Sanshipt Markandeya Purana in Hindi - संक्षिप्त मार्कण्डेयपुराण [1 ed.] [PDF]

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Sanshipt Markandeya Purana in Hindi - संक्षिप्त मार्कण्डेयपुराण [1 ed.] [PDF]

पराम्बा भगवतीकी विस्तृत महिमाका परिचय देनेवाले इस पुराणमें दुर्गासप्तशतीकी कथा एवं माहात्म्य, हरिश्चन्द्रकी कथा, मदालसा-

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Hindi Pages 503 Year 2017

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निवेदन
संक्षिप्त मार्कण्डेयपुराणकी विषय-सूची
चित्र-सूची
१- जैमिनि-मार्कण्डेय-संवाद—वपुको दुर्वासाका शाप
२- सुकृष मुनिके पुत्रोंके पक्षीकी योनिमें जन्म लेनेका कारण
३- धर्मपक्षीद्वारा जैमिनिके प्रश्नोंका उत्तर
४- राजा हरिश्चन्द्रका चरित्र
५- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गतिका वर्णन
६- जीवके जन्मका वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकोंका वर्णन
७- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापोंसे विाभिन्न नरकोंकी प्राप्तिका वर्णन
८- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित्‌के पुण्यदानसे पापियोंका उद्धार
९- दत्तात्रेयजीके जन्म-प्रसङ्गमें एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूयाजीका चरित्र
१०- दत्तात्रेयजीके जन्म और प्रभावकी कथा
११- अलर्कोपाख्यानका आरम्भ—नागकुमारोंके द्वारा ऋतध्वजके पूर्ववृत्तान्तका वर्णन
१२- पातालकेतुका वध और मदालसाके साथ ऋतध्वजका विवाह
१३- तालकेतुके कपटसे मरी हुई मदालसाकी नागराजके फणसे उत्पत्ति और ऋतध्वजका पाताललोकमें गमन
१४- ऋतध्वजको मदालसाकी प्राप्ति, बाल्यकालमें अपने पुत्रोंको मदालसाका उपदेश
१५- मदालसाका अलर्कको राजनीतिका उपदेश
१६- मदालसाके द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थके कर्तव्यका वर्णन
१७- श्राद्ध-कर्मका वर्णन
१८- श्राद्धमें विहित और निषिद्ध वस्तुका वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचारका निरूपण
१९- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्यका वर्णन
२०- सुबाहुकी प्रेरणासे काशिराजका अलर्कपर आक्रमण, अलर्कका दत्तात्रेयजीकी शरणमें जाना और उनसे योगका उपदेश लेना
२१- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
२२- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
२३- अलर्ककी मुक्ति एवं पिता-पुत्रके संवादका उपसंहार
२४- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवादका आरम्भ, प्राकृत सर्गका वर्णन
२५- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
२६- प्रजाकी सृष्टि, निवास-स्थान जीविकाके उपाय और वर्णाश्रम-धर्मके पालनका माहात्म्य
२७- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसहके स्थान आदिका वर्णन
२८- दुःसहकी सन्तानोंद्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्तिके उपाय
२९- दक्ष प्रजापतिकी संतति तथा स्वायम्भुव सर्गका वर्णन
३०- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
३१- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
३२- भारतवर्षमें भगवान् कूर्मकी स्थितिका वर्णन
३३- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
३४- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
३५- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
३६- राजा उत्तमका चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तरका वर्णन
३७- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
३८- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
३९- चाक्षुष मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
४०- वैवस्वत मन्वन्तरकी कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तरका संक्षिप्त परिचय
४१- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
४२- देवताओंके तेजसे देवीका प्रादुर्भाव और महिषासुरकी सेनाका वध
४३- सेनापतियोंसहित महिषासुरका वध
४४- इन्द्रादि देवताओंद्वारा देवीकी स्तुति
४५- देवताओंद्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिकाके रूपकी प्रशंसा सुनकर शुम्भका उनके पास दूत भेजना और दूतका निराश लौटना
४६- धूम्रलोचन-वध
४७- चण्ड और मुण्डका वध
४८- रक्तबीज-वध
४९- निशुम्भ-वध
५०- शुम्भ-वध
५१- देवताओंद्वारा देवीकी स्तुति तथा देवीद्वारा देवताओंको वरदान
५२- देवी-चरित्रोंके पाठका माहात्म्य
५३- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
५४- नवेंसे लेकर तेरहवें मन्वन्तरतकका संक्षिप्त वर्णन
५५- रौच्य मनुकी उत्पत्ति-कथा
५६- भौत्य मन्वन्तरकी कथा तथा चौदह मन्वन्तरोंके श्रवणका फल
५७- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
५८- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
५९- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
६०- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
६१- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
६२- राजा खनित्रकी कथा
६३- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
६४- राजा नरिष्यन्त और दमका चरित्र
६५- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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539 ।।



सं



ीह रः ।।







माक डेयपुराण



(स च , मोटा टाइप, केवल ह द )



वमेव माता च पता वमेव वमेव ब धु सखा वमेव । वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम दे वदे व ।।



सं० २०७४ कुल मु ण



इ क सवाँ पुनमु ण



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१,०३,०००



काशक— गीता ेस, गोरखपुर—२७३००५ (गो ब दभवन-कायालय, कोलकाता का सं थान) फोन : (०५५१) २३३४७२१, २३३१२५०; फै स : (०५५१) २३३६९९७ web : gitapress.org e-mail : [email protected] गीता ेस काशन gitapressbookshop.in से online खरीद।



।। ीह रः ।।



नवेदन पुराण भारत तथा भारतीय सं कृ तक सव कृ न ध ह। ये अन त ानरा शके भ डार ह। इनम इहलौ कक सुख-शा तसे यु सफल जीवनके साथ-साथ मानवमा के वा त वक ल य—परमा मत वक ा त तथा ज म-मरणसे मु होनेका उपाय और व वध साधन बड़े ही रोचक, स य और श ा द कथा के पम उपल ध ह। इसी कारण पुराण को अ य धक मह व और लोक यता ा त है; पर तु आज ये अनेक कारण से लभ होते जा रहे ह। पुराण क ऐसी मह ा, उपयो गता और लभताके कारण कुछ पुराण के सरल ह द -अनुवाद ‘क याण’के वशेषाङ् कोके पम समय-समयपर का शत कये जा चुके ह। उनम ‘सं त माक डेयपुराणाङ् क’ भी एक है। ये दोन पुराण सव थम संयु पसे ‘क याण’ के इ क सव (सन् १९४७ ई०) वषके वशेषाङ् कके पम का शत ए थे। प ात्, ालु पाठक क माँगपर अ य पुराने वशेषाङ् क क तरह इनके (संयु पम) कुछ पुनमु त सं करण भी का शत ए। पुराण- वषयक इन वशेषाङ् क क लोक यताको यानम रखते ए अब पाठक के सु वधाथ इस कारसे संयु दो पुराण को अलग-अलग थाकारम का शत करनेका नणय लया गया है। तदनुसार यह ‘सं त माक डेयपुराण’ आपक सेवाम तुत है। (इसी तरह ‘सं त पुराण’ भी अब अलगसे थाकारम उपल ध है।) ‘माक डेयपुराण’ का अठारह पुराण क गणनाम सातवाँ थान है। इसम जै म न-माक डेय-संवाद एवं माक डेय ऋ षका अभूतपूव आदश जीवन-च र , राजा ह र का च र - च ण, जीवके ज म-मृ यु तथा महारौरव आ द नरक के वणनस हत भ - भ पाप से व भ नरक क ा तका द दशन है। इसके अतर इसम सती मदालसाका आदश च र , गृह थ के सदाचारका वणन, ा -कम, योगचया तथा णवक म हमापर मह वपूण काश डाला गया है। इसम दे वता के अंशसे भगवती महादे वीका ाक और उनके ारा सेनाप तय स हत म हषासुर-वधका वृ ा त भी वशेष उ लेखनीय है। इसम ी गास तशती स पूण—मूलके साथ ह द -अनुवाद, माहा य तथा पाठक



व धस हत व तारसे व णत है। इस कार लोक-परलोक-सुधारहेतु इसका अ ययन अ त उपयोगी, मह वपूण और क याणकारी है। अतएव क याणकामी सभी साधक और ालु पाठक को इसके अ ययनअनुशीलन ारा अ धक-से-अ धक लाभ उठाना चा हये।



— काशक



सं वषय १२३४५६७८-



त माक डेयपुराणक वषय-सूची



जै म न-माक डेय-संवाद—वपुको वासाका शाप सुकृष मु नके पु के प ीक यो नम ज म लेनेका कारण धमप ी ारा जै म नके का उ र राजा ह र का च र पता-पु -संवादका आर भ, जीवक मृ यु तथा नरक-ग तका वणन जीवके ज मका वृ ा त तथा महारौरव आ द नरक का वणन जनक-यम त-संवाद, भ - भ पाप से वा भ नरक क ा तका वणन पाप के अनुसार भ - भ यो नय क ा त तथा वप त्के पु यदानसे पा पय का उ ार ९- द ा ेयजीके ज म- स म एक प त ता ा णी तथा अनसूयाजीका च र १०- द ा ेयजीके ज म और भावक कथा ११- अलक पा यानका आर भ—नागकुमार के ारा ऋत वजके पूववृ ा तका वणन १२- पातालकेतुका वध और मदालसाके साथ ऋत वजका ववाह १३- तालकेतुके कपटसे मरी ई मदालसाक नागराजके फणसे उ प और ऋत वजका पाताललोकम गमन १४- ऋत वजको मदालसाक ा त, बा यकालम अपने पु को मदालसाका उपदे श १५- मदालसाका अलकको राजनी तका उपदे श १६- मदालसाके ारा वणा मधम एवं गृह थके कत का वणन १७- ा -कमका वणन १८- ा म व हत और न ष व तुका वणन तथा गृह थो चत सदाचारका न पण १९- या य- ा , शु , अशौच- नणय तथा कत ाकत का वणन २०- सुबा क ेरणासे का शराजका अलकपर आ मण, अलकका द ा ेयजीक शरणम जाना और उनसे योगका उपदे श लेना २१- योगके व न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐ य तथा योगीक मु २२- योगचया, णवक म हमा तथा अ र का वणन और उनसे सावधान होना २३- अलकक मु एवं पता-पु के संवादका उपसंहार २४- माक डेय- ौ ु क-संवादका आर भ, ाकृत सगका वणन



२५- एक ही परमा माके वध प, ाजीक आयु आ दका मान तथा सृ का सं त वणन २६- जाक सृ , नवास- थान जी वकाके उपाय और वणा म-धमके पालनका माहा य २७- वाय भुव मनुक वंश-पर परा तथा अल मी-पु ःसहके थान आ दका वणन २८- ःसहक स तान ारा होनेवाले व न और उनक शा तके उपाय २९- द जाप तक संत त तथा वाय भुव सगका वणन ३०- ज बू प और उसके पवत का वणन ३१- ीग ाजीक उ प , क पु ष आ द वष क वशेषता तथा भारतवषके वभाग, नद , पवत और जनपद का वणन ३२- भारतवषम भगवान् कूमक थ तका वणन ३३- भ ा आ द वष का सं त वणन ३४- वरो चष् तथा वारो चष मनुके ज म एवं च र का वणन ३५- प नी व ाके अधीन रहनेवाली आठ न धय का वणन ३६- राजा उ मका च र तथा औ म म व तरका वणन ३७- तामस मनुक उ प तथा म व तरका वणन ३८- रैवत मनुक उ प और उनके म व तरका वणन ३९- चा ुष मनुक उ प और उनके म व तरका वणन ४०- वैव वत म व तरक कथा तथा साव णक म व तरका सं त प रचय ४१- मेधा ऋ षका राजा सुरथ और समा धको भगवतीक म हमा बताते ए मधुकैटभ-वधका स सुनाना ४२- दे वता के तेजसे दे वीका ा भाव और म हषासुरक सेनाका वध ४३- सेनाप तय स हत म हषासुरका वध ४४- इ ा द दे वता ारा दे वीक तु त ४५- दे वता ारा दे वीक तु त, च ड-मु डके मुखसे अ बकाके पक शंसा सुनकर शु भका उनके पास त भेजना और तका नराश लौटना ४६- धू लोचन-वध ४७- च ड और मु डका वध ४८- र बीज-वध ४९- नशु भ-वध ५०- शु भ-वध ५१- दे वता ारा दे वीक तु त तथा दे वी ारा दे वता को वरदान ५२- दे वी-च र के पाठका माहा य



५३५४५५५६५७-



सुरथ और वै यको दे वीका वरदान नवसे लेकर तेरहव म व तरतकका सं त वणन रौ य मनुक उ प -कथा भौ य म व तरक कथा तथा चौदह म व तर के वणका फल सूयका त व, वेद का ाक , ाजी ारा सूयदे वक तु त और सृ -रचनाका आर भ ५८- अ द तके गभसे भगवान् सूयका अवतार ५९- सूयक म हमाके स म राजा रा यवधनक कथा ६०- द पु नाभागका च र ६१- व स ीके ारा कुजृ भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ ववाह ६२- राजा ख न क कथा ६३- ुप, व वश, खनीने , कर धम, अवी त तथा म के च र ६४- राजा न र य त और दमका च र ६५- ीमाक डेयपुराणका उपसंहार और माहा य



च -सूची इकरंगे (लाइन) म



१२३४५-



जै म न-माक डेय-संवाद वासाका वपु नामक अ सराको शाप दे ना अजुनके बाणसे ता क मृ यु और उसके चार अ ड पर घंटा टू टकर गरना शमीकक आ ासे मु नकुमार का ता के चार ब च को आ मपर ले जाना मह ष सुकृषका अपने चार पु को प पधारी इ क तृ तके लये शरीर अपण करनेका आदे श दे ना ६- इ का कट होकर मह षको वरदान दे ना ७- ोणपु धमप य ारा जै म नको उपदे श ८- होमकु डसे वृ ासुरक उ प ९- राजा ह र पर व ा म का कोप १०- राज-पाट छोड़कर ी-पु स हत नगरसे बाहर जाते ए ह र से व ा म का य के लये द णा माँगना ११- राजाको जाते दे ख पुरवा सय का वलाप १२- राजाके त मु नक कठोरता १३- च तत ए राजाको रानी शै ाका आ ासन १४- राजा और रानीक मू छा १५- राजा ह र का अपनी रानीको एक ा णके हाथ बेचना १६- ा णका नदयतापूवक रानीको ले जाना और रोते ए बालक रो हता का अपनी माताके व पकड़कर ख चना १७- प नी और पु को जाते दे ख राजा ह र का वलाप १८- चा डाल और ह र क बातचीत १९- व ा म का ह र को चा डालके हाथ बेचना २०- मशान-भू मम ह र क उ नता २१- मरे ए पु को छातीसे लगाकर ह र का मू छत होना और शै ाका वलाप करना



२२- दे वता स हत इ का अमृतक वषा करके रो हता को जी वत करना २३- राजा ह र क ाथनापर सम त पुरवा सय को वगम ले जानेके लये इ के आदे शसे वग य वमान का भू मपर आना २४- पताका अपने पु सुम तको चयपूवक वेदा ययनक आ ा दे ना २५- रौरव नरकक दा ण यातना २६- महारौरवका भयङ् कर य २७- तम नामक नरकम पा पय क दशा २८- नकृ तन नरकक भीषण यातना २९- अ त नरकम ा त होनेवाली पीड़ाका रोमा चकारी य ३०- अ सप वनम पा पय क सह य णा ३१- त तकु भ नरकम जीव क यातना ३२- लोहेक च चवाले प य का नरकम पड़े ए पापी जीव को नोचना ३३- जनकका नरक-दशन और यम तसे उनक बातचीत ३४- परायी ी और पराये धनपर डालनेवाले पा पय क नरक-य णा ३५- माता- पता और गु जन के अपमानका भयानक द ड ३६- जलते लोह-खंभम बँधे ए पा पय क दा ण यातना ३७- पीठ पीछे बुराई करनेवाल क भयानक नरक य णा ३८- त तकु भ नरक-यातनाका एक और य ३९- पापीको वानरयो नक ा त ४०- पर ीगा मय को भ - भ पापयो नय क ा त ४१- व भ पाप के कारण म खी, ब ली और चूहेक यो नम जीवका वेश ४२- बैलको ब धया करनेवाले पापीको ा त होनेवाली भ - भ यो नयाँ ४३- राजा जनकको जाते दे ख नारक जीव का हाहाकार ४४- नारक जीव को सुख प ँचानेके लये राजा जनकका नरकहीम रहनेका न य ४५- धमराज और इ का राजा जनकको वगम ले जानेके लये आ ह ४६- भगवान् व णुका राजा जनकको अपने धामम ले जाना ४७- शूलीपर चढ़े ए मा ड मु नका प त ता ा णीके प तको शाप दे ना ४८- अनसूयाका अपने सती वके भावसे ा णीके मरे ए प तको नवजीवन-दान दे ना ४९- दे वता का ल मीस हत भगवान् द ा ेयजीको णाम करना ५०- द ा ेयजीका दे वता को रा स के वधक आ ा दे ना ५१- कातवीय अजुनका द ा ेयजीक सेवाम उप थत होना ५२- कातवीय अजुनका रा या भषेक



५३५४५५५६५७५८५९६०६१६२६३६४-



राजकुमार ऋत वजका अपनी म म डलीके साथ मनोर न मह ष गालवका अ लेकर राजा श ु जत्के पास आना राजकुमार ऋत वजका शुकर पधारी पातालकेतुको मारना ऋत वज और मदालसाका ववाह मदालसाके साथ जाते ए ऋत वजका पातालवासी दानव के साथ यु प तक मृ युका समाचार सुनकर मदालसाका ाण याग ऋत वजका नगरम लौटकर पता-माताके चरण म णाम करना सर वतीका अ तरको वरदान दे ना भगवान् शङ् करका क बल और अ तरको मनोवा छत वर दे ना अ तरके म यम फणसे मदालसाका पुनः ा भाव नागकुमार का ऋत वजको पातालम अपने पता अ तरके पास ले जाना मदालसासे मलनेके लये उ क ठत राजकुमारको रोककर अ तरका मदालसाक पुनः ा तका वृ ा त सुनाना ६५- मदालसाका अपने शशुको बहलानेके ाजसे ानका उपदे श दे ना ६६- राजा ऋत वजका अपने छोटे पु अलकको वृ मागका उपदे श दे नेके लये मदालसासे कहना ६७- अलकका माताके चरण म णाम करना ६८- मदालसाका अपने पु को अ तम सीख दे ते ए सोनेक एक अंगठ ू दे ना ६९- का शराजके तका महाराज अलकको स दे श दे ना ७०- अलकका द ा ेयजीक शरणम जाना ७१- अलकका का शराज और सुबा के समीप जाकर उ ह रा य अ पत करना ७२- का शराजका सुबा से ानोपदे शके लये अनुरोध ७३- भगवान् शुङ्करका अपने शीशपर ग ाजीको धारण करना ७४- आग तुक ा णका गृह थ ा णको म और ओषधय का भाव बतलाना ७५- ब थनी अ सराक ा णके साथ बातचीत ७६- तेज वी ा णका घरको थान और ठु करायी ई अ सराका उ े ग ७७- ा णके वेषम आये ए क लनामक ग धवपर अ सराक आस ७८- भयभीत मनोरमाको वरो चष्का आ ासन दे ना ७९- वरो चष्के बाणसे रा सक घबराहट ८०- व ाधरका वरो चष्को अपनी क या दे ना ८१- वभावरी और कलावतीका वरो चष्को वरण करना ८२- वनदे वीका मृगी पम वरो चष्के पास आकर समागमके लये ाथना करना



८३- एक ा णका अपनी चुरायी ई ीका पता लगानेके लये राजा उ मसे ाथना करना ८४- मु नका राजा उ मको प नी यागसे होनेवाले दोष बतलाना ८५- रा सके ारा राजा उ मका आ त य ८६- ा णका अपनी प नीके मल जानेसे राजाके त कृत ता कट करना ८७- नागक या न दाका राजा उ मको उनके उपकारसे स होकर आशीवाद दे ना ८८- ऋतवाक् मु नका गगजीसे अपने पु के ःशील होनेका कारण पूछना ८९- मुच मु नक क याका थानरेवती न को पुनः आकाशम था पत करनेके लये पतासे अनुरोध करना ९०ाजीका आन दसे उनक तप याका कारण पूछना ९१- राजा सुरथका वनगमन ९२- राजा सुरथ और समा ध वै यका संवाद ९३- मेधा मु नका सुरथ और समा धको भगवतीक म हमा बताना ९४- मधु और कैटभका ाजीपर आ मण और ाजीके ारा न ादे वीका तवन ९५- भगवान् व णुके ने से न ाका हटना और भगवान्का मधु-कैटभको दे खना ९६- ी व णुके ारा मधु और कैटभका वध ९७- दे वता का भगवान् व णु और शवसे दै य के अ याचार बतलाना ९८- स पूण दे वता के तेजसे दे वीका ा भाव ९९- दे वीका म हषासुरक सेनासे यु १००- दे वीके ारा दै य-सेनाका संहार १०१- दै यसेनाप त च ुरका वध १०२- सहके ारा चामरका तथा दे वीके हाथसे अ य सेनाप तय का वध १०३- दे वी और म हषासुरका यु १०४- महान् गजराजके पम म हषासुरका आ मण १०५- म हषासुरका वध १०६- इ ा द दे वता ारा दे वीका तवन १०७- दे वीका दे वता को वरदान दे ना १०८- सु ीव नामक तका दे वीसे शु भके वैभवका वणन १०९- शु भका दे वीको पकड़ लानेके लये धू लोचनको आदे श दे ना ११०- धू लोचनका भ म होना और दै य-सेनाका संहार १११- कालीके ारा सेनास हत च डका वध ११२- मु डका वध ११३- कालीका च ड-मु डके म तक लेकर दे वीके पास आना



११४ाणी आ द श य का ाक ११५- च डकाका भगवान् शवको त बनाकर भेजना ११६- दे वी-श य का दै य-सेनासे यु ११७- कालीके ारा र बीजके र का पान ११८- दे वी और नशु भका यु ११९- नशु भका पुनः आ मण १२०- नशु भका वध १२१- दे वीका अपनी श य को समेटकर अकेले ही शु भके साथ यु करनेको उ त होना १२२- शु भका वध १२३- दे वता ारा दे वीक तु त १२४- सुरथ और समा धके ारा दे वीक आराधना १२५- दे वीका य दशन और वरदान दे ना १२६- चक पतर से बातचीत १२७- चको ाजीका वरदान दे ना १२८- चको पतर के तेजका दशन होना १२९- चके सम पतर का कट होना १३०- चको दे नेके लये लोचाका अपनी क या मा लनीको जलसे कट करना १३१- भू तका अपने श यको अ नहो क र ाका आदे श १३२- शा तक तु तसे स होकर अ नदे वका उ ह य दशन दे ना १३३ाजीके ारा भगवान् सूयका तवन १३४- मह ष क यपका अ द तको उपाल भ दे ना १३५- भगवान् सूयका रा यवधनक जाको वरदान दे ना १३६- राजा रा यवधनका अपनी रानीके साथ सूयदे वक आराधनाके वषयम वचार करना १३७- सु त ा णका राजा व रथको कुजृ भके कये ए गतका प रचय दे ना १३८- व रथका व स ीको छातीसे लगाकर कुजृ भसे यु के लये भेजना १३९- व स ीका कुजृ भपर आ नेया का हार १४०- मुदावती और दोन पु के आनेसे स ए राजा व रथका व स ीको ध यवादपूवक दयसे लगाना १४१- व वेद का शौ रको बहकाना १४२- मह ष व स से ा ण क मृ युका कारण सुनकर राजा ख न के मनम नवद होना



।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।



सं



त माक डेयपुराण



जै म न-माक डेय-संवाद—वपुको वासाका शाप य ो ग भभवभया त वनाशयो यमासा व दतमतीव व व च ैः । त ः पुनातु ह रपादसरोजयु ममा वभव म वलङ् घतभूभुवः वः ।। १ ।। पाया स वः सकलक मषभेदद ः ीरोदकु फ णभोग न व मू तः । ासावधूतस ललो क लकाकरालः स धुः नृ य मव य य करो त स ात् ।। २ ।। नारायणं नम कृ य नरं चैव नरो मम् । दे व सर वत ासं ततो जयमुद रयेत् ।। ३ ।। * ासजीके श य महातेज वी जै म नने तप या और वा यायम लगे ए महामु न माक डेयसे पूछा—‘भगवन्! महा मा ास ारा तपा दत महाभारत अनेक शा के दोषर हत एवं उ वल स ा त से प रपूण है। यह सहज शु अथवा छ द आ दक शु से यु और साधु श दावलीसे सुशो भत है। इसम पहले पूवप का तपादन करके फर स ा त-प क थापना क गयी है। जैसे दे वता म व णु, मनु य म ा ण तथा स पूण आभूषण म चूड़ाम ण े है, जस कार आयुध म व और इ य म मन धान माना गया है, उसी कार सम त शा म महाभारत उ म बताया गया है। इसम धम, अथ, काम और मो —इन चार पु षाथ का वणन है। वे पु षाथ कह तो पर पर स ब ह और कह पृथक्-पृथक् व णत ह। इसके सवा उनके अनुब ध ( वषय, स ब ध, योजन और अ धकारी)-का भी इसम वणन कया गया है।



‘भगवन्! इस कार यह महाभारत उपा यान वेद का व तार प है। इसम ब त-से वषय का तपादन कया गया है। म इसे यथाथ पसे जानना चाहता ँ और इसी लये आपक सेवाम उप थत आ ँ। जगत्क सृ , पालन और संहारके एकमा कारण सव ापी भगवान् जनादन नगुण होकर भी मनु य पम कैसे कट ए तथा पदकुमारी कृ णा अकेली ही पाँच पा डव क महारानी य ? इस वषयम मुझे महान् स दे ह है। ौपद के पाँच महारथी पु , जनका अभी ववाह भी नह आ था और पा डव-जैसे वीर जनके र क थे, अनाथ क भाँ त कैसे मारे गये? ये सारी बात आप मुझे व तारपूवक बतानेक कृपा कर।’ माक डेयजी बोले—मु न े ! यह मेरे लये सं या-व दन आ द कम करनेका समय है। तु हारे का उ र व तारपूवक दे ना है, अतः उसके लये यह समय उ म नह है। जै मने! म तु ह ऐसे प य का प रचय दे ता ँ, जो तु हारे का उ र दगे और तु हारे स दे हका नवारण करगे। ोण नामक प ीके चार पु ह, जो सब प य म े , त व तथा शा का च तन करनेवाले ह। उनके नाम ह— प ा , वबोध, सुपु और सुमुख।



वेद और शा के ता पयको समझनेम उनक बु कभी कु ठत नह होती। वे चार प ी व यपवतक क दराम नवास करते ह। तुम उ ह के पास जाकर ये सभी बात पूछो। जै म नने कहा— न्! यह तो बड़ी अ त बात है क प य क बोली मनु य के समान हो। प ी होकर भी उ ह ने अ य त लभ व ान ा त कया है। य द तयक्यो नम उनका ज म आ है, तो उ ह ान कैसे ा त आ? वे चार प ी ोणके पु कैसे बतलाये जाते ह? व यात प ी ोण कौन है, जसके चार पु ऐसे ानी ए? उन गुणवान् महा मा प य को धमका ान कस कार आ? माक डेयजी बोले—मुने! यान दे कर सुनो। पूवकालम न दनवनके भीतर जब दे व ष नारद, इ और अ सरा का समागम आ था, उसी समयक घटना है। एक बार नारदजीने न दनवनम दे वराज इ से भट क । उनक पड़ते ही इ उठकर खड़े हो गये और बड़े आदरके साथ अपना सहासन उ ह बैठनेको दया। वहाँ खड़ी ई अ सरा ने भी दे व ष नारदको वनीत भावसे म तक झुकाया। उनके ारा पू जत हो नारदजीने इ के बैठ जानेपर यथायो य कुशल- के अन तर बड़ी मनोहर कथाएँ सुनाय । उस बातचीतके स म ही इ ने महामु न नारदसे कहा—‘दे वष! इन अ सरा म जो आपको य जान पड़े, उसे आ ा द जये, यहाँ नृ य करे। र भा, म केशी, उवशी, तलो मा, घृताची अथवा मेनका— जसम आपक च हो, उसीका नृ य दे खये।’ इ क यह बात सुनकर ज े नारदजीने वनयपूवक खड़ी ई अ सरा से कुछ सोचकर कहा —‘तुम सब लोग मसे जो अपनेको प और उदारता आ द गुण म सबसे े मानती हो, वही मेरे सामने यहाँ नृ य करे।’ माक डेयजी कहते ह—मु नक यह बात सुनते ही वे वनीत अ सराएँ एक-एक करके आपसम कहने लग —‘अरी! म ही गुण म सबसे े ँ, तू नह ।’ इसपर सरी कहती, ‘तू नह , म े ँ।’ उनका वह अ ानपूण ववाद दे खकर इ ने कहा—‘अरी! मु नसे ही पूछो, वे ही बतायगे क तुमलोग म सबसे अ धक गुणवती कौन है।’ इस कार उनके पूछनेपर नारदजीने कहा—‘जो ग रराज हमालयपर तप या करनेवाले मु न े वासाको अपनी चे ासे ु ध कर दे गी, उसीको म सबसे अ धक गुणवती मानूँगा।’ उनक बात सुनकर सबक गदन हल गयी। सबने एक- सरीसे कहना आर भ कया—‘हमारे लये यह काय अस भव है।’ उन अ सरा म एकका नाम वपु था। उसके मनम मु नय को वच लत कर दे नेका गव था। उसने नारदजीको उ र दया, ‘जहाँ वासा मु न रहते ह, वहाँ आज म जाऊँगी। वासा मु नको, जो शरीर पी रथका स चालन करते ह, ज ह ने इ य पी घोड़ को उस रथम जोत रखा है, एक अयो य सार थ स कर दखाऊँगी। अपने कामबाणके हारसे उनके मन पी लगामको गरा ँ गी—उनके काबूके बाहर कर ँ गी।’



य कहकर वपु हमालय पवतपर गयी। वहाँ मह षके आ मम उनक तप याके भावसे हसक जीव भी अपनी वाभा वक हसावृ छोड़कर परम शा त रहते थे। महामु न वासा जहाँ नवास करते थे, उस थानसे एक कोसक रीपर वह सु दरी अ सरा ठहर गयी और गीत गाने लगी। उसक वाणीम को कलके कलरवका-सा मठास था। उसके संगीतक मधुर व न कानम पड़ते ही वासा मु नके मनम बड़ा व मय आ। वे उसी थानक ओर गये, जहाँ वह मृ भा षणी बाला संगीतक तान छे ड़े ए थी। उसे दे खकर मह षने अपने मनको बलपूवक रोका और यह जानकर क यह मुझे लुभानेके लये आयी है, उ ह ोध और अमष हो आया। फर तो वे महातप वी मह ष उस अ सरासे इस कार बोले—‘आकाशम वचरनेवाली मतवाली अ सरा! तू बड़े क से उपा जत कये ए मेरे तपम व न डालनेके लये आयी है, अतः मेरे ोधसे कलङ् कत होकर तू प ीके कुलम ज म लेगी। ओ खोट बु वाली नीच अ सरा! अपना यह मनोहर प छोड़कर तुझे सोलह वष तक प णीके पम रहना पड़ेगा। उस समय तेरे गभसे चार पु उ प ह गे। क तु तू उनके त होनेवाले ेमज नत सुखसे व चत ही रहेगी और श ारा वधको ा त होकर शापमु हो पुनः वगलोकम अपना थान ा त करेगी। बस, अब इसके वपरीत तू कुछ भी कसी कार भी उ र न दे ना।’ ोधसे लाल ने कये मह ष वासाने मधुर खनखनाहटसे यु च चल कङ् कण धारण करनेवाली उस मा ननी अ सराको ये सह वचन सुनाकर इस पृ वीको छोड़ दया और व व ुत गुण से गौरवा वत एवं उ ाल तर वाली आकाशग ाके तटपर चले गये।



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जनम ज म-मृ यु प संसारके भय और पीड़ा का नाश करनेक पूण यो यता है, प व अ तःकरणवाले यो गजन ज ह यानम दे खकर बारंबार म तक झुकाते ह, जो वामन पसे वराट् - प धारण करते समय कट होकर मशः भूल क, भुवल क तथा वगलोकको भी लाँघ गये थे, ीह रके वे दोन चरणकमल आपलोग को प व करते रह। जो सम त पाप का संहार करनेम समथ ह, जनका ी व ह ीरसागरके गभम शेषनागक श यापर शयन करता है, उ ह शेषनागक ास-वायुसे क पत ए जलक उ ाल तर ोके कारण वकराल तीत होनेवाला समु जनका स स पाकर स ताके मारे नृ य-सा करता जान पड़ता है, वे भगवान् नारायण आपलोग क र ा करते रह। भगवान् नारायण, पु ष े नर, उनक लीला कट करनेवाली भगवती सर वती तथा उसके व ा मह ष वेद ासको नम कार करके ‘जय’ (इ तहास-पुराण)-का पाठ करना चा हये।



सुकृष मु नके पु के प ीक यो नम ज म लेनेका कारण माक डेयजी कहते ह—जै मने! अ र ने मके पु प राज ग ड़ ए। ग ड़के पु स पा तके नामसे व यात ए। स पा तका पु शूरवीर सुपा था। सुपा का पु कु भ और कु भका पु लोलुप आ। उसके भी दो पु ए, उनम एकका नाम कङ् क और सरेका नाम क धर था। क धरके ता नामक क या ई, जो पूवज मम े अ सरा वपु थी और वासा मु नक शापा नसे द ध हो प णीके पम कट ई थी। म दपाल प ीके पु ोणने क धरक अनुम तसे उस क याके साथ ववाह कया। कुछ कालके अन तर ता गभवती ई। उसका गभ अभी साढ़े तीन महीनेका ही था क वह कु े म गयी। वहाँ कौरव और पा डव म बड़ा भयंकर यु छड़ा था, भ वत तावश वह प णी उस यु े म वेश कर गयी। वहाँ उसने दे खा—भगद और अजुनम यु हो रहा है। सारा आकाश ट य क भाँ त बाण से खचाखच भर गया है। इतनेम ही अजुनके धनुषसे छू टा आ एक बाण बड़े वेगसे उसके समीप आया और उसके पेटम घुस गया। पेट फट जानेसे च माके समान ेत रंगवाले चार अंडे पृ वीपर गरे। क तु उनक आयु शेष थी, अतः वे फूट न सके; ब क पृ वीपर ऐसे गरे, मानो ईके ढे रपर पड़े ह । उन अ ड के गरते ही भगद के सु तीक नामक गजराजक पीठसे एक ब त बड़ा घंटा भी टू टकर गरा, जसका ब धन बाण के आघातसे कट गया था। य प वह अ ड के साथ ही गरा था, तथा प उ ह चार ओरसे ढकता आ गरा और धरतीम थोड़ाथोड़ा धँस भी गया।



यु समा त होनेपर जहाँ घंटेके नीचे अ डे पड़े थे, उस थानपर शमीक नामके एक संयमी महा मा गये। उ ह ने वहाँ च ड़य के ब च क आवाज सुनी। य प उन सबको परम व ान ा त था, तथा प नरे ब चे होनेके कारण अभी वे प वा य नह बोल सकते थे। उन ब च क आवाजसे श य स हत मह ष शमीकको बड़ा व मय आ और उ ह ने घंटेको उखाड़कर उसके भीतर पड़े ए उन माता, पता और पंखसे र हत प शावक को दे खा। उ ह इस कार भू मपर पड़ा दे ख महामु न शमीक आ यम डू ब गये और अपने साथ आये ए ज से बोले—‘दे वासुरसं ामम जब दै य क सेना दे वता से पी ड़त होकर भागने लगी, तब उसक ओर दे खकर वयं व वर शु ाचायने यह ठ क ही कहा था—‘ओ कायरो! य पीठ दखाकर जा रहे हो। न जाओ, लौट आओ। अरे! शौय और सुयशका प र याग करके ऐसे कस थानम जाओगे, जहाँ तु हारी मृ यु न होगी। कोई भागे या यु करे; वह तभीतक जी वत रह सकता है, जबतकके लये पहले वधाताने उसक आयु न त कर द है। वधाताके इ छानुसार जबतक जीवक आयु पूण नह हो जाती, तबतक उसे कोई मार नह सकता। कोई अपने घरम मरते ह, कोई भागते ए ाण याग करते ह, कुछ



लोग अ खाते और पानी पीते ए ही कालके गालम चले जाते ह। इसी कार कुछ लोग ऐसे ह, जो भोग- वलासका आन द ले रहे ह, इ छानुसार वाहन पर वचरते ह, शरीरसे नीरोग ह तथा अ -श से जनका शरीर कभी घायल नह आ है; वे भी यमराजके वशम हो जाते ह। कुछ लोग नर तर तप याम ही लगे रहते थे, क तु उ ह भी यमराजके त उठा ले गये। नर तर योगा यासम वृ रहनेवाले लोग भी शरीरसे अमर न हो सके। पहलेक बात है, व पा ण इ ने एक बार श बरासुरके ऊपर अपने व का हार कया था। उस व ने उसक छातीम चोट प ँचायी, तथा प वह असुर मर न सका। पर तु काल आनेपर उ ह इ ने उसी व से जब-जब दानव को मारा, वे त काल मृ युको ा त हो गये। यह समझकर तु ह भय नह करना चा हये। तुम सब लोग लौट आओ।’ उनके इस कार समझानेपर वे दै य मृ युका भय यागकर रणभू मम लौट आये। शु ाचायक कही ई उपयु बात को इन े प य ने स य कर दखाया; य क उस अलौ कक यु म पड़कर भी इनक मृ यु नह ई। ा णो! भला, सोचो तो सही—कहाँ अ ड का गरना, कहाँ उसके साथ ही घंटेका भी टू ट पड़ना और कहाँ मांस, म जा तथा र से भरी ई भू मका बछौना बन जाना —ये सभी बात अ त ह। व गण! ये कोई सामा य प ी नह ह। संसारम दै वका अनुकूल होना महान् सौभा यका सूचक होता है।’ य कहकर शमीक मु नने उन ब च को भलीभाँ त दे खा और फर अपने श य से इस कार कहा—‘अब तुमलोग इन प शावक को लेकर आ मको लौट चलो और ऐसे थानपर रखो जहाँ इ ह ब ली, चूहे, बाज अथवा नेवले आ दसे कोई भय न हो। ा णो! य प यह ठ क है क कसीक र ाके लये अ धक य न करनेक आव यकता नह है, य क स पूण जीव अपने कम से ही मारे जाते ह और कम से ही उनक र ा होती है—ठ क उसी कार, जैसे इस समय ये प शावक इस यु भू मम बच गये ह, तथा प सब मनु य को सभी काय के लये य न अव य करना चा हये, य क जो पु षाथ करता है, वह (असफल होनेपर भी) स पु ष क न दाका पा नह होता।’ मु नवर शमीकके इस कार कहनेपर वे मु नकुमार उन प य को लेकर अपने आ मको चले गये, जहाँ भाँ त-भाँ तके वृ क शाखा पर बैठे ए भ रे फल का रस ले रहे थे और अनेक तप वय के रहनेसे जहाँक रमणीयता ब त बढ़ गयी थी।



व वर जै मने! मु न े शमीक त दन अ और जल दे कर तथा सब कारसे र ाक व था करके उन ब च का पालन-पोषण करने लगे। एक ही महीना बीतनेपर वे प य के ब चे आकाशम इतने ऊँचे उड़ गये, जतनेपर सूयके रथके आने-जानेका माग है। उस समय आ मवासी मु नकुमार कौतूहलभरे च चल ने से उ ह दे ख रहे थे। उन प शावक ने नगर, समु और बड़ी-बड़ी न दय स हत पृ वीको वहाँसे रथके प हयेके बराबर दे खा और फर आ मपर लौट आये। तयक्-यो नम उ प ए वे महा मा प ी अ धक उड़नेके कारण प र मसे थक गये थे। एक दन मह ष शमीक अपने श य पर कृपा करनेके लये उ ह धमके त वका उपदे श कर रहे थे। उस समय वहाँ मह षके भावसे उन प य के अ तःकरणम थत ान कट हो गया। फर तो उन सबने मह षक प र मा क और उनके चरण म म तक झुकाया। त प ात् वे बोले—‘मुने! आपने भयानक मृ युसे हमारा उ ार कया है। आपने हम रहनेके लये थान, भोजन और जल दान कया है। आप ही हमारे पता और गु ह। हमलोग जब गभम थे, तभी माताक मृ यु हो गयी। पताने भी हमारी र ा नह क । आपने ही पधारकर हम जीवनदान दया और शैशव-



अव थाम हमलोग क र ा क । हम क ड़ क तरह सूख रहे थे, आपने हाथीके घ टे को उठाकर हमारे सङ् कटका नवारण कया। अब हम बड़े हो गये, हम ान भी हो गया; अतः आ ा द जये, हम आपक या सेवा कर?’ मह ष शमीक अपने पु शृ ऋ ष तथा सम त श य से घरे ए बैठे थे; उ ह ने जब उन प शावक क यह शु सं कृतमयी प वाणी सुनी, तब उ ह बड़ा कौतूहल आ। उनके शरीरम रोमा च हो आया। उ ह ने पूछा—‘ब चो! तुमलोग ठ क-ठ क बताओ, तु ह कस कारणसे ऐसी वाणी ा त ई है। प य का प और मनु यक -सी वाणी ा त होनेका या रह य है?’ प ी बोले—‘मु नवर! ाचीन कालम वपुल वान् नामक एक े मु न रहते थे, जनके दो पु ए—सुकृष और तु बु । सुकृष अपने च को वशम रखनेवाले महा मा थे। उ ह से हम चार पु का ज म आ। हम सब लोग वनय, सदाचार एवं भ वश सदा वनीत भावसे रहते थे। पताजी सदा तप याम संल न रहते और इ य को काबूम रखते थे। उस समय उ ह जब जस व तुक अ भलाषा होती, हम उसे उनक सेवाम तुत करते थे। एक दनक बात है, दे वराज इ प ीका प धारण करके वहाँ आये। उनका शरीर ब त बड़ा था, पंख टू ट गये थे। बुढ़ापेने उनपर अ धकार जमा लया था। उनक आँख कुछ-कुछ लाल हो रही थ और सारा शरीर श थल जान पड़ता था। वे स य, शौच और माका पालन करनेवाले अ य त उदार च महा मा मु न े सुकृषक परी ा लेने आये थे। उनका आगमन ही हमारे लये शापका कारण बन गया। प पधारी इ ने कहा— व वर! मुझे बड़े जोरक भूख सता रही है, मेरी र ा क जये; महाभाग! म भोजनक इ छासे यहाँ आया ँ। आप मेरे लये अनुपम सहारा बन। म व यपवतके शखरपर रहता था। वहाँसे कसी बल प ीके पंखसे कट ई अ य त वेगयु वायुके झ के खाकर पृ वीपर गर पड़ा और मू छत हो गया। एक स ताहतक मुझे होश नह आ। आठव दन मेरी चेतना लौट । सचेत होनेपर म भूखसे ाकुल हो गया और भोजनक इ छासे आपक शरणम आया ँ। इस समय मुझे त नक भी चैन नह है। मेरे मनम बड़ी था हो रही है। वमल बु वाले मह ष! अब आप मेरी र ाके लये भोजन द जये, जससे मेरी जीवन-या ा चालू रहे। यह सुनकर मह षने उन प पधारी इ से कहा—‘म तु हारे ाण क र ाके लये तु ह यथे भोजन ँ गा।’ य कहकर ज े सुकृषने पुनः उनसे पूछा—‘मुझे तु हारे लये कैसे आहारक व था करनी चा हये।’ उ ह ने कहा —‘मुने! मनु यके मांससे मुझे वशेष तृ त होती है।’



ऋ षने कहा—‘अरे! कहाँ मनु यका मांस और कहाँ तु हारी वृ ाव था। जान पड़ता है, जीवक षत भावना का सवथा अ त कभी नह होता। अथवा मुझे यह सब कहनेक या आव यकता। जसे दे नेक त ा कर ली गयी, उसे सदा दे ना ही चा हये; मेरे मनम सदा ऐसा ही भाव रहता है। इ से य कहते ए अपनी त ा पूरी करनेका न य करके व वर सुकृषने हम सबको शी ही बुलाया और हमारे गुण क बारंबार शंसा करते ए कहा—‘पु ो! य द तुमलोग के वचारसे पता परम गु और पूजनीय हो तो न कपट भावसे मेरे वचनका पालन करो।’ उनक यह बात सुनते ही हम सब लोग ने बड़े आदरके साथ कहा—‘ पताजी! आप जो कुछ भी कहगे, जस कायके लये भी हम आ ा दगे, उसे हमारे ारा पूण कया आ ही सम झये।’



ऋ ष बोले—यह प ी भूख- याससे पी ड़त होकर मेरी शरणम आया है। तुमलोग शी ही ऐसा करो, जससे तु हारे शरीरके मांससे णभर इसक तृ त और तु हारे र से इसक यास बुझ जाय। यह सुनकर हम बड़ी था ई। हमारे शरीरम क प और मनम भय छा गया, हम सहसा बोल उठे —‘इसम तो बड़ा क है, बड़ा क है। यह काम



हमसे नह हो सकता। कोई भी समझदार मनु य सरेके शरीरके लये अपने शरीरका नाश अथवा वध कैसे करा सकता है। अतः हमलोग यह काम नह करगे।’ हमारी ऐसी बात सुनकर वे मु न ोधसे जल उठे और अपनी लाललाल आँख से हम द ध करते ए-से पुनः इस कार बोले—‘अरे! मुझसे इसके लये त ा करके भी तुमलोग यह काय नह करना चाहते; अतः मेरे शापसे द ध होकर तुमलोग प य क यो नम ज म लोगे।’ हमसे य कहकर उ ह ने शा के अनुसार अपनी अ ये - या क —औ वदै हक सं कारक व ध पूण क । इसके बाद वे उस प ीसे बोले—‘खग े ! अब तुम न त होकर मुझे भ ण करो। मने अपना यह शरीर तु ह आहारके पम सम पत कर दया है। प राज! जबतक अपने स यका पूण पसे पालन होता रहे, यही ा णका ा ण व कहलाता है। ा ण द णायु य अथवा अ य कम के अनु ानसे भी वह महान् पु य नह ा त कर सकते, जो उ ह स यक र ा करनेसे ा त होता है।’* मह षका यह वचन सुनकर प पधारी इ के मनम बड़ा व मय आ। वे अपने दे व पम कट होकर बोले—‘ व वर! मने आपक परी ाके लये यह अपराध कया है। शु बु वाले मह ष! आप इसके लये मुझे मा कर। बताइये, आपक या इ छा है जसे म पूण क ँ ? अपने स य वचनका पालन करनेसे आपके त मेरा बड़ा ेम हो गया है। आजसे आपके दयम इ स ब धी ान कट होगा। अब आपक तप या और धमम कोई व न नह उप थत होगा।’



य कहकर जब इ चले गये, तब हमलोग ने ोधम भरे ए महामु न पताजीके चरण म म तक रखकर णाम कया और इस कार कहा—‘तात! हम मृ युसे डर रहे थे। महामते! आप हम द न के अपराधको मा कर। हमलोग को जीवन ब त ही य है। चमड़े, ह ी और मांसके समूह तथा पीब और र से भरे ए इस शरीरम जहाँ हम त नक भी आस नह रखनी चा हये, वह हमारी इतनी आस है। महाभाग! काम, ोध आ द दोष जीवके बल श ु ह। इनसे ववश होकर यह लोक जस कार मोहके वशीभूत हो जाता है, उसे आप सुन। यह शरीर एक ब त बड़ा नगर है। ा ही इसक चहारद वारी है, ह याँ ही इसम ख भेका काम दे ती ह। चमड़ा ही इस नगरक द वार है, जो समूचे नगरको रोके ए है। मांस और र के पङ् कका इसपर लेप चढ़ा आ है। इस नगरम नौ दरवाजे ह। इसक र ाम ब त बड़ा यास करना होता है। नस-ना ड़याँ इसे सब ओरसे घेरे ए ह। चेतन पु ष ही इस नगरके भीतर राजाके पम वराजमान है। उसके दो म ी ह—बु और मन। वे दोन पर पर वरोधी ह और आपसम वैर नकालनेके लये दोन ही य न करते रहते ह। चार ऐसे श ु ह, जो उस राजाका नाश चाहते ह। उनके नाम ह—काम,



ोध, लोभ तथा मोह। जब राजा उन नव दरवाज को बंद कये रहता है, तब उसक श सुर त रहती है और वह सदा नभय बना रहता है; वह सबके त अनुराग रखता है, अतः श ु उसका पराभव नह कर पाते। ‘पर तु जब वह नगरके सब दरवाज को खुला छोड़ दे ता है, उस समय राग नामक श ु ने आ द ार पर आ मण करता है। वह सव ा त रहनेवाला, ब त वशाल और पाँच दरवाज से नगरम वेश करनेवाला है। उसके पीछे -पीछे तीन और भयङ् कर श ु इस नगरम घुस जाते ह। पाँच इ य नामक ार से शरीरके भीतर वेश करके राग मन तथा अ या य इ य के साथ स ब ध जोड़ लेता है। इस कार इ य और मनको वशम करके वह धष हो जाता है और सम त दरवाज को काबूम करके चहारद वारीको न कर दे ता है। मनको रागके अधीन आ दे ख बु त काल न हो जाती (पलायन कर जाती) है। जब म ी साथ नह रहते, तब अ य पुरवासी भी उसे छोड़ दे ते ह। फर श ु को उसके छ का ान हो जानेसे राजा उनके ारा नाशको ा त होता है। इस कार राग, मोह, लोभ तथा ोध—ये रा मा श ु मनु यक मरण-श का नाश करनेवाले ह। रागसे काम होता है, कामसे लोभका ज म होता है, लोभसे स मोह—अ ववेक होता है और स मोहसे मरण-श ा त हो जाती है। मृ तक ा तसे बु का नाश होता है और बु का नाश होनेसे मनु य वयं भी न —कत हो जाता है।१ इस कार जनक बु न हो चुक है, जो राग और लोभके पीछे चलनेवाले ह तथा ज ह जीवनका ब त लोभ है, ऐसे हमलोग पर आप स होइये। मु न े ! यह जो शाप आपने दया है, वह हम लागू न हो। तामसी यो न बड़ी क दा यनी होती है। हम उसे कभी ा त न ह ।’ ऋ षने कहा—‘पु ो! आजतक मेरे मुखसे कभी झूठ बात नह नकली; अतः मने जो कुछ कहा है, वह कभी म या नह होगा। म यहाँ दै वको ही धान मानता ँ। उसके सामने पौ ष थ है। आज दै वने मुझसे बलपूवक यह अयो य कम करा डाला, जसक मने कभी मनम क पना भी नह क थी। पु ो! तुमलोग ने णाम करके मुझे स कया है; इस लये तयक्-यो नम ज म लेनेपर भी तु ह परम ान ा त होगा। ानसे ही तु ह स मागका दशन होगा। तु हारे लेश और पाप धुल जायँगे तथा तु हारे मनम कसी कारका संशय नह रहेगा। इस कार मेरे सादसे ान पाकर तुम परम स को ा त कर लोगे। भगवन्! इस कार पूवकालम दै ववश पताने हम शाप दे दया। तबसे ब त कालके बाद हम सरी यो नम आये, यु भू मम उ प ए और फर आपके ारा हमलोग का पालन आ। ज े ! यही हमारे प ी-यो नम



आनेक कहानी है। संसारम कोई भी जीव ऐसा नह है, जसे दै वके ारा बाधा नप च ँ ती हो, य क सम त जीव-ज तु क चे ा दै वके ही अधीन है।२ माक डेयजी कहते ह—उनक बात सुनकर महाभाग शमीक मु नने अपने पास बैठे ए ज से कहा—‘मने तुमलोग को पहले ही बताया था क ये साधारण प ी नह ह, कोई े ज ह, जो क अलौ कक यु म ज म लेकर भी मृ युको नह ा त ए।’ तदन तर महा मा शमीकने अ य त स होकर उ ह जानेक आ ा द । फर वे वृ और लता से सुशो भत पवत म े व य ग रपर चले गये। तबसे आजतक वे धमा मा प ी तप या और वा यायम संल न हो समा धके लये ढ़ न य करके उस पवतपर ही नवास करते ह।



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एतावदे व व य ा ण वं च ते । यावत् पतगजा य य वस यप रपालनम् ।। न य ैद णाव तत् पु यं ा यते महत् । कमणा येन वा व ैयत् स यप रपालनात् ।। (अ० ३।४७-४८) १. रागात् कामः भव त कामा लोभोऽ भजायते । लोभा व त स मोहः स मोहात् मृ त व मः ।। मृ त ंशाद् बु नाशो बु नाशात् ण य त ।। (अ० ३।७१-७२) २. ना यसा वह संसारे यो न द ेन बा यते । सवषामेव ज तूनां दै वाधीनं ह चे तम् ।। (३।८१)



हर



को धम और इ का परमधामम चलनेके लये अनुरोध



आरोह दवं राजन् भायापु सम वतः । सु ापं नरैर यै जतमा मीयकम भः ।।



पा त तका ताप



म हषासुर-म दनी—अध न



ा त एवासीद् दे



ा वीयण संवृतः । अध न



ा त एवासौ यु यमानो महासुरः ।।



कालीका ा भाव











काली करालवदना व न



ा ता सपा शनी ।



धमप ी ारा जै म नके



का उ र



माक डेयजी कहते ह—जै म न! इस कार वे ोणके पु चार प ी ानी ह और व य ग रपर नवास करते ह। तुम उनक सेवाम जाओ और उनसे ात बात पूछो। माक डेय मु नक यह बात सुनकर मह ष जै म न, व यपवतपर, जहाँ वे धमा मा प ी रहते थे, गये। उस पवतके नकट प ँचनेपर पाठ करते ए उन प य क व न उनके कान म पड़ी। उसे सुनकर जै म न बड़े व मयम पड़े और इस कार सोचने लगे—‘अहो! ये े प ी ब त ही प उ चारण करते ए पाठ कर रहे ह; जस अ रका क ठ-तालु आ द जो थान है, उसका वह से उ चारण हो रहा है। बोलनेम कतनी शु ता और सफाई है। ये अ वराम पाठ करते जा रहे ह, ककर साँसतक नह लेते। ासक ग तपर इ ह ने वजय ा त कर ली है। कसी भी श दके उ चारणम कोई दोष नह दखायी दे ता। ये य प न दत यो नको ा त ए ह, तथा प सर वतीदे वी इनको नह याग रही ह! यह मुझे बड़े आ यक बात जान पड़ती है। ब धु-बा धवजन, म गण तथा घरम और जो य व तुएँ ह, वे सभी साथ छोड़कर चली जाती ह; पर तु सर वती कभी याग नह करत ।’* इस कार सोचते- वचारते ए मह ष जै म नने व यपवतक क दराम वेश कया। वहाँ जाकर उ ह ने दे खा, वे प ी शलाख डपर बैठे ए पाठ कर रहे ह। उनपर पड़ते ही मह ष जै म न हषम भरकर बोले—‘ े प यो! आपका क याण हो। मुझे ासजीका श य जै म न सम झये। म आपलोग का दशन करनेके लये उ क ठत होकर यहाँ आया ँ। आपके पताने अ य त ोधम आकर जो आपलोग को शाप दे दया और आपको प य क यो नम आना पड़ा, उसके लये खेद नह करना चा हये; य क वह सवथा दै वका ही वधान था। तप याका य हो जानेपर मनु य दाता होकर भी याचक बन जाते ह। वयं मारकर भी सर के हाथसे मारे जाते ह तथा पहले सर को गराकर भी वयं सर के ारा गराये जाते ह। इस कार आनेवाली वपरीत दशाएँ मने अनेक बार दे खी ह। भावके बाद अभाव तथा अभावके बाद भाव, इस कार भावाभावक पर परासे संसारके लोग नर तर ाकुल रहते ह। आपलोग को भी अपने मनम ऐसा ही वचार करके कभी शोक नह करना चा हये। शोक और हषके वशीभूत न होना ही ानका फल है।’



तदन तर उन धमा मा प य ने पा और अ यके ारा मह ष जै म नका पूजन कया और उ ह णाम करके उनक कुशल पूछ । फर अपने पंख से हवा करके उनक थकावट र क । जब वे सुखपूवक बैठकर व ाम ले चुके, तब प य ने कहा—‘ न्! आज हमारा ज म सफल हो गया। यह जीवन भी उ म जीवन बन गया; य क आज हम आपके दोन चरण-कमल का दशन मला, जो दे वता के लये भी व दनीय ह। हमारे शरीरम पताजीके ोधसे कट ई जो अ न जल रही है, वह आज आपके दशन पी जलसे सचकर शा त हो गयी। न्! आप कुशलसे तो ह न? आपके आ मम रहनेवाले मृग, प ी, वृ , लता, गु म, बाँस और भाँ त-भाँ तके, तृण—इन सबक कुशल है न? इनपर कोई संकट तो नह है? अब हमपर कृपा क जये और यहाँ अपने आगमनका कारण बतलाइये। हमारा कोई ब त बड़ा भा य था, जो आप इन ने के अ त थ ए।’ जै म न बोले—‘ े प ीगण! मुझे महाभारत-शा म कई स दे ह ह। उन सबको पूछनेके लये पहले म भृगक ु ु ल े महा मा माक डेय मु नके पास गया था। मेरे पूछनेपर उ ह ने कहा—‘ व यपवतपर ोणके पु महा मा प ी रहते ह। वे तु हारे का व तारपूवक उ र दगे।’ उनक आ ासे ही म इस महान् पवतपर आया ँ। आपलोग हमारे को पूण पसे सुनकर उनका ववेचन कर।



प य ने कहा— न्! आपका य द हमारी बु के बाहर न होगा तो हम अव य उसका समाधान करगे। आप नःशङ् क होकर सुन। व वर! चार वेद, धमशा , स पूण वेदा तथा और भी जो वेद के समान माननीय इ तहास-पुराणा द ह, उन सबम हमारी बु का वेश है; तथा प हम कोई त ा नह कर सकते। आपको महाभारतम जो-जो स द ध बात जान पड़े, उसे नभ क होकर पू छये। जै म न बोले—प यो! आपलोग का अ तःकरण नमल है। महाभारतम मेरे लये जो स द ध बात ह, उ ह बताता ँ; सु नये और सुनकर उनक ा या क जये। सव ापी भगवान् जनादन स पूण जगत्के आधार, सम त कारण के भी कारण और नगुण होते ए भी मनु य-शरीरको कैसे ा त ए? पदकुमारी कृ णा अकेली ही पाँच पा डव क महारानी य कर ई? इस वषयम मुझे महान् स दे ह है। इसके सवा ौपद के पाँच महारथी पु , जनका अभी ववाहतक नह आ था, सम त पा डव जनके र क थे तथा जो वयं भी बड़े बलवान् थे, अनाथक भाँ त कैसे मारे गये? महाभारतके वषयम यह मेरा स दे ह है। आपलोग इसका नवारण कर।



प य ने कहा—जो स पूण दे वता के वामी, सव ापक, सबक उ प के कारण, अ तयामी, माण के अ वषय, सनातन, अ वनाशी, चतु ूहव प, गुणमय, नगुण, सबसे बड़े, अ य त गौरवशाली, सव े तथा अमृत व प ह, उन भगवान् व णुको हम सबसे पहले नम कार करते ह। जनसे बढ़कर सू म तथा जनसे अ धक बड़ा भी कोई नह है, जनके ारा यह स पूण व ास है, जो इस जगत्के आ दकारण और अज मा ह, जो उ प , लय, य और परो —सबसे वल ण ह, इस स पूण जगत्को जनक रचना बतलाते ह तथा अ तम जनके भीतर इसका संहार होता है, उन परमे रको हमारा नम कार है। त प ात् जो अपने चार मुख से ऋक्-साम आ द वेद का उ चारण करते ए तीन लोक को प व करते ह, उन आ ददे व ाजीको भी हम एका च से नम कार करते ह। इसी कार जनके एक ही बाणसे परा जत होकर असुरगण कभी या क के य का वनाश नह करते, उन भगवान् शङ् करको भी म तक झुकाते ह। इसके बाद हम अ त कम करनेवाले ासजीके स पूण मत क ा या करगे, ज ह ने महाभारतके उ े यसे धम आ दका रह य कट कया है। त वदश मु नय ने जलको ‘नारा’ कहा है। वह नारा ही पूवकालम भगवान्का नवास थान रहा, इस लये वे नारायण कहे गये ह।* न्! वे सव ापी भगवान् नारायणदे व सबको ा त करके थत ह। वे सगुण भी ह और नगुण भी। उनका थम व प ऐसा है क जसका श द ारा तपादन नह कया जा सकता। व ान् पु ष उसे शु ल (शु व प) दे खते ह। भगवान्का वह द व ह यो तःपु से प रपूण है। वही योगी पु ष क परा न ा (अ तम ल य) है। वह द व प र भी है और समीप भी। उसे सब गुण से अतीत जानना चा हये। उस द व पका ही नाम वासुदेव है। अहंता और ममताका याग करनेसे ही उसका सा ा कार होता है। प और वण आ द का प नक भाव उसम नह ह। वह सदा परम शु एवं उ म अ ध ान व प है। भगवान्का सरा व प शेषके नामसे स है, जो पाताललोकम रहकर पृ वीको अपने म तकपर धारण करता है। इसे तयक् व पको ा त ई तामसी मू त कहते ह। ीह रक तीसरी मू त सम त जाके पालन-पोषणम त पर रहती है। वही इस पृ वीपर धमक न त व था करती है। धमका नाश करनेवाले उ ड असुर को मारती तथा धमक र ाम संल न रहनेवाले दे वता और साधुसंत क र ा करती है। जै म नजी! संसारम जब-जब धमका ास और अधमका उ थान होता है, तब-तब वह अपनेको यहाँ कट करती है।



पूवकालम वही वाराह प धारण करके अपने थूथुनसे जलको हटाकर इस पृ वीको एक ही दाँतसे जलके ऊपर ऐसे उठा लायी मानो वह कोई कमलका फूल हो। उ ह भगवान्ने नृ सह प धारण करके हर यक शपुका वध कया और व च आ द अ य दानव को मार गराया। इसी कार भगवान्के वामन आ द और भी ब त-से अवतार ह, जनक गणना करनेम हम असमथ ह। इस समय भगवान्ने मथुराम ीकृ ण पम अवतार लया है। इस तरह भगवान्क वह सा वक मू त ही भ - भ अवतार धारण करती है। यह आपके पहले का उ र बतलाया गया क भगवान् पूणकाम होते ए भी धम आ दक र ाके लये सदा वे छासे ही अवतीण होते ह। न्! पूवकालम व ा जाप तके पु व प इ के हाथसे मारे गये थे, इस लये ह याने इ को धर दबाया। इससे उनके तेजक बड़ी त ई। इस अ यायके कारण इ का तेज धमराजके शरीरम वेश कर गया, अतः इ न तेज हो गये। तदन तर अपने पु के मारे जानेका समाचार सुनकर व ा जाप तको बड़ा ोध आ। उ ह ने अपने म तकसे एक जटा उखाड़कर सबको सुनाते ए यह बात कही—‘आज दे वता स हत तीन लोक मेरे परा मको दे ख। वह खोट बु वाला घाती इ भी मेरी श का सा ा कार कर ले; य क उस ने अपने ा णो चत कमम लगे ए मेरे पु का वध कया है।’ य कहकर ोधसे लाल आँख कये जाप तने वह जटा अ नम होम द । फर तो उस होमकु डसे वृ नामक महान् असुर कट आ, जसके शरीरसे सब ओर आगक लपट नकल रही थ । वशाल दे ह, बड़ी-बड़ी दाढ़ और कटे -छँ टे कोयलेके ढे रक भाँ त शरीरका रंग था। उस महान् असुर वृ ासुरको अपने वधके लये उ प दे ख इ भयसे ाकुल हो उठे । उ ह ने स धक इ छासे स त षय को उसके पास भेजा। स पूण भूत के हतसाधनम संल न रहनेवाले वे मह ष बड़ी स ताके साथ गये और उ ह ने कुछ शत के साथ इ और वृ ासुरम म ता करा द । इ ने स धक शत का उ लङ् घन करके जब वृ ासुरको मार डाला, तब पुनः उनपर ह याका आ मण आ। उस समय उनका सारा बल न हो गया। इ के शरीरसे नकला आ बल वायुदेवताम समा गया। तदन तर जब इ ने गौतमका प धारण करके उनक प नी अह याके सती वका नाश कया, उस समय उनका प भी न हो गया। उनके अ - य का लाव य, जो बड़ा ही मनोरम था, भचार-दोषसे षत दे वराज इ को छोड़कर दोन अ नीकुमार के पास चला गया। इस कार इ अपने धम, तेज, बल और पसे व चत हो गये। यह जानकर दै य ने उ ह जीतनेका उ ोग आर भ कया।



महामुने! उन दन पृ वीपर जो अ धक परा मी राजा थे, उ ह के कुल म दे वराजको जीतनेक इ छा रखनेवाले अ य त बलशाली दै य उ प ए। कुछ कालके अन तर यह पृ वी पापके भारी भारसे पी ड़त हो मे पवतके शखरपर, जहाँ दे वता क द सभा है, गयी। वहाँ प ँचकर उसने दानव और दै य से होनेवाले अपने खेदका कारण बतलाया। वह बोली—‘दे वताओ! आपने पूवकालम जन महापरा मी असुर का वध कया है, वे सब इस समय मनु यलोकम जाकर राजा के घरम उ प ए ह। ऐसे दै य क अनेक अ ौ हणी सेनाएँ ह। म उनके भारसे पी ड़त होकर नीचेक ओर धँसी जाती ँ। आपलोग ऐसा कोई उपाय कर, जससे मुझे शा त मले।’ प ी कहते ह—पृ वीके य कहनेपर स पूण दे वता अपने-अपने तेजके अंशसे पृ वीपर अवतार लेने लगे। उनके अवतारके दो ही उ े य थे— जाजन का उपकार और पृ वीके भारका अपहरण। इ के शरीरसे जो तेज ा त आ था, उसे वयं धमराजने कु तीके गभम था पत कया। उसीसे महातेज वी राजा यु ध रका ज म आ। फर वायु दे वताने इ के ही बलको कु तीके उदरम था पत कया। उससे भीम उ प ए। इ के आधे अंशसे



अजुनका ज म आ। इसी कार इ का ही सु दर प अ नीकुमार ारा मा के गभम था पत कया गया था, जससे अ य त का तमान् नकुल और सहदे व उ प ए। इस कार दे वराज इ पाँच प म अवतीण ए। उनक प नी शची ही महाभागा कृ णाके पम अ नसे कट । अतः कृ णा एकमा इ क ही प नी थी और कसीक नह । योगी र भी अनेक शरीर धारण कर लेते ह। फर इ तो दे वता ह, उनके पाँच शरीर धारण कर लेनेम या स दे ह है। इस कार पाँच पा डव क जो एक प नी ई, उसका रह य बताया गया।



*



ब धुवग तथा म ं य चे मपरं गृहे । य वा ग छ त त सव न जहा त सर वती ।। (४।६)



*



ो ा मु न भ त वद श भः । अयनं त य ताः पूव तेन नारायणः



आपो नारा इ त मृतः ।।



(४।४३)



राजा ह र



का च र



प ी कहते ह—पहलेक बात है, ेतायुगम ह र नामसे स एक राज ष रहते थे। वे बड़े धमा मा, भूम डलके पालक, सु दर क तसे यु और सब कारसे े थे। उनके रा यकालम कभी अकाल नह पड़ा, कसीको रोग नह आ, मनु य क अकालमृ यु नह ई और पुरवा सय क कभी अधमम च नह ई। उस समय जावगके लोग धन, वीय और तप याके मदसे उ म नह होते थे। कोई भी ी ऐसी नह दे खी जाती थी, जो पूण यौवनाव थाको ा त कये बना ही स तानको ज म दे ती रही हो। एक दन महाबा राजा हर जंगलम शकार खेलने गये थे। वहाँ शकारके पीछे दौड़ते ए उ ह ने बारंबार कुछ य क कातरवाणी सुनी। वे कह रही थ , ‘हम बचाओ, बचाओ।’ राजाने शकारका पीछा छोड़ दया और उन य को ल य करके कहा—‘डरो मत, डरो मत। कौन ऐसा बु वाला पु ष है जो मेरे शासनकालम भी ऐसा अ याय करता है?’ य कहकर य के रोनेके श दका अनुसरण करते ए राजा उसी ओर चल दये। इसी बीचम येक कायके आर भम बाधा उप थत करनेवाला कुमार व नराज इस कार सोचने लगा —‘ये मह ष व ा म बड़े परा मी ह और अनुपम तप याका आ य लेकर उ म तका पालन करते ए उन भवा द व ा का साधन करते ह, जो पहले इ ह स नह हो सक ह। ये मह ष मा, मौन तथा आ मसंयमपूवक जन व ा का साधन करते है, वे उनके भयसे पी ड़त होकर यहाँ वलाप कर रही ह। इनके उ ारका काय मुझे कस कार करना चा हये?’ इस कार वचार करते ए कुमार व नराजने राजाके शरीरम वेश कया। उनके आवेशसे यु होनेपर राजाने ोधपूवक ये बात कही—‘यह कौन पापाचारी मनु य है, जो कपड़ेक गठरीम अ नको बाँध रहा है? बल और च ड तेजसे उ त मुझ राजाके उप थत रहते ए आज कौन ऐसा पापी है, जो मेरे धनुषसे छू टकर स पूण दशा को दे द यमान करनेवाले बाण से सवा म छ - भ होकर कभी न टू टनेवाली न ाम वेश करना चाहता है?’ राजाक यह बात सुनकर तप वी व ा म कु पत हो उठे । उनके मनम ोधका उदय होते ही वे स पूण व ाएँ, जो य के पम रो रही थ , णभरम अ तधान हो गय । तदन तर राजाने उन तप याके भ डार मह ष व ा म क ओर पात कया तो वे बड़े भयभीत ए और सहसा पीपलके प ेक भाँ त थरथर काँपने लगे। इतनेम व ा म बोल उठे —‘ओ रा मा! खड़ा तो रह।’ तब राजाने वनयपूवक मु नके चरण म णाम कया और कहा



—‘भगवन्! यह मेरा धम था। भो! इसे आप मेरा अपराध न मान। मुने! अपने धमक र ाम लगे ए मुझ राजापर आपको ोध नह करना चा हये। धम राजाको तो यह उ चत ही है क वह धमशा के अनुसार दान दे , र ा करे और धनुष उठाकर यु करे।’



व ा म बोले—‘राजन्! य द तु ह अधमका डर है, तो शी बताओ— कसको दान दे ना चा हये? कनक र ा करनी चा हये और कनके साथ यु करना चा हये? हर ने कहा— े ा ण को तथा जनक जी वका न हो गयी हो, ऐसा अ य मनु य को भी दान दे ना चा हये। भयभीत ा णय क र ा करनी चा हये और श ु के साथ सदा यु करना चा हये।* व ा म बोले—य द तुम राजा हो और राज-धमको भलीभाँ त जानते हो तो म त हक इ छा रखनेवाला ा ण ँ, मुझे इ छानुसार द णा दो। प ीगण कहते ह—मह षक यह बात सुनकर राजाने अपना नया ज म आ माना और स च से कहा।



हर बोले—भगवन्! आपको म या ँ , आप नःशङ् क होकर क हये। य द कोई लभ-से- लभ व तु हो तो उसे भी द ई ही समझ। व ा म ने कहा—वीरवर! तुम समु , पवत, ाम और नगर स हत यह सारी पृ वी मुझे दे दो। रथ, घोड़े, हाथी, कोठार और खजानेस हत सारा रा य भी मुझे सम पत कर दो। इसके अ त र भी जो कुछ तु हारे पास है, वह मुझे दे दो। केवल अपनी ी, पु और शरीरको अपने पास रख लो। साथ ही अपने धमको भी तु ह रखो; य क वह सदा कताके ही साथ रहता है, परलोकम जानेपर भी वह साथ जाता है। मु नका यह वचन सुनकर राजाने स चतसे ‘तथा तु’ कहा। हाथ जोड़कर उनक आ ा वीकार क । उस समय उनके मुखपर शोक या च ताका कोई च नह था। व ा म बोले—राजष! य द तुमने अपना रा य, पृ वी, सेना और धन आ द सव व मुझे सम पत कर दया तो मुझ तप वीके इस रा यम रहते कसका भु व रहा? हर ने कहा—‘ न्! मने जस समय यह पृ वी द है, उसी समय आप मेरे भी वामी हो गये। फर आपके इस पृ वीके राजा होनेक तो बात ही या है। व ा म बोले—राजन्! य द तुमने यह सारी पृ वी मुझे दान कर द तो जहाँ-जहाँ मेरा भु व हो, वहाँसे तु ह नकल जाना चा हये। करधनी आ द सम त आभूषण का सं ह यह छोड़कर तुम व कलका व लपेट लो और अपनी प नी तथा पु के साथ चले जाओ। ‘ब त अ छा’ कहकर राजा ह र अपनी प नी शै या तथा पु रो हता को साथ ले वहाँसे जाने लगे। उस समय व ा म ने उनका माग रोककर कहा—‘मुझे राजसूय-य क द णा दये बना ही तुम कहाँ जा रहे हो?’ हर बोले—भगवन्! यह अक टक रा य तो मने आपको दे ही दया, अब तो मेरे पास ये तीन शरीर ही शेष बचे ह।



व ा म ने कहा—तो भी तु ह मुझे य क द णा तो दे नी ही चा हये। वशेषतः ा ण को कुछ दे नेक त ा करके य द न दया जाय तो वह त ा-भ का दोष उस का नाश कर डालता है। राजन्! राजसूय-य म ा ण को जतनेसे स तोष हो, उस य क उतनी ही द णा दे नी चा हये। तुमने ही पहले त ा क है क दे नेक घोषणा कर दे नेपर अव य दे ना चा हये, आतता यय से यु करना चा हये तथा आतजन क र ा करनी चा हये। हर बोले—भगवन्! इस समय मेरे पास कुछ भी नह है। समयानुसार अव य आपको ँ गा। व ा म ने कहा—राजन्! इसके लये मुझे कतने समयतक ती ा करनी होगी, शी बताओ। हर बोले— ष! म एक महीनेम आपको द णाके लये धन ँ गा। इस समय मेरे पास धन नह है, अतः मुझे जानेक आ ा द जये। व ा म ने कहा—नृप े ! जाओ, जाओ! अपने धमका पालन करो। तु हारा माग क याणमय हो।



प ी कहते ह— व ा म ने जब ‘जाओ’ कहकर जानेक आ ा द , तब राजा ह र नगरसे चले। उनके पीछे उनक यारी प नी शै या भी चली, जो पैदल चलनेके यो य कदा प नह थी। रानी और राजकुमारस हत राजा हर को नगरसे नकलते दे ख उनके अनुयायी सेवकगण तथा पुरवासी मनु य वलाप करने लगे—‘हा नाथ! हम पी ड़त का आप य प र याग कर रहे ह? राजन्! आप धमम त पर रहनेवाले तथा पुरवा सय पर कृपा रखनेवाले ह। राजष! य द आप धम समझ तो हम भी अपने साथ ले चल। महाराज! दो घड़ी तो ठहर जाइये। हमारे ने पी मर आपके मुखार व दक पसुधाका पान कर ल। फर हम कब आपके दशनका सौभा य ा त होगा। हाय! जन महाराजके आगे-आगे चलनेपर पीछे से कतने ही राजा चला करते थे, आज उ ह के पीछे उनक यह रानी अपने बालक पु को गोद लेकर चल रही है। या ाके समय जनके सेवक भी हा थय पर बैठकर आगे जाते थे, वे ही महाराज हर आज पैदल चल रहे ह! हा राजन्! मनोहर भ ह , चकनी वचा तथा ऊँची ना सकासे सुशो भत आपका सुकुमार मुख मागम धू लसे धूस रत एवं लेशयु होकर न जाने कैसी दशाको ा त होगा। नृप े ! ठहर जाइये, ठहर जाइये; यह अपने धमका पालन क जये। ू रताका प र याग ही सबसे बड़ा धम है। वशेषतः य के लये तो यही सबसे उ म है। नाथ! अब हम ी, पु , धन-धा य आ दसे या लेना है। यह सब छोड़कर हमलोग आपके साथ छायाक भाँ त रहगे। हा नाथ! हा महाराज!! हा वा मन्!!! आप हम य याग रहे ह? जहाँ आप रहगे, वह हम भी रहगे। जहाँ आप ह, वह सुख है। जहाँ आप ह, वह नगर है और जहाँ हमारे महाराज आप ह, वह हमारे लये वग है!’



पुरवा सय क ये बात सुनकर राजा ह र शोकम न हो उनपर दया करनेके लये ही मागम उस समय ठहर गये। व ा म ने दे खा, राजाका च पुरवा सय के वचन से ाकुल हो उठा है; तब वे उनके पास आ प ँचे और रोष तथा अमषसे आँख फाड़कर बोले—‘अरे! तू तो बड़ा राचारी, झूठा और कपटपूण बात करनेवाला है। ध कार है तुझे, जो मुझे रा य दे कर फर उसे वापस ले लेना चाहता है।’ व ा म का यह कठोर वचन सुनकर राजा काँप उठे और ‘जाता ँ, जाता ँ’ कहकर अपनी प नीका हाथ पकड़कर ख चते ए शी तापूवक चले। राजा अपनी प नीको ख च रहे थे। वह सुकुमारी अबला चलनेके प र मसे थककर ाकुल हो रही थी तो भी व ा म ने सहसा उसक पीठपर डंडेसे हार कया। महारानीको इस कार मार खाते दे ख महाराज हर ःखसे आतुर होकर केवल इतना ही कह सके, ‘भगवन्! जाता ँ।’ उनके मुखसे और कोई बात नह नकल सक । उस समय परम दयालु पाँच व ेदेव आपसम इस कार कहने लगे—‘ओह! यह व ा म तो बड़ा पापी है। न जाने कन लोक म जायगा। इसने य कता म े इन महाराजको अपने रा यसे नीचे उतार दया है।’



व ेदेव क यह बात सुनकर व ा म को बड़ा रोष आ। उ ह ने उन सबको शाप दे ते ए कहा—‘तुम सब लोग मनु य हो जाओ।’ फर उनके अनुनय- वनयसे स होकर उन महामु नने कहा—‘मनु य होनेपर भी तु हारे कोई स तान नह होगी, तुम ववाह भी नह करोगे। तु हारे मनम कसीके त ई या और े ष भी नह होगा। तुम पुनः काम- ोधसे मु होकर दे व वको ा त कर लोगे।’ तदन तर वे व ेदेव अपने अंशसे कु वं शय के घरम अवतीण ए। वे ही ौपद के गभसे उ प पाँच पा डवकुमार थे। महामु न व ा म के शापसे ही उनका ववाह नह आ। जै म न! इस कार हमने पा डवकुमार क कथासे स ब ध रखनेवाली बात तु ह बतला द । अब और या सुनना चाहते हो? जै म न बोले—आपलोग ने मशः मेरे के उ रम ये सारी बात बताय । अब मुझे ह र क शेष कथा सुननेके लये बड़ा कौतूहल हो रहा है। अहो, उन महा माने ब त बड़ा क उठाया। े प यो! या उ ह इस ःखके अनु प ही कोई सुख भी कभी ा त आ?



प य ने कहा— व ा म क बात सुनकर राजा ःखी हो धीरे-धीरे आगे बढ़े । उनके पीछे न हे-से पु को गोद लये रानी शै या चल रही थ । द वाराणसीपुरीके पास प ँचकर राजाने वचार कया क यह काशी मनु यक भो य भू म नह है, इसपर केवल शूलपा ण भगवान् शङ् करका अ धकार है; अतः यह मेरे रा यसे बाहर है। ऐसा न य करके ःखसे पी ड़त हो उ ह ने अपनी अनुकूल प नीके साथ पैदल ही काशीम वेश कया। पुरीम वेश करते ही उ ह मह ष व ा म सामने खड़े दखायी दये। उ ह उप थत दे ख राजा हर हाथ जोड़कर वनीत भावसे खड़े हो गये और बोले—‘मुने! ये मेरे ाण, यह पु और यह प नी यहाँ तुत ह। इनमसे जसक आपको आव यकता हो, उसे उ म अ यके पम वीकार क जये अथवा हमलोग य द आपक और कोई सेवा कर सकते ह तो उसके लये भी आ ा द जये।’ व ा म बोले—राजष! आज एक मास पूण हो गया। य द आपको अपनी बातका मरण हो तो मुझे राजसूय-य के लये द णा द जये। हर ने कहा—तपोधन! अभी आज ही महीना पूरा हो रहा है। उसम आधा दन शेष है। इतने समयतक और ती ा क जये। अब अ धक दे री नह होगी। व ा म बोले—महाराज! ऐसा ही सही। म फर आऊँगा। य द आज मुझे द णा न दोगे तो म तु ह शाप दे ँ गा। य कहकर व ा म चले गये। उस समय राजा इस च ताम पड़े क पहले वीकार क ई द णा म इ ह कस कार ँ । या म अपने ाण याग ँ ? इस अ क चन दशाम कधर जाऊँ? य द त ा क ई द णा दये बना ही मर जाऊँ तो ा णके धनका अपहरण करनेके कारण पापा मा समझा जाऊँगा और मुझे अधम-से-अधम क टयो नम ज म लेना पड़ेगा। अथवा यह द णा चुकानेके लये अपनेको बेचकर कसीक दासता वीकार कर लूँ? बस, अपनेको बेचना ही ठ क है। राजा ह र अ य त ाकुल एवं द न होकर नीचा मुख कये जब इस कार च ता कर रहे थे, उस समय उनक प नीने ने से आँसू बहाते ए ग दवाणीम कहा—‘महाराज! च ता छो ड़ये। अपने स यक र ा क जये। जो मनु य स यसे वच लत होता है, वह मशानक भाँ त याग दे ने यो य है। नर े ! पु षके लये अपने स यक र ासे बढ़कर सरा कोई धम नह बतलाया गया है। जसका वचन नरथक ( म या) हो जाता है, उसके अ नहो , वा याय तथा दान आ द स पूण कम न फल हो जाते ह। धमशा म बु मान् पु ष ने स यको ही संसारसागरसे तारनेके लये सव म



साधन बताया है। इसी कार जनका मन अपने वशम नह है, ऐसे पु ष को पतनके गतम गरानेके लये अस यको ही धान कारण बताया गया है।* कृ त नामके राजा सात अ मेध और एक राजसूय-य का अनु ान करके भी एक ही बार अस य बोलनेके कारण वगसे गर गये थे। महाराज! मुझसे पु का ज म हो चुका है……’ इतना कहकर रानी शै या फूट-फूटकर रोने लगी।



हर बोले—क या ण! यह स ताप छोड़ो और जो कुछ कहना चाहती थी, उसे साफ-साफ कहो। रानीने कहा—महाराज! मुझसे पु का ज म हो चुका है। े पु ष ीसं हका फल पु ही बतलाते ह। वह फल आपको मल चुका है, अतः मुझीको बेचकर ा णको द णा चुका द जये। महारानीका यह वचन सुनकर राजा ह र मू छत हो गये। फर होशम आनेपर वे अ य त ःखी होकर वलाप करने लगे—‘क याणी! यह महान् ःखक बात है, जो तुम मुझसे ऐसा कह रही हो।’ य कहकर नर े ह र पृ वीपर गर पड़े और मू छत हो गये। महाराज ह र को पृ वीपर पड़ा दे ख



रानी अ य त ः खत होकर बड़ी क णाके साथ बोल —‘हा महाराज! यह कसका चीता आ अ न फल आपको ा त आ? आप तो रंकुनामक मृगके रोएँसे बने ए कोमल एवं चकने व पर शयन करने यो य ह, क तु आज भू मपर पड़े ह। ज ह ने करोड़ से भी अ धक गोधन ा ण को दान दया है, वे ही ये मेरे ाणनाथ महाराज इस समय धरतीपर सो रहे ह! हाय! कतने क क बात है। अरे ओ दव! इन महाराजने तेरा या बगाड़ा था, जो इ और भगवान् व णुके तु य होकर भी ये यहाँ मू छत दशाम पड़े ह’ इतना कहकर सु दरी शै या प तके ःख के अस बोझसे पी ड़त हो वयं भी गरकर मू छत हो गयी।



इसी बीचम महातप वी व ा म जी भी आ धमके। उ ह ने राजा हर को मू छत होकर भू मपर पड़ा दे ख उनपर जलके छ ट डाले और इस कार कहा—‘राजे ! उठो, उठो। य द तु हारी धमपर हो तो मुझे पूव द णा दे दो। स यसे ही सूय तप रहा है। स यपर ही पृ वी टक ई है। स यभाषण सबसे बड़ा धम है। स यपर ही वग त त है। एक हजार अ मेध और एक स यको य द तराजूपर तोला जाय तो हजार अ मेधसे स य ही भारी



स होगा।* राजन्! य द आज तुम मुझे द णा न दोगे तो सूया त होनेपर तु ह न य ही शाप दे ँ गा।’ इतना कहकर व ा म चले गये। इधर राजा हर उनके भयसे ाकुल हो उठे । सोचने लगे—‘हाय! म अधम कहाँ भागकर जाऊँ।’ उनक दशा ू र वभाववाले धनीसे पी ड़त नधन पु षक -सी हो रही थी। उस समय उनक प नीने फर कहा—‘नाथ! मेरी बात मानकर वैसा ही क जये, अ यथा आपको शापा नसे द ध होकर मरना पड़ेगा।’ जब प नीने बार-बार उ ह े रत कया, तब राजा बोले—‘क याणी! म बड़ा नदयी ँ। लो, अब तु ह बेचने चलता ँ। ू र-से- ू र मनु य भी जो काय नह कर सकते, वही आज म क ँ गा।’ प नीसे य कहकर राजा ाकुल च से नगरम गये और ने से आँसू बहाते ए ग दक ठसे बोले।



राजाने कहा—ओ नाग रको! तुम सब लोग मेरी बात सुनो, या तुम मेरा प रचय पूछ रहे हो? लो, सुनो, म मनु य नह , अ य त ू र ाणी ँ; य क अपनी ाण यारी प नीको यहाँ बेचनेके लये आया ँ। य द आपलोग मसे कसीको मेरी इस ाण से भी बढ़कर यतमा प नीसे दासीका काम लेनेक



आव यकता हो तो वह शी बोले; इस अस ःखम भी जबतक म जीवन धारण कये ए ँ, तभीतक बात कर ले। तदन तर कोई बूढ़ा ा ण सामने आकर राजासे बोला—‘दासीको मेरे हवाले करो। म इसे धन दे कर खरीदता ँ। मेरे पास धन ब त है और मेरी यारी प नी अ य त सुकुमारी है। वह घरके काम-काज नह कर सकती। इस लये यह दासी मुझे दे दो। तुम अपनी इस प नीक कायद ता, अव था, प और वभावके अनु प यह धन लो और इसे मेरे हवाले करो।’ ा णके ऐसा कहनेपर राजा ह र का दय ःखसे वद ण हो गया। वे उसे कोई उ र न दे सके। तब उस ा णने राजाके व कल-व म उस धनको अ छ तरह बाँध दया और उनक प नीको ख चकर वह अपने साथ ले चला। माताको इस दशाम दे खकर बालक रो हता रो उठा और हाथसे उसका व पकड़कर अपनी ओर ख चने लगा। उस समय रानीने अपने पु से कहा—‘बेटा! आओ, जी भरकर दे ख लो। तु हारी माता अब दासी हो गयी। तुम राजपु हो, मेरा पश न करो। अब म तु हारे पश करनेयो य न रही।’ फर सहसा अपनी माताको ख चकर ले जाये जाते ए दे ख बालक रो हता ‘मा, मा’ कहकर रोता आ दौड़ा। उस समय उसके ने से आँसू बह रहे थे। जब बालक पास आया, तब उस ा णने ोधम भरकर उसे लातसे मारा तो भी उसने अपनी माको नह छोड़ा। केवल ‘माई, माई’ कहकर वलखता रहा।



तब रानीने ा णसे कहा— वा मन्! आप मुझपर कृपा क जये। इस बालकको भी खरीद ली जये। य प आपने मुझे खरीद लया है, तथा प इस बालकके बना म आपके कायको अ छ तरह नह कर सकती। म बड़ी अभा गनी ँ। आप मुझपर दया करके स ह और बछड़ेसे गायक तरह इस बालकसे मुझे मलाइये। ा ण बोला—राजन्! यह धन लो और इस बालकको भी मेरे हवाले करो। य कहकर उसने पूववत् राजाके उ रीय-ख डम वह धन बाँध दया और बालकको उसक माताके साथ लेकर चल दया। इस कार प नी और पु को ले जाये जाते दे ख राजा ह र अ य त ःखसे कातर हो गये और वलाप करने लगे—‘हाय! पहले जसे वायु, सूय, च मा तथा बाहरी लोग कभी नह दे ख पाते थे, वही मेरी प नी आज दासी बन गयी। जसके हाथ क अँगु लयाँ अ य त सुकुमार ह, वह सूयवंशम उ प । मेरा बालक आज बेच दया गया। हा ये! हा पु !! हा व स!!! मुझ नीचके अ यायसे तु ह दै वाधीन दशाको ा त होना पड़ा। फर भी मेरी मृ यु नह होती—मुझे ध कार है।’



राजा ह र इस कार वलाप कर रहे थे, इतनेम ही वह ा ण उन दोन को साथ ले ऊँचे-ऊँचे वृ और गृह आ दक ओटम छप गया। वह बड़ी शी तासे चल रहा था। तदन तर व ा म ने वहाँ प ँचकर राजासे धन माँगा। हर ने भी वह धन उ ह सम पत कर दया। प नी और पु को बेचनेसे ा त ए उस धनको थोड़ा दे खकर कौ शक मु नने शोकाकुल राजासे कु पत होकर कहा—‘ याधम! या तू इसीको मेरे य के अनु प द णा मानता है? य द ऐसी बात है तो मेरे महान् बलको दे ख। अपनी भलीभाँ त क ई तप याका, नमल ा ण वका, उ भावका तथा वशु वा यायका बल तुझे दखाता ँ।’ हर ने कहा—भगवन्! कुछ काल और ती ा क जये और भी द णा ँ गा। इस समय नह है। मेरी प नी और पु बक चुके ह। व ा म ने कहा—राजन्! दनका चौथा भाग शेष है। इतने ही समयतक मुझे ती ा करनी है। बस, इसके उ रम तु ह कुछ कहनेक आव यकता नह है।



राजा ह र से इस कार नदयतापूण न ु र वचन कहकर और उस धनको लेकर कोपम भरे ए व ा म तुरंत वहाँसे चल दये। उनके जानेपर राजा भय और शोकके समु म डू ब गये; उ ह ने सब कार वचार करके अपना कत न त कया और नीचा मुँह करके आवाज लगायी—‘जो मनु य मुझे धनसे खरीदकर दासका काम लेना चाहता हो, वह सूयके रहते-रहते शी ही बोले।’ उसी समय धम चा डालका प धारण करके तुरंत वहाँ आये। उस चा डालके शरीरसे ग ध नकल रही थी। वकृत आकार, खा बदन, दाढ़ मूँछ बढ़ ई और दाँत नकले ए थे। नदयताक तो वह मू त ही था। काला रंग, लंबा पेट, पीलापन लये ए खे ने और कठोर वाणी—यही उसक लया थी। उसने झुंड-के-झुंड प य को पकड़ रखा था। मुद पर चढ़ ई माला से वह अलङ् कृत था। उसने एक हाथम खोपड़ी और सरेम लाठ ले रखी थी। उसका मुँह ब त बड़ा था। वह दे खनेम भयानक तथा बारंबार ब त बकवाद करनेवाला था। कु से घरे होनेके कारण उसक भयंकरता और भी बढ़ गयी थी। चा डाल बोला—मुझे तु हारी आव यकता है तुम शी ही अपनी क मत बताओ। थोड़े अथवा ब त, जतने धनसे तुम ा त हो सको, उसे कहो।



चा डालक से ू रता टपक रही थी। वह बड़ी न ु रताके साथ बात करता था। दे खनेसे अ य त राचारी तीत होता था। इस पम उसे दे खकर राजाने पूछा—‘तू कौन है?’ चा डालने कहा—म चा डाल ँ। इस े नगरीम मुझे सब लोग वीरके नामसे पुकारते ह। म व य मनु य का वध करनेवाला और मुद का व लेनेवाला स ँ। हर बोले—म चा डालका दास होना नह चाहता। वह ब त ही न दत कम है। शापा नसे जल मरना अ छा, क तु चा डालके अधीन होना कदा प अ छा नह है। वे इस कार कह ही रहे थे क महान् तप वी व ा म मु न आ प ँचे और ोध एवं अमषसे आँख फाड़कर राजासे बोले—‘यह चा डाल तु ह ब त-सा धन दे नेके लये उप थत है। उसे हण करके मुझे य क पूरी द णा य नह दे ते? य द तुम चा डालके हाथ अपनेको बेचकर उससे मला आ धन मुझे नह दोगे, तो म नःस दे ह तु ह शाप दे ँ गा।’



हर ने कहा— ष! म आपका दास ँ, ःखी ँ, भयभीत ँ और वशेषतः आपका भ ँ। आप मुझपर कृपा कर। चा डालका स पक बड़ा ही न दनीय है। मु न े ! शेष धनके बदले म आपका ही सब काय करनेवाला, आपके अधीन रहनेवाला तथा आपक इ छाके अनुसार चलनेवाला दास बनकर र ँगा। व ा म बोले—य द तुम मेरे दास हो तो मने एक अरब वणमु ा लेकर तु ह चा डालको दे दया। अब तुम उसके दास हो गये। मु नके ऐसा कहनेपर चा डाल मन-ही-मन ब त स आ। उसने व ा म को धन दे कर राजाको बाँध लया और उ ह डंड क मारसे अचेत-सा करता आ वह अपने घरक ओर ले चला। उस समय राजाक इ याँ अ य त ाकुल हो गयी थ । तदन तर राजा ह र चा डालके घरम रहने लगे। वे त दन सबेरे, दोपहर और शामको न नाङ् कत बात गुनगुनाया करते थे। ‘हाय! मेरी द नमुखी प नी अपने आगे द नमुख बालक रो हता को दे खकर अ य त ःखम म न हो जाती होगी और उस समय इस आशासे क राजा धन कमाकर हम दोन को छु ड़ायेगे, बारंबार मेरा मरण करती होगी। उसे इस बातका पता न होगा क म ा णको और भी अ धक धन दे कर अ य त पापमय संसगम जीवन तीत कर रहा ँ। रा यका नाश, सु द का याग, प नी और पु का व य तथा अ तम चा डाल वक ा त—अहो! यह एकके बाद एक ःखक कैसी पर परा चली आती है।’



इस कार वे चा डालके घरम रहते ए त दन अपने य पु तथा अनुकूल प नीका मरण कया करते थे। अपना सव व छन जानेके कारण राजा ब त ाकुल रहते थे। कुछ कालके बाद राजा ह र चा डालके वशम होनेके कारण मशानघाटपर मुद के कपड़े (कफन) सं ह करनेके कामम नयु ए। चा डालने उ ह आ ा द थी क ‘तुम मुद के आनेक ती ाम रात- दन यह रहो।’ यह आदे श पाकर राजा काशीपुरीके द ण मशान-भू मम बने ए शवम दरम गये। उस मशानम बड़ा भयङ् कर श द होता था। वहाँ सैकड़ सया रन भरी रहती थ । चार ओर मुद क खोप ड़याँ बखरी पड़ी थ । सारा मशान ग धसे ा त और अ य त धूमसे आ छा दत था। उसम पशाच, भूत, वेताल, डा कनी और य रहा करते थे। ग और गीदड़ से भी वह थान भरा रहता था। झुंड-के-झुंड कु े उसे घेरे रहते थे। य -त ह य के ढे र लगे ए थे। सब ओरसे बड़ी ग ध आती थी। अनेक मृत य के ब धु-बा धव के क ण- दनसे वह मशान-भू म बड़ी ही भयानक और कोलाहलपूण रहती थी। ‘हा पु ! हा म ! हा ब धु! हा ाता! हा व स! हा यतम! हा प तदे व! हाय ब हन! हा माता! हा मामा! हा पतामह! हा



मातामह! हा पताजी! हा पौ ! हा बा धव! तुम कहाँ चले गये? लौट आओ।’ इस कार वलाप करनेवाल क क णापूण व न वहाँ जोर-जोरसे सुनायी पड़ती थी। ऐसी भू मम नवास करनेके कारण राजा न रातम सो पाते थे, न दनम। बारंबार हाहाकार करते रहते थे। इस कार उनके बारह महीने सौ वष के समान बीते। अ तम राजाने ःखी होकर दे वता क शरण ली और कहा—‘महान् धमको नम कार है। जो स चदान द व प, स पूण जगत्क सृ करनेवाले वधाता, परा पर , शु , पुराणपु ष एवं अ वनाशी ह, उन भगवान् व णुको नम कार है। दे वगु बृह प त! तु ह नम कार है। इ को भी नम कार है।’ य कहकर राजा पुनः चा डालके कायम लग गये।



तदन तर महाराज ह र क प नी शै या साँपके काटनेसे मरे ए अपने बालकको गोदम उठाये वलाप करती ई मशान-भू मम आयी। वह बार-बार यही कहती थी, ‘हा व स! हा पु ! हा शशो!’ उसका शरीर अ य त बल हो गया था। का त म लन पड़ गयी थी। मन बेचैन था। सरके बाल म धूल जम गयी थी। शै याके वलापका श द सुनकर राजा ह र तुरंत उसके पास गये।



उ ह आशा थी, वहाँ भी मुदके शरीरका कफन मलेगा। वे जोर-जोरसे रोती ई अपनी प नीको पहचान न सके। अ धक कालतक वासम रहनेके कारण वह ब त स त त थी। ऐसी जान पड़ती थी, मानो उसका सरा ज म आ हो। शै याने भी पहले उनके म तकको मनोहर केश से सुशो भत दे खा था। अब उनके सरपर जटा थी। वे सूखे ए वृ के समान जान पड़ते थे। इस अव थाम वह भी अपने प तको न पहचान सक । राजाने काले कपड़ेम लपटे ए बालकको, जसे साँपने काट खाया था तथा जसके अ म राजो चत च दखायी दे ते थे, जब दे खा तो उ ह बड़ी च ता ई। वे सोचने लगे—‘अहो! बड़े क क बात है, यह बालक कसी राजाके कुलम उ प आ था; क तु रा मा कालने इसे कसी और ही दशाको प ँचा दया। अपनी माताक गोदम पड़े ए इस बालकको दे खकर मुझे कमलके समान ने वाला अपना पु रो हता याद आ रहा है। य द उसे भयंकर कालने अपना ास न बनाया होगा तो वह मेरा लाड़ला भी इसी उ का आ होगा।’ इतनेम ही रानीने वलाप करते ए कहा—हा व स! कस पापके कारण यह अ य त भयंकर ःख आ पड़ा है, जसका कभी अ त ही नह आता। हा ाणनाथ! आप कहाँ ह? ओ वधाता! तूने रा यका नाश कया, सु द से वछोह कराया और ी तथा पु को भी बकवा दया। अरे! तूने राज ष हर क कौन-सी दशा नह क । रानीका यह वचन सुनकर अपने पथसे ए राजा ह र ने अपनी ाण यारी प नी तथा मृ युके मुखम पड़े ए पु को पहचान लया। ‘ओह! कतने क क बात है, यह शै या इस अव थाम और यह वही मेरा पु है?’ य कहते ए वे ःखसे स त त होकर रोते-रोते मू छत हो गये। इस अव थाम प ँचे ए राजाको पहचानकर रानीको भी बड़ा ःख आ। वह भी मू छत होकर धरतीपर गर पड़ी। उसका शरीर न े हो गया। फर थोड़ी दे र बाद होशम आनेपर महाराज और महारानी दोन साथ-ही-साथ शोकके भारसे पी ड़त एवं स त त हो वलाप करने लगे। राजाने कहा—हा व स! सु दर ने , भ ह, ना सका और बाल से यु तु हारा यह सुकुमार एवं द न मुख दे खकर मेरा दय य नह वद ण हो जाता। हा बेटा! तुम मेरे अ - य से उ प तथा मन और दयको आन द दे नेवाले थे, क तु मुझ-जैसे पताने तु ह एक साधारण व तुक भाँ त बेच डाला। हाय! दव पी ू र सपने सब कारके साधन और वैभवसे पूण मेरे महान् रा यका अपहरण करके अब मेरे पु को भी काट खाया। दै व पी सपसे



डसे ए अपने पु के मुख-कमलको दे खते ए भी म इस समय उसीके भयंकर वषके भावसे अंधा हो रहा ँ। आँसू बहाते ए ग दक ठसे य कहकर राजाने बालकको उठाकर छातीसे लगा लया और मू छासे न े होकर पृ वीपर गर पड़े। उस समय रानी इस कार बोली—ये तो वही नर े जान पड़ते ह। केवल वरसे इनक पहचान हो रही है। इसम त नक भी स दे ह नह क ये व जन के दय पी चकोरको आ ा दत करनेवाले च प महाराज हर ही ह; क तु वे महाराज इस समय मशानम कैसे आ प ँचे? अब शै या पु -शोकको भूलकर गरे ए प तको दे खने लगी। प त और पु द न क च तासे पी ड़त, व मत एवं द न ई रानी जब प तक दशाका नरी ण कर रही थी, उस समय उसक अपने वामीके उस द डपर पड़ी, जो ब त ही घृ णत एवं चा डालके धारण करने यो य था। यह दे खते ही वह बेहोश होकर गर पड़ी। फर धीरे-धीरे जब चेत आ तो ग द-वाणीम कहने लगी—‘ओ दै व! तूने दे वताके समान का तमान् इन महाराजको चा डालक दशाको प ँचा दया। तूने इनके रा यका नाश, सु द का याग और ी-पु का व य कराकर भी इ ह नह छोड़ा। आ खर इ ह राजासे चा डाल बना दया! हा राजन्! आज म आपके पास छ , झारी, चँवर और जन—कुछ भी नह दे खती। यह वधाताका कैसा वपरीत भाव है! पूवकालम जनके आगे-आगे चलनेपर कतने ही राजा सेवक बनकर अपनी चादर से धरती बुहारा करते थे, वे ही महाराज अब ःखसे पी ड़त हो इस अप व मशानभू मम वचरते ह, जहाँ खोप ड़य से सटे कतने ही म के घड़े चार ओर बखरे पड़े ह। जहाँ मृतक क लाशसे चब गल-गलकर पृ वीके सूखे दोन म पड़ रही है। चताक राख, अँगारे, अधजली ह य और म जाके ढे रसे यहाँक भयंकरता ब त बढ़ गयी है। यहाँसे गृ और गीदड़ के भयंकर नाद सुनकर छोटे -छोटे प ी भाग गये ह। चताके धुएस ँ े यहाँक सारी दशाएँ काली दखायी दे ती ह।’



य कहकर महारानी शै या महाराज ह र के क ठम लग गयी तथा क एवं सैकड़ कारके शोकसे आ ा त हो आ वाणीम वलाप करने लगी —‘राजन्! यह व है या स य? महाभाग! आप इसे जैसा समझते ह , बतलाय। मेरा मन अचेत होता जा रहा है?’ रानीक यह बात सुनकर महाराज ह र ने गरम साँस ली और ग दवाणीम अपनेको चा डाल व ा त होनेक सारी कथा कह सुनायी। उसे सुनकर रानीको बड़ा ःख आ और उसने गरम साँस ख चकर ब त दे रतक रोनेके प ात् अपने पु क मृ युक यथाथ घटना नवे दत क । पु के मरनेक बात सुनकर राजा पुनः पृ वीपर गर पड़े और वलाप करते ए बोले—‘ ये! अब म अ धक दन तक जी वत रहकर लेश भोगना नह चाहता; पर तु मेरा अभा य तो दे खो, मेरा आ मा भी मेरे अधीन नह है। तुम मेरे अपराध को मा करना। म आ ा दे ता ँ, तुम ा णके घर चली जाओ। शुभे! ‘म राजप नी ँ’, इस अ भमानम आकर कभी उस ा णका अपमान न करना। सब कारके य न करके उसे स तु रखना; य क वामी दे वताके समान होता है।’ रानी बोली—राजष! मुझसे भी अब यह ःखका भार नह सहा जाता, अतः आपके साथ ही म भी चताक जलती ई आगम वेश क ँ गी।



यह सुनकर राजाने कहा—‘प त ते! जैसी तु हारी इ छा हो, वैसा ही करो।’ तदन तर राजाने चता बनाकर उसके ऊपर अपने पु को रखा और अपनी प नीके साथ हाथ जोड़कर सबके ई र परमा मा नारायण ीह रका मरण कया, जो दय पी गुफाम वराजमान ह तथा जनका वासुदेव, सुरे र, आ द-अ तर हत, , कृ ण, पीता बर एवं शुभ आ द नाम से च तन कया जाता है। उनके इस कार भगव मरण करनेपर इ आ द स पूण दे वता धमको अगुआ बनाकर तुरंत वहाँ आये और इस कार बोले—‘राजन्! हमारी बात सुनो, तु हारे मरण करनेपर स पूण दे वता यहाँ उप थत ए ह। ये सा ात् पतामह ाजी ह और ये वयं भगवान् धम ह। इनके सवा सा यगण, व ेदेव, म ण और लोकपाल भी अपने वाहन स हत पधारे ह। नाग, स , ग धव, , अ नीकुमार तथा और भी ब त-से दे वता यहाँ उप थत ए ह। साथ ही बाबा व ा म जी भी ह।’ त प ात् धमने कहा—राजन्! ाण यागनेका साहस न करो। म सा ात् धम तु हारे पास आया ँ। तुमने अपने मा, इ यसंयम तथा स य आ द गुण से मुझे स तु कया है। इ बोले—महाभाग ह र ! म इ तु हारे पास आया ँ। तुमने ीपु के साथ सनातन लोक पर अ धकार ा त कया है। राजन्! प नी और पु को साथ लेकर वगलोकको चलो, जसे तुमने अपने शुभकम से ा त कया है तथा जो सरे मनु य के लये अ य त लभ है। इसके बाद इ ने चताके ऊपर आकाशसे अमृतक वृ क , जो अकालमृ युका नवारण करनेवाली है। फर फूल क भी वषा होने लगी। दे वता क भ जोर-जोरसे बज उठ । इस कार वहाँ एक त ए दे वता के समाजम महा मा राजाका पु रो हता चतासे जी वत हो उठा। उसका शरीर सुकुमार और व थ था। उसक इ य और मनम स ता थी। फर तो महाराज ह र ने अपने पु को तुरंत छातीसे लगा लया। वे ीस हत पूववत् तेज और का तसे स प हो गये। उनक दे हपर द हार और व शोभा पाने लगे। राजा व थ एवं पूणमनोरथ हो परम आन दम नम न हो गये। उस समय इ ने पुनः उनसे कहा—‘महाभाग! ी और पु स हत तु ह उ म ग त ा त होगी, अतः अपने कम के फल भोगनेके लये द लोकको चलो।’



हर



ने कहा—दे वराज! म अपने वामी चा डालक आ ा लये बना



तथा उसके ऋणसे उ ार पाये बना दे वलोकको नह चल सकूँगा।* धम बोले—राजन्! तु हारे इस भावी संकटको जानकर मने ही मायासे अपनेको चा डालके पम कट कया तथा चा डाल वका दशन कया था। इ ने कहा—ह र ! पृ वीके सम त मनु य जस परमधामके लये ाथना करते ह, केवल पु यवान् मनु य को ा त होनेवाले उस धामको चलो। हर बोले—दे वराज! आपको नम कार है। मेरा यह वचन सु नये; आप मुझपर स ह, अतएव म वनीतभावसे आपके स मुख कुछ नवेदन करता ँ। अयो याके सब मनु य मेरे वरह-शोकम म न ह। आज उ ह छोड़कर म द लोकको कैसे जाऊँगा? ा णक ह या, गु क ह या, गौका वध और ीका वध—इन सबके समान ही भ का याग करनेम भी महान् पाप बताया गया है। जो दोषर हत एवं यागनेके अयो य भ पु षको याग दे ता है, उसे इहलोक या परलोकम कह भी सुखक ा त नह दखायी दे ती; इस लये इ ! आप वगको लौट जाइये। सुरे र! य द अयो यावासी पु ष मेरे साथ ही वग



चल सक तब तो म भी चलूँगा; अ यथा उ ह के साथ नरकम भी जाना मुझे वीकार है।



इ ने कहा—राजन्! उन सब लोग के पृथक्-पृथक् नाना कारके ब तसे पु य और पाप ह। फर तुम वगको सबका भो य बनाकर वहाँ कैसे चल सकोगे? हर बोले—इ ! राजा अपने कुटु बय के ही भावसे रा य भोगता है। जावग भी राजाका कुटु बी ही है। उ ह के सहयोगसे राजा बड़े-बड़े य करता, पोखरे खुदवाता और बगीचे आ द लगवाता है। यह सब कुछ मने अयो यावा सय के भावसे कया है, अतः वगके लोभम पड़कर म अपने उपका रय का याग नह कर सकता। दे वेश! य द मने कुछ भी पु य कया हो, दान, य अथवा जपका अनु ान मुझसे आ हो, उन सबका फल उन सबके साथ ही मुझे मले। उसम उनका समान अ धकार हो।* ‘ऐसा ही होगा’ य कहकर भुवनप त इ , धम और गा धन दन व ा म मन-ही-मन ब त स ए। लोग पर अनु ह रखनेवाले दे वे ने



वगलोकसे भूतलतक करोड़ वमान का ताँता बाँध दया। फर चार वण और आ म से यु अयो या नगरम वेश करके राजा ह र के समीप ही दे वराज इ ने कहा—‘ जाजनो! तुम सब लोग शी आओ। धमके सादसे तुम सब लोग को अ य त लभ वगलोक ा त आ है।’ इ क यह बात सुनकर महाराज ह र क स ताके लये महातप वी व ा म ने राजकुमार रो हता को परम रमणीय अयो यापुरीम ला वहाँ रा यसहासनपर अ भ ष कर दया। दे वता , मु नय और स के साथ रो हता का रा या भषेक करके राजास हत सभी ब धु-बा धव ब त स ए। उसके बाद वहाँके सब लोग अपने पु , भृ य और य स हत वगलोकको चले। वे पग-पगपर एक वमानसे सरे वमानपर जा प ँचते थे। वमान के स हत यह अनुपम ऐ य पाकर महाराज ह र ब त स ए। वगम नगरके आकारवाले सु दर वमान म, जो परकोट से सुशो भत था, महाराज ह र वराजमान ए। उनक यह समृ दे खकर सब शा का त व जाननेवाले दै याचाय महाभाग शु ने इस कार उनका यशोगान कया —‘अहो! माका कैसा माहा य है। दानका कतना महान् फल है, जससे हर अमरावतीपुरीम आये और इ पदको ा त ए।’ प ीगण कहते ह—जै म नजी! राजा ह र का यह सारा च र मने आपसे वणन कया। ःखम पड़ा आ जो मनु य इसका वण करता है, वह महान् सुख पाता है। इसके वणसे पु ाथ को पु , सुखाथ को सुख, ीक इ छा रखनेवालेको ी और रा यक कामनावालेको रा यक ा त होती है। उसक सं ामम वजय होती है और वह कभी नरकम नह पड़ता।



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दात ं व मु ये यो ये चा ये कृशवृ यः । र या भीताः सदा यु ं कत ं प रप थ भः ।।



(७।२०)



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यज च तां महाराज वस यमनुपालय । मशानव जनीयो नरः स यब ह कृतः ।। नातः परतरं धम वद त पु ष य तु । या शं पु ष ा वस यप रपालनम् ।। अ नहो मधीतं वा दाना ा ा खलाः याः । भज ते त य वैफ यं य य वा यमकारणम् ।। स यम य तमु दतं धमशा ेषु धीमताम् । तारणायानृतं त त् पातनायाकृता मनाम् ।। (अ० ८।१७-२०)



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स येनाकः तप त स ये त त मे दनी । स यं चो ं परो धमः वगः स ये त तः ।। अ मेधसह ं च स यं च तुलया धृतम् । अ मेधसह ा स यमेव व श यते ।। (अ० ८।४१-४२)



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दे वराजाननु ातः वा मना पचेन वै । अग वा न कृ त त य नारो येऽहं सुरालयम् ।। (अ० ८।२४८) *



हर उवाच दे वराज नम तु यं वा यं चैत बोध मे । सादसुमुखं यत् वां वी म या वतः ।। म छोकम नमनसः कोसलानगरे जनाः । त त तानपो ा कथं या या यहं दवम् ।। ह या गुरोघातो गोवधः ीवध तथा । तु यमे भमहापापं भ यागेऽ युदा तम् ।। भज तं भ म या यम ं यजतः सुखम् । नेह नामु प या म त मा छ दवं ज ।। य द ते स हताः वग मया या त सुरे र । ततोऽहम प या या म नरकं वा प तैः सह ।। इ उवाच ब न पु यपापा न तेषां भ ा न वै पृथक् । कथं सङ् घातभो यं वं भूयः वगमवा य स ।। हर उवाच श भुङ् े नृपो रा यं भावेण कुटु बनाम् । यजते च महाय ैः कम पौ करो त च ।। त च तेषां भावेण मया सवमनु तम् । उपक ॄन् न स य ये तानहं वग ल सया ।। त माद् य मम दे वेश क चद त सुचे तम् । द म मथो ज तं सामा यं तै तद तु नः ।। (अ० ८।२५१-२५९)



पता-पु -संवादका आर भ, जीवक मृ यु तथा नरक-ग तका वणन जै म नने पूछा— े प यो! ा णय क उ प और लय कहाँ होते ह? इस वषयम मुझे स दे ह है। मेरे के अनुसार आपलोग इसका समाधान कर। जीव कैसे ज म लेता है? कैसे मरता है? और कस कार गभम पीड़ा सहकर माताके उदरम नवास करता है? फर गभसे बाहर नकलनेपर वह कस कार बु को ा त होता है? और मृ युकालम कस तरह चैत य व पके ारा शरीरसे वलग होता है। सभी ाणी मृ युके प ात् पु य और पाप दोन का फल भोगते ह; क तु वे पु य और पाप कस कार अपना फल दे ते ह? ये सारी बात मुझे बताइये, जससे मेरा सब स दे ह र हो जाय। प ी बोले—महष! आपने हमलोग पर ब त बड़े का भार रख दया। इसक कह तुलना नह है। महाभाग! इस वषयम एक ाचीन वृ ा त सु नये। पूवकालम एक परम बु मान् भृगव ु ंशी ा ण थे। उनके सुम त नामका एक पु था। वह बड़ा ही शा त और जड़ पम रहनेवाला था। उपनयन-सं कार हो जानेके बाद उस बालकसे उसके पताने कहा—‘सुमते! तुम सभी वेद को मशः आ ोपा त पढ़ो, गु क सेवाम लगे रहो और भ ाके अ का भोजन कया करो। इस कार चयक अव ध पूरी करके गृह था मम वेश करो और वहाँ उ म-उ म य का अनु ान करके अपने मनके अनु प स तान उ प करो। तदन तर वनक शरण लो और वान थके नयम का पालन करनेके प ात् प र हर हत, सव व यागी सं यासी हो जाओ। ऐसा करनेसे तु ह उस क ा त होगी, जहाँ जाकर तुम शोकसे मु हो जाओगे।’



इस कार अनेक बार कहनेपर भी सुम त जड़ होनेके कारण कुछ भी नह बोलता था। पता भी नेहवश बारंबार अनेक कारसे ये बात उसके सामने रखते थे। उ ह ने पु ेमके कारण मीठ वाणीम अनेक बार उसे लोभ दखाया। इस कार उनके बार-बार कहनेपर एक दन सुम तने हँसकर कहा—‘ पताजी! आज आप जो उपदे श दे रहे ह, उसका मने ब त बार अ यास कया है। इसी कार सरे- सरे शा और भाँ त-भाँ तक श पकला का भी सेवन कया है। इस समय मुझे अपने दस हजारसे भी अ धक ज म मरण हो आये ह। खेद, स तोष, य, वृ और उदयका भी मने ब त अनुभव कया है। श ु, म और प नीके संयोग- वयोग भी मुझे दे खनेको मले ह। अनेक कारके माता- पताके भी दशन ए ह। मने हजार बार सुख और ःख भोगे ह। कतनी ही य के व ा और मू से भरे ए गभम नवास कया है। सह कारके रोग क भयानक पीड़ाएँ सहन क ह। गभाव थाम मने जो अनेक कारके ःख भोगे ह, बचपन, जवानी और बुढ़ापेम भी जो लेश सहन कये ह, वे सब मुझे याद आ रहे ह। ा ण, य, वै य और शू क यो नय म, फर पशु, मृग, क ट और प य क यो नय म तथा राजसेवक एवं यु म परा म दखानेवाले राजा के घर म भी मेरे कई बार ज म हो चुके ह। इसी तरह अबक बार



आपके घरम भी मने ज म लया है। म ब त बार मनु य का भृ य, दास, वामी, ई र और द र रह चुका ँ। सर ने मुझे और मने सर को अनेक बार दान दये ह। पता, माता, सु द्, भाई और ी इ या दके कारण कई बार संतु आ ँ और कई बार द न हो-होकर रोते ए मुझे आँसु से मुँह धोना पड़ा है। पताजी! य ही इस संसार-च म भटकते ए मने अब वह ान ा त कया है, जो मो क ा त करानेवाला है। उस ानको ा त कर लेनेपर अब यह ऋक्, यजु और सामवेदो सम त या-कलाप गुणशू य दखायी दे नेके कारण मुझे अ छा नह लगता। अतः जब ान ा त हो गया तब वेद से मुझे या योजन है। अब तो म गु - व ानसे प रतृ त, नरीह एवं सदा मा ँ। अतः छः कारके भाव वकार (ज म, स ा, वृ , प रणाम, य और नाश), ःख, सुख, हष, राग तथा स पूण गुण से व जत उस परमपद प को ा त होऊँगा। पताजी! जो राग, हष, भय, उ े ग, ोध, अमष और वृ ाव थासे ा त है तथा कु े, मृग आ दक यो नम बाँधनेवाले सैकड़ ब धन से यु है, उस ःखक पर पराका प र याग करके अब म चला जाऊँगा।’ पु क यह बात सुनकर महाभाग पताका दय स तासे भर गया। उ ह ने हष और व मयसे ग दवाणीम अपने पु से कहा—‘बेटा! तुम यह या कहते हो? तु ह कहाँसे ान ा त हो गया? पहले तुमम जड़ता य थी और इस समय ान कहाँसे जग उठा? या यह मु नय अथवा दे वता के दये ए शापका वकार था, जससे पहले तु हारा ान छप गया था और इस समय पुनः कट हो गया? म यह सारा रह य सुनना चाहता ँ। इसके लये मेरे मनम बड़ा कौतूहल है। बेटा! तुमपर पहले जो कुछ बीत चुका है, वह सब मुझे बताओ।’ पु ने कहा— पताजी! मेरा जो यह सुख और ःख दे नेवाला पूव वृ ा त है, उसे सु नये। इस ज मके पहले पूवज मम म जो कुछ था, वह सब बताता ँ। पूवकालम म परमा माके यानम मन लगानेवाला एक ा ण था। आ म व ाके वचारम म पराका ाको प ँचा आ था। म सदा योगसाधनम संल न रहता था। नर तर अ यासम लगने, स पु ष का स करने, अपने वभावसे ही वचारपरायण होने, त वम स आ द महावा य के वचारने और त पदाथके शोधन करने आ दके कारण उस परमा मत वम ही मेरी परम ी त हो गयी। फर म श य के स दे हका नवारण करनेवाला आचाय बन गया। फर ब त समयके प ात् म एका तसेवी हो गया; क तु दै वात् अ ानसे स ावका नाश हो जानेके कारण मादम पड़कर मेरी मृ यु हो गयी। तथा प मृ युकालसे लेकर अबतक मेरी मरणश का लोप नह आ। मेरे ज म के जतने वष



बीत गये ह, उन सबक मृ त हो आयी है। पताजी! उस पूवज मके अ याससे ही जते य होकर अब फर म वैसा ही य न क ँ गा, जससे भ व यम फर मेरा ज म न हो। मने जो सर को ान दया था, उसीका यह फल है क मुझे पूवज मक बात का मरण हो रहा है। केवल यीधम (कमका ड) का सहारा लेनेवाले मनु य को इसक ा त नह होती, अतः म इस थम आ मसे ही सं यास-धमका आ य ले एका तसेवी हो आ माके उ ारके लये य न क ँ गा। अतः महाभाग! आपके दयम जो संशय है, उसे क हये। म उसका समाधान क ँ गा। इतनी-सी सेवासे भी आपक स ताका स पादन करके म पताके ऋणसे मु हो सकूँगा। प ी कहते ह—तब पु क बातपर ा करते ए पताने उससे वही बात पूछ , जो आपने अभी संसारम ज म हण करनेके स ब धम हमलोग से पूछ है। पु ने कहा— पताजी! जस कार मने त वका बारंबार अनुभव कया है, उसे बतलाता ँ; सु नये। यह णभ र संसार-च वाह पसे अजर है, नर तर चलते रहनेवाला है, कभी थर नह रहता। तात! आपक आ ासे म मृ युकालसे लेकर अबतकक सब बात का वणन करता ँ। शरीरम जो गम या प है, वह ती वायुसे े रत होकर जब अ य त कु पत हो जाता है, उस समय बना धनके ही उ त ई अ नक भाँ त बढ़कर मम थान को वद ण कर दे ता है, त प ात् उदान नामक वायु ऊपरक ओर उठता है और खाये-पीये ए अ -जलको नीचेक ओर जानेसे रोक दे ता है। उस आप क अव थाम भी उसीको स ता रहती है, जसने पहले जल, अ एवं रसका दान कया है। जस पु षने ासे प व कये ए अ तःकरणके ारा पहले अ दान कया है, वह उस णाव थाम अ के बना भी तृ त लाभ करता है। जसने कभी म या भाषण नह कया, दो े मय के पार प रक ेमम बाधा नह डाली तथा जो आ तक और ालु है, वह सुखपूवक मृ युको ा त होता है। जो दे वता और ा ण क पूजाम संल न रहते, कसीक न दा नह करते तथा सा वक, उदार और ल जाशील होते ह, ऐसे मनु य को मृ युके समय क नह होता। जो कामनासे, ोधसे अथवा े षके कारण धमका याग नह करता, शा ो आ ाका पालन करनेवाला तथा सौ य होता है, उसक मृ यु भी सुखसे होती है। ज ह ने कभी जलका दान नह कया है, उन मनु य को मृ युकाल उप थत होनेपर अ धक जलन होती है तथा अ दान न करनेवाल को उस समय भूखका भारी क भोगना पड़ता है। जो लोग जाड़ेके दन म लकड़ी दान करते ह, वे शीतके क को जीत लेते ह। जो च दन दान करते ह, वे तापपर वजय पाते ह



तथा जो कसी भी जीवको उ े ग नह प ँचाते, वे मृ युकालम ाणघा तनी वेदनाका अनुभव नह करते। मोह और अ ान फैलानेवाले लोग महान् भयको ा त होते ह। नीच मनु य ती वेदना से पी ड़त होते रहते ह। जो झूठ गवाही दे ते, झूठ बोलते, बुरी बात का उपदे श दे ते और वेद क न दा करते ह, वे सब लोग मू छा त होकर मृ युको ा त होते ह। ऐसे लोग क मृ युके समय यमराजके त हाथ म हथौड़ी एवं मु र लये आते ह, वे बड़े भयङ् कर होते ह और उनक दे हसे ग ध नकलती रहती है। उन यम त पर पड़ते ही मनु य काँप उठता है और ाता, माता तथा पु का नाम लेकर बारंबार च लाने लगता है। उस समय उसक वाणी प समझम नह आती। एक ही श द, एक ही आवाज-सी जान पड़ती है। भयके मारे रोगीक आँख झूमने लगती ह और उसका मुख सूख जाता है। उसक साँस ऊपरको उठने लगती है। क श भी न हो जाती है, फर वह अ य त वेदनासे पी ड़त होकर उस शरीरको छोड़ दे ता है और वायुके सहारे चलता आ वैसे ही सरे शरीरको धारण कर लेता है, जो प, रंग और अव थाम पहले शरीरके समान ही होता है। वह शरीर माता- पताके गभसे उ प नह , कमज नत होता है और यातना भोगनेके लये ही मलता है। तदन तर यमराजके त शी ही उसे दा ण पाश से बाँध लेते ह और डंड क मारसे ाकुल करते ए द ण दशाक ओर ख च ले जाते ह। उस मागपर कह तो कुश जमे होते ह, कह काँटे फैले होते ह, कह बाँबीक म याँ जमी होती ह, कह लोहेक क ल गड़ी होती ह और कह पथरीली भू म होनेके कारण वह पथ अ य त कठोर जान पड़ता है। कह जलती ई आगक लपट मलती ह तो कह सैकड़ ग के कारण वह माग अ य त गम तीत होता है। कह सूय इतने तपते ह क उस राहसे जानेवाला जीव उनक करण से जलने लगता है। ऐसे पथसे यमराजके त उसे घसीटकर ले जाते ह। वे त घोर श द करनेके कारण अ य त भयङ् कर जान पड़ते ह। जस समय वे जीवको घसीटकर ले जाते ह, सैकड़ गीद ड़याँ जुटकर उसके शरीरको नोच-नोचकर खाने लगती ह। पापी जीव ऐसे ही भयंकर मागसे यमलोकक या ा करते ह। जो मनु य छाता, जूता, व और अ -दान करनेवाले होते ह, वे उस मागपर सुखसे या ा करते ह। इस कार अनेक कारका क भोगता आ पापपी ड़त जीव ववश होकर बारह दन म धमराजके नगरतक प ँचाया जाता है। उसके यातनामय शरीरके जलाये जानेपर जीव वयं भी अ य त दाहका अनुभव करता है, उसी कार मारे और काटे जानेपर भी उसे अ य त भयङ् कर वेदना होती है। अ धक दे रतक जलम भगोये जानेके कारण भी जीवको भारी



ःख उठाना पड़ता है। इस कार सरे शरीरको ा त होनेपर भी उसे अपने कम के फल व प क भोगने पड़ते ह। उसके भाई-ब धु जो तल और जलक अ ल दे ते तथा प डदान करते ह, वही उस मागपर जाते समय उसे खानेको मलता है। भाई-ब धु य द अशौचके भीतर तेल लगाव और उबटन मलवाव तो उसीसे जीवका पोषण कया जाता है अथात् वह मैल ही उ ह खानी पड़ती है [अतः ये व तुएँ व जत ह]। इसी कार बा धवगण जो कुछ खाते-पीते ह, वह मृतक जीवको मलता है; अतः उ ह भोजनक शु पर भी यान रखना चा हये। य द भाई-ब धु भू मपर शयन कर तो उससे जीवको क नह होता और य द वे उसके न म दान कर तो उससे मृत जीवको बड़ी तृ त होती है। यम त जब उसे साथ लेकर जाते ह तो वह बारह दन तक अपने घरक ओर दे खता रहता है। उस समय पृ वीपर उसके न म जो जल और प ड दये जाते ह, उ ह का वह उपभोग करता है।* मृ युसे बारह दन बीतनेके प ात् यमपुरीक ओर ख चकर ले जाया जानेवाला जीव अपने सामने यमराजके नगरको दे खता है, जो बड़ा ही भयानक है। उस नगरम प ँचनेपर उसे मृ यु, काल और अ तक आ दके बीचम बैठे ए यमराजका दशन होता है, जो क जलरा शके समान काले ह और अ य त ोधसे लाल-लाल आँख कये रहते ह। दाढ़ के कारण उनका मुख बड़ा वकराल दखलायी पड़ता है। टे ढ़ भ ह से यु उनक आकृ त बड़ी भयङ् कर है। वे कु प, भीषण और टे ढ़े-मेढ़े सैकड़ रोग से घरे रहते ह। उनक भुजाएँ वशाल ह। उनके एक हाथम यमद ड और सरेम पाश है। दे खनेम वे बड़े भयानक तीत होते ह। पापी जीव उ ह क बतायी ई शुभाशुभ ग तको ा त होता है। झूठ गवाही दे ने और झूठ बोलनेवाला मनु य रौरव नरकम जाता है। अब म रौरवका व प बतलाता ँ, आप यान दे कर उसे सुन। रौरव नरकक लंबाई-चौड़ाई दो हजार योजनक है। वह एक गढ़े के पम है, जसक गहराई घुटन तकक है। वह नरक अ य त तर है। उसम भू मके बराबरतक अ ाररा श बछ रहती है। उसके भीतरक भू म दहकते ए अ ार से ब त तपी होती है। सारा नरक ती वेगसे व लत होता रहता है। उसीके भीतर यमराजके त पापी मनु यको डाल दे ते ह। वह धधकती ई आगम जब जलने लगता है तो इधर-उधर दौड़ता है, क तु पग-पगपर उसका पैर जल-भुनकर राख होता रहता है। वह दन-रातम कभी एक बार पैर उठाने और रखनेम समथ होता है। इस कार सह योजन पार करनेपर वह उससे छु टकारा पाता है। फर सरे पाप क शु के लये उसे वैसे ही अ य नरक म जाना पड़ता है। इस कार सब नरक म यातना भोगकर नकलनेके बाद पापी जीव तय यो नम



ज म लेता है। मशः क ड़े-मकोड़े, पत , हसक जीव, म छर, हाथी, वृ आ द, गौ, अ तथा अ या य ःखदा यनी पापयो नय म ज म धारण करनेके प ात् वह मनु ययो नम आता है। उसम भी वह कु प, कुबड़ा, नाटा और चा डाल आ द होता है। फर अव श पाप और पु यसे यु हो, वह मशः ऊँचे चढ़नेवाली यो नय म ज म लेता—शू , वै य, य, ा ण, दे वता तथा इ आ दके पम उ प होता है।



इस कार पाप करनेवाले जीव नरक म नीचे गरते ह। अब पु या मा जीव जस कार या ा करते ह उसको सु नये; वे पु या मा मनु य धमराजक बतायी ई पु यमयी ग तको ा त होते ह। उनके साथ ग धव गीत गाते चलते ह, अ सराएँ नृ य करती रहती ह तथा वे भाँ त-भाँ तके द आभूषण से सुशो भत हो सु दर वमान पर बैठकर या ा करते ह। वहाँसे पृ वीपर आनेपर वे राजा तथा अ य महा मा के कुलम ज म लेते और सदाचारका पालन करते ह। वहाँ उ ह े भोग ा त होते ह। तदन तर शरीर यागनेके बाद वे पुनः वग आ द ऊपरके लोक म जाते ह। ऊपरके लोक म होनेवाली ग तको



‘आरोहणी’ कहते ह। फर वहाँसे पु यभोगके प ात् जो मृ युलोकम उतरना होता है, वह ‘अवरोहणी’ ग त है। इस अवरोहणी ग तको ा त होनेपर मनु य फर पहलेक ही भाँ त आरोहणी ग तको ा त होते ह। ष! जीवक जस कार मृ यु होती है, वह सब स मने आपसे कह सुनाया। अब जस तरह जीव गभम आता है, उस वषयका वणन सु नये। *



त य ा धवा तोयं य छ त तलैः सह । य च प डं य छ त नीयमान तद ुते ।। तैला य ो बा धवानाम संवाहनं च यत् । तेन चा या यते ज तुय चा त सबा धवाः ।। भूमौ वप ना य तं लेशमा ो त बा धवैः । दानं दद तथा ज तुरा या यते मृतः ।। नीयमानः वकं गेहं ादशाहं स प य त । उपभुङ् े तथा द ं तोय प डा दकं भु व ।। (अ० १०।७२-७५)



जीवके ज मका वृ ा त तथा महारौरव आ द नरक का वणन पु कहता है— पताजी! मनु य ी-सहवासके समय गभम जो वीय था पत करता है, वह ीके रजम मल जाता है। नरक अथवा वगसे नकलकर आया आ जीव उसी रज-वीयका आ य लेता है। जीवसे ा त होनेपर वे दोन बीज ( ी और पु ष दोन के रज-वीय) थर हो जाते ह। फर वे मशः कलल, बुदबु ् द एवं मांस प डके पम प रणत होते ह। जैसे बीजसे अंकुर उ प होता है, उसी कार उस मांस प डसे वभागपूवक पाँच अ कट होते ह। फर उन अ से अँगल ु ी, ने , ना सका, मुख, कान आ द कट होते ह। इसी कार अँगल ु ी आ दसे नख आ दक उ प होती है। फर वचाम रोम और म तकपर बाल उग आते ह। जीवके शरीरक वृ के साथ ही ीका गभकोष भी बढ़ता है। जैसे ना रयलका फल अपने आवरणकोषके साथ ही बढ़ता है, उसी कार गभ थ शशु भी गभकोषके साथ ही वृ को ा त होता है। उसका मुख नीचेक ओर होता है। दोन हाथ को घुटन और पस लय के नीचे रखकर वह बढ़ता है। हाथके दोन अँगठ ू े दोन घुटन के ऊपर होते ह और अँगु लयाँ उनके अ भागम रहती ह। उन घुटन के पृ भागम दोन आँख रहती ह और ना सका उनके म यभागम होती है। दोन चूतड़ ए ड़य पर टके होते ह। दोन बाँह और पड लयाँ बाहरी कनारेपर रहती ह। इसी थ तम ीके गभम रहनेवाला जीव मशः वृ को ा त होता है। गभ थ शशुक ना भम एक नाल बँधी होती है, जसे आ यायनी नाड़ी कहते ह। इसी कार वह नाल ीक आँतके छ म भी जुड़ी होती है। ी जो कुछ खाती-पीती है, वह उस नाड़ीके ही मागसे गभ थ शशुके भी उदरम प ँचता है। उसीसे शरीरका पोषण होते रहनेसे जीव मशः वृ को ा त होता है। उस गभम उसे अनेक ज म क बात याद आती ह, जससे थत होकर वह इधर-उधर फरता और नवद (खेद)-को ा त होता है। अपने मनम सोचता है, ‘अब इस उदरसे छु टकारा पानेपर म फर ऐसा काय नह क ँ गा, ब क इस बातके लये चे ा क ँ गा क मुझे फर गभके भीतर न आना पड़े।’ सैकड़ ज म के ःख का मरण करके वह इसी कार च ता करता है। दै वक ेरणासे पूवज म म उसने जो-जो लेश भोगे होते ह, वे सब उसे याद आ जाते ह। त प ात् काल मसे वह अधोमुख जीव जब नव या दसव महीनेका होता है, तब उसका ज म हो जाता है। गभसे नकलते समय वह ाजाप य वायुसे पी ड़त होता है और मन-ही-मन ःखसे थत हो रोते ए गभसे बाहर आता है। उदरसे नकलनेपर अस पीड़ाके कारण उसे मू छा आ जाती है। फर वायुके पशसे वह सचेत होता है। तदन तर भगवान् व णुक मो हनी माया उसको अपने वशम कर लेती है। उससे मो हत हो जानेके कारण उसका पूव ान न हो जाता है। इस कार ान हो जानेपर वह जीव पहले तो



बा याव थाको ा त होता है, फर मशः कौमाराव था, यौवनाव था और वृ ाव थाम वेश करता है। इसके बाद मृ युको ा त होता और मृ युके बाद फर ज म लेता है। इस कार इस संसार-च म वह घट य (रहट) क भाँ त घूमता रहता है। कभी वगम जाता है, कभी नरकम। कभी इस संसारम पुनः ज म लेकर अपने कम को भोगता है, कभी कम का भोग समा त होनेपर थोड़े ही समयम मरकर परलोकम चला जाता है। कभी वग और नरकको ायः भोग चुकनेके बाद थोड़ेसे शुभाशुभ कम शेष रहनेपर इस संसारम ज म लेता है। नारक जीव घोर ःखदायी नरक म गराये जाते ह। वगम भी ऐसा ःख होता है, जसक कह तुलना नह है। वगम प ँचनेके बादसे ही मनम इस बातक च ता बनी रहती है क पु य- य होनेपर हम यहाँसे नीचे गरना पड़ेगा। साथ ही नरकम पड़े ए जीव को दे खकर महान् ःख होता है क कभी हम भी ऐसी ही ग त भोगनी पड़ेगी। इस बातसे दन-रात अशा त बनी रहती है। गभवासम तो भारी ःख होता ही है, यो नसे ज म लेते समय भी थोड़ा लेश नह होता। ज म लेनेके प ात् बा याव था और वृ ाव थाम भी ःख-ही- ःख भोगना पड़ता है। जवानीम भी काम, ोध और ई याम बँधे रहनेके कारण अ य त सह क उठाना पड़ता है। बुढ़ापेम तो अ धकांश ःख ही होता है। मरनेम भी सबसे अ धक ःख है। यम त ारा घसीटकर ले जाये जाने और नरकम गराये जानेपर जो महान् लेश होता है, उसक चचा हो चुक है। यहाँसे लौटनेपर फर गभवास, ज म, मृ यु तथा नरकका म चालू हो जाता है। इस तरह जीव ाकृत ब धन म बँधकर घट य क भाँ त इस संसारच म घूमते रहते ह। पताजी! मने आपसे रौरव नामक थम नरकका वणन कया है। अब महारौरवका वणन सु नये—इसका व तार सब ओरसे बारह हजार योजन है। वहाँक भू म ताँबेक है, जसके नीचे आग धधकती रहती है। उसक आँचसे तपकर वह सारी ता मयी भू म चमकती ई बजलीके समान यो तमयी दखायी दे ती है। उसक ओर दे खना और पश आ द करना अ य त भयङ् कर है। यमराजके त हाथ और पैर बाँधकर पापी जीवको उसके भीतर डाल दे ते ह और वह लोटता आ आगे बढ़ता है। मागम कौवे, बगुले, ब छू , म छर और ग उसे ज द -ज द नोच खाते ह। उसम जलते समय वह ाकुल हो-होकर छटपटाता है और बारंबार ‘अरे बाप! अरे मैया! हाय भैया! हा तात!’ आ दक रट लगाता आ क ण दन करता है, क तु उसे त नक भी शा त नह मलती। इस कार उसम पड़े ए जीव, ज ह ने षत बु के कारण पाप कये ह, दस करोड़ वष बीतनेपर उससे छु टकारा पाते ह। इसके सवा तम नामक एक सरा नरक है, जहाँ वभावसे ही कड़ाकेक सद पड़ती है। उसका व तार भी महारौरवके ही बराबर है, क तु वह घोर अ धकारसे आ छा दत रहता है। वहाँ पापी मनु य सद से क पाकर भयानक अ धकारम दौड़ते ह और एक- सरेसे भड़कर लपटे रहते ह। जाड़ेके क से काँपकर कटकटाते ए उनके दाँत



टू ट जाते ह। भूख- यास भी वहाँ बड़े जोरक लगती है। इसी कार अ या य उप व भी होते रहते ह। ओल के साथ बहनेवाली भयङ् कर वायु शरीरम लगकर ह य को चूण कये दे ती है और उनसे जो म जा तथा र गरता है, उसीको वे ुधातुर ाणी खाते ह। एकसरेके शरीरसे सटकर वे पर पर र चाटा करते ह। इस कार जबतक पाप का भोग समा त नह हो जाता, तबतक वहाँ भी मनु य को अ धकारम महान् क भोगना पड़ता है।



इससे भ एक नकृ तन नामक नरक है, जो सब नरक म धान है। उसम कु हारक चाकके समान ब त-से च नर तर घूमते रहते ह। यमराजके त पापी जीव को उन च पर चढ़ा दे ते और अपनी अँगु लय म कालसू लेकर उसीके ारा उनके पैरसे लेकर म तकतक येक अ काटा करते ह। फर भी उन पा पय के ाण नह नकलते। उनके शरीरके सैकड़ टु कड़े हो जाते ह, क तु फर वे जुड़कर एक हो जाते ह। इस कार पापी जीव हजार वष तक वहाँ काटे जाते ह। यह यातना उ ह तबतक द जाती है, जबतक क उनके सारे पाप का नाश नह हो जाता। अब अ त नामक नरकका वणन सु नये, जसम पड़े ए जीव को अस ःखका अनुभव करना पड़ता है। वहाँ भी वे ही कुलालच होते ह; साथ ही सरी ओर घट य भी बने होते ह, जो पापी मनु य को ःख प ँचानेके लये बनाये गये ह। वहाँ कुछ मनु य उन च पर चढ़ाकर घुमाये जाते ह। हजार वष तक उ ह बीचम व ाम नह मलता। इसी कार सरे पापी घट य म बाँध दये जाते ह, ठ क उसी तरह, जैसे रहटम छोटे -छोटे घड़े बँधे होते ह। वहाँ बँधे ए मनु य उन य के साथम



जब घूमने लगते ह, तो बारंबार र वमन करते ह। उनके मुखसे लार गरती है और ने से अ ु झरते रहते ह। उस समय उ ह इतना ःख होता है, जो जीवमा के लये अस है।



अब अ सप वन नामक अ य नरकका वणन सु नये—जहाँ एक हजार योजनतकक भू म व लत अ नसे आ छा दत रहती है तथा ऊपरसे सूयक अ य त भयङ् कर एवं च ड करण ताप दे ती ह, जनसे उस नरकम नवास करनेवाले जीव सदा स त त होते रहते ह। उसके बीचम एक ब त ही सु दर वन है, जसके प े चकने जान पड़ते ह; क तु वे सभी प े तलवारक तीखी धारके समान ह। उस वनम बड़े बलवान् कु े भूँकते रहते ह, जो दस हजारक सं याम सुशो भत होते ह। उनके मुख और दाढ़ बड़ी-बड़ी होती ह। वे ा के समान भयानक तीत होते ह। वहाँक भू मपर जो आग बछ होती है, उससे जब दोन पैर जलने लगते ह तब वहाँ गये ए पापी जीव ‘हाय माता! हाय पता!’ आ द कहते ए अ य त ः खत होकर कराहने लगते ह। उस समय ती पपासाके कारण उ ह बड़ी पीड़ा होती है, फर अपने सामने शीतल छायासे यु अ सप वनको दे खकर वे ाणी व ामक इ छासे वहाँ जाते ह। उनके वहाँ प ँचनेपर बड़े जोरक हवा चलती है, जससे उनके ऊपर तलवारके समान तीखे प े गरने लगते ह। उनसे आहत होकर वे पृ वीपर



जलते ए अँगार के ढे रम गर पड़ते ह। वह आग अपनी लपट से सव ा त हो स पूण भूतलको चाटती ई-सी जान पड़ती है। इसी समय अ य त भयानक कु े वहाँ तुरंत ही दौड़ते ए आते ह और रोते ए पा पय के सब अ को टु कड़े-टु कड़े कर डालते ह। पताजी! इस कार मने आपसे यह अ सप वनका वणन कया है।



अब इससे भी अ य त भयङ् कर त तकु भ नामक जो नरक है, उसका हाल सु नये— वहाँ चार ओर आगक लपट से घरे ए ब त-से लोहेके घड़े मौजूद ह, जो खूब तपे होते ह। उनमसे क ह म तो व लत अ नक आँचसे खौलता आ तेल भरा रहता है और क ह म तपाये ए लोहेका चूण होता है। यमराजके त पापी मनु य को उनका मुँह नीचे करके उ ह घड़ म डाल दे ते ह। वहाँ पड़ते ही उनके शरीर टू ट-फूट जाते ह। शरीरक म जाका भाग गलकर पानी हो जाता है। कपाल और ने क ह याँ चटककर फूटने लगती ह। भयानक गृ उनके अ को नोच-नोचकर टु कड़े-टु कड़े कर दे ते ह और फर उन



टु कड़ को उ ह घड़ म डाल दे ते ह। वहाँ वे सभी टु कड़े सीझकर तेलम मल जाते ह। म तक, शरीर, नायु, मांस, वचा और ह याँ—सभी गल जाती ह। तदन तर यमराजके त करछु लसे उलट-पुलटकर खौलते ए तेलम उन पा पय को अ छ तरह मथते ह। पताजी! इस कार यह त तकु भ नामक नरकक बात मने आपको व तारपूवक बतलायी है।



जनक-यम त-संवाद, भ - भ पाप से व भ नरक क ा तका वणन पु (सुम त) कहता है— पताजी! इससे पहले सातव ज मम म एक वै यके कुलम उ प आ था। उस समय प सलेपर पानी पीनेको जाती ई गौ को मने वहाँ जानेसे रोक दया था। उस पापकमके फलसे मुझे अ य त भयङ् कर नरकम जाना पड़ा, जो आगक लपट के कारण घोर ःखदायी तीत होता था। उसम लोहेक -सी च चवाले प ी भरे पड़े थे। वहाँ पा पय के शरीरको को म पेरनेके कारण जो र क धारा बहती थी, उससे क चड़ जम गयी थी और काटे जानेवाले क मय के नरकम पड़नेसे सब ओर घोर हाहाकार मचा रहता था। उस नरकम पड़े मुझे सौ वषसे कुछ अ धक समय बीत गया। म महान् ताप और पीड़ासे स त त रहता था। यास और जलन बराबर बनी रहती थी। तदन तर एक दन सहसा सुख दे नेवाली ठं डी हवा चलने लगी। उस समय म त तबालुका और त तकु भ नामक नरक के बीच था। उस शीतल वायुके स पकसे उन नरक म पड़े ए सभी जीव क यातना र हो गयी। मुझे भी उतना ही आन द आ, जतना वगम रहनेवाल को वहाँ ा त होता है। ‘यह या बात हो गयी?’ य सोचते ए हम सभी जीव ने आन दक अ धकताके कारण एकटक ने से जब चार ओर दे खा, तब हम बड़े ही उ म एक नरर न दखायी दये। उनके साथ बजलीके समान का तमान् एक भयङ् कर यम त था, जो आगे होकर रा ता दखा रहा था और कहता था, ‘महाराज! इधरसे आइये’ सैकड़ यातना से ा त नरकको दे खकर उन पु षर नको बड़ी दया आयी। उ ह ने यम तसे कहा।



आग तुक पु ष बोले—यम त! बताओ तो सही, मने कौन-सा ऐसा पाप कया है, जसके कारण अनेक कारक यातना से पूण इस भयङ् कर नरकम मुझे आना पड़ा है? मेरा ज म जनकवंशम आ था! म वदे ह दे शम वप त् नामसे व यात राजा था और जाजन का भलीभाँ त पालन करता था। मने ब त-से य कये। धमके अनुसार पृ वीका पालन कया। कभी यु म पीठ नह दखायी तथा अ त थको कभी नराश नह लौटने दया। पतर , दे वता , ऋ षय और भृ य को उनका भाग दये बना कभी मने अ हण नह कया। परायी ी और पराये धन आ दक अ भलाषा मेरे मनम कभी नह ई। जैसे गौएँ पानी पीनेक इ छासे वयं ही प सलेपर चली जाती ह, उसी कार पवके समय पतर और पु य त थ आनेपर दे वता वयं ही अपना भाग लेनेको मनु यके पास आते ह। जस गृह थके घरसे वे लंबी साँस लेकर नराश लौट जाते ह, उसके इ और पूत—दोन कारके धम न हो जाते ह। पतर के ःखपूण उ छ् वाससे सात ज म का पु य न होता है और दे वता का नः ास तीन ज म का पु य ीण कर दे ता है—इसम त नक भी स दे ह नह है;



इस लये म दे वकम और पतृकमके लये सदा ही सावधान रहता था। ऐसी दशाम मुझे इस अ य त दा ण नरकम कैसे आना पड़ा?



उन महा माके इस कार पूछनेपर यमराजका त दे खनेम भयङ् कर होनेपर भी हमलोग के सुनते-सुनते वनययु वाणीम बोला। यम तने कहा—महाराज! आप जैसा कहते ह, वह सब ठ क है। उसम त नक भी स दे हके लये थान नह है। क तु आपके ारा एक छोटा-सा पाप भी बन गया है। म उसे याद दलाता ँ। वदभराजकुमारी पीवरी, जो आपक प नी थी, एक समय ऋतुमती ई थी; क तु उस अवसरपर केकयराजकुमारी सुशोभनाम आस होनेके कारण आपने उसके ऋतुकालको सफल नह बनाया। वह आपके समागमसुखसे व चत रह गयी। ऋतुकालका उ लङ् घन करनेके कारण ही आपको ऐसे भयङ् कर नरकतक आना पड़ा है। जो धमा मा पु ष कामम आस होकर ीके ऋतुकालका उ लङ् घन करता है, वह पतर का ऋणी होनेसे पापको ा त हो नरकम पड़ता है। राजन्! इतना ही



आपका पाप है। इसके अ त र और कोई पाप नह है। इस लये आइये, अब पु यलोक का उपभोग करनेके लये च लये। राजा बोले—दे व त! तुम जहाँ मुझे ले चलोगे, वहाँ चलूँगा; क तु इस समय कुछ पूछ रहा ँ, उसका तु ह ठ क-ठ क उ र दे ना चा हये। ये व के समान च चवाले कौए, जो इन पु ष क आँख नकाल लेते ह और फर उ ह नये ने ा त हो जाते ह, इन लोग ने कौन-सा न दत कम कया है? इस बातको बताओ। म दे खता ँ, कौए इनक जीभ उखाड़ लेते ह, क तु फर नयी जीभ उ प हो जाती है। इनके सवा ये सरे लोग य आरेसे चीरे जाते ह और अ य त ःख भोगते ह? कुछ लोग तपायी ई बालुकाम भूने जाते ह और कुछ लोग खौलते ए तेलम पड़कर पक रहे ह। लोहेके समान च चवाले प ी ज ह नोच-नोचकर ख च रहे ह, वे कैसे लोग ह? ये बेचारे शरीरक नस-ना ड़य के कटनेसे पी ड़त हो बड़े जोर-जोरसे चीखते और च लाते ह। लोहेक च चक आघातसे इनके सारे अ म घाव हो गया है, जससे इ ह बड़ा क होता है। इ ह ने ऐसा कौन-सा अ न कया है, जसके कारण ये रात- दन सताये जा रहे ह? ये तथा और भी जो पा पय क यातनाएँ दे खी जाती ह, वे कन कम के प रणाम ह? ये सब बात मुझे पूण पसे बतलाओ। यम तने कहा—राजन्! मनु यको पु य और पाप बारी-बारीसे भोगने पड़ते ह। भोगनेसे ही पाप अथवा पु यका य होता है। लाख ज म के स चत पु य और पाप मनु य के लये सुख- ःखका अंकुर उ प करते ह। जैसे बीज जलक इ छा रखते ह, उसी कार पु य और पाप दे श-काल, अ या य कम और कताक अपे ा करते ह। जैसे राह चलते समय काँटेपर पैर पड़ जानेसे उसके चुभनेपर थोड़ा ःख होता है, उसी कार कसी भी दे शकालम कया आ थोड़ा पाप थोड़े ःखका कारण होता है; क तु वही पाप जब ब त अ धक मा ाम हो जाता है तब पैरम शूल अथवा लोहेक क ल गड़नेके समान अ धक ःख दान करता है— सरदद आ द सह रोग का कारण बनता है। जैसे अप य भोजन और सद -गम का सेवन म और ताप आ दका जनक होता है, उसी कार भ - भ पाप भी फलक ा त करानेम एक- सरेक अपे ा रखते ह। ऐसे ही बड़े-बड़े पाप द घकालतक रहनेवाले रोग और वकार के उ पादक होते ह। उ ह से श और अ नका भय ा त होता है। वे ही अस पीड़ा और ब धन आ द फल दान करते ह। इस कार जीव अनेक ज म के स चत पु य और पाप के फल व प सुख और ःख को भोगता आ इस लोकम थत रहता है।



राजन्! जैसे नरक म पड़े ए जीव अपने घोर महापापका फल भोगते ह, उसी कार ये वगलोकम दे वता के साथ रहकर ग धव, स और अ सरा के संगीत आ दका सुख उठाते ए पु य का उपभोग करते ह। दे वता, मनु य और पशु-प य क यो नम ज म लेकर जीव अपने पु य-पापज नत सुख- ःख प शुभाशुभ फल को भोगता है। राजन्! आप जो यह पूछ रहे ह क कस- कस पापसे पा पय को कौन-कौन-सी यातनाएँ मलती ह, वह सब म आपको बतला रहा ँ। जो नीच मनु य कामना और लोभके वशीभूत हो षत एवं कलु षत च से परायी ी और पराये धनपर आँख गड़ाते ह, उनक दोन आँख को ये व तु य च चवाले प ी नकाल लेते ह और पुनः-पुनः इनके नये ने उ प हो जाते ह। इन पापी मनु य ने जतने नमेषतक पापपूण पात कया है, उतने ही हजार वष तक ये ने क पीड़ा भोगते ह। जन लोग ने असत्-शा का उपदे श कया है तथा कसीको बुरी सलाह द है, ज ह ने शा का उलटा अथ लगाया है, मुँहसे झूठ बात नकाली ह तथा वेद, दे वता, ा ण और गु क न दा क है, उ ह क ज ाको ये व तु य च चवाले भयङ् कर प ी उखाड़ते ह और वह ज ा नयी-नयी उ प होती रहती है। जतने नमेषतक उनके ारा ज ाज नत पाप आ होता है, उतने वष तक उ ह यह क भोगना पड़ता है। जो नराधम दो म म फूट डालते ह, पता-पु म, वजन म, यजमान और पुरो हतम, माता और पु म, स सा थय म तथा प त और प नीम वैर डालते ह, वे ही ये आरेसे चीरे जा रहे ह। आप इनक ग त दे खये। जो सर को ताप दे ते, उनक स ताम बाधा प ँचाते, पंखे, हवादार थान, च दन और खसक ट आ दका अपहरण करते ह तथा नद ष य को भी ाणा तक क प ँचाते ह, वे ही ये अधम पापी ह जो तपायी ई बालूम पड़कर क भोगते ह। जो ा ण कसी दे वकाय या पतृकायम सरेके ारा नम त होकर भी सरे कसीके यहाँ ा -भोजन कर लेता है, उसके यहाँ आनेपर ये प ी दो टु कड़े कर डालते ह। जो अपनी अनु चत बात से साधु पु ष के ममपर आघात प ँचाता है, उसको ये प ी अ य त पीड़ा दे ते ह। इ ह ऐसा करनेसे कोई रोक नह सकता। जो झूठ बात कहकर और वपरीत धारणा बनाकर कसीक चुगली खाते ह, उनक ज ाके इस कार तेज कये ए छू र से दो टु कड़े कर दये जाते ह।



ज ह ने उ डतावश माता, पता तथा गु जन का अनादर कया है, वे ही ये पीब, व ा और मू से भरे ए गढ़ म नीचे मुख करके डु बाये जा रहे ह। जो लोग दे वता, अ त थ, अ या य ाणी, भृ यवग, अ यागत, पतर, अ न तथा प य को अ का भाग दये बना ही वयं भोजन कर लेते ह, वे ही यहाँ पीब और ग द चाटकर रहते ह। उनका शरीर तो पहाड़के समान वशाल होता है, क तु मुख सूईक नोकके बराबर रहता है। दे खये, यही वे लोग ह। जो लोग ा ण अथवा कसी अ य वणके मनु यको एक पङ् म बठाकर भोजनम भेद करते ह, उ ह यहाँ व ा खाकर रहना पड़ता है। जो लोग एक समुदायम साथ-साथ आये ए अथाथ मनु यको नधन जानकर छोड़ दे ते और अकेले अपना अ भोजन करते ह, वे ही यहाँ थूक और खँखार भोजन करते ह। राजन्! जन लोग ने जूठे हाथ से गौ, ा ण और अ नय का पश कया है, उ ह मसे ये लोग यहाँ मौजूद ह, जो जलते ए लोहेके खंभ पर हाथ रखकर उ ह चाट रहे ह। ज ह ने वे छापूवक जूठे मुँह होकर भी सूय-च मा और तार पर पात कया है, उनक आँख म आग रखकर यमराजके त उसे ध कते ह। गौ, अ न, माता, ा ण, ये ाता, पता, ब हन, कुटु बक ी,



गु तथा बड़े-बूढ़ का जो पैर से पश करते ह, उनके दोन पैर यहाँ आगम तपायी ई लोहेक बे ड़य से जकड़ दये जाते ह और उ ह अँगार के ढे रम खड़ा कर दया जाता है। उसम उनके पैरसे लेकर घुटनेतकका भाग जलता रहता है। जो नराधम अपने कान से गु , दे वता, ज और वेद क न दा सुनते ह और उसे सुनकर स होते ह, उन पा पय के कान म ये यमराजके त आगम तपायी ई लोहेक क ल ठ क दे ते ह। वलाप करनेपर भी उ ह छु टकारा नह मलता। जो लोग ोध और लोभके वशम होकर प सले, दे वम दर, ा णके घर तथा दे वालयके सभाभवन तुड़वाकर न करा दे ते ह, उनके यहाँ आनेपर ये अ य त कठोर वभाववाले यम त इन तीखे श से शरीरक खाल उधेड़ लेते ह। उनके चीखने- च लानेपर भी ये दया नह करते। जो मनु य गौ, ा ण तथा सूयक ओर मुँह करके मल-मू का याग करते ह, उनक आँत को कौए गुदामागसे ख चते ह। जो कसी एकको क या दे कर फर सरेके साथ उसका ववाह कर दे ता है, उसके शरीरम ब त-से घाव करके उसे खारे पानीक नद म बहा दया जाता है। जो मनु य भ अथवा सङ् कटकालम अपने पु , भृ य, प नी आ द तथा ब धुवगको अ क चन जानकर भी याग दे ता और केवल अपना पेट पालनेम लग जाता है, वह भी जब इस लोकम आता है तो यमराजके त भूख लगनेपर उसके मुखम उसके ही शरीरका मांस नोचकर डाल दे ते ह और वही उसे खाना पड़ता है। जो अपनी शरणम आये ए तथा अपनी ही द ई वृ से जी वका चलानेवाले मनु य को लोभवश याग दे ता है, वह भी यम त ारा इसी कार को म पेरे जानेके कारण य णा भोगता है।



जो मनु य अपने जीवनभरके कये ए पु यको धनके लोभसे बेच डालते ह, वे इ ह पा पय क तरह च कय म पीसे जाते ह। कसीक धरोहर हड़प लेनेवाले लोग के सब अ र सय से बाँध दये जाते ह और उ ह दन-रात क ड़े, ब छू तथा सप काटते-खाते रहते ह। जो पापी दनम मैथुन करते और परायी ीको भोगते ह, वे यहाँ भूखसे बल रहते ह, यासक पीड़ासे उनक जीभ और तालू गर जाते ह और वे वेदनासे ाकुल हो जाते ह। यह दे खये, सामने लोहेके बड़े-बड़े काँट से भरा आ सेमरका वृ खड़ा है। इसपर चढ़ाये ए पा पय के सब अ वद ण हो गये ह और अ धक मा ाम गरते ए खूनसे ये लथपथ हो रहे ह। नर े ! इधर डा लये, ये परायी य का सती व न करनेवाले लोग ह। इ ह यमराजके त घ रयाम रखकर गला रहे ह। जो उ ड मनु य गु को नीचे बठाकर और वयं ऊँचे आसनपर बैठकर अ ययन करता अथवा श पकलाक श ा हण करता है, वह इसी कार अपने म तकपर शलाका भारी भार ढोता आ लेश पाता है। यमलोकके मागम वह अ य त पी ड़त एवं भूखसे बल रहता है और उसका म तक दन-रात बोझ ढोनेक पीड़ासे थत होता रहता है। ज ह ने जलम मू , थूक और व ाका याग



कया है, वे ही लोग इस समय थूक, व ा और मू से भरे ए ग धयु नरकम पड़े ह। ये लोग जो भूखसे ाकुल होनेपर एक- सरेका मांस खा रहे ह, इ ह ने पूवकालम अ त थय को भोजन दये बना ही भोजन कया है। जन लोग ने अ नहो ी होकर भी वेद और वै दक अ नय का प र याग कया है, वे ही ये पवत क चोट से बारंबार नीचे गराये जाते ह।१ जो लोग सरी बार याही जानेवाली ीके प त होकर जीवन बता चुके ह, वे ही इस समय यहाँ क ड़े ए ह, ज ह च टयाँ खा रही ह। प तत का दया आ दान लेने, उनका य कराने तथा त दन उनक सेवाम रहनेसे मनु य प थरके भीतर क ड़ा होकर सदा नवास करता है। जो कुटु बके लोग , म तथा अ त थके दे खते-दे खते अकेले ही मठाई उड़ाता है, उसे यहाँ जलते ए अँगारे चबाने पड़ते ह। राजन्! इस पापीने लोग क पीठका मांस खाया है—पीठ-पीछे सबक बुराई क है, इसी लये भयङ् कर भे ड़ये



त दन इसका मांस खा रहे ह।२



इस नीचने उपकार करनेवाले लोग के साथ कृत नता क है; अतएव यह भूखसे ाकुल तथा अंधा, बहरा और गूँगा होकर भटक रहा है। इस खोट बु वाले कृत नने अपने म क बुराई क है, इसी लये यह त तकु भ नरकम गर रहा है। इसके बाद च कय म पीसा जायगा, फर तपायी ई बालूम भूना जायगा। उसके बाद को म पेरा जायगा। त प ात् अ सप वनम इसे यातना द जायगी। फर आरेसे यह चीरा जायगा। तदन तर कालसू से काटा जायगा। इसके बाद और भी ब त-सी यातनाएँ इसे भोगनी पड़गी। इसपर भी म के साथ व ासघात करनेके पापसे इसका उ ार कैसे होगा—यह म भी नह जानता। जो ा ण एक- सरेसे मलकर सदा ा ा भोजन करनेम ही आस रहते ह, उ ह सप के सवा से नकला आ फेन पीना पड़ता है। सुवणक चोरी करनेवाले, ह यारे, शराबी तथा गु प नीगामी—ये चार कारके महापापी नीचे और ऊपर धधकती ई आगके बीचम झ ककर सब ओरसे जलाये जाते ह। इस अव थाम उ ह कई हजार वष तक रहना पड़ता है। तदन तर वे मनु ययो नम उ प होते तथा कोढ़ एवं य मा आ द रोग से यु रहते ह। वे मरनेके बाद फर नरकम जाते ह और पुनः उसी कार नरकसे लौटनेपर रोगयु ज म धारण करते ह। इस कार क पके अ ततक उनके आवागमनका यह च चलता रहता है। गौक ह या करनेवाला मनु य तीन ज म तक नीच-से-नीच नरक म पड़ता है। अ य सभी उपपातक का फल भी ऐसा ही न य कया गया है। नरकसे नकले ए पापी जीव जन- जन पातक के कारण जन- जन यो नय म ज म लेते ह, वह सब म बतला रहा ँ; आप यान दे कर सुन।



१. अप व ा तु यैवदा व य ा हता न भः । त इमे शैलशृ ा ात् पा य तेऽधः पुनः पुनः ।। (अ० १४।८१) २. वृकैभयङ् करैः पृ ं न यम योपभु यते । पृ मांसं नृपैतेन यतो लोक य भ तम् ।। (अ० १४।८५)



पाप के अनुसार भ - भ यो नय क ा त तथा वप त्के पु यदानसे पा पय का उ ार यम त कहता है—राजन्! प ततसे दान लेनेपर ा ण गदहेक यो नम जाता है। प ततका य करानेवाला ज नरकसे लौटनेपर क ड़ा होता है। अपने गु के साथ छल करनेपर उसे कु ेक यो नम ज म लेना पड़ता है तथा गु क प नी और उनके धनको मनही-मन लेनेक इ छा होनेपर भी उसे न स दे ह यही द ड मलता है। माता- पताका अपमान करनेवाला मनु य उनके त कटु वचन कहनेसे मैनाक यो नम ज म लेता है। भाईक ीका अपमान करनेवाला कबूतर होता है और उसे पीड़ा दे नेवाला मनु य कछु एक यो नम ज म लेता है। जो मा लकका अ तो खाता है, क तु उसका अभी साधन नह करता, वह मोहा छ मनु य मरनेके बाद वानर होता है। धरोहर हड़पनेवाला मनु य नरकसे लौटनेपर क ड़ा होता है और सर का दोष दे खनेवाला पु ष नरकसे नकलकर रा स होता है। व ासघाती मनु यको मछलीक यो नम ज म लेना पड़ता है। जो मनु य अ ानवश धान, जौ, तल, उड़द, कुलथी, सरस , चना, मटर, कलमी धान, मूँग, गे ँ तीसी तथा सरे- सरे अनाज क चोरी करता है, वह नेवलेके समान बड़े मुँहका चूहा होता है। परायी ीके साथ स भोग करनेसे मनु य भयङ् कर भे ड़या होता है। उसके बाद मशः कु ा, सयार, बगुला, ग , साँप तथा कौएक यो नम ज म लेता है। जो खोट बु वाला पापी मनु य अपने भाईक ीके साथ बला कार करता है, वह नरकसे लौटनेपर कोयल होता है। जो पापी कामके अधीन होकर म तथा राजाक प नीके साथ सहवास करता है, वह सूअर होता है।



य , दान और ववाहम व न डालनेवाला तथा क याका बारा दान करनेवाला पु ष क ड़ा होता है। जो दे वता, पतर और ा ण को दये बना ही अ भोजन करता है, वह नरकसे नकलनेपर कौआ होता है; जो पताके समान पूजनीय बड़े भाईका अपमान करता है, वह नरकसे नकलनेपर ौ च प ीक यो नम ज म लेता है। ा णक ीके साथ सहवास करनेवाला शू भी क ड़ेक यो नम ज म लेता है। य द उसने ा णीके गभसे स तान उ प कर दया हो तो वह काठके भीतर रहनेवाला क ड़ा होता है। उसके बाद मशः सूअर, कृ म, व ाका क ड़ा और चा डाल होता है। जो नीच मनु य अकृत एवं कृत न होता है, वह नरकसे नकलनेपर कृ म, क ट, पत , ब छू , मछली, कौआ, कछु आ और चा डाल होता है। श हीन पु षक ह या करनेवाला मनु य गदहा होता है। ी और बालक क ह या करनेवालेका क ड़ेक यो नम ज म होता है। भोजनक चोरी करनेसे म खीक यो नम जाना पड़ता है। उसम भी जो भोजनके वशेष भेद ह, उ ह चुरानेके पृथक्-पृथक् फल सु नये। साधारण अ चुरानेवाला मनु य नरकसे छू टनेपर ब लीक



यो नम ज म लेता है। तलचूण म त अ का अपहरण करनेसे मनु यको चूहेक यो नम जाना पड़ता है। घी चुरानेवाला नेवला होता है। नमकक चोरी करनेपर जलकागक और दही चुरानेपर क ड़ेक यो नम ज म होता है। धक चोरी करनेसे बगुलेक यो न मलती है। जो तेल चुराता है, वह तेल पीनेवाला क ड़ा होता है। मधु चुरानेवाला मनु य डाँस और पूआ चुरानेवाला च ट होता है। ह व या क चोरी करनेवाला बसतुइया होता है।



लोहा चुरानेवाला पापा मा कौआ होता है। काँसेका अपहरण करनेसे हारीत (ह रयल) प ीक यो न मलती है और चाँद का बतन चुरानेसे कबूतर होना पड़ता है। सुवणका पा चुरानेवाला मनु य क ड़ेक यो नम ज म लेता है। रेशमी व क चोरी करनेपर चकवेक यो न मलती है तथा रेशमका क ड़ा भी होना पड़ता है। ह रणके रोएँसे बना आ व , महीन व , भेड़ और बकरीके रोएँसे बना आ व तथा पाटं बर चुरानेपर तोतेक यो न मलती है। ईका बना आ व चुरानेसे ौ च और अ नके अपहरणसे बगुला अथवा गदहा होना पड़ता है। अ राग और प य का साग चुरानेवाला मोर होता है। लाल व क



चोरी करनेवालेको चकवेक यो न मलती है। उ म सुग धयु पदाथ क चोरी करनेपर छछू ँ दर और व का अपहरण करनेपर खरगोशक यो नम जाना पड़ता है। फल चुरानेवाला नपुंसक और का क चोरी करनेवाला घुन होता है। फूल चुरानेवाला द र और वाहनका अपहरण करनेवाला प होता है। साग चुरानेवाला हारीत और पानीक चोरी करनेवाला पपीहा होता है। जो भू मका अपहरण करता है, वह अ य त भयङ् कर रौरव आ द नरक म जाकर वहाँसे लौटनेके बाद मशः तृण, झाड़ी, लता, बेल और बाँसका वृ होता है। फर थोड़ा-सा पाप शेष रहनेपर वह मनु यक यो नम आता है। जो बैलके अ डकोषका छे दन करता है, वह नपुंसक होता है और इसी पम इ क स ज म बतानेके प ात् वह मशः कृ म, क ट, पत , प ी, जलचर जीव तथा मृग होता है। इसके बाद बैलका शरीर धारण करनेके बाद चा डाल और डोम आ द घृ णत यो नय म ज म लेता है। मनु य-यो नम वह प , अंधा, बहरा, कोढ़ , राजय मासे पी ड़त तथा मुख, ने एवं गुदाके रोग से त रहता है। इतना ही नह , उसे मरगीका भी रोग होता है तथा वह शू क यो नम भी ज म लेता है। गाय और सोनेक चोरी करनेवाल क ग तका भी यही म है। गु को द णा न दे कर उनक व ाका अपहरण करनेवाले छा भी इसी ग तको ा त होते ह। जो मनु य कसी सरेक ीको लाकर सरेको दे दे ता है, वह मूख नरकक यातना से छू टनेपर नपुंसक होता है। जो मनु य अ नको व लत कये बना ही उसम हवन करता है, वह अजीणताके रोगसे पी ड़त एवं म दा नक बीमारीसे यु होता है।



सरेक न दा करना, कृत नता, सर के गु त भेदको खोलना, न ु रता दखाना, नदय होना, परायी ीका सेवन करना, सरेका धन हड़प लेना, अप व रहना, दे वता क न दा करना, शठतापूवक मनु य को ठगना, कंजूसी करना, मनु य के ाण लेना तथा और भी जतने न ष कम ह, उनम नर तर वृ रहना—ये सब नरक भोगकर लौटे ए मनु य क पहचान ह, ऐसा जानना चा हये। जीव पर दया करना, अ छे वचन बोलना, परलोकके लये पु यकम करना, स य बोलना, स पूण भूत के लये हतकारक वचन कहना, वेद वतः माण ह—ऐसी रखना, गु , दे वता, ऋ ष, स और महा मा का स कार करना, साधु पु ष के स म रहना, अ छे कम का अ यास करना, सबके त म भाव रखना तथा और भी जो उ म धमसे स ब ध रखनेवाले काय ह, वे सब वगसे लौटे ए पु या मा पु ष के च ह—ऐसा व ान् पु ष को समझना चा हये।१



राजन्! अपने-अपने कम का फल भोगनेवाले पु या मा और पा पय से स ब ध रखनेवाली ये सब बात मने आपको सं ेपसे बतायी ह। अ छा, अब आप आइये; अ य चल। इस समय यहाँ सब कुछ आपने दे ख लया। पु कहता है— पताजी! तदन तर राजा वप त् यम तको आगे करके वहाँसे जानेको उ त ए। यह दे ख यातनाम पड़े ए सभी मनु य ने च लाकर कहा—‘महाराज! हमपर कृपा क जये। दो घड़ी और ठहर जाइये। आपके शरीरको छू कर बहनेवाली वायु हमारे च को आन द दान करती है और सम त शरीर म जो स ताप, वेदना और बाधाएँ ह, उनका नाश कये दे ती है; अतः नर े महीपते! हमपर अव य कृपा क जये।’ उनक यह बात सुनकर राजाने यम तसे पूछा—‘मेरे रहनेसे इ ह आन द य कर ा त होता है? मने म यलोकम रहकर कौन-सा महान् पु यकम कया है, जससे इन लोग पर आन ददा यनी वायुक वृ



हो रही है? इस बातको बताओ।’२



यम तने कहा—राजन्! आपका यह शरीर पतर , दे वता , अ त थय और भृ यजन से बचे ए अ के सेवनसे पु आ है तथा आपका मन भी इ ह क सेवाम संल न रहा है। इसी लये आपके शरीरको छू कर बहनेवाली वायु आन ददा यनी जान पड़ती है और इसके लगनेसे इन पा पय को नरकक यातना क नह प ँचाती। आपने अ मेध आ द य का व धपूवक अनु ान कया है; अतः आपके दशनसे यमलोकके य , श , अ न और कौए आ द प ी, जो पीड़न, छे दन और जलन आ द महान् ःखके कारण ह, कोमल हो गये ह। आपके तेजसे इनका ू र वभाव दब गया है। राजा बोले—भ मुख! मेरा तो ऐसा वचार है क पी ड़त ा णय को ःखसे मु करके उ ह शा त दान करनेसे जो सुख मलता है, वह मनु य को वगलोक अथवा लोकम भी नह ा त होता। य द मेरे समीप रहनेसे इन ःखी जीव को नरकयातना क नह प ँचाती तो म सूखे काठक तरह अचल होकर यह र ँगा। यम तने कहा—राजन्! आइये, अब यहाँसे चल। आप पा पय क इन यातना को यह छोड़कर अपने पु यसे ा त ए द भोग का उपभोग क जये। राजा बोले—जबतक ये लोग अ य त ःखी रहगे तबतक तो म यहाँसे नह जाऊँगा; य क मेरे नकट रहनेसे इन नरकवा सय को सुख मलता है। जो शरणम आनेक इ छा रखनेवाले आतुर एवं पी ड़त मनु यपर, भले ही वह श ुप का ही य न हो, कृपा नह करता, उस पु षके जीवनको ध कार है। जसका मन सङ् कटम पड़े ए ा णय क र ा करनेम नह लगता, उसके य , दान और तप इहलोक और परलोकम भी क याणके साधन नह होते। जसका दय बालक, वृ तथा आतुर ा णय के त कठोरता धारण करता है, म उसे मनु य नह मानता; वह तो नरा रा स है। माना, इनके नकट रहनेसे अ नज नत संतापका क सहना होगा, नरकक भयानक ग धका भोग करना पड़ेगा, भूख- यासका महान् ःख, जो मू छत कर दे नेवाला है, भोगना पड़ेगा; तथा प इन खय क र ा करनेम जो सुख है, उसे म वग य सुखसे भी बढ़कर मानता ँ। य द अकेले मेरे ःखी होनेसे ब त-से आ मनु य को सुख ा त होता है तो मुझे कौन-सा सुख नह मला? इस लये त! अब तुम शी लौट जाओ, म यह र ँगा।*



यम तने कहा—महाराज! ये धमराज और इ आपको अव य जाना है, अतः चले च लये।



आपको लेनेके लये आये ह। यहाँसे



धमराज बोले—राजन्! तुमने मेरी भलीभाँ त उपासना क है, अतः म तु ह वगलोकम ले चलता ँ। इस वमानपर चढ़कर चलो, वल ब न करो। राजाने कहा—धमराज! यहाँ नरकम हजार मनु य क भोगते ह और मुझे ल य करके आ भावसे ा ह- ा ह पुकार रहे ह, इस लये म यहाँसे नह जाऊँगा। दे वराज इ ! और धम! य द आप दोन जानते ह क मेरा पु य कतना है तो उसे बतानेक कृपा कर। धम बोले—महाराज! जस कार समु के जल ब , आकाशके तारे, वषाक धाराएँ, ग ाक बालुकाके कण तथा जलक बूँद आ द असं य ह, उसी कार तु हारे पु यक भी कोई नयत सं या नह हो सकती। आज यहाँ इन नरकम पड़े ए जीव पर कृपा करनेसे तु हारा पु य लाख गुना बढ़ गया। नृप े ! अपने इस पु यका फल भोगनेके लये अब दे वलोकम चलो और ये पापी जीव भी नरकम रहकर अपने कम का फल भोग। राजाने कहा—दे वराज! य द मेरे समीपम आनेपर भी इन ःखी जीव को कोई ऊँचा पद नह ा त आ तो मनु य मेरे स पकम रहनेक अ भलाषा य करगे? अतः मेरा जो



कुछ भी पु य है, उसके ारा ये यातनाम पड़े ए पापी जीव नरकसे छु टकारा पा जायँ। इ बोले—राजन्! इस उदारताके कारण तुमने और भी ऊँचा थान ा त कर लया। दे खो, ये पापी जीव भी नरकसे मु हो गये। पु कहता है— पताजी! तदन तर राजा वप त्के ऊपर फूल क वषा होने लगी और वयं भगवान् व णु उ ह वमानम बठाकर द धामम ले गये।* उस समय म तथा और भी जतने पापी जीव थे, वे सब नरकयातनासे छू टकर अपने-अपने कमफलके अनुसार भ - भ यो नय म चले गये। ज े ! इस कार मने इन नरक का वणन कया; साथ ही पूवकालम मने जैसा अनुभव कया था, उसके अनुसार जस- जस पापके कारण मनु य जस- जस यो नम जाता है, वह सब भी बतला दया।







पर न दा कृत न वं परममावघ नम् । नै ु य नघृण वं च परदारोपसेवनम् । पर वहरणाशौचं दे वतानां च कु सनम् ।। नकृ या व चनं नॄणां काप यं च नृणां वधः । या न च त ष ा न त वृ संतता ।। उपल या ण जानीया मु ानां नरकादनु । दया भूतेषु सद्वादः परलोक त या ।। स यं भूत हताथ वद ामा यदशनम् । गु दे व ष स षपूजनं साधुस मः ।। स या यसनं मै ी म त बु येत प डतः । अ या न चैव स म याभूता न या न च ।। वग युतानां ल ा न पु षाणामपा पनाम् । (अ० १५।३९-४४ ) २



पु उवाच तत तम तः कृ वा स राजा ग तुमु तः । तत सव ु ं यातना था य भनृ भः ।। सादं कु भूपे त त ताव मु कम् । वद स पवनो मनो ादयते ह नः ।। प रतापं च गा े यः पीडाबाधा कृ नशः । अपह त नर ा दयां कु महीपते ।। एत छ वा वच तेषां तं या यपु षं नृपः । प छ कथमेतेषामा ादो म प त त ।। क मया कम तत् पु यं म यलोके महत् कृतम् । आ ाददा यनी वृ यनेयं त द रय ।।



(अ० १५।४७-५१)



*



यमपु ष उवाच पतृदेवा त थ ै य श ेना ेन ते तनुः । पु म यागता य मात् त तं च मनो यतः ।। तत व ा संसग पवनो ाददायकः । पापकमकृतो राजन् यातना न बाधते ।। अ मेधादयो य ा वये ा व धवद् यतः । तत व शना ा या य श ा नवायसाः ।। पीडन छे ददाहा दमहा ःख य हेतवः । मृ वमागता राजन् तेजसापहता तव ।। राजोवाच न वग लोके वा तत् सुखं ा यते नरैः । यदा ज तु नवाणदानो थ म त मे म तः ।। य द म स धावेतान् यातना न बाधते । ततो भ मुखा ाहं था ये थाणु रवाचलः ।। यमपु ष उवाच ए ह राजन् ग छामो नजपु यसम जतान् । भुङ् व भोगानपा येह यातनाः पापकमणाम् ।। राजोवाच त मा तावद् या या म यावदे ते सु ः खताः । म स धानात् सु खनो भव त नरकौकसः ।। धक् त य जीवनं पुंसः शरणा थनमातुरम् । यो ना मनुगृ ा त वै रप म प ुवम् ।। य दानतपांसीह पर च न भूतये । भव त त य य या प र ाणे न मानसम् ।। नर य य य क ठनं मनो बालातुरा दषु । वृ े षु च न तं म ये मानुषं रा सो ह सः ।। एतेषां सं नकषात् तु य नप रतापजम् । तथो ग धजं वा प ःखं नरकस भवम् ।। ु पपासाभवं ःखं य च मू छा दं महत् । एतेषां ाणदानं तु म ये वगसुखात् परम ।। ा य या ा य द सुखं बहवो ः खते म य । क नु ा तं मया न यात् त मात् वं ज मा चरम् ।। (अ० १५।५२-६५) *



यमपु ष उवाच—एष धम श वां नेतुं समुपागतौ । अव यम मा त ं त मात् पा थव ग यताम् ।। धम उवाच—नया म वामहं वग वया स यगुपा सतः । वमानमेतदा मा वल ब व ग यताम् ।। राजोवाच—नरके मानवा धम पी तेऽ सह शः । ाही त चा ाः द त मामतो न जा यहम् ।। य द जाना स धम वं वं वा श शचीपते । मम याव माणं तु शुभं त ु महथः ।। धम उवाच—अ ब दवो यथा भोधौ यथा वा द व तारकाः । यथा वा वषतो धारा ग ायां सकता यथा ।। असं येया महाराज यथा ब ादयो पाम् । तथा तवा प पु य य सं या नैवोपप ते ।। अनकु पा ममाम नारके वह कुवतः । तदे व शतसाह ं सं यामुपगतं तव ।। तद् ग छ वं नृप े त ो ु ममरालयम् । एतेऽ प पापं नरके पय तु वकमजम् ।। राजोवाच—कथं पृहां क र य त म स पकषु मानवाः । य द म सं नधावेषामु कष नोपजायते ।। े







त माद् यत् सुकृतं क च ममा त दशा धप । तेन मु य तु नरकात् पा पनो यातनां गताः ।। इ उवाच—एवमूद ् वतरं थानं वयावा तं महीपते । एतां नरकात् प य वमु ान् पापका रणः ।। पु उवाच—ततोऽपतत् पु पवृ त योप र महीपतेः । वमानं चा धरो यैनं वल कमनय रः ।। (अ० १५।६६-६८, ७०-७८)



द ा ेयजीके ज म- स म एक प त ता ा णी तथा अनसूयाजीका च र पता बोले—बेटा! तुमने अ य त हेय संसारके व थत व पका वणन कया, जो घट -य क भाँ त नर तर आवागमनशील और वाह पसे अ वनाशी है। इस कार मने इसके व पको भलीभाँ त समझ लया है। ऐसी थ तम अब मुझे या करना चा हये? यह बताओ। पु (सुम त) ने कहा— पताजी! य द आप शङ् का छोड़कर मेरे वचन म पूण ा रखते ह तो मेरी राय यह है क आप गृह था मका प र याग करके वान थके नयम का पालन क जये। वान थ आ मके कत का भलीभाँ त अनु ान करके फर आहवनीय आ द अ नय का सं ह भी छोड़ द जये और आ मा (बु )-को आ माम लगाकर र हत एवं प र हशू य हो जाइये। एका तम रहते ए अपने मनको वशम क जये और आल य छोड़कर भ ु (सं यासी)-का जीवन तीत क जये। सं यासा मम योगपरायण होकर बा वषय के स पकसे अलग हो जाइये। इससे आपको उस योगक ा त होगी, जो ःख-संयोगको र करनेक ओष ध, मो का साधन, तुलनार हत, अ नवचनीय एवं अस है और जसका संयोग ा त होनेपर आपको फर संसारी जीव के स पकम नह आना पड़ेगा। पता बोले—बेटा! अब तुम मुझे मो के साधनभूत उस उ म योगका उपदे श दो, जससे म फर संसारी जीव के स पकम आकर ऐसा ःख न उठाऊँ। य प आ मा वभावतः सब कारके योगसे र हत है तो भी जस योगम आस होनेपर मेरे आ माका सांसा रक ब धन से योग न हो, उसी योगको इस समय मुझे बताओ। संसार पी सूयके च ड तापक पीड़ासे मेरे शरीर और मन दोन सूख रहे ह। तुम ान पी जलक शीतलतासे यु अपने वचन पी स ललसे इ ह स च दो। मुझे अ व ा पी काले नागने डस लया है। म उसके वषसे पी ड़त होकर मर रहा ँ। तुम अपने वचनामृतसे मुझे पुनः जी वत कर दो। म ी-पु , घर- ार, खेती-बारीक ममता पी बेड़ीम जकड़ा जाकर क पा रहा ँ; तुम य एवं उ म भावसे यु व ान ारा इस ब धनको खोलकर मुझे शी मु करो। पु ने कहा— पताजी! पूवकालम परम बु मान् द ा ेयजीने राजा अलकको उनके पूछनेपर जस योगका भलीभाँ त व तारपूवक उपदे श कया था, वही आपको बता रहा ँ; सु नये।



पता बोले—द ा ेयजी कसके पु थे? उ ह ने कस कार योगका उपदे श कया था और महाभाग अलक कौन थे, ज ह ने योगके वषयम कया था? पु ने कहा— त ानपुरम एक कौ शक नामक ा ण था। वह पूवज मम कये ए पाप के कारण कोढ़के रोगसे ाकुल रहने लगा। ऐसे घृ णत रोगसे यु होनेपर भी उसे उसक प नी दे वताक भाँ त पूजती थी। वह अपने प तके पैर म तेल मलती, उसका शरीर दबाती, अपने हाथसे उसे नहलाती, कपड़े पहनाती और भोजन कराती थी; इतना ही नह , उसके थूक, खँखार, मल-मू और र भी वह वयं ही धोकर साफ करती थी। वह एका तम भी प तक सेवा करती और उसे मीठ वाणीसे स रखती थी। इस कार अ य त वनीत भावसे वह सदा अपने मीक पूजा कया करती तो भी अ धक ोधी वभावका होनेके कारण वह न ु र ायः अपनी प नीको फटकारता ही रहता था। इतनेपर भी वह उसके पैर पड़ती और उसे दे वताके समान समझती थी। य प उसका शरीर अ य त घृणाके यो य था तो भी वह सा वी उसे सबसे े मानती थी। कौ शकसे चला- फरा नह जाता था तो भी एक दन उसने अपनी प नीसे कहा—‘धम े! उस दन मने घरपर बैठे-बैठे ही सड़कपर जस वे याको जाते दे खा था, उसके घरम आज मुझे ले चलो। मुझे उससे मला दो। वही मेरे दयम बसी ई है। जबसे मने उसे दे खा है, तबसे वह मेरे मनसे र नह होती। य द वह आज मेरा आ ल न नह करेगी तो कल तुम मुझे मरा आ दे खोगी। मनु य के लये कामदे व ायः टे ढ़ा होता है। उस वे याको ब त लोग चाहते ह और मुझम उसके पासतक जानेक श नह है; इस लये आज मुझे बड़ा सङ् कट तीत होता है।’ अपने कामातुर वामीका यह वचन सुनकर उ म कुलम उ प ई इस परम सौभा यशा लनी प त ता प नीने अपनी कमर खूब कस ली और अ धक शु क लेकर प तको कंधेपर चढ़ा लया। फर धीरे-धीरे वे याके घरक ओर थान कया। रा का समय था, आकाश मेघ से आ छ हो रहा था। केवल बजलीके चमकनेसे माग दखायी दे जाता था। ऐसी बेलाम वह ा णी अपने प तका अभी साधन करनेके लये राजमागसे जा रही थी। मागम सूली थी, जसके ऊपर चोर न होते ए भी चोरके स दे हसे मा ड नामक ा णको चढ़ा दया गया था। वे ःखसे आतुर हो रहे थे। कौ शक प नीके कंधेपर बैठा था, उस अ धकारम दे ख न सकनेके कारण उसने अपने पैर से छू कर सूलीको हला दया। इससे कु पत होकर मा ड ने कहा—‘ जसने पैरसे हलाकर मुझे इस क क दशाम प ँचा दया और मुझे अ य त ःखी कर दया, वह पापा मा



नराधम सूय दय होनेपर ववश हो न स दे ह अपने ाण से हाथ धो बैठेगा। सूयका दशन होते ही उसका वनाश हो जायगा।’ इस अ य त दा ण शापको सुनकर उसक प नी थत होकर बोली—‘अब सूयका उदय ही नह होगा।’* तदन तर सूय दय न होनेके कारण बराबर रात ही रहने लगी। कतने ही दन के बराबर समय रातभरम ही बीत गया। इससे दे वता को बड़ा भय आ। वे सोचने लगे— वा याय, वषट् कार, वधा ( ा ) तथा वाहा (य )-से र हत होकर यह सारा जगत् न ए बना कैसे रह सकता है। दन-रातक व था ए बना मास और ऋतुका भी लोप हो जायगा। उनके लोप होनेसे द णायन और उ रायणका भी ान नह होगा। अयनका ान ए बना वष कैसे हो सकता है, और वषके बना कालका ान होना अस भव है। प त ताके वचनसे सूयका उदय ही नह होता; उसके बना नान, दान आ द याएँ बंद हो गय । अ न-हो और य का अभाव भी गोचर होने लगा है। होमके बना हमलोग क तृ त नह होती। जब मनु य य का यथो चत भाग दे कर हम तृ त करते ह, तब हम खेतीक उपजके लये वषा करके मनु य पर अनु ह करते ह। नया अ पैदा होनेपर मनु य फर हमारे लये य करते ह और हमलोग य ा द ारा पू जत होनेपर उ ह मनोवा छत भोग दान करते ह। हम नीचेक ओर वषा करते ह और मनु य ऊपरक ओर। हम जलक वषासे मनु य को और मनु य ह व यक वषासे हमलोग को तृ त करते ह। जो रा मा लोभवश हमारा य भाग वयं खा लेते ह, उन अपकारी पा पय के नाशके लये हम जल, सूय, अ न, वायु तथा पृ वीको भी षत कर दे ते ह। उन षत व तु का उपभोग करनेसे उन कुक मय क मृ युके लये भयङ् कर महामारी आ द रोग उ प हो जाते ह। जो हम तृ त करके शेष अ अपने उपभोगम लाते ह, उन महा मा को हम पु यलोक दान करते ह। क तु इस समय भातकाल ए बना इन मनु य के लये वह सब पु यकम अस भव हो रहा है। अब दनक सृ कैसे हो?’ इस कार सब दे वता आपसम बात करने लगे। य के वनाशक आशङ् कासे वहाँ एक त ए दे वता के वचन सुनकर जाप त ाजीने कहा—‘प त ताके माहा यसे इस समय सूयका उदय नह हो रहा है और सूय दय न होनेसे मनु य तथा तुम दे वता क भी हा न है; अतः तुमलोग मह ष अ क प त ता प नी तप वनी अनसूयाके पास जाओ और सूय दयक कामनासे उ ह स करो।’१



तब दे वता ने जाकर अनसूयाजीको स कया। वे बोल —‘तुम या चाहते हो, बतलाओ।’ दे वता ने याचना क क ‘पूववत् दन होने लगे।’ अनसूयाने कहा—दे वताओ! प त ताका मह व कसी कार कम नह हो सकता; इस लये म उस सा वीको मनाकर दनक सृ क ँ गी। मुझे ऐसा उपाय करना है, जससे फर पहलेक ही भाँ त दन-रातक व था चलती रहे और उस प त ताके प तका भी नाश न हो।२ पु ने कहा—दे वता से य कहकर अनसूया दे वी उस ा णीके घर गय और उसके कुशल पूछनेपर उ ह ने अपनी, अपने वामीक तथा अपने धमक कुशल बतायी। अनसूया बोल —क याणी! तुम अपने वामीके मुखका दशन करके स तो रहती हो न? प तको स पूण दे वता से बड़ा मानती हो न? प तक सेवासे ही मुझे महान् फलक ा त ई है तथा स पूण कामना एवं फल क ा तके साथ ही मेरे सारे व न भी र हो गये।३ सा वी! मनु यको पाँच ऋण सदा ही चुकाने चा हये। अपने वणधमके अनुसार धनका सं ह करना



आव यक है। उसके ा त होनेपर शा व धके अनुसार उसका स पा को दान करना चा हये। स य, सरलता, तप या, दान और दयासे सदा यु रहना चा हये। राग- े षका प र याग करके शा ो कम का अपनी श के अनुसार त दन ापूवक अनु ान करना चा हये। ऐसा करनेसे मनु य अपने वणके लये व हत उ म लोक को ा त होता है। प त ते! इस कार महान् लेश उठानेपर पु ष को ाजाप य आ द लोक क ा त होती है; पर तु याँ केवल प तक सेवा करनेमा से पु ष के ःख सहकर उपा जत कये ए पु यका आधा भाग ा त कर लेती ह। य के लये अलग य , ा या उपवासका वधान नह है। वे प तक सेवामा से ही उन अभी लोक को ा त कर लेती ह। अतः महाभागे! तु ह सदा प तक सेवाम अपना मन लगाना चा हये; य क ीके लये प त ही परम ग त है। प त जो दे वता , पतर तथा अ त थय क स कारपूवक पूजा करता है, उसके भी पु यका आधा भाग ी अन य च से प तक सेवा करनेमा से ा त कर लेती है।१ अनसूयाजीका वचन सुनकर प त ता ा णीने बड़े आदरके साथ उनका पूजन कया और इस कार कहा—‘ वभावतः सबका क याण करनेवाली दे वी! वयं आप यहाँ पधारकर प तक सेवाम मेरी पुनः ा बढ़ा रही ह। इससे म ध य हो गयी। यह आपका मुझपर ब त बड़ा अनु ह है। इसीसे दे वता ने भी आज मुझपर कृपा क है। म जानती ँ क य के लये प तके समान सरी कोई ग त नह है। प तम कया आ ेम इहलोक और परलोकम भी उपकार करनेवाला होता है। यश व न! प तके सादसे ही नारी इस लोक और परलोकम भी सुख पाती है; य क प त ही नारीका दे वता है। महाभागे! आज आप मेरे घरपर पधारी ह। मुझसे अथवा मेरे इन प तदे वसे आपको जो भी काय हो, उसे बतानेक कृपा कर।२ अनसूयोवाच एते दे वाः सहे े ण मामुपाग य ः खताः । व ा यापा तस कम दनन न पणाः ।। याच तेऽह नशासं थां यथावद वख डताम् । अहं तदथमायाता शृणु चैत चो मम ।। दनाभावात् सम तानामभावो यागकमणाम् । तदभावात् सुराः पु नोपया त तप व न ।। अ ैव समु छे दा छे दः सवकमणाम् । त छे दादनावृ ा जग छे दमे य त ।।



त व म छ स चेदेत जग ुमापदः । सीद सा व लोकानां पूवव तां र वः ।। अनसूया बोल —दे व! तु हारे वचनसे दन-रातक व थाका लोप हो जानेके कारण शुभ कम का अनु ान बंद हो गया है; इस लये ये इ आ द दे वता मेरे पास खी होकर आये ह और ाथना करते ह क दन-रातक व था पहलेक तरह अख ड पसे चलती रहे। म इसीके लये तु हारे पास आयी ँ। मेरी यह बात सुनो। दन न होनेसे सम त य कम का अभाव हो गया है और य के अभावसे दे वता क पु नह हो पाती है; अतः तप व न! दनके नाशसे सम त शुभ कम का नाश हो जायगा और उनके नाशसे वृ म बाधा पड़नेके कारण इस संसारका ही उ छे द हो जायगा। अतः य द तुम इस जगत्को आप से बचाना चाहती हो तो स पूण लोक पर दया करो, जससे पहलेक भाँ त सूय दय हो। ा युवाच मा ड ेन महाभागे श तो भता ममे रः । सूय दये वनाशं वं ा यसी य तम युना ।। ा णीने कहा—महाभागे! मा ड ऋ षने अ य त ोधम भरकर मेरे वामी—मेरे ई रको शाप दया है क सूय दय होते ही तेरी मृ यु हो जायगी। अनसूयोवाच य द वा रोचते भ े तत व चनादहम् । करो म पूवव े हं भतारं च नवं तव ।। मया ह सवथा ीणां माहा यं वरव ण न । प त तानामारा य म त स मानया म ते ।। अनसूया बोल —क याणी! य द तु हारी इ छा हो और तुम कहो तो म तु हारे प तको पूववत् शरीर एवं नयी व थ अव थाका कर ँ गी। सु दरी! मुझे प त ता य के माहा यका सवथा आदर करना है, इसी लये तु ह मनाती ँ। पु उवाच तथे यु े तया सूयमाजुहाव तप वनी । अनसूया यमु य दशरा े तदा न श ।। ततो वव वान् भगवान् फु लप ा णाकृ तः । शैलराजानमुदयमा रोहो म डलः ।। समन तरमेवा या भता ाणै यु यत । पपात च महीपृ े पत तं जगृहे च सा ।।



पु (सुम त) कहता है— ा णीके ‘तथा तु’ कहकर वीकार करनेपर तप वनी अनसूयाने अ य हाथम लेकर सूयदे वका आवाहन कया। उस समयतक दस दन के बराबर रात बीत चुक थी। तदन तर भगवान् सूय खले ए कमलके समान अ ण आकृ त धारण कये अपने महान् म डलके साथ ग रराज उदयाचलपर आ ढ़ ए। सूयदे वके कट होते ही ा णीका प त ाणहीन होकर पृ वीपर गरा; क तु उसक प नीने गरते समय उसे पकड़ लया। अनसूयोवाच न वषाद वया भ े कत ः प य मे बलम् । प तशु ूषयावा तं तपसः क चरेण ते ।। यथा भतृसमं ना यमप यं पु षं व चत् । पतः शीलतो बु या वाङ् माधुया दभूषणैः ।। तेन स येन व ोऽयं ा धमु ः पुनयुवा । ा ोतु जी वतं भायासहायः शरदां शतम् ।। यथा भतृसमं ना यमहं प या म दै वतम् । तेन स येन व ोऽयं पुनज व वनामयः ।। कमणा मनसा वाचा भतुराराधनं त । यथा ममो मो न यं तथायं जीवताद् जः ।। अनसूया बोल —भ े ! तुम वषाद न करना। प तक सेवासे जो तपोबल मुझे ा त आ है, उसे तुम अभी दे खो; वल बक या आव यकता? मने जो प, शील, बु एवं मधुर भाषण आ द सद्गुण म अपने प तके समान सरे कसी पु षको कभी नह दे खा है, उस स यके भावसे यह ा ण रोगसे मु हो फरसे त ण हो जाय और अपनी ीके साथ सौ वष तक जी वत रहे। य द म वामीके समान और कसी दे वताको नह समझती तो उस स यके भावसे यह ा ण रोगमु होकर पुनः जी वत हो जाय। य द मन, वाणी एवं या ारा मेरा सारा उ ोग त दन वामीक सेवाके ही लये होता हो तो यह ा ण जी वत हो जाय।



पु उवाच ततो व ः समु थौ ा धमु ः पुनयुवा । वभा भभासयन् वे म वृ दारक इवाजरः ।। ततोऽपतत् पु पवृ दववा ा द नः वनः । ले भरे च मुदं दे वा अनसूयामथा ुवन् ।। पु कहता है— पताजी! अनसूयादे वीके इतना कहते ही वह ा ण अपनी भासे उस भवनको काशमान करता आ रोगमु त ण शरीरसे जी वत हो उठा, मानो जराव थासे र हत दे वता हो। तदन तर भ आद दे वता के बाज क आवाजके साथ वहाँ फूल क वषा होने लगी। दे वता को बड़ा आन द मला। वे अनसूयादे वीसे कहने लगे। दे वता बोले—क याणी! आपने दे वता का ब त बड़ा काय कया है। तप वनी! इससे स होकर दे वता आपको वर दे ना चाहते ह। आप कोई वर माँग।



अनसूयाने कहा—य द ा आ द दे वता मुझपर स होकर वर दे ना चाहते ह, य द आपलोग ने मुझे वर दे नेके यो य समझा है तो मेरी यही इ छा है क ा, व णु और शव मेरे पु के पम कट ह तथा अपने वामीके साथ म उस योगको ा त क ँ , जो सम त लेश से मु दे नेवाला है। यह सुनकर ा, व णु और शव आ द दे वता ने ‘एवम तु’ कहा और तप वनी अनसूयाका स मान करके वे सब-के-सब अपने-अपने धामको चले गये।



*



त य भाया ततः ु वा तं शापम तदा णम् । ोवाच



थता सूय नैवोदयमुपै य त ।। (१६।३१) १-प त ताया माहा या ो छ त दवाकरः । त य चानुदया ा नम यानां भवतां तथा ।। त मात् प त ताम ेरनसूयां तप वनीम् । सादयत वै प न भानो दयका यया ।। (१६।४८-४९) अनसूयोवाच २-प त ताया माहा यं न हीयेत कथं व त । स मा य त मात् तां सा वीमहः या यहं सुराः ।। यथा पुनरहोरा सं थानमुपजायते । यथा च त याः वप तन सा ा नाशमे य त ।। (१६।५१-५२) ३-क च द स क या ण वभतुमुखदशनात् । क च चा खलदे वे यो म यसेऽ य धकं प तम् ।। भतृशु ूषणादे व मया ा तं महत् फलम् । सवकामफलावा या यूहाः प रव तताः ।। (१६।५४-५५) १ ना त ीणां पृथ य ो न ा ं ना युपो षतम् । भतृशु ूषयैवैतान् लोका न ान् ज त ह ।। त मात् सा व महाभागे प तशु ूषणं त । वया म तः सदा काया यतो भता परा ग तः ।। य े वे यो य च प ागते यः कुया ा यचनं स यातः । त या य केवलान य च ा नारी भुङ् े भतृशु ूषयैव ।। (१६।६१-६३) २ सा वं ू ह महाभागे ा ताया मम म दरम् । आयाया य मया काय तथाऽऽयणा प वा शुभे ।। (१६।६८)



द ा ेयजीके ज म और भावक कथा पु (सुम त) कहता है—तदन तर ब त समय तीत होनेके बाद ाजीके तीय पु मह ष अ ने अपनी परमसा वी प नी अनसूयाको दे खा, जो ऋतु नान कर चुक थ । वे सवा सु दरी थ । उनका प मनको लुभानेवाला था। उ ह दे खकर मु नने कामयु होकर मन-ही-मन उनका च तन कया। उनके च तन करते समय जो वकार कट आ, उसे वेगयु वायुने इधर-उधर और ऊपरक ओर प ँचा दया। वह अ मु नका तेज व प, शु लवण, सोम प एवं रजोमय था। जब वह गरने लगा तो उसे दस दशा ने हण कर लया। वही जाप त अ के मानस पु च माके पम अनसूयासे उप आ, जो सम त ा णय के जीवनका आधार है। भगवान् व णुने स तु होकर अपने ी व हसे स वमय तेजको कट कया। उसीसे द ा ेयजीका ज म आ। भगवान् व णुने ही द ा ेयके नामसे स ा त करके अनसूयाका तनपान कया। वे अ के तीय पु थे। हैहयराज कृतवीय बड़ा उ ड था। उसने एक बार मह ष अ का अपमान कर दया। यह दे ख अ के तृतीय पु वासा, जो अभी माताके गभम ही थे, ोधम भरकर सात ही दन म माताके उदरसे बाहर नकल आये। गभवासज नत महान् आयास तथा पताके अपमानज नत ःख और अमषसे यु होकर वे हैहयराजको त काल भ म कर डालनेको उ त हो गये थे। वे तमोगुणके उ कषसे यु सा ात् भगवान् के अंश थे। इस कार अनसूयाके गभसे ा, व णु और शवके अंशभूत तीन पु उ प ए। च मा ाके अंशसे ए थे, द ा ेय ी व णुभगवान्के व प थे और वासाके पम सा ात् भगवान् शङ् करने ही अवतार लया था।* दे वता के वरदान दे नेके कारण ये तीन दे वता वहाँ कट ए थे। च मा अपनी शीतल करण से तृण, लता, व ली, अ तथा मनु य का पोषण करते ह और सदा वगम रहते ह; वे जाप तके अंश ह। द ा ेय दै य का संहार करके जाक र ा करते ह। वे श जन पर अनु ह करनेवाले ह। उ ह भगवान् व णुका अंश जानना चा हये। वासा अपमान करनेवालेको भ म कर डालते ह। वे शरीर, , मन और वाणीसे भी उ त वभावके ह और भावका आ य लेकर रहते ह। इस कार जाप त मह ष अ ने वयं ही च माको कट कया। ी व णु प द ा ेयजी योग थ रहकर वषय का अनुभव करने लगे। वासा अपने पता-माताको छोड़कर उ म नामक उ म तका आ य ले पृ वीपर वचरने लगे। कुछ काल बीतनेके प ात् जब राजा कृतवीय वगको पधारे और म य , पुरो हत तथा पुरवा सय ने राजकुमार अजुनको रा या भषेकके लये बुलाया तब उसने कहा —‘म यो! जो भ व यम नरकको ले जानेवाला है, वह रा य म नह हण क ँ गा। जसके लये जाजन से कर लया जाता है, उस उ े यका पालन न कया जाय तो रा य



लेना थ है। वै यलोग अपने ापारसे होनेवाली आयका बारहवाँ भाग राजाको इस लये दे ते ह क वे मागम लुटेर ारा लूटे न जायँ। राजक य अथर क के ारा सुर त होकर वे वा ण यके लये या ा कर सक। वाले घी और त आ दका तथा कसान अनाजका छठा भाग राजाको इसी उ े यसे अपण करते ह। य द राजा वै य से स पूण आयका अ धकांश भाग ले ले तो वह चोरका काम करता है। इससे उसके इ और पूत कम का नाश होता है। *



य द राजाको कर दे कर भी जाको सरी वृ य का आ य लेना पड़े, उसक र ा राजाके अ त र कह अय य ारा हो तो उस अव थाम कर लेनेवाले राजाको न य ही नरकम जाना पड़ता है। जाक आयका जो छठा भाग है, उसे पूवकालके मह षय ने राजाके लये जाक र ाका वेतन नयत कया है। य द चोर से वह जाक र ा न कर सका तो इसका पाप राजाको ही होता है; इस लये य द म तप या करके अपनी इ छाके अनुसार योगीका पद ा त कर लूँ तो म पृ वीके पालनक श से यु एकमा राजा हो सकता ँ। ऐसी दशाम अपने उ रदा य वका पूण नवाह करनेके कारण मुझे पापका भागी नह होना पड़ेगा।’ उसके इस न यको जानकर म य के म यम बैठे ए परम बु मान् वयोवृ मु न े गगने कहा—‘राजकुमार! य द तुम रा यका यथावत् पालन करनेके लये ऐसा करना चाहते हो तो मेरी बात सुनो और वैसा ही करो। महाभाग द ा ेय मु न स पवतक गुफाम रहते ह। तुम उ ह क आराधना करो। वे तीन लोक क र ा करते ह। द ा ेयजी योगयु , परम सौभा यशाली, सव समदश तथा व पालक भगवान् व णुके अंश पसे इस पृ वीपर अवतीण ए ह। उ ह क आराधना करके इ ने रा मा दै य ारा छ ने ए अपने पदको ा त कया तथा दै य को मार भगाया।’ अजुनने पूछा—महष! दे वता ने परम तापी द ा ेयजीक आराधना कस कार क थी? तथा दै य ारा छ ने ए इ पदको दे वराजने कैसे ा त कया था? गगने कहा—पूवकालम दे वता और दै य म बड़ा भयङ् कर यु आ था। उस यु म दै य का नायक ज भ था और दे वता के वामी इ । उ ह यु करते एक द वष तीत हो गया। उसके बाद दे वता हार गये और दै य वजयी ए। व च आ द दानव ने जब दे वता को परा त कर दया, तब वे यु से भागने लगे, अब उनम श ु को जीतनेका उ साह न रह गया। फर वे दै यसेनाके वधक इ छासे बृह प तजीके पास आये और उनके तथा वाल ख य आ द मह षय के साथ बैठकर म णा करने लगे। बृह प तजीने कहा—दे वताओ! तुम अ के तप वी पु महा मा द ा ेयके पास जाओ और उ ह भ पूवक स तु करो। उनम वर दे नेक श है। वे तु ह दै य का नाश करनेके लये वर दगे। त प ात् तुम सब लोग मलकर दै य और दानव का वध कर सकोगे।



गगने कहा—उनके ऐसा कहनेपर दे वगण द ा ेयके आ मपर गये और वहाँ ल मीजीके साथ उन महा माका दशन कया। सबसे पहले उ ह ने अपना कायसाधन करनेके लये उ ह णाम कया, फर तवन कया। भ य-भो य और माला आ द व तुएँ भट क । इस कार वे आराधनाम लग गये। जब द ा ेयजी चलते तो दे वता भी उनके पीछे -पीछे जाते। जब वे खड़े होते तो दे वता भी ठहर जाते और जब वे ऊँचे आसनपर बैठते तो दे वता नीचे खड़े रहकर उनक उपासना करते। एक दन पैर पर पड़े ए दे वता से द ा ेयजीने पूछा—‘तुमलोग या चाहते हो, जो मेरी इस कार सेवा करते हो?’



दे वता बोले—मु न े ! ज भ आ द दानव ने लोक पर आ मण करके भूल क, भुवल क आ दपर अ धकार जमा लया है और स पूण य भाग भी हर लये ह; अतः आप हमारी र ाके लये उनके वधका वचार क जये। आपक कृपासे हम पुनः वगलोक ा त



करना चाहते ह। जग ाथ! आप न पाप एवं नलप ह। व ाके भावसे शु ए आपके अ तःकरणम ानक करण फैल रही ह। द ा ेयजीने कहा—दे वताओ! यह स य है क मेरे पास व ा है और म समदश भी ँ; तथा प इस नारीके स से म षत हो रहा ँ; य क ीका नर तर सहयोग दोषका ही कारण होता है। उनके ऐसा कहनेपर दे वता फर बोले— ज े ! ये सा ात् जग माता ल मी ह। इनम पापका लेश भी नह है; अतः ये कभी षत नह होत । जैसे सूयक करण ा ण और चा डाल दोन पर पड़ती ह; क तु अप व नह होत । दे वता के ऐसा कहनेपर द ा ेयजीने हँसकर कहा—य द तुमलोग का ऐसा ही वचार है तो सम त असुर को यु के लये यह मेरे सामने बुला लाओ, वल ब न करो। मेरे पातज नत अ नसे उनके बल और तेज दोन ीण हो जायँगे और इस कार वे सबके-सब मेरी म पड़कर न हो जायँगे। उनक यह बात सुनकर दे वता ने महाबली दै य को यु के लये ललकारा तथा वे ोधम भरकर दे वता पर टू ट पड़े। दै य क मार खाकर दे वता भयसे ाकुल हो गये और शरण पानेक इ छासे शी ही भागकर द ा ेयजीके आ मपर गये। दै य भी दे वता को कालके गालम भेजनेके लये उसी जगह जा प ँचे। वहाँ उ ह ने महाबली महा मा द ा ेयजीको दे खा। उनके वामभागम च मुखी ल मीजी वराजमान थ , जो उनक य प नी एवं स पूण जगत्के लोग का क याण करनेवाली ह। वे सवा सु दरी ल मी ीसमु चत स पूण उ म गुण से वभू षत थ और मीठ वाणीम भगवान्से वातालाप कर रही थ । उ ह सामने दे खकर दै य के मनम उ ह ा त करनेक इ छा हो गयी। वे अपने बढ़ते ए कामके वेगको न रोक सके। अब तो उ ह ने दे वता का पीछा छोड़ दया और ल मीजीको हर लेनेका वचार कया। उस पापसे मो हत हो जानेके कारण उनक सारी श ीण हो गयी। वे आस होकर आपसम कहने लगे—‘यह ी भुवनका सारभूत र न है। य द यह हमारी हो जाय तो हमलोग कृताथ हो जायँ; इस लये हम सब लोग मलकर इसे पालक पर बठा ल और अपने घरको ले चल।’ यह वचार न त हो गया। आपसम ऐसी बात करके वे कामपी ड़त दै य आस पूवक वहाँ गये और ल मीजीको पालक म बठाकर उसे म तकपर ले अपने थानक ओर चल दये। तब द ा ेयजीने हँसकर दे वता से कहा—‘सौभा यसे ल मी दै य के सरपर चढ़ गय । अब तुमलोग बढ़ो। ह थयार उठाकर इन दै य का वध करो। अब इनसे डरनेक आव यकता नह । मने इ ह न तेज कर दया है तथा परायी ीके पशसे इनका पु य जल गया है, जससे ये श हीन हो चले ह।’



तदन तर दे वता ने नाना कारके अ -श से दै य को मारना आर भ कया। ल मी उनके सरपर चढ़ ई थ , इस लये वे न हो गये। इसके बाद ल मीजी वहाँसे महामु न द ा ेयके पास आ गय । उस समय स पूण दे वता उनक तु त करने लगे। दै य के नाशसे उ ह बड़ी स ता ई थी। फर परम बु मान् द ा ेयजीको णाम करके दे वता वगम चले गये और पहलेक भाँ त न त होकर रहने लगे। राजन्! य द तुम भी इसी कार अपनी इ छाके अनुसार अनुपम ऐ य ा त करना चाहते हो तो तुरंत ही उनक आराधनाम लग जाओ। गग मु नक यह बात सुनकर राजा कातवीयने द ा ेयजीके आ मपर जा उनका भ पूवक पूजन कया। वह उनका पैर दबाता, उनके लये माला, च दन, ग ध, जल और फल आ द साम ी तुत करता; भोजनके साधन जुटाता और जूँठन साफ करता था। इससे स तु होकर मु नने कातवीयसे कहा—‘अरे भैया! तुम दे खते हो, मेरे पास यह ी बैठ ई है। म इसके उपभोगसे न दाका पा हो रहा ँ, अतः मेरी सेवा तु ह नह करनी



चा हये। म कुछ भी करनेम असमथ ँ। तुम अपने उपकारके लये कसी श पु षक आराधना करो।’



शाली



उनके इस कार कहनेपर कातवीय अजुनको गगजीक बातका मरण हो आया। उसने द ा ेयजीको णाम करके कहा। अजुन बोला—दे व! आप अपनी मायाका आ य लेकर मुझे य अपनी मायाम डाल रहे ह? आप सवथा न पाप ह। इसी कार ये दे वी भी स पूण जगत्क जननी ह। अजुनके य कहनेपर भगवान्ने स पूण भूम डलको वशम करनेवाले महाभाग कातवीयसे कहा—‘राजन्! तुमने मेरे गूढ़ रह यका कथन कया है, इस लये म तुमपर ब त स तु ँ। तुम कोई वर माँगो।’ कातवीयने कहा—दे व! य द आप मुझपर स ह तो मुझे ऐसी उ म ऐ यश दान क जये, जससे म जाका पालन क ँ और अधमका भागी न बनूँ। म सर के मनक बात जान लूँ और यु म कोई मेरा सामना न कर सके। यु करते समय मुझे एक



हजार भुजाएँ ा त ह ; क तु वे इतनी हलक ह , जससे मेरे शरीरपर भार न पड़े। पवत, आकाश, जल, पृ वी और पातालम मेरी अबाध ग त हो। मेरा वध मेरी अपे ा े पु षके हाथसे हो। य द कभी म कुमागम वृ होऊँ तो मुझे स माग दखानेवाला उपदे शक ा त हो। मुझे े अ त थ ा त ह और नर तर दान करते रहनेपर भी मेरा धन कभी ीण न हो। मेरे मरण करनेमा से स पूण रा म धनका अभाव र हो जाय तथा आपम मेरी अन य भ बनी रहे। द ा ेयजी बोले—तुमने जो-जो वरदान माँगे ह, वे सब तु ह ा त ह गे। तुम मेरे सादसे च वत स ाट् होओगे। सुम त कहते ह—तदन तर द ा ेयजीको णाम करके अजुन अपने घर गया और सम त जा एवं अमा यवगके लोग को एक त करके उसने रा या भषेक हण कया। उसके अ भषेकके लये ग धव, े अ सराएँ, व स आ द मह ष, मे आ द पवत, ग ा आ द न दयाँ और समु , पाकर आ द वृ , इ आ द दे वता, वासु क आ द नाग, ग ड़ आ द प ी तथा नगर एवं जनपदके नवासी भी आये थे। ीद ा ेयजीक कृपासे अ भषेकक सब साम ी अपने-आप जुट गयी थी। फर तो ा आ द दे वता ने होमके लये अ नको व लत कया तथा सा ात् नारायण व प ीद ा ेयजी एवं अ या य मह षय ने समु और न दय के जलसे अजुनका रा या भषेक कया। राज सहासनपर आसीन होते ही हैहयनरेशने अधमके नाश और धमक र ाके लये घोषणा करायी। द ा ेयजीसे उ म ऐ य-श पाकर वे बड़े श शाली हो गये थे। राजाक घोषणा इस कार थी—‘आजसे मुझको छोड़कर जो कोई भी श हण करेगा अथवा सर क हसाम वृ होगा, वह लुटेरा समझा जायगा और मेरे हाथसे उसका वध होगा।’



ऐसी आ ाके जारी होनेपर उस रा यम महापरा मी नर े राजा अजुनको छोड़कर सरा कोई मनु य श धारण नह करता था। वयं राजा ही गाँव , पशु , खेत एवं जा तय क र ा करते थे। तप वय तथा ापा रय के समुदायक र ा भी वे वयं ही करते थे। लुटेरे, सप, अ न तथा श आ दसे भयभीत मनु य का तथा अ य कारक आप य म म न ए मानव का वे मरण करनेमा से त काल उ ार कर दे ते थे। उनके रा यम धनका अभाव कभी नह होता था। उ ह ने अनेक ऐसे य कये, जनके पूण होनेपर ा ण को चुर द णाएँ द जाती थ । उ ह ने कठोर तप या क और सं ाम म भी महान् परा म दखाया। उनक समृ और बढ़ा आ स मान दे खकर अ रा मु नने कहा—‘अ य राजालोग य , दान, तप या अथवा सं ामम परा म दखानेम राजा कातवीयक तुलना नह कर सकते। राजा अजुनने जस दन द ा ेयजीसे समृ ात क थी, उस दनके आनेपर वह उनके लये य करता था और सारी जा भी राजाको परम ऐ यक ा त ई दे ख उसी दन एका च से द ा ेयजीका यजन करती थी।’



इस कार चराचरगु भगवान् व णुके व पभूत महा मा द ा ेयजीक म हमाका वणन कया गया। शङ् ख, च , गदा एवं शा धनुष धारण करनेवाले अन त एवं अ मेय भगवान् व णुके अनेक अवतार पुराण म व णत ह। जो मनु य उनके परम व पका च तन करता है, वह सुखी होता है और संसारसे उसका शी ही उ ार हो जाता है। वे आ द-अ तर हत भगवान् व णु अधमके नाश और धमके चारके लये ही संसारक र ा और पालन करते ह। अब म इसी कार पतृभ राज ष महा मा अलकके ज मका वृ ा त बतलाता ँ; य क द ा ेयजीने उ ह को योगका उपदे श दया था।



* *



सोमो



ाभव



णुद ा ोयोऽ यजायत । वासाः शङ् करो ज े वरदाना वौकसाम् ।।



(१७।११)



प यानां ादशं भागं भूपालाय व णग्जनः ।। द वाथर भमाग र तो या त द युतः । गोपा घृतत ादे ः षड् भागं च कृषीबलाः ।। द वा यद् भूभुजे द ुय द भागं ततोऽ धकम् । प याद नामशेषाणां व णजो गृ त ततः ।। इ ापूत वनाशाय त ा ौरध मणः ।। (१८।३-५ )



अलक पा यानका आर भ—नागकुमार के ारा ऋत वजके पूववृ ा तका वणन सुम त कहते ह— पताजी! ाचीन कालक बात है, श ु जत् नामके एक महापरा मी राजा रा य करते थे, जनके य म पया त सोमरस पान करनेके कारण दे वराज इ ब त स तु रहते थे। उनका पु भी बु , परा म और लाव यम मशः बृह प त, इ और अ नीकुमार क समानता करता था। वह राजकुमार त दन अपने समान अव था, बु , बल, परा म और चे ा वाले अ य राजकुमार से घरा रहता था। कभी तो उनम शा का ववेचन और उनके स ा त का नणय होता था; कभी का चचा, संगीतवण और नाटक दे खने आ दम समय तीत होता था। राजकुमार जब खेलम लगते, उस समय उ ह क अव थावाले ब त-से ा ण, य और वै य के बालक भी ेमवश वहाँ खेलने आ जाते थे। कुछ समय बीतनेके प ात् अ तर नामक नागके दो पु नागलोकसे पृ वीतलपर घूमनेके लये आये। उ ह ने ा णके पम अपनेको छपा रखा था। वे दे खनेम बड़े सु दर और त ण थे। वहाँ जो राजकुमार तथा अ या य ज-बालक खेलते थे, उनके साथ ही वे भी भाँ त-भाँ तके वनोद करते ए बड़े ेमसे रहते थे। वे राजकुमार, वे ा ण, य और वै य के पु तथा वे दोन नागराजके बालक साथ-ही-साथ नान, अ -सेवा, व -धारण, च दनका अनुलेप और भोजन आ द काय करते-कराते थे। राजकुमारके ेमवश नागराजके दोन पु त दन बड़ी स ताके साथ वहाँ आते थे। उनके साथ भाँ त-भाँ तके वनोद, हा य और वातालाप आ द करनेसे राजकुमारको बड़ा सुख मलता था। वे उ ह साथ लये बना भोजन, नान, ड़ा तथा शा चचा आ द कुछ भी नह करते थे। इसी कार वे दोन नागकुमार भी उनके बना रसातलम लंबी साँस ख चते ए रात बताते और दन नकलते ही उनके पास प ँच जाते थे।



इस तरह ब त समय बीत जानेके बाद एक दन नागराज अ तरने अपने दोन बालक से पूछा—‘पु ो! तुम दोन का म यलोकके त इतना अ धक ेम कस कारण है? ब त दन से दनके समय तुमलोग पातालम नह दखायी दे ते, केवल रातम ही म तु ह दे ख पाता ँ।’ पु ने कहा—‘ पताजी! म यलोकम राजा श ु जत्के एक पु ह, जनका नाम ऋत वज है। वे बड़े ही पवान्, सरल, शूरवीर, मानी तथा य वचन बोलनेवाले ह। बना पूछे ही वातालाप आर भ करनेवाले, व ा, व ान्, म भाव रखनेवाले और सम त गुण के भंडार ह। वे राजकुमार माननीय पु ष को सदा आदर दे ते ह। बु मान् एवं ल जाशील ह। वनय ही उनका आभूषण है। उनके अपण कये ए उ म-उ म उपचार, ेम और भाँ तभाँ तके भोग ने हमारा मन हर लया है। उनके बना नागलोक या भूलोकम कह भी हम सुख नह मलता। पताजी! उनके वयोगसे पाताललोकक यह शीतल रजनी भी हमारे लये स तापका कारण बनती है और उनका साथ होनेसे दनके सूय भी हम आ ाद दान करते ह।



पताने कहा—‘पु ो! अपने पु या मा पताका वह बालक ध य है, जसके गुण का वणन तुम-जैसे गुणवान् लोग परो म भी कर रहे हो। संसारम कुछ लोग ऐसे ह, जो शा के ाता तो ह, क तु उनम शीलका अभाव है। कुछ लोग शीलवान् तो ह, क तु शा ानसे र हत ह। जस पु षम शा का ान और उ म शील दोन गुण समान पसे ह , म उसीको वशेष ध यवादका पा समझता ँ। जसके म ो चत गुण का म लोग और परा मका श ुलोग भी स पु ष के बीचम वणन करते ह , उसी पु से पता वा तवम पु वान् होता है। ऋत वज तुमलोग के उपकारी म ह। या तुमलोग ने भी उनके च को स करनेके लये कभी उनका कोई मनोरथ स कया है? जसके यहाँसे याचक कभी वमुख नह जाते और म का काय कभी स ए बना नह रहता, वही पु ष ध य है! उसीका जीवन और ज म ध य है! मेरे घरम जो सुवण आ द र न, वाहन, आसन तथा और कोई व तु उनके लये चकर हो, वह सब तुमलोग नःशङ् क होकर उ ह दे सकते हो। जो सु द का उपकार करते, श ु को हा न प ँचाते तथा मेघके समान सव दानक वषा करते ह, व ान्लोग उनक सदा ही उ त चाहते ह। पु बोले— पताजी! वे तो कृतकृ य ह, उनका कोई या उपकार कर सकता है? उनके घरपर आये ए सभी याचक सदा ही पू जत होते ह, उनक सभी कामनाएँ पूण क जाती ह। उनके घरम जो र न ह, वे हमारे पातालम कहाँ ह। वैसे वाहन, आसन, यान, भूषण और व यहाँ कहाँ उपल ध हो सकते ह। उनम जो व ान है, वह और कसीम नह है। पताजी! वे बड़े-बड़े व ान के भी सब कारके संदेह का भलीभाँ त नवारण करते ह। हाँ, एक काय उनका अव य है; क तु वह ा, व णु तथा शव आ द सवसमथ परमे र के सवा हमलोग के लये सवथा असा य है। पताने कहा—‘पु ो! असा य हो या सा य, क तु म उस उ म कायको अव य सुनना चाहता ँ; व ान् पु ष के लये कौन-सा काय असा य है। जो अपने मन, बु तथा इ य को संयमम रखकर उ मम लगे रहते ह, उन मनु य के लये इस पातालम या वगम कोई भी ऐसी व तु नह है, जो अ ात, अग य अथवा अ ा य हो। च ट धीरे-धीरे चलती है; तथा प य द वह चलती रहे तो सह योजन र चली जा सकती है। इसके वपरीत ग ड़ तेज चलनेवाले होनेपर भी य द आगे पैर न बढ़ाव तो एक पग भी नह जा सकते। उ ोगी मनु य के लये कुछ ग य और अग य नह होता, उनके लये सब एक-सा है। कहाँ यह भूम डल और कहाँ ुवका थान, जसे पृ वीपर होते ए भी राजा उ ानपादके पु ुवने ा त कर लया! इस लये पु ो! महाभाग राजकुमारको



जस व तुक आव यकता हो, बतलाओ, जसे दे कर तुम दोन म -ऋणसे उऋण हो सको।* पु ने कहा— पताजी! महा मा ऋत वजने अपनी कुमाराव थाक एक घटना बतलायी थी, वह इस कार है। राजा श ु जत्के पास पहले कभी एक े ा ण पधारे थे। उनका नाम था मह ष गालव। वे बड़े बु मान् थे और एक े अ लेकर आये थे। उ ह ने राजासे कहा—‘महाराज! एक पापाचारी नीच दै य आकर मेरे आ मका व वंस कये दे ता है। वह सह, हाथी तथा अ य वन-ज तु का और छोटे -छोटे शरीरवाले सरे जीव का भी शरीर धारण करके अकारण आता है और समा ध एवं मौन तके पालनम लगे ए मेरे सामने आकर ऐसे-ऐसे उप व करता है, जनसे मेरा च च चल हो जाता है। य प हमलोग उसे अपनी ोधा नसे भ म कर डालनेक श रखते ह तथा प बड़े क से उपा जत क ई तप याका अप य करना नह चाहते। राजन्! एक दनक बात है, म उस असुरको दे खकर अ य त ख हो लंबी साँस ले रहा था, इतनेम ही यह घोड़ा आकाशसे नीचे उतरा। उसी समय यह आकाशवाणी ई —‘मुने! यह अ बना थके सम त भूम डलक प र मा कर सकता है। इसे सूयदे वने आपके लये दान कया है। आकाश-पाताल और जलम भी इसक ग त नह कती। यह सम त दशा म बेरोक-टोक जाता है। पवत पर चढ़नेम भी इसे क ठनाई नह होती। सम त भूम डलम यह बना थकावटके वचरण करेगा, इस लये संसारम इसका कुवलय (कु=भू म, वलय=म डल) नाम स होगा। ज े ! जो नीच दानव तु ह रात- दन लेशम डाले रहता है, उसका भी इसी अ पर आ ढ़ होकर राजा श ु जत्के पु ऋत वज वध करगे। इस अ र नको पाकर इसीके नामपर राजकुमारक स होगी। वे कुवलया कहलायगे।’ ‘राजन्! उस आकाशवाणीके अनुसार म तु हारे पास आया ँ। तप याम व न डालनेवाले उस दानवको तुम रोको; य क राजा भी जाक तप याके अंशका भागी होता है। भूपाल! अब मने यह अ र न तुमको सम पत कर दया। तुम अपने पु को मेरे साथ चलनेक आ ा दो, जससे धमका लोप न होने पाये।’



गालव मु नके य कहनेपर धमा मा राजाने म लाचारपूवक राजकुमार ऋत वजको उस अ र नपर चढ़ाया और मु नके साथ भेज दया। गालव मु न उ ह साथ ले अपने आ मको लौट गये।



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ना व ातं न चाग यं ना ा यं द व चेह वा । उ तानां मनु याणं यत च े या मनाम् ।। योजनानां सह ा ण जन् या त पपी लकः । अग छन् वैनतेयोऽ प पादमेकं न ग छ त ।। उ तानां मनु याणां ग याग यं न व ते । व भूतलं व च ौ ं थाने यत् ा तवान् ुवः । उ ानपादनृपतेः पु ः सन् भू मगोचरः ।। तत् क यतां महाभाग कायवान् येन पु कौ । स भूपालसुतः साधुयनानृ यं भवेत वाम् ।। (अ० २०।३७-४०)



पातालकेतुका वध और मदालसाके साथ ऋत वजका ववाह पताने पूछा—पु ो! मह ष गालवके साथ जाकर राजकुमार ऋत वजने वहाँ जो-जो काय कया, उसे बतलाओ। तुमलोग क कथा बड़ी अ त है। पु ने कहा—मह ष गालवके रमणीय आ मम रहकर राजकुमार ऋत वजने वाद मु नय के सब व न को शा त कर दया। वीर कुवलया गालवा मम ही नवास करते ह, इस बातको वह मदो म नीच दानव नह जानता था। इस लये व योपासनम लगे ए गालव मु नको सतानेके लये वह शूकरका प धारण करके आया। उसे दे खते ही मु नके श य ने ह ला मचाया। फर तो राजकुमार शी ही घोड़ेपर सवार हो धनुष लेकर उसके पीछे दौड़े। उ ह ने धनुषको खूब जोरसे ख चकर एक चमकते ए अधच ाकार बाणसे उसको चोट प ँचायी। बाणसे आहत होकर वह अपने ाण बचानेक धुनम भागा और वृ तथा पवतसे घरी ई घनी झाड़ीम घुस गया। वह घोड़ा भी मनके समान वेगसे चलनेवाला था। उसने बड़े वेगसे उस सूअरका पीछा कया। वाराह पधारी दानव ती वेगसे भागता आ सह योजन र नकल गया और एक जगह पृ वीपर ववरके आकारम दखायी दे नेवाले गढ़े के भीतर बड़ी फुत के साथ कूद पड़ा। इसके बाद शी ही अ ारोही राजकुमार भी घोर अ धकारसे भरे ए उस भारी गढ़े म कूद पड़े। उसम जानेपर राजकुमारको वह सूअर नह दखायी पड़ा, ब क उ ह काशसे पूण पाताललोकका दशन आ। सामने ही इ पुरीके समान एक सु दर नगर था, जसम सैकड़ सोनेके महल शोभा पा रहे थे। उस नगरके चार ओर सु दर चहारद वारी बनी ई थी। राजकुमारने उसम वेश कया, क तु वहाँ उ ह कोई मनु य नह दखायी दया। वे नगरम घूमने लगे। घूमते-ही-घूमते उ ह ने एक ीको दे खा, जो बड़ी उतावलीके साथ कह चली जा रही थी। राजकुमारने उससे पूछा—‘तू कसक क या है? कस कामसे जा रही है?’ उस सु दरीने कुछ उ र नह दया। वह चुपचाप एक महलक सी ढ़य पर चढ़ गयी। ऋत वजने भी घोड़ेको एक जगह बाँध दया और उसी ीके पीछे -पीछे महलम वेश कया। उस समय उनके ने आ यसे च कत हो रहे थे। उनके मनम कसी कारक शङ् का नह थी। महलम प ँचनेपर उ ह ने दे खा, एक वशाल पलंग बछा आ है, जो ऊपरसे नीचेतक सोनेका बना है। उसपर एक सु दरी क या बैठ थी, जो कामनायु र त-सी जान पड़ती थी। च माके समान मुख, सु दर भ ह, कुँद के समान



लाल ओठ, छरहरा शरीर और नील कमलके समान उसके ने थे। अन लताक भाँ त उस सवा सु दरी रमणीको दे खकर राजकुमारने समझा, यह कोई रसातलक दे वी है।



उस सु दरी बालाने भी म तकपर काले घुँघराले बाल से सुशो भत, उभरी ई छाती, थूल कंध और वशाल भुजा वाले राजकुमारको दे खकर सा ात् कामदे व ही समझा। उनके आते ही वह सहसा उठकर खड़ी हो गयी; क तु उसका मन अपने वशम न रहा। वह तुरंत ही ल जा, आ य और द नताके वशीभूत हो गयी। सोचने लगी—‘ये कौन ह? दे वता, य , ग धव, नाग अथवा व ाधर तो नह आ गये? या ये कोई पु या मा मनु य ह?’ य वचारकर उसने लंबी साँस ली और पृ वीपर बैठकर सहसा मू छत हो गयी। राजकुमारको भी कामदे वके बाणका आघात-सा लगा। फर भी धैय धारण करके उ ह ने उस त णीको आ ासन दया और कहा—‘डरनेक आव यकता नह ।’ वह ी, जसे उ ह ने पहले महलम जाते ए दे खा था, ताड़का पंखा लेकर तापूवक हवा करने लगी। राजकुमारने आ ासन दे कर जब उससे मू छाका कारण पूछा, तब वह बाला कुछ ल जत हो गयी। उसने अपनी सखीको सब बात बता द ।



फर उस सखीने उसक मू छाका सारा कारण, जो राजकुमारको दे खनेसे ही ई थी, व तारपूवक कह सुनाया। वह ी बोली— भो! दे वलोकम व ावसु नामसे स एक ग धव के राजा ह। यह सु दरी उ ह क क या है। इसका नाम मदालसा है। व केतु दानवका एक भयङ् कर पु है, जो श ु का नाश करनेवाला है। वह संसारम पातालकेतुके नामसे स है, उसका नवास थान पातालके ही भीतर है। एक दन यह मदालसा अपने पताके उ ानम घूम रही थी। उसी समय उस रा मा दानवने वकारमयी माया फैलाकर इस असहाय बा लकाको हर लया। उस दन म इसके साथ नह थी। सुना है, आगामी योदशीको वह असुर इसके साथ ववाह करेगा; क तु जैसे शू वेदक ु तका अ धकारी नह है, उसी कार वह दानव भी इस सवा सु दरी मेरी सखीको पानेके यो य नह है। अभी कलक बात है, यह बेचारी आ मह या करनेको तैयार हो गयी थी। उस समय कामधेनुने आकर आ ासन दया—‘बेट ! वह नीच दानव तु ह नह पा सकता। महाभागे! म यलोकम जानेपर इस दानवको जो अपने बाण से ब ध डालेगा, वही तु हारा प त होगा। ब त शी यह सुयोग ा त होनेवाला है।’ यह कहकर सुर भ दे वी अ तधान हो गय । मेरा नाम कु डला है। म इस मदालसाक सखी, व यवान्क पु ी और वीर पु करमालीक प नी ँ। शु भने मेरे वामीको मार डाला, तबसे उ म त का पालन करती ई द ग तसे भ - भ तीथ म वचरती रहती ँ। अब म परलोक सुधारनेम ही लगी ँ। ा मा पातालकेतु आज वाराहका प धारण करके म यलोकम गया था। सुननेम आया है, वहाँ मु नय क र ाके लये कसीने उसको अपने बाण का नशाना बनाया है। म इस बातका ठ क-ठ क पता लगानेके लये ही गयी थी, पता लगाकर तुरंत लौट आयी। सचमुच ही कसीने उस अधम दानवको बाणसे ब ध डाला है। अब मदालसाके मू छत होनेका कारण सु नये। मानद! आपको दे खते ही आपके त इसका ेम हो गया; क तु यह प नी होगी कसी औरक , जसने उस दानवको अपने बाण का नशाना बनाया है। यही कारण है, जससे इसको मू छा आ गयी। अब तो जीवनभर इसे ःख ही भोगना है; य क इसके दयका ेम तो आपम है और प त कोई और ही होनेवाला है। सुर भका वचन कभी अ यथा नह हो सकता। म तो इसीके ेमसे ःखी होकर यहाँ चली आयी; य क मेरे लये अपने शरीरम और सखीम कोई अ तर नह है। य द यह अपनी इ छाके अनुसार कसी वीर प तको ा त कर लेती तो म न त होकर तप याम लग जाती। महामते! अब आप अपना प रचय द जये। आप कौन ह? और कैसे यहाँ पधारे ह? आप दे वता, दै य, ग धव, नाग अथवा



क र मसे तो कोई नह ह? य क यहाँ मनु यक प ँच नह हो सकती और मनु यका ऐसा द शरीर भी नह होता। जैसे मने सब बात सच-सच बतायी ह, वैसे ही आप भी अपना सब हाल ठ क-ठ क क हये। कुवलया ने कहा—धम े! तुमने जो यह पूछा है क आप कौन ह और कहाँसे आये ह, इसका उ र सुनो; म आर भसे ही अपना सब समाचार बतलाता ँ। शुभे! म राजा श ु जत्का पु ँ और पताक आ ासे मु नय क र ाके लये मह ष गालवके आ मपर आया था। वहाँ म धमपरायण मु नय क र ा करता था; क तु मेरे कायम व न डालनेके लये कोई दानव शूकरका प धारण करके आया। मने उसे अधच ाकार बाणसे ब ध डाला। मेरे बाणक चोट खाकर वह बड़े वेगसे भागा। तब मने भी घोड़ेपर सवार होकर उसका पीछा कया। फर सहसा वह वाराह एक गढ़े म गर पड़ा। साथ ही मेरा घोड़ा भी उसम कूद पड़ा। उस घोड़ेपर चढ़ा आ म कुछ कालतक अ धकारम अकेला ही वचरता रहा। इसके बाद मुझे काश मला और तु हारे ऊपर मेरी पड़ी। मने पूछा भी, क तु तुमने कुछ उ र नह दया। फर म तु हारे पीछे -पीछे इस सु दर महलम आ गया। यह मने स ची बात बतलायी है। म दे वता, दानव, नाग, ग धव अथवा क र नह ँ। दे वता आ द तो मेरे पूजनीय ह। कु डले! म मनु य ही ँ। तु ह इस वषयम कभी कोई स दे ह नह करना चा हये। यह सुनकर मदालसाको बड़ी स ता ई। उसने ल जत होकर अपनी सखीके सु दर मुखक ओर दे खा; क तु कुछ बोल न सक । उसक सखीने फर स होकर कहा—‘वीर! आपक बात स य है; इसम स दे हके लये कोई थान नह है। मेरी सखीका दय और कसीको दे खकर आस नह हो सकता। अ धक कमनीय का त च माको ही ा त होती है; च ड भा सूयम ही मलती है। दै वी वभू त ध य पु षको ही ा त होती है। धृ त धीरको और मा उ म पु षको ही मलती है। इसम स दे ह नह क आपने ही उस नीच दानवका वध कया है। भला, गोमाता सुर भ म या कैसे कहगी। मेरी यह सखी बड़ी भा यशा लनी है। आपका स ब ध पाकर यह ध य हो गयी। वीर! जस कायको वधाताने ही रच रखा है, उसे अब तुम भी पूण करो।’ कु डलाक बात सुनकर राजकुमारने कहा—‘म पताके अधीन ँ, उनक आ ाके बना इस ग धव-राजक यासे कस कार ववाह क ँ ।’ कु डला बोली—‘नह -नह , ऐसा न क हये। यह दे वक या है। आपके पताजी इस ववाहसे स ह गे; अतः इसके साथ अव य ववाह क जये।’ राजकुमारने ‘तथा तु’ कहकर उसक बात मान ली। तब कु डलाने ववाहक साम ी



एक त करके अपने कुलगु तु बु का मरण कया। वे स मधा और कुशा लये त काल वहाँ आ प ँचे। मदालसाके ेमसे और कु डलाका गौरव रखनेके लये उ ह ने आनेम वल ब नह कया। वे म के ाता थे; अतः अ न व लत करके उ ह ने हवन कया और म लाचारके अन तर क यादान करके वैवा हक व ध स प क । फर वे तप याके लये अपने आ मपर चले गये। तदन तर कु डलाने अपने सखीसे कहा—‘सुमु ख! तुम-जैसी सु दरीको राजकुमार ऋत वजके साथ ववा हत दे खकर मेरा मनोरथ पूण हो गया। अब म न त होकर तप या क ँ गी और तीथ के जलसे अपने पाप को धो डालूँगी, जससे फर मेरी ऐसी दशा न हो।’ इसके बाद जानेके लये उ सुक हो कु डलाने बड़ी वनयके साथ राजकुमारसे भी वातालाप कया। इस समय अपनी सखीके त नेहक अ धकतासे उसक वाणी ग द हो रही थी।



कु डला बोली— भो! आपक बु ब त बड़ी है। आप-जैसे लोग को कोई पु ष भी उपदे श नह दे सकता, फर मुझ-जैसी याँ तो दे ही कैसे सकती ह; क तु इस मदालसाके नेहसे मेरा च आकृ हो गया तथा आपने



भी अपने त मेरे दयम एक व ास उ प कर दया है, इसी लये म आपको कत का मरणमा करा रही ँ। प तको चा हये क सदा अपनी प नीका भरण-पोषण करे। जब प त-प नी ेमवश एक- सरेके वशीभूत होते ह, तब उ ह धम, अथ, काम—तीन क ा त होती है; य क वगक ा त प तप नी दोन के सहयोगपर ही नभर है। राजकुमार! ीक सहायता लये बना पु ष कसी दे वता, पतर, भृ य और अ त थय का पूजन नह कर सकता। मनु य जब प त ता प नीक र ा करता है, तब वह पु ो पादनके ारा पतर को, अ आ दके ारा अ त थय को और पूजा-अचाके ारा दे वता को स करता है। ी भी प तके बना धम, अथ, काम एवं स तान नह पा सकती; इस लये प त-प नी दोन के सहयोगपर ही वगका सुख नभर करता है। आप दोन नवद प तके लये ये बात मने नवेदन क ह। अब म अपनी इ छाके अनुसार जा रही ँ। य कहकर कु डलाने अपनी सखीको गलेसे लगाया और राजकुमारको नम कार करके वह द ग तसे अपने अभी थानको चली गयी। ऋत वजने भी मदालसाको अपने घोड़ेपर बठाया और पाताललोकसे नकल जानेक तैयारी क । यह बात दानव को मालूम हो गयी। उ ह ने सहसा कोलाहल मचाना आर भ कया—‘पातालकेतु जस क यार नको वगसे हर लाया था, उसे यह राजकुमार चुराये जाता है।’ यह समाचार पाते ही प रघ, खड् ग, गदा, शूल, बाण और धनुष आ द आयुध से सजी ई दानव क वशाल सेना पातालकेतुके साथ वहाँ आ प ँची। उस समय ‘खड़ा रह, खड़ा रह’ कहते ए बड़े-बड़े दानव ने राजकुमार ऋत वजपर बाण और शूल क वृ आर भ कर द । राजकुमार भी बड़े परा मी थे। उ ह ने हँसते-हँसते बाण का जाल-सा फैला दया और खेलखेलम ही दानव के सब अ -श काट गराये। णभरम ही पाताललोकक भू म ऋत वजके बाण से छ - भ ए खड् ग, श , ऋ और सायक से आ छा दत हो गयी। तदन तर राजकुमारने वा नामक अ का स धान कया और उसे दानव पर छोड़ दया। उसक च ड वालासे पातालकेतुस हत सम त दानव द ध हो गये। उनक ह याँ चटख-चटखकर राख हो गय । जैसे क पलमु नक ोधा नम सगरपु भ म हो गये थे, उसी कार ऋत वजक शरा नम स पूण दानव जल मरे।



इस कार बड़े-बड़े दानव का वध करके राजकुमार फर अपने अ पर सवार ए और उस ीर नके साथ अपने पताके नगरम आये। पताके चरण म णाम करके उ ह ने पातालम जाने, कु डलाके दशन होने, मदालसाको पाने और दानव से यु करने आ दका सब समाचार सुना दया। यह सब सुनकर पताको बड़ी स ता ई। उ ह ने पु को छातीसे लगाकर कहा—‘बेटा! तुम सुपा और महा मा हो। तुमने मुझे तार दया; य क तु हारे ारा उ म धमका पालन करनेवाले मु नय क भयसे र ा ई है। मेरे पूवज ने अपने कुलको यशसे व यात कया था। मने उस यशको फैलाया था और तुमने अनुपम परा म करके उसे और भी बढ़ा दया। पताने जो यश, धन अथवा परा म ा त कया हो, उसे जो कम नह करता, वह पु म यम ेणीका माना गया है; जो अपनी श से पताक अपे ा भी अ धक परा म दखाये, उसे व ान् पु ष े कहते ह; क तु जो पता ारा उपा जत धन, वीय तथा यशको अपने समयम घटा दे ता है, वह बु मान् पु ष ारा अधम बताया गया है। मने जस कार ा ण क र ा क थी, उसी कार तुमने भी क है; पर तु पाताललोकक या ा और वहाँ असुर का वनाश—वे सब काय तुमने अ धक



कये ह। अतः तु हारी गणना उ म पु ष म है। बेटा! तुम ध य हो। तु हारे-जैसे अ धक गुणवान् पु को पाकर म पु यवान के लये भी पृहणीय हो रहा ँ। जसका पु बु , दान और परा मम उससे बढ़ नह जाता, वह मनु य मेरे मतम पु ज नत आन दको नह ा त करता। उस पु षको ध कार है, जो इस लोकम पताके नामपर या त लाभ करता है। जो पता अपने पु के कायसे व यात होता है, उसीका ज म सफल है। जो अपने नामसे स होता है, वह सबसे उ म है। जो पता और पतामह के नामपर यात होता है, वह म यम है तथा जो मातृप या माताके नामसे स ा त करता है, वह अधम ेणीका मनु य है।* इस लये पु ! तुम धन, परा म और सुखके साथ अ युदयशील बनो। इस ग धवक याका तुमसे कभी वयोग न हो।’ इस कार बारंबार भाँ त-भाँ तके य वचन कहकर पताने ऋत वजको दयसे लगाया और मदालसाके साथ उ ह राजमहलम भेज दया। राजकुमार ऋत वज अपनी प नीके साथ पताके नगरम तथा उ ान, वन एवं पवतशखर पर आन दपूवक वहार करते रहे। क याणी मदालसा त दन ातःकाल उठकर सास-ससुरके चरण म णाम करती और अपने प तके साथ रहकर आन द भोगती थी।



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आ मना ायते ध यो म यः पतृ पतामहैः । मातृप ेण मा ा च या तमे त नराधमः ।। (२१।१०२)



तालकेतुके कपटसे मरी ई मदालसाक नागराजके फणसे उ प और ऋत वजका पाताललोकम गमन दोन नागकुमार कहते ह— पताजी! तदन तर ब त समय तीत होनेपर राजाने पुनः अपने पु से कहा—‘बेटा! तुम त दन ातःकाल इस अ पर सवार हो ा ण क र ाके लये पृ वीपर वचरते रहो। सैकड़ राचारी दानव इस पृ वीपर मौजूद ह। उनसे मु नय को बाधा न प ँचे, ऐसी चे ा करो।’ पताक इस आ ाके अनुसार राजकुमार उसी दनसे ऐसा ही करने लगे। वे पूवा म ही सारी पृ वीक प र मा करके पताके चरण म म तक झुकाते थे। एक दनक बात है, वे घूमते ए यमुना-तटपर गये। वहाँ पातालकेतुका छोटा भाई तालकेतु आ म बनाकर रहता था। राजकुमारने उसे दे खा, वह मायावी दानव मु नका प धारण कये ए था। उसने पहलेके वैरका मरण करके उनसे कहा—‘राजकुमार! म तुमसे एक बात कहता ँ; य द तु हारी इ छा हो तो उसे करो। तुम स य त हो, अतः तु ह मेरी ाथना भ नह करनी चा हये। म धमके लये य क ँ गा और उसम अनेक इ याँ करनी ह गी। इन सबके लये इ का चयन करना भी आव यक है; क तु मेरे पास द णा नह है। अतः वीर! तुम सुवणके लये मुझे अपने गलेका यह आभूषण दे दो और मेरे इस आ मक र ा करो। तबतक म जलके भीतर वेश करके जाक पु के लये व ण दे वता-स ब धी वै दक म से व ण दे वताक तु त करता ँ। तु तके प ात् ज द ही लौटूँ गा।’ उसके य कहनेपर राजकुमारने उसे णाम कया और अपने क ठका आभूषण उतारकर दे दया। फर इस कार कहा —‘आप न त होकर जाइये; जबतक लौट नह आयगे, तबतक यह म आपके आ मके समीप ठह ँ गा।’ राजकुमारके इस कार कहनेपर तालकेतु नद के जलम डु बक लगाकर अ य हो गया और वे उसके माया न मत आ मक र ा करने लगे। जलके भीतरसे वह राजकुमारके नगरम चला गया और मदालसा तथा अ य लोग के सम प ँचकर इस कार बोला। तालकेतुने कहा—वीर कुवलया मेरे आ मके समीप गये थे और तप वय क र ा करते ए कसी दै यसे यु कर रहे थे। उ ह ने अपनी श भर यु कया और ब त-से ा ण े षी दै य को मौतके घाट उतारा; फर उस पापी दै यने मायाका सहारा लेकर शूलसे उनक छाती छे द डाली। मरते



समय उ ह ने अपने गलेका यह आभूषण मुझे दया; फर तप वय ने मलकर उनका अ नसं कार कर दया। उनका अ भयभीत हो ने से आँसू बहाता आ हन हनाता रहा। उसी अव थाम वह रा मा दानव उसे अपने साथ पकड़ ले गया। मुझ पापाचारी न ु रने यह सब कुछ अपनी आँख दे खा है। इसके बाद जो कुछ कत हो, वह आपलोग कर। अपने दयको आ ासन दे नेके लये यह गलेका हार हण क जये। य कहकर तालकेतुने वह हार पृ वीपर छोड़ दया और जैसे आया था, वैसे ही चला गया। यह ःखपूण समाचार सुनकर वहाँके लोग शोकसे ाकुल हो मू छत हो गये; फर थोड़ी दे रम होशम आनेपर र नवासक सभी याँ, राजा तथा महारानी भी अ य त खी होकर वलाप करने लगी। मदालसाने उनके गलेके आभूषणको दे खा और प तको मारा गया सुनकर तुरंत ही अपने यारे ाण को याग दया।* तदन तर पुरवा सय तथा महाराजके महलम भी बड़े जोरसे क ण- दन होने लगा। राजा श ु जत्ने जब मदालसाको प तके बना मृ युको ा त ई दे खा, तब कुछ वचार करके मनको थर कया और वहाँ शोक करते ए सब लोग से कहा—‘ जाजनो और दे वयो! म तु हारे और अपने लये रोनेका कोई कारण नह दे खता। सभी कारके स ब ध अ न य होते ह। इस बातका भलीभाँ त वचार करनेपर या पु के लये शोक क ँ और या पु वधूके लये। सोचनेसे ऐसा जान पड़ता है, वे दोन कृतकृ य होनेके कारण शोकके यो य नह ह। जो सदा मेरी सेवाम लगा रहता था और मेरे ही कहनेसे ा ण क र ाम त पर हो मृ युको ा त आ, वह मेरा पु बु मान् पु ष के लये शोकका वषय कैसे हो सकता है। जो अव य जानेवाला है, उस शरीरको य द मेरे पु ने ा ण क र ाम लगा दया तो यह तो महान् अ युदयका कारण है। इसी कार उ म कुलम उ प ई यह मेरी पु वधू य द इस कार अपने वामीम अनुर हो परलोकम उसके पास गयी है तो उसके लये भी शोक करना कैसे उ चत हो सकता है; य क य के लये प तके अतर सरा कोई दे वता नह है। य द यह प तके न रहनेपर भी जी वत रहती तो हमारे लये, ब धु-बा धव के लये तथा अ य दयालु पु ष के लये शोकके यो य हो सकती थी। यह तो अपने वामीके वधका समाचार सुनकर तुरंत ही उनके पीछे चली गयी है, अतः व ान् पु ष के लये शोकके यो य नह है।१ शोक तो उन य के लये करना चा हये, जो प त वयो गनी होकर भी जी वत ह । जो प तके साथ ही ाण याग दे ती ह, वे कदा प शोकके यो य नह ह। मदालसा बड़ी कृत थी; इस लये इसने प त वयोगका ःख नह भोगा। जो



इहलोक तथा परलोकम सब कारके सौ य दान करनेवाला है, उस प तको कौन ी मनु य समझेगी। अतः मेरा वह पु ऋत वज, यह पु वधू, म तथा ऋत वजक माता—इनमसे कोई भी शोकके यो य नह है। मेरे पु ने ा ण क र ाके लये अपने ाण यागकर हम सबका उ ार कर दया। सं ामम ा ण क र ाके लये ाण याग करके मेरे पु ने अपनी माताके सती व, वंशक नमलता तथा अपने परा मका याग नह कया है।’



तदन तर कुवलया क माताने अपने प तक ओर दे खकर कहा— ‘राजन्! मेरी माता और ब हनको भी ऐसी स ता नह ा त ई, जैसी क मु नय क र ाके लये पु का वध सुनकर मुझे ई है। जो शोकम पड़े ए ब धु-बा धव के सामने रोगसे लेश उठाते और अ य त खी होकर लंबी साँस ख चते ए ाण याग करते ह, उनक माताका स तान उ प करना थ है। जो गौ और ा ण क र ाम त पर हो रणभू मम नभयतापूवक यु करते ए श से आहत होकर मृ युको ा त होते ह, वे ही इस पृ वीपर ध य मनु य ह। जो याचक , म तथा श ु से कभी वमुख नह होता, उसीसे पता व तुतः पु वान् होता है और माता उसीके कारण वीर पु क जननी मानी जाती है।



पु के ज मकालम माताको जो लेश उठाना पड़ता है, वह तभी सफल होता है जब पु श ु पर वजय ा त करे अथवा यु म लड़ता आ मारा जाय।’२ तदन तर राजा श ु जत्ने अपनी पु वधू मदालसाका दाह-सं कार कया और नगरसे बाहर नकलकर पु को जला ल द । तालकेतु फर यमुनाजलसे नकलकर राजकुमारके पास गया और ेमपूवक मीठ वाणीम बोला —‘राजकुमार! अब तुम जाओ। तुमने मुझे कृताथ कर दया। तुम जो यहाँ अ वचल भावसे खड़े रहे, इससे मने ब त दन क अपनी अ भलाषा पूरी कर ली। मुझे महा मा व णक स ताके लये वा ण य का अनु ान करनेक ब त दन से अ भलाषा थी; वह सब काय अब मने पूरा कर लया।’ उसके य कहनेपर राजकुमार उसको णाम करके ग ड़ तथा वायुके समान वेगवाले उसी अ पर आ ढ़ ए और अपने पताके नगरक ओर चल दये। राजकुमार ऋत वज बड़े वेगसे अपने नगरम आये। उस समय उनके मनम माता- पताके चरण क व दना करने तथा मदालसाको दे खनेक बल इ छा थी। वहाँ प ँचकर उ ह ने दे खा, सामने आनेवाले सभी लोग उ न ह, कसीके मुखपर स ताका च नह है; क तु साथ ही सबक आकृ तसे आ य टपक रहा है और मुखपर अ य त हष छा रहा है। पता-माता तथा अ य ब धुबा धव ने उ ह छातीसे लगाया और ‘ चरंजीवी रहो व स!’ यह कहकर क याणमय आशीवाद दया। राजकुमार भी सबको णाम करके आ यम न हो पूछने लगे—‘यह या बात है?’ पतासे पूछनेपर उ ह ने बीती ई सारी बात कह सुनाय । अपनी मनोरमा भाया मदालसाक मृ युका समाचार सुनकर तथा माता- पताको सामने खड़ा दे ख वे ल जा और शोकके समु म डू ब गये और मन-ही-मन सोचने लगे—‘हाय! उस सा वी बालाने मेरी मृ युक बात सुनकर ाण याग दये; फर भी म जी वत ँ। मुझ न ु रको ध कार है। अहो! म ू र ँ, अनाय ँ, जो मेरे ही लये मृ युको ा त ई उस मृगनयनी प नीके बना भी अ य त नदय होकर जी रहा ँ।’ इसके बाद उ ह ने अपने मनके आवेगको रोका और मोह छोड़कर वचारना आर भ कया—‘वह मर गयी; इस लये य द म भी उसके न म अपने ाण याग ँ तो इससे उस बेचारीका या उपकार आ? यह काय तो य के लये ही शंसनीय है। य द बारंबार ‘हा ये! हा ये!!’ कहकर द नभावसे रोता ँ तो यह भी मेरे लये शंसाके यो य बात नह है। मेरा कत तो है— पताजीक सेवा करना। यह जीवन उ ह के अधीन है; अतः म कैसे इसका याग कर सकता ँ। क तु आजसे ीस ब धी भोगका प र याग कर दे ना म अपने लये उ चत समझता ँ। य प इससे भी उस त व का कोई उपकार नह होता, तथा प मुझको तो सवथा वषयभोगका



याग ही करना उ चत है। इससे उपकार अथवा अपकार कुछ भी नह होता। जसने मेरे लये ाणतक याग दया, उसके लये मेरा यह याग ब त थोड़ा है।’



ऐसा न य करके उ ह ने मदालसाके लये जला ल द और उसके बादका कम पूरा करके इस कार त ा क । ऋत वज बोले—य द इस ज मम मेरी सु दरी प नी मदालसा मुझे फर न मल सक तो सरी कोई ी मेरी जीवनस नी नह बन सकती। मृगके समान वशाल ने वाली ग धवराजकुमारी मदालसाके अ त र अ य कसी ीके साथ म स भोग नह कर सकता। यह मने सवथा स य कहा है।* दोन नागकुमार कहते ह— पताजी! इस कार मदालसाके बना वे ीस ब धी सम त भोग का प र याग करके अब अपने समवय क म के साथ मन बहलाते ह। यही उनका सबसे बड़ा काय है। पर तु यह तो ई रको टम प ँचे ए य के लये भी अ य त कर है, फर अ य लोग क तो बात ही या है।



नागराज अ तर बोले—पु ो! य द कसी कायको अस भव मानकर मनु य उसके लये उ ोग नह करगे तो उ ोग छोड़नेसे उनक भारी हा न होगी; इस लये मनु यको अपने पौ षका याग न करते ए कमका आर भ करना चा हये; य क कमक स दै व और पु षाथ दोन पर अवल बत है। इस लये म तप याका आ य लेकर ऐसा य न क ँ गा, जससे इस कायक शी ही स हो। य कहकर नागराज अ तर हमालय पवतके ल ावतरण-तीथम, जो सर वतीका उ म थान है, जाकर कर तप या करने लगे। वे तीन समय नान करते और नय मत आहारपर रहते ए सर वतीदे वीम मन लगाकर उ म वाणीम उनक तु त करते थे। अ तर उवाच जग ा ीमहं दे वीमा रराध यषुः शुभाम् । तो ये ण य शरसा यो न सर वतीम् ।। सदसद् दे व य कं च मो ब धाथव पदम् । त सव व यसंयोगं योगवद् दे व सं थतम् ।। वम रं परं दे व य सव त तम् । अ रं परमं दे व सं थतं परमाणुवत् ।। अ रं परमं जग चैत रा मकम् । दा यव थतो व भ मा परमाणवः ।। तथा व य थतं जग चेदमशेषतः । अ तरने कहा—जो स पूण जगत्को धारण करनेवाली और वेद क जननी है, उन क याणमयी सर वती दे वीको स करनेक इ छासे म उनके चरण म शीश झुकाता और उनक तु त करता ँ। दे व! मो और ब धन प अथसे यु जो कुछ भी सत् और असत् पद है, वह सब तुमम असंयु होकर भी संयु क भाँ त थत है। दे व! जसम सब कुछ त त है, वह परम अ र तु ह हो। परम अ र परमाणुक भाँ त थत है। अ र प पर और र प यह जगत् तुमम ही थत है। जैसे का म अ न तथा पा थव सू म परमाणु भी रहते ह, उसी कार और यह स पूण जगत् तुमम थत है। ओङ् कारा रसं थानं य े दे व थरा थरम् ।। त मा ा यं सवम त य े व ना त च । यो लोका यो वेदा ै व ं पावक यम् ।। ी ण योत ष वगा यो धमादय तथा । यो गुणा यः श दा यो दोषा तथा माः ।।



यः काला तथाव थाः पतरोऽह नशादयः । एत मा ा यं दे व तव पं सर व त ।। व भ द शनामा ा णो ह सनातनाः । सोमसं था ह वःसं थाः पाकसं था स त याः ।। ता व चारणा े व य ते वा द भः । दे व! कार अ रके पम जो तु हारा ी व ह है, वह थावर-ज म प है। उसम जो तीन मा ाएँ ह, वे ही सब कुछ ह। अ त-ना त (सत्-असत्) पसे व त होनेवाला जो कुछ भी है, वह सब उ ह म थत है। तीन लोक, तीन वेद, तीन व ाएँ, तीन अ न, तीन यो त, धम आ द तीन वग, तीन गुण, तीन श द, तीन दोष, तीन आ म, तीन काल, तीन अव थाएँ, वध पतर, दन-रात और स या—ये सभी तीन मा ा के अ तगत ह। दे व सर व त! इस कार यह सब तु हारा ही व प है। भ - भ कारके कोण रखनेवाले य के लये जो के आ द एवं सनातन व पभूत सात कारक सोमय सं थाएँ१, सात



कारक



ह वय सं थाएँ२ तथा सात



कारक



पाकय सं थाएँ३ वेदम व णत ई ह, उन सबका अनु ान वाद पु ष तु हारे अ भूत म के उ चारणसे ही करते ह। अ नद यं तथा चा यदधमा ा तं परम् ।। अ वकाय यं द ं प रणाम वव जतम् । तवैव च परं पं य श यं मये रतुम् ।। न चा येन न वा ज ाता वो ा द भ यते । इ ोऽ प वसवो ा च ाक यो तरेव च ।। व ावासं व पं व ेशं परमे रम् । सां यवेदा तवेदो ं ब शाखा थरीकृतम् ।। अना दम य नधनं सदस सदे व तु । एकं वनेकं ना येकं भवभेदसमा तम् ।। अना यं षड् गुणा यं च षट् का यं गुणा यम् । नानाश मतामेकं श वैभ वकं परम् ।। सुखासुखमह सौ यं पं तव वभा ते । एवं दे व वया ा तं सकलं न कलं च यत् ।। अ ै ताव थतं य च ै ते व थतम् । उ तीन मा ा से परे जो अधमा ाके आ त व है, उसका वाणी ारा नदश नह कया जा सकता। वह अ वकारी, अ य, द तथा प रणामशू य



है। दे व! वह आपका ही व प है, जसका वणन मेरे ारा अस भव है। मुख, जीभ, तालु और ओठ आ द कसी भी थानसे उसका उ चारण नह हो सकता। इ , वसु, ा, च मा, सूय और अ न भी वही है। वही स पूण जगत्का नवास थान, जग व प, जगत्का ई र एवं परमे र है। सां य, वेदा त और वेद म उसीका तपादन आ है। अनेक शाखा म उसीके व पका न य कया गया है। वह आ द-अ तसे र हत है तथा सत्-असत्से वल ण होता आ भी स व प ही है। अनेक प म तीत होता आ भी एक है और एक होकर भी जगत्के भेद का आ य लेकर अनेक है। वह नामपसे र हत है। छः गुण, छः वग तथा तीन गुण भी उसीके आ त ह। वह एक ही परम श मान् त व है, जो नाना कारक श रखनेवाले जीव म श का स चार करता रहता है। सुख, ःख तथा महासौ य—सब उसी अधमा ा प तुरीयपदके व प ह। इस कार तीन मा ा से अतीत जो तुरीय धाम प है, वह तु ह म अ भ होता है। दे व! इस तरह सकल, न कल, अ ै त न तथा ै त न जो है, वह भी तुमसे ा त है। येऽथा न या ये वन य त चा ये ये वा थूला ये च सू मा तसू माः । ये वा भूमौ येऽ त र ेऽ यतो वा तेषां तेषां व एवोपल धः ।। य चामूत य च मूत सम तं य ा भूते वेकमेकं च क चत् । य ेऽ त मातले खेऽ यतो वा त स ब ं व वरै नै ।। जो पदाथ न य ह, जो वनाशशील ह, जो थूल ह तथा जो सू मसे भी अ य त सू म ह, जो इस पृ वीपर, अ त र म या और कसी थानम दे खे जाते ह, उन सबक उपल ध तु ह से होती है। मूत, अमूत, सम त भूत अथवा एकएक भूत जो कुछ भी ुलोक, पृ वी, आकाश या अ य थानम उपल ध होता है, वह सब तु हारे ही वर और न से स ब है। इस कार तु त करनेपर ी व णुक ज ा पा सर वतीदे वीने कट हो महा मा अ तर नागसे कहा—‘क बलके भाई नागराज अ तर! तु हारे मनम जो इ छा हो, उसे बताओ। म तु ह वर ँ गी।’ अ तर बोले—दे व! पहले तो आप क बलको ही मुझे सहायक पम द जये और हम दोन भाइय को स तके सम त वर का ान करा द जये।



सर वतीने कहा—नागराज! सात वर, सात ाम, राग, सात गीत, सात मू छनाएँ, उनचास कारक तान और तीन ाम—इन सबको तुम और क बल भी गा सकते हो। इसके सवा मेरी कृपासे तु ह चार कारके पद, तीन ताल और तीन लय का भी ान हो जायगा। मने तीन य त और चार कारके बाज का ान भी तु ह दे दया। यह सब तो मेरे सादसे तु ह मलेगा ही; और भी इसके अ तगत जो वरनस ब धी व ान है, वह सब भी तुमको और क बलको मने दान कया। तुम दोन भाई स तक स पूण कलाम जतने कुशल होओगे, वैसा भूलोक, दे वलोक और पाताललोकम भी सरा कोई नह होगा। सबक ज ा पा सर वतीदे वी य कहकर त काल अ तधान हो गय । उन दोन भाइय को सर वतीजीके कथनानुसार पद, ताल और वर आ दका उ म ान ा त आ। तदन तर वे कैलास शखरपर नवास करनेवाले भगवान् शङ् करक आराधना करनेके लये वहाँ गये और वीणाक लयके साथ सात कारके गीत से शङ् करजीको स करनेके लये पूण य न करने लगे। ातःकाल, रा म, म या के समय और दोन स या म वे भगव परायण



होकर भगवान् शङ् करक तु त करने लगे। ब त समयतक तु त करनेके बाद उनके गीतसे भगवान् शङ् कर स ए और बोले—‘वर माँगो।’ तब क बलस हत अ तरने महादे वजीको णाम करके कहा—‘भगवन्! य द आप हम दोन पर स ह तो हम मनोवा छत वर द। कुवलया क प नी मदालसा, जो अब मर चुक है, पहलेक ही अव थाम मेरी क याके पम कट हो। उसे पूवज मक बात का मरण हो, पहले ही जैसी उसक का त हो तथा वह यो गनी एवं योग व ाक जननी होकर मेरे घरम उ प हो।’



महादे वजीने कहा—नागराज! तुमने जो कुछ कहा है, वह सब मेरे सादसे न य ही पूण होगा। ा का दन आनेपर तुम उसम दये ए म यम प डको शु एवं प व च होकर खा लेना। उसके खा लेनेपर तु हारे म यम फणसे क याणी मदालसा जैसे मरी है, उसी पम उ प होगी। तुम इसी कामनाको मनम लेकर उस दन पतर का तपण करना, इससे वह त काल ही तु हारे म यम फणसे कट हो जायगी। यह सुनकर वे दोन भाई महादे वजीके चरण म णाम करके बड़े स तोषके साथ पुनः रसातलम लौट आये। अ तरने उसी कार ा कया और म यम



प डका व धपूवक भोजन कया। फर जब उ मनोरथको लेकर वे तपण करने लगे, उस समय उनके साँस लेते ए म यम फणसे सु दरी मदालसा त काल कट हो गयी। नागराजने यह रह य कसीको नह बताया। मदालसाको महलके भीतर गु त पसे य के संर णम रख दया। इधर नागराजके पु त दन भूलोकम जाते और ऋत वजके साथ दे वता क भाँ त ड़ा करते थे। एक दन नागराजने स होकर अपने पु से कहा —‘मने पहले तुमलोग को जो काय बताया था, उसे तुम य नह करते? पु ो! राजकुमार ऋत वज हमारे उपकारी और स मानदाता ह, फर उनका भी उपकार करनेके लये तुमलोग उ ह मेरे पास य नह ले आते?’



अपने नेही पताके य कहनेपर वे दोन म के नगरम गये और कुछ बातचीतका स चलाकर उ ह ने कुवलया को अपने घर चलनेके लये कहा। तब राजकुमारने उन दोन से कहा—‘सखे! यह घर भी तो आप ही दोन का है। धन, वाहन, व आ द जो कुछ भी मेरा है, वह सब आपका भी है। य द आपका मुझपर ेम है तो आप धन-र न आ द जो कुछ कसीको दे ना चाह,



यहाँसे लेकर द। दवने मुझे आपके नेहसे इतना व चत कर दया क आप मेरे घरको अपना नह समझते। य द आप मेरा य करना चाहते ह , अथवा य द आपका मुझपर अनु ह हो तो मेरे धन और गृहको आपलोग अपना ही समझ। आपलोग का जो कुछ है, वह मेरा है और मेरा आपलोग का है। आपलोग मेरे बाहरी ाण ह, इस बातको स य मान। म अपने दयक शपथ दलाकर कहता ँ, आप मुझपर कृपा करके फर ऐसी भेदभावको सू चत करनेवाली बात कभी मुँहसे न नकाल।’ यह सुनकर उन दोन नागकुमार के मुख नेहके आँसु से भ ग गये और वे कुछ ेमपूण रोषसे बोले—‘ऋत वज! तुम जो कुछ कहते हो, उसम त नक भी स दे ह नह है। हमारे मनम भी वैसा ही भाव है; पर तु हमारे महा मा पताने बार-बार कहा है क म कुवलया को दे खना चाहता ँ।’ इतना सुनते ही कुवलया अपने सहासनसे उठकर खड़े हो गये और यह कहकर क ‘ पताजीक जैसी आ ा है, वही क ँ गा’ वे पृ वीपर उनके उ े यसे णाम करने लगे। कुवलया बोले—म ध य ँ, अ य त पु या मा ँ, मेरे समान भा यशाली सरा कौन है; य क आज पताजी मुझे दे खनेक इ छा करते ह। अतः म ो! आपलोग उठ और उनके पास चल। म पताजीके चरण क शपथ खाकर कहता ँ, उनक इस आ ाका णभर भी उ लङ् घन करना नह चाहता। य कहकर राजकुमार ऋत वज उन दोन नागकुमार के साथ नगरसे बाहर नकले और पु यस लला गोमतीके तटपर गये। फर वे सब लोग गोमतीक बीच धाराम उतरकर चलने लगे। राजकुमारने सोचा—‘नद के उस पार इन दोन का घर होगा।’ इतनेम ही उन नागकुमार ने उ ह ख चकर पाताल प ँचा दया। वहाँ जानेपर उ ह ने अपने दोन म को व तकके ल ण से सुशो भत सु दर नागकुमार के पम दे खा। वे फण क म णसे दे द यमान हो रहे थे। उ ह इस पम दे खकर राजकुमारके ने आ यसे खल उठे । उ ह ने मुसकाते ए ेमपूवक कहा—‘वाह, यह तो अ छा रहा।’ पातालम कह तो वीणा और वेणुक मधुर व नके साथ स तके श द सुनायी दे ते थे। कह मृद और ढोल आ द बाजे बज रहे थे। सैकड़ मनोहर भवन चार ओर गोचर होते थे। इस कार अपने य नागकुमार के साथ पातालक शोभा नहारते ए राजकुमार ऋत वज आगे बढ़ने लगे। कुछ र जानेके बाद सबने नागराजके महलम वेश कया। नागराज अ तर सोनेके सहासनपर, जसम म ण, मूँगे और वै य आ द र न क झालर लगी थ , वराजमान थे। उनके अ म द हार एवं द व शोभा पा रहे थे। कान म म णमय कु डल झल मला रहे थे। सफेद मो तय का



मनोहर हार व ः थलक शोभा बढ़ा रहा था और भुजा म भुजबंद सुशो भत थे। दोन नागकुमार ने ‘यही हमारे पताजी ह’ य कहकर राजकुमारको उनका दशन कराया और पताजीसे यह नवेदन कया क ‘यही हमारे म वीर कुवलया ह।’ ऋत वजने नागराजके चरण म म तक झुकाकर णाम कया। नागराजने उ ह बलपूवक उठाया और खूब कसकर छातीसे लगा लया। फर उनका म तक सूँघकर कहा—‘बेटा! चरजीवी रहो। श ु का नाश करके पता-माताक सेवा करो। व स! तुम ध य हो; य क मेरे पु ने परो म भी मुझसे तु हारे असाधारण गुण क शंसा क है। तुम मन, वाणी और शरीरक चे ा के साथ अपने गुण-गौरवस हत सदा बढ़ते रहो। गुणवान्का ही जीवन शंसनीय है। गुणहीन मनु य तो जीते-जी ही मरेके समान है। गुणवान् पु पता-माताको शा त एवं स तोष दान करता है। दे वता, पतर, ा ण, म , याचक, ःखी तथा ब धु-बा धव भी गुणवान् पु षके चरंजीवी होनेक अ भलाषा करते ह। जनक कभी न दा नह ई, जो द न- खय पर दया करते तथा आप त मनु य जनक शरण लेते ह, ऐसे गुणवान् पु ष का ही ज म सफल है।’



वीर कुवलया से य कहकर उनका वागत-स कार करनेके लये नागराज अपने पु से बोले—‘बेटा! मशः नान आ द सब काय पूरा करके इ ह इ छानुसार भोजन कराओ। उसके बाद हमलोग इनसे मनको स करनेवाली बात करते ए कुछ कालतक एक साथ बैठगे।’ राजा श ु जत्के पु ने चुपचाप उनक आ ा वीकार क । त प ात् स यवाद नागराजने अपने पु तथा राजकुमारके साथ स तापूवक भोजन कया।



*



मदालसा तु तद् प तम् ।।



् वा तद यं क ठभूषणम् । त याजाशु



यान् ाणान् ु वा च नहतं



(अ० २२।८५) १-राजा च तां मृतां ् वा वना भ ा मदालसाम् । युवाच जनं सव वमृ य सू थमानसः ।। न रो दत ं प या म भवतामा मन तथा । सवषामेव सं च य स ब धानाम न यताम् ।। क नु शोचा म तनयं क नु शोचा यहं नुषाम् । वमृ य कृतकृ य वा म येऽशो यावुभाव प ।। य छु ूषुम चनाद् जर णत परः । ा तो मे यः सुतो मृ युं कथं शो यः स धीमताम् ।। अव यं या त य े हं तद् जानां कृते य द । मम पु ेण स य ं न व युदयका र तत् ।। इयं च स कुलो प ा भत यवमनु ता । कथं नु शो या नारीणां भतुर य दै वतम् ।। अ माकं बा धवानां च तथा येषां दयावताम् । शो या ेषा भवेदेवं य द भ ा वयो गनी ।। या तु भतुवधं ु वा त णादे व भा मनी । भतारमनुयातेयं न शो यातो वप ताम् ।। (अ० २२।२७-३४) २-न मे मा ा न मे व ा ा ता ी तनृपे शी । ु वा मु नप र ाणे हतं पु ं यथा मया ।। शोचतां बा धवानां ये न स तोऽ त ः खताः । य ते ा धना ल ा तेषां माता वृथा जा ।। सं ामे यु यमाना येऽभीता गो जर णे । ु णाः श ै वप ते त एव भु व मानवाः ।। अ थनां म वग य व षां च पराङ् मुखम् । यो न या त पता तेन पु ी माता च वीरसूः ।। गभ लेशः यो म ये साफ यं भजते तदा । यदा र वजयी वा यात् सं ामे वा हतः सुतः ।। (अ० २२।४१-४५) *



तामृते मृगशावा



ग धवतनयामहम् । न भो ये यो षतं का च द त स यं मयो दतम् ।। (अ० २३।२०) १. अ न ोम, अ य न ोम, उ य, षोडशी, वाजपेय, अ तरा तथा आ तोयाम—ये सात सोमय सं थाएँ ह। २. अ याधान, अ नहो , दशपूणमास, चातुमा य, आ यणे , न ढपशुब ध तथा सौ ामणी—ये सब ह वय सं थाएँ ह। ३. त, त, आ त, शूलगव, ब लहरण, यवरोहण तथा अ काहोम—ये सात पाकय सं थाएँ ह।



ऋत वजको मदालसाक ा त, बा यकालम अपने पु को मदालसाका उपदे श सुम त कहते ह—नागराज महा मा अ तर जब भोजन कर चुके, तब उनके पु और राजकुमार ऋत वज—तीन उनके पास आकर बैठे। नागराजने मनको य लगनेवाली बात कहकर अपने पु के सखाको स कया और पूछा—‘आयु मन्! आज तुम मेरे घरपर आये हो। अतः जससे तु ह सुख मले, ऐसी कसी व तुके लये य द तु हारी इ छा हो तो बताओ। जैसे पु अपने पतासे मनक बात कहता है, उसी कार तुम भी नःशङ् क होकर मुझसे अपना मनोरथ कहो। सोना, चाँद , व , वाहन, आसन अथवा और कोई अ य त लभ एवं मनोवा छत व तु मुझसे माँगो।’ कुवलया ने कहा—भगवन्! आपके सादसे मेरे पताके घरम आज भी सुवण आ द सभी ब मू य व तुएँ मौजूद ह। इन सब व तु क मुझे आव यकता नह है। जबतक पताजी हजार वष तक पृ वीका शासन करते ह और आप पाताललोकका रा य करते ह, तबतक मेरा मन याचना करनेके लये उ सुक नह हो सकता। जनके पता जी वत ह, वे परम सौभा यशाली और पु या मा ह। भला, मेरे पास या नह है। स जन म , नीरोग शरीर, धन और यौवन—सभी कुछ तो है। जो इस बातक च ता न करके क मेरे घरम धन है या नह — पताक भुजा क छ छायाम रहते ह, वे ही सुखी ह। जो लोग बचपनसे ही पतृहीन होकर कुटु बका भार वहन करते ह, उनका सुखभोग छन जानेके कारण म तो यही समझता ँ क वधाताने ही उ ह सौभा यसे व चत कर रखा है। म तो आपक कृपासे पताजीके दये ए धन-र न आ दके भंडारमसे त दन याचक को, उनक इ छाके अनुसार दान दे ता रहता ँ। यहाँ आकर मने अपने मुकुटसे जो आपके दोन चरण का पश कया तथा आपके शरीरसे मेरा पश आ, इसीसे म सब कुछ पा गया। राजकुमारका यह वनययु वचन सुनकर नागराज अ तरने ेमपूवक कहा—‘य द मुझसे र न और सुवण आ द लेनेका तु हारा मन नह होता तो और ही कोई व तु जो तु हारे मनको स कर सके, माँगो। म तु ह ँ गा।’ कुवलया ने कहा—भगवन्! आपके सादसे मेरे घरम सब कुछ है, वशेषतः आपके दशनसे मुझे सब मल गया। आप दे वता ह और म मनु य। आपने अपने शरीरसे जो मेरा आ ल न कया—इसीसे म कृतकृ य ँ। मेरा जीवन सफल हो गया। नागराज! आपक चरण-धू लने जो मेरे म तकपर अपना थान बनाया है, उसीसे मने या नह पा लया। य द आपको मुझे मनोवा छत वर दे ना ही है तो यही द जये क मेरे दयसे पु यकम का सं कार कभी र न हो।



अ तर बोले— व न्! ऐसा ही होगा। तु हारी बु धमम लगी रहेगी। तथा प इस समय तुम मेरे घरम आये हो; इस लये तु ह मनु यलोकम जो व तु लभ तीत होती हो, वही मुझसे माँग लो। उनक यह बात सुनकर राजकुमार ऋत वज अपने दोन म नागकुमार के मुखक ओर दे खने लगे। तब उन दोन ने पताको णाम करके राजपु का जो अभी था, उसे प पसे कहना आर भ कया। नागकुमार बोले— पताजी! ग धवराजकुमारी मदालसा इनक यारी प नी थी। उसको कसी बु वाले रा मा दानवने, जो इनके साथ वैर रखता था, धोखा दया। उसने उसी दानवके मुखसे इनक मृ युका समाचार सुनकर अपने यारे ाण को याग दया। तब इ ह ने अपनी प नीके त कृत होकर यह त ा कर ली क अब मदालसाको छोड़कर सरी कोई ी मेरी प नी नह हो सकती। पताजी! ये वीर ऋत वज आज उसी सवा सु दरी मदालसाको दे खना चाहते ह। य द ऐसा कया जा सके तो इनका मनोरथ पूण हो सकता है। तब नागराज घरम छपायी ई मदालसाको ले आये और राजकुमारको उसे दखाया तथा पूछा—‘ऋत वज! यह तु हारी प नी मदालसा है या नह ?’ उसे दे खते ही राजकुमार ल जा छोड़कर उठे और ‘हा ये!’ कहते ए उसक ओर बढ़े । तब नागराजने उसे रोका और मदालसाके मरकर जी वत होने आ दक सारी कथा कह सुनायी। फर तो राजकुमारने स होकर अपनी यारी प नीको हण कया। तदन तर उनके मरण करते ही उनका यारा अ वहाँ आ प ँचा। उस समय नागराजको णाम करके वे अ पर आ ढ़ ए और मदालसाके साथ अपने नगरको चल दये। वहाँ प ँचकर उ ह ने अपने पता-मातासे उसके मरकर जी वत होनेका सब समाचार नवेदन कया। क याणमयी मदालसाने भी सास-ससुरके चरण म णाम कया तथा अ य वजन को भी यथायो य स मान दया। त प ात् उस नगरम पुरवा सय के यहाँ ब त बड़ा उ सव आ।



इसके बाद ब त समय बीतनेके प ात् महाराज श ु जत् पृ वीका भलीभाँ त पालन करके परलोकवासी हो गये। तब पुरवा सय ने उनके महा मा पु ऋत वजको, जनके आचरण तथा वहार बड़े ही उदार थे, राजपदपर अ भ ष कया। वे भी अपनी जाका औरस पु क भाँ त पालन करने लगे। तदन तर मदालसाके गभसे थम पु उ प आ। राजाने उसका नाम व ा त रखा। इससे कुटु बके सब लोग बड़े स ए, क तु मदालसा वह नाम सुनकर हँसने लगी। उसने उ ान सोकर जोर-जोरसे रोते ए शशुको बहलानेके ाजसे इस कार कहना आर भ कया—



शु ोऽ स रे तात न तेऽ त नाम कृतं ह ते क पनयाधुनैव । प चा मकं दे ह मदं न तेऽ त नैवा य वं रो द ष क य हेतोः ।। हे तात! तू तो शु आ मा है, तेरा कोई नाम नह है। यह क पत नाम तो तुझे अभी मला है। यह शरीर भी पाँच भूत का बना आ है। न यह तेरा है, न तू इसका है। फर कस लये रो रहा है? न वा भवान् रो द त वै वज मा श दोऽयमासा महीशसूनुम् । वक यमाना व वधा गुणा तेऽगुणा भौताः सकले येषु ।।



अथवा तू नह रोता है, यह श द तो राजकुमारके पास प ँचकर अपने-आप ही कट होता है। तेरी स पूण इ य म जो भाँ त-भाँ तके गुण-अवगुण क क पना होती है, वे भी पा चभौ तक ही ह? भूता न भूतैः प र बला न वृ समाया त यथेह पुंसः । अ ा बुदाना द भरेव क य न तेऽ त वृ न च तेऽ त हा नः ।। जैसे इस जगत्म अ य त बल भूत अ य भूत के सहयोगसे वृ को ा त होते ह, उसी कार अ और जल आ द भौ तक पदाथ को दे नेसे पु षके पा चभौ तक शरीरक ही पु होती है। इससे तुझ शु आ माक न तो वृ होती है और न हा न ही होती है। वं क चुके शीयमाणे नजेऽ मंत मं दे हे मूढतां मा जेथाः ।। शुभाशुभैः कम भदहमेतमदा दमूढैः क चुक ते पन ः ।। तू अपने उस चोले तथा इस दे ह पी चोलेके जीण-शीण होनेपर मोह न करना। शुभाशुभ कम के अनुसार यह दे ह ा त आ है। तेरा यह चोला मद आ दसे बँधा आ है (तू तो सवथा इससे मु है)। ताते त क चत् तनये त क चद बे त क च यते त क चत् । ममे त क च ममे त क चत् वं भूतसङ् घं ब मानयेथाः ।। कोई जीव पताके पम स है, कोई पु कहलाता है, कसीको माता और कसीको यारी ी कहते ह; कोई ‘यह मेरा है’ कहकर अपनाया जाता है और कोई ‘मेरा नह है’ इस भावसे पराया माना जाता है। इस कार ये भूतसमुदायके ही नाना प ह, ऐसा तुझे मानना चा हये। ःखा न ःखापगमाय भोगान् सुखाय जाना त वमूढचेताः । ता येव ःखा न पुनः सुखा न जाना त व ान वमूढचेताः ।। य प सम त भोग ःख प ह तथा प मूढ़ च मानव उ ह ःख र करनेवाला तथा सुखक ा त करनेवाला समझता है; क तु जो व ान् ह, जनका च मोहसे आ छ नह आ है, वे उन भोगज नत सुख को भी ःख ही मानते ह। हासोऽ थसंदशनम यु म-



म यु वलं य कलुषं वसायाः । कुचा द पीनं प शतं घनं तत् थानं रतेः क नरकं न यो षत् ।। य क हँसी या है, ह य का दशन। जसे हम अ य त सु दर ने कहते ह, वह म जाक कलुषता है और मोटे -मोटे कुच आ द घने मांसक थयाँ ह; अतः पु ष जसपर अनुराग करता है, वह युवती ी या नरकक जीती-जागती मू त नह है? यानं तौ यानगत दे हो दे हेऽ प चा यः पु षो न व ः । मम वमु ा न तथा यथा वे दे हेऽ तमा ं च वमूढतैषा ।। पृ वीपर सवारी चलती है, सवारीपर यह शरीर रहता है और इस शरीरम भी एक सरा पु ष बैठा रहता है; क तु पृ वी और सवारीम वैसी अ धक ममता नह दे खी जाती, जैसी क अपने दे हम गोचर होती है। यही मूखता है। य - य वह बालक बढ़ने लगा, य -ही- य महारानी मदालसा त दन उसे बहलाने आ दके ारा ममताशू य ानका उपदे श करने लगी। जैसे-जैसे उसके शरीरम बल आता गया और जैसे-जैसे वह पतासे ावहा रक बु सीखने लगा, वैसे-ही-वैसे माताके वचन से उसे आ मत वका ान भी ा त होता गया। इस कार माताने ज मसे ही अपने पु को ऐसा उपदे श दया, जससे ानी एवं ममताशू य होकर उसने गाह य-धमके त अपने मनको नह जाने दया। इसी कार जब मदालसाके गभसे सरा पु उ प आ, तब पताने उसका नाम सुबा रखा। इसपर भी मदालसा हँसने लगी। उस बालकको भी वह पहलेक ही भाँ त बहलाते-बहलाते बचपनसे ही ऐसा उपदे श दे ने लगी, जससे वह परम बु मान् ानी हो गया। तृतीय पु उ प होनेपर राजाने उसका नाम श ुमदन रखा। इसपर भी सु दरी मदालसा ब त दे रतक हँसती रही तथा उसको भी उसने पहलेक ही भाँ त बा यकालसे ही ानका उपदे श दया। बड़ा होनेपर वह न काम कम करने लगा। सकाम कमक ओर उसक च नह रही। राजा ऋत वज जब चौथे पु का नामकरण करने चले, तब सदाचारपरायणा मदालसापर उनक पड़ी। उस समय वह म द-म द मुसकरा रही थी। उसे हँसते दे ख राजाको कुछ कौतूहल आ; अतः उ ह ने पूछा—‘दे व! जब म नामकरण करने चलता ँ, तब तुम हँसती य हो? इसका कारण बताओ। म तो समझता ँ व ा त, सुबा और श ुमदन—ये सु दर नाम रखे गये ह। ये य के यो य तथा शौयम उपयोगी ह; भ े ! य द तु हारे मनम यह बात हो क ये नाम अ छे नह ह तो मेरे चौथे पु का नाम तुम वयं ही रखो।’ मदालसा बोली—महाराज! आपक आ ाका पालन करना मेरा कत है; अतः आप जैसा कहते ह, उसके अनुसार म आपके चौथे पु का नाम वयं ही रखूँगी। यह धम



बालक इस संसारम अलकके नामसे व यात होगा। आपका यह क न पु बड़ा बु मान् होगा। माताके ारा रखे गये ‘अलक’ इस अस ब नामको सुनकर राजा ठठाकर हँस पड़े और इस कार बोले—‘शुभे! तुमने मेरे पु का जो यह अलक नाम रखा है, उसका या कारण है? ऐसा अस ब नाम य रखा? इसका अथ या है?’ मदालसाने कहा—महाराज! यह तो ावहा रक क पना है; लौ कक वहार चलानेके लये कोई-सा नाम रख लया जाता है, इससे पु षका कुछ भी स ब ध नह है। आपने भी जो नाम रखे ह, वे भी नरथक ही ह। कैसे, सो बतलाती ँ; सु नये। ानीलोग पु ष (आ मा)-को ापक बतलाते ह। आपने थम पु का नाम व ा त रखा है, इसके अथपर वचार क जये। ा तका अथ है ग त। एक थानसे सरे थानम जानेको ग त कहते ह। जब इस दे हका ई र आ मा सव ापक है, तब वह सरी जगह जा नह सकता; अतः उसका नाम व ा त रखना मुझे नरथक ही जान पड़ता है। पृ वीनाथ! सरे पु का जो सुबा नाम रखा गया है, वह भी थ ही है; य क आ मा नराकार है, उसको बाँह कहाँसे आयी। तृतीय पु का जो अ रमदन नाम नयत कया गया है, मेरी समझसे वह भी अस ब ही है। इसका कारण भी सु नये। अ रमदनका अथ है—श ुका मदन करनेवाला। जब सब शरीर म एक ही आ मा रहता है, तब उसका कौन श ु है और कौन म । मू तमान् भूत के ारा मू तमान् भूत का ही मदन होता है। आ मा तो अमूत है, उसका मदन कैसे हो सकता है। ोध आ द आ मासे पृथक् रहते ह; अतः यह अ रमदनक क पना नरथक ही है। य द वहारका भलीभाँ त नवाह करनेके लये ऐसे अस त नाम क क पना हो सकती है तो ‘अलक’ नामम ही य आपको नरथकता तीत होती है? रानी मदालसाके ारा इस कार भलीभाँ त समझाये जानेपर परम बु मान् महाराज ऋत वजने अपनी ाणव लभाको यथाथवा दनी मानकर कहा—‘तु हारा कथन स य है।’ तदन तर उसने पहले पु क भाँ त उसको भी ानजनक बात सुनानी आर भ क । तब राजाने उसे रोककर कहा। राजा बोले—अरी यह या करती हो? पहले पु क भाँ त इसे भी ानका उपदे श दे कर मेरी वंश-पर पराका उ छे द करनेपर य तुली हो। य द तु ह मेरा य काय करना हो और य द मेरी बात को मानना तु ह उ चत तीत होता हो तो मेरे इस पु को वृ मागम लगाओ। दे व! ऐसा करनेसे कममागका उ छे द नह होगा तथा पतर के प डदानका लोप नह होगा। जो पतर दे वलोकम ह, जो तय यो नम पड़े ह, जो मनु ययो नम एवं भूतवगम थत ह, वे पु या मा ह या पापा मा, जब भूख- याससे वकल होते ह तो अपने कम म लगा आ मनु य प डदान तथा जलदानके ारा उ ह तृ त करता है। इसी तरह वह दे वता और अ त थय को भी स तु रखता है। दे वता, मनु य, पतर, भूत, ेत, गु क,



प ी, कृ म और क ट आ द भी मनु यसे ही जी वका चलाते ह; अतः सु द र! तुम मेरे पु को ऐसा उपदे श दो, जससे इहलोक और परलोकम उ म फल दे नेवाले यो चत कत का उसे ठ क-ठ क ान हो।



प तके य कहनेपर े नारी मदालसा अपने पु अलकको बहलाती ई इस कार उपदे श दे ने लगी— ध योऽ स रे यो वसुधामश ुरेक रं पाल यता स पु । त पालनाद तु सुखोपभोगो धमात् फलं ा य स चामर वम् ।। धरामरान् पवसु तपयेथाः समी हतं ब धुषु पूरयेथाः । हतं पर मै द च तयेथा



मनः पर ीषु नवतयेथाः ।। सदा मुरा र द च तयेथात यानतोऽ तःषडरी येथाः । मायां बोधेन नवारयेथा न यतामेव व च तयेथाः ।। अथागमाय तपा येथा यशोऽजनायाथम प येथाः । परापवाद वणा भीथा वप समु ा जनमु रेथाः ।। बेटा! तू ध य है, जो श ुर हत होकर अकेला ही चरकालतक इस पृ वीका पालन करता रहेगा। पृ वीके पालनसे तुझे सुखभोगक ा त हो और धमके फल व प तुझे अमर व मले। पव के दन ा ण को भोजनके ारा तृ त करना, ब धु-बा धव क इ छा पूण करना, अपने दयम सर क भलाईका यान रखना और परायी य क ओर कभी मनको न जाने दे ना। अपने मनम सदा ी व णुभगवान्का च तन करना, उनके यानसे अ तःकरणके काम- ोध आ द छह श ु को जीतना, ानके ारा मायाका नवारण करना और जगत्क अ न यताका वचार करते रहना। धनक आयके लये राजा पर वजय ा त करना, यशके लये धनका सद् य करना, परायी न दा सुननेसे डरते रहना तथा वप के समु म पड़े ए लोग का उ ार करना। वीर! तू अनेक य के ारा दे वता को तथा धनके ारा ा ण एवं शरणागत को स तु करना। कामनापू तके ारा य को स रखना और यु के ारा श ु के छ के छु ड़ाना। बा याव थाम तू भाई-ब धु को आन द दे ना, कुमाराव थाम आ ापालनके ारा गु जन को स तु रखना। युवाव थाम उ म कुलको सुशो भत करनेवाली ीको स रखना और वृ ाव थाम वनके भीतर नवास करते ए वनवा सय को सुख दे ना। रा यं कुवन् सु दो न दयेथाः साधून् र ं तात य ैयजेथाः । ान् न नन् वै रण ा जम ये गो व ाथ व स मृ युं जेथाः ।। तात! रा य करते ए अपने सु द को स रखना, साधु पु ष क र ा करते ए य ारा भगवान्का यजन करना, सं ामम श ु का संहार करते ए गौ और ा ण क र ाके लये अपने ाण नछावर कर दे ना।



मदालसाका अलकको राजनी तका उपदे श सुम त कहते ह—इस कार माताके ारा त दन बहलाया जाता आ बालक अलक कुछ बड़ी अव थाको ा त आ। कुमाराव थाम प ँचनेपर उसका उपनयन-सं कार आ। त प ात् उस बु मान् राजकुमारने माताको णाम करके कहा—‘माँ! मुझे इस लोक और परलोकम सुख ा त करनेके लये यहाँ या करना चा हये? यह सब मुझे बताओ।’ मदालसा बोली—बेटा! रा या भषेक होनेपर राजाको उ चत है क वह अपने धमके अनुकूल चलता आ आर भसे ही जाको स रखे। सात १ सन का प र याग कर दे ; य क वे राजाका मूलो छे द करनेवाले ह। अपनी गु त म णाके बाहर फूटनेसे उसके ारा लाभ उठाकर श ु आ मण कर दे ते ह; अतः ऐसा न होने दे कर श ु से अपनी र ा करे। जैसे रथी रथक ग त व होनेपर आठ कारसे नाशको ा त होता है, उसके ऊपर आठ दशा से हार होने लगते ह, उसी कार गु त म णाके बाहर फूटनेपर राजाके आठ २ वग का न य ही नाश होता है। राजाको इस बातका भी पता लगाते रहना चा हये क श ु ारा उ प कये गये दोषसे अथवा श ु के बहकावेम आकर अपने म य मसे कौन हो गया है और कौन अ —कौन अपना साथी है और कौन श ुसे मला आ। इसी कार बु मान् चर नयु करके श ुके चर पर भी य नपूवक रखनी चा हये। राजाको अपने म तथा माननीय ब धु-बा धव पर भी पूणतः व ास नह करना चा हये। क तु काम आ पड़नेपर उसे श ुपर भी व ास कर लेना चा हये। कस अव थाम श ुपर चढ़ाई न करके अपने थानपर थत रहना उ चत है, या करनेसे अपनी वृ होगी और कस कायसे अपनी हा न होनेक स भावना है—इन सब बात का राजाको ान होना चा हये। वह छः३ गुण का उपयोग करना जाने और कभी कामके अधीन न हो। राजा पहले अपने आ माको, फर म य को जीते। त प ात् अपनेसे भरण-पोषण पानेवाले कुटु बीजन एवं सेवक के दयपर अ धकार ा त करे। तदन तर पुरवा सय को अपने गुण से जीते। यह सब हो जानेपर श ु के साथ वरोध करे। जो इन सबको जीते बना ही श ु पर वजय पाना चाहता है, वह अपने आ मा तथा म य पर अ धकार न रखनेके कारण श ुसमुदायके वशम पड़कर क भोगता है।*



इस लये बेटा! पृ वीका पालन करनेवाले राजाको पहले काम आ द श ु को जीतनेक चे ा करनी चा हये। उनके जीत लेनेपर वजय अव य भावी है। य द राजा ही उनके वशम हो गया तो वह न हो जाता है। काम, ोध, लोभ, मद, मान और हष—ये राजाका वनाश करनेवाले श ु ह। राजा पा डु कामम आस होनेके कारण मारे गये तथा अनु ाद ोधके कारण ही अपने पु से हाथ धो बैठा। यह वचारकर अपनेको काम और ोधसे अलग रखे। राजा पु रवा लोभसे मारे गये और वेनको मदके कारण ही ा ण ने मार डाला। अनायुष्के पु को मानके कारण ाण से हाथ धोना पड़ा तथा पुर यक मृ यु हषके कारण ई; क तु महा मा म ने इन सबको जीत लया था, इस लये वे स पूण व पर वजयी ए। यह सोचकर राजा उपयु दोष का सवथा याग करे। वह कौवे, कोयल, भ रे, ह रन, साँप, मोर, हंस, मुग और लोहेके वहारसे श ा हण करे।१ राजा अपने श ुके त उ लूका-सा बताव करे। जैसे उ लू प ी रातम सोये कौ पर चुपचाप धावा करता है, उसी कार राजा श ुक असावधान-दशाम ही उसपर आ मण करे तथा



समयानुसार च ट क -सी चे ा करे—धीरे-धीरे आव यक व तु



का सं ह



करता रहे।२ राजाको आगक चनगा रय तथा सेमलके बीजसे कत क श ा लेनी चा हये। जैसे आगक छोट -सी चनगारी बड़े-से-बड़े वनको जला डालनेक श रखती है, उसी कार छोटा-सा श ु भी य द दबाया न जाय तो ब त बड़ी हा न कर सकता है। जैसे छोटा-सा सेमलका बीज एक महान् वृ के पम प रणत होता है, उसी कार लघु श ु भी समय आनेपर अ य त बल हो जाता है। अतः बलाव थाम ही उसे उखाड़ फकना चा हये। जैसे च मा और सूय अपनी करण का सव समान पसे सार करते ह, उसी कार नी तके लये राजाको भी सम त जापर समान भाव रखना चा हये। वे या, कमल, शरभ, शू लका, ग भणी ीके तन तथा वालेक ीसे भी राजाको बु सीखनी चा हये। राजा वे याक भाँ त सबको स रखनेक चे ा करे, कमल-पु पके समान सबको अपनी ओर आकृ करे, शरभके समान परा मी बने, शू लकाक भाँ त सहसा श ुका व वंस करे। जैसे ग भणीके तनम भावी स तानके लये धका सं ह होने लगता है, उसी कार राजा भ व यके लये स चयशील बने और जस कार वालेक ी धसे नाना कारके खा पदाथ तैयार करती है, वैसे ही राजाको भी भाँ त-भाँ तक क पनाम पटु होना चा हये। वह पृ वीका पालन करते समय इ , सूय, यम, च मा तथा वायु— इन पाँच के प धारण करे। जैसे इ चार महीने वषा करके पृ वीपर रहनेवाले ा णय को तृ त करते ह, उसी कार राजा दानके ारा जाजन को स तु करे। जस कार सूय आठ महीन तक अपनी करण से पृ वीका जल सोखते रहते ह, इसी कार सू म उपाय से धीरे-धीरे कर आ दका सं ह करे। जैसे यमराज समय आनेपर य-अ य सभीको मृ युपाशम बाँधते ह, उसी कार राजा भी य-अ य तथा साधु और के त समान भावसे राजनी तका योग करे। जैसे पूण च मा दे खकर सब मनु य स होते ह, उसी कार जस राजाके त सम त जाको समान पसे स तोष हो, वही े एवं च माके तका पालन करनेवाला है। जैसे वायु गु त पसे सम त ा णय के भीतर स चार करती रहती है, उसी कार राजा भी गु तचरके ारा पुरवा सय , य तथा ब धु-बा धव के मनका भाव जाननेक चे ा करे।* बेटा! जसके च को सरे लोग लोभ, कामना अथवा अथसे नह ख च सकते, वह राजा वगलोकम जाता है। जो अपने धमसे वच लत हो कुमागपर जानेवाले मूख मनु य को फर धमम लगाता है, वह राजा वगम जाता है। म



व स! जसके रा यम वणधम और आ मधमको हा न नह प ँचती, उसे इस लोक और परलोकम भी सनातन सुख ा त होता है। वयं बु पु ष ारा धमसे वच लत न होकर ऐसे लोग को अपने धमम लगाना ही राजाका सबसे बड़ा कत है और यही उसे स दान करनेवाला है। राजा सब ा णय का पालन करनेसे ही कृतकृ य होता है। जो य नपूवक भलीभाँ त जाका पालन करनेवाला है, वह जाके धमका भागी होता है। जो राजा इस कार चार वण क र ाम त पर रहता है, वह सव सुखी होकर वचरता है और अ तम ा त होती है।*



उसे इ लोकक



१. कटु वचन बोलना, कठोर द ड दे ना, धनका अप य करना, म दरा पीना, य म आस रखना, शकार खेलनेम थ समय लगाना और जूआ खेलना—ये राजाके सात सन ह। २. खेतीक उ त, ापारक वृ , ग नमाण, पुल बनाना, जंगलसे हाथी पकड़कर मँगवाना, खान पर अ धकार ा त करना, अधीन राजा से कर लेना और नजन दे शको आबाद करना—ये आठ वग कहलाते ह। ३. स ध, व ह, यान, आसन, ै धीभाव और समा य—ये छः गुण ह। इनम श ुसे मेल रखना स ध, उससे लड़ाई छे ड़ना व ह, आ मण करना यान, अवसरक ती ाम बैठे रहना आसन, रंगी नी त बरतना ै धीभाव और अपनेसे बलवान् राजाक शरण लेना समा य कहलाता है। *



व स रा येऽ भ ष े न जार नमा दतः । कत म वरोधेन वधम य महीभृता ।। सना न प र य य स त मूलहरा ण वै । आ मा रपु यः संर यो ब हम व नगमात् ।। अ धा नाशमा ो त वव ात् य दना था । तथा राजा यस द धं ब हम व नगमात् ।। ा ां जानीयादमा यान रदोषतः । चरै रा तथा श ोर वे ाः य नतः ।। व ासो न तु कत ो रा ा म ा तब धुषु । काययोगाद म ेऽ प व सीत नरा धपः ।। थानवृ य ेन ैव षाड् गु य व दता मना । भ वत ं नरे े ण न कामवशव तना ।। ागा मा म ण ैव ततो भृ या महाभृता । जेया ान तरं पौरा व येत ततोऽ र भः ।। य वेतान व ज यैव वै रणो व जगीषते । सोऽ जता मा जतामा यः श ुवगण बा यते ।। (२७।४-११) १ ता पय यह क राजा कौवेके समान आल यर हत और सावधान हो। जैसे कोयल अपने अ डेका कौव से पालन कराती है, वैसे ही राजा भी सर से अपना काय साधन करे। वह भ र के समान रस ाही और मृगके समान सदा चौक ा रहे। जैसे सप बड़ा-बड़ा फन नकालकर सर को डराता और मेढकको चुपके-से नगल जाता है, उसी कार राजा सर पर आतङ् क जमाये रहे और सहसा आ मण करके श ुको अपने अधीन कर ले। जैसे मोर अपने समेटे ए पंखको कभी-कभी फैलाता है, उसी कार राजा भी समयानुसार अपने संकु चत सै य और बलका व तार करे। वह हंस के समान नीर- ीरका ववेक करनेवाला गुण ाही हो। मुग के समान रात रहते ही शयनसे उठकर कत का वचार करे और लोहेक भाँ त श ु के लये अभे एवं कत पालनम कठोर हो। २ त मा कामादयः पूव जेयाः पु महीभुजा । त जये ह जयोऽव यं राजा न य त तै जतः ।। कामः ोध लोभ मदो मान तथैव च । हष श वो ेते वनाशाय महीभृताम् ।। काम स मा मानं मृ वा पा डु ं नपा ततम् । नवतये था ोधादनु ादं हता मजम् ।। ै















हतमैलं तथा लोभा मदा े नं जैहतम् । मानादनायुषः पु ं हतं हषा पुर यम् ।। ए भ जतै जतं सव म ेन महा मना । मृ वा ववजयेदेता दोषान् वीया महीप तः ।। काकको कलभृ ाणां मृग ाल शख डनाम् । हंसकु कुटलोहानां श ेत च रतं नृपः ।। कौ शक य यां कुयाद् वप े मनुजे रः । चे ां पपी लकानां च काले भूयः दशयेत् ।। (२७।१२-१८) *



ेया न व फु ल ानां बीजचे ा च शा मलेः । च सूय व पेण नी यथ पृ थवी ता ।। ब धक प शरभशू लकागु वणी तनात् । ा नृपेण चादे या तथा गोपालयो षतः ।। श ाकयमसोमानां त द् वायोमहीप तः । पा ण प च कुव त महीपालनकम ण ।। यथे तुरो मासान् तोयो सगण भूगतम् । आ यामयेत् तथा लोकं प रहारैमहीप तः ।। मासान ौ यथा सूय तोयं हर त र म भः । सू मेणैवा युपायेन तथा शु का दकं नृपः ।। यथा यमः य े यौ ा तकाले नय छ त । तथा या ये राजा ा े समो भवेत् ।। पूण मालो य यथा ी तमान् जायते नरः । एवं य जाः सवा नवृता त छ श तम् ।। मा तः सवभूतेषु नगूढ रते यथा । एवं नृप रे चारैः पौरामा या दब धुषु ।। (अ० २७।१९-२६)



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न लोभा ा न कामा ा नाथा ा य य मानसम् । यथा यैः कृ यते व स स राजा वगमृ छ त ।। उ पथ ा हणो मूढान् वधमा च लतो नरान् । यः करो त नजे धम स राजा वगमृ छ त ।। वणधमा न सीद त य य रा ये तथा माः । व स त य सुखं े य पर ेह च शा तम् ।। एत ा ः परं कृ यं तथैतत् स कारकम् । वधम थापनं नॄणां चा यते न कुबु भः ।। पालनेनैव भूतानां कृतकृ यो महीप तः । स यक् पाल यता भागं धम या ो त य नतः ।। एवं यो वतते राजा चातुव य य र णे । स सुखी वहर येष श यै त सलोकताम् ।। (२७।२७-३२)



मदालसाके ारा वणा मधम एवं गृह थके कत का वणन अलकने कहा—महाभागे! आपने राजनी त-स ब धी धमका वणन कया। अब म वणा मधम सुनना चाहता ँ। मदालसा बोली—दान, अ ययन और य —ये ा णके तीन धम ह तथा य कराना, व ा पढ़ाना और प व दान लेना—यह तीन कारक उसक आजी वका बतायी गयी है। दान, अ ययन और य —ये तीन यके भी धम ह। पृ वीक र ा तथा श हण करके जीवन नवाह करना यह उसक जी वका है। वै यके भी दान, अ ययन और य —ये तीन ही धम ह। ापार, पशुपालन और खेती—ये उसक जी वका ह। दान, य और जा तय क सेवा—यह तीन कारका धम शू के लये बताया गया है। श पकम, जा तय क सेवा और खरीद- ब —ये उसक जी वका ह। इस कार ये वणधम बतलाये गये ह। अब आ मधम का वणन सुनो। य द मनु य अपने वणधमसे न हो तो वह उसके ारा उ म स को ा त होता है और न ष कम के आचरणसे वह मृ युके प ात् नरकम पड़ता है। उपनयन-सं कार होनेपर चारी बालक गु के घरम नवास करे। वहाँ उसके लये जो धम बताया गया है, वह सुनो। चारी वेद का वा याय करे, अ नहो करे, काल नान करे, भ ाके लये मण करे, भ ाम मला आ अ गु को नवे दत करके उनक आ ाके अनुसार ही सदा उसका उपयोग करे, गु के कायम सदा उ त रहे, भलीभाँ त उ ह स रखे, गु के बुलानेपर एका च से त परतापूवक पढ़े , गु के मुखसे एक-दो या स पूण वेद का ान ा त करके गु के चरण म णाम करे और उ ह गु द णा दे कर गृह था मम वेश करे। इस आ मम आनेका उ े य होना चा हये—गृह था म-स ब धी धम का पालन। अथवा अपनी इ छाके अनुसार वह वान थ या सं यासआ मम वेश करे अथवा वह गु के घरम सदा नवास करते ए चय न ताको ा त हो—नै क चारी बन जाय। गु के न रहनेपर उनके पु क और पु के न रहनेपर उनके धान श यक सेवा करे। अ भमानशू य होकर चय-आ मम रहे। जब गृह था मम आनेक इ छा लेकर चय-आ मसे नकले, तब अपने अनु प नीरोग ीसे व धपूवक ववाह करे। वह ी अपने समान गो और वरक न हो। उसके कसी अ म यूना धकता अथवा कोई वकार न हो।



गृह था मका ठ क-ठ क स चालन करनेके लये ही ववाह करना चा हये। अपने परा मसे धन पैदा करके दे वता, पतर एवं अ त थय को भ पूवक भलीभाँ त तृ त करे तथा अपने आ त का भरण-पोषण करता रहे। भृ य, पु , कुलक याँ, द न, अ ध और प तत मनु य को तथा पशु-प य को भी यथाश अ दे कर उनका पालन करे। गृह थका यह धम है क वह ऋतुकालम ी-सहवास करे। अपनी श के अनुसार पाँच य का अनु ान न छोड़े। अपने वभवके अनुसार पतर, दे वता, अ त थ एवं कुटु बीजन के भोजन करनेसे बचे ए अ को ही वयं भृ यजन के साथ बैठकर आदरपूवक हण करे। यह मने सं ेपसे गृह था मके धमका वणन कया है। अब वान थके धमका वणन करती ँ, यान दे कर सुनो। बु मान् पु षको उ चत है क वह अपनी स तानको दे खकर तथा दे ह झुक जा रही है, इस बातका वचार करके आ मशु के लये वान थ आ मम जाय। वहाँ वनके फल-मूल का उपभोग करे और तप यासे शरीरको सुखाता रहे। पृ वीपर सोये, चयका पालन करे, दे वता , पतर और अ त थय क सेवाम संल न रहे। अ नहो , काल- नान तथा जटा-व कल धारण करे; सदा योगा यासम लगा रहे और वनवा सय पर नेह रखे। इस कार यह पाप क शु तथा आ माका उपकार करनेके लये वान थ-आ मका वणन कया है। अब चतुथ आ मका व प बतलाती ँ, सुनो। धम महा मा ने इस आ मके लये जो धम बतलाया है, वह इस कार है। सब कारक आस य का याग, चयका पालन, ोधशू यता, जते यता, एक थानपर अ धक दन तक न रहना, कसी कमका आर भ न करना, भ ाम मले ए अ का एक बार भोजन करना, आ म ान होनेक इ छाको जगाये रखना तथा सव आ माका दशन करना। यह मने चतुथ आ मका धम बतलाया है। अब अ या य वण तथा आ म के सामा य धमका वणन सुनो। स य, शौच, अ हसा, दोष का अभाव, मा, ू रताका अभाव, द नताका न होना तथा स तोष धारण करना—ये वण और आ म के धम सं ेपसे बताये गये ह। जो पु ष अपने वण और आ म-स ब धी धमको छोड़कर उसके वपरीत आचरण करता है, वह राजाके लये द डनीय है। जो मानव अपने धमका याग करके पापकमम लग जाते ह, उनक उपे ा करनेवाले राजाके इ १ और आपूत२ धम न हो जाते ह। बेटा! गृह थ-धमका आ य लेकर मनु य इस स पूण जगत्का पोषण करता है और उससे मनोवा छत लोक को जीत लेता है। पतर, मु न, दे वता,



भूत, मनु य, कृ म, क ट, पत , पशु-प ी तथा असुर—ये सभी गृह थसे ही जी वका चलाते ह। उसीके दये ए अ -पानसे तृ त लाभ करते ह तथा ‘ या यह हम भी कुछ दे गा?’ इस आशासे सदा उसका मुँह ताकते रहते ह। व स! वेद यी प धेनु सबक आधारभूता है, उसीम स पूण व त त है तथा वही व क उ प का कारण मानी गयी है। ऋ वेद उसक पीठ, यजुवद उसका म यभाग तथा सामवेद उसका मुख और गदन है। इ और आपूत धम ही उसके दो स ग ह। अ छ -अ छ सू याँ ही उस धेनुके रोम ह, शा तकम गोबर और पु कम उसका मू है। अकार आ द वण उसके अ के आधारभूत चरण ह। स पूण जगत्का जीवन उसीसे चलता है। वह वेद यी प धेनु अ य है, उसका कभी य नह होता। वाहा (दे वय ), वधा ( पतृय ), वषट् कार (ऋ ष आ दक स ताके लये कये जानेवाले य ) तथा ह तकार (अ त थय )—ये उसके चार तन ह। वाहा प तनको दे वता, वधाको पतर, वषट् कारको मु न तथा ह तकार प तनको मनु य सदा पीते ह। इस कार यह यीमयी धेनु सबको तृ त करती है। जो मनु य उन दे वता आ दक वृ का उ छे द करता है, वह अ य त पापाचारी है। उसे अ धता म एवं ता म नरकम गरना पड़ता है। जो इस धेनुको इसके दे वता आ द बछड़ से मलाता है और उ ह उ चत समयपर पीनेका अवसर दे ता है, वह वगम जाता है। अतः बेटा! जैसे अपने शरीरका पालन-पोषण कया जाता है, उसी कार मनु यको त दन दे वता, ऋ ष, पतर, मनु य तथा अ य भूत का भी पोषण करना चा हये। इस लये ातःकाल नान करके प व हो एका च से जल ारा दे वता, ऋ ष, पतर और जाप तका तपण करना चा हये। मनु य फूल, ग ध और धूप आ द साम य से दे वता क पूजा करके आ तके ारा अ नको तृ त करे। त प ात् ब ल दे । ा और व ेदेव के उ े यसे घरके म यभागम ब ल (पूजोपहार) अपण करे। पूव और उ रके कोणम म व तरके लये ब ल तुत करे। पूव दशाम इ को, द ण दशाम यमको, प मम व णको तथा उ रम सोमको ब ल दे । घरके दरवाजेपर धाता और वधाताके लये ब ल अपण करे। घरके बाहर चार ओर अयमा दे वताके न म ब ल तुत करे। नशाचर और भूत को आकाशम ब ल दे । गृह थ पु ष एका च हो द ण दशाक ओर मुँह करके त परतापूवक पतर के उ े यसे प ड दे । तदन तर व ान् पु ष जल लेकर उ ह -उ ह थान पर उ ह -उ ह दे वता के उ े यसे आचमनके लये जल छोड़े। इस कार गृह थ पु ष घरम प व तापूवक गृह-दे वता के उ े यसे ब ल दे कर अ य भूत क तृ तके लये आदरपूवक अ का याग करे। कु ,



चा डाल तथा प य के लये पृ वीपर अ रख दे । यह वै दे व नामक कम है। इसे ातःकाल और सायंकाल आव यक बताया गया है। इसके बाद बु मान् पु ष आचमन करके कुछ कालतक अ त थक ती ा करते ए घरके दरवाजेक ओर रखे। य द कोई अ त थ वहाँ आ जाय तो यथाश अ , जल, ग ध, पु प आ दके ारा उसका स कार करे। अपने ामवासी पु षको या म को अ त थ न बनाये। जसके कुल और नाम आ दका ान न हो, जो उसी समय वहाँ उप थत आ हो, भोजनक इ छा रखता हो, थका-माँदा आया हो, अ माँगता हो, ऐसे अ क चन ा णको अ त थ कहते ह। व ान् पु ष को उ चत है क वे अपनी श के अनुसार उस अ त थका पूजन कर। उसका गो और शाखा न पूछ। उसने कहाँतक अ ययन कया है, इसक ज ासा भी न कर। उसक आकृ त सु दर हो या असु दर, उसे सा ात् जाप त समझ। वह न य थत नह रहता, इसी लये उसे अ त थ कहते ह। उसक तृ त होनेपर गृह थ पु ष मनु य-य के ऋणसे मु हो जाता है। जो उस अ त थको अ दये बना ही वयं भोजन करता है, वह मनु य पापभोजी है; वह केवल पाप भोजन करता है और सरे ज मम उसे व ा खानी पड़ती है। अ त थ जसके घरसे नराश होकर लौटता है, उसको अपना पाप दे वयं उसका पु य लेकर चल दे ता है।१ अतः मनु यको उ चत है क वह जल और साग दे कर अथवा वयं जो कुछ खाता है, उसीसे अपनी श के अनुसार आदरपूवक अ त थका पूजन करे। गृह थ पु ष त दन पतर के उ े यसे अ और जलके ारा ा करे और अनेक या एक ा णको भोजन कराये। अ मसे अ ाशन नकालकर ा णको दे । चारी और सं यासी जब भ ा माँगनेके लये आय, तब उ ह भ ा अव य दे । एक ास अ को भ ा, चार ास अ को अ ाशन और अ ाशनसे चौगुने अ को े ज ह तकार कहते ह।२ भोजनमसे अपने वैभवके अनुसार ह तकार, अ ाशन अथवा भ ा दये बना कदा प उसे हण न करे। अ त थय का पूजन करनेके बाद यजन , कुटु बय , भाई-ब धु , याचक , आकुल य , बालक , वृ तथा रो गय को भोजन कराये। इनके अ त र य द कोई सरा अ क चन मनु य भी भूखसे ाकुल होकर अ क याचना करता हो तो गृह थ पु ष वैभव होनेपर उसे अव य भोजन कराये। जो सजातीय ब धु अपने कसी धनी सजातीयके पास जाकर भी भोजनका क पाता है, वह उस क क अव थाम जो पाप कर बैठता है, उसे वह धनी मनु य भी भोगता है। सायंकालम भी इसी नयमका पालन करे। सूया त होनेपर जो



अ त थ वहाँ आ जाय, उसक यथाश श या, आसन और भोजनके ारा पूजा करे। बेटा! जो इस कार अपने कंध पर रखा आ गृह था मका भार ढोता है, उसके लये वयं ाजी, दे वता, पतर, मह ष, अ त थ, ब धु-बा धव, पशु-प ी तथा छोटे -छोटे क ड़े भी, जो उसके अ से तृ त ए रहते ह, क याणक वषा करते ह।



१. दे वपूजा, अ नहो तथा य -यागा द कम ‘इ ’ कहलाते ह। २. कुआँ और बावली खुदवाना, बगीचे लगवाना तथा धमशाला बनवाना आ द काय ‘आपूत’ धमके अ तगत ह। १-अ त थय य भ नाशो गृहात् त नवतते । स द वा कृतं त मै पु यमादाय ग छ त ।। (२९।३१) २- ास माणा भ ा याद ं ासचतु यम् । अ ं चतुगणं ु ा ह तकारं जो माः ।। (२९।३५)



ा -कमका वणन मदालसा बोली—बेटा! गृह थके कम तीन कारके ह। न य, नै म क तथा न यनै म क। इनका वणन सुनो। प चय स ब धी कम, जसका अभी वणन कया है, न य कहलाता है। पु -ज म आ दके उपल म कये ए कमको नै म क कहते ह। पवके अवसरपर जो ा आ द कये जाते ह, उ ह व ान् पु ष को न यनै म क कम समझना चा हये। उनमसे नै म क कमका वणन करती ँ। आ युद यक ा नै म क कम है, जसे पु -ज मके अवसरपर जातकम सं कारके साथ करना चा हये। ववाह आ दम भी, जस मसे वह बताया गया है, भलीभाँ त उसका अनु ान करना उ चत है। ना द मुख नामके जो पतर ह, उ ह का इसम पूजन करना चा हये और उ ह द ध म त जौके प ड दे ने चा हये। उस समय यजमानको एका च होकर उ र या पूवक ओर मुँह करके बैठना चा हये। कुछ लोग का मत है क इसम ब लवै दे व कम नह होता। आ युद यक ा म यु म ा ण को नम त करना और द णापूवक उनका पूजन करना उ चत है। यह वृ के अवसर पर कया जानेवाला नै म क ा है। इससे भ औ वदै हक ा है, जो मृ युके प ात् कया जाता है। मृत जस दन ( त थम) मरा हो, उस त थको एको ा करना चा हये; उसका वणन सुनो। उसम व ेदेव क पूजा नह होती। एक ही प व कका उपयोग कया जाता है। आवाहन तथा अ नौकरणक या भी नह होती। ा णके उ छ के समीप ेतको तल और जलके साथ अपस होकर (जनेऊको दा हने कंधेपर डालकर) उसके नाम-गो का मरण करते ए एक प ड दे ना चा हये। त प ात् हाथम जल लेकर कहे—‘अमुकके ा म दया आ अ -पान आ द अ य हो।’ यह कहकर वह जल प डपर छोड़ दे ; फर ा ण का वसजन करते समय कहे—‘अ भर यताम्’ (आपलोग सब तरहसे स ह )। उस समय ा णलोग यह कह—‘अ भरताः मः’ (हम भलीभाँ त स तु ह)। यह एको ा एक वषतक तमास करना उ चत है। वष पूरा होनेपर जब भी ा कया जाय, पहले स प डीकरण करना आव यक होता है। उसक भी व ध बतलायी जाती है—यह स प डीकरण भी व ेदेव क पूजासे र हत होता है। इसम भी एक ही अ य और एक ही प व कका वधान है। अ नौकरण और आवाहनक या इसम भी नह होती। इसम अपस होकर अयु म ा ण को भोजन कराना चा हये। इसम जो वशेष या है, उसे बतलाती ँ, एका च से सुनो। इसम तल, च दन और



जलसे यु चार पा होते ह; उनमसे तीन तो पतर के लये और एक ेतके लये होता है। ेतके पा और अ यको लेकर ‘ये समानाः समनसः पतरो यमरा ये’ इ या द म का जप करते ए पतर के तीन पा म स चना चा हये। शेष काय पूववत् करना चा हये। य के लये भी ऐसे ही एको का वधान है। य द पु न हो तो य का स प डीकरण नह होता। पु ष को उ चत है क वे य के लये भी तवष उनक मृ यु त थको व धपूवक एको ा कर। उनके लये भी पु ष के समान ही वधान है। पु के अभावम स प ड, स प डके अभावम सहोदक, उनके भी अभावम माताके स प ड१ और सहोदक२ इस व धको पूण कर। जसके कोई पु नह है, उसका ा उसके दौ ह कर सकते ह। पु ीके पु नानाका नै म क ा करनेके भी अ धकारी ह। जनक यामु यायण३ सं ा है, ऐसे पु नाना और बाबा दोन का नै म क ा म भी व धपूवक पूजन कर सकते ह। कोई भी न हो तो याँ ही अपने प तय का म ो चारण कये बना ा कर सकती ह। वे भी न ह तो राजा अपने कुटु बी मनु यसे अथवा मृतकके सजातीय मनु य ारा दाह आ द स पूण याएँ पूण कराव; य क राजा सब वण का ब धु होता है। स प डीकरणके प ात् पताके पतामह लेपभागभोजी पतर क ेणीम चले जाते ह। उ ह पतृ- प ड पानेका अ धकार नह रहता। उनसे आर भ करके चार पीढ़ ऊपरके पतर, जो अबतक पु के लेपभागका अ हण करते थे, उसके स ब धसे र हत हो जाते ह। अब उनको लेपभागका अ पानेका भी अ धकार नह रहता। वे स ब धहीन अ का उपभोग करते ह। पता, पतामह और पतामह—इन तीन पु ष को प डके अ धकारी समझना चा हये। इनसे अथात् पताके पतामहसे ऊपर जो तीन पीढ़ के पु ष ह, वे लेपभागके अ धकारी ह। इस कार छः ये और सातवाँ यजमान, सब मलाकर सात पु ष का घ न स ब ध होता है—ऐसा मु नय का कथन है। यह स ब ध यजमानसे लेकर ऊपरके लेपभागभोजी पतर तक माना जाता है। इनसे ऊपरके सभी पतर पूवज कहलाते ह। इनमसे जो नरकम नवास करते ह, जो पशु-प ीक यो नम पड़े ह तथा जो भूत- ेत आ दके पम थत ह, उन सबको व धपूवक ा करनेवाला यजमान तृ त करता है। कस कार तृ त करता है, यह बतलाती ँ; सुनो। मनु य पृ वीपर जो अ बखेरते ह, उससे पशाच-यो नम पड़े ए पतर क तृ त होती है। बेटा! नानके व से जो जल पृ वीपर टपकता है, उससे वृ -यो नम पड़े ए पतर तृ त होते ह। नहानेपर



अपने शरीरसे जो जलके कण इस पृ वीपर गरते ह, उनसे उन पतर क तृ त होती है, जो दे वभावको ा त ए ह। प ड के उठानेपर जो अ के कण पृ वीपर गरते ह, उनसे पशु-प ीक यो नम पड़े ए पतर क तृ त होती है। कुलम जो बालक ा कमके यो य होकर भी सं कारसे व चत रह गये ह अथवा जलकर मरे ह, वे बखेरे ए अ और स माजनके जलको हण करते ह। ा णलोग भोजन करके जब हाथ-मुँह धोते ह और चरण का ालन करते ह, उस जलसे भी अ या य पतर क तृ त होती है। बेटा! उ म व धसे ा करनेवाले पु ष के अ य पतर य द सरी- सरी यो नय म चले गये ह तो भी उस ा से उ ह बड़ी तृ त होती है। अ यायोपा जत धनसे जो ा कया जाता है, उससे चा डाल आ द यो नय म पड़े ए पतर तृ त होते ह। व स! इस कार यहाँ ा करनेवाले भाई-ब धु अ और जलके कणमा से अनेक पतर को तृ त करते ह। इस लये मनु यको उ चत है क वह पतर के त भ रखते ए शाकमा के ारा भी व धपूवक ा करे। ा करनेवाले पु षके कुलम कोई ःख नह भोगता। अब म न य-नै म क ा के काल बतलाती ँ और मनु य जस व धसे ा करते ह, उसका भी वणन करती ँ; सुनो। येक मासक अमाव याको जस दन च माक स पूण कलाएँ ीण हो गयी ह तथा अ का१ त थय को अव य ा करना चा हये। अब ा का इ छा ा त काल सुनो। कसी वश ा णके आनेपर, सूय हण और च हणम, अयन आर भ होनेपर, वषुवयोगम२, सूयक सं ा तके दन, तीपात योगम, साम ीक ा त होनेपर, ः व दखायी दे नेपर, ज म-न हज नत पीड़ा होनेपर वे छासे ा का अनु ान करे। े



ा ण,



ो य, योगी, वेद , ये



सामग,



ा के यो य के दन एवं



णा चकेत३,



मधु४,



सुप ण५, षड वे ा, दौ ह , ऋ वक्, जामाता, भानजा, प चा न-कमम त पर, तप वी, मामा, माता- पताके भ , श य, स ब धी एवं भाई-ब धु—ये सभी ा म उ म माने गये ह। इ ह नम त करना चा हये। धम , रोगी, हीना , अ धका , दो बार याही गयी ीके गभसे उ प , काना, प तके जीते-जी जार पु षसे पैदा क ई स तान, प तके मरनेपर परपु षसे उ प ई स तान, म ोही, खराब नख वाला, नपुंसक, काले दाँत वाला, कु प, पताके ारा कलङ् कत, चुगलखोर, सोमरस बेचनेवाला, क याको षत करनेवाला, वै , गु एवं माता- पताका याग करनेवाला, वेतन लेकर पढ़ानेवाला, श ु, जो पहले सरे पु षक प नी रह चुक हो, ऐसी ीका प त, वेदा ययन तथा



अ नहो का याग करनेवाला, शू जातीय ीके प त होनेके दोषसे षत तथा शा व कमम लगे रहनेवाले अ या य ज ा म याग दे ने यो य ह। पहले बताये ए े ज को दे वय अथवा ा म एक दन पहले ही नम ण दे ना चा हये। उसी समयसे ा ण तथा ा कताको भी संयमसे रहना चा हये। जो ा म दान दे कर अथवा ा म भोजन करके मैथुन करता है, उसके रज-वीयम एक मासतक पतर को शयन करना पड़ता है। जो ीसहवास करके ा म जाता और खाता है, उसके पतर उसीके वीय और मू का एक मासतक आहार करते ह। इस लये बु मान् पु षको एक दन पहले ही ा ण के पास नम ण भेजना चा हये। य द पहले दन ा ण न मल सक तो भी ा के दन ी- संगी ा ण को कदा प भोजन न कराये। ब क समयपर भ ाके लये वतः पधारे ए संयमी य तय को नम कार आ दसे स करके शु च से भोजन कराये। जैसे शु ल-प क अपे ा कृ णप पतर को वशेष य है, वैसे ही पूवा क अपे ा अपरा उ ह अ धक य है। घरपर आये ए ा ण का वागतपूवक पूजन करके उ ह प व यु हाथसे आचमन करानेके बाद आसन पर बठावे। ा म वषम और दे वय म सम सं याके ा ण को नम त करे अथवा अपनी श के अनुसार दोन काय म एक-ही-एक ा णको भोजन कराये। यही बात मातामह के ा म भी होनी चा हये। व ेदेव का ा भी ऐसा ही है। कुछ लोग का ऐसा मत है क पतर और मातामह के व ेदेव-कम पृथक्-पृथक् ह। दे व- ा म ा ण को पूवा भमुख और पतृ- ा म उ रा भमुख बठाना चा हये। मातामह के ा म भी मनीषी पु ष ने इसी व धका तपादन कया है। पहले ा ण को बैठनेके लये कुश दे कर व ान् पु ष अ य आ दसे उनक पूजा करे। फर उ ह प व क आ द दे उनसे आ ा लेकर म ो चारणपूवक दे वता का आवाहन करे। त प ात् जौ और जल आ दसे व ेदेव को अ य दे कर ग ध, पु प, माला, जल, धूप और द प आ द व धपूवक नवेदन करे। पतर के लये ये सारी व तुएँ अपस होकर तुत करनी चा हये। पतृा म बैठे ए ा ण को आसनके लये गुणभु न (दोहरे मुड़े ए) कुश दे कर उनक आ ा ले व ान् पु ष म ो चारणपूवक पतर का आवाहन करे और अपस होकर पतर क स ताके लये त पर हो उ ह अ य नवेदन करे। उसम जौके थानपर तल का उपयोग करना चा हये। तदन तर ा ण के आ ा दे नेपर अ नकाय करे। नमक और नसे र हत अ लेकर व धपूवक अ नम आ त दे । ‘अ नये क वाहनाय वाहा’ इस म से पहली आ त दे , ‘सोमाय पतृमते वाहा’ इस म से सरी आ त दे तथा



‘यमाय ेतपतये वाहा’ इस म से तीसरी आ तको अ नम डाले। आ तसे बचे ए अ को ा ण के पा म परोसे। फर पा म हाथका सहारा दे व धपूवक कुछ और अ डाले एवं कोमल वचन म ाथना करे क अब आपलोग सुखसे भोजन क जये। फर उन ा ण को चा हये क वे एका च एवं मौन होकर सुखपूवक भोजन कर। जो-जो अ उ ह अ य त य लगे, वह-वह तुरंत उनके सामने तुत करे। उस समय ोधको याग दे और ा ण को आ हपूवक लोभन दे -दे भोजन कराये। उनके भोजनकालम र ाके लये पृ वीपर तल और सरस बखेरे तथा र ो न म का पाठ करे; य क ा म अनेक कारके व न उप थत होते ह। जब ा णलोग पूण भोजन कर ल तो पूछे—‘ या आपलोग भलीभाँ त तृ त हो गये?’ इसके उ रम ा ण कह—‘हाँ, हम पूण तृ त हो गये।’ फर उनक आ ा लेकर पृ वीपर सब ओर कुछ अ बखेरे। इसी कार आचमन करनेके लये एक-एक ा णको बारी-बारीसे जल दे । त प ात् फर उनक आ ा ले मन, वाणी और शरीरको संयमम रखकर तलस हत स पूण अ से पतर के लये पृथक्-पृथक् प ड दे । यह प डदान ा ण के उ छ के समीप ही कुश पर करना चा हये; फर पतृतीथसे१ उन प ड पर एका च से जल दे । इसी कार मातामह आ दके लये भी व धपूवक प डदान दे कर ग ध-माला आ दके साथ आचमनके लये जल दे । अ तम यथाश द णा दे कर ा ण से कहे —‘सु वधा अ तु’ (यह ा कम भलीभाँ त स प हो)। ा ण भी स तु होकर ‘तथा तु’ कह। फर व ेदेव-स ब धी ा ण से कहे—‘हे व ेदेवगण! आपका क याण हो। आपलोग स रह।’ तब ा णलोग ‘तथा तु’ कह। इसके बाद उनसे आशीवादक याचना करे और य वचन कहते ए भ पूवक णाम करके उ ह वदा दे । दरवाजेतक उ ह प ँचानेके लये पीछे पीछे जाय और उनक आ ा लेकर लौटे । तदन तर न य या करे और अ त थय को भोजन कराये। क ह - क ह े पु ष का वचार है क यह न यकम भी पतर के ही उ े यसे होता है। सरे लोग ऐसा कहते ह क इससे पतर का कोई स ब ध नह है। शेष काय पूववत् करे। क ह - क ह का मत है क पतर के लये पृथक् पाक बनाकर ा करना चा हये। कुछ लोग का वचार है—ऐसा नह करना चा हये। इसके बाद यजमान अपने भृ य आ दके साथ अव श अ भोजन करे। धम पु षको इसी कार एका च होकर पतर का ा करना चा हये और जस कार ा ण को स तोष हो, वैसी चे ा करनी चा हये। ा म दौ ह (पु ीका पु ), कुतप ( दनके पं ह भाग मसे आठवाँ भाग) और तल—



ये तीन अ य त प व माने गये ह। ा म आये ा ण को तीन बात छोड़ दे नी चा हये— ोध, मागका चलना और उतावली।* बेटा! ा म चाँद का पा ब त उ म माना गया है। उसम चाँद का दशन या दान अव य करना चा हये। सुना जाता है, पतर ने चाँद के पा म ही गो पधा रणी पृ वीसे वधाका दोहन कया था। अतः पतर को चाँद का दान अभी एवं स ता बढ़ानेवाला है।



१. पतासे लेकर ऊपरक सात पीढ़ तक और मातासे लेकर नाना आ द पाँच पीढ़ तक स प डता मानी जाती है। कसीके मतम छः पीढ़ ऊपर और छः पीढ़ नीचेतकके लोग स प डक गणनाम आते ह। २. जनक यारहव से लेकर चौदहव तक ऊपरक पीढ़ एक हो, वे सहोदक या समानोदक कहलाते ह। ३. वह पु , जो एकसे तो उ प आ हो और सरेके ारा द कके पम हण कया हो और दोन पता उसको अपना-अपना पु मानते ह , यामु यायण (दोन का) कहलाता है। ऐसा पु दोन को प डदान दे ता है और दोन क स प का अ धकारी होता है। १. पौष, माघ, फा गुन तथा चै के कृ णप क अ मय को अ का कहते ह। २. जस समय सूय वषुव रेखापर प ँचते और दन-रात बराबर होते ह, उसे ‘ वषुव’ कहते ह। ३. तीय कठके अ तगत ‘अयं वाव यः पवते’ इ या द तीन णा चकेत नामक अनुवाक को पढ़ने या उसका अनु ान करनेवाला। ४. ‘मधु वाता०’ इ या द ऋचाका अ ययन और मधु तका आचरण करनेवाला। ५. ‘ मेतु माम्’ इ या द तीन अनुवाक का अ ययन और त स ब धी त करनेवाला। १. अंगठ ू ा और तजनीके बीचका भाग। *



ीण वरा ।।



ा े प व ा ण दौ ह ं कुतप तलाः । व या न चा व े ै ः कोपोऽ वगमनं (३१।६४)



ा म व हत और न ष व तुका वणन तथा गृह थो चत सदाचारका न पण मदालसा कहती है—बेटा! भ पूवक लायी ई कौन व तु पतर को य है और कौन व तु अ य, इस बातका वणन करती ँ; सुनो। ह व या से पतर को एक मासतक तृ त बनी रहती है। गायका ध अथवा उसम बनी ई खीर उ ह एक वषतक तृ त रखती है। जस क याका ववाह गौरी-अव थाम आ है, उससे उ प पु से और गयाके ा से पतर अन तकालतक तृ त रहते ह, इसम त नक भी स दे ह नह है। अ म यामाक (सावाँ), राज यामाक, सा तका, नीवार और पौ कल—ये पतर को तृ त करनेवाले ह। जौ, धान, गे ँ, तल, मूँग, सरस , कँगनी, कोदो और मटर—ये ब त ही उ म ह। मकई, काला उड़द, व ू ष और मसूर—ये ा कमम न दत माने गये ह। लहसुन, गाजर, याज, मूली, स ू, रस और वणसे हीन अ या य व तुए,ँ गा धा रक, लौक , खारा नमक, लाल ग द, भोजनके साथ पृथक् नमक—ये ा म व जत ह। इसी कार जसक वाणीसे कभी शंसा नह क जाती, वह व तु ा म न ष है। सूदम मला आ, प तत मनु य के यहाँसे आया आ, अ यायसे तथा क याको बेचनेसे ा त कया आ धन ा के लये अ य त न दत है। ग धत, फेनयु , थोड़े जलवाले सरोवरसे लाया आ, जहाँ गायक यास न बुझ सके—ऐसे थानसे ा त कया आ, रातका भरा आ, सब लोग का छोड़ा आ, अपेय तथा प सलेका जल ा म सदा ही व जत है। मृगी, भेड़, ऊँटनी, घोड़ी आ द, भस और चँवरी गायका ध ा म न ष है। हालक यायी ई गौका भी दस दनके भीतरका ध व जत है। ‘मुझे ा के लये ध दो’ य कहकर लाया आ ध भी ा कमम हण करनेयो य नह है। जहाँ ब त-से ज तु रहते ह , जो खी और आगसे जली ई हो, जहाँ अ न एवं श द सुनायी पड़ते ह , जो भयानक ग धसे भरी हो—ऐसी भू म ा कमम व जत है। कुलका अपमान तथा हसा करनेवाले, कुलाधम, ह यारा, रोगी, चा डाल, न न और पातक —ये अपनी से ा कमको षत कर दे ते ह। नपुंसक, जा तब ह कृत, मुगा, ामीण सूअर, कु ा और रा स भी अपनी से ा को न कर दे ते ह। इस लये चार ओरसे ओट करके ा करे। पृ वीपर तल बखेरे। ऐसा करनेसे ा म र ा होती है। ा क जस व तुको मरणाशौच या जननाशौचसे यु मनु य छू दे , ब त दन का रोगी, प तत एवं म लन पु ष पश कर ले, वह पतर क पु नह



करती। इस लये ा म ऐसी व तुका याग करना चा हये। रज वला ीक ा म व जत है। सं यासी और जुआ रय का आना-जाना भी रोकना चा हये। जसम बाल और क ड़े पड़ गये ह , जसे कु ने दे ख लया हो, जो बासी एवं ग धत हो—ऐसी व तुका ा म उपयोग न करे। बगन और शराबका भी याग करे। जस अ पर पहने ए व क हवा लग जाय, वह भी ा म व जत है। पतर को उनके नाम और गो का उ चारण करके पूण ाके साथ जो कुछ दया जाता है, वह वे जैसा आहार करते होते ह, उसी पम उ ह ा त होता है। इस लये पतर क तृ त चाहनेवाले ालु पु षको उ चत है क जो व तु उ म हो, वही ा म सुपा ा णको दान करे। व ान् पु ष योगी पु ष को सदा ही ा म भोजन कराये; य क पतर का आधार योग ही है। इस लये यो गय का सवदा पूजन करे। हजार ा ण क अपे ा य द एक ही योगीको पहले भोजन करा दया जाय तो वह पानीसे नौकाक भाँ त यजमान और ा भोजी ा ण का भवसागरसे उ ार कर दे ता है। इस वषयम वाद पु ष उस पतृगाथाका गान कया करते ह, जसे पूवकालम राजा पु रवाके पतर ने गाया था। ‘हमारी वंशपर पराम कसीको ऐसा े पु कब उ प होगा, जो यो गय को भोजन करानेसे बचे ए अ को लेकर पृ वीपर हमारे लये प ड दे गा। अथवा गयाम जाकर उ म ह व यका प ड, साम यक शाक एवं तल- मली ई खचड़ी दे गा। ये व तुएँ हम एक मासतक तृ त रखनेवाली ह। योदशी त थ और मघा न म व धपूवक ा करे तथा द णायनम मधु और घीसे मली ई खीर दे ।’ इस लये पु ! स पूण कामना क ा त तथा पापसे मु चाहनेवाले येक मनु यको उ चत है क वह भ पूवक पतर क पूजा करे। ा म तृ त कये ए पतर मनु य पर वसु, , आ द य, न , ह और तार क स ताका संपादन करते ह। ा म तृ त पतर आयु, ा, धन, व ा, वग, मो , सुख तथा रा य दान करते ह। बेटा! इस कार गृह थ पु षको ह से दे वता का, क ( ा )से पतर का और अ से अ त थय एवं भाई-ब धु का पूजन करना चा हये। इनके सवा भूत, ेत, सम त भृ यगण, पशु-प ी, च ट , वृ तथा अ या य याचक क तृ त भी सदाचारी गृह थ पु षको करनी चा हये। जो न यनै म क या का उ लङ् घन करके पूजन करता है, वह पाप भोगता है। अलक बोले—माताजी! आपने पु षके न य, नै म क तथा न यनै म क—ये तीन कारके कम बतलाये। अब म आपके मुँहसे सदाचारका



वणन सुनना चाहता ँ, जसका पालन करनेवाला मनु य इस लोक और परलोकम भी सुख पाता है। मदालसाने कहा—बेटा! गृह थ पु षको सदा ही सदाचारका पालन करना चा हये। आचारहीन मनु यको न इस लोकम सुख मलता है, न परलोकम। जो सदाचारका उ लङ् घन करके मनमाना बताव करता है, उस पु षका क याण य , दान और तप यासे भी नह होता। राचारी पु षको इस लोकम बड़ी आयु नह मलती। अतः सदाचारके पालनका सदा ही य न करे। सदाचार बुरे ल ण का नाश करता है। व स! अब म सदाचारका व प बतलाती ँ, तुम एका च होकर सुनो और उसका पालन करो। गृह थको धम, अथ और काम —तीन साधनका य न करना चा हये। उनके स होनेपर उसे इस लोक और परलोकम भी स ा त होती है। मनको वशम करके अपनी आयका एक चौथाई भाग पारलौ कक लाभके लये संगह ृ ीत करे। आधे भागसे न यनै म क काय का नवाह करते ए अपना भरण-पोषण करे तथा एक चौथाई भाग अपने लये मूल पूँजीके पम रखकर उसे बढ़ावे। बेटा! ऐसा करनेसे धन सफल होता है। इसी कार पापक नवृ तथा पारलौ कक उ तके लये व ान् पु ष धमका अनु ान करे। ा मु तम उठे । उठकर धम और अथका च तन करे। अथके कारण जो शरीरको क उठाना पड़ता है, उसका भी वचार करे। फर वेदके ता वक अथ—पर परमा माका मरण करे। इसके बाद शयनसे उठकर न यकमसे नवृ हो, नान आ दसे प व होकर मनको संयमम रखते ए पूवा भमुख बैठे और आचमन करके स योपासन करे। ातःकालक स या उस समय आर भ करे, जब तारे दखायी दे ते ह । इसी कार सायंकालक स योपासना सूया तसे पहले ही व धपूवक आर भ करे। आप कालके सवा और कसी समय उसका याग न करे।* बुरी-बुरी बात बकना, झूठ बोलना, कठोर वचन मुँहसे नकालना, असत् शा पढ़ना, ना तकवादको अपनाना तथा पु ष क सेवा करना छोड़ दे । मनको वशम रखते ए त दन सायंकाल और ातःकाल हवन करे। उदय और अ तके समय सूयम डलका दशन न करे। बाल सँवारना, आईना दे खना, दातुन करना और दे वता का तपण करना—यह सब काय पूवा कालम ही करना चा हये। ाम, नवास थान, तीथ और े के मागम, जोते ए खेतम तथा गोशालाम मल-मू न करे। परायी ीको नंगी अव थाम न दे खे। अपनी व ापर पात न करे। रज वला ीका दशन, पश तथा उसके साथ भाषण भी व जत है। पानीम मल-मू का याग अथवा मैथुन न करे। बु मान् पु ष मल-मू , केश, राख, खोपड़ी, भूसी, कोयले, ह य के चूण, र सी, व



आ दपर तथा केवल पृ वीपर और मागम कभी न बैठे। गृह थ मनु य अपने वैभवके अनुसार दे वता, पतर, मनु य तथा अ या य ा णय का पूजन करके पीछे भोजन करे। भलीभाँ त आचमन करके हाथ-पैर धोकर प व हो पूव या उ रक ओर मुँह करके भोजनके लये आसनपर बैठे और हाथ को घुटन के भीतर करके मौनभावसे भोजन करे। भोजनके समय मनको अ य न ले जाय। य द अ कसी कारक हा न करनेवाला हो तो उस हा नको ही बतावे। उसके सवा अ के और कसी दोषक चचा न करे। भोजनके साथ पृथक् नमक लेकर न खाय। अ धक गम अ खाना भी ठ क नह है। मनु यको चा हये क खड़े होकर या चलते-चलते मल-मू का याग, आचमन तथा कुछ भी भ ण न करे। जूठे मुँह वातालाप न करे तथा उस अव थाम वा याय भी व जत है। जूठे हाथसे गौ, ा ण, अ न तथा अपने म तकका भी पश न करे। जूठ अव थाम सूय, च मा और तार क ओर जान-बूझकर न दे खे। सरेके आसन, श या और बतनका भी पश न करे। गु जन के आनेपर उ ह बैठनेको आसन दे , उठकर णामपूवक उनका वागत-स कार करे। उनके अनुकूल बातचीत करे। जाते समय उनके पीछे -पीछे जाय, कोई तकूल बात न करे। एक व धारण करके भोजन तथा दे वपूजन न करे। बु मान् पु ष ा ण से बोझ न ढु लाये और आगम मू - याग न करे। न न होकर कभी नान अथवा शयन न करे। दोन हाथ से सर न खुजलाये। बना कारण बारंबार सरके ऊपरसे नान न करे। सरसे नान कर लेनेपर कसी भी अ म तेल न लगाये। सब अन याय के दन वा याय बंद रखे। ा ण, अ न, गौ तथा सूयक ओर मुँह करके पेशाब न करे। दनम उ रक ओर और रा म द णक ओर मुँह करके मल-मू का याग करे। जहाँ ऐसा करनेम कोई बाधा हो, वहाँ इ छानुसार करे। गु के कमक चचा न करे। य द वे ु ह तो उ ह वनयपूवक स करे। सरे लोग भी य द गु क न दा करते ह तो उसे न सुने। ा ण, राजा, ःखसे आतुर मनु य, व ा-वृ पु ष, ग भणी ी, बोझसे ाकुल मनु य, गूँगा, अ धा, बहरा, म , उ म , भचा रणी ी, श ु, बालक और प तत—ये य द सामनेसे आते ह तो वयं कनारे हटकर इनको जानेके लये माग दे ना चा हये। व ान् पु ष दे वालय, चै यवृ , चौराहा, व ा-वृ पु ष, गु और दे वता—इनको दा हने करके चले। सर के धारण कये ए जूते और व वयं न पहने। सर के उपयोगम आये ए य ोपवीत, आभूषण और कम डलुका भी याग करे। चतुदशी, अ मी, पू णमा तथा पवके दन तैला य एवं ी-सहवास न करे। बु मान् मनु य कभी पैर और जङ् घा फैलाकर न खड़ा हो। पैर को न हलाये तथा पैरको पैरसे



न दबाये। कसीको चुभती बात न कहे। न दा और चुगली छोड़ दे । द भ, अ भमान और तीखा वहार कदा प न करे। मूख, उ म , सनी, कु प, मायावी, हीना तथा अ धका मनु य क ख ली न उड़ाये। पु और श यको श ा दे नेके लये आव यकता होनेपर उ ह को द ड दे , सर को नह । आसनको पैरसे ख चकर न बैठे। सायंकाल और ातःकाल पहले अ त थका स कार करके फर वयं भोजन करे। व स! सदा पूव या उ रक ओर मुँह करके ही दातुन करे। दातुन करते समय मौन रहे। दातुनके लये न ष वृ का प र याग करे। उ र और प मक ओर सर करके कभी न सोये। द ण या पूव दशाक ओर ही म तक करके सोये। ग ध-यु जलम नान न करे। रा म न नहाये, हणके समय रा म भी नान करना ब त उ म है; इसके सवा अ य समयम दनम ही नानका वधान है। नान कर लेनेके बाद हाथ या कपड़ेसे शरीरको न मले। बाल और व को न फटकारे। व ान् पु ष बना नान कये कभी च दन न लगाये। लाल, रंग- बरंगे और काले रंगके कपड़े न पहने। जसम बाल, थूक या क ड़े पड़ गये ह , जसपर कु ेक पड़ी हो, जसको कसीने चाट लया हो अथवा जो सारभाग नकाल लेनेके कारण षत हो गया हो, ऐसे अ को न खाय। ब त दे रके बने ए और बासी भातको याग दे । पीठ , साग, ईखके रस और धक बनी ई व तुएँ भी य द ब त दन क ह तो उ ह न खाये। सूयके उदय और अ तके समय शयन न करे। बना नहाये, बना बैठे, अ यमन क होकर, श यापर बैठकर या सोकर, केवल पृ वीपर बैठकर, बोलते ए, एक कपड़ा पहनकर तथा भोजनक ओर दे खनेवाले पु ष को न दे कर मनु य कदा प भोजन न करे। सबेरे-शाम दोन समय भोजनक यही व ध है। व ान् पु षको कभी परायी ीके साथ समागम नह करना चा हये। पर ी-संगम मनु य के इ , पूत और आयुका नाश करनेवाला है। इस संसारम पर ी-समागमके समान मनु यक आयुका वघातक काय सरा कोई नह है। दे वपूजा, अ नहो , गु जन को णाम तथा भोजन भलीभाँ त आचमन करके करना चा हये। व छ, फेनर हत, ग धशू य और प व जल लेकर पूव या उ रक ओर मुँह करके आचमन करना चा हये। जलके भीतरक , घरक , बाँबीक , चूहेके बलक और शौचसे बची ई—ये पाँच कारक म याँ याग दे ने यो य ह। हाथ-पैर धोकर एका च से माजन करके, घुटन को समेटकर, दो बार मुँहके दोन कनार को प छे ; फर स पूण इ य और म तकका पश करके जलसे भलीभाँ त तीन बार आचमन करे। इस कार प व होकर समा हत- च से सदा दे वता , पतर और ऋ षय क या करनी चा हये।



थूकने, खँखारने और कपड़ा पहननेपर बु मान् पु ष आचमन करे। छ कने, चाटने, वमन करने, थूकने आ दके प ात् आचमन, गायके पीठका पश, सूयका दशन करना तथा दा हने कानको छू लेना चा हये। इनम पहलेके अभावम सरा उपाय करना चा हये। दाँत को न कटकटाये। अपने शरीरपर ताल न दे । दोन सं या के समय अ ययन, भोजन और शयनका याग करे। स याकालम मैथुन और रा ता चलना भी न ष है। बेटा! पूवा कालम दे वता का, म या कालम मनु य (अ त थय )-का तथा अपरा कालम पतर का भ पूवक पूजन करना चा हये। सरसे नान करके दे वकाय या पतृकायम वृ होना उ चत है। पूव या उ रक ओर मुँह करके ौर कराये। उ म कुलम उ प होनेपर भी जो क या कसी अ से हीन, रो गणी, वकृत पवाली, पीले रंगक , अ धक बोलनेवाली तथा सबके ारा न दत हो, उसके साथ ववाह न करे। जो कसी अ से हीन न हो, जसक ना सका सु दर हो तथा जो सभी उ म ल ण से सुशो भत हो, वैसी ही क याके साथ क याणकामी पु षको ववाह करना चा हये। पु षको उ चत है क ीक र ा करे, दनम शयन और मैथुन न करे। सर को क दे नेवाला काय न करे, कसी जीवको पीड़ा न दे । रज वला ी चार रात तक सभी वणके पु ष के लये या य है। य द क याका ज म रोकना हो तो पाँचव रातम भी ी-सहवास न करे। छठ रात आनेपर ीके पास जाय; य क यु म रा याँ ही इसके लये े ह। यु म रा य म ी-सहवाससे पु का ज म होता है और अयु म रा य म गभाधान करनेसे क या उ प होती है; अतः पु क इ छा रखनेवाला पु ष यु म रा य म ही ीके साथ शयन करे। पूवा म मैथुन करनेसे वधम और स याकालम करनेसे नपुंसक पु उ प होता है। बेटा! हजामत बनवाने, वमन होने, ी- स करने तथा मशानभू मम जानेपर व स हत नान करे। दे वता, वेद, ज, साधु, स चे महा मा, गु , प त ता, य कता और तप वी—इनक न दा अथवा प रहास न करे। य द कोई उ ड मनु य ऐसा करता हो तो उसक बात सुने भी नह । अपनेसे े और अपनेसे नीचे य क श या और आसनपर न बैठे। अम लमय वेश न धारण करे और मुखसे अमा लक वचन भी न बोले। व छ व पहने और ेत पु प क माला धारण करे। उ ड, उ म , अ वनीत, शीलहीन, चोरी आ दसे षत, अ धक अप यी, लोभी, वैरी, कुलटाके प त, अ धक बलवान्, अ धक बल, लोकम न दत तथा सबपर स दे ह करनेवाले लोग से कभी म ता न करे। साधु, सदाचारी, व ान्, चुगली न करनेवाले, साम यवान् तथा



उ ोगी पु ष से म ता था पत करे। व ान् पु ष वेद- व ा एवं तम न णात पु ष के साथ बैठे। म , द ा ा त पु ष, राजा, नातक, शुर तथा ऋ वक् —इन छः पूजनीय पु ष का घर आनेपर पूजन करे। जो ज संव सर तको पूरा करके घरपर आव, उनक अपने वैभवके अनुसार यथासमय आल य याग करके पूजा करे और क याणकामी पु ष उनक आ ाका पालन करनेके लये सदा उ त रहे। बु मान् पु षको चा हये क उन ा ण के फटकारनेपर भी कभी उनके साथ ववाद न करे। घरके दे वता का यथा थान भलीभाँ त पूजन करके अ न- थापनपूवक उसम आ त दे । पहली आ त ाको, सरी जाप तको, तीसरी गु क को, चौथी क यपको तथा पाँचव अनुम तको दे । फर पूवकथनानुसार गृहब ल दे कर वै दे वब ल दे । दे वता के लये पृथक्-पृथक् थानका वभाग करके उनके लये ब ल अ पत करे। उसका म बतलाती ँ, सुनो। एक पा म पहले पज य, जल और पृ वीको तीन ब ल दे । फर ाची आ द येक दशाम वायुको ब ल दे कर मशः उन-उन दशा के नामसे भी ब ल सम पत करे। त प ात् ा, अ त र , सूय, व ेदेव, व भूत, उषा तथा भूतप तको मशः ब ल दे । फर ‘ पतृ यः वधा नमः’ कहकर द ण दशाम अपस होकर पतर के न म ब ल दे । फर पा से अ का शेष भाग और जल लेकर ‘य मैत े नणजनम्’ इस म से वाय दशाम उसे व धपूवक छोड़ दे । तदन तर रसोईके अ से अ ाशन तथा ह तकार नकालकर उ ह व धपूवक ा णको दे । दे वता आ दके सब कम उन-उनके तीथसे ही करने चा हये। ा तीथसे आचमन करना चा हये, दा हने हाथम अँगठ ू े के उ र ओर जो एक रेखा होती है, वह ा तीथके नामसे स है। उसीसे आचमन करना उ चत है। तजनी और अँगठ ू े के बीचका भाग पतृतीथ कहलाता है। ना द मुख पतर को छोड़कर अ य सब पतर को उसी तीथसे जल आ द दे ना चा हये। अँगु लय के अ भागम दे वतीथ है। उससे दे वकाय करनेका वधान है। क न काके मूल भागम कायतीथ है। उससे जाप तका काय कया जाता है। इस कार इन तीथ से सदा दे वता और पतर के काय करने चा हये, अ य तीथ से कदा प नह । ा तीथसे आचमन उ म माना गया है। पतर का तपण पतृतीथसे, दे वता का दे वतीथसे और जाप तका कायतीथसे करना े बताया गया है। ना द मुखके पतर के लये प डदान और तपण ाजाप य तीथसे करना चा हये। व ान् पु ष एक साथ जल और अ न न ले। गु जन तथा दे वता क ओर पाँव न फैलाये। बछड़ेको ध पलाती ई गायको न छे ड़े। अ लसे पानी न पये। शौचके समय वल ब न करे। मुखसे आग न



फूँके। बेटा! जहाँ ऋण दे नेवाला धनी, वै , ो य ा ण तथा जलपूण नद —ये चार न ह , वहाँ नवास नह करना चा हये। जहाँ श ु वजयी, बलवान् और धमपरायण राजा हो, वह व ान् पु षको नवास करना चा हये। राजाके रा यम सुख कहाँ। जहाँ धष राजा, उपजाऊ भू म, संयमी एवं यायशील पुरवासी और ई या न करनेवाले लोग ह , वह का नवास भ व यम सुखदायक होता है। जस रा म कसान ब त ह , क तु वे अ धक भोगपरायण न ह तथा जहाँ सब तरहके अ पैदा होते ह , वह बु मान् पु षको रहना चा हये। बेटा! जहाँ वजयका इ छु क, पहलेका श ु तथा सदा उ सव मनानेम ही लगे रहनेवाले लोग—ये तीन सदा रहते ह , वहाँ नवास न करे। व ान् पु षको ऐसे ही थान पर सदा नवास करना चा हये, जहाँके सहवासी सुशील ह ।



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पूवा स यां सन



ां प मां स दवाकराम् । उपासीत यथा यायं नैनां ज ादनाप द ।। (३४।१८)



या य- ा , शु , अशौच- नणय तथा कत ाकत का वणन मदालसा कहती है—बेटा! अब या य और ा व तु का करण आर भ करती ँ, सुनो। घी अथवा तेलम पका आ अ ब त दे रका बना आ अथवा बासी भी हो तो वह भोजन करने यो य है। गे ,ँ जौ तथा गोरसक बनी ई व तुएँ तेल-घीम न बनी ह तो भी वे पूववत् ा ह।* शङ् ख, प थर, सोना, चाँद , र सी, कपड़ा, साग, मूल, फल, वदल (बाँसके बने ए टोकरे आ द), म ण, हीरा, मूँगा, मोती तथा मनु य के शरीरक शु जलसे होती है। लोहेके ह थयार क शु पानीसे धोने तथा प थर या सानपर रगड़नेसे होती है। जस पा म तेल या घी रखा गया हो, उसक सफाई गरम जलसे होती है। सूप, धा यरा श, मृगचम, मूसल, ओखली तथा कपड़ के ढे रक शु जल छड़कनेमा से हो जाती है। व कल व जल और म से शु होते ह। तृण, का और ओष धय क शु जल छड़कनेसे होती है। भेड़के ऊनसे बने कपड़े और केश य द दोषयु हो गये ह तो उनक शु सरस अथवा तलक खली और जलसे होती है। इसी कार ईके बने कपड़े पानी और ारसे शु होते ह। म के बतन बारा पकानेसे शु होते ह। भ ाम ा त अ , कारीगरका हाथ, बाजारम बकनेके लये आयी ई शाक आ द व तुए,ँ य का मुख, गलीसे आयी ई व तु, जसके गुण-दोषका ान न हो—ऐसी व तु और सेवक क लायी ई चीज सदा शु मानी गयी है। जसके शशुने अभी ध पीना नह छोड़ा हो, ऐसी ी तथा ग ध और बुदबुद से र हत बहता आ जल वाभा वक शु है। समयानुसार अ नसे तपाने, बुहारने, गाय के चलने- फरने, लीपने, जोतने और स चनेसे भू मक शु होती है। बुहारनेसे और दे वता क पूजा करनेसे घर शु होता है। जस पा म बाल या क ड़े पड़े ह , जसे गायने सूँघ लया हो तथा जसम म खयाँ पड़ी ह , उसक शु राख और म से मलकर जल ारा धोनेसे होती है। ताँबेका बतन खटाईसे, राँगा और सीसा राखसे और काँसेके बतन क शु राख और जलसे होती है। जस पा म कोई अप व व तु पड़ गयी हो, उसे म और जलसे तबतक धोये, जबतक क उसक ग ध र न हो जाय। इससे वह शु होता है। पृ वीपर ाकृ तक पसे वतमान जल, जससे एक गायक यास बुझ सके, शु माना गया है। गलीम पड़ा आ व वायुके लगनेसे शु होता है। धूल, अ न, घोड़ा, गाय, छाया, करण, वायु, जलके छ टे और म खी आ द—ये सब अशु व तुके



संसगम आनेपर भी शु ही रहते ह। बकरे और घोड़ेका मुख शु माना गया है; क तु गायका नह । बछड़ेका मुख तथा माताका तन भी प व बताया गया है। फल गरानेम प ीक च च भी शु मानी गयी है। आसन, श या, सवारी, नाव और मागके तृण—ये सब बाजारम बकनेवाली व तु क तरह सूय और च माक करण तथा वायुके पशसे शु होते ह। ग लय म घूमने- फरने, नान करने, छ क आने, पानी पीने, भोजन करने तथा व बदलनेपर व धपूवक आचमन करना चा हये। अ पृ य व तु से जनका पश हो गया हो उनक , रा तेके क चड़ और जलक तथा टक बनी ई व तु क वायुके संसगसे शु होती है। अनजानम य द षत अ भोजन कर ले तो तीन रात उपवास करे और य द जान-बूझकर कया हो तो उसके दोषक शा तके लये ाय करे। मनु यक गीली ह ीका पश करके नान करनेसे शु होती है और सूखी ह ीका पश कर लेनेपर केवल आचमन करके गायका पश या सूयका दशन करनेसे मनु य शु हो सकता है। बु मान् पु ष र , खँखार तथा उबटनको न लाँघे और असमयम उ ान आ दके भीतर कदा प न ठहरे। लोक न दत वधवा ीसे वातालाप न करे। जूँठन, मल-मू और पैर के धोवनको घरसे बाहर फके। सरेके खुदाये ए पोखरे आ दके जलम पाँच ल दा म नकाले बना नान न करे। दे वतास ब धी सरोवर तथा ग ा आ द न दय म सदा ही नान करे। दे वता, पतर, उ म शा , य और म आ दक न दा करनेवाले पु ष से पश और वातालाप करनेपर सूयके दशनसे शु होती है। रज वला ी, अ यज, प तत, मृतक, वधम , सूता ी, नपुंसक, व हीन, चा डाल, मुदा ढोनेवाले तथा पर ीगामी पु ष को दे खकर व ान् पु ष को इसी कार सूयके दशनसे आ मशु करनी चा हये। अभ य पदाथ, नव सूता ी, नपुंसक, बलाव, चूहा, कु ा, मुगा, प तत, जा त-ब ह कृत, चा डाल, मुदा ढोनेवाले, रज वला ी, ामीण सूअर तथा अशौच षत मनु य को छू लेनेपर नान करनेसे शु होती है। जसके घरम त दन न यकमक अवहेलना होती हो तथा जसे ा ण ने याग दया हो, वह नराधम महापापी है। न यकमका याग कभी न करे। उसे न करनेका ब धन तो केवल जननाशौच और मरणाशौचम ही है।* अशौच ा त होनेपर ा ण दस दन, य बारह दन तथा वै य पं ह दन तक दान-होम आ द कम से अलग रहे। शू एक मासतक अपना कम बंद रखे। तदन तर सब लोग अपने-अपने शा ो कम का अनु ान कर।



मृतकको गाँवसे बाहर ले जाकर उसका दाह-सं कार करनेके बाद समान गो वाले भाई-ब धु को पहले, चौथे, सातव और नव दन ेतके लये जल दे ना चा हये तथा चौथे दन उसक चतासे राख और ह य का स चय करना चा हये। अ थस चयके बाद उनका अ - पश कया जा सकता है। फर समानोदक पु ष अपने सब कम कर सकते ह, क तु स प ड लोग केवल पशके अ धकारी होते ह। जस दन मृ यु ई हो, उस दन समानोदक और स प ड दोन का पश कया जा सकता है। वृ , सप, गौ, दाढ़ वाले जीव, श , जल, फाँसी, अ न, वष, पवत गरने तथा उपवास आ दके ारा मृ यु होनेपर अथवा बालक, परदे शी एवं प र ाजकक मृ यु होनेपर त काल अशौच नवृ हो जाता है तथा कुछ लोग का मत है क तीन दन तक अशौच रहता है। य द स प ड मसे एकक मृ यु होनेके बाद थोड़े ही दन म सरेक भी मृ यु हो जाय तो पहलेके अशौचम जतने दन बाक ह उतने ही दन के भीतर सरेका भी ा आ द कम पूण कर दे ना चा हये। जननाशौचम भी यही व ध दे खी जाती है। स प ड तथा समानोदक य म एकके बाद सरेका ज म होनेपर पहलेके ही साथ सरेका भी अशौच नवृ हो जाता है।† पु का ज म होनेपर पताको व स हत नान करना चा हये। उसम भी य द एकके ज मके बाद सरेका ज म हो जाय तो पहले ज मे ए बालकके दनपर ही सरेक भी शु बतायी गयी है।‡ लोकम जो-जो व तु अ धक य हो तथा घरम भी जो व तु अ य त य जान पड़े, उसको अ य बनानेक इ छा रखनेवाले पु षको उ चत है क वह उसे गुणवान् को दे । अशौचके दन पूरे हो जानेपर जल, वाहन, आयुध, चाबुक और द डका पश करके सब वण के लोग प व हो अपने-अपने वणधमका अनु ान कर, य क वह इस लोक और परलोकम भी क याण दे नेवाला है। तीन वेद का सवदा वा याय करे, व ान् बने। धमानुसार धनका उपाजन करे और उसे य नपूवक य म लगावे। जस कमको करते समय अपने मनम घृणा न हो और जसे महापु ष के सामने कट करनेम कोई संकोच न हो, ऐसा कम नःशङ् क होकर करना चा हये। बेटा! ऐसे आचरणवाले गृह थ पु षको धम, अथ और कामक ा त होती है तथा इस लोक और परलोकम भी उसका क याण होता है। मातासे इस कार उपदे श हण करके राजा ऋत वजके पु अलकने युवाव थाम व धपूवक अपना ववाह कया। उससे अनेक पु उ प ए। उसने य ारा भगवान्का यजन कया और हर समय वह पताक आ ाका पालन करनेम संल न रहता था। तदन तर ब त समयके बाद बुढ़ापा आनेपर



धमपरायण महाराज ऋत वजने अपनी प नीके साथ तप याके लये वनम जानेका वचार कया और पु का रा या भषेक कर दया। उस समय मदालसाने अपने पु क वषयभोग वषयक आस को हटानेके लये उससे यह अ तम वचन कहा—‘बेटा! गृह थ-धमका अवल बन करके रा य करते समय य द तु हारे ऊपर य ब धुके वयोगसे, श ु क बाधासे अथवा धनके नाशसे होनेवाला कोई अस ःख आ पड़े तो मेरी द ई इस अँगठ ू से यह उपदे शप नकालकर, जो रेशमी व पर ब त सू म अ र म लखा गया है, तुम अव य पढ़ना; य क ममताम बँधा रहनेवाला गृह थ ःख का के होता है। सुम त कहते ह—य कहकर मदालसाने अपने पु को सोनेक अँगठ ू द और गृह थ पु षके यो य अनेकानेक आशीवाद भी दये। त प ात् पु को रा य स पकर महाराज कुवलया और महारानी मदालसा तप या करनेके लये वनम चले गये।



*



भो यम ं पयु षतं नेहा ं चरस भृतम् । अ नेहा ा प गोधूमयवगोरस व



याः ।। (३५।१-२)



*



न य य कमणो हा न न कुव त कदाचन । त य वकरणे ब धः केवलं मृतज मसु ।। (३५।३९)







स प डानां स प ड तु मृतेऽ या मन् मृतो य द । पूवाशौचसमा यातैः काया त य दनैः या ।। एष एव व ध ो ज म य प ह सूतके । स प डानां स प डेषु यथाव सोदकेषु च ।। (३५।४७-४८)







त ा प य द चा य म



ाते जायेत चापरः । त ा प शु



ा पूवज मवतो दनैः ।। (३५।५०)



सुबा क ेरणासे का शराजका अलकपर आ मण, अलकका द ा ेयजीक शरणम जाना और उनसे योगका उपदे श लेना सुम त कहते ह— पताजी! धमा मा राजा अलकने भी पु क भाँ त जाका यायपूवक पालन कया। उनके रा यम जा ब त स थी और सब लोग अपने-अपने कम म लगे रहते थे। वे पु ष को द ड दे ते और स जन पु ष क भलीभाँ त र ा करते थे। राजाने बड़े-बड़े य का अनु ान भी कया। इन सब काय म उ ह बड़ा आन द मलता था। महाराजको अनेक पु ए, जो महान् बलवान्, अ य त परा मी, धमा मा, महा मा तथा कुमागके वरोधी थे। उ ह ने धमपूवक धनका उपाजन कया और धनसे धमका अनु ान कया तथा धम और धन दोन के अनुकूल रहकर ही वषय का उपभोग कया। इस कार धम, अथ और कामम आस हो पृ वीका पालन करते ए राजा अलकको अनेक वष बीत गये; क तु उ ह वे एक दनके समान ही जान पड़े। मनको य लगनेवाले वषय का भोग करते ए उ ह कभी भी उनक ओरसे वैरा य नह आ। उनके मनम कभी ऐसा वचार नह उठा क अब धम और धनका उपाजन पूरा हो गया। उनक ओरसे उ ह अतृ त ही बनी रही। उनके इस कार भोगम आस , माद और अ जते य होनेका समाचार उनके भाई सुबा ने भी सुना, जो वनम नवास करते थे। अलकको कसी तरह ान ा त हो, इस अ भलाषासे उ ह ने ब त दे रतक वचार कया। अ तम उ ह यही ठ क मालूम आ क अलकके साथ श ुता रखनेवाले कसी राजाका सहारा लया जाय। ऐसा न य करके वे अपना रा य ा त करनेका उ े य लेकर असं य बल-वाहन से स प का शराजक शरणम आये। का शराजने अपनी सेनाके साथ अलकपर आ मण करनेक तैयारी क और त भेजकर यह कहलाया क अपने बड़े भाई सुबा को रा य दे दो। अलक राजधमके ाता थे। उ ह श ुके इस कार आ ापूवक स दे श दे नेपर सुबा को रा य दे नेक इ छा नह ई। उ ह ने का शराजके तको उ र दया क ‘मेरे बड़े भाई मेरे ही पास आकर ेमपूवक रा य माँग ल। म कसीके आ मणके भयसे थोड़ी-सी भी भू म नह ँ गा।’ बु मान् सुबा ने भी अलकके पास याचना नह क । उ ह ने सोचा, ‘याचना यका धम नह है। य तो परा मका ही धनी होता है।’ तब का शराजने अपनी सम त सेनाके साथ राजा अलकके रा यपर चढ़ाई करनेके लये या ा क । उ ह ने अपने समीपवत राजा से मलकर



उनके सै नक ारा आ मण कया और अलकके सीमावत नरेशको अपने अधीन कर लया। फर अलकके रा यपर घेरा डालकर उनके साम त राजा को सताना आर भ कया। ग और गके र क को भी काबूम कर लया। क ह को धन दे कर, क ह को फूट डालकर और क ह को समझाबुझाकर ही अपना वशवत बना लया। इस कार श ुम डलीसे पी ड़त राजा अलकके पास ब त थोड़ी-सी सेना रह गयी। खजाना भी घटने लगा और श ुने उनके नगरपर घेरा डाल दया। इस तरह त दन क पाने और कोश ीण होनेसे राजाको बड़ा खेद आ। उनका च ाकुल हो उठा। जब वे अ य त वेदनासे थत हो उठे , तब सहसा उ ह उस अँगठ ू का मरण हो आया, जसे ऐसे ही अवसर पर उपयोग करनेके लये उनक माता मदालसाने दया था। तब नान करके प व हो उ ह ने ा ण से व तवाचन कराया और अँगठ ू से वह उपदे शप नकालकर दे खा। उसके अ र ब त प थे। राजाने उसम लखे ए माताके उपदे शको पढ़ा, जससे उनके सम त शरीरम रोमा च हो आया और आँख स तासे खल उठ । वह उपदे श इस कार था—



स ः सवा मना या यः स चेत् य ुं न श यते । स स ः सह कत ः सतां स ो ह भेषजम् ।। कामः सवा मना हेयो हातुं चे छ यते न सः । मुमु ां त त काय सैव त या प भेषजम् ।। ‘स (आस )-का सब कारसे याग करना चा हये; क तु य द उसका याग न कया जा सके तो स पु ष का स करना चा हये; य क स पु ष का स ही उसक ओष ध है। कामनाको सवथा छोड़ दे ना चा हये; पर तु य द वह छोड़ी न जा सके तो मुमु ा (मु क इ छा)-के त कामना करनी चा हये; य क मुमु ा ही उस कामनाको मटानेक दवा है।’ इस उपदे शको अनेक बार पढ़कर राजाने सोचा, ‘मनु य का क याण कैसे होगा? मु क इ छा जा त् करनेपर। और मु क इ छा जा त् होगी स स से।’ ऐसा न य करके वे स स के लये च तत ए और अ य त आतभावसे आस र हत, पापशू य तथा परम सौभा यशाली महा मा द ा ेयजीक शरणम गये। उनके चरण म णाम करके राजाने उनका पूजन कया और यायके अनुसार कहा—‘ न्! आप शरणा थय को शरण दे नेवाले ह। मुझपर कृपा क जये। म भोग म अ य त आस एवं ःखसे आतुर ँ, आप मेरा ःख र क जये।’



द ा ेयजी बोले—राजन्! म अभी तु हारा ःख र करता ँ। सच-सच बताओ, तु ह कस लये ःख आ है? अलकने कहा—भगवन्! इस शरीरके बड़े भाई य द रा य लेनेक इ छा रखते ह तो यह शरीर तो पाँच भूत का समुदायमा है। गुणक ही गुण म वृ हो रही है; अतः मेरा उसम या है। शरीरम रहकर भी वे और म दोन ही शरीरसे भ ह। यह हाथ आ द कोई भी अ जसका नह है, मांस, ह ी और ना ड़य के वभागसे भी जसका कोई स पक नह है, उस पु षका इस रा यम हाथी, घोड़े, रथ और कोश आ दसे क चत् भी या स ब ध है। इस लये न तो मेरा कोई श ु है, न मुझे ःख या सुख होता और न नगर तथा कोशसे ही मेरा कोई स ब ध है। यह हाथी-घोड़े आ दक सेना न सुबा क है, न सरे कसीक है और न मेरी ही है। जैसे कलसी, घट और कम डलुम एक ही आकाश है तो भी पा भेदसे अनेक-सा दखायी दे ता है, उसी कार सुबा , का शराज और म भ - भ शरीर म रहकर भी एक ही ह। शरीर के भेदसे ही भेदक ती त होती है। पु षक बु जस- जस व तुम आस होती है, वहाँ-वहाँसे वह ःख ही लाकर दे ती है। म तो कृ तसे परे ँ; अतः न ःखी ँ, न सुखी।



ा णय का भूत के ारा जो पराभव होता है, वही ःखमय है। ता पय यह क जो भौ तक भोग म ममताके कारण आस है, वही सुख- ःखका अनुभव करता है। द ा ेयजी बोले—नर े ! वा तवम ऐसी ही बात है। तुमने जो कुछ कहा है, ठ क है; ममता ही ःखका और ममताका अभाव ही सुखका कारण है। मेरे करनेमा से तु ह यह उ म ान ा त हो गया, जसने ममताक ती तको सेमरक ईक भाँ त उड़ा दया। मनु यके दयदे शम अ ान पी महान् वृ खड़ा है। वह अहंता पी अङ् कुरसे उ प आ है। ममता ही उसका तना है। गृह और े उसक ऊँची-ऊँची शाखाएँ ह। ी और पु आ द प लव ह। धन-धा य प बड़े-बड़े प े ह। वह अना दकालसे बढ़ता चला आ रहा है। पु य और पाप उसके आ द पु प ह। सुख और ःख महान् फल ह। वह मो के मागको रोककर खड़ा है। अ ा नय का स ही उस वृ के लये सचाईका काम दे ता है। सकाम कम करनेक बल इ छा ही उस वृ पर मर क भाँ त मँड़राती रहती है। जो लोग संसार-मागक या ासे थककर उस वृ का आ य लेते ह, वे मपूण ान एवं म या सुखके वशीभूत हो जाते ह। ऐसे लोग को आ य तक सुख (मो ) कैसे मल सकता है। पर तु जो स स पी प थरपर घसकर तेज कये ए व ा पी कुठारसे उस ममता पी वृ को काट डालते ह, वे व ान् पु ष ही उस मो मागसे जाते ह और धूल तथा काँट से र हत शीतल वनम प ँचकर सब कारक वृ य से र हत हो परमान दको ा त होते ह।* अलकने कहा—भगवन्! आपक कृपासे मुझे ऐसा उ म ान ा त आ, जो जड कृ त और चेतन-श का ववेक करनेवाला है; क तु मेरा मन वषय के वशीभूत है, अतः वह इस ानम थर नह हो पाता। म नह जानता क इस कृ तके ब धनसे कैसे छू ट सकूँगा। कैसे मेरा इस संसारम फर ज म न हो? कस कार म नगुण भावको ा त होऊँ और कैसे सनातन के साथ एकता ा त क ँ ? न्! मुझे ऐसा ही उ म योग बताइये, जससे म मु हो सकूँ। इसके लये आपके चरण म म तक रखकर याचना करता ँ; य क आप-जैसे संत का स ही मनु य का परम उपकार करनेवाला है। द ा ेयजी बोले—राजन्! योगीको ानक ा त होकर जो उसका अ ानसे वयोग होता है, वही मु है और वही के साथ एकता एवं ाकृत गुण से पृथक् होना है। मु होती है योगसे। योग ा त होता है स यक् ानसे, स यक् ान होता है वैरा यजनक ःखसे और ःख होता है ममताके कारण ी, पु , धन आ दम च क आस होनेसे। अतः मु क इ छा रखनेवाला



पु ष आस को ःखका मूल समझकर य नपूवक याग दे । आस न होनेपर ‘यह मेरा है’ ऐसी धारणा र हो जाती है। ममताका अभाव सुखका ही साधक है। वैरा यसे सांसा रक वषय म दोषका दशन होता है। ानसे वैरा य और वैरा यसे ान होता है। जहाँ रहना हो, वही घर है। जससे जीवन चले, वही भोजन है और जससे मो मले, वही ान बताया गया है। इसके सवा सब अ ान है। राजन्! पु य और पाप को भोग लेनेसे, न यकम का न कामभावसे अनु ान करनेसे, अपूवका सं ह न होनेसे तथा पूवज मके कये ए कम का य हो जानेसे मनु य बारंबार दे हके ब धनम नह पड़ता। राजन्! यह तुमसे ानके वषयम कुछ बात बतलायी गय । अब उस योगका वणन सुनो, जसे ा त कर योगी पु ष सनातन से कभी पृथक् नह होता। यो गय को पहले आ मा (बु )-के ारा आ मा (मन)-को जीतनेक चे ा करनी चा हये; य क उसको जीतना ब त क ठन है। अतः उसपर वजय पानेके लये सदा ही य न करना चा हये। इसका उपाय बतलाता ँ, सुनो। ाणायामके ारा राग आ द दोष का, धारणाके१ ारा पापका, याहारके२ ारा वषय का और यानके ारा ई र वरोधी गुण का नवारण करे। जैसे पवतीय धातु को आगम तपानेसे उनके दोष जल जाते ह, उसी कार ाणायाम करनेसे इ यज नत दोष र हो जाते ह। अतः योगके ाता पु षको पहले ाणायामका ही साधन करना चा हये। ाण और अपानवायुको रोकनेका नाम ही ाणायाम है। यह लघु, म य और उ रीयके भेदसे तीन कारका बताया गया है। अलक! अब म उसक मा ा बतलाता ँ, सुनो। लघु ाणायाम बारह मा ाका होता है। इससे नी मा ाका म यम और तगुनी मा ाका उ रीय अथवा उ म बताया गया है। पलक को उठाने और गरानेम जतना समय लगता है, वही ाणायामक सं याके लये मा ा कहा गया है। ऐसी ही बारह मा ा का लघुनामक ाणायाम होता है। थम ाणायामके ारा वेद (पसीने)-को, म यमके ारा क पको और तृतीय ाणायामके ारा वषादको जीते। इस कार मशः इन तीन दोष पर वजय ा त करे। जैसे सह, ा और हाथी सेवाके ारा कोमल हो जाते ह, उनक कठोरता दब जाती है, उसी कार ाणायाम करनेसे ाण योगीके वशम हो जाता है। जैसे हाथीवान मतवाले हाथीको भी वशम करके उसे इ छानुसार चलाता है, उसी कार योगी वशम कये ए ाणको अपनी इ छाके अधीन रखता है। जैसे वशम कया आ सह केवल मृग को ही मारता है, मनु य को नह , उसी कार ाणायामके ारा वशम कया आ ाण केवल पाप का नाश करता है, मनु यके शरीरका नह । इस लये योगी पु षको सदा ाणायामम संल न रहना चा हये।



राजन्! व त, ा त, सं वत् और साद—ये मो पी फल दान करनेवाली ाणायामक चार अव थाएँ ह। अब मशः इनके व पका वणन सुनो। जस अव थाम शुभ और अशुभ सभी कम का फल ीण हो जाय और च क वासना न हो जाय, उसका नाम ‘ व त’ है। जब योगी इस लोक और परलोकके भोग के त लोभ और मोह उ प करनेवाली सम त कामना को रोककर सदा अपने-आपम ही संतु रहता है, वह नर तर रहनेवाली ‘ ा त’ नामक अव था है। जस समय योगी सूय, च मा, न तथा ह के समान भावशाली होकर उ म ान-स प ा त करता है और उस ान-स प से भूत-भ व यक बात को तथा र थत एवं अ य व तु को भी जान लेता है, उस समय ाणायामक ‘सं वत्’ नामक अव था होती है। जस ाणायामसे मन, पाँच ाणवायु, स पूण इ याँ और इ य के वषय सादको ा त होते ह, वह उसक ‘ साद’ अव था है। राजन्! अब ाणायामका ल ण तथा योगा यासम नर तर वृ रहनेवाले योगीके लये व हत आसन बतलाता ँ, सुनो। प ासन, अधासन, व तकासन आ द आसन से बैठकर मन-ही-मन णवका च तन करते ए योगा यास करे। शरीरको समभावसे रखे, आसन भी सम हो। दोन पैर को समेटकर दोन जाँघ को आगेक ओर थर करे। मुँहको बंद कये रहे। ए ड़य को इस कार रखे, जससे वे ल और अ डकोषका पश न कर सक। मन और इ य को संयमम रखते ए थर रहे। म तकको कुछ ऊँचा कये रहे। दाँत का दाँत से पश न होने दे । अपनी ना सकाके अ भागपर रखते ए अ य दशा क ओर न दे खे। रजोगुणसे तमोगुणक और स वगुणसे रजोगुणक वृ को भलीभाँ त आ छा दत करके नमल स वम थत हो योगवे ा पु ष योगका अ यास करे। इ य, ाण आ द और मनको उनके वषय से हटाकर याहार आर भ करे। जैसे कछु आ अपने सब अ को समेट लेता है, उसी कार जो सम त कामना को संकु चत कर लेता है, वह नर तर आ माम ही रमण करनेवाला और एकमा परमा माम थत आ पु ष अपने आ माम ही आ माका सा ा कार करता है। व ान् पु ष बाहर-भीतरक शु का स पादन करके क ठसे लेकर ना भतक शरीरको ाणवायुसे प रपूण करते ए ाणायाम आर भ करे। ाणायाम बारह ह। उ ह को धारणा भी कहते ह। त वदश यो गय ने योगम दो धारणाएँ बतलायी ह। उनके अनुसार योगम वृ ए नयता मा योगीके सभी दोष न हो जाते ह तथा वह व थ भी हो जाता है। वह पर परमा माको और ाकृत गुण को पृथक्-पृथक् दे खता है, ोमसे लेकर परमाणुतकका सा ा कार करता है तथा न पाप आ माका भी



दशन कर लेता है। इस कार ाणायामपरायण एवं मताहारी योगी पु ष धीरेधीरे एक-एक भू मको वशम करके सरीपर पैर बढ़ाये, जैसे महलम जाते समय एक-एक सीढ़ को पार करके सरीपर चढ़ा जाता है। जो भू म अपने वशम नह ई है, उसम जानेसे वह दोष, रोग आ द ःख तथा मोहको बढ़ाती है; अतः उसपर न चढ़े । ाणवायुके नरोधको ाणायाम कहते ह। अपने मनको संयमम रखनेवाले योगी पु ष श दा द वषय क ओर जानेवाली इ य को उनक ओरसे योग ारा या त— नवृ करते ह, इस लये यह याहार कहलाता है। योगी मह षय ने इस वषयम ऐसा उपाय भी बताया है, जससे योगा यासी पु षको रोग आ द दोष नह होते। जैसे जलाथ मनु य य और नली आ दक सहायतासे धीरे-धीरे जल पीते ह, उसी कार योगी पु ष मको जीतकर धीरेधीरे वायुका पान करे। पहले ना भम, फर दयम, तदन तर तीसरे थान— व ः थलम। उसके बाद मशः क ठ, मुख, ना सकाके अ भाग, ने , भ ह के म यभाग तथा म तकम ाणवायुको धारण करे। उसके बाद पर परमा माम उसक धारणा करनी चा हये। यह सबसे उ म धारणा मानी गयी है। इन दस धारणा को ा त होकर योगी अ वनाशी क स ाको ा त होता है। राजन्! स क इ छा रखनेवाला योगी पु ष बड़े आदरके साथ योगम वृ हो। वह अ धक खाये ए अथवा खाली पेट, थका और ाकुल च न हो। जब अ धक सद या अ धक गम पड़ती हो, सुख- ःख आ द क बलता हो अथवा बड़े जोरक आँधी चलती हो, ऐसे अवसर पर यानपरायण होकर योगका अ यास नह करना चा हये। कोलाहलपूण थानम, आग और पानीके समीप, पुरानी गोशालाम, चौराहेपर, सूखे प के ढे रपर, नद म, मशानभू मम, जहाँ सप का नवास हो वहाँ, भयपूण थानम, कुएँके तटपर, म दरम तथा द मक क म के ढे रपर—इन सब थान म त व पु ष योगा यास न करे। जहाँ सा वकभावक स न हो, ऐसे दे श-कालका प र याग करे। योगम असत् व तुका दशन भी न ष है; अतः उसे भी छोड़ दे । जो मूखतावश उ थान क परवा न करके वह योगा यास आर भ करता है, उसके कायम व न डालनेके लये बहरापन, जडता, मरणश का नाश, गूँगापन, अंधापन और वर आ द अनेक दोष त काल कट होते ह। य द मादवश योगीके सामने ये दोष कट ह तो उनका नाश करनेके लये जस च क साक आव यकता है, उसे सुनो। य द वातरोग, गु मरोग, उदावत (गुदा-स ब धी रोग) तथा और कोई उदरस ब धी रोग हो जाय तो उसक शा तके लये घी मलायी ई जौक गरम-गरम ल सी खा ले अथवा केवल



उसक धारणा करे। वह क ई वायुको नकालती और वायुगोलाको र करती है। इसी कार जब शरीरम क प पैदा हो तो मनम बड़े भारी पवतक धारणा करे। बोलनेम कावट होनेपर वा दे वीक और बहरापन आनेपर वणश क धारणा करे। इसी कार याससे पी ड़त होनेपर ऐसी धारणा करे क ज ापर आमका फल रखा आ है और उससे रस मल रहा है। ता पय यह क जस- जस अ म रोग पैदा हो, वहाँ-वहाँ उसम लाभ प ँचानेवाली धारणा करे। गम म सद क और सद म गम क धारणा करे। धारणाके ारा ही अपने म तकपर काठक क ल रखकर सरे का के ारा उसे ठ कनेक भावना करे। इससे योगीक लु त ई मरणश का त काल ही आ वभाव हो जाता है। इसके सवा सव ापक ुलोक, पृ वी, वायु और अ नक भी धारणा करे। इससे अमानवीय श य तथा जीव-ज तु से होनेवाली बाधा क च क सा होती है। य द कोई मानवेतर जीव योगीके भीतर वेश कर जाय तो वह वायु और अ नक धारणा करके उसे अपने शरीरके भीतर ही जला डाले। राजन्! इस कार योगवे ा पु षको सब कारसे अपनी र ा करनी चा हये। य क यह शरीर धम, अथ, काम और मो —चार पु षाथ का साधक है। योग- वृ के ल ण को बतलाने तथा उनपर गव करनेसे योगीका व ान लु त हो जाता है; इस लये उन वृ य को गु त ही रखना चा हये। च चलताका न होना, नीरोग रहना, न ु रता न धारण करना, उ म सुग धका आना, मल-मू कम होना, शरीरम का त, मनम स ता और वाणीके वरम कोमलताका उदय होना—ये सब योग वृ के ार भक च ह। य द योगीको दे खकर लोग के मनम अनुराग हो, परो म सब लोग उसके गुण का बखान करने लग और कोई भी जीव-ज तु उससे भयभीत न हो तो यह योगम स ा त होनेक उ म पहचान है। जसे अ य त भयानक सद -गम आ दसे कोई क नह होता तथा जो सर से भयभीत नह होता, स उसके नकट खड़ी है।



*



अह म यङ् कुरो प ो ममे त क धवान् महान् । गृह े ो चशाख पु दारा दप लवः ।। धनधा यमहाप ो नैककाल व धतः । पु यापु या पु प सुख ःखमहाफलः ।। त मु पथ ापी मूढस पकसेचनः । व ध साभृ माला ो ह ानमहात ः ।। संसारा वप र ा ता य त छायां समा ताः । ा त ानसुखाधीना तेषामा य तकं कुतः ।। यै तु स स पाषाण शतेन ममतात । छ ो व ाकुठारेण ते गता तेन व मना ।। ी







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वनं शीतं नीरज कमक टकम् । ा ुव त परां ा ा नवृ त वृ व जताः ।। (अ० ३८।८-१३) य धारणा— कसी एक थानम च को बाँधना अथात् परमा माम मनको था पत



१. दे शब ध करना ‘धारणा’ है। २. इ य को वषय क ओरसे हटाकर च म लीन करना ‘ याहार’ कहलाता है।



योगके व न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐ य तथा योगीक मु द ा ेयजी कहते ह—आ मसा ा कारके समय योगी पु षके सम जो व न उप थत होते ह, उनका सं ेपसे वणन करता ँ; सुनो। उस समय वह सकाम कम करना चाहता है और मानवीय भोग क अ भलाषा करता है। दानके उ मो म फल, ी, व ा, माया, सोना-चाँद आ द धन, सोने आ दके अ त र वैभव, वगलोक, दे व व, इ व, रसायनसं ह, उसे बनानेक याएँ, हवाम उड़नेक श , य , जल और अ नम वेश करना, ा तथा सम त दान का फल तथा नयम, त, इ , पूत एवं दे व-पूजा आ दसे मलनेवाले फल क इ छा करता है। जब च क ऐसी अव था हो तो योगी उसे कामना क ओरसे हटाये और पर के च तनम लगाये। ऐसा करनेपर उसे व न से छु टकारा मल जाता है। इन व न पर वजय पा लेनेके बाद योगीके सामने फर सरे- सरे सा वक, राजस और तामस व न उप थत होते ह। ा तभ, ावण, दै व, म और आवत—ये पाँच उपसग यो गय के योगम व न डालनेके लये कट होते ह। इनका प रणाम बड़ा कटु होता है। जब स पूण वेद के अथ, का और शा के अथ, स पूण व ाएँ और श पकला आ द अपने-आप योगीक समझम आ जायँ तो तभासे स ब ध रखनेके कारण वह ‘ ा तभ’ उपसग कहलाता है। जब योगी सह योजन रसे भी स पूण श द को सुनने और उनके अ भ ायको समझने लगता है, तब वह वण-श से स ब ध रखनेके कारण ‘ ावण’ उपसग कहा जाता है। जब वह दे वता क भाँ त आठ दशा क व तु को य दे खने लगता है, तब उसे ‘दै व’ उपसग कहते ह। जब योगीका मन दोषके कारण सब कारके आचार से हो नराधार भटकने लगता है, तब वह ‘ म’ कहलाता है। जलम उठती ई भँवरक तरह जब ानका आवत सब ओर ा त होकर च को न कर दे ता है, तब वह ‘आवत’ नामक उपसग कहा जाता है। इन महाघोर उपसग से योगका नाश हो जानेके कारण स पूण योगी दे वतु य होकर भी बारंबार आवागमनके च म घूमते ह। इस लये योगी पु ष शु मनोमय उ वल कंबल ओढ़कर पर परमा माम मनको लगाकर सदा उ ह का च तन करे। पृ वी आ द सात कारक सू म धारणाएँ ह, ज ह योगी म तकम धारण करे। सबसे पहले पृ वीक धारणा है। उसे धारण करनेसे योगीको सुख ा त होता है। वह अपनेको सा ात् पृ वी मानता है, अतः पा थव वषय ग धका याग कर दे ता है। इसी कार वह जलक धारणासे सू म रसका, तेजक धारणासे सू म पका, वायुक धारणासे पशका तथा आकाशक धारणासे सू म वृ तथा श दका याग करता है। जब अपने मनसे



धारणाके ारा स पूण भूत के मनम वेश करता है, तब उस मानसी धारणाको धारण करनेके कारण उसका मन अ य त सू म हो जाता है। इसी कार योगवे ा पु ष स पूण जीव क बु म वेश करके परम उ म सू म बु को ा त करता और फर उसे याग दे ता है। अलक! जो योगी इन सात सू म धारणा का अनुभव करके उ ह याग दे ता है, उसको इस संसारम फर नह आना पड़ता। जता मा पु ष मशः इन सात धारणा के सू म पको दे खे और याग करता जाय। ऐसा करनेसे वह परम स को ा त होता है। राजन्! योगी पु ष जस- जस भूतम राग करता है, उसी-उसीम आस होकर न हो जाता है। इस लये इन सम त सू म भूत को पर पर संस जानकर जो इ ह याग दे ता है, उसे परमपदक ा त होती है। पाँच भूत और मन-बु के इन सात सू म प का वचार कर लेनेपर उनके त वैरा य होता है, जो स ावका ान रखनेवाले पु षक मु का कारण बनता है। जो ग ध आ द वषय म आस होता है, उसका वनाश हो जाता है और उसे बारंबार संसारम ज म लेना पड़ता है। योगी पु ष इन सात धारणा को जीत लेनेके बाद य द चाहे तो कसी भी सू म भूतम लीन हो सकता है। दे वता, असुर, ग धव, नाग और रा स के शरीरम भी वह लीन हो जाता है, क तु कह भी आस नह होता। अ णमा, ल घमा, म हमा, ा त, ाका य, ई श व, व श व और कामावसा य व—इन आठ ई रीय गुण को जो नवाणक सूचना दे नेवाले ह, योगी ा त करता है। सू मसे भी सू म प धारण करना ‘अ णमा’ है और शी -से-शी कोई काम कर लेना ‘ल घमा’ नामक गुण है। सबके लये पूजनीय हो जाना ‘म हमा’ कहलाता है। जब कोई भी व तु अ ा य न रहे तो वह ‘ ा त’ नामक स है। सव ापक होनेसे योगीको ‘ ाका य’ नामक स क ा त मानी जाती है। जब वह सब कुछ करनेम समथ—ई र हो जाता है तो उसक वह स ‘ई श व’ कहलाती है। सबको वशम कर लेनेसे ‘व श व’ क स होती है। यह योगीका सातवाँ गुण है। जसके ारा इ छाके अनुसार कह भी रहना आ द सब काम हो सके, उसका नाम ‘कामावसा य व’ है। ये ऐ यके साधनभूत आठ गुण ह। मु होनेसे उसका कभी ज म नह होता। वह वृ और नाशको भी नह ा त होता। न तो उसका य होता है और न प रणाम। पृ वी आ द भूतसमुदायसे न तो वह काटा जाता है, न भीगकर गलता है, न जलता है और न सूखता ही है। श द आ द वषय भी उसको लुभा नह सकते। उसके लये श द आ द वषय ह ही नह । न तो वह उनका भो ा है और न उनसे उसका संयोग होता है। जैसे अ य खोटे से मला और ख ड-ख ड आ सुवण जब आगम तपाया जाता है, तब उसका दोष जल जाता है और वह शु होकर अपने सरे टु कड़ से मलकर एक हो जाता है, उसी कार य नशील योगी जब योगा नसे तपता है, तब अ तःकरणके सम त दोष जल जानेके कारण के साथ एकताको ा त हो जाता है। फर वह कसीसे पृथक् नह रहता। जैसे आगम डाली ई आग उसम मलकर एक हो जाती है, उसका वही नाम और वही व प हो जाता है, फर उसको



वशेष पसे पृथक् नह कया जा सकता, उसी तरह जसके पाप द ध हो गये ह, वह योगी पर के साथ एकताको ा त होनेपर फर कभी उनसे पृथक् नह होता। जैसे जलम डाला आ जल उसके साथ मलकर एक हो जाता है, उसी कार योगीका आ मा परमा माम मलकर तदाकार हो जाता है।



योगचया, णवक म हमा तथा अ र का वणन और उनसे सावधान होना अलक बोले—भगवन्! अब म योगीके आचार- वहारका यथाथ वणन सुनना चाहता ँ। वह कस कार के मागका अनुसरण करके कभी लेशम नह पड़ता? द ा ेयजीने कहा—राजन्! ये जो मान और अपमान ह, ये साधारण मनु य को स ता और उ े ग दे नेवाले होते ह। उ ह मानसे स ता और अपमानसे उ े ग होता है; क तु योगी उन दोन को ही ठ क उलटे अथम हण करता है। अतः वे उसक स म सहायक होते ह। योगीके लये मान और अपमानको वष एवं अमृतके पम बताया गया है। इनम अपमान तो अमृत है और मान भयंकर वष। योगी मागको भलीभाँ त दे खकर पैर रखे। व से छानकर जल पीये, स य वचन बोले और बु से वचार करके जो ठ क जान पड़े, उसीका च तन करे।* योगवे ा पु ष आ त य, ा , य , दे वया ा तथा उ सव म न जाय। कायक स के लये कसी बड़े आदमीके यहाँ भी कभी न जाय। जब गृह थके यहाँ रसोई-घरसे धुआँ न नकलता हो, आग बुझ गयी हो और घरके सब लोग खा-पी चुके ह , उस समय योगी भ ाके लये जाय; पर तु त दन एक ही घरपर न जाय। योगम वृ रहनेवाला पु ष स पु ष के मागको कलङ् कत न करते ए ायः ऐसा वहार करे, जससे लोग उसका स मान न कर, तर कार ही कर। वह गृह थ के यहाँसे अथवा घूमतेफरते रहनेवाले लोग के घर से भ ा हण करे; इनम भी पहली अथात् गृह थके घरक भ ा ही सव े एवं मु य है। जो गृह थ वनीत, ालु, जते य, ो य एवं उदार दयवाले ह , उ ह के यहाँ योगीको सदा भ ाके लये जाना चा हये। इनके बाद जो और प तत न ह , ऐसे अ य लोग के यहाँ भी वह भ ाके लये जा सकता है; पर तु छोटे वणके लोग के यहाँ भ ा माँगना नकृ वृ मानी गयी है। योगीके लये भ ा ा त अ , जौक ल सी, छाछ, ध, जौक खचड़ी, फल, मूल, कँगनी, कण, तलका चूण और स ू —ये आहार उ म और स दायक ह। अतः योगी इ ह भ पूवक एका च से भोजनके कामम ले। पहले एक बार जलसे आचमन करके मौन हो मशः पाँच ास क ाण प अ नम आ त दे । ‘ ाणाय वाहा’ कहकर पहला ास मुँहम डाले। यही थम आ त मानी गयी है। इसी कार ‘अपानाय वाहा’ से सरी, ‘समानाय वाहा’ से तीसरी, ‘उदानाय वाहा’ से चौथी और ‘ ानाय वाहा’ से पाँचव आ त दे । फर ाणायामके ारा इ ह पृथक् करके शेष अ इ छानुसार भोजन करे। भोजनके अ तम फर एक बार आचमन करे। त प ात् हाथ-मुँह धोकर दयका पश करे। चोरी न करना, चयका पालन, याग, लोभका अभाव और अ हसा—ये भ ु के पाँच त ह।



ोधका अभाव, गु क सेवा, प व ता, हलका भोजन और



त दन वा याय—ये पाँच



उनके नयम बताये गये ह।* जो योगी ‘यह जानने यो य है, वह जानने यो य है’ इस कार भ - भ वषय क जानकारीके लये लाला यत-सा होकर इधर-उधर वचरता है, वह हजार क प म भी ात व तुको नह पा सकता। आस का याग करके, ोधको जीतकर, व पाहारी और जते य हो, बु से इ य ार को रोककर मनको यानम लगावे। योगयु रहनेवाला योगी सदा एका त थान म, गुफा और वन म भलीभाँ त यान करे। वा द ड, कमद ड और मनोद ड—ये तीन द ड जसके अधीन ह , वही महाय त द डी है। राजन्! जसक म सत्-असत् तथा गुण-अवगुण प यह सम त जगत् आ म व प हो गया है, उस योगीके लये कौन य है और कौन अ य। जसक बु शु है, जो म के ढे ले और सुवणको समान समझता है, सब ा णय के त जसका समान भाव है, वह एका च योगी उस सनातन अ वनाशी परम पदको ा त होकर फर इस संसारम ज म नह लेता। वेद से स पूण य कम े ह, य से जप, जपसे ानमाग और उससे आस एवं रागसे र हत यान े है। ऐसे यानके ा त हो जानेपर सनातन क उपल ध होती है। जो एका च , परायण, मादर हत, प व , एका त ेमी और जते य होता है, वही महा मा इस योगको पाता है और फर अपने उस योगसे ही वह मो ात कर लेता है।† द ा ेयजी कहते ह—जो योगी इस कार भलीभाँ त योगचयाम थत होते ह, उ ह सैकड़ ज म म भी अपने पथसे वच लत नह कया जा सकता। जनके सब ओर चरण, म तक और क ठ ह, जो इस व के वामी तथा व को उ प करनेवाले ह, उन व पी परमा माका य दशन करके उनक ा तके लये परम पु यमय ‘ॐ’ इस एका र म का जप करे। उसीका अ ययन करे। अब उसके व पका वणन सुनो। अकार, उकार और मकार—ये जो तीन अ र ह, ये ही तीन मा ाएँ ह। ये मशः सा वक, राजस और तामस ह। इनके सवा एक अ मा ा भी है जो अनु वार या ब के पम इन सबके ऊपर थत है। वह अ मा ा नगुण है। योगी पु ष को ही उसका ान हो पाता है। उसका उ चारण गा धार वरसे होता है, इस लये उसे ‘गा धारी’ भी कहते ह। उसका पश च ट क ग तके समान होता है। योग करनेपर वह म तक- थानम गोचर होती है। जैसे ॐकार उ चारण कया जानेपर म तकके त गमन करता है, उसी कार ॐकारमय योगी अ र म मलकर अ र प हो जाता है। णव (ॐकार) धनुष है, आ मा बाण है और वेधनेयो य उ म ल य है। उस ल यको सावधानीके साथ वेधना चा हये और बाणक ही भाँ त ल यम वेश करके त मय हो जाना चा हये। यह ॐकार ही तीन वेद, तीन लोक, तीन अ न, ा- व णु तथा महादे व एवं ऋक्-साम और यजुवद है। इस



ॐकारम व तुतः साढ़े तीन मा ाएँ जाननी चा हये। उनके च तनम लगा आ योगी उ ह म लयको ा त होता है। अकार भूल क, उकार भुवल क और न प मकार वल क कहलाता है। पहली मा ा , सरी अ , तीसरी च छ तथा चौथी अ मा ा परमपद कहलाती है। इसी मसे इन मा ा को योगक भू म समझना चा हये। ॐकारके उ चारणसे स पूण सत् और असत्का हण हो जाता है। पहली मा ा व, सरी द घ और तीसरी लुत है, क तु अ मा ा वाणीका वषय नह है। इस कार यह ॐकार नामक अ र पर व प है। जो मनु य इसे भलीभाँ त जानता अथवा इसका यान करता है, वह संसार-च का याग करके वध ब धन से मु हो पर परमा माम लीन हो जाता है।* जसका कमब धन ीण नह आ है, वह अ र से अपनी मृ यु जानकर ाण यागके समय भी योगका च तन करे। इससे वह सरे ज मम पुनः योगी होता है। इस लये जसका योग स नह आ है, वह तथा जसका योग स हो चुका है, वह भी सदा मृ युसूचक अ र को जाने, जससे मृ युके समय उसे क न उठाना पड़े। महाराज! अब अ र का वणन सुनो। म उन अ र को बतलाता ँ, जनके दे खनेसे योगवे ा पु ष अपनी मृ युको जान लेता है। जो मनु य दे वमाग (आकाशग ा), ुव, शु , च माक छाया और अ धतीको नह दे ख पाता, वह एक वषके बाद जी वत नह रहता। जो सूयके म डलको करण से र हत और अ नको करणमाला से म डत दे खता है, वह मनु य यारह महीनेसे अ धक नह जी सकता। जो व म वमन, मू और व ाके भीतर सोने और चाँद का य दशन करता है, उसक आयु दस महीनेतकक ही है। जो ेत, पशाच आ द, ग धवनगर तथा सुवणके वृ दे खने लगता है, वह नौ महीन तक जी वत रहता है। जो अक मात् थूल शरीरसे बल शरीरका हो जाता है या बलसे थूल हो जाता है तथा जसक कृ त सहसा बदल जाती है, उसका जीवन आठ महीनेतक ही रहता है। धूल या क चड़म पैर रखनेपर जसक एड़ी या पादा भागका च ख डत दखायी दे , वह सात मासतक जी वत रहता है। य द गीध, कबूतर, उ लू, कौआ, मांसखोर प ी या नीले रंगका प ी म तकपर बैठ जाय तो वह छः मास आयु शेष रहनेक सूचना दे ता है। य द कौए आकर च च मार या धूलक वषासे आहत होना पड़े तथा अपनी छाया और तरहक दखायी दे तो वह चार-पाँच महीने ही जी वत रहता है। य द बना बादलके ही द ण दशाके आकाशम बजली चमकती दखायी दे और रातम इ धनुषका दशन हो तो उस मनु यका जीवन दो-तीन महीनेका ही है। जो घी, तेल, दपण अथवा जलम अपनी परछा न दे ख सके अथवा दे खे भी तो बे सरक ही परछा दखायी दे तो वह एक महीनेसे अ धक नह जी सकता। राजन्! जस योगीके शरीरसे बकरे अथवा मुदक -सी ग ध आती हो, उसका जीवन पं ह दन का ही समझना चा हये। नान करते ही जसक छाती और पैर सूख जायँ तथा जल पीनेपर भी क ठ सूखने लगे, वह केवल दस दनतक ही जी वत रह सकता है। जसके भीतरक वायु पृथक्होकर मम थान को छे दती-सी जान पड़े



तथा जलके पशसे भी जसके शरीरम रोमा च न हो, उसक मृ यु पास खड़ी है। जो व म भालू और वानरक सवारीपर बैठकर गीत गाता आ द ण दशाम जाय, उसक मृ यु समयक ती ा नह करती। व म ही लाल और काले कपड़े पहने ए कोई ी हँसती-गाती ई जसे द ण दशाक ओर ले जाय, वह भी जी वत नह रहता। य द व म नंगा एवं मूँड़ मुँड़ाया आ कोई महाबली मनु य हँसता और उछलता-कूदता दखायी दे तो समझना चा हये क मौत आ गयी। जो व ाव थाम अपनेको पैरसे लेकर चोट तक क चड़के समु म डू बा दे खता है, वह मनु य त काल मृ युको ा त होता है। जो व म केश, अँगारे, भ म, सप और बना पानीक नद दे खता है, उसक दसवसे लेकर यारहव दनतक मृ यु हो जाती है। व म वकराल, भयंकर और काले रंगके पु ष हाथ म ह थयार लये जसको प थर से मारते ह, उसक त काल मृ यु हो जाती है। सूय दयके समय जसके स मुख और बाय-दाय गीदड़ी रोती ई जाय, उसक त काल मृ यु हो जाती है। भोजन कर लेनेपर भी जसके दयम भूखका क होता हो तथा जो दाँत से दाँत घसता रहे, उसक आयु भी न य ही समा त हो चुक है। जसको द पकक ग धका अनुभव न होता हो, जो रात और दनम भी डरता हो तथा सरेके ने म अपनी परछा न दे खता हो, वह जी वत नह रहता। जो आधी रातके समय इ धनुष और दनम तार को दे ख ले, वह आ मवे ा पु ष अपनी आयु ीण ई समझे। जसक नाक टे ढ़ और कान ऊँचे-नीचे हो जाते ह तथा जसके बाय ने से सदा पानी गरता रहता है, उसक आयु समा त हो चुक है। य द मुँह सब ओरसे लाल और जीभ काली पड़ जाय तो बु मान् पु षको अपनी मृ यु नकट समझनी चा हये। जो व म ऊँट या गदहेपर बैठकर द ण दशाक ओर जाय, उसक त काल मृ यु होनेवाली है—ऐसा जानना चा हये। जो अपने दोन कान बंद कर लेनेपर अपनी ही आवाज न सुने तथा जसके ने क यो त न हो जाय, वह भी जी वत नह रह सकता। जो व म कसी गड् ढे के भीतर गरे और उससे नकलनेका ार बंद हो जाय तथा फर वह उस गड् ढे से न नकल सके तो वह तक उसका जीवन समझना चा हये। जसक ऊपरक ओर उठे क तु वहाँ ठहर न सके, बार-बार लाल होकर घूमती रहे, मुँह गरम हो और ना भ शीतल हो जाय तो ये ल ण मनु यके शरीर-प रवतनक सूचना दे ते ह। जो व म अ न या जलके भीतर वेश करके फर न नकले, उसके जीवनका वही अ त है। जसको जीव रातम और दनम भी मार, वह सात रातके भीतर न य ही मृ युको ा त हो जाता है। जो अपने नमल ेत व को भी लाल या काले रंगका दे खे, उसक भी मृ यु नकट समझनी चा हये। वभावका वपरीत होना और कृ तका ब कुल बदल जाना भी मृ युके नकट होनेक सूचना दे ते ह। जसका काल नकट आ गया है, वह मनु य जनके सामने सदा वनीत रहता था, जो लोग उसके परम पूजनीय थे, उ ह क अवहेलना और न दा करता है। वह दे वता क पूजा नह करता। बड़े-बूढ़ , गु जन तथा ा ण क न दा करता है, माता- पता तथा



दामादका स कार नह करता। इतना ही नह , वह यो गय , ानी व ान तथा अ य महा मा पु ष के आदर-स कारसे भी मुँह मोड़ लेता है। बु मान् पु ष को मृ युके इन ल ण क जानकारी रखनी चा हये। राजन्! योगी पु ष को उ चत है क वे सदा य नपूवक इन अ र पर रख; य क ये वषके अ तम तथा दन-रातके भीतर भी फल दे नेवाले होते ह। राजन्! इनके वशद फल को भलीभाँ त दे खना चा हये और मन-ही-मन वचार करके उस समयके अनुसार काय करना चा हये। मृ युकालको जान लेनेपर योगी कसी नभय थानम बैठकर योगा यासम वृ हो जाय, जससे उसका वह समय न फल न जाने पाये। अ र दे खकर योगी मृ युका भय छोड़ दे और उसके वभावका वचार करके जतने समयम वह आनेवाली हो, उतने समयके येक भागम योगी योग-साधनम लगा रहे। दनके पूवा , म या तथा अपरा म अथवा रा के जस भागम अ र का दशन हो, तभीसे लेकर जबतक मृ यु न आवे तबतक योगम लगा रहे। तदन तर सारा भय छोड़कर जता मा पु ष उस कालपर वजय ा त करके उसी थानपर या और कह —जहाँ भी अपना च थर हो सके, योगम संल न हो जाय और तीन गुण को जीतकर परमा माम त मय हो चद्वृ का भी याग कर दे । य करनेसे वह उस इ यातीत परम नवाण व प को ा त होता है, जो न तो बु का वषय है और न वाणी ही जसका वणन कर सकती है। अलक! इन सब बात का मने तुमसे यथाथ वणन कया है; अब तुम जस कार को ा त हो सकोगे, वह सं ेपम सुनो। जैसे च माका संयोग पाकर ही च का तम ण जलक सृ करती है, उनका संयोग पाये बना नह , यही उपमा योगीके लये भी है। योगी भी योगयु होकर ही स लाभ कर सकता है, अ यथा नह । जैसे सूयक करण का संयोग पाकर ही सूयका तम ण आग पैदा करती है, अकेली रहकर नह , यही उपमा योगीके लये भी है। उसे योगका आ य कभी नह छोड़ना चा हये। जैसे च ट , चूहा, नेवला, छपकली और गौरैया—ये सब घरम गृह वामीक ही भाँ त रहते ह और घर गर जानेपर अ य चल दे ते ह, क तु घरके गरनेका ःख केवल वामीको ही होता है, उन सब को उसके लये कुछ भी क नह होता, योगक स के लये भी यही उपमा है। अथात् योगीको अपने गृह, वैभव और शरीर आ दके त त नक भी ममता नह रखनी चा हये। ह रनके ब चेके म तकपर जब स ग उगने लगता है, तब पहले उसका अ भाग तलके समान दखायी दे ता है। फर वह उस ह रनके साथ-ही-साथ बढ़ता है। इस ा तपर वचार करनेसे योगी स को ा त होता है। अथात् उसे भी धीरे-धीरे अपनी योगसाधना बढ़ानी चा हये। जैसे मनु य रोगसे पी ड़त होनेपर भी अपनी इ य से काम लेता ही है, उसी कार योगी बु आ द परक य साधन से, जो आ मासे सवथा भ ह, परम पु षाथका साधन करे।



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मानापमानौ यावेतौ ी यु े गकरौ नृणाम् । तावेव वपरीताथ यो गनः स कारकौ ।। मानापमानौ यावेतौ तावेवा वषामृते । अपमानोऽमृतं त मान तु वषमं वषम् ।। च ुःपूतं यसे पाद व पूतं जलं पबेत् । स यपूतां वदे ाण बु पूतं च च तयेत् ।। अ तेयं चय च यागोऽलोभ तथैव च। ता न प च भ ूणाम हसापरमा ण वै ।। अ ोधो गु शु ूषा शौचमाहारलाघवम् । न य वा याय इ येते नयमाः प च क तताः ।। य स ो जत ोधो ल वाहारो जते यः । पधाय बु या ारा ण मनो याने नवेशयेत् ।। शू ये वेवावकाशेषु गुहासु च वनेषु च । न ययु ः सदा योगी यानं स यगुप मेत् ।। वा द डः कमद ड मनोद ड ते यः । य यैते नयता द डाः स द डी महाय तः ।। सवमा ममयं य य सदस जगद शम् । गुणागुणमयं त य कः यः को नृपा यः ।। वशु बु समलो का चनः सम तभूतेषु समः समा हतः । थानं परं शा तम यं च परं ह ग वा न पुनः जायते ।। वेदा े ाः सवय या य ा ज यं ानमाग ज यात् । ाना यानं स राग पेतं त मन् ा ते शा त योपल धः ।। समा हतो परोऽ माद शु च तथैका तर तयते यः । समा ुयाद् योग ममं महा मा वमु मा ो त ततः वयोगतः ।। त ा तये महत् पु यमो म येका रं जपेत् । तदे वा ययनं त य व पं शृ वतः परम् ।। अकार तथोकारो मकार ा र यम् । एता एव यो मा ाः सा वराजसतामसाः ।। नगुणा यो गग या या चा मा ोद् वसं थता । गा धारी त च व ेया गा धार वरसं या । पपी लकाग त पशा यु ा मू न ल यते ।। यथा यु आङ् कारः त नया त मू न । तथोङ् कारमयो योगी व रे व रो भवेत् ।। णवो धनुः शरो ा मा वे यमनु मम् । अ म ेन वे ं शरव मयो भवेत् ।। ओ म येतत् यो वेदा यो लोका योऽ नयः । व णु ा हर ैव ऋ सामा न यजूं ष च ।। मा ाः सा ा त व ेयाः परमाथतः । त यु तु यो योगी स त लयमवा ुयात् ।। अकार वथ भूल क उकार ो यते भुवः । स नो मकार वल कः प रक यते ।। ा तु थमा मा ा तीया सं ता । मा ा तृतीया च छ र मा ा परं पदम् ।। अनेनैव मेणैता व ेया योगभूमयः । ओ म यु चारणात् सव गृहीतं सदस वेत् ।। वा तु थमा मा ा तीया दै यसंयुता । तृतीया च लुता ा या वचसः सा न गोचरा ।। इ येतद रं परमोङ् कारसं तम् । य तु वेद नरः स यक् तथा याय त वा पुनः ।। संसारच मु सृ य य वधब धनः । ा ो त ा ण लयं परमे परमा म न ।।



(४१।२-४)



(४१।१६-१७)



(अ० ४१।२०-२६)



(४२।३-१५)



अलकक मु



एवं पता-पु के संवादका उपसंहार



सुम त कहते ह—तदन तर राजा अलकने अ न दन द ा ेयजीके चरण म णाम करके अ य त स ताके साथ वनीतभावसे कहा—‘ न्! दे वता ने मुझे श ु ारा परा जत कराकर जो मेरे सम ाण को संशयम डालनेवाला अ य त उ भय उप थत कर दया, इसे म अपना परम सौभा य मानता ँ। का शराजका महान् बल-वैभवसे स प परा म मेरा वनाश करनेके लये यहाँ कट आ था; क तु उसने मुझे आपके स स का शुभ अवसर दान कया, यह कतने आन दक बात है। सौभा यसे ही मेरा सै नक बल घट गया, सौभा यसे ही मेरे सेवक मारे गये, सौभा यसे ही मेरा खजाना खाली आ, सौभा यसे ही म भयको ा त आ, सौभा यने ही मुझे आपके युगल चरण क मृ त करायी और सौभा यसे ही आपका सारा उपदे श मेरे च म बैठ गया। न्! सौभा यवश आपके स से मुझे ान ा त आ और सौभा यसे ही आपने मुझपर कृपा क । जब पु षके शुभ दन आते ह तब अनथ भी अथका साधक बन जाता है, जैसे इस समय यह श ुज नत आप भी आपके समागमसे उपकार करनेवाली स ई। भगवन्! भाई सुबा तथा का शराज दोन ही मेरे उपकारी ह, जनके कारण मुझे आपके समीप आनेका सौभा य ा त आ। आपके साद पी अ नसे मेरा अ ान और पाप जल गया। अब म ऐसा य न क ँ गा, जससे फर इस कार ःखका भागी न बनूँ। आप मेरे ानदाता महा मा ह; अतः आपसे आ ा लेकर म गाह य-आ मका प र याग क ँ गा, जो वप पी वृ का वन है।’ द ा ेयजी बोले—राजे ! जाओ, तु हारा क याण हो। मने जैसा तु ह बताया है, उसीके अनुसार ममता और अहङ् कारसे र हत हो मो के लये वचरते रहो। सुम त कहते ह—द ा ेयजीके य कहनेपर राजा अलकने उ ह णाम कया और बड़ी उतावलीके साथ वे उस थानपर आये, जहाँ उनके बड़े भाई सुबा और का शराज मौजूद थे। महाबा वीरवर का शराजके नकट प ँचकर अलकने सुबा के सामने ही हँसते ए कहा—‘रा यक इ छा रखनेवाले का शराज! अब तुम इस बढ़े ए रा यको भोगो। अथवा य द तु हारी इ छा हो तो भाई सुबा को ही दे डालो।’



का शराजने कहा—अलक! तुमने यु के बना ही रा य य छोड़ दया? यह तो यका धम नह है और तुम यधमके ाता हो। जब अमा यवग परा जत हो जाय, तब राजा वयं ही मृ युका भय छोड़कर अपने श ुको ल य करके बाणका संधान करे और उसे जीतकर इ छानुसार े भोग का उपभोग करे। साथ ही परम स के लये बड़े-बड़े य का अनु ान भी करता रहे। अलक बोले—वीर! तु हारा कथन ठ क है, पहले मेरे मनम भी ऐसे ही वचार उठते थे; क तु अब मेरी वपरीत धारणा हो गयी है। इसका कारण सुनो। नरे र! तु हारे भयसे अ य त ःख पाकर मने योगी र द ा ेयजीक शरण ली और उनक कृपासे अब मुझे ान ा त हो गया है। सम त इ य को जीतकर तथा सब ओरसे आस हटाकर मनको म लगाना और इस कार मनको जीतना ही सबसे बड़ी वजय है; अतः अब म तु हारा श ु नह ँ, तुम भी मेरे श ु नह हो तथा ये सुबा भी मेरे अपकारी नह ह। मने इन सब



बात को अ छ तरह समझ लया है। अतः राजन्! अब अपने लये तुम कोई सरा श ु ढूँ ढ़ो। अलकके य कहनेपर राजा सुबा अ य त स होकर उठे और ‘ध य! ध य!’ कहकर अपने भाईका अ भन दन करनेके प ात् वे का शराजसे इस कार बोले —‘नृप े ! म जस कायके लये तु हारी शरणम आया था, वह सब पूरा हो गया। अब म जाता ँ। तुम सुखी रहो।’ का शराजने कहा—सुबाहो! तुम कस लये आये थे? और तु हारा कौन-सा काय स आ? यह बताओ। मुझे तु हारी बात से बड़ा कौतूहल हो रहा है। तुमने मेरे पास आकर कहा था क ‘मेरे बाप-दाद का ब त बड़ा रा य अलकने हड़प लया है। वह उनसे जीतकर मुझे दे दो।’ तब मने तु हारे भाईपर आ मण करके यह रा य अपने वशम कया। यह तु ह कुलपर परासे ा त है, अतः इसका उपभोग करो। सुबा बोले—का शराज! मने जस उ े यसे यह य न कया था और जसके लये तुमसे भी महान् उ ोग कराया, वह बतलाता ँ; सुनो। मेरा यह छोटा भाई त व होकर भी सांसा रक भोग म फँसा आ था। मेरे दो बड़े भाई परम ानी ह। उन दोन को तथा मुझे भी हमारी माताने जब बचपनम ध पलाया, उसी समय कान म त व ान भी भर दया। मनु यमा को जनका ान होना चा हये, वे सभी पदाथ माताने हमारे सामने का शत कर दये। क तु यह अलक उस ानसे व चत रह गया था। राजन्! जैसे एक साथ या ा करनेवाल मसे एकको क म पड़ा दे खकर साधु पु ष के दयम ःख होता है, उसी कार इस अलकको गृह थ-आ मके मोहम फँसकर क उठाते ए दे खकर हम तीन भाइय को क होता था। य क यह इस शरीरका स ब धी है, और इसके साथ ‘भाई’ क क पना जुड़ी ई है। तब मने सोचा, ःख पड़नेपर ही इसके मनम वैरा यक भावना जा त् होगी; अतः यु ो ोगके लये तु हारा आ य लया। फर इस ःखसे इसको वैरा य आ और वैरा यसे ानक ा त ई। इस कार जो काय मुझे अभी था, वह पूरा हो गया। अतः तु हारा क याण हो, अब म जाता ँ। मदालसाके गभम रहकर और उसके तन का ध पीकर यह अलक सरी ीके पु ारा हण कये ए मागपर न जाय, यही वचारकर मने तु हारा सहारा लया था। सो सब काय पूरा हो गया, अब म स के लये जाता ँ। नरे ! जो लोग क म पड़े ए अपने वजन, ब धु और सु द्क उपे ा करते ह, वे मेरे वचारसे वकले य ह, उनक इ याँ—हाथ-पैर आ द बेकार ह। जो समथ सु द्, वजन और ब धुके होते ए धम, अथ, काम और मो से व चत हो क भोगता है, वहाँ उसके वे सु द् आ द ही न दाके पा होते ह। राजन्! तु हारे स से मने यह ब त बड़ा काय स कर लया। तु हारा क याण हो, अब म जाऊँगा। साधु े ! तुम भी ानी बनो। का शराजने कहा—महा मन्! तुमने अलकका तो ब त बड़ा उपकार कया, अब मेरी भलाईम अपना मन य नह लगाते? स पु ष का साधु पु ष के साथ जो समागम



होता है, वह सदा फल दे नेवाला ही होता है, न फल नह ; अतः तु हारे स से मेरी भी उ त होनी चा हये।



सुबा बोले—राजन्! धम, अथ, काम और मो —ये चार पु षाथ ह। इनमसे धम, अथ और काम तो तु ह ा त ह। केवल मो से तुम व चत हो, अतः वही तु ह सं ेपसे बतलाता ँ। एका च होकर सुनो। सुनकर भलीभाँ त उसक आलोचना करो और उसीके अनुसार अपने क याणके य नम लग जाओ। राजन्! ‘यह मेरा है और यह म ँ’ इस कारक ती त तु ह नह करनी चा हये; य क आलोचनाका वषय तो बा धम ही होता है। धमके अभावम कोई आ य नह रहता। अहं (म) यह सं ा कसक है, इस बातका तु ह वचार करना चा हये। बा और आ त रक त वक आलोचना करनी चा हये। आधी रातके बाद भी इस त वका वचार करना चा हये। अ से लेकर वशेषतक जो वकारर हत, अचेतन और अ त व है, उसे जानना चा हये और उनका ाता जो म ँ, वह म कौन ँ—इसे भी जानना चा हये। इस ‘म’ को ही जान लेनेपर तु ह सबका



ान हो जायगा। अना माम आ मबु का होना और जो अपना नह है उसे अपना मानना —यही अ ान है। भूपाल! वह म सव ापक आ मा ँ, तथा प तु हारे पूछनेपर लोक वहारक से मने ये सब बात बता द ह। अब म जाता ँ। सुम त कहते ह—काशीनरेशसे य कहकर परम बु मान् सुबा चले गये। का शराजने भी अलकका स कार करके अपने नगरक राह ली। अलकने अपने ये पु को राजाके पदपर अ भ ष कर दया और वयं सब कारक आस य का याग करके वे आ म स के लये वनम चले गये। वहाँ ब त समयतक वे न एवं प र हशू य होकर रहे और अनुपम योगस प को पाकर परम नवाणपदको ा त ए। पताजी! आप भी अपनी मु के लये इस उ म योगका साधन क जये। इससे आप उस को ा त ह गे, जहाँ जानेपर आपको शोक नह होगा। अब म भी जाऊँगा। य और जपसे मुझे या लेना है। कृतकृ य पु षका येक काय भावक ा तके लये ही होता है, अतः आपक आ ा लेकर म जाता ँ। अब न एवं प र हशू य होकर मु के लये ऐसा य न क ँ गा, जससे मुझे परम स तोषक ा त हो। प ी कहते ह—जै म नजी! अपने पतासे य कहकर और उनक आ ा ले परम बु मान् सुम त सब कारके सं हको छोड़कर चले गये। उनके महाबु मान् पता भी उसी कार मशः वान थ-आ मम जाकर चौथे आ मम व ए। वहाँ पु से पुनः उनक भट ई और उ ह ने गुण आ द ब धन का याग करके त काल ा त ई उ म बु से यु हो परम स ातक। न्! आपने हमलोग से जो कया था, उसका व तारपूवक हमने यथावत् वणन कया। अब आप और या सुनना चाहते ह?



माक डेय- ौ ु क-संवादका आर भ, ाकृत सगका वणन जै म न बोले— े प गण! आपने वृ और नवृ —दो कारके वै दक कम बतलाते ए मुझे ब त सु दर उपदे श दया है। अहो! पताक कृपासे आपलोग का ान ऐसा है, जससे तय यो नको ा त होकर भी आपने मोहका याग कर दया। आपलोग ध य ह; य क उ म स क ा तके लये आपलोग का मन आज भी पूवाव थाम ही थत है। वषयज नत मोह उसे वच लत नह कर पाते। मेरा बड़ा भा य है क मह ष माक डेयजीने मुझे आपलोग का प रचय दया। आप सब कारके संदेह का नराकरण करनेम सबसे े ह। इस अ य त सङ् कटपूण संसारम भटकते ए मनु य को बना तप या कये आप-जैसे स त का स ा त होना लभ है। म तो ऐसा समझता ँ क वृ , नवृ एवं ानके वषयम आपलोग क बु जैसी नमल है, वैसी सरे कसीक नह है। य द आपका मुझपर अनु ह है तो मेरे लये आगे बतायी जानेवाली बात का पूण पसे वणन करनेक कृपा क जये। यह थावर-ज म जगत् कैसे उ प आ? क पा तम पुनः कस कार यह लयको ा त होगा? दे वता, ऋ ष, पतर और भूत आ दके वंश कैसे ए? म व तर कस कार होते ह? उनके वंशम उ प महापु ष के जीवन-च र कैसे ह? जतनी सृ , जतने लय, जैसे-जैसे क प के वभाग, जो-जो म व तरक थ त, जैसी पृ वीक थ त, जतना बड़ा पृ वीका व तार तथा समु , पवत, नद , वन, भूलोक आ द, वल कसमुदाय और पातालक जस कारक थ त है, वह सब मुझे बताइये। सूय, च मा आ द ह, न और तार क ग त तथा लयकालतकक सारी बात म सुनना चाहता ँ। जब इस जगत्का संहार हो जायगा, तब उसके बाद या शेष रहेगा? इस पर भी काश डा लये। प य ने कहा—मु न े ! आपने हमलोग पर का ऐसा भार रख दया, जसक कह तुलना नह है। अब हम आपके पूछे ए वषय का वणन करते ह, सु नये। पूवकालम माक डेयजीने ा णकुमार ौ ु कसे, जो परम बु मान्, त नात तथा शा त वभाववाले थे, जो कुछ कहा था, वही हम आपसे कहते ह। एक समय महा मा माक डेय मु न े ा ण से घरे बैठे थे। वहाँ ौ ु कने यही बात पूछ थी, जसे आपने हमसे पूछा है। भृगन ु दन माक डेयजीने बड़ी स ताके साथ ौ ु कके का उ र दया। उसीका हम आपसे वणन करते ह। आप यान दे कर सुन। जो सृ के समय ा, पालन-कालम व णु तथा संहारके समय जगत्का अ त करनेवाले अ य त भयङ् कर ह, उन स पूण जगत्के वामी प यो न पतामह ाजीको म णाम करता ँ। माक डेयजीने कहा—पूवकालम अ ज मा ाजीके कट होते ही उनके मुख से मशः पुराण और वेद कट ए, फर मह षय ने पुराणक ब त-सी सं हताएँ रच और वेद के भी सह वभाग कये। धम, ान, वैरा य और ऐ य—ये चार महा मा



ाजीके उपदे श बना नह स हो सकते थे। ाजीके मानस पु स त षय ने उनसे वेद को हण कया और ाजीके मनसे उ प ए भृगु आ द ऋ षय ने पुराणको अपनाया। भृगस ु े यवनने और यवनसे षय ने उसे ा त कया। फर उ ह ने द को उपदे श दया और द ने मुझे इस पुराणको सुनाया था। वही आज म तुमसे कहता ँ। यह पुराण क लयुगके सम त पाप का नाश करनेवाला है। जो स पूण जगत्क उ प के थान, अज मा, अ वनाशी, आ य व प, चराचर जगत्को धारण करनेवाले तथा परमपद व प ह, ज ह आ दपु ष ा कहा जाता है, जो उ प , पालन और संहारके कारण ह, कसीके औरस पु न होकर वयंभू ह, जनम स पूण व त त है, जो हर यगभ, लोकसृ म लगे रहनेवाले और परम बु मान् ह, उन भगवान् ाजीको नम कार करके म परम उ म भूतवगका वणन आर भ करता ँ। वह भूतसमुदाय१ पाँचक सं याम जाननेके यो य तथा व वध२ ोत से यु है। मह वसे लेकर वशेषपय त उसक थ त है। उसम कसका कैसा ल ण है और कसके पम कतनी व भ ता है, इन सब बात का ान कराते ए भूतसमुदायका वणन करता ँ। इस भौ तक जगत्का जो कारण है, उसे ‘ धान’ कहते ह। उसीको मह षय ने अ कहा है और वही सू म, न य एवं सदस व पा कृ त है। सृ के आ दकालम केवल था, जो न य, अ वनाशी, अजर और अ मेय है। उसका सरा कोई आधार नह है। वह ग ध, प, रस, श द और पशसे र हत है। उसका आ द और अ त नह है। वह स पूण जगत्क यो न, तीन गुण का कारण एवं अ वनाशी है। उसे आधु नक नह , पुरातन एवं सनातन कहा गया है। वह ान- व ानका वषय नह है। लयके प ात् उस से ही यह सब कुछ ा त था। मुने! फर सृ काल आनेपर गुण क सा याव था प कृ त जब के े पसे अ ध त ई, तब उससे मह वका आ वभाव आ। उ प ए उस मह वको धान ( कृ त)-ने आवृत कर रखा है। जैसे बीज वचासे घरा आ होता है, उसी कार अ कृ तसे मह व आ छा दत है। वह सा वक, राजस और तामसभेदसे तीन कारका बताया गया है। त प ात् उस मह वसे वैका रक (सा वक), तैजस (राजस) तथा भूता द प तामस—इन तीन भेद वाला अहङ् कार उ प आ। जैसे अ कृ तसे मह व आवृत है, उसी कार अहङ् कार भी मह वसे आवृत है। भूता द नामक तामस अहङ् कारने श द-त मा ाक सृ क । उस श द-त मा ासे श द-गुणवाला आकाश उप आ; फर भूता द तामस अहङ् कारने श द-त मा ा प आकाशको आ छा दत कया। इससे पश-त मा ाक सृ ई, जससे बलवान् वायुका ाक आ। वायुका गुण पश माना गया है। श द-त मा ा प आकाशने जब पश-त मा ावाले वायुको आ छा दत कया, तब वायुने भी वकृत होकर प-त मा ाक रचना क । इस कार वायुसे अ नत व कट आ, जसका गुण प बतलाया जाता है। तदन तर पश-



त मा ावाले वायुने प-त मा ावाले तेजको आवृत कया, जससे वकृत होकर उस तेजने रस-त मा ाक सृ क । उस रस-त मा ासे जल कट आ, जो रस नामक गुणसे यु है। फर प-त मा ावाले अ नत वने रस-त मा ायु जलको आवृत कया। इससे जलम भी वकार आया और उससे ग ध-त मा ाक सृ ई। उसीसे यह सङ् घात पा पृ वी उ प ई, जसका गुण ग ध है। उन-उन भूत म कारण पसे त मा ाएँ ह, इस लये वे भूतत मा ा प माने गये ह। त मा ाएँ कसी वशेष भावका बोध नह करात । इस लये वे अ वशेष ह। इस कार तामस अहङ् कारसे यह भूतत मा ा प सग कट आ। वैका रक अहङ् कारम स वगुणक अ धकता होनेसे वह सा वक भी कहलाता है। उससे एक ही साथ वैका रक सगक उ प होती है। पाँच ाने याँ और पाँच कम याँ तैजस (राजस) अहङ् कारसे उ प बतलायी जाती ह और उनके अ ध ाता दस दे वता वैका रक (सा वक) अहङ् कारसे कट ए ह। यारहव मनको भी वैका रक सगम ही जानना चा हये। इस कार मन तथा इ या ध ाता दे वता वैका रक माने गये ह। वण, वचा, ने , ज ा और ना सका—ये पाँच इ याँ श दा द वषय का ान करानेके लये ह, इस लये इ ह ाने य कहते ह। दोन पैर, गुदा, उप थ, दोन हाथ और वाक्—ये पाँच कम याँ ह। मशः चलना, मल याग, र तके आन दका अनुभव, श परचना और बोलना—ये पाँच इनके कम ह। श द-त मा ायु आकाश पश-त मा ावाले वायुम व है, इस लये वायु दो गुण से यु होता है। उसका अपना गुण पश है। उसके साथ आकाशका श द भी रहता है। इसी कार श द और पश—ये दो गुण पम वेश करते ह। इस लये अ न श द, पश और प—इन तीन गुण से यु होता है। फर श द, पश और प—इन तीन का रसम वेश होता है। इस लये रसा मक जलको चार गुण से यु समझना चा हये। इसी कार श द, पश, प और रस—ये चार ग धम वेश करते ह और उससे मलकर सब ओरसे पृ वीको आवृत कर लेते ह। इस लये पृ वी पाँच गुण से यु है और सब भूत म थूल दखायी दे ती है। ये पाँच भूत शा त, घोर और मूढ़ ह। अथात् सुख, ःख एवं मोहसे यु ह। इस लये ये वशेष कहलाते ह।* पर पर वेश करनेपर ये एक- सरेको धारण करते ह। ये मह वसे लेकर वशेषपय त सभी भूत एक- सरेसे मलकर और पर पर आ त हो एक संघातको ही अपना ल य बना जब पूण पसे एक हो जाते ह, तब पु षसे अ ध त होनेके कारण धान त वके स ब धसे अ डक उ प करते ह। वह महान् अ ड जलके बुलबुलेके समान मशः बढ़ता है और जलपर थत रहता है। उस ाकृत अ डम ा नामसे स े पु ष भी वृ को ा त होता है। वे ा ही सबसे थम शरीरधारी होनेके कारण पु ष कहलाते ह। भूत के आ दकता ाजी सबसे पहले कट ए। उ ह ने चराचरस हत स पूण लोक को ा त कर रखा है। अ डके गभम थत उन महा मा ाजीके लये मे पवत ही गभको ढकनेवाली झ ली आ। अ य पवत जरायु



(जेर) ए तथा समु ही उस गभाशयका जल था। उस अ डम ही दे वता, असुर और मनु य स हत स पूण जगत् उ प आ तथा पवत, प, समु और न -म डलके साथ भुवनका आ वभाव आ। वह अ ड मशः जल, अ न, वायु, आकाश तथा तामस अहङ् कारके ारा बाहरसे आवृत है। ये आवरण एकक अपे ा सरे दसगुने बड़े ह। तामस-अहंकार उससे दसगुने बड़े मह वके ारा आवृत है और मह व भी उन सबके साथ अ कृ तके ारा घरा आ है। इस कार इन सात ाकृत आवरण से यह अ ड आवृत है। इस तरह वे आठ कृ तयाँ एक- सरेको आवृत करके थत ह। वह कृ त न य है और उसके भीतर वे ही पु ष ह, जो तु ह ाके नामसे बताये गये ह। अब सं ेपसे पुनः इस वषयका वणन सुनो—जैसे कोई पु ष जलम डू बकर फर नकलते समय जलको फकता है, उसी कार भगवान् ाजी भी कृ तको हटाते ए उससे कट होते ह। अ कृ तको े बताया गया है और ाजी े कहलाते ह। यह स पूण जगत् े - े प ही है—ऐसा समझना चा हये। इस कार यह ाकृत सगका वणन आ। इसके भीतर अ ध ाता पसे े वराजमान रहता है। ाकृत सग ही थम सृ है।



१. पृ वी, जल, अ न, वायु और आकाश—ये पाँच भूत ह। २. पशु-प ी आ दक सृ को ‘ तयक् ोत’, मानवसगको ‘अवाक् ोत’ और दे वसगको ‘ऊ व ोत’ कहते ह। *



पर पर मलनेसे सभी भूत शा त, घोर और मूढ़ तीत होते ह; क तु पृथक् वचार करनेपर पृ वी और जल शा त ह, तेज और वायु घोर है तथा आकाश मूढ़ है।



एक ही परमा माके वध प, मान तथा सृ का सं



ाजीक आयु आ दका त वणन



ौ ु कने कहा—भगवन्! आपने ा डक उ प का यथावत् वणन कया तथा महा मा ाजीके ा भावक बात भी बतलायी। भृगक ु ु लन दन! अब म आपसे यह सुनना चाहता ँ क लयके अ तम, जब क सबका उपसंहार हो जाता है और ा णय क सृ नह ई होती, या शेष रहता है? अथवा कुछ रहता ही नह ? माक डेयजी बोले—मुने! जब यह स पूण जगत् कृ तम लीन होता है, उस समयक थ तको व ान् पु ष ाकृत लय कहते ह। जब अ कृ त अपने व प (गुण क सा याव था)-म थत होती है तथा मह वा द स पूण वकार का उपसंहार हो जाता है, उस समय कृ त और पु ष समानधमा ( न य, न वकार) होकर रहते ह। उस समय स व और तम समान पम और पर पर ओत- ोत रहते ह तथा जैसे तलम तेल और धम घी रहता है, उसी कार तमोगुण और स वगुणम रजोगुण घुला- मला होता है। जब परमे रक योग से कृ तम ोभ होता है, तब महान् अ डके भीतरसे ाजी कट होते ह—यह बात तु ह बतलायी जा चुक है। य प ाजी स पूण जगत्क उ प के थान और नगुण ह, तथा प रजोगुणका उपभोग करते ए सृ म वृ होते ह और ाके कत का पालन करते ह। फर परमे र स वगुणके उ कषसे यु हो ी व णुका व प धारणकर धमपूवक जाका पालन करते ह। फर तमोगुणक अ धकतासे यु हो प धारण करके स पूण जगत्का संहार करते और न त सोते ह। इस कार सृ , पालन और संहार—इन तीन काल म तीन गुण से यु होकर भी वे परमे र वा तवम नगुण ही ह। जैसे खे तहर पहले बीजको बोता, फर पौधेक र ा करता और अ तम खेती पक जानेपर उसे काटता है तथा इन काय के अनुसार बोनेवाला, र ा करनेवाला और काटनेवाला—ये तीन नाम धारण करता है, उसी कार एक ही परमे र भ - भ काय के अनुसार ा, व णु तथा नाम धारण करते ह। ा होकर संसारक सृ करते और होकर उसका संहार करते ह तथा व णु पम इन दोन काय से उदासीन रहकर सबका पालन करते ह। इस तरह वय भू परमा माक तीन अव थाएँ होती ह। रजोगुण धान ा, तमोगुण धान और स व धान व पालक व णु ह। ये ही तीन दे वता ह और ये ही तीन गुण ह। ये पर पर एक- सरेके आ त और एक- सरेसे मले रहते ह। इनम एक णका भी वयोग नह होता। ये एक- सरेका कभी याग नह करते। इस कार जगत्के आ दकारण दे वा धदे व चतुमुख ाजी रजोगुणका आ य लेकर सृ के कायम संल न रहते ह। उनक आयु अपने ही मानसे सौ वष क होती है। उसका



प रमाण बतलाता ँ, सुनो। पं ह नमेष क एक का ा होती है, तीस का ा क एक कला, तीस कला का एक मु त तथा तीस मु त का एक दन-रात होता है। यह मनु य के दन-रातका मान है। तीस दन-रात तीत होनेपर दो प अथवा एक मास पूण होता है। छः मास का एक अयन और दो अयन का एक वष होता है। दो अयन का नाम मशः द णायन और उ रायण है। इस कार मनु य का एक वष दे वता का एक दन-रात है। उसम दन तो उ रायण और रात द णायन है। दे वता के बारह हजार वष क एक चतुयुगी होती है, जसे स ययुग, ेता आ द कहते ह। अब इनका वभाग सुनो। चार हजार द वष का स ययुग होता है, चार सौ द वष क उसक स या और उतने ही वष का स यांश होता है। तीन हजार द वष का ेतायुग है। उसक स या और स यांशका समय तीन-तीन सौ द वष का है। दो हजार द वष का ापरयुग होता है और दो-दो सौ द वष उसक स या तथा स यांशके होते ह। ज े ! एक हजार द वष का क लयुग होता है तथा सौ-सौ द वष उसक स या एवं स यांशके बताये गये ह। इस कार व ान ने बारह हजार द वष क एक चतुयुगी बतायी है। एक हजार चतुयुगी बीतनेपर ाका एक दन होता है। न्! ाजीके एक दनम बारी-बारीसे चौदह मनु होते ह। दे वता, स त ष, इ , मनु और मनुपु —ये सब लोग एक ही साथ उ प होते ह और एक ही साथ इनका संहार भी होता है। इस कार इकह र चतुयुग से कुछ अ धक कालका एक म व तर होता है।* अब मनु य-वष-गणनाके अनुसार म व तरका मान सुनो। पूरे तीस करोड़ सरसठ लाख और बीस हजार वष का एक म व तर माना गया है। दे वता के वषसे एक म व तरम आठ लाख, बावन हजार वष होते ह। इस कालको चौदह गुना करनेपर ाका एक दन होता है। इसके अ तम व ान ने नै म क लयका होना बतलाया है। उसम भूल क, भुवल क और वल क जलकर न हो जाते ह। महल क बच जाता है; क तु नीचेके लोक के जलनेसे वहाँ इतना ताप प ँचता है क उस लोकके नवासी जनलोकम चले जाते ह। फर तीन लोक एक महासमु के गभम छप जाते ह। ाक रात आ जाती है, इस लये वे उसम शयन करते ह। ाके दनके बराबर ही उनक रात भी होती है। उनके बीतनेपर फर सृ का म चालू होता है। इस कार मशः ाका एक वष बीतता है और पूरे सौ वषतक उनका जीवन रहता है। उनके सौ वषको एक ‘पर’ कहते ह। उसमसे पचास वष क ‘परा ’ सं ा है। इस तरह ाका एक परा बीत चुका है। उसके अ तम पा नामसे व यात महाक प आ था। न्! अब उनका सरा परा चल रहा है। इसम यह वाराह क प थम क प है। ौ ु क बोले—सृ के आ दकता तथा जाप तय के वामी भगवान् ाजीने जस कार जाको उ प कया, उसका मेरे लये व तारपूवक वणन क जये। माक डेयजीने कहा— न्! पा क पके अ तम जो लय आ था, उसके बाद रा बीतनेपर जब स वगुणके उ कषसे यु ी व णु व प ाजी सोकर उठे , उस



समय उ ह ने संसारको शू य दे खा। जगत्क उ प और संहार करनेवाले व प भगवान् नारायणके वषयम व ान् पु ष यह ोक कहा करते ह— आपो नारा इ त ो ा आपो वै नरसूनवः । तासु शेते स य मा च तेन नारायणः मृतः ।। ‘जल नरसे कट आ है, इस लये वह नार कहलाता है। भगवान् उसम सोते ह— भगवान्का वह अयन है, इस लये वे नारायण कहे गये ह।’ जागनेके बाद उ ह ने पृ वीको जलके भीतर डू बी ई जानकर उसे नकालनेक इ छासे वाराह प धारण कया। उनका वह व प वेदमय, य मय एवं द था। उन सव ापी भगवान्ने वाराह पसे ही जलम वेश कया और पातालसे पृ वीको नकालकर जलके ऊपर रखा। उस समय जनलोक नवासी स गण उन जगद रका च तन एवं तवन कर रहे थे। पृ वी उस जल-रा शके ऊपर ब त बड़ी नौकाक भाँ त थत ई। पृ वीका आकार ब त वशाल और व तृत है, इस लये यह जलम डू ब नह पाती। तदन तर पृ वीको बराबर करके भगवान्ने उसपर पवत क सृ क । पूवक पक सृ जब लया नसे द ध होने लगी थी, उस समय सब पवत पृ वीपर ख ड-ख ड होकर बखर गये और एकाणवके जलम डू ब गये। फर वायुके ारा वहाँ ब त-सा जल एक त आ। उस जलसे भीगकर और वाहम बहकर जो पवत जहाँ लग गये, वे वह अचल पसे थत हो गये। ौ ु कने कहा— न्! आपने थोड़ेम ही सृ का भलीभाँ त वणन कया, अब मुझे दे वता आ दक उ प का वृ ा त व तारके साथ बतलाइये। माक डेयजी बोले— न्! ाजीने जब सृ रचनेका वचार कया, तब पहले उनसे मानस पु ही उ प ए। तदन तर दे वता, असुर, पतर और मनु य—इन चार को उ प करनेक इ छासे उ ह ने जलम अपनेको योगयु कया। योग थ होनेपर ाजीके क ट दे शसे पहले असुर क उ प ई। तब उ ह ने अपने उस तमोगुणी शरीरको याग दया। यागनेपर वह शरीर रा के पम प रणत हो गया। फर सरा शरीर धारण करके जब जाप तने सृ का वचार कया, तब उ ह स ता ई। उस अव थाम उनके मुखसे स वगुणके उ कषसे यु दे वता उ प ए। फर भगवान् ाने उस शरीरको भी याग दया। यागनेपर वह स व ाय दनके पम प रणत हो गया। तदन तर पुनः उ ह ने स वगुणी शरीरको ही धारण कया। उस समय उ ह ने अपनेको सबका पता माना, इस लये उनसे पतर क उ प ई। पतर क सृ के बाद ाजीने वह शरीर भी छोड़ दया। वह छोड़ा आ शरीर स याकालके पम प रणत आ, जो दन और रातके म यम थत होता है। त प ात् भगवान् ाने रजोगुणक अ धकतासे यु सरा शरीर धारण कया। उससे मनु य क उ प ई। मनु य क सृ के बाद उस शरीरको भी उ ह ने याग दया। वह शरीर यो नाकालके पम प रणत आ, जो रातके अ त और दनके



ार भम आ करता है। इस कार ये रात- दन, स या और यो नाकाल दे वा धदे व भगवान् ाके शरीर ह। ाजीने अपने थम मुखसे गाय ी छ द, ऋ वेद, वृत् रथ तर साम तथा अ न ोम य को उ प कया। द ण मुखसे यजुवद, ु प् छ द, प चदश तोम तथा बृह सामक सृ क । प म मुखसे सामवेद, जगती छ द, प चदश तोम, वै प साम तथा अ तरा य का नमाण कया और उ र मुखसे इ क सवाँ अथव, आ तोयाम य , अनु ु प् छ द तथा वैराज सामको कट कया। उ ह ने क पके आ दम बजली, व , मेघ, लाल इ धनुष और प य क सृ क । तथा उनके शरीरसे छोटे -बड़े अनेक ाणी उ प ए। पूवकालम दे वता, असुर, पतर और मनु य—इन चार क सृ करनेके प ात् उ ह ने अ य थावर-ज म ा णय को उ प कया। य , पशाच, ग धव, अ सरा, नर, क र, रा स, पशु, प ी, मृग, सप आ द ज म तथा थावर भूत क सृ क । उनमसे जनके पूवक पम जैसे कम थे, वैसे ही कम वे पुनः-पुन नूतन सृ म ा त करते ह। हसा-अ हसा, मृ ताू रता, धम-अधम तथा स य-अस यको वे पूवज मक भावनाके अनुसार ही ा त करते ह और उस भावनाके अनुकूल व तु ही उ ह चकर जान पड़ती है। इ य के वषय , भूत तथा शरीर म वयं ाजीने ही नाना वका वधान कया है—उ ह अनेक प म उ प कया है। दे वता आ द भूत के नाम और पका तथा काय के व तारका उ ह ने वेदके श द से ही तपादन कया है। ऋ षय के नाम भी वेद से ही न त कये ह। ाजीक रा का अ त होनेपर उ ह ने दे वता आ द जन- जन भूत क सृ क है, उन सबके नामप और कत का ान भी वे वेद से ही दान करते ह। जस ऋतुम जस कारके अनेक च दे खे जाते ह, युगा दम सृ होनेपर वे सभी वैसे ही गोचर होते ह। रा के अ तम जगे ए अ ज मा ाक सृ येक क पम ऐसी ही होती है।



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इकह र चतुयुग के हसाबसे चौदह म व तर म ९९४ चतुयुग होते ह और ाके एक दनम एक हजार चतुयुग होते ह, अतः छः चतुयुग और बचे। छः चतुयुग का चौदहवाँ भाग कुछ कम पाँच हजार एक सौ तीन द वष होता है, इस कार एक म व तरम इकह र चतुयुगके अ त र इतने द वष और अ धक होते ह।



जाक सृ , नवास- थान, जी वकाके उपाय और वणा म-धमके पालनका माहा य ौ ु कने कहा— न्! आपने अवाक् ोत नामक सगका, जो मानवसग ही है, वणन कया; अब व तारपूवक यह बतलानेक कृपा कर क ाजीने सृ का व तार कैसे कया। महामते! उ ह ने वण क सृ कैसे क ? उनके गुण या ह तथा ा ण आ द वण का कम कौन-सा माना गया है? माक डेयजी बोले—मुने! स यका च तन करनेवाले ाजीने पूवकालम जब सृ रचना आर भ क , तब उनके मुखसे एक हजार ी-पु ष उ प ए। वे सब-के-सब सा वक तथा स दय थे। तदन तर ाजीने अपने व ः थलसे एक सह अ य ीपु ष को उ प कया। वे सभी रजोगुणक अ धकतासे यु , शूरवीर और ोधी थे। उसके बाद उ ह ने अपनी दोन जाँघ से सरे एक सह ी-पु ष को कट कया। वे सब तमोगुणी, ीहीन तथा म दबु थे। वे सब जोड़ेके पम उ प ए जीव अ य त स होकर एक- सरेके साथ मैथुनक याम वृ हो गये। तभीसे इस क पम मैथुनका चार आ। फर ाजीने पशाच, सप, रा स, डाह करनेवाले मनु य, पशु-प ी, मगर, मछली, ब छू तथा अ डज आ दको उ प कया। पहलेक जा सा वक और धमपरायण थी, अतः यहाँ सब ओर सुख-शा त थी। इसके बाद काला तरम उनके भीतर लोभका उदय आ। फर तो शीत, उ ण, ुधा आ द कट ए। जा ने उस को र करनेके लये पहले पुर का नमाण कया। कुछ लोग म भू म अथवा ध वदे शको श ु के लये गम समझकर उसम रहने लगे। कुछ लोग ने पवत और गुफा का आ य लया। कुछ मनु य ने वृ , पवत और जलके ग को अपना नवास- थान बनाया। कुछ लोग कृ म ग बनाकर उसम रहने लगे। उ ह ने व तु क लंबाई-चौड़ाई मापनेके लये अँगु लय से नाप-नापकर पहले कुछ माप तैयार कये। उनका पैमाना इस कार बना। सबसे सू म व तु है परमाणु। उससे बड़ा सरेणु होता है, जो पृ वीक धू लका एक कण है। उससे उ रो र बड़े माण ह—वाला , ल ा, यूका और यवोदर। ये एक- सरेक अपे ा आठ-आठ गुने बड़े ह। आठ यवका एक अ ल, छः अ लका एक पद, दो पदका एक ब ा और दो ब ेका एक हाथ होता है। चार हाथका एक धनुद ड होता है। इसीको ना ड़कायुग भी कहते ह। दो हजार धनुषक एक ग ू त और चार ग ू तका एक योजन होता है। तदन तर जावगने अपने रहनेके लये पुर, खेट, ोणीमुख, शाखा-नगर, खवट, मी आ दका नमाण कया। उन सबम ाम, गोशाला आ दक व था करके वहाँ पृथक्पृथक् नवास- थान बनवाये। जसके चार ओर ऊँची चहारद वारी हो, जो खाइय से घरा



हो, जसक लंबाई दो कोस और चौड़ाई उसका आठवाँ भाग हो, वह पुर कहलाता है। उसके पूव और उ रम जल वाहका होना उ म माना गया है। वहाँसे बाहर नकलनेके लये शु बाँसका पुल बना होना चा हये। जसक लंबाई-चौड़ाई पुरक अपे ा आधी हो, वह खेट कहलाता है और जो पुरके चौथाई ह सेके बराबर हो, उसे खवट कहते ह। जसक लंबाई-चौड़ाई पुरके आठव ह सेके बराबर हो, वह ोणीमुख कहलाता है। जहाँ चहारद वारी और खा नह है, उस पुरको खवट कहते ह। जहाँ म ी, साम त तथा भोगके ब त-से सामान ह , वह शाखानगर कहलाता है। जहाँ अ धकांश शू ह , अपनी समृ से यु कसान रहते ह , जो खेत और उपभोगयो य भू म (बाग-बगीच )के बीचम बसा हो, उसका नाम गाँव है। जहाँ कसी कायके लये मनु य अ य नगर आ दसे आकर बसते ह , उसको ब ती कहते ह। जहाँ अ धकांश का नवास हो, जहाँके रहनेवाले अपने पास खेत न होनेपर भी सरेक भू मपर अ धकार जमाते और भोगते ह, वह गाँव मीके नामसे पुकारा जाता है। वहाँ ायः वे ही लोग नवास करते ह, जो राजाके य ह । जहाँ वाले अपने बतन-भाँड़े गा ड़य पर लादकर रखते ह , बना बाजारके ही गोरस मलता हो, गाय का समूह रहता हो, जहाँ इ छानुसार भू म रहनेके लये सुलभ हो, उस थानका नाम घोष है। इस कार नगर आ दका नमाण करके जाने अपने रहनेके लये घर बनाये। वे घर इस उ े यसे बनाये गये थे क वहाँ शीत-उ ण आ द से र ा हो सके। जैसे पहले उनके घरके आकारके वृ होते थे और वहाँ उ ह जैसी सु वधाएँ ा त होती थ , उन सबका मरण करके उ ह ने घर बनाये। जैसे वृ क शाखाएँ एकके बाद सरी तथा छोट बड़ी, ऊँची-नीची होती ह, उसी कार उ ह ने अनेक कारक शालाएँ बनाय । ज े ! पूवकालम जो क पवृ क शाखाएँ थ , वे ही उस समय जावगके घर म शाला बनानेके कामम आय । इस कार गृह- नमाणके ारा शीत-उ ण आ द को र करके सब लोग जी वकाका उपाय सोचने लगे; य क उस समय सम त क पवृ मधुस हत न हो चुके थे। जब जा भूख और याससे ाकुल एवं शोकसे आतुर हो उठ तब ेताके आर भम उनके अभी क स ई। उनक इ छाके अनुसार वषा ई और वह वषाका जल नीची भू मम बढ़कर एक होने लगा। उससे ोत, पोखरे और न दयाँ बन गय । उस जलका पृ वीके साथ संयोग होनेसे बना जोते-बोये ही ा य और आर य—सब मलकर चौदह कारके अ पैदा ए। वृ और लता म ऋतुके अनुसार फूल और फल लगने लगे। ेतायुगम पहले-पहल अ का ा भाव आ। उसीसे उस युगम सब जाका जीवन- नवाह होने लगा। फर अक मात् सब लोग के मनम राग और लोभका ाक आ। इससे वे एक- सरेके त ई या रखने लगे और अपनी श के अनुसार नद , खेत, पवत, वृ और झा ड़य पर अ धकार जमाने लगे। उनके इस दोषसे सबके दे खते-दे खते सब अनाज न हो गये। पृ वीने एक साथ ही सब ओष धय को अपना ास बना लया। अनाजके न होनेसे



जा भूखसे ाकुल होकर फर इधर-उधर भटकने लगी और अ तम ाजीक शरणम गयी। ाजीने भी जाका सारा समाचार ठ क-ठ क जानकर पृ वीको गायके पम बाँधा और मे पवतको बछड़ा बनाकर उसका ध हा। ाजीने धके पम सब कारके अ ह लये थे, वे ही बीज पम कट ए और उनसे ा य तथा आर य—सब कारके अ पैदा ए, जो फलके पक जानेपर काट लये जाते ह। धान, जौ, गे ँ, छोटे धा य, तल, कँगनी, वार, कोदो, तीना, उड़द, मूँग, मसूर, मटर, कुलथी, अरहर, चना और सन—ये सतरह ा य ओष धय क जा तयाँ ह। य के कामम आनेवाली केवल चौदह ओष धयाँ ह, जनम सात ा य और सात आर य ह। उनके नाम ये ह—धान, जौ, गे ँ, छोटे धा य, तल, कँगनी, कुलथी, सावाँ, तीना, वन तल, गवेधुक, कु व द, मकई और वेणुयव। जब बोनेपर भी ये ओष धयाँ फर न जम सक , तब भगवान् ाजीने अ क वृ के लये हाथसे काम करनेक णालीको ही जी वकाका उपाय बनाया। तबसे जोतने-बोनेपर अ क उपज होने लगी। इस कार जी वकाका ब ध हो जानेपर ाजीने याय और गुणके अनुसार वणा म-धमक मयादा था पत क । अपने कम म लगे ए ा ण को लोकक ा त होती है। यु म पीठ न दखानेवाले य को इ का पद ा त होता है। वधमपरायण वै य को म ण का लोक मलता है। सेवाम संल न रहनेवाले शू ग धवलोकम जाते ह। जो लोग गु कुलम रहकर चय-पालनपूवक वेदा ययन करते ह, उ ह अ ासी हजार ऊ वरेता मह षय को ा त होनेवाला थान मलता है। वान थधमका पालन करनेवाले लोग स त षय के लोकम जाते ह। गृह थधमका व धवत् पालन करनेवाल को ाजाप य लोकक ा त होती है। सं या सय को पद और यो गय को अमृत वक उपल ध होती है। इस कार भ - भ वणधम और आ म धम का पालन करनेवाले लोग के लये पृथक्-पृथक् लोक क क पना क गयी है।



वाय भुव मनुक वंश-पर परा तथा अल मी-पु ःसहके थान आ दका वणन माक डेयजी कहते ह—मुने! तदन तर ाजी जब यान कर रहे थे, उस समय उनके मनसे मानसी जा उ प ई; साथ ही उनके शरीरसे कारण और कायका भी ा भाव आ। दे वता से लेकर थावरपय त सभी जीव गुणा मक माने गये ह। इसी कार सम त चराचर भूत क सृ ई। जब य न करनेपर भी ाजीक जा बढ़ न सक , तब उ ह ने अपने ही स श साम यसे यु नौ मानस-पु को उ प कया। उनके नाम ये ह—भृग,ु पुल य, पुलह, तु, अ रा, मरी च, द , अ तथा व स । पुराण म ये नौ ा माने गये ह।* इसके बाद ाजीने अपने ोधसे को कट कया; फर संक प और धमको उ प कया, जो पूवज के भी पूवज ह। वय भू ाजीने ज ह सबसे पहले उ प कया, वे सन दन आ द चार भाई लोकम आस नह ए। वे सब-के-सब नरपे , एका च , भ व यको जाननेवाले, वीतराग और मा सयर हत थे। त प ात् जाप तने अनेक कारके ी-पु ष उ प कये, जनम कोमल, ू र, शा त, यामवण तथा गौरवण—सभी तरहके लोग थे। इसके बाद उ ह ने अपने ही समान भावशाली एक पु र न उ प कया, जनका नाम वाय भुव मनु आ। उ ह ाजीने जाजन का र क बनाया। फर वाय भुव मनुने शत पाको अपनी प नी बनाया, जो तप याके भावसे सवथा न पाप थी। शत पाने वाय भुव मनुके स पकसे दो पु को ज म दया। वे य त और उ ानपादके नामसे व यात ए। उन दोन क अपने कम से स ई। शत पाके गभसे दो क या का भी ज म आ। उनमसे एकका नाम ऋ (आकू त) और सरीका सू त था। वाय भुव मनुने सू तका ववाह द से और ऋ (आकू त)-का च जाप तसे कया। जाप त च और आकू तसे जुड़व स तान उ प ई, जनम एक पु था और सरी क या। पु का नाम य और क याका द णा था। य के ‘याम’ नामसे व यात बारह पु ए। ये ही वाय भुव म व तरम बारह दे वता कहलाये। ये बड़े तेज वी थे। द ने सू तके गभसे चौबीस क याएँ उ प क ; उनके नाम ये ह, सुनो— ा, ल मी, धृ त, तु , पु , मेधा, या, बु , ल जा, वपु, शा त, स तथा तेरहव क त। इन सबको धमने अपनी प नीके पम हण कया। इनसे शेष जो यारह छोट क याएँ थ , उनके नाम इस कार ह— या त, सती,



स भू त, मृ त, ी त, मा, संन त, ऊ जा, अनसूया, वाहा और वधा। इन सबको मशः भृग,ु महादे वजी, मरी च, अ रा, पुल य, पुलह, तु, व स , अ , अ न और पतर ने हण कया। ाने कामको, ल मीने दपको, धृ तने नयमको, तु ने संतोष और पु ने लोभको उ प कया। मेधासे ुतका, यासे द ड, नय और वनयका, बु से बोधका, ल जासे वनयका, वपुसे वसायका, शा तसे ेमका, स से सुखका और क तसे यशका ज म आ। ये सभी धमके पु ह। कामसे उसक प नी र तने हष नामक पु उ प कया, जो धमका पौ कहलाया। अधमक ी हसा थी। उसके गभसे अनृत नामक पु और नऋ त नामवाली क या उ प ई। फर इन दोन से दो पु तथा दो क या का ज म आ। पु के नाम थे नरक और भय तथा क या के नाम थे माया और वेदना। ये उनक प नयाँ । इनम भयक ी मायाने सब ा णय का संहार करनेवाले ‘मृ यु’ नामक पु को उ प कया और वेदनाने नरकके संसगसे ःख नामक पु को ज म दया। मृ युसे ा ध, जरा, शोक, तृ णा और ोध उ प ए। ये सब अधम प ह और ःखके हेतु बतलाये जाते ह। इनके ी और पु नह ह। ये सभी ऊ वरेता ह। अल मीके चौदह पु ह, जनम तेरह तो मशः दस इ य, मन, बु और अहङ् कारम पृथक्-पृथक् रहते ह। चौदहवका नाम ःसह है, वह मनु य के गृह म नवास करता है। वह भूखसे बल, नीचा मुख कये, नंग-धड़ंग और चथड़ा लपेटे रहता है; उसक आवाज कौएके समान है। जब ाजीने उसे उ प कया, तब वह सबको खा जानेके लये उ त आ। वह तमोगुणका भंडार था और बड़ी-बड़ी दाढ़ के कारण अ य त वकराल जान पड़ता था। उसका मुँह फैला आ था, इससे वह और भी भयंकर जान पड़ता था। उसको आहारके लये उ सुक दे ख लोक पतामह ाजीने कहा—‘ ःसह! तुझे इस संसारका भ ण नह करना चा हये। तू अपना ोध शा त कर। रजोगुणक कला याग और इस तामसी वृ को भी छोड़ दे ।’ ःसहने कहा—जगद र! म भूखसे बल हो रहा ँ और यास भी मुझे जोरसे सता रही है। नाथ! बताइये—मुझे कैसे तृ त हो, म कस तरह बलवान् बनूँ? तथा मेरा नवास- थान कौन है, जहाँ म सुखसे रह सकूँ? ाजीने कहा—बेटा! मनु य का घर तु हारा नवास- थान है, अधमपरायण पु ष तु हारे बल ह तथा न यकमके यागसे ही तु हारी पु होगी। मम- ण और फोड़े तु हारे व ह गे। अब तु हारे लये आहारक व था करता ँ। जसम कसी कारक त प ँची हो, क ड़े पड़ गये ह ,



कु ने डाली हो, जो फूटे बतनम रखा हो, जसे मुँहसे फूँक-फूँककर ठं डा कया गया हो, जो जूँठा और अप व हो, जसमसे पानी छू टता हो, जसको कसीने चख लया हो, जो शु तापूवक तैयार न कया गया हो, जसे फटे आसन पर बैठकर भोजन कया गया हो, जो अपने समीपवत को नह दया गया हो, वपरीत दशा अथवा कोणक ओर मुँह करके खाया गया हो, दोन स या के समय और नाच, बाजा एवं वर-तालके साथ जसको खाया गया हो, जसे रज वला ीके ारा लाया, खाया अथवा दे खा गया हो तथा जो और कसी दोषसे यु हो—ऐसा कोई भी खाने-पीनेका सामान तु हारी पु के लये म तु ह दे ता ँ। य मन्! बना ाका हवन, बना नहाये, बना जलके, अवहेलनापूवक दया आ दान, जो थ पड़ी हो अथवा फक द जानेवाली हो, ऐसी व तुका दान और अ य त अ भमानसे, दोषसे, ोधसे तथा क मानकर कया आ दान—इन सबका फल तु ह ही मलेगा! क याका मू य चुकानेके लये जो धनोपाजनक या क जाती है तथा जो असत्-शा ारा स पा दत होनेवाली याएँ ह, उन सबका फल तु हारी पु के लये तु ह दे ता ँ। जो काय केवल धन कमानेके लये कया जाता है, धमक से नह तथा जो स यक अवहेलनापूवक अ ययन कया जाता है, वह सब तु हारी इ छा-पू तके लये तु ह दे रहा ँ। जो मनु य ग भणी ीके साथ समागम करते, स या और न यकमका उ लङ् घन करते तथा असत्-शा के अनुसार काय या उनक चचा करके षत होते ह, ऐसे मनु य को दबानेक तुमम पूरी श होगी। ःसह! जहाँ एक ही पङ् म दो तरहका भोजन परोसा जाता हो, अ त थ-स कार और ब लवै दे वका उ े य न रखकर केवल अपने लये भोजन बनाया जाता हो, भोजनम भेद रखा जाता हो अथात् कसीके लये अ छा और कसीके लये खराब बनता हो और जहाँ घरम रोज-रोज कलह होता हो, वह तु हारा नवास है। जहाँ गाय-घोड़े आ द वाहन बना खलाये- पलाये बाँध दये जाते ह और सं याके पहले ही जस घरको धो-बुहारकर साफ नह कया जाता हो, वहाँ रहनेवाले मनु य को तुमसे भय ा त होगा। जो मनु य बना तके ही उपवास करते, जूए और य म आस रहते, ःसह वचन बोलते और वडाल ती होते— ब लय क तरह ऊपरसे साधु बनकर छपे- छपे अपना उ लू सीधा करते ह, वे सब तु हारे उपकारी ह। जो चयपालनके बना ही अ ययन और व ान् ए बना ही य करते ह, तपोवनम रहकर भी ा य वषय-भोग का सेवन करते और अपने मनको जीतनेका य न नह करते तथा



जो ा ण, य, वै य एवं शू अपने-अपने कमसे होते ह, ऐसे लोग परलोकक इ छासे जो भी चे ा करते ह, उसका सारा फल तु ह को मलेगा। य मन्! तु हारी पु के लये और भी उपाय बताता ँ, सुनो। जो लोग ब लवै दे वके अ तम तु हारे नामके उ चारणपूवक तु ह ब ल अपण करते ह और ‘य मैत े नणजनं नमः’ कहकर उसे यागते ह, जो शु तापूवक बना आ अ व धपूवक भोजन करते, बाहर-भीतरसे प व रहते, लोलुपता नह रखते और य के वशीभूत नह होते, ऐसे मनु य के घर को तुम याग दे ना। जहाँ ह व यसे दे वता क और ा ा से पतर क पूजा होती हो तथा कुलक य , बहन और अ त थय का वागत-स कार होता हो, उस घरको भी छोड़ दे ना। जहाँ बालक, वृ , ी-पु ष तथा वजनवगम ेम हो, जहाँक याँ आन दपूवक रहती ह , बाहर जानेके लये उ सुक नह होत तथा ल जाक र ा करती ह, उस घरपर भी न डालना। जहाँ अव था और स ब धके अनुसार शयन, आसन और भोजनक व था हो, जहाँके नवासी दयालु, स कमपरायण और साधारण साम ीसे यु ह तथा जस घरके लोग गु , वृ एवं ा ण के खड़े रहनेपर वयं भी आसनपर नह बैठते, वह घर भी तु ह छोड़ दे ना चा हये। दे वता, पतर, मनु य और अ त थय के भोजनसे बचा आ अ ही जसका भोजन है, उस पु षके घरम भी तुम पैर न रखना। जो स यवाद , माशील, अ हसक, सर को पीड़ा न दे नेवाले तथा दोष से र हत ह , ऐसे पु ष को तुम छोड़ दे ना। जो अपने प तक सेवाम संल न रहती, ा य का साथ नह करती तथा कुटु बके लोग एवं प तके भोजन करनेसे बचे ए अ को ही खाकर अपने शरीरका पोषण करती है, ऐसी ीको भी तुम हाथ न लगाना। जो सदा य , अ ययन, वेदा यास और दानम मन लगाता है, य कराने, शा पढ़ाने तथा उ म दान हण करनेसे ही जसक जी वका चलती हो, ऐसे ा णको भी तुम याग दे ना। ःसह! जो सदा दान, अ ययन और य के लये उ त रहता और अपने लये उ म एवं वशु श हणक वृ से जी वका चलाता हो, उस यके पास भी तुम न जाना। जो दान, अ ययन और य —इन तीन पूव गुण से यु हो और पशुपालन, ापार एवं कृ षसे जी वका चलाता हो, ऐसे पापर हत वै यको भी याग दे ना। य मन्! जो दान, य और ज क सेवाम त पर रहता और ा ण आ दक सेवासे ही जीवन- नवाह करता हो—ऐसे शू का भी याग कर दे ना। जहाँ गृह थ पु ष ु त- मृ तके अनुकूल उपायसे जी वका चलाता हो, उसक प नी उसीक अनुगा मनी हो, पु गु , दे वता और पताका पूजन करता



हो तथा प नी भी प तक पूजाम संल न रहती हो, वहाँ अल मीका भय कैसे हो सकता है। य मन्! जो त दन सं याके समय पानीसे धोया जाता और थानथानपर फूल से पू जत होता है, उस घरक ओर तुम आँख उठाकर दे ख भी नह सकते। जस घरम बछ ई श याको सूय न दे खते ह अथात् जहाँ लोग सूय दयसे पहले ही सोकर उठ जाते ह , जहाँ त दन अ न और जल तुत रहता हो, सूय दय होनेतक द प जलता एवं सूयका पूण काश प ँचता हो, वह घर ल मीका नवास- थान है। जहाँ साँड़, च दन, वीणा, दपण, मधु, घृत, ा ण तथा ताँबेके पा ह , उस घरम तु हारे लये थान नह है। ःसह! जहाँ पके या क चे अ का अनादर और शा क आ ाका उ लङ् घन होता हो, उस घरम तुम इ छानुसार वचरण करो। जस घरम मनु यक ह ी हो और एक दन तथा एक रात मुदा पड़ा रहा हो, उसम तु हारा तथा अ य रा स का भी नवास रहे। जो अपने भाई-ब धुको तथा स प ड एवं समानोदक मनु य को अ और जल दये बना ही भोजन करते ह, उस समय उन लोग पर तुम आ मण करो। जहाँ पुरवासी पहलेसे ही बड़े-बड़े उ सव मनानेम स हो चुके ह और पहलेक ही भाँ त अब अपने घरपर उ सव मनाते ह , ऐसे घर म न जाना। जो सूपक हवासे, भीगे कपड़ेके जलक बूँद से तथा नखके अ भागके जलसे नान करते ह , उन कुल णी पु ष के पास अव य जाओ। जो पु ष दे शाचार, त ा, कुलधम, जप, होम, म ल, दे वय , उ म शौच तथा लोक- च लत धम का भलीभाँ त पालन करता हो, उसके संसगम तु ह नह जाना चा हये। माक डेयजी कहते ह— ःसहसे ऐसी बात कहकर ाजी वह अ तधान हो गये। फर उसने भी ाजीक आ ाका उसी कार पालन कया।



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भृगंु पुल यं पुलहं तुम रसं तथा । मरी च द म नव ाण इ येते पुराणे न यं गताः ।।



च व स ं चैव मानसम् ।। (५०।५-६)



ःसहक स तान ारा होनेवाले व न और उनक शा तके उपाय माक डेयजी कहते ह— ःसहक प नी नमा ई। यह क लक क या थी। क लक प नीने रज वला होनेपर चा डालका दशन कया था, उसीसे इस क याका ज म आ था। ःसह और नमा क सोलह स तान जो सम त संसारम ा त ह। इनम आठ पु थे और आठ क याएँ। ये सब-के-सब अ य त भयंकर थे। द ताकृ , तथो , प रवत, अ ुक्, शकु न, ग ड ा तर त, गभहा तथा स यहा—ये आठ पु थे। नयो जका, वरोधनी, वयंहा रका, ामणी, ऋतुहा रका, मृ तहरा, बीजहरा तथा व े षणी—ये आठ क याएँ थ , जो स पूण जगत्को भय दे नेवाली । अब म इनके कम तथा इनसे होनेवाले दोष क शा तके उपाय बतलाऊँगा। पहले आठ पु के वषयम सुनो। द ताकृ छोटे ब च के दाँत म थत होकर उनम रगड़ पैदा करता है। इस कार वह ःसह नामक अल मी-पु को वहाँ बुलाना चाहता है। उसक शा तके लये सोये ए बालकक श या और दाँत पर सफेद सरस छ टना चा हये तथा सुवचला ( ा ी) नामक ओष धसे नान कराने और उ म शा का पाठ करानेसे भी यह दोष र होता है। ःसहका सरा पु तथो जब आता है, तब वह बारंबार ‘यही हो, यही हो’ ऐसा कहता आ मनु य को शुभाशुभम लगा दे ता है। य द अक मात् शुभाशुभक वृ हो तो उसे तथो क ही ेरणा समझनी चा हये। य द शुभका कथन या वण हो तो व ान् पु ष उसे म लमय बतावे और य द अशुभका वण या कथन हो तो उसक शा तके लये भगवान् व णु, चराचरगु ा तथा अपने-अपने कुलदे वताके नाम का क तन करना चा हये। जो अ यके गभम सरे गभ को रखने और बदलनेम स ताका अनुभव करता है तथा कोई बात कहनेके लये उ सुक मनु यके मुखसे कसी और ही बातको कहला दे ता है, वह ःसहका तीसरा पु प रवत है। उसक शा तके लये भी त ववे ा पु ष पीली सरस छड़के और र ो न-म का पाठ करे। अ ुक् नामक चौथा कुमार वायुके समान मनु य के अ म वेश करके फुरण (फड़कने) आ दके ारा शुभाशुभ फलक सूचना दे ता है। उसक शा तके लये कुश से शरीरको झाड़े। ःसहका पाँचवाँ कुमार शकु न कौवे आ द प य के अथवा कु े- सयार आ द पशु के शरीरम थत होकर अपनी बोलीसे शुभाशुभ फलको सू चत करता है। उसम भी अशुभसूचक श द होनेपर कायार भका प र याग करना चा हये और शुभसूचक श द होनेपर अ य त शी ताके साथ कायार भ कर दे ना चा हये। ऐसा जाप तका कथन है। ज े ! ग ड ा तर त नामक छठा कुमार ग ड ा त म आधे मु ततक थत हो सब कारके कायार भका नाश और मा लक कम तथा अ न दनीयता ( त ा)-का अपहरण



करता है। ा ण के आशीवाद, दे वता क तु त, मूलशा त, गोमू और सरस मले ए जलसे नान, ज मका लक न और ह के पूजन, धममय उप नषद के पाठ, शा के दशन तथा ग डा तम पैदा ए बालकक अव ा (कुछ कालतक उसका मुँह न दे खने)-से उसके दोषक शा त होती है। सातवाँ कुमार ‘गभहा’ बड़ा भयंकर है, जो य के गभम वेश करके गभ थ प डको अपना ास बना लेता है। त दन प व तापूवक रहने, स म (कवच आ द) लखकर बाँधने, उ म फूल आ दक माला धारण करने, प व गृहम रहने तथा अ धक प र म न करनेसे गभवती ीक उसके भयसे र ा होती है। अतः इसके लये सदा चे ा करनी चा हये। इसी कार आठवाँ कुमार स यहा है, वह खेतीक उपजको न करता है। उसक भी शा त करनी चा हये; इसके लये उपाय है— खेतम पुराना जूता रखना, अपस होकर वहाँ जाना, चा डालका उसम वेश कराना, खेतके बाहर पूजा चढ़ाना और च मा एवं जल (व ण)-के नाम या म का क तन करना। ःसहक पहली क या नयो जका है। वह मनु य को परायी ी और पराये धनके अपहरण आ दम लगा दे ती है। प व थ, म अथवा तु तय के पाठसे तथा ोधलोभ आ द गुण का याग करनेसे उसक शा त होती है। व ान् पु षको चा हये क ‘ नयो जका मुझे इन कम म लगा रही है’ य वचारकर उसका वरोध करते ए उन कम का याग करे। जब कोई अपनेको गाली दे या मार बैठे तो भी यही सोचकर क नयो जकाने ही इसे इस बुराईम लगाया है, ोध आ दके वशीभूत न हो। इसी कार व ान् पु ष सदा इस बातका मरण करता रहे क नयो जका ही मुझको और मेरे च को पर ी-संसगम लगाती है। सरी क याका नाम वरो धनी है। वह पर पर ेम रखनेवाले ी-पु ष म, भाई-ब धु म, म म, पता-माताम, पता-पु म तथा सजातीय पु ष म वरोध डाला करती है। अतः ब लकम (पूजोपहारसमपण) करने, कठोर बात को सहने तथा शा ीय आचार- वचारका पालन करनेके ारा उसके भयसे अपनी र ा करे। तीसरी क याका नाम वयंहा रका है। वह ख लहानसे अनाज, घर और गोशालेसे ध-घी तथा बढ़नेवाले से उसक वृ न कर दे ती है और सदा अ तधान रहती है। इतना ही नह , रसोईघरसे अधपका अ तथा अ भंडारसे अनाज चुरा लेती है और परोसी ई रसोईको भोजन करनेवाले मनु यके साथ वयं भी भोजन करती है। मनु य के जूठे अ तक चुरा लेती है। जोते ए खेत, घर और शालासे ऋ - स को हड़प लेती है। गाय और य के थन से ध गायब कर दे ती है। दहीसे घी, तलसे तेल, कुसु भ आ दका रंग तथा ईसे सूत हर लेती है। इस कार वयंहा रका नर तर अपहरणम ही लगी रहती है। उससे र ा होनेके लये अपने घरम मोरके जोड़े रखे। ीक कृ म मू त बनाकर था पत करे, घरक द वारपर र ाके म और वा य लखे, घरके भीतर जूठन न रहने दे , हवनक अ नसे तथा दे वताको धूप दे नेसे जो भ म हो, उसे लेकर ध आ दके बतन म लगा दे



[गाय और ीके तन म तथा अ भंडार आ दम भी उस भ मका पश करा दे ।] इससे र ा होती है। जो एक थानपर नवास करनेवाले पु षके मनम उ े ग पैदा करती है, वह ामणी नामक क या है। उसक शा तके लये आसन, श या तथा उस भू मपर, जहाँ मनु य रहता हो, पीली सरस छ ट दे । साथ ही एका च होकर पृ वी-सू का जप करे। ःसहक पाँचव क या य के मा सक धम न करती है। इस लये उसे ऋतुहा रका जानना चा हये। उसक शा तके लये ीको तीथम, दे वालयके समीप, चै य वृ के नीचे, पवतके शखरपर तथा नद के संगम एवं सरोवर म नहलाना चा हये। साथ ही च क साशा के ाता अ छे वै को बुलाकर उसक द ई उ म ओष धय का सेवन भी कराना चा हये। छठ क याका नाम मृ तहरा है। यह य क मरणश को हर लेती है। प व एवं एका त थानम रहनेसे उसक शा त होती है। सातव क या बीजहरा कहलाती है। यह अ य त भयानक है। ी-पु ष के रज-वीयका अपहरण कया करती है। प व अ के भोजन तथा न य नान करनेसे उसक शा त होती है। आठव क या व े षणी है, जो स पूण जगत्को भय दे नेवाली है। यह ी अथवा पु षको लोग का े षपा बना दे ती है। उसक शा तके लये मधु, घृत, ीर म त तल का हवन एवं म व दा नामक य करे।







जाप तक संत त तथा वाय भुव सगका वणन



माक डेयजी कहते ह—भृगस ु े उनक प नी या तने धाता और वधाता नामक दो दे वता को उ प कया। दे वा धदे व भगवान् नारायणक धमप नी ील मीदे वी भी या तके ही गभसे कट । महा मा मे क दो क याएँ थ —आय त और नय त। ये ही धाता और वधाताक प नयाँ । इन दोन से दो पु ए— ाण तथा मेरे महायश वी पता मृक डु । ीमृक डु से मेरा ज म आ, मेरी माता मन वनी दे वी थ । मेरी प नी धू वतीके गभसे मेरे पु वेद शराका ज म आ। अब ाणक स तानका वणन सुनो। ाणका पु ु तमान् और ु तमान्का अजरा आ। उन दोन के ब त-से पु -पौ ए। मरी चक प नी स भू तने पौणमासको उ प कया। महा मा पौणमासके दो पु ए — वरजा और पवत। अ राक प नी मृ तने चार क या को ज म दया। उनके नाम ये ह— सनीवाली, कु , राका तथा अनुम त। इसी कार मह ष अ क प नी अनसूयाने च मा, वासा तथा योगी द ा ेय—इन तीन पापर हत पु को उ प कया। पुल यक प नी ी तसे द ो ल नामक पु उ प आ, जो अपने पूवज मम वाय भुव म व तरम ‘अग य’के नामसे स था। मा जाप त पुलहक प नी थी। उसने कदम, अववीर और स ह णु—ये तीन पु उ प कये। तुक प नी स तने साठ हजार बाल ख य नामक ऊ वरेता मह षय को उ प कया। व स क प नी ऊ जाके गभसे सात पु उ प ए—रज, गा , ऊ वबा , सबल, अनघ, सुतपा और शु । ये सभी स त ष ए। न्! अ नत वके अ भमानी दे वता अ न ाजीके थम पु थे। उनक प नी वाहाने तीन पु उ प कये, जो बड़े ही उदार और तेज वी ह। उनके नाम इस कार ह —पावक, पवमान और शु च। इनम शु च जलको सोखनेवाला है। इन तीन के वंशम येकके पं ह-पं हके मसे पतालीस पु ए। इनके साथ पता अ न और उनके तीन पु क सं या जोड़नेसे कुल उनचास अ न होते ह। ये सब-के-सब जय माने जाते ह। ाजीके ारा उ प जो अ न वा , ब हषद्, अन नक और सा नक पतर बतलाये गये ह, उनसे वधाने दो क या को ज म दया, जनके नाम थे—मेना और धा रणी। वे दोन ही उ म ानसे स प तथा सभी गुण से सुशो भत, वा दनी एवं यो गनी थ । इस कार यह द -क या क वंश-पर पराका वणन आ। जो ापूवक इसका च तन करता है, वह नःस तान नह रहता। ौ ु क बोले—भगवन्! आपने जो अभी वाय भुव म व तरक चचा क है, उसका वणन म अ छ तरह सुनना चाहता ँ। म व तरके कालमान, दे वता, दे व ष, राजा और इ —इन सबका वणन क जये। माक डेयजीने कहा— न्! म व तरक अव ध इकह र चतुयुगीसे कुछ अ धक कालक होती है, यह बात बतायी जा चुक है। अब मानव-वषसे म व तरका कालमान



सुनो। तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वष का एक म व तर होता है। दे वता के मानसे आठ लाख बावन हजार वष का यह काल है। सबसे पहले मनु वाय भुव ह। इसके बाद वारो चष, औ म, तामस, रैवत और चा ुष ह। ये छः मनु बीत चुके ह। इस समय वैव वत मनुका रा य है। भ व यम साव ण नामवाले पाँच मनु, रौ य मनु तथा भौम मनु— ये सात और होनेवाले ह। इनका व तृत वणन म व तर के करणम करगे। न्! इस समय म व तर के दे वता, ऋ ष, इ और पतर का प रचय दे ता ँ तथा उनक उ प , सं ह एवं संतान का भी वणन करता ँ। साथ ही यह भी बतलाता ँ क मनु और उनके पु के रा यका े कतना था। पहले वाय भुव म व तरके थम ेतायुगम य तके पु अथात् वाय भुव मनुके पौ ने पृ वीके वष- वभाग कये थे। जाप त कदमजीक पु ी जावती राजा य तको याही गयी थी, उसके गभसे दो क याएँ और दस पु ए। क या के नाम थे—स ाट् और कु । उन दोन के दस भाई जाप तके समान तेज वी और बड़े शूरवीर थे। उनम सातके नाम इस कार ह—आ नी , मेधा त थ, वपु मान्, यो त मान्, ु तमान्, भ और सवन। इनके सवा मेधा, अ नबा और म —ये तीन और थे, जो तप या और योगम त पर रहते थे। इ ह अपने पूवज मके वृ ा त का मरण था। अतएव इन महाभा यशाली पु ष ने रा य-भोगम मन नह लगाया। राजा य तने शेष सात पु को सात प के राजपदपर धमपूवक अ भ ष कर दया। अब प का वणन सुनो। य तने ज बू पम आ नी को राजा बनाया। ल पका रा य मेधा त थको स पा। शा मल पम वपु मान्को और कुश पम यो त मान्को राजा बनाया। ु तमान् ौ च पके, भ शाक पके तथा सवन पु कर पके वामी बनाये गये। पु करराज सवनके दो पु ए—महावीर और धात क। उ ह ने पु कर पको दो भाग म बाँटकर बसाया। भ के सात पु थे, उनके नाम ये ह—जलद, कुमार, सुकुमार, वनीयक, कुशो र, मेधावी और महा म। उ ह ने अपने-अपने नामसे शाक पके सात ख ड कये। ु तमान्के भी कुशल, मनुग, उ ण, ाकार, अथकारक, मु न और भ—ये सात ही पु थे। उनके नामसे ौ च पके सात ख ड ए। राजा यो त मान्के कुश पम भी उनके पु के नामपर सात ख ड बने, उनके नाम इस कार ह—उ द, वै णव, सुरथ, ल बन, धृ तमान्, भाकर तथा का पल। शा मल पके वामी वपु मान्के भी सात पु ए— ेत, ह रत, जीमूत, रो हत, वै ुत, मानस और केतुमान्। इनके नामपर भी पूववत् उ पके सात ख ड बनाये गये। ल पके वामी मेधा त थके भी सात ही पु ए और उनके नामसे ल पके भी सात ख ड बन गये। उन ख ड के नाम इस कार ह— शाकभव, श शर, सुखोदय, आन द, शव, ेमक तथा ुव। ल पसे लेकर शाक पतकके पाँच प म वणा म-धम वभागपूवक थत है। वहाँ धमका सदा



वाभा वक पसे पालन होता है। कभी कसी जीवक हसा नह क जाती। उन पाँच प और उनके वष म सब धम सामा य पसे सव च लत ह। न्! राजा य तने आ नी को ज बू पका रा य दया था। उनके नौ पु ए, जो जाप तके समान श शाली थे। उनम सबसे बड़ेका नाम ना भ था, उससे छोटा क पु ष था। तीसरेका नाम ह र, चौथेका इलावृत, पाँचवका र य, छठे का हर यक, सातवका कु , आठवका भ ा और नवका केतुमाल था। इन पु के नामपर ही ज बू पके नौ ख ड ए। हमवषको छोड़कर शेष जो क पु ष आ द वष ह, उनम सुखक अ धकता है और बना य न कये वभावसे ही वहाँ सब कामना क स होती है। उनम कसी कारके वपयय (असुख, अकाल मृ यु आ द) तथा जरा-मृ युका कोई भय नह है और न वहाँ धमअधम अथवा उ म, म यम, अधम आ दका ही कोई भेद है। उन आठ वष म न चार युग क व था है, न छः ऋतु क । वहाँ कसी वशेष ऋतुके कोई च नह द ख पड़ते। आ नी कुमार ना भके पु ऋषभ और ऋषभके भरत ए, जो अपने सौ भाइय म सबसे बड़े थे। ऋषभ अपने पु को रा य दे महा या (सं यास) हण करके तप या करने लगे। वे मह ष पुलहके आ मम ही रहते थे। उ ह ने हम नामक वषको, जो सबसे द ण है, अपने पु भरतको दया था; इस लये महा मा भरतके नामपर इसका नाम भारतवष हो गया। भरतके पु सुम त ए, जो बड़े धमा मा थे। भरतने उनको रा य दे कर वनका आ य लया। राजा य तके पु तथा उनके भी पु -पौ ने वाय भुव म व तरम सात प वाली पृ वीका उपभोग कया। ज े ! यह मने तु ह वाय भुव म व तरक सृ बतलायी अब और या सुनाऊँ?



ज बू प और उसके पवत का वणन ौ ु कने पूछा— न्! प, समु , पवत और वष कतने ह तथा उनम कौनकौन-सी न दयाँ ह? महाभूत (पृ वी) और लोकालोकका माण या है? च मा और सूयका ास, प रमाण तथा ग त कतनी है? महामुने! ये सब बात मुझे व तारपूवक बतलाइये। माक डेयजी बोले— न्! समूची पृ वीका व तार पचास करोड़ योजन है। अब उसके सब थान का वणन करता ँ, सुनो। महाभाग! ज बू पसे लेकर पु कर पतक जतने प क मने चचा क है, उन सबका व तार इस कार है। मशः एक पसे सरा प गुना बड़ा है; इसी मसे ज बू प, ल , शा मल, कुश, ौ च, शाक और पु कर प थत ह। ये मशः लवण, इ ु, सुरा, घृत, दही, ध और जलके समु से घरे ए ह। ये समु भी एकक अपे ा सरे गुने बड़े ह। अब म ज बू पक थ तका वणन करता ँ। इसक लंबाई-चौड़ाई एक लाख योजनक है। इसम हमवान्, हेमकूट, नषध, मे , नील, ेत तथा शृ —ये सात वषपवत ह। इनम मे तो सबके बीचम है, उसके सवा जो नील और नषध नामक दो और म यवत पवत ह, वे एक-एक लाख योजनतक फैले ए ह। नषधसे द णम तथा नीलसे उ रम जो दो-दो पवत ह, उनका व तार मशः दस-दस हजार योजन कम है। अथात् हेमकूट और ेत न बे-न बे हजार योजनतक तथा हमवान् और शृ अ सी-अ सी हजार योजनतक फैले ए ह। वे सभी दो-दो हजार योजन ऊँचे और उतने ही चौड़े ह। इस ज बू पके छः वषपवत समु के भीतरतक वेश कये ए ह। यह पृ वी द ण और उ रम नीची और बीचम ऊँची तथा चौड़ी है। ज बू पके तीन ख ड द णम ह और तीन ख ड उ रम। इनके म यभागम इलावृत वष है, जो आधे च माके आकारम थत है। उसके पूवम भ ा और प मम केतुमाल वष है। इलावृत वषके म यभागम सुवणमय मे पवत है, जसक ऊँचाई चौरासी हजार योजन है। वह सोलह हजार योजन नीचेतक पृ वीम समाया आ है तथा उसक चौड़ाई भी सोलह हजार योजन ही है। वह शराव (पुरवे)-क आकृ तका होनेके कारण चोट क ओर ब ीस हजार योजन चौड़ा है। मे पवतका रंग पूवक ओर सफेद, द णक ओर पीला, प मक ओर काला और उ रक ओर लाल है। यह रंग मशः ा ण, वै य, शू तथा यका है। मे पवतके ऊपर मशः पूव आ द दशा म इ ा द आठ लोकपाल के नवास थान ह। इनके बीचम ाजीक सभा है। वह सभाम डप चौदह हजार योजन ऊँचा है। उसके नीचे व क भ (आधार) पसे चार पवत ह, जो दस-दस हजार योजन ऊँचे ह। वे मशः पूव आ द दशा म थत ह। उनके नाम इस कार ह—म दर, ग धमादन, वपुल और सुपा । इन चार पवत के ऊपर चार बड़े-बड़े वृ ह, जो वजाक भाँ त उनक शोभा बढ़ाते ह।



म दराचलपर कद ब, ग धमादन पवतपर ज बू, वपुलपर पीपल तथा सुपा के ऊपर बरगदका महान् वृ है। इन पवत का व तार यारह- यारह सौ योजनका है। मे के पूवभागम जठर और दे वकूट पवत ह, जो नील और नषध पवततक फैले ए ह। नषध और पा रया —ये दो पवत मे के प म भागम थत ह। पूववाले पवत क भाँ त ये भी नील ग रतक फैले ए ह। हमवान् और कैलासपवत मे के द ण भागम थत ह। ये पूवसे प मक ओर फैलते ए समु के भीतरतक चले गये ह। इसी कार उसके उ र भागम शृ वान् और जा ध नामक पवत ह। ये भी द ण भागवाले पवत क भाँ त समु के भीतरतक फैले ए ह। ज े ! ये मयादा-पवत कहलाते ह। हमवान् और हेमकूट आ द पवत का पार प रक अ तर नौ-नौ हजार योजन है। ये इलावृतवषके म यभागम मे क चार दशा म थत ह। ग धमादन पवतपर जो जामुनके फल गरते ह, वे हाथीके शरीरके बराबर होते ह। उनमसे जो रस नकलता है, उससे ज बू नामक नद कट होती है, जहाँसे जा बूनद नामक सुवण उ प होता है। वह नद ज बूवृ के मूलभूत मे पवतक प र मा करती ई बहती है और वहाँके नवासी उसीका जल पीते ह। भ ा वषम भगवान् व णु हय ीव पसे, भारतवषम क छप पसे, केतुमालवषम वाराह पसे तथा उ रकु म म य पसे वराजते ह। ज े ! म दर आ द चार पवत पर जो चार वन और सरोवर ह, उनके नाम सुनो। मे से पूवके पवतपर चै रथ नामक वन है, द ण शैलपर न दन वन है, प मके पवतपर वै ाज वन है और उ रवाले पवतपर सा व नामक वन है। पूवम अ णोद, द णम मानस, प मम शीतोद और उ रम महाभ नामक सरोवर है। शीतात, च मु , कुलीर, सुकङ् कवान्, म णशैल, वृषवान्, महानील, भवाचल, सु व , म दर, वेणु, तामस, नषध तथा दे वशैल—ये महान् पवत म दराचलसे पूव दशाम थत ह। कूट, शखरा , क ल , पत क, चक, सानुमान्, ता क, वशाखवान्, ेतोदर, समूल, वसुधार, र नवान्, एकशृ , महाशैल, राजशैल, पपाठक, प चशैल, कैलास और हमालय—ये मे के द णभागम थत ह। सुर , श शरा , वै य, प ल, प र, महाभ , सुरस, क पल, मधु, अ न, कु कुट, कृ ण, पा डु र, सह शखर, पा रया और शृ वान्—ये मे के प म व क भ वपुल ग रसे प मम थत ह। शङ् खकूट, वृषभ, हंसनाभ, क पले , सानुमान्, नील, वणशृ , शातशृ , पु पक, मेघ, वरजा , वराहा , मयूर तथा जा ध —ये सभी पवत मे के उ रभागम थत ह। इन पवत क क दराएँ बड़ी मनोहर ह। हरेभरे वन और व छ जलवाले सरोवर उनक शोभा बढ़ाते ह। वहाँ पु या मा मनु य का ज म होता है। ज े ! ये थान इस पृ वीके वग ह। इनम वगसे भी अ धक गुण ह। यहाँ नूतन पाप-पु यका उपाजन नह होता। ये दे वता के लये भी पु यभोगके ही थान ह। इन पवत पर व ाधर, य , क र, नाग, रा स, दे वता तथा ग धव के सु दर एवं वशाल वास थान ह। वे परम प व तथा दे वता के मनोहर उपवन से सुशो भत ह।



वहाँके सरोवर भी बड़े सु दर ह। वहाँ सब ऋतु म सुख दे नेवाली वायु चलती है। इन पवत पर मनु य म कह वैमन य नह होता। इस कार मने चार प से सुशो भत पा थव कमलका वणन कया है। भ ा और भारत आ द वष चार दशा म इस कमलके प ह। मे के द णभागम जस भारत नामक वषक चचा क गयी है, वही कमभू म है। अ य थान म पाप-पु यक ा त नह होती। अतः भारतवषको ही सबसे धान समझना चा हये। य क वहाँ सब कुछ त त है। भारतवषसे मनु य वगलोक, मो , मनु यलोक, नरक, तय यो न अथवा और कोई ग त—जो चाहे ा त कर सकता है।



ीग ाजीक उ प , क पु ष आ द वष क वशेषता तथा भारतवषके वभाग, नद , पवत और जनपद का वणन माक डेयजी कहते ह— ज े ! व यो न भगवान् नारायणका जो ुवाधार* नामक पद है, उसीसे पथगा मनी भगवती ग ाका ा भाव आ है। वहाँसे चलकर वे सुधाक उ प के थान और जलके आधारभूत च म डलम व और सूयक करण के स पकसे अ य त प व हो मे पवतके शखरपर गर । वहाँ उनक चार धाराएँ हो गय । मे के शखर और तट से नीचे गरती-बहती ग ाका जल चार ओर बखर गया और आधार न होनेके कारण नीचे गरने लगा। इस कार वह जल म दर आ द चार पवत पर बराबर-बराबर बँट गया। अपने वेगसे बड़े-बड़े पवत को वद ण करती ई ग ाक जो धारा पूव दशाक ओर गयी, वह सीताके नामसे व यात ई। सीता चै रथ नामक वनको जलसे आ ला वत करती ई व णोद सरोवरम गयी और वहाँसे शीता त पवत तथा अ य पहाड़ को लाँघती ई पृ वीपर प ँची। वहाँसे भ ा वषम होती ई समु म मल गयी। इसी कार मे के द ण ग धमादनपवतपर जो ग ाक सरी धारा गरी, वह अलकन दाके नामसे व यात ई। अलकन दा मे क घा टय पर फैले ए न दन वनम, जो दे वता को आन द दान करनेवाला है, बहती ई बड़े वेगसे चलकर मानसरोवरम प ँच । उस सरोवरको अपने जलसे प रपूण करके ग ा शैलराजके रमणीय शखरपर आय । वहाँसे मशः द णम थत सम त पवत को अपने जलसे आ ला वत करती ई महा ग र हमवान्पर जा प ँच । वहाँ भगवान् शङ् करने ग ाजीको अपने शीशपर धारण कर लया और फर नह छोड़ा। तब राजा भगीरथने आकर उपवास और तु तके ारा भगवान् शवक आराधना क । उससे स होकर महादे वजीने ग ाको छोड़ दया। फर वे सात धारा म वभ होकर द ण समु म जा मल । उनक तीन धाराएँ तो पूव दशाक ओर गय । एक धारा भगीरथके पीछे -पीछे द ण दशाक ओर बहने लगी।



मे ग रके प मम जो वपुल नामक पवत है, उसपर गरी ई महानद ग ाक धारा वर ुके नामसे व यात ई। वहाँसे वैराज पवतपर होती ई वर ु शीतोद सरोवरम गयी और उसे आ ला वत करके शख पवतपर प ँच गयी। फर वहाँसे अ य पवत के शखर पर होती ई केतुमालवषम प ँचकर खारे पानीके समु म मल गयी। मे के उ रीय पाद सुपा पवतपर गरी ई ग ाक धारा सोमाके नामसे व यात ई और सा व वनको प व करती ई महाभ सरोवरम जा प ँची। वहाँसे शङ् खकूट पवतपर जा मशः वृषभ आ द शैलमाला को लाँघती ई उ रकु नामक वषम बहने लगी। अ ततोग वा महासागरम जा मली। ज े ! इस कार मने तु ह ग ाजीक उ प का वृ ा त कह सुनाया। साथ ही ज बू पका नवेश और उसके वष- वभाग भी बतला दये। क पु ष आ द सम त वष म जा बड़े सुखसे रहती है। उसे कसी कारका भय नह सताता। उनम कोई छोटा-बड़ा या ऊँच-नीच नह होता। ज बू पके नव वष म सात-सात कुल पवत ह और येक दे शम पवत से नकली ई अनेकानेक न दयाँ ह। व वर! क पु ष आ द जो आठ वष ह, वहाँ



पृ वीसे ही चुर जल नकलता है; क तु भारतवषम वषाके जलसे वशेष काय चलता है। उ आठ वष म वा , वाभा वक , दे या, तोयो था, मानसी तथा कमजा स याँ मनु य को ा त होती ह। कामना पूण करनेवाले क पवृ आ द वृ से जो स ात होती है, उसे वा - स कहते ह। वभावसे ही ा त होनेवाली स वाभा वक कहलाती है। दे शसे या थान वशेषसे जो काय स होती है, उसका नाम दे या है। जलक सू मतासे होनेवाली स तोयो था कही गयी है। यानसे ही ा त होनेवाली स को मानसी कहते ह तथा उपासना आ द कमसे जो स ा त होती है; वह कमजा कहलाती है। क पु ष आ द वष म युगक व था और आ ध- ा ध नह है। वहाँ पाप-पु यका अनु ान भी नह दे खा जाता। ौ ु कने कहा—भगवन्! आपने ज बू पका सं ेपसे वणन कया; क तु महाभाग! अभी-अभी आपने जो यह कहा क भारतवषको छोड़कर और कह कया आ कम पु य और पापका जनक नह होता, केवल भारतवषसे ही मो तथा वग, अ त र एवं पाताल आ द लोक क ा त हो सकती है। मनु य के लये और कसी भू मपर कमका वधान नह है, केवल यह भारत ही कमभू म है। अतः भारतवषका वृ ा त व तारके साथ बतलाइये। जतने इसके भेद ह , जैसी इस दे शक थ त हो और जो-जो यहाँ पवत ह , उन सबका भलीभाँ त वणन क जये। माक डेयजी कहते ह— न्! सुनो, भारतवषके नौ वभाग ह, उन सबके बीचम समु का अ तर है; अतः एक वभागके मनु यका सरे वभागम जाना अस भव है। उ नौ वभाग के नाम इस कार ह—इ प, कशे मान्, ता वण, गभ तमान्, नाग प, सौ य प, गा धव प, वा ण प और नवाँ यह भारतवष। भारत भी समु से घरा है। यह उ रसे द णतक एक हजार योजन बड़ा है। इसके पूवम करात और प मम यवन रहते ह। बीचम ा ण, य, वै य और शू का नवास है। ा ण आ द वण के लोग यहाँ य , श - हण और वसाय आ द कम से अपनेको प व करते ह; तथा इ ह से इनका जीवन- नवाह भी होता है। इतना ही नह , इ ह कम से ये वग, मो और पु य ा त करते ह तथा इ ह को ठ क-ठ क न करनेसे इ ह पाप भोगना पड़ता है। महे , मलय, स , शु मान्, ऋ , व य और पा रया —ये सात ही यहाँ कुलपवत ह। इनके नकट और भी हजार पवत ह। ये सभी अ य त व तृत, ऊँचे तथा रमणीय ह। इनके शखर भी ब त-से ह। इनके सवा कोलाहल, वै ाज, म दर, द राचल, वात वन, वै ुत, मैनाक, वरस, तु थ, नाग ग र, रोचन, पा डु राचल, पु प ग र, जय त, रैवत, अबुद, ऋ यमूक, गोम त, कूटशैल, कृत मर, ीपवत और चकोर आ द सैकड़ पवत और ह, जनसे मले ए ले छ और आय जनपद वभागपूवक थत ह। वे लोग जन े न दय का जल पीते ह, उनके नाम सुनो। ग ा, सर वती, स धु, च भागा ( चनाब), यमुना, शत ू (सतलज), वत ता (झेलम), इरावती (रावी), कू , गोमती, धूतपापा, बा दा,



ष ती, वपाशा ( ास), दे वका, रं ु, न ीरा, ग डक , कौ शक (कोसी)—ये सभी न दयाँ हमालयक तलैट से नकली ई ह। वेद मृ त, वेदवती, वृ नी, स धु, वेणा, सान दना, सदानीरा, मही, पारा, चम वती, नूपी, व दशा, वे वती (बेतवा), ा तथा अव ती—इन न दय का उ म थान पा रया पवत है। महानद शोण (सोन), नमदा, सुरथा, अ जा, म दा कनी, दशाणा, च कूटा, च ो पला, तमसा, करमोदा, पशा चका, प पल ो ण, वपाशा, वंजुला, सुमे जा, शु मती, शकुली, दवा मु और वेगवा हनी —ये न दयाँ क दपवतक शाखा से नकली ह। श ा, पयो णी, न व या, तापी, नषधावती, वे या, वैतरणी, सनीवाली, कुमु ती, करतोया, महागौरी गा तथा अ तः शवा —ये पु यस लला क याणमयी न दयाँ व याचलक घा टय से नकली ह। गोदावरी, भीमरथी, कृ णावेणी, तु भ ा, सु योगा, बा ा तथा कावेरी—ये े स पवतक शाखा से कट ई ह। कृतमाला, ता पण , पु पजा और उ पलावती—ये मलयाचलसे नकली ह। इनका जल ब त शीतल होता है। पतृसोमा, ऋ षकु या, इ ुका, दवा, ला लनी और वंशकरा—ये महे पवतसे नकली मानी जाती ह। ऋ षकु या, कुमारी, म दगा, म दवा हनी, कुशा और पला शनी—इनका उ म शु मान् पवतसे आ है। ये सभी न दयाँ प व ह, सभी ग ा और सर वतीके समान ह तथा सभी सा ात् या पर परासे समु म मली ह। ये सब-क -सब जगत्के लये माता-स श ह। इन सबको पापहा रणी माना गया है। ज े ! इनके अ त र और भी हजार छोट न दयाँ ह, जनम कुछ तो केवल वषाकालम बहती ह और कुछ सदा ही बहनेवाली ह। म य, अ कूट, कु य, कु तल, काशी, कोसल, अबुद, अक ल , मलक और वृक— ये ायः म यदे शके जनपद कहे गये ह। स पवतके उ रका भूभाग, जहाँ गोदावरी नद बहती है, स पूण भूम डलम सबसे अ धक मनोरम दे श है। वह महा मा भागवका मनोहर नगर गोवधन है। वहाँ अनेक जनपद ह, जनके नाम इस कार ह—वा क (बलख), वाटधान, आभीर, कालतोयक, अपरा त, शू , प व, चमख डक, गा धार, यवन, स धु ( सध), सौवीर, म , शत ज, क ल , पारद, हारभू षक, माठर, ब भ , कैकेय और दशमा लक। ये य के उप नवेश ह तथा इनम वै य और शू कुलके लोग भी रहते ह। का बोज (खंभात), दरद, बबर, हषवधन, चीन, तुषार, ब ल, बा तोदर, आ ेय, भर ाज, पु कल, कशे क, ल पाक, शूलकार, चु लक, जागुड, औषध और अ नभ —ये सब करात क जा तयाँ ह। तामस, हंसमाग, का मीर, गणरा , शू लक, कुहक, ऊणा तथा दाव—ये सम त दे श उ रम थत ह। अब पूवके दे श का वणन सुनो—अ ारक, मु रक, अ त ग र, ब ह ग र, लव , र े य, मालद, मलव तक, बा ो र, वजय, भागव, ेयम लक, ा यो तष, म , वदे ह ( म थला), ता ल तक, म ल, मगध और गोम त—ये पूव दशाके जनपद ह। अब द ण दशाके जनपद बतलाये जाते ह। पा , केरल, चोल, कु य, गोला ल, शैलूष, मू षक,



कुसुम, वनवासक, महारा , मा ह षक, क ल , आभीर, वै श य, आट , शबर, पु ल द, व यमालेय, वैदभ, द डक, पौ रक, मौ लक, अ मक, भोगवधन, नै षक, कु तल, आ , उद् भद, वनदारक—ये सभी द ण दे शके जनपद ह। अब अपरा त दे श का वणन सुनो। सूपारक, का लबल, ग, अनीकट, पु ल द, सुमीन, पप, ापद, कु मन, कठा र कारसमर, लोहजङ् घ, वाजेय, राजभ क, ना स याव, नमदाके उ रके दे श, भी क छ माहेय, सार वत, का मीर, सुरा , आव य और अबुद—ये अपरा त- दे श ह। अब व य नवा सय के दे श बतलाये जाते ह। सरज, क ष, केरल, उ कल, उ मण, दशाण, भो य, क क धक, तोशल, कोसल, ैपुर, वै दश, तु बुर, तु बुल, पटु , नैषध, अ ज, तु कार, वीरहो और अव त—ये सभी जनपद व याचलक घा टय म बसे ह। अब पवतीय दे श का वणन कया जाता है—नीहार, हंसमाग, कु , गुगण, खस, कु त ावरण, ऊण, दाव, कृ क, गत, मालव, करात और तामस। ये पवत के आ यम बसे ह। इतने दे श से प रपूण यह भारतवष है। इसम चार दशा के दे श क थ त है। इसम स ययुग, ेता, ापर और क ल—इन चार युग क व था है। भारतवषके द ण, प म तथा पूवम महासागर है और उ रक ओर धनुषक य चाके समान हमालय पवतक थ त है। यह भारतवष सब कारक उ तका बीज है। यहाँ शुभकम करनेसे पद, इ पद, दे वलोक और म ण का थान भी मलता है। इसी कार यहाँ न दत कम करनेसे मनु यको मृग, पशु, सप तथा थावर क यो न भी मल सकती है। न्! इस जगत्म भारतवषके सवा सरा कोई दे श कमभू म नह है। ष! दे वता के मनम भी सदा यह अ भलाषा रहा करती है क ‘हम दे वयो नसे होनेपर भारतवषम मनु यके पम उ प ह ।’ उनका कहना है क ‘भारतवषके मनु य वह काय कर सकते ह, जो दे वता और असुर के लये भी अस भव है; क तु खेदक बात है क ये मनु य कमब धनम बँधकर अपने कम क या त—अपनी क त फैलानेको उ सुक रहते ह और लेशमा सांसा रक सुखके लोभनम पड़कर न य अ य सुखक ा तके लये कोई भी कम नह करते।’



*



इसीको शशुमार च



भी कहते ह।



भारतवषम भगवान् कूमक



थ तका वणन



ौ ु कने कहा—भगवन! आपने मुझसे भारतवषका भलीभाँ त वणन कया तथा वहाँक न दय , पवत और जनपद को भी बतलाया। इसके पहले आपने यह कहा था क भारतवषम भगवान् ीह र कूम पसे नवास करते ह, सो उनक थ त कहाँ और कस कार है, यह सब सुननेक मेरी इ छा हो रही है। कूम पी भगवान् जनादन कस पम थत ह, उनसे मनु य के शुभ-अशुभक सूचना कैसे मलती है? भगवान् कूमका मुख कैसा है? और उनके चरण कौन ह? ये सारी बात बताइये। माक डेयजी बोले— न्! कूम पधारी भगवान् ीह र नौ भेद से यु इस भारतवषको आ ा त करके थत ह। उनका मुख पूव दशाक ओर है। उनके चार ओर नौ भाग म वभ होकर स पूण न और दे श थत ह। उ ह बतलाता ँ, सुनो। वे द, म , अ रमा ड , शा व, नीप, शक, उ जहान, घोषसं य, खस, सार वत, म य, शूरसेन, माथुर, धमार य, यो त षक, गौर ीव, गुडा मक, उ े हक, पा चाल, सङ् केत, कंक, मा त, कालको ट, पाख ड, पा रया नवासी, का प ल, कु बा , उ बर तथा गजा य (ह तनापुर आ द)-के मनु य भगवान् कूमके म यभाग (क ट दे श)-म थत ह। कृ का, रो हणी और मृग शरा—ये तीन न उ थानके नवा सय के लये शुभाशुभके सूचक होते ह। वृष वज, अ न, ज बू, मानवाचल, शूपकण, ा मुख, खमक, कवटाशन, च े र, खश, मगध, मै थल, पौ , वदनद तुर, ा यो तष, लौ ह य, सामु , पु षादक, पूण कट, भ गौर, उदय ग र, काशी, मेखल, मु , ता ल त, एकपादप, वधमान और कोसल—ये दे श कूमभगवान्के मुखभागम थत ह। आ ा, पुनवसु और पु य —ये तीन न भी उनके मुखम ह। अब कूमभगवान्के द ण चरणम जो दे श ह, उनके नाम सुनो—क ल (उड़ीसा), व (बंगाल), जठर, कोसल, मू षक, चे द, ऊ वकण, म य, अ , व यवासी, वदभ (बरार), ना रकेल, धम प, ऐ लक, ा ीव, महा ीव, ैपुर, म ुधारी, कै क य, हेमकूट, नषध, कटक थल, दशाण, हा रक, न न, नषाद, का वलालक, पण तथा शबर। ये दे श भगवान् कूमके पूव-द ण दशावाले चरणम थत ह। आ ेषा, मघा और पूवाफा गुनी न भी वह ह। लङ् का, काला जन, शै लक, नकट, महे , मलय और द र पवत के पास बसे ए जनपद, कक टक वनम रहनेवाले लोग तथा भृगक ु छ, कोङ् कण, स पूण आभीर- दे श, वे या नद के तटपर बसे ए दे श, अव त, दासपुर, आकारी, महारा , कनाटक, गोनद, च कूट, चोल, कोल ग र, ौ च प, जटाधर, कावेरीके तटवत दे श, ऋ यमूक पवतपर बसे ए दे श, ना सक, शङ् ख, शु आ द तथा वै य पवतके समीपवत दे श, वा रचर कोल, चमप , गयबा , कृ णा पवासी, सूया और कुमुदा के नवासी, औखा वन, द शक, कमनायक, द ण, कौ ष, ऋ षक,



तापसा म, ऋषभ, सहल, का ची नवासी, ल , कु रदरी तथा क छम रहनेवाले लोग और ता वण नद के तटवत दे श—ये भगवान् कूमक दाय कु म थत ह। उ राफा गुनी, ह त तथा च ा—ये तीन न भी वह ह। का बोज, प व, वडवामुख, स धु, सौवीर, आनत, व नतामुख, ावण, शू , कण, ाधेय, बबर, करात, पारद, पा , पारशव, कल, धूतक, हैम ग रक, स धु, कालक, वैरत, सौरा , दरद, ा वड, महाणव—ये दे श कूमभगवान्के द ण चरणम थत ह। वाती, वशाखा और अनुराधा न भी वह ह। म णमेघ, ुरा , ख न, अ त ग र, अपरा तक, हैहय, शा तक, व श तक, कोङ् कण, प चनद, वमन, अवर, तार ुर, अ तक, शकर, शा मवे मक, गु वर, फा गुनक, वेणुमती नवासी, फा गुलुक, घोर, गु ह, चकल, एके ण, वा जकेश, द घ ीव, सुचू लक तथा अ केश—ये दे श भगवान् क छपके पु छभागम थत ह। वह ये ा, मूल और पूवाषाढा न भी ह। मा ड , च डखार, अ मक, ललन, कुशा , लडह, ीबा , बा लक, नृ सह, वेणुमतीवासी, बलाव थ, धमब , उलूक तथा उ कम नवासी मनु य भगवान् कूमके बाय चरणम थत ह। उ राषाढा, वण और ध न ाक भी वह थ त है। कैलास, हमवान्, धनु मान्, वसुमान्, ौ च, कु वक, ु वीण, रसालय, भोग थ, यामुन, अ त प, गत, अ नी य, अदन, अ मुख, च बड़, केशधारी, दासेरक, वाटधान, शवधान, पु कल, अधम, कैरात, त शला य, अ बाल, मालव, म , वेणुक, वद तक, प ल, मानकलह, ण, कोहलक, मा ड , भू तयुवक, शातक, हेमतारक, यशोम य, गा धार, वर, सागररा श, यौधेय, दासमेय, राज य, यामक तथा ेमधूत—ये कूमभगवान्क बाय कु म ह। शत भष, पूवाभा पदा और उ राभा पदा—ये तीन न भी वह ह। क ररा य, पशुपाल, क चक, का मीरक, अ भसारजन, दरय, अ ण, कुरट, अ दारक, एकपाद, खश, घोष, वग, भौम, अनव , यवन, ह , चीर ापरण, ने , पौरव तथा ग धव—ये क छपभगवान्के पूव-उ रवाले चरणके आ त ह। रेवती, अ नी और भरणी भी वह ह। व वर! उ दे श म मशः ये ही न ऐसे ह, जनके कारण मनु य को पीड़ा होती है अथात् जब इनके साथ ह का योग होता है तो ये उनसे भा वत होकर जाको क दे ते ह और उ म ह के योग होनेपर ये वहाँके मनु य को अ युदयक ा त कराते ह। जस न रा शका जो ह वामी है, उसीके अशुभ भावम रहनेपर उस दे शके लोग को क होता है और वही ह जब उ च थानम होता है तो शुभ फल क ा त होती है। न और ह से होनेवाला शुभाशुभ फल साधारणतया सब दे श म सभी मनु य को ा त होता है। य द अपने न खराब ह अथवा ज मके समय ह अशुभ थान म पड़े ह तो मनु यको क भोगना पड़ता है। यह बात येकके लये सामा य पसे लागू होती है। इसी कार य द न और ह अ छे पड़े ह तो उसका फल शुभ होता है। पु या मा मनु यके



ह य द अशुभ थान म ह तो उ ह , गो , भृ य, सु द्, पु एवं भायाक भी हा न उठानी पड़ती है। य द पु य थोड़ा है तो अपने शरीरपर भी भय आ सकता है और ज ह ने अ धक मा ाम पाप-ही-पाप कये ह, उ ह तो सव ही आ द तथा शरीर—सभीक हा न उठानी पड़ती है। जो सवथा न पाप ह, उ ह ह आ दसे कभी कह भी भय नह है। न और हसे ा त शुभाशुभ फलको मनु य कभी तो अकेले भोगता है और कभीकभी साधारणतया स पूण दशा, दे श, जन-समुदाय, राजा अथवा पु के साथ भोगता है। जब ह षत नह होते तो मनु य पर पर अपनी र ा करते ह और ह के षत हो जानेपर उ ह शुभ फल से व चत होना पड़ता है। यहाँ कूमभगवान्के व हम जो न क थ त बतायी गयी है, वे न उन-उन दे श के लये सामा य पसे शुभ या अशुभ होते ह। अतः बु मान् पु षको उ चत है क अपने दे श-न तथा हज नत पीडाको उप थत दे ख उसक व धपूवक शा त करे। साथ ही लोकवाद का भी शमन करे। आकाशसे दे वता तथा दै य आ दके जो श ु पृ वीपर गरते ह, उ ह लोकम ‘लोकवाद’ कहा गया है। व ान् पु ष उन सबक शा त करे, लोकवाद क कभी भी उपे ा न करे; य क उनक शा त करनेसे ही उनके ारा ा त होनेवाले भयका नवारण होता है। लोकवाद और ह के अनुकूल होनेपर शुभ फलका उदय एवं पापका नाश होता है तथा तकूल होनेपर वे बु एवं धन आ दका भी नाश कर डालते ह। अतः उनक शा तके लये ोहका याग तथा उपवास करे। दे व थान तथा दे ववृ को णाम करना भी उ म माना गया है। जप, होम, दान और नान करे तथा ोधको याग दे । व ान् पु ष कसीसे भी ोह न करे। सब ा णय के त म भाव रखे। वचन न कहे और बढ़बढ़कर बात न बनावे। इस कार मने भारतवषम थत भगवान् कूमके व पका वणन कया। वे अ च या मा नारायण ह, उ ह म स पूण जगत्क थ त है। उ ह म स पूण दे वता और न -म डल ह। उ ह के भीतर अ न, पृ वी और सोम ह। मेष आ द तीन रा शयाँ भगवान् कूमके म यभाग (क ट दे श) म ह। मथुन और कक मुखम थत ह। पूव और द णवाले चरणम कक तथा सह ह। सह, क या और तुला—ये तीन रा शयाँ उनक कु म ह। तुला और वृ क द ण-प मवाले चरणम ह। पृ भागम वृ क और धन थत ह, वाय कोणवाले चरणम धन, मकर और कु भ ह। उ र कु म कु भ और मीनक थ त है तथा ईशानकोणवाले चरणम मीन और मेष रा श ह। न्! भगवान् कूमके ी व हम स पूण दे श थत ह, उन दे श म न ह, न म रा शयाँ ह और रा शय म ह क थ त है। अतः ह-न म पीड़ा होनेपर दे श म भी पीड़ा होती है, ऐसा जानना चा हये और इसक शा तके लये व धवत् नान करके दान-होम आ दका अनु ान करना चा हये।



भ ा



आ द वष का सं



त वणन



माक डेयजी कहते ह—मुने! इस कार मने भारतवषका यथावत् वणन कया। इस दे शम ही स ययुग, ेता, ापर और क लयुग—इन चार युग तथा चार वण क व था है। अब शैलराज दे वकूटके पूव जो भ ा वष है, उसका वणन सुनो। वहाँ ेतपण, नील, पवत े शैवाल, कौर तथा पणशाला —ये पाँच कुलपवत ह। इनसे उ प ए और भी ब तेरे छोटे -छोटे पवत ह। उनसे लगे ए अनेक कारके हजार जनपद है, जनके नाम कुमुदसंकाश, शु सानु और सुम ल आ द ह। सीता, शङ् खावती, भ ा तथा च ावता आ द वहाँक न दयाँ ह, जनके पाट ब त व तृत ह। उनका जल ब त ठं डा होता है। भ ा वषके सभी मनु य शङ् ख तथा शु सुवणके समान का तमान् होते ह। उ ह द पु ष का संग ा त होता है। वे बड़े पु या मा होते ह। उनम उ म-म यमका भेद नह होता, सब समान ही दे खे जाते ह। वे वभावतः सहनशीलता आ द आठ गुण से यु होते ह। वहाँ चार भुजाधारी भगवान् व णु हय ीव पसे वराजमान रहते ह। वे म तक, दय, ल , चरण, हाथ और तीन ने से सुशो भत ह। उन जगद रके अ म भी पूववत् दे श क थ त जाननी चा हये। अब उससे प मम थत केतुमालवषका वणन सुनो। वहाँ वशाल, क बल, कृ ण, जय त, ह रपवत, वशोक और वधमान—ये सात कुल-पवत ह। इनके सवा और भी ब त-से पवत ह जहाँ लोग नवास करते ह। उस दे शम मौ ल, महाकाय, शाकपोत, कर भक तथा अङ् गुल आ द सैकड़ जनपद ह। वहाँके लोग वङ् ु यामा, वक बला, अमोघा, का मनी यामा तथा अ या य सह न दय के जल पीते ह। उस दे शम भगवान् ीह र वराह पसे वराजमान ह। वे अपने हाथ, पैर, मुख, दय, पीठ, पँसली आ द अ म ब त-से दे श एवं तीन-तीन न पूववत् धारण करते ह। वे न भी पहलेक ही भाँ त उन-उन दे श के लये शुभाशुभसूचक होते ह। मु न े ! यह मने केतुमालवषके वषयम कुछ बात बतायी ह, अब मुझसे उ रकु वषका वणन सुनो। वहाँक भू म म णमयी और वायु सुग धत तथा सवदा सुख दे नेवाली होती है। जो लोग दे वलोकसे युत होते ह, वे ही उस दे शम ज म लेते ह। उस दे शम ग रराज च का त और सूयका त—ये दो कुलपवत ह। वहाँ भ सोमा नामवाली महानद प व एवं व छ जलक धारा बहाती ई नर तर बहती रहती है। इसके सवा और भी हजार न दयाँ बहती ह। कुलपवत के अ त र और भी अनेक पवत ह तथा सैकड़ एवं सह वन ह, जहाँ अमृतके समान वा द नाना कारके फल उपल ध होते ह। उ रकु वषम भी भगवान् ीकृ ण पूवक ओर सर करके म य पम वराजमान रहते ह। उनके भ - भ नौ अवयव म तीन-तीनके मसे सभी न नौ भाग म वभ होकर थत ह; इसी कार वहाँके दे श भी नौ भाग म वभ ह। उस दे शम च प और



भ प नामक दो प ह, जो समु के भीतर थत ह। न्! इस कार मने उ रकु वषका वणन कया; अब क पु ष आ दका वणन सुनो। वहाँके ी-पु ष रोग और शोकसे र हत होते ह। उस वषम ल ख ड नामक एक मनोहर वन है, जो न दनवनके समान रमणीय जान पड़ता है। वहाँके पु ष सदा उस वनके फल का रस पीते ह। इससे उनक जवानी सदा थर रहती है और वहाँक य के शरीरसे कमलक सुग ध आती है। क पु षवषके बाद अब ह रवषका प रचय दया जाता है। वहाँके मनु य चाँद के समान गौरवणके होते ह। दे वलोकसे युत होनेके कारण उन सबका व प दे वता के ही समान होता है। ह रवषके सभी मनु य उ म इ ुरसका पान करते ह। वहाँ कसीको वृ ाव थाका क नह भोगना पड़ता है। वे सब-के-सब अजर होते ह। जबतक जीते ह, नीरोग रहते ह। अब ज बू पके बीचम थत इलावृतवषका वणन सुनो—इसे मे वष भी कहा गया है। वहाँ सूय नह तपता और मनु य को वृ ाव था नह सताती। च मा, सूय, न और ह क करण वहाँ काशम नह आत , य क वयं मे पवतक भा उन सबक अपे ा बढ़कर होती है। वहाँके मनु य जामुनके फलका रस पीते और कमलक -सी का त धारण करनेवाले, कमलके समान सुग धत एवं कमलदलके स श वशाल ने वाले होते ह। इलावृतवषके म यम मे पवतक थ त है। वह शराव (पुरवे)-के समान नीचे पतला और ऊपर चौड़ा होता गया है। उस वषम महा ग र मे ही एक पवत है और उसीसे इलावृतवषक स ई है। इसके बाद र यकवषका वणन करता ँ, सुनो। वहाँ हरे प से सुशो भत एक ऊँचा बरगदका वृ है। उसीके फलका रस पीकर वहाँके नवासी जीवन नवाह करते ह। वे जरा और ग धसे र हत तथा अ य त नमल होते ह। एक सरेके त गाढ़ ेम ही उनका धान गुण है। उसके उ रम हर मय नामक वष है, जहाँ चुर कमल-वन से सुशो भत हर यवती नामक नद बहती है। वहाँके मनु य ब त बड़े बलवान्, तेज वी, य के समान सु दर, महान् परा मी, धनवान् तथा ने को य लगनेवाले होते ह।



वरो चष् तथा वारो चष मनुके ज म एवं च र का वणन ौ ु क बोले—महामुने! आपने मेरे के अनुसार पृ वी, समु आ दक थ त तथा माण आ दका भलीभाँ त वणन कया। अब म म व तर , उनके वा मय , दे वता , ऋ षय तथा मनुपु का प रचय सुनना चाहता ँ। माक डेयजीने कहा—मुने! मने तु ह वाय भुव म व तरक बात तो बता द अब वारो चष नामक सरे म व तरका वणन सुनो। व णा नद के तटपर अ णा पद नामक नगरम एक े ा ण रहते थे। उनका प अ नीकुमार के समान मनोहर था। वे वभावसे मृ , सदाचारी तथा वेद-वेदा के पारगामी थे। अ त थय के त उनका सदा ही ेम बना रहता था। रातको घरपर आये ए अ यागत को वे ठहरनेके लये थान दे ते और उनके भोजन आ दक भी व था करते थे। उनके मनम ायः यह वचार उठा करता था क ‘म रमणीय वन, उ ान तथा भाँ त-भाँ तके नगर से सुशो भत स पूण भूम डलको घूमघूमकर दे खूँ।’ एक दन उनके घरपर कोई अ त थ पधारे, जो नाना कारक ओष धय के भावको जाननेवाले तथा म व ाम वीण थे। ा णने ापूण दयसे अ त थका वागत-स कार कया। बातचीतके स म अ यागतने ा णसे अनेक दे श , रमणीय नगर , वन , न दय , पवत और पु यतीथ क बात बताय । यह सब सुनकर ा णको बड़ा व मय आ। वे बोले—‘ व वर! आपने अनेक दे श दे खनेके कारण ब त प र म उठाया है तो भी न तो आप अ य त बूढ़े ए और न जवानीने ही आपका साथ छोड़ा। थोड़े ही समयम आप सारी पृ वीपर कैसे मण कर लेते ह?’ आग तुक ा णने कहा—‘ न्! म और ओष धय के भावसे मेरी ग त कह भी नह कती। म आधे दनम एक हजार योजन चलता ँ।’



आग तुक ा ण बड़े व ान् थे; अतः गृह थ ा णको उनक बात पर पूण व ास हो गया और वे बड़े आदरके साथ बोले—‘भगवन्! मुझपर भी कृपा क जये और अपने म का भाव दखलाइये। इस पृ वीको दे खनेक मेरी बड़ी इ छा है।’ यह सुनकर उदार चत आग तुक ा णने उ ह पैरम लगानेके लये एक लेप दया और वे जस दशाको जाना चाहते थे, उसे अपने म से अ भम त कया। वह लेप अपने पैर म लगाकर ा ण दे वता अनेक झरन से सुशो भत हमालय पवतको दे खनेके लये गये। उ ह ने सोचा था क ‘म आधे दनम एक हजार योजन र जाऊँगा और शेष आधे दनम पुनः घर लौट आऊँगा।’ वे हमालयके शखरपर प ँच गये; क तु शरीरम अ धक थकावट नह ई। उ ह ने वहाँक पवतीय भू मपर पैदल ही वचरना आर भ कया। बफपर चलनेके कारण उनके पैर म लगा आ द ओष धका लेप धुल गया। इससे उनक ती -ग त कु ठत हो गयी। अब वे इधर-उधर घूमकर हमालयके अ य त मनोहर शखर का अवलोकन करने लगे। वहाँ स और ग धव रहते थे। क रगण वहार करते थे तथा इधर-उधर दे वता आ दके डा- वहारसे वहाँ रमणीयता ब त बढ़ गयी थी। सैकड़ द



अ सरा से भरे ए वहाँके मनोहर शखर का दशन करनेसे ा णदे वताको तृ त नह ई उनके शरीरम रोमा च हो आया। फर सरे दन आनेका वचार करके जब वे घर जानेको उ त ए तो उ ह अपने पैर क ग त कु ठत जान पड़ी। वे सोचने लगे—‘अहो! यहाँ बफके पानीसे मेरे पैरका लेप धुल गया। इधर यह पवत अ य त गम है और अपने घरसे ब त र चला आया ँ। अब तो घरपर न प ँच सकनेके कारण मेरे अ नहो आ द न यकमक हा न होना चाहती है। यहाँ रहकर वह सब कैसे क ँ गा। यह तो मेरे ऊपर ब त बड़ा संकट आ रहा है। इस अव थाम य द मुझे क ह तप वी महा माका दशन हो जाता तो घर प ँचनेके लये मुझे कोई उपाय बतलाते।’ इस कार वचार करते ए ा ण दे वता हमालयपर वचरने लगे। चरण क ओष धज नत श न हो जानेके कारण उ ह बड़ी च ता हो रही थी। इस कार वहाँ घूमते ए ा णपर एक े अ सराक पड़ी, जो अपने मनोहर पके कारण बड़ी शोभा पा रही थी। उसका नाम व थनी था। उ ह दे खते ही व थनी कामदे वके वशीभूत हो गयी। उन े ा णके त त काल उसका ेम हो गया। वह सोचने लगी, ‘ये कौन ह? इनका प तो बड़ा ही मनोहर है। य द ये मुझे ठु करा न द तो मेरा ज म सफल हो जाय। मने ब त-से दे वता, दै य, स , ग धव और नाग को दे खा है; क तु एक भी इन महा माके समान पवान् नह है। जस कार इनम मेरा अनुराग हो गया है, उसी कार य द ये भी मुझम अनुर हो जायँ तो मेरा काम बन जाय। फर तो म यह समझूँगी क मने ब त बड़े पु यका उपाजन कया है।’ इस कार च ता करती ई वह द लोकक सु दरी युवती कामदे वसे ाकुल हो अ य त मनोहर प धारण कये उनके सामने उप थत ई। सु दर पवाली व थनीको दे खकर ा णकुमार वागतपूवक उसके पास गये और इस कार बोले—‘नूतन कमलके समान का तवाली सु दरी! तुम कौन हो? कसक क या हो? और यहाँ या करती हो? म ा ण ँ और अ णा पद नगरसे यहाँ आया ँ। मेरे पैर म द लेप लगा आ था, जो बफके जलसे धुल गया है। इसी लये म र-गमनक श से र हत होनेके कारण यहाँ आ गया ँ।’ व थनी बोली— न्! म अ सरा ँ। मेरा नाम व थनी है। म इस रमणीय पवतपर ही सदा वचरण करती ँ। आज आपके दशनसे कामदे वके वशीभूत हो गयी ँ। बताइये, म आपक कस आ ाका पालन क ँ । इस समय सवथा आपके अधीन ँ।



ा णने कहा—क याणी! म जस उपायसे अपने घरपर जा सकूँ और मेरे सम त न यकम क हा न न हो, वही मुझे बतलाओ। भ े ! न य-नै म क कम का छू टना ा णके लये ब त बड़ी हा न है; अतः इससे बचनेके लये तुम हमालयसे मेरा उ ार करो। ा ण का परदे शम रहना कदा प उ चत नह है। दे श दे खनेक उ क ठाने ही मुझसे यह अपराध कराया है। े ा ण अपने घरम मौजूद रहे, तभी उसके सम त कम क स होती है और जो इस कार वास करता है, उसके न य-नै म क कम क हा न ही होती है; अतः यश वनी! अब अ धक कहनेक आव यकता नह है। तुम ऐसी चे ा करो, जससे म सूया तके पहले ही अपने घरपर प ँच जाऊँ। व थनी बोली—महाभाग! ऐसा न क हये। ऐसा दन कभी न आये, जब क आप मुझे छोड़कर अपने घर चले जायँ। ा णकुमार! यहाँसे अ धक रमणीय वग भी नह है। इसी लये हमलोग वगलोक छोड़कर यह रहा करती ह। आपने मेरे मनको हर लया है। म कामदे वके वशम ँ; आपको सु दर हार, व , आभूषण, भ य-भो य तथा अ राग आ द



सभी भोग-साम ी ँ गी। आप यह र हये। यहाँ रहनेसे आपके शरीरम कभी बुढ़ापा नह आयेगा; य क यह दे वता क भू म है। यह यौवनक पु करनेवाली है। य कहकर वह कमलनयनी अ सरा बावली-सी हो गयी और ‘मुझपर कृपा क जये’ ऐसा मधुर वाणीम कहती ई सहसा अनुरागपवूक उनका आ ल न करने लगी। तब ा णने कहा—अरी ओ े! मेरे शरीरका पश न कर। जो तेरे ही जैसा हो, वैसे कसी अ य पु षके पास चली जा। म तो कसी और भावसे ाथना करता ँ और तू और ही भावसे मेरे पास आती है। गाहप य आ द तीन अ नयाँ ही मेरे आरा य दे व ह। अ नशाला ही मेरे लये रमणीय थान है तथा कुशासनसे सुशो भत वेद ही मेरी या है। व थनी! य द ा ण भोगके लये चे ा करे तो उसक वह चे ा अ छ नह मानी जाती। पर तु य द वह न य-नै म क कम के पालनके लये चे ा करता है तो वह इहलोकम लेशयु जान पड़नेपर भी परलोकम उ म फल दे नेवाली होती है। व थनी बोली— न्! म वेदनासे मर रही ँ। मेरी र ा करनेसे आपको परलोकम पु यका ही फल मलेगा और सरे ज मम भी अनेकानेक भोग ा त ह गे। इस कार मेरा मनोरथ पूण करनेसे लोक-परलोक दोन ही सधते ह, दोन ही आपको लाभ प ँचानेम सहायक होते ह। य द आप मेरी ाथना ठु करा दगे तो मेरी मृ यु होगी और आपको भी पाप लगेगा। ा णने कहा—व थनी! मेरे गु जन ने उपदे श दया है क परायी ीक अ भलाषा कदा प न करे; अतः म तुझे नह चाहता। भले ही तू बलखाया करे अथवा सूखकर बली हो जाय। माक डेयजी कहते ह—य कहकर उन महाभाग ा णने प व हो जलका आचमन कया और गाहप य-अ नको णाम करके मन-ही-मन कहा—‘भगवन् अ नदे व! आप ही सब कम क स के कारण ह। आपसे ही आहवनीय और द णा नका ा भाव आ है। आपको तृ त करनेसे दे वता वृ करते और अ आ दक वृ म कारण बनते ह। अ से ही स पूण जगत्का जीवन- नवाह होता है और कसीसे नह । इस कार आपसे ही जगत्क र ा होती है। इस स यके भावसे म सूया त होनेके पहले ही अपने घर प ँच जाऊँ। य द कभी ठ क समयपर मने वै दक कमका प र याग न कया हो तो इस स यके भावसे म आज घर प ँचकर डू बनेसे पहले ही सूयको दे खूँ। य द कभी मेरे मनम पराये धन तथा परायी ीक अ भलाषा न ई तो मेरा यह मनोरथ स हो जाय।’ ा णकुमारके ऐसा कहनेपर उनके शरीरम गाहप य-अ नने वेश कया; फर तो वे वाला के बीचम कट ए मू तमान् अ नदे वक भाँ त उस दे शको का शत करने लगे। उधर उन तेज वी ा णके त उनक ओर दे खती ई दे वा नाका अनुराग और भी बढ़ गया। अ नदे वके वेश करनेपर वे ा णकुमार जैसे आये थे, उसी कार तुरंत वहाँसे



चल दये और एक ही णम घर प ँचकर उ ह ने शा ो व धसे सब कम का अनु ान पूरा कया। उनके चले जानेके बाद उस सवा सु दरी अ सराने लंबी-लंबी साँस लेकर शेष दन और रा तीत क । उसका दय ा णके त पूण पसे आस हो गया था। वह बारंबार आह भरती, हाहाकार करती, रोती और अपनेको म दभा गनी मानकर ध कारती थी। उस समय उसका मन आहार, वहार, सुर य वन तथा रमणीय क दरा म भी सुख नह पाता था।



मुने! क ल नामका एक ग धव था, जो पहलेसे ही व थनीम आस हो रहा था; क तु उस अ सराने उसको फटकार दया था। उस दन उसने व थनीको वर हणीक अव थाम दे खा तो मन-ही-मन वचार कया—‘ या कारण है, जो आज व थनी इस पवतपर लंबी साँस ख चती ई लान-मुखसे वचर रही है? इसका रह य जाननेके लये क लने उ क ठापूवक ब त दे रतक यान कया और समा धके भावसे उसने सब बात को



भलीभाँ त जान लया। इसके बाद सोचा, ‘अब समय बतानेक आव यकता नह । यह व थनी एक मनु यपर आस ई है। उसका प धारण कर लेनेपर यह न य ही मेरे साथ रमण करेगी, अतः इसी उपायको कायम लाऊँगा।’ ऐसा न य करके ग धवने अपने भावसे ा णका प धारण कया और जहाँ व थनी बैठ थी, उधर ही वचरण करने लगा। उसे दे खकर उस सु दरीके ने स तासे खल उठे । वह पास आकर बारंबार कहने लगी—‘ न्! स होइये, स होइये। आपके याग दे नेपर म अपने ाण का प र याग कर ँ गी, इसम त नक भी स दे ह नह है। य द ऐसा आ तो आपको अ य त क दायक पाप लगेगा और आपक स पूण याएँ भी न हो जायँगी। य द आपने मुझे अपनाया तो मेरी जीवनर ासे होनेवाला धम आपको अव य ा त होगा।’ क ल बोला—सु दरी! या क ँ , एक ओर तो मेरी धा मक या न हो रही है और सरी ओर तुम ाण दे नेक बात कहती हो। इससे म संकटम पड़ गया ँ। अ छा, इस समय म तुमसे जैसा क ँ, वैसा ही करनेके लये तुम तैयार रहो तो तु हारे साथ मेरा समागम हो सकता है, अ यथा नह । व थनीने कहा— न्! स होइये; आप जो कहगे, वही क ँ गी। इस समय आपक येक आ ाका पालन करना मेरा कत है। क ल बोला—सु दरी! स भोगके समय तुम आँख बंद कये रहो, मेरी ओर न डालो तो मेरे साथ तु हारा संसग हो सकता है।



व थनीने कहा—ऐसा ही होगा। आपका क याण हो। आप जैसा चाहते ह, वैसा ही हो। मुझे इस समय सब कारसे आपक आ ाके अधीन रहना है। माक डेयजी कहते ह—तदन तर वह ग धव व थनीके साथ पु पत कानन से सुशो भत पवतके मनोरम शखर पर, सु दर सरोवर म, रमणीय क दरा म, न दय के कनारे तथा अ य मनोरम दे श म आन दपूवक वहार करने लगा। स भोगके समय व थनी अपनी आँख बंद कर लेती और ा णके तेज वी व पका च तन कया करती थी। त प ात् समयानुसार ा णके व पका यान करते-करते उस अ सराने ग धवके वीयसे गभ धारण कया। व थनीको ग भणी जानकर ा ण पधारी ग धवने उसे आ ासन दया और ेमपूवक उससे वदा ले वह अपने घर चला गया। गभक अव ध पूण होनेपर व लत अ नक भाँ त तेज वी बालकका ज म आ, मानो सूय अपनी करण से स पूण दशा को का शत कर रहा हो। वह बालक भगवान् भा करक भाँ त वरो चष् (अपनी करण )-से सुशो भत हो रहा था; इस लये वह वरो चष् नामसे ही व यात आ। वह महान् सौभा यशाली शशु अपनी अव था और सद्गुण के साथ-ही-साथ त दन उसी



कार बढ़ने लगा, जैसे च मा अपनी कला के साथ शु ल प म दन दन बढ़ता रहता है। महाभाग वरो चष्ने मशः वेद, धनुवद तथा अ या य व ा को हण कया। धीरेधीरे उसक त ण अव था आ गयी। एक दन वह म दराचल पवतपर वचर रहा था। इतनेम ही उसक एक सु दरी क यापर पड़ी, जो भयसे ाकुल हो रही थी। क याने भी उसे दे खा और घबराकर कहा—‘मेरी र ा करो, र ा करो।’ उसके ने भयसे कातर हो रहे थे। वरो चष्ने आ ासन दे ते ए कहा—‘डरो मत; बताओ, या बात है?’ वीरो चत वाणीम उसके इस कार पूछनेपर उस क याने बारंबार लंबी साँस ख चते ए अपना सारा हाल कह सुनाया।



क या बोली—वीरवर! म इ द वरा नामक व ाधरक पु ी ँ। मेरा नाम मनोरमा है। म ध वाक पु ी मेरी माता ह। म दार व ाधरक क या वभावरी मेरी एक सखी है और पार मु नक पु ी कलावती मेरी सरी सखी है। एक दन म उन दोन के साथ परम उ म कैलास पवतके तटपर गयी। वहाँ मुझे एक मु न दखायी दये, जनका शरीर



तप याके कारण अ य त बल हो रहा था। भूखसे उनका क ठ सूख गया था। शरीरम का तका अभाव था और आँख क पुतली भीतर धँसी ई थी। यह दे खकर मने उनका उपहास कया। इससे कु पत होकर उ ह ने मुझे शाप दे ते ए कहा—‘ओ नीच! अरी तप वनी! तूने मेरी हँसी उड़ायी है, इस लये शी ही एक रा स तुझपर आ मण करेगा।’ इस कार शाप दे नेपर मेरी स खय ने मु नको ब त फटकारा और कहा—‘तु हारी ा णताको ध कार है। तुमम मा न होनेके कारण तु हारी क ई सारी तप या थ है। जान पड़ता है, तुम ोधसे ही अ य त बल हो रहे हो, तप यासे नह । ा णका वभाव तो माशील होता है। ोधको काबूम रखना ही तप या है।’ स खय क ये बात सुनकर उन अ मततेज वी साधुने उन दोन को भी शाप दे दया —‘एकके सब अ म कोढ़ हो जायगी और सरी यरोगसे त होगी।’ मु नक बात सच ई, मेरी स खय को त काल वैसा ही रोग हो गया। इसी कार मेरे पीछे -पीछे एक महान् रा स दौड़ा चला आ रहा है। वह पास ही तो गरज रहा है, या आपको उसक भयंकर आवाज नह सुनायी दे ती। आज तीसरा दन बीत रहा है, क तु वह मेरा पीछा नह छोड़ता। महामते! म स पूण अ -श का दय (रह य) जानती ँ और वह सब आपको दये दे ती ँ। आप इस रा ससे मेरी र ा क जये। पनाकधारी ने पहले यह रह य वाय भुव मनुको दया था। मनुने व स जीको, व स जीने मेरे नानाको और नानाने दहेजके पम मेरे पताको दया था। मने बा याव थाम अपने पतासे ही इसक श ा पायी थी। यह स पूण अ का दय है, जो सम त श ु का संहार करनेवाला है। आप इसे शी ही हण कर और ा णके शापसे े रत होकर आये ए इस रा माको मार डाल। माक डेयजी कहते ह— वरो चष्ने ‘ब त अ छा’ कहकर मनोरमाक ाथना वीकार क । फर मनोरमाने आचमन करके रह य एवं उपसंहार- व धके स हत वह स पूण अ का दय उ ह दे दया। इसी बीचम भयानक आकारवाला वह रा स जोर-जोरसे गजना करता आ शी तापूवक वहाँ आ प ँचा। आते ही उसने मनोरमाको पकड़ लया। वह बेचारी बचाओ, बचाओ’ कहती ई क णामयी वाणीम वलाप करने लगी। तब वरो चष्को बड़ा ोध आ और उसने अ य त भयंकर च ड अ हाथम ले उसे धनुषपर चढ़ाकर एकटक ने से रा सक ओर दे खा। यह दे ख वह नशाचर भयसे ाकुल हो उठा और मनोरमाको छोड़कर वनीत भावसे बोला—‘वीरवर! मुझपर स होइये, इस अ को शा त क जये और मेरी बात सु नये। आज आपने परम बु मान् म के दये ए अ य त भयंकर शापसे मेरा उ ार कर दया। महाभाग! आपसे बढ़कर सरा कोई मेरा उपकारी नह है।’ वरो चष्ने पूछा—महा मा म मु नने तु ह कस कारणसे और कैसा शाप दया था?



रा स बोला— म मु न आठ अ से यु आयुवदके ाता ह। उ ह ने अथववेदके तेरहव अ धकारतकका ान ा त कया है। म इस मनोरमाका पता और खड् गधारी व ाधरराज नलनाभका पु इ द वरा ँ। पूवकालम एक दन मने म मु नके पास जाकर ाथना क —‘भगवन्! मुझे स पूण आयुवद शा का ान दान क जये।’ अनेक बार वनीत भावसे ाथना करनेपर भी जब उ ह ने मुझे आयुवदक श ा नह द , तब मने सरे उपायका अवल बन कया। जस समय वे सरे व ा थय को आयुवद पढ़ाते, उस समय म भी अ य रहकर वह व ा सीखा करता। जब श ा पूरी हो गयी, तब मुझे बड़ा हष आ और म बार-बार हँसने लगा। हँसनेक आवाज सुनकर मु न मुझे पहचान गये और ोधसे गदन हलाते ए कठोर वचन म बोले—‘खोट बु वाले व ाधर! तूने रा सक भाँ त अ य होकर मुझसे व ाका अपहरण कया है और मेरी अवहेलना करके हँसी उड़ायी है, इस लये मेरे शापसे तू रा स हो जा।’ उनके य कहनेपर मने णाम आ दके ारा उ ह स कया। तब वे कोमल दयवाले ा ण मुझसे इस कार बोले—‘ व ाधर! मने जो बात कही है, वह अव य होगी, टल नह सकती। क तु तुम रा स होकर पुनः अपने व पको ा त कर लोगे। नशाचराव थाम मरण-श के न हो जानेपर ोधके वशीभूत हो जब तुम अपनी ही संतानको खा डालनेक इ छा करोगे, उस समय च ड अ के तेजसे संत त होनेपर तु ह फरसे चेत हो जायगा और पूववत् अपने शरीरको धारण करके ग धवलोकम नवास करोगे।’ महाभाग! म वही ँ, आपने महान् भयदायी रा स-दे हसे मेरा उ ार कया है, अतः मेरी एक ाथना वीकार क जये। म अपनी पु ी मनोरमाको आपक सेवाम दे रहा ँ। इसे प नी पम हण कर। महामते! म मु नसे स पूण अ ा आयुवदका जो मने अ ययन कया है, वह सब आपको दे ता ँ, वीकार कर।



माक डेयजी कहते ह—य कहकर व ाधरने अपने पूव पको धारण कर लया। द व , द माला और द आभूषण उसक शोभा बढ़ाने लगे। फर उसने वरो चष्को आयुवद- व ा दान क और उसक सेवाम अपनी क या स प द । तदन तर वरो चष्ने पता ारा द ई मनोरमाके साथ व धपूवक ववाह कया। इसके बाद इ द वरा पु ीको सा वना दे द ग तसे अपने लोकको चला गया। फर वरो चष् अपनी सु दरी प नीके साथ उस उ ानम गया, जहाँ उसक दोन स खयाँ मु नके शापवश रोगसे ाकुल थ । अब वह आयुवदके त व का ाता हो चुका था; अतः रोगनाशक औषध और रस का योग करके उसने उन दोन को रोगमु कर दया। ा धसे छु टकारा पानेपर वे दोन सु दरी क याएँ अपने शरीरक द का तसे हमालय पवतके उस र य दे शको का शत करने लग ।



इस कार रोग-मु ई क या मसे एकने वरो चष्से स तापूवक कहा—‘ भो! मेरी बात सु नये। म म दार व ाधरक पु ी ँ। मेरा नाम वभावरी है। उपकारी पु ष! म अपनेको आपक सेवाम दे रही ँ, वीकार क जये। साथ ही आपको एक ऐसी व ा ँ गी, जससे सब जीव क बोली आपक समझम आने लगेगी; अतः आप मुझपर कृपा कर।’ धम वरो चष्ने ‘एवम तु’ कहकर उसक ाथना वीकार कर ली। तब सरी क या इस कार बोली—‘आय! वेद-वेदा के पारंगत व ान् ष पार मेरे पता ह। कुमाराव थासे ही चयका पालन करनेके कारण उ ह ने ववाह नह कया था। एक बार पु क थला नामक अ सरासे उनका स पक हो गया। इससे मेरा ज म आ। मेरी माता इस नजन वनम मुझे धरतीपर सुला अकेली छोड़कर चली गयी। फर एक महा मा ग धवने मुझे ले लया और नेहपूवक लालन-पालन कया। एक बार दे व-श ु अ लने मेरे पालक पतासे मुझे माँगा, क तु उ ह ने दे नेसे इ कार कर दया। तब उस रा सने सोये ए मेरे पताको मार डाला। इस घटनासे मुझे बड़ा ःख आ और म आ मह या करनेको तैयार हो गयी। उस समय भगवान् शङ् करक धमप नी स यवा दनी सतीदे वीने मुझे ऐसा



करनेसे रोका और कहा—‘सु दरी! तू शोक मत कर। महाभाग वरो चष् तेरे प त ह गे। उनका पु मनु होगा। सब कारक न धयाँ आदरपूवक तेरी आ ाका पालन करगी और तुझे इ छानुसार धन दगी। व से! जस व ाके भावसे तुझे वे न धयाँ ा त ह गी, उसे तू मुझसे हण कर। यह महाप पू जत प नी नामक व ा है।’ स यपरायणा द क या सतीने मुझसे ऐसा ही कहा था। न य ही आप वरो चष् ह। आज म अपने ाणदाताको वह व ा और यह शरीर अपण करती ँ। आप स होकर मुझे वीकार कर।’ कलावतीक यह ाथना सुनकर वरो चष्ने ‘एवम तु’ कहा। वभावरी और कलावतीक नेहपूण से ववाहका अनुमोदन पाकर उ ह ने उन दोन का पा ण हण कया। फर अपनी तीन प नय के साथ वे रमणीय वन तथा झरन से सुशो भत ग रराजके शखरपर वहार करने लगे। वरो चष्ने छः सौ वष तक उन य के साथ रमण कया। वे धमका वरोध न करते ए स पूण धा मक या का अनु ान करते और वषय को भी भोगते थे। तदन तर वरो चष्के वजय, मे न द तथा महाबली भाव—ये तीन पु ए। इ द वरक पु ी मनोरमाने वजयको ज म दया था, वभावरीके गभसे मे न द और कलावतीके गभसे भाव उ प ए थे। स पूण भोग क ा त करानेवाली जो प नी नामक व ा थी, उसके भावसे वरो चष्ने अपने तीन पु के लये तीन नगर बनवाये। पूव दशाम काम प नामक पवतके ऊपर वजय नामका नगर बसाया और उसे अपने पु वजयके अ धकारम दे दया। उ र दशाम मे न दके लये न दवती नामक पुरी बनवायी, जसक चहारद वारी ब त ऊँची थी। कलावतीके पु भावके लये द ण दे शम उ ह ने ताल नामक नगर बसाया। इस कार तीन नगर म तीन पु को रखकर पु ष े वरो चष् अपनी प नय के साथ अ य त मनोहर दे श म वहार करने लगे। एक दन वे हाथम धनुष लये वनम घूम रहे थे। उस समय उ ह ब त रपर एक सूअर दखायी दया। उसे दे खकर उ ह ने धनुष ख चा, इतनेम ही एक ह रणी उनके पास आकर बोली —‘वीरवर! आप कृपा करके मुझपर ही बाण मा रये। इस सूअरको मारनेसे या लाभ। मुझको ही तुरंत मार गराइये। आपका चलाया आ बाण मुझे सम त ःख से मु कर दे गा।’



वरो चष्ने कहा—मुझे तेरे शरीरम कोई रोग नह दखायी दे ता; फर या कारण है क तू अपने ाण को याग दे ना चाहती है? मृगी बोली— जस पु षम मेरा च लगा आ है, उसका मन सरी य म आस है, अतः उसके बना मेरी मृ यु न त है। ऐसी दशाम बाण क चोट सहनेके सवा मेरे लये यहाँ सरी कौन-सी दवा है। वरो चष्ने कहा—भी ! वह कौन-सा पु ष है, जो तुझे नह चाहता? अथवा कसके त तेरा अनुराग है, जसे न पानेके कारण तू अपने ाण याग दे नेको तैयार हो गयी है? मृगी बोली—आय! आपका क याण हो। म आपको ही ा त करना चाहती ँ। आपने ही मेरा च चुराया है। इसी लये म वे छासे मृ युका वरण करती ँ। आप मुझको बाण मा रये।



वरो चष्ने कहा—दे व! तू च चल कटा वाली मृगी है और म मनु य पधारी जीव ँ; फर मेरे-जैसे पु षका तेरे साथ कस कार संयोग होगा? मृगी बोली—य द मुझम आपका च अनुर हो तो मेरा आ ल न क जये। य द आपका दय शु होता तो म आपक इ छाके अनुसार काय क ँ गी और इतनेसे ही म यह समझूँगी क आपने मेरा बड़ा आदर कया। माक डेयजी कहते ह—तब वरो चष्ने उस ह रणीका आ ल न कया। फर तो वह त काल द पधा रणी दे वीके पम कट हो गयी। यह दे ख वरो चष्को बड़ा व मय आ। उ ह ने पूछा—‘तुम कौन हो?’ वह ेम और ल जासे कु ठत वाणीम बोली —‘महामते! म इस वनक दे वी ँ। दे वता के ाथना करनेपर म आपक सेवाम आयी ँ, आप मेरे गभसे मनुको उ प क जये।’ वनदे वीके य कहनेपर वरो चष्ने उसके गभसे त काल ही अपने-जैसा तेज वी पु उ प कया, जो सम त शुभ ल ण से सुशो भत था। उसके ज म लेते ही दे वता के यहाँ बाजे बजने लगे। ग धवराज गाने लगे और अ सराएँ नाचने लग । नाग और तप वी ऋ ष



जलके छ ट से उस बालकका अ भषेक करने लगे। दे वता ने उसके ऊपर चार ओरसे फूल क वृ क । उसके तेजको दे खकर पताने उसका नाम ु तमान् रखा, य क उसक ु तसे स पूण दशाएँ का शत हो रही थ ! वह महान् बलवान् और अ य त परा मी था। वरो चष्का पु होनेके कारण वारो चषके नामसे उसक स ई। तदन तर वरो चष् अपनी य को साथ ले। तप या करनेके लये सरे तपोवनम चले गये। वहाँ उनके साथ घोर तप या करके सम त पाप से र हत हो वे नमल लोक को ा त ए। त प ात् भगवान् जाप तने वरो चष्के पु ु तमान्को मनुके पदपर त त कया। अब उनके म व तरका वणन सुनो— वारो चष म व तरम पारावत और तु षत नामके दे वता तथा वप त् नामक इ ए। उ ज, त ब, ाण, द ो ल, ऋषभ, न र तथा अववीर—ये ही उस समयके स त ष थे। महा मा वारो चषके चै और क पु ष आ द सात पु ए, जो महान् परा मी और पृ वीके पालक थे। जबतक वारो चष म व तर था, तबतक उ ह के वंशम उ प ए राजा ने सारी पृ वीका रा य भोगा। उनका म व तर तीय कहलाता है। वरो चष् और वारो चषके ज म और च र का वण करके ालु मनु य सब पाप से मु हो जाता है।







नी व ाके अधीन रहनेवाली आठ न धय का वणन



ौ ु कने कहा—भगवन्! आपने वरो चष् तथा वारो चषके ज म एवं च र का सब वृ ा त व तारपूवक कह सुनाया। अब स पूण भोग क ा त करानेवाली प नी व ाके अधीन जो-जो न धयाँ ह, उनका व तारके साथ वणन क जये। माक डेयजी बोले— न्! प नी नामक जो व ा है, उसक अ ध ा ी दे वी ल मीजी ह। वे स पूण न धय क आधार ह। प , महाप , मकर, क छप, मुकु द, न दक, नील तथा शङ् ख—ये आठ न धयाँ ह। दे वता क कृपा तथा साधु-महा मा क सेवासे स होकर जब ये न धयाँ कृपाकरती ह तो मनु यको सदा धन ा त होता है। अब इनके व पका वणन सुनो। प नामक जो थम न ध है, वह स वगुणका आधार है। उसके भावसे मनु य सोने, चाँद और ताँबे आ द धातु का अ धक मा ाम सं ह एवं य- व य करता है। इतना ही नह , वह य का अनु ान करता, द णा दे ता तथा सभाम डप एवं दे वम दर बनवाता है। महाप नामक जो सरी न ध है, वह भी सा वक है। उसके आ त ए मनु यम स वगुणक धानता होती है। वह प राग आ द म ण, मोती और मूँगा आ दका सं ह एवं य- व य करता है। योगी पु ष को दान दे ता और उनके लये आ म बनवाता है तथा वयं भी उ ह के वभावका हो जाता है। उसके पु -पौ आ द भी उसी वभावके होते ह। महाप न ध मनु यक सात पी ढ़य तक उसका याग नह करती। मकर नामक तीसरी न ध तमोगुणी होती है। उसक पड़नेपर सुशील मनु य भी ायः तमोगुणी बन जाता है। वह बाण, खड् ग, ऋ , धनुष, ढाल तथा दं शन करनेवाली व तु का सं ह करता, राजा के साथ मै ी जोड़ता, शौयसे जी वका चलानेवाले य तथा उनके े मय को धन दे ता है। अ -श के सवा और कसी व तुके य- व यम उसका मन नह लगता। यह न ध एक ही मनु यतक सी मत रहती है। उसके पु का साथ नह दे ती। वह मनु य धनके कारण लुटेर के हाथसे अथवा सं ामम मारा जाता है। क छप नामक जो न ध है, उसक पड़नेपर भी मनु यम तमोगुणक धानता होती है। य क वह भी तामसी न ध है। वह मनु य सब वहार पु या मा के साथ ही करता है। क तु कसीपर व ास नह करता। जैसे कछु आ अपने सब अ को समेट लेता है, उसी कार वह सब ओरसे र न का सं ह करके उनक र ाके लये ाकुल रहता है। धनके न हो जानेके भयसे न तो वह दान करता है और न उसे अपने उपभोगम ही लाता है। अ पतु उसे पृ वीम गाड़कर रखता है। वह न ध भी एक ही पीढ़ तक रहती है। मुकु द नामक जो पाँचव न ध है, वह रजोगुणमयी है। उसक पड़नेपर मनु य रजोगुणी होता है और वीणा, वेणु एवं मृद आ द वा का सं ह करता है। वह गाने और नाचनेवाल को ही धन दे ता तथा सूत, व द , धूत एवं नट आ दको त दन भोगक व तुएँ अ पत करता है। यह न ध भी एक ही मनु यतक रह जाती है। इससे भ जो न द नामक



महा न ध है, वह रजोगुण और तमोगुण दोन से संयु है। उसक पड़नेपर मनु य अ धक जडताको ा त होता है। वह सम त धातु , र न और प व धा य आ दका सं ह तथा य- व य करता है। महामुने! वह मनु य वजन तथा घरपर आये ए अ त थय का आधार होता है, पर तु अपमानक थोड़ी-सी भी बात नह सहन करता। जब कोई उसक तु त करता है, तब वह ब त स होता है। तु त करनेवाला याचक जसजस व तुक इ छा करता है, वह सब उसे दे ता है। उसका वभाव कोमल बन जाता है। उसके ब त-सी याँ होती ह, जो संतानवती और अ य त सु दरी होती ह। न दनामक न ध आठ भागसे बढ़ते-बढ़ते सात पीढ़ तक मनु यका साथ दे ती है। वह सब पु ष को द घायु बनाती और रसे आये ए ब धु-बा धव का भरण-पोषण करती है। परलोकके त उसके दयम आदर नह होता। इस न धको पाया आ पु ष सहवा सय पर नेह नह रखता। पहलेके म से उदासीन हो जाता और सर से ेम करता है। इसी कार जो महा न ध स वगुण और रजोगुण दोन को साथ-साथ धारण करती है, उसका नाम नील है। उसके स पकम आनेवाला पु ष भी स वगुण एवं रजोगुणसे यु होता है। वह व , कपास, धा य, फल, फूल, मोती, मूँगा, शङ् ख, सीपी, का तथा जलसे पैदा होनेवाली अ या य व तु का सं ह एवं य- व य करता है। वह मनु य तालाब और बावली बनवाता, बगीचे लगाता, न दय पर पुल बँधवाता तथा अ छे -अ छे वृ को रोपता है। च दन और फूल आ द भोग का उपभोग करके या त लाभ करता है। यह नील न ध तीन पी ढ़य तक चलती है। शङ् ख नामक जो आठव न ध है, वह रजोगुण और तमोगुणसे यु होती है तथा अपने वामीको भी ऐसे ही गुण से यु बना दे ती है। न्! यह न ध एक ही पु षतक सी मत रहती है, सरेको नह मलती। ौ ु के! जसके पास शङ् ख नामक न ध होती है, उसके व पका वणन सुनो। वह अपने कमाये ए अ और व का अकेला ही उपभोग करता है। उसके कुटु बी लोग खराब अ खाते ह। उ ह पहननेको अ छे व नह मलते। शङ् ख न धसे यु मनु य सदा अपना ही पेट पालनेम लगा रहता है। म , भाया, ाता, पु तथा वधू आ दको कुछ भी नह दे ता। इस कार ये न धयाँ मनु य के अथक अ ध ा ी दे वी कहलाती ह। जस न धका जैसा वभाव बतलाया गया है, उसक पड़नेपर मनु य वैसे ही वभावका हो जाता है। प नी नामक व ा इन सब न धय क वा मनी है। यह सा ात् ल मीजीका व प है।



राजा उ मका च र तथा औ म म व तरका वणन ौ ु क बोले— न्! आपने वारो चष म व तरका वृ ा त मुझे व तारके साथ सुनाया, साथ ही मेरे के अनुसार आठ न धय का भी वणन कया। वाय भुव म व तरका वणन तो पहले ही हो चुका है। अब उ म नामक तीसरे म व तरक कथा सुनाइये। माक डेयजीने कहा—राजा उ ानपादके सु चके गभसे एक उ म नामक पु उ प आ था, जो महान् बलवान् और परा मी था। श ु और म म तथा पु और पराये मनु यम उसका समान भाव था। वह धमका ाता था और के लये यमराजके समान भयङ् कर एवं साधु-पु ष के लये च माके समान आन ददायी था। राजकुमार उ मने ब ुकुमारी ब लाके साथ ववाह कया था। वे सदा उसीम आस रहते थे। उनका मन और कसी कामम नह लगता था, व म भी उनका च ब लाम ही लगा रहता था। वे सदा रानीक इ छाके अनुसार ही चलते थे तो भी वह कभी उनके अनुकूल नह होती थी। एक समय सरे- सरे राजा के सम ही रानीने राजाक आ ा माननेसे इ कार कर दया। इससे उ ह बड़ा ोध आ। वे कु पत सपक भाँ त फुफकारते ए ारपालसे बोले—‘दरबान! तू इस दया ीको नजन वनम ले जाकर छोड़ दे । यह मेरी आ ा है, अतः तुझे इसपर कुछ सोच- वचार करनेक आव यकता नह है।’ तब राजाक आ ाको अ वचारणीय मानकर ारपाल रानीको रथपर बठा वनम छोड़ आया। राजाके ारा इस कार नजन वनम यागी जानेपर ब लाने उनक से र होनेके कारण अपने ऊपर राजाका ब त बड़ा अनु ह माना। उधर राजा अपने औरस पु क भाँ त जाका पालन करते ए समय तीत करने लगे। एक दनक बात है, कोई ा ण उनके दरबारम आया और अ य त ः खत च होकर इस कार कहने लगा। ा ण बोला—महाराज! म ब त ःखी ँ, मेरी बात सु नये; य क राजाके सवा और कसीसे मनु य क संकटसे र ा नह हो सकती। रातको सोते समय मेरे घरका दरवाजा खोले बना ही कोई मेरी ीको चुरा ले गया है। आप उसे पता लगाकर ला दे नेक कृपा कर। राजन्! हमारी आय और धमका छठा भाग आप वेतनके पम हण करते ह, इस लये आप ही हमलोग के र क ह। आपसे र त होनेके कारण ही मनु य रा म न त होकर सोते ह। राजाने पूछा— न्! आपक ी शरीरसे कैसी है, यह मने कभी नह दे खा है। उसक अव था या है, यह भी आपको ही बतलाना होगा। साथ ही



यह भी सू चत क जये क आपक



ा णीका वभाव कैसा है?



ा ण बोला—राजन्! मेरी ीक से ू रता टपकती है। उसक कद तो ब त ऊँची है, क तु बाँह छोट , मुँह बला-पतला और शरीर कु प है। यह म उसक न दा नह करता, ठ क-ठ क लया बतलाता ँ। उसक बात बड़ी कड़वी होती ह तथा वभावसे भी वह कोमल नह है। उसक पहली अव था कुछ-कुछ बीत चुक है। राजाने कहा— ा ण! ऐसी ी लेकर या करोगे। म तु ह सरी भाया दे ता ँ। अ छे वभावक ी ही क याणमयी एवं सुख दे नेवाली होती है। वैसी ी तो केवल ःखका ही कारण है। प और शील दोन से हीन होनेके कारण वह ी याग दे नेयो य है। ा ण बोला—राजन्! अपनी प नीक र ा करनी चा हये—यह ु तका उ म आदे श है। उसक र ा न करनेपर उससे वणसंकरक उ प होती है। वणसंकर अपने पतर को वगसे नीचे गरा दे ता है। प नी न होनेके कारण मेरे



न यकम छू ट रहे ह। इससे त दन धमम बाधा आती है, जसके कारण मेरा पतन अव य भावी है। उसके गभसे जो मेरी संत त होगी, वह धमका पालन करनेवाली होगी। भो! इस कार मने अपनी प नीका वृ ा त आपके सामने नवेदन कया है। आप उसे लाइये, य क आप ही जाक र ाके अ धकारी ह। ा णक ऐसी बात सुनकर और उसपर भलीभाँ त वचार करके राजा उ म सब साम य से यु अपने वशाल रथपर आ ढ़ ए और पृ वीपर इधर-उधर घूमने लगे। एक दन एक ब त बड़े वनम कसी तप वीका उ म आ म दखायी दया। तब रथसे उतरकर वे उस आ मम गये। वहाँ उ ह एक मु नका दशन आ, जो कुशासपर वराजमान थे और अपने तेजसे अ नक भाँ त व लत हो रहे थे। राजाको आया दे ख मु न शी तापूवक उठकर खड़े हो गये और वागतपूवक उनका स मान करते ए श यसे बोले, ‘अ य ले आओ।’ श यने धीरेसे कहा—‘मुने! या इ ह अ य दे ना उ चत है? इस बातका भलीभाँ त वचार करके जैसी आ ा द उसका पालन क ँ ।’ तब मु नने राजाके वृ ा तको यान ारा जानकर केवल आसन दे बातचीतके ारा उनका स कार कया। ऋ षने पूछा—राजन्! म जानता ँ, आप महाराज उ ानपादके पु उ म ह। बताइये, कस लये यहाँ आये ह? इस वनम कौन-सा काय स करनेका वचार है? राजाने कहा—मुने! एक ा णके घरसे कसी अप र चत ने उसक ीको चुरा लया है। उसक खोज करनेके लये म यहाँ आया ँ। इस समय आपसे एक बात पूछता ँ, कृपा करके बताइये। जब म आपके आ मपर आया तो थम पड़ते ही आपने मुझे अ य दे नेका वचार कया; क तु फर उसे रोक य दया? ऋ ष बोले—राजन्! आपको दे खकर मने ज द म अ य दे नेक आ ा दान कर द थी; क तु इस श यने मुझे सावधान कया। मेरे सादसे यह भी मेरी ही भाँ त संसारके भूत, भ व य और वतमानका हाल जानता है। इसने कहा, ‘ वचारकर आ ा द जये।’ तब मने भी आपका वृ ा त जान लया। इसी लये आपको व धपूवक अ य नह दया। राजन्! इसम संदेह नह क आप वाय भुव मनुके वंशम उ प होनेके कारण अ य पानेके अ धकारी ह तथा प हमलोग आपको अ यका उ म पा नह मानते। राजाने पूछा— न्! मने जानकर या अनजानम ऐसा कौन-सा पाप कया है, जससे ब त दन के प ात् आनेपर भी म आपसे अ य पानेका



अ धकारी न रहा?



ऋ ष बोले—राजन्! या आप इस बातको भूल गये क आपने अपनी प नीका वनम प र याग कया है और उसके साथ ही आप धमको भी छोड़ बैठे ह? एक प तक भी न य-कम छोड़ दे नेसे मनु य अ पृ य हो जाता है; फर आपने तो एक वषसे उसको छोड़ रखा है। अतः आपके वषयम या कहना है। नरे र! प तका वभाव कैसा ही हो, प नीको उ चत है क वह सदा प तके अनुकूल रहे। इसी कार प तका भी कत है क वह वभाववाली प नीका भी पालन-पोषण करे।* ा णक वह प नी जसका अपहरण आ है, सदा प तके तकूल ही चलती है तथा प धमपालनक इ छासे वह आपके पास गया और प नीको खोजनेके लये े रत करता रहा। आप तो धमसे वच लत ए सरे- सरे मनु य को धमम लगाते ह; फर जब आप वयं ही वच लत ह गे, तब आपको कौन धमम लगायेगा। माक डेयजी कहते ह—मु नके य कहनेपर राजा ल जत हो गये। आपका कहना ठ क है, य कहकर उ ह ने ा णक प नीके वषयम पूछा



—‘भगवन्! आप भूत और भ व यके यथाथ ाता ह। बताइये, ा णक प नीको कौन ले गया है?’ ऋ ष बोले—राजन्! अ के पु बलाक नामके रा सने उसका अपहरण कया है। उ पलावत वनम जानेपर आप उस ा णक प नीको दे ख सकगे। जाइये, शी ही उस े ा णका प नीसे संयोग कराइये, जससे आपक तरह उसे भी दनो दन पापका भागी न होना पड़े। तदन तर उन महामु नको णाम करके राजा उ म पुनः अपने रथपर आ ढ़ ए और उनके बताये ए उ पलावत वनम गये। वहाँ उ ह ने ा णक प नीको दे खा। उसका व प ठ क वैसा ही था, जैसा क ा णने बतलाया था। वह ीफल खा रही थी। राजाने उससे पूछा—‘भ े ! तुम इस वनम कैसे आय ? सब बात प पसे बताओ। जान पड़ता है, तुम वशालके पु सुशमाक ी हो।’ ा णीने कहा—म वनवासी ा ण अ तरा क पु ी ँ और वशालके पु क , जसका नाम अभी-अभी आपने बताया है, प नी ँ। मुझे रा मा रा स बलाक यहाँ हर लाया है। म घरके भीतर सो रही थी, उस समय इसने मेरा अपने ाता और मातासे वयोग कराया। म यहाँ ब त ःखी रहती ँ। उसने मुझे इस अ य त गहन वनम छोड़ रखा है। न तो मेरा उपभोग करता है और न मुझे खा ही डालता है। इसका कुछ कारण समझम नह आता। राजा बोले— ा णकुमारी! या तु ह मालूम है क वह रा स तुमको यहाँ छोड़कर कहाँ गया है? मुझे तु हारे प तने ही यहाँ भेजा है। ा णीने कहा—वह नशाचर इसी वनके भीतर रहता है। य द आपको उससे भय न हो तो इसम वेश करके दे खये। तदन तर राजाने ा णीके दखाये ए मागसे उस वनके भीतर वेश कया और उस रा सको प रवारके साथ बैठे दे खा। राजाको दे खते ही रा सने रसे ही पृ वीपर म तक टे क दया और उनके नकट गया। रा स बोला—राजन्! आपने मेरे घरपर पधारकर मेरे ऊपर ब त बड़ी कृपा क है। म आपके रा यम नवास करता ँ; अतः बताइये, आपका कौनसा काय स क ँ ? आप यह अ य वीकार क जये और इस आसनपर बै ठये। राजाने कहा— नशाचर! तुमने मेरा सब काम कर दया। सब कारसे मेरा आ त य-स कार हो गया। अब बताओ, तुम ा णक ीको य उठा लाये हो? य द कह तुम उसे अपनी भाया बनानेके लये लाये हो तो यह ठ क नह जान पड़ता; य क वह सु दरी नह है और तु हारे घरम सरी याँ भी ह ही।



य द उसे अपना भ य बनानेका वचार रहा हो तो आजतक तुमने उसे खाया य नह ? इसका कारण बताओ।



रा स बोला—राजन्! हमलोग मनु यको नह खाते। मनु यभ ी रा स सरे ही ह। हम तो पु यका फल ही खाया करते ह। इसके सवा य द कोई ी या पु ष हमारा आदर या अनादर कर दे तो हम उसके अ छे -बुरे वभावको भी खा जाते ह। य द मनु यके मा- वभावको हम खा ल तो वे ोधी बन जाते ह और - वभावको भ ण कर ल तो वे उ म गुण से स प होते ह। महाराज! मेरे घरम अनेक युवती याँ ह, जो पम अ सरा क समानता करनेवाली ह। उनके रहते ए मनु यक य म मेरा अनुराग कैसे हो सकता है। राजाने कहा— नशाचर! य द यह ा णी न तो तु हारे उपभोगके कामक है न आहारके तो ा णके घरम वेश करके तुमने इसका अपहरण य कया?



रा स बोला—राजन्! वह े ा ण वेदम का ाता है। म जस कसी य म जाता ँ, र ो न म का पाठ करके वह मुझे र भगा दे ता है। म के ारा उसके उ चाटन करनेसे हमलोग भूखे रह जाते ह। ऐसी दशाम हम कहाँ जायँ। ायः सभी य म वह ऋ वज् बना करता है। इसी लये हमने उसके सामने यह व न खड़ा कया है, य क कोई भी पु ष प नीके बना य -कम करनेके यो य नह रहता। राजन्! म आपका वनीत सेवक ँ, आपके रा यक जा ँ; अतः आप अपने कसी कायके लये आ ा दे कर मुझपर कृपा क जये। राजाने कहा—रा स! तुम पहले कह चुके हो क हम मनु यके वभावको खा जाते ह; अतः हम तुमसे जो काम कराना चाहते ह, उसे सुनो। तुम इस ा णीक ताको भ ण कर लो, जससे यह वनयशील हो जाय। इसके बाद इसे इसके घरम प ँचा आओ। इतना कर दे नेपर म समझूँगा क तुमने अपने घरपर आये ए मुझ अ त थका स पूण मनोरथ पूण कर दया। राजाके य कहनेपर वह रा स अपनी मायासे ा णीके शरीरम वेश कर गया और अपनी श से उसके वभावको खा गया। फर तो ा णक प नी भयंकर तासे मु हो गयी और राजासे बोली—‘महाराज! मुझे अपने ही कमके फलसे अपने महा मा वामीसे वलग होना पड़ा है। यह नशाचर तो उसम न म मा बना है। न इसका दोष है, न मेरे महा मा प तका दोष है; सब दोष मेरा ही है। य क मनु यको अपनी ही करनीका फल भोगना पड़ता है। पूवज मम मने कसीका वयोग कराया होगा, वह आज मुझपर भी आ पड़ा है। इसम सरेका या दोष है।’ रा स बोला—राजन्! आपक आ ाके अनुसार म इस ा णीके इसके वामीके घरपर प ँचा आता ँ; इसके सवा और भी य द मेरे यो य कोई काय हो तो उसके लये आ ा द जये। राजाने कहा— नशाचर! यह काय हो जानेपर म समझूँगा क तुमने मेरा सारा काय स कर दया। वीर! य द कसी कायके समय म तु हारा मरण क ँ तो तुम मेरे पास आ जाना। ‘ब त अ छा’कहकर रा सने उस ा णप नीको, जो ता र हो जानेसे अब अ छे वभावक हो गयी थी, ले जाकर उसके प तके घरम प ँचा दया। राजा भी उसे भेजकर मन-ही-मन इस कार च ता करने लगे—‘अब म अपने वषयम या क ँ , या करनेसे मेरा भला होगा। महामना मह षने मुझे अ यके अयो य बतलाया है, यह तो मेरे लये बड़े क क बात है। अब म या क ँ । प नीको तो मने याग दया, अब उसका पता कैसे लगे अथवा उन ानच ु



मह षसे ही चलकर पूछूँ।’ य वचारकर राजा फर रथपर आ ढ़ ए और उस थानपर गये, जहाँ वे कालवे ा धमा मा महामु न रहते थे। रथसे उतरकर उ ह ने मु नके पास जा उ ह णाम कया और रा ससे मलने, ा णीके दखायी दे ने तथा उसक ताके र होने आ दका सब वृ ा त ठ क-ठ क कह सुनाया। ऋ षने कहा—राजन्! तुमने जो कुछ कया है, वह सब मुझे पहलेसे ही मालूम हो चुका है। मेरे पास तुम जस कायसे आये हो, वह भी मुझसे छपा नह है। मनु य के लये प नी धम, अथ एवं कामक स का कारण है। तुमने उसका याग करके वशेषतः धमको भी याग दया है। राजन्! ा ण, य, वै य अथवा शू कोई भी य न हो, प नीके न होनेपर वह अपने कमानु ानके यो य नह रहता। तुमने अपनी प नीका याग करके अ छा नह कया। जैसे य के लये प तका याग अनु चत है, उसी कार पु ष के लये ीका याग भी उ चत नह है।* राजा बोले—भगवन्! या क ँ , यह सब मेरे कम का फल है। म सदा प नीके अनुकूल ही चलता था, फर भी वह मेरे अनुकूल न ई। इस लये मने उसे याग दया। उसके वयोगक पीड़ासे मेरी अ तरा मा थत हो रही है। मने उसे वनम छोड़ा था; पता नह वह कहाँ चली गयी। अथवा उसे वनम सह, ा या नशाचर ने तो नह खा लया। ऋ षने कहा—राजन्! उसे सह, ा या नशाचर ने नह खाया है। वह इस समय रसातलम है। उसका च र अभीतक न नह आ है। राजा बोले— न्! यह तो बड़ी अद्भुत बात है। उसे पातालम कौन ले गया और वह अबतक षत कैसे नह ई है, यह सब यथाथ पसे बतलानेक कृपा कर। ऋ षने कहा—पातालम नागराज कपोत एक व यात पु ष ह। एक दन उ ह ने तु हारी यागी ई सु दरी प नीको महान् वनके भीतर भटकते ए दे खा। उसका सारा हाल जानकर वे उसपर आस हो गये और उसे पाताललोकम ले गये। नागराज कपोतके न दा नामक एक पु ी तथा मनोरमा नामक ी है। न दाने ब लाको दे खकर सोचा, ‘हो-न-हो यह मेरी माताक सौत बननेवाली है।’ य वचारकर वह उसे अपने घरम ले गयी और अ तःपुरम छपाकर रख दया। कपोतने जब-जब न दासे ब लाको माँगा, तब-तब उसने उनको कोई उ र नह दया। तब पताने उसे शाप दे दया—‘जा, तू गूँगी हो जायगी।’ इस कार शाप त होकर न दा उसके साथ रहती है। नागराज उसे ले गये और उसक क याने उसे अपने संर णम रख लया।



राजा बोले—महामुने! मुझे तो ब ला ाण से भी बढ़कर य है; क तु वह मेरे त सदा ताका ही बताव करती है। इसका या कारण है? ऋ षने कहा—पा ण हणके समय सूय, मंगल और शनै रक तु हारे ऊपर तथा शु और बृह प तक तु हारी प नीके ऊपर थी। उस मु तम उसपर च मा और बुध भी, जो पर पर श ुभाव रखनेवाले ह, अनुकूल थे और तु हारे ऊपर तकूल। इसी लये तु ह प नीक तकूलताका वशेष क सहना पड़ा है। अ छा, अब जाओ; धमपूवक पृ वीका पालन करो और प नीके साथ रहकर स पूण धा मक या का अनु ान करो। माक डेयजी कहते ह—मह षके य कहनेपर राजा उ ह णाम करके रथपर आ ढ़ ए और अपने नगरको लौट आये। वहाँ आनेपर उ ह ने उस ा णको दे खा, जो अपनी शीलवती भायाके साथ ब त स था। ा णने कहा—नृप े ! आप धमके ाता ह। आपने मेरी प नीको लाकर मेरे धमक र ा क है। इससे म कृताथ हो गया। राजा बोले— ज े ! आप तो अपने धमका पालन करके कृताथ हो रहे ह, क तु म संकटम पड़ा ँ; य क मेरी प नी घरम नह है। ा णने कहा—महाराज! य द आपक प नी जी वत है और भचा रणी नह ई है तो आप ीके बना रहकर पाप य कमा रहे ह।



राजा बोले— न्! य द म प नीको लाऊँ भी तो वह सदा मेरे तकूल रहती है; अतः उससे ःख ही मलेगा, सुख नह । य क वह मुझसे मै ी नह रखती। आप कोई ऐसा य न कर जससे वह मेरे अधीन हो जाय। ा णने कहा—राजन्! आपके त रानीका ेम होनेके लये े य करना उपकारक होगा; अतः म क कामना रखनेवाले लोग जसका अनु ान कया करते ह, वह म व दानामक य म आर भ करता ँ। राजन्! जन ीपु ष म पर पर ेम न हो, उनम म व दा ेम उ प करती है। इस लये आपके कायक स के उ े यसे म उसीका अनु ान क ँ गा। ा णके य कहनेपर राजाने य क सब साम ी एक त करायी और उस े ा णने म व दा-य का अनु ान आर भ कया। उसने राजाक ीम ेम उ प करनेके लये एक-एक करके सात य कये। जब उसे यह न य हो गया क रानीके दयम राजाके त म भाव जा त् हो गया है, तब उसने राजासे कहा—‘महाराज! अब आप अपनी य प नीको अपने साथ र खये और उसके साथ उ म भोग भोगते ए ापूवक य का अनु ान क जये।’



ा णक बात सुनकर राजाको बड़ा व मय आ। उ ह ने उस महापरा मी स य त नशाचरको मरण कया। उनके मरण करते ही वह रा स राजाके पास आ प ँचा और णाम करके बोला—‘ या आ ा है?’ तब राजाने व तारके साथ अपना सारा वृ ा त नवेदन कया। फर वह रा स पातालम जाकर रानीको ले आया। आनेपर उसने हा दक अनुरागके साथ प तको दे खा और बड़ी स ताके साथ बारंबार कहा—‘मुझपर स होइये।’ तब राजाने अपनी मा ननी ीको दयसे लगाकर कहा—‘ ये! तुम बार-बार मुझसे ऐसा य कहती हो। म तो तुमपर स ही ँ।’ रानी बोली—महाराज! य द आप मुझपर स ह तो म आपसे एक याचना करती ँ; आप उसे पूण करके मेरा आदर क जये। राजाने कहा— ये! तु ह जो कुछ भी अभी हो, वह नःशङ् क होकर कहो। तु हारे लये कुछ भी लभ नह है। म तु हारे अधीन ँ। रानी बोली—नाथ! मेरे लये नागराजने मेरी सखीको शाप दे दया, जससे वह गूँगी हो गयी है। य द आप मेरे ेमवश उसके संकटका नवारण कर सक तो उसक मूकता र करनेके लये य न क जये। य द ऐसा हो गया तो म समझूँगी, मेरा सब काय स हो गया। तब राजाने उस ा णको बुलाकर पूछा—‘ व वर! इसम कैसी या होनी चा हये, जो उसक मूकता र कर सके?’ ा ण बोला—राजन्! म आपके कहनेसे सार वती इ क ँ गा, जससे आपक ये महारानी अपनी सखीक वाक्श को काय म बनाकर उसके ऋणसे उऋण हो जायँ। तदन तर उस े ा णने सार वती इ आर भ क । उसने न दाक मूकता र करनेके लये एका च होकर सार वती सू का जप कया। इससे वह नागक या बोलने लगी। उन दन गगमु न रसातलम रहा करते थे। उ ह ने न दाको बताया, ‘तु हारी सखी ब लाके प तने यह अ य त कर उपकार कया है।’ यह बात जानकर शी गा मनी न दा राजाके नगरम आयी और अपनी सखी महारानी ब लाको छातीसे लगाकर तथा राजाक भी बारंबार शंसा करके आसनपर बैठकर मधुर वाणीम बोली—‘वीर! आपने इस समय मेरा जो उपकार कया है, इससे मेरा दय आकृ हो गया है। अतः म जो कहती ँ, उसे सुनो! राजन्! तु ह एक महापरा मी पु ा त होगा और इस पृ वीपर उसका अख ड रा य रहेगा। वह सब शा का ाता, धमपरायण बु मान् एवं म व तरका वामी मनु होगा।



राजाको इस कार वर दे कर नागराज-क या न दा अपनी सखीको दयसे लगा पाताललोकको चली गयी। तदन तर रानीके साथ वहार एवं जापालन करते ए राजा उ मके कतने ही वष तीत हो गये। फर महा मा राजाको रानी ब लाके गभसे एक पु उ प आ, जो पू णमाके पूण च क भाँ त का तमान् था। उसके ज म लेनेपर सम त जाको महान् आन द आ। दे वता क भयाँ बज उठ और आकाशसे फूल क वषा होने लगी। उसे दे खकर मु नय ने कहा—‘यह राजा उ मके वंशम और उ म समयम उ प आ है तथा इसका येक अ उ म है; इस लये यह औ म नामसे व यात होगा।’ इस कार राजा उ मका पु औ म नामक मनु आ। अब उसके भावका वणन सुनो। जो राजा उ मके उपा यान और औ मके ज मक कथा त दन सुनता है, उसका कभी कसीसे े ष नह होता। इस च र को सुनने और पढ़नेवालेका कभी य प नी, पु अथवा ब धु से वयोग नह होता। औ म म व तर तीसरा कहा जाता है। उसम वधामा, स य, शव,



तदन तथा वशवत —ये दे वता के पाँच गण थे। इनका जैसा नाम, वैसा ही गुण था। ये पाँच दे वगण य भोगी माने गये ह। ये सभी गण बारह-बारह य के समुदाय ह। उ म व तरम सुशा त नामक इ ए, जो सौ य का अनु ान करके इ पदको ा त ए थे। आज भी मनु य व न का नाश करनेके लये सुशा तके नामा र से वभू षत एक गाथाका गान कया करते ह। वह इस कार है— सुशा तदवराट् का तः सुशा तं स य छ त । स हतः शवस या ै तथैव वशव भः ।। ‘ शव, स य एवं वशव आ द दे वगण के साथ परम सु दर दे वराज सुशा त उ म शा त दान करते ह।’ माक डेयजी कहते ह—औ म मनुके अज, परशु च और द —ये तीन पु थे, जो दे वता के समान तेज वी तथा महान् बल एवं परा मसे स प थे। उनके म व तरम उ ह के वंशज इस पृ वीका पालन करते रहे। इकह र चतुयुगीसे कुछ अ धक कालका एक म व तर होता है, यह बात पहले बतलायी जा चुक है। महा मा व स के सात पु ही इस तीसरे म व तरम स त ष थे। इस कार यह तीसरे म व तरका वणन आ। अब तामस मनुके चौथे म व तरका वणन कया जाता है। य प तामस मनुका ज म मनु येतर यो नम आ था तो भी उ ह ने अपने यशसे भुवनको आलो कत कर दया था। न्! अ य सभी मनु क भाँ त चौथे मनुका ज म भी अलौ कक है। उसे बतलाता ँ, सुनो।



*



प ेण कमणो हा या या य पृ यतां नरः । कम वा षक य य हा न ते न यकमणः ।। प याकूलया भा ं यथाशीलेऽ प भत र । ःशीला प तथा भाया पोषणीया नरे र ।। (६९।५८-५९)



*



यजता भवता प न न शोभनमनु तम् । अ या यो ह यथा भता नृणाम् ।।



ीणां भाया तथा (७१।११)



तामस मनुक उ प



तथा म व तरका वणन



माक डेयजी कहते ह—मुने! इस पृ वीपर वरा नामक एक व यात राजा हो गये ह, जो बड़े परा मी थे। उ ह ने अनेक य का अनु ान कया था और वे सं ामम कभी पीठ नह दखाते थे। राजाके म ीक आराधनासे स होकर भगवान् सूयने राजाको ब त बड़ी आयु दान क थी। राजाके सौ याँ थ , क तु वे उनक भाँ त बड़ी आयुसे यु न होनेके कारण समयानुसार मृ युको ा त । इसी कार धीरे-धीरे राजाके म ी और सेवक भी कालके गालम चले गये। उन सबके अभावम राजाका च उ न रहने लगा। त दन उनक श ीण होने लगी। उ ह वीयसे हीन एवं ःखी जानकर वमद नामके एक राजाने आ मण कया और उनको रा य युत कर दया। रा यसे युत होनेपर वह वर हो वनम चले गये और वत ता (झेलम) नद के तटपर रहकर तप या करने लगे। वे गम म प चा न सेवन करते, बरसातम मैदानम रहकर वषाके जलको शरीरपर सहते और जाड़ेक ऋतुम पानीके भीतर शयन करते, नराहार रहते एवं उ म त का पालन करते। एक बार वषाकालम जब क वे तप या कर रहे थे, लगातार कई दन तक वृ होती रही। इससे बाढ़ आ गयी। राजा भी जलक खर धाराम बह गये। चार ओर अ धकार छा रहा था। जलम बहते-बहते उ ह संयोगवश एक ह रणी मल गयी। उ ह ने उसक पूँछ पकड़ ली, फर उस वाहके साथ बहते और अ धकारम इधर-उधर भटकते ए राजा कसी तरह तटपर प ँचे। वहाँ भी ब त रतक क चड़ थी, जसको पार करना अ य त ही क ठन था; तथा प वे ह रणीक पूँछसे खचते ए उस क चड़से पार हो एक वनम जा प ँचे। ह रणीके पशसे उ ह आन दका अनुभव होने लगा। उस अ धकारम मण करते ए वे कामदे वके वशीभूत हो गये। राजाको अनुरागवश अपनी पीठका पश करते जान उस वनके भीतर मृगीने कहा —‘राजन्! आप काँपते ए हाथ से मेरी पीठका पश य करते ह? आपके कायक स तो कसी और ही कारसे हो गयी है।’ राजाने पूछा—मृगी! तू कौन है? और मनु यक तरह कैसे बोलती है? मृगी बोली—राजन्! म पहले आपक यारी प नी थी। मेरा नाम उ पलावती था। म ढ़ध वाक पु ी और आपक सौ रा नय म धान थी। राजाने पूछा—उ पलावती तो बड़ी प त ता और धमपरायणा थी। वह ऐसी कस कार ई? उसने कौन-सा ऐसा काय कया था, जससे उसे मृगीक यो नम आना पड़ा।



मृगी बोली—राजन्! म बा याव थाम जब पताके घरपर थी, स खय के साथ एक दन वनम घूमने गयी थी। वहाँ मने मृगीके साथ समागम करते ए एक मृगको दे खा। म उसके बलकुल नकट थी, अतः मने उस मृगीको मारा। मुझसे डरकर वह मृगी अ य गयी। तब मृगने कु पत होकर कहा—‘ओ मूख! तू य इतनी मतवाली हो रही है, तेरी इस ताको ध कार है।’ उस मृगक मनु यके समान वाणी सुनकर म डर गयी और बोली—‘तुम कौन हो?’ उसने उ र दया—‘म नवृ तच ु नामक मु नका पु ँ। मेरा नाम सुतपा है। मृगीसे स भोग करनेक इ छा होनेके कारण म मृग हो गया। ेमवश मने इस मृगीका अनुसरण कया था और इसने भी मेरी अ भलाषा क थी; पर तु तूने आकर मुझसे उसका वयोग करा दया, इस लये म तुझे अभी शाप दे ता ँ।’ मने कहा —‘मुने! मने अनजानम आपका अपराध कया है, अतः कृपा करके मुझे शाप न द जये।’ मेरे य कहनेपर वे मु न इस कार बोले—‘य द तुझे अपनेको दे सकूँ—तेरे गभसे पु उ प कर सकूँ तो तुझे शाप नह ँ गा।’ मने कहा—‘म न तो मृगी ँ और न वनम मृगीका प धारण करके ही घूमती ँ; अतः मेरी ओरसे अपना मन हटा ली जये। आपको सरी कोई मृगी मल जायगी।’ मेरी यह बात सुनकर मु नक आँख ोधसे लाल हो गय । उनका ओठ काँपने लगा। वे बोले —‘ओ नादान! तू कहती है म मृगी नह ँ तो ले तू मृगी ही हो जायगी।’ तब म अ य त ः खत हो मु नको णाम करके बोली—‘मुने मुझपर स होइये। म अभी बा लका ँ। बोलनेका ढं ग नह जानती। मु नवर! पताके न रहनेपर ही ी वयं अपना प त चुनती है। मेरे पताजी तो अभी जी वत ह, फर कैसे म आपका वरण कर सकती ँ।*’ अथवा सारा अपराध मेरा ही है, फर भी आप स होइये। म आपके चरण म णाम करती ँ।’ तब मु न े सुतपाने कहा —‘मेरी बात झूठ नह हो सकती। तू मरनेपर इसी वनम मृगी होगी। उस समय स वीय मु नके पु महाबा लोल तेरे गभम आयगे। उनके गभम आते ही तुझे अपने पूवज मका मरण होगा, फर मरण-श ा त करके तू मानवीक भाँ त बोलने लगेगी। उस गभके उ प होनेपर तू मृगीके शरीरसे मु हो जायगी और प तसे समा त हो उन लोक म जायगी, जहाँ कुकम मनु य कदा प नह जा सकते। लोल भी बड़े परा मी ह गे और अपने पताके श ु को मारकर सारी पृ वी अपने अ धकारम कर लगे। त प ात् वे मनुके पदपर त त ह गे।’ इस कार शाप मलनेपर म तय यो नम आयी ँ। आपके शरीरका पश होनेमा से मेरे उदरम गभ था पत हो गया है। मृगीके य कहनेपर राजाको बड़ी स ता ई। उ ह ने सोचा—‘मेरा पु मेरे श ु को परा त करके इस पृ वीपर मनु होगा, यह कतने आन दक बात



है।’ तदन तर कुछ कालके प ात् मृगीने उ म ल ण से स प पु को ज म दया। उसके उ प होनेपर स पूण भूत आन दका अनुभव करने लगे। वशेषतः राजाको बड़ी स ता ई। मृगी भी शापसे छू टकर उ म लोक को चली गयी। तदन तर सब ऋ षय ने आकर उसक भावी समृ दे ख उस बालकका नामकरण कया—‘तामसी यो नम पड़ी ई माताके गभसे इसका ज म आ है, इस लये यह बालक संसारम तामस नामसे व यात होगा।’ त प ात् पता अपने पु तामसका लालन-पालन करने लगे। जब तामसको कुछ समझ ई तो उसने पतासे पूछा—‘तात! आप कौन ह?’ म आपका पु कस कार आ? मेरी माता कौन ह और आप कस लये यहाँ आये ह? यह सब सच-सच बताइये।’ तब पताने अपने रा यसे युत होने आ दसे लेकर सब वृ ा त पु को बतलाया। ये सब बात सुनकर तापसने भगवान् सूयक आराधना क और उनसे उपसंहारस हत स पूण द अ ा त कये। अ -श का ाता होकर उसने स पूण श ु को परा त कया और उ ह पताके पास ले आकर उनक आ ा मलनेपर छु टकारा दया। वह सदा अपने धमके पालनम लगा रहता था। उसके पता भी शरीर यागनेके प ात् तप और य से उपा जत पु यलोक म गये। सारी पृ वीको जीतकर तामस राजा आ और फर मनुके पदपर त त आ। अब तामस म व तरका वणन सुनो। उसम स य, सुधी सु प और ह र— ये चार दे वगण ए। इनमसे एक-एक गणम स ाईस-स ाईस दे वता ह। उन दे वता के इ का नाम शखी था। वे अ य त बली और महापरा मी थे। उ ह ने सौ य का अनु ान करके इस पदको ा त कया था। यो तधमा, पृथु, का , चै , अ न, बलक और पीवर—ये ही सात उस समयके स त ष थे। नर, ा त, शा त, दा त, जानु और जङ् घ आ द महाबली राजा तामस मनुके पु थे।



*



पत यस त नारी भ यते ह प तः वयम् । स त ताते कथं चाहं वृणो म मु नस म ।। (७४।३४-३५)



रैवत मनुक उ प



और उनके म व तरका वणन



माक डेयजी कहते ह— न्! पाँचव मनुका नाम रैवत था। उनक उ प का वणन करता ँ, सुनो। पूवकालम ऋतवाक् नामसे स एक मह ष थे। उनके ब त समयतक कोई पु नह आ। द घ कालके प ात् आ भी तो रेवती न के अ तम चरणम उसका ज म आ। उ ह ने बालकके जातकम आ द सं कार व धपूवक स प कये। उपनयन आ द भी कराये, क तु वह सुशील न हो सका। जबसे उसका ज म आ, तभीसे वे मह ष भी द घकाल ापी रोगसे त हो गये। उसक माता भी कोढ़ आ दसे पी ड़त हो ब त ःख उठाने लगी। बालकके पता अ य त ःखी होकर सोचने लगे—‘यह कैसा अनथ ा त आ!’ उधर उस बु वाले पु ने सरे मु नकुमारक ीका अपहरण कर लया। इससे ख च होकर ऋतवाक्ने कहा—‘मनु य का बना पु के रहना अ छा है; क तु कुपु का होना कदा प उ म नह है। कुपु तो पता-माताके दयको सदा ही सालता रहता है और वगम गये ए पतर को भी नरकम गरा दे ता है। वह तो केवल माता- पताको ःख दे नेके लये ही होता है। उस पाता मा पु के ज मको ध कार है। जनके पु सब लोग के य, परोपकारी, शा त तथा उ म कम म लगे रहनेवाले होते ह, वे ही ध य ह। मुझे इस ज मम कुपु के कारण सुख नह मला और परलोकसे वमुख होना पड़ा। कुपु का आ य लेनेवाला मेरा यह अधम ज म केवल नरकम ले जानेवाला है, उ म ग तक ा त करानेवाला नह ।’ इस कार अ य त पु के राचार से ऋतवाक् मु नका दयका जलने लगा। उ ह ने गगमु नसे इसका कारण पूछा।



ऋतवाक् बोले—महामुने! पूवकालम उ म तका पालन करते ए मने सब वेद का व धपूवक अ ययन कया और उ ह समा त करके वै दक व धके अनुसार ीके साथ ववाह कया; फर ीको साथ रखकर वेद और मृ तय म बताये ए सभी कत कम का अनु ान कया। आजतक कसी भी याके अनु ानम यूनता नह आने द । मुने! ‘पुम्’ नामके नरकसे डरते ए मने गभाधानक व धसे पु ो प का उ े य रखकर ीके साथ समागम कया है, कामोपभोगके लये नह । यह सब होनेपर भी ऐसे कुपु का ज म य आ? या यह मेरे दोषसे अथवा अपने दोषसे उ प आ है, जो अपनी तासे हमारे लये ःखदायी और ब धुजन के लये शोककारक हो गया है? गगने कहा—मु न े ! तु हारा यह पु रेवती न के अ तम चरणम उ प आ है, अतः षत समयम ज म हण करनेके कारण यह तु हारे लये ःखदायी हो गया है। ऋतवाक् बोले—मेरे एक ही पु था तो भी रेवती न के अ तम भागम उ प होके कारण इसम ऐसी ता आ गयी; इस लये रेवतीका शी ही पतन हो जाय।



मु नके इस कार शाप दे ते ही रेवती न आकाशसे गरा। सारा संसार च कत च होकर यह य दे ख रहा था। वह न कुमुद ग रके चार ओर गर पड़ा। वहाँके वन, गुफाएँ तथा झरने आ द सहसा उद्भा सत हो उठे । रेवती न के गरनेसे कुमुद ग रका नाम रैवतक पवत हो गया। उस न क जो का त थी, वह कमलम डत सरोवरके पम कट ई। उस समय उस सरोवरसे एक अ य त सु दरी क याका ा भाव आ। वह रेवतीक का तसे कट ई थी, इस लये मुच मु नने उसे दे खकर उसका नाम रेवती रख दया। वह उनके आ मके पास ही कट ई थी, इस लये वे ही पताक भाँ त उसका पालन-पोषण करने लगे। जब क या यौवनाव थाम पदापण कर चुक , तब मुच मु न उसके लये यो य वर पूछनेके वचारसे अ नशालाम गये। उनके करनेपर अ नदे वने उ र दया—‘इस क याके वामी राजा गम ह गे, जो महाबली महापरा मी, यव ा और धमव सल ह।’ इसी बीचम मृगयाके स से राजा गम मु नके आ मपर आ प ँचे। वे य तके वंशम उ प अ य त बलवान् और परा मी थे। उनके पताका नाम व मशील था और वे का ल द के गभसे उ प ए थे। आ मम प ँचनेपर जब उ ह ऋ ष नह दखायी दये, तब उ ह ने रेवतीको ‘ ये’ कहकर स बो धत कया और पूछा—‘सु दरी! बताओ तो सही, मु न े मुच इस आ मसे कहाँ गये ह? म उ ह णाम करना चाहता ँ।’ मु न अ नशालाम बैठे ए थे, वहाँसे राजाका वातालाप और ‘ ये’ स बोधन सुनकर वे तुरंत ही बाहर नकले। उ ह ने दे खा, राजो चत च से यु महा मा राजा गम वनीत भावसे सामने खड़े ह। उ ह दे खकर मु नने गौतम नामक श यसे कहा—‘गौतम! इन महाराजके लये अ य लाओ।’ राजा अ य वीकार करके जब आसनपर वराजमान ए, तब महामु न मुचने वागतपूवक पूछा—‘राजन्! आपके घर, सेना, खजाना, म , भृ य, म ी तथा शरीरक कुशल तो है न?’ राजाने कहा—सु त! आपक कृपासे मेरे यहाँ सब कुशलसे ह, कह भी कुशलका अभाव नह है। ऋ ष बोले—राजन्! मेरे यहाँ एक क या है। इसके लये वर ढूँ ढ़नेक इ छासे मने अ नदे वसे पूछा था—‘इसका प त कौन होगा?’ अ नदे वने कहा—‘राजा गम ही इसके वामी ह गे।’ इस लये अब आप मेरी द ई इस क याको हण कर। आपने भी ‘ ये’ कहकर इसको स बो धत कया है, अतः अब य वचार करते ह। मु नक बात सुनकर राजा गम मौन रह गये। तब मह ष मुच अपनी क याका वैवा हक काय स प करनेको उ त ए। अपने ववाहके लये पताको उ त दे ख क याने वनयसे म तक झुकाकर कहा—‘ पताजी! य द आपका मुझपर ेम है तो कृपा करके मेरा ववाह रेवती न म ही क जये।’



ऋ ष बोले—भ े ! ऋतवाक् नामसे व यात तप वी मु नने रेवती न पर ोध करके उसे न म डलसे नीचे गरा दया है। क याने कहा— पताजी! या ऋतवाक् मु नने ही ऐसी तप या क है, आपने नह ? य द आप भी तप वी ह तो रेवती न को पुनः आकाशम था पत क जये। आप उसी न म मेरा ववाह य नह करते?



ऋ ष बोले—भ े ! तेरा क याण हो, अब तू पुनः च माके मागम था पत करता ँ। तदन तर महामु न मुचने अपनी तप याके भाँ त च म डलसे संयु कर दया। फर उसी ए क याका व धपूवक ववाह कया और स



स हो जा। म तेरे लये रेवती न



को



भावसे रेवती न को पुनः पहलेक ही न म वै दक म का उ चारण करते होकर अपने जामातासे कहा—‘राजन्!



बताइये, म इस ववाहम दहेजके पम आपको या ँ ? मेरी तप या अ तहत है। म आपको लभ व तु भी दे सकता ँ।’ राजाने कहा—मुने! मेरा ज म वाय भुव मनुके वंशम आ है। अतः म आपक कृपासे ऐसा पु चाहता ँ, जो म व तरका वामी हो। ऋ ष बोले—राजन्! तु हारी यह कामना पूण होगी। तु हारा पु मनु होकर स पूण पृ वीका उपभोग करेगा और धमका ाता होगा। तब राजा उस ीको साथ ले अपने नगरको चले गये। उनसे रेवतीके गभसे रैवतका ज म आ, जो सब धम से स प और मनु य से अजेय थे। वे सब शा के ाता और वेद व ाके वशारद थे। उनके म व तरम सुमेधा, भूप त, वैकु ठ और अ मताभ—ये चार दे वगण थे। इनमसे येक गणम चौदह-चौदह दे वता थे। इन चार दे वगण के वामी वभु नामक इ थे, ज ह ने सौ य का अनु ान करके इस पदको ा त कया था। हर यरोमा, वेद ी, ऊ वबा , वेदबा , सुधामा, पज य, महामु न तथा वेद-वेदा त के पारगामी महाभाग व स —ये सात रैवत म व तरके स त ष थे। बलब धु, महावीय, सुय तथा स यक आ द रैवत मनुके पु थे।



चा ुष मनुक उ प



और उनके म व तरका वणन



माक डेयजी कहते ह—मुने! यह मने तु ह पाँचव म व तरक कथा सुनायी है। अब चा ुष मनुके छठे म व तरका वृ ा त सुनो। न्! वे पूवज मम ाजीके च ुसे उ प ए थे, इस लये इस ज मम भी उनका नाम चा ुष ही आ। राज ष महा मा अन म क प नी भ ाने एक पु को ज म दया, जो ब त ही व ान्, प व , पूवज मक बात को मरण रखनेवाला और समथ था। उस पु को गोदम लेकर माता बारंबार पुचकारती, यारसे बुलाती और नेहवश छातीसे चपका लेती थी; क तु वह तो पूवज मक बात को मरण रखनेवाला था, अतः माताक गोदम पड़ा-पड़ा हँसने लगा। इसपर माता बोली —‘बेटा! यह या? म तो डर गयी ँ; तु हारे मुखपर यह हा य कैसा? या तु ह असमयम ही बोध हो गया? या तुम कोई शुभ दे ख रहे हो?’ पु बोला—माँ! या तुम नह दे खती, सामने जो यह ब ली खड़ी है मुझे खा जाना चाहती है। सरी ओर जातहा रणी मुझे हड़प लेनेको तैयार है। यह अ यभावसे खड़ी है। इधर तुम पु - ेमके कारण अ य त नेहवश मेरी ओर दे खती, बारंबार मुझे बुलाती और छातीसे लगाती हो। तु हारे शरीरम रोमा च हो आता है। वा स य- नेहके कारण तु हारे ने आँसु से भीग रहे ह। यही सब दे खकर मुझे हँसी आ गयी। जैसे ये दोन वाथवश न ध दयसे मेरी ओर दे खती ह, उसी कार तुम भी वाथको लेकर ही मुझसे नेह करती जान पड़ती हो। अ तर इतना ही है क ब ली और जातहा रणी तो मुझे अभी खा जाना चाहती ह और तुम धीरे-धीरे मुझसे ा त होनेवाले उपभोगयो य फलक कामना रखती हो। माताने कहा—बेटा! म उपकारके लये नह , ेमके कारण ही तु ह छातीसे लगाती ँ। य द इससे तु ह स ता नह होती तो इसका अथ यह है क तुमने मुझे याग दया। लो, तुमसे ा त होनेवाले वाथका मने प र याग कर दया। य कहकर वह बालकको वह छोड़ सू तका-गृहसे बाहर नकल गयी। उसी समय जातहा रणीने उस शु ा मा बालकको हड़प लया और उसे ले जाकर राजा व ा तक प नीके शयन-गृहम सुला दया। फर रानीके नवजात पु को ले जाकर सरेके घरम रख दया और उसके बालकको ले जाकर अपना ास बना लया। इस कार नवजात शशु को चुरानेवाली वह ू र रा सी तीसरे घरके बालकको खा लया करती थी। बालक के चुराने और बदलनेका काम वह त दन करती थी। राजा व ा तने अपने घरम आये ए बालकका यो चत सं कार कराया और बड़ी स ताके साथ नामकरणसं कारक व ध पूरी करके उसका नाम आन द रखा। जब बालक कुछ बड़ा आ, तब उसका उपनयन-सं कार करते समय आचायने कहा—‘व स! पहले अपनी माँके पास जाकर उ ह णाम करो।’ गु क बात सुनकर बालक हँस पड़ा और बोला—‘गु दे व! म कस माताको णाम क ँ —ज म दे नेवाली अथवा पालन करनेवालीको? म राजा



अन म के घरम उनक धमप नी ग रभ ा दे वीके गभसे उ प आ; क तु जातहा रणी मुझे उठा ले आयी और यहाँ है मनीके पास छोड़कर इसके पु को वयं उठा ले गयी। फर उसे भी व वर बोधके गृहम ले जाकर उसने रख दया और उनके पु को हड़पकर भ ण कर लया। रानी है मनीका पु वहाँ ा णो चत सं कार के साथ पा लत हो रहा है और मेरा यहाँ आप सं कार करा रहे ह। मुझे आपक आ ाका पालन करना है; अतः बताइये, कस माताके पास णाम करनेके लये जाऊँ?’ गु बोले—बेटा! यह बड़ा गहन संकट उप थत आ। मेरी समझम तो कुछ भी नह आता। मोहसे मेरी बु ा त हो रही है। आन दने कहा— ष! संसारक ऐसी ही व था है। इसम मोहके लये कहाँ अवसर है। सो चये तो कौन कसका पु है और कौन कसका ब धु। जीव ज म लेनेके बादसे ही मनु य का स ब धी होता है, क तु मरते ही उसके सभी स ब धी छू ट जाते ह। यहाँ भी जसका ज म आ है और ज मके साथ ही ब धु-बा धव से स ब ध जुड़ गया है, उस दे हका अ त होते ही सारा स ब ध टू ट जाता है। इसी लये म कहता ँ, संसारम रहनेवाले जीवका कोई भी ब धु-बा धव नह है। भला, कौन कसीके साथ सदा ही ब धु व नभाता है। मने तो इसी ज मम दो माताएँ और दो पता ा त कये। फर य द सरी दे ह धारण करनेपर ये स ब ध बढ़ तो इसम आ य ही या है। अतः अब म तप या क ँ गा। आप वशाल नामक ामसे, इस राजाके पु को, जो चै नामसे व यात है, यहाँ बुला ली जये। आन दक बात सुनकर राजा अपनी ी और व धु-बा धव के साथ बड़े व मयम पड़े और उसक ओरसे ममता हटाकर उ ह ने उसे वन जानेक अनुम त दे द । फर अपने पु चै को बुलाकर उसे रा य करनेके यो य बनाया और जसने पु -बु से उसका पालन कया था, उस ा णका भी भलीभाँ त स मान कया। आन द तप याम लगे थे। उ ह तप या करते दे ख ाजीने पूछा—‘व स! बताओ तो सही, कस लये इतना कठोर तप करते हो?’ आन दने कहा—भगवन्! म आ मशु के लये तप या कर रहा ँ। ब धनके हेतुभूत जो मेरे कम ह, उनका नाश हो जाय—यही इस तप याका उ े य है।



ाजी बोले— जसके कम-भोगका अ धकार ीण हो जाता है, वही मु के यो य होता है। जसके पास कम का संचय है, वह नह । तुम तो स वा धकारी हो, मु कैसे पा सकोगे। तु ह छठा मनु होना है; चलो, अपने अ धकारका पालन करो। तु हारे लये तप याक आव यकता नह है। मनुक मयादाका पालन करके तुम मु हो जाओगे। ाजीके य कहनेपर परम बु मान् आन दने ‘तथा तु’ कहकर उनक आ ा वीकार क और तप यासे वरत होकर मनुका काय पूण करनेके लये वहाँसे चल दये। ाजीने उ ह तप यासे हटाते समय चा ुष नामसे स बो धत कया था, इस लये वे उसी नामसे स ए। उ ह ने राजा उ क क या वद धासे ववाह कया और उसके गभसे व यात परा मी—अनेक पु उ प कये। चा ुष म व तरम आ य, सूत, भ , यूथग और लेख—ये पाँच दे वगण थे। इन सभी गण म आठ-आठ दे वता का सं नवेश था। सब दे वता य भोजी एवं अमृताशी थे। इन सबके वामी मनोजव नामक इ थे, ज ह ने सौ य का अनु ान करके दे वता का आ धप य ा त कया था। उस समय सुमेधा, वरजा, ह व मान्, उ प , मधु, अ तनामा और स ह णु—ये सात स त ष थे। उ , पू और



शत ु न आ द महाबली नरेश चा ष ु मनुके पु थे, ज ह ने इस पृ वीका रा य कया। इस समय वैव वत नामके सातव मनु रा य करते ह। उनके म व तरम जो दे वता आ द ए ह, उनका वणन सुनो।



वैव वत म व तरक कथा तथा साव णक म व तरका सं त प रचय माक डेयजी कहते ह— व कमाक पु ी सं ा भगवान् सूयक प नी ह। उनके गभसे वैव वत मनुका ज म आ, जो व यात यश वी और अनेक वषय के ानम पार त थे। वव वान्के पु होनेके कारण ही वे वैव वत कहलाये। जब भगवान् सूय सं ाक ओर दे खते तो वे अपनी आँख बंद कर लेती थ । इससे होकर सूयने सं ासे यह नठु र वचन कहा—‘ओ मूख! तू मुझे दे खकर सदा ने का संयम करती (आँख मूँद लेती) है। इस लये तेरे गभसे जाजन को संयम (शासन)-म रखनेवाला यम उ प होगा।’ यह सुनकर सं ादे वी भयसे ाकुल हो उठ । उनक च चल हो गयी। यह दे ख सूयने फर कहा—‘तूने इस समय मुझे दे खकर अपनी च चल क है, इस लये च चल लहर से यु नद तेरी क याके पम उ प होगी। तदन तर प तके शापसे सं ाने एक पु और पु ीको ज म दया। पु का नाम यम आ और पु ी यमुना नामसे व यात महानद ई। सं ा सूयके तेजको बड़े क से सहन करती थी। वह उसके लये अस था। उसने सोचा—‘ या क ँ , कहाँ जाऊँ, कहाँ जानेसे मुझे शा त मलेगी और मेरे वामी मुझपर कु पत भी नह ह गे?’ इस तरह अनेक कारसे वचार करके जाप तकुमारी सं ाने पताके घरका आ य लेना ही ठ क समझा। वहाँ जानेके लये उ त होकर उसने अपनी छायाको ही सूयदे वक प नी बनाया और उससे कहा—‘तू इस घरम रह और मेरी ही तरह सब संतान तथा भगवान् सूयके त भी उ म बताव करना।’ य कहकर सं ादे वी अपने पताके घर चली गय । वहाँ उ ह ने व ा जाप तका दशन कया, उ ह ने भी बड़े आदरके साथ पु ीका वागत-स कार कया। वे कुछ कालतक वहाँ रह । इसके बाद पताने उ ह ेमपूवक समझाते ए कहा—‘बेट ! तुम तीन लोकके वामी भगवान् सूयक प नी हो। अतः तु ह अ धक समयतक पताके घरम नह ठहरना चा हये। अब तुम वामीके घर जाओ। म तुमपर ब त स ँ।’ पताके य कहनेपर सं ाने ‘ब त अ छा’ कहकर उनक आ ा वीकार क और उ ह णाम करके वहाँसे चली गय । वे सूयके तेजसे ब त डरती थ और उनके तापका सामना करना नह चाहती थ ; इस लये उ रकु म जाकर घोड़ीके पम रहने और तप या करने लग । उधर छायासं ाको ही सं ा समझकर भगवान् सूयने उससे दो पु और एक मनोहर क या उ प क । छायासं ा अपनी संतान को जतना यार करती थी, उतना सं ाके पु पु ीको नह । मनु तो उसके इस बतावको सह लेते थे, क तु यमसे सहन नह आ। उ ह ने ोधम आकर उसे मारनेके लये लात उठायी, क तु फर मा-भावका आ य ले उसके शरीरपर लात नह लगायी। तब छायासं ासे कु पत हो यमको शाप दया—‘म तु हारे



पताक प नी ँ, क तु तुम मयादाका उ लङ् घन करके मुझे मारनेके लये लात उठा रहे हो; इस लये तु हारा यह पैर आज ही पृ वीपर गर पड़ेगा।’ माताका दया आ शाप सुनकर यम भयसे ाकुल हो उठे और अपने पताके पास जा उ ह णाम करके बोले—‘ पताजी! यह तो बड़े आ यक बात है; ऐसा तो कभी कसीने भी नह दे खा होगा क माता वा स य छोड़कर अपने पु को शाप दे डाले। गुणी पु के त भी माताका भाव नह होता।’ यमराजक यह बात सुनकर भगवान् सूयने छायासं ाको बुलाकर पूछा—‘सं ा कहाँ गयी?’ वह बोली—‘नाथ! म ही तो व ा जाप तक क या और आपक प नी सं ा ँ। आपने मुझसे ही ये संतान उ प कये ह।’ सूयने कई बार घुमा- फराकर पूछा, क तु उसने स ची बात नह बताय । तब सूयदे व उसे शाप दे नेको उ त ए, यह दे ख उसने सब बात ठ क-ठ क बता द । असली बातका पता लगनेपर भगवान् सूय व कमाके घर गये। व कमाने अपने घर पधारे ए लोकपू जत सूयदे वका बड़ी भ के साथ पूजन कया। फर सं ाका पता पूछनेपर उ ह ने कहा —‘भगवन्! वह मेरे घरपर आयी अव य थी, क तु मने पुनः उसे आपके ही घर भेज दया।’ तब सूयने समा ध थ होकर दे खा, वह घोड़ीका प धारणकर उ रकु दे शम तप या कर रही है। उसक तप याका एक ही उ े य है, मेरे वामीक आकृ त सौ य एवं शुभ हो जाय।’ सूयको उसक तप याका उ े य ात हो गया; अतः उ ह ने व कमासे कहा—‘आप मेरे तेजको छाँट द जये।’ तब उ ह ने संव सर प च वाले सूयके तेजको छाँट दया, उस समय दे वता ने उनक बड़ी शंसा क । तदन तर दे वता और ऋ षय ने स पूण भुवनके पूजनीय भगवान् सूयका तवन आर भ कया— दे वा ऊचुः नम ते ऋ व पाय साम पाय ते नमः । यजुः व प पाय सा नां धामवते नमः ।। ानैकधामभूताय नधूततमसे नमः । शु यो तः व पाय वशु ायामला मने ।। व र ाय वरे याय पर मै परमा मने । नमोऽ खलजगद् ा प व पाया ममू ये ।। सवकारणभूताय न ाय ानचेतसाम् । नमः सूय व पाय काशा म व पणे ।। भा कराय नम तु यं तथा दनकृते नमः । शवरीहेतवे चैव सं या यो नाकृते नमः ।। दे वता बोले—भगवन्! ऋ वेद व प आपको नम कार है। सामवेद प आपको णाम है। यजुवद व प आपको नम कार है। आप ही सम त साम के अ ध ान ह, आपको णाम है। आप ानके एकमा आधार एवं अ धकारका नाश करनेवाले ह,



आपको नम कार है। आपका व प शु यो तमय है। आप वभावसे ही परम शु एवं नमला मा ह, आपको णाम है। आप सबसे महान्, सव े , सबसे परे और सा ात् परमा मा ह। आपका व प स पूण जगत्म ापक है। आप सबके आ म प ह, आपको नम कार है। आप सबक उ प के कारण, ानका च तन करनेवाले पु ष के ा त थान, सूय व प तथा काशा म प ह। आपको नम कार है। भाका व तार करनेवाले आपको नम कार है। दनक सृ करनेवाले आपको णाम है। रा के हेतु भी आप ही ह तथा सं या और चाँदनीक सृ भी आप ही करते ह; आपको नम कार है। वं सवमेतद् भगवन् जग द् मता वया । म या व म खलं ा डं सचराचरम् ।। वदं शु भ रदं पृ ं सव संजायते शु च । यते व करैः पशा जलाद नां प व ता ।। होमदाना दको धम नोपकाराय जायते । तावद् याव संयो ग जगदे तत् वदं शु भः ।। भगवन्! आप ही यह स पूण जगत् ह। आपम ही चराचर ा णय स हत सम त ा ड ओत ोत है; अतएव ऊ वलोकम जब आप मण करते ह तो आपके साथ यह ा ड भी घूमता है। आपक करण का पश पाकर ही स पूण व तुएँ प व होती ह। आपक करण ही अपने पशसे जल आ दको प व करती ह। जबतक इस जगत्म आपक द र मय का संयोग नह होता, तबतक होम-दान आ द धम सफल नह हो पाता। ऋच ते सकला ेता यजूं येता न चा यतः । सकला न च सामा न नपत त वद तः ।। ऋङ् मय वं जग ाथ वमेव च यजुमयः । यतः साममय ैव ततो नाथ यीमयः ।। वमेव णो पं परं चापरमेव च । मू ामू तथा सू मः थूल प तथा थतः ।। नमेषका ा दमयः काल पः या मकः । सीद वे छया पं वतेजःशमनं कु ।। ऋ वेदक ये स पूण ऋचाएँ, सरी ओर यजुवदके ये सब म तथा सामवेदक स पूण ु तयाँ आपके ही अ से कट होती ह। जग ाथ! आप ऋ वेदमय ह, आप ही यजुवदमय ह तथा आप ही सामवेदमय ह। नाथ! इस कार आप यीमय ह—तीन वेद आपके ही व प ह। आप ही के पर और अपर प ह। मू , अमू , थूल और सू म सभी प म आपक ही थ त है। नमेष, का ा आ द जो कालके छोटे -छोटे वभाग ह, वे



सब आपके ही व प ह। आप ही या मक ( त ण बीतनेवाला) काल प ह। भगवन्! आप स होइये और अपनी इ छासे ही अपने च ड तेजको शा त क जये। माक डेयजी कहते ह—दे वता और दे व षय के इस कार तु त करनेपर तेजोरा श अ वनाशी भगवान् सूयने व कमाके ारा अपने तेजको कम कर दया। उनका जो ऋ वेदमय तेज था, उससे पृ वीका नमाण आ। यजुवदमय तेजसे ुलोकक रचना ई और सामवेदमय तेज ही वगलोकके पम त त आ। व कमाने सूयके तेजके सोलह भाग मसे पं ह भाग छाँट दये और उनके ारा शंकरजीका शूल, भगवान् व णुका च , वसुगण के भयंकर शङ् कु अ नक श , कुबेरक श बका तथा अ या य दे वता, य एवं व ाधर के लये भयंकर अ -श बनाये। भगवान् सूय तबसे अपने तेजके सोलहव भागको धारण करते ह। तेज कम होनेके बाद वे अ का प धारण करके उ रकु नामक दे शम गये और वहाँ उ ह ने घोड़ीके पम सं ाको दे खा। उ ह आते दे ख सं ाको पराये पु षक आशङ् का ई, इस लये वह अपने पृ भागक र ा करती ई सामनेक ओरसे उनके स मुख गयी; फर वहाँ उनके मलनेपर पहले दोन क ना सकाका संयोग आ। इससे अ पधा रणी सं ाके मुखसे दो पु कट ए, जो नास य और द नामसे स ए। फर वीयपातके अन तर रेव त नामक एक पु उ प आ, जो ढाल, तलवार और कवच धारण कये, बाण और तरकससे सुस जत हो घोड़ेपर चढ़ा आ ही कट आ था। त प ात् भगवान् सूयने सं ाको अपने अनुपम व पका दशन कराया। उनके इस पको दे खकर सं ाको बड़ी स ता ई। फर उसने भी अपना प धारण कर लया। तब सूयदे व अपनी ी तमती प नी सं ाको साथ ले अपने नवास- थानपर आये। भगवान् सूयके जो थम पु थे, उनक वैव वत नामसे स ई। सरे पु का नाम यम था। ये माताके शापसे त थे। पताने इनके शापका अ त इस कार कया था—‘क ड़े यमके पैरका मांस लेकर पृ वीपर गर पड़गे। फर इनका पैर ठ क हो जायगा।’ यम धमपर रखते थे और म तथा श ुके त उनका समान भाव था। अतः सूयने जा के धमाधमका फल दे नेके लये उ ह यमराजके पदपर त त कया। यमुना क ल दपवतके बीचसे बहनेवाली नद हो गयी। दोन अ नीकुमार दे वता के वै नयु कये गये। रेव तको भी गु क का वामी बनाया गया। अब छायासं ाके पु क जहाँ नयु ई, उसका हाल सुनो। छायासं ाके ये पु का वण ( प-रंग) वैव वत मनुके ही समान था, अतः वे साव णक नामसे स ए। वे ही आठव मनु ह गे। उस समय राजा ब ल इ के पदपर त त रहगे। छायाके सरे पु शनै रको पताने ह के म यम नयु कया। तीसरी संतान तपती नामक क या थी। उसने राजा संवरणको अपना वामी बनाया और उनसे कु नामक पु को ज म दया। ये कु एक स राजा ए।



वैव वत म व तरम आठ दे वगण माने गये ह। उनके नाम इस कार ह—आ द य, वसु, , सा य, व ेदेव, म त्, भृगु तथा अ रा। इनम आ द यगण, म ण तथा गण क यपजीके पु ह। सा यगण, वसुगण और व ेदेवगण—ये धमके पु ह। भृगग ु ण भृगक ु े और आ रसगण मह ष अ राके पु ह। न्! यह सब मारीच सग है। मरी चन दन क यपक संतान होनेके कारण इ ह मारीच कहते ह। इस म व तरम जो इ ह, उनका नाम ऊज वी है। ये महा मा य भागके भो ा ह। भूत, भ व य और वतमानम जो इ होते ह, उन सबका ल ण एक-सा ही समझना चा हये। अब वतमान लोक का वणन सुनो। भूल क तो यह पृ वी है। अ त र को ुलोक या भुवल क माना गया है और द लोकको वल क कहते ह। अ , व स , क यप, गौतम, भर ाज, व ा म तथा जमद न—ये ही इस म व तरके स त ष ह। इ ाकु, नृग, धृ , शया त, न र य त, नाभाग, अ र , क ष और पृष —ये नौ वैव वत मनुके पु कहे गये ह। इस कार मने तुमसे यह वैव वत म व तरका वणन कया है। इसका वण और पाठ करनेसे मनु य सब पाप से छू ट जाता और महान् पु यका भागी होता है। ौ ु क बोले—महामुने! आपने वाय भुव आ द सात मनु का वणन कया तथा उनके म व तर म जो दे वता, राजा और मु न ए थे, उनको भी बतलाया। इस क पम जो सरे सात मनु ह गे, उनका प रचय द जये तथा उनके म व तर म जो दे वता आ द होनेवाले ह, उनका भी वणन क जये। माक डेयजीने कहा— न्! छायासं ाके पु साव णका नाम म तु ह बतला चुका ँ। वे सब बात म अपने बड़े भाई वैव वत मनुके ही समान ह। वे ही आठव मनु ह गे। परशुराम, ास, गालव, द तमान्, कृप, ऋ यशृ तथा अ थामा—ये सात साव ण म व तरम स त ष ह गे। सुतपा, अ मताभ और मु य—ये तीन दे वगण ह गे। इनमसे येक गण पृथक्—पृथक् बीस-बीस दे वता का समुदाय होगा। तप तप, श , ु त, यो त, भाकर, भास, द यत, धम, तेज, र म तथा व तु आ द दे वता सुतपागणके बीस दे वता के अ तगत ह। भु, वभु और वभास आ द दे वता अ मताभ नामक तीय गणके बीस दे वता के अ तगत ह। तीसरे गणके जो बीस दे वता ह, उनम दम, दा त, रत, सोम और व त आ द धान ह। ये मु यगणके दे वता कहे गये ह। ये सभी म व तरके वामी ह गे। ये मरी चन दन जाप त क यपके ही पु ह। वरोचनके पु ब ल इनके इ ह गे। वे ब ल आज भी अपनी त ाके ब धनसे बँधकर पाताललोकम वराजमान ह। वरजा, अववीर, नम ह, स यवाक्, कृ त तथा व णु आ द साव ण मनुके पु ह गे।



साव ण मनुक उ प के स म दे वीमाहा य थमोऽ यायः



मेधा ऋ षका राजा सुरथ और समा धको भगवतीक म हमा बताते ए मधु-कैटभ-वधका स सुनाना व नयोग [ थमच र य ा ऋ षः, महाकाली दे वता, गाय ी छ दः, न दा श ः, र द तका बीजम्, अ न त वम्, ऋ वेदः व पम्, ीमहाकाली ी यथ थमच र जपे व नयोगः ।] थम च र के ा ऋ ष, महाकाली दे वता, गाय ी छ द, न दा श , र द तका बीज, अ न त व ऋ वेद व प है। ीमहाकाली दे वताक स ताके लये थम च र के जपम व नयोग कया जाता है। यान खड् गं च गदे षुचापप रघा छू लं भुशु ड शरः शङ् खं संदधत करै नयनां सवा भूषावृताम् । नीला म ु तमा यपाददशकां सेवे कहाका लकां याम तौ व पते हरौ कमलजो ह तुं मधुं कैटभम् ।। भगवान् व णुके सो जानेपर मधु और कैटभको मारनेके लये कमलज मा ाजीने जनका तवन कया था, उन महाकाली दे वीका म सेवन करता ँ। वे अपने दस हाथ म खड् ग, च , गदा, बाण, धनुष, प रघ, शूल, भुशु ड, म तक और शङ् ख धारण करती ह। उनके तीन ने ह। वे सम त अ म द आभूषण से वभू षत ह। उनके शरीरक का त नीलम णके समान है तथा वे दस मुख और दस पैर से यु ह।]



ॐ नम डकायै१ ।। ‘ॐ ’ माक डेय उवाच ।। १ ।। साव णः सूयतनयो यो मनुः क यतेऽ मः । नशामय त प व तराद् गदतो मम ।। २ ।। महामायानुभावेन यथा म व तरा धपः । स बभूव महाभागः साव ण तनयो रवेः ।। ३ ।। वारो चषेऽ तरे पूव चै वंशसमु वः ।



सुरथो नाम राजाभू सम ते तम डले ।। ४ ।। त य पालयतः स यक् जाः पु ा नवौरसान् । बभूवुः श वो भूपाः कोला व वं सन तदा ।। ५ ।। त य तैरभव ु म त बलद डनः । यूनैर प स तैयु े कोला व वं स भ जतः ।। ६ ।। ततः वपुरमायातो नजदे शा धपोऽभवत् । आ ा तः स महाभाग तै तदा बला र भः ।। ७ ।। माक डेयजी बोले— ।। १ ।। सूयके पु साव ण जो आठव मनु कहे जाते ह, उनक उ प क कथा व तारपूवक कहता ँ, सुनो ।। २ ।। सूयकुमार महाभाग साव ण भगवती महामायाके अनु हसे जस कार म व तरके वामी ए, वही स सुनाता ँ ।। ३ ।। पूवकालक बात है, वारो चष म व तरम सुरथ नामके एक राजा थे, जो चै वंशम उ प ए थे। उनका सम त भूम डलपर अ धकार था ।। ४ ।। वे जाका अपने औरस पु क भाँ त धमपूवक पालन करते थे; फर भी उस समय कोला व वंसी२ नामके य उनके श ु हो गये ।। ५ ।। राजा सुरथक द डनी त बड़ी बल थी। उनका श ु के साथ सं ाम आ। य प कोला व वंसी सं याम कम थे तो भी राजा सुरथ यु म उनसे परा त हो गये ।। ६ ।। तब वे यु भू मसे अपने नगरको लौट आये और केवल अपने दे शके राजा होकर रहने लगे (समूची पृ वीसे अब उनका अ धकार जाता रहा) कतु वहाँ भी उन बल श ु ने उस समय महाभाग राजा सुरथपर आ मण कर दया ।। ७ ।। अमा यैब ल भ ै बल य रा म भः । कोशो बलं चाप तं त ा प वपुरे ततः ।। ८ ।। ततो मृगया ाजेन त वा यः स भूप तः । एकाक हयमा जगाम गहनं वनम् ।। ९ ।। स त ा मम ा ीद् जवय य मेधसः । शा त ापदाक ण मु न श योपशो भतम् ।। १० ।। त थौ कं च स कालं च मु नना तेन स कृतः । इत ेत वचरं त म मु नवरा मे ।। ११ ।। सोऽ च तय दा त मम वाकृ चेतनः१ । म पूवः पा लतं पूव मया हीनं पुरं ह तत् ।। १२ ।। मद्भृ यै तैरसद्वृ ैधमतः पा यते न वा । न जाने स धानो मे शूरह ती सदामदः ।। १३ ।। मम वै रवशं यातः कान् भोगानुपल यते । ये ममानुगता न यं सादधनभोजनैः ।। १४ ।।



अनुवृ ुवं तेऽ कुव य यमहीभृताम् । अस य यशीलै तैः कुव ः सततं यम् ।। १५ ।। सं चतः सोऽ त ःखेन यं कोशो ग म य त । एत चा य च सततं च तयामास पा थवः ।। १६ ।। त व ा मा याशे वै यमेकं ददश सः । स पृ तेन क वं भो हेतु ागमनेऽ कः ।। १७ ।। सशोक इव क मा वं मना इव ल यसे । इ याक य वच त य भूपतेः णयो दतम् ।। १८ ।। युवाच स तं वै यः यावनतो नृपम् ।। १९ ।। राजाका बल ीण हो चला था; इस लये उनके , बलवान् एवं रा मा म य ने वहाँ उनक राजधानीम भी राजक य सेना और खजानेको वहाँसे ह थया लया ।। ८ ।। सुरथका भु व न हो चुका था, इस लये वे शकार खेलनेके बहाने घोड़ेपर सवार हो वहाँसे अकेले ही एक घने ज लम चले गये ।। ९ ।। वहाँ उ ह ने व वर मेधा मु नका आ म दे खा, जहाँ कतने ही हसक जीव [अपनी वाभा वक हसावृ छोड़कर] परम शा तभावसे रहते थे। मु नके ब त-से श य उस वनक शोभा बढ़ा रहे थे ।। १० ।। वहाँ जानेपर मु नने उनका स कार कया और वह उन मु न े के आ मपर इधर-इधर वचरते ए कुछ कालतक वहाँ रहे ।। ११ ।। फर ममतासे आकृ च होकर उस आ मम इस कार च ता करने लगे— ‘पूवकालम मेरे पूवज ने जसका पालन कया था, वही नगर आज मुझसे र हत है। पता नह , मेरे राचारी भृ यगण उसक धमपूवक र ा करते ह या नह । जो सदा मदक वषा करनेवाला और शूरवीर था, वह मेरा धान हाथी अब श ु के अधीन होकर न जाने कन भोग को भोगता होगा? जो लोग मेरी कृपा, धन और भोजन पानेसे सदा मेरे पीछे -पीछे चलते थे, वे न य ही अब सरे राजा का अनुसरण करते ह गे। उन अप यी लोग के ारा सदा खच होते रहनेके कारण अ य त क से जमा कया आ मेरा वह खजाना खाली हो जायगा।’ ये तथा और कई बात राजा सुरथ नर तर सोचते रहते थे। एक दन उ ह ने वहाँ व वर मेधाके आ मके नकट एक वै यको दे खा और उससे पूछा—‘भाई! तुम कौन हो? यहाँ तु हारे आनेका या कारण है? तुम य शोक त और अनमने-से दखायी दे ते हो?’ राजा सुरथका यह ेमपूवक कहा आ वचन सुनकर वै यने वनीत-भावसे उ ह णाम करके कहा— ।। १२-१९ ।।



वै य उवाच ।। २० ।। समा धनाम वै योऽहमु प ो ध ननां कुले ।। २१ ।। पु दारै नर त धनलोभादसाधु भः । वहीन धनैदारैः पु ैरादाय मे धनम् ।। २२ ।। वनम यागतो ःखी नर त ा तब धु भः । सोऽहं न वे द्म पु ाणां कुशलाकुशला मकाम् ।। २३ ।। वृ वजनानां च दाराणां चा सं थतः । क नु तेषां गृहे ेमम ेमं क नु सा तम् ।। २४ ।। कथ ते क नु सद्वृ ा वृ ाः क नु मे सुताः ।। २५ ।। वै य बोला— ।। २० ।। राजन्! म ध नय के कुलम उ प एक वै य ँ। मेरा नाम समा ध है ।। २१ ।। मेरे ी-पु ने धनके लोभसे मुझे घरसे बाहर नकाल दया है। म



इस समय धन, ी और पु से व चत ँ। मेरे व सनीय ब धु ने मेरा ही धन लेकर मुझे र कर दया है, इस लये ःखी होकर म वनम चला आया ँ। यहाँ रहकर म इस बातको नह जानता क मेरे पु क , ीक और वजन क कुशल है या नह । इस समय घरम वे कुशलसे रहते ह अथवा उ ह कोई क है? ।। २२-२४ ।। वे मेरे पु कैसे ह? या वे सदाचारी ह अथवा राचारी हो गये ह ।। २५ ।। राजोवाच ।। २६ ।। यै नर तो भवाँ लु धैः पु दारा द भधनैः ।। २७ ।। तेषु क भवतः नेहमनुब ना त मानसम् ।। २८ ।। राजाने पूछा— ।। २६ ।। जन लोभी ी-पु आ दने धनके कारण तु ह घरसे नकाल दया, उनके त तु हारे च म इतना नेह य है? ।। २७-२८ ।। वै य उवाच ।। २९ ।। एवमेत था ाह भवान मद्गतं वचः ।। ३० ।। क करो म न ब ना त मम न ु रतां मनः । यैः सं य य पतृ नेहं धनधु धै नराकृतः ।। ३१ ।। प त वजनहाद च हा द ते वेव मे मनः । कमेत ा भजाना म जान ा प महामते ।। ३२ ।। य ेम वणं च ं वगुणे व प ब धुषु । तेषां कृते मे नः ासो दौमन यं च जायते ।। ३३ ।। करो म क य मन ते व ी तषु न ु रम् ।। ३४ ।। वै य बोला— ।। २९ ।। आप मेरे वषयम जो बात कहते ह, वह सब ठ क है ।। ३० ।। कतु या क ँ , मेरा मन न ु रता नह धारणा करता। ज ह ने धनके लोभम पड़कर पताके त नेह, प तके त ेम तथा आ मीय जनके त अनुरागको तला ल दे मुझे घरसे नकाल दया है, उ ह के प त मेरे दयम इतना नेह है। महामते! गुणहीन ब धु के त भी जो मेरा च इस कार ेमम न हो रहा है, यह या है—इस बातको म जानकर भी नह जान पाता। उनके लये म लंबी साँस ले रहा ँ और मेरा दय अ य त ः खत हो रहा है ।। ३१-३३ ।। उन लोग म ेमका सवथा अभाव है तो भी उनके त जो मेरा मन न ु र नह हो पाता, इसके लये या क ँ ।। ३४ ।। माक डेय उवाच ।। ३५ ।। तत तौ स हतौ व तं मु न समुप थतौ ।। ३६ ।। समा धनाम वै योऽसौ स च पा थवस मः । कृ वा तु तौ यथा यायं यथाह तेन सं वदम् ।। ३७ ।। उप व ौ कथाः का च तुव यपा थवौ ।। ३८ ।।



माक डेयजी कहते ह— ।। ३५ ।। न्! तदन तर राजा म े सुरथ और वह समा ध नामक वै य दोन साथ-साथ मेधा मु नक सेवाम उप थत ए और उनके साथ यथायो य यायानुकूल वनयपूण बताव करके बैठे। त प ात् वै य और राजाने कुछ वातालाप आर भ कया ।। ३६-३८ ।। राजोवाच ।। ३९ ।। भगवं वामहं ु म छा येकं वद व तत् ।। ४० ।। ःखाय य मे मनसः व च ाय तां वना । मम वं गतरा य य रा या े व खले व प ।। ४१ ।। जानतोऽ प यथा य कमेत मु नस म । अयं च नकृतः१ पु ैदारैभृ यै तथो झतः ।। ४२ ।। वजनेन च सं य तेषु हाद तथा य त । एवमेष तथाहं च ाव य य त ः खतौ ।। ४३ ।। दोषेऽ प वषये मम वाकृ मानसौ । त कमेत महाभाग२ य मोहो ा ननोर प ।। ४४ ।। ममा य च भव येषा ववेका ध य मूढता ।। ४५ ।। राजाने कहा— ।। ३९ ।। भगवन्! म आपसे एक बात पूछना चाहता ँ, उसे बताइये ।। ४० ।। मेरा च अपने अधीन न होनेके कारण वह बात मेरे मनको ब त ःख दे ती है। मु न े ! जो रा य मेरे हाथसे चला गया है, उसम और उसके स पूण अ म मेरी ममता हो रही है ।। ४१ ।। यह जानते ए भी क वह अब मेरा नह है, अ ानीक भाँ त मुझे उसके लये ःख होता है; यह या है? इधर यह वै य भी घरसे अपमा नत होकर आया है। इसके पु , ी और भृ य ने इसको छोड़ दया है ।। ४२ ।। वजन ने भी इसका प र याग कर दया है, तो भी इसके दयम उनके त अ य त नेह है। इस कार यह तथा म दोन ही ब त ःखी ह ।। ४३ ।। जसम य दोष दे खा गया है, उस वषयके लये भी हमारे मनम ममताज नत आकषण पैदा हो रहा है। महाभाग! हम दोन समझदार ह; तो भी हमम जो मोह पैदा आ है, यह या है? ववेकशू य पु षक भाँ त मुझम और इसम भी यह मूढ़ता य दखायी दे ती है ।। ४४-४५ ।।



ऋ ष वाच ।। ४६ ।। ानम त सम त य ज तो वषयगोचरे ।। ४७ ।। वषय १ महाभाग या त२ चैवं पृथक् पृथक् । दवा धाः ा णनः के च ा ाव धा तथापरे ।। ४८ ।। के च वा तथा रा ौ ा णन तु य यः । ा ननो मनुजाः स यं क३ तु ते न ह केवलम् ।। ४९ ।। यतो ह ा ननः सव पशुप मृगादयः । ानं च त मनु याणां य ेषां मृगप णाम् ।। ५० ।। मनु याणां च य ेषां तु यम य थोभयोः । ानेऽ प स त प यैतान् पत ा छावच चुषु ।। ५१ ।। कणमो ा ता मोहा पी मानान प ुधा । मानुषा मनुज ा सा भलाषाः सुतान् त ।। ५२ ।। लोभा



युपकाराय न वेतान्४ क न प य स ।



तथा प ममताव मोहगत नपा तताः ।। ५३ ।। महामाया भावेण संसार थ तका रणा५ । त ा व मयः काय योग न ा जग पतेः ।। ५४ ।। महामाया हरे ैषा६ तया संमो ते जगत् । ा ननाम प चेतां स दे वी भगवती ह सा ।। ५५ ।। बलादाकृ य मोहाय महामाया य छ त । तया वसृ यते व ं जगदे त चाचरम् ।। ५६ ।। सैषा स ा वरदा नृणां भव त मु ये । सा व ा परमा मु े हतुभूता सनातनी ।। ५७ ।। संसारब धहेतु सैव सव रे री ।। ५८ ।। ऋ ष बोले— ।। ४६ ।। महाभाग! वषयमागका ान सब जीव को है ।। ४७ ।। इसी कार वषय भी सबके लये अलग-अलग ह। कुछ ाणी दनम नह दे खते और सरे रातम ही नह दे खते ।। ४८ ।। तथा कुछ जीव ऐसे ह, जो दन और रा म भी बराबर ही दे खते ह। यह ठ क है क मनु य समझदार होते ह; कतु केवल वे ही ऐसे नह होते ।। ४९ ।। पशु-प ी और मृग आ द सभी ाणी समझदार होते ह। मनु य क समझ भी वैसी ही होती है, जैसी उन मृग और प य क होती है ।। ५० ।। तथा जैसी मनु य क होती है, वैसी ही उन मृग-प ी आ दक होती है। यह तथा अ य बात भी ायः दोन म समान ही ह। समझ होनेपर भी इन प य को तो दे खो, ये वयं भूखसे पी ड़त होते ए भी मोहवश ब च क च चम कतने चावसे अ के दाने डाल रहे ह! नर े ! या तुम नह दे खते क ये मनु य समझदार होते ए भी लोभवश अपने कये ए उपकारका बदला पानेके लये पु क अ भलाषा करते ह? य प उन सबम समझक कमी नह है, तथा प वे संसारक थ त (ज म-मरणक पर परा) बनाये रखनेवाले भगवती महामायाके भाव ारा ममतामय भँवरसे यु मोहके गहरे गतम गराये जाते ह। इस लये इसम आ य नह करना चा हये। जगद र भगवान् व णुक योग न ा पा जो भगवती महामाया ह, उ ह से यह जगत् मो हत हो रहा है। वे भगवती महामाया दे वी ा नय के भी च को बलपूवक ख चकर मोहम डाल दे ती ह। वे ही इस स पूण चराचर जगत्के सृ करती ह तथा वे ही स होनेपर मनु य को मु के लये वरदान दे ती ह। वे ही परा व ा, संसारब धन और मो क हेतुभूता सनातनी दे वी तथा स पूण ई र क भी अधी री ह ।। ५१-५८ ।। राजोवाच ।। ५९ ।। भगवन् का ह सा दे वी महामाये त यां भवान् ।। ६० ।। वी त कथामु प ा सा१ कमा या







ज।



य भावा२ च सा दे वी य व पा य वा ।। ६१ ।। त सव ोतु म छा म व ो वदां वर ।। ६२ ।। राजाने पूछा— ।। ५९ ।। भगवन्! ज ह आप महामाया कहते ह, वे दे वी कौन ह? न्! उनका आ वभाव कैसे आ? तथा उनके च र कौन-कौन ह? वे ा म े महष! उन दे वीका जैसा भाव हो, जैसा व प हो और जस कार ा भाव आ हो, वह सब म आपके मुखसे सुनना चाहता ँ ।। ६०-६२ ।। ऋ ष वाच ।। ६३ ।। न यैव सा जग मू त तया सव मदं ततम् ।। ६४ ।। तथा प त समु प ब धा ूयतां मम । दे वानां काय स यथमा वभव त सा यदा ।। ६५ ।। उ प े त तदा लोके सा न या य भधीयते । योग न ां यदा व णुजग येकाणवीकृते ।। ६६ ।। आ तीय शेषमभज क पा ते भगवान् भुः । तदा ावसुरौ घोरौ व यातौ मधुकैटभौ ।। ६७ ।। व णुकणमलो तौ ह तुं ाणमु तौ । स ना भकमले व णोः थतो ा जाप तः ।। ६८ ।। ् वा तावसुरौ चो ौ सु तं च जनादनम् । तु ाव योग न ां तामेका दय थतः ।। ६९ ।। वबोधनाथाय हरेह रने कृतालयाम्३ । व े र जग ा थ तसंहारका रणीम् ।। ७० ।। न ां भगवत व णोरतुलां तेजसः भुः ।। ७१ ।। ऋ ष बोले— ।। ६३ ।। राजन्! वा तवम तो वे दे वी न य व पा ही ह। स पूण जगत् उ ह का प है तथा उ ह ने सम त व को ा त कर रखा है, तथा प उनका ाक अनेक कारसे होता है। वह मुझसे सुनो। य प वे न य और अज मा ह, तथा प जब दे वता का काय स करनेके लये कट होती ह, उस समय लोकम उ प ई कहलाती ह। क पके अ तम जब स पूण जगत् एकाणवम नम न हो रहा था और सबके भु भगवान् व णु शेषनागक श या बछाकर योग न ाका आ य ले सो रहे थे, उस समय उनके कान क मैलसे दो भयंकर असुर उ प ए, जो मधु और कैटभके नामसे व यात थे। वे दोन ाजीका वध करनेको तैयार हो गये। भगवान् व णुके ना भकमलम वराजमान जाप त ाजीने जब उन दोन भयानक असुर को अपने पास आया और भगवान्को सोया आ दे खा तो एका च होकर उ ह ने भगवान् व णुको जगानेके लये उनके ने म नवास करनेवाली योग न ाका तवन आर भ कया। जो इस व क



अधी री, जगत्को धारण करनेवाली, संसारका पालन और संहार करनेवाली तथा तेजः व प भगवान् व णुक अनुपम श ह, उ ह भगवती न ादे वीक भगवान् ा तु त करने लगे ।। ६४-७१ ।।



ोवाच ।। ७२ ।। वां वाहा वं वधा वं ह वषट् कारः वरा मका ।। ७३ ।। सुधा वम रे न ये धा मा ा मका थता । अधमा ा थता न या यानु चाया वशेषतः ।। ७४ ।। वमेव सं या१ सा व ी वं दे व जननी परा । वयैत ायते व ं वयैत सृ यते जगत् ।। ७५ ।। वयैत पा यते दे व वम य ते च सवदा । वसृ ौ सृ पा वं थ त पा च पालने ।। ७६ ।। तथा सं त पा ते जगतोऽ य जग मये ।



महा व ा महामाया महामेधा महा मृ तः ।। ७७ ।। महामोहा च भवती महादे वी महासुरी२ । कृ त वं च सव य गुण य वभा वनी ।। ७८ ।। कालरा महारा म हरा दा णा । वं ी वमी री वं ी वं बु ब धल णा ।। ७९ ।। ल जा पु तथा तु वं शा तः ा तरेव च । खड् गनी शू लनी घोरा ग दनी च णी तथा ।। ८० ।। शङ् खनी चा पनी बाणभुशु डीप रघायुधा । सौ या सौ यतराशेषसौ ये य व तसु दरी ।। ८१ ।। परापराणां परमा वमेव परमे री । य च क च व च तु सदस ा खला मके ।। ८२ ।। त य सव य या श



ः सा वं क तूयसे तदा३ ।



यया वया जग ा जग पा य ४ यो जगत् ।। ८३ ।। सोऽ प न ावशं नीतः क वां तोतु महे रः । व णुः शरीर हणमहमीशान एवं च ।। ८४ ।। का रता ते यतोऽ वां कः तोतुं श मान् भवेत् । सा व म थं भावैः वै दारैद व सं तुता ।। ८५ ।। मोहयैतौ राधषावसुरौ मधुकैटभौ । बोधं च जग वामी नीयताम युतो लघु ।। ८६ ।। बोध यताम य ह तुमेतौ महासुरौ ।। ८७ ।। ाजीने कहा— ।। ७२ ।। दे व! तु ह वाहा, तु ह वधा और तु ह वषट् कार हो। वर भी तु हारे ही व प ह। तु ह जीवनदा यनी सुधा हो। न य अ र णवम अकार, उकार, मकार—इन तीन मा ा के पम तु ह थत हो तथा इन तीन मा ा के अ त र जो व पा न य अधमा ा है, जसका वशेष पसे उ चारण नह कया जा सकता, वह भी तु ह हो। दे व! तु ह सं या, सा व ी तथा परम जननी हो। दे व! तु ह इस व ा डको धारण करती हो। तुमसे ही इस जगत्क सृ होती है। तु ह से इसका पालन होता है और सदा तु ह क पके अ तम सबको अपना ास बना लेती हो। जग मयी दे व! इस जगत्क उ प के समय तुम सृ पा हो, पालन-कालम थ त पा हो तथा क पा तके समय संहार- प धारण करनेवाली हो। तु ह महा व ा, महामाया, महामेधा, महा मृ त, महामोह- पा, महादे वी और महासुरी हो। तु ह तीन गुण को उ प करनेवाली सबक कृ त हो। भयंकर कालरा , महारा और मोहरा भी तु ह हो। तु ह ी, तु ह ई री, तु ह ी और तु ह बोध व पा बु हो। ल जा, पु , तु , शा त और मा भी



तु ह हो। तुम खड् गधा रणी, शूलधा रणी, घोर पा तथा गदा, च , शङ् ख और धनुष धारण करनेवाली हो। बाण, भुशु डी और प रघ—ये भी तु हारे अ ह। तुम सौ य और सौ यतर हो—इतना ही नह , जतने भी सौ य एवं सु दर पदाथ ह, उन सबक अपे ा तुम अ य धक सु दरी हो। पर और अपर—सबसे परे रहनेवाली परमे री तु ह हो। सव व पे दे व! कह भी सत्-असत् प जो कुछ व तुएँ ह और उन सबक जो श है, वह तु ह हो। ऐसी अव थाम तु हारी तु त या हो सकती है। जो इस जगत्क सृ , पालन और संहार करते ह, उन भगवान्को भी जब तुमने न ाके अधीन कर दया है तो तु हारी तु त करनेम यहाँ कौन समथ हो सकता है। मुझको, भगवान् शंकरको तथा भगवान् व णुको भी तुमने ही शरीर धारण कराया है; अतः तु हारी तु त करनेक श कसम है। दे व! तुम तो अपने इन उदार भाव से ही शं सत हो। ये जो दोन धष असुर मधु और कैटभ ह, इनको मोहम डाल दो और जगद र भगवान् व णुको शी ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन दोन महान् असुर को मार डालनेक बु उ प कर दो ।। ७३-८७ ।। ऋ ष वाच ।। ८८ ।। एवं तुता तदा दे वी तामसी त वेधसा ।। ८९ ।। व णोः बोधनाथाय नह तुं मधुकैटभौ । ने ा यना सकाबा दये य तथोरसः ।। ९० ।। नग य दशने त थौ णोऽ ज मनः । उ थौ च जग ाथ तया मु ो जनादनः ।। ९१ ।। एकाणवेऽ हशयना तः स द शे च तौ । मधुकैटभौ रा मानाव तवीयपरा मौ ।। ९२ ।। ोधर े णाव ुं१ ाणं ज नतो मौ । समु थाय तत ता यां युयुधे भगवान् ह रः ।। ९३ ।। प चवषसह ा ण बा हरणो वभुः । ताव य तबलो मतौ महामाया वमो हतौ ।। ९४ ।। उ व तौ वरोऽ म ो यता म त केशवम् ।। ९५ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ८८ ।। राजन्! जब ाजीने वहाँ मधु और कैटभको मारनेके उ े यसे भगवान् व णुको जगानेके लये तमोगुणक अ ध ा ी दे वी योग न ाक इस कार तु त क , तब वे भगवान्के ने , मुख, ना सका, बा , दय और व ः थलसे नकलकर अ ज मा ाजीक के सम खड़ी हो गय । योग न ासे मु होनेपर जगत्के वामी भगवान् जनादन उस एकाणवके जलम शेषनागक श यासे जाग उठे । फर उ ह ने उन दोन असुर को दे खा। वे रा मा मधु और कैटभ अ य त बलवान् तथा परा मी थे और ोधसे लाल आँख कये ाजीको खा जानेके लये उ ोग कर रहे थे। तब भगवान् ीह रने उठकर उन दोन के साथ पाँच हजार वष तक केवल बा यु कया। वे



दोन भी अ य त बलके कारण उ म हो रहे थे। इधर महामायाने भी उ ह मोहम डाल रखा था; इस लये वे भगवान् व णुसे कहने लगे—‘हम तु हारी वीरतासे संतु ह। तुम हमलोग से कोई वर माँगो’ ।। ८९-९५ ।।



भवेताम



ीभगवानुवाच ।। ९६ ।। मे तु ौ मम व यावुभाव प ।। ९७ ।।



कम येन वरेणा एताव वृतं मम१ ।। ९८ ।। ीभगवान् बोले— ।। ९६ ।। य द तुम दोन मुझपर स हो तो अब मेरे हाथसे मारे जाओ। बस, इतना-सा ही मने वर माँगा है। यहाँ सरे कसी वरसे या लेना है ।। ९७-९८ ।। ऋ ष वाच ।। ९९ ।। व चता या म त तदा सवमापोमयं जगत् ।। १०० ।।



वलो य ता यां ग दतो भगवान् कमले णः२ । आवां ज ह न य ोव स ललेन प र लुता ।। १०१ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ९९ ।। इस कार धोखेम आ जानेपर जब उ ह ने स पूण जगत्म जल-ही-जल दे खा तब कमलनयन भगवान्से कहा—‘जहाँ पृ वी जलम डू बी ई न हो—जहाँ सूखा थान हो, वह हमारा वध करो’ ।। १००-१०१ ।। ऋ ष वाच ।। १०२ ।। तथे यु वा भगवता शङ् खच गदाभृता । कृ वा च े ण वै छ े जघने शरसी तयोः ।। १०३ ।। एवमेषा समु प ा णा सं तुता वयम् । भावम या दे ा तु भूयः शृणु वदा म ते ।। ॐ ।। १०४ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १०२ ।। तब ‘तथा तु’ कहकर शङ् ख, च और गदा धारण करनेवाले भगवान्ने उन दोन के म तक अपनी जाँघपर रखकर च से काट डाले। इस कार ये दे वी महामाया ाजीक तु त करनेपर वयं कट ई थ । अब पुनः तुमसे उनके भावका वणन करता ँ, सुनो ।। १०३-१०४ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये मधुकैटभवधो नाम थमोऽ यायः ।। १ ।। उवाच १४, अ ोकाः २४, ोकाः ६६, एवम् ।। १०४ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘मधु-कैटभ-वध’ नामक पहला अ याय पूरा आ ।। १ ।।



१. ॐ च डीदे वीको नम कार है। २. ‘कोला व वंसी’ यह कसी वशेष कुलके य क सं ा है। द णम ‘कोला’ नगरी स है, वह ाचीन कालम राजधानी थी। जन य ने उसपर आ मण करके उसका व वंस कया, वे ‘कोला व वंसी’ कहलाये। १. पाठा तर—मम वाकृ मानसः। १. पा०— न कृतः। पा०—त केनैत०। १. पा०—या । २. पा०—या त। ३. पा०— क तु ते। ४. पा०—न वेते। ५. पा०— रणः। ६. पा०—चैतत्। ी











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१. पा०—कम चा या । २. पा०—य वभावा। ३. पा०— कसी- कसी तम इसके बाद ही ‘ ोवाच’ है तथा ‘ न ां भगवतीम्’ इस ोकाधके थानम—‘ तौ म न ां भगवत व णोरतुलतेजसः ।। ’ ऐसा पाठ है। १. पा०—सा वं। २. पा०—महे री। ३. पा०—मया। ४. पा०—पाता । १. पा०—णौ ह तुं। १. पा०—मया। २. माक डेयपुराणक कई तय म यहाँ ‘ ीतौ व तव यु े न ा य वं मृ युरावयोः ।’ इतना अ धक पाठ है।



तीयोऽ यायः दे वता



के तेजसे दे वीका ा भाव और म हषासुरक सेनाका वध



व नयोग [ॐ म यमच र य व णुऋ षमहाल मीदवता, उ णक् छ दः, शाक भरी श ः; गा बीजम्, वायु त वम्, यजुवदः व पम्, ीमहाल मी ी यथ म यमच र जपे व नयोगः । ॐ म यम च र के व णु ऋ ष, महाल मी दे वता, अ णक् छ द, शाक भरी श , गा बीज, वायु त व और यजुवद व प है। ीमहाल मीक स ताके लये म यम च र के पाठम इसका व नयोग है। यान ॐअ क्परशुं गदे षुकु लशं प ं धनु कु डकां द डं श म स च चम जलजं घ टां सुराभाजनम् । शूलं पाशसुदशने च दधत ह तैः वाल भां सेवे सै रभम दनी मह महाल म सरोज थताम् ।। म कमलके आसनपर बैठ ई म हषासुरम दनी भगवती महाल मीका भजन करता ँ, जो अपने हाथ म अ माला, फरसा, गदा, बाण, व , प , धनुष, कु डका, द ड, श , खड् ग, ढाल, शंख, घ टा, मधुपा , शूल, पाश और च धारण करती ह तथा जनके ी व हक का त मूँगेके समान लाल है। ‘ॐ ’ ऋ ष वाच ।। १ ।। दे वासुरमभू ु ं पूणम दशतं पुरा । म हषेऽसुराणाम धपे दे वानां च पुरंदरे ।। २ ।। त ासुरैमहावीयदवसै यं परा जतम् । ज वा च सकलान् दे वा न ोऽभू म हषासुरः ।। ३ ।। ततः परा जता दे वाः प यो न जाप तम् । पुर कृ य गता त य ेशग ड वजौ ।। ४ ।। यथावृ ं तयो त म हषासुरचे तम् । दशाः कथयामासुदवा भभव व तरम् ।। ५ ।। सूय ा य नले नां यम य व ण य च । अ येषां चा धकारान् स वयमेवा ध त त ।। ६ ।।



वगा राकृताः सव तेन दे वगणा भु व । वचर त यथा म या म हषेण रा मना ।। ७ ।। एत ः क थतं सवममरा र वचे तम् । शरणं वः प ाः मो वध त य व च यताम् ।। ८ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। पूवकालम दे वता और असुर म पूरे सौ वष तक घोर सं ाम आ था। उसम असुर का वामी म हषासुर था और दे वता के नायक इ थे। उस यु म दे वता क सेना महाबली असुर से परा त हो गयी। स पूण दे वता को जीतकर म हषासुर इ बन बैठा ।। २-३ ।। तब परा जत दे वता जाप त ाजीको आगे करके उस थानपर गये, जहाँ भगवान् शंकर और व णु वराजमान थे ।। ४ ।। दे वता ने म हषासुरके परा म तथा अपनी पराजयका यथावत् वृ ा त उन दोन दे वे र से व तारपूवक कह सुनाया ।। ५ ।। वे बोले—‘भगवन्! म हषासुर सूय, इ , अ न, वायु, च मा, यम, व ण तथा अ य दे वता के भी अ धकार छ नकर वयं ही सबका अ ध ाता बना बैठा है ।। ६ ।। उस रा मा म हषने सम त दे वता को वगसे नकाल दया है। अब वे मनु य क भाँ त पृ वीपर वचरते ह ।। ७ ।। दै य क यह सारी करतूत हमने आपलोग से कह सुनायी। अब हम आपक ही शरणम आये ह। उसके वधका कोई उपाय सो चये’ ।। ८ ।।



इ थं नश य दे वानां वचां स मधुसूदनः । चकार कोयं श भु ुकुट कु टलाननौ ।। ९ ।। ततोऽ तकोपपूण य च णो वदना तः । न ाम मह ेजो णः शंकर य च ।। १० ।। अ येषां चैव दे वानां श ाद नां शरीरतः । नगतं सुमह ेज त चै यं समग छत ।। ११ ।। अतीव तेजसः कूटं वल त मव पवतम् । द शु ते सुरा त वाला ा त दग तरम् ।। १२ ।। अतुलं त त ेजः सवदे वशरीरजम् । एक थं तदभू ारी ा तलोक यं वषा ।। १३ ।। यदभू छा भवं तेज तेनाजायत त मुखम् । या येन चाभवान् केशा बाहवो व णुतेजसा ।। १४ ।।



सौ येन तनयोयु मं म यं चै े ण चाभवत् । वा णेन च जङ् घो नत ब तेजसा भुवः ।। १५ ।। ण तेजसा पादौ तद योऽकतेजसा । वसूनां च करा यः कौबेरेण च ना सका ।। १६ ।। त या तु द ताः स भूताः ाजाप येन तेजसा । नयन तयं ज े तथा पावकतेजसा ।। १७ ।। ुवौ च सं ययो तेजः वणाव नल य च । अ येषां चैव दे वानां स भव तेजसां शवा ।। १८ ।। इस कार दे वता के वचन सुनकर भगवान् व णु और शवने दै य पर बड़ा ोध कया। उनक भ ह तन गय और मुँह टे ढ़ा हो गया ।। ९ ।। तब अ य त कोपम भरे ए च पा ण ी व णुके मुखसे एक महान् तेज कट आ। इसी कार ा, शंकर तथा इ आ द अ या य दे वता के शरीरसे भी बड़ा भारी तेज नकला। वह सब मलकर एक हो गया ।। १०-११ ।। महान् तेजका वह पु जा व यमान पवत-सा जान पड़ा। दे वता ने दे खा, वहाँ उसक वालाएँ स पूण दशा म ा त हो रही थ ।। १२ ।। स पूण दे वता के शरीरसे कट ए उस तेजक कह तुलना नह थी। एक त होनेपर वह एक नारीके पम प रणत हो गया और अपने काशसे तीन लोक म ा त जान पड़ा ।। १३ ।। भगवान् शंकरका जो तेज था, उससे उस दे वीका मुख कट आ। यमराजके तेजसे उसके सरम बाल नकल आये। ी व णुभगवान्के तेजसे उसक भुजाएँ ।। १४ ।। च माके तेजसे दोन तन का और इ के तेजसे म यभाग (क ट दे श)-का ा भाव आ। व णके तेजसे जङ् घा और पडली तथा पृ वीके तेजसे नत बभाग कट आ ।। १५ ।। ाके तेजसे दोन चरण और सूयके तेजसे उनक अँगु लयाँ । वसु के तेजसे हाथ क अँगु लयाँ और कुबेरेके तेजसे ना सका कट ई ।। १६ ।। उस दे वीके दाँत जा पतके तेजसे और तीन ने अ नके तेजसे कट ए थे ।। १७ ।। उसक भ ह सं याके और कान वायुके तेजसे उ प ए थे। इसी कार अ या य दे वता के तेजसे उस क याणकारी दे वीका आ वभाव आ ।। १८ ।।



ततः सम तदे वानां तेजोरा शसमु वाम् । तां वलो य मुदं ापुरमरा म हषा दताः१ ।। १९ ।। शूलं शूला न कृ य ददौ त यौ पनाकधृक् । च ं च द वान् कृ णः समु पा २ वच तः ।। २० ।। शङ् खं च व णः श ददौ त यै ताशनः । मा तो द वां ापं बाणपूण तथेषुधी ।। २१ ।। व म ः समु पा ३ कु लशादमरा धपः । ददौ त यै सह ा ो घ टामैरावताद् गजात् ।। २२ ।। कालद डा मो द डं पाशं चा बुप तददौ । जाप त ा मालां ददौ ा कम डलुम् ।। २३ ।। सम तरोमकूपेषु नजर मीन् दवाकरः । काल



द वान् खड् गं त या म४ च नमलम् ।। २४ ।।



ीरोद ामलं हारमजरे च तथा बरे । चूडाम ण तथा द ं कु डले कटका न च ।। २५ ।। अधच ं तथा शु ं केयूरान् सवबा षु । नूपुरौ वमलौ त द् ैवेयममनु मम् ।। २६ ।। अङ् गुलीयकर ना न सम ता व लीषु च । व कमा ददौ त यै परशुं चा त नमलम् ।। २७ ।। अ ा यनेक पा ण तथाभे ं च दं शनम् । अ लानपङ् कजां मालां शर युर स चापराम् ।। २८ ।। अदद जल ध त यै पङ् कज चा तशोभनम् । हमवान् वाहनं सहं र ना न व वधा न च ।। २९ ।। ददावशू यं सुरया पानपा ं धना धपः । शेष सवनागेशो महाम ण वभू षतम् ।। ३० ।। नागहारं ददौ त यै ध े यः पृ थवी ममाम् । अ यैर प सुरैदवी भूषणैरायुधै तथा ।। ३१ ।। स मा नता ननादो चैः सा हासं मु मुहः । त या नादे न घोरेण कृ नमापू रतं नभः ।। ३२ ।। अमायता तमहता तश दो महानभूत् । चु ुभुः सकला लोकाः समु ा चक परे ।। ३३ ।। चचाल वसुधा चेलुः सकला महीधराः । जये त दे वा मुदा तामूचुः सहवा हनीम्५ ।। ३४ ।। तु ु वुमुनय ैनां भ न ा ममूतयः । तदन तर सम त दे वता के तेजःपु से कट ई दे वीको दे खकर म हषासुरके सताये ए दे वता ब त स ए ।। १९ ।। पनाकधारी भगवान् शङ् करने अपने शूलसे एक शूल नकालकर उ ह दया; फर भगवान् व णुने भी अपने च से च उ प करके भगवतीको अपण कया ।। २० ।। व णने भी शङ् ख भट कया, अ नने उ ह श द और वायुने धनुष तथा बाणसे भरे ए दो तरकस दान कये ।। २१ ।। सह ने वाले दे वराज इ ने अपने व से उ प करके दया और ऐरावत हाथीसे उतारकर एक घ टा भी दान कया ।। २२ ।। यमराजने कालद डसे द ड, व णने पाश, जाप तने फ टका क माला तथा ाजीने कम डलु भट कया ।। २३ ।। सूयने दे वीके सम त रोम-कूप म अपनी करण का तेज भर दया। कालने उ ह चमकती ई ढाल और तलवार द ।। २४ ।। ीरसमु ने उ वल हार तथा कभी जीण न होनेवाले दो द व भट कये। साथ ही उ ह ने द चूड़ाम ण, दो कु डल, कड़े, उ वल अधच , सब बा के लये केयूर, दोन चरण के लये नमल नूपुर, गलेक सु दर हँसली और सब अँगु लय म



पहननेके लये र न क बनी अँगू ठयाँ भी द । व कमाने उ ह अ य त नमल फरसा भट कया ।। २५-२७ ।। साथ ही अनेक कारके अ और अभे कवच दये; इनके सवा म तक और व ः थलपर धारण करनेके लये कभी न कु हलानेवाले कमल क मालाएँ द ।। २८ ।। जल धने उ ह सु दर कमलका फूल भट कया। हमालयने सवारीके लये सह तथा भाँ त-भाँ तके र न सम पत कये ।। २९ ।। धना य कुबेरने मधुसे भरा पानपा दया तथा स पूण नाग के राजा शेषने, जो इस पृ वीको धारण करते ह, उ ह ब मू य म णय से वभू षत नागहार भट दया। इसी कार अ य दे वता ने भी आभूषण और अ -श दे कर दे वीका स मान कया। त प ात् उ ह ने बारंबार अ हासपूवक उ च वरसे गजना क । उनके भयंकर नादसे स पूण आकाश गूँज उठा ।। ३०-३२ ।। दे वीका वह अ य त उ च वरसे कया आ सहनाद कह समा न सका, आकाश उसके सामने लघु तीत होने लगा। उससे बड़े जोरक त व न ई, जससे स पूण व म हलचल मच गयी और समु काँप उठे ।। ३३ ।। पृ वी डोलने लगी और सम त पवत हलने लगे। उस समय दे वता ने अ य त स ताके साथ सहवा हनी भवानीसे कहा —‘दे व! तु हारी जय हो’ ।। ३४ ।। साथ ही मह षय ने भ भावसे वन होकर उनका तवन कया। ् वा सम तं सं ु धं ैलो यममरारयः ।। ३५ ।। संन ा खलसै या ते समु थु दायुधाः । आः कमेत द त ोधादाभा य म हषासुरः ।। ३६ ।। अ यधावत तं श दमशेषैरसुरैवृतः । स ददश ततो दे व ा तलोक यां वषा ।। ३७ ।। पादा ा या नतभुवं करीटो ल खता बराम् । ो भताशेषपातालां धनु या नः वनेन ताम् ।। ३८ ।। दशो भुजसह ेण सम ताद् ा त सं थताम् । ततः ववृते यु ं तमा दे ा सुर षाम् ।। ३९ ।। श ा ैब धा मु ै राद पत दग तरम् । म हषासुरसेनानी ुरा यो महासुरः ।। ४० ।। ययुधे चामर ा यै तुर बला वतः । रथानामयुतैः षड् भ द ा यो महासुरः ।। ४१ ।। अयु यतायुतानां च सह ेण महाहनुः । प चाशद् भ नयुतैर सलोमा महासुरः ।। ४२ ।। अयुतानां शतैः षड् भबा कलो युयुधे रणे । गजवा जसह ौघैरनेकैः१ प रवा रतः ।। ४३ ।। वृतो रथानां को ां च यु े त म यु यत ।



बडाला योऽयुतानां च प चाशद् भरथायुतैः ।। ४४ ।। युयुधे संयुगे त रथानां प रवा रतः२ । अ ये च त ायुतशो रथनागहयैवृताः ।। ४५ ।। युयुधुः संयुगे दे ा सह त महासुराः । को टको टसह ै तु रथानां द तनां तथा ।। ४६ ।। हयानां च वृतो यु े त ाभू म हषासुरः । तोमरै भ दपालै श भमुसलै तथा ।। ४७ ।। युयुधुः संयुगे दे ा खड् गैः परशुप शैः । के च च च पुः श ः के च पाशां तथापरे ।। ४८ ।। दे व खड् ग हारै तु ते तां ह तुं च मुः । सा प दे वी तत ता न श ा य ा ण च डका ।। ४९ ।। लीलयैव च छे द नजश ा व षणी । अनाय तानना दे वी तूयमाना सुर ष भः ।। ५० ।। मुमोचासुरदे हेषु श ा य ा ण चे री । स पूण लोक को ोभ त दे ख दै यगण अपनी सम त सेनाको कवच आ दसे सुस जत कर, हाथ म ह थयार ले सहसा उठकर खड़े हो गये। उस समय म हषासुरने बड़े ोधम आकर कहा—‘आः! यह या हो रहा है।’ फर वह स पूण असुर से घरकर उस सहनादक ओर ल य करके दौड़ा और आगे प ँचकर उसने दे वीको दे खा, जो अपनी भासे तीन लोक को का शत कर रही थ ।। ३५-३७ ।। उनके चरण के भारसे पृ वी दबी जा रही थी। माथेके मुकुटसे आकाशम रेखा-सी खच रही थी तथा वे अपने धनुषक टङ् कारसे सात पाताल को ु ध कये दे ती थ ।। ३८ ।। दे वी अपनी हजार भुजा से स पूण दशा को आ छा दत करके खड़ी थ । तदन तर उनके साथ दै य का यु छड़ गया ।। ३९ ।। नाना कारके अ -श के हारसे स पूण दशाएँ उ ा सत होने लग । च ुर नामक महान् असुर म हषासुरका सेनानायक था ।। ४० ।। वह दे वीके साथ यु करने लगा। अ य दै य क चतुर णी सेना साथ लेकर चामर भी लड़ने लगा। साठ हजार र थय के साथ आकर उद नामक महादै यने लोहा लया ।। ४१ ।। एक करोड़ र थय को साथ लेकर महाहनु नामक दै य यु करने लगा। जसके रोएँ तलवारके समान तीखे थे, वह अ सलोमा नामका महादै य पाँच करोड़ रथी सै नक स हत यु म आ डटा ।। ४२ ।। साठ लाख र थय से घरा आ बा कल नामक दै य भी उस यु भू मम लड़ने लगा ।। ४३ ।। प रवा रत* नामक रा स हाथीसवार और घुड़सवार के अनेक दल तथा एक करोड़ र थय क सेना लेकर यु करने लगा। बडाल नामक दै य पाँच अरब र थय से घरकर लोहा लेने लगा। इनके अ त र और भी हजार महादै य रथ, हाथी और घोड़ क



सेना साथ लेकर वहाँ दे वीके साथ यु करने लगे। वयं म हषासुर उस रणभू मम को टको ट सह रथ, हाथी और घोड़ क सेनासे घरा आ खड़ा था। वे दै य दे वीके साथ तोमर, भ दपाल, श , मूसल, खड् ग, परशु और प श आ द अ -श का हार करते ए यु कर रहे थे। कुछ दै य ने उनपर श का हार कया, कुछ लोग ने पाश फके ।। ४४-४८ ।। तथा कुछ सरे दै य ने खड् ग हार करके दे वीको मार डालनेका उ ोग कया। दे वीने भी ोधम भरकर खेल-खेलम ही अपने अ -श क वषा करके दै य के वे सम त अ -श काट डाले। उनके मुखपर प र म या थकावटका रंचमा भी च नह था, दे वता और ऋ ष उनक तु त करते थे और वे भगवती परमे री दै य के शरीर पर अ -श क वषा करती रह ।



सोऽ प ु ो धुतसटो दे ा वाहनकेसरी ।। ५१ ।। चचारासुरसै येषु वने वव ताशनः ।



नः ासान् मुमुचे यां यु यमाना रणेऽ बका ।। ५२ ।। त एव स ः स भूता गणाः शतसह शः । युयुधु ते परशु भ भ दपाला सप शैः ।। ५३ ।। नाशय तोऽसुरगणान् दे वीश युपबृं हताः । अवादय त पटहान् गणाः शङ् खां तथापरे ।। ५४ ।। मृद ां तथैवा ये त मन् यु महो सवे । ततो दे वी शूलेन गदया श वृ भः१ ।। ५५ ।। खड् गा द भ शतशो नजघान महासुरान् । पातयामास चैवा यान् घ टा वन वमो हतान् ।। ५६ ।। असुरान् भु व पाशेन बद् वा चा यानकषयत् । के चद् धा कृता ती णैः खड् गपातै तथापरे ।। ५७ ।। वपो थता नपातेन गदया भु व शेरते । वेमु के च धरं मुसलेन भृशं हताः ।। ५८ ।। के च प तता भूमौ भ ाः शूलेन व स । नर तराः शरौघेण कृताः के च णा जरे ।। ५९ ।। येनानुका रणः२ ाणान् मुमुचु दशादनाः । केषां चद् बाहव छ ा छ ीवा तथापरे ।। ६० ।। शरां स पेतुर येषाम ये म ये वदा रताः । व छ जङ् घा वपरे पेतृ ा महासुराः ।। ६१ ।। एकबा चरणाः के च े ा धा कृताः । छ ेऽ प चा ये शर स प तताः पुन थताः ।। ६२ ।। कब धा युयुधुद ा गृहीतपरमायुधाः । ननृतु ापरे त यु े तुयलया ताः ।। ६३ ।। कब धा छ शरसः खड् गश यृ पाणयः । त त े त भाष तो दे वीम ये महासुराः३ ।। ६४ ।। पा ततै रथनागा ैरसुरै वसुंधरा । अग या साभव य ाभू स महारणः ।। ६५ ।। शो णतौघा महान ः स त सु ुवुः । म ये चासुरसै य य वारणासुरवा जनाम् ।। ६६ ।। णेन त महासै यमसुराणां तथा बका । न ये यं यथा व तृणदा महाचयम् ।। ६७ ।। स च सहो महानादमु सृज धुतकेसरः ।



शरीरे योऽमरारीणामसू नव व च व त ।। ६८ ।। दे ा गणै तै त कृतं यु ं महासुरैः । यथैषां४ तुतुषुदवाः५ पु पवृ मुचो द व ।। ॐ ।। ६९ ।। दे वीका वाहन वह सह भी ोधम भरकर गदनके बाल को हलाता आ असुर क सेनाम इस कार वचरने लगा, मानो वन म दावानल फैल रहा हो। रणभू मम दै य के साथ यु करती ई अ बका दे वीने जतने नः ास छोड़े, वे सभी त काल सैकड़ -हजार गण के पम कट हो गये और परशु, भ दपाल, खड् ग तथा प श आ द अ ारा असुर का सामना करने लगे ।। ४९-५३ ।। दे वीक श से बढ़े ए वे गण असुर का नाश करते ए नगाड़ा और शङ् ख आ द बाजे बजाने लगे ।। ५४ ।। उस सं ाम-महो सवम कतने ही गण मृद बजा रहे थे। तदन तर दे वीने शूलसे, गदासे, श क वषासे और खड् ग आ दसे सैकड़ महादै य का संहार कर डाला। कतन को घंटेके भयङ् कर नादसे मू छत करके मार गराया ।। ५५-५६ ।। ब तेरे दै य को पाशसे बाँधकर धरतीपर घसीटा। कतने ही दै य उनक तीखी तलवारक मारसे दो-दो टु कड़े हो गये ।। ५७ ।। कतने ही गदाक चोटसे घायल हो धरतीपर सो गये। कतने ही मूसलक मारसे अ य त आहत होकर र वमन करने लगे। कुछ दै य शूलसे छाती फट जानेके कारण पृ वीपर ढे र हो गये। उस रणा णम बाणसमूह क वृ से कतने ही असुर क कमर टू ट गयी ।। ५८-५९ ।। बाजक तरह झपटनेवाले दे वपीडक दै यगण अपने ाण से हाथ धोने लगे। क ह क बाँह छ भ हो गय , कतन क गदन कट गय । कतने ही दै य के म तक कट-कटकर गरने लगे। कुछ लोग के शरीर म यभागम ही वद ण हो गये। कतने ही महादै य जाँघ कट जानेसे पृ वीपर गर पड़े। कतन को ही दे वीने एक बाँह, एक पैर और एक ने वाले करके दो टु कड़ म चीर डाला। कतने ही दै य म तक कट जानेपर भी गरकर फर उठ जाते और केवल धड़के ही पम अ छे -अ छे ह थयार हाथम दे वीके साथ यु करने लगते थे। सरे कब ध यु के बाज क लयपर नाचते थे। ६०-६३ ।। कतने ही बना सरके धड़ हाथ म खड् ग, श और ऋ लये दौड़ते थे तथा सरे- सरे महादै य ठहरो! ठहरो!!’ यह कहते ए दे वीको यु के लये ललकारते थे। जहाँ वह घोर सं ाम आ था, वहाँक धरती दे वीके गराये ए रथ हाथी, घोड़े और असुर क लाश म ऐसी पट गयी थी क वहाँ चलना- फरना अस भव हो गया था ।। ६४-६५ ।। दै य क सेनाम हाथी, घोड़े और असुर के शरीर से इतनी अ धक मा ाम र पात आ था क थोड़ी ही दे रम वहाँ खूनक बड़ी-बड़ी न दयाँ बहने लग ।। ६६ ।। जगद बाने असुर क वशाल सेनाको णभरम न कर दया—ठ क उसी तरह, जैसे तृण और काठके भारी ढे रको आग कुछ ही ण म भ म कर दे ती है ।। ६७ ।। और वह सह भी गदनके बाल को हला- हलाकर जोर-जोरसे गजना करता आ दै य के शरीर से मानो उनके ाण चुने लेता था ।। ६८ ।। वहाँ दे वीके गण ने भी उन



महादै य के साथ ऐसा यु और उन सबसे ब त स तु



कया, जससे दे वतागण उनपर आकाशसे फूल बरसाने लगे ए ।। ६९ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये म हषासुरसै यवधो नाम तीयोऽ यायः ।। उवाच १, ोकाः ६८, एवम् ६९, एवमा दतः ।। १७३ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘म हषासुरक सेनाका वध’ नामक सरा अ याय पूरा आ ।। २ ।।



१. कई तय म इसके बाद ‘ततो दे वा द त यै वा न वा यायुधा न च । ऊचुजयजये यु चैजय त ते जयै षणः ।। ’ इतना पाठ अ धक है। २. पा०— । ३. पा०— । ४. पा०—त यै चम। ५. पा०—वाहनाम्। १. पा०—कै दशनः। २. पा० कसी- कसी तम इसके बाद ‘वृतः कालो रथानां च रणे प चाशतायुतैः । युयुधे संयुगे त ताव ः प रवा रतः ।। ’ इतना अ धक पाठ है।



*



प रतो वारय त श ू न त ु प तः । १. पा०—शरवृ भः। २. पा०—सेनानु०। श यानु०। शैलानु० ३. कसी- कसी तम इसके बाद ‘ धरौघ वलु ता ाः सं ामे लोमहषणे ।’ इतना पाठ अ धक है। ४. पा०—यथैनां। ५. पा०—तु ु वुदवाः।



तृतीयोऽ यायः सेनाप तय स हत म हषासुरका वध यान (ॐ उ ानुसह का तम ण ौमां शरोमा लकां र ा ल तपयोधरां जपवट व ामभी त वरम् । ह ता जैदधत ने वलस ार व द यं दे व ब हमांशुर नमुकुटां व दे ऽर व द थताम् ।। जगद बाके ीअ क का त उदयकालके सह सूय के समान है। वे लाल रंगक रेशमी साड़ी पहने ए ह। उनके गलेम मु डमाला शोभा पा रही है। दोन तन पर र च दनका लेप लगा है। वे अपने कर-कमल म जपमा लका, व ा, अभय तथा वर-मु ाएँ धारण कये ए ह। तीन ने से सुशो भत मुखार व दक बड़ी शोभा हो रही है। उनके म तकपर च माके साथ ही र नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमलके आसनपर वराजमान ह। ऐसी दे वीको म भ पूवक णाम करता ँ।) ऋ ष वाच ।। १ ।। ‘ॐ’ नह यमानं त सै यमवलो य महासुरः । सेनानी ुरः कोपा यौ योद्धुमथा बकाम् ।। २ ।। से दे व शरवषण ववष समरेऽसुरः । यथा मे गरेः शृ ं तोयवषण तोयदः ।। ३ ।। त य छ वा ततो दे वी लीलयैव शरो करान् । जघान तुरगान् बाणैय तारं चैव वा जनाम् ।। ४ ।। च छे द च धनुः स ो वजं चा तसमु तम् । व ाध चैव गा ेषु छ ध वानमाशुगैः ।। ५ ।। स छ ध वा वरथो हता ो हतसार थः । अ यधावत तां दे व खड् गचमधरोऽसुरः ।। ६ ।। सहमाह य खड् गेन ती णधारेण मूध न । आजघान भुजे स े दे वीम य तवेगवान् ।। ७ ।। त याः खड् गो भुजं ा य पफाल नृपन दन । ततो ज ाह शूलं स कोपाद णलोचनः ।। ८ ।। च ेप च तत त ु भ का यां महासुरः ।



जा व यमानं तेजोभी र व ब ब मवा बरात् ।। ९ ।। ् वा तदापत छू लं दे वी शूलममु चत । त छू लं१ शतधा तेन नीतं स च महासुरः ।। १० ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। दै य क सेनाको इस कार तहस-नहस होते दे ख महादै य सेनाप त च ुर ोधम भरकर अ बका दे वीसे यु करनेको आगे बढ़ा ।। २ ।। वह असुर रणभू मम दे वीके ऊपर इस कार बाण क वषा करने लगा, जैसे बादल मे ग रके शखरपर पानीक धार बरसा रहा हो ।। ३ ।। तब दे वीने अपने बाण से उसके बाण-समूहको अनायास ही काटकर उसके घोड़ और सार थको भी मार डाला ।। ४ ।। साथ ही उसके धनुष तथा अ य त ऊँची वजाको भी त काल काट गराया। धुनष कट जानेपर उसके अ को अपने बाण से ब ध डाला ।। ५ ।। धनुष, रथ, घोड़े और सार थके न हो जानेपर वह असुर ढाल और तलवार लेकर दे वीक ओर दौड़ा ।। ६ ।। उसने तीखी धारवाली तलवारसे सहके म तकपर चोट करके दे वीक भी बाय भुजाम बड़े वेगसे हार कया ।। ७ ।। राजन्! दे वीक बाँहपर प ँचते ही वह तलवार टू ट गयी, फर तो ोधसे लाल आँख करके उस रा सने शूल हाथम लया ।। ८ ।। और उसे उस महादै यने भगवती भ कालीके ऊपर चलाया। वह शूल आकाशसे गरते ए सूयम डलक भाँ त अपने तेजसे व लत हो उठा ।। ९ ।। उस शूलको अपनी ओर आते दे ख दे वीने भी शूलका हार कया। उससे रा सके शूलके सैकड़ टु कड़े हो गये, साथ ही महादै य च ुरक भी ध जयाँ उड़ गय । वह ाण से हाथ धो बैठा ।। १० ।।



हते त म महावीय म हष य चमूपतौ । आजगाम गजा ढ ामर दशादनः ।। ११ ।। सोऽ प श मुमोचाथ दे ा ताम बका तम् । ंकारा भहतां भूमौ पातयामास न भाम् ।। १२ ।। भ नां श नप ततां ् वा ोधसम वतः । च ेप चामरः शूलं बाणै तद प सा छनत् ।। १३ ।। ततः सहः समु प य गजकु भा तरे थतः । बा यु े न युयुधे तेनो चै दशा रणा ।। १४ ।। यु यमानौ तत तौ तु त मा ागा मह गतौ । युयुधातेऽ तसंर धौ हारैर तदा णैः ।। १५ ।। ततो वेगा खमु प य नप य च मृगा रणा । कर हारेण शर ामर य पृथ कृतम् ।। १६ ।। उद रणे दे ा शलावृ ा द भहतः । द तमु तलै ैव कराल नपा ततः ।। १७ ।। दे वी कु ा गदापातै णयामास चो तम् ।



वा कलं भ दपालेन बाणै ता ं तथा धकम् ।। १८ ।। उ ा यमु वीय च तथैव च महाहनुम् । ने ा च शूलेन जघान परमे री ।। १९ ।। वडाल या सना काया पातयामास वै शरः । धरं मुखं चोभौ शरै न ये यम यम्१ ।। २० ।। म हषासुरके सेनाप त उस महापरा मी च ुरके मारे जानेपर दे वता को पीड़ा दे नेवाला चामर हाथीपर चढ़कर आया। उसने भी दे वीके ऊपर श का हार कया, क तु जगद बाने उसे अपने ंकारसे ही आहत एवं न भ करके त काल पृ वीपर गरा दया ।। ११-१२ ।। श को टू टकर गरी ई दे ख चामरको बड़ा ोध आ। अब उसने शूल चलाया, क तु दे वीने उसे भी अपने बाण ारा काट डाला ।। १३ ।। इतनेम ही दे वीका सह उछलकर हाथीके म तकपर चढ़ बैठा और उस दै यके साथ खूब जोर लगाकर बा यु करने लगा ।। १४ ।। वे दोन लड़ते-लड़ते हाथीसे पृ वीपर आ गये और अ य त ोधम भरकर एक- सरेपर बड़े भयंकर हार करते ए लड़ने लगे ।। १५ ।। तदन तर सह बड़े वेगसे आकाशक ओर उछला और उधरसे गरते समय उसने पंज क मारसे चामरका सर धड़से अलग कर दया ।। १६ ।। इसी कार उद भी शला और वृ आ दक मार खाकर रणभू मम दे वीके हाथसे मारा गया तथा कराल भी दाँत , मु क और थ पड़ क चोटसे धराशायी हो गया ।। १७ ।। ोधम भरी ई दे वीने गदाक चोटसे उ तका कचूमर नकाल डाला। भ दपालसे वा कलको तथा बाण से ता और अ धकको मौतके घाट उतार दया ।। १८ ।। तीन ने वाली परमे रीने शूलसे उ ा य, उ वीय तथा महाहनु नामक दै यको मार डाला ।। १९ ।। तलवारक चोटसे वडालके म तकको धड़से काट गराया। धर और मुख—इन दोन को भी अपने बाण से यमलोक भेज दया ।। २० ।।



एवं सं ीयमाणे तु वसै ये म हषासुरः । मा हषेण व पेण ासयामास तान् गणान् ।। २१ ।। कां ु ड हारेण खुर ेपै तथापरान् । ला लता डतां ा या छृ यां च वदा रतान् ।। २२ ।। वेगेन कां दपरा ादे न मणेन च । नः ासपवनेना यान् पातयामास भूतले ।। २३ ।। नपा य मथानीकम यधावत सोऽसुरः । सहं ह तुं महादे ाः कोपं च े ततोऽ बका ।। २४ ।। सोऽ प कोपा महावीयः खुर ु णमहीतलः । शृ ा यां पवतानु यां ेप च ननाद च ।। २५ ।। वेग मण व ु णा मही त य शीयत । ला लेनाहत ा धः लावयामास सवतः ।। २६ ।। धुतशृ व भ ा ख ड़१ ख डं ययुघनाः । ासा नला ताः शतशो नपेतुनभसोऽचलाः ।। २७ ।।



इ त ोधसमा मातमापत तं महासुरम् । ् वा सा च डका कोपं त धाय तदाकरोत् ।। २८ ।। सा वा त य है पाशं तं बब ध महासुरम् । त याज मा हषं पं सोऽ प ब ो महामृधे ।। २९ ।। ततः सहोऽभव स ो याव या बका शरः । छन ताव पु षः खड् गपा णर यत ।। ३० ।। तत एवाशु पु षं दे वी च छे द सायकैः । तं खड् गचमणा सा ततः सोऽभू महागजः ।। ३१ ।। करेण च महा सह तं चकष जगज च । कषत तु करं दे वी खड् गेन नरकृ ततः ।। ३२ ।। ततो महासुरो भूयो मा हषं वपुरा थतः । तथैव ोभयामास ैलो यं सचराचरम् ।। ३३ ।। ततः ु ा जग माता च डका पानमु मम् । पपौ पुनः पुन ैव जहासा णलोचना ।। ३४ ।। ननद चासुरः सोऽ प बलवीयमदोद्धतः । वषाणा यां च च ेप च डकां त भूधरान् ।। ३५ ।। सा च तान् हतां तेन चूणय ती शरो करैः । उवाच तं मदोद्धूतमुखरागाकुला रम् ।। ३६ ।। इस कार अपनी सेनाका संहार होता दे ख म हषासुरने भसेका प धारण करके दे वीके गण को ास दे ना आर भ कया ।। २१ ।। क ह को थूथुनसे मारकर, क ह के ऊपर खुर का हार करके क ह को- क ह को पूँछसे चोट प ँचाकर, कुछको स ग से वद ण करके, कुछ गण को वेगसे, क ह को सहनादसे, कुछको च कर दे कर और कतन को नः ास वायुके झ केसे धराशायी कर दया ।। २२-२३ ।। इस कार गण क सेनाको गराकर वह असुर महादे वीके सहको मारनेके लये झपटा। इससे जगद बाको बड़ा ोध आ ।। २४ ।। उधर महापरा मी म हषासुर भी ोधम भरकर धरतीको खुर से खोदने लगा तथा अपने स ग से ऊँचे-ऊँचे पवत को उठाकर फकने और गजने लगा ।। २५ ।। उसके वेगसे च कर दे नेके कारण पृ वी ू ध होकर फटने लगी। उसक पूँछसे टकराकर समु सब ओरसे धरतीको डु बोने लगा ।। २६ ।। हलते ए स ग के आघातसे वद ण होकर बादल के टु कड़े-टु कड़े हो गये। उसके ासक च ड वायुके वेगसे उड़े ए सैकड़ पवत आकाशसे गरने लगे ।। २७ ।। इस कार ोधम भरे ए उस महादै यको अपनी ओर आते दे ख च डकाने उसका वध करनेके लये महान् ोध कया ।। २८ ।। उ ह ने पाश



फककर उस महान् असुरको बाँध लया। उस महासं ामम बँध जानेपर उसने भसेका प याग दया ।। २९ ।। और त काल सहके पम वह कट हो गया। उस अव थाम जगद बा य ही उसका म तक काटनेको उ त , य ही वह खड् गधारी पु षके पम दखायी दे ने लगा ।। ३० ।। तब दे वीने तुरंत ही बाण क वषा करके ढाल और तलवारके साथ उस पु षको भी ब ध डाला। इतनेम ही वह महान् गजराजके पम प रणत हो गया ।। ३१ ।। तथा अपनी सूँड़से दे वीके वशाल सहंको ख चने और गजने लगा। ख चते समय दे वीने तलवारसे उसक सूँड़ काट डाली ।। ३२ ।। तब उस महादै यने पुनः भसेका शरीर धारण कर लया और पहलेक ही भाँ त चराचर ा णय स हत तीन लोक को ाकुल करने लगा ।। ३३ ।। तब ोधम भरी ई जग माता च डका बारंबार उ म मधुका पान करने और लाल आँख करके हँसने लग ।। ३४ ।। उधर वह बल और परा मके मदसे उ म आ रा स अपने स ग से च डीके ऊपर पवत को फकने लगा और डकारने लगा ।। ३५ ।। उस समय दे वी अपने बाण के समूह से उसके फके ए पवत को चूण करती ई बोल । बोलते समय उनका मुख मधुके मदसे लाल हो रहा था और वाणी लड़खड़ा रही थी ।। ३६ ।।



दे ुवाच ।। ३७ ।। गज गज णं मूढ मधु याव पबा यहम् । मया व य हतेऽ ैव ग ज य याशु दे वताः ।। ३८ ।। दे वीने कहा— ।। ३७ ।। ओ मूढ़! म जबतक मधु पीती ँ तबतक तू णभरके लये खूब गज ले। मेरे हाथसे यह तेरी मृ यु हो जानेपर अब शी ही दे वता भी गजना करगे ।। ३८ ।। ऋ ष वाच ।। ३९ ।। एवमु वा समु प य साऽऽ ढा तं महासुरम् । पादे ना य क ठे च शूलेनैनमताडयत् ।। ४० ।। ततः सोऽ प पदाऽऽ ा त तया नजमुखा तः । अध न अध न



ा त एवासीद्दे ा१ वीयण संवृतः ।। ४१ ।। ा त एवासौ यु यमानो महासुरः ।



तथा महा सना दे ा शर छ वा नपा ततः२ ।। ४२ ।। ततो हाहाकृतं सव दै यसै यं ननाश तत् ।



हष च परं ज मुः सकला दे वतागणाः ।। ४३ ।। तु ु वु तां सुरा दे व सह द ैमह ष भः । जगुग धवपतयो ननृतु ा सरोगणाः ।। ४४ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ३९ ।। य कहकर दे वी उछल और उस महादै यके ऊपर चढ़ गय । फर अपने पैरसे उसे दबाकर उ ह ने शूलसे उसके क ठम आघात कया। [उनके पैरसे दबा होनेपर भी म हषासुर अपने मुखसे सरे पम बाहर होने लगा] ।। ४० ।। अभी आधे शरीरसे ही वह बाहर नकलने पाया था क दे वीने अपने भावसे उसे रोक दया ।। ४१ ।। आधा नकला होनेपर भी वह महादै य दे वीसे यु करने लगा। तब दे वीने ब त बड़ी तलवारसे उसका म तक काट गराया ।। ४२ ।। फर तो हाहाकार करती ई दै य क सारी सेना भाग गयी तथा स पूण दे वता अ य त स हो गये ।। ४३ ।। दे वता ने द मह षय के साथ गादे वीका तवन कया। ग धवराज गान करने लगे तथा अ सराएँ नृ य करने लग ।। ४४ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये म हषासुरवधो नाम तृतीयोऽ यायः ।। ३ ।।



उवाच ३,



ोकाः ४१, एवम् ४४, एवमा दतः ।। २१७ ।।



इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वी-माहा यम ‘म हषासुर-वध’ नामक तीसरा अ याय पूरा आ ।। ३ ।।



१. पा०—तेन त छतधा नीतं। १. इसके बाद कसी- कसी तम— ‘कालं च कालद डेन कालरा रपातयत् । उ दशनम यु ैः खड् गपातैरताडयत् ।। अ सनैवा सलोमानम छद सा रणो सवे । गणैः सहेन दे ा च जय वेडाकृतो सवैः ।। —ये दो ोक अ धक ह।’ १. पा०—ख डख डं। १. पा०—एवा त दे वा। २. कसी- कसी तम इसके बाद— ‘एवं स म हषो नाम ससै यः ससु णः । ैलो यं मोह य वा तु तया दे ा वना शतः ।। ैलो य थै तदा भूतैम हषे व नपा तते । जये यु ं ततः सवः सदे वासुरमानवैः ।। ’— इतना अ धक पाठ है।



चतुथ ऽ यायः इ ा द दे वता



ारा दे वीक तु त



यान (ॐ काला ाभां कटा ैर रकुलभयदां मौ लकब े रेखां शङ् खं च ं कृपाणं शखम प करै ह त ने ाम् । सह क धा ध ढां भुवनम खलं तेजसा पूरय त यायेद ् गा जया यां दशप रवृतां से वतां स कामैः ।। स क इ छा रखनेवाले पु ष जनक सेवा करते ह तथा दे वता ज ह सब ओरसे घेरे रहते ह, उन ‘जया’ नामवाली गादे वीका यान करे। उनके ीअ क आभा काले मेघके समान याम है। वे अपने कटा से श ुसमूहको भय दान करती ह। उनके म तकपर आब च माक रेखा शोभा पाती हे। वे अपने हाथ म शङ् ख, च , कृपाण और शूल धारण करती ह। उनके तीन ने ह। वे सहके कंधेपर चढ़ ई ह और अपने तेजसे तीन लोक को प रपूण कर रही ह।



ऋ ष वाच१ ।। १ ।। ‘ॐ’ श ादयः सुरगाणा नहतेऽ तवीय त म रा म न सुरा रबले च दे ा । तां तु ु वुः ण तन शरोधरांसा वा भः हषपुलको मचा दे हाः ।। २ ।। दे ा यया तत मदं जगदा मश या न शेषदे वगणश समूहमू या । ताम बकाम खलदे वमह षपू यां भ या नताः म वदधातु शुभा न सा नः ।। ३ ।। य याः भावमतुलं भगवानन तो ा हर न ह व ु मलं बलं च । सा च डका खलजग प रपालनाय नाशाय चाशुभभय य म त करोतु ।। ४ ।। या ीः वयं सुकृ तनां भवने वल मीः पापा मनां कृत धयां दयेषु बु ः । ा सतां कुलजन भव य ल जा तां वां नताः म प रपालय दे व व म्ः ।। ५ ।।



क वणयाम तव पम च यमेतत् क चा तवीयमसुर यका र भू र । क चाहवेषु च रता न तवा ता न सवषु दे सुरदे वगणा दकेषु ।। ६ ।। हेतुः सम तजगतां गुणा प दोषैन ायसे ह रहरा द भर यपारा । सवा या खल मदं जगदं शभूतम ाकृता ह परमा कृ त वमा ा ।। ७ ।। य याः सम तसुरता समुद रणेन तृ तं या त सकलेषु मखेषु दे व । वाहा स वै पतृगण य च तृ तहेतुचायसे वमत एव जनैः वधा च ।। ८ ।। या मु हेतुर व च यमहा ता व२म य यसे सु नयते यत वसारैः । मो ा थ भमु न भर तसम तदोषैव ा स सा भगवती परमा ह दे व ।। ९ ।। श दा मका सु वमल यजुषां नधानमु थर यपदपाठवतां च सा नाम् । दे वी यी भगवती भवभावनाय वा ा च सवजगतां परमा ह ी ।। १० ।। मेधा स दे व व दता खलशा सारा गा स गभवसागरनौरस ा । ीः कैटभा र दयैककृता धवासा गौरी वमेव श शमौ लकृत त ा ।। ११ ।। ईष सहासममलं प रपूणच ब बानुका र कनको मका तका तम् । अ य तं तमा षा तथा प व ं वलो य सहसा म हषासुरेण ।। १२ ।। ् वा तु दे व कु पतं ुकुट करालमु छशाङ् कस श छ व य स ः । ाणा मुमोच म हष तदतीव च ं कैज ते ह कु पता तकदशनेन ।। १३ ।। दे व सीद परमा भवती भवाय



स ो वनाशय स कोपवती कुला न । व ातमेतदधुनैव यद तमेतीतं बलं सु वपुलं म हषासुर य ।। १४ ।। ते स मता जनपदे षु धना न तेषां तेषां यशां स न च सीद त धमवगः । ध या त एव नभृता मजभृ यदारा येषां सदा युदयदा भवती स ा ।। १५ ।। ध या ण दे व सकला न सदै व कमाय या तः त दनं सुकृती करो त । वग या त च ततो भवती सादालोक येऽ प फलदा ननु दे व तेन ।। १६ ।। ग मृता हर स भी तमशेषज तोः व थैः मृता म तमतीव शुभां ददा स । दा र य ःखभयहा र ण का वद या सव पकारकरणाय सदाऽऽ च ा ।। १७ ।। ए भहतैजग पै त सुखं तथैते कुव तु नाम नरकाय चराय पापम् । सं ाममृ युम धग य दवं या तु म वे त नूनम हतान् व नहं स दे व ।। १८ ।। ् वैव क न भवती करो त भ म सवासुरान रषु य हणो ष श म् लोकान् या तु रपवोऽ प ह श पूता इ थं म तभव त ते व प तेऽ तसा वी ।। १९ ।। खड् ग भा नकर व फरणै तथो ैः शूला का त नवहेन शोऽसुराणाम् । य ागता वलयमंशुम द ख डयो याननं तव वलोकयतां तदे तत् ।। २० ।। वृ वृ शमनं तव दे व शीलं पं तथैतद व च यमतु यम यैः । वीय च ह तृ तदे वपरा माणां वै र व प क टतैव दया वये थम् ।। २१ ।। केनोपमा भवतु तेऽ य परा म य पं च श ुभयकाय तहा र कु ।



च े कृपा समर न ु रता च ा व येव दे व वरदे भुवन येऽ प ।। २२ ।। ैलो यमेतद खलं रपुनाशनेन ातं वया समरमूध न तेऽ प ह वा नीता दवं रपुगणा भयम यपा तम माकमु मदसुरा रभवं नम ते ।। २३ ।। शूलेन पा ह नो दे व पा ह खड् गेन चा बके । घ टा वनेन नः पा ह चाप या नः वनेन च ।। २४ ।। ा यां र ती यां च च डके र द णे । ामणेना मशूल य उ र यां तथे र ।। २५ ।। सौ या न या न पा ण ैलो ये वचर त ते । या न चा यथघोरा ण तै र ा मां तथा भुवम् ।। २६ ।। खड् गशूलगदाद न या न चा ा ण तेऽ बके । करप लवस न तैर मान् र सवतः ।। २७ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। अ य त परा मी रा मा म हषासुर तथा उसक दै यसैनाके दे वीके हाथसे मारे जानेपर इ आ द दे वता णामके लये गदन तथा कंधे झुकाकर उन भगवती गाका उ म वचन ारा तवन करने लगे। उस समय उनके सु दर अ म अ य त हषके कारण रोमा च हो आया था ।। २ ।। [दे वता बोले—] ‘स पूण दे वता क श का समुदाय ही जनका व प है तथा जन दे वीने अपनी श से स पूण जगत्को ा त कर रखा है, सम त दे वता और मह षय क पूजनीया उन जगद बाको हम भ पूवक नम कार करते ह। वे हमलोग का क याण कर ।। ३ ।। जनके अनुपम भाव और बलका वणन करनेम भगवान् शेषनाग, ाजी तथा महादे वजी भी समथ नह ह, वे भगवती च डका स पूण जगत्का पालन एवं अशुभ भयका नाश करनेका वचार कर ।। ४ ।। जो पु या मा के घर म वयं ही ल मी पसे, पा पय के यहाँ द र ता पसे, शु अ तःकरणवाले पु ष के दयम बु पसे, स पु ष म ा पसे तथा कुलीन मनु यम ल जा पसे नवास करती ह, उन आप भगवती गाको हम नम कार करते ह। दे व! स पूण व का पालन क जये ।। ५ ।। दे व! आपके इन अ च य पका, असुर का नाश करनेवाले भारी परा मका तथा सम त दे वता और दै य के सम यु म कट कये ए आपके अ त च र का हम कस कार वणन कर ।। ६ ।। आप स पूण जगत्क उ प म कारण ह। आपम स वगुण, रजोगुण और तमोगुण—ये तीन गुण मौजूद ह; तो भी दोष के साथ आपका संसग नह जान पड़ता। भगवान् व णु और महादे वजी आ द दे वता भी आपका पार नह पाते। आप ही सबका आ य ह। यह सम त जगत् आपका अंशभूत है; य क आप सबक आ दभूत अ ाकृता परा कृ त ह ।। ७ ।।



दे व! स पूण य म जसके उ चारणसे सब दे वता तृ त लाभ करते ह, वह वाहा आप ही ह। इसके अ त र आप पतर क भी तृ तका कारण ह, अतएव सब लोग आपको वधा भी कहते ह ।। ८ ।। दे व! जो मो क ा तका साधन है, अ च य महा त व पा है, सम त दोष से र हत, जते य, त वको ही सार व तु माननेवाले तथा मो क अ भलाषा रखनेवाले मु नजन जसका अ यास करते ह, वह भगवती परा व ा आप ही ह ।। ९ ।। आप श द व पा ह, अ य त नमल ऋ वेद, यजुवद तथा उ थके मनोहर पद के पाठसे यु सामवेदका भी आधार आप ही ह। आप दे वी, यी (तीन वेद) और भगवती (छह ऐ य से यु ) ह। इस व क उ प एवं पालनके लये आप ही वाता (खेती एवं आजी वका)-के पम कट ई ह। आप स पूण जगत्क घोर पीड़ाका नाश करनेवाली ह ।। १० ।। दे व! जससे सम त शा के सारका ान होता है, वह मेधाश आप ही ह। गम भवसागरसे पार उतारनेवाली नौका प गादे वी भी आप ही ह। आपक कह भी आस नह है। कैटभके श ु भगवान् व णुके व ः थलम एकमा नवास करनेवाली भगवती ल मी तथा भगवान् च शेखर ारा स मा नत गौरीदे वी भी आप ही ह ।। ११ ।। आपका मुख म द मुसकानसे सुशो भत, नमल, पूण च माके ब बका अनुकरण करनेवाला और उ म सुवणक मनोहर का तसे कमनीय है; तो भी उसे दे खकर म हषासुरको ोध आ और सहसा उसने उसपर हार कर दया, यह बड़े आ यक बात है ।। १२ ।। दे व! वही मुख जब ोधसे यु होनेपर उदयकालके च माक भाँ त लाल और तनी ई भ ह के कारण वकराल हो उठा, तब उसे दे खकर जो म हषासुरके ाण तुरंत नह नकल गये, यह उससे भी बढ़कर आ यक बात है; य क ोधम भरे ए यमराजको दे खकर भला, कौन जी वत रह सकता है ।। १३ ।। दे व! आप स ह । परमा म व पा आपके स होनेपर जगत्का अ युदय होता है और ोधम भर जानेपर आप त काल ही कतने कुल का सवनाश कर डालती ह, यह बात अभी अनुभवम आयी है; य क म हषासुरक यह वशाल सेना णभरम आपके कोपसे न हो गयी है ।। १४ ।। सदा अ युदय दान करनेवाली आप जनपर स रहती ह; वे ही दे शम स मा नत ह, उ ह को धन और यशक ा त होती है, उ ह का धम कभी श थल नह होता तथा वे ही अपने -पु ी, पु और भृ य के साथ ध य माने जाते ह ।। १५ ।। दे व! आपक ही कृपासे पु या मा पु ष त दन अ य त ापूवक सदा सब कारके धमानुकूल कम करता है और उसके भावसे वगलोकम जाता है; इस लये आप तीन लोक म न य ही मनोवा छत फल दे नेवाली ह ।। १६ ।। माँ ग! आप मरण करनेपर सब ा णय का भय हर लेती ह और व थ पु ष ारा च तन करनेपर उ ह परम क याणमयी बु दान करती ह। ःख, द र ता और भय हरनेवाली दे व! आपके सवा सरी कौन है, जसका च सबका उपकार करनेके लये सदा ही दयाद रहता हो ।। १७ ।। दे व! इन रा स के मारनेसे संसारको सुख मले तथा ये रा स चरकालतक



नरकम रहनेके लये भले ही पाप करते रहे ह , इस समय सं ामम मृ युको ा त होकर वगलोकम जायँ— न य ही यही सोचकर आप श ु का वध करती ह ।। १८ ।। आप श ु पर श का हार य करती ह? सम त असुर को पात-मा से ही भ म य नह कर दे त ? इसम एक रह य है। ‘ये श ु भी हमारे श से प व होकर उ म लोक म जायँ’—इस कार उनके त भी आपका वचार अ य त उ म रहता है ।। १९ ।। खड् गके तेजःपु क भयङ् कर द तसे तथा आपके शूलके अ भागक घनीभूत भासे च धयाकर जो असुर क आँख फूट नह गय , उसम कारण यही था क वे मनोहर र मय से यु च माके समान आन द दान करनेवाले आपके इस सु दर मुखका दशन करते थे ।। २० ।। दे व! आपका शील राचा रय के बुरे बतावको र करनेवाला है। साथ ही यह प ऐसा है, जो कभी च तनम भी नह आ सकता और जसक कभी सर से तुलना भी नह हो सकती; तथा आपका बल और परा म तो उन दै य का भी नाश करनेवाला है, जो कभी दे वता के परा मको भी न कर चुके थे। इस कार आपने श ु पर भी अपनी दया ही कट क है ।। २१ ।। वरदा यनी दे व! आपके इस परा मक कसके साथ तुलना हो सकती है। तथा श ु को भय दे नेवाला एवं अ य त मनोहर ऐसा प भी आपके सवा और कहाँ है! दयम कृपा और यु म न ु रता—ये दोन बात तीन लोक के भीतर केवल आपम ही दे खी गयी ह ।। २२ ।। मातः! आपने श ु का नाश करके इस सम त लोक क र ा क है। उन श ु को भी यु भू मम मारकर वगलोकम प ँचाया है तथा उ मत दै य से ा त होनेवाले हमलोग के भयको भी र कर दया है, आपको हमारा नम कार है ।। २३ ।। दे व! आप शूलसे हमारी र ा कर। अ बके! खड् गसे भी हमारी र ा कर तथा घ टाक व न और धनुषक टं कारसे भी आप हमलोग क र ा कर ।। २४ ।। च डके! पूव, प म और द ण दशाम आप हमारी र ा कर तथा ई र! अपने शूलको घुमाकर आप उ र दशाम भी हमारी र ा कर ।। २५ ।। तीन लोक म आपके जो परम सु दर एवं अ य त भयङ् कर प वचरते रहते ह, उनके ारा भी आप हमारी तथा इस भूलोकक र ा कर ।। २६ ।। अ बके! आपके करपा लव म शोभा पानेवाले खड् ग, शूल और गदा आ द जो-जो अ ह , उन सबके ारा आप सब ओरसे हमलोग क र ा कर ।। २७ ।।



ऋ ष वाच ।। २८ ।। एवं तुता सुरै द ैः कुसुमैन दनो वैः । अ चता जगतां धा ी तथा ग धानुलेपनैः ।। २९ ।। भ या सम तै दशै द ैधूपै तु१ धू पता । ाह सादसुमुखी सम तान् णतान् सुरान् ।। ३० ।। ऋ ष कहते ह— ।। २८ ।। इस कार जब दे वता ने जग माता गाक तु त क और न दनवनके द पु प एवं ग ध-च दन आ दके ारा उनका पूजन कया, फर सबने मलकर जब भ पूवक द धूप क सुग ध नवेदन क , दे वीने स वदन होकर णाम करते ए सब दे वता से कहा— ।। २९-३० ।। दे ुवाच ।। ३१ ।। यतां दशाः सव यद म ोऽ भवा छतम्२ ।। ३२ ।। दे वी बोल — ।। ३१ ।। दे वताओ! तुम सब लोग मुझसे जस व तुक अ भलाषा रखते हो उसे माँगो ।। ३२ ।।



दे वा ऊचुः ।। ३३ ।। भगव या कृतं सव न क चदव श यते ।। ३४ ।। यदयं नहतः श ुर माकं म हषासुरः । य द चा प वरो दे य वया माकं महे र ।। ३५ ।। सं मृता सं मृता वं नो हसेथाः परमापदः । य म यः तवैरे भ वां तो य यमलानने ।। ३६ ।। त य व वभवैधनदारा दस पदाम् । वृ येऽ म स ा वं भवेथाः सवदा बके ।। ३७ ।। दे वता बोले— ।। ३३ ।। भगवतीने हमारी सब इ छा पूण कर द , अब कुछ भी बाक नह है ।। ३४ ।। य क हमारा यह श ु म हषासुर मारा गया। महे री! इतनेपर भी य द आप हम और वर दे ना चाहती ह ।। ३५ ।। तो हम जब-जब आपका मरण कर, तब-तब आप दशन दे कर हमलोग के महान् संकट र कर दया कर तथा स मुखी अ बके! जो मुन य इन तो ारा आपक तु त करे, उसे व , समृ और वैभव दे नेके साथ ही उसक धन और ी आ द स प को भी बढ़ानेके लये आप सदा हमपर स रह ।। ३६-३७ ।।



ऋ ष वाच ।। ३८ ।। इ त सा दता दे वैजगतोऽथ तथाऽऽ मनः । तथे यु वा भ काली बभूवा त हता नृप ।। ३९ ।। इ येत क थतं भूप स भूता सा यथा पुरा । दे वी दे वशरीरे यो जग य हतै षणी ।। ४० ।। पुन गौरीदे हा सा१ समु ता यथाभवत् । वधाय दै यानां तथा शु भ नशु भयोः ।। ४१ ।। र णाय च लोकानां दे वानामुपका रणी । त छृ णु व मयाऽऽ यातं यथाव कथया म ते ।। ी ॐ ।। ४२ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ३८ ।। राजन्! दे वता ने जब अपने तथा जगत्के क याणके लये भ काली दे वीको इस कार स कया, तब वे ‘तथा तु’ कहकर वह अ तधान हो गय ।। ३९ ।। भूपाल! इस कार पूवकालम तीन लोक का हत चाहनेवाली दे वी जस



कार दे वता के शरीर से कट ई थ , वह सब कथा मने कह सुनायी ।। ४० ।। अब पुनः दे वता का उपकार करनेवाली वे दे वी दै य तथा शु भ- नशु भका वध करने एवं सब लोक क र ा करनेके लये गौरीदे वीके शरीरसे जस कार कट ई थ , वह सब स मेरे मुँहसे सुनो। म उसका तुमसे यथावत् वणन करता ँ ।। ४१-४२ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये श ा द तु तनाम चतुथ ऽ यायः ।। ४ ।। उवाच ५, अ ोकौ २, ोकाः ३५, एवम् ४२, एवमा दतः ।। २५९ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘श ा द तु त’ नामक चौथा अ याय पूरा आ ।। ४ ।।



१. कसी- कसी तम ‘ऋ ष वाच’के बाद ‘ततः सुरगणाः सव दे ा इ पुरोगमाः । तु तमारे भरे कतु नहते म हषासुरे ।। ’ इतना पाठ अ धक है। २. पा०—च अ य०। १. पा०—पैः सुधू पता। २. माक डेयपुराणक आधु नक तय म—‘ददा यहम त ी या तवैरे भः सुपू जता।’— इतना पाठ अ धक है। कसी- कसी तम—‘क मपरं य च करं त वद्महे। इ याक य वचो दे ाः युचु ते दवौकसः ।। ’ इतना और अ धक पाठ है। १. कसी- कसी तम ‘गौरादे हा सा’ ‘गौरी दे हासा’ इ या द पाठ भी उपल ध होते ह।



प चमोऽ यायः दे वता अ बकाके



ारा दे वीक तु त, च ड-मु डके मुखसे पक शंसा सुनकर शु भका उनके पास त भेजना और तका नराश लौटना



व नयोग [ॐ अ य ीउ रच र य ऋ षः, महासर वती दे वता, अनु ु प् छ दः, भीमा श ः, ामरी बीजम्, सूय त वम्, सामवेदः व पम्, महासर वती ी यथ उ रच र पाठे व नयोगः । ॐ इस उ र च र के ऋ ष ह, महासर वती दे वता ह, अनु ु प् छ द है, भीमा श ह, ामरी बीज है, सूय त व है और सामवेद व प है। महासर वतीक स ताके लये उ र च र के पाठम इसका व नयोग कया जाता है। यान ॐ घ टाशूलहला न शङ् खमुसले च ं धनुः सायकं ह ता जैदधत बना त वलस छ तांशुतु य भाम् । गौरीदे हसमु वां जगतामाधारभूतां महापूवाम सर वतीमनुभजे शु भा ददै या दनीम् ।। जो अपने करकमल म घ टा, शूल, हल, शङ् ख, मूसल, च , धनुष और बाण धारण करती ह, शरद्ऋतुके शोभास प च माके समान जनक मनोहर का त है, जो तीन लोक क आधारभूता और शु भ आ द दै य का नाश करनेवाली ह तथा गौरीके शरीरसे जनका ाक आ है, उन महासर वती दे वीका म नर तर भजन करता ँ।] ‘ॐ ल ’ ऋ ष वाच ।। १ ।। पुरा शु भ नशु भा यामसुरा यां शचीपतेः । ैलो यं य भागा ता मदबला यात् ।। २ ।। तावेव सूयतां त द धकारं तथै दवम् । कौबेरमथ या यं च च ाते व ण य च ।। ३ ।। तावेव पवन च च तुव कम च१ । ततो दे वा व नधूता रा याः परा जता ।। ४ ।। ता धकारा दशा ता यां सव नराकृता । महासुरा यां तां दे व सं मर यपरा जताम् ।। ५ ।। तया माकं वरो द ो यथाऽऽप सु मृता खलाः ।



भवतां नाश य या म त णा परमापदः ।। ६ ।। इ त कृ वा म त दे वा हमव तं नगे रम् । ज मु त ततो दे व व णुमायां तु ु वुः ।। ७ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। पूवकालम शु भ और नशु भ नामक असुर ने अपने बलके घमंडम आकर शचीप त इ के हाथसे तीन लोक का रा य और य भाग छ न लये ।। २ ।। वे ही दोन सूय, च मा, कुबेर, यम और व णके अ धकारका भी उपयोग करने लगे। वायु और अ नका काय भी वे ही करने लगे। उन दोन ने सब दे वता को अपमा नत, रा य , परा जत तथा अ धकारहीन करके वगसे नकाल दया। उन दोन महान् असुर से तर कृत दे वता ने अपरा जता दे वीका मरण कया और सोचा ‘जगद बाने हमलोग को वर दया था क आप कालम मरण करनेपर म तु हारी सब आप य का त काल नाश कर ँ गी’ ।। ३-६ ।। यह वचारकर दे वता ग रराज हमालयपर गये और वहाँ भगवती व णुमायाक तु त करने लगे ।। ७ ।। दे वा ऊचुः ।। ८ ।। नमो दे ै महादे ै शवायै सततं नमः । नमः कृ यै भ ायै नयताः णताः म ताम् ।। ९ ।। रौ ायै नमो न यायै गौय धा यै नमो नमः । यो नायै चे प यै सुखायै सततं नमः ।। १० ।। क याणै णतां१ वृ यै स यै कुम नमो नमः । नैऋ यै भूभृतां ल यै शवा यै ते नमो नमः ।। ११ ।। गायै गपारायै सारायै सवका र यै । या यै तथैव कृ णायै धू ायै सततं नमः ।। १२ ।। अ तसौ या तरौ ायै नता त यै नमो नमः । नमो जग त ायै दे ै कृ यै नमो नमः ।। १३ ।। या दे वी सवभूतेषू व णुमाये त श दता । नम त यै ।। १४ ।। नम त यै ।। १५ ।। नम त यै नमो नमः ।। १६ ।। या दे वी सवभूतेषू चेतने य भधीयते । नम त यै ।। १७ ।। नम त यै ।। १८ ।। नम त यै नमो नमः ।। १९ ।। या दे वी सवभूतेषु बु पेण सं थता । नम त यै ।। २० ।। नम त यै ।। २१ ।। नम त यै नमो नमः ।। २२ ।। या दे वी सवभूतेषु न ा पेण सं थता । नम त यै ।। २३ ।। नम त यै ।। २४ ।। नम त यै नमो नमः ।। २५ ।। या दे वी सवभूतेषु ुधा पेण सं थता । नम त यै ।। २६ ।। नम त यै ।। २७ ।। नम त यै नमो नमः ।। २८ ।।



या दे वी सवभूतेषु छाया पेण सं थता । नम त यै ।। २९ ।। नम त यै ।। ३० ।। नम या दे वी सवभूतेषु श पेण सं थता । नम त यै ।। ३२ ।। नम त यै ।। ३३ ।। नम या दे वी सवभूतेषु तृ णा पेण सं थता । नम त यै ।। ३५ ।। नम त यै ।। ३६ ।। नम या दे वी सवभूतेषु ा त पेण सं थता । नम त यै ।। ३८ ।। नम त यै ।। ३९ ।। नम या दे वी सवभूतेषु जा त पेण सं थता । नम त यै ।। ४१ ।। नम त यै ।। ४२ ।। नम या दे वी सवभूतेषु ल जा पेण सं थता । नम त यै ।। ४४ ।। नम त यै ।। ४५ ।। नम या दे वी सवभूतेषु शा त पेण सं थता । नम त यै ।। ४७ ।। नम त यै ।। ४८ ।। नम या दे वी सवभूतेषु ा पेण सं थता । नम त यै ।। ५० ।। नम त यै ।। ५१ ।। नम या दे वी सवभूतेषु का त पेण सं थता । नम त यै ।। ५३ ।। नम त यै ।। ५४ ।। नम या दे वी सवभूतेषु ल मी पेण सं थता । नम त यै ।। ५६ ।। नम त यै ।। ५७ ।। नम या दे वी सवभूतेषु वृ पेण सं थता । नम त यै ।। ५९ ।। नम त यै ।। ६० ।। नम या दे वी सवभूतेषु मृ त पेण सं थता । नम त यै ।। ६२ ।। नम त यै ।। ६३ ।। नम या दे वी सवभूतेषु दया पेण सं थता । नम त यै ।। ६५ ।। नम त यै ।। ६६ ।। नम या दे वी सवभूतेषु तु पेण सं थता । नम त यै ।। ६८ ।। नम त यै ।। ६९ ।। नम या दे वी सवभूतेषु मातृ पेण सं थता । नम त यै ।। ७१ ।। नम त यै ।। ७२ ।। नम या दे वी सवभूतेषु ा त पेण सं थता । नम त यै ।। ७४ ।। नम त यै ।। ७५ ।। नम इ याणाम ध ा ी भूतानां चा खलेषु या ।



त यै नमो नमः ।। ३१ ।। त यै नमो नमः ।। ३४ ।। त यै नमो नमः ।। ३७ ।। त यै नमो नमः ।। ४० ।। त यै नमो नमः ।। ४३ ।। त यै नमो नमः ।। ४६ ।। त यै नमो नमः ।। ४१ ।। त यै नमो नमः ।। ५२ ।। त यै नमो नमः ।। ५५ ।। त यै नमो नमः ।। ५८ ।। त यै नमो नमः ।। ६१ ।। त यै नमो नमः ।। ६४ ।। त यै नमो नमः ।। ६७ ।। त यै नमो नमः ।। ७० ।। त यै नमो नमः ।। ७३ ।। त यै नमो नमः ।। ७६ ।।



भूतेषु सततं त यै ा तदे ै नमो नमः ।। ७७ ।। च त पेण या कृ मेतद् ा य थता जगत् । नम त यै ।। ७८ ।। नम त यै ।। ७९ ।। नम त यै नमो नमः ।। ८० ।। तुता सुरैः पूवमभी सं याथा सुरे े ण दनेषु से वता । करोतु सा नः शुभहेतुरी री शुभा न भ ा य भह तु चापदः ।। ८१ ।। या सा तं चो तदै यता पतैर मा भरीशा च सुरैनम यते । या च मृता त णमेव ह त नः सवापदो भ वन मू त भः ।। ८२ ।। दे वता बोले— ।। ८ ।। दे वीको नम कार है, महादे वी शवाको सवदा नम कार है। कृ त एवं भ ाको णाम है। हमलोग नयमपूवक जगद बाको नम कार करते ह ।। ९ ।। रौ ाको नम कार है। न या, गौरी एवं धा ीको बारंबार नम कार है। यो नामयी, च पणी एवं सुख व पा दे वीको सतत णाम ।। १० ।। शरणागत का क याण करनेवाली वृ एवं स पा दे वीको हम बारंबार नम कार करते ह। नैऋती (रा स क ल मी), राजा क ल मी तथा शवाणी ( शवप नी)- व पा आप जगद बाको बार-बार नम कार है ।। ११ ।। गा, गपारा ( गम संकटसे पार उतारनेवाली), सारा (सबक सारभूता), सवका रणी, या त, कृ णा और धू ादे वीको सवदा नम कार है ।। १२ ।। अ य त सौ य तथा अ य त रौ पा दे वीको हम नम कार करते ह, उ ह हमारा बारंबार णाम है। जगत्क आधारभूता कृ त दे वीको बारंबार नम कार है ।। १३ ।। जो दे वी सब ा णय म व णुमायाके नामसे कही जाती ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। १४-१६ ।। जो दे वी सब ा णय म चेतना कहलाती ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। १७-१९ ।। जो दे वी सब ा णय म बु पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। २०-२२ ।। जो दे वी सब ा णय म न ा पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। २३-२५ ।। जो दे वी सब ा णय म ुधा पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। २६-२८ ।। जो दे वी सब ा णय म छाया पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। २९-३१ ।। जो दे वी सब ा णय म श पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ३२-३४ ।। जो दे वी सब ा णय म तृ णा पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ३५-३७ ।। जो दे वी सब ा णय म ा त ( मा)- पसे थत ह, उनको नम कार,



उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ३८-४० ।। जो दे वी सब ा णय म जा त पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ४१-४३ ।। जो दे वी सब ा णय म ल जा पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ४४-४६ ।। जो दे वी सब ा णय मे शा त पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ४७-४९ ।। जो दे वी सब ा णय म ा पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ५०-५२ ।। जो दे वी सब ा णय म का त पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ५३-५५ ।। जो दे वी सब ा णय म ल मी पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ५६-५८ ।। जो दे वी सब ा णय म वृ पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ५९-६१ ।। जो दे वी सब ा णय म मृ त पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ६२-६४ ।। जो दे वी सब ा णय म दया पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ६५-६७ ।। जो दे वी सब ा णय म तु पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ६८-७० ।। जो दे वी सब ा णय म माता पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ७१-७३ ।। जो दे वी सब ा णय म ा त पसे थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ७४-७६ ।। जो जीव के इ यवगक अ ध ा ी दे वी एवं सब ा णय म सदा ा त रहनेवाली ह, उन ा तदे वीको बारंबार नम कार है ।। ७७ ।। जो दे वी चैत य पसे इस स पूण जगत्को ा त करके थत ह, उनको नम कार, उनको नम कार, उनको बारंबार नम कार है ।। ७८-८० ।। पूवकालम अपने अभी क ा त होनेसे दे वता ने जनक तु त क तथा दे वराज इ ने ब त दन तक जनका सेवन कया, वह क याणक साधनभूता ई री हमारा क याण और म ल करे तथा सारी आप य का नाश कर डाले ।। ८१ ।। उ ड दै य से सताये ए हम सभी दे वता जन परमे रीको इस समय नम कार करते ह तथा जो भ से वन पु ष ारा मरण क जानेपर त काल ही स पूण वप य का नाश कर दे ती ह, वे जगद बा हमारा संकट र कर ।। ८२ ।। ऋ ष वाच ।। ८३ ।। एवं तवा दयु ानां दे वानां त पावती । नातुम याययौ तोये जा ा नृपन दन ।। ८४ ।। सा वी ान् सुरान् सु ूभव ः तूयतेऽ का । शरीरकोशत ा याः समु ता वी छवा ।। ८५ ।। तो ं ममैतत् यते शु भदै य नराकृतैः ।



दे वैः समेतैः१ समरे नशु भेन परा जतैः ।। ८६ ।। शरीरकोशा



याः२ पाव या नःसृता बका ।



कौ शक त३ सम तेषु ततो लोकेषु गीयते ।। ८७ ।। त यां व नगतायां तु कृ णाभू सा प पावती । का लके त समा याता हमाचलकृता या ।। ८८ ।। ततोऽ बकां परं पं ब ाणां सुमनोहरम् । ददश च डो मु ड भृ यौ शु भ नशु भयोः ।। ८९ ।। ता यां शु भाय चा याता अतीव सुमनोहरा । का या ते ी महाराज भासय ती हमाचलम् ।। ९० ।। नैव ता क् व च प ू ं ं केन च मम् । ायतां का यसौ दे वी गृ तां चासुरे र ।। ९१ ।। ीर नम तचाव ोतय ती दश वषा । सा तु त त दै ये तां भवान् ु मह त ।। ९२ ।। या न र ना न मणयो गजा ाद न वै भो । ैलो ये तु सम ता न सा तं भा त ते गृहे ।। ९३ ।। ऐरावतः समानीतो गजर नं पुर दरात् । पा रजातत ायं तथैवो चैः वा हयः ।। ९४ ।। वमानं हंससंयु मेत त तेऽ णे । र नभूत महानीतं यदासी े धसोऽ तम् ।। ९५ ।। न धरेष महाप ः समानीतो धने रात् । क कन ददौ चा धमालाम लानपङ् कजाम् ।। ९६ ।। छ ं ते वा णं गेहे का चन ा व त त । तथायं य दनवरो यः पुराऽऽसी जापतेः ।। ९७ ।। मृ यो ा तदा नाम श रीश वया ता । पाशः स ललराज य ातु तव प र हे ।। ९८ ।। नशु भ या धजाता सम ता र नजातयः । व र प४ ददौ तु यम नशौचे च वाससी ।। ९९ ।। एवं दै ये र ना न सम ता या ता न ते । ीर नमेषा क याणी वया क मा गृ ते ।। १०० ।। ऋ ष कहते ह— ।। ८३ ।। राजन् इस कार जब दे वता तु त कर रहे थे, उस समय पावती दे वी ग ाजीके जलम नान करनेके लये वहाँ आय ।। ८४ ।। उन सु दर भ ह वाली भगवतीने दे वता से पूछा—‘आपलोग यहाँ कसक तु त करते ह?’ तब



उ ह के शरीरकोशसे कट ई शवादे वी बोल — ।। ८५ ।। ‘शु भदै यसे तर कृत और यु म नशु भसे परा जत हो यहाँ एक त ए ये सम त दे वता यह मेरी ही तु त कर रहे ह’ ।। ८६ ।। पावतीजीके शरीरकोशसे अ बकाका ा भाव आ था, इस लये वे सम त लोक म ‘कौ शक ’ कही जाती ह ।। ८७ ।। कौ शक के कट होनेके बाद पावतीदे वीका शरीर काले रंगका हो गया, अतः वे हमालयपर रहनेवाली का लकादे वीके नामसे व यात ।। ८८ ।। तदन तर शु भ- नशु भके भृ य च ड-मु ड वहाँ आये और उ ह ने परम मनोहर प धारण करनेवाली अ बकादे वीको दे खा ।। ८९ ।। फर वे शु भके पास जाकर बोले—‘महाराज! एक अ य त मनोहर ी है, जो अपनी द का तसे हमालयको का शत कर रही है ।। ९० ।। वैसा उ म प कह कसीने भी नह दे खा होगा। असुरे र! पता लगाइये, वह दे वी कौन है और उसे पकड़ ली जये ।। ९१ ।। य म तो वह र न है, उसका येक अ ब त ही सु दर है तथा वह अपने ीअ क भासे स पूण दशा म काश फैला रही है। दै यराज! अभी वह हमालयपर ही मौजूद है, आप उसे दे ख सकते ह ।। ९२ ।। भो! तीन लोक म म ण, हाथी और घोड़े आ द जतने भी र न ह, वे सब इस समय आपके घरम शोभा पाते ह ।। ९३ ।। हा थय म र नभूत ऐरावत, यह पा रजातका वृ और यह उ चैः वा घोड़ा—यह सब आपने इ से ले लया है ।। ९४ ।। हंस से जुता आ यह वमान भी आपके आँगनम शोभा पाता है। यह र नभूत अद्भुत वमान, जो पहले ाजीके पास था, अब आपके यहाँ लाया गया है ।। ९५ ।। यह महाप नामक न ध आप कुबेरसे छ न लाये ह। समु ने भी आपको क कनी नामक माला भट क है, जो केसर से सुशो भत है और जसके कमल कभी कु हलाते नह ।। ९६ ।। सुवणक वषा करनेवाला व णका छ भी आपके घरम शोभा पाता है तथा यह े रथ, जो पहले जाप तके अ धकारम था, अब आपके पास मौजूद है ।। ९७ ।। दै ये र! मृ युक उ ा तदा नामवाली श भी आपने छ न ली है तथा व णका पाश और समु म होनेवाले सब कारके र न आपके भाई नशु भके अ धकारम ह। अ नने भी वतः शु कये ए दो व आपक सेवाम अ पत कये ह ।। ९८-९९ ।। दै यराज! इस कार सभी र न आपने एक कर लये ह। फर जो यह य म र न प क याणकारी दे वी है, इसे आप य नह अपने अ धकारम कर लेते? ।। १०० ।। ऋ ष वाच ।। १०१ ।। नश ये त वचः शु भः स तदा च डमु डयोः । ेषयामास सु ीव तं दे ा महासुरम्१ ।। १०२ ।। इ त चे त च व ा सा ग वा वचना मम । यथा चा ये त स ी या तथा काय वया लघु ।। १०३ ।। स त ग वा य ा ते शैलो े शेऽ तशोभने ।



सा२ दे वी तां ततः ाह णं मधुरया गरा ।। १०४ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १०१ ।। च ड-मु डका यह वचन सुनकर शु भने महादै य सु ीवको त बनाकर दे वीके पास भेजा और कहा—‘तुम मेरी आ ासे उसके सामने ये-ये बात कहना और ऐसा उपाय करना जससे स होकर वह शी ही यहाँ आ जाय’ ।। १०२-१०३ ।। वह त पवतके अ य त रमणीय दे शम, जहाँ दे वी मौजूद थ , गया और मधुर वाणीम कोमल वचन बोला ।। १०४ ।। त उवाच ।। १०५ ।। दे व दै ये रः शु भ ैलो ये परमे रः । तोऽहं े षत तेन व सकाश महागतः ।। १०६ ।। अ ाहता ः सवासु यः सदा दे वयो नषु । न जता खलदै या रः स यदाह शृणु व तत् ।। १०७ ।। मम ैलो यम खलं मम दे वा वशानुगाः । य भागानहं सवानुपा ा म पृथक् पृथक् ।। १०८ ।। ैलो ये वरर ना न मम व या यशेषतः । तथैव गजर नं१ च वा२ दे वे वाहनम् ।। १०९ ।। ीरोदमथनोद्भुतम र नं ममामरैः । उ चैः वससं ं त णप य सम पतम् ।। ११० ।। या न चा या न दे वेषु ग धवषूरगेषु च । र नभूता न भूता न ता न म येव शोभने ।। १११ ।। ीर नभूतां वां दे व लोके म यामहे वयम् । सा वम मानुपाग छ यतो र नभुजो वयम् ।। ११२ ।। मां वा ममानुजं वा प नशु भमु व मम् । भज वं च चलापा र नभूता स वै यतः ।। ११३ ।। परमै यमतुलं ा यसे म प र हात् । एतद् बु या समालो य म प र हतां ज ।। ११४ ।। त बोला— ।। १०५ ।। दे व! दै यराज शु भ इस समय तीन लोक के परमे र ह। म उ ह का भेजा आ त ँ और यहाँ तु हारे ही पास आया ँ ।। १०६ ।। उनक आ ा सदा सब दे वता एक वरसे मानते ह। कोई उसका उ लङ् घन नह कर सकता। वे स पूण दे वता को परा त कर चुके ह। उ ह ने तु हारे लये जो संदेश दया है, उसे सुनो ।। १०७ ।। ‘स पूण लोक मेरे अ धकारम है। दे वता भी मेरी आ ाके अधीन चलते ह। स पूण य के भाग को म ही पृथक्-पृथक् भोगता ँ ।। १०८ ।। तीन लोक म जतने े र न ह, वे सब मेरे अ धकारम ह। दे वराज इ का वाहन ऐरावत, जो हा थय म र नके



समान है, मने छ न लया है ।। १०९ ।। ीरसागरका म थन करनेसे जो अ र न उ चैः वा कट आ था, उसे दे वता ने मेरे पैर पर पड़कर सम पत कया है ।। ११० ।। सु दरी! उनके सवा और भी जतने र नभूत पदाथ दे वता , ग धव और नाग के पास थे, वे सब मेरे ही पास आ गये ह ।। १११ ।। दे व! हमलोग तु ह संसारक य म र न मानते ह, अतः तुम हमारे पास आ जाओ; य क र न का उपभोग करनेवाले हम ही ह ।। ११२ ।। च चल कटा वाली सु दरी! तुम मेरी या मेरे भाई महापरा मी नशु भक सेवाम आ जाओ; य क तुम र न व पा हो ।। ११३ ।। मेरा वरण करनेसे तु ह तुलनार हत महान् ऐ यक ा त होगी। अपनी बु से यह वचार कर तुम मेरी प नी बन जाओ’ ।। ११४ ।।



ऋ ष वाच ।। ११५ ।। इ यु ा सा तदा दे वी ग भीरा तः मता जगौ । गा भगवती भ ा ययेदं धायते जगत् ।। ११६ ।।



ऋ ष कहते ह— ।। ११५ ।। तके य कहनेपर क याणमयी भगवती गादे वी, जो इस जगत्को धारण करती ह, मन-ही-मन ग भीर भावसे मुसकराय और इस कार बोल — ।। ११६ ।। दे ुवाच ।। ११७ ।। स यमु ं वया ना म या क च वयो दतम् । ैलो या धप तः शु भो नशु भ ा प ता शः ।। ११८ ।। क व य त ातं म या त यते कथम् । ूयताम पबु वा त ा या कृता पुरा ।। ११९ ।। यो मां जय त सं ामे यो मे दप पोह त । यो मे तबलो लोके स मे भता भ व य त ।। १२० ।। तदाग छतु शु भोऽ नशु भो वा महासुरः । मां ज वा क चरेणा पा ण गृ ातु मे लघु ।। १२१ ।। दे वीने कहा— ।। ११७ ।। त! तुमने स य कहा है, इसम त नक भी म या नह है। शु भ तीन लोक का वामी है और नशु भ भी उसीके समान परा मी है ।। ११८ ।। कतु इस वषयम मने जो त ा कर ली है, उसे म या कैसे क ँ । मने अपनी अ पबु के कारण पहलेसे जो त ा कर रखी है, उसको सुनो ।। ११९ ।। ‘जो मुझे सं ामम जीत लेगा, जो मेरे अ भमानको चूण कर दे गा तथा संसारम जो मेरे समान बलवान् होगा, वही मेरा वामी होगा’ ।। १२० ।। इस लये शु भ अथवा महादै य नशु भ वयं ही यहाँ पधार और मुझे जीतकर शी ही मेरा पा ण हण कर ल, इसम वल बक या आव यकता है ।। १२१ ।। त उवाच ।। १२२ ।। अव ल ता स मैवं वं दे व ू ह ममा तः । ैलो ये कः पुमां त ेद े शु भ नशु भयोः ।। १२३ ।। अ येषाम प दै यानां सव दे वा न वै यु ध । त त स मुखे दे व क पुनः ी वमे कका ।। १२४ ।। इ ा ाः सकला दे वा त थुयषां न संयुगे । शु भाद नां कथं तेषां ी या य स स मुखम् ।। १२५ ।। सा वं ग छ मयैवो ा पा शु भ नशु भयोः । केशाकषण नधूतगौरवा मा ग म य स ।। १२६ ।। त बोला— ।। १२३ ।। दे व! तुम घम डम भरी हो, मेरे सामने ऐसी बात न करो। तीन लोक म कौन ऐसा पु ष है, जो शु भ- नशु भके सामने खड़ा हो सके ।। १२३ ।। दे व! अ य दै य के सामने भी सारे दे वता यु म नह ठहर सकते, फर तुम अकेली ी होकर कैसे ठहर सकती हो ।। १२४ ।। जन शु भ आ द दै य के सामने इ आ द दे वता



भी यु म खड़े नह ए, उनके सामने तुम ी होकर कैसे जाओगी ।। १२५ ।। इस लये तुम मेरे ही कहनेसे शु भ- नशु भके पास चली चलो। ऐसा करनेसे तु हारे गौरवक र ा होगी; अ यथा जब वे केश पकड़कर घसीटगे, तब तु ह अपनी त ा खोकर जाना पड़ेगा ।। १२६ ।। दे ुवाच ।। १२७ ।। एवमेतद् बली शु भो नशु भ ा तवीयवान् । क करो म त ा मे यदनालो चता पुरा ।। १२८ ।। स वं ग छ मयो ं ते यदे त सवमा तः । तदाच वासुरे ाय स च यु ं करोतु तत्१ ।। ॐ ।। १२९ ।। दे वीने कहा— ।। १२७ ।। तु हारा कहना ठ क है, शु भ बलवान् ह और नशु भ भी बड़े परा मी ह; कतु या क ँ । मने पहले बना सोचे-समझे त ा कर ली है ।। १२८ ।। अतः अब तुम जाओ; मने तुमसे जो कुछ कहा है, वह सब दै यराजसे आदरपूवक कहना। फर वे जो उ चत जान पड़े, कर ।। १२९ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये दे ा तसंवादो नाम प चमोऽ यायः ।। ५ ।। उवाच ९, पा म ाः ६६, ोकाः ५४, एवम् १२९, एवमा दतः ।। ३३८ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘दे वी- त-संवाद’ नामक पाँचवाँ अ याय पूरा आ ।। ५ ।।



१. कसी- कसी तम इसके बाद ‘अ येषां चा धकरान् स वयमेवा ध त त’ इतना पाठ अ धक है। १. वृ यै स यै च णतां दे व त नमः न त कुम इ य वयः । यद् वा णम ती त ण तः, तेषाः ष ीब वचना तं बो यम् । इ त शा तन ां ट कायां प म् । ‘ णताः’ इ त पाठा तरम् । १. पा०—सम तैः। २. पा०—कोषा। ३. पा०—कौ षक । ४. पा०— ा प। १. पा०—इसके बाद कही-कह ‘शु भ उवाच’ इतना अ धक पाठ है। २. पा०—तां च दे व ततः। १. पा०—गजर ना न वा। २. पा० तं। १. पा०—यत्।



णता म त



ष ोऽ यायः धू लोचन-वध यान (ॐ नागाधी र व रां फ णफणी ंसो र नावलीभा व े हलतां दवाकर नभां ने यो ा सताम् । मालाकु भकपालनीरजकरां च ाधचूडां परां सव े रभैरवाङ् क नलयां प ावत च तये ।। म सव े र भैरवके अङ् कम नवास करनेवाली परमो कृ प ावती दे वीका च तन करता ँ। वे नागराजके आसनपर बैठ ह, नाग के फण म सुशो भत होनेवाली म णय क वशाल मालासे उनक दे हलता उ ा सत हो रही है। सूयके समान उनका तेज है, तीन ने उनक शोभा बढ़ा रहे ह। वे हाथ म माला, कु भ, कपाल और कमल लये ए ह तथा उनके म तकम अ च का मुकुट सुशो भत है।) ऋ ष वाच ।। १ ।। ‘ॐ इ याक य वचो दे ाः स तोऽमषपू रतः । समाच समाग य दै यराजाय व तरात् ।। २ ।। त य त य त ा यमाक यासुरराट् ततः । स ोधः ाह दै यानाम धपं धू लोचनम् ।। ३ ।। हे धू लोचनाशु वं वसै यप रवा रतः । तामानय बलाद् ां केशाकषण व लाम् ।। ४ ।। त प र ाणदः क द वो तेऽपरः । स ह त ोऽमरो वा प य ो ग धव एव वा ।। ५ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। दे वीका यह कथन सुनकर तको बड़ा अमष आ और उसने दै यराजके पास जाकर सब समाचार व तारपूवक कह सुनाया ।। २ ।। तके उस वचनको सुनकर दै यराज कु पत हो उठा और दै यसेनाप त धू लोचनसे बोला— ।। ३ ।। ‘धू लोचन! तुम शी अपनी सेना साथ लेकर जाओ और उस ाको केश पकड़कर घसीटते ए जबरद ती यहाँ ले आओ ।। ४ ।। उसक र ा करनेके लये य द कोई सरा खड़ा हो तो वह दे वता, य अथवा ग धव—कोई भी य न हो, उसे अव य मार डालना’ ।। ५ ।।



ऋ ष वाच ।। ६ ।। तेना त ततः शी ं स दै यो धू लोचनः । वृतः ष ा सह ाणामसुराणां तं ययौ ।। ७ ।। स ् वा तां ततो दे व तु हनाचलसं थताम् । जगादो चैः याही त मूलं शु भ नशु भयोः ।। ८ ।। न चे ी या भवती म तारमुपै य त । ततो बला या येष केशाकषण व लाम् ।। ९ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ६ ।। शु भके इस कार आ ा दे नेपर वह धू लोचन दै य साठ हजार असुर क सेनाको साथ लेकर वहाँसे तुरंत चल दया ।। ७ ।। वहाँ प ँचकर उसने हमालयपर रहनेवाली उन दे वीको दे खा और ललकारकर कहा—‘अरी! तू शु भ- नशु भके पास चल। य द इस समय स तापूवक मेरे वामीके समीप नह चलेगी तो म बलपूवक झ टा पकड़कर घसीटते ए तुझे ले चलूँगा’ ।। ८-९ ।।



दे ुवाच ।। १० ।। दै ये रेण हतो बलवान् बलसंवृतः । बला य स मामेवं ततः क ते करो यहम् ।। ११ ।। दे वी बोल — ।। १० ।। तु ह दै य के राजाने भेजा है, तुम वयं भी बलवान् हो और तु हारे साथ वशाल सेना भी है; ऐसी दशाम य द मुझे बलपूवक ले चलोगे तो म तु हारा या कर सकती ँ ।। ११ ।। ऋ ष वाच ।। १२ ।। इ यु ः सोऽ यधाव ामसुरो धू लोचनः । ंकारेणैव तं भ म सा चकारा बका ततः ।। १३ ।। अथ ु ं महासै यमसुराणां तथा बका१ । ववष सायकै ती णै तथा श पर धैः ।। १४ ।। ततो धुतसटः कोपा कृ वा नादं सुभैरवम् । पपातासुरसेनायां सहो दे ाः ववाहनः ।। १५ ।। कां त् कर हारेण दै याना येन चापरान् । आ



य२ चाधरेणा यान्३ स जघान४ महासुरान् ।। १६ ।।



केषां च पाटयामास नखैः को ा न केसरी५ । तथा तल हारेण शरां स कृतवान् पृथक् ।। १७ ।। व छ बा शरसः कृता तेन तथापरे । पपौ च धरं को ाद येषां धुतकेसरः ।। १८ ।। णेन तद्बलं सव यं नीतं महा मना । तेन केस रणा दे ा वाहनेना तको पना ।। १९ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १२ ।। दे वीके य कहनेपर असुर धू लोचन उनक ओर दौड़ा, तब अ बकाने ‘ ं’ श दके उ चारणमा से उसको भ म कर दया ।। १३ ।। फर तो ोधम भरी ई दै य क वशाल सेना और अ बकाने एक- सरेपर तीखे सायक , श य तथा फरस क वषा आर भ क ।। १४ ।। इतनेम ही दे वीका वाहन सह ोधम भरकर भयंकर गजना करके गदनके बाल को हलाता आ असुर क सेनाम कूद पड़ा ।। १५ ।। उसने कुछ दै य को पंज क मारसे, कतन को अपने जबड़ से और कतने ही महादै य को पटककर ओठक दाढ़ से घायल करके मार डाला ।। १६ ।। उस सहने अपने नख से कतन के पेट फाड़ डाले और थ पड़ मारकर कतन के सर धड़से अलग कर दये ।। १७ ।। कतन क भुजाएँ और म तक काट डाले तथा अपनी गदनके बाल हलाते ए उसने सरे दै य के पेट फाड़कर उनका र चूस लया ।। १८ ।। अ य त ोधम भरे



ए दे वीके वाहन उस महाबली सहने डाला ।। १९ ।।



णभरम ही असुर क सारी सेनाका संहार कर



ु वा तमसुरं दे ा नहतं धू लोचनम् । बलं च यतं कृ नं दे वीकेस रणा ततः ।। २० ।। चुकोप दै या धप तः शु भः फु रताधरः । आ ापयामास च तौ च डमु डौ महासुरौ ।। २१ ।। हे च ड हे मु ड बलैब भः प रवा रतौ । त ग छत ग वा च सा समानीयतां लघु ।। २२ ।। केशे वाकृ य बद् वा वा य द वः संशयो यु ध । तदाशेषायुधैः सवरसुरै व नह यताम् ।। २३ ।। त यां हतायां ायां सहे च व नपा तते ।



शी माग यतां बद् वा गृही वा तामथा बकाम् ।। ॐ ।। २४ ।। शु भने जब सुना क दे वीने धू लोचन असुरको मार डाला तथा उसके सहने सारी सेनाका सफाया कर डाला, तब उस दै यराजको बड़ा ोध आ। उसका ओठ काँपने लगा। उसने च ड और मु ड नामक दो महादै य को आ ा द — ।। २०-२१ ।। ‘हे च ड! और हे मु ड! तुमलोग ब त बड़ी सेना लेकर वहाँ जाओ और उस दे वीके झ टे पकड़कर अथवा उसे बाँधकर शी यहाँ ले आओ। य द इस कार उसको लानेम तु ह संदेह हो तो यु म सब कारके अ -श तथा सम त आसुरी सेनाका योग करके उसक ह या कर डालना ।। २२-२३ ।। उस ाक ह या होने तथा सहके भी मारे जानेपर उस अ बकाको बाँधकर साथ ले शी ही लौट आना ।। २४ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये शु भ नशु भसेनानीधू लोचनवधो नाम ष ोऽ यायः ।। ६ ।। उवाच ४, ोकाः २०, एवम् २४, एवमा दतः ।। ४१२ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘धू लोचन-वध’ नामक छठा अ याय पूरा आ ।। ६ ।।



१. पा०—तथा बकाम्। २. पा०—आ ा या। ३. पा०—चरणेना यान्। ४. यहाँ तीन तरहके पाठा तर मलते ह— संजघान, नजघान, जघान सु महा०। ५. पा०—केशरी। बंगला तम सब जगह ‘केसरी’ और ‘केसर’ श दम ताल ‘श’ का योग है।



स तमोऽ यायः च ड और मु डका वध यान (ॐ यायेयं र नपीठे शुककलप ठतं शृ वत यामला य तैकाङ् सरोजे श शशकलधरां व लक वादय तीम् । क ाराब मालां नय मत वलस चो लकां र व ां मात शङ् खपा ां मधुरमधुमदां च को ा सभालाम् ।। म मात दे वीका यान करता ँ। वे र नमय सहासनपर बैठकर पढ़ते ए तोतेका मधुर श द सुन रही ह। उनके शरीरका वण याम है। वे अपना एक पैर कमलपर रखे ए ह और म तकपर अधच धारण करती ह। क ार-पु प क माला धारण कये वीणा बजाती ह। उनके अ म कसी ई चोली शोभा पा रही है। लाल रंगक साड़ी पहने हाथम शङ् खमय पा लये ए ह। उनके वदनपर मधुका ह का-ह का नशा जान पड़ता है और ललाटम बद शोभा दे रही है।) ऋ ष वाच ।। १ ।। ‘ॐ’ आ ता ते ततो दै या डमु डपुरोगमाः । चतुर बलोपेता ययुर यु तायुधाः ।। २ ।। द शु ते ततो दे वीमीष ासां व थताम् । सह योप र शैले शृ े मह त का चने ।। ३ ।। ते ् वा तां समादातुमु मं च ु ताः । आकृ चापा सधरा तथा ये त समीपगाः ।। ४ ।। ततः कोपं चकारो चैर बका तानरीन् त । कोपेन चा या वदनं मषीवणमभू दा१ ।। ५ ।। ुकुट कु टला या ललाटफलकाद् तम् । काली करालवदना व न ा ता सपा शनी ।। ६ ।। व च खद्वा धरा नरमाला वभूषणा । पचमपरीधाना शु कमांसा तभैरवा ।। ७ ।। अ त व तारवदना ज ाललनभीषणा । नम ना र नयना नादापू रत दङ् मुखा ।। ८ ।। सा वेगेना भप तता घातय ती महासुरान् । सै ये त सुरारीणामभ यत तद्बलम् ।। ९ ।।



पा ण ाहाङ् कुश ा हयोधघ टासम वतान् । समादायैकह तेन मुखे च ेप वारणान् ।। १० ।। तथैव योधं तुरगै रथं सार थना सह । न य व े दशनै वय य तभैरवम्२ ।। ११ ।। एकं ज ाह केशेषु ीवायामथ चापरम् । पादे ना य चैवा यमुरसा यमपोथयत् ।। १२ ।। तैमु ा न च श ा ण महा ा ण तथासुरैः । मुखेन ज ाह षा दशनैम थता य प ।। १३ ।। ब लनां तद् बलं सवमसुराणां रा मनाम् । ममदाभ य चा यान यां ाताडय था ।। १४ ।। अ सना नहताः के च के च खट् वा ता डताः३ । ज मु वनाशमसुरा द ता ा भहता तथा ।। १५ ।। णेन तद् बलं सवमसुराणां नपा ततम् । ् वा च डोऽ भ ाव तां कालीम तभीषणाम् ।। १६ ।। शरवषमहाभीमैभ मा तां महासुरः । छादयामास च ै मु डः तैः सह शः ।। १७ ।। ता न च ा यनेका न वशमाना न त मुखम् । बभुयथाक ब बा न सुब न घनोदरम् ।। १८ ।। ततो जहासा त षा भीमं भैरवना दनी । काली करालव ा त दशदशनो वला ।। १९ ।। उ थाय च महा स हं दे वी च डमधावत । गृही वा चा य केशेषु शर तेना सना छनत्४ ।। २० ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। तदन तर शु भक आ ा पाकर वे च ड-मु ड आ द दै य चतुर णी सेनाके साथ अ -श से सुस जत हो चल दये ।। २ ।। फर ग रराज हमालयके सुवणमय ऊँचे शखरपर प ँचकर उ ह ने सहपर बैठ ई दे वीको दे खा। वे म द-म द मुसकरा रही थ ।। ३ ।। उ ह दे खकर दै यलोग त परतासे पकड़नेका उ ोग करने लगे। कसीने धनुष तान लया, कसीने तलवार सँभाली और कुछ लोग दे वीके पास आकर खड़े हो गये ।। ४ ।। तब अ बकाने उन श ु के त बड़ा ोध कया। उस समय ोधके कारण उनका मुख काला पड़ गया ।। ५ ।। ललाटम भ ह टे ढ़ हो गय और वहाँसे तुरंत वकरालमुखी काली कट , जो तलवार और पाश लये ए थ ।। ६ ।। व च खट् वा धारण कये और चीतेके चमक साड़ी पहने



नर-मु ड क मालासे वभू षत थ । उनके शरीरका मांस सूख गया था, केवल ह य का ढाँचा था, जससे वे अ य त भयंकर जान पड़ती थ ।। ७ ।। उनका मुख ब त वशाल था, जीभ लपलपानेके कारण वे और भी डरावनी तीत होती थ । उनक आँख भीतरको धँसी ई और लाल थ , वे अपनी भयंकर गजनासे स पूण दशा को गुँजा रही थ ।। ८ ।। बड़े-बड़े दै य का वध करती ई वे का लकादे वी बड़े वेगसे दै य क उस सेनापर टू ट पड़ और उन सबको भ ण करने लग ।। ९ ।। वे पा र क , अंकुशधारी महावत , यो ा और घंटास हत कतने ही हा थय को एक ही हाथसे पकड़कर मुँहम डाल लेती थ ।। १० ।। इसी कार घोड़े, रथ और सार थके साथ रथी सै नक को मुँहम डालकर वे उ ह बड़े भयानक पसे चबा डालती थ ।। ११ ।। कसीके बाल पकड़ लेत , कसीका गला दबा दे त , कसीको पैर से कुचल डालत और कसीको छातीके ध केसे गराकर मार डालती थ ।। १२ ।। वे असुर के छोड़े ए बड़े-बड़े अ -श मुँहसे पकड़ लेत और रोषम भरकर उनको दाँत से पीस डालत ।। १३ ।। कालीने बलवान् एवं रा मा दै य क वह सारी सेना र द डाली, खा डाली और कतन को मार भगाया ।। १४ ।। कोई तलवारके घाट उतारे गये, कोई खट् वा से पीटे गये और कतने ही असुर दाँत के अ भागसे कुचले जाकर मृ युको ा त ए ।। १५ ।। इस कार दे वीने असुर क उस सारी सेनाको णभरम मार गराया। यह दे ख च ड उन अ य त भयानक कालीदे वीक ओर दौड़ा ।। १६ ।। तथा महादै य मु डने भी अ य त भयङ् कर बाण क वषासे तथा हजार बार चलाये ए च से उन भयानक ने वाली दे वीको आ छा दत कर दया ।। १७ ।। वे अनेक च दे वीके मुखम समाते ए ऐसे जान पड़े, मानो सूयके ब तेरे म डल बादल के उदरम वेश कर रहे ह ।। १८ ।। तब भयङ् कर गजना करनेवाली कालीने अ य त रोषम भरकर वकट अ हास कया। उस समय उनके वकराल वदनके भीतर क ठनतासे दे खे जा सकनेवाले दाँत क भासे वे अ य त उ वल दखायी दे ती थ ।। १९ ।। दे वीने ब त बड़ी तलवार हाथम ले ‘हं’ का उ चारण करके च डपर धावा कया और उसके केश पकड़कर उसी तलवारसे उसका म तक काट डाला ।। २० ।।



अथ मु डोऽ यधाव ां ् वा च डं नपा ततम् । तम यपातय मौ सा खड् गा भहतं षा ।। २१ ।। हतशेषं ततः सै यं ् वा च डं नपा ततम् । मु डं च सुमहावीय दशो भेजे भयातुरम् ।। २२ ।। शर ड य काली च गृही वा मु डमेव च । ाह च डा हास म म ये य च डकाम् ।। २३ ।। मया तवा ोप तौ च डमु डौ महापशू । यु य े वयं शु भं नशु भं च ह न य स ।। २४ ।।



च डको मारा गया दे ख मु ड भी दे वीक ओर दौड़ा। तब दे वीने रोषम भरकर उसे भी तलवारसे घायल करके धरतीपर सुला दया ।। २१ ।। महापरा मी च ड और मु डको मारा गया दे ख मरनेसे बची ई बाक सेना भयसे ाकुल हो चार ओर भाग गयी ।। २२ ।। तदन तर कालीने च ड और मु डका म तक हाथम ले च डकाके पास जाकर च ड अ हास करते ए कहा— ।। २३ ।। ‘दे व! मने च ड और मु ड नामक इन दो महापशु को तु ह भट कया है। अब यु य म तुम शु भ और नशु भका वयं ही वध करना’ ।। २४ ।। ऋ ष वाच ।। २५ ।। तावानीतौ ततो ् वा च डमु डौ महासुरौ । उवाच काल क याणी ल लतं च डका वचः ।। २६ ।। य मा च डं च मु डं च गृही वा वमुपागता । चामु डे त ततो लोके याता दे व भ व य स ।। ॐ ।। २७ ।। ऋ ष कहते ह— ।। २५ ।। वहाँ लाये ए उन च ड-मु ड नामक महादै य को दे खकर क याणमयी च डीने कालीसे मधुर वाणीम कहा



— ।। २६ ।। दे व! तुम च ड और मु डको लेकर मेरे पास आयी हो, इस लये संसारम चामु डाके नामसे तु हारी या त होगी ।। २७ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये च डमु डवधो नाम स तमोऽ यायः ।। ७ ।। उवाच २, ोकाः २५, एवम् २७, एवमा दतः ।। ४३९ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘च ड-मु ड-वध’ नामक सातवाँ अ याय पूरा आ ।। ७ ।।



१. पा०—मसी०। २. पा०—य य त। ३. पा०—ता रणे। ४. शा तनवी ट काकारने यहाँ एक ोक अ धक पाठ माना है, जो इस कार है— ‘ छ े शर स दै ये े नादं सुभैरवम् । तेन नादे न महता ा सतं भुवन यम् ।। ’



अ मोऽ यायः र बीज-वध यान (‘ॐ’ अ णां क णातर ता धृतपाशाङ् कुशबाणचापह ताम् । अ णमा द भरावृतां मयूखैरह म येव वभावये भवानीम् ।। म अ णमा आ द स मयी करण से आवृत भवानीका यान करता ँ। उनके शरीरका रंग लाल है। ने म क णा लहरा रही है तथा हाथ म पाश, अङ् कुश, बाण और धनुष शोभा पाते ह।) ऋ ष वाच ।। १ ।। ‘ॐ’ च डे च नहते दै ये मु डे च व नपा तते । ब लेषु च सै येषु यते वसुरे रः ।। २ ।। ततः कोपपराधीनचेताः शु भः तापवान् । उ ोगं सवसै यानां दै यानामा ददे श ह ।। ३ ।। अ सवबलैद याः षडशी त दायुधाः । क बूनां चतुरशी त नया तु वबलैवृताः ।। ४ ।। को टवीया ण प चाशदसुराणां कुला न वै । शतं कुला न धौ ाणां नग छ तु ममा या ।। ५ ।। कालका दौ दा मौयाः कालकेया तथासुराः । यु ाय स जा नया तु आ या व रता मम ।। ६ ।। इ या ा यासुरप तः शु भो भैरवशासनः । नजगाम महासै यसह ैब भवृतः ।। ७ ।। आया तं च डका ् वा त सै यम तभीषणम् । या वनैः पूरयामास धरणीगगना तरम् ।। ८ ।। ततः१ सहो महानादमतीव कृतवान् नृप । घ टा वनेन त ादम बका२ चोपबृंहयत् ।। ९ ।। धनु या सहघ टानां नादापू रत दङ् मुखा । ननादै भ षणैः काली ज ये व ता रतानना ।। १० ।। तं ननादमुप ु य दै यसै यै तु दशम् । दे वी सह तथा काली सरोषैः प रवा रताः ।। ११ ।। एत म तरे भूप वनाशाय सुर षाम् ।



भवायामर सहानाम तवीयबला वताः ।। १२ ।। ेशगुह व णूनां तथे य च श यः । शरीरे यो व न यत प ू ै डकां ययुः ।। १३ ।। य य दे व य य प ू ं यथाभूषणवाहनम् । त दे व ह त छ रसुरान् योद्धुमाययौ ।। १४ ।। हंसयु वमाना े सा सू कम डलुः । आयाता णः श ाणी सा भधीयते ।। १५ ।। माहे री वृषा ढा शूलवरधा रणी । महा हवलया ा ता च रेखा वभूषणा ।। १६ ।। कौमारी श ह ता च मयूरवरवाहना । यो म याययौ दै यान बका गुह पणी ।। १७ ।। तथैव वै णवी श ग डोप र सं थता । शङ् खच गदाशा खड् गह ता युपाययौ ।। १८ ।। य वाराहमतुल३ं पं या ब तो४ हरेः । श ः सा याययौ त वाराह ब ती तनुम् ।। १९ ।। नार सही नृ सह य ब ती स शं वपुः । ा ता त सटा ेप तन संह तः ।। २० ।। व ह ता तथैवै गजराजोप र थता । ा ता सह नयना यथा श तथैव सा ।। २१ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। च ड और मु ड नामक दै य के मारे जाने तथा ब त-सी सेनाका संहार हो जानेपर दै य के राजा तापी शु भके मनम बड़ा ोध आ और उसने दै य क स पूण सेनाको यु के लये कूच करनेक आ ा द ।। २-३ ।। वह बोला—‘आज उदायुध नामके छयासी दै य-सेनाप त अपनी सेना के साथ यु के लये थान कर। क बु नामवाले दै य के चौरासी सेनानायक अपनी वा हनीसे घरे ए या ा कर ।। ४ ।। पचास को टवीय-कुलके और सौ धौ -कुलके असुर सेनाप त मेरी आ ासे सेनास हत कूच कर ।। ५ ।। कालक, दौ द, मौय और कालकेय असुर भी यु के लये तैयार हो मेरी आ ासे तुरंत थान कर’ ।। ६ ।। भयानक शासन करनेवाला असुरराज शु भ इस कार आ ा दे सह बड़ी-बड़ी सेना के साथ यु के लये थत आ ।। ७ ।। उसक अ य त भयंकर सेना आती दे ख च डकाने अपने धनुषक टं कारसे पृ वी और आकाशके बीचका भाग गुँजा दया ।। ८ ।। राजन्! तदन तर दे वीके सहने भी बड़े जोर-जोरसे दहाड़ना आर भ कया, फर अ बकाने घंटेके श दसे उस व नको और भी बढ़ा दया ।। ९ ।। धनुषक टं कार, सहक दहाड़ और घंटेक व नसे स पूण दशाएँ गूँज उठ । उस भयंकर श दसे कालीने अपने वकराल मुखको और भी बढ़ा लया तथा इस कार वे



वज यनी ।। १० ।। उस तुमुल नादको सुनकर दै य क सेना ने चार ओरसे आकर च डकादे वी, सह तथा कालीदे वीको ोधपूवक घेर लया ।। ११ ।। राजन्! इसी बीचम असुर के वनाश तथा दे वता के अ युदयके लये ा, शव, का तकेय, व णु तथा इ आ द दे व क श याँ, जो अ य त परा म और बलसे स प थ , उनके शरीर से नकलकर उ ह के पम च डकादे वीके पास गय ।। १२-१३ ।। जस दे वताका जैसा प, जैसी वेश-भूषा और जैसा वाहन है, ठ क वैसे ही साधन से स प हो उसक श असुर से यु करनेके लये आयी ।। १४ ।। सबसे पहले हंसयु वमानपर बैठ ई अ सू और कम डलुसे सुशो भत ाजीक श उप थत ई, जसे ाणी कहते ह ।। १५ ।। महादे वजीक श वृषभपर आ ढ़ हो हाथ म े शूल धारण कये महानागका कङ् कण पहने, म तकम च रेखासे वभू षत हो वहाँ आ प ँची ।। १६ ।।



का तकेयजीक श पा जगद बका उ ह का प धारण कये े मयूरपर आ ढ़ हो हाथम श लये दै य से यु करनेके लये आय ।। १७ ।। इसी कार भगवान् व णुक श ग ड़पर वराजमान हो शङ् ख, च , गदा, शा धनुष तथा खड् ग हाथम लये वहाँ आयी ।। १८ ।। अनुपम य वाराहका प धारण करनेवाले ीह रक जो श है, वह भी वाराह-शरीर धारण करके वहाँ उप थत ई ।। १९ ।। नार सही श भी नृ सहके समान शरीर धारण करके वहाँ आयी। उसक गदनके बाल के झटकेसे आकाशके तारे बखरे पड़ते थे ।। २० ।। इसी कार इ क श व हाथम लये गजराज ऐरावतपर बैठकर आयी। उसके भी सह ने थे। इ का जैसा प है, वैसा ही उसका भी था ।। २१ ।। ततः प रवृत ता भरीशानो दे वश भः । ह य तामसुराः शी ं मम ी याऽऽह च डकाम् ।। २२ ।। ततो दे वीशरीरा ु व न ा ता तभीषणा । च डकाश र यु ा शवाशत नना दनी ।। २३ ।। सा चाह धू ज टलमीशानमपरा जता । त वं ग छ भगवन् पा शु भ नशु भयोः ।। २४ ।। ू ह शु भं नशु भं च दानवाव तग वतौ । ये चा ये दानवा त यु ाय समुप थताः ।। २५ ।। ैलो य म ो लभतां दे वाः स तु ह वभुजः । यूयं यात पातालं य द जी वतु म छथ ।। २६ ।। बलावलेपादथ चे व तो यु काङ् णः । तदाग छत तृ य तु म छवाः प शतेन वः ।। २७ ।। यतो नयु ो दौ येन तया दे ा शवः वयम् । शव ती त लोकेऽ मं ततः सा या तमागता ।। २८ ।। तेऽ प ु वा वचो दे ाः शवा यातं महासुराः । अमषापू रता ज मुय १ का यायनी थता ।। २९ ।। ततः थममेवा े शरश यृ वृ भः । ववषु तामषा तां दे वीममरारयः ।। ३० ।। सा च तान् हतान् बाणा छू लश पर धान् । च छे द लीलयाऽऽ मातधनुमु ै महेषु भः ।। ३१ ।। त या त तथा काली शूलपात वदा रतान् । खट् वा पो थतां ारीन् कुवती चर दा ।। ३२ ।। कम डलुजला ेपहतवीयान् हतौजसः । ाणी चाकरो छ ून् येन येन म धाव त ।। ३३ ।।



माहे री शूलेन तथा च े ण वै णवी । दै या घान कौमारी तथा श या तकोपना ।। ३४ ।। ऐ कु लशपातेन शतशो दै यदानवाः । पेतु वदा रताः पृ ां धरौघ व षणः ।। ३५ ।। तु ड हार व व ता दं ा तव सः । वाराहमू या यपतं े ण च वदा रताः ।। ३६ ।। नखै वदा रतां ा यान् भ य ती महासुरान् । नार सही चचाराजौ नादापूण दग बरा ।। ३७ ।। च डा हासैरसुराः शव य भ षताः । पेतुः पृ थ ां प ततां तां खादाथ सा तदा ।। ३८ ।। तदन तर उन दे व-श य से घरे ए महादे वजीने च डकासे कहा—‘मेरी स ताके लये तुम शी ही इन असुर का संहार करो’ ।। २२ ।। तब दे वीके शरीरसे अ य त भयानक और परम उ च डका-श कट ई, जो सैकड़ गीद ड़य क भाँ त आवाज करनेवाली थी ।। २३ ।। उस अपरा जता दे वीने धू मल जटावाले महादे वजीसे कहा—‘भगवन्! आप शु भ- नशु भके पास त बनकर जाइये ।। २४ ।। और उन अ य त गव ले दानव शु भ एवं नशु भ—दोन से क हये। साथ ही उनके अ त र भी जो दानव यु के लये वहाँ उप थत ह , उनको भी यह संदेश द जये ।। २५ ।। ‘दै यो! य द तुम जी वत रहना चाहते हो तो पातालको लौट जाओ। इ को लोक का रा य मल जाय और दे वता य भागका उपभोग कर ।। २६ ।। य द बलके घमंडम आकर तुम यु क अ भलाषा रखते हो तो आओ। मेरी शवाएँ (यो ग नयाँ) तु हारे क चे मांससे तृ त ह ’ ।। २७ ।। चूँ क उस दे वीने भगवान् शवको तके कायम नयु कया था, इस लये वह ‘ शव ती’ के नामसे संसारम व यात ई ।। २८ ।। वे महादै य भी भगवान् शवके मुँहसे दे वीके वचन सुनकर ोधम भर गये और जहाँ का यायनी वराजमान थ , उस ओर बढ़े ।। २९ ।। तदन तर वे दै य अमषम भरकर पहले ही दे वीके ऊपर बाण, श और ऋ आ द अ क वृ करने लगे ।। ३० ।। तब दे वीने भी खेल-खेलम ही धनुषक टं कार क और उससे छोड़े ए बड़ेबड़े बाण ारा दै य के चलाये ए बाण, शूल, श और फरस को काट डाला ।। ३१ ।। फर काली उनके आगे होकर श ु को शूलके हारसे वद ण करने लगी और खट् वा से उनका कचूमर नकालती ई रणभू मम वचरने लगी ।। ३२ ।। ाणी भी जस- जस ओर दौड़ती, उसी-उसी ओर अपने कम डलुका जल छड़ककर श ु के ओज और परा मको न कर दे ती थी ।। ३३ ।। माहे रीने शूलसे तथा वै णवीने च से और अ य त ोधम भरी ई कुमार का तकेयक श ने श से दै य का संहार आर भ कया ।। ३४ ।। इ श के वज हारसे वद ण हो सैकड़ दै य-दानव र क धारा बहाते ए पृ वीपर सो गये ।। ३५ ।। वाराही श ने कतन को अपनी थूथुनक मारसे न कया,



दाढ़ के अ भागसे कतन क छाती छे द डाली तथा कतने ही दै य च क चोटसे वद ण हो गये ।। ३६ ।। नार सही भी सरे- सरे महादै य को अपने नख से वद ण करके खाती और सहनादसे दशा एवं आकाशको गुँजाती ई यु - े म वचरने लगी ।। ३७ ।। कतने ही असुर शव तीके च ड अ हाससे अ य त भयभीत हो पू वीपर गर पड़े और गरनेपर उ ह शव तीने उस समय अपना ास बना लया ।। ३८ ।।



इ त मातृगणं ु ं मदय तं महासुरान् । ् वा युपायै व वधैनशुदवा रसै नकाः ।। ३९ ।। पलायनपरान् ् वा दै यान् मातृगणा दतान् । यो म याययौ ु ो र बीजो महासुरः ।। ४० ।। र ब यदा भूमौ पत य य शरीरतः । समु पत त मे द यां१ त माण तदासुरः ।। ४१ ।। युयुधे स गदापा ण र श या महासुरः । तत ै वव ेण र बीजमताडयत् ।। ४२ ।। कु लशेनाहत याशु ब २ सु ाव शो णतम् । समु थु ततो योधा त प ू ा त परा माः ।। ४३ ।। याव तः प तता त य शरीरा ब दवः ।



ताव तः पु षा जाता त यबल व माः ।। ४४ ।। ते चा प युयुधु त पु षा र स भवाः । समं मातृ भर यु श पाता तभीषणम् ।। ४५ ।। पुन व पातेन तम य शरो यदा । ववाह र ं पु षा ततो जाताः सह शः ।। ४६ ।। वै णवी समरे चैनं च े णा भजघान ह । गदया ताडयामास ऐ तमसुरे रम् ।। ४७ ।। वै णवीच भ य धर ावस भवैः । सह शो जगद् तं त माणैमहासुरैः ।। ४८ ।। श या जघान कौमारी वाराही च तथा सना । माहे री शूलेन र बीजं महासुरम् ।। ४९ ।। स चा प गदया दै यः सवा एवाहनत् पृथक् । मातॄः कोपसमा व ो र बीजो महासुरः ।। ५० ।। त याहत य ब धा श शूला द भभु व । पपात यो वै र ौघ तेनास छतशोऽसुराः ।। ५१ ।। तै ासुरासृ स भूतैरसुरैः सकलं जगत् । ा तमासी तो दे वा भयमाज मु मम् ।। ५२ ।। तान् वष णान् सुरान् ् वा च डका ाह स वरा । उवाच काल चामु डे व तीण१ वदनं कु ।। ५३ ।। म छ पातस भूतान् र ब महासुरान् । र ब दोः ती छ वं व ेणानेन वे गना२ ।। ५४ ।। भ य ती चर रणे त प ा महासुरान् । एवमेष यं दै यः ीणर ो ग म य त ।। ५५ ।। भ यमाणा वया चो ा न चो प य त चापरे३ । इ यु वा तां ततो दे वी शूलेना भजघान तम् ।। ५६ ।। मुखेन काली जगृहे र बीज य शो णतम् । ततोऽसावाजघानाथ गदया त च डकाम् ।। ५७ ।। न चा या वेदनां च े गदापातोऽ पकाम प । त याहत य दे हा ु ब सु ाव शो णतम् ।। ५८ ।। यत तत त ेण चामु डा स ती छ त । मुखे समु ता येऽ या र पाता महासुराः । तां खादाथ चामु डा पपौ त य च शो णतम् ।। ५९ ।।



दे वी शूलेन व ेण४ बाणैर स भऋ भः । जघान र बीजं तं चामु डापीतशो णतम् ।। ६० ।। स पपात महीपृ े श सङ् घसमाहतः५ । नीर महीपाल र बीजो महासुरः ।। ६१ ।। तत ते हषमतुलमवापु दशा नृप ।। ६२ ।। तेषां मातृगणो जातो ननतासृङ्मदो तः ।। ॐ ।। ६३ ।। इस कार ोधम भरे ए मातृगण को नाना कारके उपाय से बड़े-बड़े असुर का मदन करते दे ख दै यसै नक भाग खड़े ए ।। ३९ ।। मातृगण से पी ड़त दै य को यु से भागते दे ख र बीज नामका महादै य ोधम भरकर यु के लये आया ।। ४० ।। उसके शरीरसे जब र क बूँद पृ वीपर गरती, तब उसीके समान श शाली एक सरा महादै य पृ वीपर पैदा हो जाता ।। ४१ ।। महासुर र बीज हाथम गदा लेकर इ श के साथ यु करने लगा। तब ऐ ने अपने व से र बीजको मारा ।। ४२ ।। व से घायल होनेपर उसके शरीरसे ब त-सा र चूने लगा और उससे उसीके समान प तथा परा मवाले यो ा उ प होने लगे ।। ४३ ।। उसके शरीरसे र क जतनी बूँद गर , उतने ही पु ष उ प हो गये। वे सब र बीजके समान ही वीयवान्, बलवान् तथा परा मी थे ।। ४४ ।। वे र से उ प होनेवाले पु ष भी अ य त भचङ् कर अ -श का हार करते ए वहाँ मातृगण के साथ घोर यु करने लगे ।। ४५ ।। पुनः व के हारसे जब उसका म तक घायल आ तो र बहने लगा और उससे हजार पु ष उ प हो गये ।। ४६ ।। वै णवीने यु म र बीजपर च का हार कया तथा ऐ ने उस दै य-सेनाप तको गदासे चोट प ँचायी ।। ४७ ।। वै णवीके च से घायल होनेपर उसके शरीरसे जो र बहा और उससे जो उसीके बराबर आकारवाले सह महादै य कट ए, उनके ारा स पूण जगत् ा त हो गया ।। ४८ ।। कौमारीने श से, वाराहीने खड् गसे और माहे रीने शूलसे महादै य र बीजको घायल कया ।। ४९ ।। ोधम भरे ए उस महादै य र बीजने भी गदासे सभी मातृ-श य पर पृथक्-पृथक् हार कया ।। ५० ।। श और शूल आ दसे अनेक बार घायल होनेपर जो उसके शरीरसे र क धारा पृ वीपर गरी, उससे भी न य ही सैकड़ असुर उ प ए ।। ५१ ।। इस कार उस महादै यके र से कट ए असुर ारा स पूण जगत् ा त हो गया। इससे दे वता को बड़ा भय आ ।। ५२ ।। दे वता को उदास दे ख च डकाने कालीसे शी तापूवक कहा—‘चामु डे! तुम अपना मुख और भी फैलाओ ।। ५३ ।। तथा मेरे श पातसे गरनेवाले र ब और उनसे उ प होनेवाले महादै य को तुम अपने इस उतावले मुखसे खा जाओ ।। ५४ ।। इस कार र से उ प होनेवाले महादै य का भ ण करती ई तुम रणम वचरती रहो। ऐसा करनेसे उस दै यका सारा र ीण हो जानेपर वह वयं भी न हो जायगा ।। ५५ ।। उन भयङ् कर दै य को



जब तुम खा जाओगी तो सरे नये दै य उ प नह हो सकगे।’ कालीसे य कहकर च डका दे वीने शूलसे र बीजको मारा ।। ५६ ।। और कालीने अपने मुखम उसका र ले लया। तब उसने वहाँ च डकापर गदासे हार कया ।। ५७ ।। कतु उस गदापातने दे वीको त नक भी वेदना नह प ँचायी। र बीजके घायल शरीरसे ब त-सा र गरा ।। ५८ ।। कतु य ही वह गरा य ही चामु डाने उसे अपने मुखम ले लया। र गरनेसे कालीके मुखम जो महादै य उ प ए, उ ह भी वह चट कर गयी और उसने र बीजका र भी पी लया ।। ५९ ।। तदन तर दे वीने र बीजको, जसका र चामु डाने पी लया था, व , बाण, खड् ग तथा ऋ आ दसे मार डाला ।। ६० ।। राजन्! इस कार श के समुदायसे आहत एवं र हीन आ महादै य र बीज पृ वीपर गर पड़ा । नरे र! इससे दे वता को अनुपम हषक ा त ई ।। ६१-६२ ।। और मातृगण उन असुर के र पानके मदसे उ त-सा होकर नृ य करने लगा ।। ६३ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये र बीजवधो नामा मोऽ यायः ।। ८ ।। उवाच १, अध ोकः १, ोकाः ६१, एवम् ६३, एवमा दतः ।। ५०२ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘र बीज-वध’ नामक आठवाँ अ याय पूरा आ ।। ८ ।।



१. पा०—स च। २. पा०—ता ादान बका। ३. पा०—ज े वाराह०। ४. पा०—ती। १. पा०—ज मुयतः। १. पा०— या त०। २. पा०—त य १. पा०— व तरं। २. पा०—वे गता। ३. इसके बाद कह -कह ‘ऋ ष वाच’ इतना अ धक पाठ है। ४. पा०—च े ण। ५. पा०—श संह ततो हतः ।



नवमोऽ यायः नशु भ-वध यान (ॐ ब धूकका चन नभं चरा मालां पाशाङ् कुशौ च वरदां नजबा द डैः । ब ाण म शकलाभरणं ने मधा बकेशम नशं वपुरा या म ।। म अधनारी रके ी व हक नर तर शरण लेता ँ। उसका वण ब धूकपु प और सुवणके समान र -पीत म त है। वह अपनी भुजा म सु दर अ माला, पाश, अंकुश और वरद-मु ा धारण करता है; अधच उसका आभूषण है तथा वह तीन ने से सुशो भत है।) राजोवाच ।। १ ।। ‘ॐ’ व च मदमा यातं भगवन् भवता मम । दे ा रतमाहा यं र बीजवधा तम् ।। २ ।। भूय े छा यहं ोतुं र बीजे नपा तते । चकार शु भो य कम नशु भ ा तकोपनः ।। ३ ।। राजाने कहा— ।। १ ।। भगवन्! आपने र बीजके वधसे स ब ध रखनेवाला दे वीच र का यह अ त माहा य मुझे बतलाया ।। २ ।। अब र बीजके मारे जानेपर अ य त ोधम भरे ए शु भ और नशु भने जो कम कया, उसको म सुनना चाहता ँ ।। ३ ।। ऋ ष वाच ।। ४ ।। चकार कोपमतुलं र बीजे नपा तते । शु भासुरो नशु भ हते व येषु चाहवे ।। ५ ।। ह यमानं महासै यं वलो यामषमु हन् । अ यधाव शु भोऽथ मु ययासुरसेनया ।। ६ ।। त या त तथा पृ े पा यो महासुराः । संद ौ पुटाः ु ा ह तुं दे वीमुपाययुः ।। ७ ।। आजगाम महावीयः शु भोऽ प वबलैवृतः । नह तुं च डकां कोपा कृ वा यु ं तु मातृ भः ।। ८ ।। ततो यु मतीवासी े ा शु भ नशु भयोः । शरवषमतीवो ं मेघयो रव वषतोः ।। ९ ।।



च छे दा ता छरां ता यां च डका वशरो करैः१ । ताडयामास चा े षु श ौघैरसुरे रौ ।। १० ।। नशु भो न शतं खड् गं चम चादाय सु भम् । अताडय मू न सहं दे ा वाहनमु मम् ।। ११ ।। ता डते वाहने दे वी ुर ेणा समु मम् । नशु भ याशु च छे द चम चा य च कम् ।। १२ ।। छ े चम ण खड् गे च श च ेप सोऽसुरः । ताम य य धा च े चकेणा भमुखागताम् ।। १३ ।। कोपा मातो नशु भोऽथ शूलं ज ाह दानवः । आयातं२ मु पातेन दे वी त चा यचूणयत् ।। १४ ।। आ व याथ३ गदां सोऽ प च ेप च डकां त । सा प दे ा शूलेन भ ा भ म वमागता ।। १५ ।। ततः परशुह तं तमाया तं दै यपु वम् । आह य दे वी बाणौघैरपातयत भूतले ।। १६ ।। त म प तते भूमौ नशु भे भीम व मे । ातयतीव सं ु ः ययौ ह तुम बकाम् ।। १७ ।। स रथ थ तथा यु चैगृहीतपरमायुधैः । भुजैर ा भरतुलै ा याशेषं बभौ नभः ।। १८ ।। तमाया तं समालो य दे वी शङ् खमवादयत् । याश दं चा प धनुष कारातीव ःसहम् ।। १९ ।। पूरयामास ककुभो नजघ टा वनेन च । सम तदै यसै यानां तेजोवध वधा यना ।। २० ।। ततः सहो महानादै या जतेभमहामदै ः । पूरयामास गगनं गां तथैव४ दशो दश ।। २१ ।। ततः काली समु प य गगनं मामताडयत् । करा यां त नादे न ा वना ते तरो हताः ।। २२ ।। अ ा हासम शवं शव ती चकार ह । तैः श दै रसुरा ेसुः शु भः कोपं परं ययौ ।। २३ ।। रा मं त त े त ाजहारा बका यदा । तदा जये य भ हतं दे वैराकाशसं थतैः ।। २४ ।। शु भेनाग य या श मु ा वाला तभीषणा । आया ती व कूटाभा सा नर ता महो कया ।। २५ ।।



सहनादे न शु भ य ा तं लोक या तरम् । नघात नः वनो घोरो जतवानवनीपते ।। २६ ।। शु भमु ा छरा दे वी शु भ त हता छरान् । च छे द वशरै ैः शतशोऽथ सह शः ।। २७ ।। ततः सा च डका ु ा शूलेना भजघान तम् । स तदा भहतो भूमौ मू छतो नपपात ह ।। २८ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ४ ।। राजन्! यु म र बीज तथा अ य दै य के मारे जानेपर शु भ और नशु भके ोधक सीमा न रही ।। ५ ।। अपनी वशाल सेना इस कार मारी जाती दे ख नशु भ अमषम भरकर दे वीक ओर दौड़ा। उसके साथ असुर क धान सेना थी ।। ६ ।। उसके आगे, पीछे तथा पा भागम बड़े-बड़े असुर थे, जो ोधसे ओठ चबाते ए दे वीको मार डालनेके लये आये ।। ७ ।। महापरा मी शु भ भी अपनी सेनाके साथ मातृगण से यु करके ोधवश च डकाको मारनेके लये आ प ँचा ।। ८ ।। तब दे वीके साथ शु भ और नशु भका घोर सं ाम छड़ गया। वे दोन दै य मेघ क भाँ त बाण क भयंकर वृ कर रहे थे ।। ९ ।। उन दोन के चलाये ए बाण को च डकाने अपने बाण के समूहसे तुरंत काट डाला और श समूह क वषा करके उन दोन दै यप तय के अ म भी चोट प ँचायी ।। १० ।। नशु भने तीखी तलवार और चमकती ई ढाल लेकर दे वीके े वाहन सहके म तकपर हार कया ।। ११ ।। अपने वाहनको चोट प ँचनेपर दे वीने ुर नामक बाणसे नशु भक े तलवार तुरंत ही काट डाली और उसक ढालको भी, जसम आठ चाँद जड़े थे, ख ड-ख ड कर दया ।। १२ ।। ढाल और तलवारके कट जानेपर उस असुरने श चलायी, कतु सामने आनेपर दे वीने च से उसके भी दो टु कड़े कर दये ।। १३ ।। अब तो नशु भ ोधसे जल उठा और उस दानवने दे वीको मारनेके लये शूल उठाया; कतु दे वीने समीप आनेपर उसे भी मु केसे मारकर चूण कर दया ।। १४ ।। तब उसने गदा घुमाकर च डीके ऊपर चलायी, परंतु वह भी दे वीके शूलसे कटकर भ म हो गयी ।। १५ ।। तदन तर दै यराज नशु भको फरसा हाथम लेकर आते दे ख दे वीने बाणसमूह से घायलकर धरतीपर सुला दया ।। १६ ।। उस भयंकर परा मी भाई नशु भके धराशायी हो जानेपर शु भको बड़ा ोध आ और अ बकाका वध करनेके लये वह आगे बढ़ा ।। १७ ।। रथपर बैठे-बैठे ही उ म आयुध से सुशो भत अपनी बड़ीबड़ी आठ अनुपम भुजा से समूचे आकाशको ढककर वह अ त शोभा पाने लगा ।। १८ ।। उसे आते दे ख दे वीने शङ् ख बजाया और धनुषक य चाका भी अ य त सह श द कया ।। १९ ।। साथ ही अपने घंटेके श दसे, जो सम त दै य-सै नक का तेज न करनेवाला था, स पूण दशा को ा त कर दया ।। २० ।। तदन तर सहने भी अपनी दहाड़से, जसे सुनकर बड़े-बड़े गजराज का महान् मद र हो जाता था, आकाश, पृ वी और दस दशा को गुँजा दया ।। २१ ।। फर कालीने आकाशम उछलकर अपने



दोन हाथ से पृ वीपर आघात कया। उससे ऐसा भयंकर श द आ, जससे पहलेके सभी श द शा त हो गये ।। २२ ।। त प ात् शव तीने दै य के लये अम लजनक अ हास कया, इन श द को सुनकर सम त असुर थरा उठे ; कतु शु भको बड़ा ोध आ ।। २३ ।। उस समय दे वीने जब शु भको ल य करके कहा—‘ओ रा मन्! खड़ा रह, खड़ा रह,’ तभी आकाशम खड़े ए दे वता बोल उठे , ‘जय हो, जय हो’ ।। २४ ।। शु भने वहाँ आकर वाला से यु अ य त भयानक श चलायी। अ नमय पवतके समान आती ई उस श को दे वीने बड़े भारी लूकेसे र हटा दया ।। २५ ।। उस समय शु भके सहनादसे तीन लोक गूँज उठे । राजन्! उसक त व नसे व पातके समान भयानक श द आ, जसने अ य सब श द को जीत लया ।। २६ ।। शु भके चलाये ए बाण के दे वीने और दे वीके चलाये ए बाण के शु भने अपने भयंकर बाण ारा सैकड़ और हजार टु कड़े कर दये ।। २७ ।। तब ोधम भरी ई च डकाने शु भको शूलसे मारा। उसके आघातसे मू छत हो वह पृ वीपर गर पड़ा ।। २८ ।।



ततो नशु भः स ा य चेतनामा कामुकः । आजघान शरैदव काल केस रणं तथा ।। २९ ।। पुन कृ वा बा नामयुतं दनुजे रः । च ायुधेन द तज छादयामास च डकाम् ।। ३० ।। ततो भगवती ु ा गा गा तना शनी । च छे द ता न च ा ण वशरैः सायकां तान् ।। ३१ ।। ततो नशु भो वेगेन गदामादाय च डकाम् । अ यधावत वै ह तुं दै यसेनासमावृतः ।। ३२ ।। त यापतत एवाशु गदां च छे द च डका । खड् गेन शतधारेण स च शूलं समाददे ।। ३३ ।। शूलह तं समाया तं नशु भममरादनम् । द व ाध शूलेन वेगा व े न च डका ।। ३४ ।। भ य त य शूलेन दया ःसृतोऽपरः । महाबलो महावीय त े त पु षो वदन् ।। ३५ ।। त य न ामतो दे वी ह य वनव तः । शर छे द खड् गेन ततोऽसावपत व ।। ३६ ।। ततः सह खादो १ं दं ा ु ण शरोधरान् । असुरां तां तथा काली शव ती तथापरान् ।। ३७ ।। कौमारीश न भ ाः के च ेशुमहासुराः । ाणीम पूतेन तोयेना ये नराकृताः ।। ३८ ।। माहे री शूलेन भ ाः पेतु तथापरे । वाराहीतु डघातेन के च चूण कृता भु व ।। ३९ ।। ख डं२ ख डं च च े ण वै ण ा दानवाः कृताः । व ेण चै ह ता वमु े न तथापरे ।। ४० ।। के च नेशुरसुराः के च ा महाहवात् । भ ता ापरे काली शव ती मृगा धपैः ।। ॐ ।। ४१ ।। इतनेम ही नशु भको चेतना ई और उसने धनुष हाथम लेकर बाण ारा दे वी, काली तथा सहको घायल कर डाला ।। २९ ।। फर उस दै यराजने दस हजार बाँह बनाकर च के हारसे च डकाको आ छा दत कर दया ।। ३० ।। तब गम पीड़ाका नाश करनेवाली भगवती गाने कु पत होकर अपने बाण से उन च तथा बाण को काट गराया ।। ३१ ।। यह दे ख नशु भ दै यसेनाके साथ च डकाका वध करनेके लये हाथम गदा ले बड़े वेगसे दौड़ा ।। ३२ ।। उसके आते ही च डीने तीखी धारवाली तलवारसे उसक



गदाको शी ही काट डाला। तब उसने शूल हाथम लया ।। ३३ ।। दे वता को पीड़ा दे नेवाले नशु भको शूल हाथम लये आते दे ख च डकाने वेगसे चलाये ए अपने शूलसे उसक छाती छे द डाली ।। ३४ ।। शूलसे वद ण हो जानेपर उसक छातीसे एक सरा महाबली एवं महापरा मी पु ष ‘खड़ी रह, खड़ी रह’ कहता आ नकला ।। ३५ ।। उस नकलते ए पु षक बात सुनकर दे वी ठठाकर हँस पड़ और खड् गसे उ ह ने उसका म तक काट डाला। फर तो वह पृ वीपर गर पड़ा ।। ३६ ।। तदन तर सह अपनी दाढ़ से असुर क गदन कुचलकर खाने लगा, यह बड़ा भयंकर य था। उधर काली तथा शव तीने भी अ या य दै य का भ ण आर भ कया ।। ३७ ।। कौमारीक श से वद ण होकर कतने ही महादै य न हो गये। ाणीके म पूत जलसे न तेज होकर कतने ही भाग खड़े ए ।। ३८ ।। कतने ही दै य माहे रीके शूलसे छ - भ हो धराशायी हो गये। वाराहीके थूथुनके आघातसे कतन का पृ वीपर कचूमर नकल गया ।। ३९ ।। वै णवीने भी अपने च से दानव के टु कड़े-टु कड़े कर डाले। ऐ के हाथसे छू टे ए व से भी कतने ही ाण से हाथ धो बैठे ।। ४० ।। कुछ असुर न हो गये, कुछ उस महायु से भाग गये तथा कतने ही काली, शव ती तथा सहके ास बन गये ।। ४१ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये नशु भवधो नाम नवमोऽ यायः ।। ९ ।। उवाच २, ोकाः ३९, एवम् ४१, एवमा दतः ।। ५४३ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘ नशु भ-वध’ नामक नवाँ अ याय पूरा आ ।। ९ ।।



१. पा०—ऽऽशु शरो करैः। २. पा०—आया तं। ३. पा०—अथादाय। ४. पा०—तथोप दशो। १. पा०—दो दं ा०। २. पा०—ख डख डं।



दशमोऽ यायः शु भ-वध यान (‘ॐ’ उ तहेम चरां र वच व ने ां धनु शरयुताङ् कुशपाशशूलम् । र यैभुजै दधत शवश पां कामे र द भजा म धृते लेखाम् ।। म म तकपर अ च धारण करनेवाली शवश व पा भगवती कामे रीका दयम च तन करता ँ। वे तपाये ए सुवणके समान सु दर ह। सूय, च मा और अ न— ये ही तीन उनके ने ह तथा वे अपने मनोहर हाथ म धनुष-बाण, अंकुश, पाश और शूल धारण कये ए ह।) ऋ ष वाच ।। १ ।। ‘ॐ’ नशु भं नहतं ् वा ातरं ाणस मतम् । ह यमानं बलं चैव शु भः ु ोऽ वी चः ।। २ ।। बलावलेपा १े वं मा ग गवमावह । अ यासां बलमा य यु से या तमा ननी ।। ३ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। राजन्! अपने ाण के समान यारे भाई नशु भको मारा गया दे ख तथा सारी सेनाका संहार होता जान शु भने कु पत होकर कहा— ।। २ ।। ‘ ग! तू बलके अ भमानम आकर झूठ-मूठका घमंड न दखा। तू बड़ी मा ननी बनी ई है, क तु सरी य के बलका सहारा लेकर लड़ती है’ ।। ३ ।। दे ुवाच ।। ४ ।। एकैवाहं जग य तीया का ममापरा । प यैता म येव वश यो म भूतयः२ ।। ५ ।। दे वी बोल — ।। ४ ।। ओ ! म अकेली ही ँ। इस संसारम मेरे सवा सरा कौन है। दे ख, ये मेरी ही वभू तयाँ ह, अतः मुझम ही वेश कर रही ह ।। ५ ।। ततः सम ता ता दे ो ाणी मुखा लयम् । त या दे ा तनौ ज मुरेकैवासी दा बका ।। ६ ।। तदन तर ाणी आ द सम त दे वयाँ अ बका दे वीके शरीरम लीन हो गय । उस समय केवल अ बका दे वी ही रह गय ।। ६ ।। दे ुवाच ।। ७ ।।



अहं वभू या ब भ रह पैयदा थता । त सं तं मयैकैव त ा याजौ थरो भव ।। ८ ।। दे वी बोल — ।। ७ ।। म अपनी ऐ यश से अनेक प म यहाँ उप थत ई थी। उन सब प को मने समेट लया। अब अकेली ही यु म खड़ी ँ। तुम भी थर हो जाओ ।। ८ ।।



ऋ ष वाच ।। ९ ।। ततः ववृते यु ं दे ाः शु भ य चोभयोः । प यतां सवदे वानामसुराणां च दा णम् ।। १० ।। शरवषः शतैः श ै तथा ै ैव दा णैः । तयोयु मभू यः सवलोकभयङ् करम् ।। ११ ।। द ा य ा ण शतशो मुमुचे या यथा बका । बभ ता न दै ये त तीघातकतृ भः ।। १२ ।। मु ा न तेन चा ा ण द ा न परमे री ।



बभ लीलयैवो ङ् कारो चारणा द भः१ ।। १३ ।। ततः शरशतैदवीमा छादयत सोऽसुरः । सा प२ त कु पता दे वी धनु छे द चेषु भः ।। १४ ।। छ े धनु ष दै ये तथा श मथाददे । च छे द दे वी च े ण ताम य य करे थताम् ।। १५ ।। ततः खड् गमुपादाय शतच ं च भानुमत् । अ यधाव दा३ दे व दै यानाम धपे रः ।। १६ ।। त यापतत एवाशु खड् गं च छे द च डका । धनुमु ै ः शतैबाणै म चाककरामलम्४ ।। १७ ।। हता ः स तदा दै य छ ध वा वसार थः । ज ाह मु रं घोरम बका नधनो तः ।। १८ ।। च छे दापतत त य मुदगरं ् न शतैः शरैः । तथा प सोऽ यधाव ां मु मु य वेगवान् ।। १९ ।। स मु पातयामास दये दै यपु वः । दे ा तं चा प सा दे वी तलेनोर यताडयत् ।। २० ।। तल हारा भहतो नपपात महीतले । स दै यराजः सहसा पुनरेव तथो थतः ।। २१ ।। उ प य च गृ ो चैदव गगनमा थतः । त ा प सा नराधारा युयुधे तेन च डका ।। २२ ।। नयु ं खे तदा दै य डका च पर परम् । च तुः थमं स मु न व मयकारकम् ।। २३ ।। ततो नयु ं सु चरं कृ वा तेना बका सह । उ पा य ामयामास च ेप धरणीतले ।। २४ ।। स तो धरण ा य मु मु य वे गतः५ । अ यधावत ा मा च डका नधने छया ।। २५ ।। तमाया तं ततो दे वी सवदै यजने रम् । जग यां पातयामास भ वा शूलेन व स ।। २६ ।। स गतासुः पपातो ा दे वीशूला व तः । चालयन् सकलां पृ व सा ध पां सपवताम् ।। २७ ।। ततः स म खलं हते त मन् रा म न । जग वा यमतीवाप नमलं चाभव भः ।। २८ ।। उ पातमेघाः सो का ये ागासं ते शमं ययुः ।



स रतो मागवा ह य तथासं त पा तते ।। २९ ।। ततो दे वगणाः सव हष नभरमानसाः । बभूवु नहते त मन् ग धवा ल लतं जगुः ।। ३० ।। अवादयं तथैवा ये ननृतु ा सरोगणाः । ववुः पु या तथा वाताः सु भोऽभू वाकरः ।। ३१ ।। ज वलु ा नयः शा ताः शा ता द ज नत वनाः ।। ॐ ।। ३२ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ९ ।। तदन तर दे वी और शु भ दोन म सब दे वता तथा दानव के दे खते-दे खते भयङ् कर यु छड़ गया ।। १० ।। बाण क वषा तथा तीखे श एवं दा ण अ के हारके कारण उन दोन का यु सब लोग के लये बड़ा भयानक तीत आ ।। ११ ।। उस समय अ बका दे वीने जो सैकड़ द अ छोड़े, उ ह दै यराज शु भने उनके नवारक अ ारा काट डाला ।। १२ ।। इसी कार शु भने भी जो द अ चलाये, उ ह परमे रीने भयङ् कर ङ् कार श दके उ चारण आ द ारा खलवाड़म ही न कर डाला ।। १३ ।। तब उस असुरने सैकड़ बाण से दे वीको आ छा दत कर दया। यह दे ख ोधम भरी ई उन दे वीने भी बाण मारकर उसका धनुष काट डाला ।। १४ ।। धनुष कट जानेपर फर दै यराजने श हाथम ली, क तु दे वीने च से उसके हाथक श को भी काट गराया ।। १५ ।। त प ात् दै य के वामी शु भने सौ चाँदवाली चमकती ई ढाल और तलवार हाथम ले उस समय दे वीपर धावा कया ।। १६ ।। उसके आते ही च डकाने अपने धनुषसे छोड़े ए तीखे बाण ारा उसक सूय- करण के समान उ वल ढाल और तलवारको तुरंत काट दया ।। १७ ।। फर उस दै यके घोड़े और सार थ मारे गये, धनुष तो पहले ही कट चुका था, अब उसने अ बकाको मारनेके लये उ त हो भयंकर मु र हाथम लया ।। १८ ।। उसे आते दे ख दे वीने अपने ती ण बाण से उसका मु र भी काट डाला, तसपर भी वह असुर मु का तानकर बड़े वेगसे दे वीक ओर झपटा ।। १९ ।। उस दै यराजने दे वीक छातीम मु का मारा, तब उन दे वीने भी उसक छातीम एक चाँटा जड़ दया ।। २० ।। दे वीका थ पड़ खाकर दै यराज शु भ पृ वीपर गर पड़ा, क तु पुनः सहसा पूववत् उठकर खड़ा हो गया ।। २१ ।। फर वह उछला और दे वीको ऊपर ले जाकर आकाशम खड़ा हो गया; तब च डका आकाशम भी बना कसी आधारके ही शु भके साथ यु करने लग ।। २२ ।। उस समय दै य और च डका आकाशम एक- सरेसे लड़ने लगे। उनका वह यु पहले स और मु नय को व मयम डालनेवाले आ ।। २३ ।। फर अ बकाने शु भके साथ ब त दे रतक यु करनेके प ात् उसे उठाकर घुमाया और पृ वीपर पटक दया ।। २४ ।। पटके जानेपर पृ वीपर आनेके बाद वह ा मा दै य पुनः च डकाका वध करनेके लये उनक ओर बड़े वेगसे दौड़ा ।। २५ ।। तब सम त दै य के राजा शु भको अपनी ओर आते दे ख दे वीने शूलसे डसक छाती छे दकर उसे पृ वीपर गरा दया ।। २६ ।। दे वीके शूलक धारसे



घायल होनेपर उसके ाण-पखे उड़ गये और वह समु , प तथा पवत स हत समूची पृ वीको कँपाता आ भू मपर गर पड़ा ।। २७ ।। तदन तर उस रा माके मारे जानेपर स पूण जगत् स एवं पूण व थ हो गया। आकाश व छ दखायी दे ने लगा ।। २८ ।। पहले जो उ पातसूचक मेघ और उ कापात होते थे, वे सब शा त हो गये तथा उस दै यके मारे जानेपर न दयाँ भी ठ क मागसे बहने लग ।। २९ ।। उस समय शु भक मृ युके बाद स पूण दे वता का दय हषसे भर गया और ग धवगण मधुर गीत गाने लगे ।। ३० ।। सरे ग धव बाजे बजाने लगे और अ सराएँ नाचने लग । प व वायु बहने लगी। सूयक भा उ म हो गयी ।। ३१ ।। अ नशालाक बुझी ई आग अपने-आप व लत हो उठ तथा स पूण दशा के भयङ् कर श द शा त हो गये ।। ३२ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये शु भवधो नाम दशमोऽ यायः ।। १० ।। उवाच ४, अध ोकः १, ोकाः २७, एवम् ३२, एवमा दतः ।। ५७५ ।।



इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘शु भ-वध’ नामक दसवाँ अ याय पूरा आ ।। १० ।।



१. पा०—प ०। २. इसके बाद कसी- कसी तम ‘ऋ ष वाच’ इतना अ धक पाठ है। १. पा०— ०। २. पा०—सा च। ३. पा०—वत तां ह तुं दै या०। ४. इसके बाद कसी- कसी पातयामास रथं सार थना सह।’ इतना अ धक पाठ है। ५. पा०—वेगवान्।



तम—‘अ ां



एकादशोऽ यायः दे वता



ारा दे वीक तु त तथा दे वी ारा दे वता वरदान



को



यान (बालर व ु त म करीटां तु कुचां नयन ययु ाम् । मेरमुख वरदाङ् कुशपाशाभी तकरां भजे भुवनेशीम् ।। म भुवने री दे वीका यान करता ँ। उनके ीअ क आभा भातकालके सूयके समान है। म तकपर च माका मुकुट है। वे उभरे ए तन और तीन ने से यु ह। उनके मुखपर मुसकानक छटा छायी रहती है और हाथ म वरद, अंकुश, पाश एवं अभय-मु ा शोभा पाते ह।) ऋ ष वाच ।। १ ।। ‘ॐ’ दे ा हते त महासुरे े से ाः सुरा व पुरोगमा ताम् । का यायन तु ु वु र लाभाद्१ वका शव ा ज वका शताशाः२ ।। २ ।। दे व प ा हरे सीद सीद मातजगतोऽ खल य । सीद व े र पा ह व ं वमी री दे व चराचर य ।। ३ ।। आधारभूता जगत वमेका मही व पेण यतः थता स । अपां व प थतया वयैतदा यायते कृ नमलङ् यवीय ।। ४ ।। वं वै णवी श रन तवीया व य बीजं परमा स माया । स मो हतं दे व सम तमेतत् वं वै स ा भु व मु हेतुः ।। ५ ।। व ाः सम ता तव दे व भेदाः यः सम ताः सकला जग सु । वयैकया पू रतम बयैतत्



का ते तु तः त परा परो



ः ।। ६ ।।



सवभूता यदा दे वी वगमु दा यनी३ । वं तुता तुतये का वा भव तु परमो यः ।। ७ ।। सव य बु पेण जन य द सं थते । वगापवगदे दे व नाराय ण नमोऽ तु ते ।। ८ ।। कलाका ा द पेण प रणाम दा य न । व योपरतौ श े नाराय ण नमोऽ तु ते ।। ९ ।। सवम लम ये४ शवे सवाथसा धके । शर ये य बके गौ र नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १० ।। सृ थ त वनाशानां श भूते सनात न । गुणा ये गुणमये नाराय ण नमोऽ तु ते ।। ११ ।। शरणागतद नातप र ाणपरायणे । सव या हरे दे व नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १२ ।। हंसयु वमान थे ाणी पधा र ण । कौशा भः रके दे व नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १३ ।। शूलच ा हधरे महावृषभवा ह न । माहे री व पेण नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १४ ।। मयूरकु कुटवृते महाश धरेऽनघे । कौमारी पसं थाने नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १५ ।। शङ् खच गदाशा गृहीतपरमायुधे । सीद वै णवी पे नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १६ ।। गृहीतो महाच े दं ो तवसुंधरे । वराह प ण शवे नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १७ ।। नृ सह पेणो ेण ह तुं दै यान् कृतो मे । ैलो य ाणस हते नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १८ ।। करी ट न महाव े सह नयनो वले । वृ ाणहरे चै नाराय ण नमोऽ तु ते ।। १९ ।। शव ती व पेण हतदै यमहाबले । घोर पे महारावे नाराय ण नमोऽ तु ते ।। २० ।। दं ाकरालवदने शरोमाला वभूषणे । चामु डे मु डमथने नाराय ण नमोऽ तु ते ।। २१ ।। ल म ल जे महा व े



े पु



वधे१ ुवे ।



महारा २ महाऽ व ३े नाराय ण नमोऽ तु ते ।। २२ ।। मेधे सर व त वरे भू त बा व ताम स । नयते वं सीदे शे नाराय ण नमोऽ तु४ ते ।। २३ ।। सव व पे सवशे सवश सम वते । भये य ा ह नो दे व ग दे व नमोऽ तु ते ।। २४ ।। एत े वदनं सौ यं लोचन यभू षतम् । पातु नः सवभी त यः का याय न नमोऽ तु ते ।। २५ ।। वालाकरालम यु मशेषासुरसूदनम् । शूलं पातु नो भीतेभ का ल नमोऽ तु ते ।। २६ ।। हन त दै यतेजां स वनेनापूय या जगत् । सा घ टा पातु नो दे व पापे योऽनः सुता नव ।। २७ ।। असुरासृ वसापङ् कच चत ते करो वलः । शुभाय खड् गो भवतु च डके वां नता वयम् ।। २८ ।। रोगानशेषानपहं स तु ा ा५ तु कामान् सकलानभी ान् । वामा तानां न वप राणां वामा ता ा यतां या त ।। २९ ।। एत कृतं य कदनं वया धम षां दे व महासुराणाम् । पैरनेकैब धाऽऽ ममू त कृ वा बके त करो त का या ।। ३० ।। व ासु शा ेषु ववेकद पेवा ेषु वा येषु च का वद या । मम वगतऽ तमहा धकारे व ामय येतदतीव व म् ।। ३१ ।। र ां स य ो वषा नागा य ारयो द युबला न य । दावानलो य तथा धम ये त थता वं प रपा स व म् ।। ३२ ।। व े र वं प रपा स व ं व ा मका धारयसी त व म् । व ेशव ा भवती भव त



व ा या ये व य भ न ाः ।। ३३ ।। दे व सीद प रपालय नोऽ रभीतेन यं यथासुरवधादधुनैव स ः । पापा न सवजगतां शमं६ नयाशु उ पातपाकज नतां महोपसगान् ।। ३४ ।। णतानां सीद वं दे व व ा तहा र ण । ैलो यवा सनामी े लोकानां वरदा भव ।। ३५ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। दे वीके ारा वहाँ महादै यप त शु भके मारे जानेपर इ आ द दे वता अ नको आगे करके उन का यायनी दे वीक तु त करने लगे। उस समय अभी क ा त होनेसे उनके मुख-कमल दमक उठे थे और उनके काशसे दशाएँ भी जगमगा उठ थ ।। २ ।। दे वता बोले—शरणागतक पीड़ा र करनेवाली दे व! हमपर स होओ। स पूण जगत्क माता! स होओ। व े र! व क र ा करो। दे व! तु ह चराचर जगत्क अधी री हो ।। ३ ।। तुम इस जगत्का एकमा आधार हो, य क पृ वी पम तु हारी ही थ त है। दे व! तु हारा परा म अलङ् घनीय है। तु ह जल पम थत होकर स पूण जगत्को तृ त करती हो ।। ४ ।। तुम अन त बलस प वै णवी श हो। इस व क कारणभूता परा माया हो। दे व! तुमने इस सम त जगत्को मो हत कर रखा है। तु ह स होनेपर इस पृ वीपर मो क ा त कराती हो ।। ५ ।। दे व! स पूण व ाएँ तु हारे ही भ - भ व प ह। जगत्म जतनी याँ ह, वे सब तु हारी ही मू तयाँ ह। जगद ब! एकमा तुमने ही इस व को ा त कर रखा है। तु हारी तु त या हो सकती है? तुम तो तवन करने यो य पदाथ से परे एवं परा वाणी हो ।। ६ ।। दे व! जब तुम सव व प एवं वग तथा मो दान करनेवाली हो, तब इसी पम तु हारी तु त हो गयी। तु हारी तु तके लये इससे अ छ उ याँ और या हो सकती ह? ।। ७ ।। बु पसे सब लोग के दयम वराजमान रहनेवाली तथा वग एवं मो दान करनेवाली नारायणी दे व! तु ह नम कार है ।। ८ ।। कला, का ा आ दके पसे मशः प रणाम (अव था-प रवतन)-क ओर ले जानेवाली तथा व का उपसंहार करनेम समथ नारायणी! तु ह नम कार है ।। ९ ।। नारायणी! तुम सब कारका म ल दान करनेवाली म लमयी हो। क याणदा यनी शवा हो। सब पु षाथ को स करनेवाली, शरणागतव सला, तीन ने वाली एवं गौरी हो। तु ह नम कार है ।। १० ।। तुम सृ , पालन और संहारक श भूता, सनातनी दे वी, गुण का आधार तथा सवगुणमयी हो। नाराय ण! तु ह नम कार है ।। ११ ।। शरणम आये ए द न एवं पी ड़त क र ाम संल न रहनेवाली तथा सबक पीड़ा र करनेवाली नारायणी दे वी! तु ह नम कार है ।। १२ ।। नाराय ण! तुम ाणीका प धारण करके हंस से जुते ए वमानपर बैठती तथा कुश- म त जल छड़कती रहती हो। तु ह नम कार है ।। १३ ।। माहे री पसे शूल, च मा एवं सपको धारण करनेवाली



तथा महान् वृषभक पीठपर बैठनेवाली नारायणी दे वी! तु ह नम कार है ।। १४ ।। मोर और मुग से घरी रहनेवाली तथा महाश धारण करनेवाली कौमारी पधा रणी न पापे नाराय ण! तु ह नम कार है ।। १५ ।। शङ् ख, च , गदा और शा धनुष प उ म आयुध को धारण करनेवाली वै णवी श पा नाराय ण! तुम स होओ। तु ह नम कार है ।। १६ ।। हाथम भयानक महाच लये और दाढ़ पर धरतीको उठाये वाराही पधा रणी क याणमयी नाराय ण! तु ह नम कार है ।। १७ ।। भयङ् कर नृ सह पसे दै य के वधके लये उ ोग करनेवाली तथा भुवनक र ाम संल न रहनेवाली नाराय ण! तु ह नम कार है ।। १८ ।। म तकपर करीट और हाथम महाव धारण करनेवाली, सह ने के कारण उ त दखायी दे नेवाली और वृ ासुरके ाण का अपहरण करनेवाली इ श पा नारायणी दे व! तु ह नम कार है ।। १९ ।। शव ती पसे दै य क महती सेनाका संहार करनेवाली, भयङ् कर प धारण तथा वकट गजना करनेवाली नाराय ण! तु ह नम कार है ।। २० ।। दाढ़ के कारण वकराल मुखवाली मु डमालासे वभू षत मु डम दनी चामु डा पा नाराय ण! तु ह नम कार है ।। २१ ।। ल मी, ल जा, महा व ा, ा, पु , वधा, ुवा, महारा तथा महा-अ व ा पा नाराय ण! तु ह नम कार है ।। २२ ।। मेधा, सर वती, वरा ( े ा), भू त (ऐ य पा), बा वी (भूरे रंगक अथवा पावती), तामसी (महाकाली), नयता (संयमपरायणा) तथा ईशा (सबक अधी री) पणी नाराय ण! तु ह नम कार है ।। २३ ।। सव व पा, सव री तथा सब कारक श य से स प द पा ग दे व! सब भय से हमारी र ा करो; तु ह नम कार है ।। २४ ।। का यायनी! यह तीन लोचन से वभू षत तु हारा सौ य मुख सब कारके भय से हमारी र ा करे। तु ह नम कार है ।। २५ ।। भ काली! वाला के कारण वकराल तीत होनेवाला, अ य त भयङ् कर और सम त असुर का संहार करनेवाला तु हारा शूल भयसे हम बचाये। तु ह नम कार है ।। २६ ।। दे व! जो अपनी व नसे स पूण जगत्को ा त करके दै य के तेज न कये दे ता है, वह तु हारा घंटा हमलोग क पाप से उसी कार र ा करे, जैसे माता अपने पु क बुरे कम से र ा करती है ।। २७ ।। च डके! तु हारे हाथ म सुशो भत खड् ग, जो असुर के र और चब से च चत है, हमारा म ल करे। हम तु ह नम कार करते ह ।। २८ ।। दे व! तुम स होनेपर सब रोग को न कर दे ती हो और कु पत होनेपर मनोवा छत सभी कामना का नाश कर दे ती हो। जो लोग तु हारी शरणम जा चुके ह, उनपर वप तो आती ही नह । तु हारी शरणम गये ए मनु य सर को शरण दे नेवाले हो जाते ह ।। २९ ।। दे व! अ बके!! तुमने अपने व पको अनेक भाग म वभ करके नाना कारके प से जो इस समय इन धम ोही महादै य का संहार कया है, वह सब सरी कौन कर सकती थी ।। ३० ।। व ा म, ानको का शत करनेवाले शा म तथा आ दवा य (वेद )-म तु हारे सवा और कसका वणन है? तथा तुमको छोड़कर सरी कौन ऐसी श है, जो इस व को अ ानमय घोर अ धकारसे प रपूण ममता पी गढ़े म नर तर भटका रही



हो ।। ३१ ।। जहाँ रा स, जहाँ भयङ् कर वषवाले सप, जहाँ श ु, जहाँ लुटेर क सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समु के बीचम भी साथ रहकर तुम व क र ा करती हो ।। ३२ ।। व े र! तुम व का पालन करती हो। व पा हो, इस लये स पूण व को धारण करती हो। तुम भगवान् व नाथक भी व दनीया हो। जो लोग भ पूवक तु हारे सामने म तक झुकाते ह, वे स पूण व को आ य दे नेवाले होते ह ।। ३३ ।। दे व! स होओ। जैसे इस समय असुर का वध करके तुमने शी ही हमारी र ा क है, उसी कार सदा हम श ु के भयसे बचाओ। स पूण जगत्का पाप न कर दो और उ पात एवं पाप के फल व प ा त होनेवाले महामारी आ द बड़े-बड़े उप व को शी र करो ।। ३४ ।। व क पीड़ा र करनेवाली दे व! हम तु हारे चरण पर पड़े ए ह, हमपर स होओ। लोक नवा सय क पूजनीया परमे र! सब लोग को वरदान दो ।। ३५ ।।



दे ुवाच ।। ३६ ।। वरदाहं सुरगणा वरं य मनसे छथ । तं वृणु वं य छा म जगतामुपकारकम् ।। ३७ ।।



दे वी बोल — ।। ३६ ।। दे वताओ! म वर दे नेको तैयार ँ। तु हारे मनम जसक इ छा हो, वह वर माँग लो। संसारके लये उस उपकारक वरको म अव य ँ गी ।। ३७ ।। दे वा ऊचुः ।। ३८ ।। सवाबाधा शमनं ैलो य या खले र । एवमेव वया कायम म ै र वनाशनम् ।। ३९ ।। दे वता बोले— ।। ३८ ।। सव र! तुम इसी कार तीन लोक क सम त बाधा को शा त करो और हमारे श ु का नाश करती रहो ।। ३९ ।। दे ुवाच ।। ४० ।। वैव वतेऽ तरे ा ते अ ा वश तमे युगे । शु भो नशु भ ैवा यावु प येते महासुरौ ।। ४१ ।। न दगोपगृहे१ जाता यशोदागभस भवा । तत तौ नाश य या म व याचल नवा सनी ।। ४२ ।। पुनर य तरौ े ण पेण पृ थवीतले । अवतीय ह न या म वै च ां तु दानवान् ।। ४३ ।। भ य या तानु ान् वै च ा महासुरान् । र ा द ता भ व य त दा डमीकुसुमोपमाः ।। ४४ ।। ततो मां दे वताः वग म यलोके च मानवाः । तुव तो ाह र य त सततं र द तकाम् ।। ४५ ।। भूय शतवा ष यामनावृ ् यामन भ स । मु न भः सं तुता भूमौ संभ व या ययो नजा ।। ४६ ।। ततः शतेन ने ाणां नरी या म य मुनीन् । क त य य त मनुजाः शता ी म त मां ततः ।। ४७ ।। ततोऽहम खलं लोकमा मदे हसमु वैः । भ र या म सुराः शाकैरावृ ेः ाणधारकैः ।। ४८ ।। शाक भरी त व या त तदा या या यहं भु व । त ैव च व ध या म गमा यं महासुरम् ।। ४९ ।। गा दे वी त व यातं त मे नाम भ व य त । पुन ाहं यदा भीमं पं कृ वा हमाचले ।। ५० ।। र ां स भ य या म२ मुनीनां ाणकारणात् । तदा मां मुनयः सव तो य यान मूतयः ।। ५१ ।। भीमा दे वी त व यातं त मे नाम भ व य त । यदा णा य ैलो ये महाबाधां क र य त ।। ५२ ।।



तदाहं ामरं पं कृ वाऽसं येयषट् पदम् । ैलो य य हताथाय व ध या म महासुरम् ।। ५३ ।। ामरी त च मां लोका तदा तो य त सवतः । इ थं यदा यदा बाधा दानवो था भ व य त ।। ५४ ।। तदा तदावतीयाहं क र या य रसं यम् ।। ॐ ।। ५५ ।। दे वी बोल — ।। ४० ।। दे वताओ! वैव वत म व तरके अ ाईसव युगम शु भ और नशु भ नामके दो अ य महादै य उ प ह गे ।। ४१ ।। तब म न दगोपके घरम उनक प नी यशोदाके गभसे अवतीण हो क याचलम जाकर र ँगी और उ दोन असुर का नाश क ँ गी ।। ४२ ।। फर अ य त भयङ् कर पसे पृ वीपर अवतार ले म वै च नामवाले दानव का वध क ँ गी ।। ४३ ।। उन भयंकर महादै य को भ ण करते समय मेरे दाँत अनारके फूलक भाँ त लाल हो जायँगे ।। ४४ ।। तब वगम दे वता और म यलोकम मनु य सदा मेरी तु त करते ए मुझे ‘र द तका’ कहगे ।। ४५ ।। फर जब पृ वीपर सौ वष के लये वषा क जायगी और पानीका अभाव हो जायगा, उस समय मु नय के तवन करनेपर म पृ वीपर अयो नजा- पम कट होऊँगी ।। ४६ ।। और सौ ने से मु नय क ओर दे खूँगी। अतः मनु य ‘शता ी’ इस नामसे मेरा क तन करगे ।। ४७ ।। दे वताओ! उस समय म अपने शरीरसे उ प ए शाक ारा सम त संसारका भरण-पोषण क ँ गी। जबतक वषा नह होगी, तबतक वे शाक ही सबके ाण क र ा करगे ।। ४८ ।। ऐसा करनेके कारण पृ वीपर ‘शाक भरी’ के नामसे मेरी या त होगी। उसी अवतारम म गम नामक महादै यका वध भी क ँ गी ।। ४९ ।। इससे मेरा नाम ‘ गादे वी’ के पसे स होगा। फर जब म भीम प धारण करके मु नय क र ाके लये हमालयपर रहनेवाले रा स का भ ण क ँ गी, उस समय सब मु न भ से नतम तक होकर मेरी तु त करगे ।। ५०-५१ ।। तब मेरा नाम ‘भीमादे वी’ के पम व यात होगा। जब अ ण नामक दै य तीन लोक म भारी उप व मचायेगा ।। ५२ ।। तब म तीन लोक का हत करनेके लये छः पैर वाले असं य मर का प धारण करके उस महादै यका वध क ँ गी ।। ५३ ।। उस समय सब लोग ‘ ामरी’ के नामसे चार ओर मेरी तु त करगे। इस कार जब-जब संसारम दानवी बाधा उप थत होगी, तब-तब अवतार लेकर म श ु का संहार क ँ गी ।। ५४-५५ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे ाः तु तनामैकादशोऽ यायः ।। ११ ।। उवाच ४, अध ोकः १, ोकाः ५०, एवम् ५५, एवमा दतः ।। ६३० ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘दे वी तु त’ नामक यारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११ ।।



१. पा०—ल भा०। २. पा०—व ा तु व०। ३. पा०—मु । ४. पा०—मा ये। १. पा०—पु े। २. पा०—रा े। ३. पा०—महामाये। ४. शा तनवी ट काकारने यहाँ एक ोक अ धक पाठ माना है, जो इस कार है—‘सवतःपा णपादा ते सवतोऽ शरोमुखे। सवतः वण नाणे नाराय ण नमोऽ तु ते ।। ’ ५. पा०—ददा स कामान्। ६. पा०—च शमं। १. पा०—कुले। २. पा०— य य या म। ( प य या म इ त वा)।



ादशोऽ यायः दे वी-च र के पाठका माहा य यान (ॐ व ु ामसम भां मृगप त क ध थतां भीषणां क या भः करवालखेट वलस ता भरासे वताम् । ह तै गदा सखेट व शखां ापं गुणं तजन ब ाणामनला मकां श शधरां गा ने ां भजे ।। म तीन ने वाली गादे वीका यान करता ँ, उनके ीअ क भा बजलीके समान है। वे सहके कंधेपर बैठ ई भयङ् कर तीत होती ह। हाथ म तलवार, ढाल लये अनेक क याएँ उनक सेवाम खड़ी ह। वे अपने हाथ म च , गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तजनी मु ा धारण कये ए ह। उनका व प अ नमय है तथा वे माथेपर च माका मुकुट धारण करती ह।) दे ुवाच ।। १ ।। ‘ॐ’ ए भः तवै मां न यं तो यते यः समा हतः । त याहं सकलां बाधां नाश य या यसंशयम्१ ।। २ ।। मधुकैटभनाशं च म हषासुरघातनम् । क त य य त ये त द् वधं शु भ नशु भयोः ।। ३ ।। अ यां च चतुद यां नव यां चैकचेतसः । ो य त चैव ये भ या मम माहा यमु मम् ।। ४ ।। न तेषां कृतं क चद् कृतो था न चापदः । भ व य त न दा र य ् ं न चैवे वयोजनम् ।। ५ ।। श ुतो न भयं त य द युतो वा न राजतः । न श ानलतोयौघा कदा च स भ व य त ।। ६ ।। त मा ममैत माहा यं प ठत ं समा हतैः । ोत ं च सदा भ या परं व ययनं ह तत् ।। ७ ।। उपसगानशेषां तु महामारीसमु वान् । तथा वधमु पातं माहा यं शमये मम ।। ८ ।। य ैत प ते स यङ् न यमायतने मम । सदा न त मो या म सां न यं त मे थतम् ।। ९ ।। ब ल दाने पूजायाम नकाय महो सवे ।



सव ममैत च रतमु चाय ा मेव च ।। १० ।। जानताऽजानता वा प ब लपूजां तथा कृताम् । ती छ या यहं१ ी या व होमं तथा कृतम् ।। ११ ।। शर काले महापूजा यते या च वा षक । त यां ममैत माहा यं ु वा भ सम वतः ।। १२ ।। सवाबाधा व नमु ो२ धनधा यसुता वतः । मनु यो म सादे न भ व य त न संशयः ।। १३ ।। ु वा ममैत माहा यं तथा चो प यः शुभाः । परा मं च यु े षु जायते नभयः पुमान् ।। १४ ।। रपवः सं यं या त क याणं चोपप ते । न दते च कुलं पुंसां माहा यं मम शृ वताम् ।। १५ ।। शा तकम ण सव तथा ः व दशने । हपीडासु चो ासु माहा यं शृणुया मम ।। १६ ।। उपसगाः शमं या त हपीडा दा णाः । ः व ं च नृ भ ं सु व मुपजायते ।। १७ ।। बाल हा भभूतानां बालानां शा तकारकम् । संघातभेदे च नृणां मै ीकरणमु मम् ।। १८ ।। वृ ानामशेषाणां बलहा नकरं परम् । र ोभूत पशाचानां पठनादे व नाशनम् ।। १९ ।। सव ममैत माहा यं मम स धकारकम् । पशुपु पा यधूपै ग धद पै तथो मैः ।। २० ।। व ाणां भोजनैह मैः ो णीयैरह नशम् । अ यै व वधैभ गैः दानैव सरेण या ।। २१ ।। ी तम यते सा मन् सकृ सुच रते ुते । ुतं हर त पापा न तथाऽऽरो यं य छ त ।। २२ ।। र ां करो त भूते यो ज मनां क तनं मम । यु े षु च रतं य मे दै य नबहणम् ।। २३ ।। त म छते वै रकृतं भयं पुंसां न जायते । यु मा भः तुतयो या या ष भः कृताः ।। २४ ।। णा च कृता ता तु य छ त शुभां म तम् । अर ये ा तरे वा प दावा नप रवा रतः ।। २५ ।। द यु भवा वृतः शू ये गृहीतो वा प श ु भः ।



सह ा ानुयातो वा वने वा वनह त भः ।। २६ ।। रा ा ु े न चा तो व यो ब धगतोऽ प वा । आघू णतो वा वातेन थतः पोते महाणवे ।। २७ ।। पत सु चा प श ेषु सं ामे भृशदा णे । सवाबाधासु घोरासु वेदना य दतोऽ प वा ।। २८ ।। मर ममैत च रतं नरो मु येत सङ् कटात् । मम भावा संहा ा द यवो वै रण तथा ।। २९ ।। रादे व पलाय ते मरत रतं मम ।। ३० ।। दे वी बोल — ।। १ ।। दे वताओ! जो एका च होकर त दन इन तु तय से मेरा तवन करेगा, उसक सारी बाधा म न य ही र कर ँ गी ।। २ ।। जो मधु-कैटभका नाश, म हषासुरका वध तथा शु भ- नशु भके संहारके स का पाठ करगे ।। ३ ।। तथा अ मी, चतुदशी और नवमीको भी जो एका च हो भ पूवक मेरे उ म माहा यका वण करगे ।। ४ ।। उ ह कोई पाप नह छू सकेगा। उनपर पापज नत आप याँ भी नह आयगी। उनके घरम कभी द र ता नह होगी तथा उनको कभी ेमी जन के बछोहका क भी नह भोगना पड़ेगा ।। ५ ।। इतना ही नह , उ ह श ुसे, लुटेर से, राजासे, श से, अ नसे तथा जलक रा शसे भी कभी भय नह होगा ।। ६ ।। इस लये सबको एका च होकर भ पूवक मेरे इस माहा यको सदा पढ़ना और सुनना चा हये। यह परम क याणकारक है ।। ७ ।। मेरा माहा य महामारीज नत सम त उप व तथा आ या मक आ द तीन कारके उ पात को शा त करनेवाला है ।। ८ ।। मेरे जस म दरम त दन व धपूवक मेरे इस माहा यका पाठ कया जाता है, उस थानको म कभी नह छोड़ती। वहाँ सदा ही मेरा सं नधान बना रहता है ।। ९ ।। ब लदान, पूजा, होम तथा महो सवके अवसर पर मेरे इस च र का पूरा-पूरा पाठ और वण करना चा हये ।। १० ।। ऐसा करनेपर मनु य व धको जानकर या बना जाने भी मेरे लये जो ब ल, पूजा या होम आ द करेगा, उसे म बड़ी स ताके साथ हण क ँ गी ।। ११ ।। शर कालम जो वा षक महापूजा क जाती है, उस अवसरपर जो मेरे इस माहा यको भ पूवक सुनेगा, वह मनु य मेरे सादसे सब बाधा से मु तथा धन, धा य एवं पु से स प होगा—इसम त नक भी स दे ह नह है ।। १२-१३ ।। मेरा यह माहा य, मेरे ा भावक सु दर कथाएँ तथा यु म कये ए मेरे परा म सुननेसे मनु य नभय हो जाता है ।। १४ ।। मेरे माहा यका वण करनेवाले पु ष के श ु न हो जाते ह, उ ह क याणक ा त होती तथा उनका कुल आन दत रहता है ।। १५ ।। सव शा त-कमम, बुरे व दखायी दे नेपर तथा हज नत भयङ् कर पीड़ा उप थत होनेपर मेरा माहा य वण करना चा हये ।। १६ ।। इससे सब व न तथा भयङ् कर ह-पीड़ाएँ शा त हो जाती ह और मनु य ारा दे खा आ ः व शुभ व म प रव तत हो जाता है ।। १७ ।। बाल ह से



आ ा त ए बालक के लये यह माहा य शा तकारक है तथा मनु य के संगठनम फूट होनेपर यह अ छ कार म ता करानेवाला होता है ।। १८ ।। यह माहा य सम त राचा रय के बलका नाश करनेवाला है। इसके पाठमा से रा स , भूत और पशाच का नाश हो जाता है ।। १९ ।। मेरा यह सब माहा य मेरे सामी यक ा त करानेवाला है। पशु, पु प, अ य, धूप, द प, ग ध आ द उ म साम य ारा पूजन करनेसे, ा ण को भोजन करानेसे, होम करनेसे, त दन अ भषेक करनेसे, नाना कारके अ य भोग का अपण करनेसे तथा दान दे ने आ दसे एक वषतक जो मेरी आराधना क जाती है और उससे मुझे जतनी स ता होती है, उतनी स ता मेरे इस उ म च र का एक बार वण करनेमा से हो जाती है। यह माहा य वण करनेपर पाप को हर लेता और आरो य दान करता है ।। २०-२२ ।। मेरे ा भावका क तन सम त भूत से र ा करता है तथा मेरा यु वषयक च र दै य का संहार करनेवाला है ।। २३ ।। इसके वण करनेपर मनु य को श ुका भय नह रहता। दे वताओ! तुमने और षय ने जो मेरी तु तयाँ क ह ।। २४ ।। तथा ाजीने जो तु तयाँ क ह, वे सभी क याणमयी बु दान करती ह। वनम, सूने मागम अथवा दावानलसे घर जानेपर ।। २५ ।। नजन थानम, लुटेर के दावम पड़ जानेपर या श ु से पकड़े जानेपर अथवा जंगलम सह, ा या जंगली हा थय के पीछा करनेपर ।। २६ ।। कु पत राजाके आदे शसे वध या ब धनके थानम ले जाये जानेपर अथवा महासागरम नावपर बैठनेके बाद भारी तूफानसे नावके डगमग होनेपर ।। २७ ।। और अ य त भयङ् कर यु म श का हार होनेपर अथवा वेदनासे पी ड़त होनेपर, क ब ना सभी भयानक बाधा के उप थत होनेपर ।। २८ ।। जो मेरे इस च र का मरण करता है, वह मनु य संकटसे मु हो जाता है। मेरे भावसे सह आ द हसक ज तु न हो जाते ह तथा लुटेरे और श ु भी मेरे च र का मरण करनेवाले पु षसे र भागते ह ।। २९-३० ।। ऋ ष वाच ।। ३१ ।। इ यु वा सा भगवती च डका च ड व मा ।। ३२ ।। प यतामेव१ दे वानां त ैवा तरधीयत । तेऽ प दे वा नरातङ् काः वा धकारान् यथा पुरा ।। ३३ ।। य भागभुजः सव च ु व नहतारयः । दै या दे ा नहते शु भे दे व रपौ यु ध ।। ३४ ।। जग वं स न त मन् महो ेऽतुल व मे । नशु भे च महावीय शेषाः पातालमाययुः ।। ३५ ।। एवं भगवती दे वी सा न या प पुनः पुनः । स भूय कु ते भूप जगतः प रपालनम् ।। ३६ ।। तयैत मो ते व ं सैव व ं सूयते ।



सा या चता च व ानं तु ा ऋ य छ त ।। ३७ ।। ा तं तयैत सकलं ा डं मनुजे र । महाका या महाकाले महामारी व पया ।। ३८ ।। सैव काले महामारी सैव सृ भव यजा । थ त करो त भूतानां सैव काले सनातनी ।। ३९ ।। भवकाले नृणां सैव ल मीवृ दा गृहे । सैवाभावे तथाल मी वनाशायोपजायते ।। ४० ।। तुता स पू जता पु पैधूपग धा द भ तथा । ददा त व ं पु ां म त धम ग त२ शुभाम् ।। ॐ ।। ४१ ।। ऋ ष कहते ह— ।। ३१ ।। य कहकर च ड परा मवाली भगवती च डका सब दे वता के दे खते-दे खते वह अ तधान हो गय । फर सम त दे वता भी श ु के मारे जानेसे नभय हो पहलेक ही भाँ त य भागका उपभोग करते ए अपने-अपने अ धकारका पालन करने लगे। संसारका व वंस करनेवाले महाभयङ् कर अतुलपरा मी दे वश ु शु भ तथा महाबली नशु भके यु म दे वी ारा मारे जानेपर शेष दै य पाताललोकम चले आये ।। ३२-३५ ।। राजन्! इस कार भगवती अ बका दे वी न य होती ई भी पुनःपुनः कट होकर जगत्क र ा करती ह ।। ३६ ।। वे ही इस व को मो हत करत , वे ही जगत्को ज म दे त तथा वे ही ाथना करनेपर स तु हो व ान एवं समृ दान करती ह ।। ३७ ।। राजन्! महा लयके समय महामारीका व प धारण करनेवाली वे महाकाली ही इस सम त ा डम ा त ह ।। ३८ ।। वे ही समय-समयपर महामारी होती और वे ही वयं अज मा होती ई भी सृ के पम कट होती ह। वे सनातनी दे वी ही समयानुसार स पूण भूत क र ा करती ह ।। ३९ ।। मनु य के अ युदयके समय वे ही घरम ल मीके पम थत हो उ त दान करती ह और वे ही अभावके समय द र ता बनकर वनाशका कारण होती ह ।। ४० ।। पु प, धूप और ग ध आ दसे पूजन करके उनक तु त करनेपर वे धन, पु , धा मक बु तथा उ म ग त दान करती ह ।। ४१ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये फल तु तनाम ादशोऽ यायः ।। १२ ।। उवाच २, अध ोकौ २, ोकाः ३७, एवम् ४१, एवमा दतः ।। ६७१ ।। इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘फल तु त’ नामक बारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १२ ।।



१. पा०—शम०। ी



१. पा०— ती या म। २. पा०—सवबाधा। १. पा०—तां सवदे वा०। २. पा०—तथा।



योदशोऽ यायः सुरथ और वै यको दे वीका वरदान यान (ॐबालाकम डलाभासां चतुबा ं लोचनाम् । पाशाङ् कुशवराभीतीधारय त शवां भजे ।। जो उदयकालके सूयम डलक -सी का त धारण करनेवाली ह, जनके चार भुजाएँ और तीन ने ह तथा जो अपने हाथ म पाश, अंकुश, वर एवं अभयक मु ा धारण कये रहती ह, उन शवा दे वीका म यान करता ँ।) ऋ ष वाच ।। १ ।। ‘ॐ’ एत े क थतं भूप दे वीमाहा यमु मम् । एवं भावा सा दे वी ययेदं धायते जगत् ।। २ ।। व ा तथैव यते भगव णुमायया । तया वमेष वै य तथैवा ये ववे कनः ।। ३ ।। मो ते मो हता ैव मोहमे य त चापरे । तामुपै ह महाराज शरणं परमे रीम् ।। ४ ।। आरा धता सैव नृणां भोग वगापवगदा ।। ५ ।। ऋ ष कहते ह— ।। १ ।। राजन्! इस कार मने तुमसे दे वीके अनुपम माहा यका वणन कया। जो इस जगत्को धारण करती ह, उन दे वीका ऐसा ही भाव है ।। २ ।। वे ही व ा ( ान) उ प करती ह। भगवान् व णुक माया व पा उन भगवतीके ारा ही तुम, ये वै य तथा अ या य ववेक जन मो हत होते ह, मो हत ए ह तथा आगे भी मो हत ह गे। महाराज! तुम उ ह परमे रीक शरणम जाओ ।। ३-४ ।। आराधना करनेपर वे ही मनु य को भोग, वग तथा मो दान करती ह ।। ५ ।। माक डेय उवाच ।। ६ ।। इ त त य वचः ु वा सुरथः स नरा धपः ।। ७ ।। णप य महाभागं तमृ ष शं सत तम् । न व णोऽ तमम वेन रा यापहरणेन च ।। ८ ।। जगाम स तपसे स च वै यो महामुने । संदशनाथम बाया नद पु लनसं थतः ।। ९ ।। स च वै य तप तेपे दे वीसू ं परं जपन् । तौ त मन् पु लने दे ाः कृ वा मू त महीमयीम् ।। १० ।।



अहणां च तु त याः पु पधूपा नतपणैः । नराहारौ यताहारौ त मन कौ समा हतौ ।। ११ ।। ददतु तौ ब ल चैव नजगा ासृगु तम् । एवं समाराधयतो भवषयता मनोः ।। १२ ।। प रतु ा जग ा ी य ं ाह च डका ।। १३ ।। माक डेयजी कहते ह— ।। ६ ।। ौ ु कजी! मेधामु नके ये वचन सुनकर राजा सुरथने उ म तका पालन करनेवाले उन महाभाग मह षको णाम कया। वे अ य त ममता और रा यापहरणसे ब त ख हो चुके थे ।। ७-८ ।। महामुने! इस लये वर होकर वे राजा तथा वै य त काल तप याको चले गये और वे जगद बाके दशनके लये नद के तटपर रहकर तप या करने लगे ।। ९ ।। वे वै य उ म दे वीसू का जप करते ए तप याम वृ ए। वे दोन नद के तटपर दे वीक मृ मयी मू त बनाकर पु प, धूप और हवन आ दके ारा उनक आराधना करने लगे। उ ह ने पहले तो आहारको धीरे-धीरे कम कया; फर बलकुल नराहार रहकर दे वीम ही मन लगाये एका तापूवक उनका च तन आर भ कया ।। १०-११ ।। वे दोन अपने शरीरके र से ो त ब ल दे ते ए लगातार तीन वष तक संयमपूवक आराधना करते रहे ।। १२ ।। इसपर स होकर जगत्को धारण करनेवाली च डका दे वीने य दशन दे कर कहा ।। १३ ।।



दे ुवाच ।। १४ ।। य ा यते वया भूप वया च कुलन दन । म त ा यतां सव प रतु ा ददा म तत् ।। १५ ।। दे वी बोल — ।। १४ ।। राजन्! तथा अपने कुलको आन दत करनेवाले वै य! तुमलोग जस व तुक अ भलाषा रखते हो, वह मुझसे माँगो। म स तु ँ, अतः तु ह वह सब कुछ ँ गी ।। १५ ।। माक डेय उवाच ।। १६ ।। ततो१ व े नृपो रा यम व ं य यज म न । अ ैव च नजं रा यं हतश ुबलं बलात् ।। १७ ।। सोऽ प वै य ततो ानं व े न व णमानसः । ममे यह म त ा ः स व यु तकारकम् ।। १८ ।। माक डेयजी कहते ह— ।। १६ ।। तब राजाने सरे ज मम न न होनेवाला रा य माँगा तथा इस ज मम भी श ु क सेनाको बलपूवक न करके पुनः अपना रा य ा त



कर लेनेका वरदान माँगा ।। १७ ।। वै यका च संसारक ओरसे ख एवं वर हो चुका था और वे बड़े बु मान् थे; अतः उस समय उ ह ने तो ममता और अहंता प आस का नाश करनेवाला ान माँगा ।। १८ ।। दे ुवाच ।। १९ ।। व पैरहो भनृपते वं रा यं ा यते भवान् ।। २० ।। ह वा रपून ख लतं तव त भ व य त ।। २१ ।। मृत भूयः स ा य ज म दे वा व वतः ।। २२ ।। साव णको नाम१ मनुभवान् भु व भ व य त ।। २३ ।। वै यवय वया य वरोऽ म ोऽ भवा छतः ।। २४ ।। तं य छा म सं स ै तव ानं भ व य त ।। २५ ।। दे वी बोल — ।। १९ ।। राजन्! तुम थोड़े ही दन म श ु को मारकर अपना रा य ा त कर लोगे। अब वहाँ तु हारा रा य थर रहेगा ।। २०-२१ ।। फर मृ युके प ात् तुम भगवान् वव वान् (सूय)-के अंशसे ज म लेकर इस पृ वीपर साव णक मनुके नामसे व यात होओगे ।। २२-२३ ।। वै यवय! तुमने भी जस वरको मुझसे ा त करनेक इ छा क है, उसे दे ती ँ। तु ह मो के लये ान ा त होगा ।। २४-२५ ।।



माक डेय उवाच ।। २६ ।। इ त द वा तयोदवी यथा भल षतं वरम् ।। २७ ।। बभूवा त हता स ो भ या ता याम भ ु ता । एवं दे ा वरं ल वा सुरथः यषभः ।। २८ ।। सूया ज म समासा साव णभ वता मनुः ।। २९ ।। एवं दे ा वरं ल वा सुरथः यषभः । सूया ज म समासा साव णभ वता मनुः ।। ल ॐ ।। माक डेयजी कहते ह— ।। २६ ।। इस कार उन दोन को मनोवा छत वरदान दे कर तथा उनके ारा भ पूवक अपनी तु त सुनकर दे वी अ बका त काल अ तधान हो गय । इस तरह दे वीसे वरदान पाकर य म े सुरथ सूयसे ज म ले साव ण नामक मनु ह गे ।। २७-२९ ।।



इ त ीमाक डेयपुराणे साव णके म व तरे दे वीमाहा ये सुरथवै ययोवर दानं नाम योदशोऽ यायः ।। १३ ।।



उवाच ६, अध ोकाः ११, सम ता उवाचम ाः ५७, अध



ोकाः १२, एवम् २९, एवमा दतः ।। ७०० ।। ोकाः ४२, ोकाः ५३५, अवदाना न ।। ६६ ।।



इस कार ीमाक डेयपुराणम साव णक म व तरक कथाके अ तगत दे वीमाहा यम ‘सुरथ और वै यको वरदान’ नामक तेरहवाँ अ याय पूरा आ ।। १३ ।।



१. पा० मनुनाम।



नवसे लेकर तेरहव म व तरतकका सं



त वणन



माक डेयजी कहते ह— ौ ु कजी! यह तुमसे साव णक म व तरका भलीभाँ त वणन कया गया। साथ ही म हषासुर-वध आ दके पम भगवती गाक म हमा भी बतलायी गयी। मु न े ! अब सरे साव णक म व तरक कथा सुनो। द के पु साव ण नव मनु होनेवाले ह। उनके समयम जो दे वता, मु न और राजा ह गे, उन सबके नाम सुनो। पार, मरी चगभ और सुधमा—ये तीन कारके दे वता ह गे। इनमसे येक वगम बारहबारह दे वता ह गे। इस समय जो छः मुख वाले अ नकुमार का तकेय ह, वे ही उस म व तरम ‘अ त’ नामवाले इ ह गे। मेधा त थ, वसु, स य, यो त मान्, ु तमान्, सबल तथा ह वाहन—ये स त ष ह गे। धृ केतु, बहकेतु, प चह त, नरामय पृथु वा, अ च मान्, भू र ु न तथा बृह य—ये द पु साव ण मनुके राजकुमार ह गे। अब दसव मनुके म व तरका वणन सुनो। दसव म व तरम ाजीके पु बु मान् साव णका अ धकार होगा। साव ण म व तरम सुखासीन और न —ये दो कारके दे वता ह गे। उनक सं या सौ होगी। उस समय सौ कारके ाणी उ प ह गे, इस लये उनके दे वता भी सौ ही ह गे। उस म व तरम इ के सम त गुण से यु ‘शा त’ नामक इ ह गे। आपोमू त, ह व मान्, सुकृत, स य, नाभाग, अ तम और वा स —ये स त ष ह गे। सु े , उ मौजा, भू मसेन, वीयवान्, शतानीक, वृषभ, अन म , जय थ, भू र ु न तथा सुपवा—ये मनुके पु ह गे। अब धमके पु साव णका म व तर सुनो। धमसाव ण म व तरम वह म, कामग तथा नमाणर त—ये तीन कारके दे वता ह गे। इनमसे एक-एक तीस-तीस दे वता का समुदाय है। मास, ऋतु और दन—ये नमाणर त कहलायगे। रा य क सं ा वह म होगी और मु तस ब धी गण कामग कहलायगे। व यात परा मी ‘वृष’उनके इ ह गे। ह व मान्, व र , अ णन दन ऋ , न र, अनघ, महामु न व तथा अ नदे व—ये सात स त ष ह गे। सव ग, सुशमा, दे वानीक, पु द्वह, हेमध वा तथा ढायु—ये भ व यम होनेवाले राजा धमसाव ण मनुके पु ह गे। बारहवाँ म व तर पु साव ण मनुका होगा। उसके आनेपर सुधमा, सुमना, ह रत, रो हत और सुवण—ये पाँच दे वगण ह गे। इनमसे येक गण दस-दस दे वता का होगा। महाबली ऋतधामा उनका इ होगा। ु त, तप वी, सुतपा, तपोमू त, तपो न ध, तपोर त तथा तपोधृ त—ये सात स त ष ह गे। दे ववान्, उपदे व, दे व े , व रथ, म वान् तथा म व द—ये भावी मनुके वंशज राजा ह गे। अब ‘रौ य’ नामक तेरहव मनुके समयम होनेवाले दे वता , स त षय तथा राजा का वणन सुनो। सुधमा, सुकमा और सुशमा—ये तीन उस समयके दे वता ह गे। महाबली एवं महापरा मी ‘ दव प त’ उनके इ ह गे। धृ तमान्, अ य, त वदश ,



न सुक, नम ह, सुतपा और न क प—ये सात स त ष ह गे। च सेन, व च , नय त, नभय, ढ, सुने , बु तथा सु त—ये रौ य मनुके पु राजा ह गे।



रौ य मनुक उ प



-कथा



माक डेयजी कहते ह— न्! पूवकालक बात है, जाप त च ममता और अहङ् कारसे र हत इस पृ वीपर वचरते थे। उ ह कसीसे भय नह था। वे ब त कम सोते थे। उ ह ने न तो अ नक थापना क थी और न अपने लये घर ही बना रखा था। वे एक बार भोजन करते और बना आ मके ही रहते थे। उ ह सब कारक आस य से र हत एवं मु नवृ से रहते दे ख उनके पतर ने उनसे कहा। पतर बोले—बेटा! ववाह वग और अपवगका हेत*ु होनेके कारण एक पु यमय काय है; उसे तुमने य नह कया? गृह थ पु ष सम त दे वता , पतर , ऋ षय और अ त थय क पूजा करके पु यमय लोक को ा त करता है। वह ‘ वाहा’ के उ चारणसे दे वता को, ‘ वधा’ श दसे पतर को तथा अ दान (ब लवै दे व) आ दसे भूत आ द ा णय एवं अ त थय को उनका भाग सम पत करता है। बेटा! हम ऐसा मानते ह क गृह थ आ मको वीकार न करनेपर तु ह इस जीवनम लेश-पर- लेश उठाना पड़ेगा तथा मृ युके बाद और सरे ज मम भी लेश ही भोगने पड़गे। चने कहा— पतृगण! प र हमा ही अ य त ःख एवं पापका कारण होता है तथा उससे मनु यक अधोग त होती है, यही सोचकर मने पहले ीसं ह नह कया। मन और इ य को नय णम रखकर जो यह आ मसंयम कया जाता है, वह भी प र ह करनेपर मो का साधक नह होता। ममता प क चड़म सना आ होनेपर भी यह आ मा जो प र हशू य च पी जलसे त दन धोया जाता है, वह े य न है। जते य व ान को चा हये क वे अनेक ज म ारा स चत कम पी पङ् कम सने ए आ माका स ासना पी जलसे ालन कर। पतर बोले—बेटा! जते य होकर आ माका ालन करना उ चत ही है; क तु तुम जसपर चल रहे हो, वह मो का माग है। क तु फले छार हत दान और शुभाशुभके उपभोगसे भी पूवकृत अशुभ कम र होता है। इसी कार दयाभावसे े रत होकर जो कम कया जाता है, वह ब धनकारक नह होता। फल-कामनासे र हत कम भी ब धनम नह डालता। पूवज मम कया आ मानव का शुभाशुभ कम सुख- ःखमय भोग के पम त दन भोगनेपर ही



ीण होता है।१ इस



कार व ान् पु ष आ माका



ालन करते और



उसक ब धन से र ा करते ह। ऐसा करनेसे वह अ ववेकके कारण पाप पी क चड़म नह फँसता। चने पूछा— पतामहो! वेदम कममागको अ व ा कहा गया है, फर य आपलोग मुझे उस मागम लगाते ह? पतर बोले—यह स य है क कमको अ व ा ही कहा गया है, इसम त नक भी म या नह है; फर भी इतना तो न त है क उस व ाक ा तम कम ही कारण है। व हत कमका पालन न करके जो अधम मनु य संयम करते ह, वह संयम अ तम मो क ा त नह कराता; अ पतु अधोग तम ले जानेवाला होता है। व स! तुम तो समझते हो क म आ माका ालन करता ँ; क तु वा तवम तुम शा व हत कम के न करनेके कारण पाप से द ध हो रहे हो! कम अ व ा होनेपर भी व धके पालन ारा शोधे ए वषक भाँ त मनु य का उपकार करनेवाला ही होता है। इसके वपरीत वह व ा भी व धक अवहेलनासे न य ही हमारे ब धनका कारण बन जाती है।२ अतः व स! तुम व धपूवक ी-सं ह करो। ऐसा न हो क इस लोकका लाभ न मलनेके कारण तु हारा ज म न फल हो जाय।



चने कहा— पतरो! अब तो म बूढ़ा हो गया; भला, मुझको कौन ी दे गा। इसके सवा मुझ-जैसे द र के लये ीको रखना ब त क ठन काय है। पतर बोले—व स! य द हमारी बात नह मानोगे तो हमलोग का पतन हो जायगा और तु हारी भी अधोग त होगी। माक डेयजी कहते ह—मु न े ! य कहकर पतर उनके दे खते-दे खते वायुके बुझाये ए द पकक भाँ त सहसा अ य हो गये। पतर क बातसे चका मन ब त उ न आ। वे अपने ववाहके लये क या ा त करनेक इ छासे पृ वीपर वचरने लगे। वे पतर के वचन प अ नसे द ध हो रहे थे। कोई क या न मलनेसे उ ह बड़ी भारी च ता ई। उनका च अ य त ाकुल हो उठा। इसी अव थाम उ ह यह बु सूझी क ‘म तप याके ारा ी ाजीक आराधना क ँ ।’ ऐसा न य करके उ ह ने कठोर नयमका आ य ले ी ाजीक आराधनाके न म सौ वष तक भारी तप या क । तदन तर लोक पतामह ाजीने उ ह दशन दया और कहा—‘म स ँ, तु हारी जो इ छा हो, माँग लो।’ तब चने जगत्के आधारभूत ाजीको णाम करके पतर के कथनानुसार अपना अभी नवेदन कया। चक



अ भलाषा सुनकर ाजीने उनसे कहा—‘ व वर! तुम जाप त होओगे। तुमसे जाक सृ होगी। जाक सृ तथा पु क उ प करनेके साथ ही शुभ कम का अनु ान करके जब तुम अपने अ धकारका याग कर दोगे, तब तु ह स ा त होगी। अब तुम ी- ा तक अ भलाषा लेकर पतर का पूजन करो। वे ही स होनेपर तु ह मनोवा छत प नी और पु दान करगे। भला, पतर स तु हो जायँ तो वे या नह दे सकते।’



माक डेयजी कहते ह—मुने! अ ज मा ाजीके ये वचन सुनकर चने नद के एका त तटपर पतर का तपण कया और भ से म तक झुकाकर एका एवं संयत- च हो नीचे लखे ो ारा आदरपूवक उनक तु त क — च बोले—जो ा म अ ध ाता दे वताके पम नवास करते ह तथा दे वता भी ा म ‘ वधा त’ वचन ारा जनका तपण करते ह, उन पतर को म णाम करता ँ। भ और मु क अ भलाषा रखनेवाले मह षगण वगम भी मान सक ा के ारा भ पूवक ज ह तृ त करते ह, स गण द



उपहार ारा ा म जनको स तु करते ह, आ य तक समृ क इ छा रखनेवाले गु क भी त मय होकर भ भावसे जनक पूजा करते ह, भूलोकम मनु यगण जनक सदा आराधना करते ह, जो ा म ापूवक पू जत होनेपर मनोवा छत लोक दान करते ह, पृ वीपर ा णलोग अ भल षत व तुक ा तके लये जनक अचना करते ह तथा जो आराधना करनेपर ाजाप य लोक दान करते ह, उन पतर को म णाम करता ँ। तप या करनेसे जनके पाप धुल गये ह तथा जो संयमपूवक आहार करनेवाले ह, ऐसे वनवासी महा मा वनके फल-मूल ारा ा करके ज ह तृ त करते ह, उन पतर को म म तक झुकाता ँ। नै क चय तका पालन करनेवाले संयता मा ा ण समा धके ारा ज ह सदा तृ त करते ह, य सब कारके ा ोपयोगी पदाथ के ारा व धवत् ा करके जनको स तु करते ह, जो तीन लोक को अभी फल दे नेवाले ह, वकमपरायण वै य पु प, धूप, अ और जल आ दके ारा जनक पूजा करते ह तथा शू भी ा ारा भ पूवक जनक तृ त करते ह और जो संसारम सुकालीके नामसे व यात ह, उन पतर को म णाम करता ँ। पातालम बड़े-बड़े दै य भी द भ और मद यागकर ा ारा जन वधाभोजी पतर को सदा तृ त करते ह, मनोवा छत भोग को पानेक इ छा रखनेवाले नागगण रसातलम स पूण भोग एवं ा से जनक पूजा करते ह तथा म , भोग और स प य से यु सपगण भी रसातलम ही व धपूवक ा करके ज ह सवदा तृ त करते ह, उन पतर को म नम कार करता ँ। जो सा ात् दे वलोकम, अ त र म और भूतलपर नवास करते ह, दे वता आ द सम त दे हधारी जनक पूजा करते ह, उन पतर को म नम कार करता ँ। वे पतर मेरे ारा अ पत कये ए इस जलको हण कर। जो परमा म व प पतर मू तमान् होकर वमान म नवास करते ह, जो सम त लेश से छु टकारा दलानेम हेतु ह तथा योगी रगण नमल दयसे जनका यजन करते ह, उन पतर को म णाम करता ँ। जो वधाभोजी पतर द लोकम मू तमान् होकर रहते ह, का यफलक इ छा रखनेवाले पु षक सम त कामना को पूण करनेम समथ ह और न काम पु ष को मो दान करनेवाले ह, उनको म णाम करता ँ। वे सम त पतर इस जलसे तृ त ह , जो चाहनेवाले पु ष को इ छानुसार भोग दान करते ह, दे व व, इ व तथा उससे ऊँचे पदक ा त कराते ह; इतना ही नह , जो पु , पशु, धन, बल और गृह भी दे ते ह। जो पतर च माक करण म सूयके म डलम तथा ेत वमान म सदा नवास करते ह, वे मेरे दये ए अ , जल और ग ध आ दसे तृ त एवं पु ह । अ नम ह व यका हवन करनेसे जनको



तृ त होती है, जो ा ण के शरीरम थत होकर भोजन करते ह तथा प डदान करनेसे ज ह स ता ा त होती है, वे पतर यहाँ मेरे दये ए अ और जलसे तृ त ह । जो दे वता से भी पू जत ह तथा सब कारसे ा ोपयोगी पदाथ ज ह अ य त य ह, वे पतर यहाँ पधार। मेरे नवेदन कये ए पु प, ग ध, अ एवं भो य पदाथ के नकट उनक उप थ त हो। जो त दन पूजा हण करते ह, येक मासके अ तम जनक पूजा करनी उ चत है, जो अ का म, वषके अ तम तथा अ युदयकालम भी पूजनीय ह, वे मेरे पतर वहाँ तृ त लाभ कर। जो ा ण के यहाँ कुमुद और च माके समान शा त धारण करके आते ह, य के लये जनका वण नवो दत सूयके समान है, जो वै य के यहाँ सुवणके समान उ वल का त धारण करते ह तथा शू के लये जो याम वणके हो जाते ह, वे सम त पतर मेरे दये ए पु प, ग ध, धूप, अ और जल आ दसे तथा अ नहो से सदा तृ त लाभ कर। म उन सबको णाम करता ँ। जो वै दे वपूवक सम पत कये ए ा को पूण तृ तके लये भोजन करते ह और तृ त हो जानेपर ऐ यक सृ करते ह, वे पतर यहाँ तृ त ह । म उन सबको नम कार करता ँ। जो रा स , भूत तथा भयानक असुर का नाश करते ह, जाजन का अम ल र करते ह, जो दे वता के भी पूववत तथा दे वराज इ के भी पू य ह, वे यहाँ तृ त ह । म उ ह णाम करता ँ। अ न वा पतृगण मेरी पूव दशाक र ा कर, ब हषद् पतृगण द ण दशाक र ा कर। आ यप नामवाले पतर प म दशाक तथा सोमप सं क पतर उ र दशाक र ा कर। उन सबके वामी यमराज रा स , भूत , पशाच तथा असुर के दोषसे सब ओरसे मेरी र ा कर। व , व भुक्, आरा य, धम, ध य, शुभानन, भू तद, भू तकृत् और भू त—ये पतर के नौ गण ह। क याण, क यताकता, क य, क यतरा य, क यता-हेतु तथा अन —ये पतर के छः गण माने गये ह। वर, वरे य, वरद, पु द, तु द, व पाता तथा धाता—ये पतर के सात गण ह। महान्, महा मा, म हत, म हमावान् और महाबल—ये पतर के पापनाशक पाँच गण ह। सुखद, धनद, धमद और भू तद —ये पतर के चार गण कहे जाते ह। इस कार कुल इकतीस पतृगण ह, ज ह ने स पूण जगत्को ा त कर रखा है। वे सब पूण तृ त होकर मुझपर स तु ह और सदा मेरा हत कर। माक डेयजी कहते ह—मुने! इस कार तु त करते ए चके सम सहसा एक ब त ऊँचा तेजःपु कट आ, जो स पूण आकाशम ा त था। सम त संसारको ा त करके थत ए उस महान् तेजको दे खकर चने पृ वीपर घुटने टे क दये और इस तो का गान कया—



च वाच अ चतानाममू ानां पतॄणां द ततेजसाम् । नम या म सदा तेषां या ननां द च ुषाम् ।। इ ाद नां च नेतारो द मारीचयो तथा । स तष णां तथा येषां तान् नम या म कामदान् ।। म वाद नां मुनी ाणां सूयाच मसो तथा । तान् नम या यहं सवान् पतॄन सूदधाव प ।। न ाणां हाणां च वा व योनभस तथा । ावापृ थ ो तथा नम या म कृता लः ।। दे वष णां ज नतॄं सवलोकनम कृतान् । अ य य सदा दातॄन् नम येऽहं कृता लः ।। जापतेः क यपाय सोमाय व णाय च । योगे रे य सदा नम या म कृता लः ।। नमो गणे यः स त य तथा लोकेषु स तसु ।



वय भुवे नम या म णे योगच ुषे ।। सोमाधारान् पतृगणान् योगमू धरां तथा । नम या म तथा सोमं पतरं जगतामहम् ।। अ न पां तथैवा यान् नम या म पतॄनहम् । अ नीषोममयं व ं यत एतदशेषतः ।। ये तु तेज स ये चैते सोमसूया नमूतयः । जग व पण ैव तथा व पणः ।। ते योऽ खले यो यो ग यः पतृ यो यतमानसः । नमो नमो नम ते मे सीद तु वधाभुजः ।। च बोले—जो सबके ारा पू जत, अमूत, अ य त तेज वी, यानी तथा द स प ह, उन पतर को म सदा नम कार करता ँ। जो इ आ द दे वता , द , मारीच, स त षय तथा सर के भी नेता ह, कामनाक पू त करनेवाले उन पतर को म णाम करता ँ। जो मनु आ द राज षय , मुनी र तथा सूय और च माके भी नायक ह, उन सम त पतर को म जल और समु म भी नम कार करता ँ। न , ह , वायु, अ न, आकाश और ुलोक तथा पृ वीके भी जो नेता ह, उन पतर को म हाथ जोड़कर णाम करता ँ। जो दे व षय के ज मदाता, सम त लोक ारा व दत तथा सदा अ य फलके दाता ह, उन पतर को म हाथ जोड़कर णाम करता ँ। जाप त, क यप, सोम, व ण तथा योगे र के पम थत पतर को सदा हाथ जोड़कर णाम करता ँ। सात लोक म थत सात पतृगण को नम कार है। म योग स प वय भू ाजीको णाम करता ँ। च माके आधारपर त त तथा योगमू तधारी पतृगण को म णाम करता ँ। साथ ही स पूण जगत्के पता सोमको नम कार करता ँ तथा अ न व प अ य पतर को भी णाम करता ँ; य क यह स पूण जगत् अ न और सोममय है। जो पतर तेजम थत ह, जो ये च मा, सूय और अ नके पम गोचर होते ह तथा जो जग व प एवं व प ह, उन स पूण योगी पतर को म एका च होकर णाम करता ँ। उ ह बारंबार नम कार है। वे वधाभोजी पतर मुझपर स ह । माक डेयजी कहते ह—मु न े ! चके इस कार तु त करनेपर वे पतर दस दशा को का शत करते ए उस तेजसे बाहर नकले। चने जो फूल, च दन और अ राग आ द सम पत कये थे, उन सबसे वभू षत होकर वे पतर सामने खड़े दखायी दये। तब चने हाथ जोड़कर पुनः भ पूवक उ ह णाम कया और बड़े आदरके साथ सबसे पृथक्-पृथक् कहा—‘आपको नम कार है, आपको नम कार है।’ इससे स होकर पतर ने मु न े चसे



कहा—‘व स! तुम कोई वर माँगो।’ तब उ ह ने म तक झुकाकर कहा —‘ पतरो! इस समय ाजीने मुझे सृ करनेका आदे श दया है; इस लये म द गुण से स प उ म प नी चाहता ँ, जससे स तानक उ प हो सके।’



पतर ने कहा—व स! यह , इसी समय तु ह अ य त मनोहर प नी ा त होगी और उसके गभसे तु ह ‘मनु’ सं क उ म पु क ा त होगी। वह बु मान् पु म व तरका वामी होगा और तु हारे ही नामपर तीन लोक म ‘रौ य’ के नामसे उसक या त होगी। उसके भी महाबलवान् और परा मी ब त-से महा मा पु ह गे, जो इस पृ वीका पालन करगे। धम ! तुम भी जाप त होकर चार कारक जा उ प करोगे और फर अपना अ धकार ीण होनेपर स को ा त होओगे। जो मनु य इस तो से भ पूवक हमारी तु त करेगा, उसके ऊपर स तु होकर हमलोग उसे मनोवा छत भोग तथा उ म आ म ान दान करगे। जो नीरोग शरीर, धन और पु -पौ आ दक इ छा करता हो, वह सदा इस तो से हमलोग क तु त करे। यह तो हमलोग क स ता बढ़ानेवाला है। जो ा म भोजन करनेवाले े



ा ण के सामने खड़ा हो भ पूवक इस तो का पाठ करेगा, उसके यहाँ तो वणके ेमसे हम न य ही उप थत ह गे और हमारे लये कया आ ा भी नःस दे ह अ य होगा। चाहे ो य ा णसे र हत ा हो, चाहे वह कसी दोषसे षत हो गया हो अथवा अ यायोपा जत धनसे कया गया हो अथवा ा के लये अयो य षत साम य से उसका अनु ान आ हो, अनु चत समय या अयो य दे शम आ हो या उसम व धका उ लङ् घन कया गया हो अथवा लोग ने बना ाके या दखावेके लये कया हो तो भी वह ा इस तो के पाठसे हमारी तृ त करनेम समथ होता है। हम सुख दे नेवाला यह तो जहाँ ा म पढ़ा जाता है, वहाँ हमलोग को बारह वष तक बनी रहनेवाली तृ त ा त होती है। यह तो हेम त-ऋतुम ा के अवसरपर सुनानेसे हम बारह वष के लये तृ त दान करता है। इसी कार श शर-ऋतुम यह क याणमय तो हम चौबीस वष तक तृ तकारक होता है। वस त-ऋतुके ा म सुनानेपर यह सोलह वष तक तृ तकारक होता है तथा ी म-ऋतुम पढ़े जानेपर भी यह उतने ही वष तक तृ तका साधक होता है। चे! वषाऋतुम कया आ ा य द कसी अ से वकल हो तो भी इस तो के पाठसे पूण होता है और उस ा से हम अ य तृ त होती है। शर कालम भी ा के अवसरपर य द इसका पाठ हो तो यह हम पं ह वष तकके लये तृ त दान करता है। जस घरम यह तो सदा लखकर रखा जाता है, वहाँ ा करनेपर हमारी न य ही उप थ त होती है; अतः महाभाग! ा म भोजन करनेवाले ा ण के सामने तु ह यह तो अव य सुनाना चा हये; य क यह हमारी पु करनेवाला है। माक डेयजी कहते ह— ौ ु कजी! तदन तर चके समीप उस नद के भीतरसे छरहरे अ वाली मनोहर अ सरा लोचा कट ई और महा मा चसे मधुर वाणीम वनयपूवक बोली—‘तप वय म े च! मेरी एक परम सु दरी क या है, जो व णके पु महा मा पु करसे उ प ई है। म उस सु दरी क याको तु ह प नी बनानेके लये दे ती ँ, हण करो। उसके गभसे तु हारे पु महाबु मान् मनुका ज म होगा।’ तब चने ‘तथा तु’ कहकर उसक बात वीकार क । इसके बाद लोचाने अपनी क या मा लनीको जलके बाहर कट कया। मु न े चने मह षय को बुलाकर नद के तटपर उसका व धपूवक पा ण हण कया। उसीके गभसे महापरा मी परम बु मान् पु का ज म आ, जो इस भूम डलम पताके नामपर ‘रौ य’ मनुके नामसे ही व यात ए। उनके म व तरम जो दे वता, स त ष तथा मनुपु नृपगण होनेवाले ह, उन सबके नाम तु ह बतलाये जा चुके ह। इस म व तरक कथा सुननेपर मनु य के धमक



वृ , आरो यक ा त तथा धन-धा य और पु क उ प होती है—इसम त नक भी स दे ह नह है। महामुने! पतर का तवन तथा उनके भ - भ गण का वणन सुनकर मनु य उ ह के सादसे स पूण कामना को ा त करता है।



*



अ नहो एवं य -यागा द कमम सप नीक गृह थका ही अ धकार है; ये कम न कामभावसे ह तो मो दे नेवाले होते ह और सकामभावसे कये जायँ तो वगा द फल के साधक होते ह। जो उ कम करते ह, उ ह का ववाह वग-अपवगका साधक है। जो ववाह करके गृह थो चत शुभ-कम का अनु ान नह करते, उनके लये तो ववाह-कम घोर ब धनका ही कारण होता है। १-पर तु दानैरशुभं नु तेऽन भसं हतैः । फलै तथोपभोगै पूवकम शुभाशुभैः ।। एवं न ब धो भव त कुवतः क णा मकम् । न च ब धाय त कम भव यन भसं हतम् ।। पूवकम कृतं भोगैः ीयतेऽह नशं तथा । सुख ःखा मकैव स पु यापु या मकं नृणाम् ।। (९५।१४—१६) २- ालयामी त भवान् व सा मानं तु म यते । व हताकरणोद्भूतैः पापै वं तु वद से ।। अ व ा युपकाराय वषव जायते नृणाम् । अनु ता युपायेन ब धाया या प नो ह सा ।।



(९५।२१—२२)



भौ य म व तरक कथा तथा चौदह म व तर के फल



वणका



माक डेयजी कहते ह— न्! इसके प ात् अब तुम भौ य मनुक उ प का स सुनो तथा उस समय होनेवाले दे व षय और पृ वीका पालन करनेवाले मनु-पु आ दके नाम भी वण करो। अ रा मु नके एक श य थे, जनका नाम भू त था। वे बड़े ही ोधी तथा छोट -सी बातके लये अपराध होनेपर च ड शाप दे नेवाले थे। उनक बात कठोर होती थ । उनके आ मपर हवा ब त तेज नह बहती थी। सूय अ धक गम नह प ँचाते थे और मेघ अ धक क चड़ नह होने दे ते थे। उन अ य त तेज वी ोधी मह षके भयसे च मा अपनी सम त करण से प रपूण होनेपर भी अ धक सद नह प ँचाते थे। सम त ऋतुएँ उनक आ ासे अपने आनेका म छोड़कर आ मके वृ पर सदा ही रहत और मु नके लये फल-फूल तुत करती थ । महा मा भू तके भयसे जल भी उनके आ मके समीप मौजूद रहता और उनके कम डलुम भी भरा रहता था। भू त मु नके एक भाई थे, जो सुवचाके नामसे व यात थे। उ ह ने य म भू तको नम त कया। वहाँ जानेक इ छासे भू तने अपने परम बु मान्, शा त, जते य, वनीत, गु के कायम सदा संल न रहनेवाले, सदाचारी और उदार श य मु नवर शा तसे कहा—‘व स! म अपने भाई सुवचाके य म जाऊँगा। उ ह ने मुझे बुलाया है। तु ह यह आ मपर रहना है। यहाँ तु हारे लये जो कत है, सुनो। मेरे आ मपर तु ह त दन अ नको व लत रखना होगा और सदा ऐसा य न करना होगा, जससे अ न बुझने न पाये।’



गु क यह आ ा पाकर जब शा त नामक श यने ‘ब त अ छा’ कहकर इसे वीकार कया, तब अपने छोटे भाईके बुलानेपर भू त मु न उनके य म चले गये। इधर शा त गु भ के वशम होकर उन महा मा गु क सेवाके लये जबतक स मधा, फूल और फल आ द जुटाते रहे तथा अ य आव यक काय करते रहे, तबतक भू त मु नके ारा स चत अ न शा त हो गयी। अ नको शा त आ दे ख शा तको बड़ा ःख आ और वे भू तके भयसे ब त च तत ए। उ ह ने सोचा, ‘य द इस अ नके थानम म सरी अ न था पत क ँ तो सब कुछ य दे खनेवाले मेरे गु अव य ही मुझे भ म कर डालगे, म पापी अपने गु के ोध और शापका कारण बनूँगा। मुझे अपने लये उतना शोक नह है, जतना क गु के अपराध करनेका शोक है। अ न शा त ई दे ख गु दे व मुझे न य ही शाप दे दगे। जनके भावसे डरकर दे वता भी उनके शासनम रहते ह, वे मुझ अपराधीको शापसे द ध न कर, इसके लये या उपाय हो सकता है?’ अपने गु के डरसे डरे ए बु मान म े शा त मु नने इस तरह अनेक कारसे सोच- वचार करके अ नदे वक शरण ली। उसने मनपर संयम कया और पृ वीपर घुटने



टे क हाथ जोड़ एका च हो तो आर भ कया। शा तने कहा—सम त ा णय के साधक महा मा अ नदे वको नम कार है। उनके एक, दो और पाँच थान ह। वे राजसूय-य म छः व प धारण करते ह। सम त दे वता को वृ दे नेवाले अ य त तेज वी अ नदे वको नम कार है। जो स पूण जगत्के कारण प तथा पालन करनेवाले ह, उन अ नदे वको णाम है। अ ने! तुम स पूण दे वता के मुख हो। भगवन्! तु हारे ारा हण कया आ ह व य सब दे वता को तृ त करता है। तु ह सम त दे वता के ाण हो। तुमम हवन कया आ ह व य अ य त प व होता है, फर वही मेघ बनकर जल पम प रणत हो जाता है। फर उस जलसे सब कारके अ आ द उ प होते ह। अ नलसारथे! फर उन सम त अ आ दसे सब जीव सुखपूवक जीवन धारण करते ह। अ नदे व! तु हारे ारा उ प क ई ओष धय से मनु य य करते ह। य से दे वता, दै य तथा रा स तृ त होते ह। ताशन! उन य के आधार तु ह हो, अतः अ ने! तु ह सबके आ दकारण और सव व प हो। दे वता, दानव, य , दै य, ग धव, रा स, मनु य, पशु, वृ , मृग, प ी तथा सप—ये सभी तुमसे ही तृ त होते और तु ह से वृ को ा त होते ह। तु ह से इनक उ प है और तु ह म इनका लय होता है। दे व! तु ह जलक सृ करते और तु ह उसको पुनः सोख लेते हो। तु हारे पकानेसे ही जल ा णय क पु करता है। तुम दे वता म तेज, स म का त, नाग म वष और प य म वायु पसे थत हो। मनु य म ोध, प ी और मृग आ दम मोह, वृ म थरता, पृ वीम कठोरता, जलम व व तथा वायुम जल पसे तु हारी थ त है। अ ने! ापक होनेके कारण तुम आकाशम आ मा पसे थत हो। अ नदे व! तुम स पूण भूत के अ तःकरणम वचरते तथा सबका पालन करते हो। व ान् पु ष तुमको एक कहते ह, तथा फर वे ही तु ह तीन कारका बतलाते ह। तु ह आठ प म क पत करके ऋ षय ने आ दय का अनु ान कया था। मह षगण इस व को तु हारी सृ बतलाते ह। ताशन! तु हारे बना यह स पूण जगत् त काल न हो जायगा। ा ण ह -क आ दके ारा ‘ वाहा’और ‘ वधा’का उ चारण करते ए तु हारी पूजा करके अपने कम के अनुसार व हत उ म ग तको ा त होते ह। दे वपू जत अ नदे व! ा णय के प रणाम, आ मा और वीय व प तु हारी वालाएँ तुमसे ही नकलकर सब भूत का दाह करती ह। परम का तमान् अ नदे व! संसारक यह सृ तुमने ही क है। तु हारा ही य प वै दक कम सवभूतमय जगत् है। पीले ने वाले अ नदे व! तु ह नम कार है। ताशन! तु ह नम कार है। पावक! आज तु ह नम कार है। ह वाहन! तु ह नम कार है। तुम ही खाये-पीये ए पदाथ को पचानेके कारण व के पालक हो। तु ह खेतीको पकानेवाले और जगत्के पोषक हो। तु ह मेघ हो, तु ह वायु हो और तु ह सम त ा णय का पोषण करनेके लये खेतीके हेतुभूत बीज हो। भूत, भ व य और वतमान—सब तु ह हो। तु ह सब जीव के भीतर काश हो। तु ह सूय और तु ह अ न हो। अ ने! दन-रात तथा दोन स याएँ तु ह



हो। सुवण तु हारा वीय है। तुम सुवणक उ प के कारण हो। तु हारे गभम सुवणक थ त है। सुवणके समान तु हारी का त है। मु , ण, ु ट और लव—सब तु ह हो। जग भो! कला, का ा और नमेष आ द तु हारे ही प ह। यह स पूण य तु ह हो। प रवतनशील काल भी तु हारा ही व प है। भो! तु हारी जो काली नामक ज ा है, वह कालको आ य दे नेवाली है। उसके ारा तुम पाप के भयसे हम बचाओ तथा इस लोकके महान् भयसे हमारी र ा करो। तु हारी जो कराली नामक ज ा है, वह महा लयक कारण पा है। उसके ारा हम पाप तथा इहलोकके महान् भयसे बचाओ। तु हारी जो मनोजवा नामक ज ा है, वह ल घमा नामक गुण व पा है। उसके ारा तुम पाप तथा इस लोकके महान् भयसे हमारी र ा करो। तु हारी जो सुलो हता नामक ज ा है, वह स पूण भूत क कामनाएँ पूण करती है। उसके ारा तुम पाप तथा इस लोकके महान् भयसे हमारी र ा करो। तु हारी जो सुधू वणा नामक ज ा है, वह ा णय के रोग का दाह करनेवाली है। उसके ारा तुम पाप तथा इस लोकके महान् भयसे हमारी र ा करो। तु हारी जो फु ल नी नामक ज ा है जससे स पूण जीव के शरीर उ प ए ह, उसके ारा तुम पाप तथा इस लोकके महान् भयसे हमारी र ा करो। तु हारी जो व ा नामक ज ा है, वह सम त ा णय का क याण करनेवाली है। उसके ारा तुम पाप तथा इस लोकके महान् भयसे हमारी र ा करो। ताशन! तु हारे ने पीले, ीवा लाल और रंग साँवला है। तुम सब दोष से हमारी र ा करो और संसारसे हमारा उ ार कर दो। व , स ता च, कृशानु, ह वाहन, अ न, पावक, शु तथा ताशन—इन आठ नाम से पुकारे जानेवाले अ नदे व! तुम स हो जाओ। तुम अ य, अ च य समृ मान्, ःसह एवं अ य त ती व हो। तुम मूत पम कट होकर अ वनाशी कहे जानेवाले स पूण भयंकर लोक को भ म कर डालते हो अथवा तुम अ य त परा मी हो—तु हारे परा मक कह सीमा नह है। ताशन! तुम स पूण जीव के दय-कमलम थत उ म, अन त एवं तवन करने यो य स व हो। तुमने इस स पूण चराचर व को ा त कर रखा है। तुम एक होकर भी यहाँ अनेक प म कट ए हो। पावक! तुम अ य हो, तु ह पवत और वन स हत स पूण पृ वी, आकाश, च मा, सूय तथा दन-रात हो। महासागरके उदरम बड़वानलके पम तु ह हो तथा तु ह अपनी परा वभू तके साथ सूयक करण म थत हो। भगवन्! तुम हवन कये ए ह व यका सा ात् भोजन करते हो, इस लये बड़ेबड़े य म नयमपरायण मह षगण सदा तु हारी पूजा करते ह। तुम य म तुत होकर सोमपान करते हो तथा वषट् का उ चारण करके इ के उ े यसे दये ए ह व यको भी तु ह भोग लगाते हो और इस कार पू जत होकर तुम स पूण व का क याण करते हो। व गण अभी फलक ा तके लये सदा तु हारा ही यजन करते ह। स पूण वेदा म तु हारी म हमाका गान कया जाता है। य परायण े ा ण तु हारी ही स ताके लये सवदा अ स हत वेद का पठन-पाठन करते रहते ह। तु ह य परायण ा, सब भूत के



वामी भगवान् व णु, दे वराज इ , अयमा, जलके वामी व ण, सूय तथा च मा हो। स पूण दे वता और असुर भी तु ह को ह व य ारा संतु करके मनोवा छत फल ा त करते ह। कतने ही महान् दोषसे षत व तु य न हो, वह सब तु हारी वाला के पशसे शु हो जाती है। सब नान म तु हारे भ मसे कया आ नान ही सबसे बढ़कर है, इसी लये मु नगण स याकालम उसका वशेष पसे सेवन करते ह। शु च नामवाले अ नदे व! मुझपर स होओ। वायु प! मुझपर स होओ। अ य त नमल का तवाले पावक! मुझपर स होओ। व ु मय! आज मुझपर स होओ। ह व यभोजी अ नदे व! तुम मेरी र ा करो। व े ! तु हारा जो क याणमय व प है, दे व! तु हारी जो सात वालामयी ज ाएँ ह, उन सबके ारा तुम मेरी र ा करो—ठ क उसी तरह, जैसे पता अपने पु क र ा करता है। मने तु हारी तु त क है। माक डेयजी कहते ह—मुने! शा तके इस कार तु त करनेपर भगवान् अ नदे व वाला से घरे ए उनके सम कट ए। न्! अ नदे व उस तो से ब त संतु थे। शा त उनके चरण म पड़ गये; फर उ ह ने मेघके समान ग भीर वाणीम शा तसे कहा —‘ व वर! तुमने जो भ पूवक मेरा तवन कया है, उससे म स तु ँ और तु ह वर दे ना चाहता ँ। तु हारी जो इ छा हो, माँग लो।’



शा तने कहा—भगवन्! म तो कृताथ हो गया, य क आज आपके द व पका य दशन कर रहा ँ। तथा प म भ से वनीत होकर जो कुछ आपसे कहता ँ, उसे आप सुन। दे व! मेरे आचाय अपने आ मसे भाईके य म गये ह। वे जब लौटकर आय तो इस थानको आपसे सनाथ दे ख। साथ ही य द आपक मुझपर कृपा हो तो यह सरा वर भी द जये। मेरे गु दे वके कोई पु नह है, उ ह कोई सुयो य पु ा त हो; फर उस पु म वे जतना नेह कर, उतना ही स पूण भूत के त भी उनका नेह हो। उनका दय सबके त कोमल बन जाय। शा तक यह बात सुनकर अ नदे वने कहा—‘महामुने! तुमने गु के लये वर दो माँगे ह, अपने लये नह । इससे तुमपर मेरी स ता और भी बढ़ गयी है। तुमने गु के लये जो कुछ माँगा है, वह सब ा त होगा। उनके पु होगा और स पूण भूत के त उनक मै ी भी बढ़ जायगी। उनका पु ‘भौ य’ नामसे स एवं म व तर का वामी होगा; साथ ही वह महाबली, महापरा मी और परम बु मान् होगा। जो एका च होकर इस तो के



ारा मेरी तु त करेगा, उसक सम त अ भलाषाएँ पूण ह गी तथा उसे पु यक भी ा त होगी। य म, पवके समय, तीथ म और होमकमम जो धमके लये मेरे इस तो का पाठ करेगा, उसके लये यह अ य त पु कारक होगा। होम न करने तथा अयो य समयम होम करने आ दके जो दोष ह और अयो य पु ष ारा हवन करनेसे जो दोष उ प होते ह, उन सबको यह तो सुननेमा से शा त कर दे ता है। पू णमा, अमावा या तथा अ य पव पर मनु य ारा सुना आ मेरा यह तो उनके पाप का नाश करनेवाला होता है।’ माक डेयजी कहते ह—मुने! य कहकर भगवान् अ न उनके दे खते-दे खते बुझे ए द पकक भाँ त त काल अ य हो गये। अ नदे वके चले जानेपर शा तका च ब त स तु था। उनके शरीरम हषके कारण रोमा च हो आया था। इसी अव थाम उ ह ने गु के आ मम वेश कया और वहाँ अ नदे वको पहलेक ही भाँ त व लत दे खा। इससे उ ह बड़ी स ता ई। इसी बीचम उनके गु भी छोटे भाईके य से अपने आ मको लौटे । श य शा तने गु के सामने जाकर उनके चरण म णाम कया। उनके दये ए आसन और पूजाको वीकार करके गु ने उनसे कहा—‘व स! तुमपर तथा अ य जीव पर भी मेरा नेह ब त बढ़ गया है। म नह जानता, यह या बात है। य द तु ह कुछ पता हो तो बताओ।’ तब शा तने अपने आचायसे अ नके बुझने आ दक सब बात यथाथ पसे कह सुनाय । यह सुनकर गु के ने नेहके कारण सजल हो आये। उ ह ने शा तको दयसे लगा लया और उ ह अ -उपा स हत स पूण वेद का ान कराया। तदन तर भू त मु नके ‘भौ य’ नामक पु आ, जो भ व यम मनु होगा। उस म व तरम चा ुष, क न , प व , ा जर तथा धारावृक—ये पाँच दे वगण माने गये ह; इन सबके इ ह गे शु च, जो महाबली, महापरा मी तथा इ के सम त गुण से यु ह गे। आ नी , अ नबा , शु च, मु , माधव, शु और अ जत—ये सात उस समयके स त ष ह गे। गु , गभीर, न, भरत, अनु ह, ीमानी, तीर, व णु, सं दन, तेज वी तथा सुबल—से मनुके पु ह गे। ौ ु कजी! इस कार मने तुमसे चौदह म व तर का वणन कया। उन सबका मशः वण करके मनु य पु यका भागी होता है तथा उसक स तान कभी ीण नह होती। थम म व तरका वणन सुनकर मनु य धमका भागी होता है। वारो चष म व तरक कथा सुननेसे उसे सब कामना क ा त होती है। औ म म व तरके वणसे धन, तामसके वणसे ान तथा रैवत म व तरके वणसे बु एवं सु दरी ीक ा त होती है। चा ुष म व तरके वणसे आरो य, वैव वतके वणसे बल तथा सूयसाव णक म व तरके वणसे गुणवान् पु -पौ क ा त होती है। साव णक म व तरके वणसे म हमा बढ़ती है। धमसाव णकके वणसे क याणमयी बु ा त होती है और साव णकके वणसे मनु य वजयी होता है। द साव णकके वणसे मनु य अपने कुलम े तथा उ म गुण से यु होता है तथा रौ य म व तरक कथा सुननेसे वह श ु क सेनाका संहार कर डालता है। भौ य म व तरक कथा वण करनेपर मनु य दे वताक कृपा ा त



करता है; इतना ही नह , उसे अ नहो के पु य तथा गुणवान् पु क ा त होती है। म व तर के दे वता, ऋ ष, इ , मनु, मनुके पु तथा राजवंश का वणन सुनकर मनु य सब पाप से मु हो जाता है। दे वता, ऋ ष, इ , राजा तथा म व तर के वामी—ये स होकर क याणमयी बु दान करते ह। वैसी बु पाकर मनु य शुभ कम करता है, जससे वह चौदह इ क आयुपय त उ म ग तका उपभोग करता है।



सूयका त व, वेद का ाक , ाजी ारा सूयदे वक तु त और सृ -रचनाका आर भ ौ ु क बोले— ज े ! आपने म व तर क थ तका भलीभाँ त वणन कया और मने मशः व तारपूवक उसे सुना। अब राजा का स पूण वंश, जसके आ द ाजी ह, म सुनना चाहता ँ; आप उसका यथावत् वणन क जये। माक डेयजीने कहा—व स! जाप त ाजीको आ द बनाकर जसक वृ ई है तथा जो स पूण जगत्का मूल कारण है, उस राजवंशका तथा उसम कट ए राजा के च र का वणन सुनो— जस वंशम मनु, इ वाकु, अनर य, भगीरथ तथा अ य सैकड़ राजा, ज ह ने पृ वीका पालन कया था, उ प ए थे। वे सभी धम , य कता, शूरवीर तथा परम त वके ाता थे। ऐसे वंशका वणन सुनकर मनु य सम त पाप से छू ट जाता है। पूवकालम जाप त ाने नाना कारक जाको उ प करनेक इ छा लेकर दा हने अँगठ ू े से द को उ प कया और बाँये अँगठ ू े से उनक प नीको कट कया। द के अ द त नामक एक सु दरी क या उ प ई, जसके गभसे क यपने भगवान् सूयको ज म दया। ौ ु कने पूछा—भगवन्! म भगवान् सूयके यथाथ व पका वणन सुनना चाहता ँ। वे कस कार क यपजीके पु ए? क यप और अ द तने कैसे उनक आराधना क ? उनके यहाँ अवतीण ए भगवान् सूयका कैसा भाव है? ये सब बात यथाथ पसे बताइये। माक डेयजी बोले— न्! पहले यह स पूण लोक भा और काशसे र हत था। चार ओर घोर अ धकार घेरा डाले ए था। उस समय परम कारण व प एक अ वनाशी एवं बृहत् अ ड कट आ। उसके भीतर सबके पतामह, जगत्के वामी, लोक ा, कमलयो न सा ात् ाजी वराजमान थे। उ ह ने उस अ डका भेदन कया। महामुने! उन ाजीके मुखसे ‘ॐ’ यह महान् श द कट आ। उससे पहले भूः, फर भुवः, तदन तर वः—ये तीन ा तयाँ उ प , जो भगवान् सूयका व प ह। ‘ॐ’ इस व पसे सूयदे वका अ य त सू म प कट आ। उससे ‘महः’ यह थूल प आ, फर उससे ‘जन’ यह थूलतर प उ प आ। उससे ‘तप’ और तपसे ‘स य’ कट आ। इस कार ये सूयके सात व प थत ह, जो कभी का शत होते ह और कभी अ का शत रहते ह। न्! मने ‘ओम्’ यह प बताया है; वह सृ का आ द-अ त, अ य त सू म एवं नराकार है; वही पर तथा वही का व प है। उ अ डका भेदन होनेपर अ ज मा ाजीके थम मुखसे ऋचाएँ कट । उनका वण जपाकुसुमके समान था। वे सब तेजोमयी, एक- सरीसे पृथक् तथा रजोमय प धारण करनेवाली थ । त प ात् ाजीके द ण मुखसे यजुवदके म अबाध पसे



कट ए। जैसा सुवणका रंग होता है, वैसा ही उनका भी था। वे भी एक- सरेसे पृथक्पृथक् थे। फर परमे ी ाके प म मुखसे सामवेदके छ द कट ए। स पूण अथववेद, जसका रंग मर और क जलरा शके समान काला है तथा जसम अ भचार एवं शा तकमके योग ह, ाजीके उ रमुखसे कट आ। उसम सुखमय स वगुण तथा तमोगुणक धानता है। वह घोर और सौ य प है। ऋ वेदम रजोगुणक , यजुवदम स वगुणक , सामवेदम तमोगुणक तथा अथववेदम तमोगुण एवं स वगुणक धानता है। ये चार वेद अनुपम तेजसे दे द यमान होकर पहलेक ही भाँ त पृथक्-पृथक् थत ए। त प ात् वह थम तेज, जो ‘ॐ’ के नामसे पुकारा जाता है, अपने वभावसे कट ए ऋ वेदमय तेजको ा त करके थत आ। महामुने! इसी कार उस णव प तेजने यजुवद एवं सामवेदमय तेजको भी आवृत कया। इस कार उस अ ध ान व प परम तेज ॐकारम चार वेदमय तेज एक वको ा त ए। न्! तदन तर वह पु ीभूत उ म वै दक तेज परम तेज णवके साथ मलकर जब एक वको ा त होता है, तब सबके आ दम कट होनेके कारण उसका नाम आ द य होता है। महाभाग! वह आ द य ही इस व का अ वनाशी कारण है। ातःकाल, म या तथा अपरा कालम आ द यक अ भूत वेद यी ही, जसे मशः ऋक्, यजु, और साम कहते ह, तपती है। पूवा म ऋ वेद, म या म यजुवद तथा अपरा म सामवेद तपता है। इसी लये ऋ वेदो शा तकम पूवा म, यजुवदो पौ ककम म या म तथा सामवेदो आ भचा रक कम अपरा कालम न त कया गया है। आ भचा रक कम म या और अपरा दोन काल म कया जा सकता है, क तु पतर के ा आ द काय अपरा कालम ही सामवेदके म से करने चा हये। सृ कालम ा ऋ वेदमय, पालनकालम व णु यजुवदमय तथा संहारकालम सामवेदमय कहे गये ह। अतएव सामवेदक व न अप व मानी गयी है। इस कार भगवान् सूय वेदा मा, वेदम थत, वेद व ा व प तथा परम पु ष कहलाते ह। वे सनातन दे वता सूय ही रजोगुण और स वगुण आ दका आ य लेकर मशः सृ , पालन और संहारके हेतु बनते ह और इन कम के अनुसार ा, व णु आ द नाम धारण करते ह। वे दे वता ारा सदा तवन करने यो य ह, वेद व प ह। उनका कोई पृथक् प नह है। वे सबके आ द ह। स पूण मनु य उ ह के व प ह। व क आधारभूता यो त वे ही ह। उनके धम अथवा त वका ठ क-ठ क ान नह होता। वे वेदा तग य एवं परसे भी पर ह। तदन तर भगवान् सूयके तेजसे नीचे तथा ऊपरके सभी लोक स त त होने लगे। यह दे ख सृ क इ छा रखनेवाले कमलयो न ाजीने सोचा—सृ , पालन और संहारके कारणभूत भगवान् सूयके सब ओर फैले ए तेजसे मेरी रची ई सृ भी नाशको ा त हो जायगी। जल ही सम त ा णय का जीवन है, वह जल सूयके तेजसे सूखा जा रहा है।



जलके बना इस व क सृ हो ही नह सकती—ऐसा वचारकर लोक पतामह भगवान् ाने एका च होकर भगवान् सूयक तु त आर भ क ।



ाजी बोले—यह सब कुछ जनका व प है, जो सवमय ह, स पूण व जनका शरीर है, जो परम यो तः व प ह तथा योगीजन जनका यान करते ह, उन भगवान् सूयको म नम कार करता ँ। जो ऋ वेदमय ह, यजुवदके अ ध ान ह, सामवेदक यो न ह, जनक श का च तन नह हो सकता, जो थूल पम तीन वेदमय ह और सू म पम णवक अधमा ा ह तथा जो गुण से परे एवं पर व प ह, उन भगवान् सूयको मेरा नम कार है। भगवन्! आप सबके कारण, परम ेय, आ दपु ष, परम यो त, ानातीत व प, दे वता पसे थूल तथा परसे भी परे ह। सबके आ द एवं भाका व तार करनेवाले ह, म आपको नम कार करता ँ। आपक जो आ ाश है, उसीक ेरणासे म पृ वी, जल, अ न, वायु, उनके दे वता तथा णव आ दसे यु सम त सृ क रचना करता



ँ। इसी कार पालन और संहार भी म उस आ ाश क ेरणासे ही करता ँ, अपनी इ छासे नह । भगवन्! आप ही अ न व प ह। आप जब जल सोख लेते ह, तब म पृ वी तथा जगत्क सृ करता ँ। आप ही सव ापी एवं आकाश व प ह तथा आप ही इस पा चभौ तक जगत्का पूण पसे पालन करते ह। सूयदे व! परमा मत वके ाता व ान् पु ष सवय मय व णु व प आपका ही य ारा यजन करते ह तथा अपनी मु क इ छा रखनेवाले जते य य त आप सव र परमा माका ही यान करते ह। दे व व प आपको नम कार है। य प आपको णाम है। यो गय के येय पर व प आपको नम कार है। भो! म सृ करनेके लये उ त ँ और आपका यह तेजःपु सृ का वनाशक हो रहा है; अतः अपने इस तेजको समेट ली जये। माक डेयजी कहते ह—सृ कता ाजीके इस कार तु त करनेपर भगवान् सूयने अपने महान् तेजको समेटकर व प तेजको ही धारण कया, तब ाजीने पूवक पा तर के अनुसार जगत्क सृ आर भ क । महामुने! ाजीने पहलेक ही भाँ त दे वता , असुर , मनु य , पशु-प य , वृ -लता तथा नरक आ दक भी सृ क ।



अ द तके गभसे भगवान् सूयका अवतार माक डेयजी कहते ह—मुने! इस जगत्क सृ करके ाजीने पूवक प के अनुसार वण, आ म, समु , पवत और प का वभाग कया। दे वता, दै य तथा सप आ दके प और थान भी पहलेक ही भाँ त बनाये। ाजीके मरी च नामसे व यात जो पु थे, उनके पु क यप ए। उनक तेरह प नयाँ , वे सब-क -सब जाप त द क क याएँ थ । उनसे दे वता, दै य और नाग आ द ब त-से पु उ प ए। अ द तने भुवनके वामी दे वता को ज म दया। द तने दै य को तथा दनुने महापरा मी एवं भयानक दानव को उ प कया। वनतासे ग ड और अ ण—दो पु ए। खसाके पु य और रा स ए। क न ू े नाग को और मु नने ग धव को ज म दया। ोधासे कु याएँ तथा अ र ासे अ सराएँ उ प । इराने ऐरावत आ द हा थय को उ प कया। ता ाके गभसे येनी आ द क याएँ पैदा । उ ह के पु येन (बाज), भास और शुक आ द प ी ए। इलासे वृ तथा धासे जलज तु उ प ए। क यप मु नके अ द तके गभसे जो स तान , उनके पु -पौ , दौ ह तथा उनके भी पु आ दसे यह सारा संसार ा त है। क यपके पु म दे वता धान ह। इनम कुछ तो सा वक ह, कुछ राजस ह और कुछ तामस ह। वे ा म े परमे ी जाप त ाजीने दे वता को य भागका भो ा तथा भुवनका वामी बनाया; पर तु उनके सौतेले भाई दै य , दानव और रा स ने एक साथ मलकर उ ह क प ँचाना आर भ कर दया। इस कारण एक हजार द वष तक उनम बड़ा भयङ् कर यु आ। अ तम दे वता परा जत ए और बलवान् दै य तथा दानव को वजय ा त ई। अपने पु को दै य और दानव के ारा परा जत एवं भुवनके रा या धकारसे व चत तथा उनका य भाग छन गया दे ख माता अ द त अ य त शोकसे पी ड़त हो गय । उ ह ने भगवान् सूयक आराधनाके लये महान् य न आर भ कया। वे नय मत आहार करती ई कठोर नयम का पालन और आकाशम थत तेजोरा श भगवान् सूयका तवन करने लग । अ द त बोल —भगवन्! आप अ य त सू म सुनहरी आभासे यु द शरीर धारण करते ह, आपको नम कार है। आप तेजः व प, तेज वय के ई र, तेजके आधार एवं सनातन पु ष ह; आपको णाम है। गोपते! आप जगत्का उपकार करनेके लये जब अपनी करण से पृ वीका जल हण करते ह, उस समय आपका जो ती प कट होता है, उसे म नम कार करती ँ। आठ महीन तक सोममय रसको हण करनेके लये आप जो अ य त ती - प धारण करते ह, उसे म णाम करती ँ। भा कर! उसी स पूण रसको बरसानेके लये जब आप छोड़नेको उ त होते ह, उस समय आपका जो तृ तकारक मेघ प कट होता है, उसको मेरा नम कार है। इस कार जलक वषासे उ प ए सब कारके अ को पकानेके लये आप जो भा कर- प धारण करते ह, उसे म णाम करती



।ँ तरणे! जड़हन धानक वृ के लये जो आप पाला गराने आ दके कारण अ य त शीतल प धारण करते ह, उसको मेरा नम कार है। सूयदे व! वस त ऋतुम जो आपका सौ य- प कट होता है, जसम न अ धक गम होती है न अ धक सद , उसे मेरा बारंबार नम कार है। जो स पूण दे वता तथा पतर को तृ त करनेवाला और अनाजको पकानेवाला है, आपके उस पको नम कार है। जो प लता और वृ का एकमा जीवनदाता तथा अमृतमय है, जसे दे वता और पतर पान करते ह, आपके उस सोमपको नम कार है। आपका यह व मय व प ताप एवं तृ त दान करनेवाले अ न और सोमके ारा ा त है, आपको नम कार है। वभावसो! आपका जो प ऋक्, यजु और साममय तेज क एकतासे इस व को तपाता है तथा जो वेद यी व प है, उसको मेरा नम कार है। तथा जो उससे भी उ कृ प है, जसे ‘ॐ’ कहकर पुकारा जाता है, जो अ थूल, अन त और नमल है, उस सदा माको नम कार है। इस कार दे वी अ द त नयमपूवक रहकर दन-रात सूयदे वक तु त करने लग । उनक आराधनाक इ छासे वे त दन नराहार ही रहती थ । तदन तर ब त समय तीत होनेपर भगवान् सूयने द क या अ द तको आकाशम य दशन दया। अ द तने दे खा, आकाशसे पृ वीतक तेजका एक महान् पु थत है। उ त वाला के कारण उसक ओर दे खना क ठन हो रहा है। उ ह दे खकर दे वी अ द तको बड़ा भय आ। वे बोल — गोपते! आप मुझपर स ह । म पहले आकाशम आपको जस कार दे खती थी, वैसे आज नह दे ख पाती। इस समय यहाँ भूतलपर मुझे केवल तेजका समुदाय दखायी दे रहा है। दवाकर! मुझपर कृपा क जये, जससे आपके पका दशन कर सकूँ। भ व सल भो! म आपक भ ँ, आप मेरे पु क र ा क जये। आप ही ा होकर इस व क सृ करते ह, आप ही पालन करनेके लये उ त होकर इसक र ा करते ह तथा अ तम यह सब कुछ आपम ही लीन होता है। स पूण लोकम आपके सवा सरी कोई ग त नह है। आप ही ा, व णु, शव, इ , कुबेर, यम, व ण, वायु, च मा, अ न, आकाश, पवत और समु ह। आपका तेज सबका आ मा है। आपक या तु त क जाय। य े र! त दन अपने कमम लगे ए ा ण भाँ त-भाँ तके पद से आपक तु त करते ए यजन करते ह। ज ह ने अपने च को वशम कर लया है, वे योग न पु ष योगमागसे आपका ही यान करते ए परमपदको ा त होते ह। आप व को ताप दे ते, उसे पकाते, उसक र ा करते और उसे भ म कर डालते ह; फर आप ही जलग भत शीतल करण ारा इस व को कट करते और आन द दे ते ह। कमलयो न ाके पम आप ही सृ करते ह। अ युत ( व णु) नामसे आप ही पालन करते ह तथा क पा तम - प धारण करके आप ही स पूण जगत्का संहार करते ह। माक डेयजी कहते ह—तदन तर भगवान् सूय अपने उस तेजसे कट ए। उस समय वे तपाये ए ताँबेके समान का तमान् दखायी दे ते थे। दे वी अ द त उनका दशन



करके चरण म गर पड़ । तब भगवान् सूयने कहा—‘दे व! तु हारी जो इ छा हो, वह वर मुझसे माँग लो।’ तब दे वी अ द त घुटनेके बलसे पृ वीपर बैठ गय और म तक नवाकर णाम करके वरदायक भगवान् सूयसे बोल —‘दे व! आप स ह । अ धक बलवान् दै य और दानव ने मेरे पु के हाथसे भुवनका रा य और य भाग छ न लये ह। गोपते! उ ह ा त करानेके न म आप मुझपर कृपा कर। आप अपने अंशसे दे वता के ब धु होकर उनके श ु का नाश कर। भो! आप ऐसी कृपा कर, जससे मेरे पु पुनः य भागके भो ा तथा भुवनके वामी हो जायँ।’ तब भगवान् सूयने अ द तसे स होकर कहा—‘दे व! म अपने सह अंश स हत तु हारे गभसे अवतीण होकर तु हारे पु के श ु का नाश क ँ गा।’ इतना कहकर भगवान् सूय अ तधान हो गये और अ द त भी स पूण मनोरथ स हो जानेके कारण तप यासे नवृ हो गय । तदन तर सूयक सुषु णा नामवाली करण, जो सह करण का समुदाय थी, दे वमाता अ द तके गभम अवतीण ई। दे वमाता अ द त एका च हो कृ और चा ायण आ द त का पालन करने लग और अ य त प व तापूवक उस गभको धारण कये रह , यह दे ख मह ष क यपने कुछ कु पत होकर कहा—‘तुम न य उपवास करके अपने गभके ब चेको य मारे डालती हो?’ यह सुनकर उसने कहा—‘दे खये, यह रहा गभका ब चा; मने इसे मारा नह है, यह वयं ही अपने श ु को मारनेवाला होगा।’



य कहकर दे वी अ द तने उस गभको उदरसे बाहर कर दया। वह अपने तेजसे व लत हो रहा था। उदयकालीन सूयके समान तेज वी उस गभको दे खकर क यपने णाम कया और आ द ऋचा के ारा आदरपूवक उसक तु त क । उनके तु त करनेपर शशु पधारी सूय उस अ डाकार गभसे कट हो गये। उनके शरीरक का त कमलप के समान याम थी। वे अपने तेजसे स पूण दशा का मुख उ वल कर रहे थे। तदन तर मु न े क यपको स बो धत करके मेघके समान ग भीर वाणीम आकाशवाणी ई—“मुने! तुमने अ द तसे कहा था क इस अ डेको य मार रही है—उस समय तुमने ‘मा रतम्-अ डम्’ का उ चारण कया था, इस लये तु हारा यह पु ‘मात ड’ के नामसे व यात होगा और श शाली होकर सूयके अ धकारका पालन करेगा; इतना ही नह , यह य भागका अपहरण करनेवाले दे वश ु असुर का संहार भी करेगा।’ यह आकाशवाणी सुनकर दे वता को बड़ा हष आ और दानव बलहीन हो गये; तब इ ने दै य को यु के लये ललकारा। दानव भी उनका सामना करनेके लये आ प ँचे।



फर तो दे वता का असुर के साथ घोर सं ाम आ। उनके अ -श क चमकसे तीन लोक म काश छा गया। उस यु म भगवान् सूयक ू र पड़ने तथा उनके तेजसे द ध होनेके कारण सब असुर जलकर भ म हो गये। अब तो दे वता के हषक सीमा न रही। उ ह ने तेजके उ प थान भगवान् सूय और अ द तका तवन कया। उ ह पूववत् अपने अ धकार और य के भाग ा त हो गये! भगवान् सूय भी अपने अ धकारका पालन करने लगे। वे नीचे और ऊपर फैली ई करण के कारण कद बपु पके समान सुशो भत हो रहे थे। उनका म डल गोलाकार अ न प डके समान है। तदन तर भगवान् सूयको स करके जाप त व कमाने वनयपूवक अपनी सं ा नामक क या उनको याह द । वव वान्से सं ाके गभसे वैव वत मनुका ज म आ। वैव वत मनुक वशेष कथा पहले ही बतलायी जा चुक है।



सूयक म हमाके स म राजा रा यवधनक कथा ौ ु क बोले—भगवन्! आपने आ ददे व भगवान् सूयके माहा य और व पका व तारपूवक वणन कया। अब म उनक म हमाका वणन सुनना चाहता ँ। आप स होकर बतानेक कृपा कर। माक डेयजीने कहा— न्! म तु ह आ ददे व सूयका माहा य बताता ँ, सुनो। पूवकालम दमके पु रा यवधन बड़े व यात राजा हो गये ह। वे अपने रा यका धमपूवक पालन करते थे, इसी लये वहाँके धन-जनक दनो दन वृ होने लगी। उस राजाके शासनकालम सम त रा तथा नगर और गाँव के लोग अ य त व थ एवं स रहते थे। वहाँ कभी कोई उ पात नह होता था, रोग भी नह सताता था। साँप के काटनेका तथा अनावृ का भय भी नह था। राजाने बड़े-बड़े य कये। याचक को दान दये और धमके अनुकूल रहकर वषय का उपभोग कया। इस कार रा य करते तथा जाका भलीभाँ त पालन करते ए उस राजाके सात हजार वष ऐसे बीत गये, मानो एक ही दन तीत आ हो। द ण दे शके राजा व रथक पु ी मा ननी रा यवधनक प नी थी। एक दन वह सु दरी राजाके म तकम तेल लगा रही थी। उस समय वह राजप रवारके दे खते-दे खते आँसू बहाने लगी। रानीके आँसु क बूँद जब राजाके शरीरपर पड़ तो उसे मुखपर आँसू बहाती दे ख उ ह ने मा ननीसे पूछा—‘दे व! यह या?’ वामीके इस कार पूछनेपर उस मन वनीने कहा—‘कुछ नह ।’ जब राजाने बार-बार पूछा, तब उस सु दरीने राजाक केशरा शम एक पका बाल दखाया और कहा—‘राजन्! यह दे खये। या यह मुझ अभा गनीके लये खेदका वषय नह है?’ यह सुनकर राजा हँसने लगे। उ ह ने वहाँ एक त ए सम त राजा के सामने अपनी प नीसे हँसकर कहा—‘शुभे! शोकक या बात है? तु ह रोना नह चा हये। ज म, वृ और प रणाम आ द वकार सभी जीवधा रय के होते ह। मने तो सम त वेद का अ ययन कया, हजार य कये, ा ण को दान दया और मेरे कई पु भी ए। अ य मनु य के लये जो अ य त लभ ह, ऐसे उ म भोग भी मने तु हारे साथ भोग लये। पृ वीका भलीभाँ त पालन कया और यु म भलीभाँ त अपने धमको नभाया। भ े ! और कौन-सा ऐसा शुभ कम है, जो मने नह कया। फर इन पके बाल से तुम य डरती हो। शुभे! मेरे बाल पक जायँ, शरीरम झु रयाँ पड़ जायँ तथा यह दे ह भी श थल हो जाय, कोई च ता नह है। म अपने कत का पालन कर चुका ँ। क याणी! तुमने मेरे म तकपर जो पका बाल दखाया है, अब वनवास लेकर उसक भी दवा करता ँ। पहले बा याव था और कुमाराव थाम त कालो चत काय कया जाता है, फर युवाव थाम यौवनो चत काय होते ह तथा बुढ़ापेम वनका आ य लेना उ चत है। मेरे पूवज तथा उनके भी पूवज ने ऐसा ही कया है, अतः म तु हारे आँसू बहानेका कोई कारण नह दे खता। पके बालका दखायी दे ना तो मेरे लये महान् अ युदयका कारण है।’



महाराजक यह बात सुनकर वहाँ उप थत ए अ य राजा, पुरवासी तथा पा वत मनु य उनसे शा तपूवक बोले—‘राजन्! आपक इन महारानीको रोनेक आव यकता नह है। रोना तो हमलोग को अथवा सम त ा णय को चा हये, य क आप हम छोड़कर वनवास लेनेक बात मुँहसे नकाल रहे ह। महाराज! आपने हमारा लालन-पालन कया है। आपके चले जानेक बात सुनकर हमारे ाण नकले जाते ह। आपने सात हजार वष तक इस पृ वीका पालन कया है। अब आप वनम रहकर जो तप या करगे, वह इस पृ वीपालनज नत पु यक सोलहव कलाके बराबर भी नह हो सकती।’ राजाने कहा—‘मने सात हजार वष तक इस पृ वीका पालन कया, अब मेरे लये यह वनवासका समय आ गया। मेरे कई पु हो गये। मेरी स तान को दे खकर थोड़े ही दन म यमराज मेरा यहाँ रहना नह सह सकेगा। नाग रको! मेरे म तकपर जो यह सफेद बाल दखायी दे ता है, इसे अ य त भयानक कम करनेवाली मृ युका त समझो; अतः म रा यपर अपने पु का अ भषेक करके सब भोग को याग ँ गा और वनम रहकर तप या क ँ गा। जबतक यमराजके सै नक नह आते, तभीतक यह सब कुछ मुझे कर लेना है। तदन तर वनम जानेक इ छासे महाराजने यो त षय को बुलाया और पु के रा या भषेकके लये शुभ दन एवं ल न पूछे। राजाक बात सुनकर वे शा दश यो तषी ाकुल हो गये। उ ह दन, ल न और होरा आ दका ठ क ान न हो सका। तदन तर अ य नगर , अधीन थ रा य तथा उस नगरसे भी ब त-से े ा ण आये और वनम जानेके लये उ सुक राजा रा यवधनसे मले। उस समय उनका माथा काँप उठा। वे बोले —‘राजन्! हमपर स होइये और पहलेक भाँ त अब भी हमारा पालन क जये। आपके वन चले जानेपर सम त जगत् सङ् कटम पड़ जायगा; अतः आप ऐसा य न कर, जससे जगत्को क न हो।’ इसके बाद म य , सेवक , वृ नाग रक और ा ण ने मलकर सलाह क , ‘अब यहाँ या करना चा हये?’ राजा रा यवधन अ य त धा मक थे। उनके त सब लोग का अनुराग था; इस लये सलाह करनेवाले लोग म यह न य आ क ‘हम सब लोग एका च एवं भलीभाँ त यानपरायण होकर तप या ारा भगवान् सूयक आराधना करके इन महाराजके लये आयुक ाथना कर।’ इस कार एक न य करके कुछ लोग अपने घर पर व धपूवक अ य, उपचार आ द उपहार से भगवान् भा करक पूजा करने लगे। सरे लोग मौन रहकर ऋ वेद, यजुवद और सामवेदके जपसे सूयदे वको स तु करने लगे। अ य लोग नराहार रहकर नद के तटपर नवास करते ए तप याके ारा भगवान् सूयक आराधनाम लग गये। कुछ लोग अ नहो करते, कुछ दन-रात सूयसू का पाठ करते और कुछ लोग सूयक ओर लगाकर खड़े रहते थे। सूयक आराधनाके लये इस कार य न करनेवाले उन लोग के समीप आकर सुदामा नामक ग धवने कहा—‘ जवरो! य द आपलोग को सूयदे वक आराधना अभी है तो



ऐसा क जये, जससे भगवान् भा कर स हो सक। आपलोग यहाँसे शी ही काम प पवतपर जाइये। वहाँ गु वशाल नामक वन है, जसम स पु ष नवास करते ह। वहाँपर एका च होकर आपलोग सूयक आराधना कर। वह परम हतकारी स े है। वहाँ आपलोग क सब कामनाएँ पूण ह गी।’ सुदामाक यह बात सुनकर वे सम त ज गु वशाल वनम गये। वहाँ उ ह ने सूयदे वका प व एवं सु दर म दर दे खा। उस थानपर ा ण आ द तीन वण के लोग मताहारी एवं एका च हो पु प, च दन, धूप, ग ध, जप, होम, अ और द प आ दके ारा भगवान् सूयक पूजा एवं तु त करने लगे। ा ण बोले—दे वता, दानव, य , ह और न म भी जो सबसे अ धक तेज वी ह, उन भगवान् सूयक हम शरण लेते ह। जो दे वे र भगवान् सूय आकाशम थत होकर चार ओर काश फैलाते तथा अपनी करण से पृ वी और आकाशको ा त कये रहते ह, उनक हम शरण लेते ह। आ द य, भा कर, भानु, स वता, दवाकर, पूषा, अयमा, वभानु तथा द त-द ध त—ये जनके नाम ह, जो चार युग का अ त करनेवाले काला न ह, जनक ओर दे खना क ठन है, जनक लयके अ तम भी ग त है, जो योगी र, अन त, र , पीत, सत और अ सत ह, ऋ षय के अ नहो तथा य के दे वता म जनक थ त है, जो अ र, परम गु तथा मो के उ म ार ह, जनके उदया तमन प रथम छ दोमय अ जुते ए ह तथा जो उस रथपर बैठकर मे ग रक द णा करते ए आकाशम वचरण करते ह, अनृत और ऋत दोन ही जनके व प ह, जो भ - भ पु य तीथ के पम वराजमान ह, एकमा जनपर इस व क र ा नभर है, जो कभी च तनम नह आ सकते, उन भगवान् भा करक हम शरण लेते ह। जो ा, महादे व, व णु, जाप त, वायु, आकाश, जल, पृ वी, पवत, समु , ह, न और च मा आ द ह, वन प त, वृ और ओष धयाँ जनके व प ह, जो और अ ा णय म थत ह, उन भगवान् सूयक हम शरण लेते ह। ा, शव तथा व णुके जो प ह, वे आपके ही ह। जनके तीन व प ह, वे भगवान् भा कर हमपर स ह । जन अज मा जगद रके अ म यह स पूण जगत् थत है तथा जो जगत्के जीवन ह, वे भगवान् सूय हमपर स ह । जनका एक परम काशमान प ऐसा है, जसक ओर भा-पु क अ धकताके कारण दे खना क ठन हो जाता है तथा जनका सरा प च मा है, जो अ य त सौ य है, वे भगवान् भा कर हमपर स ह । इस कार भ पूवक तवन और पूजन करनेवाले उन ज पर तीन महीनेम भगवान् सूय स ए और अपने म डलसे नकलकर उसीके समान का त धारण कये वे नीचे उतरे और दश होते ए भी उन सबके सम कट हो गये। तब उन लोग ने अज मा सूयदे वके प पका दशन करके उ ह भ से वनीत होकर णाम कया। उस समय उनके शरीरम रोमा च और क प हो रहा था। वे बोले—‘सह करण वाले सूयदे व!



आपको बारंबार नम कार है। आप सबके हेतु तथा स पूण जगत्के वजयकेतु ह; आप ही सबके र क, सबके पू य, स पूण य के आधार तथा योगवे ा के येय ह; आप हमपर स ह ।’ माक डेयजी कहते ह—तब भगवान् सूयने स होकर सब लोग से कहा —‘ जगण! आपको जस व तुक इ छा हो, वह मुझसे माँग।’ यह सुनकर ा ण आ द वण के लोग ने उ ह णाम करके कहा—‘अ धकारका नाश करनेवाले भगवान् सूयदे व! य द आप हमारी भ से स ह तो हमारे राजा रा यव न नीरोग, श ु वजयी, सु दर केश से यु तथा थर यौवनवाले होकर दस हजार वष तक जी वत रह।’



‘तथा तु’ कहकर भगवान् सूय अ तधान हो गये। वे सब लोग भी मनोवा छत वर पाकर स तापूवक महाराजके पास लौट आये। वहाँ उ ह ने सूयसे वर पाने आ दक सब बात यथावत् कह सुनाय । यह सुनकर रानी मा ननीको बड़ा हष आ, पर तु राजा ब त



दे रतक च ताम पड़े रहे। वे उन लोग से कुछ न बोले। मा ननीका दय हषसे भरा आ था। वह बोली—‘महाराज! बड़े भा यसे आयुक वृ ई है। आपका अ युदय हो। राजन्! इतने बड़े अ युदयके समय आपको स ता य नह होती? दस हजार वष तक आप नीरोग रहगे, आपक जवानी थर रहेगी; फर भी आपको खुशी य नह होती?’ राजा बोले—क याणी! मेरा अ युदय कैसे आ। तुम मेरा अ भन दन य करती हो? जब हजार-हजार ःख ा त हो रहे ह, उस समय कसीको बधाई दे ना या उ चत माना जाता है? म अकेला ही तो दस हजार वष तक जी वत र ँगा। मेरे साथ तुम तो नह रहोगी। या तु हारे मरनेपर मुझे ःख नह होगा? पु , पौ , पौ , इ ब धु-बा धव, भ , सेवक तथा म वग—वे सब मेरी आँख के सामने मरगे। उस समय मुझे अपार ःखका सामना करना पड़ेगा। जन लोग ने अ य त बल होकर शरीरक ना ड़याँ सुखासुखाकर मेरे लये तप या क , वे सब तो मरगे और म भोग भोगते ए जी वत र ँगा। ऐसी दशाम या म ध कार दे नेयो य नह ँ? सु दरी! इस कार मुझपर यह आप आ गयी। मेरा अ युदय नह आ है। या तुम इस बातको नह समझती? फर य मेरा अ भन दन कर रही हो। मा ननी बोली—महाराज! आप जो कहते ह, वह सब ठ क है। मने तथा पुरवा सय ने आपके ेमवश इस दोषक ओर नह दे खा है। नरनाथ! ऐसी अव थाम या करना चा हये, यह आप ही सोच, य क भगवान् सूयने स होकर जो कुछ कहा है, वह अ यथा नह हो सकता। राजाने कहा—दे व! पुरवा सय और सेवक ने ेमवश मेरे साथ जो उपकार कया है, उसका बदला चुकाये बना म कस कार भोग भोगूँगा। य द भगवान् सूयक ऐसी कृपा हो क सम त जा, भृ यवग, तुम, अपने पु , पौ , पौ और म भी जी वत रह सक तो म रा य सहासनपर बैठकर स तापूवक भोग का उपभोग कर सकूँगा। य द वे ऐसी कृपा नह करगे तो म उसी काम प पवतपर नराहार रहकर तबतक तप या क ँ गा, जबतक क इस जीवनका अ त न हो जाय।



राजाके य कहनेपर रानी मा ननीने कहा—‘ऐसा ही हो।’ फर वह भी महाराजके साथ काम प पवतपर चली गयी। वहाँ प ँचकर राजाने प नीके साथ सूयम दरम जाकर सेवापरायण हो भगवान् भानुक आराधना आर भ क । दोन द प त उपवास करते-करते बल हो गये। सद , गम और वायुका क सहन करते ए दोन ने घोर तप या क । सूयक पूजा और भारी तप या करते-करते जब एक वषसे अ धक समय तीत हो गया, तब भगवान् भा कर स ए। उ ह ने राजाको सम त सेवक , पुरवा सय और पु आ दके लये इ छानुसार वरदान दया। वर पाकर राजा अपने नगरको लौट आये और धमपूवक जाका पालन करते ए बड़ी स ताके साथ रा य करने लगे। धम राजाने ब त-से य कये और दन-रात खुले हाथ दान कया। वे अपने पु , पौ और भृ य आ दके साथ यौवनको थर रखते ए दस हजार वष तक जी वत रहे। उनका यह च र दे खकर भृगव ु ंशी म तने व मत होकर यह गाथा गायी—‘अहो! भगवान् सूयके भजनक कैसी श है, जससे राजा रा यव न अपने तथा वजन के लये आयुव न बन गये।’



जो मनु य ा ण के मुखसे भगवान् सूयके इस उ म माहा यका वण तथा पाठ करता है, वह सात रातके कये ए पाप से मु हो जाता है। मु न े ! इस स म सूयदे वके जो म आये ह, उनमसे एक-एकका भी य द तीन स या के समय जप कया जाय तो वह सम त पातक का नाश करनेवाला होता है। सूयके जस म दरम इस समूचे माहा यका पाठ कया जाता है, वहाँ भगवान् सूय अपना सा य नह छोड़ते। अतः न्! य द तु ह महान् पु यक ा त अभी हो तो सूयके इस उ म माहा यको मन-ही-मन धारण एवं जप करते रहो। ज े ! जो सोनेके स ग और अ य त सु दर शरीरवाली धा गाय दान करता है तथा जो अपने मनको संयमम रखकर तीन दन तक इस माहा यका वण करता है, उन दोन को समान ही पु यफलक ा त होती है।



द पु नाभागका च र माक डेयजी कहते ह—इ वाकु, नाभग, र , न र य त, नाभाग, पृष और धृ — ये वैव वत मनुके पु थे, जो पृथक्-पृथक् रा यके पालक ए। इन सबक क त ब त रतक फैली ई थी और वे सभी शा व ा तथा श व ाम भी पार त थे। व ान म े मनुने एक े पु ा त करनेक इ छासे म ाव ण नामक य कया। उसम होताके दोषसे वपरीत आ त पड़नेके कारण पु न होकर इला नामक सु दरी क या उ प ई। क या उ प ई दे ख मनुने म और व णका तवन कया तथा इस कार कहा —‘दे ववरो! मने इस उ े यसे य कया था क आप दोन क कृपासे मुझे एक व श पु क ा त हो; क तु य स प होनेपर क याका ज म आ। य द आप दोन स ह और मुझे वर दे ना चाहते ह तो मेरी यह क या ही आप दोन के सादसे अ य त गुणवान् पु हो जाय।’ उन दोन दे वता ने ‘तथा तु’ कहा। जससे वही क या इला त काल ही सु ु न नामक पु के पम प रव तत हो गयी। मनुकुमार सु ु न एक दन वनम शकार खेल रहे थे। वहाँ महादे वजीके कोपसे उ ह पुनः ी पम हो जाना पड़ा। उस समय च माके पु बुधने इलाके गभसे पु रवा नामक च वत पु उ प कया। पु हो जानेके बाद राजा सु ु नने अ मेध नामक महान् य करके पुनः पु ष- प ा त कर लया। सु ु नके तीन पु ए, जो उ कल, वनय और गयके नामसे स थे। उ ह ने धमम मन लगाकर इस पृ वीका पालन कया। राजा सु ु न जब ीके पम थे, तब उनके गभसे पु रवाका ज म आ। पु रवा बुधके पु थे, इस लये उ ह सु ु नके रा यका भाग नह मला। तदन तर व स जीके कहनेसे पु रवाको त ान नामक उ म नगर दे दया गया। द नामके एक राजा थे, जनके पु का नाम नाभाग१ था। यौवनके आर भम ही उसक एक वै य-क यापर पड़ी, जो ब त ही सु दरी थी। उसको दे खते ही नाभागका मन कामके अधीन हो गया। उसने उसके पताके पास जाकर वह क या माँगी। वै यने दे खा, राजकुमारका मन अपने वशम नह है, वे कामके अधीन हो चुके ह। तब उसने हाथ जोड़कर उनसे कहा—‘राजकुमार! आपलोग राजा ह और हमलोग कर दे नेवाले भृ य। म आपके बराबर नह ँ, फर हमारे साथ आप वैवा हक स ब ध कैसे करना चाहते ह। राजकुमारने कहा—काम और मोह आ दने मानव-शरीरक समानता स कर द है। मुझे तु हारी क या पसंद है, अतः उसे मुझे दे दो; अ यथा मेरा यह शरीर जी वत नह रह सकता। वै य बोला—हम और आप दोन ही राजाके अधीन ह। पहले आप अपने पताजीसे आ ा ले ली जये; फर म क या ँ गा और आप हण कर ली जयेगा।



राजकुमारने कहा—गु जन के अधीन रहनेवाले पु को उ चत है क वे अ य सभी काय म गु जन से पूछ, क तु ऐसे काय म पूछना ठ क नह । ऐसी बात तो उनके सामने मुखसे नकालना भी क ठन है। कहाँ कामचचा और कहाँ गु जन को सुनाना; ये दोन पर पर- व ह। हाँ, अ य काय के लये उनसे पूछनेम कोई हज नह । वै य बोला—ठ क है, आप अपने पताजीसे पूछ तो आपके लये यह कामचचा हो सकती है; क तु मेरे लये यह कामचचा नह है, अतः म ही पूछूँगा। वै यके य कहनेपर राजकुमार चुप हो गये। तब उसने राजकुमारका जो वचार था, वह सब उसके पतासे कह सुनाया। तब राजकुमारके पताने ऋचीक आ द े ा ण तथा राजकुमारको भी महलम बुलाकर मु नय से सब वृ ा त नवेदन कया और कहा —‘इस वषयम जो कत हो, उसके लये आपलोग आ ा द।’ ऋ ष बोले—राजकुमार! पहले तु हारा ववाह कसी मू ा भ ष राजाक क यासे होना चा हये। उसके बाद यह वै य-क या भी तु हारी ी हो सकती है। ऐसा करनेसे दोष न होगा। अ यथा पहले ही वै य-क याका अपहरण करनेपर तु हारी उ कृ जा त चली जायगी। माक डेयजी कहते ह—यह सुनकर नाभागने उन महा मा के वचनक अवहेलना कर द और घरसे नकलकर तलवार हाथम ले वह बोला—‘मने रा स- ववाहके अनुसार इस वै य-क याका अपहरण कया है। जसक साम य हो, वह इसे मेरे हाथसे छु ड़ा ले।’ वै यने उस क याको राजकुमारके चंगल ु म पड़ी दे ख ‘ ा ह, ा ह’कहते ए उसके पताक शरण ली। तब राजकुमारके पताने कु पत होकर ब त बड़ी सेनाको आ ा द , ‘ नाभाग धमको कलङ् कत कर रहा है, अतः उसे मार डालो, मार डालो।’ राजाक आ ा पाकर सेनाने राजकुमारके साथ यु आर भ कर दया। नाभाग अ का ाता था, उसने अपने अ -श से अ धकांश सै नक को मार गराया। राजकुमारके ारा सेनाके मारे जानेका समाचार सुनकर राजा अपने सै नक को साथ ले वयं ही यु के लये गये। फर तो उनका अपने पु के साथ सं ाम छड़ गया। उसम अ -श के योगम राजकुमारक अपे ा उसके पता ही बढ़े -चढ़े स ए। इसी समय सहसा आकाशसे प र ाट् मु न उतर पड़े और राजासे बोले—‘महाभाग! अपने पु के साथ यु बंद क जये, वह अपने धमसे हो चुका है। पु ष अपने वणक क याके साथ ववाह न करके जस- जस हीन जा तक क याका पा ण हण करता है, उसी-उसीके वणका वह भी हो जाता है। अतः आपका यह म दबु पु अब वै य हो गया है, इसका यके साथ यु करनेका अ धकार नह है। इस लये अब आप यु से नवृ हो जाइये।’ तब राजा अपने पु के साथ यु करनेसे क गये। उसने भी उस वै य-क याके साथ ववाह कर लया। वै य वको ा त होनेपर उसने राजाके पास जाकर पूछा—‘भूपाल! अब मेरा जो कत हो, उसके लये आ ा द जये।’



राजाने कहा—बा आ द तप वी धा मक यायके लये नयु ह, वे तु हारे लये जो कम धमानुकूल बताव, उसीका अनु ान करो। तब राजसभाम रहनेवाले बा आ द मु नय ने नाभागके लये पशुपालन, कृ ष तथा वा ण य—ये ही उ म धम बतलाये। राजाक आ ाके अनुसार उसने भी वैसा ही कया। नाभागके उस वै य-क यासे एक पु आ, जसका नाम भन दन था।



१. ये ‘नाभाग’ मनु-पु नाभागसे भ ह।



व स ीके ारा कुजृ भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ ववाह माक डेयजी कहते ह—इस पृ वीपर व रथ नामके एक राजा हो चुके ह। उनक क त ब त रतक फैली ई थी। उनके दो पु थे—सुनी त और सुम त। एक दन राजा व रथ शकार खेलनेके लये वनम गये। वहाँ उ ह एक वशाल गढ़ा दखायी दया, जो पृ वीका मुख-सा तीत होता था। उसे दे खकर राजाने सोचा, यह भयंकर गत या है? मालूम होता है पातालतक जानेवाली गुफा है, पृ वीका साधारण गत नह ; दे खनेम भी पुराना नह जान पड़ता। उस नजन वनम इस कार सोचते- वचारते ए राजाने वहाँ सु त नामके तप वी ा णको आते दे खा और नकट आनेपर उनसे पूछा—‘यह या है? यह गत ब त ही गहरा है, इसम पृ वीका भीतरी भाग दखायी दे रहा है।’



ऋ षने कहा—राजन्! या आप इसे नह जानते? इस पृ वीपर जो कुछ भी है, वह सब राजाको जानना चा हये। रसातलम एक महापरा मी भयंकर दानव नवास करता है; वह पृ वीको जृ भत ( छ यु ) कर दे ता है, इस लये उसे कुजृ भ कहते ह। नरे र! वह पृ वीपर अथवा वगम जो कुछ करता है, उसक जानकारी आप य नह रखते। पूवकालम व कमाने जसका नमाण कया था, वह सुन द नामका मूसल उस ा माने हड़प लया। उसीसे यु म वह श ु का संहार करता है। पातालके अंदर रहकर उस मूसलसे ही वह इस पृ वीको वद ण कर दे ता है और इस कार सम त असुर के आनेजानेके लये ार बना लेता है। जब आप पातालके भीतर रहनेवाले इस श ुका नाश करगे, तभी वा तवम स पूण पृ वीके वामी हो सकगे। राजन्! उस मूसलके बलाबलके वषयम व ान् पु ष ऐसा कहते ह क य द कोई ी वह मूसल छू दे तो वह उस दन नबल हो जाता है, क तु सरे दन फर पूववत् बल हो जाता है। युवतीक अँगु लय के पशसे उसक श के न हो जानेका जो दोष या भाव है, उसे वह राचारी दै य भी नह जानता। भूपाल! आपके नगरके समीप ही उसने यह पृ वीम छे द कया है, फर भी आप न त य ह। इतना कहकर ष सु त चले गये। राजाने भी अपने नगरम जाकर म वे ा म य से परामश कया और कुजृ भके वषयम जो कुछ सुना था, वह सब कह सुनाया। उ ह ने मूसलका वह भाव भी, क ीके पशसे उसक श का ास हो जाता था, म य को बताया। जस समय राजा म य के साथ परामश कर रहे थे, उस समय उनक क या मुदावती भी पास ही बैठ सब कुछ सुन रही थी। तदन तर कुछ दन के बाद कुजृ भने स खय से घरी ई उस राजक याको उपवनसे हर लया। यह बात सुनकर राजाके ने ोधसे च चल हो उठे और उ ह ने अपने दोन पु से, जो वनके माग भलीभाँ त जानते थे, कहा—‘तुमलोग शी जाओ। उस दानवने न व याके तटपर गढ़ा बना रखा है, उसीके मागसे रसातलम जाकर मुदावतीका अपहरण करनेवाले उस को मार डालो।’ तब अ य त ोधम भरे ए दोन राजकुमार उस गतके मागसे सेनास हत रसातलम जा प ँचे और कुजृ भसे यु करने लगे। उनम प रघ, खड् ग, श , शूल, फरसे तथा बाण क मारसे नर तर अ य त भयानक सं ाम होता रहा। फर मायाके बली दै यने यु म उन दोन राजकुमार को बाँध लया और उनके सम त सै नक का संहार कर डाला। यह समाचार पाकर राजाको ब त ःख आ। उ ह ने अपने सभी यो ा से कहा—‘जो इस दै यका वध करके मेरे दोन पु को छु ड़ा लायेगा, उसको म अपनी क या याह ँ गा।’ भन दनके पु व स ीने भी यह घोषणा सुनी। वह बलवान्, अ -श का ाता तथा शूरवीर था। उसने अपने पताके य म राजा व रथके पास आकर उ ह णाम कया और वनीत भावसे कहा—‘महाराज! मुझे आ ा द जये, म आपके ही तेजसे उस दै यको



मारकर आपके दोन पु तथा क याको छु ड़ा लाऊँगा।’ यह सुनकर राजाने अपने यारे म के उस पु को स तापूवक छातीसे लगा लया और कहा—‘व स! जाओ, तु ह अपने कायम सफलता ा त हो।’ तदन तर वीर व स ी खड् ग और धनुष ले, अँगु लय म गोधाके चमसे बने ए द ताने पहनकर पूव गढ़े के मागसे तुरंत पातालम गया। वहाँ उसने अपने धनुषक भयंकर टङ् कार सुनायी, जससे सारा पाताल गूँज उठा। वह टङ् कार सुनकर दानवराज कुजृ भ अपनी सेना साथ ले बड़े ोधके साथ वहाँ आया और राजकुमारके साथ यु करने लगा। दोन के पास अपनी-अपनी सेनाएँ थ , एक बलवान्का सरे बलवान् वीरके साथ यु हो रहा था। लगातार तीन दन तक घमासान यु होता रहा, तब वह दानव अ य त ोधम भरकर मूसल लानेके लये दौड़ा। जाप त व कमाका बनाया आ वह मूसल सदा अ तः-पुरम रहता था और ग ध, माला तथा धूप आ दसे त दन उसक पूजा होती थी। राजकुमारी मुदावती उस मूसलके भावको जानती थी। अतः उसने अ य त न तासे म तक झुकाकर उस े मूसलका पश कया। वह महान् दै य जबतक उस मूसलको हाथम ले, तबतक ही उसने नम कारके बहाने अनेक बार उसका पश कर लया; फर उस दै यराजने यु भू मम जाकर मूसलसे यु आर भ कया; क तु उसके श ु पर मूसलके हार थ स होने लगे। उस द अ के नबल पड़ जानेपर दै यने सरे अ श ारा श ुका सामना कया। राजकुमारने उसे रथहीन कर दया। तब वह ढाल-तलवार लेकर उसक ओर दौड़ा। उसे ोधम भरकर वेगसे आते दे ख राजकुमारने काला नके समान व लत आ नेय-अ से उसपर हार कया। उससे दै यक छातीम गहरी चोट प ँची और उसके ाणपखे उड़ गये। उसके मारे जानेपर रसातल नवासी बड़े-बड़े नाग ने महान् उ सव मनाया। राजकुमारपर फूल क वषा होने लगी। ग धवराज गाने लगे और दे वता के बाजे बज उठे । राजकुमार व स ीने उस दै यको मारकर राजा व रथके दोन पु तथा कृशा क या मुदावतीको भी ब धनसे मु कया। कुजृ भके मारे जानेपर नाग के अ धप त शेषसं क भगवान् अन तने उस मूसलको ले लया। मुदावतीने सुन द नामक मूसलके गुणको जानकर उसका बारंबार पश कया था, इस लये नागराज अन तने उसका नाम सुन दा रख दया। त प ात् राजकुमारने भाइय स हत उस क याको शी ही पताके पास प ँचाया और णाम करके कहा—‘तात! आपक आ ाके अनुसार म आपके दोन पु और इस मुदावतीको भी छु ड़ा लाया। अब मुझसे और भी जो काय लेना हो, उसके लये आ ा क जये।’



इसपर महाराज व रथके मनम बड़ी स ता ई। वे उ च वरसे बोले—‘बेटा! बेटा!! तूने ब त अ छा कया, ब त अ छा कया। आज दे वता ने तीन कारण से मेरा स मान बढ़ाया है—एक तो तुम जामाताके पम मुझे ा त ए, सरे मेरा श ु मारा गया तथा तीसरे मेरी स तान कुशलपूवक लौट आय ; अतः आज शुभ मु म तुम मेरी इस क याका पा ण हण करो।’ य कहकर राजाने उन दोन का व धपूवक ववाह कर दया। नवयुवक व स ी मुदावतीके साथ रमणीय दे श तथा महल म वहार करने लगा। कुछ कालके बाद उसके वृ पता भन दन वनम चले गये और व स ी राजा आ। उसने सदा ही जाका धमपूवक पालन करते ए अनेक य कये। वह जाको पु क भाँ त मानकर उसक र ा करता था। उसके रा यम वणसङ् कर स तानक उ प नह ई। कभी कसीको लुटेर , सप तथा का भय नह आ। इसके शासनकालम कसी कारके उ पातका भी भय नह था।



राजा ख न क कथा माक डेयजी कहते ह—सुन दाके गभसे व स ीके बारह पु ए, जनके नाम इस कार ह— ांशु, वीर, शूर, सुच , व म, म, बली, बलाक, च ड, च ड, सु व म और व प। ये सभी महाभाग सं ाम वजयी थे। इनम महापरा मी ांशु ये थे, अतः वे ही राजा ए। शेष भाई सेवकक भाँ त उनक आ ाके अधीन रहते थे। उनके य म इतना धन दान दया गया क ा ण तथा न नवणके लोग ने भी रा श-रा श छोड़ दया। [अ धक होनेके कारण साथ न ले जा सके।] वह सभी पृ वीपर पड़ा रह गया, जससे इस पृ वीका ‘वसु धरा’ (धन धारण करनेवाली) नाम साथक आ। वे जाका औरस पु क भाँ त पालन करते थे। उनके खजानेम जो धन एक त होता था, उसके ारा उ ह ने जो लाख य स प कये, उनक कोई सं या नह है। ांशुके पु जा त थे। जा तके ख न आ द पाँच पु ए। उनम सबसे बड़े ख न राजा ए। वे अपने परा मके लये व यात थे। ख न बड़े ही शा त, स यवाद , शूरवीर, सम त ा णय के हतम लगे रहनेवाले, वधमपरायण, वृ पु ष के सेवक, अनेक शा के व ान्, व ा, वनयशील, अ -श के ाता, ड ग न हाँकनेवाले और सब लोग के य थे। वे दन-रात यही कामना कया करते थे—‘सम त ाणी स रह। सर पर भी नेह रख। सब जीव का क याण हो। सभी नभय ह । कसी भी ाणीको कोई ा ध एवं मान सक था न हो। सम त ाणी सबके त म भावके पोषक ह । ा ण का क याण हो। सबम पर पर ेम रहे। सब वण क उ त हो। सम त कम म स ा त हो। लोगो! सब भूत के त तु हारी बु क याणमयी हो। तुमलोग जस कार अपना तथा अपने पु का सवदा हत चाहते हो, उसी कार सब ा णय के त हत-बु रखते ए बताव करो। यह तु हारे लये अ य त हतक बात है। कौन कसका अपराध करता है। य द कोई मूढ कसीका थोड़ा भी अ हत करता है तो वह न य ही उसका फल भोगता है; य क फल सदा कताको ही मलता है। लोगो! यह वचारकर सबके त प व भाव रखो। इससे इस लोकम पाप नह बनेगा और तु ह उ म लोक क ा त होगी। बु मानो! म तो यह चाहता ँ क आज जो मुझसे नेह रखता है, उसका इस पृ वीपर सदा ही क याण हो तथा जो इस लोकम मेरे साथ े ष रखता है, वह भी क याणका ही भागी बने।’*



राजा जा तके पु ऐसे थे। वे सम त गुण से स प और सु दर थे। उनके ने प प के समान सुशो भत थे। उ ह ने अपने भाइय को ेमपूवक पृथक्पृथक् रा य म अ भ ष कर दया और वयं समु वसना पृ वीका उपभोग करने लगे। उ ह ने पूव दशाम अपने भाई शौ रको, द ण दशाम उदावसुको, प मम सुनयको और उ रम महारथको अ भ ष कया। उन चार भाइय के तथा वयं राजा ख न के भ - भ गो वाले मु न पुरो हत ए और वे ही वंशपर पराके मसे म ी भी होते आये। उ चार राजा अपने-अपने रा यका उपभोग करने लगे। ख न उन सबके स ाट् थे। वे सारी पृ वीके वामी थे। महाराज ख न उन चार भाइय तथा सम त जापर सदा पु क भाँ त नेह रखते थे। एक दन राजा शौ रसे उनके म ी व वेद ने एका तम कहा—‘राजन्! मुझे आपसे कुछ कहना है। जसके अ धकारम यह सारी पृ वी रहती है, उसीके वशम अ य सब राजा भी रहते ह। वह तो राजा होता ही है, उसके पु -पौ तथा वंशके लोग भी मशः राजा होते ह। इस लये आप हमलोग को साधन बनाकर अपने बाप-दाद के रा यपर अ धकार कर ली जये। हम इस लोकम ही आपको लाभ प ँचा सकते ह, परलोकम नह ।’ राजाने कहा—हमारे ये भाई राजा ह और हमलोग को पु क भाँ त ेमसे अपनाये रखते ह; फर हम उनके रा यपर कस कार अ धकार जमाय। व वेद बोले—राजन्! आप रा यपर अ धकार कर लेनेके बाद राजो चत धन-स प के ारा अपने बड़े भाईक पूजा करते र हयेगा। भला, रा या तक इ छा रखनेवाले मनु य म यह छोटे -बड़ेका भेद कैसा।



व वेद के इस कार समझानेपर शौ रने उनक इ छाके अनुसार काम करनेक त ा क । तब म ीने उनके अ य भाइय को भी वशम कया। फर साम-दान आ दके ारा उन सबके पुरो हत को भी फोड़ लया। फर वे चार पुरो हत महाराज ख न के व भयङ् कर पुर रण करने लगे। उनके आ भचा रक कमसे चार कृ याएँ उ प । वे सभी वकराल, बड़े-बड़े मुखवाली तथा दे खनेम अ य त भयङ् कर थ । उनके हाथ म भयानक एवं वशाल शूल था। वे सभी राजा ख न के पास आय । राजा साधु पु ष थे, अतः उनके पु य-समूहसे वे परा त हो गय और लौटकर उन ा मा पुरो हत पर ही टू ट पड़ । कृ या ने उन चार पुरो हत तथा शौ रके म ी व वेद को भी जलाकर भ म कर डाला। इस घटनासे सब लोग को बड़ा व मय आ; य क भ - भ नगर म नवास करनेवाले वे सभी पुरो हत और म ी एक ही समय न ए। महाराज ख न ने भी जब सुना क भाइय के पुरो हत मर गये और म ी व वेद भी जलकर भ म हो गये, तब उ ह बड़ा व मय आ। उ ह ने सोचा यह या बात



हो गयी। महाराजको इसका कुछ भी कारण नह मालूम आ। तब उ ह ने अपने घरपर पधारे ए मह ष व स से पूछा—‘ न्! भाइय के पुरो हत और म ी जो न हो गये, इसका या कारण है?’ राजाके इस कार पूछनेपर महामु न व स ने सब वृ ा त ठ क-ठ क बता दया। शौ रके म ीने जो भाइय म भेद डालनेवाली बात कही थी और शौ रने जो उ र दया था, पुरो हत ने जो अ भचार-कम कया तथा जस कारण उनक मृ यु ई, वे सब बात मह षने नवेदन क । यह सब समाचार सुनकर महाराज ख न ने कहा —‘मुझ पापी, भा यहीन तथा को ध कार है, जनके कारण चार ा ण क ह या ई। मेरे रा यको ध कार है तथा महान् राजा के कुलम लये ए ज मको भी ध कार है, य क म ा ण के वनाशका कारण बन गया। वे पुरो हत तो अपने वामी, मेरे भाइय का काय कर रहे थे, उस दशाम उनक मृ यु ई है। अतः वे नह ह, म ही ँ; य क म ही उनके नाशका कारण बना ँ।’ ऐसा वचार करके महाराज ख न अपने ुप नामक पु को रा यपर अ भ ष करके तीन प नय के साथ तप याके लये वनम चले गये। वे वान थके नयम के ाता थे, अतः वनम जाकर उ ह ने साढ़े तीन सौ वष तक घोर तप या क । तप यासे शरीरको बल करके सम त इ य को रोककर वनवासी नरेशने अपने ाण याग दये। इससे वे स पूण कामना को पूण करनेवाले अ य पु यलोक म गये। उनक तीन प नयाँ भी उ ह के साथ ाण यागकर उ ह लोक म गय । राजा ख न का यह च र सुनने और पढ़नेपर मनु य का पाप न करनेवाला है। अब ुपका वृ ा त सुनो।



*



न द तु सवभूता न न तु वजने व प । व य तु सवभूतेषु नरातङ् का न स तु च ।। मा ा धर तु भूतानामाधयो न भव तु च । मै ीमशेषभूता न पु प तु सकले जने ।। शवम तु जातीनां ी तर तु पर परम् । समृ ः सववणानां स र तु च कमणाम् ।। हे लोकाः सवभूतेषु शवा वोऽ तु सदा म तः । यथाऽऽ म न यथा पु े हत म छथ सवदा ।। तथा सम तभूतेषु व वं हतबु यः । एत ो हतम य तं को वा क यापरा यते ।। यत् करो य हतं क चत् क य च मूढमानसः । तं सम ये त त ूनं कतृगा म फलं यतः ।। इ त म वा सम तेषु भो लोकाः कृतबु यः । स तु मा लौ ककं पापं लोकान् ा यथ वै बुधाः ।। यो मेऽ न ते त य शवम तु सदा भु व । य मां े लोकेऽ मन् सोऽ प भ ा ण प यतु ।। (११७।१२।१९)



ुप, व वश, खनीने , कर धम, अवी चर



त तथा म



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माक डेयजी कहते ह—राजा ख न के पु ुपने भी रा य पानेके बाद पताक ही भाँ त धमपूवक जाजन का पालन कया। वे दानशील तथा अनेक य के अनु ान करनेवाले थे। उ ह ने वहार आ दके मागम श ु और म दोन के त समान भाव रखा। एक दन महाराज ुप अपने रा य- सहासनपर बैठे थे। उस समय सूत एवं व द जन ने कहा—‘महाराज! पूवकालम जैसे ुप नामके राजा ए थे, वैसे ही आप भी ह। ाचीन राजा ुप ाजीके पु थे। उनका च र जैसा था, वैसा ही वतमान महाराजका भी है। पहलेके महाराज ुप गौ और ा ण से कर नह लेते थे तथा उन महा माने जासे ा त ए छठे भागके ारा इस पृ वीपर अनेक य कये थे।’ राजा बोले—‘मेरे-जैसा कौन मनु य उन महा मा राजा का पूण पसे अनुसरण कर सकेगा, तथा प उ म आचरणवाले पु ष के समान काय करनेके लये उ ोग अव य करना चा हये। अतः इस समय म जो त ा करता ँ, उसे सुनो—म महाराज ुपके च र का अनुसरण क ँ गा तथा खेतीका अभाव होने या उसका अभाव र होनेपर तीनतीन य का अनु ान क ँ गा। मेरी यह त ा स पूण भूम डलके लये है। आजके पहले गौ और ा ण ने जो राजकर दया है, वह सब उ ह क सेवाम लौटा ँ गा। ऐसी त ा करके राजा ुपने सब कुछ वैसा ही कया। वे खेती मारी जानेपर तीनतीन य का अनु ान करते थे। पहले गौ- ा ण ने पूवके राजा को जतना कर दया था, उतना धन उ ह ने उ ह लौटा दया। उनक प नी मथाके गभसे वीर नामक उ म पु आ। उसने अपने ताप और परा मसे पृ वीके सम त राजा को अपने वशम कर लया था। वदभराजकुमारी न दनी उसक यतमा प नी थी, जसके गभसे उसने व वश नामक पु को ज म दया। व वश भी महाबलवान् राजा आ। उसके शासनकालम आबाद अ धक हो जानेसे समूची पृ वी मनु य से भर गयी थी। समयपर वषा होती, पृ वीपर खेती लहराया करती, खेतीम अ छे दाने लगते और दान म पूण रस भरे रहते थे। वे रस मनु य के लये पु कारक होते; क तु वह पु उ माद पैदा करनेवाली नह होती थी। लोग के पास जो धनका सं ह होता, वह उनके मदका कारण नह बनता था। व वशके तापसे श ु सदा भयभीत रहते थे। जा व थ थी और सु द्वग भलीभाँ त पू जत हो स ता ा त करता था। राजा व वश ब त-से य का अनु ान तथा पृ वीका भलीभाँ त पालन करके सं ामम मृ यु पाकर यहाँसे इ लोकम चला गया। व वशका पु खनीने आ, जो महाबलवान् और परा मी था। उसके य म ग धवगण व मत हो यह गाथा गाया करते थे—‘खनीने के समान सरा राजा इस



पृ वीपर नह होगा, य क उ ह ने दस हजार य पूण करके समु स हत यह सारी पृ वी दान कर द थी।’ महा मा ा ण को समूची पृ वीका दान दे उ ह ने तप यासे सं ह कया और उसके ारा पृ वीको छु ड़ाया। राजा खनीने ने सरसठ हजार सरसठ सौ सरसठ य कये थे और सबम चुर द णा द थी। राजाको कोई पु नह था; इस लये वे पापना शनी गोमतीके तटपर गये और वहाँ मन, वाणी एवं शरीरको संयमम रखकर घोर तप या करने लगे। स तानके लये उ ह ने इ का तवन कया। उनके तो , तप या और भ से स तु होकर इ ने कहा—‘राजन्! म तुमपर ब त स ँ, कोई वर माँगो।’ राजा बोले—दे वे र! मुझे कोई पु नह है, अतः आपक कृपासे मुझे पु ा त हो। वह पु सम त श धा रय म े , अ य ऐ यसे यु , धमपालक तथा धम हो। इ ने ‘एवम तु’ कहकर आशीवाद दया। राजाका मनोरथ पूण हो गया, अब वे जाका पालन करनेके लये अपने नगरम आये। वहाँ वे व धपूवक य का अनु ान तथा धमपूवक जाका पालन करने लगे। उस समय इ क कृपासे उ ह एक पु आ, जसका नाम उसके पताने बला रखा। फर राजाने पु को स पूण अ -श क श ा द । पताके मरनेके बाद जब बला रा य सहासनपर आसीन ए, तब उ ह ने पृ वीके स पूण राजा को अपने वशम कर लया। पर तु ब त-से महापरा मी राजा, जो सब कारके साधन और धनसे स प थे, एक साथ मल गये और उ ह ने राजा बला को उनक राजधानीम ही घेर लया। नगरपर घेरा पड़ जानेसे राजा बला को बड़ा ोध आ, पर तु उनका खजाना ब त थोड़ा रह गया था; इस लये सै नक बलक कमी हो जानेसे वे अ य त वकल हो गये। जब उ ह और कोई शरण नह दखायी द , तब वे आत हो दोन हाथ मुँहके आगे करके जोर-जोरसे साँस लेने लगे; फर तो उनके हाथक अँगु लय के छ से, मुखक वायुसे े रत हो सैकड़ यो ा, रथ, हाथी और घोड़े नकलने लगे। णभरम राजाका सारा नगर ब त बड़ी सेनासे भर गया। तब उस वशाल सेनाके साथ नगरसे बाहर नकलकर उ ह ने उन श ु राजा को परा त कया और सबको अपने अधीन करके उनपर कर लगा दया। करका धमन करने (हाथ को फूँकने)-से उ ह ने श ु का दाह करनेवाली सेना उ प क थी, इस लये वे राजा बला कर धम कहलाने लगे। कर धम धमा मा, सब ा णय के म तथा तीन लोक म व यात थे। जब राजा सङ् कटम पड़े थे, तब सा ात् उनके धमने उनके पास प ँचकर श ुनाशक सेना दान क थी और फर वयं ही उसे अ य कर दया। राजा वीयच क सु दरी क या वीराने, जो उ म त का पालन करनेवाली थी, वयंवरम महाराज कर धमका वरण कया था। उसके गभसे महाराजने अवी त नामक पु उ प कया। उसके इस नामका स सुनो। पु उ प होनेपर राजा कर धमने उसके ह आ दके वषयम यो त षय से पूछा। तब यो त षय ने कहा—‘महाराज! आपका पु उ म मु , े न और शुभ ल नम उ प आ है; अतः यह महान्



परा मी, परम सौभा यवान् तथा अ धक बलशाली होगा। बृह प त और शु सातव थानम तथा च मा चौथे थानम रहकर इस बालकको दे खते ह। यारहव थानम थत बुध भी इसको दे खते ह। सूय, म ल और शनै रक इसपर नह है; अतः यह सब कारक स प य से यु होगा।’ यो त षय क बात सुनकर राजा कर धमके मनम बड़ी स ता ई। वे बोले—“इसे बृह प त और बुध दे खते ह और सूय, शनै र एवं म लसे यह अवी त (अ ) है; इस लये इसका नाम ‘अवी त’ होगा।” कर धमके पु अवी त वेद-वेदा के पार त व ान् ए। उ ह ने मु नवर क वके पु से स पूण अ व ाक श ा हण क । वे पम अ नीकुमार, बु म बृह प त, का तम च मा, तेजम सूय, धैयम समु और माम पृ वीके समान थे। वीरताम तो उनक समानता करनेवाला कोई था ही नह । एक समयक बात है, वे वै दशके राजा वशालक क या वैशा लनीको ा त करनेके लये उसके वयंवरम गये। वह सु दर दाँत वाली सु दरी सम त राजा क उपे ा करके चली जा रही थी, इतनेम ही अवी तने उसे बलपूवक पकड़ लया। उ ह अपने बलका ब त अ भमान था। उनके इस कायसे अ य सम त राजा का, जो ब त बड़ी सं याम एक त थे, अपमान आ; अतः वे ख होकर एकसरेसे कहने लगे—‘अनेक बलशाली राजा के होते ए कसी एकके ारा नारीका अपहरण हो और आपलोग उसे मा कर द तो यह ध कार दे नेयो य बात है। य वह है, जो पु ष से सताये जानेवालेक र ा करे, उसक त न होने दे । जो ऐसा नह करते, वे लोग इस नामको थ ही धारण करते ह। संसारम कौन मनु य मृ युसे नह डरता, क तु यु न करके भी कौन अमर रह गया है। यह वचारकर श धारी य को पु षाथका याग नह करना चा हये।’ यह सुनकर सब राजा अमषम भर गये और पर पर सलाह करके सभी ह थयार ले उठ खड़े ए। कुछ रथ पर जा बैठे। कुछ हा थय और घोड़ पर सवार ए तथा सरे कतने ही राजा कु पत हो पैदल ही अवी तसे लोहा लेनेको जा प ँचे। अवी त अकेले थे। उनके वरोधम ब त-से राजा और राजकुमार थे। उनम बड़ा भयङ् कर सं ाम आ। तलवार, श , गदा और धनुष-बाण लये ए सम त राजा अवी तपर हार करने लगे तथा राजकुमार अवी त भी अकेले ही उन सभी राजा से भड़ गये और सैकड़ बाण से मारकर उ ह घायल करने लगे। अवी तने कसीक बाँह काट डाली, कसीक गदन उड़ा द , कसीक छाती छे द डाली और कसीके व म हार कया। श ु के आते ए बाण को वे बाण मारकर दो टु कड़े कर दे ते थे। कसीक तलवार काट दे ते और कसीका धनुष ख डत कर दे ते थे। कोई राजकुमार अपना कवच कट जानेके कारण पलायन कर गया। सरा अवी तके बाण से घायल होकर पैदल ही रणभू मसे भाग गया। इस कार जब राजा क सारी म डली ाकुल हो गयी, तब सात सौ वीर मरनेका न य करके यु के लये डट गये। उन सबको अपने उ म कुल, युवाव था तथा शौयक लाज रखनी



थी। जब सारी सेना परा त होकर भागने लगी तब वे ही सात सौ राजा एक साथ मलकर अवी तसे यु करने लगे। अवी त अ य त ोधम भरकर धमयु के नयमसे लड़ने लगे। उ ह ने उन सबके ह थयार और कवच को काट गराया। तब उन राजा ने धमसे वमुख हो चार ओरसे अवी तको घेर लया और सब ओरसे उ ह हजार बाण से ब धने लगे। ब त के हारसे पी ड़त हो वे अ य त ाकुल हो उठे और अ य त व ल होकर पृ वीपर गर पड़े। इस अव थाम उन सबने मलकर धमपूवक उ ह बाँध लया और राजा वशालके साथ वै दश नगरम वेश कया। तदन तर राजा कर धम, उनक प नी वीरा तथा अ य राजा ने अवी तके बाँधे जानेका समाचार सुना। कुछ लोग ने कर धमसे कहा—‘महाराज! वे सभी राजा वध करनेके यो य ह, ज ह ने अ धक सं याम स म लत होकर अकेले राजकुमारको अधमपूवक बाँधा है।’ सरे बोले—‘आप चुपचाप बैठे य ह, शी ही सेना तैयार क जये। वशालको तथा वहाँ आये ए अ य सम त राजा को भी बाँध ली जये।’ उन सबक यह बात सुनकर वीरपु ा वीराने, जो वीरवंशम उ प एवं वीर प तक प नी थी, हषम भरकर कहा—‘राजाओ! मेरे पु ने सम त राजा को जीतकर जो बलपूवक क याको अपने अ धकारम कर लया है, यह ठ क ही कया है। इसके लये मनम च ता करनेक आव यकता नह है। उसका यु म ब द होना शंसाक ही बात है। अब तुमलोग के म तकपर भी अ -श के गरनेका समय आ प ँचा है। यु के लये शी ता करो। अपने-अपने रथ पर सवार हो जाओ। हाथी, घोड़े और सार थय को भी ज द तैयार करो। वल ब नह होना चा हये। जो सबको परा त करके शोभा पाता है, वही शूर है। जैसे सूय अ धकारको र करके का शत होता है, उसी कार शूरवीर श ु को हराकर यश वी होता है।’ इस कार प नीके उ सा हत करनेपर राजा कर धमने पु के श ु का वध करनेके लये सेनाको तैयार होनेक आ ा द । तदन तर उनका वशाल और उनके सा थय के साथ घोर यु आ। तीन दनतक यु होनेके प ात् वशाल और उनके सहायक राजा का म डल जब ायः परा जत हो गये, तब राजा वशाल हाथम अ य लेकर महाराज कर धमके पास आये। उ ह ने बड़े ेमसे कर धमका पूजन कया। उनका पु अवी त ब धनसे मु कर दया गया। राजाने एक रात वहाँ बड़े सुखसे तीत क । सरे दन राजा वशाल अपनी क याको साथ लेकर महाराज कर धमके पास उप थत ए। उस समय अवी तने अपने पताके सामने ही कहा—‘म इसको तथा सरी कसी युवतीको भी अब नह हण क ँ गा, य क इसके दे खते-दे खते श ु ारा यु म परा त हो गया। अब आप कसी औरके साथ इसका ववाह कर द अथवा यह उस पु षका वरण करे, जसका यश और परा म अख डत हो तथा जसे श ु के हाथसे अपमा नत न होना पड़ा हो। पु ष सबल होनेके कारण वत होता है और याँ अबला होनेके कारण सदा परत



रहती ह। पर तु जहाँ पु ष भी सरेके परत हो गया, वहाँ उसम मनु यता ही या रह गयी। जब इसके सामने ही राजा ने मुझे पृ वीपर गरा दया, तब अब म इसे अपना मुँह कैसे दखाऊँगा?’ अवी तके ऐसा कहनेपर राजा वशालने अपनी पु ीसे कहा—‘बेट ! इन महा माक बात तुमने सुनी है न? शुभे! जसम तु हारी च हो, ऐसे कसी सरे पु षको प त पम वरण करो अथवा हम जसे तु ह दे द, उसीका तुम आदर करो।’ क या बोली— पताजी! य प सं ामम इनके यश और परा मक हा न ई है, तथा प ये उसम धमानुकूल बताव करते रहे ह। ये अकेले थे तो भी ब त ने मलकर इ ह परा त कया है; अतः वा तवम इनक पराजय ई, यह कहना ठ क नह है। यु के लये जब ब त-से राजा आये, तब ये उनम सहक भाँ त अकेले घुस गये और नर तर डटकर सामना करते रहे। इससे इनका महान् शौय कट आ है। ये वीरता और परा मसे यु होकर धमयु म संल न थे। ऐसे समयम सम त राजा ने मलकर इनपर अधमपूवक वजय पायी है। अतः इसम इनके लये ल जाक कौन-सी बात है। तात! म इनके प मा पर लुभा गयी ँ, ऐसी बात नह है, इनक वीरता, परा म और धीरता आ द स ण मेरे च को चुराये लेते ह। अतः अब अ धक कहनेक या आव यकता है। आप मेरे लये महाराजसे इ ह महानुभावक याचना क जये। इनके सवा सरा कोई पु ष मेरा प त नह हो सकता। वशालने कहा—राजकुमार! मेरी पु ीने ब त अ छ बात कही ह। इसम स दे ह नह क तु हारे-जैसा वीर कुमार इस भूतलपर सरा कोई नह है। तु हारे शौयक कह समता नह है। तु हारा परा म अन त है। वीर! तुम मेरी क याका पा ण हण करके मेरे कुलको प व करो। तब महाराज कर धमने अपने पु को समझाते ए कहा—‘बेटा! तुम राजा वशालक क याको वीकार करो। इस सु दरीका तु हारे त अ य त ढ़ अनुराग है।’ राजकुमारने कहा— पताजी! मने पहले कभी आपक आ ाका उ लङ् घन नह कया है; अतः ऐसी आ ा द जये, जसका म पालन कर सकूँ। उस राजकुमारका अ य त न त वचार दे ख वशालने ाकुल होकर अपनी क यासे कहा—‘बेट ! अब तुम इनक ओरसे अपना मन हटा लो और सरेको प त पम वरण करो। यहाँ ब त-से राजकुमार ह।’ क या बोली— पताजी! य द ये मुझको नह हण करना चाहते तो म तप या करके इ ह अपना प त बनाऊँगी। इस ज मम इनके सवा सरा कोई मेरा प त नह होगा। तदन तर राजा कर धम राजा वशालके साथ स तापूवक तीन दन तक टके रहे, फर अपने नगरको लौट आये। अवी तको उनके पता तथा अ य राजा ने ाचीन ा त के ारा ब त कुछ समझाया। इससे वे भी उनके साथ नगरम लौट आये। राजक या वैशा लनी अपने ब धु-बा धव से वदा ले वनम चली गयी और वहाँ ढ़ वैरा यम थत हो



नराहार रहकर तप या करने लगी। तीन महीन तक उपवास करनेके बाद उसको बड़ी पीड़ा ई। वह अ य त बली हो गयी और उसके शरीरक एक-एक नाड़ी दखायी दे ने लगी। उसका उ साह म द पड़ गया। वह मरणास हो चली। तब उस राजकुमारीने शरीर याग दे नेका वचार कया। उसका अ भ ाय जानकर दे वता ने उसके पास एक त भेजा। तने वहाँ आकर कहा—‘राजकुमारी! म दे वता का त ँ। दे वता ने तु हारे पास मुझे जस कायके लये भेजा है, उसे सुनो। यह मानव-शरीर अ य त लभ है। तुम अकारण इसका प र याग न करो। क याणी! तुम च वत राजाक जननी होओगी। तु हारा पु अपने श ु का संहार करके सात प से यु पृ वीका अख ड रा य भोगेगा। कह भी उसक आ ाका उ लङ् घन न होगा। वह चार वण को अपने-अपने धमम था पत करके उन सबका पालन करेगा। लुटेर , ले छ और का वध करेगा। उ म द णा से पूण नाना कारके य करेगा। उसके ारा अ मेध आ द य का छः हजार बार अनु ान होगा।’ वह त आकाशम ही खड़ा था। उसके शरीरपर द हार और च दन शोभा पा रहे थे। उसे इस पम दे ख राजक याने कोमल वाणीम कहा—‘तुम दे वता के त हो, इसम त नक भी स दे ह नह । सचमुच ही तुम वगसे यहाँ आये हो; क तु तु ह बताओ, प तके बना मुझे पु कैसे होगा? मने पताके समीप यह त ा कर ली है क इस ज मम अवी तके सवा सरा कोई पु ष मेरा प त नह होगा; क तु वे अवी त मेरे पताके, अपने पताके तथा वयं मेरे कहनेपर भी मुझे नह हण करना चाहते।’ दे व तने कहा—‘महाभागे! ब त कहनेसे या लाभ है। तु ह पु अव य होगा। तुम अधमपूवक इस शरीरका याग न करो। इसी वनम रहो और अपने बल शरीरका पोषण करो। तप याके भावसे तु हारा सब कुछ भला ही होगा। य कहकर दे व त जैसे आया था, लौट गया तथा वह सु दरी त दन अपने शरीरका पोषण करने लगी। उधर अवी तक वीर स वनी माता वीराने कसी शुभ दनको अपने पु अवी तको पास बुलाया और इस कार कहा—‘बेटा! म तु हारे पताक आ ासे एक त क ँ गी। उसका नाम क म छक त है, क तु वह है ब त कर। फर भी उसके करनेसे क याण ही होगा। य द तुम कुछ बल और परा म दखाओ तो वह अव य सा य हो जायगा। तु हारे लये वह असा य हो या ःसा य, य द तुम उसके लये त ा कर लोगे तो म उसका अनु ान आर भ कर ँ गी। अब तु हारा जो वचार हो, सो कहो।’ अवी त बोले—माँ! य द पताजीने तु ह आ ा दे द है तो तुम न त होकर क म छक तका अनु ान करो। मनम कसी कारक च ता न करो। तदन तर महारानी वीराने उपवासपूवक उस तका आर भ कया तथा शा म बताये अनुसार कुबेरक , स पूण न धय क , न धपालगणक और ल मीजीक बड़ी भ के



साथ पूजा क । उ ह ने अपने मन, वाणी और शरीरको काबूम कर लया था। इधर महाराज कर धम जब एका त घरम बैठे ए थे, उस समय नी त-शा - वशारद म य ने उनके पास जाकर कहा—‘राजन्! इस पृ वीका शासन करते ए आपक वृ ाव था आ गयी। आपके एक ही पु ह अवी त, ज ह ने ीका स पक ही छोड़ दया है; इससे आपका वंश अब लु त हो जायगा। पतर को प ड और पानी दे नेवाला कोई नह रहेगा। अतः आप ऐसा कोई य न क जये, जससे आपका पु पतर का उपकार करनेवाली बु हण करे — ववाह करनेपर राजी हो जाय।’ इसी समय राजा कर धमके कान म एक आवाज आयी। रानी वीराके पुरो हत याचक से कह रहे थे, ‘कौन या चाहता है? कसके लये कौन-सी व तु ःसा य है, जसका साधन कया जाय? महाराज कर धमक रानी क म छक तका अनु ान करती ह; अतः जसक जो इ छा हो, वह पूण क जायगी।’ पुरो हतक बात सुनकर राजकुमार अवी तने भी राज ारपर आये ए सम त याचक से कहा—‘मेरी परम सौभा यवती माता क म छक- त कर रही ह; अतः मेरे शरीरसे कसीका कोई काय स होनेवाला हो तो वह बतलावे। सब याचक सुन ल, म त ापूवक कहता ँ। इस क म छक- तके अनु ानके अवसरपर तुमलोग या चाहते हो, बताओ! उसे म ँ गा।’ अपने बेटेके मुखसे यह बात सुनकर महाराज कर धम तुरंत सामने आये और बोले —‘म याचक ँ। मुझे मेरी माँगी ई व तु दो।’ अवी त बोले—तात! आपको या दे ना है? बतलाइये। मेरा कत कर हो, सा य हो अथवा अ य त ःसा य हो; बताइये म उसे पूण क ँ गा। राजाने कहा—य द तुम स य त हो और सबको इ छानुसार दान दे ते हो तो मेरी गोदम पौ का मुँह दखाओ। अवी त बोले—महाराज! म आपका एक ही पु ँ और चयका पालन मेरा त है। मेरे कोई पु है ही नह , फर आपको पौ का मुख कैसे दखाऊँ? राजाने कहा—ब त कहनेसे या लाभ, तुम चयको छोड़ो और अपनी माताके इ छानुसार मुझे पौ का मुख दखाओ। माक डेयजी कहते ह—जब पु के ब त कहनेपर भी राजाने सरी कोई व तु नह माँगी, तब उ ह ने कहा—‘ पताजी! म आपको क म छक दान दे कर बड़े सङ् कटम पड़ गया। अब नल ज होकर फर ववाह क ँ गा। ीके सामने परा त आ और पृ वीपर गराया गया; फर भी मुझे ीका वामी बनना पड़ेगा, यह बड़ा ही कर कम है। तथा प म या क ँ , स यके ब धनम बँधा ँ। आपने जो आ ा द है, वह क ँ गा।’ एक दन राजकुमार अवी त शकार खेलनेके लये वनम गये। वहाँ वे ह रण, वराह तथा ा आ द ज तु को अपने बाण का नशाना बनाने लगे। इतनेम ही उ ह सहसा कसी ीके रोनेका श द सुनायी दया। वह भयसे ग दवाणीम उ च वरसे बार-बार दन



करती ई ा ह- ा हक रट लगा रही थी। राजकुमार अवी तने ‘मत डरो, मत डरो’ ऐसा कहते ए अपने घोड़ेको उसी ओर बढ़ाया, जधरसे वह श द आ रहा था। उस नजन वनम दनुके पु ढ़केशके ारा पकड़ी गयी वह क या वलाप करती ई कह रही थी, ‘म महाराज कर धमके पु अवी तक प नी ँ, क तु यह नीच दानव मुझे हरकर लये जाता है। जन महाराजके सम सम त राजा, ग धव तथा गु क भी खड़े होनेक श नह रखते, जनका ोध मृ यु और परा म इ के समान है, उ ह क पु वधू होकर आज म एक दानवके ारा हरी जा रही ँ।’ वह इस कार कह-कहकर रो ही रही थी क राजकुमार अवी त तुरंत वहाँ जा प ँचे। उ ह ने दे खा, एक अ य त मनोहर क या है, जो सब कारके आभूषण से शोभा पा रही है और हाथम डंडा लये दनु-पु ढ़केशने उसे पकड़ रखा है तथा वह क ण वरम ‘ ा ह- ा ह’ पुकार रही है। यह दे खकर अवी तने उससे कहा—‘तुम भय न करो।’ फर उस दानवसे कहा—‘ओ ! अब तू मारा जायगा। भूम डलके सम त राजा जनके तापके सामने म तक झुकाते ह, उन महाराज कर धमके रा यम कौन जी वत रह सकता है।’ राजकुमारको े धनुष लये आया दे ख वह कृशा युवती बार-बार कहने लगी, ‘आप मुझे बचाइये। यह मुझे हरकर लये जाता है। म महाराज कर धमक पु वधू और अवी तक प नी ँ। सनाथ ँ तो भी इस वनम यह मुझे अनाथक भाँ त हरकर लये जाता है।’ यह सुनकर अवी त उसक बातपर वचार करने लगे—‘यह कस कार मेरी भाया तथा पताजीक पु वधू ई? अथवा इस समय तो इसे छु ड़ाऊँ, फर समझ लूँगा। पी ड़त क र ा करनेके लये ही य ह थयार धारण करते ह।’ ऐसा न य करके वीर अवी तने उस खोट बु वाले दानवसे कु पत होकर कहा—‘पापी! य द जी वत रहना चाहता है तो इसे छोड़कर चला जा; अ यथा तेरे ाण नह बचगे।’ इतना सुनते ही वह दानव उस क याको छोड़कर डंडेको ऊपर उठा अवी तक ओर दौड़ा। तब उ ह ने भी बाण क वषासे उसे ढँ क दया। दानव ढ़केश अ य त मदसे मतवाला हो रहा था। राजकुमारके बाण से रोके जानेपर भी उसने सौ क ल से यु वह डंडा उनपर दे मारा; क तु राजकुमारने अपनी ओर आते ए उस डंडेके बाण मारकर टु कड़े-टु कड़े कर दये। फर दानवने कु पत होकर राजकुमारपर जो-जो ह थयार चलाया, वह सब उ ह ने अपने बाण से काट गराया। डंडे और ह थयार के कट जानेपर उसे बड़ा ोध आ और वह मु का तानकर राजकुमारक ओर दौड़ा। पास आते ही राजकुमारने वेतसप नामक बाणसे उसका म तक काट गराया। इस कार उस राचारी दानवके मारे जानेपर सम त दे वता ने अवी तको साधुवाद दया और वर माँगनेके लये कहा। तब उ ह ने अपने पताका य करनेक इ छासे एक महापरा मी पु माँगा।



दे वता बोले—राजकुमार! जसका तुमने अभी उ ार कया है, इसी क याके गभसे तु ह महाबली च वत पु क ा त होगी। राजकुमारने कहा—दे वगण! राजा से परा त होनेपर मने ववाहका वचार छोड़ दया था, क तु पता ारा स यके ब धनम बाँधे जानेपर म अब पु क अ भलाषा करता ँ। पहले राजा वशालक क याको मने याग दया था, क तु उसने मेरे ही लये सरे कसी पु षको प त बनानेका वचार छोड़ रखा है। अतः उस यागमयी दे वीको छोड़कर ू र दय हो म सरी ीको कैसे अपनी प नी बना सकूँगा? दे वता बोले—यही राजा वशालक क या और तु हारी भाया है, जसक तुम सदा शंसा करते हो। यह सु दरी तु हारे लये ही तप करती रही है। इसके गभसे तु हारे च वत एवं वीर पु उ प होगा। वह सात प का शासक तथा सह य का अनु ान करनेवाला होगा। कर धम-कुमार अवी तसे य कहकर सम त दे वता वहाँसे चले गये। तब उ ह ने उस ीसे कहा—भी ! कहो तो यह या बात है! तब वैशा लनीने अपना वृ ा त सुनाना आर भ कया—‘नाथ! आपने जब मुझे याग दया तो इस जीवनसे वैरा य हो गया और म ब धु-बा धव को छोड़कर वनम चली आयी। वीर! यहाँ तप या करते-करते मने अपना शरीर सुखा दया और तब इसे याग दे नेको उ त हो गयी। इसी समय दे वता के तने आकर मुझे रोका और कहा—‘तु ह महाबलवान् च वत पु ा त होगा, जो दे वता को तृ त करेगा और असुर का संहार करेगा।’ इस कार दे व तने जब दे वता क आ ा सुनायी, तब आपके समागमक आशासे मने इस दे हका याग नह कया।’ माक डेयजी कहते ह—वैशा लनीके ये वचन सुनकर तथा क म छक तम क ई त ाके समय पताके कहे ए उ म वचन का मरण करके अवी तने उस क यासे ेमपूवक कहा—‘दे व! उस समय श ु से परा जत होनेके कारण मने तु हारा याग कया था और अब फर श ु को जीतकर ही तु ह पाया है। अब बताओ, या क ँ ?’ इसी अवसरपर मय नामक ग धव े अ सरा तथा अ य ग धव के साथ वहाँ आया। ग धव बोला—राजकुमार! यह क या वा तवम मेरी पु ी भा मनी है। मह ष अग यके शापसे यह राजा वशालक पु ी ई थी। बचपनम खेलते समय इसने अग य मु नको कु पत कर दया था। तब उ ह ने शाप दे ते ए कहा—‘जा, तू मनु य-यो नम उ प होगी।’ तब हमलोग ने मु नको स करते ए कहा—‘ ष! अभी यह नरी बा लका है, इसे भले-बुरेका ववेक नह है, तभी इसके ारा आपका अपराध बन गया है। अतः इसके ऊपर कृपा क जये।’ तब उन महामु नने कहा—‘बा लका समझकर ही मने इसे ब त थोड़ा शाप दया है। अब यह टल नह सकता।’ यही मह षका शाप था, जससे यह मेरी पु ी भा मनी राजा वशालके भवनम उ प ई। इसके लये ही म यहाँ उप थत आ ँ। आप मेरी इस क याको हण क जये। इससे आपको च वत पु क ा त होगी।



तब ‘ब त अ छा’ कहकर राजकुमारने व धपूवक उसका पा ण हण कया। उस समय वहाँ तु बु मु नने हवन कया। दे वता और ग धव गीत गाते रहे। मेघ ने फूल क वषा क और दे वता के बाजे बजते रहे। ववाहके प ात् दोन द प त महा मा मयके साथ ग धवलोकम गये। अवी त अपनी प नीके साथ कभी अ य त रमणीय नगरो ानम और कभी पवतक उप यकाम वहार करने लगे। वहाँ मु न, ग धव और क रलोग उन दोन के लये भोजनक साम ी, च दन, व , माला तथा पीनेयो य पदाथ आ द उ म व तुएँ तुत कया करते थे। मनु य के लये लभ ग धवलोकम अवी त इस कार भा मनीके साथ वहार करते रहे। कुछ समयके बाद भा मनीने वीर अवी तके पु को ज म दया। उस महापरा मी पु का ज म होनेपर उससे काय स क अपे ा रखनेवाले ग धव के यहाँ बड़ा भारी उ सव आ। उसम सब दे वता तथा नमल दे व ष भी पधारे। पातालसे नागराज शेष, वासु क और त क भी आये। दे वता, असुर, य और गु क म जो-जो धान थे, वे सब उप थत ए। सभी म ण भी पधारे थे। तु बु ने उस बालकका जातकम आ द करके तु तपूवक व तवाचन कया और कहा—‘आयु मन्! तुम च वत , महापरा मी, महाबा एवं महाबलवान् होकर सम त पृ वीका शासन करो। वीर! ये इ आ द लोकपाल तथा मह ष तु हारा क याण कर और तु ह श ुनाशक श दान कर। पूव दशाम बहनेवाले म त्, जनम धूलका समावेश नह होता, तु हारा क याण कर। द ण दशाके नमल म त् तु ह व थ रख। प मके म त् उ म परा म द तथा उ रके म त् तु ह उ कृ बल दान कर।’ इस कार व ययनके प ात् आकाशवाणी ई, ‘पुरो हतने ‘म त् तव’ (म त् तु हारा क याण कर)-का अनेक बार योग कया है, इस लये यह बालक पृ वीपर ‘म ’ के नामसे व यात होगा। भूम डलके सभी राजा इसक आ ाके अधीन रहगे और यह वीर सब राजा का सरमौर बना रहेगा। अ य भूपाल को जीतकर यह महापरा मी च वत होगा और सात प वाली समूची पृ वीका उपभोग करेगा। य करनेवाले राजा म यह धान होगा तथा सम त नरेश म इसका शौय और परा म सबसे अ धक होगा।’ दे वता मसे कसीने यह आकाशवाणी क थी। इसे सुनकर ा ण, ग धव तथा बालकके माता- पता ब त स ए। तदन तर राजकुमार अवी त अपने य पु को गोदम ले ग धव के साथ ही अपने पताके नगरम आये। पताके घरम प ँचकर उ ह ने उनके चरण म आदरपूवक म तक झुकाया तथा ल जावती भा मनीने भी शुरके चरण म णाम कया। उस समय राजा कर धम धमासनपर वराजमान थे। अवी तने पु को लेकर कहा—‘ पताजी! माताके क म छक- तम मने जो त ा क थी, उसके अनुसार अब आप गोदम लेकर इस पौ का मुख दे खये।’ य कहकर उ ह ने पताक गोदम बालकको रख दया और उसके ज मका सारा वृ ा त ठ क-ठ क कह सुनाया। राजा कर धमके ने म आन दके आँसू छलक आये। उ ह ने पौ को छातीसे लगाकर अपने



भा यक शंसा करते ए कहा—‘म बड़ा ही सौभा यशाली ँ।’ इसके बाद उ ह ने वहाँ आये ए ग धव का अ य आ दके ारा स कार कया। उस समय उनको और कसी बातक याद नह रही! उस नगरम, पुरवा सय के घर-घरम महान् आन द छा गया। सब स होकर कहते थे—‘हमारे महाराजके पोता आ है।’ राजा कर धमने हषम न होकर ा ण को र न, धन, गौ, व और आभूषण दान कये। वह बालक शु ल प के च माक भाँ त त दन बढ़ने लगा। उसे दे खकर पता आ दको बड़ी स ता होती थी। वह सब लोग का यारा था। कुछ बड़ा होनेपर उपनयनके बाद उसने आचाय के पास रहकर पहले वेद क , फर सम त शा क तथा अ तम धनुवदक श ा हण क । त प ात् भृगप ु ु शु ाचायसे अ या य अ व ा का ान ा त कया। वह गु के सम वनीतभावसे म तक झुकाता तथा सदा उ ह स रखनेक चे ाम संल न रहता था। वह अ व ाका ाता, वेदका व ान्, धनुवदम पार त तथा सब व ा म न णात था। उस समय म से बढ़कर सरा कोई नह था। राजा वशालको भी जब अपनी पु ीका सारा समाचार ात आ तथा दौ ह क उ म यो यता सुनायी पड़ी, तब उनका मन आन दम नम न हो गया। पौ को दे खनेसे महाराज कर धमका मनोरथ पूण हो गया। उ ह ने अनेक य कये और याचक को ब त दान दये। तदन तर वन जानेके लये उ सुक होकर उ ह ने अपने पु अवी तसे कहा —‘बेटा! म बूढ़ा हो गया, अब वनम तप याके लये जाऊँगा। तुम मुझसे यह रा य ले लो। म कृतकृ य ँ। तु हारा राज तलक करनेके अ त र सरा कोई काय शेष नह है।’ यह सुनकर राजकुमार अवी तने बड़ी न ताके साथ पतासे कहा—‘तात! म पृ वीका पालन नह कर सकूँगा। मेरे मनसे ल जा अभी र नह होती। आप इस रा यपर कसी औरको नयु क जये। म ब धनम पड़नेपर पताके हाथ मु आ ँ, अपने बलसे नह । अतः मुझम या पौ ष है। जनम पौ ष हो, वे ही इस पृ वीका पालन कर सकते ह। जब म अपनी भी र ा करनेम समथ नह ँ, तब इस पृ वीक र ा कैसे कर सकूँगा। इस लये रा य कसी औरको दे द जये।’ पता बोले—बेटा! पु के लये पता और पताके लये पु भ नह है। य द पताने तु ह ब धनसे छु ड़ाया तो यही मानना चा हये क कसी सरेने नह छु ड़ाया है। पु ने कहा—महाराज! मेरे दयका भाव बदल नह सकता। जो पताक कमायी ई स प भोगता है, जो पताके बलसे ही संकटसे उ ार पाता है तथा पताके नामपर ही जसक या त होती है, अपने गुण से नह —ऐसा मनु य कभी कुलम उ प न हो। जो वयं ही धनका उपाजन करते, वयं या त पाते और वयं ही संकट से मु होते ह, ऐसे पु ष क जो ग त होती है, वही मेरी भी हो। पताके ब त कहनेपर भी जब अवी त पूव उ र ही दे ते चले गये, तब महाराज कर धमने उनके पु म को ही राजा बना दया। पताक आ ाके अनुसार पतामहसे



रा य पाकर म अपने सु द का आन द बढ़ाते ए उसका भलीभाँ त पालन करने लगे। राजा कर धम अपनी प नी वीराको साथ ले वनम तप याके लये चले गये। वहाँ मन, वाणी और शरीरको संयमम रखकर उ ह ने एक हजार वष तक कर तप या क और अ तम शरीर यागकर वे इ लोकम चले गये। उनक प नी वीराने सौ वष बादतक कठोर तप कया। उसके सरपर जटाएँ बढ़ ई थ , शरीरपर मैल जम गयी थी। वह वगम गये ए अपने महा मा प तका सालो य चाहती ई फल-मूलका आहार करके भागवके आ मपर तप या करती थी। ा ण क य म रहकर उनक सेवाम त पर रहती थी। ौ ु क बोले—भगवन्! आपने कर धम और अवी तके च र का मुझसे व तारपूवक वणन कया। अब म अवी तकुमार महा मा म का च र सुनना चाहता ँ। सुना जाता है, उनका च र अलौ कक था। वे च वत , महान् सौभा यशाली, शूरवीर, सु दर, परम बु मान्, धम , धमा मा तथा पृ वीका धमपूवक पालन करनेवाले थे। माक डेयजीने कहा— पताके आदे शसे पतामहका रा य पाकर म जस कार पता अपने औरस पु क र ा करता है, उसी कार जाजन का धमपूवक पालन करने लगे। ऋ वज और पुरो हतके आदे शसे स होकर ब त-से य का व धपूवक अनु ान कया और उनम चुर द णाएँ द । उनका शासन-च सात प म अबाध पसे फैला आ था। आकाश, पाताल और जल आ दम भी उनक ग त कु ठत नह होती थी। राजा तो य करते ही थे, चार वण के अ य लोग भी अपने-अपने कमम आल य छोड़कर संल न रहते और महाराजसे धन ा त कर इ ापूत आ द पु य याएँ करते थे। राजा म ने सौ य करके दे वराज इ को भी मात कर दया। उनके पुरो हत अ रान दन संवतजी थे, जो बृह प तजीके भाई एवं तप याके भ डार थे। मु वान् नामसे स एक सोनेका पवत था, जहाँ दे वता नवास करते थे। महाराज म ने उसका शखर तोड़कर गरा दया और उसे अपने यहाँ मँगा लया। उसके ारा उ ह ने य क सब साम ी—भूवभाग और महल आ द सोनेके ही बनवाये। सदा वा याय करनेवाले मह ष म के च र के वषयम सदा यह गाथा गाते रहते ह—‘महाराज म के समान यजमान इस भूतलपर सरा कोई नह आ, जनके य म सम त य म डप और महल सुवणके ही बने थे; उसम ा ण पया त द णा पाकर तृ त हो गये। इ आ द े दे वता उसम ा ण को भोजन परोसनेका काम करते थे। राजा म के य म जैसा समारोह था, वैसा कस राजाके य म आ है, जहाँ र न से घर भरा रहनेके कारण ा ण ने द णाम मला आ सारा सुवण याग दया। उस छोड़े ए धनको पाकर कतने ही लोग का मनोरथ पूरा हो गया और वे भी उसी धनसे अपने-अपने दे शम पृथक्-पृथक् अनेक य करने लगे।’ मु न े ! इस कार यायपूवक जाका पालन करनेवाले राजा म के पास एक दन कोई तप वी आया और इस कार कहने लगा—“महाराज! आपक पतामही वीरा दे वीने तप वय को मदो म सप के वषसे पी ड़त दे ख आपके पास यह स दे श दया है



—‘राजन्! तु हारे पतामह वगवासी हो गये। म औव मु नके आ मपर रहकर तप या करती ँ। मुझे तु हारे रा य-शासनम ब त बड़ी ु ट दखायी दे ती है। पातालसे सप ने आकर यहाँ दस मु नकुमार को डँस लया है तथा जलाशय के जलको भी षत कर दया है। ये पसीने, मू और व ासे ह व यको षत कर दे ते ह। यहाँके मह ष इन सबको भ म कर डालनेक श रखते ह, क तु कसीको द ड दे नेका अ धकार इनका नह है। इसके अ धकारी तो तु ह हो। राजकुमार को तभीतक भोगज नत सुखक ा त होती है, जबतक उनके म तकपर रा या भषेकका जल नह पड़ता। कौन म ह, कौन श ु ह, मेरे श ुका बल कतना है, म कौन ँ? मेरे म ी कौन ह, मेरे प म कौन-कौन-से राजा ह, वे मुझसे वर ह या अनुर ? श ु ने उ ह फोड़ तो नह लया है? श ुप के लोग क भी या थ त है, मेरे इस नगर अथवा रा यम कौन मनु य े है, कौन धम-कमका आ य लेता है, कौन मूढ़ है तथा कसका बताव उ म है, कसको द ड दे ना चा हये, कौन पालन करने यो य है, कन मनु य पर सदा मुझे रखनी चा हये—इन सब बात पर सदा वचार करते रहना राजाका कत है। दे श-कालक अव थापर रखनेवाले राजाको उ चत है क वह सब ओर कई गु तचर लगाये रखे। वे गु तचर पर पर एक- सरेसे प र चत न ह । उनके ारा यह जाननेक चे ा करे क कोई राजा अपने साथ क ई स धको भंग तो नह करता। राजा अपने सम त म य पर भी गु तचर लगा दे । इन सब काय म सदा मन लगाते ए राजा अपना समय तीत करे। उसे दन-रात भोगास नह होना चा हये। भूपाल! राजा का शरीर भोग भोगनेके लये नह होता, वह तो पृ वी और वधमके पालनपूवक भारी लेश सहन करनेके लये मलता है। राजन्! पृ वी और वधमका भलीभाँ त पालन करते समय जो इस लोकम महान् क होता है, वही वगम अ य एवं महान् सुखक ा त करानेवाला होता है। अतः नरे र! तुम इस बातको समझो और भोग का याग करके पृ वीका पालन करनेके लये क उठाना वीकार करो। तु हारे शासन-कालम ऋ षय को सप क ओरसे जो भारी संकट ा त आ है, उसे तुम नह जानते। मालूम होता है तुम गु तचर पी ने से अ धे हो। अ धक कहनेसे या लाभ, तुम को द ड दो और स जन पु ष का पालन करो। इससे तुम जाके धमके छठे अंशके भागी हो सकोगे। य द तुम जाजन क र ा नह करोगे तो लोग उ डतावश जो कुछ भी पाप करगे, वह सब तु ह को भोगना पड़ेगा—इसम त नक भी स दे ह नह है। अब तु हारी जैसी इ छा हो वह करो।’ महाराज! आपक पतामहीने जो कुछ कहा था, वह सब मने सुना दया। अब आपक जैसी च हो, वैसा कर।” तप वीक यह बात सुनकर राजा म को बड़ी ल जा ई, ‘सचमुच ही म गु तचर पी ने से अ धा ँ। मुझे ध कार है’—य कहकर लंबी साँस ले उ ह ने धनुष उठाया और तुरंत ही औवके आ मपर प ँचकर अपनी पतामही वीराको तथा अ या य तप वी महा मा को णाम कया। उन सबने आशीवाद दे कर राजाका अ भन दन कया।



त प ात् सप के काटनेसे मरकर पृ वीपर पड़े ए सात तप वय को दे ख उन सबके सामने म ने बारंबार अपनी न दा क और कहा—‘मेरे परा मक अवहेलना करके ा ण के साथ े ष करनेवाले सप क म जो दशा क ँ गा, उसे दे वता, असुर और मनु य स हत स पूण संसार दे खे।’ य कहकर राजाने कु पत हो पाताललोक- नवासी स पूण नाग का संहार करनेके लये संवतक नामक अ उठाया। तब उस महान् अ के तेजसे सारा नागलोक सब ओरसे सहसा जल उठा। उस समय जो घबराहट ई, उसम नाग के मुखसे ‘हा तात! हा माता! हा व स!’ क पुकार सुनायी दे ती थी। क ह के पूँछ जलने लगे और क ह के फण। कुछ सप अपने व और आभूषण छोड़कर ी-पु को साथ ले पाताल यागकर म क माता भा मनीक शरणम गये, जसने पूवकालम उ ह अभय दान दे रखा था। भा मनीके पास प ँचकर भयसे ाकुल ए सम त सप ने णामपूवक ग दवाणीम कहा—‘वीरजननी! आजसे पहले रसातलम हमल ग ने जो आपका स कार कया था और आपने हम अभयदान दया, उसके पालनका यह समय आ प ँचा है। हमारी र ा क जये। यश व न! आपके पु म अपने अ के तेजसे हमलोग को द ध कर रहे ह। इस समय आपके सवा और कोई हम शरण दे नेवाला नह है। आप हमपर कृपा क जये।’ सप क यह बात सुनकर और पहले अपने दये ए वचनको याद करके सा वी भा मनीने तुरंत ही अपने प तसे कहा—‘नाथ! म पहले ही आपको यह बात बता चुक ँ क नाग ने पातालम मेरा स कार करके मेरे पु से ा त होनेवाले भयक चचा क थी और मने इनक र ाका वचन दया था। आज ये भयभीत होकर मेरी शरणम आये ह। म के अ से ये सब लोग द ध हो रहे ह। जो मेरे शरणागत ह, वे आपके भी ह; य क मेरा धमाचरण आपसे पृथक् नह है तथा म वयं भी आपक शरणम ँ। अतः आप अपने पु म को आदे श दे कर रो कये, म भी उससे अनुरोध क ँ गी। मेरा व ास है, वह अव य शा त हो जायगा।’ अवी त बोले—दे व! न य ही कसी भारी अपराधके कारण म कु पत आ है, अतः म तु हारे पु का ोध शा त करना क ठन मानता ँ। नाग ने कहा—राजन्! हम आपक शरणम आये ह। आप हमपर कृपा कर। पी ड़त क र ा करनेके लये ही यलोग श धारण करते ह। शरण चाहनेवाले नाग क यह बात सुनकर तथा प नीके ाथना करनेपर महायश वी अवी तने कहा—‘म तुरंत चलकर नाग क र ाके लये तु हारे पु से कहता ँ, य क शरणागत का याग करना उ चत नह है। य द राजा म मेरे कहनेसे अपने श को नह लौटायेगा तो म अपने अ से उसके अ का नवारण क ँ गा।’ यह कहकर यम े अवी त धनुष ले अपनी ीके साथ तुरंत ही औव मु नके आ मपर गये।



वहाँ प ँचकर अवी तने दे खा, भा मनीका पु अपने हाथम एक े धनुष लये ए है, उसका अ बड़ा ही भयानक है, उसक वालासे सम त दशाएँ ा त हो रही ह। वह अपने अ से आग उगल रहा है, जो सम त भूम डलको जलाती ई पातालके भीतर प ँच गयी है। वह अ न अ य त भयानक और अस है। राजा म को भ ह टे ढ़ कये खड़ा दे ख अवी तने कहा—‘म ! ोध न करो, अपने अ को लौटा लो।’ यह बात उ ह ने बार-बार कही और इतनी शी तासे कही क उतावलीके कारण कतने ही अ र का उ चारण नह हो पाता था। पताक बात सुनकर और बारंबार उ ह दे खकर हाथम धनुष लये ए म ने माता और पता दोन को णाम कया और इस कार उ र दया—‘ पताजी! मेरा शासन होते ए भी सप ने मेरे बलक अवहेलना करके भारी अपराध कया है। इन मह षय के आ मम घुसकर नाग ने दस मु नकुमार को डँस लया है। इतना ही नह , इन राचा रय ने ह व य को भी षत कया है तथा यहाँ जतने जलाशय ह, उन सबको वष मलाकर खराब कर दया है। ये सभी सप ह यारे ह, अतः इनका वध करनेसे आप हम न रोक।’ अवी त बोले—‘राजन्! ये सप मेरी शरणम आ गये ह, अतः मेरे गौरवका यान रखते ए ही तुम इस अ को लौटा लो। ोध करनेक आव यकता नह है। म ने कहा—‘ पताजी! ये और अपराधी ह। इ ह मा नह क ँ गा। जो राजा द डनीय पु ष को द ड दे ता और साधु पु ष का पालन करता है, वह पु यलोक म जाता है तथा जो अपने कत क उपे ा करता है, वह नरक म पड़ता है। अवी त बोले—राजन्! ये सप भयभीत होकर मेरी शरणम आये ह और म तु ह मना करता ँ; फर भी इन नाग क हसा करते हो तो म तु हारे अ का तकार करता ँ। मने भी अ - व ा सीखी है। पृ वीपर केवल तु ह अ वे ा नह हो। भला, मेरे आगे तु हारा पु षाथ या है। यह कहकर ोधसे लाल आँख कये अवी तने धनुष चढ़ाया और उसपर काला का स धान कया; फर तो समु और पवत स हत समूची पृ वी, जो संवता से स त त हो रही थी, काला का स धान होते ही काँप उठ । म ने भी पता ारा उठाये ए काला को दे खकर कहा—‘तात! मने तो को द ड दे नेके लये यह अ उठाया है, आपका वध करनेके लये नह । फर आप मुझपर काला का योग य करते ह? महाभाग! मुझे जाजन का पालन करना है। आप य मेरा वध करनेके लये अ उठाते ह?’ अवी त बोले—हम शरणागत क र ा करनेपर तुल गये ह और तुम इसम व न डालनेवाले हो; अतः म तु ह जी वत नह छोडँगा। जो शरणम आये ए पी ड़त मनु यपर, वह श ुप का ही य न हो, दया नह दखाता, उस पु षके जीवनको ध कार है। म



य ँ। ये भयभीत होकर मेरी शरणम आये ह और तु ह इनके अपकारी हो। फर तु हारा वध य न कया जाय? म ने कहा— म , बा धव, पता अथवा गु भी य द जा-पालनम व न डाले तो राजाके ारा वह मार डालने यो य है। अतः पताजी! म आपपर हार क ँ गा। आप मुझपर ोध न क जयेगा। मुझे अपने धमका पालनमा करना है। आपपर मेरा र ीभर भी ोध नह है। उन दोन को एक- सरेका वध करनेके लये ढ़संक प दे ख भागव आ द मु न बीचम आ पड़े और म से बोले—‘तु ह अपने पतापर ह थयार चलाना उ चत नह है।’ फर अवी तसे बोले—‘आपको भी अपने व यात पु का वध नह करना चा हये।’ म ने कहा— ा णो! म राजा ँ, मुझे का वध और साधु पु ष क र ा करनी है। ये सपलोग ह। अतः मेरा इसम या अपराध है? अवी त बोले—मुझे शरणागत क र ा करनी है और यह उ ह शरणागत का वध करता है; अतः मेरा पु होनेपर भी अपराधी है। ऋ षय ने कहा—से नाग कह रहे ह क सप ने जन ा ण को काट खाया है, उ ह हम जी वत कये दे ते ह। अतः यु करनेक आव यकता नह है। आप दोन े राजा स ह । इसी समय वीराने आकर अपने पु अवी तसे कहा—‘व स! मेरे कहनेसे ही तु हारा पु इन नाग का वध करनेके लये उ त आ है। य द मरे ए ा ण जी वत हो जाते ह तो अपना काय स हो जायगा और तु हारे शरणागत सप जी वत छू ट जायँगे।’ तब नाग ने वष ख चकर द ओष धय के योगसे उन ा ण को जी वत कर दया। तदन तर राजा म ने पुनः अपने माता- पताके चरण म णाम कया। अवी तने भी म को ेमपूवक दयसे लगा लया और कहा—‘व स! तुम श ु का मान मदन करो, चरकालतक पृ वीका पालन करते रहो। पु और पौ के साथ आन द भोगो तथा तु हारे कोई श ु न ह ।’ इसके बाद ा ण और वीराक आ ा ले अवी त, म और भा मनी रथपर आ ढ़ हो अपनी राजधानीको चले गये। धमा मा म े महाभागा प त ता वीरा भी भारी तप या करके प तके लोकम चली गय । राजा म ने भी काम, ोध आ द छः श ु को जीतकर धमपूवक पृ वीका पालन कया। महाबली महाराज म का ऐसा ही परा म था। सात प म कह भी उनक आ ाका उ लङ् घन नह होता था। उनके समान सरा कोई राजा न आ है, न होगा। वे स व तथा परा मसे यु और महान् तेज वी थे। ज े ! महा मा म के उ म ज म एवं च र क यह कथा सुननेसे मनु य सब पाप से मु हो जाता है।



राजा न र य त और दमका च र माक डेयजी कहते ह—म के अठारह पु म न र य त सबसे ये और े थे। य म े महाराज म ने पचासी हजार वष तक समूची पृ वीका रा य कया। धमपूवक रा यका पालन और उ मो म य का अनु ान करके म ने अपने ये पु न र य तको राजपदपर अ भ ष कर दया और वयं वनम चले गये। वहाँ एका च होकर उ ह ने बड़ी भारी तप या क और अपने सुयशसे पृ वी एवं आकाशको ा त करके वे वगलोकम चले गये। तदन तर उनके बु मान् पु न र य तने अपने पता तथा अ य पूवज के च र क आलोचना करके मन-ही-मन सोचा—वंशक मान-मयादाका पालन, ल जाक र ा, श ु पर ोध, सबको अपने-अपने धमम लगाना और यु से कभी पीठ न दखाना—इन सब बात का मेरे पूवपु ष ने तथा पताजीने जैसा पालन कया है, वैसा सरा कौन कर सकता है। मेरे पूवज ने कौन ऐसा शुभ कम नह कया है, जसको म क ँ । वे बड़े-बड़े य करनेवाले जते य, सं ामसे पीछे न हटनेवाले, बड़े-बड़े यु म भाग लेनेवाले तथा अनुपम पु षाथ थे; म न काम कमका अनु ान क ँ गा। मेरे पहलेके राजा ने वयं ही नर तर य का अनु ान कया है, सर से नह कराया है; म ऐसा क ँ गा, जससे सरे भी य कर। य वचारकर महाराज न र य तने धन-दानसे सुशो भत एक ऐसा य कया, जसके समान य सरे कसीने नह कया था। उ ह ने ा ण के जीवन- नवाहके लये ब त बड़ी स प दे कर उसक अपे ा सौगुना अ दान कया। इस भू मपर रहनेवाले येक ा णको धन और अ दे नेके अ त र गौ, व , आभूषण तथा धा य भ डार आ द भी दये। इसके बाद जब राजाने सरा य आर भ करना चाहा, तब इसके लये उ ह कह ा ण ही नह मले। वे जस- जस ा णका वरण करते, वही उ र दे ता, ‘हम तो वयं ही य कर रहे ह। आप सरे कसी ा णका वरण क जये। आपने पहले ही य म हम इतना धन दे दया है, जो अनेक य करनेपर भी समा त नह होगा। अब हम और धनक आव यकता नह ।’ जब एक भी ऋ वज् ा ण नह मला, तब महाराजने ब हवद म दान दे नेका आयोजन कया तथा प धनसे घर भरा रहनेके कारण ा ण ने वह दान नह हण कया। उस समय राजाने यह उ ार कट कया—‘अहो! इस पृ वीपर कह एक भी नधन ा ण नह है, यह कतनी सु दर बात है!’ तदन तर उ ह ने भ पूवक बारंबार णाम करके कुछ ा ण को ऋ वज् बनाया और ब त बड़ा य आर भ कया। उस समय बड़े आ यक बात यह ई क भूम डलके सभी ा ण य करने लगे, इस लये राजाके य -म डपम कोई सद य न बन सका। कुछ ा ण यजमान थे और कुछ य करानेवाले पुरो हत बन गये। राजा न र य तने जस समय य आर भ कया, उस समय पृ वीके सम त ा ण



उ ह के दये ए धनसे य करने लगे। पूव दशाम अठारह करोड़, प मम सात करोड़, द णम चौदह करोड़ और उ रम पं ह करोड़ य एक ही समय आर भ ए। इस कार म न दन राजा न र य त बड़े धमा मा ए। वे अपने बल और पु षाथके लये सव स थे। न र य तके दम नामक पु आ, जो श ु का दमन करनेवाला था। उसम इ के समान बल और मु नय के समान दया एवं शील था। ब ुक क या इ सेना न र य तक प नी थी। उसीके गभसे दमका ज म आ था। उस महायश वी पु ने नौ वष तक माताके गभम रहकर उसके ारा दमका पालन कराया, तथा वयं भी दमनशील था। इसी लये कालवे ा पुरो हतने उसका नाम ‘दम’ रखा। राजकुमार दमने दै यराज वृषपवासे स पूण धनुवदक श ा पायी। तपोवन नवासी दै यराज भसे स पूण अ ा त कये। मह ष श से वेद तथा सम त वेदा का अ ययन कया और राज ष आ षेणसे योग व ा ा त क । वे सु दर पवान्, महा मा, अ व ाके ाता और महान् बलवान् थे; अतः राजकुमारी सुमनाने पता ारा आयो जत वयंवरम उ ह अपना प त चुन लया। वह दशाण दे शके बलवान् राजा चा वमाक पु ी थी। उसक ा तके लये वहाँ जतने राजा आये थे, सब दे खते ही रह गये और उसने दमका वरण कर लया। म राजकुमार महान द, जो बड़ा बलवान् और परा मी था, सुमनाके त अनुर हो गया था; इसी कार वदभ दे शके राजा सं दनका राजकुमार वपु मान् तथा उदारबु महाधनु भी सुमनाक ओर आकृ थे। उन सबने दे खा, सुमनाने श ु का दमन करनेवाले दमका वरण कर लया; तब कामसे मो हत होकर आपसम सलाह क —‘हमलोग इस सु दरी क याको बलपूवक पकड़कर घर ले चल। वहाँ यह वयंवरक व धसे हममसे जसको वरण करेगी, उसीक प नी होगी।’ ऐसा न य करके उन तीन राजकुमार ने दमके पास खड़ी ई उस सु दरी क याको पकड़ लया। उस समय जो राजा दमके प म थे, उ ह ने बड़ा कोलाहल मचाया। कुछ लोग कु पत होकर रह गये और कुछ लोग म य थ बन गये। इस घटनासे दमके च म त नक भी घबराहट नह ई। उ ह ने चार ओर खड़े ए राजा को दे खकर कहा —‘भूपालगण! वयंवरक धा मक काय म गणना है, क तु वह वा तवम अधम है या धम? इस क याको इन लोग ने जो बलपूवक पकड़ लया है—यह उ चत है या अनु चत? य द वयंवर अधम है, तब तो मुझे इससे कोई मतलब नह है; यह भले ही सरेक प नी हो जाय। क तु य द वह धम है, तब तो यह मेरी प नी हो चुक ; उस दशाम इन ाण को धारण करके या होगा, जो श ुक उपे ा करके बचाये जाते ह।’ तब दशाणनरेश चा वमाने कोलाहल शा त कराकर सभासद से पूछा—‘राजाओ! दमने जो यह धम और अधमसे स ब ध रखनेवाली बात पूछ है, इसका उ र आपलोग द, जससे इनके और मेरे धमका लोप न हो।’



तब कुछ राजा ने कहा—‘पर पर अनुराग होनेपर गा धव- ववाहका वधान है। पर तु यह य के लये ही व हत है; वै य, शू और ा ण के लये नह । दमका वरण कर लेनेसे आपक इस क याका गा धव- ववाह स प हो गया। इस कार धमक से आपक पु ी दमक प नी हो चुक । जो मोहवश इसके वपरीत आचरण करता है, वह कामास है।’ यह सुनकर दमके ने ोधसे लाल हो गये। उ ह ने धनुषको चढ़ाया और यह वचन कहा—‘य द मेरी प नी मेरे दे खते-दे खते बलवान् राजा के ारा हर ली जाय तो मुझ-जैसे नपुंसकके उ म कुलसे तथा इन दोन भुजा से या लाभ आ। उस दशाम तो मेरे अ को, शौयको, बाण को, धनुषको तथा महा मा म के कुलम ा त ए ज मको भी ध कार है।’ य कहकर दमने महान द आ द सम त श ु से कहा —‘भूपालो! यह बाला अ य त सु दरी और कुलीन है। यह जसक प नी नह ई, उसका ज म लेना थ है—यह वचारकर तुमलोग यु म इस कार य न करो, जससे यु म मुझे परा त करके इसे अपनी प नी बना सको।’ यह कहकर राजकुमार दमने वहाँ बाण क बौछार आर भ क । जैसे अ धकार वृ को ढक दे ता है, उसी कार दमने उन राजा को बाण से आ छा दत कर दया। वे भी वीर थे; अतः बाण, श , ऋ तथा मु र क वषा करने लगे। क तु दमने उनके चलाये ए सब ह थयार को खेल-खेलम ही काट डाला। तब महापरा मी महान द वहाँ आ प ँचा और उनके साथ यु करने लगा। तब दमने उसक छातीम एक काला नके समान भयङ् कर बाण मारा। उससे उसक छाती वद ण हो गयी; तो भी उसने उस बाणको ख चकर नकाल दया और दमके ऊपर चमचमाती ई तलवार फक । उसे उ काके समान अपनी ओर आते दे ख दमने श के हारसे काट डाला और वेतसप नामक बाणसे महान दका म तक धड़से अलग कर दया। महान दके मारे जानेपर अ धकांश राजा पीठ दखाकर भाग गये; केवल कु डनपुरका वामी वपु मान् डटा रहा और दमके साथ यु करने लगा। यु करते समय उसक भयङ् कर तलवारको दमने बड़ी फुत से काट दया तथा उसके सार थके म तक और वजाको भी काट गराया। तलवार कट जानेपर वपु मान्ने एक गदा उठायी, जसम ब त-सी काँ टयाँ गड़ी ई थ ; क तु दमने उसको भी उसके हाथम ही काट डाला। फर वपु मान् य ही कोई े आयुध हाथम लेने लगा, य ही दमने उसे बाण से ब धकर पृ वीपर गरा दया। पृ वीपर गरते ही उसका सारा शरीर ाकुल हो गया। वह थर-थर काँपने लगा। अब यु करनेका उसका वचार न रहा। उसको इस अव थाम दे खकर दमने जी वत छोड़ दया और स च हो सुमनाको साथ ले वहाँसे चल दया। तब दशाण दे शके राजा चा वमाने स होकर दम और सुमनाका व धपूवक ववाह कर दया। तदन तर कुछ काल ठहरनेके प ात् दम अपनी ीस हत अपने घरको चले गये। दशाणराजने भी ब त-से हाथी, घोड़े, रथ, गौ, ख चर, ऊँट, दास-दा सयाँ, व ,



आभूषण और धनुष आ द े साम ी तथा ब त-से बतन दहेजम दे कर वर-वधूको वदा कया। महामुने! दम सुमनाको प नी पम पाकर बड़े स थे। घर आकर उ ह ने मातापताके चरण म णाम कया। सुमनाने भी सास-ससुरके चरण म म तक झुकाया। तब उन दोन ने भी आशीवाद दे कर नव-द प तका अ भन दन कया। फर तो न र य तके नगरम बड़ा भारी उ सव मनाया गया। दशाणराज स ब धी ए और ब त-से राजा पु के हाथ यु म परा त हो गये, यह सुनकर महाराज न र य त ब त स ए। दशाणराजकुमारी सुमना दमके साथ ब त समयतक वहार करती रही। फर उसने गभ धारण कया। राजा न र य त भी सब भोग को भोगकर वृ ाव थाम प ँच चुके थे, इस लये वे दमको राजपदपर अ भ ष करके वयं वनम चले गये। उनक यश वनी प नी इ सेनाने भी उनका ही अनुसरण कया, न र य त वहाँ वान थके नयम का पालन करते ए रहने लगे। एक दन द ण दे शका राचारी राजकुमार वपु मान्, जो सं दनका पु था, थोड़ीसी सेना साथ ले वनम शकार खेलनेके लये गया। उसने तप वी न र य त तथा उनक प नी इ सेनाको तप यासे अ य त बल दे खकर पूछा—‘आप वान थ-आ मम थत ा ण, य अथवा वै य ह? मुझे बताइये।’ राजा न र य तने मौन- त धारण कर लया था, इस लये उ ह ने कुछ उ र नह दया; क तु उनक प नी इ सेनाने सब बात सच-सच बता द । प रचय पाकर वपु मान्ने सोचा, अब तो म अपने श ुके पताको पा गया ँ। यह वचारकर उसने कु पत हो न र य तक जटा पकड़ ली। इ सेना आँसू बहाती ई ग दक ठसे रोने और हाहाकार करने लगी। वपु मान्ने यानसे तलवार नकाल ली और यह बात कही, ‘ जसने यु म मुझे परा त कया और मेरी सुमनाको हर लया, उस दमके पताको आज म मार डालूँगा। अब वह आकर इनक र ा करे।’ य कहकर उस राचारीने इ सेनाको रोती- बलखती छोड़ न र य तका म तक काट डाला, तब सम त मु न तथा अ य वनवासी भी उसे ध कारने लगे। वपु मान् अपने नगरको लौट गया। उसके चले जानेपर इ सेनाने एक शू तप वीको अपने पु के पास भेजा और कहा—‘तुम शी जाकर मेरे पु से यह सब हाल कहो। मेरा स दे श इस कार कहना—‘महाराजक इस कार तर कारपूण हसा दे खकर म ब त ःखी ँ। राजा होनेका अ धकार उसीको है, जो चार वण और आ म क र ा करे। तुम जो तप वय क र ा नह करते, या यही तु हारे लये उ चत है? तु हारे महाराज न र य तके वषयम यह बात स हो गयी क बना कसी अपराधके उनके केश पकड़कर वपु मान्ने उनक ह या क ; ऐसी थ तम तुम वही काय करो, जससे तु हारे धमका लोप न हो। इससे आगे मुझे कुछ नह कहना है, य क म तप वनी ँ। तु हारे म ी वीर तथा सब शा के ाता ह; उन सबके साथ वचार करके इस समय जो करना उ चत हो, वह करो। अपने पता



श को रा सके हाथसे मारा गया सुनकर मह ष पराशरने सम त रा स-कुलको अ नकु डम होमकर भ म कर दया था। म तो ऐसा मानती ँ क तु हारे पता नह , तुम मारे गये; उनके ऊपर नह , तु हारे ऊपर वह तलवार गरी है। यह तु हारी ही मयादाका उ लङ् घन कया गया है। अब तु ह भृ य, कुटु ब और ब धु-बा धव स हत वपु मान्के त जो बताव करना उ चत हो, वह करो।’ इस कार संदेश दे इ सेनाने शू तप वीको वदा कया और वयं प तके शरीरको गोदम ले वे अ नम वेश कर गय । इ सेनाक आ ाके अनुसार शू तापसने वहाँ जाकर दमसे उनके पताके मारे जानेका सब समाचार कहा। यह सुनकर दम ोधसे जल उठा। जैसे घी डालनेपर आग व लत हो उठती है, उसी कार दम ोधा नसे जलते ए हाथसे-हाथ मलने लगे और इस कार बोले—‘ओह! मुझ पु के जीतेजी उस नृशंस वपु मान्ने मेरे पताको अनाथक भाँ त मार डाला और इस कार मेरे कुलका अपमान कया। य द म बैठकर शोक मनाऊँ या मा कर ँ तो यह मेरी नपुंसकता है। का दमन और साधु पु ष का पालन—यही मेरा कत है। मेरे पताको मारा गया दे खकर भी य द श ु जी वत है तो अब ‘हा तात! हा तात!’ कहकर ब त अ धक वलाप करनेसे या होगा। इस समय जो करना आव यक है, वही म क ँ गा। उस कायर, पापी एवं द ण-दे श नवासी श ुको यु म मारकर स पूण पृ वीका रा य भोगूँगा। य द उसे न मार सका तो वयं ही अ नम वेश कर जाऊँगा। य द दे वराज इ हाथम व लये वयं ही इस यु म पधार, भयङ् कर द ड लये सा ात् यमराज भी कु पत होकर आ जायँ, कुबेर, व ण और सूय भी वपु मान्क र ाका य न कर तो भी म अपने तीखे बाण से उसका वध कर डालूँगा। जो नयता मा, नद ष, वनवासी, अपने-आप गरे ए फलका आहार करनेवाले तथा सब ा णय के म थे—ऐसे मेरे पताक जसने मुझ-जैसे श शाली पु के रहते ए हसा क है, उसके मांस और र से आज गृ तृ त ह ।’ इस कार त ा करके न र य तकुमार दमने म य तथा पुरो हतको बुलाकर कहा —‘शू तप वीने जो समाचार कहा है, उसे आपलोग ने सुन लया होगा। पताजी तो वगधामम जा प ँचे। अब मेरे लये जो उ चत हो, सो बताओ। आज म वही क ँ गा, जसके लये मेरी माताने आ ा द है। हाथी, घोड़े, रथ और पैदलसे यु चतुर णी सेना तैयार करो। पताके वैरका बदला लये बना, पताके ह यारेका ाण लये बना तथा माताजीक आ ाका पालन कये बना मुझे जी वत रहनेका उ साह नह है।’ राजाक यह बात सुनकर ख च ए म य ने सेवक और वाहन स हत सेनाको कूचके लये तैयार कया और कालवे ा पुरो हतसे आशीवाद ले सब लोग तलवार, श और ऋ आ द आयुध लये नगरसे बाहर नकले। महाराज दम नागराजक भाँ त फुफकारते ए वपु मान्क ओर चले। उ ह ने वपु मान्के सीमार क तथा साम त का वध करते ए बड़े वेगसे द ण दशाम चढ़ाई क । सं दनकुमार वपु मान्को यह पता लग गया क दम



दल-बलस हत आ रहा है। इससे उसके मनम त नक भी भय या क प नह आ। उसने भी अपनी सेनाको यु के लये तैयार होनेका आदे श दया और नगरसे बाहर नकलकर दमके पास त भेजा। तने वहाँ जाकर कहा—‘ याधम! तू शी तापूवक मेरे समीप आ। न र य त अपनी ीके साथ तेरी ती ा करते ह। मेरी भुजा से छू टे ए बाण, जो शानपर चढ़ाकर ती ण कये गये ह, तेरे शरीरम घुसकर यु म तेरा र पान करगे।’ तक कही ई सारी बात सुनकर दमने अपनी पूव त ाका पुनः मरण कया और सपक भाँ त फुफकारते ए वेगसे पैर बढ़ाया। कु डनपुरके पास प ँचकर दमने वपु मान्को यु के लये ललकारा। फर तो दोन म भयङ् कर सं ाम छड़ गया। रथी रथसवारके साथ, हाथीसवार हाथीसवारके साथ और घुड़सवार घुड़सवारके साथ भड़ गये। इस कार सम त दे वता , स और ग धव आ दके दे खते-दे खते दोन दल म घमासान यु आ। जब दम ोधपूवक यु करने लगे, उस समय पृ वी काँप उठ । कोई हाथीसवार, रथी या घुड़सवार ऐसा नह मला, जो उनका बाण सह सके। तदन तर वपु मान्का सेनाप त दमके साथ यु करने लगा। दमने अपने बाणसे उसक छातीम गहरी चोट प ँचायी, जससे वह गरकर ाण से हाथ धो बैठा। सेना य के गरते ही राजास हत सारी सेनाम भगदड़ पड़ गयी। तब दमने कहा—‘ओ ! तू मेरे तप वी पताका, जनके हाथम कोई श नह था, अकारण वध करके कहाँ भागा जाता है। य द य है तो लौट आ।’ तब वपु मान् अपने छोटे भाईके साथ लौट आया। साथम उसके पु , स ब धी तथा ब धु-बा धव भी थे। वह रथपर आ ढ़ हो दमके साथ यु करने लगा। दम अपने पताके वधसे कु पत हो रहे थे। उ ह ने वपु मान्के चलाये ए सम त बाण को काट डाला और उसके अ - य को ब ध डाला। फर एक-एक बाण मारकर उसके सात पु , भाइय , स ब धय तथा म को यमराजके घर भेज दया। पु और भाइय के मारे जानेपर वपु मान्को बड़ा ोध आ और वह सप के समान वषैले बाण से दमके साथ यु करने लगा। दमने उसके बाण को काट डाला और उसने भी दमके बाण टु कड़े-टु कड़े कर डाले। दोन ही अ य त ोधम भरकर एक- सरेको मार डालनेक इ छासे लड़ रहे थे। पर परके बाण क चोटसे दोन के धनुष कट गये, फर दोन तलवार हाथम लेकर पतरे बदलने लगे। दमने णभर अपने मरे ए पताका यान कया, फर दौड़कर वपु मान्क चोट पकड़ ली। त प ात् उसे धरतीपर पटककर एक पैरसे उसका गला दबा दया और अपनी भुजा उठाकर कहा—‘सम त दे वता, मनु य, स और नाग दे ख, म इस नीच य वपु मान्क छाती चीरे डालता ँ।’ य कहकर दमने अपनी तलवारसे उसक छाती चीर डाली। इस कार अपने पताके वैरका बदला लेकर वे पुनः अपने नगरको लौट आये। सूयवंशके राजा ऐसे ही परा मी ए। इनके अ त र भी ब त-से शूरवीर, व ान्, य कता और धम राजा हो गये ह। वे



सभी वेदा तके पार त प डत थे। म उनक सं या बतलानेम असमथ राजा का च र वण करके मनु य पापसे मु हो जाता है।



ँ। इन सब



ीमाक डेयपुराणका उपसंहार और माहा य प ी कहते ह—जै म नजी! महातप वी माक डेय मु नने यह सब कथा सुनाकर ौ ु कजीको वदा कर दया। उसके बाद म या कालक या स प क । महामुने! हमने भी उनसे जो कुछ सुना था, वह सब आपको कह सुनाया। यह अना द स पुराण ाजीने पहले माक डेय मु नको सुनाया था। वही हमने आपसे कहा है। यह पु यमय, प व , आयुवधक तथा स पूण कामना को स करनेवाला है। जो इसका पाठ और वण करते ह, वे सब पाप से मु हो जाते ह। आपने ार भम जो कई कये थे, उसके उ रम हमने पता-पु -संवाद, ाजीके ारा रची ई सृ , मनु क उ प तथा राजा के च र सुनाये ह। यह सब बात तो हम बता चुके। अब आप और या सुनना चाहते ह? जो मनु य इन सब स का वण तथा जनसमुदायम पाठ करता है, वह सब पाप से मु होकर म लीन हो जाता है। पतामह ाजीने जो अठारह पुराण कहे ह, उनम इस व यात माक डेयपुराणको सातवाँ पुराण समझना चा हये। पहला पुराण, सरा प पुराण, तीसरा व णुपुराण, चौथा शवपुराण, पाँचवाँ ीम ागवतपुराण, छठा नारद य पुराण, सातवाँ माक डेयपुराण, आठवाँ अ नपुराण, नवाँ भ व यपुराण, दसवाँ वैवतपुराण, यारहवाँ नृ सहपुराण, बारहवाँ वाराहपुराण, तेरहवाँ क दपुराण, चौदहवाँ वामनपुराण, पं हवाँ कूमपुराण, सोलहवाँ म यपुराण, स हवाँ ग डपुराण और अठारहवाँ ा डपुराण माना गया है। जो त दन अठारह पुराण का नाम लेता तथा त दन तीन समय उनका जप करता है, उसे अ मेध-य का फल मलता है। माक डेयपुराण चार से यु है। इसके वणसे सौ करोड़ क प के कये ए पाप न हो जाते ह। ह या आ द पाप तथा अ य अशुभ इसके वणसे उसी कार न होते ह, जैसे हवाका झ का लगनेसे ई उड़ जाती है। इसके वणसे पु करतीथम नान करनेका पु य ा त होता है।* व या अथवा मृतव सा ी य द यथावत् इस पुराणका वण करे तो वह सम त शुभ ल ण से स प पु ा त करती है। इसका वण करनेसे मनु य आयु, आरो य, ऐ य, धन, धा य, पु तथा अ य वंश ा त करता है। न्! इस पुराणको पूरा सुन लेनेके बाद जो आव यक कत है, वह सुनो। व धपूवक अ नक थापना करके व ान् पु ष होम करे; पुराण व प भगवान् गो व दका दयकमलम यान करके ग ध, पु प, माला, व तथा



नैवे आ दके ारा पूजन करे। वाचकक प नीस हत पूजा करे। त प ात् उ ह ध दे नेवाली सव सा गौ, खेतीसे भरी ई भू म, सुवण और चाँद आ द व तुएँ यथाश दान करनी चा हये। राजा को उ चत है क उ ह ाम आ द तथा सवारी भी द। वाचकको संतु करके उसके ारा व त कहलाय। जो वाचकक पूजा न करके एक ोक भी सुनता है, वह उसके पु यका भागी नह होता; व ान ने उसे शा चोर कहा है। माक डेयपुराणक समा तपर भारी उ सव कराये और सब पाप से मु होनेके लये ध दे नेवाली गौ दान करे। साथ ही सप नीक ा णको व , र न, कु डल, अंगा, पगड़ी, ओढ़ने- बछौने आ दस हत श या, जूता, कम डलु, सोनेक अँगठ ू , स तधा य, भोजनके लये काँसेक थाली और घृतपा दान करे। ऐसा करनेसे मनु य कृतकृ य हो जाता है। जो उ म व धके साथ इसका वण करता है, वह हजार अ मेध और सौ राजसूय-य का फल पाता है। उसे न यमराजसे भय होता है न नरक से। वह मनु य सब पाप से मु होकर कृताथ हो जाता है। इस पृ वीपर उसक वंशपर परा सदा कायम रहती है तथा वह इ लोक एवं सनातन लोकम जाता है। वहाँसे पुनः युत होकर मनु य-यो नम उसे नह आना पड़ता। इस पुराणके वणसे ही मनु य परम योग ा त कर लेता है। ना तक, वेद न दक शू , गु ोही, त-भंग करनेवाले, माता- पताके यागी, सुवणचोर, मयादा भंग करनेवाले तथा जा तको कलङ् कत करनेवाले पु ष को ाण क ठम आ जायँ तो भी इस पुराणका उपदे श नह दे ना चा हये। य द लोभ, मोह अथवा वशेषतः भयके कारण कोई उ मनु य को यह पुराण सुनाता अथवा पढ़ाता है तो वह न य ही नरकम पड़ता है।* जै म न बोले—‘प यो! महाभारतम मेरे जस स दे हका नवारण नह हो सका, उसका नवारण आपलोग ने म भावसे कया है; ऐसा सरा कौन करेगा। आपलोग द घायु, नीरोग तथा उ म वृ से यु ह । सां ययोगम आपक बु अ वचलभावसे थत रहे। पताके शापज नत दोषसे जो आपके मनम ःख रहता है, वह र हो जाय।’ य कहकर महाभाग जै म न उन े प य क शंसा करके अपने आ मपर चले गये। वे उन प य ारा कये ए परम उदार उपदे शका सदा च तन करने लगे।



ीमाक डेयपुराण स पूण



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ा ं पाद्मं वै णवं च शैवं भागवतं तथा । तथा य ारद यं च माक डेयं च स तमम् ।। आ नेयम मं ो ं भ व यं नवमं मृतम् । दशमं वैव नृ सहैकादशं तथा ।। वाराहं ादशं ो ं का दम योदशम् । चतुदशं वामनकं कौम प चदशं तथा ।। मा यं च गा डं चैव ा डं च ततः परम् । अ ादशपुराणानां नामधेया न यः पठे त् ।। स यं जपते न यं सोऽ मेधफलं लभेत् । चतुः समोपेतं पुराणं माक डसं कम् ।। ुतेन न यते पापं क पको टशतैः कृतम् । ह या दपापा न तथा या यशुभा न च ।। ता न सवा ण न य त तूलं वाताहतं यथा । पु कर नानजं पु यं वणाद य जायते ।। (१३७।८—१४)



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पुराण वणादे व परं योगवा ुयात् । ना तकाय न दात ं वृषले वेद न दके ।। गु व े षके चैव तथा भ न तेषु च । पतृमातृप र यागे सुवण ते यने तथा ।। भ मयादके चैव तथैव ा त षके। एतेषां नैव दात ं ाणैः क ठगतैर प ।। लोभा ा य द वा मोहाद् भया ा प वशेषतः । पठे ा पाठये ा प सा ग छे रकं ुवम् ।। (१३७।३२—३५)