। कर्र उन्होंने िीत िाकर मुझसे पूछा कक आपको िीत कै सा ििा? मैंने उनसे कहा कक मैं बहुत हैरान हं! अिर आपको स्िणि-जसंहासन से कोई भी मतिब नहीं है तो यह स्िणि-जसंहासन और यह सम्राट आपको कदखाई क्यों पड़ते हैं? मैंने तो कभी ककसी सम्राट को यह िीत िाते नहीं सुना है आज तक पूरी पृथ्िी पर, इवतहास में कोई उल्िेख नहीं कक ककसी सम्राट ने ककसी र्कीर को यह संबोिन ककया हो कक तू रह मजे में अपनी िुन में, मैं अपने स्िणि-जसंहासन पर ही मजे में हं, मुझे तेरी कोई कर्क्र नहीं। ऐसा ककसी सम्राट ने अब तक नहीं कहा। िेककन र्कीर को क्यों सम्राट और उसके राज-जसंहासन कदखाई पड़ते हैं? भीतर िासना जि रही है, भीतर आकांक्षा जि रही है, ऊपर से संतोष थोपा िया है। और यह जो िािी दी जा रही है स्िणि-जसंहासन को, यह उसी संतोष को थोपने की प्रकक्रया का वहस्सा है। हम वजस चीज से भयभीत होते हैं, वजसकी हमारे भीतर आकांक्षा होती है, उसकी हम जनंदा करते हैं और जनंदा से अपने को समझा िेना चाहते हैं कक िह पाने योग्य नहीं है। वजतने सािु-संन्यासी वस्त्रयों को छोड़ कर भाि कर जाते हैं, िे वनरं तर वस्त्रयों को िािी दे ते रहते हैं। नरक का द्वार है, बचना चावहए, स्त्री पाप का र्र है। और कु ि कारण इतना है कक स्त्री उन्हें भीतर से आकर्षित कर रही है। अन्यथा स्त्री को िािी दे ने की कोई जरूरत नहीं, कोई प्रयोजन नहीं। वजनके भीतर स्त्री का आकषिण है िह स्त्री को िािी दे कर अपने आकर् षण को रोकने और दबाने की चेिा कर रहे हैं। वजनके मन से िासना की समावप्त हो िई है, उन्हें तोस्त्री-पुरुष में भेद कदखाई पड़ना भी असंभि है। उन्हें ख्याि भी नहीं आ सकता--कौन स्त्री है, कौन पुरुष! िेककन भीतर तो भेद मौजूद है, आकांक्षा मौजूद है। उस 122



आकांक्षा से भाि कर िए हैं। आकांक्षा पीछे से िक्के दे रही है। ऊपर िह्मचयि है, भीतर िासना है। इस ऊपर के िह्मचयि का कोई भी मूल्य नहीं है। क्योंकक जो भीतर है िही समय है। ऊपर शांवत, संतोष है, भीतर असंतोष है। हम जो इस मुल्क में भौवतकिाद को इतनी िािी दे ते हैं उसका कारण यह मत समझ िेना कक हम बड़े आध्यावममक िोि हैं। हम से ज्यादा भौवतकिादी िोि पृथ्िी पर खोजने मुवश्कि हैं। िेककन हम भौवतकिाद को िािी दे ते हैं और बड़ी तृवप्त पाते हैं कक हम बड़े आध्यावममक हैं। भौवतकिाद को िािी दे ने से वसर्ि आपके भीतर वछपे हुए भौवतकिादी िासनाओं का पता चिता है और कु छ भी नहीं। मैं एक र्र में ठहरता था। उस र्र के ऊपर वस्िटजरिैंि के कु छ दो पररिार रहते थे। जब भी मैं उनके र्र में िया, उस र्र के िोिों ने मुझे कहा कक ये बड़े भौवतकिादी हैं, बड़े मैटीररयविस्ट हैं। वसिाय खाने-पीने के , नाच-िाने के इन्हें कोई काम ही नहीं। रात बारह-बारह बजे तक नाचते रहते हैं। एकदम वनरे भौवतकिादी हैं। इन्हें वसिाय सुख-सुवििा की ककसी चीज से कोई प्रयोजन नहीं। न आममा से कोई मतिब है, न परमाममा से कोई मतिब है। बस िन, िन, खाना-कमाना, मौज करना, बस यही इनका जीिन है। कर्र दुबारा में उनके र्र िया, तब िे वस्िस िोि जा चुके थे। िह र्र की िृवहणी मुझे कहने ििी, िे िोि चिे िए, बड़े अजीब िोि थे! िे अपनी बासन, बतिन मिने िािी नौकरानी को सारे स्टीि के बतिन दे िए, वबल्कु ि असिी स्टीि! िे अपना रे वियो पड़ोवसयों को भेंट कर िए! िे अपने कपड़े-ित्ते सब बांट िए मोहल्िे में! बड़े अजीब िोि थे! मैंने उनसे पूछा कक तुम्हें भी कु छ उन्होंने बांटा, कदया। िे कहने ििे कक नहीं। हमें तो िे यह सोच कर कक ये िोि पैसे िािे हैं, कहीं दुखी न हों, कु छ भी नहीं दे िए। िेककन उन्होंने जब यह कहा तब उनका मन बड़ा दुखी था कक िे कु छ भी नहीं दे िए। कर्र भी मैंने कहा, कक उनकी िड़की भीतर से एक रस्सी उठा िाई, एक रे शम की रस्सी। उसने कहा कक यह भर िे िोि छोड़ िए थे पीछे आंिन में बंिी, तो हमारी मां खोि िाई। बड़ी, बहुत बकढ़या रस्सी है यह, जहंदुस्तान में नहीं वमि सकती। भौवतकिादी, भौवतक संपन्नता से कोई भौवतकिादी नहीं होता। पदाथि को पकड़ िेने की कामना से, िासना से कोई भौवतकिादी होता है। मैं जयपुर में था एक वमत्र आए और कहने ििे कक एक बहुत बड़े मुवन ठहरे हुए हैं, आप उनसे वमिने चिेंिे। मैंने कहा, िे बहुत बड़े मुवन हैं तुमने ककस तराजू पर और कै से तोिा? उन्होंने कहा, इसमें क्या बड़ी बात है! खुद जयपुर महाराज उनके चरण छू ते हैं! तो मैंने कहा कक इसमें जयपुर महाराज बड़े हो िए कक मुवन बड़े हो िए, कौन बड़ा हुआ? अिर जयपुर महाराज उनके चरण न छु एं तो मुवन छोटे हो जाएंिे? जयपुर महाराज चरण छू ते हैं तो मुवन बड़े हो िए! क्यों? क्योंकक जयपुर महाराज बड़े हैं। यह िन की प्रवतष्ठा हुई या मयाि की प्रवतष्ठा हुई? यह प्रवतष्ठा ककसकी है? यह प्रवतष्ठा िन की प्रवतष्ठा है। हमारे मन में िन की िासना है, ऊपर से वनििनता का संतोषपूणि स्िीकार है। हमसे ज्यादा िन को पकड़ने िािे िोि कहां वमिेंिे! िेककन हम िावियां दे ते रहेंिे कक सारी दुवनया भौवतकिादी है और हम अध्याममिादी हैं। िह जो भौवतकिाद को हम िािी दे ते हैं िह भीतरी हमारी इच्छाओं कोदबाने का र्ि है। िह सूचना है। वजस कदन जहंदुस्तान आध्यावममक होिा उस कदन ककसी को भौवतकिादी कहने जैसी वनम्नतम शब्दों का उपयोि नहीं करे िा। हम वसिाय िावियों के और कु छ भी नहीं उपयोि कर रहे हैं। यह सब ऊपर से कदखाई पड़ने िािा संतोष झूठा है। इसने विकास को अिरुद्ध ककया, मनुष्य को विकवसत नहीं ककया। न तो इसने आममा की तरर् पहुंचाने में सहायता दी और न जीिन की सुवििाओं को जुटाने के विए यह मािि बन सका। इसने हमें एक कुं ठा में, एक भीतरी पीड़ा में, एक अंिकार में र्ेर कर खड़ा कर कदया है। 123



नहीं; िांिीिादी तो नहीं था िेककन ठीक िांिीिादी जैसी विचारिारा सदा से इस मुल्क के मन को पकड़े रही है। एक तो संतोष ने हमें नुकसान पहुंचाया और दूसरी विचारिारा हमने जो कमि-र्ि का वसद्धांत अपने मुल्क में तीन हजार िषि से पकड़ रखा है, िह हमारे प्राण िे रहा है। हमने यह मान रखा है कक एक आदमी िरीब इसविए है कक उसके वपछिे जन्मों के कमों का र्ि भोि रहा है। उसने बुरे कमि ककए हैं इसविए िह िरीब है। और एक आदमी इसविए अमीर है कक उसने अच्छे कर् म ककए हैं। इस व्याख्या ने हमारे मुल्क को विकास के पररितिन के समाज के ढांचे को बदिने की सारी संभािना समाप्त कर दी। हमने यह मान विया कक िरीब इसविए िरीब है कक उसने पाप ककए, अमीर इसविए अमीर है कक उसने पुण्य ककए। तब कर्र समाज की व्यिस्था को बदिने का कोई उपाय न रहा। क्योंकक िरीबी-अमीरी को हमने समाज की व्यिस्था से अिि करके व्यवि के कमों की अनंत व्यिस्था से जोड़ कदया। यह तरकीब बहुत कारिर सावबत हुई। इसविए जहंदुस्तान में दररद्रों की तरर् से कोई क्रांवत नहीं हो सकी। और आज भी नहीं हो पा रही है और कि भी संभािना कम कदखाई पड़ती है। जब तक कमि-र्ि की इस भ्ांत िारणा से हम बंिे हैं तब तक जहंदुस्तान की सामावजक ढांचे और रचना को बदिना मुवश्कि है। मैं यह नहीं कहता हं कक कमि-र्ि नहीं होते, न मैं यह कहता हं कक वपछिे जन्म नहीं होते। िेककन मैं यह कहना चाहता हं कक संपवत्त का बंटिारा ककन्हीं कमि-र्िों से संबंवित नहीं हैं। संपवत्त का बंटिारा सामावजक व्यिस्था का बंटिारा है। संपवत्त का विभाजन सामावजक ढांचे का विभाजन है। उसका कमि-र्िों से कोई संबंि नहीं। और यह भी मैं कहना चाहता हं कक कमि-र्ि एक-एक दो-दो जन्मों तक प्रतीक्षा नहीं करते हैं। अभी मैं आि में हाथ िािूंिा तो अििे जन्म में नहीं जिूंिा, अभी जि जाऊंिा। यह अििे जन्म तक प्रतीक्षा नहीं करे िी आि कक आप हाथ अभी िाविए और अििे जन्म में जविएिा। जीिन के वनयम, कॉ.जेविटी के वनयम, कायि-कारण के वनयम तमकाि र्ि िाने िािे हैं। अिर मैं क्रोि करूंिा तो क्रोि की आि में अभी जि जाऊंिा, अभी दुख भोि िूंिा। अिर मैं प्रेम करूंिा तो प्रेम के आनंद की िषाि अभी हो जाएिी, अभी मैं प्रेम के आनंद को भोि िूंिा। मैं जो भी कर रहा हं, तमक्षण, उसी क्षण, उसके साथ ही ििा हुआ र्ि है, अििे जन्म तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। िेककन यह अििे जन्म की प्रतीक्षा का वनयम क्यों खोजना पड़ा हमें? यह खोजना पड़ा िरीबी और अमीरी को समझाने के विए। क्योंकक हमारे पास कोई उपाय न था। उपाय यह था, एक आदमी िरीब कदखाई पड़ता है और साथ में यह भी कदखाई पड़ता है कक िह जो िरीब आदमी है, भिा है, अच्छा है, ईमानदार है, साथ में यह भी कदखाई पड़ता है कक िनी है, सब कु छ है उसके पास िेककन न ईमान है, न सच्चाई है। अब िार्मिक िुरु कै से समझाए? िह कहता था, अच्छे कमों का र्ि अच्छा वमिता है, बुरे कमों का र्ि बुरा वमिता है। अच्छे आदमी दुख में कदखाई पड़ते हैं, बुरे आदमी सुख में कदखाई पड़ते हैं। अब इसको कै से समझाए? इसको समझाने का एक ही रास्ता था, क्योंकक अिर अभी कमि-र्ि वमिता है तो बुरे आदमी दुख भोिने चावहए, अच्छे आदमी सुख भोिने चावहए। िह कदखाई नहीं पड़ता। बुरे आदमी सुख में और अच्छे आदमी दुख में कदखाई पड़ते हैं। अब कै से समझाएं इसे? एक ही रास्ता है, वपछिे जन्मों से समझाओ। इस आदमी ने वपछिे जन्म में बुरे कमि ककए होंिे, अभी अच्छे कर रहा है इसविए दुख भोि रहा है क्योंकक यह वपछिे जन्मों का कमि-र्ि है। अब यह अच्छे करे िा, अििे जन्म में अच्छे र्ि भोिेिा। अििे जन्मों का कोई रठकाना नहीं है, कोई पता नहीं है।



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यह आदमी बुरा है, आज िन है, महि है, यह वपछिे जन्मों के अच्छे कमों का र्ि है। अभी बुरे कर रहा है अििे जन्म में बुरे र्ि भोिेिा। वसिाय इसके हमारे पास कोई तरकीब न थी। िेककन यह तरकीब बहुत महंिी पड़ िई। मैं आपसे कहना चाहता हंःाः जन्म है, पुनजिन्म है, कमों का र्ि है, िेककन कमों का र्ि प्रवतक्षण उपिब्ि हो जाता है आिे के विए शेष नहीं रहता। आप अभी बुरा करें िे और आप पाएंिे कक वसर्ि उस बुराई के कारण सारे दुख झेि विया, सारी पीड़ाएं झेि िीं। आप अभी भिा करें िे और पाएंिे कक भिे के पीछे एक शांवत की, एक आनंद की िहर दौड़ िई, उसका र्ि उपिब्ि हो िया है। आप हमेशा अपने कमों को करके र्ि भोि कर उनके बाहर वनकि जाते हैं, अििे जन्मों तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। इस दूसरे वसद्धांत ने--दररद्रता और अमीरी को समझाने की व्यिस्था कर दी। और कर्र जब व्यिस्था वमि िई, व्याख्या वमि िई, कर्र जीिन को बदिने का कोई सिाि न रहा। हमने जीिन को स्िीकार कर विया। अपने-अपने कमि बदिने हैं जीिन और समाज को नहीं बदिना है। तीसरी बात, वजसने हमारे जीिन को और बुरी तरह से ग्रस विया, िह यह था कक हमने प्रमयेक व्यवि को व्यविित दृवि दी। सामावजक दृवि, एक किेवक्टि जीिन को सोचने की िारणा हमने विकवसत नहीं की। हमने कहा, एक-एक आदमी के अपने-अपने कमि-र्ि हैं, अपना-अपना जीिन है, अपनी यात्रा है। दूसरे से कोई संबंि नहीं, दूसरे से कु छ िेना-दे ना नहीं। समाज की िारणा कक सारा समाज सुख-दुख में सहभािी है कक सारा समाज जैसा है िैसा व्यवि को भोिना पड़ता है, समाज के साथ जीना और वनर्मित होना पड़ता है। िह िारणा हमने विकवसत नहीं की। जहंदुस्तान ने एक सेल्र्-सेंटिि, एक-एक व्यवि को आमम-कें कद्रत बना कदया। समाज-कें कद्रत, समाज से संबंवित िारणा हमने विकवसत नहीं की। स्िभािताः एक-एक व्यवि इतने बड़े समाज को बदिने में असमथि है, जब तक हम समाज को आमूि, सामूवहक रूप से बदिने का कोई उपाय न करें । इसी बात में एक-एक व्यवि को अपना-अपना ध्यान रखना है। एक और नई बात पैदा कर दी। िह बात यह है कक प्रमयेक व्यवि को अपने वपछिे जन्मों, आने िािे जन्मों का विचार करना है। यह जन्म, यह जीिन तो सराय में ठहरने जैसा है, विश्रामािय में थोड़ी दे र रुके हैं कर्र आिे बढ़ जाना है। हमने जीिन का सम्मान नहीं ककया है, हमने जीिन का बहुत अपमान ककया है। और ध्यान रहे, जो समाज जीिन का अपमान करे िा, िह समाज जीिन के रस और आनंद को उपिब्ि करने में समथि नहीं हो सकता है। हमने सदा यही कहा कक जीिन है असार, जीिन है व्यथि, जीिन है बेकार, जीिन तो ककसी तरह िुजार दे ना है समय और स्मरण करते रहना है परमाममा का कक कब मुझे इस जीिन से छु टकारा वमिे? जीिन को हमने िन्यता नहीं माना है। जीिन को हमने अनुग्रह नहीं माना। जीिन को पाकर हम भििान को िन्यिाद नहीं कदए। हमने क्रोि प्रकट ककया है, जीिन के विए हम पछताए हैं। यह कै सी अजीब दृवि! यह कै सी जीिन-विरोिी! यह कै सी िाइर् वनिेरटि! यह जीिन के प्रवतकार की, विरोि की, वनषेि की कै सी दृवि है! और वजसका हम वनषेि करें िे उससे हम कै से आनंद को, समृवद्ध को, िैभि को, ऐश्वयि को, श्री को उपिब्ि हो सकते हैं? कै से उपिब्ि हो सकते हैं? मैं एक अदभुत सी हाित दे खता हं कक हम वनरं तर कं िेमनेशन में, जनंदा में ही ििे रहेंिे। और ध्यान रहे, हम जीिन के प्रवत जो दृवि िेते हैं, िीरे -िीरे जीिन िैसा ही कदखाई पड़ने ििता है। जीिन हमारी दृवि का प्रवतर्िन बन जाता है। हम अिर जीिन को बुरा सोचते हैं, जनंदनीय, तो िीरे -िीरे जीिन जनंदनीय हो जाता है, बुरा हो जाता है। हम कै सा सोचते हैं जीिन के प्रवत इस पर ही वनभिर करता है कक 125



जीिन कै सा हो जाएिा। हमारी िारणा जीिन को वनर्मित करती है। और अिर हम पांच हजार िषों से वनरं तर जीिन से शत्रु का व्यिहार ककए हैं तो जीिन भी अिर हमारा वमत्र न रह िया हो तो इसमें आश्चयि क्या है? हम प्रमयेक चीज की जनंदा के अवतररि कु छ भी नहीं कर रहे हैं। मैं एक िांि में था। मेरे एक वमत्र, पूर्णिमा की रात थी और मुझे पहावड़यों में एक जिप्रपात कदखाने िे िए। अदभुत जिप्रपात था। हम उस जिप्रपात के पास पहुंचे, रास्ते पर िाड़ी रोकी, कोई एक मीि पैदि जाना था। पहावड़यों में प्रपात की िूंज सुनाई पड़ने ििी। उसका वनमंत्रण, उसका बुिािा। मैं और मेरे वमत्र उतर कर चिने ििे, तो मुझे ख्याि आया कक ड्राइिर िाड़ी में भीतर रह िया। मैंने अपने वमत्र को कहा कक अपने ड्राइिर को भी बुिा िें, िह क्यों इस अंिेरी िाड़ी में बैठा रहे। इतना चांद बरसता है, इतना प्रपात वनकट है, इतने जोर से उसकी आिाज आती है, पहावड़यां बुिाती हैं। उसे बुिा िें। िे हंसने ििे और कहा कक आप ही बुिा िें। मैं उनके हंसने का मतिब नहीं समझा। मतिब बाद में समझ में आया। मैं उस िरइिर के पास िया और मैंने कहा कक दोस्त तुम भी बाहर आ जाओ, चिो हमारे साथ, यहां अंिेरे में बैठे हुए क्या करोिे? तो उसने कहााः क्या रखा है िहां उस जिप्रपात में! कु छ पहाड़, कु छ पमथर और ऊपर से पानी विर रहा है! मैं तो हैरान हं कक िोि इतनी अंिेरी रात में, उजिी रात में, कदन में, दोपहर में, िूप में कक क्या दे खने िहां आते हैं? िहां कु छ भी नहीं है! कु छ पमथर पड़े हैं और पानी विर रहा है। पमथरों के ऊपर पानी विर रहा है और िोि उसे दे खने जाते हैं। आप ही जाइए, मुझे जाने की जरूरत नहीं है। मैं बहुत हैरान हुआ! मैंने अपने वमत्र से कहा कक तुम्हारे िा्रइिर ने बड़ा िित िंिा चुन विया, अिर िह िमििुरु हो जाता तो बड़ा सर्ि हो सकता था। उसे जीिन को जनंदा करने का सूत्र मािूम है। जिप्रपात जैसी अभूतपूिि र्टना को उसने दो छोटी सी चीजों में तोड़ कदया--पमथर और पानी! और क्या रखा है िहां! अब उसकी बात को आप िित भी नहीं कह सकते हैं। वबल्कु ि ही िैज्ञावनक बात मािूम पड़ती है कक पमथर और पानी और है क्या िहां! िेककन यह जिप्रपात पमथर और पानी ही नहीं है। जिप्रपात पमथर और पानी से कु छ बहुत बड़ी बात है। िेककन िह उन्हीं को कदखाई पड़ सकता है, जो पमथर और पानी के भीतर और िहरे और पार दे खने में समथि हों। ककसी को मैं प्रेम से ििे से ििा िूं, तो कोई आकर मुझसे कह सकता है कक क्या रखा है ििे से ििाने में! हवड्डयों से हवड्डयां वमि जाती हैं और क्या होता है! िह ठीक कहता है। अिर हम प्रयोिशािा में जाएं और जांच-पड़ताि करें तो हवड्डयों से हवड्डयां ही ििे ििने से वमिेंिी, कु छ और वमिता हुआ कदखाई नहीं पड़ेिा। िेककन वजन्होंने कभी भी ककसी को हृदय से ििाया है प्रेम से, िे जानते हैं कक हवड्डयों के पीछे कु छ और भी है जो वमि जाता है। िेककन उसे प्रयोिशािा में जांचने का कोई उपाय नहीं। िमििुरु कहता हैाः क्या है जीिन में? जन्म, जरा, मृमयु! क्या है जीिन में? रोि, शोक, दुख, बीमाररयां! क्या है जीिन में? शरीर, शरीर में रखा क्या है? कु छ हड्डी, मांस-मज्जा। जोड़ है। िैज्ञावनक कहते हैं कक आदमी के शरीर को अिर हम तोड़ें-र्ोड़ें तो मुवश्कि से पांच-छह रुपये का सामान उसमें से वनकिता है। आप ककसी को प्रेम करते हैं। बेकार प्रेम करते हैं। पांच-छह रुपये खीसे में रख िें, उन्हीं को प्रेम करते रहें। क्योंकक आदमी या ककसी स्त्री के शरीर में पांच-छह रुपये से ज्यादा का सामान नहीं है। कु छ थोड़ा अल्युवमवनयम 126



है, कु छ िोहा है, कु छ र्ास्र्ोरस है, कु छ हवड्डयां हैं, यह सब वमिा-जुिा कर िे कहते हैं पांच-छह रुपये का सामान है। पांच-छह रुपये के सामान के विए िोि जान ििा दे ते हैं दांि पर, जीिन िंिा दे ते हैं! पािि हैं वबल्कु ि! ििती में पड़े हैं िे! जीिन की जनंदा के सूत्र हमने पकड़ रखे हैं और िे सूत्र क्या हैं? िे सूत्र हैंःाः विश्लेषण। जीिन की बड़ी इकाई को छोटे-छोटे टु कड़ों में तोड़ दो और जनंदा कर दो। शायद आपने माकि ट्िेन का नाम सुना हो। माकि ट्िेन अमरीका का एक अदभुत हंसोड़ विचारक था। एक वमत्र था माकि ट्िेन का िह वमत्र एक बहुत बड़ा उपदे शक था। सारी अमेररका में उसकी ख्यावत थी। एक कदन उसने माकि ट्िेन को कहा कक कभी मेरे व्याख्यान सुनने जरूर आओ। हजारों-िाखों िोि सुनने आते हैं। तुम कभी नहीं आए। माकि ट्िेन ने कहााः क्या रखा है तुम्हारे व्याख्यान में, कु छ शब्दों के वसिाय, ओंठों को वहिाने और ििे से आिाज करने के वसिाय िहां होिा क्या? उस वमत्र ने कहााः आश्चयि! तुम व्याख्यान का इतना ही अथि िेते हो? कर्र भी तुम आज आओ मुझे सुनोिे तोशायद तुम्हारी िारणा बदि जाए। नहीं माना तो माकि ट्िेन सुनने िया। हजारों िोि सुनने आए थे। माकि ट्िेन सामने ही बैठ िया। उसके वमत्र ने जो कु छ भी उसके जीिन में श्रेष्ठतम िारणाएं रही होंिी, जो भी उसके मन में काव्य रहा होिा, जो भी उसके जीिन में सौंदयि के अनुभि रहे होंिे, सब उं िेि कदए उस कदन। िेककन बार-बार उसने दे खा माकि ट्िेन की तरर्, िे हजारों िोि मंत्रमुग्ि होकर सुन रहे थे, िेककन माकि ट्िेन ऐसे बैठा हुआ था कक जैसे कोई वशक्षक परीक्षाथी के सामने बैठा रहता है। िह ऐसे दे ख रहा था जैसे कोई इं स्पेक्टर ककसी चोर की खानातिाशी िे रहा हो। माकि ट्िेन, एक क्षण को भी उसके चेहरे पर ऐसा भाि नहीं आया कक कु छ बात कही िई है। वमत्र तो र्बड़ा िया। उतरा, िौटा, िाड़ी में बैठा तो वहम्मत न पड़ी पूछने की। आवखर में उसने पूछा र्र पहुंच कर, आपको कै सा ििा? माकि ट्िेन ने कहााः ििने का क्या था एक र्ंटा मेरा खराब ककया। तुम वसिाय शब्दों के कु छ भी नहीं बोिते थे! शब्द ही शब्द! शब्दों में क्या रखा है! और भी मैं तुम्हें बता दूं कक तुमने जो भी बोिा, रात ही मैं एक ककताब पढ़ रहा था उसमें एक-एक शब्द विखा हुआ है जो भी तुमने बोिा है। उस ककताब में सब तुम्हारे शब्द विखे हुए हैं। एक भी शब्द तुमने अपना नहीं बोिा, कोई विचार नया नहीं था। उस वमत्र ने कहााः हद करते हो! यह तो हो सकता है कक मैंने जो कहा उसका कोई विचार ककसी ककताब में विखा हो, िेककन मैंने जो बोिा एक-एक शब्द विखा हो! वबल्कु ि झूठ बोिते हो! माकि ट्िेन ने कहााः यह हाथ रहा है, सौ-सौ रुपये की, सौ-सौ िािर की शति िि जाए! शति िि िई! वमत्र ने सोचा कक माकि ट्िेन हार ही जाएिा। क्योंकक ऐसी ककताब कहां खोजी जा सकती है वजसमें मेरे सारे शब्द हों। िेककन दूसरे कदन माकि ट्िेन जीत िया और वमत्र को सौ िािर उसे दे ने पड़े। उसने सुबह ही एक विक्शनरी, एक शब्दकोश भेज कदया कक इसमें तुम्हारे सब शब्द विखे हुए हैं। एक-एक शब्द तुम जो बोिे हुए हो इसमें विखा हुआ है। तुम कोई मौविक और नई बात नहीं बोिे हो। एक काव्य, एक समय, एक कही िई आनंद की बात, शब्दकोश के शब्दों में छोड़ी जा सकती है, और सब व्यथि हो िई, बेमानी हो िई। जीिन की जनंदा हमने इस भांवत की है कक जीिन में कु छ भी नहीं है। जो भी है उसे तोड़-तोड़ कर बताया और ििा कक जीिन में कु छ भी नहीं है। जहंदुस्तान को जहंदुस्तान की प्रवतभा को जीिन को प्रेम करना सीखना पड़ेिा; तो ही हम जीिन की संपदा, जीिन के विकास को उपिब्ि हो सकते हैं। जीिन की जनंदा से कभी नहीं; जीिन के विरोि से कभी 127



नहीं; जीिन के दुश्मन और शत्रु बन कर कभी नहीं; जीिन के प्रेमी बन कर, जीिन में रस िेकर, जीिन में आनंकदत होकर, जीिन के विए परमाममा को िन्यिाद दे कर ही हम जीिन को विकवसत कर सकते हैं। अन्यथा हम जीिन को विकवसत नहीं कर सकते। िांिीिाद तो नहीं था िेककन इन तीन विचारिाराओं ने इस दे श के प्राणों को संर्ातक चोट पहुंचाई। और आज भी हमारा िमििुरु, हमारा विचारक, हमारा नेता उन्हीं बातों को ककए चिा जा रहा है। वबना जाने, वबना सोचे। वजनसे हमारे प्राण जड़ हो िए हैं, कुं रठत हो िए हैं, अिरुद्ध हो िए हैं। जीिन की िारा को तोड़ने के विए िापस जीिन की िारा कर्र उद्याम िेि से बह सके इस दे श में। तो हम एक जीिन को प्रेम की कोई कर्िासर्ी, जीिन को प्रेम करने िािा कोई दशिन, कोई िाइर् अर्रमेरटि कर्िासर्ी, कोई जीिन को वसद्ध करने िािी, जीिन को स्िीकार करने िािी दृवि अंिीकार करनी जरूरी है। अन्यथा हम विकवसत नहीं हो सकते हैं। यह सिाि कु छ वमत्रों ने पूछा कक क्या वसर्ि टेक्नािॉजी के विकास से सब हो जाएिा? िे ध्यान रखें कक टेक्नािॉजी के वसर्ि विकास से कु छ न हो जाएिा। टेक्नािॉजी भी तभी विकवसत होिी जब भीतर जीिन को वििेय के रूप में हम स्िीकार करें िे। टेक्नािॉजी या विज्ञान, िे सब जीिन को विस्तार करने िािी बातें हैं। जो िोि जीिन का वनषेि करते हैं िे उन बातों को पैदा कै से कर सकते हैं। यह थोड़ा सोचने जैसा है कक हमारे मुल्क में विचारकों की कमी नहीं रही और यह भी जानने जैसी बात है कक हमने वजतने बड़े विचारक कदए हैं, शायद हमने वजतने बड़े विचारक पैदा ककए हैं, कोई एक अके िा दे श उतने बड़े विचार के िनी िोिों का दािा नहीं कर सकता है। पतंजवि से िेकर अरजिंद तक हमारी एक िंबी परं परा है। इतने अदभुत िोि हमने पैदा ककए हैं, वजनकी बौवद्धक क्षमता की कोई टक्कर नहीं है। नािाजुिन, या वबजनाक, या िमिकीर्ति, या शंकराचायि इनका कोई मुकाबिा है दुवनया में? िेककन इतने बड़े विचारक पैदा करने के बाद--बुद्ध, िौतम और कोणाकि जैसे अदभुत मनीषी पैदा करने के बाद भी हम िैज्ञावनक पैदा नहीं कर पाए। एक आइं स्टीन पैदा नहीं कर पाए। एक न्यूटन पैदा नहीं कर पाए। यह आश्चयि की बात है! इतने बड़े विचारक वजस दे श में पैदा हुए हैं िहां कोई भी विचार का िनी िैज्ञावनक क्यों नहीं हो पाया? उसका कारण है, जीिन का विरोि है हमारा। विज्ञान जीिन के प्रेम से पैदा होता है। विज्ञान जीिन के विरोि से पैदा नहीं होता। जीिन के विरोि हमारे व्यविमि में र्र कर िया, खून में वमि िया, इसविए हमने विचारक पैदा ककए मोक्ष की तरर् िे जाने िािे। हमने िे विचारक पैदा नहीं ककए जो जीिन की तरर् िे जाते हैं। हमारी सारी विचार की शवि--मोक्ष, िह्म, परमाममा, उसकी खोज में िि िई। हमारे जीिन की सारी शवि जीिन को समृद्ध करने की कदशा से वबल्कु ि मुड़ िई। िह िारा कहीं और ही चिी िई। इस िारा को िापस िौटाना है। इसका यह अथि नहीं है कक हम जीिन की िारा में सवम्मवित, संयुि हो जाएं, तो हम परमाममा और प्रभु को सोचना बंद कर दें िे। मेरी अपनी समझ यह है कक जो जीिन को भी जीने में समथि नहीं हैं िे परमाममा को पाने में कै से समथि हो सकते हैं? जीिन को जीने में जो समथि हो जाते हैं उनको ही जीिन की िहराइयों में पहिी बार परमाममा के िास्तविक हस्ताक्षर कदखाई पड़ते हैं। जीिन के अनुभि की िहराइयों में ही प्रभु का मंकदर है। प्रभु जीिन के विरोि में पीठ ककए हुए नहीं खड़ा है। 128



अिर प्रभु जीिन के विरोि में होता तो इस जीिन को कभी का नि कर दे ना चावहए था। इस जीिन को रचे जाने की, सृजन ककए जाने की जरूरत क्या है? िेककन हमारे महाममा परमाममा से भी ज्यादा बुवद्धमान होने का सबूत दे ना चाहते हैं। िे कहते हैं कक परमाममा भूि में है जो जीिन को सृजन कर रहा है। िे कहते हैं, असिी समझदार तो िे हैं जो जीिन को छोड़ कर भाि रहे हैं। जीिन को छोड़ कर नहीं भािना है, जीिन को जीना है उसकी पररपूणिता में। और उसकी पररपूणिता के रस से ही जो अनुभि उपिब्ि होिा, िही अनुभि प्रभु की ओर िे जाने िािा अनुभि बनता है। पीठ कदखा कर जीिन की तरर्, सूयि की तरर् पीठ करके कोई भी प्रकाश को उपिब्ि नहीं हो सकता। इस बात की तीव्रतम र्ोषणा हम कर सकें मुल्क के प्राणों में, तो मुल्क में विज्ञान पैदा होिा। क्योंकक विज्ञान ककसी अंतदृिवि का पररणाम है। तो टेक्नािॉजी पैदा होिी। क्योंकक टेक्नािॉजी कोई ऊपर से नहीं थोपी जा सकती। इसविए तो हम पवश्चम से जाकर सीख कर आ जाते हैं। हमारा युिक जाता है, िह टेक्नीवशयन होकर आ जाता है। हमारा युिक जाता है, िह विज्ञान का एक नाटक होकर आ जाता है। िेककन विज्ञान बुवद्ध, साइं रटकर्क आउट िुक पैदा नहीं होता। साइं रटकर्क आउट िुक जरा भी पैदा नहीं होता। िह यूरोप से िौट आएिा, आक्सर्ोिि और क्रेमररज से होकर िौट आएिा, और उसकी टोपी के नीचे दे खो तो चोटी में िांठ पड़ी वमि जाएिी। एक संन्यासी की ककताब मैं पढ़ रहा था। िह िैज्ञावनक, विज्ञान पढ़े हुए संन्यासी ने, और उन्होंने उस ककताब में यह वसद्ध करने की कोवशश की कक जहंदुस्तान में जो कु छ भी चिता है, सब िैज्ञावनक है। चोटी भी िैज्ञावनक है। मैं तो बहुत हैरान हुआ कक चोटी कै से िैज्ञावनक है? ककताब पढ़ी तो दं ि रह िया कक इस बीसिीं सदी में भी कोई ये बातें विख सकता है। विज्ञान का स्तानक है यह आदमी। विखा है कक चोटी िैज्ञावनक है और उदाहरण कदया है कक आपने दे खा होिा कक बड़ी-बड़ी वबजल्िंिों पर िोहे की िकड़ी ििाते हैं ताकक वबजिी का असर न पड़े। जहंदुओं ने बहुत पहिे यह खोज कर िी थी इसविए चोटी को बांि कर खड़ा रखते थे। वजससे वबजिी का कोई असर आदमी के ऊपर न पड़े। चोटी िैज्ञावनक है! खड़ाऊं िैज्ञावनक है! क्योंकक हमने बहुत पहिे हमारे ऋवष-महर्षिओं ने खोज कर िी थी कक अंिूठे में एक नस होती है िह अिर दबी रहे तो आदमी िह्मचयि को उपिब्ि हो जाता है। सारे शरीर-शास्त्र की खोज-बीन भी हो चुकी है, अंिूठे में ऐसी कोई नस नहीं है वजसके दबे रहने से आदमी िह्मचर् य को उपिब्ि हो जाए। अिर ऐसी कोई नस वमि जाए तो संतवत-वनरोि ििैरह की कोई जरूरत न रहे। सबको खड़ाऊं पहना दी जाए और काम हि हो जाए। और खड़ाऊं में भी खतरा है, कभी खड़ाऊं उतारोिे न, कम से कम रात सोते िि तो खड़ाऊं उतारनी पड़ेिी। तो हम नस का कोई आपरे शन नहीं कर सकते हैं, नस को स्थायी रूप से बांि सकते हैं। िेककन हमारी बुवद्ध िैज्ञावनक नहीं हो पाती, हमारे जीिन को दे खने का ढंि िैज्ञावनक नहीं हो पाता। उसका कारण है, हजारों साि से हमें श्रद्धा वसखाई िई है, वबिीर्। जहां-जहां श्रद्धा का प्रभाि है िहां-िहां विज्ञान पैदा नहीं होता। विज्ञान पैदा होता है संदेह से, िाउट से। वबिीर् से नहीं। विज्ञान का जन्म होता है संदेह से। जब हम अतीत पर संदेह करते हैं तो हम विकवसत होते हैं। जो िोि अतीत पर श्रद्धा ककए चिे जाते हैं, िे विकवसत कभी भी नहीं होते। अिर इस दे श में टेक्नािॉजी और विज्ञान को पैदा करना है और उसके वबना हमारा कोई भविष्य नहीं हो सकता। तो ध्यान रहे, हमारे जचंतन की सारी प्रकक्रया के आिार बदिने होंिे। श्रद्धा की जिह संदेह को मूल्य 129



दे ना होिा। एक-एक विद्याथी को बचपन से ही संदेह की किा वसखाई जानी चावहए। आटि ऑर् िाउट। कै से संदेह करें हम? कै से संदेह करते चिे जाएं और तब तक न मानें जब तक कक हम उस वनाःसंकदग्ि रूप से संदेह करने की आिे कोई संभािना न रह जाए। और तब भी इतना ही माने कक अभी वजतना हम संदेह कर सकते हैं उसमें यह समय मािूम पड़ता है। हो सकता है कि हम और संदेह कर सकें और यह समय न रह जाए। तब विज्ञान विकवसत होता है, तब िैज्ञावनक दृवि विकवसत होती है। विज्ञान का जन्म होता है संदेह से। अविज्ञान का जन्म होता है विश्वास से, श्रद्धा से। हम श्रद्धािु िोि हैं, हमारा िंिा विश्वास करने का रहा, हमने संदेह नहीं ककया, इसविए संदेह नहीं ककया तो जीिन विकवसत नहीं हुआ। संदेह होिा तो जीिन विकवसत होिा। हर बाप को यह कामना करनी चावहए कक उसका बेटा उस पर संदेह करे । हर िुरु को यह कामना करनी चावहए, उसका विद्याथी उस पर संदेह करे । क्योंकक आने िािी पीढ़ी वजतना संदेह करे िी उतनी ही वपछिी पीढ़ी से आिे जाएिी और अिर विश्वास करे िी तो वपछिी पीढ़ी के साथ ही बंिी रह जाएिी, आिे नहीं जा सकती। ये सारी बातें थीं वजन्होंने इस मुल्क के प्राणों को जकड़ रखा है। एक इनवप्रजनमेंट में, एक कारािृह में बांि रखा है। एक-एक जिह छोड़ दे ने की जरूरत है तब इस दे श की वचत्तिारा र्ै िेिी। िेककन हमें िर ििता है, हमें िर यह ििता है कक अिर विश्वास उठ िया तो क्या होिा? हमें िर ििता है अिर पुरानी पीकढ़यों पर नई पीकढ़यों ने संदेह ककया तो क्या होिा? हमें िर ििता है कक अिर सारा पुराना-पुराना छोड़ कर िोि आिे बढ़ िए तो क्या होिा? कु छ भी नहीं होिा। वजतनी दे र तक आप पकड़ते हैं उतनी दे र तक परे शानी होिी। वजस कदन आप पररपूणि रूप से नई पीकढ़यों को मुि करने के विए राजी हो जाएंिे, बवल्क उनकी मुवि में सहयोिी हो जाएंिे, उसी कदन आप पाएंिे कक नई पीकढ़यां आपके प्रवत अमयंत आदर से भर िई हैं। यह जो आप सारी दुवनया में और इस मुल्क में, ककसी विद्याथी ने यह पूछा है कक हमारे और पुरानी पीढ़ी के बीच र्ासिा बढ़ता जा रहा है। कोई उपाय नहीं कदखाई पड़ता। हम क्रोि में हैं, हम चीजों को तोड़ रहे हैं, हम क्या करें ? ये बच्चे तब तक तोड़े चिे जाएंिे जब तक इनके भीतर की जो प्रवतभा है उसको हम विकवसत होने के पररपूणि स्ितंत्र मािि नहीं खोि दे ते। जब तक पुरानी पीकढ़यां इनको जकड़ने की कोवशश करें िी, तब तक ये क्रोि में चीजों को तोड़ेंिे। चीजों को नुकसान पहुंचाएंिे। वजस कदन पुरानी पीकढ़यां इन्हें मुि करने के विए पूरी तरह राजी हो जाएंिी, उस कदन ये उनके अनुित हो जाएंिी। उस कदन एक र्े थ, एक अनुशासन, एक विवसप्िीन पैदा होिी। जो अनुशासन जबरदस्ती नहीं िाया जाता बवल्क वििेक से उमपन्न होता है। यह इस दे श की प्रवतभा को मुि करने के विए पुरानी पीढ़ी को बड़ी सोच की, बड़ी समझ की जरूरत है। नहीं; मत बांिे इन्हें पुराने विश्वास से। इनसे कहें कक जिाओ वििेक को, इनसे कहें कक जिाओ विचार को, इनसे कहें कक जिाओ संदेह को। तुम्हारे विए एक बहुत नये दे श, तुम्हारे विए बहुत नये िोि, तुम्हारे विए बहुत नया भविष्य जीतना है। अतीत हो चुका, अतीत से बंिे मत रह जाओ। अतीत को तुम्हारे वचत्त पर बोझ मत बनने दो। िह तुम्हारा बििन न बने। तुम उसके ऊपर खड़े हो जाओ अतीत के । िह तुम्हारे पैर की वशिा बने, तुम्हारे वसर का बोझ नहीं। तुम खड़े हो जाओ अतीत के कं िे पर और दे खो आिे भविष्य में जहां नये सूरज उिेंिे, जहां नई प्रभात होिी, जहां नया समाज होिा, जहां नया ज्ञान होिा, जहां नया जीिन होिा। िहां तुम दे खो, उसकी पुकार सुनो भविष्य की, छोड़ो अतीत को, आिे जाओ। जीिन की िारा वनरं तर आिे जाती है। िंिा वनकिती है िंिोत्री से कर्र पीछे तो नहीं िौटती, कर्र पीछे िौट कर भी तो नहीं दे खती; कर्र भािती है, भािती है उस अज्ञात सािर की तरर् वजसका उसे कोई भी पता 130



नहीं, कहां होिा? अिर िह िर जाए और सोचे कक कहां जाती हं अनजान रास्तों पर, पहाड़ होंिे, खाइयां होंिी, खंदक होंिे, जंिि होंिे, न मािूम कै सा क्या होिा? कहां जाऊं? यहीं िंिोत्री में वसकु ड़ कर रह जाऊं, पीछे िौट कर दे खती रहं, पकड़े रहं िंिोत्री को ही। तो कर्र िंिा सािर तक नहीं पहुंचेिी। ऐसी भयभीत िंिा सािर तक नहीं पहुंच सकती। नहीं, उसे छोड़ दे ना पड़ता है िंिोत्री को। बह जाती है आिे, पीछे को छोड़ती चिी जाती है अनजान-अपररवचत रास्तों पर। न कोई पुविस का आदमी वमिता है रास्ते में वजससे पूछ िे कक सािर कहां है, न कोई िमििुरु वमिते हैं वजनसे पता ििा िे कक सािर कहां है। नहीं; अतीत तो ज्ञात है भविष्य सदा अज्ञात है। भािती जाती है, भािती जाती है। िेककन एक कदन सािर पर पहुंच जाती है। जीिन की सारी िारा भविष्य की तरर् है। एक बच्चा मां के पेट से पैदा हुआ। रुक नहीं जाता मां के िर् भ को पकड़ कर, कहे कक नहीं जाता कहां भेजती है, कहां जाऊं, अनजान रास्ते हैं, अपररवचत दुवनया है, क्या होिा, क्या नहीं होिा? िभि बहुत सुरवक्षत है, वसक्योररटी है, कं र्टेबि है। उससे ज्यादा सुवििापूणि जिह दुवनया में कर्र वमिने िािी नहीं है। ककतने भी अच्छे कोच बनाओ, ककतने ही अच्छे कमरे बनाओ, मां के िभि से ज्यादा सुवििापूणि और आनंददायी जिह वमिने िािी कर्र नहीं है। कहां जाऊं? न भोजन की कर्कर है, न कोई जचंता है, न कोई नौकरी है, न कोई बेकारी है। आनंद में हं, चौबीस र्ंटे आनंद में हं। कहां जाऊं? बच्चा अिर इनकार कर दे और मां के िभि में रह जाए तो क्या होिा? नहीं; िेककन जाना पड़ता है, जीिन की िारा आिे की तरर् है। मां को उसे छोड़ दे ना पड़ता है, मां बहुत प्यारी है। छोड़ने का मतिब यह नहीं कक मां के प्रवत प्रेम कम हो िया। िेककन जीिन का सूत्र यह है कक मां को बच्चे को छोड़ दे ना पड़ेिा। िह अिि होिा मां से, बढ़ेिा। कु छ कदन कर्र भी मां से वचपटा रहेिा, असहाय है, कर्र जिान हो जाएिा, कर्र अपनी दुवनया के रास्ते पर चिा जाएिा। शायद मां उसे भूि भी जाएिी, कोई और स्त्री उसके प्रेम को पकड़ िेिी, ककसी और स्त्री के पीछे िह पािि हो जाएिा। शायद मां की स्मृवत भी खो जाएिी। जीिन आिे जा रहा है, आिे जा रहा है, आिे जा रहा है। आिे बढ़ता चिा जा रहा है। इसमें पीछे रुकने का उपाय नहीं। जीिन की पूरी चेतना वनरं तर आिे जा रही है। एक बीज है; टू ट जाता है, वमट जाता है, कर्र एक अंकुर की यात्रा शुरू होती है। तो यह हम ध्यान में रखें कक अतीत के साथ जकड़ जाना जीिन के विकास में बािा है और हमारा मुल्क अतीत के साथ बहुत बुरी तरह जकड़ा हुआ है। उन वसद्धांतों के नाम कु छ रहे हों, उन िादों के नाम कु छ रहे हों, िेककन हमारा दे श, हमारी प्रवतभा अतीत से जकड़ी हुई प्रवतभा है। इसकी अतीत से मुवि चावहए। अतीत से मुि हो जाए वबना इसको भविष्य में िवत नहीं वमि सकती। एक छोटी सी बात और मैं अपनी बात पूरी कर दूंिा। कु छ वमत्रों ने यह पूछा है कक आपकी टेक्नािॉजी और साइं स के विकास की बातें हमें भौवतकिादी न बना दें िी। तुमने कभी यह नहीं पूछा कक तुम्हारा शरीर तुम्हें भौवतकिादी नहीं बना दे ता। तो हमया कर िो अपनी, िदि न काट दो क्योंकक शरीर भौवतकिाद है। तुमने कभी नहीं सोचा कक खाना खाने से भौवतकिादी हो जाओिे? क्योंकक भोजन, भोजन भूख है, पदाथि है। तुमने कभी नहीं सोचा यह कक जीिन भौवतकता और अध्यामम का जोड़ है? जीिन अके िी आममा नहीं है और जीिन अके िा शरीर भी नहीं है, जीिन दोनों का जोड़ है। शांवत विकवसत होनी चावहए, ध्यान विकवसत होना चावहए, मेविटेशन विकवसत होना चावहए। िह टेक्नािॉजी है अंतस में जाने की। िह भी टेक्नािॉजी है। ध्यान है, योि है, समावि है, िमि है, प्राथिना है, िह भी टेक्नािॉजी है। िह टेक्नािॉजी है आममा में जाने की। विज्ञान है, तकि है, िह टेक्नािॉजी है पदाथि में जाने की। और जीिन, जीिन दोनों का जोड़ है। 131



मैंने सुना है कक रोम में एक सम्राट बीमार पड़ा था। िह इतना बीमार था कक मरने के करीब था। वचककमसकों ने कह कदया कक ठीक नहीं हो सके िा। कर्र अचानक एक खबर आई कक एक र्कीर आया है िांि में, कहते हैं िह तो मुदों को वजिा दे ता है, उसे िे आओ। उस र्कीर को िाया िया, उस र्कीर ने कहा कक कौन कहता है कक सम्राट बीमार है? जरा सी बीमारी है ठीक हो जाएिी। एक छोटा सा इं तजाम कर िो। जाओ निर में ककसी समृद्ध और सुखी आदमी के िस्त्र िे आओ। िे िस्त्र इसे पहना दो, यह ठीक हो जाएिा। िजीर भािे। उन्होंने कहााः यह तो बड़ा सरि उपाय है। िे िए निर में जो सबसे बड़ा िनपवत था उसके पास और कहा कक तुम अपने कपड़े दे दो। सम्राट मरणशय्या पर है और एक र्कीर ने कहा है अिर सुखी और समृद्ध आदमी के कपड़े वमि जाएं तो अभी ठीक हो जाएिा। जल्दी कपड़े दे दो। उस िनपवत ने कहााः कपड़े, मैं अपनी जान भी दे सकता हं सम्राट को बचाने के विए। िेककन मेरे कपड़े काम नहीं करें िे, नहीं पड़ेंिे काम। मैं समृद्ध तो बहुत हं िेककन सुख, सुख से मेरा कोई भी संबंि नहीं है। कर्र िे िांि के बड़े से बड़े िोिों के पास भटकते रहे। सांझ हो िई। सभी जिह यही उत्तर वमिा। वजनके पास िन था उन्होंने कहा िन तो है िेककन सुख, सुख हमारे पास नहीं है, सुख से हम अपररवचत हैं। कर्र तो िजीर र्बड़ा िया और अपने साथ दौड़ते हुए नौकर से कहने ििा अब क्या होिा? मैं तो सोचता था कक बड़ा सरि उपाय है। िह नौकर हंसने ििा उसने कहा माविक, तुम जब दूसरे की तरर् कपड़े मांिने िए तभी मैं समझ िया कक उपाय आसान नहीं। सम्राट का िजीर खुद अपने कपड़े दे ने की नहीं सोच रहा, ककसी और के पास मांिने जाए! िह िजीर कहने ििा ककस मुंह को िेकर जाएं हम सम्राट के पास? अंिेरा पड़ जाने दो, रात उतर आने दो, कर्र हम चिेंिे अंिेरे में, कह दें िे कक नहीं हो सकता है महाराज। नहीं, उपाय नहीं बनता। रात होते-होते िे पहुंचे। महि के पास पहुंचे थे पीछे कक महि के पास नदी उस पार कोई जंिि से बांसुरी बजाता था। महि की दीिािों तक, नदी की िहरों पर उस बांसुरी की आिाज िूंजती थी। िह बांसुरी की आिाज कु छ ऐसी शांत थी, कु छ ऐसी आनंदपूणि थी कक िह िजीर कहने ििा, हो सकता है इस आदमी को आनंद वमि िया हो, सुख वमि िया हो। चिो इससे और पूछ िें। िे नदी पार करके उस व्यवि के पास िए। जो एक अंिेरे िृक्ष के नीचे, एक चट्टान पर बैठ कर बांसुरी बजाता था। अंिेरा था, कु छ कदखाई नहीं पड़ता था। उस व्यवि के पास जाकर उन्होंने पूछा कक मेरे भाई, तुम्हें शायद शांवत वमि िई हो, तुम्हारे संिीत में ऐसा आनंद मािूम होता है। शायद तुमने सुख जाना हो, क्या तुमने सुख जाना है? उस व्यवि ने कहा, सुख, मैं सुख से भरा हुआ हं, सुख ही सुख है मेरे पास। कहो कै से आए? िे कहने ििे, हम बहुत खुश हुए, िन्य हमारा भाग्य तुम वमि िए। सम्राट मरणशय्या पर है उसके विए िस्त्रों की जरूरत है। एक र्कीर ने कहा ककसी सुखी और समृद्ध आदमी के िस्त्र वमि जाएं तो सम्राट बच सकता है। िह आदमी एकदम चुप हो िया बांसुरी बजाने िािा और कहने ििा मैं अपनी जान दे सकता हं सम्राट को बचाने के विए। सुखी भी मैं बहुत हं, शांत भी बहुत हं, िेककन िस्त्र? मैं नंिा बैठा हं! अंिेरे में तुम्हें शायद कदखाई नहीं पड़ता, मेरे पास कपड़े नहीं हैं। कपड़े मेरे पास हैं ही नहीं, मैं क्या कर सकता हं? उस रात िह सम्राट मर िया। क्योंकक िोि वमिे वजनके पास कपड़े थे िेककन शांवत न थी। कर्र एक आदमी वमिा वजसके पास शांवत थी िेककन कपड़े न थे। पवश्चम मर रहा है कपड़ों के कारण। हम मर रहे हैं नंिेपन के कारण! इन दोनों के बीच कोई सेतु चावहए। इन दोनों के बीच कोई जसंथेवसस, कोई समन्िय चावहए। एक ऐसी मनुष्यता चावहए वजसके पास शांवत भी हो 132



और समृवद्ध भी हो। अिर हम ऐसी मनुष्यता नहीं खोज सकते तो आदमी इस पृथ्िी पर बहुत कदन नहीं रह सके िा। या तो िस्त्रों के ढेर में दब कर मर जाएिा या नंिेपन में मर जाएिा। इसके वसिाय बचने का कोई उपाय नहीं। नहीं, यह मत सोचें कक टेक्नािॉजी और विज्ञान के विकास से आप भौवतकिादी हो जाएंिे। जीिन तो भूत है, जीिन में मैटर की जिह है और जीिन में आममा की भी जिह है। उन दोनों को एक ही साथ सािा जा सकता है। िे एक साथ सिे हुए हैं। आपके पास कहां शरीर समाप्त होता है, कहां आममा शुरू होती है? दोनों जुड़े हैं। दोनों एक साथ हैं। जीिन एक अदभुत समन्िय है। और जब हम अपने विचार-दृवि में भी भूत और परमाममा के बीच समन्िय स्थावपत करते हैं तो हम समग्र संस्कृ वत को पैदा करने की आिारवशिा रखते हैं। अब तक की सारी संस्कृ वतयां खंवित संस्कृ वतयां थीं। या तो भौवतकिादी थीं या अध्याममिादी थीं। पहिी बार, एक संपूणि संस्कृ वत चावहए जो भौवतकिादी और अध्याममिादी एक साथ हो। तब उस संस्कृ वत के पास शरीर भी होिा और आममा भी होिी। और तभी हम मनुष्य को सुख-शांवत, सुव्यिस्था और सब कु छ दे ने में समथि हो सकते हैं। इन तीन कदनों में मेरी इन सब बातों को इतने प्रेम और शांवत से सुना, उससे बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य बारहिां प्रिचन



क्या भारत िार्मिक है? एक बहुत पुराने निर में उतना ही पुराना एक चचि था। िह चचि इतना पुराना था कक उस चचि में भीतर जाने में भी प्राथिना करने िािे भयभीत होते थे। उसके ककसी भी क्षण विर पड़ने की संभािना थी। आकाश में बादि िरजते थे तो चचि के अवस्थ-पंजर कं प जाते थे। हिाएं चिती थीं तो ििता था चचि अब विरा, अब विरा। ऐसे चचि में कौन प्रिेश करता? कौन प्राथिना करता? िीरे -िीरे उपासक आने बंद हो िए। चचि के संरक्षकों ने कभी दीिाि का पिस्तर बदिा, कभी वखड़की बदिी, कभी द्वार रं िे। िेककन न द्वार रं िने से, न पिस्तर बदिने से, न कभी यहां ठीक कर दे ने से, िहां ठीक कर दे ने से, िह चचि इस योग्य न हुआ कक उसे जीवित माना जा सके । िह मुदाि ही बना रहा। िेककन जब सारे उपासक आने बंद हो िए। तब चचि के संरक्षकों को भी सोचना पड़ा। क्या करें ? और उन्होंने एक कदन कमेटी बुिाई। िह कमेटी भी चचि के बाहर ही वमिी, भीतर जाने की उनकी भी वहम्मत न थी। िह ककसी भी क्षण विर सकता था। रास्ते चिते िोि भी तेजी से वनकि जाते थे। संरक्षकों ने बाहर बैठ कर चार प्रस्ताि स्िीकृ त ककए। उन्होंने पहिा प्रस्ताि स्िीकृ त ककया बहुत दुख से कक पुराने चचि को विराना पड़ेिा। और हम सििसम्मवत से तय करते हैं कक पुराना चचि विरा कदया जाए। िेककन तमक्षण उन्होंने दूसरा प्रस्ताि भी पास ककया कक पुराना चचि हम विरा रहे हैं इसविए नहीं कक चचि को विरा दें , बवल्क इसविए की नया चचि बनाना है। दूसरा प्रस्ताि ककया कक एक नया चचि शीघ्र से शीघ्र बनाया जाए। और तीसरा प्रस्ताि उन्होंने ककया कक नये चचि में पुराने चचि की ही ईंटें ििाई जाएं, पुराने चचि के ही दरिाजे ििाए जाएं, पुराने चचि की ही शक्ि में नया चचि बनाया जाए। पुराने चचि के जो आिार हैं, बुवनयादें हैं, उन्हीं पर नये चचि को खड़ा ककया जाए। ठीक पुरानी जिह पर, ठीक पुराना, ठीक पुराने सामान से ही िह वनर्मित हो। इसे भी उन्होंने सििसम्मवत से स्िीकृ त ककया। और कर्र चौथा प्रस्ताि उन्होंने स्िीकृ त ककया िह भी सििसम्मवत से और िह यह कक जब तक नया चचि न बन जाए तब तक पुराना न विराया जाए। िह पुराना चचि अब भी खड़ा है। िह पुराना चचि कभी भी नहीं विरे िा। िेककन उसमें कोई उपासक अब नहीं जाते हैं। उस रास्ते से भी अब कोई नहीं वनकिता है। उस िांि के िोि िीरे -िीरे भूि ही िए हैं कक कोई चचि भी है। भारत के िमि की अिस्था भी ऐसी ही है। िह इतना पुराना हो चुका, िह इतना जरा-जीणि, िह इतना मृत कक अब उसके आस-पास कोई भी नहीं जाता है। उस मरे हुए िमि से अब ककसी का कोई संबंि नहीं रह िया है। िेककन िे जो िमि के पुरोवहत हैं, िे जो िमि के संरक्षक हैं, िे उस पुराने को बदिने के विए तैयार नहीं। िे वनरं तर यही दोहराए चिे जाते हैं कक िह पुराना ही समय है, िह पुराना ही जीवित है, उसे बदिने की कोई भी जरूरत नहीं है। मैं आज की सुबह इसी संबंि में कु छ बातें आपसे करना चाहता हं। क्या भारत िार्मिक है? भारत इसी अथों में िार्मिक है वजस अथों में िह निर िार्मिक था, क्योंकक उस निर में एक चचि था। भारत िार्मिक है क्योंकक भारत में बहुत मंकदर हैं, मवस्जद हैं, िुरुद्वारे हैं। भारत इसी अथों में िार्मिक है वजस अथों में उस िांि के



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िोि िार्मिक थे। इसविए नहीं कक िे मंकदर जाते थे बवल्क िे मंकदर जाने से बचने की कोवशश करते थे। भारत इसी अथों में िार्मिक है कक हर आदमी िमि से बचने की चेिा कर रहा है। िेककन उस िांि के िोि थोड़े ईमानदार रहे होंिे। िे मंकदर नहीं जाते थे तो उन्होंने यह मान विया था कक हम नहीं जाते हैं। उन्होंने यह मान विया था कक मंकदर पुराना है और उसके नीचे जान िंिाई जा सकती है, जीिन नहीं पाया जा सकता। िेककन भारत के िोि इतने भी ईमानदार नहीं है कक िे यह मान िें कक िमि पुराना हो िया। जान िंिाई जा सकती है उससे िेककन जीिन नहीं पाया जा सकता। हम थोड़े ज्यादा बेईमान हैं। हम िमि से सारा संबंि भी तोड़ विए हैं। िेककन हम ऊपर से यह भी कदखाने की चेिा करते हैं कक हम िमि से संबंवित हैं। हमारा कोई आंतररक नाता िमि से नहीं रह िया है। हमारे कोई प्राणों के अंतसंबंि िमि से नहीं हैं। िेककन हम ऊपर से कदखािा जारी रखते हैं। हम ऊपर से यह प्रदशिन जारी रखते हैं कक हम िमि से संबंवित हैं, हम िार्मिक हैं। यह और भी खतरनाक बात है। यह अिर् म को वछपा िेने की सबसे आसान और कारिर तरकीब है। अिर यह भी स्पि हो जाए कक हम अिार्मिक हो िए हैं तोशायद इस अिमि को बदिने के विए कु छ ककया जा सके । िेककन हम अपने को यह िोखा दे रहे हैं। एक आममिंचना में हम जी रहे हैं कक हम िार्मिक हैं और यह आममिंचना रोज महंिी पड़ती जा रही है। ककसी न ककसी को यह दुखद समय कहना पड़ेिा कक िमि से हमारा कोई भी संबंि नहीं है। हम िार्मिक भी नहीं हैं और हम इतने वहम्मत के िोि भी नहीं हैं कक हम कह दें कक हम िार्मिक नहीं हैं। हम िार्मिक भी नहीं हैं और अिार्मिक होने की र्ोषणा कर सकें इतना साहस भी हमारे भीतर नहीं हैं। तो हम वत्रशंकु की भांवत बीच में िटके रह िए हैं। न हमारा िमि से कोई संबंि है। न हमारा विज्ञान से कोई संबंि है, न हमारा अध्यामम से कोई संबंि है, न हमारा भौवतकिाद से कोई संबंि है। हम दोनों के बीच में िटके हुए रह िए हैं, हमारी कोई वस्थवत नहीं है। हम कहां हैं यह कहना मुवश्कि है क्योंकक हमने यह बात जानने की स्पि कोवशश नहीं की है कक हम क्या हैं और कहां हैं। हम कु छ िोखों को बार-बार दोहराए चिे जाते हैं और उन िोखों को दोहराने के विए हमने तरकीबें ईजाद कर िी हैं, हमने वििाइसेज बना िी हैं और उन तरकीबों के आिार पर हम विश्वास कदिा िेते हैं कक हम िार्मिक हैं। एक आदमी रोज सुबह मंकदर हो आता है और िह सोचता है कक मैं िमि के भीतर जाकर िापस िौट आया हं। मंकदर जाने से िमि तक जाने का कोई भी संबंि नहीं है। मंकदर तक जाना एक वबल्कु ि भौवतक र्टना है, शारीररक र्टना है। िमि तक जाना एक आवममक र्टना है। मंकदर तक जाना एक भौवतक यात्रा है, मंकदर तक जाना एक आध्यावममक यात्रा नहीं है। सच तो यह है कक वजनकी आध्यावममक यात्रा शुरू हो जाती है, उन्हें सारी पृथ्िी मंकदर कदखाई पड़ने ििती है। कर्र उन्हें मंकदर को खोजना बहुत मुवश्कि हो जाता है कक िह कहां है? नानक ठहरे थे मदीना में और सो िए थे रात मंकदर की तरर् पैर कर के । पुजाररयों ने आकर कहा था कक हटा िो ये पैर अपने, तुम पािि हो या कक नावस्तक हो या कक अिार्मिक हो, तुम पवित्र मंकदर की तरर् पैर ककए हुए हो। नानक ने कहा था मैं खुद बहुत जचंता में हं कक अपने पैर कहां करूं, तुम मेरे पैर िहां कर दो जहां परमाममा न हो, जहां उसका पवित्र मंकदर न हो। िे पुजारी ठिे हुए खड़े रहे िए। कोई रास्ता न था कक नानक के पैर कहां करें ? क्योंकक जहां भी था, अिर था तो परमाममा था। जहां भी जीिन है िहां प्रभु का मंकदर है। तो वजन्हें िमि की यात्रा का थोड़ा सा भी अनुभि हो जाता है उन्हें तो सारा जित मंकदर कदखाई पड़ने ििता है। 135



िेककन वजन्हें इस यात्रा से कोई भी संबंि नहीं है िे दस कदम चि कर जमीन पर और एक मकान तक पहुंच जाते हैं और िौट आते हैं और सोचते हैं कक िार्मिक हो िए हैं। ऐसे हम िार्मिक होने का िोखा दे ते हैं अपने को। एक आदमी रोज सुबह बैठ कर भििान का नाम िे िेता है। वनवश्चत ही बहुत जल्दी में उसे नाम िेने पड़ते हैं क्योंकक और बहुत काम हैं और भििान के िायक र्ु सित ककसी के पास नहीं। बहुत जल्दी में, एक जरूरी काम है, िह भििान के नाम िेकर वनपटा दे ता है और चि पड़ता है। और कभी उसने अपने से नहीं पूछा कक वजस भििान को मैं जानता नहीं उस भििान के नाम का मुझे कै से पता है? मैं क्या दोहरा रहा हं? मैं भििान का नाम दोहरा रहा हं। भििान का स्मरण हो सकता है भििान का नाम स्मरण नहीं हो सकता। क्योंकक भििान का कोई नाम नहीं है। भििान की प्यास हो सकती है, भििान को पाने की तीव्र आकांक्षा हो सकती है िेककन भििान का नाम स्मरण नहीं हो सकता। क्योंकक नाम उसका कोई भी नहीं है। एक आदमी बैठ कर राम-राम दोहरा रहा है, दूसरा आदमी वजनेंद्र -वजनेंद्र कर रहा है, तीसरा आदमी नमो बुद्धा और कोई चौथा आदमी कु छ और नाम िे रहा है। ये सब नाम हमारी अपनी ईजादें हैं, इन नामों से परमाममा का क्या संबंि। परमाममा का कोई नाम नहीं है। जब तक हम नाम दोहरा रहे हैं तब तक हमारा परमाममा से कोई संबंि न होिा। हम आदमी के जित के भीतर चि रहे हैं, हम मनुष्य की भाषा के भीतर यात्रा कर रहे हैं। और िहां जहां मनुष्य की सारी भाषा बंद हो जाती हैं, सारे शब्द खो जाते हैं, िहां हम ककन नामों को िेकर जाएंिे? सब नाम आदमी के कदए हुए हैं। सच तो यह है कक आदमी खुद भी वबना नाम के पैदा होता है। आदमी के नाम भी सब झूठे हैं, कामचिाऊ हैं, यूटेविटेरीयन हैं। उनका समय से कोई भी संबंि नहीं। हम जब पैदा होते हैं तो वबना नाम के और जब हम मृमयु में प्रविि होते हैं तो कर्र वबना नाम के । बीच में नाम का थोड़ा सा संबंि हम पैदा कर िेते हैं। और उस नाम को हम मान िेते हैं कक यह हमारा होना है। हमने अपने विए नाम दे कर एक िोखा पैदा ककया है। िहां तक ठीक था। आदमी क्षमा ककया जा सकता था। उसने भििान को भी नाम दे कदए। और नाम दे ने से एक तरकीब वमि िई उसे कक उस नाम को दोहरा िे िह दस वमनट और सोचता है कक मैंने परमाममा का स्मरण ककया। नाम से परमाममा का कोई भी संबंि नहीं है। आप बैठ कर कु सी, कु सी, कु सी दोहरा िें दस वमनट, दरिाजा, दरिाजा, दरिाजा दोहरा िें, पमथर, पमथर दोहरा िें, या आप कोई और नाम िेकर दोहरा िें। इस सबसे कोई भी िमि का संबंि नहीं है। शब्दों को दोहराने से िमि का कोई संबंि नहीं है। िमि का संबंि है वनाःशब्द से, िमि का संबंि है मौन से, िमि का संबंि है पररपूणि भीतर जब विचार शून्य हो जाते और शांत हो जाते तब, तब िमि की यात्रा शुरू होती है। और एक आदमी बैठ कर ररपीट कर िेता है एक नाम को--राम-राम, राम-राम, दस-पांच दर्ा कहा और उसने, वनपटारा हो िया, उसने भििान को स्मरण कर विया। तो हमने तरकीबें ईजाद कर िी हैं िार्मिक कदखाई पड़ने की वबना िार्मिक हुए। और उन तरकीबों में हम जी रहे हैं और सोच रहे हैं कक पूरा मुल्क िार्मिक हो िया है। वतब्बत में िे और भी ज्यादा होवशयार हैं। उन्होंने प्रेयर-व्हीि बना रखा है, उन्होंने एक चक्का बना रखा है। उसको िे प्राथिना-चक्र कहते हैं। उस चक्के के एक सौ आठ स्पोक हैं। एक-एक स्पोक पर एक-एक मंत्र विखा 136



हुआ है। सुबह से आदमी बैठ कर उस चक्के को र्ुमा दे ता है। वजतना चक्का चक्कर ििा िेता है उतनी बार, उतनी बार एक सौ आठ में िुणा करके िह समझ िेता है कक इतनी बार मैंने मंत्र का पाठ ककया। िह प्रेयर-व्हीि सुबह से आदमी दस दर्े र्ुमा दे ता है, िह सौ दर्े र्ूम जाता है, एक सौ आठ में सौ का िुणा कर विया, इतनी बार मैंने भििान का नाम विया, अपने काम पर चिा जाता है। िे हमसे ज्यादा होवशयार हैं। नाम िेने की झंझट भी उन्होंने छोड़ दी। अपना काम भी करते रहते हैं और चक्कर ििा दे ते हैं। हम भी यही कहते हैं। मन हमारा दूसरा काम करता रहता है और जबान हमारी राम-राम करती रहती है। जबान राम-राम कर रही हो कक एक प्रेयर-व्हीि पर राम-राम विखा हो, क्या र्कि पड़ता है! भीतर मन हमारा कु छ और कर रहा है। अब तो और व्यिस्था हो िई, अभी तब वतब्बत में वबजिी नहीं पहुंची थी, अब पहुंच िई होिी। तो अब तो उनको हाथ से भी र्ुमाने की जरूरत नहीं, वबजिी से प्िि ििा दें िे चक्र र्ूमता रहेिा कदन भर और हजारों दर्ा राम का स्मरण करने का िाभ वमि जाएिा। आदमी ने अपने को िोखा दे ने के विए हजार तरह की तरकीबें ईजाद कर िी हैं। उन्हीं तरकीबों को हम िमि मानते रहे हैं। और इसीविए हमारे मुल्क में यह दुवििा खड़ी हो िई है कक हम कहने को िार्मिक हैं और हम जैसा अिार्मिक आचरण आज पृथ्िी पर कहीं भी खोजने से नहीं वमि सकता। हमसे ज्यादा अनैवतक िोि, हमसे ज्यादा चररत्र से विरे हुए िोि, हमसे ज्यादा ओछे, हम से ज्यादा संकीणि, हमसे ज्यादा क्षुद्रता में जीने िािे िोि और कहीं वमिने करठन हैं, और साथ हमें िार्मिक होने का भी सुख है कक हम िार्मिक हैं। ये दोनों बातें एक साथ चि रही हैं। और कोई यह कहने को नहीं है कक ये दोनों बातें एक साथ कै से चि सकती हैं। यह ऐसा ही जैसे ककसी र्र में िोिों को ख्याि हो कक हजारों दीये जि रहे हैं और र्र अंिकार से भरा हो और जो भी आदमी वनकिता हो दीिाि से टकरा जाता हो, दरिाजों से टकरा जाता हो। र्र में पूरा अंिकार हो, हर आदमी टकराता हो, कर्र भी र्र के िोि यह विश्वास करते हैं कक अंिेरा कहां है दीये जि रहे हैं। और रोज हर आदमी टकरा कर विरता हो। कर्र भी र्र के िोि मानते चिे जाते हों कक दीये जि रहे हैं, रोशनी है, अंिेरा कहां है? हमारी हाित ऐसी कं ट्राविक्ट्री, ऐसे विरोिाभास से भरी हुई है। जीिन हमें रोज बताता है कक हम अिार्मिक हैं और हमने जो तरकीबें ईजाद कर िी हैं िे रोज हमें बताती हैं कक हम िार्मिक हैं। कक तो दे खो दुिाि उमसि आ िया और सारा मुल्क िार्मिक हुआ जा रहा है, कक दे खो िणेश-उमसि आ िया, कक दे खो महािीर का जन्म-कदन आ िया और सारा मुल्क मंकदरों की तरर् चिा जा रहा है, पूजा चि रही है, प्राथिना चि रही है। अिर इस सबको कोई आकाश से दे खता होिा तो कहता होिा ककतने िार्मिक िोि हैं। और कोई हमारे भीतर जाकर दे खे, कोई हमारे आचरण को दे खे, कोई हमारे व्यविमि को दे खे तो हैरान हो जाएिा। शायद मनुष्य-जावत के इवतहास में इतना िोखा पैदा करने में कोई कौम कभी सर्ि नहीं हो सकी थी वजसमें हम सर्ि हो िए हैं। यह अदभुत बात है। यह कै से संभि हो िया? इसका वजम्मा आप पर है ऐसा मैं नहीं कहता हं। इसका वजम्मा हमारे पूरे इवतहास पर है। यह आज की पीढ़ी ऐसी हो िई है ऐसा मैं नहीं कहता हं। आज तक हमने िमि के प्रवत जो िारणा बनाई है उसमें बुवनयादी भूि है। और इसविए हम वबना िार्मिक हुए िार्मिक होने के ख्याि से भर िए हैं। उन भूिों के कु छ सूत्रों पर मैं आपसे बात करना चाहता हं। ताकक यह कदखाई पड़ सके कक हम िार्मिक क्यों नहीं हैं। और यह भी कदखाई पड़ सके कक हम िार्मिक कै से हो सकते हैं। इसके पहिे की िे चार सूत्र में आपसे कहं, यह भी आपसे कह दे ना चाहता हं कक जब तक कोई जावत, कोई



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समाज, कोई दे श, कोई मनुष्य िार्मिक नहीं हो जाता तब तक उसे जीिन के पूरे आनंद का, पूरी शांवत का, पूरी कृ ताथिता का कोई भी अनुभि नहीं होता है। जैसे विज्ञान है बाहर के जित के विकास के विए, और वबना विज्ञान के जैसे दीन-हीन हो जाता है समाज, दररद्र हो जाता है, दुखी और पीवड़त और बीमार हो जाता है। विज्ञान न हो, आज तो बाहर के जित में हम दीन-हीन पशुओं की भांवत हो जाएंिे। िैसे ही भीतर के जित का विज्ञान िमि है और जब भीतर का िमि खो जाता है तो भीतर एक दीनता आ जाती है, हीनता आ जाती है, भीतर एक अंिेरा छा जाता है। और भीतर का अंिेरा बाहर के अंिेरे से ज्यादा खतरनाक है। क्योंकक बाहर का अंिेरा दो पैसे के दीये को खरीद कर वमटाया जा सकता है। िेककन भीतर का अंिेरा तो तभी वमटता है जब आममा का दीया जि जाए और िह दीया कहीं बाजार में खरीदने से नहीं वमिता। उस दीये को जिाने के विए तो श्रम करना पड़ता है, संकल्प करना पड़ता है, सािना करनी पड़ती है। उस दीये को जिाने के विए तो जीिन को एक नई कदशा में िवतमान करना पड़ता है। िेककन इतना वनवश्चत है कक आज तक पृथ्िी पर सबसे ज्यादा प्रसन्न और आनंकदत िोि िे ही थे जो िार्मिक थे। उन िोिों ने ही इस पृथ्िी पर स्ििि को अनुभि ककया। उन िोिों ने ही इस जीिन के पूरे आनंद को, कृ ताथिता को अनुभि ककया। उनके जीिन में ही अमृत की िषाि हुई है जो िार्मिक थे। जो अिार्मिक हैं िे दुख में, पीड़ा में और नरक में जीते हैं। िार्मिक हुए वबना कोई मािि नहीं है। िेककन िार्मिक होने के विए सबसे बड़ी बािा इस बात से पड़ िई है कक हम इस बात को मान कर बैठ िए हैं कक हम िार्मिक हैं। कर्र अब और कु छ करने की कोई जरूरत नहीं रह िई। एक वभखारी मान िेता है कक मैं सम्राट हं। कर्र बात खमम हो िई। कर्र अब उसे सम्राट होने के विए कोई प्रयत्न करने का कोई सिाि न रहा। सस्ती तरकीब वनकािी उसने, सम्राट हो िया कल्पना करके । असिी में सम्राट होने के विए श्रम करना पड़ता, यात्रा करनी पड़ती, संर्षि करना पड़ता। उसने सपना दे ख विया सम्राट होने का। िेककन उस वभखारी को हम पािि कहेंिे। क्योंकक पािि का यही िक्षण है कक िह जो नहीं है िह अपने को मान िेता है। मैंने सुना है एक पाििखाने को नेहरू वनरीक्षण करने िए थे। उस पाििखाने में उन्होंने जाकर पूछा कक कभी कोई यहां ठीक होता है, स्िस्थ होता है, रोि से मुि होता है। तो पाििखाने के अविकाररयों ने कहा कक वनवश्चत ही अक्सर िोि ठीक होकर चिे जाते हैं। अभी एक आदमी ठीक हुआ है और हम उसे तीन कदन पहिे छोड़ने को थे िेककन हमने रोक रखा कक आप के हाथ से ही उसे हम मुवि कदिाएंिे। उस पािि को िाया िया जो ठीक हो िया था। उसे नेहरू से वमिाया िया। नेहरू ने उसकी शुभकामनाएं की कक तुम स्िस्थ हो िए, बहुत अच्छा। चिते-चिते उस आदमी ने पूछा कक िेककन मैं आपका नाम नहीं पूछ पाया कक आप कौन हैं? नेहरू ने कहा, मेरा नाम जिाहरिाि नेहरू है। िह आदमी हंसने ििा उसने कहा, आप र्बड़ाइए मत, कु छ कदन आप भी इस जेि में रह जाएंिे तो ठीक हो जाएंिे। पहिे मुझे भी यही ख्याि था कक जिाहरिाि नेहरू हं। तीन साि पहिे जब आया था तो मुझको भी यही भ्म था। यही भ्म मुझको भी हो िया था कक मैं जिाहरिाि हं, िेककन तीन साि में इन सब अविकाररयों की कृ पा से मैं वबल्कु ि ठीक हो िया हं। मेरा यह भ्म वमट िया। आप भी र्बड़ाइए मत, आप भी दो-तीन साि रह जाएंिे तो वबल्कु ि ठीक हो सकते हैं। आदमी के पाििपन का िक्षण यह है कक िह जो है नहीं समझ पाता और जो नहीं है उसके साथ तादामम्य कर िेता है कक िह मैं हं।



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भारत को मैं िार्मिक अथों में एक विवक्षप्त वस्थवत में समझता हं, मैिनेस की वस्थवत में समझता हं। हम िार्मिक नहीं हैं और हम अपने को िार्मिक समझ रहे हैं। िेककन यह दुर्िटना कै से संभि हो सकी? यह दुर्िटना कै से र्वित हुई? यह कै से हो सका? उसके होने के कु छ सूत्रों पर आपसे बात करनी है। पहिा सूत्राः भारत िार्मिक नहीं हो सका क्योंकक भारत में िमि की एक िारणा विकवसत की जो पारिौककक थी, जो मृमयु के बाद के जीिन के संबंि में विचार करती थी। जो इस जीिन के संबंि में विचार नहीं करती थी। हमारे हाथ में यह जीिन है, मृमयु के बाद का जीिन अभी हमारे हाथ में नहीं है। होिा तो मरने के बाद होिा। भारत का िमि जो है िह मरने के बाद के विए तो व्यिस्था करता है िेककन जीिन जो अभी हम जी रहे हैं पृथ्िी पर, उसके विए हमने कोई सुव्यिवस्थत व्यिस्था नहीं की। स्िाभाविक पररणाम हुआ, पररणाम यह हुआ कक यह जीिन हमारा अिार्मिक होता चिा िया। और उस जीिन की व्यिस्था के विए जो कु छ हम कर सकते थे थोड़ा-बहुत िह हम करते रहे। कभी दान करते रहे, कभी तीथियात्रा करते रहे, कभी िुरु के , सािु के चरणों की सेिा करते रहे। और कर्र हमने यह विश्वास ककया कक जजंदिी बीत जाने दो, जब बूढ़े हो जाएंिे तब िमि की जचंता कर िेंिे। अिर कोई जिान आदमी उमसुक होता है िमि में, तो र्र के बड़े-बूढ़े कहते हैं अभी तुम्हारी उम्र नहीं कक तुम िमि की बातें करो। अभी तुम्हारी उम्र नहीं, अभी खेिने-खाने के , मजे-मौज के कदन हैं, यह तो बूढ़ों की बातें हैं जब आदमी बूढ़ा हो जाए तब िमि की बातें करता है। मंकदरों में जाकर दे खें, मवस्जदों में जाकर दे खें, िहां िृद्ध िोि कदखाई पड़ेंिे, िहां जिान आदमी शायद ही कभी कदखाई पड़े। क्यों? हमने यह िारणा बना िी कक िमि का संबंि है उस िोक से, मृमयु के बाद जो जीिन है उससे। तो जब हम मरने के करीब पहुंचेंिे तब विचार करें िे। कर्र जो बहुत होवशयार थे उन्होंने कहा कक मरते क्षण में अिर एक दर्े राम का नाम भी िे िो, भििान का स्मरण कर िो, िीता सुन िो, िायत्री सुन िो, नमोकार मंत्र कान में िाि दो। आदमी पार हो जाता है तो जीिन भर परे शान होने की जरूरत क्या। मरते-मरते आदमी के काम में मंत्र र्ूं क दे ते हैं और वनपटारा हो जाता आदमी िार्मिक हो जाता। यहां तक बेईमान िोिों ने कहावनयां िढ़ िी हैं कक एक आदमी मर रहा था, उसके िड़के का नाम नारायण था। मरते िि उसने अपने िड़के को बुिाया कक नारायण तू कहां हैं। और भििान िोखे में आ िए। िे समझे कक मुझे बुिाता है और उसको स्ििि भेज कदया। ऐसे बेईमान िोि, ऐसे िोखेबाज िोि, वजन्होंने ऐसी कहावनयां िढ़ी होंिी, ऐसे शास्त्र रचे होंिे, उन्होंने इस मुल्क को अिार्मिक होने की सारी व्यिस्था कर दी। यह दे श िार्मिक नहीं हो पाया पांच हजार िषों के प्रयत्न के बाद भी। क्योंकक हमने जीिन से िमि का संबंि नहीं जोड़ा, मृमयु से िमि का संबंि जोड़ा। तो ठीक है, मरने के बाद, िह बात इतने दूर है कक जो अभी जजंदा हैं उन्हें उसका ख्याि भी नहीं हो सकता। बच्चों को कै से उसका ख्याि होिा, अभी बच्चों को मृमयु का कोई सिाि नहीं है, जिानों को मृमयु का कोई सिाि नहीं है। वसर्ि िे िोि जो मृमयु के करीब पहुंचने ििे और मृमयु की छाया वजन पर पड़ने ििी, उन िृद्धजनों के विए भर िमि का विचार जरूरी था। और स्मरण रहे कक िृद्धों से जीिन नहीं बनता; जीिन बच्चों और जिानों से बनता है।



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जो जीिन से विदा होने ििे िे िृद्ध हैं। तो िृद्ध अिर िार्मिक भी हो जाएं तो जीिन िार्मिक नहीं होिा क्योंकक िृद्ध िार्मिक होते-होते विदा के स्थान पर पहुंच जाएंिे। िे विदा हो जाएंिे। वजनसे जीिन बनना है, जो जीिन के र्टक हैं, उन छोटे बच्चों और जिानों से िमि का क्या संबंि? उनके विए िमि ने कोई भी व्यिस्था नहीं की कक िे कै से िार्मिक हों? कर्र जब पारिौककक बात हो िई िमि की, तो कवि िोिों के विए जचंता रही उसकी। क्योंकक परिोक इतनी दूर है कक उसकी जचंता सामान्य मनुष्य के विए करनी करठन है। कु छ िोि जो अवतिोभी हैं, इतने िोभी हैं कक िे इस जीिन का भी इं तजाम करना चाहते हैं और मरने के बाद का भी इं तजाम करना चाहते हैं। वजनकी ग्रीि, वजनका िोभ इतना ज्यादा है, िे िोि भर िार्मिक होने का विचार करते हैं। वजनका िोभ थोड़ा कम है, िे कर्कर नहीं करते कक मरने के बाद जो होिा िह दे खा जाएिा। तो अजीब बात हो िई! हमारे बीच जो सबसे ज्यादा िोभी िोि हैं, िे िोि संन्यासी हो जाते हैं। क्योंकक उन्हें इसी जीिन का इं तजाम नहीं करना, उन्हें अििे जीिन का इं तजाम भी करना है। िेककन जो सामान्य िोभ के िोि हैं, िे कहते हैं, ठीक है, मकान बन जाए, िन हो जाए, कर्र दे खा जाएिा। मौत जब आएिी तब दे खेंिे। अभी इतना मौत का विचार करने की जरूरत नहीं। और यह स्िस्थ िक्षण है? यह कोई अस्िस्थ िक्षण नहीं है। जो आदमी जजंदा रहते हुए मृमयु का बहुत जचंतन करता है िह अस्िस्थ है, िह बीमार है, िह रुग्ण है। उस आदमी के जीिन-ऊजाि ने कहीं कोई कमी है, िह जीने की किा नहीं जानता है इसविए मृमयु के बाबत सोचना शुरू कर कदया। स्िामी राम जापान िए। वजस जहाज पर िे थे एक नब्बे िषि का जमिन बूढ़ा चीनी भाषा सीख रहा था। अब चीनी भाषा सीखनी बहुत करठन बात है, शायद मनुष्य की वजतनी भाषाएं हैं उन में सबसे ज्यादा करठन बात। क्योंकक चीनी भाषा के कोई िणािक्षर नहीं होते, कोई क ख ि नहीं होता, िह तो वचत्रों की भाषा है। इतने वचत्रों को सीखने नब्बे िषि की उम्र में, अंदाजन ककसी भी आदमी को दस िषि िि जाते हैं ठीक से चीनी भाषा सीखने में। तो नब्बे िषि का बूढ़ा सीख रहा है सुबह से शाम तक। यह कब सीख पाएिा? सीखने के पहिे इसके मर जाने की संभािना है। और अिर हम यह भी मान िें बहुत आशािादी हों कक यह जी जाएिा दस-पंद्रह साि, तो भी उस भाषा का उपयोि कब करे िा? वजस चीज को दस साि सीखने में िि जाएं, अिर दस-पच्चीस िषि उसके उपयोि के विए न वमिे तो िह सीखना व्यथि है। िेककन िह बूढ़ा सुबह से शाम तक िेक पर बैठा हुआ और सीख रहा है। रामतीथि के बदािश्त के बाहर हो िया। उन्होंने जाकर तीसरे कदन उससे कहा कक क्षमा करें , मैं आपको बािा दे ना चाहता हं, एक बात मुझे पूछनी है। आप यह क्या कर रहे हैं? यह चीनी भाषा आप कब सीख पाएंिे? आपकी उम्र तो नब्बे िषि हुई! उस बूढ़े आदमी ने रामतीथि की तरर् दे खा और उसने कहा कक जब तक मैं जजंदा हं तब तक जजंदा हं और जब तक मैं जजंदा हं तब तक मर नहीं िया हं, मरने का जचंतन करके मैं मरने के पहिे नहीं मरना चाहता हं। और अिर मरने का हम जचंतन करें कक कि मैं मर जाऊंिा तो यह तो मुझे जन्म के पहिे कदन से ही विचार करना पड़ता कक कि मैं मर सकता हं, कभी भी मैं मर सकता हं। तो कर्र मैं जी भी नहीं पाता। िेककन नब्बे साि मैं जीआ हं। और जब तक मैं जी रहा हं तब तक सीखूंिा, ज्यादा से ज्यादा जानूंिा, ज्यादा से ज्यादा जीऊंिा। क्योंकक जब तक जी रहा हं तब तक एक-एक क्षण का पूरा उपभोि करना जरूरी है। ताकक मेरा पूरा



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आमम-विकास हो। और उसने रामतीथि से पूछा कक आपकी उम्र क्या है? रामतीथि की उम्र तो के िि बत्तीस िषि थी। िे बहुत झेंपे होंिे मन में और कहा कक वसर्ि बत्तीस िषि! तो उस बूढ़े आदमी ने जो कहा था िह पूरे भारत को सुन िेना चावहए। उस बूढ़े आदमी ने कहा था तुम्हें दे ख कर मैं समझता हं कक तुम्हारी पूरी कौम बूढ़ी क्यों हो िई है! तुम्हारे पूरे कौम से यौिन, शवि, ऊजाि क्यों चिी िई है! तुम क्यों मुदे की तरह जी रहे हो पृथ्िी पर! क्योंकक तुम मृमयु के संबंि में अमयविक विचार करते हो और जीिन के संबंि में जरा भी नहीं! शास्त्र भरे पड़े हैं, जो नरक में क्या है और कहां, पहिा नरक कहां है और दूसरा नरक कहां है, तीसरा कहां है, सातिां कहां है, उस सबके ब्योरे िार व्यिस्था बताते हैं। पूरे नक्शे बनाए हैं, स्ििि कहां है। सात स्ििि हैं कक ककतने स्ििि हैं। उन सबका वहसाब कदया हुआ है। नरक और स्ििि की पूरी ज्याग्रार्ी हमने खोज िी, िेककन पृथ्िी की ज्याग्रार्ी खोजने के विए पवश्चम के िोिों का हमें इं तजार करना पड़ा, िह हम नहीं खोज पाए। क्योंकक पृथ्िी पर हम जीते हैं, उसके भूिोि की जानकारी की हमने कोई कर्क्र न की। िेककन वजन स्ििों और नरकों का हमें कोई संबंि नहीं, उनके हमने संबंि में पूरी जानकारी कर िी है! हमने इतने विटेल्स में व्यिस्था की है कक अिर कोई पढ़ेिा तो यह नहीं कह सकता कक यह कोई काल्पवनक िोिों ने विखा होिा। एक-एक इं च हमने इं तजाम कर कदया है कक िहां कै सा नरक है--ककतनी आि जिती है, ककतने कढाए जिते हैं, ककतने राक्षस हैं और ककस तरह िोिों को जिाते हैं और क्या करते हैं। स्ििि में क्या है, िह हमने इं तजाम कर कदया। िेककन इस जमीन पर क्या है? इस जमीन की हमने कोई कर्कर नहीं की, क्योंकक यह जमीन तो एक विश्रामिृह है। मर जाना है यहां से तो जल्दी। इसकी जचंता करने की क्या जरूरत है। जीिन अिार्मिक है क्योंकक जीिन की जचंता हमने नहीं की। जीिन िार्मिक नहीं हो सकता जब तक िमि इस जीिन के संबंि में विचार करे , इस जीिन को व्यिस्था दे , इस जीिन को िैज्ञावनक बनाए, जब तक यह नहीं होिा तब तक जीिन िार्मिक नहीं हो सकता। पहिी बात है, परिोक के संबंि में अवतजचंतन ने भारत को अिार्मिक होने में सहायता दी, िार्मिक होने में जरा भी नहीं। सोचा शायद हमने यही था कक परिोक का यह भय िोिों को िार्मिक बना दे िा। सोचा शायद हमने यही था कक परिोक की जचंता िोिों को अिार्मिक नहीं होने दे िी। िेककन हुआ उिटा, हुआ यह कक परिोक इतना दूर मािूम पड़ा कक िह हमारा कोई कनर्मि नहीं है, िह हमारा कोई उससे संबंि, नाता नहीं है। हमारा नाता है जीिन से और इस जीिन को कै से जीया जाए, इस जीिन की किा क्या है, िह वसखाने िािा हमें कोई भी न था। िमि हमें वसखाता था जीिन कै से छोड़ा जाए, जीिन कै से जीया जाए यह बताने िािा िमि न था। िमि बताता था जीिन कै से छोड़ा जाए, जीिन कै से मयािा जाए, जीिन से कै से भािा जाए! इसकी सारी वनयम, क से िेकर आवखर तक हमने सारे वनयम इससे खोज विए कक जीिन को छोड़ने की पद्धवत क्या है। िेककन जीिन को जीने की पद्धवत क्या है? उसके संबंि में िमि मौन है। पररणाम स्िाभाविक था। जीिन को छोड़ने िािी कौम कै से िार्मिक हो सकती है। जीना तो है जीिन को। ककतने िोि भािेंिे? और जो भाि कर भी जाएंिे िे जाते कहां हैं? संन्यासी भाि कर, सािु भाि कर जाता कहां है? भािता कहां है? वसर्ि िोखा पैदा होता है भािने का। वसर्ि श्रम से भाि जाता है, समाज से भाि जाता है, िेककन समाज के ऊपर पूरे समय वनभिर रहता है। समाज से रोटी पाता है, इज्जत पाता है, समाज से कपड़े पाता है, समाज के बीच जीता है, समाज पर वनभिर होता है। वसर्ि एक र्कि हो जाता है, िह र्कि यह है कक िह विशुद्ध रूप से शोषक हो जाता है, श्रवमक नहीं रह जाता। िह कोई श्रम नहीं करता, वसर्ि शोषण करता है।



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ककतने िोि संन्यासी हो सकते हैं? अिर पूरा समाज भािने िािा समाज हो जाए तो पचास िषि में उस दे श में एक भी जीवित प्राणी नहीं बचे। पचास िषों में सारे िोि समाप्त हो जाएंिे। िेककन पचास िषि भी िंबा समय है, अिर सारे िोि संन्यासी हो जाएं, तो पंद्रह कदन भी बचना बहुत मुवश्कि है। क्योंकक ककसका शोषण कररएिा, ककसके आिार पर जीएिा। भािने िािा िमि, एस्के वपस्ट ररिीजन, कभी भी जजंदिी को बदिने िािा िमि नहीं हो सकता। थोड़े से िोि भािेंिे और जो भाि जाएंिे िे उन पर वनभिर रहेंिे जो भािे नहीं हैं। अब यह बड़े चममकार की बात है कक संन्यासी िृहस्थ पर वनभिर है और िृहस्थ को नीचा समझता है अपने से, वजस पर वनभिर है उसको नीचा समझता है। उसको चौबीस र्ंटे िावियां दे ता है, उसके पाप का व्याख्यान करता है, उसको नरक जाने की योजना बनाता है और वनभिर उस पर है। और अिर ये िृहस्थ सब नरक जाएंिे तो इनकी रोटी खाने िािे, इनके कपड़े पहनने िािे संन्यासी इनके पीछे नरक नहीं जाएंिे तो और कहां जा सकते हैं! कहीं जाने का कोई उपाय नहीं हो सकता। िेककन भािने की एक दृवि जब हमने स्पि कर िी कक जो भािता है िह िार्मिक है। तो जो जीता है िह तो अिार्मिक है। उसको िार्मिक ढंि से जीने का, सोचने का कोई सिाि न रहा। िह तो अिार्मिक है क्योंकक जीता है, भािता जो है िह िार्मिक है। तो जीने िािे को िार्मिक होने का कोई वििान, कोई विवि, कोई टेक्नीक, कोई वशल्प हम नहीं खोज पाए। मेरा कहना है भारत िार्मिक हो सकता है, अिर हम िर् म को जीिनित, उसे िाइर् अर्रमेरटि, जीिन की स्िीकृ वत का िमि बनाए, जीिन के वनषेि का नहीं। दूसरी बात, िमि ने एक अवतशय काम ककया। तो िह अवत एक... प्रवतकक्रया थी। सारी दुवनया में ऐसे िोि थे जो मानते थे कक मनुष्य के िि शरीर है। शरीर के अवतररि कोई आममा नहीं है। िमि ने ठीक दूसरी अवत, दूसरी एक्सट्रीम पकड़ िी और कहा कक आदमी वसर्ि आममा है, शरीर तो माया है, शरीर तोझूठ है। ये दोनों ही बातें झूठ हैं। न तो आदमी के िि शरीर है, न आदमी के िि आममा है। ये दोनों बातें समान रूप से झूठ हैं। एक झूठ के विरोि में दूसरा झूठ खड़ा कर विया। पवश्चम एक झूठ बोिता रहा है कक आदमी वसर्ि शरीर है और भारत एक झूठ बोि रहा है कक आदमी वसर्ि आममा है। ये दोनों सरासर झूठ हैं। पवश्चम अपने झूठ के कारण अिार्मिक हो िया, क्योंकक वसर्ि शरीर को मानने िािे िोि, उनके विए िमि का कोई सिाि न रहा। भारत अपने झूठ के कारण अिार्मिक हो िया है। क्योंकक वसर्ि आममा को मानने िािे िोि शरीर का जो जीिन है उसकी तरर् आंख बंद कर विए हैं। जो माया है उसका विचार भी क्या करना। जो है ही नहीं उसके संबंि में सोचना भी क्या। जब कक आदमी की जजंदिी शरीर और आममा का जोड़ है। िह शरीर और आममा का एक सवम्मवित संिीत है। अिर हम आदमी को िार्मिक बनाना चाहते हैं तो उसके शरीर को भी स्िीकार करना होिा, उसकी आममा को भी। वनवश्चत ही उसके शरीर को वबना स्िीकार ककए हम उसकी आममा की खोज में भी एक इं च आिे नहीं बढ़ सकते हैं। शरीर तो वमि भी जाए वबना आममा का कहीं िेककन आममा वबना शरीर के नहीं वमिती। शरीर आिार है, उस आिार पर ही आममा अवभव्यि होती है। िह मीवियम है, िह माध्यम है। इस माध्यम को इनकार वजन िोिों ने कर कदया, उन िोिों ने इस माध्यम को बदिने का, इस माध्यम को सुंदर बनाने का, इस माध्यम को ज्यादा समय के वनकट िे जाने का सारा उपाय छोड़ कदए हैं। 142



शरीर का एक विरोि पैदा हुआ, एक दुश्मनी पैदा हुई, हम शरीर के शत्रु हो िए। और शरीर को वजतना सताने में हम सर्ि सके हम समझने ििे कक उतने हम िार्मिक हैं। हमारी सारी तपश्चयाि शरीर को सताने की अनेक-अनेक योजनाओं के अवतररि और क्या है! वजसे हम तप कहते हैं, वजसे हम मयाि कहते हैं, िह शरीर की शत्रुता के अवतररि और क्या है! िीरे -िीरे यह ख्याि पैदा हो िया कक जो आदमी शरीर को वजतना तोड़ता है, वजतना नि करता है, वजतना दमन करता है, उतना ही आध्यावममक है। शरीर को तोड़ने और नि करने िािा आदमी विवक्षप्त तो हो सकता है आध्यावममक नहीं। क्योंकक आममा का भी जो अनुभि है उसके विए एक स्िस्थ, शांत, और सुखी शरीर की आिश्यकता है। उस आममा के अनुभि के विए भी एक ऐसे शरीर की आिश्यकता है वजसे भूिा जा सके । क्या आपको पता है, दुखी शरीर को कभी भी नहीं भूिा जा सकता। पैर में ददि होता है तो पैर का पता चिता है, ददि नहीं होता तो पैर का कोई पता नहीं चिता। वसर में ददि होता है तो वसर का पता चिता है, ददि नहीं होता तो वसर का कोई पता नहीं चिता। स्िास्थ्य की पररभाषा ही यही है कक वजस आदमी को अपने पूरे शरीर का कोई पता नहीं चिता िह आदमी स्िस्थ है, िह आदमी हेल्दी है। वजस आदमी कोशरीर के ककसी भी अंि का बोि होता है, पता चिता है, िह आदमी उस अंि में बीमार है। शरीर स्िस्थ हो तोशरीर को भूिा जा सकता है और शरीर भूिा जा सके तो आममा की खोज की जा सकती है। िेककन हमने जो व्यिस्था ईजाद की, उसमें शरीर को कि दे ने को हमने अध्यामम का मािि समझा। शरीर को कि दे ने िािे िोि शरीर को कभी भी नहीं भूि पाते। कि दे कर शरीर को भूिा नहीं जा सकता, कि दे ने से शरीर और याद आता है। आपने ठीक से खाना खा विया है तो पेट की आपको कोई याद न आएिी और आप उपिासे रह िए हैं तो पेट की चौबीस र्ंटे याद आती रहेिी। पेट पीड़ा में है, पीड़ा खबर दे रही है। जीिन के वनयम का अंि है यह कक शरीर कहीं कि में हो तो आपको खबर दे , क्योंकक अिर िह खबर न दे िा तो उसको कि को दूर करने का कर्र कोई मािि न रहा। संस्कृ त में तो िेदना के दो अथि होते हैं। िेदना का अथि दुख भी होता है, िेदना का अथि बोि भी होता है। इसविए िेद वजस शब्द से बना, िेदना उसी से बनी है। िेदना का मतिब हैाः दुख; और िेदना का अथि हैाः बोि। दुख का बोि होता ही है। तो वजतना आदमी अपने शरीर को कि दे िा उतना शरीर का ज्यादा बोि होिा। शरीर को कि दे ने िािे िोि एकदम शरीर को ही अनुभि करते रहते हैं। आममा का उन्हें कभी कु छ पता नहीं चिता। िेककन हमने हजारों साि में एक िारा विकवसत की, शरीर की शत्रुता की और शरीर के शत्रु हमें आध्यावममक मािूम होने ििे। तो जो आदमी अपने शरीर को कि दे ने में वजतना अग्रणी हो सकता था, कांटों पर िेट जाए कोई आदमी तो िह महामयािी मािूम होने ििा। शरीर को कोड़े मारे कोई आदमी और िहिुहान हो जाए। यूरोप में कोड़े मारने िािों का एक संप्रदाय था। उस संप्रदाय के सािु सुबह से उठ कर कोड़े मारने शुरू करते। और जैसे जहंदुस्तान में उपिास करने िािे सािु हैं वजनकी पैि छपती है कक र्िां सािु ने चािीस कदन का उपिास ककया, र्िां सािु ने सौ कदन का उपिास ककया। िैसे यूरोप में िे जो कोड़े मारने िािे सािु थे उनकी भी र्े हररस्त छपती थी कक र्िां सािु सुबह एक सौ एक कोड़े मारता है, र्िां सािु दो सौ एक कोड़े मारता है। जो वजतने ज्यादा कोड़े मारता था िह उतना बड़ा सािु था। 143



आंखें र्ोड़ िेने िािे िोि हुए, कान र्ोड़ िेने िािे िोि हुए, जननेंकद्रय काट िेने िािे िोि हुए। शरीर को सब तरह से नि करने िािे िोि हुए। यूरोप में एक ििि था। जो अपने पैर में जूता पहनता था तो जूतों में नीचे कीिें ििा िेता था ताकक पैर में कीिें चुभते रहें। िे महामयािी समझे जाते थे। िोि उनके चरण छू ते थे कक ये महामयािी हैं। आपका संन्यासी उतना मयािी नहीं है, वबना जूते के चिता है सड़क पर। िह जूता भी पहनता था, नीचे कीिें भी ििाता था। तो पैर में र्ाि हमेशा हरे होने चावहए, खून विरता रहना चावहए। कमर में पट्टे बांिता था, पट्टों में कीिें वछपे रहते थे, जो कमर में अंदर वछपे रहें और र्ाि हमेशा बने रहें। िोि उनके पट्टे खोि-खोि कर दे खते थे कक ककतने र्ाि हैं। कहते थे बड़े महान व्यवि हैं। सारी दुवनया में शरीर के दुश्मनों ने िमि के ऊपर कब्जा कर विया है। ये आममिादी नहीं हैं। क्योंकक आममिादी कोशरीर से कोई शत्रुता नहीं है। आममिादी के विए शरीर एक व्हीकि है, शरीर एक सीढ़ी है, शरीर एक माध्यम है, उसे तोड़ने का कोई सिाि नहीं। एक आदमी बैििाड़ी पर बैठ कर जा रहा था। बैििाड़ी को चोट पहुंचाने से क्या मतिब है? हम शरीर पर यात्रा कर रहे हैं, शरीर एक बैििाड़ी है। उसे नि करने से क्या प्रयोजन? िह वजतना स्िस्थ होिा, वजतना शांत होिा, उतना ही उसे भूिा जा सकता है। तो दूसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हं, भारत का िमि चूंकक शरीर को इनकार ककया इसविए अविकतम िोि अिार्मिक रह िए। िे शरीर को इतना इनकार नहीं कर सके । तो उन्होंने एक काम ककया जोशरीर को इनकार करते थे उनकी पूजा की, िेककन खुद अिार्मिक होने को राजी रह िए। क्योंकक शरीर को वबना चोट पहुंचाए िार्मिक होने का कोई उपाय न था। अिर भारत को िार्मिक बनाना है तो एक स्िस्थ शरीर की विचारणा िमि के साथ संयुि करनी जरूरी है। और यह ध्यान कदिाना जरूरी है कक जो िोि शरीर को चोट पहुंचाते हैं िे न्यूरोरटक हैं, िे विवक्षप्त हैं, िे मानवसक रूप से बीमार हैं। िे आदमी स्िस्थ नहीं हैं। और स्िस्थ भी नहीं है, आध्यावममक तो वबल्कु ि नहीं है। इन आदवमयों की मानवसक वचककमसा की जरूरत है। िेककन ये हमारे विए आध्यावममक थे। तो यह अध्यामम की िित िारणा हमें िार्मिक नहीं होने दी। तीसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हं, अब तक आज तक की हमारी सारी विचारणा इस बात को मान कर चिती रही है कक िमि एक विश्वास है, वबिीर्, र्े थ। विश्वास कर िेना है और िार्मिक हो जाना है। यह बात वबल्कु ि ही िित है। कोई आदमी विश्वास करने से िार्मिक नहीं हो सकता। क्योंकक विश्वास सदा झूठा है। विश्वास का मतिब है जो मैं नहीं जानता उसको मान िेना। झूठ का और क्या अथि हो सकता है। जो मैं नहीं जानता उसको मान िूं। िार्मिक आदमी जो नहीं जानता उसे मानने को राजी नहीं होिा। िह कहेिा कक मैं खोज करूंिा, मैं समझूंिा, मैं विचार करूंिा, मैं प्रयोि करूंिा, मैं अनुभि करूंिा, वजस कदन मुझे पता चिेिा मैं मान िूंिा, िेककन जब तक मैं नहीं जानता हं मैं कै से मान सकता हं। िेककन हम वजन बातों को वबल्कु ि नहीं जानते उनको मान कर बैठ िए हैं। और इनको मान कर बैठ जाने के कारण हमारी इं क्वायरी, हमारी खोज, हमारी वजज्ञासा बंद हो िई। विश्वास ने भारत के िमि के प्राण िे विए। वजज्ञासा चावहए, विश्वास नहीं। विश्वास खतरनाक है, पाय.जनस है। क्योंकक विश्वास वजज्ञासा की हमया कर दे ता है। और हम छोटे-छोटे बच्चों को िमि का विश्वास दे ने की कोवशश करते हैं। वसखाने की कोवशश करते हैं कक ईश्वर है, आममा है, परिोक है, मृमयु है, यह है, िह है, पुनजिन्म है, कमि है, यह हम सब वसखाने की कोवशश कर 144



रहे हैं। हम जबरदस्ती इस बच्चे को वसखा दे ते हैं वजस बच्चे को इन बातों का कोई भी पता नहीं है। उसके भीतर प्राणों के प्राण कह रहे होंिे, मुझे तो कु छ पता ही नहीं। िेककन अिर िह कहे कक मुझे पता नहीं, तो हम कहेंिे तू नावस्तक है। वजनको पता है िे कहते हैं कक ये चीजें हैं इनको मान। हम उसके संदेह को दबा रहे हैं और ऊपर से विश्वास थोप रहे हैं। उसका संदेह भीतर सरक जाएिा प्राणों में और विश्वास ऊपर बैठ जाएिा। जो प्राणों में सरक िया िही समय है जो ऊपर कपड़ों की तरह टंिा हुआ है िह समय नहीं है। इसविए आदमी िार्मिक कदखाई पड़ता है। िार्मिक नहीं है। िमि के िि िस्त्र है। उसकी आममा में संदेह मौजूद है। उसकी आममा में शक मौजूद है कक ये बातें हैं। आदमी मंकदर में हाथ जोड़ कर सामने खड़ा हुआ है। ऊपर से हाथ जोड़े हुए है कह रहा है कक हे भििान! और भीतर संदे ह मौजूद है कक मैं एक पमथर की मूर्ति के सामने खड़ा हं इसमें भििान है! िह संदेह हमेशा मौजूद रहेिा। िह संदेह तभी वमटेिा जब हमारा अनुभि होिा कक भििान है। उसके पहिे िह संदेह नहीं वमट सकता। और उसको वजतनी वछपाने की कोवशश कररएिा, िह उतने ही िहरे भीतर उतर जाएिा। और वजतने िहरे उतर जाएिा उतना ही आदमी िित रास्ते पर पहुंच िया क्योंकक आदमी दो वहस्सों में विभावजत हो िया। उसकी आममा में संदेह है और बुवद्ध में विश्वास है। तो बौवद्धक रूप से हम सब िार्मिक हैं, आवममक रूप से हम कोई भी िार्मिक नहीं। मेरे एक वशक्षक थे। अपने िांि जाता था तो उनके र्र जाता था। एक बार सात कदन िांि पर रुका था। दो या तीन कदन उनके र्र िया। चौथे कदन उन्होंने अपने िड़के को एक वचट्ठी विख कर भेजा कक अब कि से कृ पा करके मेरे र्र मत आना। तुम आते हो तो मुझे खुशी होती है, मैं िषि भर प्रतीक्षा करता हं कक कब तुम आओिे और इस िषि मैं जीऊंिा कक नहीं, तुम्हें वमि पाऊंिा कक नहीं। िेककन नहीं; अब मैं प्राथिना करता हं कक मेरे र्र आज से मत आना। क्योंकक कि रात तुमसे बात हुई और जब मैं सुबह प्राथिना करने बैठा अपने मंकदर में, जहां मैं चािीस िषों से भििान की पूजा करता हं, तो मुझे एकदम ऐसा ििा कक मैं पाििपन तो नहीं कर रहा हं। सामने एक मूर्ति रखी है, वजसको मैं ही खरीद िाया था और उस मूर्ति के सामने मैं आरती कर रहा हं। अिर कहीं यह वसर्ि पमथर है तो मैं पािि हं! और चािीस साि मैंने कर्जूि िंिाए! नहीं, मैं िर िया! मुझे बहुत संदेह आ िया और चािीस साि की मेरी पूजा ििमिा िई! अब तुम यहां मत आना। मैंने उनको िापस उत्तर कदया कक एक बार तो मैं और आऊंिा, कर्र मैं नहीं आऊंिा। क्योंकक एक बार मेरा आना बहुत जरूरी है। वसर्ि यह वनिेदन करने मुझे आना है कक चािीस साि की पूजा और प्राथिना के बाद अिर एक आदमी आ जाए और र्ंटे भर की उसकी बात, चािीस साि की पूजा और प्राथिना को ििमिा दे तो इसका मतिब क्या है? इसका मतिब यह है कक चािीस साि की पूजा और प्राथिना झूठी थी, ऊपर खड़ी थी, भीतर संदेह मौजूद था। इस आदमी की बातचीत ने उस संदेह को कर्र जिा कदया। िह हमेशा िहां भीतर सोया हुआ था। हम ककसी के भीतर संदेह िाि नहीं सकते अिर उसके भीतर मौजूद न हो। संदेह िािना असंभि है। संदेह िािना वबल्कु ि असंभि है अिर उसके भीतर मौजूद न हो। संदेह भीतर मौजूद हो, बाहर से कोई बात कही जाए भीतर से संदेह िापस उठ कर खड़ा हो जाएिा। क्योंकक िह प्रतीक्षा कर रहा है बाहर वनकिने की, आप उसको दबा कर वबठाए हुए हैं।



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सारे दुवनया के िमि, भारत के िमि, और सारे िमि यह चेिा करते हैं कक कभी नावस्तक की बात मत सुनना, कभी अिार्मिक की बात को न सुनना, कान बंद कर िेना, कभी ऐसी बात मत सुनना, क्यों? िर ककस बात का है? नावस्तक की बात इतनी मजबूत है कक आवस्तक के ज्ञान को वमटा दे िी। अिर यह सच है तो आवस्तक का ज्ञान दो कौड़ी का है। िेककन सच्चाई यह है, सच में जो आवस्तक है, जो जीिन को जानता है, परमाममा को पहचानता है, वजसने आममा की जरा सी भी झिक पा िी, उसे दुवनया भर की नावस्तकता भी ििमिा नहीं सकती। िेककन हम आवस्तक हैं ही नहीं! भीतर हमारे नावस्तक बैठा हुआ है, ऊपर आवस्तकता पतिे कािज की तरह वर्री हुई है। असिी भीतर आवस्तक नहीं है तो कोई जब बाहर से नावस्तकता की बात करता है, भीतर िह जो सोया हुआ नावस्तक उठने ििता है और कहता है कक ठीक है यह बात। भारत इसविए िार्मिक नहीं हो सका कक हमने िमि को विश्वास पर खड़ा ककया, ज्ञान पर नहीं। िमि खड़ा होना चावहए ज्ञान पर, विश्वास पर नहीं। अिर ठीक िार्मिक मनुष्य चावहए हो इस दे श में तो हमें वजज्ञासा जिानी चावहए, इं क्वायरी जिानी चावहए, विचार जिाना चावहए, जचंतन-मनन जिाना चावहए, विश्वास वबल्कु ि ही छोड़ दे ना चावहए। बच्चों को विश्वास की कोई वशक्षा दे नी की जरूरत नहीं। वशक्षा दी जानी चावहए विचार करने की किा, जचंतन करने का ढंि, मनन करने का मािि, ध्यान करने की व्यिस्था, ताकक तुम जान सको कक समय क्या है। और वजस कदन समय की थोड़ी सी भी झिक वमिती है, एक ककरण भी वमि जाए समय की, आदमी की जजंदिी दूसरी हो जाती है, िह जजंदिी िार्मिक हो जाती है। विश्वासी आदमी झूठा आदमी है, विसेवप्टि है िह, आममिंचक है। इसविए सारा मुल्क िोखे में पड़ िया। और चौथी बात, अब तक हमें यह समझाया जाता रहा है कक समय दूसरे से वमि सकता है, िुरु से वमि सकता है, ज्ञानी से वमि सकता है, ग्रंथ से वमि सकता है, शास्त्र से वमि सकता है। यह बात वबल्कु ि ही िित है। समय ककसी से ककसी दूसरे को नहीं वमि सकता। समय खुद ही खोजना पड़ता है। समय इतनी सस्ती बात नहीं है कक कोई आपको दे दे । समय तो खुद के प्राणों की सारी शवि को ििा कर ही खोजनी पड़ती है। िह यात्रा खुद ही करनी पड़ती है। आपकी जिह कोई मर सकता है? आपकी जिह कोई प्रेम कर सकता है? कभी आपने सोचा कक आपकी जिह कोई और प्रेम कर िे और आप प्रेम का आनंद िे िें? कभी आपने सोचा कक कोई दूसरा मर जाए और आपको मृमयु का अनुभि हो जाए? यह कै से हो सकता है? जो आदमी मरे िा िह मृमयु का अनुभि करे िा। जो आदमी प्रेम में जाएिा िह प्रेम का आनंद िेिा। िेककन हमने एक बड़ा िोखा कदया। हमने मृमयु और प्रेम से भी समय को सस्ता समझा। हम यह समझते रहे कक समय दूसरे को वमि जाएिा और िह हमको दे दे िा। महािीर हमको दे दें िे, बुद्ध हमको दे दें िे, राम और कृ ष्ण हमको दे दें िे। कोई ककसी को समय नहीं दे सकता। अिर समय कदया जा सकता होता तो आज तक सारी दुवनया में सबके पास समय पहुंच िया होता। क्योंकक महािीर की करुणा इतनी है, बुद्ध की और क्राइस्ट का प्रेम इतना है कक अिर िे दे सकते, तो िह बांट कदया होता। िेककन नहीं; िह नहीं कदया जा सकता। िह एक-एक आदमी को खुद ही खोजना पड़ता है। िेककन हमें अब तक यही वसखाया िया है कक खुद खोजने का कहां सिाि है। िीता में विखा है, रामायण में उपिब्ि है, उपवनषद में वछपा हुआ है, समयसार में है, बाइवबि में है, कु रान में है, िहां से िे िें। पाठ कर िें, कं ठस्थ कर िें सूत्रों को, समय वमि जाएिा।



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इससे एक झूठा िमि पैदा हुआ। जोशब्दों का िमि है, समयों का िमि नहीं। शास्त्रों से, िुरुओं से शब्द वमि सकते हैं समय नहीं वमि सकता। समय तो स्ियं ही खोजना पड़ता है। और एक-एक आदमी को अपने ही ढंि से खोजना पड़ता है। और एक-एक आदमी को अपनी ही पीड़ा से जन्म दे ना पड़ता है। जैसे मां को प्रसि पीड़ा से िुजरना पड़ता है, ताकक उसका बच्चा पैदा हो सके । ऐसे ही प्रमयेक व्यवि को एक सािना से िुजरना पड़ता है, ताकक उसका समय पैदा हो सके । समय उिार और बारोि नहीं है। िेककन हमारा मुल्क अब तक यही मानता रहा कक समय ककताब से वमि सकता है, शास्त्र कं ठस्थ कर िेने से वमि सकता है। कृ ष्ण को वमि चुका अब हमें खोजने की क्या जरूरत है! अब हम िीता को कं ठस्थ कर िें, बस हमें वमि िया। तो िीता से वमि जाएंिे शब्द और शब्द हो जाएंिे कं ठस्थ और ऐसा भ्म पैदा होिा कक मैंने भी जान विया। िेककन मैंने वबल्कु ि नहीं जाना! िीता के शब्द स्मृवत में भर िए हैं उन्हीं को मैं दोहरा रहा हं, दोहरा रहा हं। मैंने क्या जाना है? मेरा अपना अनुभि क्या है? मेरा अपना एक्सपीररएंस क्या है? इसविए इन चार सूत्रों के आिार पर भारत िार्मिक कदखाई पड़ता है और िार्मिक नहीं है। और ये चारों सूत्र बदिे जा सकते हैं। तो भारत के जीिन में िमि के अनुभि की कदशा में एक नई यात्रा का उदर्ाटन हो सकता है। िह उदर्ाटन अमयंत जरूरी है। उस उदर्ाटन के वबना हमारे कौम का कोई भी भविष्य नहीं। उस द्वार के खोिे वबना हमने जीिन खो कदया है। चचि हमारा विरने के करीब है। िह भिन वजसे हम िमि कहते थे सड़-िि चुका। िह भिन वजसे हमने िमि समझा था िहां कोई उपासक नहीं जाता है। िह भिन वजसे हम समझे थे कक इससे परमाममा वमिेिा, उसकी तरर् हमारी पीठ हो िई है। िेककन हम उस भिन को बदिने को तैयार भी नहीं, नया भिन बनाने के विए उमसुक भी नहीं, ऐसी हाितों में हम दोहराते रहेंिे सारी दुवनया के सामने कक हम िार्मिक हैं और हम भिीभांवत भीतर जानते हैं कक हम िार्मिक नहीं हैं। क्या यह वस्थवत बदिने जैसी नहीं है? क्या इस वस्थवत को ऐसे ही बैठे हुए दे खते रहना उवचत है? इस प्रश्न पर ही मैं अपनी बात छोड़ दे ना चाहता हं। वजनके भीतर भी थोड़ी समझ है और वजनके भीतर भी थोड़ा जीिन है और जो थोड़ा सोचते हैं और विचारते हैं उनके सामने आज एक ही काम है--भारत के प्राण अिार्मिक हो िए हैं, उन्हें िार्मिक कै से ककया जाए? िे िार्मिक ककए जा सकते हैं। थोड़ा ठीक जचंतन और ठीक मािों में हम खोज करें िे तो भारत की आममा िार्मिक हो सकती है। भारत की आममा िमि के विए प्यासी है। िेककन झूठे पानी से हम उसे तृप्त करते रहे हैं। प्यास को कर्र से जिाना जरूरी है ताकक हम उस सरोिर को खोज सकें जहां प्यास बुझ जाती है और उससे वमिन हो जाता है। वजसे पा िेने के बाद कर्र पा िेने को कु छ भी नहीं बचता और िह जीिन उपिब्ि हो जाता है वजस जीिन की कोई मृमयु नहीं। और िह सुिास और सुिंि और िह संिीत हाथ में आ जाता है वजसे कोई मोक्ष कहता है, कोई प्रभु कहता है, कोई ककं ििम ऑर् िॉि कहता है, कोई और नाम िेता है। प्रमयेक आदमी अविकारी है उसे पाने का िेककन िित रास्तों से उसे नहीं पाया जा सकता है। मेरी बातों को इतनी शांवत और प्रेम से सुना, उसके विए बहुत-बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य तेरहिां प्रिचन



एक नये भारत की ओर मेरे वप्रय आममन्! एक नये भारत की ओर? इस संबंि में थोड़ी सी बातें मैं आपसे कहना चाहंिा। पहिी बात तो यह कक भारत को हजारों िषि तक यह पता ही नहीं था कक िह पुराना हो िया है। असि में पुराने होने का पता ही तब चिता है जब हमारे पड़ोसी नये हो जाएं। पुराने के बोि के विए ककसी का नया हो जाना जरूरी है। भारत को हजारों िषि तक यह पता नहीं था कक िह पुराना हो िया है। इिर इस सदी में आकर हमें यह प्रतीवत होनी शुरू हुई है कक हम पुराने हो िए हैं। इस प्रतीवत कोझुठिाने की हम बहुत कोवशश करते हैं। क्योंकक यह बात मन को िैसे ही दुख दे ती है जैसे ककसी बूढ़े आदमी को जब पता चिता है कक िह बूढ़ा हो िया है तो दुख शुरू होता है। बूढ़ा होना जैसा दुखद है िैसे ककसी राष्ट्र के बूढ़े हो जाने का भी दुख है। बूढ़ा आदमी चाहे तो अपने बुढ़ापे कोझुठिाने की कोवशश कर सकता है। िेककन झुठिाने से बुढ़ापा कम नहीं होता। भारत भी इिर पचास िषों से वनरं तर यह बात इनकार करने की कोवशश कर रहा है कक हम पुराने हो िए हैं। इस इनकार करने की उसने कु छ मानवसक व्यिस्था की है, िह समझना जरूरी है। एक तो भारत यह कहता है कक जो भी श्रेष्ठ, जो भी समय, जो भी सुंदर है िह उसे उपिब्ि ही हो चुका है। इसविए नये होने की अब कोई जरूरत नहीं है। विकास की जरूरत तो िहां है जहां अविकवसत हो कोई। िेककन वजस दे श को यह ख्याि हो कक विकास हो ही चुका है, िहां अब विकास की, पररितिन की कोई िुंजाइश नहीं है। हमें विकास न करना पड़े, हमें पररितिन न करना पड़े, इस बात को इनकार करने के विए हम यह मान कर बैठ िए हैं कक हमने सब पा विया है। यह भ्म हम पाि सकते थे अिर दुवनया के हम संपकि में न आए होते। अपने-अपने कु एं में हर आदमी यह सोच सकता है कक उसने सब पा विया है। अपने कु एं में बंद , अपनी संस्कृ वत, अपनी सयता के र्ेरे में वर्रे हुए, इस बात को मानने में बहुत करठनाई न थी कक हम पूणि हो िए हैं। िेककन चारों तरर् दुवनया की हिाओं ने हमारी पूणिता की नींद को बुरी तरह तोड़ कदया है। हजार िषि की िंबी िुिामी ने हमें यह भी बता कदया है कक हमारी शवि ककतनी है। सैकड़ों िषि की दररद्रता ने हमें यह भी बता कदया है हमारी सामथ्यि, हमारी संपदा ककतनी है। दुवनया भर के सामने भीख मांि कर हम ककसी भांवत जजंदा हैं उसने हमें यह भी बता कदया है कक हमारी समझ ककतनी है। सारी दुवनया ने हमें एक ऐसी वस्थवत में खड़ा कर कदया है जहां हमें यह अहसास करना अवनिायि हो िया है कक हम बूढ़े हो िए हैं, पुराने हो िए हैं। और नये हुए वबना जीिन का अब कोई रास्ता आिे नहीं हो सकता है। िेककन हम इसे इनकार अिर करें तो हम इनकार करते रह सकते हैं। हम मानते रह सकते हैं कक हम पूणि हो िए हैं। और िर यही है कक हजारों िषि की अपनी मान्यता को हम जजंदिी के नये तथ्यों के सामने आंख बंद करके मानते ही चिे जाएं। उस हाित में वसिाय मृमयु के भारत के सामने कोई रास्ता न रह जाएिा। और इसे मृमयु कहना भी ठीक न होिा, इसे आममर्ात, सुसाइि कहना ही ठीक होिा। क्योंकक इसके विए और कोई वजम्मेिार नहीं है, हम ही वजम्मेिार होंिे। 148



दूसरी बात, भारत ने कभी भी नये की स्िीकृ वत नहीं की है। असि में भारत मानता ही नहीं रहा कक पृथ्िी पर कु छ नया भी होता है। हम मानते रहे हैं कक पृथ्िी पर चांद -तारों के नीचे जो भी है सब पुराना है। इसविए भारत ने इवतहास नहीं विखा, वहस्ट्री नहीं विखी। हमें कोई वहस्टाररक सेंस, इवतहास का बोि भी नहीं है। न विखने का कारण था, क्योंकक अिर दुवनया में नई चीजें र्टती हों तो इवतहास विखने का कोई अथि है। क्योंकक पुरानी चीजें दुबारा नहीं र्टेंिी उनकी स्मृवत रखना जरूरी है। िेककन अिर िही-िही चीजें रोज-रोज र्टती हों तो इवतहास बेमानी है। इसविए भारत ने कोई इवतहास नहीं विखा। न तो हम राम के बाबत वनवश्चत हो सकते हैं कक िे कभी हुए, न हम कृ ष्ण के बाबत वनवश्चत हो सकते हैं कक िे कभी हुए। हम कभी सुवनवश्चत रूप से र्ोषणा नहीं कर सकते। क्योंकक हमने कोई इवतहास विख कर नहीं रखा। नहीं रखा इसीविए कक जो बातें बार-बार हुई हैं उन्हें विखने कक क्या जरूरत है? जब सभी कु छ पुराना है पृथ्िी पर तो इवतहास की कोई जरूरत नहीं है। इवतहास की जरूरत तो के िि उन िोिों को है जो मानते हैं कक पुराना दुबारा नहीं र्टेिा, रोज सब नया होता चिा जाएिा। इसविए पुराने की स्मृवत को संरवक्षत रखना जरूरी है। हम तो पुराने को ही संरवक्षत ककए हुए हैं तो पुराने की स्मृवत को संरवक्षत करने की क्या जरूरत है? इसविए हमने कभी इवतहास नहीं विखा। और हमारे सामने भविष्य की कभी कोई दृवि नहीं रही, हमारे सामने अतीत ही सब कु छ रहा। भविष्य हमारे विए अथिहीन है। अथि है तो अतीत में है िह जो बीत िया। क्यों? क्योंकक जो बीत िया िही बीतता रहेिा बार-बार। भविष्य में कु छ भी नया वछपा नहीं है जो हमारे विए प्रकट होिा। इस मानवसक व्यिस्था से हम पुराने रहने की तैयारी जुटाए रखे हैं। हम पुराने थे िेककन हमें पता नहीं चिता था। िरीबी भी तब पता चिती है जब हम ककसी अमीरी के वनकट आ जाएं, और कु रूपता का भी बोि तब होता है जब सौंदयि पास खड़ा हो जाए, और सर्े द रे खाएं कािे ब्िैक-बोिि पर कदखाई पड़नी शुरू होती हैं। चारों तरर् सारी दुवनया नई हो िई है, सब कु छ नया हो िया है, उसके बीच हम एक म्यूवजयम की भांवत पुराने रह िए हैं। जहां भी आंख उठाते हैं िहां हमें र्ौरन पता ििता है कक हम पुराने पड़ िए हैं। अब हमारे बीच वजनकी बुवद्ध शुतुरमुिि जैसी है, और िैसे बुवद्धमान िोि हमारे बीच बड़ी तादाद में हैं। तो हम जानते हैं कक शुतुरमुिि का अपना िावजक है, अिर दुश्मन उस पर हमिा कर रहा हो तो िह वसर को रे त में िड़ा कर खड़ा हो जाता है। जब उसका वसर रे त में िड़ जाता है तो उसे कदखाई नहीं पड़ता कक दुश्मन सामने है। और शुतुरमुिि का तकि यह है कक जब दुश्मन कदखाई नहीं पड़ता तो दुश्मन है नहीं। िेककन दुश्मन नहीं कदखाई पड़ने से वमट नहीं जाता। बवल्क कदखाई पड़ते हुए दुश्मन से तो हम सुरक्षा का उपाय कर सकते हैं, संर्षि कर सकते हैं। न कदखाई पड़ने िािे दुश्मन के हाथ में हम वनहमथे हो जाते हैं, वनशस्त्र हो जाते हैं। और दुश्मन पूरी ताकत हमारी आंख बंद होने की िजह से पा जाता है। भारत में वजन्हें हम बुवद्धमान िोि कहते हैं िे सारे बुवद्धमान शुतुरमुिी तकि को विश्वास करते हैं। िे मानते हैंःाः दे खो मत चारों तरर्, आंख बंद रखो, तो हम अपने पुराने सपनों में खोए रह सकते हैं और हम कह सकते हैं कक हम पुराने नहीं हैं। इसविए भारत में हजारों-सैकड़ों साि तक परदे श जाने की पाबंदी रखी। दूसरे दे श जाने पर हमने अपने बच्चों पर रोक ििाई। रोक इसविए ििाई कक दूसरे दे श में दे ख कर नये की संभािनाएं शुरू हो जाएंिी। सैकड़ों िषों तक हमने दूसरों के शास्त्र नहीं दे खे। सैकड़ों िषों तक हमने दूसरों के दशिन और दूसरों के विज्ञान पर आंख न िािी। हम शुतुरमुिि की तरह अपने वसर को खपा कर खड़े रहे। िेककन अब अजीब दुश्मन से पािा पड़ा है! 149



िह शुतुरमुिि की िदि न को बाहर वनकाि कर उसको दशिन दे रहा है। और अब कोई उपाय नहीं है, हमें दशिन करने ही पड़ेंिे। यह जो दुवनया है बहुत अथों में छोटी हो िई है। माशिि मेकिुहान ने एक शब्द का उपयोि ककया है िह ठीक है। उसका कहना है कक दुवनया अब एक ग्िोबि वििेज, एक जािवतक िांि हो िई है, एक छोटा िांि। इसविए अब पड़ोवसयों से बचना मुवश्कि है। और चारों तरर् नई होती जजंदिी अब हमें पुराना न रहने दे िी। अब दो ही उपाय हैं, या तो हम स्िीकार से और आनंद से नये होने की तैयारी में िि जाएं या हम जबरदस्ती और परे शानी में नये बनाए जाएंिे। अिर हम नये बनाए िए तो िह दुखद होिा, अिर हम नये बने तो िह सुखद हो सकता है। िेककन अभी भी हम अपनी दिीिें कदए चिे जाते हैं। अभी भी हम कहे चिे जाते हैं कक हम जितिुरु हैं। अभी भी हम कहे चिे जाते हैं कक दुवनया हमारी तरर् दे ख रही है। अब भी हम कहे चिे जाते हैं कक दुवनया को हमसे सीखना है, हमसे दुवनया को सीखना पड़ेिा, ये बड़ी खतरनाक बातें हैं। यह असि में दुवनया से हमें न सीखना पड़े इसकी तरकीब है। अिर दुवनया से हमें नहीं सीखना है तो हमें यह र्ोषणा करते ही रहनी चावहए कक दुवनया हमारी तरर् दे ख रही है और दुवनया हमसे सीखने को आतुर है। अिर दुवनया से हमें नहीं सीखना है तो हमें अपने मन में यह बात मजबूती से पकड़े रखनी चावहए कक हम जितिुरु हैं और सारी दुवनया को ज्ञान दे ने का ठे का हमारा है। िेककन ध्यान रहे, इस ठे के में हम रोज अज्ञानी होते चिे जाएंिे, इस ठे के में हम रोज दीनता और दररद्रता में विरते चिे जाएंिे। बहुत कु छ है जो भारत को सीखना पड़ेिा, बहुत कु छ है जो भारत को तोड़ना पड़ेिा और बहुत कु छ है जो नया वनमािण करना पड़ेिा। इस संबंि में दो-तीन बातें स्मरणीय हैं। अल्िु अस हक्सिे ने एक शब्द का वनमािण ककया है और उसे कहा हैाः कल्चर शॉक। असि में दूसरी संस्कृ वत के संपकि में जब हम आते हैं तो एक िक्का ििता है। अपररवचत संस्कृ वत का िक्का! जो उस िक्के कोझेि िेता है और उस िक्के का मुकाबिा कर िेता है, िह सबि हो जाता है। जो उस िक्के से भाि खड़ा होता है, एस्के प कर जाता है, पीठ कदखा दे ता है, िह कमजोर हो जाता है। संस्कृ वत का िक्का तो ठीक ही है, हमें सारी विश्व-संस्कृ वत का िक्का झेिना पड़ रहा है। ककसी एक संस्कृ वत से टक्कर नहीं है अब, अब सारे विश्व की आिुवनकता से हमारी प्राचीनता की टक्कर है। अिर एकाि संस्कृ वत से टक्कर होती तोशायद हम एस्के प कर जाते, हम आंख बंद कर िेते और दे खने से इनकार कर दे ते। िेककन अब सारी दुवनया से टक्कर है। और िह टक्कर ऐसी नहीं है कक बातों और विचारों की हो, िह टक्कर अब जजंदिी, पेट और रोजी-रोटी की भी है। उसे झुठिाया नहीं जा सकता। उसे इनकार भी नहीं ककया जा सकता। यह जो हमारा पुरानापन है यह पहिी बार कांटे की तरह चुभना शुरू हुआ है। जो हमारी जजंदिी में बूढ़ा वहस्सा है, जो वपछिी पीढ़ी है, जो पुराने ख्याि के िोि हैं, िे जोर से अपनी पुरानी बातों का शोर-िुि मचाना शुरू करें िे ताकक उन्हें नई बातें सुनाई न पड़ें, िे बहरे बनने की कोवशश करें िे। सुना होिा आपने, एक कहानी है, कक एक आदमी था वजसने अपने कानों में र्ंटे िटका रखे थे। िह अपने र्ंटों को कदन-रात बजाता रहता था। िह राम का भि था और कोई कृ ष्ण का नाम उसके कान में न चिा जाए इसविए उसने दोनों कानों में र्ंटे बजा रखे थे। िह र्ंटाकणि हो िया था। िह अपने र्ंटे बजाता रहता था और कृ ष्ण का नाम सुनाई न पड़ जाए। 150



हम करीब-करीब र्ंटाकणि की हाित में हैं, जहां तक पुरानी पीढ़ी का संबंि है। िह अपने कान के र्ंटे बजाती रहती है ताकक दुवनया भर की आिाजें सुनाई न पड़ जाएं। यह बड़ी खतरनाक बात हो सकती है। नई पीढ़ी इससे कम खतरनाक नहीं है। नई पीढ़ी को पुरानी बातें न सुनाई पड़ जाएं, िह उसके विए अपने कानों में र्ंटे बनाए हुए हैं। िह भी अपने र्ंटे बजा रही है। कोई राम न सुनाई पड़ जाए, ककसी को कृ ष्ण न सुनाई पड़ जाए। पुरानी पीढ़ी अपने कानों के र्ंटे बजा रही है कक दुवनया में जो नई आिुवनकता का एक्सप्िोजन हुआ है, जो नये ज्ञान का विस्र्ोट हुआ है िह पता न चि जाए। क्योंकक उसके पता चिने से उसके पैर के नीचे की जमीन वखसक जाएिी और नई पीढ़ी उसकी प्रवतकक्रया में, ररएक्शन में पुराने को सुनने को वबल्कु ि राजी नहीं है। ध्यान रहे, ये दोनों ही बातें खतरनाक हैं। क्योंकक नई पीढ़ी के पास कोई जड़ें नहीं होंिी। और वजस पीढ़ी के पास जड़ें न हों, िह ध्यान रहे, िह अिर र्ू ि भी िाएिी तो िे र्ू ि प्िावस्टक और कािज के होंिे, असिी र्ू ि नहीं हो सकते हैं। और पुरानी पीढ़ी ख्याि रखे कक अिर उसके पास नये र्ू ि वखिाने की क्षमता नहीं हैं तो अके िी जड़ें बहुत कु रूप और बहुत भद्दी और बेमानी हैं, और वसर्ि बोझ बन जाती हैं। अके िी जड़ों का कोई मूल्य नहीं हैं। जड़ों की साथिकता इसमें है कक िे रोज नये र्ू िों को जन्म दे सकें । जड़ें अपने में तो कु रूप होती हैं िेककन सुंदर र्ू िों को जन्म दे ने की क्षमता होती है तो जड़ें जीवित होती हैं। पुरानी पीढ़ी पुरानी जड़ों को पकड़ कर बैठी है और नये र्ू िों से िरी हुई है। जड़ें भी सड़ेंिी पुरानी पीढ़ी भी सड़ जाएिी। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की बिाित और वखिार्त में जड़ों को इनकार करती है और वसर्ि नये र्ू िों को विए बैठी है, उसके र्ू ि उिार हैं, उसके र्ू ि मांिे हुए हैं, उसके र्ू ि दूसरों से विए िए, बासे सेकेंि हैंि ही हो सकते हैं। जो र्ू ि पवश्चम में वखिते हैं िैसे र्ू ि हमारे यहां भी वखिें यह तो उवचत है, िेककन उन्हीं र्ू िों को हम हाथ में विए बैठे रहें यह उवचत नहीं है। जो र्ू ि सारी दुवनया में वखि रहे हैं िे हमारी जमीन में भी वखिें, यह तो सौभाग्य होिा। िेककन हम उन र्ू िों को उिार िे आएं और अपने र्रों के िुिदस्तों में सजा कर बैठ जाएं, इससे हम अपनी दीनता को थोड़ी-बहुत दे र के विए वछपा सकते हैं िेककन वमटा नहीं सकते। जहंदुस्तान की तकिीर् और जहंदुस्तान की वजच यह है कक पुरानी पीढ़ी जड़ों को पकड़े है और र्ू िों को इनकार कर रही है और नई पीढ़ी र्ू िों को स्िीकार करती है और जड़ों को इनकार करती है। ये दोनों ही खतरनाक िृवत्तयां हैं। और मुझे ऐसे बहुत कम िोि कदखाई पड़ते हैं जो इन दोनों िृवत्तयों से वभन्न हों। एक तरर् जितिुरु शंकराचायि और उनके अनुयायी हैं और दूसरी तरर् नक्सिाइट हैं, ये एक ही तरह के िोि हैं, इनमें बहुत र्कि नहीं हैं। और मजा यह है कक इन दोनों में ही चुनाि करना पड़े हमें, ऐसी वस्थवत बना दी है, या तो कु आं चुनो या खाई चुनो। ये दोनों बातें खतरनाक हैं। नये भारत की ओर? पहिी बात तो यह समझ िेनी है जरूरी है कक नया भारत अिर नया होिा तो अपनी पुरानी जड़ों को आममसात करके होिा। नया भारत अिर नया होिा तो भारत रहते हुए नया होिा। अिर भारत न रह जाए और नया हो जाए तो उसको नया भारत कहने की कोई जरूरत नहीं है। पुरानी जड़ों को आममसात करना होिा। और कोई भी कौम अपनी पुरानी जड़ों के वबना वबल्कु ि नहीं जी सकती। कोई िृक्ष नहीं जी सकता; कोई कौम भी नहीं जी सकती। और एक बार हम अपनी सारी जड़ों को इनकार कर दें , तो हम हॉट हाउस के पौिे हो सकते हैं िेककन हम जजंदिी के तूर्ानों कोझेिने योग्य नहीं रह जाएंिे। 151



पुरानी जड़ों को आममसात करना होिा। पुरानी जड़ों को आममसात करने का अथि यह है कक भारत जो आज तक रहा है उस भारत के ऊपर ही नई किमें ििनी चावहए। उस पूरे भारत को इनकार कर दे ने से नई किमें नहीं ििेंिी। हम वसर्ि उिार और पंिु हो जाएंिे। हम जमीन पर वभखमंिे हो जाएंिे। पुराने आदमी के साथ खतरा यह है कक िह पुराने के विए तो राजी है िेककन नये अंकुर वनकिें, नये र्ू ि ििें, उनके विए राजी नहीं हैं। नये आदमी के साथ खतरा यह है कक िह नये के विए तो राजी है िेककन पुरानी जड़ों को आममसात करने की उसकी जरा भी इच्छा नहीं है। िह इतना भयभीत है कक पुराने के साथ नया कै से हो सके िा? िेककन ध्यान रहे, पुराने और नये में दुश्मनी नहीं है, पुराना ही नया होता है। पुराना और नया दो विरोिी चीजें नहीं हैं। पुराना ही विकवसत होता है और नया होता है। असि में जब एक आदमी बूढ़ा हो जाता है तो हमें कदखाई नहीं पड़ता कक यह बूढ़ा आदमी नया होिा, यह तो मर जाएिा। िेककन िे जो नये बच्चे हमें कदखाई पड़ रहे हैं, िे इस बूढ़े की ही प्रवतमाएं हैं, प्रवतरूप हैं। यह बूढ़ा मरने के पहिे नये बीज बो जाता है। असि में सब नये बच्चे पुराने बूढ़ों से पैदा होते हैं। सब नया पुराने से जन्म पाता है। पुराने और नये के बीच कोई दुश्मनी नहीं है। पुराने और नये के बीच बाप और बेटे का संबंि है। िेककन बाप और बेटे के बीच ही कोई संबंि नहीं रह िया है। तो पुराने और नये के बीच कै से संबंि रह पाए? बाप और बेटा दो क्िासेज नहीं हैं, बाप और बेटा दो ििि नहीं हैं, बाप और बेटे के बीच कोई कांवफ्िक्ट, कोई संर्षि नहीं है और अिर है तो उसका मतिब है कक बाप और बेटे के बीच बाप और बेटे का संबंि नहीं रहा है। बाप और बेटे के बीच एक प्रिाह है। असि में बेटा कर्र से बाप को नये अथों में जित में प्रिेश दे रहा है। अिर मैं इस जमीन पर संभि हो पाया हं तो मेरे पीछे हजारों, िाखों िषों की यथाथिता है। अिर आप इस जमीन पर पैदा हो पाए हैं तो हजारोंहजारों पीकढ़यों ने आपको पैदा ककया है। आप अपने वपता भी हैं, उनके वपता भी हैं, उनके वपता भी हैं, उनके वपता भी हैं, अपनी मां भी हैं, उनकी मां भी हैं, उनकी मां भी हैं, आप इन सबके साथ संवचत हैं। असि में िे पुराने हो िए थे इसविए उनका जो वहस्सा नया हो सकता था उसे छोड़ कर िे विदा हो िए हैं और िह नया वहस्सा जीिन को चिा रहा है। पुराना ही रोज नया हो रहा है। और ध्यान रहे, नया ही रोज पुराना भी हो रहा है। कोई पुराना ऐसा नहीं है जो कभी नया न रहा हो और कोई नया ऐसा नहीं है जो कि पुराना नहीं हो जाएिा। इसविए नये और पुराने के बीच दुश्मनी का ख्याि खतरनाक है। नये और पुराने के बीच एक प्रिाह है, एक िवत है, एक अंतसंबंि है, एक यात्रा है, एक प्रोसेस है। असि में पुराना प्रारं भ जबंदु है, नया अंत जबंदु है। जैसे जन्म और मृमयु आमतौर से कदखाई पड़ती हैं, दो चीजें हैं, िेककन दो चीजें नहीं हैं। जन्म ही विकवसत होतेहोते मौत बन जाती है। और जो िोि जानते हैं िे कहेंिे मौत ही विकवसत होते-होते कर्र नया जन्म बन जाती है। तो पहिी बात जो मैं आपसे कहना चाहता हं, भारत अिर एक नया भारत होना चाहता है तो उसे बड़ा अदभुत काम करना है, उसे एक बड़ा बैंिेंजसंि एक्ट करना है, एक बड़ी संतुिन की व्यिस्था करनी है। कभी अिर रस्सी के ऊपर चिते हुए नट को दे खा हो, तो भारत का भविष्य वबल्कु ि रस्सी के ऊपर चिते हुए नट जैसा होिा। वजसे पूरे समय दोनों तरर् विरने से बचाना है अपने को। विरना आसान है क्योंकक विरते ही कर्र संतुिन के श्रम करने की जरूरत न रह जाएिी। पुराने की तरर् भी विर जाना आसान है, नये की तरर् भी विर जाना आसान है, िेककन इस जीिन की रस्सी पर सि कर चिना करठन है। 152



और मुझे ऐसा वनरं तर िर ििाता है कक पुरानी पीढ़ी पुराने की तरर् विर कर संतुिन के विए जो श्रम करना है उसकी कर्क्र छोड़ दे ती है। नई पीढ़ी नये की तरर् विर कर संतुिन के विए जो प्रयत्न करना है उसका प्रयत्न छोड़ दे ती है। इन दोनों में बहुत र्कि नहीं है, ये दोनों संतुिन के श्रम से बचने की कोवशश में ििे हैं। भारत को नया िे िोि कर पाएंिे जो इन दोनों चुनािों को इनकार कर दें और जो बीच में, बैिेंस में, संतुिन में खड़े होने के विए राजी हो जाएं। असि में िह जो िोल्ि मीन है, िह जो बीच है, िह जो मध्य है िही जीिन है। सदा ही, सदा दो अवतयों के बीच मध्य को चुन िेना बुवद्धमानी है। सुना है मैंने कक कनफ्यूवशयस एक िांि में िया और उस िांि के बाहर ही िांि में प्रिेश के पहिे एक आदमी उसे वमि िया और उस आदमी ने कहा, आप जरूर हमारे िांि में आएं और हमारे िांि में भी एक बहुत बुवद्धमान आदमी है, एक बहुत िाइज मैन है। आप उससे वमि कर बहुत खुश होंिे। कनफ्यूवशयस ने कहा कक उसे बहुत बुवद्धमान क्यों कहते हो? अिर तुम मुझे कु छ उसके संबंि में बताओ तो अच्छा होिा? तो उस आदमी ने कहााः िह इतना बुवद्धमान है कक िह एक कदम रखने के पहिे तीन बार सोचता है। कनफ्यूवशयस ने कहा कक कर्र मैं उससे न वमिूंिा। उस आदमी ने कहााः क्यों? कनफ्यूवशयस ने कहा कक अिर िह एक ही बार सोचता होता तो मैं कहता कक िह थोड़ा कम बुवद्धमान है, अिर िह तीन बार सोचता है तो मैं कहंिा िह थोड़ा ज्यादा बुवद्धमान है, अिर िह दो ही बार सोचता होता तो मैं कहता, िह बुवद्धमान है। और कम बुवद्धमान भी खतरे में पड़ जाते हैं और ज्यादा बुवद्धमान भी खतरे में पड़ जाते हैं। असि में बुवद्धमान होना एक संतुिन है। बुवद्धमान होना एक संतुिन है। अवत बुवद्ध से भी बचना पड़ता है और अवत अबुवद्ध से भी बचना पड़ता है। असि में दो एक्सट्रीम से बच जाना बुवद्धमानी है। तो कनफ्यूवशयस ने कहा, मैं न वमिूंिा, क्योंकक अिर िह तीन बार सोचता है तो थोड़ा जरा ज्यादा हो िई बात, जरा पेंिुिम ज्यादा र्ूम िया आिे की तरर्। र्ड़ी है उसमें बाएं से दाएं पेंिुिम भािता रहता है। ठीक हमारा मन भी ऐसा ही भािता रहता है र्ड़ी के पेंिुिम की तरह। पुराने से हम नये पर जा सकते हैं और नये से हम पुराने पर जा सकते हैं। िेककन जजंदिी बीच में है। और जो बीच में होता है उसको बड़े र्ायदे हैं क्योंकक िह पुराने के भी उतने ही वनकट होता है वजतना नये के वनकट होता है, िह पुराने से भी उतना ही दूर होता है वजतना नये से दूर होता है। उसके विए चुनाि आसान है। और जो बीच में होता है िह ररएक्शनरी नये नहीं होता, िह ककसी चीज के वखिार् नहीं जा रहा होता। और एक और मजे की बात है कक जब र्ड़ी का पेंिुिम बाएं से दायीं तरर् जाता है तो कदखाई तो पड़ता है कक उिटा जा रहा है, िेककन आपने कभी ख्याि न ककया होिा, बाएं से दाएं तरर् जाता हुआ पेंिुिम कर्र बाएं तरर् आने की शवि को इकट्ठा कर रहा है। दाएं से बाएं तरर् जाता हुआ पेंिुिम मोमेंटम इकट्ठा कर रहा है जो उसे कर्र दाएं तरर् िे जाएिा। तो बहुत करठनाई नहीं है कक नक्सिाइट कर्र शंकराचायि का अनुयायी हो जाए। इसमें कोई बहुत र्कि नहीं है। ये एक्सट्रीम जो हैं इनमें विरोि कदखाई पड़ता है िस्तुताः होता नहीं। विपरीत से विपरीत पर जाना बहुत आसान है, अमयंत आसान है। इसविए बहुत कामुक व्यवि िह्मचारी हो सकता है, उसमें बहुत करठनाई नहीं है। िेककन बहुत कामुक व्यवि संयमी नहीं हो सकता, उसमें करठनाई है। 153



बहुत ज्यादा खाने के विए पािि आदमी उपिास कर सकता है, उसमें ज्यादा करठनाई नहीं है, िेककन संयवमत भोजन नहीं कर सकता, उसमें बहुत करठनाई है। एक अवत से दूसरी अवत पर जाना सदा सरि है। क्योंकक दूसरी भी अवत है और पहिी भी अवत थी। एक एक्सट्रीम से दूसरी एक्सट्रीम पर जाना एकदम आसान है। एक्सट्रीमीस्ट माइं ि को कोई करठनाई नहीं। िेककन मध्य में रुकना बहुत करठन है। भारत के सामने जो बड़े से बड़ा सिाि यह है कक हम एक अवत है पुराने की और एक अवत है नये की। एक अवत है अवत प्राचीन की और एक अवत है अवत निीन की। इन दोनों के बीच अिर भारत ने चुनाि ककया, तो भारत नया भारत बन सके िा। नया भारत वजसके आिार पर पुराने की सारी संपदा होिी। नया भारत वजसकी जड़ों में पुराने की सारी ताकत होिी। नया भारत जो अपने अतीत से, अपनी संस्कृ वत से टू ट नहीं िया होिा। और अिर उसने दो में से ककसी एक को चुना, अिर उसने पुराने को चुना तो भारत रोज-रोज मरता जाएिा। क्योंकक वसर्ि अतीत के साथ कोई नहीं जी सकता। जो कौम अपने अतीत को रोज भविष्य बना सकती है िही जीवित है। जो कौम वसर्ि अतीत को अतीत की तरह पकड़ कर बैठ जाती है िह मर जाती है। या अिर भारत ने वसर्ि नये को चुना, अतीत को इनकार ककया, तो भारत बहुत कािजी, बहुत जापानी हो जाएिा, भारत बहुत ऊपरी हो जाएिा, बहुत सुपरकर्वशयि हो जाएिा। उसकी जजंदिी की िहराइयां सब खो जाएंिी। भारत ऊपर की िहरें बन जाएिा। उसके नीचे के सारे ति विदा हो जाएंिे। और जो कौम अपने अतीत को पूरा इनकार कर दे , िह कौम हिा के थप.ःेिों पर जीने ििती है। कर्र हिा के कोई भी थपेड़े उसे बदिते रहेंिे। आज उसे कम्युवनज्म ठीक ििेिा, कि उसे र्े वसइज्म ठीक ििेिा, परसों उसे िेमोक्रेसी ठीक ििेिी, आिे उसे विक्टेटरवशप ठीक ििेिी। आज उसे ये कपड़े ठीक ििेंिे, कि उसे िे कपड़े ठीक ििेंिे। आज यह ज्ञान ठीक ििेिा, कि िह ज्ञान ठीक ििेिा। और कोई भी चीज इतनी ठीक न िि पाएिी जो उसकी आममा बन जाए, सब उसके िस्त्र रह जाएंिे। एक नये भारत के विए पहिा मेरा ख्याि है िह यह है कक भारत को भारत रहते हुए नया होना है। बहुत आसान है भारत होना छोड़ कर नया होना। और यह भी बहुत आसान है भारत रह कर भारत बने रहना और नया न होना। ये दोनों बातें बहुत आसान हैं। करठनाई यहां है कक भारत भारत रहे और नया हो जाए। इसका क्या अथि होिा? इसका अथि यह होिा कक भारत भविष्य उन्मुख हो, िेककन अतीत शत्रु न हो जाए। इसका अथि होिा भारत नया होने की तैयारी जुटाए िेककन पुराने के सारे अनुभि को साथ िे जा सके । इसका अथि यह होिा कक भारत कोई चीज पुरानी है वसर्ि इसविए इनकार न कर दे और कोई चीज नई है इसविए वसर्ि स्िीकार न कर िे। अब तक हमने ऐसा ककया है कक जो पुराना है िह ठीक है और जो नया है िह िित है। हम एक अवत पर जी रहे थे। पुराना सदा ठीक है नया सदा िित है ऐसी हमारी िारणा थी। इसविए हर आदमी वजसको कोई चीज सही वसद्ध करनी हो पहिे उसे इस मुल्क में यह वसद्ध करना पड़ता है कक िह ककतनी पुरानी है? िीता अिर दो हजार साि पुरानी है तो थोड़ी कम सही हो जाएिी, और अिर पांच हजार साि पुरानी है तो थोड़ी ज्यादा सही हो जाएिी, और अिर पचास हजार साि पुरानी है तो और ज्यादा सही हो जाएिी। और अिर िेद िाख साि पुराने हैं तो और ज्यादा सही हो जाएंिे, और अिर सनातन हैं, सदा से हैं, तब तो उनके सही होने में कोई शक ही न रह जाएिा। इसविए िोकमान्य वतिक पूरे समय कोवशश करते रहे कक िेद 154



कम से कम नब्बे हजार िषि पुराने वसद्ध हो जाएं। क्योंकक अिर नब्बे हजार िषि पुराने वसद्ध हो िए, तो कर्र बहुत ज्यादा सही हो जाएंिे। िेककन कोई चीज पुरानी होने से सही नहीं होती। अब बहुत खतरा है कक हम दूसरे अवत पर चिे जाएं कक जो नया है िही सही है। नहीं; कोई चीज नये होने से भी सही नहीं होती। सही होना एक अिि बात है, वजसके विए नया और पुराना होना संदभि के बाहर है, इररे िेिेंट है। अिर भारत को विकवसत होना है तो उसे पुरानी भूि छोड़नी पड़ेिी कक पुराना होने से कु छ सही है और नई भूि पकड़ने से बचना पड़ेिा कक कोई चीज नये होने से सही है और भारत को खोजना पड़ेिा कक सही क्या है? अिर िह पुराना है तो भी सही है, अिर िह नया है तो भी सही है। और हम सही की खोज करके अिर जजंदिी को बनाने की कोवशश ककए, तो भारत पुराने से टू टेिा नहीं और नया हो जाएिा। और अिर हमने नये को सही मानना शुरू ककया तो पुराने से टू ट ही जाना पड़ेिा। क्योंकक पुराना कर्र िित हो जाता है। पुराने का अथि हो जाता है िित, जो पुराना है िह िित। पवश्चम उिटी अवत पर जी रहा है। पवश्चम में अिर ककसी व्यवि को कोई ककताब कीमती है यह वसद्ध करना हो तो उसे यह वसद्ध करना पड़ता है कक यह वबल्कु ि नई है, यह बात कभी विखी ही नहीं िई। अिर ककसी की ककताब को कोई वसद्ध कर दे कक यह तो पहिे भी विखी िई है, तो िह ककताब बेकार हो िई, उसका कोई मतिब न रहा। इसविए हर िेखक को यह वसद्ध करना पड़ता है कक िह मौविक है, ओररवजनि है। और ओररवजनि होने की कोवशश में कई बेिकू कर्यां भी करनी पड़ती हैं। क्योंकक आदमी इतने समय से पृथ्िी पर है कक ओररवजनि होना आसान मामिा नहीं है। अिर आप एक खूबसूरत औरत बनाते हैं तो बहुत बार खूबसूरत औरत का वचत्र बनाया जा चुका है। शायद ही संभि है कक हम कोई नई खूबसूरती औरत में खोज सकें । तो कर्र क्या करना पड़े? तो कर्र वपकासो जैसे वचत्र बनाने पड़े--कक औरत के हाथ की जिह टांि ििानी पड़े और आंख की जिह कान ििाना पड़े, तब िह ओररवजनि हो जाए। िेककन िह औरत नहीं रह िई, ओररवजनि तो हो िई। वपकासो की पेंटटंग्स की इज्जत पवश्चम में बनी, क्योंकक िह वबल्कु ि नई थी। उनमें पुराना कु छ भी नहीं था। िेककन वपकासो ने अभी आवखरी कदनों में एक बात कह कर उसके भिों को बड़ी मुवश्कि में िाि कदया। उसकी साठिीं िषििांठ पर उससे ककसी ने पूछा कक आप जैसा मौविक आदमी कोई भी नहीं है। तो वपकासो ने कहा, आई िा.ज जस्ट वबर्ू जिंि द मैन काइं ि, मैं तो वसर्ि आदवमयों को बेिकू र् बना रहा था। वपकासो के इस एक िचन ने सारे पवश्चम की मौविकता को करठनाई में िाि कदया। बड़ी हैरानी हो िई! क्योंकक स्त्री के चेहरे में चांद तो दे खा िया था, स्त्री की आंखों में कमि दे खा िया था, िेककन स्त्री की आंखों में वछपकिी कभी नहीं दे खी िई थी? उसको आिुवनक कवि ने दे ख विया! िेककन वपकासो ने जब यह कहा कक मैं वसर्ि िोिों को मूखि बना रहा था। तो बड़ा सदमा पहुंचा है पवश्चम को। असि में अिर नया ही सही है तो नया एब्सर्ििटी में िे जाएिा, मूखिता में िे जाएिा। क्योंकक बुवद्धमत्ता हजारों साि का वनचोड़ होती है। वि.जिम और नािेज में यही र्कि है। नािेज नई हो सकती है, वि.जिम सदा ही पुरानी होती है। ज्ञान और प्रज्ञा में यही र्कि है। ज्ञान सदा ही नया होना चावहए, नहीं तो उसको ज्ञान कहना बेमानी है। िेककन प्रज्ञा, बुवद्धमत्ता, वि.जिम, वि.जिम सदा पुरानी होिी। इसविए जिान आदमी ज्ञान को उपिब्ि हो सकता है, िेककन वि.जिम को वसर्ि बूढ़ा आदमी ही उपिब्ि हो सकता है। जिान आदमी बुवद्धमत्ता को उपिब्ि नहीं हो सकता। 155



हेनरी र्ोिि ने अपने संस्मरणों में विखा है कक वजस कदन पचास साि से कम उम्र के िोि हुकू मत करने ििेंिे उस कदन दुवनया में बड़े खतरे हो जाएंिे। खतरे हो ही जाएंिे! िेककन हेनरी र्ोिि को पता नहीं है कक पचास साि से कम उम्र के िोि हुकू मत करके वजतना खतरा पहुंचाएंिे, पचास साि से कम के िोि दुवनया में वशक्षक होकर उससे भी ज्यादा खतरा पहुंचा दे ? असि में वशक्षक होने योग्य बुवद्धमत्ता अनुभि से झरती है। हां, अन्िेषक होने योग्य बुवद्धमत्ता, इनिेंटर और विस्किरर होने योग्य ज्ञान, युिा वचत्त को उपिब्ि होता है। इसविए बूढ़े दुवनया में आविष्कार नहीं करते। सारे आविष्कार करीब-करीब पैंतीस साि के आस-पास पूरे हो जाते हैं। मनुष्य की सारी बड़ी खोजें नई उम्र की खोजें हैं। िेककन मनुष्य के जीिन के सारे अनुभि िृद्ध के अनुभि हैं। और जब मैं कह रहा हं पुराने और नये के बीच सेत,ु तो मैं यह कह रहा हं कक बूढ़े और जिान के बीच सेतु। बूढ़े और जिान के बीच एक विज चावहए। यह संभि हो सकता है। यह संभि कै से होिा? हम ककस कदशाओं में सोचना शुरू करें कक यह संभि हो जाए। दो-तीन कदशाएं मैं आपको सुझाना चाहं। एक, भारत के पुरानेपन की बुवनयादी भूि क्या थी यह हम समझ िें तो भारत के नयेपन की बुनयादी सुिार क्या होिा यह हमारे समझ में आ सके । भारत के पुरानेपन की एक बहुत बुवनयादी भूि थी और िह बुवनयादी भूि यह थी कक हम जीिन को अस्िीकार कर कदए थे। हमने जीिन को कभी स्िीकार नहीं ककया। हम जीिन के शत्रु रहे। हमारे मन में स्िीकृ वत है स्ििि की, मोक्ष की, हमारे मन में स्िीकृ वत है मृमयु के बाद की। मृमयु के पहिे हम मजबूरी में जी रहे हैं, ए नेसेसरी ईविि की तरह। यह जो जीिन है हमारा, यह हमारे मन में जनंदा से भरा हुआ है, कं िेम्ि है। इस जजंदिी में वसर्ि हम पाप की िजह से भेजे िए हैं, पाप का भुितान करने के विए। यह जजंदिी हमारे पाप कमों का र्ि है। और जो इस जजंदिी में शुभ कमों को उपिब्ि हो जाएिा, उसको िापस नहीं जन्मना पड़ेिा। हमने जजंदिी की बड़ी िंदी तस्िीर खींच रखी है। हम जजंदिी कोशत्रु की तरह दे ख रहे हैं। कारािृह की तरह, दं ि की तरह, पाप की तरह। और जो कौम जजंदिी को पाप की तरह दे खेिी, दं ि की तरह दे खेिी, जो कौम जजंदिी को अपराि की तरह दे खेिी और जो कौम जजंदिी से भािने के विए उमसुक होिी, िह जजंदिी को सुंदर और समृद्ध नहीं बना सकती। कारािृह को कोई पािि कै दी ही होिा कक उसकी दीिािों को सुंदर बनाने की कोवशश करे । कारािृह का कोई पािि ही कै दी होिा कक उसके सीकं चों पर रं िीन कािज चढ़ाए। कोई पािि कै दी होिा कक अपने हाथ की जंजीरों को सोने से मढ़े। नहीं, कोई नहीं मढ़ेिा। वजन जंजीरों को तोड़ना है उन्हें सोने से मढ़ने की कोई जरूरत नहीं। और वजन सीकं चों तोड़ कर बाहर वनकि जाना है उन सीकं चों को सुंदर बनाने से िे और मजबूत हो जाते हैं। और वजस कारािृह से भािना है उस कारािृह की दीिािें पुती हैं, नहीं पुती हैं; स्िच्छ हैं, नहीं स्िच्छ हैं इससे क्या प्रयोजन है। भारत जजंदिी को एक जेिखाने की तरह िेता रहा है। इससे नुकसान हुए हैं। इसके नुकसान के कारण ही हम कमजोर हुए हैं। इस िृवत्त के कारण ही हम विज्ञान न खोज सके हैं। इस िृवत्त के कारण ही हम जजंदिी को संपन्न, समृद्ध, शविशािी न बना सके । इस िृवत्त के कारण हम िुिाम हुए हैं। इस िृवत्त के कारण हमने भूखे रहने को भी सांमिना बना विया। इस िृवत्त के कारण हमने उम्र न बढ़ाई, स्िास्थ्य न बढ़ाया, सौंदयि न बढ़ाया। इस िृवत्त ने हमें अमयंत दीन बना कदया सब दृवियों से। भारत के पुराने मन की जो बुवनयादी भूि है िह जीिन को आह्िादपूििक स्िीकार न करना। जीिन को दुखपूििक स्िीकार करना। भारत का पुराना मन पैवसवमवस्टक है, वनराशािादी है। िह कह रहा है, जीिन दुख 156



है; िह कह रहा है, जीिन छोड़ दे ने जैसा है। जीिन आिािमन से मुवि के विए वसर्ि एक अिसर है। अिर भारत कभी भििान के सामने भी हाथ जोड़ कर खड़ा है तो इसीविए कक कब जीिन से छु टकारा वमिे? यह हमारे वचत्त की दशा है वनवश्चत ही वजम्मेिार हुई है। भारत जैसी बड़ी संपवत्त िािा दे श, वजसके पास बड़े स्रोत थे, िह उन स्रोतों का कोई उपभोि न कर पाया। भारत जैसी विराट संख्या िािा दे श, वजसके पास बड़ी शवि थी, िह इतनी बड़ी शवि को भी रहते हुए िुिाम बन सका। बहुत छोटी ताकत की कौमें भारत पर हािी हो िईं। क्योंकक भारत के मन ने संकोच को स्िीकार कर विया, विस्तार को इनकार कर कदया। असि में कोई वजम्मेिार नहीं है इस दे श को िुिाम बनाने के विए, हम िुिाम बनने के विए इतने तमपर थे कक अिर हमें कोई िुिाम न बनाता तो ही आश्चयि होता। कोई वजम्मेिार नहीं है हमको िरीब बनाने के विए। िेककन हम इतने प्रसन्न हैं िरीब बन जाने में कक वजन्होंने हमें िरीब बनाया हम उनके विए हजार-हजार िन्यिाद से भरे हुए हैं। दीनता और दररद्रता और दासता हमें स्िीकृ त हैं। और जब हम दीन हुए, दास हुए, परे शान हुए तो हमारा वसद्धांत और अटि हो िया कक जजंदिी दुख है। हमने कहा कक ऋवष-मुवनयों ने ठीक ही कहा है कक जजंदिी दुख है, दे ख िो कक जजंदिी दुख है। हमने इस बात से िड़ने की कोवशश न की। इस बात से हम बवल्क प्रसन्न हुए कक हमारे सब वसद्धांत सही वनकिे। अब हमारे मुल्क में सािु-संन्यासी िोिों को समझा रहा है कक यह कवियुि है और ऋवष-मुवन पहिे कह िए कक िोि दुखी होंिे, मरें िे, परे शान होंिे, भूखे रहेंिे। हम अपने शास्त्र को दे ख कर बड़े प्रसन्न हो रहे हैं कक हमारा शास्त्र ककतना सही है कक कवियुि आ िया। यह कवियुि आने की िजह से शास्त्र में विखा है ऐसा मैं नहीं मानता, यह शास्त्र में विखा है इसविए इस कवियुि को आने में आसानी हो िई है। क्योंकक हमने स्िीकार कर विया है कक कवियुि आएिा ही। अिर न आता तोशायद हम दुखी होते। हम कहते कक ऋवष-मुवन और िित हो सकते हैं? सििज्ञ, जो सब जानते थे िे िित हो सकते हैं? नहीं; इस दुवनया में कोई सब जानने िािा पैदा नहीं हुआ। और वजस कौम में सििज्ञ पैदा हो जाएंिे िह कौम अज्ञानी हो जाएिी। क्योंकक जानने को सदा शेष है, जानना रोज है, नई खोज रोज करनी है। एक जो बुवनयादी भूि मुझे कदखाई पड़ती है पुराने भारत की, वजसकी िजह से भारत नया नहीं हो सका, िह यही है कक हम शरीर को इनकार करते हैं, भौवतकता को इनकार करते हैं, संसार को इनकार करते हैं। िेककन ध्यान रहे, जो संसार को इनकार कर दे िा िह परमाममा तक नहीं पहुंच सके िा। क्योंकक परमाममा तक पहुंचने िािे सब रास्ते संसार से होकर िुजरते हैं। और जो आदमी यह कहेिा कक हम तो मंकदर के स्िणि-वशखरों को मानते हैं, हम नींि के िंदे पमथरों को नहीं मानते। तो ध्यान रहे, िह स्िणि-वशखर रखा बैठा रहे, िे कभी मंकदर पर चढ़ेंिे न। ये बड़े मजे की बात है, जजंदिी के बड़े राज की बात है कक अिर आप चाहें तो मंकदर की नींि बना कर छोड़ सकते हैं, मंकदर के नींि के पमथरों के विए वशखर का होना अवनिायि नहीं है, िेककन मंकदर का वशखर वबना नींि के पमथर के नहीं हो सकता। यह बड़े मजे की बात है कक जजंदिी में वनकृ ि हो सकता है श्रेष्ठ के वबना, िेककन श्रेष्ठ वनकृ ि के वबना नहीं हो सकता। असि में, सब श्रेष्ठ को वनकृ ि पर ही आिार बनाना पड़ता है। वनकृ ि का मेरे मन में अथि यह है कक जो श्रेष्ठ का आिार बनता हो। वनकृ ि का मेरे मन में कोई कं िेमनेटरी, कोई जनंदाममक अथि नहीं है। वनकृ ि का मतिब है कक जो नीचे होता है। िेककन हर ऊंची चीज के विए ककसी को नीचे होना ही पड़ेिा। और मजे की बात यह है कक ऊंची चीज के वबना भी नीचा हो सकता है, िेककन नीची चीज के वबना ऊंचा नहीं हो सकता।



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आपका शरीर वबना आममा के भी कदखाई पड़ जाता है, िेककन आपकी आममा वबना शरीर के कदखाई नहीं पड़ती। एक आदमी मर जाता है तो हम दे खते हैं कक शरीर पड़ा रह िया, आममा कदखाई नहीं पड़ती है। िेककन ऐसा नहीं मामिा होता है कक आममा खड़ी है शरीर कहां चिा िया? शरीर आिार है, बुवनयाद है। विज्ञान हो सकता है वबना िमि के , िेककन िमि वबना विज्ञान के नहीं हो सकता। वसर्ि बातचीत हो सकती है। तो हम िमि की बातचीत कर रहे हैं, क्योंकक आिार तो हमारे पास नहीं है, आिार हमारे पास नहीं हैं। एक आदमी का अिर पेट भरा हो तो जरूरी नहीं कक िह कविता करे ही। एक आदमी का पेट भरा हो तो जरूरी नहीं कक िह वसतार बजाए ही। एक आदमी का पेट भरा हो तो जरूरी नहीं कक भििान की खोज करे ही। िेककन एक आदमी का पेट खािी हो तो पक्का है कक वसतार न बजा सके िा, भििान की खोज न कर सके िा, िीत न िा सके िा। िीत ऊंचाई है, पेट बड़ी नीची चीज है। िेककन जो नीचे को इनकार कर दे ते हैं उनकी ऊंचाइयां अपने आप नि हो जाती हैं। इस दे श ने वनचाई को इनकार करने की भूि की है। और हम ऊंचाई को बचाने की कोवशश कर रहे हैं पांच हजार साि से। और वजस पर िह बच सकती थी उसको इनकार ककया हुआ है। शरीर के हम दुश्मन थे। बवल्क हमारे शास्त्रों में कहा हुआ है कक वजसको आममा को पाना है उसे शरीर से िड़ना पड़ेिा। तो ठीक है, वजसको मंकदर के ऊपर स्िणि का वशखर चढ़ाना है उसे नींि के पमथर उखाड़ने चावहए। जरूर मंकदर का वशखर रख कदया जाएिा। िेककन िह मंकदर का वशखर वशखर पर नहीं रखा जाएिा। िह जमीन की िंदिी में पड़ा रहेिा। असि में, जमीन की िंदिी से मंकदर के वशखर को बचाने के विए कु छ पमथरों को िंदिी में खड़े रहने की तैयारी कदखानी पड़ती है। उन पमथरों को आदर दे ना, क्योंकक उन पमथरों के कारण ही वशखर आसमान पर उठ पाता है। यह आममा की सारी संभािना शरीर के वबना संभि नहीं है। यह शरीर के कारण ही आममा ऊंचाइयां छू पाती हैं। शरीर को िन्यिाद िेककन हम न दे पाए। शरीर को हमने सताया जरूर, हम प्रेम न कर सके । इसविए शरीर से जो हो सकता था िह नहीं हो पाया। और शरीर के वबना जो हो ही नहीं सकता था उसकी हम बातचीत कर रहे हैं बैठ कर। र्रों में िोि आममा-परमाममा की बात करें िे। िेककन िह बातचीत होिी। िह्म की चचाि चचाि ही रह जाएिी। िह ऐसे ही है जैसे कोई हिाई जहाज में उड़ने की बात करता हो, िेककन हिाई जहाज बनाने िािे कारखाने न हो, िोहा न हो, इं जीवनयर न हो, तो कर्र र्र में बैठ कर बात की जा सकती है, आंख बंद करके सपने दे खे जा सकते हैं। भारत िमि के सपने दे ख रहा है। क्योंकक वबना विज्ञान के आिार के िमि की ऊंचाइयां छु ई ही नहीं जा सकती हैं। भारत मयाि के सपने दे ख रहा है, क्योंकक मयाि के िि उनके ही विए है वजनके पास कु छ हो। असि में मयाि िरीब आदमी की क्षमता नहीं है, मयाि िरीब आदमी का सुख नहीं है। मयाि समृद्ध आदमी की आवखरी िग्जरी, िह आवखरी आनंद है, आवखरी वििास है। असि में, जब कोई महािीर या कोई बुद्ध अपने महि को िात मार कर जंिि में चिा जाता है, तो आप यह मत समझना यह उसी जिह पहुंच जाता है जहां जंिि का आकदिासी है? यह उसी जिह नहीं पहुंचता। क्योंकक आकदिासी जंिि में इसविए है कक महि नहीं बना सका और यह आदमी जंिि में इसविए है कक महि अब बेमानी हो िए हैं। ये दोनों एक जिह खड़े होकर भी इनके बीच जमीन-आसमान का र्ासिा है। बुद्ध छोड़ सके । छोड़ िही सकता है वजसके पास है। और छोड़ने की क्षमता उस कदन आती है वजस कदन होने की क्षमता इतनी बढ़ जाती है कक अब और होने का कोई मतिब नहीं रह जाता। असि में, िरीब दे श 158



मयािी नहीं हो सकता, वसर्ि मयाि की बातें कर सकता है। इसविए हमारे मयािी को भी आप अिर दे खने जाएंिे तो उसकी पकड़ भी मयाि पर नहीं कदखाई पड़ेिी। अभी मैं एक संन्यासी के आश्रम िया। अब िहां बात चि रही है िमि की, मयाि की, और िोि रुपये चढ़ाते हैं, िे जल्दी से बात बंद करके पहिे रुपये को नीचे सरका दे ते हैं, कर्र िह्म की चचाि शुरू हो जाती है। बड़ी करठन बात मािूम पड़ती है। रुपये के विए िह्म की चचाि को भी रुकना पड़ता है। ठीक ही मािूम होता है। रुकना पड़ेिा। क्योंकक वबना रुपये के िह्म की चचाि भी नहीं हो सकती है। इसमें में उन संन्यासी को दोष नहीं दे ता। उनके रुपये सरकाने को दोष नहीं दे ता। दोष दे ता हं उनकी इस िृवत्त को, इस रुपये के वखिार् िे बोि रहे हैं और इसी रुपये को सरका रहे हैं। जहंदुस्तान जैसा कृ पण समाज खोजना मुवश्कि है। और जहंदुस्तान जैसा मयाि की बात करने िािा भी कोई समाज नहीं है। अब मयािी और कृ पण के बीच कोई संिवत नहीं मािूम पड़ती। जहंदुस्तान की कं जूसी और जहंदुस्तान के मयाि की बातों के बीच कोई संबंि नहीं मािूम पड़ता। जहंदुस्तान जैसा पदाथििादी, मैटीररयविस्ट मुल्क भी खोजना करठन है। िेककन जहंदुस्तान जैसी वस्प्रट और वस्प्रचुअविटी की बात करने िािा कोई भी नहीं है जमीन पर। मामिा क्या है? ििती कहां हो िई है? हमारा आदमी एकदम भौवतकिादी है। उसकी सारी जचंतना भौवतकिाद के आस-पास र्ूमती है। िह रात सपने भी रुपये के दे खता है और वतजोरी के पास ही सोता है और तािा भी ििाता है तो दुबारा भी वहिा कर दे खता है कक चाबी ठीक से िि िई कक नहीं िि िई। िेककन मंकदर जा रहा है। मेरे सामने ही एक सज्जन रहते हैं िे रोज सुबह मंकदर जाते हैं तािा ििा कर, कर्र दस कदम िापस िौट कर तािे को वहिा कर दे खते हैं। एक कदन मैं बैठा था तो मैंने उनसे कहा कक आप यह दुबारा तािे को वहिा कर क्यों दे खते हैं? उन्होंने कहा कक अब आपने पूछ ही विया, आपके संकोच की िजह से कई दर्े मैं दे ख भी नहीं पाता। अब आपने पूछ ही विया है तो मुझे शक हो जाता है कक पता नहीं ििा है ठीक नहीं ििा। तो मैंने कहााः सौ कदम चि कर कर्र नहीं होता शक? उन्होंने कहााः होता है, िेककन वहम्मत नहीं जुटा पाता कक िोि क्या कहेंिे? और मैंने कहााः जब मंकदर में भििान के सामने खड़े होते हैं तब भििान कदखाई पड़ता है कक तािा कदखाई पड़ता है? उन्होंने कहााः आपको कै से पता चि िया? हैरानी की बात है! जल्दी-जल्दी ककसी तरह पूजा करके भािता हं। कदखाई तो तािा ही पड़ता है! िेककन मंकदर में खड़े दे ख कर भ्ांवत हो जाएिी कक यह आदमी भििान के सामने खड़ा है। यह आदमी पूरे िि वतजोरी के सामने खड़ा है। यह आदमी भििान के सामने खड़ा नहीं हो सकता। हमारा वचत्त तो है बौवद्धक, होिा ही, क्योंकक हमने भौवतक जजंदिी की मांि पूरी नहीं की। मुझे इसमें कोई बुराई नहीं कदखाई पड़ती, स्िाभाविक है। िेककन जब हम इसको इनकार करते हैं तब रुग्णता शुरू हो जाती है। जो आदमी भूखा है िह अिर भििान के सामने खड़ा हो और उसे भििान न कदखाई पड़ कर रोटी कदखाई पड़े तो इसमें बुराई क्या है? उसे रोटी कदखाई पड़ेिी। िेककन कारण क्या है? इस आदमी ने रोटी की मांि पूरी नहीं की। भारत ने आदमी की बुवनयादी जरूरतों की मांि आज तक पूरी नहीं की है। भारत आज भी बुवनयादी मांिों के मामिे में अमयंत असहाय और दीन है। न हमारे पास ठीक भोजन है, न ठीक कपड़े हैं, न ठीक 159



शरीर है, न ठीक सौंदयि है। हमारे पास कु छ भी नहीं है, जजंदिी की जरूरी चीजें हमारे पास नहीं हैं। और तब हम जजंदिी की उन बातों की बातें कर रहे हैं जो एक अथि में िैर-जरूरी हैं। िह जरूरी बनती हैं जब जरूरत की सब चीजें पूरी हो जाएं। तब िह भी जरूरी बन जाती हैं ककसी अशोक के विए या ककसी अकबर के विए िमि एक जरूरत हो जाती है। हो जानी चावहए। अकबर के विए िमि एक जरूरत है, एक नीि है। िेककन हमारे विए नहीं हो सकती, हमारी जरूरतें कु छ और हैं। इसविए जब हम भििान के सामने भी जाते हैं तो कोई हाथ जोड़ कर कहता है मेरे िड़के को नौकरी िििा दो, कोई कहता है मेरी िड़की की शादी करिा दो, कोई कहता है मेरी पत्नी की बीमारी ठीक कर दो। हम भििान के पास भी क्या मांिने जाते हैं? बहुत बेशमि हैं हम। जो काम हमें कर िेना चावहए िह हम भििान से मांिने जाते हैं। और जो हम नहीं कर सके , ध्यान रहे, िह भििान नहीं करे िा। क्योंकक उस सबको करने की पूरी क्षमता उसने हमें दे दी है। अब उसकी कोई वजम्मेिारी नहीं है। रोटी हम पैदा कर सकते हैं, कपड़े हम पैदा कर सकते हैं, मकान हम बना सकते हैं। इसमें भििान को बीच में िाकर कि दे ने का कोई भी कारण नहीं। िेककन हम पांच हजार साि से कि कदए जा रहे हैं। और अिर भििान हमसे िर कर कहीं वछप िया हो तो बहुत हैरानी की बात नहीं है। और अिर उसने अपने कानों का आपरे शन करिा विया हो और हमारी प्राथिना न सुनता हो तो उवचत ही ककया है, नहीं तो िह पािि हो जाता। जो काम हम कर सकते हैं उसके विए ककसी और से कहने जाना नपुंसकता है, इं पोटेंस है। असि में, भििान के सामने जाने का िह आदमी अविकारी है कक वजसने अपनी जजंदिी का पूरा काम पूरा कर कदया और अब भििान के सामने पूछने िया है कक अब और क्या? असि में, और काम पूछने जो िया है भििान के सामने, जो पूछने िया है कक जो हो सकता था िह हो िया, अब जो नहीं हो सकता उसकी कु छ बात करें । जो पूछने िया है कक जजंदिी का सारा काम वनपटा कदया है अब और कोई काम है इस जजंदिी के ऊपर? जमीन की सारी बात पूरी हो िई है, आकाश की भी कोई बात है? शरीर का सारा इं तजाम हो िया है, शरीर के ऊपर भी मनुष्य का कोई व्यविमि है? जो भििान के मंकदर में सारे काम मंकदर के बाहर के पूरे करके पहुंचा है, शायद भििान के काम उसके ही उपयोि में आ पाते हैं अन्यथा नहीं आ पाते हैं। पुराना भारत शरीर के विरोि में अध्याममिादी था इसविए शरीरिादी हो िया, अध्याममिादी नहीं हो पाया। नये भारत के साथ खतरा है जो मैंने कहा कक कहीं िह पुराने की प्रवतकक्रया में अब वनपट भौवतकिादी न हो जाए। और कहे कक पांच हजार साि तो अध्यामम की बकिास हो चुकी, अब हम छोड़ना चाहते हैं। यह खतरा है, और यह खतरा बहुत िाइटि है, बहुत जीिंत है। यह खतरा बहुत ही ऐसा है कक शायद ही हम इससे बच सकें । अिर बच जाएं तो सौभाग्य, न बच पाएं तो ककसी से वशकायत करने का भी कोई उपाय न होिा। क्योंकक पांच हजार साि से हम इतने परे शान हो िए हैं अध्यामम की बात करते-करते कक पेंिुिम अब मैटीररयविज्म की तरर् सीिा र्ूम जाएिा। इसविए जहंदुस्तान के कम्युवनस्ट हो जाने की संभािना रोज बढ़ती जाएिी। उसके विए जहंदुस्तान के कम्युवनस्ट वजम्मेिार नहीं होंिे, न तो िांिे जहंदुस्तान को कम्युवनस्ट बना सकते हैं और न पी.सी. जोशी बना सकते हैं और न यादि बना सकते हैं। जहंदुस्तान को अिर कम्युवनस्ट बनाएंिे तो जहंदुस्तान के पांच हजार साि के ऋवष-मुवन उसके विए वजम्मेिार होंिे। क्योंकक उन्होंने इतनी बकिास की है अध्यामम की कक जहंदुस्तान के बच्चे अिर उनके वखिार् चिे जाएं तो इसमें कोई आश्चयि नहीं है। यह ररएक्शन होिा।



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जहंदुस्तान में कम्युवनज्म या जहंदुस्तान में भौवतकिाद रे िल्यूशन नहीं होिी, ररएक्शन होिा। जहंदुस्तान में कम्युवनज्म क्रांवत नहीं है प्रवतकक्रया है। िह जहंदुस्तान के पांच हजार साि की दुखद कहानी का विरोि है। और अिर आज आपके बच्चे मंकदर जाने से इनकार कर रहे हैं, तो ध्यान रखना, बच्चे वजम्मेिार नहीं हैं, आप ही वजम्मेिार हैं। आपने मंकदर ऐसा बनाया वजसमें कोई बुवनयाद नहीं है, जो मरा हुआ है, वजसमें जजंदिी का कोई आिार नहीं है। अिर आपके बच्चे आपकी िीता को र्ें क रहे हैं, तो उसका कारण है। क्योंकक भूखे पेट पर रखी िई िीता सुख नहीं दे ती, वसर्ि दुख दे ती है, उतारने की जरूरत पड़ जाती है। अिर आपके बच्चे अब मानने को राजी नहीं हैं कक कृ ष्ण बांसुरी बजाते रहे होंिे, क्योंकक बांसुरी बजाने के विए जजंदिी के विए वजतनी जरूरत है िह कोई भी पूरी होती कदखाई नहीं पड़ती। तो अिर कृ ष्ण पर शक आ रहा हो आपके बच्चों को तो िे वजम्मेिार नहीं हैं हम ही वजम्मेिार हैं। क्योंकक हमने जो हाित पैदा की है, िह हाित प्रवतकक्रया में िे जाने िािी है। खतरा बहुत है। और खतरा बड़े से बड़ा खतरा यह है कक हमने अध्याममिाद के दुख झेि विए, कहीं अब हमें भौवतकिाद के दुख न झेिने पड़ें। कहीं ऐसा न हो कक हम अके िा वशखर विए बैठे रहे हैं और नींि न भरी, अब हम नींि भर कर बैठ जाएं और मंकदर न बनाएं। इसका बहुत िर है। इसविए भारत को अध्याममिाद के नीचे भौवतकिाद की नींि दे नी है, अध्याममिाद के वखिार् भौवतकिाद का आंदोिन नहीं करना है। असि में, भारत को अपने ऋवष-मुवनयों के विए िह नींि दे नी है वजसको िे खुद इनकार करते रहे हैं। असि में, भारत को महािीर और बुद्ध के पैरों के नीचे आइं स्टीन और न्यूटन को खड़ा करना है। क्योंकक उनके वबना महािीर और बुद्ध अब खड़े नहीं रह सकते। उनकी मूर्तियां विर जाएंिी और चूर-चूर हो जाएंिी और वमट्टी में वमि जाएंिी, िोि उनके ऊपर जूते रख कर चिेंिे, और कोई उपाय नहीं रह जाएिा। विज्ञान अिर भारत के मन का आिार बन जाए तो भारत की आममा िमि की उड़ान िे सकती है। और मैं विज्ञान और िमि में कोई विरोि नहीं दे खता। िेककन करठनाई है, िार्मिक आदमी विरोि दे खता है, और विज्ञान पढ़ने िािा विद्याथी भी विरोि दे खता है। िार्मिक आदमी मानता है कक विज्ञान की बातों ने िमि नि कर कदया और िह विज्ञान की वशक्षा पाने िािा युिक मानता है कक िमि की बकिास अंिविश्वास है, इसका विज्ञान से क्या संबंि है? एक खाई, एक जेनरे शन िैप पैदा हो रहा है। जहंदुस्तान में यह खाई वजतनी बड़ी है उतनी दुवनया में कहीं भी नहीं है। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच इतनी बड़ी खाई हो रही है कक उसके आर-पार हाथ र्ै िाने मुवश्कि मािूम हो रहे हैं। मैं नहीं मानता हं ऐसे र्र वजनमें बाप और बेटे बैठ कर बात भी करते हैं। कोई कम्युवनके शन नहीं है। मैं सैकड़ों र्रों में ठहरता हं। बाप और बेटे बच कर वनकिते हैं। या तो बाप को कोई उपदे श दे ना होता है तब बेटे को दो वमनट रोकता है, या बेटे को बाप की जेब से कु छ वनकािना होता है तब िह दो वमनट के विए वमिता है। िेककन कोई कम्युवनके शन नहीं है, कोई संिाद नहीं है, कोई दोनों के बीच कोई संबंि नहीं रह िया है। बाप ककसी और दुवनया का वहस्सा है, बेटा ककसी और दुवनया का वहस्सा है, बेटी कहीं और जी रही है, मां कहीं और जी रही है। न मां बेटी की बात समझ पाती, न बेटी मां की बात समझ पाती। उनके पास कॉमन िेंग्िेज भी नहीं है, समान भाषा भी नहीं वजसमें बातचीत हो सके ।



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जहंदुस्तान के सािु एक तरर् खड़े हैं िे अपनी बातचीत जारी रखे हुए हैं, िे अपने पुराने का िुहार मचा रहे हैं। जहंदुस्तान के जिान एक तरर् खड़े हुए हैं िे अपनी बातचीत जारी रखे हुए हैं िह अपनी बात वचल्िा रहे हैं और दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हो रही। जुि ं ने एक संस्मरण विखा है कक उसके पाििखाने में दो प्रोर्े सरों को इिाज के विए िाया िया। असि में, जो प्रोर्े सर एकाि दर्े कदमाि के इिाज के विए न जाए िह थोड़ा ठीक प्रोर्े सर नहीं है। ऐसा जानना भी चावहए। दोनों का कदमाि खराब हो िया है। उन दोनों को िाया िया है, उन दोनों का जुि ं अध्ययन करता है तो बड़ा हैरान हो जाता है। िह दे खता है कक िे अपने कमरे में बैठे दोनों बात करते हैं, बातें बड़ी ऊंची होती हैं, िेककन एक बड़ी अजीब बात है कक जो एक प्रोर्े सर जब बात करता है तो दूसरा चुप रहता है, और जब दूसरा बात करता है तो पहिा चुप रहता है। हािांकक उन दोनों की बात में कोई संबंि नहीं है। पहिा अिर आकाश की बात करता है तो दूसरा जमीन की बात करता है। उनमें कोई संबंि नहीं। खैर दो पाििों के बीच में कोई बात का संबंि न हो यह समझ में आता है। जुि ं को कदक्कत यह होती है कक जब दोनों पािि हैं और बात में कोई संबंि नहीं तो जब एक बोिता है तो दूसरा चुप क्यों हो जाता है? उसको बोिते रहना चावहए। िह अंदर जाता है और उनसे पूछता है कक मेरी समझ में आ िई सब बात, एक समझ में नहीं आती, कक जब एक बोिता है तो दूसरा चुप क्यों हो जाता है? तो िे दोनों हंसते हैं, िे कहते हैं कक आप समझते हैं कक हमें कनिरसेशन का वनयम नहीं मािूम। वनयम हमें मािूम है। बातचीत का वनयम यह है कक जब एक बोिे तब तुम चुप रहो। तो जुि ं कहता है कक जब तुम्हें इतना मािूम है बातचीत का वनयम कक जब एक बोिे तब तुम चुप रहो, तब तुम्हें यह भी तो पता होना चावहए कक जो एक बोि रहा है तुम्हारे बोिने में उससे कु छ संबंि हो। तो िे दोनों पािि हंसते हैं, िे कहते हैं खैर हम तो पािि हैं, िेककन हमने ऐसे आदमी ही नहीं दे खे वजनकी बातचीत में कोई संबंि हो। हम तो पािि हैं िेककन हमने और आदमी भी नहीं दे खे वजनकी बातचीत में कोई संबंि हो। िेककन यह बात शायद उन पाििों की सबके बाबत सही न हो, िेककन इस िि, इस मुल्क में यह सही हो िई है। बाप और बेटे की बातचीत में कोई संबंि नहीं, दो पाििों की बातचीत है। िुरु और वशष्य के बीच कोई संबंि नहीं, दो पाििों की बातचीत है। िुरु अपनी कहे चिा जा रहा है, वशष्य अपनी कहे चिा जा रहा है। िुरु ही बोि रहा है और िह खुद ही सुन रहा है और वशष्य बोि रहा है और िह खुद ही सुन रहा है। सुनने और बोिने का काम एक ही आदमी को खुद ही करना पड़ रहा है। बाप जो बोिता है, बाप ही सुनता है, बेटा सुनता नहीं। जब बाप बोिता है तब बेटा इस तैयारी में होता है कक कै से इस सुनने के दायरे के बाहर हो जाए। जब बेटा बोिता है तब बाप ऐसे सुनता है जैसे कक यह बात न ही सुनी होती तो अच्छा था। इन दोनों पीकढ़यों के बीच जो यह िैप है, यह िैप नये भारत के वनमािण में सबसे बड़ी बािा बनेिा। यह जो अंतराि है यह अंतराि नये भारत को कै से बनने दे िा? क्योंकक नये भारत को बनाना है नये िड़कों को और नये भारत के िड़के अिर अपनी पुरानी पीकढ़यों की सारी समझ के वबना भारत को बनाएंिे, तो भारत एक मैटीररयविस्ट मुल्क होिा, एक भौवतकिादी मुल्क होिा। वजसमें अध्यात्म के विए हमने सब आिार तोड़ कदए होंिे, वजसमें हमने अध्यामम के विए सब ओपजनंि खमम कर दी होंिी, वजसमें हम अध्यामम के र्ू ि नहीं वखिने दें िे। अिर भारत नये िड़के बनाएंिे वसर्ि , तो भारत वनपट शरीरिादी मुल्क होिा, वजसमें आममा कोशायद हम िीरे -िीरे भूिते चिे जाएंिे। और अिर भारत के नये बच्चे वनमािण न कर पाएं और भारत के बूढ़े जीत जाएं और



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िे ही भारत को बनाए चिे जाएं, तो भारत का जो पुराना रोि है िह अपनी जिह रहेिा, उसे वमटाया नहीं जा सकता। पुराने आदमी की समझ चावहए, नये आदमी की शवि चावहए। पुराने आदमी का अनुभि चावहए, नये आदमी का भविष्य चावहए। अनुभि अतीत से आता है, भविष्य आशाओं से आता है। बूढ़े आदमी के पास आशाएं नहीं होती हैं, अतीत होता है, अनुभि होता है। नये आदमी के पास आशाएं होती हैं, अनुभि नहीं होता, अतीत नहीं होता। असि में, पुरानी और नई पीढ़ी सदा उस हाित में होती हैं वजस हाित में कभी एक जंिि में आि िि िई थी और एक अंिे और िंिड़े ने अपने को पाया था। अंिा दे ख नहीं सकता था, िंिड़ा भाि नहीं सकता था। आि भयंकर थी और दोनों की मौत वनवश्चत थी। करीब-करीब भारत ऐसी आि के बीच में खड़ा है। जहां एक पीढ़ी अंिी है और एक पीढ़ी िंिड़ी है। बूढ़ी पीढ़ी िंिड़ी है और नई पीढ़ी अंिी है और आि भयंकर है, और दोनों जि कर मर जाएंिी। िेककन उन दोनों िंिड़े और अंिे आदवमयों ने बड़ी समझ का उपयोि ककया। िंिड़ा राजी हो िया कं िे पर बैठने को, अंिा राजी हो िया िंिड़े को कं िे पर वबठाने को। अंिा राजी हो िया िंिड़े की आंखों से काम िेने को, िंिड़ा राजी हो िया अंिे के पैरों से काम िेने को। िे दोनों जंिि के बाहर वनकि िए थे। क्योंकक अंिा नीचे था और चि रहा था, िंिड़ा ऊपर था और दे ख रहा था। दो आदवमयों ने एक आदमी का काम कर विया था। हमेशा जब भी सृजन का कोई क्षण हो ककसी दे श में तो पुरानी और नई पीढ़ी इसी हाित में पड़ जाती है। पुरानी पीढ़ी के पास आंख तो होती है िेककन दौड़ने के पैर नहीं होते। पुरानी पीढ़ी बैठने को राजी होिी? ये दौड़ते जिान बूढ़ों का बोझ िेने को तैयार होंिे? ये मरते हुए बूढ़े इन जिानों के दौड़ने की और िवत कोझेिने के विए तैयार होंिे? ये सिाि हैं नये भारत के विए। अभी मुझे नहीं कदखाई पड़ता कक ऐसा हो रहा है। अभी ऐसा हो रहा है कक अंिे दौड़ रहे हैं तेजी से। तो बजाए रास्ते पर पहुंचने के िे आि में पहुंच जाते हैं। िह सब तरर् आि िि रही है। िह आि बहुत तरह की है, बहुत रूपों में। इसविए इस िि आि के कें द्र भारत में ही नहीं, सारी दुवनया में युवनिर्सिटीज बन िई हैं। क्योंकक िहां पैर स्िस्थ और आंखें नहीं हैं, ऐसे िोिों की बड़ी जमातें इकट्ठी हो िई हैं। इस िि सारी दुवनया में उपद्रि और आि का कें द्र विश्वविद्यािय है। आि सबसे जोर से िहां है और िहां आंखहीन शविशािी पैर िािे युिक हैं, जो दौड़ेंिे। इसविए नहीं कक कहीं पहुंचना है, क्योंकक कहीं पहुंचने का ख्याि तो आंख को होता है। इसविए कक पैरों में ताकत है और दौड़े वबना नहीं रहा जा सकता, दौड़ना ही पड़ेिा। दूसरी तरर् बूढ़े कट कर पड़ िए हैं--िे चाहे मंकदरों में बैठे हों, चाहे आश्रमों में बैठे हों, चाहे अपने र्रों में बैठे हों, िे कट कर बैठ िए हैं। उनके पास आंख हैं िे दे ख सकते हैं आि कहां ििी है। िेककन पैर उनके पास नहीं हैं। न तो िे दौड़ सकते हैं और न ही िे दौड़ने िािे िोिों की सहायता िेने को तैयार हैं। नये भारत का जन्म हो सकता है इस आि के बाहर। बूढ़े और जिान को भारत में सेतु वनमािण करना पड़े। और इिर मैं वनरं तर सोचता हं कक हमें ऐसे कु छ वशविर, और ऐसी कु छ सेमीनार, और ऐसे कु छ वमिन के स्थान बनाने चावहए जहां नई और पुरानी पीढ़ी आमने-सामने बात कर सके । जहां बाप और बेटे अपनी तकिीर्ें और अपनी संभािनाएं और अपने दुख कह सकें । और जहां बेटे बाप को सहानुभूवत से सुन सकें और जहां बाप बेटों को सहानुभूवत से सुन सकें ।



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अिर जहंदुस्तान में ऐसा िायिॉि पैदा नहीं होता, तो हम नये भारत का वनमािण न कर पाएंिे। भारत नया हो जाएिा, िेककन नये हो जाने से तो सब कु छ नहीं हो जाता। नया हो जाना दुखद भी हो सकता है, नया हो जाना िित भी हो सकता है, नया हो जाना और बड़े िड्ढे में विर जाना भी हो सकता है। हां, कई बार वसर्ि नये हो जाने से भी राहत वमिती है, क्योंकक बदिाहट की राहत होती है। िेककन थोड़ी दे र बाद पता चिता है कक बीमाररयां सब अपनी जिह खड़ी हैं या और भयंकर होकर आ िई हैं। आदमी मरर्ट िे जाते हैं ककसी को, अरथी को, तो रास्ते में कं िे बदि िेते हैं। एक कं िा दुखने ििता है तो अरथी को दूसरे कं िे पर रख िेते हैं। कं िा बदिने से िजन कम नहीं होता, अरथी में कोई र्कि नहीं पड़ता, रास्ता िही का िही होता है िेककन दूसरे कं िे पर थोड़ी दे र राहत वमि जाती है, नया कं िा होता है थोड़ी दे र झेि िेते हैं। भारत वसर्ि कं िा तो नहीं बदि िेिा कक बीमाररयां वसर्ि कं िा बदि िें और पुरानी बीमाररयां नये नाम िे िें और पुरानी शराबें नई बोतिों में भर जाएं? तो भी नया तो हो जाएिा, ऐसा ििेिा कक नया हो िया है। िेककन नया हो भी नहीं पाएिा कक पता चिेिा कक सब पुराना अपनी जिह खड़ा है। नहीं; भारत को मात्र नया नहीं हो जाना है। भारत कोशुभ की कदशा में, समय की कदशा में, शांवत की कदशा में, शवि की कदशा में, आनंद की कदशा में, जीिन की कदशा में, मुवि की कदशा में, एक साथ एक संतुवित व्यविमि को पैदा करना है। वजसमें पुराने की भूि न हो, पुराने की सब समृवद्ध हो, वजसमें नये की नासमझी न हो, नये का सारा नया ज्ञान हो। एक अभूतपूिि र्टना र्ट िई है मनुष्य के इवतहास में, इस बीसिीं सदी में, उसकी मैं बात करूं, कर्र मैं अपनी बात पूरी कर दूं। और िह र्टना यह र्ट िई है कक आज से कोई दो सौ िषि पहिे तक दुवनया में आदमी और आदमी के ज्ञान में कभी बहुत र्ासिा नहीं पड़ता था। असि में, आदमी सदा ही अपने ज्ञान के आिे होता था और ज्ञान सदा पीछे होता था। आज से दो सौ साि पहिे तक आदमी के पीछे ज्ञान छाया की तरह था। िह आदमी के आिे नहीं होता था, सदा आदमी के पीछे होता था। क्योंकक ज्ञान का विकास अवत मवद्धम था, उसकी िवत बहुत िीमी थी। जीसस के मरने के साढ़े अठारह सौ िषों में वजतना ज्ञान दुवनया में पैदा हुआ उतना ज्ञान वपछिे िेढ़ सौ िषों में पैदा हुआ। और वपछिे िेढ़ सौ िषों में वजतना ज्ञान पैदा हुआ उतना वपछिे पंद्रह िषों में पैदा हुआ। और वजतना वपछिे पंद्रह िषों में ज्ञान पैदा हुआ उतना वपछिे पांच िषों में पैदा हुआ। अब हम पांच िषि में इतना ज्ञान पैदा करते हैं वजतना पुरानी दुवनया साढ़े अठारह सौ िषि में पैदा करती थी। साढ़े अठारह सौ िषि में अनेक पीकढ़यां बदि जाती थीं और ज्ञान िीरे -िीरे बदिता था और आदमी ज्ञान के बदिने की चोट को कभी अनुभि नहीं करता था। िह इतने आवहस्ता बदिता था, आवहस्ता बदिता था कक आदमी उसमें रच-पच जाता था, िह उसका खून बन जाता था। एक िैज्ञावनक प्रयोि कर रहा था। उसने एक मेंढक को उबिते हुए पानी में िाि कदया, िह मेंढक छिांि ििा कर बाहर वनकि िया। क्योंकक उबिने का संर्ात इतना तीव्र था! कर्र उसने उस मेढक को सािारण पानी में रखा और आवहस्ता-आवहस्ता पानी को िमि करना शुरू ककया, िह िमि करता िया, इस िमि करने में उसने कोई आठ र्ंटे ििाए। पानी उबिने ििा, मेंढक िहीं बैठा रहा और उबिता रहा। आठ र्ंटे में िह मेंढक जो है कं िीशंि हो िया। आठ र्ंटे में िह िीरे -िीरे -िीरे -िीरे इतनी िीमी िवत से िमी बढ़ी कक मेंढक उसके विए राजी होता िया। मेंढक आिे बढ़ता िया, राजी होता िया, िमी पीछे चिती रही, मेंढक सदा आिे होता िया। छिांि उसने िहां भी ििाई िेककन पूरे बतिन के बाहर छिांि ििाने की जरूरत न पड़ी। पुराने िमी का जो 164



उसके शरीर का ति था, उसने इं च भर आिे बढ़ कर छिांि िे िी और अपने शरीर की िमी को आिे कर विया। िह िमि होता रहा, मर िया, उसे पता नहीं चिा। िेककन उतने ही उबिते पानी में नये मेंढक को िािो, छिांि ििा कर बाहर हो जाएिा। क्यों? क्योंकक िमी बहुत आिे, मेंढक बहुत पीछे पड़ िया और मेंढक को मौका नहीं वमिा कक िह िमी के विए एिजेस्ट हो जाए। पुरानी दुवनया एिजेवस्टि थी। उसका एिजेस्टमेंट पक्का था। क्योंकक ज्ञान इतने िीमे बढ़ता था कक एक आदमी की जजंदिी में कोई बुवनयादी र्कि नहीं पड़ते थे। जन्म िेते िि आदमी दुवनया को जहां पाता था करीबकरीब िहीं मरते िि छोड़ता था। न रास्ते बदिते थे, न बैििाड़ी बदिती थी, न खेती बदिती थी, न मकान बदिते थे, न दिाई बदिती थी, कु छ नहीं बदिता था। या बदिाहट इतनी िीमी होती थी कक उस बदिाहट की कोई चोट आदमी पर नहीं पड़ती थी। पुराना इतना ज्यादा होता था, नया इतना कम होता था कक पुराना उसे आममसात कर जाता था, पी जाता। इिर पचास िषों में मुवश्कि हो िई। ज्ञान छिांिें ििा रहा है बहुत आिे। आदमी जमीन पर रहने के योग्य नहीं हो पाया और विज्ञान चांद पर पहुंचा कदया है। आदमी अभी जमीन पर रहने के योग्य वबल्कु ि नहीं है। इसविए बट्रेंि रसि ने वजस कदन पहिी दर्ा आदमी ने पृथ्िी की सीमा को पार ककया, आर्बिट को पार ककया, उस कदन जो ििव्य कदया था िह बहुत उवचत था। बट्रेंि रसि ने यह कहा कक मैं बहुत परे शावनयों से वर्र िया हं। जब कक सारी दुवनया ने स्िाित ककया। तब बट्रेंि रसि ने कहा कक मैं बहुत एंग्जाइटी और जचंता से भर िया हं। क्योंकक वजस आदमी ने अभी पृथ्िी की बेिकू कर्यों को अंत नहीं ककया और पृथ्िी को बेिकू कर्यों से भर कदया, िह अपनी बेिकू कर्यों को चांद पर भी िे जाने की कोवशश कर रहा है। कहीं इसकी बीमाररयां सारे जित में न र्ै ि जाएं? अभी जमीन ही इतनी नासमझी से भरी है, िेककन ज्ञान हमारा चांद पर पहुंचाने िािा हो िया। हमारी सारी नासमवझयां आदमी का सारा ढंि जीने का पुराना है और ज्ञान ने छिांि िे िी है। अब इस ज्ञान ने नई वस्थवतयां बना दी हैं, वजनके साथ एिजेस्ट होना पड़ेिा। एक आदमी है अमेररका में, उस आदमी ने एक छोटा सा प्रयोि ककया जो हैरानी का है। उसने एक प्रयोि ककया, िह िोरा आदमी है, सर्े द चमड़ी का आदमी है। उसने एक प्रयोि ककया कक उसने अपने शरीर पर किरवपग्मेंटस के इं जेक्शन िििाए और अपने शरीर को नीग्रो जैसा कािा करिा विया। उस आदमी का नाम है--हाििि ग्रेर्ीन। वहम्मत का प्रयोि ककया। उसने इं जेक्शंस िििा कर अपनी सारी चमड़ी को कािा करिा विया। बाि र्ुंर्रािे बनिाने की कोवशश की, िेककन नहीं बन सके , तो उसने वसर र्ुटिा िािा। एक रात िह पूरी तरह नीग्रो होकर अपने कमरे से बाहर वनकि िया। यह अनुभि करने कक एक सर्े द आदमी नीग्रो की चमड़ी में ककस वस्थवत से िुजरे िा। िह है तो सर्े द आदमी। िेककन अमेररका में नीग्रो की क्या वस्थवत है सर्े द आदमी कभी अनुभि नहीं कर सकता। क्योंकक िह नीग्रो की जिह कभी खड़ा नहीं हो सकता। तो िह नीग्रो बन कर वनकि पड़ा। उस आदमी ने अपने संस्मरण विखे हैं िे बड़ी हैरानी के हैं। उसने विखे हैं कक मैं पहिे तो बहुत िरा आईने के सामने जाने में, कर्र भी मैंने सोचा, कक रहंिा तो मैं िही वसर्ि कािा हो िया हं। तो जब िह आईने के सामने िया और उसने वबजिी का बटन दबाया, वबजिी का बटन दबाते िि भी उसके हाथ कं पे। जब उसने वबजिी का बटन दबाया और आईने में दे खा तो उसे पता चिा कक यह मैं िही नहीं हं, यह तो आदमी ही कोई और है। 165



उसकी सारी आइिेंरटटी िड़बड़ हो िई। उसका जो अपना नाम था, अपना ज्ञान था, अपनी जो समझ थी, िह सब िड़बड़ हो िई। िह एकदम से, वजसको कहना चावहए मैिएिजेस्टमेंट हो िया, सब चीजें अस्तव्यस्त हो िईं। िह अपने ही हाथ को अब ऐसा नहीं मान सकता कक मेरा है। अब उसे शरीर अपना वबल्कु ि अिि मािूम पड़ने ििा और खुद वबल्कु ि अिि मािूम पड़ने ििा। है तो िह िोरा आदमी, िोरे आदमी की वप्रज्युविस और िोरे आदमी के ख्याि और हो िया है नीग्रो! अिर इस आदमी की चमड़ी िीरे -िीरे -िीरे -िीरे कािी पड़ती जाए और सत्तर साि िि जाएं, तो ऐसी कदक्कत नहीं आएिी। यह इं जेक्शन से बारह र्ंटे के भीतर संभि हो िया। इसके दो वहस्से हो िए। यह आदमी वस्कजोिे वनया में पड़ िया। इसका एक वहस्सा नीग्रो हो िया जो वबल्कु ि अिि है और एक वहस्सा अंग्रेज रह िया जो वबल्कु ि अिि है। अब इन दोनों के बीच कोई तािमेि न रहा। उसका वसर र्ूमने ििा। िह सड़क पर चि रहा है तो उसे पता नहीं चिता कक मैं कौन हं? और िोि उसकी तरर् दे खते हैं तो आंखें अब िही नहीं हैं जो कि तक थीं। अब िोि उसे और तरह से दे ख रहे हैं। अब िह एक होटि में प्रिेश कर रहा है तो िोि उसे और तरह से दे ख रहे हैं। िोि उससे और तरह का व्यिहार कर रहे हैं। अब िह भीतर हंस रहा है, क्योंकक यह व्यिहार नीग्रो के साथ हो रहा है जो िह नहीं है। िह अपनी चमड़ी को भी िोता है तो उसे ऐसा ििता है िह ककसी और की चमड़ी िो रहा है। यह र्टना इतनी तेजी से र्ट िई कक इसके व्यविमि में खंि हो िया। मनुष्य-जावत ने जोर से ज्ञान उमपन्न ककया है और ज्ञान एक्सेविरे टटंि है, िह रोज िवत बढ़ती जाएिी। अििे कदनों में ढाई िषि में इतना हो जाएिा, कर्र सिा िषि में इतना हो जाएिा, कर्र महीने भर में इतना हो जाएिा। इस सदी के पूरे होते-होते आदमी अपने को बड़ी मुवश्कि में पाएिा और िह यह कक िह बहुत पीछे रह िया और ज्ञान रोज बदिता जा रहा है। और उस ज्ञान के साथ नये एिजेस्टमेंट खोजने करठन हो जाएंिे। भारत के विए जो सबसे बड़ा सिाि है िह यह है कक सारी दुवनया ने जो ज्ञान की खोज की है और हमने तो िह खोज नहीं की। तो हम तो अपने र्र में जी रहे थे। जहां बैििावड़यां थीं, जहां शूद्र थे, जहां जहंदूमुसिमान थे, जहां िाह्मण शूद्र की छाया से बच रहा था। हम अपनी उस दुवनया में जी रहे थे। अचानक आंख खुिी और हमने पाया कक जैसे एक सपना टू ट िया, न यहां बैििावड़यां हैं! यहां .जेट प्िेन हैं, जो विवक्षप्त रफ्तार से चांद की तरर् जा रहे हैं। न यहां कोई िाह्मण है, न कोई शूद्र है। सब कु छ बदि िया है चारों तरर्। इस बदिे हुए के साथ नये भारत को अपना एिजेस्टमेंट खोजना है। इस बदिे हुए के साथ अपना समायोजन करना है। या तो हम पािि हो जाएंिे, वस्कजोिे वनक हो जाएंिे, और हम जीने से इनकार कर दें िे कक हम नहीं जी सकते और या कर्र हम एक छिांि िेने की तैयारी जुटाएंिे। यह तैयारी भारत के इवतहास में पहिा मौका होिी। ऐसा मौका भारत को कभी नहीं आया था। यूरोप में ऐसा मौका नहीं आया जैसा हमें आया है, क्योंकक यूरोप को विज्ञान का विकास िीरे -िीरे हुआ है, िहां मेंढक की िमी िीरे -िीरे बढ़ी। िहां चमड़ी आवहस्ता बदिी। यूरोप एिजेस्ट हो िया है। भारत के सामने जो सिाि है िह अमेररका के सामने नहीं है, रूस के सामने नहीं है, िह यूरोप के सामने नहीं है। िह सिाि चीन के सामने भी नहीं है। क्योंकक चीन कोड़े के बि पर छिांि िििा िेिा। बंदूक के बि पर छिांि िि जाएिी िहां।



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जहंदुस्तान के सामने बड़ा सिाि है कक िोकतांवत्रक दे श, छिांि बंदूक के कुं दे पर नहीं िििाई जा सकती। और इवतहास की प्रकक्रया में हम ऐसी जिह खड़े हो िए हैं, जहां हमें छिांि ििानी पड़ेिी, अन्यथा हम पािि हो जाएंिे। नया भारत अपनी पुरानी सारी शवि को बटोर कर एक बार अिर छिांि ििाने की तैयारी कदखाए। इस छिांि की तैयारी में जिान के पैरों की जरूरत होिी, बूढ़े की समझ की जरूरत होिी। अिर हम सारी ताकत इकट्ठी करके ििा सकें । िेककन ऐसा ििता है कक यह नहीं हो पाएिा। क्योंकक मुल्क में सारी ताकतें तोड़ने िािी हैं। कोई महाराष्ट्रीयन को िुजराती से तोड़ता है। कोई जहंदी बोिने िािे को िैर-जहंदी िािे से तोड़ता है। कोई जहंदू को मुसिमान से तोड़ता है। कोई िरीब को अमीर से तोड़ता है। कोई दवक्षण को उत्तर से तोड़ता है। कोई बाप को बेटे से तोड़ रहा है। कोई वशक्षक को वशष्य से तोड़ रहा है। सारा मुल्क वस्प्िट है और सारा मुल्क खंि-खंि है। हम इकट्ठी ताकत कै से ििा पाएंिे? अिर हम यह नहीं ििा पाए तो भारत नया होिा इसकी संभािना कम है। भारत विवक्षप्त हो जाएिा इसकी संभािना ज्यादा है। भारत पूरा का पूरा पािि हो सकता है, इसकी संभािना ज्यादा है। ये हमें विकल्प सीिे दे ख िेने चावहए। एक रास्ता तो यह कक हम पािि हो जाएं, वजसमें हमारे राजनैवतक बड़े कु शि हैं, िे हमें पािि करिा सकते हैं। दूसरा रास्ता यह है कक वजसे हमें बहुत बुवद्धमत्ता पूििक भारत की सारी शवियों को इकट्ठा करके --भारत में न तो िरीब और अमीर के बीच कोई संर्षि चावहए अभी पचास िषों तक, न भारत में विद्याथी-वशक्षक के बीच कोई संर्षि चावहए, न भारत में स्त्री-पुरुष के बीच कोई संर्षि चावहए, न भारत में जहंदी बोिने िािे िैर-जहंदी बोिने िािे के बीच संर्षि चावहए। भारत में पचास िषों तक कोई संर्षि नहीं चावहए। भारत में पचास िषों तक टोटि कोआपरे शन, पूणि सहयोि चावहए। तोशायद हम नये भारत को जन्म दे ने में समथि हो सकते हैं। और अिर यह नहीं हुआ तो मैं समझता हं कक जो होिा िह पुराने भारत से भी बदतर होने िािा। िह विवक्षप्त भारत होिा, पािि भारत होिा। आदवमयों के पािि होने के संबंि में हमने सुना है, िेककन आदवमयों के पािि होने की जो वस्थवतयां होती हैं िे पूरे राष्ट्र के विए हमारे विए खड़ी हो िई हैं। पूरा मुल्क पािि हो सकता है। ये थोड़ी सी बातें मैंने कही हैं इस आशा में कक आप सोचेंिे। मैं कोई माििदशिक नहीं हं। इससे मुझे जो सीिी सार् बात है कह दे ने में सुवििा हो जाती है। आप मेरी बात मानें ऐसा आग्रह नहीं है, आप वसर्ि सोचें। असि में, भारत बहुत जल्दी मान िेता है ककसी की भी बात, यही खतरा हो िया। तो कम्युवनस्ट कहेंिे तो उनकी मान िेिा, सोशविस्ट कहेंिे उनकी मान िेिा, जनसंिी कहेंिे उनकी मान िेिा, राजनीवतज्ञ कहेंिे उनकी मान िेिा, सािु कहेंिे उनकी मान िेिा। हजार तरह के मानने िािे मुल्क में इकट्ठे हो जाएंिे और सारा मुल्क टू ट जाता। मानना बंद करें । अिर मुल्क की टू ट बंद करनी है तो ककसी को भी मानना बंद करें । सोचना शुरू करें ? सोचना एकमात्र एकता है। अिर पूरा मुल्क सोचने ििे, तो सोचने के वनयम अिि-अिि नहीं होते। अिर आप भी जोड़ें दो और दो ककतने हैं तो चार होंिे और मैं भी जोिू ं तो चार होंिे और तीसरा भी जोड़े तो चार होंिे। अिर हम सोचते हैं तो दो और दो चार होंिे। िेककन मैं मानता हं कक कु रान में विखा है कक दो और दो पांच होते हैं, मैं कु रान को मानता हं। आप िीता को मानते हैं, उसमें विखा है दो और दो तीन होते हैं, आपके



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तीन होंिे। कोई माक्सि को मानता है उसकी ककताब में विखा है कक दो और दो दो ही होते हैं, तो िह दो ही होंिे। मानने िािे िोि मुल्क को तुड़िा रहे हैं, तोड़े हुए हैं। मुल्क को विचार करने िािे िोि चावहए। विचार के वनष्कषि सदा एक है। विचार युवनिसिि है तो मेरी बात को आप वसर्ि सोचेंिे, मानेंिे नहीं। अन्यथा मैं भी एक टु कड़े को तोड़ने िािा ही वसद्ध हो जाऊंिा, सोचें, सोचना हमें एक जिह िे आएिा। जहां हम छिांि ििाने की तैयारी कर सकते हैं। मेरी बातों को इतनी शांवत और प्रेम से सुना, इससे बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं। मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य चौदहिां प्रिचन



मेर ी करुणा बहुत शाश्वत है सादिी का कभी-कभी मजाक करते हैं तो ऐसा नहीं है कक िांिी जी ने इस दे श का वनरीक्षण ककया, पयिटन ककया और करुणा की िजह से उन्होंने जीिन में जो जरूरी थी उतनी चीजों से चिा कर िह सादिी का अंिीकार ककया था, िह करुणा की िजह से ककया नहीं है िह? करुणा की िजह से हो या न हो, इससे बहुत र्कि नहीं पड़ता। मेरे विए यह बात महमिपूणि नहीं है कक िांिी जी ने ककस िजह से सादिी अवख्तयार की। मेरे विए महमिपूणि बात यह है कक सादिी का रुख मुल्क को िरीब बनाता है। मेरे विए िह महमिपूणि नहीं है। िह िांिी जी की व्यविित बात है कक िे करुणा से सादे रहे हैं, या उनको कोई ऑब्सेशन है इसविए सादे रहे हैं, या कदमाि खराब है इसविए सादे रहे हैं। इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है। िह िांिी जी की वनजी बात है। मेरे विए प्रयोजन वजस बात से है िह यह है कक जो मुल्क सादिी को प्रवतष्ठा दे ता है िह मुल्क संपन्न नहीं हो सकता। मेरे विए जो आिार है आिोचना का िह वबल्कु ि दूसरा है। इससे मुझे प्रयोजन ही नहीं है। िांिी जी की करुणा हो िह उनके साथ है। िेककन जो सिाि है िह यह है कक अिर हम एक बार ककसी मुल्क में-आिश्यकताएं कम होनी चावहए, सादिी होनी चावहए, जीिन सीिा होना चावहए, चीजें कम होनी चावहए, कम से कम जरूरत में हमें पूरा करना चावहए। इस िारणा को अिर मजबूत बना िे तो यह िरीब रहने का रामबाण नुस्खा है। इससे कर्र कभी कोई कौम संपन्न नहीं हो सकती। इसविए अिर िांिी जी करुणा से कह रहे हैं तो मैं भी करुणा से कह रहा हं कक िह उनकी बात बकिास है। मेरी बात समझ रहे हैं न? यानी मैं भी करुणा से ही कह रहा हं और अिर उनकी करुणा बहुत सामवयक है तो मेरी करुणा बहुत शाश्वत है। क्योंकक पांच हजार साि में वजन िोिों ने भी करुणा के कारण जहंदुस्तान को सादा रहने की वशक्षा दी है, िे ही िोि वजम्मेिार हैं जहंदुस्तान की िरीबी के विए। जहंदुस्तान कभी भी अमीर हो सकता था। िेककन अमीरी के अपने सूत्र हैं। अमीरी का पहिा सूत्र तो यह है कक जो है उससे हम संतुि न हों। असंतोष सदा बना रहे। वजतनी हमारी आिश्यकताएं हैं, उतने पर हम ठहर न जाएं, हमारी आिश्यकताएं रोज विस्तीणि होती रहें। जजंदिी का जो विकास है िह जरटिता से है। तो वजतना जरटि होता है उतना ही विकास होता है। बुद्ध भी करुणा कर रहे हैं, महािीर भी करुणा कर रहे हैं, िांिी जी भी करुणा कर रहे हैं, सब करुणा कर रहे हैं, यह मुल्क मरा जा रहा है। उनकी करुणा महंिी है। उनकी करुणा मेरी दृवि में मुल्क के वहत में नहीं है, मंििदायी नहीं है, कदखाई तो पड़ती है। कदखाई तो ऐसा पड़ता है कक ठीक है भई इतना िरीब दे श है। इस मुल्क को अिर हम िरीबी में रहने की राजी करने की व्यिस्था नहीं करें िे तो यह मुल्क तो बहुत परे शान हो जाएिा। िेककन मेरा मानना है कक वजतना यह िरीब रह कर परे शान होिा, उतना िरीबी से मुि होने के विए परे शान होना, उतना खतरनाक नहीं है।



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इस िरीबी को कहीं तोड़ना पड़ेिा। िांिी जी को पांच हजार साि के बाद भी करुणा करनी पड़ती है, अिर आप िांिी जी को मानते हैं तो पांच हजार साि बाद भी करुणा करनी ही पड़ेिी हमको इस मुल्क में। यह व्यिस्था नहीं टू टेिी। इसविए यह महमिपूणि नहीं है। मैं िांिी जी करुणा पर कोई बात नहीं कह रहा हं। कोई सिाि नहीं है। मैं आपको करुणा से भर कर आप बीमार हैं और आपको वमठाई दे दे ता हं। मैं करुणा से ही दे ता हं इससे कोई सिाि नहीं है। आप पर क्या होिा अंवतम पररणाम, सिाि यह है? अंवतम पररणाम मैं मानता हं कक आिश्यकताएं कम करने की कल्पना, कम आिश्यकताओं में जीने की आस्था, जजंदिी को विकवसत नहीं होने दे ती। अन्यथा हम शायद जमीन पर सबसे समृद्ध कौम हो सकते हैं, सबसे। जमीन कहीं भी इतनी समृद्ध नहीं है वजतनी हमारी है। और सबसे पहिे दुवनया में हमने ही मानवसक रूप से विकास ककया, बाकी कौमों ने, बहुत पीछे आईं। और आज हाित उिटी हो िई। आज हाित यह है कक हम उनसे कै से उनके कदम वमिाएं, यह सिाि है। नहीं तो दुवनया में हमसे कोई कदम नहीं वमिा सकता था। िवणत हमने कोई तीन हजार साि पहिे खोज विया था। विज्ञान के मूिभूत कदम हमने कोई ढाई हजार साि पहिे खोज विए थे। दुवनया की सारी महमिपूणि खोज की शुरुआत हमने की िेककन पूरा ककसी और ने ककया है। जब कक हम बहुत आिे थे। यानी आज िायि जो कह रहा है, िह हमारा पतंजवि, हमारा बुद्ध ढाई हजार साि पहिे समझता था। अभी उनके पास जो भी समझ है िह ज्यादा से ज्यादा तीन सौ साि पुरानी है। हमारे पास जो समझ है िह पांच हजार साि पुरानी है। िेककन समझ भी थी, सुवििा भी थी, दे श के स्रोत संपन्न थे। िेककन हमने जो कर्िासर्ी पकड़ी, हमने जो जीिन-दशिन पकड़ा िह सादिी का था। उसने हमें नुकसान पहुंचाया। यह सब इस बात पर वनभिर करता है, दो चीजों पर वनभिर करता है। भविष्य को दे खते हैं आप या वसर्ि ितिमान को दे खते हैं? अिर वसर्ि ितिमान को दे खते हैं तो िांिी की करुणा बहुत साथिक मािूम पड़ेिी। िेककन अिर भविष्य को दे खते हैं तो बहुत खतरनाक और पाय.जनस, विषाि मािूम पड़ेिी। पर मुझे उससे प्रयोजन ही नहीं है। यानी मैं यह कहता हं, एक आदमी करुणा करे यह उसका मजा होिा। िेककन इस करुणा का विस्तीणि पररणाम क्या होिा? और इसमें िांिी जी से मुझे िेना दे ना नहीं है। असि में, मेरी बात समझने में करठनाई होती है। असिी सिाि तो हमारी दृवि का है। िांिी जी उस दृवि को कर्र मजबूत कर जाते हैं। रचनाममक काम के बारे में जब आप कहते हैं तो कोई ऐसा ख्याि नहीं है कक दे श में वजतना कपड़ा है उससे कम कपड़ा वमिे। जब दे श को ग्यारह िज कपड़ा वमिता था तब िांिी जी ने तीस िज कपड़ा हरे क को वमिना चावहए ऐसा विचार कहा। िेककन िह प्राप्त करने के विए सािन कौन से इस्तेमाि करें । आज दे श में दे खेंिे तो दो पंचिषीय योजना के बाद सत्रह िज से ज्यादा कपड़ा हम उमपन्न नहीं कर सकते हैं क्योंकक उसका वबक्री नहीं हो सका है। तो िांिी ने तो ऐसा कहा कक वजनको कपड़ा पहनने को नहीं वमिता है िह कपड़े िािा हो। उसके विए उमपादन के सािन जो उनको वमिे उन्होंने विए, उस जमाने में चरखा वमिा तो चरखा विया। अब हमें चरखा वमिा तो एक आदमी वसर्ि बीस र्ंटा काम करे , तो भी उसको पांच-सात िज कपड़ा वमि सकता है। ऐसे औजार स्रोत की खोज हुई है। इसका मतिब आपका जो यह ख्याि है कक रचनाममक काम दे श को दररद्र बनाने के विए है या नहीं।



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नहीं, रचनाममक काम की बात ही नहीं की है अभी। मैंने जो बात की है िह सादिी के िक्ष्य की बात की है। रचनाममक काम की बात मैं अिि से आपसे करता हं। आपने जो सिाि उठाया था िह रचनाममक से संबंवित नहीं था। जो मैंने बात की है िह यह की है कक सादिी मेरे विए िक्ष्य नहीं है। मेरे विए जीिन को वजतने िैभि और संपन्नता से जीआ जा सके उतना ही मैं मानता हं उवचत है। क्योंकक उसके िैभि और संपन्नता से जीने की जो अभीप्सा है िह हमारी सोई हुई शवियों को चुनौती दे ती है और हम आिे बढ़ते हैं। कोई अमरीका में इतनी संपवत्त पैदा हो जाए और हम भीख मांिते रहें। इसमें कु छ अमरीका की जमीन की विशेषता नहीं, वसर्ि अमरीका के मवस्तष्क की विशेषता है। क्योंकक िह सादिी से जीने को राजी नहीं है। और मजे की बात यह है कक िह जो चीज पा िेता है उसी को सादिी मानने ििता है, र्ौरन। और आिे बढ़ने की कोवशश करने ििता है। अिर ककसी के पास बहुत बड़ी िाड़ी है तो िह भी सादी हो जाती है, और बड़ी िाड़ी चावहए। यह तो मैंने सादिी... रचनाममक वजसको आप कह रहे हैं, मैं नहीं मानता कक रचनाममक है। क्योंकक कारण क्या है, पहिी तो बात यह है कक अिर एक आदमी, िांिी जी ने जो उपाय सुझाए चरखा या तकिी या उस तरह के सामान्य यंत्र जो आदमी एक-एक आदमी मेनेज कर सके । िांिी जी की नजर कु ि इतनी है कक िह बड़ा यंत्र जो व्यवियों के ऊपर हािी हो जाता है उसके वखिार् हैं। िे ऐसा यंत्र चाहते हैं वजस पर व्यवि हािी रहे। इसमें मेरा मानना है कक िांिी जी की मनुष्य की आममा में बहुत कम भरोसा है। उनका वचत्त आदमी में बहुत कम भरोसे िािा है। क्योंकक िे मानते हैं बड़ा यंत्र आदमी पर हािी हो जाएिा। उनको आदमी की आममा जो है बहुत छोटी मािूम पड़ती है। बहुत कम वहम्मतिर नपुंसक मािूम पड़ती है, एक। दूसरी बात, िांिी जी जो यंत्र दे रहे हैं। यह हो सकता है कक एक आदमी को तीस िज कपड़ा वमि जाए। यह हो सकता है, यह बहुत करठन नहीं। अिर एक आदमी िांिी जी के चरखे को ही चिाता रहे तो तीस िज कपड़ा वमि सकता है। िेककन विकास मल्टी िाइमेन्शनि है। जो आदमी छह र्ंटे चरखा चिा कर तीस िज कपड़ा पा िेिा या चार र्ंटे चिा कर तीस िज कपड़ा पा िेिा। चार र्ंटे चरखा चिाने में उसने ककतना खोया उसका वहसाब आपको नहीं है। अिर मेरा बस चिे तो िांिी जी को सजा करिा दे नी चावहए कक तुमको हम चरखा नहीं चिाने दें ि,े क्योंकक िांिी जैसा आदमी दो र्ंटे चिा कर मुल्क का ककतना नुकसान पहुंचा रहा है इसका हमें कु छ पता नहीं है। िांिी जैसी हैवसयत की प्रवतभा का आदमी दो-तीन र्ंटे चरखे के साथ उिझा रहे, इन तीन र्ंटों में इस प्रवतभा का हम ककतना उपयोि कर सकते थे और ककतना हमने सूत पैदा ककया? यह सूत और इस प्रवतभा के उपयोि का कोई संबंि नहीं जुड़ता। यह जो दो-तीन मािाएं सूत की बन जाएंिी, यह िांिी जी के तीन र्ंटे श्रम का हम र्ायदा िेंिे, तो आप समझ िेना कक आप िरीब रहेंिे। उसके कारण हैं। सच बात तो यह है कक मनुष्य का विकास इससे होता है कक िह अपने समय, समझ और श्रम का ककतना इकोनॉवमक उपयोि करता है। आप ककतने कम समय में ककतना ज्यादा पैदा करते हैं इससे आपके विकास की संभािना बढ़ती है। िांिी जी के जो सािन हैं िे ज्यादा समय में बहुत कम पैदा करिाने िािे हैं। इसविए मैं उनके वखिार्त में हं। मैं रचनाममक नहीं मानता, विध्िंसाममक मानता हं। िांिी जी के सब सािन विस्ट्रवक्टि हैं। उनमें रचना नहीं है, विध्िंस हैं। िेककन कदखाई हमें यह पड़ता है कक अिर मैं छह र्ंटे बैठ कर चरखा चिाता रहं तो आपको भी कदखाई पड़ेिा कक सूत तो पैदा हुआ िेककन छह र्ंटे से मैं जो पैदा कर सकता था िह पैदा नहीं हुआ। िह आपको कदखाई नहीं पड़ रहा है। और मुझे एक ििा-पचीसी में ििाया कक छह र्ंटे में सूत पैदा करूं, जो कक एक मशीन कर दे िी वजसमें मेरी जरूरत ही नहीं। 171



मेरे छह र्ंटे बच सकते थे वजनका मैं उपयोि कर रहा हं। मनुष्य की सारी संस्कृ वत, मनुष्य के िीजर टाइम का विकास है। जो भी कौमें संस्कृ त हुई हैं और जो भी सयता विकवसत हुई है िह खािी समय में विकवसत हुई है। खािी समय ककतना आदमी के पास है, इससे वनभिर करे िा कक िह ककतना विकवसत होता है। अिर िांिी जी की पूरी व्यिस्था अिर हम मानें, तो साबुन अपनी खुद बना िेनी चावहए, अपना खाना खुद पैदा कर िेना चावहए, अपना कपड़ा खुद बना िेना चावहए। तो मैं मानता हं कक अिर एक आदमी इस व्यिस्था को स्िीकार कर िे, तो वसर्ि जजंदिी में िह आदमी खाना पैदा करने िािी, कपड़ा बनाने िािी, साबुन बनाने िािी मशीन बन जाएिा। उसकी पूरी जजंदिी इसमें नि हो जाएिी। जजंदिी का वहसाब क्या है? आप अिर साठ साि जीते हैं, जो कक जहंदुस्तान में नहीं जीते हैं। अिर िांिी जी की बात को अमरीका मान िे तोशायद थोड़ा ठीक भी है क्योंकक उनके पास जजंदिी ज्यादा है। जहंदुस्तान के पास अब भी औसत उम्र पैंतीस साि, छत्तीस साि के करीब हैं। इक्यािन िषि। इक्यािन हो िया क्योंकक बच्चे कम मर रहे हैं। आपकी उम्र नहीं बढ़ िई कहीं कोई। और कु छ नहीं र्कि पड़ िया है। यह जो आदमी जी रहा है, पचास साि समझ िें, साठ साि समझ िें। एक आदमी साठ साि जीता है, उसमें कम से कम बीस साि तो सोने में जाते हैं, नींद में चिे जाते हैं। बचते है चािीस साि। चािीस साि में, अिर िांिी जी की व्यिस्था मानी जाए तो आठ र्ंटे चौबीस र्ंटे में सोने में चिे जाते हैं। नहाना, खाना, कपड़े िोना, साबुन बनाना, खेती करना, चरखा चिाना, रूई ओटना। अिर यह सब आदमी करे तो मैं मानता हं कक जरूर उसको कपड़े भी वमि जाएंिे। तीस िज भी वमि जाएंिे, खाना भी कामचिाऊ वमि जाएिा, साबुन से भी कपड़ा िोने िायक साबुन भी बना िेिा, अपना जूता भी तैयार कर िेिा। िेककन यह आदमी यही करते मरे िा। इस आदमी के पास िीजर टाइम नहीं बचने िािा है। उसी में से मूल्य खड़ा होिा? कोई मूल्य खड़ा नहीं होिा। इसमें से वसर्ि एक जानिर खड़ा होिा, आदमी नहीं। आदमी और जानिर में इतना ही र्कि है कक जानिर के पास िीजर टाइम नहीं है। िह अपने खाने-पीने की कर्कर में पूरा िि िुजार दे ता है। एक कु त्ता है िह कदन भर र्ूम रहा है। िह बहुत रचनाममक बुवद्ध का है, उसके पास िीजर टाइम नहीं है। या तो सोता है या खाने की तिाश करता है, या अपनी पत्नी को या प्रेयसी को भोिता है। बस ये तीन काम हैं उसके पास। अिर िांिी जी की बात पूरी मानी जाए--तो आदमी बच्चे पैदा करे िा, कपड़े पैदा करे िा, खाना बनाएिा। िेककन िीजर टाइम उसके पास नहीं, और िीजर के िे वखिार् हैं। उसके पास खािी समय नहीं बचेिा। दुवनया का सारा विकास खािी समय में हुआ है। चाहे संिीत हो, चाहे सावहमय हो, चाहे िमि हो, चाहे विज्ञान हो, यह खािी िोिों की खोज है। वजनके पास कोई काम नहीं बचता; वजनके पास काम के अवतररि समय है। अब िे क्या करें ? इसमें िे जुआ खेि सकते हैं, ध्यान भी कर सकते हैं। िह दूसरी बात है कक िे क्या करें िे। जुआ भी खािी समय में आता है, ध्यान भी खािी समय में आता है, प्राथिना भी खािी समय में आती है, भििान भी 172



खािी समय में आता है। वजन कदनों में कोई मुल्क के पास खाने, कपड़े, पत्नी, बच्चों के अिािा समय बचता है उन कदनों में उस मुल्क की चेतना विकवसत होती है। अिर हम िांिी जी की बात मानें तो मैं मानता हं कक सबसे विस्ट्रवक्टि योजना है, सबसे विध्िंस की। क्योंकक इसका पररणाम क्या होिा? इसका पररणाम वसर्ि इतना होिा कक आदमी को हम एवनमि िेिि पर खड़ा कर दें िे। हां, एवनमि सादा भी है। आिश्यकताएं भी उसकी ज्यादा नहीं हैं। िह भी ठीक है। िेककन मैं मानता हं कक मनुष्य का जो विकास है िह मनुष्य का विकास पशु के ति से ऊपर उठने में है और पशु के ति से ऊपर उठने में जो सबसे बड़ी बात काम करती है िह है आपके पास अवतररि समय? आपके पास ककतना अवतररि समय है उतनी ही आपकी चेतना मुवश्कि में पड़ जाती है कक अब मैं क्या करूं? तो मेरी अपनी दृवि यह है कक छोटी मशीनें अवतररि समय नहीं िा सकती, न चरखा िा सकता है, न अंबर चरखा िा सकता है। वसर्ि िे ही मशीनें अवतररि समय िा सकती हैं जो मशीनें अविकतम िोिों का काम करने में समथि हैं। जैसे मेरी समझ है कक आने िािे बीस िषों में अमरीका के पास दुवनया का सिािविक अवतररि समय होिा, आज भी है। यह जो अवतररि समय अमरीका के पास बचेिा, यह अवतररि समय ही उसको चांद पर पहुंचाएिा, मंिि पर पहुंचाएिा, यह अवतररि समय ही उसे ध्यान में भी ििाएिा, योि में भी ििाएिा, सावहमय, संिीत, सब तरर् ििेिा। इिर जो करठनाई है क्या है, िांिी जी बहुत ही ज्यादा वजसको कहना चावहए सामवयक हैं, िे दे ख रहे हैं समय को। िे दे ख रहे हैं कक कपड़ा नहीं है, साबुन नहीं है, र्िां नहीं है, कढकां नहीं है। िेककन इसको दे खने की भी उनकी समझ जो है वप्रवमरटि है। िह दो हजार साि पुरानी है। यानी अिर िह दो हजार साि पहिे पैदा हुए होते तो िे ठीक आदमी थे। दो हजार साि बाद िे ठीक आदमी नहीं हैं। क्योंकक वजस समाज से िे यह कह रहे हैं, उस समाज के पड़ोसी समाज यंत्र का उपयोि कर रहे हैं बड़े पैमाने पर। और आदमी को मुि कर रहे हैं। और मेरा मानना यह है कक यंत्र ही आदमी को मुि करने िािा है। अिर पूणि यंत्र आ जाए तो आदमी पूणि मुि होता है। जब तक ककसी भी आदमी को श्रम करना पड़ेिा मजबूरी में, तब तक िुिामी जारी रहेिी ककसी न ककसी तरह की। अिर एक बार आदमी को श्रम करने से छु टकारा हो जाए और श्रम भी स्िेच्छा हो जाए कक पूरण चंद जी को काम करना है, शौक है उनका, तो करें । नहीं करना है तो उनकी मौज है। उनको वबना काम ककए भी इतना वमि सकता है। तो यह तो संभि तभी है जब हम बड़ी आटोमैरटक यंत्रों पर भरोसा करें । और बड़े मजे की बात यह है कक मैं कभी भी नहीं दे ख पाता कक बड़ा यंत्र आदमी को क्यों दबा िेिा? कोई यंत्र आदमी को कभी नहीं दबा सकता है। असि में, चूंकक यंत्रों का बनाने िािा आदमी है। और यंत्रों को ककसी भी कदन बंद कर सकता है एक बटन को दबा कर। कोई यंत्र आदमी को कभी नहीं दबा सकता। मेरी अपनी समझ यह है कक छोटा यंत्र आदमी को ज्यादा िुिाम बनाता है। समझ िें कक मैं एक पंखा िेकर आपको हिा करने बैठूं , तो िह मुझे ज्यादा िुिाम बनाता है, बजाए एअरकं िीशनर के । एअरकं िीशनर मुझे िुिाम बना ही नहीं रहा एक अथों में। क्योंकक मैं चौबीस र्ंटे मुि हं और आपको हिा वमि रही है। अिर मैं पंखा िेकर बैठूं तो मैं चौबीस र्ंटे आपको पंखा चिाना चावहए। िह जो पंखा चिाने िािा आदमी मुि हो िया पंखा चिाने से िह उस पंखे की िजह से मुि हो िया है जो यंत्र ने दे कदया है। जजंदिी को हम ककतने ज्यादा यंत्र दें इस पर वनभिर करे िा कक हम आदमी को ककतनी आममा दे दें । 173



तो मैं नहीं मानता हं कक िांिी की दृवि कोई रचनाममक है। रचनाममक कदखाई पड़ती है, िह एवपअरें स है। िेककन बहुत िहरे में विस्ट्रवक्टि है। क्योंकक मनुष्य में जो क्षमता विकास की होनी चावहए िह उसमें मर जाएिी। अिर िांिी से कोई भी राजी हो जाए, हािांकक कोई राजी नहीं होिा। आप वचल्िाते रहें कोई राजी नहीं होने िािा। क्योंकक विकास के वखिार् कभी ककसी समाज को राजी ककया नहीं जा सकता है। हां, थोड़े से वसरकर्रे िोिों को राजी ककया जा सकता है। थोड़े से इक्सेंरट्रक िोिों को वजनको कक कदमाि में बात पकड़ जाती है, िे अपनी कु बािनी दे सकते हैं। उनको राजी ककया जा सकता है। समाज को कभी राजी नहीं ककया जा सकता। इसविए िांिी जी की अपीि आजादी के पहिे ज्यादा थी। आजादी आते से ही अपीि क्षीण हो िई। िांिी को खुद ही ििा कक मैं खोटा वसक्का हो िया हं। इसमें िांिी खोटे वसक्के नहीं हो िए थे। असि में हमको पहिी दर्ा विकास का मौका वमिा और हमको पता चिा कक िांिी खतरनाक है। इसके साथ विकास हो नहीं सकता। इसको छोड़ना पड़ेिा एक तरर्। िेककन पूरे मन से हम नहीं छोड़ पाए। तो िह चिता है दोनों-पंचिषीय योजना भी चिती है और हमारी बुवद्ध में िांिी जी भी चिते हैं। िह जो आप कहते हैं, पंचिषीय योजना से क्या हुआ? बहुत कु छ हो सकता था। रूस में बहुत कु छ हुआ। जहंदुस्तान में नहीं हुआ क्योंकक रूस के कदमाि में िांिी नहीं था, वसर्ि पंचिषीय योजना थी। जहंदुस्तान के कदमाि में िांिी और हाथ में पंचिषीय योजनाएं! इन दोनों में विरोि है। ये दोनों नहीं चि सकते साथ। या तो पंचिषीय योजना चिा िें या िांिी जी को चिा िें। ये दोनों हैं इसविए अवहत हो रहा है। और यह जो सारा मैं कह रहा हं िह इस बात को ध्यान में रख कर कह रहा हं कक मेरे विए एक पसिपैवक्टि है भविष्य का आदमी के विए। और जो हमारी सामान्य िारणाएं हैं, उन सामान्य िारणाओं को हम कभी सोच नहीं पाते कक हम--अब िांिी जी को हम थिि क्िास में चिा रहे हैं। बड़ा सादिी मान रहे हैं और महाममा मान रहे हैं। िेककन िांिी जैसा आदमी जहां र्ंटे भर में पहुंच सकता था, िहां अड़तािीस र्ंटे में पहुंचेिा। ये जो सैंतािीस र्ंटे िांिी के हमने खराब ककए इसका कौन वजम्मेदार होिा? और िांिी जैसे आदमी को खुद तो हक है ही नहीं कक सैंतािीस र्ंटे अपने खराब कर दे कक ये तो हमारे र्ंटे हैं। िांिी जैसे आदमी को हम खराब नहीं करने दें िे िेककन हम खराब करिाएंिे। अिर विनोबा पैदि चिे तो हम और खुश हो जाएंिे। अिर जमीन पर ही सरकने ििे, रें िने ििे तो हमारी खुशी का कोई अंत न रहे। हम इनको वबल्कु ि परमहंस मान िेंिे। हमारे सोचने का जोढंि है िह संकोच िािा है। और वजसको हम रचनाममक कहते हैं िह रचनाममक है नहीं। अब जैसे कक समझ िें, रचनाममक ककसको कहें--एक आदमी ने वजसने वबजिी बनाई िह रचनाममक है या एक आदमी जो एक-एक र्र में दीया रखता कर्र रहा है िह रचनाममक है? रचनाममक कौन है? वजस आदमी ने चरखा चिा कदया है िोिों को पकड़ा कदया है कक चरखा चिाओ िह आदमी रचनाममक है या एक आदमी ने एक बटन बनाई है और िाखों चरखे चि रहे हैं उस बटन से िह रचनाममक है? नहीं; हमें यह र्र-र्र में चरखा िािा रचनाममक मािूम पड़ेिा। और एक-एक आदमी के छह-छह र्ंटे खराब करना, करोड़ों आदवमयों के अरबों र्ंटे खराब करना है और जजंदिी बहुत छोटी है। इसविए मैं राजी नहीं हं। मेरी अपनी समझ यह है कक... िेककन अिर िांिी जी जैसी बात को हम पकड़ िें, तो हम चरखा चिाने में उिझ सकते हैं। और हमारा जो वचत्त है तीन-चार हजार साि का िह राजी हो सकता है इसके विए। क्यों? उसके कारण हैं। हम जरटिता से भयभीत कौम हैं। और ध्यान रहे, वजतनी जरटिता का हम मुकाबिा करें िे 174



उतनी हमारी प्रवतभा विकवसत होिी। एक बैििाड़ी चिा रहा एक आदमी, एक बैििाड़ी चिाने िािे आदमी की प्रवतभा बहुत विकवसत नहीं हो सकती। इसी आदमी को हिाई जहाज चिाने के विए वबठाइए। तो आप पाएंिे कक इसकी प्रवतभा को मजबूरन विकवसत होना पड़ेिा। क्योंकक हिाई जहाज चिाने के विए वजतने जरटि यंत्र को सम्हािना है उतनी बुवद्ध भी चावहए। कर्र हिाई जहाज को चिाने में वजतना खतरा है उतनी चेतना भी चावहए, अिेयरनेस भी चावहए। बैििाड़ी में िह कोई भी नहीं। बैििाड़ी में चिाने िािा आदमी बैि की बुवद्ध से बहुत ज्यादा आिे विकवसत नहीं हो सकता। क्योंकक िह चिा बैि को ही रहा है न आवखर। तो उसकी भी एक, उसमें भिे ही ककतनी बुवद्ध हो िेककन उसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। बैि को ही चिाना है तो बैि को ही चिाने िायक बुवद्ध की पुकार आती है। और हमारे पास जो समझ है िह बड़ी हैरानी की है। िह यह है कक आदमी अच्छे से समझदार से समझदार आदमी अपनी बुवद्ध के पंद्रह प्रवतशत से ज्यादा का उपयोि नहीं कर पाता। अच्छे से अच्छा आदमी, बुवद्धमान से बुवद्धमान आदमी। तो वजसको हम सािारण जन कहें िह तो तीन-चार-पांच परसेंट उपयोि करता है। िह जो अस्सी-नब्बे परसेंट बुवद्ध हमारी अवतररि पड़ी है उसका कै से उपयोि होिा? िांिी जी के पास उसकी कोई जिह नहीं है। न तो हरर भजन से हो सकता है, न राम की िुन से हो सकता है, न चरखे से हो सकता है। िांिी जी के पास मनुष्य की प्रवतभा को जिाने का कोई कक्रएरटि प्रोग्राम नहीं है। तो इसविए मैं नहीं मानता कक िह रचनाममक है। मैं तो मानता हं कक रचनाममक बातचीत के भीतर बहुत विध्िंसाममक है। और मेरी हाित मैं उिटी मानता हं। मेरी सारी विध्िंसाममक बातचीत के बीच में वबल्कु ि रचनाममक हं। और मेरी रचना का अपना अथि है, उनकी रचना का अपना अथि है। उनकी रचना को मैं रचना नहीं मानने को राजी हं। उनका ख्याि यह था रचनाममक का कक वजस आदमी को काम भी नहीं वमिता है और खाना भी नहीं वमिता है उससे काम िेना एक समाज का िमि बन रहा है। और क्या नजदीक से कौन सा काम दे खते हैं। आज भी दे खें कक आज साठ रुपया प्राप्त करने के विए कार्ी िोि अंबर चरखा कातने के विए आते हैं। वसर्ि िुजरात में यह हाित है इतना बड़ा िस्त्र उद्योि है सारे जहंदुस्तान का िस्त्र उद्योि में नौ िाख आदमी को रोजी वमिती है। अवतररि और इसको आटोमैरटक कर दें तो मैं समझता हं कक ढाई िाख से ही सारा जहंदुस्तान का कपड़ा बन जाएिा। दूसरा प्रश्न, हम दे हात में रह कर दे खते हैं कक िोिों को खाने का भी वमिता नहीं है, काम नहीं है। तो काम प्राप्त करने का, काम इसविए कक उसको रोटी चावहए। तो िह अविकार हम कै से कदििा सकें िे? मानो कक आप कहें, िैसे ही स्ियं संचावित युि आ िया और मैं तो एक टेक्नािॉजी का विद्याथी हं। ऐसे एक मशीन बन िई कक वजसमें सब स्ियं संचावित हैं और जहंदुस्तान की वजतनी वमि हैं, िह साठ िाख से नहीं वसर्ि एक िाख से चिने ििें और वजतनी रे वियो हैं इसमें सब आटोमैरटक कर दें , मैथेमेरटक आटोमैरटक कर दें , कं प्यूटर रख दें तो जहंदुस्तान की आम जनता को जो काम नहीं वमिता है, खाना नहीं वमिता है, उनको क्या काम और कै से दें िे? िह सब दें िे तो बराबर। हमारी तकिीर् क्या है कक जब हम भविष्य के ककसी यंत्र की बात करते हैं तब भी आर्थिक बुवद्ध हमारी अतीत की होती है। भविष्य के यंत्र की बात करते हैं और समझ हमारी अतीत की आर्थिक होती है। इसविए 175



करठनाई होती है। जैसे मैं आपसे कहता हं, वजस कदन आटोमैरटक यंत्र आ जाएिा, आप समझते हैं--हजारों कारखाने बंद हो जाएं कार के , एक कार का कारखाना चिेिा। उसमें ककसी को मजदूर की जरूरत नहीं रह जाएिी। शायद दस-पांच आदमी उपयोिी होंिे, िाखों आदमी बेकार हो जाएंिे। िेककन क्या आप समझते हैं, ये कारें आप बनाइएिा ककसविए, खरीदे िा कौन? जब सारा मुल्क बेकार होिा तो ये कारें खरीदे िा कौन, इनको बनाइएिा ककसविए? इिर आपको कार बनानी पड़ेिी, इिर बेकार िोिों को पैसा दे ना पड़ेिा। नहीं तो ये कार वबके िी कहां? आप समझ नहीं रहे हैं। हमारा जो पुराना कदमाि है िह यह कहता है कक जब काम नहीं होिा तो कर्र मर जाएंिे आदमी। िेककन वजस कदन आटोमैरटक यंत्र आ िया उस कदन हमारी पूरी आर्थिक-व्यिस्था का पुराना ढांचा बदिेिा और ढांचा नया होिा, और िह ढांचा यह होिा कक बेकार आदमी के विए हमें पैसा दे ना पड़ेिा। अन्यथा िह खरीदने िािा ही नहीं है कोई। आप टु थपेस्ट बना िें, साबुन बना िें आटोमैरटक यंत्र से, खरीदे िा कौन? पूरा का पूरा मुल्क बेकार है। अिर आपको यह उमपादन जारी रखना है आटोमैरटक तो आपको बेकार िोिों को पैसा दे ना पड़ेिा। बवल्क मेरी अपनी समझ यह है, और आज अमरीका में जहां कक अके िी वस्थवत बनी है, तो इस सदी के पूरे होते-होते आटोमैरटक वस्थवत आ जाएिी। तो उनको अपना पूरा... अभी तक हमारी यह व्यिस्था थी कक जो काम करे उसे पैसा वमिे। आने िािी व्यिस्था यह होिी कक जो काम न करे उसे पैसा वमिे। जो काम भी मांिे, क्योंकक बहुत िोि होंिे जो ऑब्सेशनि हैं, बहुत िोि हैं जो खािी नहीं बैठ सकते हैं। बहुत िोि हैं--न संिीत में रुवच िे सकते हैं, न कविता रच सकते हैं, न ककताब पढ़ सकते हैं, न ताश खेि सकते हैं, न वसिरे ट पी सकते हैं-बहुत िोि हैं वजनको काम जो है िह बीमारी है--उनको काम चावहए ही। जैसे कमियोिी वजनको हम कहते हैं इस तरह के िोिों को तो काम चावहए। इनकी कमि बीमारी है, ये र्ु सित में हो नहीं सकते, इनका रोि है। तो इस तरह के िोिों के विए हमें काम दे ना पड़ेिा। तो इस तरह के िोिों को तनख्िाह कम वमिेिी भविष्य में। क्योंकक ये दोनों चीजें मांिते हैं तनख्िाह भी मांिते हैं और काम भी मांिते हैं। भविष्य की पूरी इकोनॉवमक्स बदिेिी। हमारी पुरानी इकोनॉवमक्स की िजह से हमको सिाि उठता है कक िोि बेकार हो जाएंिे। तो कर्र क्या होिा? िोि बेकार हो जाएंिे यह सिाि िोिों के विए नहीं है। जो िोि उमपादन कर रहे हैं उनके विए सिाि है कक उमपादन का क्या होिा? अिर आपको उमपादन खपाना है और कारखाना चिाना है, कं प्यूटर चिाना है, आटोमैरटक मशीन चिानी है, तो बेकार आदवमयों के विए आपको पैसा दे ना पड़ेिा। और जो आदमी वजतने कम काम की मांि करे िा, उसको उतना ज्यादा पैसा दे ना पड़ेिा। जो आदमी कहेिा हम वबल्कु ि नहीं काम करने को राजी हैं उसको ज्यादा से ज्यादा तनख्िाह वमि सके िी। जैसे अभी तक हमारा वनयम था जो वजतना काम करे उतना वमिे। अब हमारा वनयम होिा, आटोमैरटक के बाद, जो वजतना कम काम करे उतना ज्यादा पाए। क्योंकक कम काम करने िािा आदमी समाज पर दोहरी कृ पा कर रहा है। काम नहीं मांि रहा और बेकाम होने को राजी है। हमारी जो तकिीर् है िह तकिीर् इसविए है कक हमारा सारा ख्याि तो होता है पुरानी पररवस्थवत का और नई पररवस्थवत जब बनती है तो पुरानी पूरी पररवस्थवत बदिेिी, उससे उत्तर नहीं वमिता। अब जैसे होता क्या है, आदमी की सारी उिझनें ऐसी हैं, अब आज हम--आज भी हम चरखे पर सूत काते जा रहे हैं। अब हमको अंदाज नहीं है कक चरखे से सूत कातना या िूम में भी सूत कातना अिैज्ञावनक है। अब सूत कातना ही 176



अिैज्ञावनक है। उसका कारण यह है कक जब हम कपास से सूत बनाते थे तो कपास को पहिे हमें सूत बनाना पड़ता है। कर्र सूत को बुनना पड़ता है। अब यह वनपट िंिारी हो िई है अब। िेककन हमारी पुरानी आदत की िजह से... अब टेरीिीन है, उससे सीिा कपड़ा ढािा जा सकता है। सूत बनाने की जरूरत नहीं है। िेककन पुरानी खोपड़ी की िजह से हम टेरीिीन को पहिे सूत बनाते हैं। पुरानी खोपड़ी, कपास का व्यापार हम टेरीिीन के साथ, और वजतने नये जसंथेरटक चीजें बनी हैं कपड़े की उनके साथ कर रहे हैं पुरानी बुवद्ध का उपयोि। पहिे सूत बनाएंिे, अब यह वबल्कु ि अनािश्यक मूखिता है, इसको सूत बनाने की जरूरत ही नहीं है। यह तो सीिा ही ढि सकता है। सीिा ही, इसको काट कर दजी बनाए इसकी भी जरूरत नहीं है, क्योंकक िह काटना भी हमारी पुरानी बुवद्ध है। इसका तो हम सीिा शटि ही ढाि सकते हैं, सीिा पेंट ही ढाि सकते हैं। असि में, जैसे और चीजें ढािते हैं अब कपड़ा भी ढि सकता है। िेककन कदक्कत क्या होती है कक हमारे पास पुराना कदमाि है! जैसे अभी मैं िुवियाना था तो युवनिर्सिटी बोिने िया था। तो िहां कोई, हम सात साि के बच्चे को स्कू ि भेज दे ते हैं। अब भी हम सात साि के बच्चे को स्कू ि भेजे चिे जाते हैं। कोई नहीं पूछता कक सात साि के बच्चे को हमने स्कू ि क्यों भेजा था? सात साि से बच्चे के स्कू ि जाने का कौन सा संबंि है? आठ साि का क्यों नहीं? छह साि का क्यों नहीं? सात साि का हमने भेजना शुरू ककया था कभी आज से पांच सौ साि पहिे। स्कू ि इतने दूर थे कक सात साि से कम बच्चा भेजा ही नहीं जा सकता था। बस इतना कु ि कारण था। अभी भी हम भेजे चिे जा रहे हैं सात साि के बच्चे को। अब कोई कारण नहीं है। अब हाितें उिटी हो िई हैं। अब मनोविज्ञान यह कह रहा है कक चार साि का बच्चा ही असि में वशवक्षत ककया जाना चावहए। चार साि के पहिे ही क्योंकक जजंदिी का पचास प्रवतशत सीख िेता है चार साि का बच्चा। पचास प्रवतशत बाकी जजंदिी में सीखेिा है। तो वजस बच्चे ने चार साि अवशक्षा में िुजार कदए अब इसको ठीक से वशवक्षत करना असंभि है। िेककन हमारी पुरानी आदत िह हम उसको जारी रखे हैं। हम सब चीजों के मामिे में ऐसा हुआ है। सारी चीजों के मामिे में ऐसा होता है कक हमारे पास कदमाि होता है पुराना, र्टना र्टती है नई, पुरानी पररवस्थवत में नई र्टना को जोड़ना चाहते हैं। इसको भूि जाते हैं कक नई र्टना भी पैदा होिी नई चीज के साथ। तो मेरी अपनी समझ यह है कक जब तक हम रोक रहे हैं आटोमैरटक यंत्र को। असि में हमें आटोमैरटक यंत्र को नहीं रोकना चावहए। हमें बेकार आदमी को पैसा वमिना चावहए, इसकी मांि बढ़ानी चावहए। आटोमैरटक यंत्र को रोकने की जरूरत नहीं है। िह तो खतरनाक है। दे खें आप यह हमारी... िेककन स्िभािताः चोट तो इस पर पड़ती है। आज एक कारखाने में अिर आटोमैरटक यंत्र ििेिा तो उस कारखाने के मजदूर बेकार होंिे और उसके मजदूर िड़ाई करें िे आटोमैरटक यंत्र के वखिार्। उनको पता नहीं कक आटोमैरटक यंत्र के वखिार् िड़ाई अपने ही वखिार् िड़ाई है। िे यह कह रहे हैं कक हम मजदूर ही रहेंिे। िे यह कह रहे हैं। उनको आटोमैरटक यंत्र के वखिार् नहीं िड़ना चावहए, उन्हें िड़ना चावहए कक हम काम छोड़ने को राजी हैं काम के छोड़ने के बदिे में क्या दे ते हो? यह सिाि नहीं है आटोमैरटक यंत्र बराबर िाओ। वजस कदन सारी दुवनया आटोमैरटक यंत्र पर आ जाएिी उस कदन सारी दुवनया में इतना एक्सपेंशन होिा चेतना का, इतना बड़ा विस्र्ोट होिा--कक मैं मानता हं, िाखों बुद्ध एक साथ पैदा हो सकें िे। असि में, बुद्ध भी बेकार र्र में पैदा होते हैं, महािीर भी बेकार र्र में पैदा होते हैं। जहां िे मुि हैं काम से, िे कोई काम नहीं कर रहे हैं। आज तक दुवनया में जो वजसको हम श्रेष्ठ चेतना कहें,



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िह चाहे िांिी की हो--िे भी दीिान के बेटे हैं--िे भी कोई चौबीस र्ंटे चरखा चिाने िािे के र्र में पैदा नहीं हो जाते। सारी दुवनया में जो चेतना विकवसत होती है िह संपन्न पररिारों में या संपन्न समाजों में पैदा होती है। हमने िाह्मण को काम से मुि कर कदया था जहंदुस्तान में। उससे हम काम नहीं िेते थे, उसकी हम सेिा करते थे। उसको हमने छोड़ कदया था कक िह जो सोचना चाहे सोचे। उसको काम की जरूरत ही नहीं थी। वभक्षा का मतिब यह था कक समाज उसको दे िा। तो जहंदुस्तान के िाह्मण ने अनूठा चीजें उपिब्ि की जो दुवनया में कोई भी नहीं कर सका। बेकार िाह्मण का पररणाम है और कोई कारण नहीं है उसका। अिर शूद्र को भी उतना ही बेकार ककया जा सके तोशूद्र भी उतने ही बड़े महर्षि पैदा कर सके िा वजतने िाह्मण ने पैदा ककए। िह अनएंप्िाइि िेककन सुवििा उपिब्ि। बेकार िेककन उसको भोजन की जचंता नहीं। तो िाह्मण क्या करता, उसने आकाश की बड़ी उड़ाने िी। जैसी उड़ान िाह्मण िे सका है, एज ए होि कम्युवनटी की तरह, ऐसी दुवनया की कोई कम्युवनटी नहीं िे सकी। िे ही नहीं सकती क्योंकक कोई कम्युवनटी इतनी बेकार नहीं रही अतीत में। दुवनया में जहंदुस्तान में पहिी दर्े बेकारी का प्रयोि ककया है। िाह्मण जो है उसको हमने कहा कक तुम बेकार रहो, तुम वसर्ि सोचो। तुम िाओ, तुम जचंतन करो, तुम नाचो, तुम खोजो, हम तुमसे काम न िेंिे, न हम साबुन बनिाएंिे, न हम तुमसे कपड़ा बुनिाएंिे, न हम तुमसे खेती करिाएंिे, यह हम कर िेंिे। िेककन कु छ और ऊंची खोज तुम कर िाओ। तो िह ऊंची खोज कर सका है। आज पवश्चम में िैज्ञावनक काम से मुि हो िया है। आज उससे हम दूसरे काम नहीं िे रहे हैं। आज वसर्ि विज्ञान की, तो िह चांद पर उतर पा रहा है। िांिी जी कोई िैज्ञावनक पैदा नहीं कर सकते कभी भी। क्योंकक िह उनको जो आब्सेशन है, उनको जो रोि है िह यह है कक श्रम भििान है। श्रम-व्रम भििान नहीं है। श्रम वसर्ि िुिामी है, अबुवद्ध है, श्रम अज्ञान है। हम जब तक अज्ञानी हैं तब तक श्रम हमको मजबूरी है, िह हमारी नेसेसरी ईविि है। उसको भििान-िििान कहने की जरूरत नहीं है कक श्रम दे िता है और उसकी पूजा करो। कोई दे िता नहीं है श्रम। हम श्रम भी इसीविए करते हैं कक विश्राम कर सकें , और कोई कारण नहीं है। अिर कदन भर एक आदमी मजदूरी करता है तो सांझ र्र आराम से िेट सके िा इसविए करता है, और कोई कारण नहीं है। वजन समाजों में िुिाम थे, उन समाजों ने बड़ा विकास ककया। मैं िुिाम के पक्ष में नहीं हं। िेककन यह दे खने जैसा मामिा है। ताजमहि िुिामी से पैदा हुआ। वपरावमि िुिामों के इवजप्त में बने। दुवनया में जो भी विकास हुआ--जैसे एथेंस में सुकरात और प्िेटो और अरस्तू पैदा हुए, िह िुिामों का जमाना था। क्योंकक एथेंस में भी उन्होंने यह इं तजाम ककया कक एक िुिामों का ििि ही खड़ा कर कदया जो काम ही करे िा। िह मशीन हो िया, िह आटोमैरटक मशीन है, और कु छ नहीं है। आदमी को आटोमैरटक मशीन बना कदया, िह वसर्ि काम करे िा। कु छ िोि वसर्ि सोचेंिे। िेककन यह बड़ा दुखद है। अिर हमें दुवनया को िुिामी से मुि करना है तो िांिी जी की बात भूि कर मत मानना, नहीं तो िुिामी से मुि नहीं होिी दुवनया। अिर आप, जहंदुस्तान को अिर एक आदमी को जचंतन के विए छोड़ना है तो दूसरे िोिों को काम करना पड़ेिा। समझ िें कक मैं अिर जचंतन के विए मुि मुझे छोड़ना है, तो आप मुझसे नहीं चाहेंिे कक मैं चरखा चिाता रहं। तो आपको चरखा चिाना पड़ेिा मेरे। विए िेककन यह तो बड़ी बुरी बात है। आपसे मैं िुिामी करिा रहा हं। अंतताः मैं आपसे िुिामी करिा रहा हं, िह परोक्ष हो, प्रमयक्ष हो इससे कोई र्कि नहीं पड़ता। मुझे खाना चावहए, अिर मैं खेती-बाड़ी में िि जाऊं तो ठीक है मैं खेतीबाड़ी में ही ििा रहंिा। िेककन तब मैं जो कर सकता हं िह नहीं कर पाऊंिा। तो कोई मेरे विए खेती-बाड़ी कर रहा है, यह बहुत अमानिीय है कक मैं खाऊं, कोई खेती-बाड़ी करे । 178



तो मैं कहता हं, मशीन खेती-बाड़ी करे । ककसी को करने की जरूरत नहीं। मशीन के साथ कोई दुव्यििहार नहीं होता। इसविए मशीन िुिाम बनाई जा सकती है। मशीन के पास चूंकक कोई आममा नहीं है। अिर आप िांिी जी की बात मानते हैं तो िुिामी कभी खमम नहीं होिी। वसर्ि पूणि मशीन ही मनुष्य को पूणि मुि कर सकती है। इसविए मेरी िड़ाई है। िह िड़ाई िांिी जी से बहुत नहीं है। िह िड़ाई आपके कदमाि से बहुत ज्यादा है। इसमें िांिी जी, बहुत िेना-दे ना नहीं है मेरे विए। आपने... में ऐसा कहा था कक मैं िांिी जी का परम भि हं। नहीं, मैं काहे को कहंिा, मैं ककसी का परम भि नहीं हं। िांिी जी मेरे परम भि नहीं, मैं उनका क्यों होने िािा हं। यह िोरखिंिा मैं पािता नहीं। न मैं ककसी का परम भि हं, न कोई मेरा परम भि है। भक् त को ही नहीं मानता मैं। बुवद्धहीनता से भवि पैदा होती है। नहीं तो कोई जरूरत नहीं है। जो आपने कहा िैसा ही हेनरी र्ोिि ने कहा था, मोटर बहुत बन िई, तो उन्होंने कहा था, अब एक ऐसा समय आया है कक जहां हमारा एक र्जि होता है कक वजनके र्रों में पैसा नहीं है उनके र्रों में पैसा पहुंचाना चावहए। और उसके विए उन्होंने कर्र यह सोचा कक जहां िेहं पैदा होता है िहां िेि बनाओ। तो आिे चि कर िोिों के , आपका ख्याि यह है कक एक समाज ऐसा बनेिा वजसमें िोिों को मुवि दी जाएिी। िह भी एक संस्कृ वत हो सकती है कक वजसमें सब िोि कु छ काम न करें , और कल्चर ही करे , तो संस्कृ वत का अनुभि है कक जहां-जहां िुिामी पनपी है िहां िह संस्कृ वत नि हो िई है। रोम का, सब आप जो-जो बताते हैं। और हमने दे खा कक टाल्सटाय और वजतने अच्छे से अच्छे विचारक हुए। असि में, ऐसी िित बातें जो करते हैं उनको आप अच्छा विचारक कहते हैं और कोई बात नहीं है। मजा यह है कक टाल्सटाय को आप अच्छा आदमी मानते हैं। इसकी िजह टाल्सटाय अच्छा है ऐसा नहीं। टाल्सटाय से दुि आदमी खोजना मुवश्कि है पृथ्िी पर। मैं आपको कारण से कहता हं। टाल्सटाय से ज्यादा कामुक, दुि, र्ृणा और जहंसा से भरा आदमी खोजना मुवश्कि है। िेककन आपको अच्छा ििेिा क्योंकक िह आप वजसको अच्छा समझते हैं िह कह रहा है। िह आवखरी दम तक बेचैन और परे शान मरा है। िांिी ने अपने वजतने िुरु चुने, सारी दुवनया में छांट कर नासमझ चुने। छांट कर, उसकी िजह यह नहीं कक िे योग्य आदमी थे। उसकी िजह िांिी जी की जो समझ थी उससे िे चुनाि करें िे। उसका चुनाि तो िे टाल्सटाय को चुनेंिे, रवस्कन को चुनेंिे, थोरो को चुनेंिे, ये कोई भी आदमी जित के वहत में नहीं है। ये कोई भी आदमी जित के वहत में नहीं है। इनकी जो बातचीत है िह हमेशा पीछे िौटने िािी बातचीत है। और ये सब परे शान िोि हैं। ये बहुत व्यवथत और हैरानी से और जजंदिी वजनकी जरा भी सुिझी हुई नहीं है, बहुत उिझी हुई और परे शानी से भरी हुई है। िांिी जी की जजंदिी भी बहुत सुिझी हुई जजंदिी नहीं है। मिर हम... हमारी तकिीर्ें ये हैं कक हम वजसको महाममा मान िें, उसको हम दे खना बंद कर दे ते हैं। असि में, महाममा का मतिब यह है कक वजसकी तरर् हमने आंख बंद कर िीं, अब हम दे खेंिे न। और हम समझाए चिे जाते हैं कक िांिी और कस्तूरबा का संबंि आदशि दांपमय है। इससे रद्दी दांपमय खोजना मुवश्कि है। मिर हम कहे चिे जाते हैं, कहे चिे जाते हैं। 179



आिी रात को िांिी कस्तूरबा को वनकाि र्र के बाहर कर दे ते हैं। इनकी किह शाश्वत है। िेककन हम आदशि कहे चिे जाते हैं, हम िेख विखे चिे जाते हैं। टाल्सटाय और उसकी पत्नी के संबंि इतने नारकीय हैं वजनका वहसाब ििाना मुवश्कि है। िेककन सारी की सारी करठनाई जो है हमारी िह यह है कक हम ककसको अच्छा कहें। कई बार ऐसा होता है कक शायद ही कोई आइं स्टीन को अच्छा कहे। क्योंकक न तो िह चरखा चिा रहा है, न िह पान का मयाि कर रहा है, न िह वसिरे ट का मयाि कर रहा है, न शराब का मयाि कर रहा है। िेककन मनुष्य-जावत को जो र्ायदा पहुंचने िािा है िह इस आदमी से पहुंचने िािा है। न टाल्सटाय से पहुंचने िािा है, न रवस्कन से, न िांिी से। क्योंकक कि एटावमक एनजी ही मनुष्य को सारी िुिामी से मुि कर पाएिी। िेककन इस सबको कभी महाममाओं में हम कर्क्र न करें िे। हम महाममाओं की कर्क्र उनकी करें िे जो कक ककसी चीज से ककसी को कभी मुि नहीं कर पाए हैं। िेककन हमारी कोई तृवप्त उनसे जरूर होती है। कोई तृवप्त हमारी जरूर होती है, उसकी िजह से हम उनको अच्छा आदमी कहते हैं। अब हमारी क्या तृवप्त होती है? टाल्सटाय से हमें कौन सी तृवप्त वमिती है? रवस्कन से कौन सी तृवप्त वमिती है? िांिी से कौन सी तृवप्त वमिती है? असि में, िरीब आदमी इतने कदन से िरीब है तो उसे अपनी िरीबी में ग्िोरीकर्के शन चावहए। उसको चावहए कक िरीबी कोई ऊंची चीज है। एक आदमी पांच हजार साि से िरीब है। िह िरीबी से तो परे शान है ही, अिर कोई उसे समझाने िािा वमि जाए कक िरीबी तो बड़ी भििान की कृ पा है। तो उसको बड़ा कं सोिेशन होिा। महािीर जब राज्य छोड़ कर सड़क पर खड़े हो िए तो िरीब बड़े प्रसन्न हुए, उन्होंने कहा, यह है महा मयाि। और िरीब ने समझा कक भििान हम पर बड़ा कृ पािु है क्योंकक महािीर को जो हमको करना पड़ा िह हमको जन्म से वमिा हुआ है। जो दुवनया में िरीब की िंबी परं परा है, िह िरीब की िंबी परं परा मयावियों को आदर दे ती है। क्योंकक मयािी का मतिब हैाः स्िेच्छा से बना हुआ िरीब। िह िािंटरी पािटी है उसकी। और मजे की बात यह है कक िह पुअर इसविए नहीं बनता, िािंटरी पािटी जो उसकी स्िेच्छा से दररद्रता िरण की है, िह कोई दररद्रता के रस से नहीं की है; िह संपन्नता से अरुवच से पैदा होती है। इसका असिी कारण बहुत दूसरा है। बुद्ध के पास बुद्ध के बाप ने सब सुंदर औरतें इकट्ठी कर दीं। ऊब िया, कोई भी ऊब जाएिा। बुद्ध की कोई खूबी नहीं है उसमें। ककसी भी सािारण आदमी के पास दस-पच्चीस सुंदर वस्त्रयां इकट्ठी कर दो िह एकदम भाि खड़ा होिा उनसे। क्योंकक सुंदर स्त्री वजतनी दूर होती है उतनी सुंदर मािूम पड़ती है। और पास ही आ जाए तो थोड़ी दे र में र्बड़ाने िािी और उबाने िािी हो जाती है। तो बुद्ध कोई िह्मचयि के विए नहीं भाि िए हैं। असिी कारण यह है कक औरतें इतनी इकट्ठी हैं कक औरतों से भािने के वसिाय कोई रास्ता नहीं रह िया। िेककन वजसके पास औरत नहीं है िह बड़ा प्रसन्न हो रहा है। िह कह रहा है, हम पर भििान की बड़ी कृ पा है। हमको पहिे से ही नहीं, तुमको भािना पड़ रहा है। इस पर कोई कृ पा नहीं है यह औरतों के पीछे भािता ही रहेिा। जहां भी संपन्नता िहरी पैदा होती है िहां संपन्नता से अरुवच पैदा हो जाती है। असि में, कोई भी चीज... मनुष्य के मन के बड़े अदभुत वनयम हैं, एक वनयम यह है कक हर चीज का स्िाद हमें उबा दे ता है। िरीब आदमी अमीर होने की कोवशश में िि जाता है। एक दर्ा आप अमीर हो जाएं आप िरीब होने की कोवशश में िि जाएंिे।



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ये सब िरीब होने की कोवशश से पैदा हुए महाममा हैं। यह टाल्सटाय, यह रवस्कन, ये सारे के सारे िोि। ये अमीरी से ऊब िए हैं। इनके मुंह का स्िाद खराब हो िया है--अच्छे भोजन से, इनको अब रूखी-सूखी रोटी चावहए। अब ये नेचरोपैथी के चक्कर में पड़ेंिे। ये बच नहीं सकते। वजस मुल्क में ज्यादा खाना पैदा होता है िहां उपिास का कल्ट र्ौरन पकड़ जाता है। अमरीका में जोर से पकड़ रहा है। जिह-जिह उपिास करने िािे बैठे हुए हैं। असि में जब ओिरर्ीजिंि हो जाती है और ज्यादा आदमी खा जाता है, तो खाने से ऊब पैदा होती है, कर्र न खाने में बड़ा आनंद आता है। महािीर को आनंद आता है न खाने में, वबहार के अकाि में पड़े आदमी को वबल्कु ि आनंद नहीं आता नहीं खाने में। असि में, जो हमें वमिता है हम उससे ऊब जाते हैं। बहुत िोि िरीब हैं इसविए हम सब िरीबी से ऊबे हुए हैं। बहुत थोड़े िोि अमीर हैं इसविए बहुत थोड़े िोि अमीरी से ऊब पाते हैं। और जो अमीर हैं िे भी पूरी तरह अमीर नहीं हैं। जब तक पूरी सोसाइटी अमीर न हो तब तक एक इं विविजुअि का पूरा अमीर होना बहुत मुवश्कि है। बहुत मुवश्कि है, िह हमेशा अमीर हो ही नहीं पाता, हमेशा होता रहता है। िह हमेशा प्रोसेस में रहता है। कभी ऐसा नहीं हो पाता कक िह अनुभि कर पाए कक अब मैं अमीर हो िया। क्योंकक हमेशा कोई आिे, हमेशा कोई पीछे। वजस समाज की मैं बात कर रहा हं, िैसा समाज पहिी दर्ा अमीर होिा, और पहिा समाज पहिी दर्ा दररद्रता से ही मुि नहीं होिा, अमीरी से भी मुि हो जाएिा। हमारी जो पकड़ है। एक आदमी अिर चौबीस र्ंटे कार में चिे तो उसको सड़क पर पैदि चिने का मजे का वहसाब ही नहीं है। िेककन आप यह मत सोचना कक कार के बिि से कीचड़ उड़ते हुए जो आदमी पैदि चि रहा है उसको भी िही मजा आ रहा है। इस भ्म में आप मत पड़ना। कार में बैठे आदमी को कभी-कभी सड़क पर चिने का बड़ा मजा आता है। और जब िह सड़क पर चिता है तब सड़क पर चिने िािे के अहंकार को तृवप्त भी वमिती है कक अच्छा, मतिब सड़क पर चिने का भी मजा है। यानी हम नाहक ही परे शान हो रहे हैं। िेककन ध्यान रहे, सड़क पर चिने का मजा वसर्ि कार उपिब्ि हो तो ही है। और िरीब होने का मजा तभी है जब कक अमीरी चखी िई हो। नंिे होने का मजा तभी है जब कक कपड़े खूब वमि चुके हों, अन्यथा नहीं है। तो मैं तो पक्ष में हं ककसी और अथि में। मैं इस अथि में पक्ष में हं कक वजस कदन दुवनया पूरी तरर् एफ्िुएंट होिी उस कदन िरीबी अमीरी की दोनों बेिकू कर्यां खमम हो जाएंिी। उस कदन पहिी दर्े सादिी आएिी जो भीतरी होिी। जो बाहरी नहीं होिी, उसका बाहर से कोई संबंि नहीं होिा। कौन आदमी ककतने कपड़े पहनता है इससे सादिी का कोई संबंि ही नहीं है। आदमी कपड़ों को ककस भांवत िेता है इससे सादिी का संबंि है। सादिी जो है िह एरटट्यूि है, व्यिहार नहीं है। कौन आदमी कार में बैठता है कौन नहीं बैठता, यह सिाि नहीं है। कार में बैठने को और पैदि चिने को अिर कोई आदमी एक जैसा िेने ििे। तब मैं समझूंिा कक सादिी आई, नहीं तो िह आदमी जरटि है। िह आदमी जरटि है। अिर मैं कहं कक मैं रे शम के ही कपड़े पहनूंिा और खादी नहीं पहन सकता, मर जाऊंिा खादी पहननी पड़ी तो, तो मैं जरटि हं। इससे उिटा आदमी भी जरटि है, िह कहता है, मैं खादी ही पहनूंिा, नहीं तो मर जाऊंिा, रे शम छू भी नहीं सकता, यह भी जरटि है। ये दोनों आदमी जरटि हैं, यह सादा कोई नहीं है इनमें। असि में, अब तक दुवनया में सादिी आ नहीं सकी क्योंकक द्वंद्व बहुत तीव्र है िरीब और अमीर का। तो इस सादिी का मतिब होता है िरीबी की स्िीकृ वत, और कोई मतिब नहीं होता है। िेककन िरीबी-अमीरी से जब दोनों से वचत्त मुि होता है तभी सादिी आती है, िह सादिी बहुत अन्य है। उस सादिी को सादिी नहीं कहना 181



चावहए। सरिता है, िह जसंप्िीवसटी है आंतररक। उसके तो मैं पक्ष में हं िेककन मैं मानता हं िांिी उस अथों में सरि नहीं हैं, िे बहुत जरटि हैं। उनकी सारी सादिी चुनी हुई कै िकु िेरटि है, उसमें एक-एक इं च का वहसाब है। सादा आदमी वहसाब नहीं रख सकता। सादा आदमी सादा होता है। सादा होने का मतिब यह हैाः कै िकु िेशन कजनंिनेस है, चािाकी है। जो आदमी चौबीस र्ंटे कै िकु िेट कर रहा है कक इतना खाऊंिा, इतना पहनूंिा, इतने कमरे में रहंिा, ऐसे उठूं िा, ऐसे... यह आदमी चािाक है। यह आदमी जजंदिी में िवणत वबठा रहा है। सरि का मतिब ही यह है कक आदमी सरिता से जी रहा है। जो वमिता है िह खा िेता है, जहां ठहरने वमिता है सो जाता है। िेककन यह कब संभि होिा? यह तब संभि होिा जब मशीन ने सारा काम िे विया होिा। उसके पहिे यह बड़े पैमाने पर संभि नहीं हो सकता है। इसविए मैं तो िृहत उद्योि के पक्ष में हं। और आप जो कहते हैं कक अंबर से इतना काम हो सकता है। अिर ठीक से समझें तो अंबर िांिीिादी का समझौता है। अंबर िांिीिादी का विकास नहीं, कं प्रोमाइज है। अंबर िांिीिादी की हार है। क्योंकक अंबर को अब कहां रोककएिा? आप कह रहे हैं, आटोमैरटक हो जाए। तो मतिब क्या रहा? तो िूम ने क्या वबिाड़ा है? वसर्ि नाम रखने से र्कि पड़ता है। िांिीिादी की हार है--अंबर। मैं इसविए कहता हं, यह मैं इसविए कहता हं कक रुककएिा कहां? अिर एक आदमी पांच तकिी चिा सकता है अंबर से, तो पचास क्यों नहीं, पांच हजार क्यों नहीं? और एक आदमी पांच हजार चिा सकता है तो एक आदमी के वबना चि सकती हो तो हजि क्या है? इसमें रुककएिा कहां? इसमें सिाि जो है, इसको मैं कं प्रोमाइज कहता हं, यह हार है, िांिीिादी मरा अंबर चरखे के साथ। अंबर चरखा दर्न करने िािी व्यिस्था है उसकी, क्योंकक अब रुके िा कहां िह? रुकने का कहां इं तजाम कररएिा? और जब आप कहते हैं कक अंबर से इतना काम हो रहा है। आटोमैरटक अंबर हो जाए तो और काम होिा। तो मतिब यह रहा कक आटोमैरटक मशीन और आटोमैरटक अंबर में वसर्ि नाम का ही र्कि है, िांिीिादी मशीन हो िई। तो कोई र्कि पड़ने िािा है। जो मैं आपसे कह रहा हं िह यह कह रहा हं कक अिर िांिी जी की हम दशा को समझें मन की तो अंबर के पक्ष में नहीं हैं। िांिी जी सख्त वखिार् हैं यंत्र के बढ़ने के । और ऐसे यंत्रों के भी वखिार् हैं वजनको आप कभी सोच नहीं सकते थे। टेिीग्रार् के भी वखिार् हैं। उन्नीस सौ पांच में वखिार् थे। मैं भी कई दर्ा सोचता था कक उन्नीस सौ पांच में विखी िई ककताब पर भरोसा नहीं करना चावहए। आदमी कर्र और चािीस साि जी विया है तो आदमी और जजंदा आदमी था, रोज बदि रहा था। िेककन उन्नीस सौ पैंतािीस में नेहरू ने एक पत्र में िांिी जी को पूछा है कक आप जहंदू स्िराज में कही िई बातों से क्या अब भी राजी हैं? तो िांिी जी ने कहााः अक्षर अक्षर। जहंदू स्िराज में कहा हुआ है कक रे ििाड़ी पाप है। तो जो आदमी रे ििाड़ी को पाप कह रहा है िह अंबर चरखा िािा नहीं है। टेिीग्रार् खतरनाक है। इसकी जरूरत नहीं है। हिाई जहाज की जिह नहीं है। आप हैरान होंिे कक एिोपैथी की भी जिह नहीं है। बड़े यंत्रों की जहां भी सुवििा है िहां कोई जिह नहीं है। और उन्नीस सौ पैंतािीस में भी िे कहते हैं कक मैं जहंदू स्िराज से सहमत हं। यह िांिीिादी का समझौता है िांिी जी का नहीं। यह जो मैं कह रहा हं, अंबर चरखा है, यह िांिी के मरने के बाद िांिीिादी का समझौता है, िह रोज समझौता करे िा। क्योंकक उसे करना पड़ेिा। क्योंकक उसकी बातें नासमझी पूणि हैं। उनको कोई मान सकता नहीं। अब उसको रोज-रोज इं च-इं च िौटना पड़ेिा िापस, िह रोज िापस िौट रहा है। बीस साि पूरे होते-होते िह िहीं खड़ा हो जाएिा जहां िांिी जी ने उसको पकड़ा था। िह िापस िौट आएिा। िांिी जी ने जो ऊहापोह पैदा 182



ककया था िह खमम हो जाएिा क्योंकक िह न तो प्रिवत के पक्ष में है, न िह मनुष्य के वहत में है, न उससे मंिि वसद्ध होने िािा है, न उससे कु छ होने िािा है। और अब जो सिाि है, कई दर्ा मुझे ऐसा ििता है कक िांिी जी को जजंदिी के सिािों का भी पूरा साक्षात नहीं है। इसविए िे बहुत अजीब सी बातें कहते रहते हैं। मेरी अपनी समझ यह है कक जजंदिी के सारे सिािों का साक्षात उनको वबल्कु ि नहीं है। जैसे उनको यह भी पता नहीं है कक जनसंख्या ककतनी इस सदी के पूरे होते-होते हो जाएिी। इस सदी के पूरे होते-होते इतनी जनसंख्या हो जाएिी कक खेती तो करना ही मुवश्कि हो जाएिा। यह सिाि नहीं है कक करो या न करो। खेती के विए जमीन नहीं बचने िािी। और इक्कीसिीं सदी के पूरे होते-होते तो अिर जनसंख्या इस मात्रा से बढ़ती है और अिर िांिीिादी बथि कं ट्रोि के वखिार् प्रचार ककए चिे जाते हैं, तो बढ़ेिी ही। कोई और रुकने का कारण नहीं है। इक्कीसिीं सदी पूरे होते वसर्ि सौ साि में एक ििि र्ीट जमीन एक आदमी के पास बचेिी। जमीन पर इतने आदमी होंिे। आदवमयों का िजन जमीन से ज्यादा हो जाएिा। तो एक ििि र्ीट जमीन में अंबर चरखा चिाइएिा, खेती कररएिा, क्या करने के इरादे हैं? िांिी जी को पसिपैवक्टि नहीं है पूरा कक यह हो क्या रहा है? ककतने जोर से... चरखा एक जीिन-व्यिस्था का अंि थी, जब संख्या वबल्कु ि न के बराबर थी। खेती एक जीिन-व्यिस्था का अंि थी, जब जमीन बहुत थी और िोि बहुत कम थे। अब तो जसंथेरटक र्ू ि की जरूरत पड़ेिी, िोिी से ही काम चिाना है भविष्य में। सबको भोजन नहीं वमि सके िा। भोजन का उपाय भी नहीं है। और मैं समझता हं बेकार भी है। भोजन बहुत ही अनइकोनॉवमक व्यिस्था है। तीन पाि खाओ, कर्र आिा पाि पचाओ, कर्र ढाई पाि वनकािो, एकदम अिैज्ञावनक है। इसमें कोई मतिब नहीं है। कर्र उस ढाई पाि को िांिी जी के िड्ढे में िािो, कर्र उसका खाद बनाओ। यह सब पाििपन है। खाद भी मशीन बना सकती है और िोिी भी मशीन बना सकती है। और मजा यह है कक वजस कदन आदमी जसंथेरटक र्ू ि पर आ जाएिा कक एक िोिी कदन में खा िे और चौबीस र्ंटे की उसकी िैरटविटी, कक उसे पूरा सामान वमि जाएिा। उस कदन बीमाररयां वतरोवहत हो जाएंिी, नब्बे प्रवतशत बीमाररयां खतम हो जाएंिी। और आदमी में पहिी दर्ा सौंदयि का विकास होिा। और पहिी दर्ा... और अिर िांिी उस सोसाइटी को प्रभावित कर पाते हैं तो उसी सोसाइटी को प्रभावित कर पाते हैं। जहंदुस्तान की आजादी में वजतना िांिी का हाथ है उतना अंग्रेजों का भी हाथ है। उतना जहंदुस्तावनयों का भी हाथ है। जो िोि आजादी की िड़ाई में िड़े उनका भी हाथ है, जो नहीं िड़े उनका भी हाथ है। यह सब टोटि र्े नावमना है, ये इकट्ठी र्टनाएं हैं। िेककन हमारी बुवद्ध को कदक्कत होती है कक हम एक-एक आदमी को पकड़ िेते हैं, और कर्र हम उनको पूजे चिे जाते हैं। इसका मैं कोई मूल्य नहीं मानता--व्यवि का। कोई इतना परे शान होने की जरूरत नहीं है। हां, जो उन्होंने ककया है िह कर सके एक समाज में विशेष समाज के दायरे में, िेककन अिर मुझसे पूछते हो तो खतरा क्या है? खतरा यह है, जैसे कक इं ग्िैंि था। दूसरा महायुद्ध हुआ और इं ग्िैंि ने तमकाि चर्चिि को ताकत दे दी। क्योंकक इं ग्िैंि को ििा कक चर्चिि आदमी युद्ध के क्षण में उपयोिी है। मुल्क िड़ रहा है, तो एक िड़ाका आदमी चावहए ताकतिर। र्ौरन ताकत दे दी। चर्चिि के पहिे जो बैठा था उसको ऐसे अिि कर कदया जैसे िह था ही नहीं। कर्र युद्ध जीत िया, चर्चिि की जय-जयकार कर दी और युद्ध के बाद चर्चिि को चुपचाप अिि कर कदया। और ऐसी कर्क्र ही नहीं की कक इस आदमी ने वजसने युद्ध जीताया। इं ग्िैंि के इवतहास में चर्चिि से कीमती आदमी नहीं है, पूरे इवतहास में। िेककन इसको िे चुपचाप िि कर सके और दूसरे आदमी को वबठा सके ।



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हमारी क्या तकिीर् है, िांिी जी ने आजादी क्या कदिा दी, अब हम िांिी जी से पीवड़त रहेंिे न मािूम ककतने समय तक। िांिी जी आजादी के विए क्या िड़े हमें मुवश्कि में िाि िए। अब हम न मािूम ककतने हजारों साि तक उपद्रि बांिे रखेंिे कक िांिी जी ने यह ककया, िांिी जी ने िह ककया। जो ककया िह उनकी मौज थी। बात खमम हो िई। उसको अध्याय को बंद करो। अब क्या करना है इसकी कर्क्र करो। तो मैं व्यवियों में बहुत जचंता नहीं िेता। वनवश्चत ही उन्होंने काम ककया है, और हजारों िोिों ने काम ककया है। भितजसंह का हाथ है, सुभाष का हाथ है, आजाद का हाथ है, िांिी का हाथ है, नेहरू का, वतिक का, िोखिे का, सबका हाथ है। कौन आदमी आवखर में बचा यह वबल्कु ि सांयोविक है। वजसको पूरा श्रेय वमि जाता है। िेककन सबके हाथ हैं। और ठीक है, बात खमम हो िई अब उसको कब तक विए बैठे रहोिे। अब पंद्रह अिस्त को खमम होने दोिे कक उसको पकड़े ही रखोिे। उसको जाने दो। बीस साि बीत िया, अब उसको छोड़ते नहीं, उसको कब तक पकड़े रहोिे। जो कौमें अतीत को इतने जोर से पकड़ती हैं कक उनकी वग्रप भविष्य पर कम हो जाती है। अब भविष्य में कु छ आदमी पैदा करने हों तो िांिी को अब नमस्कार करो। उनको कहो कक अब आप जाइए, अब आप बहुत हो िए। और िे तो चिे ही िए हैं। हमारी खोपड़ी खराब है, हम उनको पकड़े हुए बैठे हैं। अब जय िांिी कार ििाए रहो। तो उससे कोई अथि नहीं। जो इवतहास जा चुका िह जा चुका, उसमें अच्छा बुरा जो हुआ िह हुआ। सिाि यह नहीं है कक उसमें ककसको श्रेय दें और ककसको न दें । सिाि यह है कक उस इवतहास से अब हमारा भविष्य क्या होिा? क्या हम चरखा चिाते रहेंिे? क्योंकक िांिी जी को श्रेय दे ना है। तो कर्र मुवश्कि हो जाएिी। यह मेरे विए इरररिेिेंट है। उसमें मैं कोई बातचीत करना ही पसंद नहीं करता। समय खराब करना है। मेरे विए भविष्य है अथिपूणि। अतीत वनबट िया, उसका अब... वजस अतीत को हम बदि नहीं सकते उसकी बात भी क्या करनी। वजस अतीत को हम छू नहीं सकते उसका बात करने से र्ायदा भी क्या है। ठीक है, िह बात समाप्त हो िई। उससे कोई िेना-दे ना नहीं। आपके वपता आपको पैदा कर िए। अब आपसे ही काम है। अब आपके वपता ने आपको पैदा ककया इसको कब तक वचल्िाते रवहएिा। पैदा ककया यह बात ठीक है। बात खमम हो िई। िेककन अब इसी का िुणिान िाते रवहए जजंदिी भर कक मेरे वपता ने मुझको पैदा ककया है। तो अब और कोई काम करना है कक यही िुणिान करना है? आप भी कु छ कररएिा कक वपता ने पैदा ककया काम िही खतम कर िए आपका भी। यह दृवि िित है। चीजें टोटि हैं और हमें रोज आिे बढ़ जाना चावहए। आज में आपसे एक बात कह रहा हं अब िह कि आप उसको पकड़ें इसकी कोई जरूरत नहीं है। वजतनी साथिक होिी िह आप में िू ब जानी चावहए, खतम हो िई बात, मैं कि मर जाऊं भूि जाना चावहए। याद भी करने की जरूरत नहीं है। बात खमम हो िई। हमें आिे बढ़ना चावहए। जजंदिी रोज आिे है और हमारी खोपड़ी रोज पीछे की तरर् है। इससे हमारी कदक्कत है। तो मैं वनरं तर कहता हं कक हम भारत में अिर कार बनाएंिे तो उसमें हम सचि जो िाइट है हेि िाइट िह पीछे ििाएंिे। चिेिी िाड़ी आिे िाइट पीछे पड़ेिा। क्योंकक हमको उड़ती पीछे की िूि दे खने में बड़ा सुख है। अहा, ककतना अच्छा रास्ता है। चिना आिे पड़ता है तो िाइट आिे चावहए। पीछे को भूिते जाना पड़ता है। िूि उड़ िई रास्ता छू ट िया है। िहां कोई िाइट नहीं है। िहां जो छोटे से दो िाि िाइट ििे हैं िे भी पीछे से जो आ रहे हैं उनके विए हैं, आपके विए नहीं हैं। एक िह वमरर ििा हुआ है ररयर व्यू, िह भी उनके विए हैं कक जो पीछे आ रहे हैं, िे 184



कहीं आपसे टकरा न जाएं। िह उनको याद रखने के विए, उनके स्मरण के विए नहीं। िेककन जहंदुस्तान का कदमाि जो है िह ररयर व्यू वमरर है, िह बस पीछे ही दे खता है, उसके पास आिे कोई दृवि नहीं है। कि भी िांिी पैदा करने हैं कक चूक िए। आने िािे भविष्य में भी कोई आदमी पैदा करना है कक बस खतम हो िया आपका काम। इसविए पीछे को हमें रोज-रोज वशवथि करके छोड़ दे ना है। जो उसमें साथिक है िह हमारे भीतर बच जाता है। उससे िरने की कोई जरूरत नहीं है। यानी मेरा मानना यह है, जो साथिक है िह बच ही जाता है, उससे हम छू ट ही नहीं सकते। जो साथिक है िह बच ही जाता है, उसमें कहीं कु छ खोता ही नहीं। िेककन अिर आप कोवशश करके पकड़ें तो जो व्यथि है िह पकड़ जाता है। इसविए इसकी कोई, मैं कोई इसको बड़ा समझता नहीं।



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भारत का भविष्य पंद्रहिां प्रिचन



भारत का भविष्य मेरे वप्रय आममन्! एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हं। बहुत पुराने कदनों की र्टना है, एक छोटे से िांि में एक बहुत संतुि िरीब आदमी रहता था। िह संतुि था इसविए सुखी भी था। उसे पता भी नहीं था कक मैं िरीब हं। िरीबी के िि उन्हें ही पता चिती है जो असंतुि हो जाते हैं। संतुि होने से बड़ी कोई संपदा नहीं है, कोई समृवद्ध नहीं है। िह आदमी बहुत संतुि था इसविए बहुत सुखी था, बहुत समृद्ध था। िेककन एक रात अचानक दररद्र हो िया। न तो उसका र्र जिा, न उसकी र्सि खराब हुई, न उसका कदिािा वनकिा। िेककन एक रात अचानक वबना कारण िह िरीब हो िया था। आप पूछेंिे, कै से िरीब हो िया? उस रात एक संन्यासी उसके र्र मेहमान हुआ और उस संन्यासी ने हीरों की खदानों की बात की और उसने कहा, पािि तू कब तक खेतीबाड़ी करता रहेिा? पृथ्िी पर हीरों की खदानें भरी पड़ी हैं। अपनी ताकत हीरों की खोज में ििा, तो जमीन पर सबसे बड़ा समृद्ध तू हो सकता है। समृद्ध होने के सपनों ने उसकी रात खराब कर दी। िह आज तक ठीक से सोया था। आज रात ठीक से नहीं सो पाया। रात भर जािता रहा और सुबह उसने पाया कक िह एकदम दररद्र हो िया है, क्योंकक असंतुि हो िया था। उसने अपनी जमीन बेच दी, अपना मकान बेच कदया, सारे पैसों को इकट्ठा करके िह हीरों की खदान की खोज में वनकि पड़ा। सुनते हैं बारह िषों तक जमीन के कोने-कोने पर उसने खोजबीन की, उसकी संपवत्त समाप्त हो िई। अक्सर यह होता है। परायी संपवत्त की खोज में िोि अपनी संपवत्त को िंिा बैठते हैं। उसकी सारी संपवत्त नि हो िई। िह दर-दर का वभखारी हो िया। िह सड़कों पर भीख मांिने ििा। और सुनते हैं एक बड़े निर में एक कदन भूख के कारण ही उसकी मृमयु हो िई, िह मर िया। बारह िषि बाद िह संन्यासी उस िांि में कर्र से आया, वजसने उस समृद्ध आदमी को दररद्र कर कदया था। उसके र्र के पास पहुंचा और उसने जाकर पूछा कक यहां अिी हर्ीज नाम का एक आदमी रहता था, िह यहां रहता है? िोिों ने कहा, िह तो बारह िषि हुए, वजस रात आपने यह र्र छोड़ा उसी कदन सुबह दूसरे कदन उसने भी र्र छोड़ कदया। िह हीरों की खोज में चिा िया। और अभी-अभी खबर आई है कक िह वभखमंिा हो िया था और भूखा एक महानिरी की सड़कों पर मर िया। यह जमीन और मकान हमने खरीद विया था। हम इसके वनिासी हो िए हैं। उस संन्यासी ने पीने को पानी मांिा और थोड़ी दे र िह उस झोपड़े में रुका। उसने दे खा कक उस झोपड़े के आिे में एक बहुत चमकदार पमथर रखा हुआ है। उसने उस ककसान को पूछा, यह क्या है? उसने कहा, यह मेरे खेत पर, जो हमने अिी हर्ीज से खरीदा था, िहां पड़ा वमि िया है। उसने कहा, पािि, यह तो हीरा है! क्या उसी जमीन पर वमि िया है, वजस जमीन को अिी हर्ीज बेच कर चिा िया? उसने कहा, हां, उसी जमीन पर। िेककन यह हीरा नहीं है, के िि चमकदार पमथर है और हम बच्चों के खेिने के विए उठा िाए हैं।



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उस संन्यासी ने उस पमथर को उठाया। उसकी आंखें चमक उठीं। िह हीरों को पहचानता था। उसने उसको कहा कक चि तेरे खेत पर! िे खेत पर िए। िहां एक छोटा सा नािा बहता था, वजस पर सर्े द रे त थी। उस रे त में उन्होंने खोजबीन शुरू की और सांझ होते-होते उन्होंने कई हीरे उनके हाथ िि िए। िह अिी हर्ीज की जमीन थी जो दूसरों की जमीनों पर हीरे खोजने चिा िया था। शायद आपने यह कथा न सुनी हो, िही जमीन अिी हर्ीज की िोिकुं िा बन िई, उसी जमीन पर कोवहनूर हीरा वमिा। और अिी हर्ीज, जो उस जमीन का माविक था, एक बड़ी निरी में वभखमंिा होकर भूखा मर िया। िह हीरे की खोज में चिा िया था। िेककन उसे कल्पना भी नहीं हो सकती थी कक जो मेरी जमीन है िहीं हीरों की खदानें भी हो सकती हैं, िहीं से कोवहनूर भी वनकि सकते हैं। भारत के भविष्य में भी यह कहानी दोहरे िी। या तो भारत अपनी जमीन पर हीरे खोज िेिा या दूसरों की जमीनों पर वभखमंिा होकर मर जाएिा। यह तो मैं पहिी बात कह दे ना चाहता हं। और मैं आपको यह भी कह दूं--भारत ने वभखमंिे होने की दौड़ शुरू कर दी है। भारत वभखारी की तरह दुवनया के सामने खड़ा हो िया है। हम भीख मांि रहे हैं और जो कौम भीख मांिने ििती है, उस कौम का भीख मांिने की बजाय मर जाना बेहतर है। उसके जीने की कोई जरूरत नहीं है। यह उवचत होिा कक हम मर जाएं भूखे और दररद्र, िेककन अपने र्र में, बजाय इसके कक हम समृद्ध मकान बना िें, दूसरों से उिार मांि िें, दूसरों से भीख मांि िें और हम जीते रहें। ऐसा जीना, ऐसा जीना अमयंत बेशमि जीना है। यह मुल्क बेशमी के विए रोज-रोज तैयार होता जा रहा है। और वजस कौम की शमि मर जाती है और वजसे भीख मांिने की तरकीबें और आटि पता हो जाता है उस कौम का कोई भविष्य नहीं है, यह स्मरण रखना चावहए। उसका भविष्य है ही नहीं। उसका कोई भविष्य नहीं है। उसके भविष्य में कोई सूरज नहीं उिेिा; और उसकी बविया में कभी कोई र्ू ि नहीं वखिेंिे; और उसके भीतर जो भी आममा है िह िीरे -िीरे वििुप्त हो जाएिी और हम मुदाि िोिों की तरह, मुदाि कौम की तरह जमीन पर एक बोझ बन कर रह जाएंिे। हमने यह शुरुआत कर दी है। यह दुभािग्य की कथा प्रारं भ हो िई है। पहिी बात तो मुझे यह कहनी है और िह यह कक सम्मान से मर जाना भी बेहतर है अपमानपूणि जीने से। दे श के कोने-कोने में एक-एक आदमी को यह बात कह दे ने की जरूरत है कक भारत जीएिा तो सम्मान से, अन्यथा मर जाएिा। हम मर जाना पसंद करें िे। िेककन पीछे िोि कम से कम यह तो कह सकें िे--एक कौम थी वजसने भीख नहीं मांिी, िेककन मर िई। िेककन इवतहास में कहीं ये कािी बातें न विखी जाएं कक एक कौम थी जो भीख मांि कर जीना सीख िई और जीती रही। भारत का भविष्य उसके वभखमंिेपन के साथ जुड़ा हुआ है। हम क्या करें िे, इस पर बहुत कु छ वनभिर करता है। कोई हजि नहीं कक वबहार के िोि भूखे मर जाएं; कोई हजि नहीं कक पचास करोड़ िोिों में दस-पांच करोड़ िोि न जीवित रहें और कविस्तान में चिे जाएं, कोई हजि नहीं है। िेककन र्ुटने टेक कर सारी दुवनया से भीख मांिना अमयंत आममग्िावनपूणि, आममर्ाती है। और हम अपनी आममा को बेच रहे हैं। और कर्र जब दे श का चररत्र नीचे विरता है और जब दे श के प्राण नीचे उतरते हैं तो हम वचल्िाते हैं कक चररत्र नीचे विर रहा है, िोि नीचे होते जा रहे हैं। िेककन जब पूरी कौम भीख मांिने पर उतारू हो जाएिी तो मनुष्यों का, व्यवियों का चररत्र ऊपर नहीं उठ सकता है। पूरे मुल्क का जब कोई िौरि नहीं होिा, कोई सम्मान नहीं होिा, कोई आममवनष्ठा नहीं होिी, तो एक-एक व्यवि की भी आममवनष्ठा नीचे विर जाएिी।



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और हमें पता है, हमारे मुल्क में बहुत िोि हैं जो भीख मांिते रहे हैं। िेककन कभी उन वभखमंिों ने भी यह न सोचा होिा कक विकास इतना हो जाएिा कक िीरे -िीरे पूरा मुल्क ही भीख मांिने ििेिा। उनको भी इसका कोई पता नहीं होिा। िेककन हम इस अिस्था में खड़े हो िए हैं। और एक बड़ा मजा है, यह शायद आपको पता नहीं होिा, वजस आदमी को आप भीख दे ते हैं िह आदमी कभी भी आपको क्षमा नहीं करता। इसे मैं कर्र से दोहरा दूं, वजस आदमी को आप भीख दे ते हैं िह कभी आपको क्षमा नहीं कर सके िा। ऊपर से िन्यिाद दे िा, िेककन उसके प्राणों में आपके प्रवत अवभशाप ही होिा, जनंदा होिी, र्ृणा होिी, ईष्याि होिी, अपमान का भाि होिा। क्योंकक भीख िेने िािा कभी भी यह अनुभि नहीं करता है कक मैं अपमावनत नहीं ककया िया हं। भीख िेने िािा हमेशा अपमावनत अनुभि करता है और उसका बदिा िेता है। भारत सारी दुवनया के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांि रहा है और इसका बदिा भी िे रहा है सारी दुवनया से। एक तरर् भीख मांिता है, दूसरी तरर् कहता है--हम जितिुरु हैं। एक तरर् भीख मांिता है, दूसरी तरर् िािी दे ता है पवश्चम को, भौवतकिादी और मैटीररयविस्ट कहता है उनको। एक तरर् भीख मांिता है, दूसरी तरर् अपने िौरि को बचाने के झूठे प्रयास करता है। वभखमंिों की यह पुरानी आदत है। वभखमंिे अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कक हमारे बाप-दादे सम्राट थे। वजनके पास कु छ भी नहीं बचता है िे कर्र मां-बाप की पुरानी कथाओं को खोद-खोद कर वनकाि िेते हैं और उनका िुणिान करते हैं। समझ िेना भिीभांवत, वजस आदमी का ितिमान नहीं होता िही के िि अतीत की बातें करता है। और वजसका कोई भविष्य नहीं होता िह के िि अतीत की पूजा और िुणिान में ही समय व्यतीत करने ििता है। हम वनरं तर अतीत का ही िुणिान करते हैं, जो बीत िया उसी का! क्या हमारा कोई भविष्य नहीं है? या कक हमारा कोई ितिमान नहीं है? क्या हम जी चुके और समाप्त हो िए? हमारा बीता हुआ पास्ट, बस िही सब कु छ है? आिे हमारा कु छ भी नहीं है? शायद आपको ख्याि में न हो। छोटा बच्चा पैदा होता है तो उसका कोई अतीत नहीं होता, कोई पास्ट नहीं होता; उसका भविष्य होता है, वसर्ि फ्यूचर होता है। जिान! जिान के पास अतीत भी होता है, ितिमान भी होता है, भविष्य भी होता है। िेककन बूढ़े के पास वसिाय अतीत के कु छ भी नहीं होता; भविष्य नहीं होता, ितिमान भी नहीं होता। यह कौम बूढ़ी हो िई है क्या? इसके पास सब बीती हुई कथाएं हैं, िौरि-िाथाएं हैं। इसके पास अपना कोई ितिमान नहीं; भविष्य की कोई योजना, आकांक्षा और कल्पना नहीं, कोई आशा नहीं। भविष्य की अिर कोई स्पि प्राणों में ऊजाि और कल्पना और आकांक्षा न हो, भविष्य का कोई स्पि स्िप्न न हो, तो दे श वबखर जाते हैं, कौमें वबखर जाती हैं, विसइं टीग्रेटेि हो जाती हैं। हमारे पास भविष्य की कोई योजना नहीं, भविष्य की कोई कल्पना नहीं, कोई सपना नहीं; भविष्य की कोई स्पि रूपरे खा नहीं। और इिर बीस िषों में हमने और भी सब अस्पि कर कदया है। हम दुवनया में तटस्थ कौम की तरह खड़े हो िए हैं। हम कहते हैं, हम न्यूट्रविस्ट हैं, हम तटस्थ खड़े होने िािे िोि हैं। िेककन आपको पता है, जीिन में तटस्थता का कोई भी अथि नहीं होता। जीिन है कवमटमेंट में, प्रवतबद्धता में। जीिन है सवम्मवित होने में, ककनारे पर खड़े होने में नहीं। और जो ककनारे पर खड़ा हो जाएिा और जो कहेिा हम तटस्थ हैं जीिन की िारा में, जो जित की िारा है उसमें हम तटस्थ और ककनारे पर खड़े हैं, िह ककनारे पर ही खड़ा रह जाएिा। जीिन की िारा उसे छोड़ कर आिे बढ़ जाएिी।



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मेरी दृवि में, अिर भारत तटस्थता की बातें आिे भी कहे चिा जाता है तो भारत का कोई भविष्य नहीं हो सकता। भारत के भविष्य के वनमािण में भारत को पक्षबद्ध होना ही चावहए। उसके वनवश्चत, स्पि मत होने चावहए। जीिन की िारा में उसकी प्रवतबद्धता, उसका कवमटमेंट होना चावहए। उसके सामने स्पि होना चावहए कक िह समाजिाद िाना चाहता है या िोकतंत्र। उसके सामने स्पि होना चावहए कक िह एक िैज्ञावनक जीिनदृवि विकवसत करना चाहता है या नहीं। उसके सामने स्पि होना चावहए कक िमि की क्या कल्पना और क्या रूपरे खा है भविष्य में। िेककन िमि को ध्यान में रख कर भारत वनरपेक्ष है और राजनीवत को ध्यान में रख कर भारत तटस्थ है। तो समझ िेना कक जीिन को ध्यान में रख कर भारत को अिर मृत होना पड़े, मर जाना पड़े, तो वजम्मा ककसी और पर मत दे ना। जो मुदे हैं िे ही के िि वनरपेक्ष और तटस्थ हो सकते हैं। जीवित व्यवि को वनरपेक्ष होने की सुवििा नहीं है। उसे वनणिय िेने होते हैं, उसे जजमेंट िेने होते हैं, उसे च्िाइस करनी होती है। उसे मत में बद्ध होना होता है। उसे ककसी चीज को ठीक और ककसी चीज को िित कहना होता है। जो िोि चीजों के िित और ठीक होने का वनणिय िेना छोड़ दे ते हैं, िीरे -िीरे जीिन का रास्ता उनके विए नहीं रह जाता। उनके ऊपर के िि दूसरी कौमों के पैरों की उड़ी हुई िूि ही पड़ती है, और कु छ भी नहीं। उनके पैर िीरे -िीरे वनकम्मे हो जाते हैं, कावहि हो जाते हैं, सुस्त हो जाते हैं। तटस्थता के भ्म ने भारत को बहुत िक्का पहुंचाया है। स्पि वनणिय िेने जरूरी हैं। अिर एक सड़क पर एक स्त्री की इज्जत िूटी जा रही हो और मैं कहं कक मैं तटस्थ हं; एक आदमी एक कमजोर आदमी को िूट रहा हो और मैं कहं कक मैं तटस्थ हं, मैं वनरपेक्ष हं; तो मेरी तटस्थता का क्या मतिब होिा? तटस्थता झूठी है; और जब एक आदमी िूटा जा रहा है और मैं कहता हं, मैं तटस्थ हं, तो मैं िूटने िािे का साथ दे रहा हं तटस्थता के पीछे, और जो िुट रहा है उसके विरोि में खड़ा हुआ हं। जीिन में विकल्प होते हैं, तटस्थता नहीं होती है। जीिन में स्पि वनणिय िेने होते हैं। सारा जित एक बहुत बड़ी क्राइवसस से िुजर रहा है, एक बहुत बड़े संकट से िुजर रहा है। उसमें भारत कहता है, हम तटस्थ हैं! इतने बड़े संकट में, वजसके ऊपर वनभिर होिा सारे जित का, सारे मनुष्य का भविष्य, वजसके ऊपर वनणिय होिा कक मनुष्य बचेिा या नहीं बचेिा, उसमें भारत अिर सोचता हो कक हम तटस्थ खड़े रहेंिे, तो ििती में है िह। तटस्थता का कोई अथि नहीं होता। इिर बीस िषों में हम कोई िवत नहीं कर सके जीिन में। उसका कु ि कारण है--हमारे पास कोई स्पि दृवि, कोई जीिन-दशिन, कोई कर्िासर्ी नहीं है। हम तटस्थ हैं। तटस्थ की कोई कर्िासर्ी नहीं होती, कोई जीिन-दशिन नहीं होता। उसकी कोई प्रवतबद्धता नहीं होती। जीिन में भािीदार और साझीदार होने का उसका भाि नहीं रहता। िह कहता है, हम तो ककनारे खड़े रहेंिे। िह के िि दे खने िािा रह जाता है--एक दशिक मात्र। और जीिन उनका है जो भोिते हैं। िसुंिरा उनकी है जो भोिना जानते हैं। जो दशिक की भांवत खड़े रह जाते हैं, जीिन उनके द्वार नहीं आता और न जीिन की विजय उन्हें उपिब्ि होती है। तो मैं दूसरी बात यह कहना चाहता हं कक भारत को एक सुस्पि दशिन की, एक सुस्पि विचार की, एक सुस्पि पथ की अमयंत आिश्यकता है। उसी विचार के इदि -विदि भारत की आममा इकट्ठी होिी। अन्यथा भारत वबखर जाएिा। और वबखराि ऐसा होिा, एब्सिि, इतना बेिकू र्ी से भरा हुआ, वजसका कोई वहसाब नहीं। जब पूरे मुल्क के पास कोई जीिन-कदशा नहीं होती, कोई कें द्रीय आममा नहीं होती, तो उसका पररणाम यह होता है कक एक-एक प्रांत, एक-एक जावत, एक-एक वजिे की अपनी आममा पैदा हो जाती है। तब जहंदी बोिने िािे की आममा अिि, िुजराती बोिने िािे की आममा अिि, अंग्रेजी बोिने िािे की आममा अिि हो जाती है। तब 189



मैसूर अिि, महाराष्ट्र अिि। तब कौम टू टती है टु कड़ों में, जब कौम को इं टीग्रेट करने के विए कोई जीिन-दृवि नहीं होती। हम वचल्िाते हैं रोज कक मुल्क इकट्ठा होना चावहए! िेककन मुल्क इकट्ठा कोई आसमान से होता है? मुल्क इकट्ठा होता है जब मुल्क के सामने भविष्य के विए कोई सपना होता है वजसे पूरा करना है। हमारे मुल्क के पास कोई सपना नहीं है, हमारी कोई प्रवतबद्धता, कोई कवमटमेंट नहीं है। हम चुपचाप राहिीरों की तरह तमाशा दे ख रहे हैं। दुवनया जी रही है, हम तमाशिीर हैं। तटस्थता का अथि तमाशविरी ही हो सकता है। और तब, तब क्षुद्र और छोटे मसिे मनुष्य के मन को पकड़ िेते हैं, जब कोई बड़ा मसिा नहीं होता। जहंदुस्तान के नेताओं ने वपछिे बीस िषों में जहंदुस्तान को कोई बड़ा इस्यु, कोई बड़ा मसिा, कोई बड़ी समस्या, कोई बड़ा प्राब्िम नहीं कदया है। उिटी हाित हो िई है यहां। दुवनया का इवतहास यह कहता है कक नेता िह है जो कौमों को कोई बड़े इस्यु, कोई बड़ी समस्याएं दे दे ता है। यहां हाित उिटी है। यहां जनता समस्याएं दे ती है, नेता उनको हि करने में ििे रहते हैं। और जब नीचे का सामान्यजन समस्याएं दे ने ििता है और ऊपर के नेता के िि उन समस्याओं को सुिझा कर काम चिाने की व्यिस्था करने ििते हैं, तो मुल्क वबखर ही जाएिा। बड़ा नेतृमि उन िोिों से उपिब्ि होता है जो मुल्क को ककसी जीिंत, विजिंि प्राब्िम के इदि -विदि इकट्ठा कर दे ते हैं। िेककन हमारे प्राब्िम्स क्या हैं, पता हैं आपको? दुवनया हंसती होिी। कहीं िौ-हमया हमारी समस्या है। आदमी मर रहा है, आदमी के बचने तक की संभािना नहीं है, बहुत िर है कक पूरी मनुष्यता भी नि हो जाए, और हमारी समस्या क्या है? िौ-हमया होनी चावहए कक नहीं होनी चावहए! कक भाषा कौन सी बोिी जानी चावहए! मैं एक र्र में ठहरा था। उस र्र में आि िि िई, तो र्र के िोि वचल्िाने को हुए--आि िि िई है तो वचल्िाएं, पड़ोस के िोिों को जिाएं। मैंने उनसे कहा, पहिे यह तो तय कर िो कक ककस भाषा में वचल्िाओिे, जहंदी में कक अंग्रेजी में! क्योंकक अभी राष्ट्रभाषा वनवश्चत नहीं हुई। ककस भाषा में वचल्िाओिे, जब तक यही तय नहीं, तब तक चुपचाप बैठो, मकान जिने दो। टु च्चे, दो कौड़ी के मसिे हम मुल्क के सामने उठा कर पूरे मुल्क के प्राणों को वबखरा रहे हैं। मुल्क के सामने कोई विजिंि प्राब्िम, कोई बड़ा प्राब्िम नहीं है। पता होना चावहए आपको, जित में के िि िे ही कौमें और िे ही राष्ट्र और िे ही मुल्क कु छ कर पाते हैं वजनके पास कोई जीिंत मसिा होता है, कोई बड़ी समस्या होती है। बड़ी समस्याओं के पास बड़ी आममाएं पैदा होती हैं। बीस साि से हम वचल्िा रहे हैं कक बीस साि पहिे जब आजादी नहीं वमिी थी तब हमारे मुल्क ने इतने बड़े िोि पैदा ककए। िे िोि ककसी बड़े मसिे के इदि -विदि पैदा हुए थे। बीस साि से आपने कोई बड़ा मसिा पैदा नहीं ककया, बड़े िोि कै से पैदा हो सकते हैं? आजादी की बड़ी समस्या थी, बड़ा प्रश्न था, जीिन-मरण का प्रश्न था, उसके आस-पास बड़ी आममाएं जािीं और पैदा हुईं। जीिन तो चुनौवतयों से, चैिेंजेज से पैदा होता है। बीस साि में कौन सा चैिेंज है आपके सामने? यही कक मैसूर का एक वजिा महाराष्ट्र में रहे कक मैसूर में! बेिकू कर्यों की भी सीमाएं होती हैं, िेककन हम उनको पार कर िए हैं। िौ-हमया हो कक न हो! और िमििुरु और राजनेता और समझदार इन मसिों पर बैठ कर विचार-विमशि करते हैं इनको हि करने का। ऐसे िोिों के कदमाि के इिाज की व्यिस्था की जानी चावहए। ये िोि सारे मुल्क को बबािदी के रास्तों पर िे जाते हैं, माइं ि को विस्ट्रैक्ट करते हैं, मुल्क की चेतना को िित मािों पर प्रिावहत करते हैं। 190



एक रात मैंने एक सपना दे खा। मैंने एक सपना दे खा कक कु छ िौिें कॉनिेंट स्कू ि से पढ़ कर िापस िौट रही हैं और एक ऊंट के मकान के सामने ठहर िई हैं। िह ऊंट एक बड़ा वचत्रकार है और उस ऊंट ने यह खबर र्ोवषत कर दी है कक वपकासो और पवश्चम के सब मॉिनि पेंटसि मेरे ही वशष्य हैं। मैं जितिुरु हं उन सबका। उसने र्ोड़े का एक वचत्र बनाया है। तो कॉनिेंट से िौटती िौिों ने सोचा कक जरा हम दे ख िें, इसने कौन सा र्ोड़े का वचत्र बनाया है। िे भीतर िईं। वचत्र था, ऊंट खड़ा मुस्कु रा रहा था। उसने कहा, दे खो! पर उन िौिों ने कहा, इसका कु छ ओर-छोर समझ में नहीं आता! यह कै सा र्ोड़ा है? उसने कहा, यह मॉिनि पेंटटंि है। वजसका ओर-छोर समझ में आ जाए, समझना कक िह वचत्रकिा ऊंची नहीं है। इसका कोई ओर-छोर नहीं होता, इसको बहुत चू.जन फ्यू, कु छ चुने हुए िोि समझ सकते हैं। यह र्ोड़े का वचत्र है। िौिों ने कहा, ककसी तरह हम मान भी िें कक यह र्ोड़े का वचत्र है, िेककन इसकी कू बड़ क्यों वनकिी हुई है? उस ऊंट ने कहा, तुम्हें पता है, वबना कू बड़ के कोई कभी सुंदर होता ही नहीं। क्योंकक परमाममा ने सुंदरतम प्राणी और श्रेष्ठतम प्राणी तो ऊंट ही बनाया है और चौरासी योवनयों में भटक कर जब आममा ऊंट की योवन में आती है तभी मोक्ष वमिने का दरिाजा खुिता है। और तुम्हें पता है, उस ऊंट ने कहा, ऊंटों की बाइवबि पढ़ी है? उसमें विखा है, कद िॉि कक्रएटेि कै मि इन वहज ओन इमेज! ईश्वर ने ऊंट को अपनी ही शक्ि में बनाया है। िौिें खूब हंसने ििीं। उन्होंने कहा, ऊंट अंकि, चाचा, तुम समझे नहीं ठीक बाइवबि को। बाइवबि में विखा है, कद िॉि कक्रएटेि काऊ इन वहज ओन इमेज! िाय को ईश्वर ने अपनी शक्ि में बनाया। और अिर तुम िित समझते हो तो पुरी के शंकराचायि से पूछ सकते हो। िे भी कहते हैं कक िौ माता है। आज तक ऊंट को ककसने वपता कहा है? आदमी भी मानते हैं िौ माता है। और आदमी मरते हैं कक िौ माता है या नहीं, इस प्रश्न पर। मेरी तो र्बराहट में नींद खुि िई। मैं तो अब तक नहीं सोच पाता कक िौिें भी हंसती हैं इस बात पर कक आदमी यह विचार करते हैं कक िौ माता है या नहीं है। िैसे िौिें भी पसंद नहीं करें िी इस बात को कहा जाना-िौ माता। िौिें सब कॉनिेंट में पढ़ती हैं, िे पसंद करें िी--िौ मम्मी, िैिी। माता कोई पसंद नहीं करे िा। कोई पसंद नहीं करे िा कक िौ को माता कहा जाए। बहुत आउट ऑर् िेट यह माता जैसा शब्द। िेककन ये हमारे मसिे हैं। अिर जानिरों को पता होिा हमारे मसिों का तो बहुत हंसते होंिे अपनी बैठकों में बैठ कर कक आदमी भी खूब है, िजब का है! हम तो आदमी के बाबत कभी विचार नहीं करते कक आदमी हमारा बेटा है या नहीं। िेककन आदवमयों के िमििुरु अनशन करते हैं, उपिास करते हैं और सारे मुल्क की चेतना को व्यवथत करते हैं और भटकाते हैं। असिी मसिों से हटाने का एक ही रास्ता है कक नकिी मसिे पैदा कर कदए जाएं। जीिन की असिी समस्याओं से मनुष्य के मन को हटा िेने की पुरानी तरकीब है--झूठी समस्याएं, स्यूिो प्राब्िम्स खड़े कर कदए जाएं। बीस साि में हम स्यूिो प्राब्िम्स खड़े करने में बड़े वनष्णात हो िए हैं। मुल्क का भविष्य नहीं हो सकता अच्छा, अिर हम इसी तरह के टु च्चे और व्यथि के प्रश्न जीिन के सामने खड़े करते चिे िए। जीिन के विए चावहए बड़े जीिंत प्रश्न। विराट! और स्मरण रहे कक हम वजतनी बड़ी समस्या चुनते हैं, वजतनी बड़ी चुनौती, उतने ही हमारे भीतर सोई हुई आममा जाग्रत होती है और विकवसत होती है। जो प्रश्न मनुष्य के भीतर उसकी चेतना को चुनौती नहीं दे ते उन प्रश्नों को वबदा कर दे ना चावहए। वनणिय कर िेना चावहए कक हम अपने से बड़े प्रश्न चुनेंिे, ताकक मुल्क की चेतना रोज-रोज अवतक्रमण करे , विकवसत हो, आिे जाए।



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वहटिर ने अपनी आमम-कथा में विखा है, अिर ककसी कौम के सामने बड़े प्रश्न न हों तो बड़े प्रश्न पैदा करने की कर्कर करनी चावहए; क्योंकक वजतने बड़े प्रश्न खड़े होते हैं, आदमी उनके उत्तर दे ने के विए उतनी ही आतुरता से अपनी सोई हुई शवियों को जिाना शुरू कर दे ता है। िेककन हम उिटा कर रहे हैं। हम छोटे से छोटे टु च्चे से टु च्चे प्रश्न खड़े करते हैं और उनके साथ अिर मुल्क की आममा नीची होती चिी जाती हो तो वजम्मेिार कौन है? उत्तरदायी कौन है? तो दूसरी मैं आपसे यह बात कहना चाहता हं--मुल्क के सामने बड़े प्रश्न खड़े करने हैं। और सबसे बड़ा प्रश्न क्या है? सबसे बड़ा प्रश्न शायद आपको ख्याि में भी न हो। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कक क्या मुल्क को समाजिाद की कदशा में जाना है? और मैं आपसे वनिेदन करना चाहता हं कक समाजिाद या साम्यिाद, सोशविज्म और कम्युवनज्म का इतना प्रचार ककया िया है कक अब कोई आदमी सोचता ही नहीं कक यह भी कोई प्रश्न है। अब तो हम सभी मानते ही हैं कक जाना ही है, उसी कदशा में जाना है। मैं आपसे वनिेदन करता हं, समाजिाद की वमथ, साम्यिाद की पररकल्पना से ज्यादा र्ातक और खतरनाक कोई कल्पना नहीं हो सकती। यह एकदम झूठी कल्पना है, वजसके अंतिित मनुष्य की सारी आममा वबक जाएिी और जीिन में जो भी श्रेष्ठ है, जो भी सुंदर है और जो भी समय है, िह सब नि हो जाएिा। पहिी बात, कोई दो आदमी समान नहीं हैं और न हो सकते हैं। इक्वाविटी एकदम कर्क्शन, एकदम झूठी कल्पना है। कोई दो आदमी समान नहीं हैं, न कभी समान रहे हैं। इसका यह मतिब नहीं है कक एक आदमी नीचा और एक आदमी ऊंचा है। इसका मतिब यह है कक प्रमयेक आदमी वभन्न, अवद्वतीय और यूनीक है; एक-एक आदमी बेजोड़ है; कोई आदमी ककसी से न छोटा है, न बड़ा। िेककन कोई आदमी ककसी के समान भी नहीं है। और दुभािग्य होिा िह कदन, वजस कदन हम आदवमयों को जबरदस्ती समानता की मशीन में ढाि कर खड़ा कर दें िे। उस कदन मशीनें रह जाएंिी, मनुष्य नहीं। िेककन सारी दुवनया में यह कोवशश की जा रही है कक मनुष्य को सब भांवत समान कर कदया जाए। मनुष्य की चेतना और जीिन का विकास व्यवि की तरर् है, इं विविजुअि की तरर् है। िक्ष्य समाज नहीं है, हमेशा व्यवि है। अिर हम ककसी पौिे के बीज िाएं और पचास बीज रख दें यहां सामने, बीज समान होंिे वबल्कु ि, बीजों में कोई र्कि नहीं होिा। िेककन उन पचास बीज को बविया में बो दें आप, तो उनसे पचास तरह के पौिे पैदा होंिे। िे पौिे सब वभन्न होंिे। उनमें र्ू ि ििेंिे। िे र्ू ि सब वभन्न होंिे। बीज समान हो सकते हैं, िेककन विकास की अंवतम वस्थवत समान नहीं हो सकती। कम्युवनज्म मनुष्य की आकदम अिस्था थी, वप्रवमरटि स्टेट ऑर् सोसायटी थी। मनुष्य जब वबल्कु ि बीज रूप में थे, जब उनमें कोई विकास नहीं हुआ था तब िह वस्थवत थी जब िे सब समान थे। िेककन वजतना मनुष्य में विकास होिा उतना एक-एक व्यवि अिि, पृथक, वभन्न और अवद्वतीय होता चिा जाएिा। जीिन की िारा अवद्वतीय व्यवियों को पैदा करने की ओर है, एक मोनोटोनस, एक सा समाज पैदा करने की ओर नहीं है। िेककन सारी दुवनया में इिर सौ िषों में इतने जोर से साम्यिाद की बात की िई है कक अब तो कोई कहने का साहस ही नहीं कर सकता कक यह बात कहीं िित भी हो सकती है। आज रूस में अिर बुद्ध पैदा होना चाहें तो नहीं पैदा हो सकते। महािीर जन्मने के साथ ही मुवश्कि में पड़ जाएंिे। और महािीर और बुद्ध को तो छोड़ दें , अिर खुद माक्सि भी पैदा होना चाहे तो रूस उसकी पैदाइश की जमीन नहीं हो सकती। माक्सि को भी छोड़ दें , अब तो अिर स्टैविन भी िापस पुनजिन्म िेना चाहें रूस में तो रूस में उनको जन्म नहीं कदया जा सकता। क्योंकक रूस या साम्यिाद की सारी िारणा व्यवि विरोिी है, व्यवि िैवशष्य की विरोिी है, इं विविजुअविटी 192



की विरोिी है। हम इकाइयां चाहते हैं, व्यवि नहीं चाहते। और सभी व्यवियों को एक सा कर दे ना है सब भांवत। वनवश्चत ही, सभी व्यवियों को समान अिसर उपिब्ि होने चावहए। िेककन समान अिसर इसविए नहीं कक सभी व्यवि समान हो जाएं, बवल्क इसविए कक प्रमयेक व्यवि असमान और वभन्न होने की समान सुवििा उपिब्ि कर सके । जहंदुस्तान पर भी यह दुभािग्य उतर रहा है िीरे -िीरे । कौन िाएिा इस दुभािग्य को, यह बात अिि है-कक कम्युवनस्ट िाएंिे, कक कांग्रेस िाएिी, कक सोशविस्ट िाएंिे। िेककन यह दुभािग्य िीरे -िीरे उतर रहा है और हम भी इस कोवशश में ििे हैं कक एक यांवत्रक, एक किेवक्टि, एक समवििादी समाज को वनर्मित कर िें। िेककन आपको पता होना चावहए--रोटी के मूल्य पर हम आममा को बेचने की कोवशश कर रहे हैं। याद होना चावहए कक समानता की यह जबरदस्त कोवशश मनुष्य के जीिन से स्ितंत्रता को नि करती है, िैचाररक स्ितंत्रता को नि करती है, व्यवियों की विवशिता को नि करती है, उनके यूनीक, उनके बेजोड़ होने को नि करती है। तब िे ककसी बड़े कारखाने के किपुजे रह जाते हैं, स्ितंत्र चेतनाएं नहीं। सारी दुवनया में यह हो रहा है। जहंदुस्तान में भी होिा। हम पीछे शायद ही रहेंिे। ऐसी कौन सी बीमारी है वजसमें हम पीछे रह जाएं! हम तो सबके साथ आिे होने के विए अमयंत उमसुक और आतुर हो उठे हैं। अिर भारत के भविष्य के विए कोई कल्पना और कोई सपना हो सकता है तो िह यह कक भारत, आने िािी दुवनया में भारत व्यवििाद का परम पोषक स्पि रूप से अपने को र्ोवषत करे । व्यवियों के विकास का अथि यह नहीं होता कक समाज दररद्र होिा और िोि दीन-हीन होंिे। व्यवियों की पूणि विकास की अिस्था में कोई दीन-हीन होने की जरूरत नहीं रह जाती, िेककन असमानता, वभन्नता, िैवशष्य की स्िीकृ वत होती है। एक ऐसा समाज चावहए जहां प्रमयेक व्यवि को स्ियं होने की स्ितंत्रता हो। समाजिाद या साम्यिाद में यह स्ितंत्रता संभि नहीं है। िहां समाज होिा, व्यवि नहीं होंिे। व्यवियों को िेबजिंि की जाएिी और रह जाएिी एक किेवक्टि भीड़। और सब तरह की कोवशश की जा रही है माइं ि िाश की, मनुष्यों की चेतनाओं को पोंछ िािने की, उनके स्ितंत्र जचंतन को वमटा िािने की, जो हुकू मत कहे िही दोहराने के विए उनको मशीनें बनाने की। चीन में बड़े जोरों पर प्रयोि चि रहा है कक प्रमयेक व्यवि में जो विवशि चेतना है उसे पोंछ कर कै से अिि कर कदया जाए। और पाििि और कु छ दूसरे मनोिैज्ञावनकों ने िे यंत्र उनके हाथ में दे कदए हैं कक एक-एक आदमी के भीतर जो व्यविमि है, जो विवशिता है, जो जचंतन है, उसे पोंछ िािा जाए और एक-एक आदमी एक एकर्वशएंट मशीन हो जाए। वनवश्चत ही, तब ज्यादा रोटी वमि सके िी, ज्यादा अच्छे मकान वमि सकें िे, ज्यादा अच्छे कपड़े वमि सकें िे। िेककन ककस कीमत पर? आदमी को खोकर! एक मकान में आि ििी थी और मकान का माविक बाहर आंसू बहा रहा था, खड़ा था। पड़ोस के िोि मकान से सामान वनकाि रहे थे दौड़ कर। कर्र सारा सामान वनकाि विया िया और मकान में अंवतम िपटें पकड़ने ििीं, तब िोिों ने आकर उस मकान माविक को कहा कक कु छ और भीतर रह िया हो तो हम दे ख िें जाकर, क्योंकक इसके बाद दोबारा भीतर जाना संभि नहीं होिा, मकान अंवतम िपटों में जा रहा है। उस मकान माविक ने कहा, मुझे कु छ भी याद नहीं पड़ता। मेरी स्मृवत ही खो िई है। कर्र भी तुम भीतर जाकर दे ख िो, कु छ बचा हो तो िे आओ। उन्होंने सब वतजोररयां बाहर वनकाि िी थीं, उन्होंने मकान के सब खाते-बही बाहर वनकाि विए थे। उन्होंने कपड़े, बतिन, सब बाहर वनकाि विया था। िे भािे हुए भीतर िए और िहां से छाती पीटते हुए रोते



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िापस आए। मकान माविक का इकिौता िड़का भीतर ही जि िया था। िे बाहर आकर रोने ििे और उन्होंने कहा, हम सामान को बचाने में िि िए और सामान का अके िा माविक नि हो िया। क्या हम भी सामान को बचाएंिे या सामान के माविक को बचाएंिे? क्या हम आदमी को बचाएंिे या रोटी और रोजी और कपड़े को? जरूरी भी नहीं है कक आदमी को बचाने में रोटी और रोजी न बचाई जा सके । आदमी के साथ भी उसे बचाया जा सकता है। व्यवियों को वबना वमटाए समाज को जीिन कदया जा सकता है। भारत के विए कोई कर्िासर्ी, भारत के विए कोई जीिन-दशिन अिर हो सकता है तो िह यह हो सकता है कक भारत आने िािे जित में व्यवियों की िररमा, इं विविजुअल्स को बचाने की र्ोषणा करे । और व्यवि कै से बचाए जा सकें , उनकी स्ितंत्रता, उनके प्राणों की ऊजाि, उनकी िररमा और िौरि कै से बचाया जा सके , उन सबको मशीनों में बदिने से कै से बचाया जा सके , इसके विए भारत दुवनया में कवमटमेंट िे, इसके विए प्रवतबद्ध हो, सारे जित में उसकी अपनी एक चुनौती, अपना आिाहन हो। और इस आिाहन के इदि -विदि न के िि सारे दे श के प्राण जि सकते हैं, बवल्क सारे जित को भी एक माििदशिन उपिब्ि हो सकता है। यह तीसरी बात मैं कहना चाहता हं। और चौथी एक अंवतम बात, और कर्र मैं अपनी बात पूरी करूं। और चौथी बात मुझे यह कहनी है कक भारत को अपने आने िािे भविष्य के वनमािण में, अपने भविष्य के भाग्य और वनयवत के वनमािण में अपनी वपछिी भूिों को ठीक से समझ िेना होिा, ताकक िे कर्र से न दोहराई जाएं। भारत ने कु छ बुवनयादी भूिें तीन हजार िषों में दोहराई हैं। और भारत के विचारशीि िोि इतने कमजोर, इतने सुस्त और शविहीन हैं कक उन भूिों के बाबत जचंतन करने की सामथ्यि और साहस भी नहीं जुटा पाते। भारत ने एक बड़ी भूि दोहराई है और िह यह कक भारत ने आममा-परमाममा की एकांिी बातें की हैं; शरीर को और पदाथि को वबल्कु ि छोड़ कदया और भूि िया है। एक हजार िषि की िुिामी इसका पररणाम थी। आदमी आममा भी है और शरीर भी। और जीिन चेतना भी है और पदाथि भी। जहंदुस्तान ने के िि चेतना और आममा की बातों में अपने को भुिाए रखा। जीिन दररद्र होता िया, शरीर क्षीण होता िया, शवि नि होती िई। िुिाम हुए हम। और िुिाम जब हम हो िए, तो हम बड़े होवशयार िोि हैं, हम तकि खोजने में, दुवनया में हमारा कोई सानी नहीं, हमारा कोई मुकाबिा नहीं। जब हम िुिाम हो िए तो हमने कहा कक मुसिमानों ने आकर हमको िुिाम कर कदया। जब अंग्रेजों ने हमको परावजत कर विया और हमारे ऊपर हािी हो िए तो हमने कहा, अंग्रेजों ने हमको िुिाम करके कमजोर कर कदया। सच्चाई उिटी है। जब तक कोई कौम कमजोर नहीं होती तब तक कोई उसे िुिाम कै से बना सकता है? िुिामी से कोई कभी कमजोर नहीं होता, कमजोर होने से जरूर कौमें िुिाम हो जाती हैं। अंग्रेजों की िजह से और मुसिमानों की िजह से आप कमजोर नहीं हुए। आप कमजोर थे, आप कमजोर हो िए थे, और इसविए कोई भी आया और आपको िुिाम बनाया जा सका। िेककन हम बड़े बेशमि िोि हैं, वजन्होंने हमें िुिाम बनाया, उन्हीं के ऊपर थोप दे ते हैं कक इन्होंने हमें कमजोर कर कदया। कमजोर हुए वबना कभी कोई िुिाम होता है? कमजोर हम क्यों हो िए? कमजोर ककया हमारे एकांिी िमों ने, कमजोर ककया हमारे सािु-महाममाओं ने, कमजोर ककया हमारे अिूरे संन्यावसयों ने। नहीं मुसिमानों ने, नहीं अंग्रेजों ने, नहीं हणों ने, न मुििों ने, न तुकों ने, ककसी ने हमें कमजोर नहीं ककया। कमजोरी आई हमारे भीतर से--अिूरेपन से। हमने जीिन में पदाथि की महत्ता को अंिीकार नहीं ककया; शरीर के हम दुश्मन रहे; संपवत्त के , शवि के हम विरोिी रहे। जो कौम



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संपवत्त, शवि और पदाथि की विरोिी है, कर्र िह राम-भजन ही करने के योग्य रह जाएिी, और ककसी के योग्य नहीं। कर्र िह हरर-कीतिन कर सकती है, अखंि कर सकती है; िेककन और कु छ भी उससे नहीं हो सकता है। और मैं आपको स्मरण कदिा दूं, वजनके पास शवि नहीं है, उनके पास परमाममा के पहुंचने के मािि भी बंद हो जाते हैं। थोथी बकिास कर सकते हैं िे, िेककन परमाममा की उस यात्रा में भी बड़े बिशािी प्राण चावहए। कमजोर, नपुंसक और ढीिे और सुस्त िोिों के िे भी मािि नहीं हैं। वहमािय की चोरटयां जो नहीं चढ़ सकते, िे परमाममा की चोरटयों को क्या चढ़ सकें िे! िेककन जहंदुस्तान की वहमािय की चोरटयां चढ़ने के विए बाहर से िोि आते हैं। एिरे स्ट पर चढ़ने के विए बाहर से िोि आते हैं और हमारे बच्चे अंिेरे में जाने से िरते हैं। हम आममा की अमरता की बातें करते हैं और हमसे ज्यादा मौत से िरने िािा जमीन पर कोई भी नहीं है। बड़ी अजीब बात है! यह िमि अिूरा था। अिर भारत को कोई भविष्य बनाना है तो उसे पूरे िमि को... पूरे िमि से मेरा मतिब है जोशरीर को भी स्िीकार करता है और आममा को भी। एक दूसरी भूि पवश्चम ने की है। उन्होंने आममा को अस्िीकार करके के िि शरीर को मान विया। एक एक्सट्रीम की भूि उन्होंने की; एक एक्सट्रीम, एक अवत की भूि हमने की। जीिन-संिीत ऐसे पैदा नहीं होता। एक छोटी सी कहानी, और मैं अपनी बात पूरी करूं। बुद्ध के पास एक युिा राजकु मार ने दीक्षा िी। िह अमयंत भोिी और वििासवप्रय था। बुद्ध के पास दीक्षा िेकर जब िह संन्यासी हुआ तो बुद्ध के दूसरे वभक्षुओं ने कहा--यह इतना वििासी राजकु मार, जो कभी महिों से बाहर नहीं वनकिा, वजसने कभी खुिे आसमान की िूप नहीं सही, जो चिता था रास्तों पर तो र्ू ि और मखमि वबछाए जाते थे, सुनते हैं उसने र्र की, मकान की सीकढ़यों पर सहारा िेकर चढ़ने के विए नग्न वस्त्रयों को खड़ा कर रखा था, यह आदमी दीवक्षत हो रहा है! यह संन्यासी हो रहा है! बुद्ध ने कहा, मनुष्य का मन हमेशा एक्सट्रीम में, हमेशा अवत में िोिता है। जो भोिी हैं िे योिी हो जाते हैं; जो योिी हैं िे भोिी हो जाते हैं। अभी श्री पारटि ने कहा कक पवश्चम में बहुत जोर से िमि का प्रभाि बढ़ रहा है। चर् च में िोि जा रहे हैं। एक्सट्रीम! उनका कदमाि भोि से ऊब िया, पेंिुिम उनकी र्ड़ी का िमि की तरर् जा रहा है। जहंदुस्तान के िोि िमि से ऊब िए हैं, उनका पेंिुिम भोि की तरर्, वसनेमा की ओर जा रहा है। िहां उनकी भीड़ चचि के सामने इकट्ठी हो रही है। यहां की भीड़ वसनेमा के पास इकट्ठी हो रही है; िह पृथ्िीराज जी बैठे हैं, िे बता सकें िे। मनुष्य का जो मन है, बीमार मन, िह हमेशा एक्सट्रीम में जाता है। ज्यादा खाने िािे िोि उपिास करने ििते हैं। वजनके वचत्त में वस्त्रयों के वचत्र बहुत चिते हैं िे िह्मचारी हो जाते हैं। जीिन अवत में चिता है। और अवत भूि है, एक्सट्रीम भूि है। बुद्ध ने कहा, िह अवत पर जा रहा है, िेककन दे खो! और वभक्षुओं ने दे खा कक यही हुआ। िह वजस कदन से राजकु मार श्रोण दीवक्षत हुआ, दूसरे वभक्षु राजपथ पर चिते थे, िेककन िह कांटों िािी पििंिी पर चिता था ताकक पैरों में कांटे वछद जाएं और िहिुहान हो जाएं। िह मयािी-तपस्िी, िह ठीक रास्ते पर कै से चि सकता है! कि तक िह मखमिों पर चिता था, अब िह कांटों पर चिता था। बीच का कोई रास्ता था ही नहीं। दूसरे वभक्षु एक बार भोजन करते, िह एक कदन भोजन करता और एक कदन वनराहार रहता। दूसरे वभक्षु िृक्षों की छाया में बैठते, िह भरी दोपहरी में िूप में खड़ा रहता। दूसरे वभक्षु िस्त्र ओढ़ते सदी आती, िेककन िह सदी में भी नग्न पड़ा रहता। उसने सारे शरीर को एक िषि में सुखा कर कांटा बना विया। िह सुंदर राजकु मार, उसकी 195



सुंदर काया सूख कर कािी पड़ िई, कु रूप हो िई। उसके पैरों में छािे पड़ िए। उसके पैरों में िह बहता रहता; मिाद पड़ िई; र्ोड़े पड़ िए। बुद्ध एक िषि बाद उस राजकु मार के पास िए और कहा, राजकु मार श्रोण, मैंने सुना है कक जब तू वभक्षु नहीं हुआ था तो वसतार बजाने में, िीणा बजाने में तेरी बड़ी कु शिता थी। क्या यह सच है? उस श्रोण ने कहा, हां, यह सच है। िोि कहते थे मेरे जैसा िीणा बजाने िािा कोई कु शि िादक नहीं है। तो बुद्ध ने कहा, मैं एक प्रश्न उिझ िया, उसे पूछने आया हं तुझसे। िीणा के तार अिर बहुत ढीिे हों तो संिीत पैदा होता है? उस श्रोण ने कहा कक नहीं, तार ढीिे होंिे तो संिीत कै से पैदा होिा? तार ढीिे होंिे तो टंकार ही पैदा नहीं हो सकती तो संिीत कै से पैदा होिा! तो बुद्ध ने कहा, और अिर तार बहुत कसे हों तो संिीत पैदा होता है? उस श्रोण ने कहा कक नहीं, अिर तार बहुत कसे हों तो िे टू ट जाते हैं, कर्र भी संिीत पैदा नहीं होता। तो बुद्ि ने कहा, संिीत पैदा कब होता है? संिीत के पैदा होने का राज और रहस्य क्या है? तो उस श्रोण ने कहा, िीणा के तारों की एक ऐसी दशा भी है जब न तो हम कह सकते कक िे ढीिे हैं और न कह सकते कक िे कसे हैं। उस मध्य में, उस संतुिन में, उस समता में, उस जबंदु पर संिीत का जन्म होता है। तो बुद्ध ने कहा, मैं जाता हं। इतना ही कहने आया था कक जो िीणा में संिीत पैदा होने का वनयम है, जीिन की िीणा पर भी पैदा होने का िही वनयम है। जीिन की िीणा से भी संिीत िहीं पैदा होता है जब न तो तार आममा की तरर् बहुत कसे होते हैं और न शरीर की तरर् बहुत ढीिे होते हैं। भारत ने शरीर के विरोि में आममा की तरर् तारों को कस विया। हमारी िीणा से संिीत उठना हजारों साि हुए बंद हो चुका है। पवश्चम ने जीिन की िीणा के तार शरीर की तरर् वबल्कु ि ढीिे छोड़ कदए, उन पर टंकार भी पैदा नहीं होती, उनसे भी संिीत उठना बंद हो िया है। क्या हम जीिन की िीणा पर संिीत पैदा करना चाहते हैं? तो हमें पवश्चम और पूरब की दोनों भूिों से भारत के भविष्य को बचाना है। पूरब के अतीत से और पवश्चम के ितिमान से, दोनों से बचा िेना है, दोनों अवतयों से बचा िेना है। अिर यह हो सके तो एक सौभाग्यशािी दे श का जन्म हो सकता है। और हो सकता है यह भी कक दुवनया में भारत इतनी तीव्रता से, इतनी ऊजाि से उठे कक वजसका कोई वहसाब हम न ििा सकें । क्योंकक जो जमीन बहुत कदनों तक परती पड़ी रहती है, वजस जमीन पर बहुत कदनों तक ककसान र्सि नहीं बोता, उस पर अिर बीज िािे जाएं तो दूसरे ककसानों की र्सिों से उस पर हजार िुनी ज्यादा र्सि आती है। िेढ़-दो हजार िषों से भारत की चेतना की भूवम परती पड़ी है, उस पर कोई र्सि नहीं बोई िई। यह हो सकता है कक अिर हमने कु शिता से, समझदारी से, वि.जिम से, बुवद्धमत्ता से काम विया, तो यह हो सकता है कक दो हजार िषि का दुभािग्य हमारे िरदान में र्वित हो जाए और हमारे दे श की चेतना और आममा की जो जमीन परती पड़ी है उस पर हम जीिन की कोई सुंदर र्सिें काट सकें । यह हो सकता है। िेककन यह आसमान से नहीं होिा, और ककसी भििान से पूजा और प्राथिना करने से नहीं होिा, और ककन्हीं शास्त्रों और मंकदरों के सामने वसर टेकने से नहीं होिा। बहुत हो चुकीं ये सारी बातें और इनसे कु छ भी नहीं हुआ है। यह होिा, अिर हम कु छ करें िे। यह हमारे संकल्प और हमारे विि और हमारे भीतर सोई हुई शवि के जािने से हो सकता है। भारत िही बनेिा जो हम उसे बना सकते हैं। तो मैं वनिेदन करता हं कक आने िािे भविष्य के विए भारत के सृजनाममक एक नये रूप, एक नये जीिन को दे ने में वमत्र बनें, सहयोिी बनें। एक बहुत बड़ा वजम्मा हम सबके ऊपर है। और अिर एक-एक व्यवि ने यह वजम्मा उठा विया तो कोई भी कारण नहीं है कक चाहे रात ककतनी भी अंिेरी हो, िेककन उस अंिेरी रात के 196



बाद सुबह का सूरज उि सकता है। दे श पर बड़ी अंिेरी रात है, िेककन सुबह का सूरज भी उि सकता है। िेककन िह सूरज अपने आप नहीं उि जाएिा, उसे हमें उिाना है। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं। मैं कोई राजनीवतज्ञ नहीं हं। मुझे राजनीवत से कु छ िेना-दे ना नहीं है। िेककन मैं तटस्थ भी नहीं हो सकता हं--कक राजनीवतज्ञ कु छ भी ककए चिे जाएं और हम वनरपेक्ष और तटस्थ खड़े रहें। हमें कु छ कहना, जानना, सोचना ही होिा; मुल्क के विए जचंतन करना ही होिा। अन्यथा मुल्क भटक जाएिा और हम सब उसके विए एक से अपरािी वसद्ध होंिे। राजनीवतज्ञ ही नहीं, सािु और संन्यासी भी, जो चुपचाप खड़े रहेंिे तो अपरािी वसद्ध होंिे। और उनका अपराि राजनीवतज्ञों के अपराि से बड़ा होिा। उनका अपराि बहुत पुराना है। असि में, मनुष्य-जावत को वजन िोिों ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, िे िे अच्छे िोि हैं जो राजनीवत की तरर् पीठ करके खड़े हो जाते हैं, िे बुरे िोिों को मौका दे ते हैं कक िे राजनीवत में प्रविि हो जाएं। बट्रेंि रसेि ने बहुत कदन पहिे एक ििव्य कदया था। बहुत अदभुत था। उस ििव्य को उसने शीषिक कदया थााः कद हामि दै ट िुि मेन िू । िह नुकसान जो अच्छे िोि करते हैं। अच्छे िोि कौन सा नुकसान करते हैं? अच्छे िोि तटस्थ हो जाते हैं। अच्छे िोि वनरपेक्ष हो जाते हैं। अच्छे िोि कहते हैं, हमें कोई मतिब नहीं। अच्छे िोि कहते हैं, ये संसार की बातें हैं, हम संन्यासी हैं। अच्छे िोि कहते हैं, यह बंबई है, हम तो जंिि जाने िािे हैं। अच्छे िोि बुरे िोिों के विए जिह खािी करते हैं। और कर्र बुरे िोि जो करते हैं उससे यह दुवनया हमारे सामने है जो पैदा हो िई है। मैं अच्छे आदवमयों को आमंत्रण दे ता हं कक बुरे आदवमयों को ककसी भी जिह पर खािी जिह दे नी आपका अपराि है। इस अपराि से प्रमयेक को बचना है। और अिर हम बच सकते हैं तो वनराश होने का कोई भी कारण नहीं। मेरी बातों को इतनी शांवत, इतने प्रेम से सुना, उसके विए बहुत-बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे हुए परमाममा को प्रणाम करता हं, मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य सोिहिां प्रिचन



भारत का दुभािग्य मेरे वप्रय आममन्! भारत के दुभािग्य की कथा बहुत िंबी है। और जैसा कक िोि सािारणताः समझते हैं कक हमें ज्ञात है कक भारत का दुभािग्य क्या है, िह बात वबल्कु ि ही िित है। हमें वबल्कु ि भी ज्ञात नहीं है कक भारत का दुभािग्य क्या है। दुभािग्य के जो र्ि और पररणाम हुए हैं िे हमें ज्ञात हैं। िेककन ककन जड़ों के कारण, ककन रूट्स के कारण भारत का सारा जीिन विषाि, असर्ि और उदास हो िया है? िे कौन से बुवनयादी कारण हैं वजनके कारण भारत का जीिन-रस सूख िया है, भारत का बड़ा िृक्ष िीरे -िीरे कु म्हिा िया, उस पर र्ू ि-र्ि आने बंद हो िए हैं, भारत की प्रवतभा पूरी की पूरी जड़, अिरुद्ध हो िई है? िे कौन से कारण हैं वजनसे यह हुआ है? वनवश्चत ही, उन कारणों को हम समझ िें तो उन्हें बदिा भी जा सकता है। वसर्ि िे ही कारण कभी नहीं बदिे जा सकते वजनका हमें कोई पता ही न हो। बीमारी वमटानी उतनी करठन नहीं है वजतना करठन वनदान, िाइग्नोवसस है। एक बार ठीक से पता चि जाए कक बीमारी क्या है, तो बीमारी के वमटाने के उपाय वनवश्चत ही खोजे जा सकते हैं। िेककन अिर यही पता न चिे कक बीमारी क्या है और कहां है, तो इिाज से बीमारी ठीक तो नहीं होती, अंिे इिाज से बीमारी और बढ़ती चिी जाती है। बीमारी से भी अनेक बार औषवि ज्यादा खतरनाक हो जाती है, अिर बीमारी का कोई पता न हो। बीमाररयां कम िोिों को मारती हैं, िैद्य ज्यादा िोिों को मार िािते हैं, अिर इस बात का ठीक पता न हो कक बीमारी क्या है। और मुझे कदखाई पड़ता है कक हमें कु छ भी पता नहीं कक हमारी बीमारी क्या है, हमारे दुभािग्य का मूि आिार क्या है। यह तो कदखाई पड़ता है कक दुभािग्य र्रटत हो िया है। यह तो कदखाई पड़ता है कक अंिकार जीिन पर छा िया है। एक उदासी, एक वनराशा, एक हताशा, एक बोवझिपन है, और ऐसा कक जैसे हमने सब खो कदया है और आिे कु छ भी पाने की उम्मीद भी खो दी है। िह कदखाई पड़ता है। िेककन यह क्यों हो िया है? बहुत से िोि हैं जो इसका वनदान करते हैं। कोई कहेिा कक पवश्चम के प्रभाि ने भारत को नीचे विराया है--चररत्र में, आशा में, आममा में। िित कहते हैं िे िोि। िित इसविए कहते हैं कक यह बात ध्यान रहे कक जैसे पानी नीचे की तरर् बहता है िैसे ही प्रभाि भी ऊपर की तरर् नहीं बहता, हमेशा नीचे की तरर् बहता है। अिर एक बुरे और अच्छे आदमी का वमिना हो तो वजसकी ऊंचाई ज्यादा होिी, प्रभाि उसकी तरर् से दूसरे आदमी की तरर् बहेिा। अिर अच्छे आदमी की ऊंचाई ज्यादा होिी तो बुरा आदमी पररिर्तित हो जाएिा और अिर अच्छे आदमी की वसर्ि बातचीत होिी और जीिन में कोई िहराई न होिी तो बुरा आदमी प्रभािी हो जाएिा और प्रभाि बुरे आदमी से अच्छे आदमी की तरर् बहने शुरू हो जाएंिे। पवश्चम से भारत प्रभावित हुआ है, इसका कारण यह नहीं है कक पवश्चम ने भारत को प्रभावित कर कदया है। इसका कारण यह है कक पवश्चम की, वजसको हम अनीवत कहते हैं, िह अनीवत भी हमारी नीवत से ज्यादा बििान और शविशािी वसद्ध हुई है। पवश्चम की अनैवतकता की भी एक ऊंचाई है, हमारी नैवतकता की भी उतनी ऊंचाई नहीं है। पवश्चम के भौवतकिाद की भी एक सामथ्यि है, हमारे अध्याममिाद में उतनी भी सामथ्यि



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नहीं है, उससे भी ज्यादा वनिीयि और नपुंसक वसद्ध हुआ है। इसविए प्रभाि उनकी तरर् से हमारी तरर् बहता है। इसमें दोष उनका नहीं है। पहाड़ पर पानी विरता है, िेककन विरा हुआ पानी भी पहाड़ से उतर जाता है नीचे, क्योंकक पहाड़ की ऊंचाइयां इतनी हैं। और यह हो सकता है कक एक झीि में पानी भी न विरे , एक िड्ढे में पानी भी न विरे , िेककन पहाड़ पर विरा हुआ पानी बह कर थोड़ी दे र में िड्ढे में भर जाएिा। और िड्ढा यह कह सकता है कक पानी मुझमें भर कर मुझे भ्ि कर रहा है। िेककन िड्ढे को जानना चावहए कक िह िड्ढा है, इसविए पानी भर रहा है। िहां खािी जिह है, िहां नीचाई है, इसविए प्रभाि चारों तरर् से दौड़ते हैं और भर जाते हैं। भारत की आममा ररि और खािी है, इसविए सारी दुवनया उसे कभी भी प्रभावित कर सकती है। वजनकी आममाएं भरी हैं, समृद्ध हैं, िे प्रभावित नहीं होते, बवल्क प्रभावित करते हैं। यह दोष दे ने से कु छ भी न होिा कक पवश्चम की वशक्षा और पवश्चम की संस्कृ वत हमें विकृ त कर रही है। यह ऐसा ही है जैसे िड्ढा कहे कक पानी भर कर मुझे नि कर रहा है। िड्ढे को जानना चावहए कक मैं िड्ढा हं, इसविए पानी मेरी तरर् दौड़ता है। अिर मैं पहाड़ का वशखर होता तो पानी मेरी तरर् नहीं दौड़ सकता था। िेककन हम िािी दे कर तृप्त हो जाते हैं और सोचते हैं हमने कोई कारण खोज विया। हम सोचते हैं हमने पवश्चम को दोष दे कर कोई कारण खोज विया। हम वबल्कु ि नहीं दे ख पाए कक हम िड्ढे की तरह हैं, कारण िहां है। कु छ िोि हैं जो कहेंिे कक हजार साि से भारत िुिाम था, इसविए दीन-हीन और दररद्र और दुखी और पीवड़त हो िया है। िे भी िित कहते हैं। उनकी आंखें भी बहुत िहरी नहीं हैं ककसी दे श की आममा को दे खने के विए। िुिामी से कोई मुल्क पवतत नहीं होता, पवतत होने से कोई मुल्क िुिाम हो सकता है। िुिामी से कोई कै से पवतत हो सकता है? और वबना पवतत हुए कोई िुिाम कै से हो सकता है? एक कौम को मरने की हमेशा स्ितंत्रता है। िेककन जो िोि मरने के मुकाबिे में िुिामी को चुन िेते हैं िे ही के िि िुिाम हो सकते हैं। िेककन हम मृमयु से इतने भयभीत िोि हैं कक हम कै सा भी दीन-हीन, दवित, पैरों में पड़ा हुआ जीिन स्िीकार कर सकते हैं, िेककन मृमयु को िरण करने की वहम्मत हमने बहुत पहिे खो दी है। हम इसविए नहीं नीचे विर िए हैं कक हम हजार साि िुिाम रहे। हम नीचे विरे , इसविए हमें हजार साि िुिाम रहना पड़ा है। और आज भी हमारी कोई ऊंचाई नहीं उठ िई है। कोई स्ितंत्र होने से ऊंचा नहीं उठ जाता है। मात्र स्ितंत्र होने से कोई ऊपर नहीं उठ जाता है। बवल्क हाितें उिटी कदखाई पड़ती हैं। िुिाम हम जैसे थे तो जैसे एक िुिामी से बंिे थे और हमारे चररत्र को चारों तरर् से दीिािें रोके हुए थीं। स्ितंत्र होकर हमारे चररत्र में और पतन आया है, ऊंचाई नहीं उठी है। जैसे स्ितंत्रता ने हमारे चररत्र में जो वछपे हुए रोि थे उन सबको मुि कर कदया है और स्ितंत्र कर कदया है। हम स्ितंत्र नहीं हुए, हमारी सारी बीमाररयां स्ितंत्र हो िई हैं। हम स्ितंत्र नहीं हुए, हमारी सारी कमजोररयां स्ितंत्र हो िई हैं। हम स्ितंत्र नहीं हुए, हमारे भीतर वजतने भी रोि के कीटाणु थे िे सब स्ितंत्र हो िए हैं। और दे श िुिामी की हाित से भी बदतर हाितों में बीस िषों में नीचे उतर िया है। कोई कहेिा कक हम दररद्र हैं, दीन हैं, इसविए सारे दे श में, उदासी, थकािट, बेचैनी, र्बराहट, अनैवतकता, यह सब है।



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िेककन नहीं, इस बात को भी मैं मानने को राजी नहीं हं। सच्चाई कर्र भी उिटी है। सच्चाई यह नहीं है कक हम िरीब हैं इसविए हम चररत्रहीन हैं; हम चररत्रहीन हैं इसविए हम िरीब हैं। चररत्र एक समृवद्ध िाता है; चररत्र एक श्रम िाता है; चररत्र एक संकल्प पैदा करता है; चररत्र कु छ करने की वहम्मत, बि दे ता है। िह बि हमारे भीतर नहीं है, इसविए हम दररद्र हैं, इसविए हम दीन हैं। ये जो ऊपर से कदखाई पड़ने िािे कारण हैं, ये कोई भी कारण नहीं हैं। और जो इन पर अटका रहेिा... और भारत के सारे नेता, सारे िमििुरु और िे सारे हकीम, जो नीम-हकीम ही हैं, उन सारे नीम-हकीमों का इन्हीं चीजों के ऊपर सारा आिार है। और इसविए िे कोई भी र्कि नहीं िा सकते। मैं एक छोटी सी र्टना से अपनी बात शुरू करना चाहता हं कक क्या है दुभािग्य का मूि आिार। स्िामी राम जापान िए हुए थे। िे जापान के सम्राट के महि का बिीचा भी दे खने िए थे। उस बिीचे में उन्होंने एक बड़ी अदभुत बात दे खी। िे बहुत हैरान हुए। वचनार के िृक्ष थे, वजन्हें आकाश में सौ र्ीट, िेढ़ सौ र्ीट ऊपर उठ जाना चावहए था। िे एक-एक बीते के , एक-एक बाविश्त के थे। और उनकी उम्र िेढ़-िेढ़ सौ, दो-दो सौ िषि थी। रामतीथि बहुत हैरान हुए कक दो सौ िषों का वचनार का िृक्ष और एक बाविश्त, एक बीते की ऊंचाई! यह कै से संभि हो सका है? िेककन उनकी समझ में कु छ भी नहीं आ सका। जो मािी उन्हें कदखा रहा था िह हंसने ििा। उसने कहा, मािूम होता है आपको िृक्षों के संबंि में कु छ भी पता नहीं। रामतीथि ने कहा, मैं हैरान हं कक यह िृक्ष िेढ़ सौ िषि का है, इसे तो आकाश छू िेना था! यह अभी एक बाविश्त का कै से है? ककस तरकीब से? उस मािी ने कहा, आप िृक्ष को दे खते हैं, मािी जड़ों को दे खता है। उसने िमिे को उठा कर बताया। उसने कहा कक हम इस िृक्ष की जड़ों को नीचे नहीं बढ़ने दे ते, उन्हें नीचे से काटते चिे जाते हैं। जड़ें नीचे छोटी रह जाती हैं, िृक्ष ऊपर नहीं उठ सकता है। आकाश में उठने के विए पाताि तक जड़ों का जाना जरूरी है। जड़ें वजतनी िहरी जाती हैं, उतना ही िृक्ष ऊपर उठता है। िृक्ष के प्राण ऊपर उठते हुए िृक्ष में नहीं होते, िृक्ष के मूिप्राण होते हैं उन जड़ों में जो कदखाई भी नहीं पड़तीं। हम जड़ों को काटते रहते हैं, नीचे जड़ें छोटी रखते हैं, िृक्ष ऊपर नहीं बढ़ पाता। िृक्ष ऊपर कभी नहीं बढ़ सके िा। िृक्ष के प्राण जड़ों में होते हैं। ककसी जावत के प्राण कहां होते हैं, कभी पूछा? ककसी जावत के प्राण कहां होते हैं? और कोई जावत अिर बौनी रह जाए, कोई जावत अिर रठिनी रह जाए आममा के जित में, चररत्र के जित में, तो उसके प्राण कहां हैं, उसकी जड़ें कहां हैं? यह पूछना जरूरी है कक जड़ें जरूर नीचे से कहीं काट दी िई हैं या काटी जा रही हैं और इसविए व्यविमि ऊपर नहीं प्रकट हो पा रहा है। हम ऊपर से पूरे िृक्ष को भी काट दें तो कु छ नुकसान नहीं होता; अिर जड़ें सावबत हों तो नया िृक्ष कर्र पैदा हो जाएिा। िेककन जड़ें हम नीचे से काट दें , िृक्ष पूरा का पूरा सावबत हो, तो भी मर िया। कदन, दो कदन की बात है, िृक्ष कु म्हिा जाएिा। और शाखाएं ढि जाएंिी और मृमयु पास आने ििेिी। िृक्ष के प्राण होते हैं जड़ों में। जावत के प्राण कहां होते हैं? राष्ट्रों के प्राण कहां होते हैं? कभी सोचा है कक कहां होते हैं प्राण? क्योंकक जहां होते हैं प्राण, िहीं से बीमाररयां उठती हैं और र्ै िती हैं। जड़ें कदखाई नहीं पड़तीं, िृक्ष कदखाई पड़ता है। ककसी जावत, ककसी दे श, ककसी समाज की जड़ें भी कदखाई नहीं पड़तीं। मनुष्य के जीिन में ऐसी कौन सी बात है जो कदखाई नहीं पड़ती और है? शायद आपने कभी उस तरर् खोजबीन न की हो। अिर हम मनुष्य के व्यविमि को खोजें तो दो बात कदखाई पड़ेंिी। आचरण कदखाई पड़ता है, व्यविमि कदखाई पड़ता है; विचार कदखाई नहीं पड़ते हैं, विचार



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अदृश्य हैं। आचरण की जड़ें विचार में होती हैं और अिर विचार की जड़ों को व्यिस्था से काट कदया िया हो तो आचरण अपने आप पंिु हो जाएिा, आिे नहीं बढ़ सके िा। भारत के विचार की जड़ें काटी िई हैं। और वजन्हें हम अच्छे और भिे िोि कहते हैं और वजनके चरण पकड़ कर हम सोचते हैं कक जित का उद्धार और इस जीिन की सुर्िता हो जाएिी, उन्हीं िोिों ने काट दी हैं। विचार के ति पर भारत ने आममर्ात कर विया है। और इसविए आचरण के ति पर िृक्ष सूखता चिा िया है और जीिन के ति पर हम उदास, थके हुए और हारे हुए होते चिे िए हैं। मैं ऐसी तीन जड़ों की बात आज करना चाहता हं जो विचार के ति पर भारत के दुभािग्य का मूि आिार हैं और यह भी कह दे ना चाहता हं कक जब तक उन तीन जड़ों को हम नहीं बदि िेते हैं तब तक भारत कभी भी दुभािग्य से मुि नहीं हो सकता। आज नहीं, हजारों साि तक भी मुि नहीं हो सकता। िाख उपाय कर िें हम ऊपर-ऊपर िृक्ष को सम्हािने के , हमारे सब उपाय थोथी सजािट सावबत होंिे। िृक्ष में प्राण नहीं आ सकें िे, जीिन सजीि नहीं हो सके िा, प्रवतभा जाि नहीं सके िी। शायद मेरी बात अजीब ििेिी, क्योंकक िह जो नहीं कदखाई पड़ता उसके संबंि में बात करनी थोड़ी मुवश्कि होती है। पहिी जड़--भारत के विचार के कें द्रों में जो आज तक भारत का कं सेप्ट ऑर् टाइम है, समय की जो िारणा है, िह िित है। उस समय की िित िारणा के कारण हमारे जीिन का इतना अवहत हुआ है वजसका वहसाब ििाना मुवश्कि है। हमारी समय की िारणा क्या है? हमारा टाइम कं सेप्ट क्या है? भारत के समय की िारण ऐसी है जैसे सुबह सूरज वनकिता है, सांझ िू ब जाता है; कर्र दूसरे कदन सुबह सूरज वनकिता है, कर्र सांझ िू ब जाता है; एक िृत्तीय, एक सकुि िर, एक चक्र में सूरज र्ूमता है। भारत को बहुत पहिे यह अनुभि हुआ कक सूरज एक चक्र में र्ूमता है; कर्र िापस िहीं िौट आता है, कर्र िापस िहीं िौट आता है, एक ररपीटेि सर्कि ि है, एक िृत्ताकार पररभ्मण है। ऋतुएं--िषाि आती है, कर्र दूसरी ऋतु आती है, कर्र तीसरी ऋतु आती है, कर्र िषाि आ जाती है। ऋतुएं भी एक पररभ्मण करती हैं, एक चक्र में र्ूमती हैं। आदमी पैदा होता है, बच्चा, जिान, बूढ़ा, कर्र मौत, कर्र बचपन, कर्र जिानी, कर्र मौत। जीिन भी एक चक्र में र्ूमता है। जीिन के इस चक्रीय अनुभि के आिार पर भारत ने यह सोचा कक समय भी एक चक्र में र्ूमता है, सकुि िर है। जो समय बीत िया िह कर्र आ जाएिा। समय एक िृत्त में र्ूमता है बार-बार। जैसे हम एक चक्के को र्ुमाएं तो जो स्पोक अभी ऊपर है िह थोड़ी दे र बाद नीचे चिा आएिा, कर्र ऊपर आएिा, कर्र नीचे जाएिा, कर्र ऊपर आएिा, कर्र नीचे जाएिा। समय एक चक्र में र्ूमता है, ऐसी भारत ने िारणा बनाई। इस िारणा ने भारत के प्राण िे विए। यह िारणा बुवनयादी रूप से िित है। समय चक्र की तरह नहीं र्ूमता है, समय सकुि िर नहीं है, समय िीवनयर है। समय एक सीिी रे खा में जाता है और िापस कभी नहीं िौटता। जो हो िया, िह कर्र कभी नहीं होिा। समय एक सीिी यात्रा है वजसमें िौटने का कोई भी उपाय नहीं है। समय पररभ्मण नहीं कर रहा है। आप कहेंिे, समय की िारणा से भारत के दुभािग्य का क्या संबंि हो सकता है? िहरे संबंि हैं। सोचेंिे तो कदखाई पड़ेंिे। जो कौम ऐसा सोचती है कक समय एक चक्र में पररभ्मण कर रहा है उस कौम का पुरुषाथि नि हो जाएिा। उस कौम को कु छ करने जैसा है, यह िारणा भी नि हो जाएिी। चीजें अपने आप र्ूम कर अपनी जिह पर आ जाती हैं और र्ूमती रहती हैं, हमें कु छ भी नहीं करना है। नई 201



चीजें होती ही नहीं, पुरानी चीजें बार-बार र्ूमती रहती हैं। कवियुि है, कर्र आएिा सतयुि, कर्र आएिा कवियुि और र्ूमता रहेिा कर्र। चौबीस तीथंकर होंिे, कर्र पहिा तीथंकर होिा, कर्र चौबीस तीथंकर होंिे, कर्र पहिा तीथंकर होिा, कर्र चौबीस तीथंकर होंिे, कल्प र्ूमता रहेिा चके की तरह। जो हो चुका है िह हजारों बार हो चुका है और आिे भी हजारों बार होिा। आपके करने और न करने का सिाि नहीं है, समय के चक्र पर आप र्ूम रहे हैं और र्ूमते रहेंिे। जब एक मुल्क के प्राणों में यह िारणा बैठ िई कक हमारे करने से कु छ होने िािा नहीं है; सूरज वनकिता है, िू ब जाता है; िषाि आती है, वनकि जाती है; िरमी आती है, कर्र िषाि आती है, कर्र िरमी आती है; यह चक्र में र्ूमता रहता है समय, हमारे करने जैसा कु छ भी नहीं है। हम दशिक की भांवत हैं, र्ूमते हुए समय को दे खने िािे िोि। समय की इस पररभ्मण की िारणा ने भारत को दशिक बना कदया, भोिा नहीं, कताि नहीं। और दशिकों की क्या वस्थवत हो सकती है जीिन के मािि पर? जजंदिी कोई तमाशबीनी नहीं है कक कोई तमाशे की तरह हम दे ख रहे हैं कहीं खड़े होकर। जजंदिी जीनी पड़ती है! िेककन जीने की िारणा तभी पैदा होती है जब हमें यह विश्वास हो कक कु छ नया पैदा ककया जा सकता है जो कभी नहीं था। हम नये को वनर्मित कर सकते हैं, हमारे हाथ में है भविष्य। भविष्य पहिे से वनिािररत नहीं है, वनिािररत होना है, और हम वनिािररत करें िे। हमें वनिािररत करना है भविष्य को, आने िािा कि हमारा वनमािण होिा, ककसी अवनिायि व्हीि ऑर् वहस्टरी, इवतहास के चक्र का र्ूम जाना नहीं। िेककन भारत दस हजार िषों से इस बात को माने बैठा है कक इवतहास का चक्र र्ूम रहा है। इसीविए भारत ने इवतहास की ककताबें नहीं विखीं। सारी दुवनया में इवतहास की ककताबें हैं, भारत के पास इवतहास की कोई ककताब नहीं है। क्यों? क्योंकक जो चीज बार-बार र्ूम कर होनी है उसका इवतहास भी क्या विखना! भारत के पास कोई इवतहास नहीं है। पवश्चम ने इवतहास विखा, क्योंकक उनकी दृवि यह है कक जो भी एक र्टना एक बार र्ट िई है, अब कभी ररपीट नहीं होिी। उसे स्मरण रख िेना जरूरी है, उसका इवतहास होना जरूरी है। अब िह कभी भी िापस होने को नहीं। एक-एक ईिेंट वहस्टॉररक है, एक-एक र्टना ऐवतहावसक है, क्योंकक िह अके िी और अनूठी है। इसविए पवश्चम ने इवतहास विखा। उनके इवतहास में एक-एक वमनट और एक-एक र्ड़ी का उन्होंने वहसाब रखा। हमारा कोई इवतहास नहीं है। हम यह भी नहीं बता सकते कक राम कब हुए। हम यह भी वनवश्चत रूप से नहीं कह सकते कक राम हुए भी कक नहीं हुए। हमें रखने की कोई जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकक राम हर कल्प में होते हैं, करोड़ों बार हो चुके हैं, अरबों बार हो चुके हैं, अरबों बार कर्र भी होंिे। यह राम की कथा बहुत बार होती रहेिी। इसको क्या याद रखने की जरूरत है! इसका वहसाब रखने की क्या जरूरत है! इवतहास हम नहीं वनमािण ककए, यह आकवस्मक नहीं है। ऐसा नहीं था कक हमें विखना नहीं आता था। दुवनया में सबसे पहिे विखने की ईजाद हमने कर िी थी। ऐसा भी नहीं है कक हमें सुवनवश्चत िारणा नहीं थी चीजों को विखने की। जो हमने विखना चाहा िह हमने बहुत सुवनवश्चत विखा है। िेककन हमें यह ख्याि ही पैदा नहीं हुआ, कक जो चीज बार-बार दोहरती है उसे स्मरण रखने की जरूरत क्या है? िह तो दोहरती रहेिी। इसविए इवतहास हमने नहीं विखा। और जब हमें यह ख्याि हो िया कक हर चीज पुनरुवि है, तो जीिन से रस चिा िया। जीिन में रस होता है, जब हर चीज नई हो। जब हर चीज पुनरुवि है, तो जीिन मोनोटोनस हो िया, जीिन एक उदास, एक ऊब हो िई, एक बोििम हो िई कक ठीक है, यह होता रहा है, यह होता रहेिा। यह चिता रहेिा, यह 202



चिता रहा है, इसमें कु छ ककया नहीं जा सकता, नये की कोई संभािना नहीं है। हम यह कहते रहे हैं कक आकाश के नीचे सब पुराना है, नया कु छ भी नहीं हो सकता। जब कक सच्चाई उिटी है। आकाश के नीचे सब नया है, पुराना कु छ भी नहीं है। कि जो सूरज उिा था िह सूरज भी आज िही नहीं है जो आज उिा है। कि वजस िंिा के ककनारे आप िए थे िह िंिा आज िही नहीं है, बहुत पानी बह चुका है, नई िंिा िहां बह रही है, वसर्ि आंखों का भ्म है कक ििता है कक िही िंिा है। आप जो कि थे िह आज नहीं हैं। जजंदिी रोज नई है। और अिर जजंदिी रोज नई है तो जजंदिी में रस हो सकता है। जजंदिी अिर िही है--पुरानी, पुरानी--तो जजंदिी में रस नहीं हो सकता। भारत विरस हो िया, नीरस हो िया हमारा प्राण, समय की िारणा में। और अिर जजंदिी नई हो ही नहीं सकती तो हमारे पास करने को क्या बचता है? पुरुषाथि क्या है? हम क्या करें ? हमारे पास करने को कु छ भी नहीं बचता है। एक इनएविटेबि व्हीि है जो र्ूम रहा है; एक अवनिायि चक्र है जो र्ूम रहा है। हमें करने को क्या है? जब हमें करने को कु छ भी नहीं है तो िीरे -िीरे करने की जो सामथ्यि थी, जो कक हम कु छ करते तो जािती और विकवसत होती, िह सो िई और समाप्त हो िई। अिर एक आदमी को यह पता चि जाए कक मुझे चिने की कोई जरूरत नहीं है, तो क्या आप समझते हैं कक दो-चार-पांच साि िह न चिे तो उसकी चिने की क्षमता बचेिी? उसकी चिने की क्षमता खो जाएिी। उसके पैर चिने का काम ही भूि जाएंिे। एक आदमी दो-चार-पांच साि दे खना बंद कर दे तो आंखें शून्य हो जाएंिी, दे खने की क्षमता वििीन हो जाएिी। हम वजस अंि का उपयोि करते हैं िही अंि विकवसत होता है। हमने पुरुषाथि का उपयोि नहीं ककया, इसविए पुरुषाथि विकवसत नहीं हुआ। इसविए दररद्र हैं; इसविए िुिाम थे; इसविए दररद्र रहेंिे और ककसी भी कदन िुिाम हो सकते हैं, क्योंकक वजस मुल्क के भाि में पुरुषाथि की भािना नहीं है कक हम कु छ कर सकते हैं, उस मुल्क का सौभाग्य उदय नहीं हो सकता है। इस समय की इस िारणा ने हमें भाग्यिादी बनाया, र्े टेविस्ट बनाया। इसविए अिर िुिामी आई तो हमने कहा यह भाग्य है। अिर दररद्रता आई तो हमने कहा यह भाग्य है। अिर उम्र हमारी कम हो िई और हमारे बच्चे कम उम्र में मरे तो हमने कहा यह भाग्य है। हमने प्रमयेक चीज की एक व्याख्या खोज िी कक यह भाग्य है, इसमें कु छ ककया नहीं जा सकता। भाग्य का मतिब क्या है? भाग्य का मतिब कक यह ऐसी र्टना है वजसमें हम कु छ भी नहीं कर सकते। भाग्य का और कोई मतिब नहीं है। भाग्य का मतिब है कक हम करने से अपने को छु टकारा चाहते हैं, इसमें हम कु छ कर नहीं सकते हैं। ऐसा हुआ, ऐसा होना था, ऐसा होिा। कर्र हम कहां खड़े रह जाते हैं? इस समय की चक्रीय दृवि ने हमें भाग्यिादी बना कदया और भाग्यिादी कोई भी दे श कभी समृद्ध नहीं हो सकता है। समृवद्ध के विए चावहए श्रम, समृवद्ध के विए चावहए संर्षि। समृवद्ध के विए चावहए नये आकाश, नये मािि, नये वशखर छू ने की कामना, कल्पना, सपने। िे सब हम से वछन िए। जो हो रहा है उसे सह िेना है। कु छ करने को हमारे सामने नहीं रह िया। इसविए जब दे श िुिाम हुआ तो हमने कहा कक होिा भाग्य। वबहार में अकाि पड़ा तो िांिी जैसे अच्छे आदमी ने भी यह कहा कक यह वबहार के िोिों के पापों का र्ि है। िांिी के भीतर से भारत की िही पुरानी मूढ़ता हजारों साि की बोि रही है। िांिी को ख्याि भी नहीं कक हम यह क्या कह रहे हैं! वबहार के िोि अकाि में भूखे मरते हैं तो यह उनके पापों का र्ि है। मतिब हमारी इस संबंि में कु छ करने की सामथ्यि खतम हो िई। िे अपने पापों का र्ि भोि रहे हैं और पापों का र्ि भोिना पड़ेिा। हम इसमें क्या कर सकते हैं! अभी 203



िुजरात में बाढ़ आई और िोि बह िए और मर िए। उनके पापों का र्ि है। हम क्या कर सकते हैं! अपने-अपने पाप का र्ि तो भोिना ही पड़ता है। एक वनराश जचंतन जीिन के बाबत हमारा खड़ा हो िया। हम जीिन को बदि नहीं सकते। हम जीिन को िैसा नहीं बना सकते जैसा हम चाहते हैं। जैसा हम चाहते हैं पृथ्िी हो, िैसी पृथ्िी हम बना नहीं सकते, यह हमारी सामथ्यि के बाहर है। एक बार जब दे श ने यह िारणा भीतर ग्रहण कर िी--दे श की आममा सो िई, प्रवतभा खो िई, सामथ्यि नि हो िई। यह विचार पीछे काम कर रहा है हमारे जीिन को नि करने में। साथ ही इससे कु छ और र्ि हुए। जो कौम यह मानती है कक आिे भी िापस िही पुनरुि होिा जो पीछे हो चुका है, उसकी आंखें पीछे िि जाती हैं, आिे नहीं। उसकी दृवि अतीतोन्मुखी हो जाती है, िह पीछे की तरर् दे खना शुरू कर दे ती है। क्योंकक जो पीछे हुआ है िही आिे भी होने िािा है, तो भविष्य को जानने का एक ही रास्ता है कक हम अतीत को जान िें, क्योंकक िही पुनरुि होिा, िही दोहरे िा। तो पूरे भारत की आंख अतीत पर िि िई, जो अब है ही नहीं, जो जा चुका। और यह िैसा ही है जैसे हम कार के िाइट पीछे की तरर् ििा दें , कार आिे की तरर् चिे और िाइट पीछे की तरर् हो। तो दुर्िटना सुवनवश्चत है, दुर्िटना होने ही िािी है, क्योंकक कार चिेिी आिे की तरर् और प्रकाश उसकी आंखों का पड़ेिा पीछे की तरर्। वजस रास्ते से अब कोई संबंि नहीं है उस पर प्रकाश पड़ेिा और वजस रास्ते से आिे संबंि है िह अंिकारपूणि होिा। भारत की आंखें, भारत के राष्ट्र की आंखें सामने की तरर् नहीं हैं, पीछे की तरर् हैं। हम विचार करते हैं राम का, हम विचार करते हैं महािीर, बुद्ध का। हम कभी विचार नहीं करते आने िािे भविष्य का, आने िािे बच्चों का। न राम इतने महमिपूणि हैं, न बुद्ध, न महािीर, वजतना आने िािा कि पैदा होने िािा बच्चा है। एक-एक र्र में पैदा होने िािा सािारण सा बच्चा भी पुराने सारे अतीत से ज्यादा महमिपूणि है, क्योंकक िह होने िािा है; और अतीत हो चुका, जा चुका, समाप्त हो चुका है। इसविए बच्चे हमारे रोज नि होते चिे िए हैं, उन पर कोई ध्यान नहीं है। ध्यान बूढ़ों पर है, ध्यान मुदों पर है। जो जा चुके, व्यतीत हो चुके, उन पर हमारा ध्यान है; बच्चों पर हमारा कोई ध्यान नहीं है। समय की ऐसी िारणा--पररभ्मण करने िािी--सकुि िर कं सेप्ट अतीतिादी बना दे ता है मनुष्य को। भविष्य! भविष्य जैसी कोई चीज नहीं रह जाती। और जो कौम पीछे की तरर् दे खने ििती है, उस कौम की आममा बूढ़ी हो जाती है, यह समझ िेना जरूरी है। यह इसविए समझ िेना जरूरी है... आपने ख्याि शायद न ककया हो, बच्चे हमेशा भविष्य की तरर् दे खते हैं। बच्चों का कोई अतीत नहीं होता, दे खेंिे भी क्या? पीछे की तरर् दे खने को कोई स्मृवत नहीं होती, कोई मेमोरी नहीं होती। बच्चे हमेशा भविष्य की तरर् दे खते हैं। बूढ़े! बूढ़े हमेशा अतीत की तरर् दे खते हैं। भविष्य उनका कु छ होता नहीं। भविष्य में वसर्ि मौत होती है एक दीिाि की तरह। उसके आिे दे खने को कु छ होता नहीं। भविष्य यानी शून्य। भरािट होती है अतीत की। तो बूढ़ा हमेशा बैठ कर स्मृवत करता है--ऐसा था बचपन, ऐसी थी जिानी, ऐसे थे कदन, इस भाि र्ी वबकता था, इस भाि िेहं वबकता था। िह यही सारी बातें सोचता रहता है। भविष्य कहीं नहीं है उसके पास। उसके पास है अतीत। िृद्ध मन का िक्षण है अतीत का जचंतन। बूढ़ा अतीत का जचंतन करने ििता है। बच्चा, बाि मन का िक्षण है भविष्य; और युिा मन का िक्षण है ितिमान। युिक जीता है ितिमान में--अभी और यहां। न उसे भविष्य की कर्कर है, न उसे अतीत की। न िह बच्चा है, न िह बूढ़ा है। अभी जो आनंद वमि जाए, िह उसे जी िेना चाहता है। इस क्षण 204



में जो वमि जाए, िह उसे भोि िेना चाहता है। जब बच्चा था तो भविष्य था, जब बूढ़ा हो जाएिा तो अतीत होिा, युिा है तब ितिमान है। कौमें भी तीन तरह की होती हैं। बचपन में जो कौमें होती हैं, जैसे रूस। रूस के पास कोई अतीत नहीं है। उन्होंने अतीत को छोड़ कदया, इनकार कर कदया, िह िया। उन्नीस सौ सत्रह के बाद उनका अब कोई अतीत नहीं है। िे उसकी बात भी नहीं उठाते। भविष्य है। और भविष्य का जचंतन और विचार करना है और उसे वनर्मित करना है। अमेररका, उसे जिान कौम कहा जा सकता है। उसके पास न कोई अतीत है, न कोई भविष्य है, अभी इसी क्षण जी िेना है। अभी इसी क् षण जी िेना है, जो है उसे भोि िेना है। भारत को बूढ़ी कौम कहा जा सकता है। मैं िक्षण बता रहा हं। उसके पास न कोई भविष्य है, न कोई ितिमान है, अतीत है। राम की कथा है, बुद्ध की कथा है, महािीर के स्मरण हैं। िह जो बीत िया है सुखद, स्िणि, उस सबकी हजारों स्मृवतयां हैं। उन्हीं स्मृवतयों में जीना है। मैं आपसे कहना चाहता हं, अतीत का इतना जचंतन रुग्ण है, िाििक्य का िक्षण है। और यह अतीत का जचंतन समय की िारणा से पैदा हुआ है। विकासमान जावत के विए भविष्य का जचंतन जरूरी है। विकासमान राष्ट्र के विए भविष्य महमिपूणि है। और भविष्य के बाबत विचार--क्या होिा? क्या हो सकता है? क्योंकक अतीत के संबंि में हम कु छ भी नहीं कर सकते। िह जो हो िया, हो िया। अब उसे अनिन नहीं ककया जा सकता, अब उसमें कु छ भी हेर-र्े र करने का उपाय नहीं है, अब उसमें एक रत्ती भर र्कि करने की कोई संभािना नहीं है। तो अिर हम अतीत को ही सदा दे खते रहें तो िीरे -िीरे हमारे वचत्त में यह िारणा पैदा हो जाएिी कक कु छ भी नहीं ककया जा सकता, क्योंकक अतीत में कु छ भी नहीं ककया जा सकता। और वजस चीज पर हम ध्यान दे ते हैं, हमारी चेतना उसी के साथ तल्िीन हो जाती है और एक हो जाती है। हम जो ध्यान करते हैं, वजसका मेविटेशन करते हैं, उसी जैसे हो जाते हैं। अतीत को दे खने िािे िोि िीरे -िीरे इस वनष्कषि पर पहुंच जाएं तो आश्चयि नहीं कक कु छ भी नहीं ककया जा सकता, क्योंकक अतीत में कु छ भी नहीं ककया जा सकता है। भविष्य की तरर् दे खने िािे िोि इस नतीजे पर पहुंच जाएं कक सब कु छ ककया जा सकता है तो आश्चयि नहीं है, क्योंकक भविष्य का मतिब ही यह है कक जो अभी नहीं हुआ है और हो सकता है। हो सकने का मतिब यह है कक पॉवसवबविटी हैं हजार, हजार संभािनाएं हैं, उनमें से कोई भी संभािना चुनी जा सकती है। भविष्य की तरर् दे खने िािी जावत जिान हो जाएिी, युिा हो जाएिी, ताजी हो जाएिी, जीने की सामथ्यि खोज िेिी। अतीत की तरर् दे खने िािी कौम जड़ हो जाएिी, बूढ़ी हो जाएिी, उसके स्नायु सूख जाएंिे। समय की इस िारणा ने हमारे दुभािग्य का बहुत बड़ा काम पूरा ककया है। समय का यह विचार बदिना होिा, ताकक हम दे श की प्रवतभा को भविष्योन्मुखी बना सकें , ताकक हम दे श की प्रवतभा को यह भाि और दृढ़ आिार दे सकें , कक तुम कु छ कर सकते हो! तुम्हारे हाथ में है कु छ! और दूसरी बात--दूसरा कें द्र, दूसरी जड़। दूसरी जड़ एक अदभुत रूप से हमें हैरान ककए रही है और हमारे प्राणों में बहुत िहरा उसका विस्तार है। और िह जड़ है इस बात की कक हमने कमिर्ि के वसद्धांत की एक ऐसी िारणा स्िीकार की है कक कमि तो करें िे आप अभी और र्ि वमिेिा अििे जन्म में। इतना वििंवबत र्ि, इतना वििेि ररजल्ट--अजीब बात है! अभी मैं आि में हाथ िािूंिा तो अििे जन्म में जिूंिा! अभी चोरी करूंिा और अििे जन्म में र्ि वमिेिा!



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कॉज और इर्े क्ट हमेशा जुड़े हुए होते हैं, उनके बीच में र्ासिा नहीं होता। कायि और कारण संबंवित होते हैं, उनके बीच में रत्ती भर का र्ासिा नहीं होता। बीज और िृक्ष में र्ासिा होता है? अिर बीज और िृक्ष में रत्ती भर का र्ासिा पड़ जाए तो उस बीज से िृक्ष पैदा ही नहीं हो सके िा। उतना सा र्ासिा, कर्र बीज से संबंि ही टू ट िया। बीज और िृक्ष एक ही सातमय के वहस्से हैं, एक ही कं टीन्युटी के । मैं जो करता हं और उसका र्ि उससे ही जुड़ा हुआ है, संयुि है, तमक्षण संबंवित है। यह बड़ी झूठी बात है कक अभी मैं करूंिा काम और र्ि वमिेिा अििे जन्म में। िेककन यह िारणा हमने विकवसत क्यों की? और इस िारणा की िजह से हमने ककतना दुख भोिा है, उसका वहसाब ििाना मुवश्कि है। यह िारणा इसविए विकवसत करनी पड़ी कक समाज में यह कदखाई पड़ता था कक एक आदमी अच्छा है और दुख भोि रहा है और एक आदमी बुरा है, बेईमान है, और सुख भोि रहा है। और हमारे सािु-संतों और महाममाओं को बड़ी मुवश्कि हुई इस बात को समझाने में कक इसका मतिब क्या है। इसके दो ही मतिब हो सकते थे। एक मतिब तो यह हो सकता था कक बुरे काम का बुरे र्ि से कोई संबंि नहीं है, अच्छे काम का अच्छे र्ि से कोई संबंि नहीं है। एक आदमी चोरी करता है, बेईमानी करता है--और इज्जत, प्रवतष्ठा और समृवद्ध में जीता है। और एक आदमी ईमानदारी से रहने की कोवशश करता है, सच बोिता है--दुख पाता है, कि पाता है। इसका एक मतिब तो यह हो सकता था कक इससे कोई संबंि नहीं है। आप क्या करते हैं, आपको क्या वमिेिा, यह संबंवित नहीं है, एक्सीिेंटि है, सांयोविक है। अिर यह बात कोई मुल्क मान िे तो उस मुल्क में नीवत और िमि वििीन हो जाएंिे। तो संत-महाममाओं की इतनी वहम्मत न थी कक इस बात को मानते। इसको बात को मानने का मतिब तो यह था कक कर्र नैवतक आचरण के विए कोई आिार न रहा। दूसरा विकल्प यह था कक आदमी जैसा करता है िैसा ही र्ि पाता है। िेककन आंखें तो यह बताती हैं कक बेईमान सुख पा रहे हैं, ईमानदार दुख पा रहे हैं। तो अब क्या! इसमें क्या हि वनकािा जाए? तो हि यह वनकािा िया कक िह बेईमान जो अभी सुख पा रहा है, वपछिे जन्म की ईमानदारी का र्ि पा रहा है; और िह जो ईमानदार दुख पा रहा है िह वपछिे जन्म की बेईमानी का दुख पा रहा है। र्ि तो हमेशा िैसा ही वमिेिा जैसा कमि है, िेककन वपछिे जन्मों के कमि सब इकट्ठे होकर र्ि िाते हैं। इस जन्म से हमने संबंि तोड़ कर वपछिे जन्म से जोड़ा, ताकक व्याख्या में तकिीर् न हो। िेककन यह व्याख्या हमें और भी बड़े िड्ढे में िे िई। मेरी अपनी समझ यह है कक इस िारणा ने--कक वपछिे जन्मों के वििंवबत र्ि हमें वमिते हैं--दो कारण हमारे सामने खड़े कर कदए, दो वस्थवतयां बना दीं। एक तो यह कक बुरा काम करने के प्रवत जो तीव्र विचार होना चावहए था िह वशवथि हो िया, क्योंकक अििे जन्म में र्ि वमिने िािा है। पहिे तो यही पक्का नहीं कक अििा जन्म होिा कक नहीं होिा। इसका कोई प्रमाणीभूत उपाय नहीं। कोई मुदे िौट कर कहते नहीं कक अििा जन्म हुआ। अििे जन्म की बात ने तथ्य को इतना कमजोर कर कदया कक आज जो मेरी जरूरत है उसको आज पूरा करूं या अििे जन्म में होने िािे र्िों का विचार करूं! आज की जरूरत इतनी इं टेंस और अरजेंट है, आज की जरूरत इतनी जरूरी है कक अििे जन्म के विचार के विए उसे स्थवित नहीं ककया जा सकता। तो कर्र जो ठीक ििे अभी करूं, अििे जन्म का अििे जन्म में दे खा जाएिा। ऐसा एक पोस्टपोनमेंट हमारे माइं ि में पैदा हुआ, एक स्थिन पैदा हो िया कक ठीक है, अभी जो करना है िह करो, अििे जन्म में दे खा जाएिा। 206



इतने दूर की बात से मनुष्य प्रभावित नहीं हो सकता। इतने दूर के र्ि मनुष्य के जीिन और चररत्र को िवतमान नहीं कर सकते। इतनी आकाश की और हिा की बातें मनुष्य के प्राणों के जीिंत तथ्य नहीं बन सकतीं। इसविए भारत का सारा चररत्र हीन हो िया। क्योंकक यह कदखाई पड़ा कक अभी तो बुरा करने से अच्छा र्ि मािूम होता है, अििे जन्म का अििे जन्म में दे खा जाएिा। कर्र कौन कहता है कक अििा जन्म है? कर्र कौन कहता है कक इस जन्म में जब बुरा आदमी अच्छे र्ि भोि सकता है तो अििे जन्म में भी िह कोई तरकीब नहीं वनकाि िेिा, कौन कह सकता है? जब इस जन्म में तरकीब वनकािने िािे तरकीब वनकाि िेते हैं तो अििे जन्म में भी वनकाि ही िेंिे। कौन कह सकता है? कर्र कौन जानता है कक आदमी समाप्त नहीं हो जाता शरीर के साथ! इन सारी बातों ने वस्थवत को वबल्कु ि िांिािोि कर कदया और भारत के व्यविमि को एकदम वशवथि कर कदया। उसके पास कोई जीिंत वनयम न रहे वजनके आिार पर िह चररत्र को और आचरण को और जीिन को ऊंचा उठाने की चेिा करे । दूसरा पररणाम यह हुआ, दूसरी िारणा यह विकवसत हुई कक अिर मैं पाप भी करूं तो कु छ पुण्य करके उन पापों को रद्द ककया जा सकता है। स्िाभाविक! अिर एक-एक कमि का र्ि, इं विविजुअि कमि का र्ि वमिता होता, तो एक कमि के र्ि को दूसरा कमि का र्ि रद्द नहीं कर सकता था। िेककन हमको र्ि वमिना था होिसेि में, इकट्ठा। एक जन्म भर के कमों का र्ि अििे जन्म में वमिना था। तो हम अपने पाप और पुण्यों का िेखा-जोखा रख सकते हैं, पाप भी कर सकते हैं और पुण्य करके उनको रद्द भी कर सकते हैं। अंवतम वहसाब में जोड़-बाकी में अिर पुण्य बच जाए तो मामिा खमम हो जाता है। तो पररणाम यह हुआ कक पाप भी करते रहो एक तरर्, दूसरी तरर् पुण्य भी करते रहो। एक तरर् िाखों रुपया चूसो, शोषण करो, दूसरी तरर् दान करो, मंकदर बनाओ, तीथि जाओ। इिर से पाप करो, उिर से पुण्य भी करते रहो, तो िाभ और हावन बराबर होती रहें और आवखर में जोड़ पुण्य का हो जाए। तो जजंदिी भर पाप करो और बुढ़ापे में थोड़ा पुण्य करो और वहसाब ठीक कर िो अपना। इस तरह एक कजनंिनेस, एक कजनंि मैथमेरटक्स, एक चािाक िवणत हमने आध्यावममक जीिन के संबंि में पैदा कर विया। तो एक आदमी शोषण करे , इसको हमने बुरा न समझा; दान करे , इसकी हमने प्रशंसा की। और हमने कभी यह न पूछा कक दान करने योग्य पैसा इकट्ठा कै से होता है? दान करने योग्य पैसा इकट्ठा कै से हो सकता है? नहीं िेककन, उसका हमने विचार नहीं ककया। दान पुण्य है, तो शोषण के पाप को दान के पुण्य से काटा जा सकता है। दान की हमने खूब प्रशंसा की--मंकदर बनाने की, तीथि बनाने की, सािु-संन्यावसयों को भोजन कराने की, िाह्मणों को भोजन कराने की, िाय-दान कर दे ने की--हजार तरह की हमने तरकीबें ईजाद कीं, वजनसे हम पाप करते रहें और उनको काटने के उपाय भी कर िें। चररत्र नीचे विरना वनवश्चत था। क्योंकक जो मुल्क ऐसा सोचता है कक एक पाप को पुण्य करके काटा जा सकता है, िह मुल्क कभी भी पाप से मुि नहीं हो सकता। क्योंकक जब तक हमें यह ख्याि न हो कक पाप अल्टीमेट है, जब तक हमें यह ख्याि न हो कक एक पाप को ककसी पुण्य से कभी नहीं काटा जा सकता, एक कमि को दूसरे कमि से नहीं काटा जा सकता है, तब तक, तब तक उस पाप के प्रवत हम बचने के उपाय खोजने की कोवशश करें िे। इस िारणा ने हमारा जीिन िे विया। मैं इसके संबंि में दो बातें कहना चाहता हं। एक तो बात यहाः कमि वििंवबत र्ि नहीं िाता, कमि इसी क्षण र्ि िाता है। एक आदमी अभी क्रोि करता है तो अभी क्रोि के नकि से िुजर जाता है। एक आदमी अभी चोरी करता है तो चोरी के भय, अपराि, पीड़ा, िर, उन सबकी पीड़ाओं से अभी िुजर जाता है। एक आदमी 207



अभी ककसी की हमया करता है तो हमया करने के पहिे और हमया करने के बाद िह वजस मानवसक उमपीड़न से, मानवसक भय से, मानवसक उत्ताप से िुजरता है, िह आदमी जो मर िया उसकी पीड़ा से बहुत ज्यादा है। एक आदमी को मैं मार िािूं, उस आदमी को मरने में वजतनी पीड़ा होिी, उससे ज्यादा पीड़ा से, मारने के पहिे और मारने के बाद मुझे िुजरना पड़ेिा। अििे जन्म की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेिी कक अििे जन्म में कर्र मुझे कोई मारे । नहीं, कृ मय तो अपने साथ ही र्ि को विए हुए है। इिर मैंने कृ मय शुरू ककया और उिर र्ि मेरे ऊपर टू टना शुरू हो िया। एक अच्छा काम आप करें , एक प्रेम का कृ मय, और उसके साथ ही उसकी सुिास, आनंद और सुिंि है। प्रेम के एक कृ मय के साथ ही, उसके पीछे ही एक हिा है--शांवत की, एक आनंद की, एक िन्यता की। पाप के साथ ही एक पश्चात्ताप है, एक पीड़ा है। इस पुरानी िारणा की जिह नई िारणा चावहए भारत के मन को कक प्रमयेक कमि का र्ि तमक्षण है, आिे-पीछे नहीं। इतना भी र्ासिा नहीं है कक मैं कु छ कर सकूं । मैंने ककया, और करने के साथ ही र्ि भी उपिब्ि होना शुरू हो जाता है। मैं एक छत पर से कू द पिू ं, मैं छत पर से कू दा, और कू दने के साथ ही विरना भी शुरू हो िया। कू दना और विरना दो बातें नहीं हैं। कू दना उसी चीज का प्रारं भ है वजसको हम विरना कहते हैं। मैंने क्रोि ककया, और क्रोि के साथ ही जिना शुरू हो िया। हमें, कमि ही र्ि है, इस उदर्ोषणा को मुल्क के प्राणों पर ठोंक दे ना होिा कक कमि ही उसका र्ि है। इसविए आिे सोच-विचार का सिाि नहीं है, सोचना है तो इसी क्षण--कक यह मुझे करना है या नहीं! दूसरी बात, यह जो हमें कदखाई पड़ता है कक एक बेईमान आदमी सर्ि हो जाता है, एक ईमानदार आदमी असर्ि हो जाता है। हमने कभी बहुत विचार नहीं ककया इस बात का, क्योंकक हमारी िारणा थी, उससे हमने वनपटारा कर विया; एक्सप्िेनेशन वमि िया, इसविए विचार नहीं ककया। जब एक बेईमान आदमी सर्ि होता है तब कभी आपने ख्याि ककया कक बेईमान आदमी में और िुण भी होते हैं। और जब ईमानदार आदमी असर्ि होता है तो आपने कभी ख्याि ककया कक ईमानदार आदमी में और अयोग्यताएं भी हो सकती हैं। एक बेईमान आदमी करे वजयस हो सकता है, साहसी हो सकता है। और एक ईमानदार आदमी कमजोर हो सकता है, वहम्मतहीन हो सकता है, कायर हो सकता है। और अिर बेईमान आदमी सर्ि होता है, तो मैं आपसे कहता हं, सर्ि िह अपने साहस की िजह से होता है, बेईमानी की िजह से नहीं। और अिर ईमानदार आदमी असर्ि होता है, तो ईमानदारी की िजह से असर्ि नहीं होता, असर्ि होता है साहस की कमी की िजह से। एक आदमी की सर्िता में मल्टी कॉजविटी होती है, बहुत कारण होते हैं। हािांकक ईमानदार आदमी असर्ि होता है तो उसको भी मजा इसी में आता है बताने में कक मैं ईमानदारी की िजह से असर्ि हो िया। ईमानदारी की िजह से दुवनया में कोई कभी असर्ि नहीं हुआ है और न हो सकता है। और बेईमानी की िजह से न कोई दुवनया में कभी सर्ि हुआ है, न हो सकता है। िेककन मल्टी कॉजविटी है। बेईमान आदमी के पास और िुण भी हैं। िह साहसी हो सकता है, िह बुवद्धमान हो सकता है। िह आदमी संिठन की क्षमता में कु शि हो सकता है। िह आदमी भविष्य को दे खने की अंतदृिवि िािा हो सकता है। और इन सारी चीजों से िह सर्ि हो जाएिा। और एक वजसको हम ईमानदार आदमी कह सकते हैं, िह वसर्ि ईमानदार है, और उसके पास कु छ भी नहीं है। न उसके पास साहस है, न अंतदृिवि है, न जीिन को समझने की कोई कु शिता है और समझ है, न पहि िेने की वहम्मत है कक इनीवशएट कर सके ककसी बात को। िह असर्ि हो जाएिा। और िह ईमानदार आदमी अपने मन में यह सोच कर बहुत संतोष, सांमिना और कं सोिेशन पाएिा कक मैं इसविए असर्ि हो िया कक मैं ईमानदार हं। इसविए आप असर्ि नहीं हो िए हैं, आपकी असर्िता के दूसरे कारण हैं। और यही 208



ईमानदार आदमी उस सर्ि आदमी की जनंदा करना चाहेिा--ईष्याििश, जेिेसी है पीछे, कक िह सर्ि हो िया है--तो उसकी जनंदा का एक ही उपाय है कक यह बेईमानी की िजह से सर्ि हो िया है। मैं आपसे कहना चाहता हं, जीिन के िवणत में दुिुिण कभी भी कोई समृवद्ध, कोई सर्िता न िाते हैं, न िा सकते हैं। जीिन का िवणत बड़ा है। एक आदमी चोरी करने जाता है। आप वसर्ि इतना ही दे खते हैं कक िह चोर है। िेककन चोर की वहम्मत है आपके पास? अपने र्र में भी िर कर चिते हैं, चोर दूसरे के र्र में भी वनिर चिता है। अपने र्र के अंिेरे में भी प्राण वछपाते हैं, चोर दूसरे के र्र के अंिेरे में ऐसा र्ूमता है जैसे कदन की रोशनी हो और अपना र्र हो। यह क्वाविटी चोरी से वबल्कु ि अिि बात है। यह िुण एक वबल्कु ि अिि बात है। जापान में एक चोर था। उसकी बड़ी प्रवसवद्ध थी। उसको िोि मास्टर थीर् कहते थे। कहते थे िैसा चोर नहीं हुआ कभी। किािुरु था िह चोरों का। और यहां तक उसकी प्रवसवद्ध हो िई थी कक वजस र्र में िह चोरी कर िेता था उस र्र के िोि िौरि से िोिों से कहते थे कक हमारे यहां मास्टर थीर् ने चोरी की है! हम कोई सािारण समृद्ध िोि नहीं हैं, उस किािुरु की नजर भी हमारे र्र की तरर् िई है! िोि इसकी प्रशंसा करते थे। िोि प्रतीक्षा करते थे कक िह किािुरु कभी उनके र्र की तरर् भी नजर कर िे, क्योंकक वजसके र्र की तरर् िह दे खता िह आदमी खानदानी रईस हो जाता। िह बूढ़ा हो िया चोर। उसके िड़के ने उससे कहा कक आप तो बूढ़े हो िए, अब मेरा क्या होिा? मुझे कु छ वसखा दें ! उस बूढ़े ने कहा कक यह बड़ा करठन मामिा है। चोरी वजतनी सरि कदखाई पड़ती है उतनी सरि चीज नहीं है। बहुत कांप्िेक्स साइं स है, उस बूढ़े ने कहा, बड़ा जरटि विज्ञान है। इसमें बड़े िुण चावहए। एक सैवनक से कम वहम्मत की जरूरत नहीं, एक संत से कम शांवत की जरूरत नहीं, एक ज्ञानी से कम अंतदृिवि की जरूरत नहीं, तब आदमी चोर बन सकता है। उसके िड़के ने कहा, क्या आप कहते हैं! संत, योद्धा, ज्ञानी, इनके िुण चावहए? उस बूढ़े ने कहा कक इनके िुण चावहए, तब! चोरी सर्िता नहीं िाती, ये िुण सर्िता िाते हैं। चोरी क्या सर्िता िा सकती है? चोरी तो अपने आप में असर्ि होने को आबद्ध है। इतने बि जोड़ दो तो सर्ि हो सकती है। कर्र भी उस िड़के ने कहा कक कु छ मुझे वसखाएं! तो उसने कहा, आज चि तू रात मेरे साथ। जिान िड़का, अंिेरी रात में जाकर निर के सम्राट के महि में पहुंच िए। िह बूढ़ा है, उसकी उम्र कोई सत्तर साि पार कर चुकी है, िह जाकर दीिाि की ईंटें र्ोड़ने ििा, और िड़का खड़ा कं प रहा है। उस बूढ़े ने कहा, कं पन बंद कर! क्योंकक यहां कोई साहकारी करने नहीं आए हैं कक कं पते हुए भी हो जाए। यहां चोरी करने आए हैं। हाथ कं पा कक िए। बुड्ढे आदमी का, सत्तर िषि का बूढ़ा हाथ है, और िह ईंटें ऐसे तोड़ रहा है जैसे कोई कारीिर मौज से अपने र्र काम कर रहा हो। और िह िड़का कं प रहा है कक यह दूसरे का र्र है, कहीं आिाज न हो जाए, कहीं कु छ न हो जाए। और िह बूढ़ा ऐसी शांवत से खोद रहा है ईंटें, जैसे अपना र्र हो। उस िड़के ने कहा, बाबा, आपके हाथ नहीं कं पते? उस बूढ़े ने कहा, चोर तभी हुआ जा सकता है जब हम सबकी संपवत्त अपनी मानते हों। चोर होना बहुत मुवश्कि है। चोर होना आसान नहीं है। उसने ईंटें तोड़ िी हैं, िह भीतर चिा िया। िड़का भी कं पता हुआ उसके साथ पीछे िया है, िेककन उसकी छाती इतने जोर से िड़क रही है कक उसे समझ में ही नहीं आ रहा है कक ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ था, यह क्या हो रहा है? उस बूढ़े ने 209



कहा, दे खो, इतने र्बराओिे तो िवत बहुत मुवश्कि है। बहुत शांत, बहुत ध्यानपूििक ही चोरी की जा सकती है, बहुत मेविटेरटििी। क्योंकक दूसरे का र्र है; िोि सोए हुए हैं। तेरा तो हृदय इतने जोर से िड़क रहा है कक उसकी िड़कन से िोि जि जाएं। ऐसे काम नहीं चिेिा। ऐसा िड़कते हुए तो चीज विर जाएिी, िक्का िि जाएिा, सब िड़बड़ हो जाएिा। इस अंिेरे में इतनी कु शिता से जाना है कक जरा सी आिाज न हो। िेककन िड़के के तो पैर कं प रहे हैं और उसको चारों तरर् िोि कदखाई पड़ रहे हैं कक िह खड़ा है दीिाि के पास कोई! अब कोई जािा! ककसी को खांसी आ िई है, कोई रात में बराि रहा है, आिाज कर रहा है, और िह र्बरा रहा है। बूढ़ा उसको िेककन भीतर िे िया। िह तािे खोिता हुआ चिा िया। िह आवखरी अंदर के कक्ष में पहुंच िया। उसने िड़के को कहा, तू भीतर जा और जो भी चीजें तुझे पसंद हों िे िेकर बाहर आ जा। मैं बाहर खड़ा हं। िह दरिाजे पर खड़ा है; िड़का भीतर िया। उसे तो कु छ कदखाई भी नहीं पड़ता, पसंद करने की तो बात बहुत दूर, उसे कु छ समझ में नहीं आ रहा है कक क्या िहां है और क्या नहीं है। और तभी उसने दे खा कक उसके बाप ने दरिाजा बंद कर कदया है, और जोर से दरिाजा पीटा है और वचल्िाया है कक चोर है! और बाप भाि िया। िह िड़का कमरे के भीतर है। सारे र्र के िोि जाि िए हैं और िे दीया विए, िािटेन विए खोज कर रहे हैं। उस िड़के के तो प्राण सूख िए वबल्कु ि। उसने कहा, यह तो बाप ने मरिा िािा। यह कै सी चोरी वसखाई! यह क्या ककया पाििपन! अचानक जैसे ही इतने खतरे की, इतने िेंजर की वस्थवत पैदा हो िई िैसे ही विचार खमम हो िए। इतने खतरे में विचार नहीं चि सकते। विचार चिने के विए सुवििा चावहए, कं र्टि चावहए। इतना खतरा है कक जान जाने को है, तो उसके विचार शून्य हो िए। अभी कोई आपकी छाती पर छु रा िेकर खड़ा हो जाए तो कर्र मन चंचि नहीं रहेिा उस िि। मन के चंचि होने के विए आराम से तककया चावहए, वबस्तर चावहए, तब मन चंचि होता है। खतरे की नोक, जान जजंदिी खतरे में पड़ जाए तो कहां की चंचिता! मन एकदम वथर हो जाएिा। उसका मन वथर हो िया है और एकदम उसे कु छ अंतदृिवि हुई। उसने दरिाजे को नाखून से खुरचा, जैसे कक कोई वबल्िी या कोई चूहा आिाज कर रहा हो। और उसे कु छ समझ में न आया कक यह मैं क्यों कर रहा हं। जैसे कोई अंतदृिवि, जैसे कोई भीतर से कोई इं ट्यूशन। एक नौकरानी बाहर से िुजरती थी; उसने दरिाजा खोिा कक भीतर शायद कोई वबल्िी है या क्या है! चोर को िे खोज भी रहे थे। उसने ऐसा हाथ बढ़ा कर, जो दीया हाथ में विया था, भीतर ऐसा झांक कर दे खा। अचानक--ऐसा उसने सोचा नहीं था कक नौकरानी हाथ भीतर बढ़ाएिी और दीया जिा हुआ आिे होिा; इसका उसे क्या पता हो सकता था, यह विचार नहीं था, कोई योजना न थी, कोई प्िाजनंि नहीं थी--िेककन दीया दे ख कर अचानक उसके मुंह से र्ूं क वनकि िई। दीया बुझ िया और उसने िक्का कदया अंिेरे में और भािा। दस-पच्चीस िोि उसके पीछे भािे। आज उसे जजंदिी में पहिी दर्ा पता चिा कक इतनी तेजी से भी भािा जा सकता है। िह वजतनी तेजी से भाि रहा था, तीर की तरह जा रहा था। उसे आज पहिी दर्ा पता चिा कक मेरा शरीर और इतना िवतिान! जैसे तीर चि रहा हो। जब जान पर बाजी हो तो सारी शवियां जि जाती हैं। एक कु एं के पास से िुजरता था, दस-बीस कदम पीछे िोि रह िए हैं और ऐसा ििता है कक िे अब पकड़ते हैं, अब पकड़ते हैं, तभी उसे कु एं के र्ाट पर एक पमथर कदखाई पड़ा। उसने उठाया और कु एं में पटक कदया। दौड़ कर जो पीछे िोि आ रहे थे िे कु एं को र्ेर कर खड़े हो िए। उन्होंने समझा कक िह चोर कु एं में कू द पड़ा है। िह एक िृक्ष के नीचे चोर खड़ा रहा 210



और दे खता रहा। उन्होंने कहा, अब तो िह अपने हाथ से मर िया। कु आं बहुत िहरा है, अब सुबह दे खेंिे। जजंदा रहा तो ठीक, मर िया तो ठीक। िे िापस जाकर अपने महि में सो िए होंिे। िह िड़का अपने र्र पहुंचा, दे खा वपता कं बि ओढ़ कर सोया हुआ है। उसने क्रोि से कं बि खींचा और कहा कक यह क्या मामिा है? मेरी जान िे िी! उस बूढ़े ने कहा, अब रात िड़बड़ मत करो, तुम आ िए, अब सुबह बातचीत करें िे। बस आ िए, ठीक है, अब सुबह बातचीत करें िे। उसने कहा कक सुबह नहीं, मैं तो ऐसे अनुभि से िुजर िया! क्या ककया आपने? उसने कहा, छोड़ो उस बात को, तुम आ िए, बात खमम हो िई। कि से तुम खुद भी चोरी करने जा सकते हो। चोर सर्ि होता है चोरी की िजह से नहीं। चोर सर्ि होता है दूसरे िुणों की िजह से। और जब अचोर आदमी में उतने िुण होते हैं तो उसकी सर्िता का क्या कहना! िह महािीर बन जाता है, बुद्ध बन जाता है। बेईमान सर्ि होता है बेईमानी की िजह से नहीं, और दूसरे िुणों की िजह से। और जब कभी ईमानदार आदमी उन िुणों को पैदा कर िेता है तो उसकी सर्िता का क्या कहना! िह सुकरात बन जाता है, िह जीसस बन जाता है। आप हैरान हो जाएंिे, दुवनया के बुरे से बुरे आदवमयों की सर्िता के पीछे िे ही िुण हैं जो दुवनया के अच्छे से अच्छे आदमी की सर्िता के पीछे हैं। िुण िही हैं सर्िता के । असर्िता के िुण भी िही हैं। िेककन हमने एक झूठी व्याख्या पकड़ िी थी और उसके वहसाब से हमने समझा था कक हमने सब मामिा हि कर विया। उसके नुकसान भारी पड़े हैं। िह सारी िारणा बदि दे ने की जरूरत है, ताकक नीचे से जड़ बदि जाए और आदमी के व्यविमि को हम नई बुवनयाद दे सकें । इस संबंि में एक बात और, और कर्र मैं तीसरा सूत्र कह कर अपनी बात पूरी करूं। एक बात ध्यान रखनी जरूरी है कक हमारी पुरानी कमि की िारणा जब यह कहती थी कक अभी मैं कमि करूंिा और आिे कभी भविष्य में, कभी जन्मों के बाद र्ि वमिेिा, तो िह िारणा हमें िुिाम बना दे ती थी, क्योंकक कमि तो अभी कर कदया िया और र्ि भोिने के विए मैं बंि िया। र्ि भोिने के विए मैं बंि िया। न मािूम कब तक बंिा रहंिा उस र्ि से। अनंत जन्म हो चुके हैं। अनंत कमि आदमी ने ककए हैं। उन सबसे आदमी बंिा हुआ है, क्योंकक उनका र्ि अभी भोिना है, अभी र्ि भोिा नहीं िया। तो भारत में बंिे हुए की िारणा, एक स्िेिरी की िारणा, एक परतंत्रता की िारणा विकवसत हुई कक हर आदमी परतंत्र है, आिे के विए बंिा हुआ है, पीछे के कामों ने बांि विया है। तो भारत की प्रवतभा के भीतर स्ितंत्रता का बोि, कक मैं स्ितंत्र हं, यह मर िया। यह मर ही जाएिा। जब मैं इतने कमों से बंिा हुआ हं पीछे के , वजनके र्ि मुझे अभी भोिने ही पड़ेंिे, वजनको बदिने का कोई उपाय न रहा अब, तो स्िाभाविक मेरी चेतना बंिी हुई है, बद्ध है, बंिन में है, यह िारणा पैदा हो िई। और जहां इतने बंिन मेरे भीतर हैं िहां एकाि और कोई बंिन ऊपर से आ जाए, कोई दूसरा मुल्क हुकू मत जमा िे, तो क्या र्कि पड़ता है? मैं तो बंिा ही हुआ हं, और थोड़ा सा बंिन बढ़ता है तो क्या र्कि पड़ता है? हम इतने बंिे हुए मािूम होने ििे भीतर, इतना बांिेज, कक और नई िुिामी आ जाए तो हमें कोई तकिीर् मािूम नहीं हुई। हमने भारत में एक िुिाम आदमी पैदा कर कदया इस िारणा की िजह से। मैं आपसे कहना चाहता हं, प्रमयेक कमि का र्ि तमक्षण वमि जाता है और आप कर्र टोटि िी हो जाते हैं, आप कर्र मुि हो जाते हैं। कमि भी वनपट िया, उसका र्ि भी उसके साथ वनपट िया। आपकी चेतना कर्र मुि है, आप कर्र मुि हो िए हैं। हर र्ड़ी आप बाहर हो जाते हैं अपने बंिन के । बंिन जजंदिी भर साथ नहीं ढोने पड़ते। िह जो हमारी कांशसनेस है िह हमेशा मुि हो जाती है। हमने काम ककया, र्ि भोिा और हम 211



बाहर हो िए। और काम के साथ ही र्ि वनपट जाता है, इसविए आप हमेशा स्ितंत्र हैं। मनुष्य की आममा मौविक रूप से स्ितंत्र है। िह कभी बंि कर नहीं रह जाती। िह कहीं भी बंिी हुई नहीं है। मौविक स्ितंत्रता की िररमा एक-एक आदमी को वमिनी चावहए, कक मेरी आममा मौविक रूप से स्ितंत्र है। तब हम स्ितंत्रता का आदर कर सकें िे, स्ितंत्रता के विए िड़ सकें िे, स्ितंत्रता को बचाने के विए जीिन खो सकें िे। बंिे-बंिाए िोि, बंिन में पड़े हुए िोि, वजनका वचत्त इस जड़ता को पकड़ विया है कक हम तो बंिे ही हुए हैं, िे िोि स्ितंत्रता के साक्षी, िे स्ितंत्रता के विटनेस, िे स्ितंत्रता के माविक, िे स्ितंत्रता की र्ोषणा करने िािी स्ितंत्र आममाएं नहीं हो सकते हैं। इसविए भारत इतने कदन िुिाम रहा है। इस िुिामी में न मुसिमानों का हाथ है, न हणों का, न तुकों का, न अंग्रेजों का। इस िुिामी में भारत के उन संत-महाममाओं का हाथ है वजन्होंने एक-एक आदमी की आंतररक स्ितंत्रता को नि करने की िारणा दे दी। िौरि चिा िया, िररमा चिी िई, िह जो वििवनटी एकएक आदमी की होनी चावहए, िह खमम हो िई। बंिन में पड़े आदमी की कोई वििवनटी होती है? कोई िौरि होता है? पैर में जंजीरें बंिी हैं, हाथ में जंजीरें बंिी हैं, िदि न र्ांसी पर िटकी है, ऐसा आदमी उसकी कोई िररमा होती है? कमि के इस वसद्धांत ने आपके पैरों में हजारों जंजीरें िाि दी हैं, हाथों में जंजीरें िाि दी हैं, िदि न र्ांसी पर िटका दी है। आप चौबीस र्ंटे र्ांसी पर िटके हैं, चौबीस र्ंटे बंिन में हैं। एक ही प्राथिना कर रहे हैं, हरे राम, हरे राम कर रहे हैं कक ककसी तरह मुवि वमि जाए, यह बंिन से छु टकारा हो जाए। इस तरह के आदमी की तस्िीर बहुत बेहदी और कु रूप है। इस तरह के आदमी को आवममक सम्मान का भाि भी नि हो जाता है। तीसरा अंवतम सूत्र! भारत ने एक तीसरी बीमारी हजारों साि में पोसी है, और िह बीमारी है ईिोसेंटििनेस। यह बड़ी अजीब बात मािूम पड़ेिी। अहं-कें द्रीकरण हो िया हमारा। हम दुवनया में सबसे ज्यादा इस बात की बात करने िािे िोि हैं कक अहंकार छोड़ो! िेककन हमारी पूरी कर्िासर्ी, हमारा पूरा जीिन-दशिन व्यवि को अहं-कें कद्रत बनाने िािा है। यह बड़े आश्चयि की र्टना है और यह कै से संभि हो सकी! भारत में इसीविए समाज की कोई िारणा, राष्ट्र की कोई िारणा विकवसत नहीं हो सकती कभी भी। भारत कभी भी राष्ट्र न था और न है और न अभी पुराने आिारों पर राष्ट्र होने की संभािना है। भारत में न कभी कोई समाज था, न है और न आिे कोई समाज की िारणा बन सकती है। भारत की िारणा अब तक यह रही है कक एक-एक व्यवि के अपने कमि हैं, अपना र्ि है। एक-एक व्यवि को अपना मोक्ष खोजना है, अपना स्ििि खोजना है। दूसरे व्यवि से िेना-दे ना क्या है! एक-एक व्यवि की आममा को अपनी-अपनी यात्रा पूरी करनी है, दूसरे से संबंि क्या है! तो एक इं टरररिेटेिनेस, एक अंतसंबंि हमारे भीतर विकवसत नहीं हो सका। सुनी होिी िाल्मीकक की कथा कक िाल्मीकक तो िाकू था, िुटेरा था। एक दर्ा उसने जाते हुए ऋवषयों को भी रोक विया रास्ते में िूटने के विए। उस ऋवषयों ने क्या कहा? उन ऋवषयों ने कहा कक तू हमें िूटता है िह तो ठीक, िूट िे, िेककन ककसके विए िूटता है? यह र्टना थोड़ी समझ िेनी जरूरी है। ककसके विए िूटता है? उस बाल्या भीि ने कहा कक अपनी पत्नी के विए, अपने बच्चों के विए, अपने बूढ़े बाप के विए, अपनी मां के विए! उनके विए िूटता हं! उन ऋवषयों ने कहा, तू कर्र एक काम कर, हमें तू बांि दे िृक्षों से और तू जाकर अपनी पत्नी, अपनी मां, अपने बेटे को पूछ आ कक िूटने से जो पाप का र्ि वमिेिा िे उसमें भी भािीदार होंिे कक नहीं। नकि जाएिा तू, इतनी िुटाई, इतनी हमयाएं करने से, तो तेरी पत्नी, तेरे बेटे, तेरे मां-बाप नकि जाने के विए तेरे साथ होंिे कक नहीं, यह तू पूछ कर आ जा। 212



बाल्या ने उनको बांि कदया और िह अपनी मां से पूछने िया। मां ने कहा कक बेटे, हमें क्या मतिब! हमें तो तुम बेटे हो, हमारे बुढ़ापे में खाना दे दे ते हो, उससे मतिब है। हमें इससे कोई प्रयोजन नहीं कक तुम कहां जाओिे और कहां नहीं जाओिे, िह तुम समझो। अपने-अपने कमि का र्ि, अपने-अपने आदमी को भोिना पड़ता है। बाल्या तो बहुत चौंका। उसने अपनी पत्नी को जाकर पूछा। पत्नी ने कहा कक तुम्हारा कतिव्य है, तुम मेरे पवत हो, कक मेरा पािन-पोषण करो। मुझे पता नहीं कक तुम कहां से पैसे िाते हो और क्या करते हो। िह तुम्हारा अपना जानना है। नकि जाओिे तो तुम जाओिे, स्ििि जाओिे तो तुम जाओिे, मुझसे क्या िेना-दे ना है इस बात का! बाल्या तो र्बरा िया। उसको पहिी दर्ा पता चिा कक कमि मेरे हैं और र्ि मेरा है पूरा का पूरा। और इनसे कोई मेरा अंतसंबंि नहीं है वसिाय इसके कक एक मेरी पत्नी है, िह एक बाहरी संबंि है; एक मेरी मां है, िह एक बाहरी संबंि है; अंतसंबंि कोई भी नहीं, जहां मेरे व्यविमि का पूरा भार िेने को ये तैयार हों। िह आया और ऋवषयों के चरणों में विर पड़ा और खुद भी ऋवष हो िया। आमतौर से यह कथा कही जाती है, यह बताने के विए कक ऋवषयों ने बाल्या को ज्ञान कदया। और मैं आपसे कहना चाहता हं, ऋवषयों ने बाल्या को सेल्र्-सेंटिि बना कदया। ऋवषयों ने बाल्या भीि को ईिो-सेंटिि बना कदया। उनकी वशक्षा का जो र्ि हुआ िह कु ि इतना कक बाल्या को यह कदखाई पड़ा कक मैं अके िा हं और सब अके िे हैं। मुझे अपनी कर्कर करनी है, उन्हें अपनी कर्कर करनी है। हमारे बीच कोई सेतु नहीं, कोई संबंि नहीं, कोई विज नहीं। एक-एक आदमी एक बंद वखड़ककयों िािा मकान है; दूसरे आदमी तक न कोई वखड़की खुिती है, न कोई द्वार खुिता है। दूसरे से संबंवित होने का उपाय नहीं है। तो एक अजीब िारणा पैदा हुई कक एक-एक आदमी को अपनी कर्कर करनी है। इस िारणा के अनुकूि जो समाज विकवसत हुआ उसमें एक-एक आदमी अपनी कर्कर कर रहा है। उसमें कोई आदमी ककसी दूसरे की कर्कर में नहीं है। और वजस दे श में हर आदमी अपनी कर्कर कर रहा हो, उस दे श में सारे आदमी परे शानी में पड़ जाएं तो हैरानी की बात नहीं होनी चावहए। दूसरे की िारणा का कोई मूल्य नहीं है, मेरा मूल्य है! तू का कोई भी मूल्य नहीं है, क्योंकक तू से क्या संबंि है! आप कहेंिे, िेककन हमने तो अजहंसा की िारणा भी विकवसत की, दान की िारणा भी विकवसत की, सेिा की िारणा भी विकवसत की। तो मैं आपको कहना चाहता हं कक आप बहुत हैरान होंिे इस बात को जान कर कक जहंदुस्तान ने अजहंसा की िारणा विकवसत की, िह िारणा भी ईिो-सेंटिि है। इसीविए हमने अजहंसा शब्द का प्रयोि ककया, प्रेम शब्द का प्रयोि नहीं ककया। अजहंसा का मतिब है--दूसरे की जहंसा नहीं करनी है। क्यों? इसविए नहीं कक जहंसा से दूसरे को दुख पहुंचेिा, बवल्क इसविए कक जहंसा से कमि-बंि होिा और तुमको नकि भोिना पड़ेिा। जो बेवसक एम्र्े वसस है िह इस बात पर नहीं है कक दूसरे को दुख पहुंचेिा, िह इस बात पर है कक दूसरे को दुख दे ने से बुरा कमि-बंि होता है और आदमी को नकि भोिना पड़ता है। तो अिर नकि से बचना चाहते हो तो दूसरे को दुख मत दे ना। दूसरे को दुख न दे ने के पीछे भी िारणा यह है कक मैं कहीं आिे दुख में न पड़ जाऊं। अिर हमको यह पता चि जाए कक दूसरे को दुख दे ने से कोई नकि नहीं होता तो हम दूसरे को दुख दे ने को राजी हो सकते हैं। हम कहते हैं िरीब को दान दो, इसविए नहीं कक िरीबी दुख है उसका, बवल्क इसविए कक िरीब को दान दे ने से स्ििि वमिता है। एम्र्े वसस, हमारा जोर ककस बात पर है? हमारा जोर इस बात पर है कक दान दे ने से स्ििि का रास्ता तय होता है। िरीब की िरीबी नहीं वमटानी है, बवल्क एक संन्यासी ने तो मुझे यहां तक कहा कक दुवनया में अिर िरीब वमट जाएंिे तो कर्र दान कै से हो सके िा! और अिर दान नहीं हो सका तो मोक्ष का द्वार 213



बंद! क्योंकक वबना दानी हुए कोई आदमी मोक्ष नहीं जा सकता। इसविए मोक्ष जाने के विए दुवनया में िरीबों को बनाए रखना बहुत जरूरी है। ककसको दान दें िे आप? कौन दान िेिा आपसे? आपके स्ििि के रास्ते पर कु छ िरीब वभखाररयों का खड़ा रहना हमेशा आिश्यक है कक आप दान दें और स्ििि जा सकें ! नहीं, हमारे दान में दररद्र पर दया नहीं है, हमारे दान में दररद्र की दररद्रता का भी शोषण है--दररद्रता का भी! क्योंकक उसकी दररद्रता भी सािन बनाई जा रही है कक मैं स्ििि जा सकूं । यह एक सेल्र्-सेंटिि, यह वबल्कु ि ही अहं-कें कद्रत मनुष्य की हमने चेतना विकवसत की है। इसविए हमने प्रेम शब्द का उपयोि नहीं ककया। प्रेम में दूसरा महमिपूणि हो जाता है, अजहंसा में मैं ही महमिपूणि हं। अजहंसा नकाराममक है, वनिेरटि है। िह कहती है, जहंसा नहीं करना है। बस, इसके आिे नहीं बढ़ना है। प्रेम कहता है, जहंसा नहीं करनी है, यह तो ठीक है; िेककन दूसरे को आनंकदत करना है। प्रेम में दूसरा महमिपूणि है, तू, दाऊ, महमिपूणि है, और अजहंसा में मैं महमिपूणि हं। हमारा सारा िमि सेल्र्-सेंटिि है। और वजस कौम का सारा मन अहंकार-कें कद्रत हो... एक आदमी तप भी कर रहा है िूप में खड़ा होकर, तो आप यह मत समझना कक ककसी और के विए कर रहा है। अपने विए ही! उसे स्ििि जाना है, उसे मोक्ष जीतना है। मुल्क भूखा मर रहा हो और एक आदमी अपने स्ििि जाने के उपाय कर रहा है। मुल्क दररद्रता में सड़ रहा हो और एक आदमी अपने मोक्ष की आयोजना में ििा हुआ है। और हम सब इसको आदर दे रहे हैं। हम सब कह रहे हैं कक यह बहुत आदरणीय पुरुष है, क्योंकक यह मोक्ष जाने की कोवशश कर रहा है। मैंने सुना है, जापान में पहिी दर्ा बुद्ध के ग्रंथों का अनुिाद हुआ। तो वजस वभक्षु ने अनुिाद करिाने की कोवशश की िह िरीब वभक्षु था। एक हजार साि पहिे की बात है। और बुद्ध के पूरे ग्रंथों का जापानी में अनुिाद करिाने में कम से कम दस हजार रुपये का खचि था। तो उस वभक्षु ने िांि-िांि जाकर रुपये इकट्ठे ककए। िह दस हजार रुपये इकट्ठे कर पाया था कक उस इिाके में, जहां िह रहता था, अकाि पड़ िया। तो उसने िे दस हजार रुपये उठा कर अकाि के काम में दे कदए। उसके सावथयों ने कहा, यह तुम क्या कर रहे हो? पर िह कु छ भी नहीं बोिा। उसने कर्र रुपये मांिने शुरू कर कदए। कर्र बेचारा दस साि में मुवश्कि से दस हजार रुपये इकट्ठा कर पाया और बाढ़ आ िई। उसने िे दस हजार रुपये बाढ़ में दे कदए। अब िह सत्तर साि का हो िया था। उसके वमत्रों ने कहा, तुम पािि हो िए हो! ग्रंथों का अनुिाद कब होिा? िेककन िह हंसा और उसने कर्र भीख मांिनी शुरू कर दी। जब िह नब्बे साि का था तब कर्र दस हजार रुपये इकट्ठा कर पाया। संयोि की बात कक न कोई अकाि पड़ा, न कोई बाढ़ आई, तो िह ग्रंथ अनुिाद हुआ और छपा। ग्रंथ में उसने विखा : थिि एिीशन। ग्रंथ में उसने विखा : तीसरा संस्करण। दो संस्करण पहिे वनकि चुके, िेककन िे अदृश्य हैं--उसमें उसने विखा। एक उस समय वनकिा जब अकाि पड़ा था, एक उस समय वनकिा जब बाढ़ आई थी, अब यह तीसरा वनकि रहा है। और िे दो बहुत अदभुत थे, उनके मुकाबिे यह कु छ भी नहीं है। यह िारणा भारत में विकवसत नहीं हो सकी। और यह जब तक विकवसत न हो तब तक कोई मुल्क नैवतक नहीं हो सकता, न िार्मिक हो सकता है। भारत का िमि भी अहंकारग्रस्त है। एक नई दृवि इस दे श को जरूरी है-जो दूसरा भी मूल्यिान है, मुझसे ज्यादा मूल्यिान। चारों तरर् जो जीिन है िह मुझसे बहुत ज्यादा मूल्यिान है और अिर उस जीिन के विए मैं वमट भी जाऊं तो भी मैं काम आ िया हं। िह जो चारों तरर् जीिन है, उस जीिन की सेिा से बड़ी कोई प्राथिना नहीं है, उस जीिन को प्रेम दे ने से बड़ा कोई परमाममा नहीं है। यह तीसरी िारणा विकवसत करनी जरूरी है।



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ये तीन सूत्र मैंने आपसे कहे। इनकी िजह से भारत दुभािग्य से भर िया है। और उन तीनों सूत्रों को कै से वमटाया जा सकता है िह भी मैंने आपसे कहा। अिर इन तीन सूत्रों पर हमारी जीिन-जचंतना की िारा को बदिा जा सके तो कोई कारण नहीं है कक हम अपने दे श की सोई हुई प्रवतभा को िापस जिा दें , सोई हुई आममा कर्र से उठ जाए, हम उमसाह से भर जाएं, हम जीिन की उमर्ु ल्िता से भर जाएं, हम कु छ करने की तीव्र प्रेरणा से भर जाएं, भविष्य वनमािण करने के सपने हमारी आंखों में वनिास करने ििें। और हम समाज, और सब, और िह जो विराट जीिन है उस विराट जीिन के एक अंि... । और इसकी कर्कर छोड़ दें बहुत कक मेरा मोक्ष! क्योंकक मेरा कोई मोक्ष नहीं होता, जब मैं वमट जाता है तब आदमी मुि होता है। और जो आदमी वजतने विराटतर जीिन के चरणों में अपने मैं को समर्पित कर दे ता है िह उतना ही वमट जाता है और मुि हो जाता है। काश! यह हो सके तो भारत का सौभाग्य उदय हो सकता है। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांवत से सुना, उसके विए बहुत अनुिृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमाममा को प्रणाम करता हं, मेरे प्रणाम स्िीकार करें ।



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भारत का भविष्य सत्रहिां प्रिचन



क्या भारत को क्रांवत की जरुरत है? क्या भारत को क्रांवत की जरूरत है? यह प्रश्न िैसा ही है जैसे कोई ककसी बीमार आदमी के पास खड़ा होकर पूछे कक क्या बीमार आदमी को औषवि की जरूरत है? भारत को क्रांवत की जरूरत ऐसी नहीं है, जैसी और चीजों की जरूरत होती है, बवल्क भारत वबना क्रांवत के अब जी भी नहीं सके िा। इस क्रांवत की जरूरत कोई आज पैदा हो िई है, ऐसा भी नहीं है। भारत के पूरे इवतहास में कोई क्रांवत कभी हुई ही नहीं। आश्चयिजनक है यह र्टना कक एक सभ्यता कोई पांच हजार िषों से अवस्तमि में है िेककन िह क्रांवत से अपररवचत है। वनवश्चत ही जो सभ्यता पांच हजार िषों से क्रांवत से अपररवचत है िह करीब-करीब मर चुकी होिी। हम के िि उसके मृत बोझ को ही ढो रहे हैं और हमारी अविकतम समस्याएं उस मृत बोझ को ही ढोने से ही पैदा हुई हैं। अिर हम मरे हुए िोिों की िाशें इकट्ठी करते चिे जाएं तो पांच हजार िषों में उस र्र की जो हाित हो जाएिी, िही हाि पूरे भारत का हो िया है। अिर एक र्र में मरे हुए िोिों की सारी िाशें इकट्ठी हो जाएं तो क्या पररणाम होिा? उस र्र में आने िािे नये बच्चों का जीिन अमयंत संकटपूणि हो जाएिा। िेककन इस दे श की वस्थवत और भी बुरी है। र्र में िाशें इकट्ठी हों तो वनवश्चत ही र्र मरर्ट हो जाएिा, िेककन अिर ककसी र्र में बूढ़े इकट्ठे हो जाएं और पांच हजार िषों तक मरें ही नहीं, तो उस र्र की हाित और भी बदतर हो जाएिी। िाशें कु छ परे शानी नहीं दे सकती हैं, मरा हुआ आदमी क्या तकिीर् दे सकता है? अिर पांच हजार िषों के बूढ़े इकट्ठे हो जाएं ककसी र्र में तो उस र्र के बच्चे पािि ही पैदा होंिे। उस र्र में स्िस्थ मवस्तष्क की कोई संभािना नहीं रह जाएिी। और जब कोई सभ्यता क्रांवत को इनकार कर दे ती है तो उसकी वस्थवत ऐसी ही हो जाती है। जो चीजें कभी की मर जानी चावहए थीं, िे जजंदा बनी रह िईं और उनके जजंदा बने रहने के कारण जो पैदा होना चावहए था, िह अिरुद्ध हो िया है, िह पैदा नहीं हो पाया। बूढ़े मरते हैं इसविए बच्चे पैदा होते हैं। वजस कदन बूढ़ों का मरना बंद हो जाएिा उस कदन बच्चों का पैदा होना भी बंद हो जाएिा। कठोर ििती है यह बात। वनवश्चत ही कहने में अच्छी भी नहीं मािूम पड़ती िेककन जीिन का वनयम ऐसा ही है और उसे समझ िेना उवचत है। ककसी को विदा होना पड़ता है इसविए ककसी का स्िाित हो पाता है। कोई जाता है इसविए कोई आ पाता है। िेककन जो समाज क्रांवत को इनकार कर दे ता है िह चीजों के जाने से इनकार कर दे ता है और तब नई चीजें आनी बंद हो जाएं तो आश्चयि नहीं। पुराने के अवत मोह के कारण नये का जन्म अिरुद्ध हो जाता है। भारत में नये का जन्म न मािूम ककतनी सकदयों से अिरुद्ध है। एक छोटी सी र्टना से मैं इस बात को समझाने की कोवशश करूंिा। एक िांि में एक बहुत पुराना चचि था। उस चचि की दीिािें जीणि हो िई थीं। उस चचि के भीतर जाना भी खतरनाक था क्योंकक िह ककसी भी क्षण विर सकता था। हिाएं चिती थीं तो िह चचि कं पता था। आकाश में बादि िरजते थे तो ििता था अब विरा, अब विरा। उस चचि के भीतर प्राथिना करने िािे िोिों ने जाने की वहम्मत छोड़ दी। चचि की जो कमेटी थी, आवखर िह कमेटी वमिी। िह भी चचि के भीतर नहीं, चचि के बाहर। क्योंकक चचि के भीतर खड़ा होना तो मौत को आमंत्रण दे ना था। िह कभी भी विर सकता था। हािांकक िह विरता भी नहीं था, अिर िह विर जाता तो भी ठीक था। िेककन िह न विरता था और न यह संभािना वमटती थी कक िह कभी भी विर सकता है। कमेटी के िोिों ने तय ककया कक कु छ न कु छ करना जरूरी है। चचि इतना 216



पुराना हो िया है कक अब प्राथिना करने िािे िोि भी उसमें आते नहीं। पास से वनकिने िािे िोि भी तेजी से िुजरते हैं कक िह ककसी भी क्षण विर सकता है। क्या करें ? उन्होंने चार प्रस्ताि स्िीकर ककए। चचि की कमेटी ने पहिा प्रस्ताि यह स्िीकार ककया कक यह चचि इतना पुराना हो िया है कक अब उसे और आिे वजिाए रखना असंभि है। सिि-सम्मवत से उन्होंने स्िीकार कर विया कक पुराने चचि को विराना अिश्य है। कर्र उन्होंने दूसरा प्रस्ताि यह ककया कक पुराना चचि विराना आिश्यक है तो उससे भी ज्यादा आिश्यक यह है कक हम नया चचि वनर्मित करें । एक नया चचि बनाना आिश्यक है, इसे भी सिि-सम्मवत से स्िीकार कर विया िया। तीसरा प्रस्ताि उन्होंने यह पास ककया कक नया चचि जो बनेिा उसमें पुराने चचि की ही ईंटें ििेंिी। हम पुराने चचि के दरिाजे ही ििाएंिे। पुराने चचि के सामान से और चचि की उसी जिह पर, और ठीक पुराने चचि-जैसा ही नया चचि हमें बनाना है। इसे भी उन्होंने सिि-सम्मवत से स्िीकार कर विया और चौथा प्रस्ताि यह पास ककया कक जब तक नया चचि न बन जाय तब तक पुराना चचि नहीं विराना है। िह चचि अब भी खड़ा है। िह चचि कभी नहीं विरे िा क्योंकक जो िोि नये को वनर्मित करना चाहते हैं उन्हें पुराने को विनि करने का साहस जुटाना पड़ता है। पुराने को विनि ककए वबना नये का न कभी वनमािण हुआ है और न हो सकता है। पुराने के विध्िंस पर ही नये का जन्म और सृजन होता है। क्रांवत का अथि है इस बात की तैयारी कक हम पुराने को हटाने की वहम्मत जुटाते हैं। वनवश्चत ही खतरनाक है यह तैयारी, क्योंकक हो सकता है कक हम पुराने को विरा दें और नये को न बना पाएं, यह संभािना हमेशा है। यह खतरा हमेशा है कक पुरानी सीढ़ी पैर से छू ट जाए और नई सीढ़ी पैर के विए उपिब्ि न हो सके । यह खतरा है कक बूढ़े िुजर जाएं और बच्चे न आएं। िेककन खतरे की स्िीकृ वत का नाम ही क्रांवतकारी मन है। चूंकक पांच हजार िषों से हमने इस खतरे में कदम उठाने की वहम्मत नहीं की इसविए हम क्रांवत से नहीं िुजर सके । पुराने में एक सुवििा है, एक सुरक्षा है। नये का पता नहीं, कै सा होिा, अपररवचत होिा, होिा भी या नहीं होिा, यह भी संकदग्ि है। हम बना पाएंिे या नहीं बना पाएंिे, यह भी के िि आशा और सपना है। पुराना, िास्तविक है। नया संभािना है, नया होने िािा भविष्य है। अतीत हो चुका है, िह है, िह कहीं खड़ा है। भविष्य अभी कहीं भी नहीं है, अंिकार में है, अज्ञात में है, हो सकता है, नहीं भी हो सकता है। क्रांवत की दृवि का अथि यह है कक हम अवनवश्चत के विए वनवश्चत को छोड़ने का साहस जुटाते हैं। हम अज्ञात के विए ज्ञात से कदम उठा िेने का साहस जुटाते हैं। हम जो नहीं है उसके विए उसको वमटाने का साहस जुटाते हैं जो है। क्रांवतकारी दृवि का और क्या अथि होता है? क्रांवतकारी दृवि का अथि है साहस, ज्ञात से अज्ञात में जाने का, पररवचत से अपररवचत में जाने का। जो था उससे, उसमें जाने का, जो हो सकता है और नहीं भी हो सकता है। िेककन यही साहस ककसी जावत को जिान बनाता है और जो जावत यह साहस खो दे ती है िह बूढ़ी हो जाती है। यह जावत बूढ़ी हो चुकी है। यह जावत कभी की बूढ़ी हो चुकी है। अब तो इस बात की स्मृवत ही खो िई है कक यह जावत कभी जिान थी भी या नहीं। यह पुरानापन इतना पुराना हो िया है और इसके पीछे एक ही कारण है कक हम सुरक्षा के अवत प्रेमी हैं। सुरक्षा का वजतना ज्यादा मोह होता है, क्रांवत की संभािना उतनी ही कम होती है। एक नदी वहमािय से वनकिती है। िंिोत्री से िंिा बही चिी जाती है। प्रवत क्षण उसे पुराना ककनारा छोड़ दे ना पड़ता है और प्रवत पि पुरानी भूवम छोड़ दे नी पड़ती है। अनजान, अज्ञात रास्तों पर उस सािर की खोज चिती है वजसका उसे कोई पता नहीं कक िह कहां है? होिा भी या नहीं होिा? अज्ञात, 217



अनजान रास्ते पर प्रवतपि पुराने को छोड़ते हुए नदी आिे बढ़ती चिी जाती है। नदी की जो दृवि है, िह क्रांवत की जीिन-दृवि है। एक सरोिर है, िह पुराने को छोड़ता नहीं। िह कहीं आिे नहीं बढ़ता है। िह र्ेरा बांि कर िहीं िू ब कर बैठ जाता है। उसकी कोई िवत नहीं है, िह सुरवक्षत है एक अथि में। तट उसका पुराना है, सदा िही जो कि था, परसों भी था। जो पररवचत है, िह िहीं सुरवक्षत है। उसे कहीं जाना नहीं है। सररता की जजंदिी में कु छ जीिंतता है, िवत है और सािर से वमिन है, कोई उपिवब्ि है। सररता दौड़ रही है, नये को जान रही है, नई हो रही है रोज, नई िाराएं वमि रही हैं। नया तट, नई भूवम और एक कदन िह पहुंच जाएिी अपने वप्रयतम तक, अपने सािर तक। अिर िह रुक जाए तो सािर कभी भी नहीं हो पाएिी, रह जाएिी एक छोटी सी नदी, वजसकी सीमा थी, वजसका तट था। िेककन तटहीन असीम और अनंत सािर से उसका वमिन नहीं हो सकता। िह कभी भी सािर नहीं हो पाएिी। एक सरोिर है छोटा सा, िह भी सररता हो सकता था िेककन उसने अनजान और अपररवचत में जाने की वहम्मत नहीं जुटाई। उसने उवचत माना कक िह बंद हो जाए, एक जिह ठहर जाए, िहीं रहे। जीता है िह भी, िेककन सािर से वमिने को नहीं, के िि सड़ने को। जीएिा और सड़ेिा। उसमें जीने का एक ही अथि है कक रोज सड़ेिा, रोज िाष्पीभूत होिा, कीचड़ इकट्ठी होिी, कचरा इकट्ठा होिा, िबरा बनेिा िेककन उसका जीिन कहीं जाने िािा जीिन नहीं है। रुक िया, ठहर िया, कोई जीिंतता उसके भीतर नहीं है। भारत हजारों िषों से एक सरोिर बन िया है। उसकी िवत अिरुद्ध हो िई है। िह ठहर िया है, सुरक्षा में ठहर िया है, रुक िया है ज्ञात के साथ, जो जाना हुआ है। उससे आिे बढ़ने की उसने वहम्मत खो दी है। उसे अपने र्र की चारदीिारी के बाहर नहीं जाना है। अिर कभी बच्चे वखड़की से बाहर झांकते हैं तो बूढ़े उन्हें िापस बुिा िेते हैं कक र्र के भीतर आ जाओ, बाहर खतरा है। कभी अिर बच्चे र्र की सीकढ़यां छिांि ििा िेते हैं और बाहर के विराट आंिन में, जहा अनंत तक र्ै िा हुआ आकाश है, जाने की वहम्मत करते हैं तो बू.ढ़े उन्हें िराते हैं और कहते हैं, र्र में आ जाओ। बाहर िषाि हो सकती है, िूप है, ताप है, कर्र बाहर अज्ञात है, दुश्मन हो सकते हैं, र्र आ जाओ। भीतर आ जाओ चारदीिारी में, सब सुरवक्षत है। आराम से यहां रहो, खाओ-पीओ, सोओ और मरो। बाहर मत जाना। एक सरोिर बना विया है जीिन को हमने। पर क्रांवत है जीिंत। जीिन रोज बदिाहट है। वजतना जीिंत है व्यविमि, उतना िवतशीि है। िवत और जीिन के एक ही अथि हैं। क्रांवत और जीिन के भी एक ही अथि हैं। जीिन में क्रांवत की जरूरत है। अिर इसे हम ठीक से समझें तो इसका अथि हुआ जीिन को जीिन की जरूरत है। क्रांवत नहीं तो जीिन कहां है? बदिाहट नहीं तो जीिन कहां है? वसर्ि मरा हुआ आदमी बदिना बंद कर दे ता है, कर्र िह नहीं बदिता है, कर्र िह ठहर जाता है। कर्र उसका आिे कोई भविष्य नहीं है, कर्र है वसर्ि अतीत, जो बीत िया िही। आिे कु छ भी नहीं हैं। आिे आ िया अंत। मरा हुआ आदमी बदिाहट बंद कर दे ता है। जजंदा आदमी बदिता है। बच्चे जोर से बदिते हैं क्योंकक ज्यादा जीवित हैं, बूढ़े बदिना बंद कर दे ते हैं क्योंकक िे मृमयु के करीब पहुंचने ििे हैं। बदिाहट है जीिन का स्िरूप। अिर हम रोज बदि नहीं पाते हैं तो वनवश्चत ही हम रुक जाते हैं, जीिन के साथ बह नहीं पाते। हम कहीं ठहर जाते हैं और िही ठहराि जड़ता िाता है, िही ठहराि सड़ांि िाता है, िही ठहराि मृमयु िाता है। भारत एक बड़ा मरर्ट है। िहां हम बहुत कदन पहिे मर चुके हैं। मर जाने के बाद का अवस्तमि जो है, उसमें हम जीवित हैं। हम प्रेताममाओं की भांवत हैं जो कभी की मर चुकी हैं। िेककन कर्र भी हमें ख्याि है कक हम जजंदा हैं और जीए चिे जा रहे हैं। क्या कभी हमने यह सोचा कक क्या कारण है इस अिरोि का? यह क्रांवत-विरोिी जीिन कै से पैदा हो सका, यह जड़ता से भरी हुई वस्थवत कै से पैदा हो सकी? हमने कै से खो कदया 218



जीिन का स्र्ु रण? हमने कै से खो कदया सािर से वमिने की अनंत यात्रा का पथ? हमने कै से खो कदया निीन और अज्ञात को जानने का साहस? हम कै से ठहर िए हैं? जब तक हम यह नहीं समझ िें तब तक क्रांवत की क्या रूप-रे खा बनेिी? मैं चार जबंदुओं पर विचार करना चाहता हं वजनकी िजह से भारत एक सरोिर बन िया है, सररता नहीं। सरोिर हो जाए तो बहुत अपमानजनक है। िह जीिन का अपमान है और परमाममा का भी। क्योंकक परमाममा के जित में प्रवतपि पररितिन है। िहां कोई चीज ठहरी हुई नहीं है। एजिंग्टन कहता था कक मैने सारा भाषाकोश खोज कर दे खा। मुझे एक शब्द वबल्कु ि झूठ मािूम पड़ा और िह शब्द है--ठहराि, रे स्ट। एजिंि्टन ने कहा कक ठहराि जैसी कोई चीज तो जित में होती ही नहीं। ठहराि जैसी कोई र्टना ही नहीं र्टती। सारी चीज पररितिन में हैं। प्रवतपि पररितिन है, प्रिाह है। जीिन का एक बहाि है, िहां ठहराि कहां? एजिंग्टन मर चुका है अन्यथा उससे हम कहते कक आ जाओ भारत और तुम पाओिे कक ठहराि भी कहीं है। चिता होिा सारा जित तुम्हारा, िेककन भारत ठहरा हुआ है और न के िि ठहरा हुआ है बवल्क हम उस ठहराि का िुणिान करते हैं, यशिान करते हैं और कहते हैं कक यूनान न रहा, बेवबिोन न रहा, सीररया न रहा, सारी दुवनया की सभ्यता आई और िई। वमश्र अब कहां है? िेककन भारत अब भी है। हम सोचते नहीं कक इसका मतिब क्या है। इसका मतिब यह है कक जो भी जीिंत थे िे बदिते चिे िए, उनकी सभ्यताएं नई होती चिी िईं, उनके जीिन ने नई कदशाएं िीं, िे नये होते चिे िए और जो नहीं बदिे िे अब भी िहीं हैं। िे िहीं खड़े हैं जहां िे कि भी थे, परसों भी थे, हमेशा थे। िे चिना ही भूि िए। िेककन ककन कारणों से भारत में यह अिरोि आया; यह आज विचारणीय हो िया है क्योंकक भारत में क्रांवत अपेवक्षत है, जरूरी है। भारत क्यों ठहर िया? ठहर जाना इतना जीिन-विरोिी है कक जरूर कोई बहुत बड़ी तरकीब ईजाद की िई होिी तब हम ठहर पाए हैं, नहीं तो जीिन खुद तोड़ दे ता है सारे ठहराि को। हमने जरूर कोई बहुत होवशयारी की होिी तब हम रुक पाए, अन्यथा रुकना बहुत करठन है। भारत ने कौन सी तरकीब की वजससे आदमी अतीत में ठहर िया और भविष्य में उसकी िवत बंद हो िई। भविष्य के आकाश अनजान और अपररवचत के अपररवचत रह िए। हमने कौन सी तरकीब की है? चार जबंदुओं पर मुझे यह तरकीब कदखाई पड़ती है। पहिा जबंदु यह है कक जीिन की िवत के विए आमयंवतक रूप से परिोकिादी दृवि अमयंत खतरनाक और र्ातक है। अिर कोई जावत वनरं तर परिोक के संबंि में विचार करती हो, मृमयु के बाद जो है उसके संबंि में विचार करती हो तो जीिन अिरुद्ध हो जाएिा, जीिन अथिहीन हो जाएिा, जीिन असार हो जाएिा। अिर एक आदमी सदा यह सोचता हो कक मरने के बाद क्या होिा तो जीिन से उसकी दृवि वछटक जाएिी। अिर एक कौम वनरं तर मोक्ष के संबंि में जचंतन करती हो तो जीिन के संबंि में उपेक्षा हो जाना सुवनवश्चत है और जीिन अिर उपेवक्षत हो जाए तो जीिन की जड़ कट जाती है। और हम पांच हजार िषों से जीिन की उपेक्षा करके जीने की चेिा कर रहे हैं। यह जीिन जो चारों तरर् कदखाई पड़ता है--र्ू िों का, पवक्षयों का, मनुष्यों का--यह जीिन जो शरीर से प्रकट होता है यह जनंकदत है, यह पाप है, यह पाप का र्ि है। आप इसविए पैदा नहीं हुए हैं कक परमाममा आप पर प्रसन्न है, आप इसविए पैदा हुए हैं कक आपने पाप ककए हैं और आपको पाप की सजा दी जा रही है यहां भेज कर। जित एक कारािृह है, जहां परमाममा पावपयों को सजा दे रहा है क्योंकक पुण्याममा कर्र जीिन में कभी िापस नहीं िौटते। उनकी आिािमन से मुवि हो जाती है। पापी िापस िौट आते हैं। हमने जो िारणा बनाई है जीिन के बाबत, िह ऐसी है जैसी ककसी ने कारािृह की िारणा की हो। परमाममा ने इस 219



पृथ्िी को जैसे चुन रखा हो, पावपयों को सजा दे ता है, तो यहां भेजता है। यह जीिन एक पश्चात्ताप है। यह जीिन ककसी पाप का पुरस्कार है। यह जीिन सजा है। यह जीिन एक दं ि है। तो जीिन जब एक दं ि है तो उसे झेि िेने की जरूरत है, उसको बदिने की क्या जरूरत है? मुझे अिर जेि भेज कदया जाए तो मैं जेि की दीिािों को सजाऊंिा, तस्िीरें ििाऊंिा, जीिन के र्ू ि वखिाऊंिा? नहीं, मैं चाहंिा कक वजतनी जल्दी कट जाए यह समय अच्छा और मैं जेि के बाहर वनकि जाऊं। मैं जेि की सजािट करूंिा? मैं जेि को सुंदर बनाने की कोवशश करूंिा? पािि हं मैं जो जेि को सुंदर बनाऊं। जेि से मुझे छू टना है, वनकि जाना है। जेि से मुझे क्या िेना-दे ना है? भारत जीिन के साथ कारािृह जैसा व्यिहार कर रहा है। हम यह सोच रहे हैं वनरं तर कक कै से जीिन से मुि हो जाएं, कै से आिािमन से छु टकारा हो जाए? मैं अभी भािनिर था। एक छोटी सी बच्ची ने, वजसकी उम्र मुवश्कि से दस या ग्यारह साि की होिी, आकर पूछा कक मुझे एक बात बताइए। जीिन से छु टकारा कै से हो सकता है, मुवि कै से हो सकती है? मैं तो चौंक कर रह िया। ग्यारह िषि की, दस िषि की बच्ची यह पूछती है कक जीिन से छु टकारा कै से हो सकता है! जो अभी जीिन के र्ाट पर भी पूरी तरह नहीं आई, वजसने अभी जीिन की सररता में छिांि नहीं ििाई, वजसने अभी जीिन के िृक्षों की ऊंचाई नहीं दे खी, वजसने अभी जीिन के पवक्षयों को उड़ते नहीं जाना, वजसने अभी जीिन के सूरज की रोशनी की तरर् आंखें नहीं खोिीं, अभी िह बच्ची जीिन के मंकदर की दीिाि पर ही खड़ी है, मंकदर में प्रविि भी नहीं हुई और िह सीकढ़यों पर ही पूछती है कक जीिन से छु टकारा कै से हो सकता है? वनवश्चत ही ककसी ने उसके मन को विषाि कर कदया है। अभी से जहर िाि कदया है उसके कदमाि में। अब िह जीिन को जी भी नहीं पाएिी। अब िह जीिन को सुंदर कै से बनाएिी? वजस जीिन से छू टना है उसे हम सुंदर क्यों बनाएं? वजस जीिन से छू टना है उसे हम बदिें क्यों? इस परिोकिादी जचंतन ने भारत की सारी क्रांवतकारी प्रवतभा को छीन विया है। यह मैं नही कहता कक परिोक नहीं है, न मैं यह कहता हं कक जीिन के बाद और जीिन नहीं है पर मैं यह कहना चाहता हं कक जीिन के बाद जो भी जीिन है िह इसी जीिन से विकवसत होता है, िह इसी जीिन का अंवतम चरण है और अिर इस जीिन की उपेक्षा होिी तो उस जीिन को भी हम सम्हाि नहीं सकते। उसे भी नि कर दें िे। िह इस जीिन पर ही खड़ा होिा। िह इसकी ही वनष्पवत्त है। अिर कि है कोई, तो मेरे आज पर खड़ा होिा और अिर मेरा आज उपेवक्षत है तो मेरा कि वनर्मित होने िािा नहीं। कि के वनमािण के विए भी यह जरूरी है कक आज पर मेरा ध्यान हो। कि की कर्कर छोड़ दे नी चावहए, कर्कर करनी है आज की। अिर मेरा आज ठीक वनर्मित हुआ और आज की जजंदिी मेरी आनंद की जजंदिी हुई तो कि मैं कर्र एक नये आनंद से भरे कदिस में जािूंिा क्योंकक मैंने आज आनंद में जीआ है। कि मेरी आंखें कर्र एक नये आनंद से भरे हुए जित में खुिेंिी, िेककन अिर आज मैने नि ककया है तो कि भी मेरा नि हो रहा है। क्योंकक कि आज की ही वनष्पवत्त है, आज का ही विकास है। इस जीिन की हमने उपेक्षा की है और इस भांवत हम परिोकिादी तो रहे हैं िेककन परिोक भी हमने सुिारे हों, ऐसा मुझे नहीं मािूम पड़ता है। जो इस िोक को नहीं सुिार सकते, ऐसे कमजोर िोि परिोक को सुिार सकें िे, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। तो मेरी दृवि में परिोकिादी जचंतन से छु टकारा चावहए। िह आमयंवतक बि, परिोक पर नहीं, इस जीिन पर जरूरी है। यह जो जीिन हमें उपिब्ि हुआ है उसे हम सुंदर बना सकें , इस जीिन का रस उपभोि कर सकें , इस जीिन से आनंद अिशोवषत कर सकें । यह जो अिसर वमिा है जीिन का, यह ऐसे ही न खो जाए। इस अिसर को भी हम जान सकें , जी सकें । 220



रिींद्रनाथ मरने के करीब थे तो ककसी वमत्र ने कहा : "अब तुम परमाममा से प्राथिना कर िो कक दुबारा इस जीिन में न भेजें।" उन्होंने आंखे खोि दीं और कहा : "क्या कहते हो? मैं परमाममा से ऐसा कहं कक दुबारा मुझे इस जीिन में न भेजो? इससे बड़ी परमाममा की और जनंदा क्या होिी क्योंकक उसने मुझे भेजा था? मैं उससे ज्यादा समझदार हं कक कहं कक मुझे न भेजो? नहीं, मेरे प्राणों के प्राण में एक ही िूंज है! एक ही प्राथिना है कक हे प्रभु! तेरा जीिन तो बहुत सुंदर था। अिर तूने मुझे योग्य पाया हो तो बार-बार िापस भेज दे ना और अिर तेरा जीिन मुझे सुंदर नहीं मािूम पड़ा हो तो वजम्मा मेरा है। मेरे दे खने के ढंि में भूि रही होिी। मेरे जीने के ढंि िित रहे होंिे। मैं जीिन की किा नहीं जानता रहा होऊंिा। अिर तूने योग्य पाया हो तो िापस मुझे भेज दे ना। अिर मेरी पात्रता ठीक उतरी हो, अिर मैं तेरी कसौटी पर कस िया होऊं तो मुझे बार-बार भेजना। तेरा जीिन बहुत सुंदर है। तेरा चांद सुंदर था, तेरा सूरज सुंदर था, तेरे िोि सुंदर थे, सब सुंदर था। अिर भूि कहीं हुई होिी तो मुझसे ही हुई होिी।" ऐसी जीिन-दृवि चावहए, जीिन से प्रेम करने िािी। जीिन-विरोिी नहीं, जीिन के पक्ष में। जीिन का स्िीकार चावहए, अस्िीकार नहीं। िेककन भारत कर रहा है जीिन को अस्िीकार। उस अस्िीकार का र्ि है कक हमने सैकड़ों िषों की िुिामी भोिी। उस अस्िीकार का र्ि है कक पृथ्िी पर सबसे ज्यादा िन-िान्यपूणि होते हुए भी हम सबसे ज्यादा दीन और दररद्र हैं। उस अस्िीकार का र्ि है कक इतनी बड़ी विराट शवि की संपदा पास होते हुए भी हमसे ज्यादा शविहीन और नपुंसक आज पृथ्िी पर कोई भी नहीं है। उस अस्िीकार का र्ि यह है, और इसका वजम्मा उन सारे िोिों के ऊपर है वजन्होंने जीिन की अस्िीकृ वत हमें वसखाई, चाहे िे ककतने ही बड़े ऋवष हों, चाहे ककतने ही बड़े मुवन हों। िेककन वजन्होंने हमें अस्िीकृ वत वसखाई है उन्होंने हमें आममर्ात भी वसखाया है, यह जान िेना। और वजतनी जल्दी हम यह जान िें उतना अच्छा है। एक रूसी यात्री ने भारत के संबंि में एक ककताब विखी है। मैं उस ककताब को पढ़ रहा था तो मैंने समझा कक कोई मुद्रण की भूि हो िई होिी। उसमें उसने विखा है कक भारत एक अमीर दे श है वजसमें िरीब िोि रहते हैं। मै समझा कक जरूर कोई भूि हो िई, िेककन कर्र सोचने ििा तो ख्याि आया कक बात तो शायद ठीक ही है। भारत िरीब नहीं है, िेककन भारत के रहने िािे दीन-हीन और िरीब हैं। उनकी दृवि ऐसी है जो उन्हें िरीब बना ही दे िी। उनकी दृवि ऐसी है कक िे दीन-हीन हो ही जाएंिे। अिर यही दे श ककसी और जीिंत कौम को वमिता तो आज पृथ्िी पर इस दे श से ज्यादा िनी, इस दे श से ज्यादा समथि और सुखी कोई हो सकता था? हमने क्या ककया इस दे श के साथ? जीिन के प्रवत जो विरोिी हैं िे समृद्ध कै से हो सकें िे? िे जीिन की संपदा की खोज ही नहीं करते। िे तो जीिन को ढोते हैं बोझ की तरह। िे जीिन को हंस कर स्िीकार नहीं करते, रोते हुए झेिते हैं। हमारे जो सािु-संत विचार हमें दे ते हैं उनकी शक्िें जरा आप दे खें, िे सब रोते हुए, उदास और सूखे हुए िोि मािूम पड़ते हैं। ऐसे मािूम पड़ते हैं जैसे असमय में कु म्हिा िया कोई र्ू ि हो! हंसता हुआ संत हमने पैदा ही नहीं ककया। हंसते हुए आदमी हमने पैदा नहीं ककए। जैसे रोते हुए कदखाई पड़ना भी कोई बहुत बड़ी आध्यावममक योग्यता है! उदास और सूखा हुआ व्यविमि हमें आध्यावममक मािूम पड़ता है। जहंदुस्तान में कु छ ऐसा समझा जाता है कक स्िस्थ होना िैर-आध्यावममक होना है। यहां ऐसे सािुओं की परं परा है जो कभी स्नान नहीं करते क्योंकक िे कहते हैं कक स्नान करना शरीर को सजाना है। स्नान करना शरीर की सेिा करनी है। और शरीर? शरीर है पाप का र्र, शरीर से होना है मुि। यहां ऐसे ग्रंथ हैं वजनमें विखा है कक सािु के शरीर पर अिर मैि जम जाए तो उसे हाथ से वनकािने की मनाही है। अिर िह वनकािता है तो िह शरीरिादी, मैटीररयविस्ट है। उसे ििे हुए मैि को वनकािना नहीं है क्योंकक शरीर तो मैि का र्र है, 221



तुम्हारे वनकािने से क्या होिा? शरीर को सुंदर बनाने की चेिा क्यों? मजबूरी है कक शरीर को झेिना पड़ रहा है। वजनकी दृवि ऐसी होिी िे जीिन को कै से सुंदर बना पाएंिे, जीिन को कै से िवत दे पाएंिे? िे संिीत के नये-नये रूपों पर जीिन को कै से िवतमान करें िे? कै से नये वशखर खोजेंिे जहां जीिन और ऊंचा हो जाए, जहां जीिन और प्रीवतकर हो जाए, जहां जीिन और प्रेम बन जाए, प्रकाश बन जाए? नहीं, िे रुक जाएंिे, ठहर जाएंिे। जब जीिन ऐसा है, असार है, जनंकदत है, छोड़ दे ने योग्य है तो उसे बदिने की क्या जरूरत है? ढो िो बोझ को ककसी तरह, आएिी मौत और छु टकारा हो जाएिा। ककसी तरह बोझ को राम-राम कह कर सह िेना है। उसे बदिने का कोई सिाि नहीं है। जब तक यहां यह दृवि है भारत कभी क्रांवतकारी नहीं हो सकता। दूसरा जबंदु यह है कक भारत की सारी जचंतना, सारी विचारणा, सारी प्रवतभा अतीतोन्मुखी है। अतीतोन्मुखी दे श कभी भी िवतमान नहीं होता। िवतमान िे होते हैं जो भविष्योन्मुखी हैं, जो आिे दे ख रहे हैं-आिे जहां अभी कु हासा छाया हुआ है और कु छ भी कदखाई नहीं पड़ता। आिे जहां अभी सब शून्य है और सब वनर्मित करना है। हम दे ख रहे हैं पीछे जहां सब वनर्मित हो चुका है और हमें कु छ भी करने को शेष नहीं रहा है। अतीत में हम क्या कर सकते हैं? अतीत िह है जो हो चुका, जो बीत चुका, जो पूरा हो चुका। अतीत के र्ि पक िए। अब उनमें कु छ होना नहीं है। अब हम िाख उपाय करके अतीत के साथ कु छ भी नहीं कर सकते। अतीत के साथ संबंवित भी नहीं हो सकते। अतीत जा चुका, िह मर चुका, िह हो चुका। अब उसमें करने के विए कु छ भी शेष नहीं रहा है, िेककन हम अतीत की तरर् ही दे ख रहे हैं जो मृत और वस्थर हो िया है। ऐसी जावत की चेतना भी जो अतीत को दे खती रहेिी, िीरे -िीरे उतनी ही वस्थर और मृत हो जाएिी तो आश्चयि नहीं। क्योंकक जो हम दे खते हैं और वजसे हम आममसात करते हैं और जो हमारे प्राणों के दपिण में छवि बनाता है, िीरे -िीरे हमारे प्राण भी उसी रूप में ढि जाते हैं और वनर्मित हो जाते हैं। भविष्य की तरर् दे खना उस अनजान और अज्ञात की तरर् दे खना है, जो अभी हुआ नहीं, होने िािा है, वजसके साथ अभी कु छ ककया जा सकता है। अभी हजार विकल्प हैं वजनमें से एक चुनना है, वजनमें से हम कोई भी चुन सकते हैं। हमें स्ितंत्रता है कक हम पूिि जाएं कक पवश्चम, हम क्या करें और क्या न करें । अभी भविष्य को बनाना है इसविए जो भविष्य की तरर् दे खते हैं िे स्रिा हो जाते हैं, िे वनमािता हो जाते हैं और जो अतीत की तरर् दे खते हैं िे के िि द्रिा रह जाते हैं, क्योंकक अतीत को वसर्ि दे खा जा सकता है और कु छ भी नहीं ककया जा सकता। िे के िि दशिक रह जाते हैं, तमाशबीन, जो दे ख रहे हैं अतीत के िंबे इवतहास को कक राम हुए, कृ ष्ण हुए, महािीर हुए, बुद्ध हुए--और दे खते चिे जा रहे हैं और दे खते चिे जा रहे हैं। अतीत को दे खने िािी कौम एक तमाशबीन कौम हो जाती है, भविष्य की तरर् दे खने िािी कौम एक सजिक कौम हो जाती है। तमाशबीन कै से क्रांवतकारी हो सकते हैं? स्रिा ही हो सकते हैं क्रांवतकारी। हमारी भविष्य की सारी चेतना अतीत में वथर हो िई है, एक रुग्ण र्ाि बन िया है और हम िहीं िौट कर दे खते हैं। हमारी वस्थवत िैसी है जैसे कोई कार में पीछे िाइट ििा िे। िाड़ी आिे चिी और प्रकाश पीछे छू ट िए रास्ते पर पड़े। जजंदिी की िाड़ी आिे ही चि सकती है, पीछे जाने का कोई मािि नहीं है। वजन रास्तों को हम पार कर आए, िे विर िए और समाप्त हो िए, शून्य हो िए। वजस क्षण से िुजर िए हैं िे नहीं हैं, उनमें िापस नहीं जाया जा सकता है, उनमें िौटने का कोई उपाय नहीं। जाना तो आिे ही पड़ेिा, यह मजबूरी है, उससे विपरीत जाना असंभि है। भारत ऐसे ही चि रहा है। हम दे ख रहे हैं पीछे और चि रहे हैं आिे। तो रोज विरते हैं, रोज विरते जाते हैं और वजतने ही विरते हैं उतने ही र्बड़ा कर और पीछे की तरर् दे खने ििते हैं और कहते हैं--दे खो, राम 222



ककतने अच्छे थे, िे कभी नहीं विरते थे। दे खो, रामराज्य ककतना अच्छा था। रामराज्य चावहए, सतयुि चावहए, जो बीत िया स्िणि-युि, िह चावहए, क्योंकक िे िोि कभी नहीं विरते थे और हम विर रहे हैं। इसका मतिब हुआ कक हम भ्ि हो िए, हम पवतत हो िए, इसविए हम विर रहे हैं। मैं आपसे कहना चाहता हं कक हम इसविए नहीं विर िए हैं कक हम भ्ि और पवतत हो िए, बवल्क हम इसविए विर िए हैं कक हम पीछे की तरर् दे ख रहे हैं। और अिर राम नहीं विरे थे तो िे इस बात का सुबूत हैं कक िे आिे की तरर् दे खने िािे िोि रहे होंिे। हम पीछे की तरर् दे ख रहे हैं, इसविए विर रहे हैं। पीछे की तरर् दे खने िािा कोई भी विरे िा। जो भविष्य की तरर् दे खता है िह ितिमान को भी दे खने ििता है क्योंकक भविष्य प्रवतपि ितिमान बन रहा है। जो अतीत की तरर् दे खता है िह ितिमान को भूि जाता है। जब ितिमान अतीत बन जाता है तभी िह उसको दे खता है। ितिमान िह जबंदु है जहां से भविष्य अतीत बनता है। अिर आप भविष्योन्मुखी हैं तो आप भविष्य को दे खेंिे और बनते हुए भविष्य को दे खेंिे जो ितिमान में आ रहा है। अिर आप अतीतोन्मुखी हैं तो आप अतीत को दे खेंिे और उस ितिमान को दे खेंिे जो अतीत बन िया है। िेककन जो अतीत बन िया है िह हाथ के बाहर हो िया है। िे पक्षी उड़ चुके, अब कोई उपाय नहीं रहा। अब हम कु छ भी नहीं कर सकते। इसविए भारत के मन में एक भाि पैदा हो िया कक कु छ भी नहीं ककया जा सकता। एक भाग्यिादी रुख पैदा हो िया है कक कु छ भी नहीं ककया जा सकता। जो हो िया, िह हो िया, अब कु छ उपाय नहीं है। िीरे -िीरे यह बात हमारे प्राणों में इतनी िहरी बैठ िई है कक कु छ भी नहीं हो सकता। जो भविष्य को दे खेिा उसे ििेिा कक सब कु छ हो सकता है, अभी कु छ भी हो नहीं िया है, अभी सब होने को है। अभी हाथ में है बात। अभी पैर उठाना है मुझे। मैं वनणाियक हं कक ककस रास्ते पर पैर उठाऊं। हजार रास्ते खुिते हैं और चुनाि मेरे हाथ में है। मुझे तय करना है कक मैं ककस रास्ते पर जाऊं। भविष्योन्मुखी व्यवि भाग्यिादी नहीं होता, बह पुरुषाथििादी होता है। अतीतोन्मुखी भाग्यिादी हो जाता है। भाग्यिाद में क्रांवत के विए कोई संभािना नहीं। पुरुषाथििादी दृवि हो तो क्रांवत की संभािना है। इसविए दूसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हं कक जब तक हम अतीत से वर्रे और बंिे हैं तब तक हम क्रांवत के विए मुि नहीं हो सकें िे। जो जा चुका उस अतीत को जाने दें , अब उसे रोक कर मत पकड़ें। आपके रोकने से िह रुके िा नहीं। िह तो जा चुका, िह बीत चुका, उसे बीत जाने दें । आपको जाना है आिे। वजिान ने एक छोटी सी बात कही है। ककसी ने उससे पूछा कक हम अपने बच्चे को प्रेम करें या न करें ? तो वजिान ने कहा कक तुम अपने बच्चे को प्रेम करना, िेककन कृ पा करके अपना ज्ञान उन्हें मत दे ना। क्योंकक बच्चे उस जित को जानेंिे जो तुमने नहीं जाना और तुमने जो जाना है उसको बच्चे अब कभी भी नहीं जानेंिे, िह जा चुका। तो उन्हें उससे मत बांि िेना जो तुम्हारा ज्ञान है। अपना प्रेम दे ना और उन्हें मुि करना और उन्हें समथि बनाना कक िे अतीत से मुि हो सकें ताकक भविष्य का साक्षामकार कर सकें । और हम क्या कर रहे हैं हजारों िषों से? हम यह कर रहे हैं कक प्रेम हम चाहे वबल्कु ि न दे पाएं िेककन ज्ञान पूरी तरह दे दे ना है। प्रेम की झंझट में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है िेककन ज्ञान पूरा का पूरा दे दे ना है, रत्ती-रत्ती दे दे ना है। जो जाना है वपछिी पीढ़ी ने उसको पूरी तरह थोप दे ना है बच्चे के मन पर। उसके मन को ऐसा बना दे ना है कक िह कभी भी भविष्य के विए ताजा और नया न रह सके और उसके पास की सब ताजिी, सब नयापन, नये के अनुभि की क्षमता और साहस--सब खो जाए। शायद आपने सुना हो, िाओमसु नाम का एक आदमी चीन में हुआ। िोि कहते हैं िह बूढ़ा ही पैदा हुआ, अस्सी साि का ही पैदा हुआ। कहानी ऐसी है कक िाओमसु जब मां के पेट में था और नौ महीने पूरे हुए और पैदा 223



होने का िि आया तो उसे बहुत िर ििा क्योंकक मां का पेट पररवचत था, नौ महीने तक िह उसमें बड़ी शांवत से रहा था। सब सुवििा थी। पता नहीं मां के पेट के बाहर जो दुवनया हो िह कै सी हो? वमत्र हो कक शत्रु? भोजन वमिे न वमिे? िाओमसु िर िया और उसने पैदा होने से इनकार कर कदया और िह अस्सी साि तक मां के पेट में ही बना रहा इस िर से कक जजंदिी पता नहीं कै सी हो! िह बूढ़ा हो िया और उसके बाि सर्े द हो िए। जब मां मरने के करीब आई तो िाओमसु को पैदा होना पड़ा। कर्र कोई उपाय न था। तो िाओमसु पैदा हुआ िेककन सर्े द दाढ़ी िािा आदमी, बूढ़ा आदमी! कहानी तो कहानी है। ऐसा हुआ तो नहीं होिा, िेककन चेतना के ति पर ऐसी र्टनाएं र्टती हैं। भारत में कोई बच्चा, बच्चा पैदा नहीं होता। पैदा होते ही बूढ़ा हो जाता है। उसे बूढ़ा कर कदया जाता है, उसके बचपन को तोड़ कदया जाता है। उसे बुढापे की िंभीरता दे दी जाती है, उसे बूढ़ेपन के ख्याि दे कदए जाते हैं। उसे बूढ़े का भय दे कदया जाता है, उसे बूढ़े की सुरक्षा दे दी जाती है। और कर्र िह कभी न बच्चा होता है, न जिान होता है, िह करीब-करीब बूढ़ा ही रहता है। यह जो बुढ़ापा है, यह अतीत की तरर् दे खने से पैदा हुआ है, भविष्य की तरर् हम दे खेंिे तो कर्र हम बच्चे की तरह हो जाएंिे। इस जावत की चेतना को कर्र बािपन की जरूरत है, कर्र बच्चे जैसे हो जाने की जरूरत है। क्रांवत का यह अथि है कक हर पीढ़ी कर्र नई हो जाए और हर पीढ़ी कर्र जीिन का नया साक्षात करने को वनकि पड़े--नई खोज में, नई यात्रा में, अज्ञात में, खतरे को मोि िेने ििे और खतरे में जीने ििे। नीमशे कहता था, मैंने जीिन में एक ही सूत्र पाया : "वजन्हें जीवित रहना है और जीिन का पूरी तरह अथि जानना है उनके विए एक ही सूत्र है--खतरे में जीओ, विि िेंजरसिी।" एक र्ू ि िह भी है जो आपके र्र में पैदा होता है, आप र्र के कोने में एक र्ू ि ििा िेते हैं। एक र्ू ि िह भी है जो पहाड़ के दरार में पैदा होता है। आकाश के बादि उसे टक्कर मारते हैं और हिाओं के तूर्ान उसकी जड़ों को वहिाते हैं और िह एकांत नीरि पहाड़ के कोने पर खड़ा होता है। िह प्रवत पि मरने को तैयार है और उस प्रवत पि मरने की तैयारी में ही जीिन का रस है और आनंद है। र्र के कोने में पैदा हुए र्ू िों को कु छ भी पता नहीं है कक पहाड़ों के ककनारों पर जो र्ू ि वखिते हैं उनका आनंद क्या है, उनकी खुशी क्या है, िे क्या जान पाते हैं? र्रों की सुरक्षा में बैठे हुए िोिों को कु छ भी पता नहीं है उन िोिों का, जो िौरीशंकर के वशखरों पर चढ़ते हैं, जो प्रशांत समुद्र की िहराइयों को नापते हैं, जो उत्ताि तरं िों में जीिन और मौत से खेिते हैं। उन्हें कु छ भी पता नहीं कक जीिन के और भी अथि हैं, जीिन की और भी प्रेरणाएं हैं, जीिन की और भी िन्यताएं हैं। उन्हें कु छ भी पता नहीं। उन्हें पता हो भी कै से सकता है? अकबर के दरबार में एक कदन दो जिान राजपूत आ िए थे। नंिी तििारें उनके हाथ में थीं। दोनों जिान हैं, दोनों जुड़िां भाई हैं। दोनों की सूरतें दे खने जैसी हैं। उनकी चमक, उनकी उमर्ु ल्ि जजंदिी। िे अकबर के सामने खड़े हो िए हैं। अकबर ने कहा : "तुम क्या चाहते हो?" उन्होंने कहा : "हम नौकरी की तिाश में वनकिे हैं। हम बहादुर आदमी हैं, कोई बहादुरी की नौकरी चाहते हैं।" अकबर ने पूछा : "बहादुरी का कोई प्रमाण-पत्र िाए हो?" उन दोनों की आंखों में जैसे आि चमक िई। उन्होंने कहा : "आप पािि मािूम होते हैं। दूसरे के प्रमाण-पत्र िे िे जाते हैं जो कायर हैं। हम ककसका िाएंिे? बहादुरी का प्रमाण-पत्र नहीं हैं, प्रमाण दे सकते हैं।" अकबर ने कहा : "दे दो, प्रमाण-पत्र क्या है?" और एक क्षण में दो तििारें चमकीं और एक दूसरे की छाती में र्ुस िईं। िे दोनों जिान नीचे पड़े थे और खून के र्व्िारे छू ट रहे थे। उनके चेहरे ककतने प्यारे थे! अकबर तो एकदम र्बड़ा िया। उसने तो यह सोचा भी नहीं था कक यह हो जाएिा। उसने अपने राजपूत सेनापवतयों को 224



बुिाया और कहा कक बड़ी भूि हो िई। यह क्या हुआ? उन सेनापवतयों ने कहा : "आपको पता नहीं, राजपूत से बहादुरी का प्रमाण पूछते हैं? राजपूत के पास बहादुरी का इसके वसिाय क्या प्रमाण है कक िह प्रवतपि मौत के साथ जूझने को तैयार है? और बहादुरी का प्रमाण हो भी क्या सकता है? जजंदिी का इसके वसिा और क्या प्रमाण है कक िह मौत से िड़ने को हर र्ड़ी राजी है?" भारत मर िया है। उसने मौत से िड़ने की तैयारी छोड़ दी है। तीसरी बात आपसे कहना चाहता हं-भारत ने मौत से िड़ने की तैयारी छोड़ दी है हजारों साि से और इसविए जजंदिी कु म्हिा िई और मर िई। जजंदिी जीतती है मौत की चुनौती में; जहां मौत प्रवतपि है िहां जजंदिी विकवसत होती है। मौत की चुनौती में ही जजंदिी का जन्म है। िेककन हमने बहुत पहिे मौत से िड़ना छोड़ कदया और बड़ी तरकीब से िड़ना छोड़ा। हम बड़े चािाक िोि हैं। हमसे बुवद्धमत्ता और होवशयारी में दुवनया में शायद कोई न जीते। हमें मौत का इतना िर है कक हमने यह वसद्धांत बना विया कक आममा अमर है आममा मरती नहीं। इससे आप यह न सोचें कक हमको पता चि िया है कक आममा अमर है। हमें कु छ पता नहीं है, हम मौत से इतने भयभीत हैं कक हम कोई सांमिना चाहते हैं कक कोई वसद्ध कर दे कक आममा अमर है तो मौत का िर हमारे कदमाि से वमट जाए। यहां ये दोनों बातें एक साथ र्रटत हो िईं। हमसे ज्यादा मौत से िरने िािा कोई है आज पृथ्िी पर? और हम हैं आममा की अमरता को मानने िािे िोि। इन दोनों में आपको कोई संिवत कदखती है? जो आममा को अमर मानते थे उनके विए मौत तो खमम हो िई थी, िे तो इस सारी दुवनया में मौत को खोजते हुए र्ूम सकते थे। िे आमंत्रण दे सकते थे कक मौत आ, िेककन हम कहीं नहीं िए र्र की दीिािों को छोड़ कर। हम हमेशा िरे हुए रहे हैं। हमारे प्राणों के िहरे से िहरे में मौत का भय है। उस भय को वमटाने के विए हम यह दोहराते हैं कक आममा अमर है, आममा अमर है। मैं यह नहीं कह रहा हं कक आममा अमर नहीं है, िेककन आममा का पता उन्हें चिता है जो मौत से जूझते हैं। और मौत से िुजरते हैं। र्र में बैठ कर और ककताबों से सूत्र वनकाि कर कक आममा अमर है, आममा अमर है, इसका जाप करने से आममा की अमरता का पता नहीं चिता। युद्ध के मैदानों में शायद ककसी-ककसी को आममा की अमरता का पता चि जाता हो िेककन र्र के पूजािृहों में दरिाजे बंद करके , िूप-दीप जिा कर जो पाठ करते हैं कक आममा अमर है उनको कभी भी पता नहीं चिता। आममा की अमरता का अनुभि िहीं होता है जहां मौत चारों तरर् खड़ी हो। स्कू ि में अध्यापक बच्चे को पढ़ाता है, तो सर्े द दीिाि पर नहीं विखता सर्े द खल्िी से, क्योंकक सर्े द दीिाि पर खल्िी से विखा हुआ कु छ भी कदखाई नहीं पड़ेिा। िह विखता है कािे तख्ते पर। क्यों? क्योंकक कािे तख्ते पर ही सर्े द रे खाएं उभरती हैं और कदखाई पड़ती हैं। मौत से जूझने में ही अमरता का पहिा अनुभि होता है। मौत की पृष्ठभूवम में ही अमरता के पहिी बार दशिन होते हैं। मौत की कािी दीिािों में ही अमरता की शुभ् रे खाएं चमकती हैं और पता चिता है कक मृमयु नहीं है। िेककन हम--मृमयु नहीं है, मृमयु नहीं है, अमर हैं, अमर हैं--इसका जाप कर रहे हैं और पूरे िि िर रहे हैं और उसी िर की िजह से जाप कर रहे हैं। जो भीतर कायर बैठा है, िरा हुआ आदमी, उसको पता चिता है कक रात अंिेरी है, मैं अके िा चिा जाता हं। इन्हें--जो कह रहे हैं आममा अमर है, आममा अमर है, आममा की अमरता का कोई पता नहीं है। ये िर को वछपाने की कोवशश कर रहे हैं, ये िर को दबाने की कोवशश कर रहे हैं। आममा की अमरता के वसद्धांत में ये वछपा िेना चाहते हैं उस भय को, जो जीिन के प्रवतपि मौत में होने से प्रकट होता है। िेककन जो ऐसा मान िेंिे कक आममा अमर है, िे जजंदिी का जो प्रवतपि बदिता हुआ रूप है, उसके रस को खो दें िे। जजंदिी तो 225



प्रवतपि मृमयु के ककनारे खड़ी है, ककसी भी क्षण मौत हो सकती है। एक पमथर का टु कड़ा है, िह पड़ा हुआ है सैकड़ों िषों से आंिन के ककनारे , और एक र्ू ि आज सुबह ही वखिा है। र्ू ि और पमथर में कौन है प्रीवतकर आपको? कौन खींच िेता है प्राणों को? पमथर नहीं, र्ू ि। क्योंकक र्ू ि प्रवतक्षण मृमयु से जूझ रहा है, सांझ तक मौत आ जाएिी और र्ू ि का जीिन वििीन हो जाएिा। पमथर कर्र भी पड़ा रहेिा। र्ू ि का सौंदयि कहां से आ रहा है? र्ू ि का सौंदयि आ रहा है, पृष्ठभूवम में खड़ी हुई मौत से उसके जूझने से। ककतनी अदभुत है यह दुवनया। एक छोटा सा र्ू ि भी चौबीस र्ंटे मौत से िड़ पाता है। छोटा-सा र्ू ि, नाजुक और मौत से जूझ िेता है चौबीस र्ंट!े उसी जूझने में उसे पता चिता है कक वमट जाएिी दे ह, विर जाएंिी पंखुवड़यां, िेककन मैं कर्र भी रहंिा क्योंकक मौत मुझे कै से वमटा सकती है? उस जूझने से ही यह बि, उस जूझने से ही यह शवि और यह अनुभि आता है कक मौत मुझे नहीं वमटा सकती। विर जाएंिी पंखुवड़यां, विर जाएिी दे ह, िेककन मैं? मैं कर्र भी हं और कर्र भी रहंिा। मैं आपसे कहना चाहता हं कक भारत को मौत का साक्षामकार करना है। छोड़ दे ने हैं वसद्धांत, अमर जजंदिी को दे खनी है और जजंदिी जरूर िहीं है जहां मौत है। उससे जूझना है, िड़ना है। बीमाररयों से िड़ना है, िरीबी से िड़ना है। आप िौर करें जरा, मौत से जो कौम नहीं िड़ती िह िरीबी से कै से िड़ेिी? बीमारी से कै से िड़ेिी? िरीबी और बीमारी मौत की शक्िें हैं। हम बड़े होवशयार िोि हैं। हम तो िरीब को कहते हैं, दररद्रनारायण, तो नारायण को कै से वमटाएंिे? प्िेि नारायण, मिेररया नारायण, तो कर्र उसको वमटाएंिे कै से? तो उनकी पूजा करो। िैसे दे िी-दे िताओं की कमी नहीं हैं यहां; और दे िी-दे िता वबठा िो। दररद्रता है महामारी, िरीबी है बीमारी, िरीबी है मौत। उनको वमटा दे ना है, िेककन वजन िोिों ने मौत को ही स्िीकार कर विया है आममा की अमरता की बातें करके , िरीबी को भी स्िीकार कर विया है, बीमारी को भी स्िीकार कर विया है, उन्होंने िड़ाई छोड़ दी क्योंकक िड़ाई में िर है, िड़ाई में मर जाने का भय है। कौन िड़े, कौन जूझे? अपने र्र में बैठो, चुपचाप रहो, शांवत से वजयो, जो होता है होने दो। मुल्क िुिाम बने, बनने दो, बीमारी आिे आने दो, िरीबी आिे आने दो, यह सब भाग्य है, िड़ने से कु छ भी नहीं होिा! अपने को बचा िो उतना ही कार्ी है। हम अपने को भी कहां बचा पाए? िह सारी जचंतना भ्ांत वसद्ध हुई। िेककन अब तक िह भ्म हमारा टू टा नहीं है। मौत के वजतने रूप हैं हमें उन सबसे िड़ाई िड़नी है और अमरता के वसद्धांत में वछप कर बैठ नहीं जाना है। वनवश्चत ही जजंदिी अमर है िेककन उनको ही पता चिती है जो मौत से जूझते हैं और संर्षि करते हैं। चौथी बात आपसे कहना चाहता हं कक इस दे श में हमने अब तक आनंद के विए, खुशी के विए, रस के विए कोई उदभािना खड़ी नहीं की। हमारा सारा जचंतन दुखिादी है, वनराशािादी है। इसके पहिे कक कोई जजंदिी में चिे, वनराशा उसे पकड़ िेती है, र्नर्ोर अंिकार उसे र्ेर िेता है। पहिे से ही हम जान िेते हैं कक जीत असंभि है। जीिन दुख है, जन्म दुख है, जिानी दुख है, प्रेम दुख है, सुख यहां कहीं भी नहीं है। मैंने सुना है, एक कदन स्ििि के रे स्तरां में--िहां भी रे स्तरां तो होंिे ही--बुद्ध, कनफ्यूवशयस और िाओमसु का वमिना हुआ। तीनों बैठ कर िप-शप कर रहे हैं और तभी एक अप्सरा हाथ में एक सुराही विए हुए नाचती हुई आई और उसने कहा : "आप िोि जीिन का रस पीएंिे?" जीिन का रस? बुद्ध ने तो सुनते ही आंखें बंद कर िीं और कहा : "जीिन दुख है, असार है, कोई रस नहीं है जीिन में।" िेककन कनफ्यूवशयस आिी आंख खोि कर दे खने ििा। उसने कहा : "जीिन का रस? िेककन वबना वपये मैं कै से कु छ कहं? थोड़ा चखना जरूरी है।" कनफ्यूवशयस हमेशा मध्यमािी था। आिी आंख खोिता था, आिी आंख बंद रखता था। "िोल्िन मीन" का 226



वसद्धांत उसने ही विकवसत ककया दुवनया में कक हमेशा बीच में रहो, न इस तरर्, न उस तरर्। बुद्ध तो एकदम आंख ही बंद कर विए, कक नहीं, दुख है जीिन, उसमें क्या रहा? कड़िा और वति। नहीं! उसे नहीं पीना है। िेककन िाओमसु पूरी आंख खोि कर उस अप्सरा को दे खने ििा, िह बहुत सुंदर थी। उसकी सुराही को दे खने ििा, उस पर बड़े बेि-बूटे खुदे थे। जरूर उसके भीतर कु छ रस होिा और िह खड़ा होकर नाचने ििा। कनफ्यूवशयस ने एक प्यािी में थोड़ा सा रस विया और चखा और कहा : "नहीं, न बेस्िाद है, न स्िादपूणि है, मध्य में है। िे भी ठीक हैं जो पीते हैं, िे भी ठीक हैं जो नहीं पीते हैं क्योंकक कोई खास बात नहीं।" िेककन िाओमसु ने तो नाचते हुए पूरी सुराही हाथ में िे िी और कहा कक वसर्ि स्िाद चखने से क्या पता चिता है जब तक कक पूरा न पी जाओ, और िह पूरी सुराही पी िया। बुद्ध आंख बंद ककए बैठे रहे, कनफ्यूवशयस आिी आंखें खोिे रहा और िाओमसु नाचने ििा और िीत िाने ििा और कहने ििा : "नासमझ हो तुम, जजंदिी पूरी पीते तभी पता चि सकता कक क्या है। और अब मैंने पूरी पी िी है, िेककन मैं कहने में असमथि हं, क्योंकक जीिन के स्िाद को चखा तो जा सकता है िेककन कहा नहीं जा सकता।" भारत ने जीिन के स्िाद को चखा ही नहीं। हमने आनंद की उदभािना नहीं की, हमने दुख की उदभािना की। हमने प्रकाश को अितीणि करने की चेिा नहीं की, अंिकार को स्िीकार ककया। हमने कोई वििायक दृविकोण न विया, के िि वनषेिाममक िृवत्त पकड़ िी। जो चिने के पहिे जानती है कक हार जाएंिे, िड़ने के पहिे जानती है कक जीत असंभि है, ऐसी कौम कै से क्रांवत िा सकती है? जापान के एक छोटे से राज्य पर एक बड़े राज्य ने हमिा बोि कदया था। राज्य था छोटा, सेनाएं थीं कम। सेनापवत र्बड़ा िया और उसने राजा को जाकर कहा कक युद्ध में सेनाओं को िे जाना पाििपन है। दुश्मन दस िुनी ताकत का है, हार वनवश्चत है। िोिों को क्यों कटिाना है िे जाकर, व्यथि उनकी हमया का दोष अपने ऊपर मैं नहीं िूंिा। मुझे आप छु ट्टी दे दें । मुझे यह नौकरी नहीं चावहए, मैं नहीं िे जा सकता हं सेनाओं को युद्ध में। यह सीिी हार है, न हमारे पास सािन हैं, न सामग्री है, न सैवनक हैं। राजा भी जानता था कक बात समय है। कर्र राजा को ख्याि आया कक एक र्कीर है उस िांि में। कई बार जब चीजें उिझ िई थीं, तो राजा उसके पास िया था। आज शायद िह कोई रास्ता बता सके । सेनापवत को िेकर उस र्कीर के पास राजा िया। र्कीर अपना तंबूरा बजा रहा था और िीत िा रहा था। राजा ने कहा कक बंद करो तंबूरा। राज्य पर मुसीबत है और सेनापवत कहता है कक जीत असंभि है। क्या कोई रास्ता हो सकता है? उस र्कीर ने कहा : "पहिा रास्ता, सेनापवत को छु ट्टी दे दो क्योंकक यह आदमी िित है। जो आदमी पहिे से कहता है कक जीत असंभि है उसकी तो जीत कभी हो ही नहीं सकती। यह तो वनराशािादी है, इसको तो जाने दो। इसको वजतना जल्दी भिाओ उतना अच्छा है क्योंकक बीमाररयां संक्रामक होती हैं। कहीं सैवनकों को पता न चि जाए कक सेनापवत को बीमारी हो िई है वनराशा की, नहीं तो कर्र जीत सकना सच में मुवश्कि हो जाएिा। इसको जाने दो। रह िई जिह सेनापवत की, जिह मैं भर दूंिा। कि सुबह सेना कू च हो जाएिी। सेना हम िे जाएंिे और जीत कर िौट आएंिे।" राजा तो बहुत िरा। यह समािान उसने नहीं सोचा था। र्कीर को तििार भी पकड़नी आती है, यह भी संकदग्ि था। िह तो तंबूरा बजाता रहा था। तंबूरा बजाने िािा तििार कै से पकड़ेिा? तंबूरा पकड़ने की आदतें और होती हैं, तििार की आदतें और होती हैं, और अिर तंबूरे की तरह कोई तििार को पकड़ िे तो जीत नहीं



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हो सकती। िेककन अब उस र्कीर से कु छ कहना भी मुवश्कि था और दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था, मजबूरी थी। उसकी बात मान िेनी पड़ी। सेनापवत तो र्बड़ा िया। उसने कहा : "मैं होता तो थोड़ा ठीक भी था, दोचार कदन हम िड़ते भी, जीत तो होनी नहीं थी िेककन अब िड़ाई भी नहीं होनी है। सैवनक तो और र्बड़ा जाएंिे, इस पििे को आप भेज रहे हैं सेनापवत बना कर।" िेककन जब कोई बुवद्धमान सेनापवत बनने को राजी न हो तो कर्र पािि को चुनने के अवतररि मािि क्या है? र्कीर दूसरे कदन र्ोड़े पर सिार हो िया और चि पड़ा। िेककन र्ोड़े पर बैठा िह तंबूरा बजा रहा है और सैवनक बहुत हैरान हैं कक ककस भांवत की युद्ध की यह किा है। अब क्या होिा? िेककन उन्हें पता नहीं था कक र्कीर उनसे ज्यादा मनुष्य की आममा को जानता है। जीतते िे ही हैं जो िीत िाते हुए जाते हैं। यह उन सैवनकों को पता नहीं था। िे सोचते थे कक तििार से ही जीत होती है। उन्हें पता नहीं था कक एक और जीत भी है जो तििार से बड़ी है। हाथ में तििार हो और प्राणों में िीत न हो तो जीत कभी नहीं होती और िैसी जीत हो भी जाए तो हार से बदतर होती है। जीत भी जाते हैं और जीत का कोई आनंद भी प्राणों को स्पशि नहीं कर पाता। िे युद्ध-क्षेत्र के वनकट पहुंच िए, सीमा की नदी आ िई। उस पार दुश्मन खड़ा है, इस पार िे पहुंच िए। सुबह के सूरज की रोशनी बरसती है और एक मंकदर का किश कदखाई पड़ता है। नदी के इसी पार मंकदर है। िह र्कीर रुक िया िहां और उसने सैवनकों से कहा : रुको दो क्षण, मैं जरा इस मंकदर के दे िता से पूछ िूं। हमेशा की मेरी यह आदत रही है, जब भी ककसी काम को करने जाता हं इससे पूछ िेता हं कक जीत होिी या हार? कर पाऊंिा कक नहीं? तो पूछ िें इससे। अिर यह कह दे िा कक जीत होिी तो कर्र दुवनया में ककसी की कर्कर नहीं। तुम चाहो न भी जाना, मै अके िा ही चिा जाऊंिा। िेककन अिर इस दे िता ने कह कदया कक जीत नहीं होिी तो नमस्कार! न मैं जाने िािा हं, न तुम। सब िापस िौट चिेंिे। क्योंकक जब दे िता राजी न हो तो क्या र्ायदा। सैवनकों ने कहा : िह तो हम समझ िए, िेककन हमें कै से पता चिेिा कक दे िता क्या कह रहा है? आप ही व्याख्याकार रहेंिे। तो हमें कै से पता चिेिा कक दे िता जो कह रहे हैं िही आप हमें बता रहे हैं? उसने कहा : नहीं, अके िे में नहीं पूछूंिा, दे िता से तुम्हारे सामने ही पूछूंिा। उसने जेब से एक चमकता हुआ सोने का रुपया वनकािा और कहा : हे मंकदर के दे िता, मैं यह रुपया र्ें कता हं। यह अिर सीिा विरा तो हम युद्ध में चिे जाएंिे, समझेंिे कक तूने कहा कक जीत होिी। अिर रुपया उिटा विरा, तो हम िापस िौट जाएंिे। उन सैवनकों की आंखें टंिी रह िईं। रुपया ऊपर िया, सूरज की रोशनी में चमका। िे सब दे ख रहे हैं, उनकी श्वासें रुक िई हैं, उनके जीिन-मरण का सिाि है। कर्र रुपया नीचे विरा और उनके प्राण भी चमक िए। रुपया सीिा विरा और उस र्कीर ने कहा : अब हारने का सिाि नहीं, अब बात खमम हो िई। अब बात तय हो चुकी। रुपया उसने झोिी में िाि विया और िे युद्ध के मैदान में चिे िए। दस कदन बाद िे जीत कर दस िुनी ताकत से िौटे। जब मंकदर के पास आ िए, तो सैवनकों ने कहा : रुको, मंकदर के दे िता को िन्यिाद दे दें वजसने हमें वजताया। उस र्कीर ने कहा : छोड़ो! दे िता का इसमें कोई हाथ नहीं है। अिर िन्यिाद दे ना है तो मुझी को दो। िोिों ने कहा : नहीं, नहीं! ऐसा कै से कहते हैं आप? दे िता ने ही तो हमको कहा था कक जाओ, जीत आओिे। उसने कहा : तुम्हें पता नहीं, दे िता बेचारे का इससे संबंि ही नहीं है। उसने जेब से रुपया वनकािा और सैवनकों को हाथ में दे कदया। िह वसक्का दोनों तरर् सीिा था।



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भारत का पूरा इवतहास ऐसे वसक्के को पकड़े हुए है जो दोनों तरर् उिटा है। इसविए क्रांवत इस मुल्क में नहीं हो पाती। िेककन क्रांवत हो सकती है, होनी चावहए, इसके अवतररि हमारा कोई भविष्य नहीं है, हमारा कोई भाग्य नहीं है। िेककन जब तक हम इन बुवनयादी सूत्रों पर भारत की आममा को न बदि िें तब तक हमारी कोई सामावजक क्रांवत, कोई आर्थिक क्रांवत, कोई राजनीवतक क्रांवत कु छ मूल्य नहीं रखेिी। भारत में क्रांवत की जरूरत है, िेककन कै सी क्रांवत की? आध्यावममक क्रांवत की! अब तक जीिन के जो मूल्य रहे हैं िे िित थे। नये मूल्य स्थावपत करने हैं, उसके बाद ही राजनीवतक क्रांवत भी साथिक होिी और आर्थिक क्रांवत भी साथिक होिी, सामावजक क्रांवत भी साथिक होिी। िेककन अिर हमने उन मूल्यों को नहीं बदिा वजन पर हमारे प्राण अब तक रहे हैं तो हमारी और सारी क्रांवतयां पोच वसद्ध होंिी, उनसे कु छ पररितिन होने िािा नहीं।



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